Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 9 विदुरनीतिसुधा
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 9 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास-प्रणोत्तराणि
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
यः पक्वं फलं चिनोति सः किं प्राप्नोति ? (जो पका फल तोड़ता है वह क्या प्राप्त करता है?)
(अ) रसं बीजं च
(ब) वृक्षं
(स) काले
(द) रुग्णतां
उत्तर:
(अ) रसं बीजं च
प्रश्न 2.
विद्या केन रक्ष्यते – (विद्या किसके द्वारा सुरक्षित की जाती है?)
(अ) पुस्तकेन
(ब) ज्ञानेन
(स) योगेन
(द) उपायेन।
उत्तर:
(स) योगेन
प्रश्न 3.
शीलवान् जनः कं जयति ? (शीलवान् मनुष्य किसको जीतता है?)
(अ) मार्ग
(ब) सभा
(स) फलं
(द) सर्वं
उत्तर:
(द) सर्वं
प्रश्न 4.
उत्तमम् अन्नं के खादन्ति – (श्रेष्ठ अन्न कौन खाते हैं?)
(अ) धनिकाः
(ब) दरिद्राः
(स) व्यवसायिनः
(द) सुसम्पन्नाः
उत्तर:
(ब) दरिद्राः
प्रश्न 5.
मनुष्यस्य इन्द्रियाणि कीदृशानि सन्ति-(मनुष्य की इन्द्रियाँ कैसी होती हैं?)
(अ) अश्वसदृशानि
(ब) रथसदृशानि
(स) भूमिसदृशानि
(द) पल्लवसदृशानि।
उत्तर:
(अ) अश्वसदृशानि
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
पुरुषेण कार्यारम्भे किं चिन्तनीयम्? (मनुष्य को कार्य के आरम्भ में क्या सोचना चाहिए?)
उत्तरम्:
किन्नु मे स्यादिरं कृत्वां किन्नु मे स्याद कुर्वतः। (करने से मेरा क्या होगा और न करने से क्या होगा?)
प्रश्न 2.
सत्येन किं रक्ष्यते? (सत्य से किसकी रक्षा की जाती है?)
उत्तरम्:
सत्येन धर्मः रक्ष्यते। (सत्य से धर्म की रक्षा की जाती है।)
प्रश्न 3.
जनस्य प्रमाणं कि वर्तते? (व्यक्ति का श्रेष्ठ क्या है ?)
उत्तरम्:
जनस्य प्रमाणं वृत्तं वर्तते। (मनुष्य की श्रेष्ठता चरित्र है)।
प्रश्न 4.
कस्य करणेन कस्य चे त्यजनेन भेतव्यम्? (किसके करने से और किसके न करने से डरना चाहिए?)
उत्तरम्:
अकार्य करणात् कार्याणां च त्यजनात् भेतव्यम्। (न करने योग्य को करने से और करने योग्य को त्यागने से डरना चाहिए।)
प्रश्न 5.
कस्य नाशेन जीवनस्य सार्थकत्वं नश्यति? (किसके नाश से जीवन की सार्थकता नष्ट हो जाती है ?)
उत्तरम्:
शीलस्य नाशेन जीवनस्य सार्थकत्वं नश्यति। (शील के नष्ट होने से जीवन का नाश हो जाता है।)
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
पाठमिमनुसृत्य मानवः व्यवहार-गुणान् वर्णयत-(इस पाठ का अनुसरण करके मानव के व्यवहार के गुणों का वर्णन कीजिए)
उत्तरम्:
मनुष्यः असफलतां प्राप्य हताशो न भवेत्। कार्यं सदैव प्रयोजनं, परिणामं, आत्महितं च ज्ञात्वा करणीयम्। सन्तोषी एव शोभनं फलं प्राप्नोति। विवेकपूर्वक कार्यं कुर्यात्। सर्वतः सुभाषितानि संगृहीति। सदैव विनम्र स्वभावोभवेत्। सत्येन धर्म, योगेन विद्या, मृजयारूपं वृत्तेन च कुलं रक्षेत्। सच्चरित्रः भवेत्। करणीयमेव कार्यं कुर्यात् न च अकरणीयम्। शीलं अत्यावश्यक गुणम्। सदैव उद्यमशीलो भवेत्। इन्द्रियाणि नियम्यै जीवनं यापयेत्। आत्मन्नलीक्षणं कुर्यात्। धर्मार्थों समीक्ष्य एव यः साधनानि संग्रह्य जीवनं यापयति सः सुखं लभते। आक्रोश-परिवादौ न करणीयौ। सदैव क्षमाशीलः भवेत्। मधुरैव हितवादिका वाणी एव वदेत्। (मनुष्य असफलता को प्राप्त कर हताश न हो। कार्य को सदैव प्रयोजन, परिणाम और आत्माहित समझकर करना चाहिए। सन्तोषी सुन्दर फल प्राप्त करता है।
कार्य विवेक के साथ करना चाहिए। सुभाषित सब जगह से संग्रह कर लेने चाहिए। सदैव विनम्र स्वभाव वाला होना चाहिए। सत्य से धर्म, योग से विद्या, सफाई से रूप और चरित्र से कुल की रक्षा करनी चाहिए। सच्चरित्र होना चाहिए। करने योग्य कार्य ही करना चाहिए न कि न करने योग्य। शील अत्यावश्यक गुण है। सदैव उद्यमशील होना चाहिए। इन्द्रियों को संयत करके जीवनयापन करना चाहिए। आत्मान्वीक्षण करना चाहिए। धर्म और अर्थ की समीक्षा करके ही साधनों को जुटाकर जो जीवनयापन करता है वह सुख पाता है। गाली-गलौच और निन्दा नहीं करनी चाहिए। सदैव क्षमाशील होना चाहिए। मधुर और हितकर वाणी ही बोलनी चाहिए।)
प्रश्न 2.
विदुरनीति ग्रन्थस्य परिचयो देयः। (विदुर नीति ग्रन्थ का परिचय दीजिए।)
उत्तरम्:
‘विदुरनीति’ ग्रन्थः महाभारतस्य उद्योगपर्वणः चतुर्विंशद् अध्यायात् उद्धृतः। यदा पाण्डवाः द्यूत-क्रीडया पराजिता: प्रतिज्ञानुसारेण च वनं प्रेषिता तदा धृतराष्ट्रः दुश्चिन्तायां ग्रस्तोऽभवत्। तदैव महात्मानं विदुरमाहूय स्वस्य-मनस्तापस्य शान्त्यर्थम् उपायं पृच्छति स्म। तत्समये महात्मा विदुरेण धर्मस्य नीतेः च सदुपदेश: प्रदत्त: सैव विदुरनीति इति नाम्ना प्रसिद्धः। (विदुर नीति ग्रन्थ महाभारत के उद्योग पर्व के 24वें अध्याय से उद्धृत है। जब पांडव द्युत क्रीड़ा द्वारा पराजित कर दिये गये और प्रतिज्ञा के अनुसार वन को भेज दिये गये तब धृतराष्ट्र दुश्चिन्ता से ग्रसित हो गया। तभी महात्मा विदुर को बुलाकर अपने। मन के सन्ताप की शान्ति के लिए उपाय पूछा। उस समय महात्मा विदुर ने धर्म और नीति का जो उपदेश दिया वही विदुर नीति के नाम से प्रसिद्ध है।)
प्रश्न 3.
अधोलिखितानां पद्यानां सप्रसंग व्याख्या कार्या – (निम्नलिखित पद्यों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए)
1. वनस्पतेरपक्वानि ……………… विनश्यति॥
उत्तर:
इस प्रश्न के उत्तर के लिए पाठ में श्लोक सं. 3 की सप्रसंग संस्कृत व्याख्या देखें।
2. सत्येन रक्ष्यते …………….. वृत्तेन रक्ष्यते ॥
उत्तर:
श्लोक सं. 8 की सप्रसंग संस्कृत-व्याख्या देखें।
3. आत्मनात्मानम् ……………….. रिपुरात्मनः ॥
उत्तर:
श्लोक सं. 15 की सप्रसंग संस्कृत-व्याख्या देखें।
प्रश्न 4.
अधोलिखिते श्लोके छन्दो निर्देशं कृत्वां लक्षणेन संगमयत
यदतप्तं प्रणमति ने तत् संतापयन्त्यपि।
यच्च स्वयं नतं दारु न तत् संनमयन्त्यपि ॥
उत्तरम्:
इसमें पथ्यावक्त्र छन्द है।
लक्षण – युजोश्चतुर्थतो जेन पथ्यावक्त्रं प्रकीर्तितम्। यह अनुष्टुप् का ही एक भेद है। अनुष्टुप् के द्वितीय एवं चतुर्थ पाद में जब चतुर्थ अक्षर के बाद जगण आता है तो पथ्यावक्त्र छन्द होता है। शेष के लिए कोई नियम नहीं है। उपर्युक्त श्लोक के दूसरे और चौथे चरण में पाँचवाँ छटा और सातवाँ वर्ण मिलकर जगण (ISI) बनाते हैं। अत: यह पथ्यावकत्र नाम का अनुष्टुप् छन्द है।
व्याख्या – अनुष्टुप् छन्दसि चत्वारः पादाः भवन्ति। प्रत्येकस्मिन् पाद अष्ट वर्णा भवन्ति। तेषु अष्ट वर्णेषु पञ्चमः वर्णः लघुः षष्टवर्णः गुरुः भवति। सप्तमः वर्णः द्वितीयेपादे चतुर्थे पादे लघुः भवति। प्रथमे तृतीयेपादे च गुरु भवति। अन्येषां वर्णानां न कापि व्यवस्था। अस्मिन् श्लोके द्वितीये, तृतीये चतुर्थे च वर्णानां व्यवस्था लक्षणानुसारमेव परञ्च प्रथमे पदे तु नियम विरुद्धमेव। (अनुष्टुप छन्द में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं। उन आठ वर्षों में पाँचवाँ वर्ण लघु, छठा वर्ण गुरु होता है। सातवाँ वर्ण दूसरे और चौथे चरण में लघु तथा पहले दूसरे में गुरु होता है। अन्य वर्गों की कोई व्यवस्था नहीं है। इस श्लोक में दूसरे, तीसरे और चौथे चरण में तो वर्गों की व्यवस्था लक्षण के अनुसार है, परन्तु प्रथम चरण में नियम के विरुद्ध है।) व्याकरणात्मक-प्रश्नाः
प्रश्न 6.
अधोलिखित पदेषु धातु-लकार-पुरुष-वचनानां निर्देशं कुरुत – (निम्नलिखित पदों में धातु-लकार-पुरुष और वचन बताइए-)
उत्तरम्:
प्रश्न 7.
अधोलिखितेषु पदेषु शब्द-विभक्ति-लिङ्ग-वचनानां निर्देशं कुरुत – (निम्नलिखित पदों में शब्द, विभक्ति, लिंग और वचन बताइए-)
उत्तरम्:
प्रश्न 8.
अधोलिखित पदेषु उपसर्ग, धातु, प्रत्ययानां निर्देशं कुरुत – (निम्नलिखित पदों में उपसर्ग, धातु, और प्रत्यय बताइये)
उत्तरम्:
प्रश्न 9.
अधोलिखितानां शब्दानां सन्धि-विच्छेदं कृत्वा सन्धिनाम निर्देशं कुरुते (अधोलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नाम बताइये।)
उत्तरम्:
प्रश्न 10.
अधोलिखित पदेषु समास विग्रहं कृत्वा समासस्य नाम निर्देशं कुरुत- (निम्नलिखित पदों में समास-विग्रह करके समास का नाम बताइये-)
उत्तरम्:
प्रश्न 11.
अधोलिखितानि वाक्यानि शुद्धानि कर्तव्यानि – (निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए-)
1. कर्मः संचिन्त्य मनुष्यः उपाययुक्त भवेत्।
उत्तरम्:
कर्म संचिन्त्य मनुष्यः उपाययुक्तवित्।
2. सज्जनाः सदैव हितकारी भवन्ति।
उत्तरम्:
सज्जनाः सदैव हितकारिणः भवन्ति।
3. अभ्यास विद्या रक्ष्यते।
उत्तरम्:
अभ्यासेन विद्या रक्ष्यते।
4. वृक्षं फलानि गृह्यते।
उत्तरम्:
वृक्षात् फलानि गृह्यन्ते।
5. सर्वं कल्याणं शोभना वाणी प्रयोक्तव्यः।
उत्तरम्:
सर्वैः कल्याणाय शोभना वाणी प्रयोक्तव्याः।
प्रश्न 12.
अधोलिखितानां पदानां प्रयोगं कृत्वा वाक्यनिर्माणं कुरुत – (निम्नलिखित पदों का प्रयोग करके वाक्य निर्माण कीजिए-)
उत्तरम्:
पदम् वाक्यम्
1. परिणामम् परिणामं ज्ञात्वा एवं कार्यं कुर्यात्। (परिणाम को जानकर कार्य करना चाहिए।)
2. बुद्धिमान् बुद्धिमान् मनुष्यः सर्वं समीक्ष्य एवं कार्यम् आरभते। (विद्वान मनुष्य सब सोच-समझकर कार्य आरम्भ करता है।)
3. मार्जनेन मार्जनेन सर्व शोभनं भवति। (सफाई से सब शोभा देता है।)
4. प्रयोजनम् श्रीमताम् अत्रागमनस्य किं प्रयोजनम् ? (श्रीमान जी का यहाँ आने का प्रयोजन)
5. धनिषु धनिषुबुभुक्षा न भवति। (धनवानों में भूख नहीं होती।)
प्रश्न 13.
अधोलिखिते श्लोके अलङ्कार निर्देशं कृत्वा लक्षणेन संगमयत्। (निम्नलिखित श्लोक में अलंकार बताकर लक्षण के साथ मिलाइए-)
रथं शरीरं पुरुषस्य राजन्नात्मा नियतेन्द्रियाण्यस्य चाश्वाः।
तैरप्रमत्तः कुशली सदश्वैर्यान्त सुखं याति रथीव धीरः॥
उत्तरम्:
श्लोकेऽस्मिन् रूपकः अलङ्कारः। (इस श्लोक में रूपक अलंकार है।)
लक्षणम् – तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः। अत्यन्त सादृश्येन यत्र उपमानोपमेययोः अभेदो जायते तत्र रूपक अलङ्कारः भवति।
सङ्गतिः – श्लोके अस्मिन् रथः नियन्ता अश्वाः इति पदानि क्रमशः शरीरस्य आत्मानः इन्द्रियाणां च उपमानपदानि सन्ति। अत्र उपमानोपमेययोः अभेदः वर्तते अत: अत्र रूपक: अलंकारः शोभते। (अत्यन्त सादृश्य के कारण यहाँ उपमान और उपमेय में अभेद बताया जाये वहाँ रूपक अलङ्कार होता है। इस श्लोक में रथ, नियन्ता और अश्व पद क्रमशः शरीर, आत्मा और इन्द्रियों के उपमान हैं। यहाँ उपमान और उपमेयों में अभेद है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।)
RBSE Class 11 Sanskrit सत्प्रेरिका Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1.
‘विदुरनीतिः’ ग्रन्थः कस्मात् ग्रन्थात् गृहीतः? (विदुर नीति ग्रन्थ किस ग्रन्थ से लिया गया है?)
उत्तरम्:
‘विदुरनीतिः’ ग्रन्थः महाभारतस्य चतुर्विंशद् अध्यायाद् उद्धृतः। (विदुरनीति ग्रन्थ महाभारत के 24वें अध्याय से लिया गया है।)
प्रश्न 2.
‘महाभारत’ इति ग्रन्थः केन रचितः? (महाभारत ग्रन्थ किसने रचा?)
उत्तरम्:
‘महाभारत’ इति ग्रन्थः महर्षि वेदव्यासेन रचितः। (महाभारत ग्रन्थ महर्षि वेदव्यास ने रचा।)
प्रश्न 3.
विदुरनीतिः’ इति ग्रन्थे केन कस्मै उपदिष्टम्? (विदुरनीति ग्रन्थ में किसके द्वारा किसके लिए उपदेश दिया गया है?)
उत्तरम्:
विदुरनीत्यां विदुरेण धृतराष्ट्राय नीते: धर्मस्य च उपदेशः प्रदत्तः। (विदुरनीति में विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को नीति .. और धर्म का उपदेश दिया गया है।)
प्रश्न 4.
महात्मा विदुरः कीदृशः आसीत्? (महात्मा विदुर कैसे थे ?)
उत्तरम्:
महात्मा विदुरः विद्वान्, नीतिमान्, सज्जनः, भगवद्भक्तश्चासीत्। (महात्मा विदुर विद्वान, नीतिज्ञ, सज्जन और भगवान के भक्त थे।)
प्रश्न 5.
मनः कुत्र न ग्लपयेत्? (मन में ग्लानि कहाँ नहीं करनी चाहिए ?)
उत्तरम्:
उपाययुक्तं योगविहितं कर्म यदि न सिध्यति तत्र मेधावी मन: न ग्लपयेत्। (उपाय से युक्त विधिपूर्वक अभ्यास से किया गया कर्म यदि सिद्ध न हो तो मेधावी व्यक्ति को मन में ग्लानि नहीं करनी चाहिए।)
प्रश्न 6.
धीरः कीदृशं कर्म कुर्वीत्? (धीर पुरुष कैसा कर्म करे ?)
उत्तरम्:
अनुबन्धं, विपाकम् आत्मनः च उत्थानम् अवलोक्य कर्म कुर्वीति। (प्रयोजन, परिणाम और अपनी उन्नति देखकर कर्म करना चाहिए।)
प्रश्न 7.
कः मनुष्य फलानि, रसं बीजं च न लभते? (कौन मनुष्य फल, रस और बीज प्राप्त नहीं करता ?)
उत्तरम्:
यः मनुष्यः वृक्षस्य अपक्वानि फलानि प्रचिनोति सः फलानि, रसं बीजं च न लभते। (जो मनुष्य कच्चे फलों को तोड़ लेता है वह फल, रस और बीज नहीं प्राप्त करता है।)
प्रश्न 8.
कः पुनः फलं प्राप्तुं शक्नोति? (कौन फिर से फल प्राप्त कर सकता है?)
उत्तरम्:
यः काले परिणतं पक्वानि फलानि आदत्ते सः पुनः फलं प्राप्नोति। (जो समय पाकर पके फलों को तोड़ लेता है वह फिर से फल प्राप्त करता है।)
प्रश्न 9.
किं सञ्चिन्त्य कर्म कुर्यात्? (क्या सोचकर कर्म करना चाहिए?)
उत्तरम्:
‘इदं कार्यं कृत्वा किन्नु मे स्यात् अकुर्वत: किन्नु स्यात्’ इति सञ्चिन्त्य कर्म कुर्यात्। (इस कार्य के करने से मेरा क्या (लाभ) होगा और न करने से क्या हानि होगी, यह सोचकर कर्म करना चाहिए।)
प्रश्न 10.
धीरः किं सर्वतः चिन्वीत? (धीर को क्या सभी जगह से चुनना चाहिए?)
उत्तरम्:
धीरः सुव्याहृतानि, सूक्तानि, सुकृतानि सर्वतः चिन्वीत। (धीर पुरुष को अच्छी प्रकार कहे गये सूक्त और सत्कर्म सभी जगह से चुन लेने चाहिए।)
प्रश्न 11.
धीरः सूक्तानि सुकृतानि कथं चिन्वीत्? (धीर पुरुष को सूक्ति और सत्कर्म कैसे चुन लेने चाहिए?)
उत्तरम्:
यथा शिलाहारी शिलं चिनोति तथैव धीरः सूक्तानि सुकृतानि च सर्वतः चिन्वीत। (जैसे शिला बीनने वाली शिला बीनती है वैसे सूक्ति और सत्कर्म चुन लेने चाहिए।).
प्रश्न 12.
को न सन्ताप्यते ? (किसको सन्तप्त नहीं किया जाता है?)
उत्तरम्:
यत् अतप्तं प्रणमति तन्न सन्ताप्यते। (जो बिना तपाये झुक जाता है उसे सन्तप्त नहीं किया जाता है।)
प्रश्न 13.
किं न नम्यते? (कौन नहीं नबाया (झुकाया) जाता है?)
उत्तरम्:
यत् दारु स्वयं नमति तत् दारु न नम्यते। (जो लकड़ी झुकी हुई होती है उसे और नहीं झुकाया जाता।)
प्रश्न 14.
सत्येन किं रक्ष्यते? (सत्य से किसकी रक्षा की जाती है ?)
उत्तरम्:
सत्येन धर्मः रक्ष्यते। (सत्य से धर्म की रक्षा की जाती है।)
प्रश्न 15.
विद्या केन रक्ष्यते? (विद्या की रक्षा किससे की जाती है ?)
उत्तरम्:
विद्या योगेन रक्ष्यते। (विद्या की रक्षा योग अभ्यास से की जाती है।)
प्रश्न 16.
रूपं केन रक्ष्यते? (रूप की रक्षा किससे की जाती है ?)
उत्तरम्:
रूपं मृजया रक्ष्यते। (रूप की रक्षा सफाई से की जाती है।)
प्रश्न 17.
कुलं केन रक्षणीयम्? (कुल किससे रक्षा करने योग्य है?)
उत्तरम्:
कुलं वृत्तेन/चरित्रेन रक्षणीयो भवति। (कुले चरित्र के द्वारा रक्षा करने योग्य है।)
प्रश्न 18.
कस्य कुलं प्रमाणं न भवति? (किसका कुल प्रमाण नहीं होता ?)
उत्तरम्:
वृत्तहीनस्य कुलं प्रमाणं न भवति। (चरित्रहीन का कुल श्रेष्ठ नहीं होता।)
प्रश्न 19.
अन्त्येष्वपि किं दृश्यते? (निम्न कुलोत्पन्नों में क्या देखा जाता है ?)
उत्तरम्:
अन्त्येषु अपि वृत्तम् एव दृश्यते। (शूद्रों में भी चरित्र ही देखा जाता है।)
प्रश्न 20.
केभ्यः भीतो भवेत्? (किसे भयभीत रहना चाहिए ?)
उत्तरम्:
अकार्यकरणात्, कार्य-वर्जनात्, अकाले मन्यभेदात् मद्यपानात् च भीतो भवेत्। (न करने योग्य कार्य को करने से, करने योग्य कार्य को न करने से, असमय में भेद खुल जाने से तथा मद्यपान से डरना चाहिए।)
प्रश्न 21.
वस्त्रवान् कां जयति? (वस्त्राभूषण वाला किसे जीत लेता है?)
उत्तरम्:
वस्त्रवान् सभा जयति। (सुन्दर वस्त्राभूषण वाली सभा को जीत लेता है।)
प्रश्न 22.
मिष्टाशां कः जयते? (मीठे की इच्छा को कौन जीत लेता है ?)
उत्तरम्:
मिष्टाशां गोमता जयते (मीठा (खाने) की इच्छा को गाय वाला जीत लेता है।)
प्रश्न 23.
अध्वा केन जिता? (मार्ग पर विजय किसने प्राप्त की?)
उत्तरम्:
अध्वा यानवता जिता? (मार्ग वाहने वाले ने जीता।)
प्रश्न 24.
सर्वं केन जितम्? (सब कुछ किसने जीत लिया?)
उत्तरम्:
सर्वं शीलवता जितम्। (शीलवान् व्यक्ति सब कुछ जीत लेता है।)
प्रश्न 25.
कस्य जीवितं निरर्थकम्? (किसका जीवन निरर्थक है?)
उत्तरम्:
यस्य शीलं प्रणश्यति तस्य जीवितं निरर्थकम्। (जिसका शील नष्ट हो जाता है, उसका जीवन निरर्थक है।)
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