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RBSE Class 11 Sanskrit रचना काव्यम् अधिकृत्य

June 26, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit रचना काव्यम् अधिकृत्य

काव्यम् अधिकृत्य अनुच्छेद लेखनम्

1. रामायणम्।

सङ्केत सूची – प्रक्षिप्तं, भागाः, वर्तन्ते, अरण्यकाण्डम्, काण्डानि, करुणरसप्रधान, उत्तरकाण्डं, उच्चलक्ष्यस्य, विद्वांसः, (दिव्यचरित्रैः, महाकाव्यं, रामायणेनैव, गार्हस्थ्यस्य, सभ्यतायाः, चतुर्विंशतिसहस्रसंख्यकाः,

रामायणे सप्त ………………………………. सन्ति। इमे ………………………………. कथ्यन्ते। एतेषां काण्डानां क्रमश: नामानि ………………………………. बालकाण्डम्, अयोध्याकाण्डम्, ………………………………. किष्किन्धाकाण्डम्, सुन्दरकाण्डम्, युद्धकाण्डम्, ………………………………. च। बहवः ………………………………. अस्य उत्तरकाण्डं पूर्णतः बालकाण्डं च अंशतः ………………………………. मन्यन्ते। रामायणे ………………………………. श्लोक. सन्ति, येषु आधिक्यम् अनुष्टुप्-छन्दसः वर्तते। सत्यः कविः उत्तमं च ………………………………. कीदृशं भवितव्यम्? एतद् अस्माभिः ………………………………. ज्ञायते। सामान्यः जनः गृहस्थः भवति, परं ………………………………. साफल्यमतिकठिनम्, इदं गृहस्था एव जानन्ति। अस्यैव ………………………………. सिद्धिमार्ग: वाल्मीकिना दशरथ-राम-लक्ष्मण-सीता-भरतादीनां ………………………………. प्रशस्तः। रामायणं ………………………………. महाकाव्यम्। एतत् प्राचीनभारतस्य ………………………………. उज्ज्वल दर्पणम् अस्ति।
उत्तर:
रामायणे सप्त भागाः सन्ति। इमे ‘काण्डानि’ कथ्यन्ते। एतेषां काण्डानां क्रमशः नामानि वर्तन्ते-बालकाण्डम्, अयोध्याकाण्डम्, अरण्यकाण्डम्, किष्किन्धाकाण्डम्, सुन्दरकाण्डम्, युद्धकाण्डम्, उत्तरकाण्डं च। बहवः विद्वांसः अस्य उत्तरकाण्डं, पूर्णतः बालकाण्डं च अंशतः प्रक्षिप्तं मन्यन्ते। रामायणे चतुर्विंशतिसहस्रसंख्यकाः श्लोकाः सन्ति, येषु आधिक्यम् अनुष्टुप् छन्दसः वर्तते। सत्यः कविः उत्तमं च महाकाव्यं कीदृशं भवितव्यम्? एतद् अस्माभिः रामायणेनैव ज्ञायते। सामान्यः जनः गृहस्थः भवति, परं गार्हस्थ्यस्य साफल्यमतिकठिनम्, इदं गृहस्था एवं जानन्ति। अस्यैव उच्चलक्ष्यस्य सिद्धिमार्गः वाल्मीकिना दशरथ-राम-लक्ष्मण-सीता-भरतादीनां दिव्यचरित्रैः प्रशस्तः। रामायणं करुणरसप्रधानं महाकाव्यम्। एतत् प्राचीनभारतस्य सभ्यतायाः उज्ज्वलं दर्पणम् अस्ति।

(रामायण में सात भाग हैं। ये काण्ड कहलाते हैं। इन काण्डों के क्रमशः नाम हैं-बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्ड। बहुत से विद्वान् इसके उत्तरकाण्ड को पूर्णरूप से और बालकाण्ड को अंश-रूप से प्रक्षिप्त मानते हैं। रामायण में 24 हजार श्लोक हैं, जिनमें अनुष्टुप् छन्द की अधिकता है। सच्चा कवि और उत्तम महाकाव्य कैसा होना चाहिये? यह हमें रामायण से ही ज्ञात होता है। साधारण व्यक्ति गृहस्थ होता है, लेकिन गृहस्थ जीवन की सफलता अत्यधिक कठिन होती है, यह गृहस्थ ही जानते हैं। इसी उच्च लक्ष्य के सिद्धिमार्ग को वाल्मीकि ने दशरथ, राम, लक्ष्मण, सीता, भरत आदि के दिव्य चरित्रों से प्रशंसनीय किया है। रामायण करुण रस प्रधान महाकाव्य है। यह प्राचीन भारत की सभ्यता का उज्ज्वल दर्पण है।)

2. महाभारतम्।

(सङ्केत सूची – शल्यपर्वणि, शाश्वतः, महाभारतस्य, प्राधान्यं, व्यक्तिगतवीरतायाः, पाण्डवानां, पूर्णव्याख्यानरूपेण,) व्यासेन, दुष्प्रवृत्तिकारणेन, युद्धानां, कौटुम्बिकयुद्धानां, विजय-लक्ष्म।

महाभारते ………………………………. कथितम् अस्ति यत् धर्मः ……………………………….। अतः अस्य परित्यागः कस्याञ्चिदपि दशायां भयेन लोभेन वा न कर्तव्यः। अस्मिन् ग्रन्थे ………………………………. वर्णनानि पठनीयानि सन्ति। यत: ………………………………. कथा मुख्यरूपेण अर्जुन-भीम-कर्ण-द्रोण-भीष्म- दुर्योधनादिकानां ………………………………. कथा वर्तते, अत: तत्कालीनेषु युद्धेषु व्यक्तिगतवीरत्वस्य। ………………………………. लक्ष्यते। कौरवाणां ………………………………. च समरे पार्थः प्रायः एकलः एव वीरतां प्रदर्य ………………………………. प्राप्नोति। युद्धभूमौ युध्यमानानां वीराणां पारस्परिकः संवादः यदा कदाचित् ………………………………. लभ्यते। अनेन शत्रुपक्षस्य ………………………………. तेषां पराभवस्य दैव्याः योजनायाः आकलनं कर्तुं शक्यते। ………………………………. वर्णन भीष्मपर्वणि ………………………………. च उपलभ्यते।
उत्तर:
महाभारते व्यासेन कथितम् अस्ति यत् धर्मः शाश्वतः। अतः अस्य परित्यागः कस्याञ्चिदपि दशायां भयेन : लोभेन वा न कर्तव्यः। अस्मिन् ग्रन्थे युद्धानां वर्णनानि पठनीयानि सन्ति। यतः महाभारतस्य कथा मुख्यरूपेण अर्जुन-भीम-कर्ण-द्रोण-भीष्म- दुर्योधनादिकानां व्यक्तिगतवीरतायाः कथा वर्तते, अतः तत्कालीनेषु युद्धेषु व्यक्तिगतवीरत्वस्य प्राधान्यं लक्ष्यते। कौरवाणां पाण्डवानां च समरे पार्थः प्रायः एकलः एव वीरता प्रदर्य विजय-लक्ष्म प्राप्नोति। युद्धभूमौ युध्यमानानां वीराणां पारस्परिकः संवादः यदा कदाचित् पूर्णव्याख्यानरूपेण लभ्यते। अनेन शत्रुपक्षस्य दुष्प्रवृत्तिकारणेन तेषां। पराभवस्य दैव्याः योजनायाः आकलनं कर्तुं शक्यते। कौटुम्बिकयुद्धानां वर्णनं भीष्मपर्वणि शल्यपर्वणि च उपलभ्यते।

(महाभारत में व्यास ने कहा है कि धर्म शाश्वत है। इसलिए इसका परित्याग किसी भी दशा में भय अथवा लोभ से नहीं करना चाहिए। इस ग्रन्थ में युद्धों के वर्णन पढ़ने योग्य हैं। क्योंकि महाभारत की कथा मुख्यरूप से अर्जुन, भीम, कर्ण, द्रोण, भीष्म, दुर्योधन आदि की व्यक्तिगत वीरता की कथा है, अतः उस समय के युद्धों में व्यक्तिगत वीरता की प्रधानता दिखाई देती। है। कौरवों और पाण्डवों के युद्ध में अर्जुन लगभग अकेला ही वीरता का प्रदर्शन करके विजय लक्ष्मी को प्राप्त करता है। युद्धभूमि में युद्ध करते हुए वीरों का आपसी वार्तालाप यदा-कदा पूर्ण व्याख्यान के रूप में मिलता है। इससे शत्रुपक्ष. की। दुष्प्रवृत्ति के कारण उनके पराभव की दैवीय योजना का आकलन किया जा सकता है। पारिवारिक युद्धों का वर्णन गोष्मपर्व और शल्यपर्व में उपलब्ध होता है।)

3. रघुवंशम्।

सङ्केत सूची – संस्कृतकाव्यशास्त्रपरम्परया, एकोनविंशतिसर्गेषु, काव्यस्य, आश्रमं गमनस्य, कीर्तिगानम्, दशरथजन्म, महाकाव्यस्य, सूर्यवंशिराज्ञां, कालिदासस्य दिलीपस्य, नन्दिन्याः, रघुजन्मनः, दिग्विजयनिरूपणम्,

कालिदासप्रणीतम्।। ‘रघुवंशम्’ ………………………………. एकं महाकाव्यम्। एतस्य ………………………………. सूर्यवंशिनां नृपाणां ………………………………. अस्ति। अस्य ………………………………. कथानकं रामायणे पुराणेषु च आधारितम्। प्रथमे सर्गे ………………………………. वर्णनानन्तरं ………………………………. चरित्रस्य, तस्य अपत्यहीनत्वेन च वसिष्ठस्य ………………………………. वर्णनं वर्तते। द्वितीये सर्गे दिलीपस्य ………………………………. सेवायाः पुत्रप्राप्तिवरदानस्य च चित्रणम् अस्ति। तृतीये सर्गे ………………………………. वर्णनम्। चतुर्थे सर्गे रघो: ……………………………….। अतः परेषु सर्गेषु रघोः सर्वस्वदानम्, अजजन्म, अजस्य विजयः, राज्यशासनम्, अज-विलापः, ………………………………. रामकथा-आदिकाः घटनाः वर्णिताः सन्ति। सम्भाव्यते कवेः देहान्तस्य हेतोः ………………………………. अन्तः भवति यतो हि कथायाः विधिवत् समाप्तिर्न जाता अस्ति। एतत्। ………………………………. द्वितीयं महाकाव्यम् अस्ति। ………………………………. इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।।
उत्तर:
‘रघुवंशम्’ कालिदासप्रणीतम् एकं महाकाव्यम्। एतस्य एकोनविंशतिसर्गेषु सूर्यवंशिनां नृपाणां कीर्तिगानम् अस्ति। अस्य महाकाव्यस्य कथानकं रामायणे पुराणेषु च आधारितम्। प्रथमे सर्गे सूर्यवंशिराज्ञां वर्णनानन्तरं दिलीपस्य चरित्रस्य, तस्य अपत्यहीनत्वेन च वसिष्ठस्य आश्रमं गमनस्य वर्णनं वर्तते। द्वितीये सर्गे दिलीपस्य नन्दिन्याः सेवायाः पुत्रप्राप्तिवरदानस्य च चित्रणम् अस्ति। तृतीये सर्गे रघुजन्मनः वर्णनम्। चतुर्थे सर्गे रघोः दिग्विजयनिरूपणम्। अतः परेषु सर्गेषु रघोः सर्वस्वदानम्, अजजन्म, अजस्य विजयः, राज्यशासनम्, अर्ज-विलापः, दशरथजन्म, रामकथा-आदिका: घटनाः वर्णिताः सन्ति। सम्भाव्यते कवेः देहान्तस्य हेतोः काव्यस्य अन्तः भवति यतो हि कथायाः विधिवत् समाप्तिर्न जाता अस्ति। एतत् कालिदासस्य द्वितीयं महाकाव्यम् अस्ति। संस्कृतकाव्यशास्त्रपरम्परया इदं श्रेष्ठं महाकाव्यं स्वीकृतम्।

(रघुवंश कालिदास द्वारा रंचा गया एक महाकाव्य है। इसके उन्नीस सर्गों में सूर्यवंशी राजाओं का यशगान है। इस महाकाव्य का कथानक रामायण और पुराणों पर आधारित है। पहले सर्ग में सूर्यवंशी राजाओं के वर्णन के पश्चात् दिलीप के चरित्र का, उसका सन्तानहीनता के कारण वसिष्ठ के आश्रम में जाने का वर्णन है। दूसरे सर्ग में दिलीप की नन्दिनी की सेवा का और पुत्रप्राप्ति के वरदान का चित्रण है। तीसरे सर्ग में रघु के जन्म का वर्णन है। चौथे सर्ग में रघु की दिग्विजय का निरूपण है। इससे आगे के सर्गों में रघु का सर्वस्व दान, अज का जन्म, अज की विजय, राज्यशासन, अज-विलाप, दशरथ-जन्म, रामकथा आदि घटनायें वर्णित हैं। सम्भावना की जाती है कि कवि के देहान्त के कारण काव्य का अन्त हो गया है क्योंकि कथा की विधिपूर्वक समाप्ति नहीं हुई है। यह कालिदास का दूसरा महाकाव्य है। संस्कृत काव्यशास्त्र परम्परा के। अनुसार यह श्रेष्ठ महाकाव्य स्वीकार किया गया है।)

4. कादम्बरी

सङ्केत सूची – दृष्ट्या, समासयुक्ता, बाणभट्टेन, कादम्बर्या, ‘बृहत्कथात:’, सर्वश्रेष्ठ, बाणभट्टेन, रचिता, पूर्वाद्ध,। अलंकाराणां, कवीनां, पुत्रेण, पद्यात्, स्वकाव्य, यमकमूलक, वाक्यानि।

गद्य सम्राट् महाकवि ………………………………. विरचिता ‘कादम्बरी’ ………………………………. गद्यकाव्यमस्ति। अयं ग्रन्थः कथा ग्रन्थः अस्ति। ………………………………. वर्णिता कथा गुणाढ्यकृतायाः ………………………………. गृहीता। साधारण कथां आदाय ………………………………. स्वकाव्यकौशलेन वैशिष्ट्ययुक्ता कादम्बरी ………………………………. तदेव कथयन्ति “गद्यं ………………………………. निकषं वदन्ति।” कादम्बर्या: ………………………………. बाणेन रचितं उत्तरार्द्ध तस्य ………………………………. पूर्णतां नीतम्। अत: शैली ………………………………. पूर्वार्द्ध अति उत्तमम् अस्ति। बाणेन ………………………………. अपि अतिरिच्य ………………………………. कला कौशलेन ………………………………. प्रयोगः, श्लेष, ………………………………. शब्दयोजना दीर्घ ………………………………. पदावलिः सुदीर्घ ………………………………. निबद्धानि।
उत्तर:
गद्य सम्राट् महाकवि बाणभट्टेन विरचिता ‘कादम्बरी’ सर्वश्रेष्ठं गद्यकाव्यमस्ति। अयं ग्रन्थः कथा ग्रन्थः अस्ति। कादम्ब वर्णिता कथा गुणाढ्यकृतायाः ‘बृहत्कथात:’ गृहीता। साधारण कथा आदाय बाणभट्टेन स्वकाव्यकौशलेन वैशिष्ट्ययुक्ती कादम्बरी रचिता तदेव कथयन्ति “गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति।” कादम्बर्याः पूर्वार्द्ध बाणेन रचितं उत्तरार्द्ध तस्य पुत्रेण पूर्णता नीतम्। अतः शैली दृष्ट्या पूर्वार्द्ध अति उत्तमम् अस्ति। बाणेन पद्यात् अपि अतिरिच्य स्वकाव्य कला कौशलेन अलंकाराणां प्रयोगः, श्लेष, यमकमूलक शब्दयोजना दीर्घ समासयुक्ता पदावलिः, सुदीर्घ वाक्यानि निबद्धानि।

(गद्य सम्राट् महाकवि बाणभट्ट द्वारा विरचित कादम्बरी सर्वश्रेष्ठ गद्यकाव्य है। यह ग्रन्थ कथा ग्रन्थ है। कादम्बरी में वर्णित कथा गुणाढ्य द्वारा रचित ‘बृहत्कथा’ से ली गई है। साधारण कथा को लेकर बाणभट्ट ने अपने काव्य कौशल से वैशिष्ट्यंयुक्त कादम्बरी की रचना की। तभी कहा गया है कि ‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति।’ कादम्बरी का पूर्वार्द्ध बाण ने लिखा तथा उत्तरार्द्ध उसके पुत्र ने पूरा किया। अतः शैली की दृष्टि से पूर्वार्द्ध अति उत्तम है। बाण ने पद्य काव्य से भी ज्यादा अपने काव्य-कौशल से अलंकारों के प्रयोग, श्लेष-यमक मूलक शब्द योजना, दीर्घ समास युक्त पद और सुदीर्घ वाक्य निबद्ध किए गए हैं।)

5. अभिज्ञान शाकुंतलम्।

सङ्केत सूची – स्वाभाविकम्, दिव्यलोकस्य, धनञ्जयेन, मनुष्याणाम्, दृढसङ्कल्पवान्, दुष्यन्तस्य, चरित्र-चित्रणम्, (कालिदासः, लोकस्य जीवाः, शाकुन्तलस्य, क्षमाशीलः, निसर्गकन्याः, सखीरूपेण, विकासः, श्लाघनीया, मुग्धा नायिका।

शाकुन्तलस्य पात्र योजना ………………………………. वर्तते। सर्वाणि पात्राणि अस्यैव ………………………………. सन्ति न तु कस्यचिद् ………………………………. अतएव सांसारिक ………………………………. इव मानवीय गुणाः अवगुणा: च तेषु विद्यमानाः सन्ति। अत्र ………………………………. चरित्रस्य क्रमिकः ………………………………. दृश्यते। कथावस्तुना सह ………………………………. अपि प्रशंसनीयम्। चरित्रचित्रणे ………………………………. निपुणः अस्ति। अभिज्ञान ………………………………. नायकः दुष्यन्तः दशरूपककारेण ………………………………. प्रस्तुतस्य धीरोदात्तनायकस्य गुणोपेतम् अस्ति। सः महाबली, अतिगम्भीरः, ………………………………. अविकत्थनः स्थिर प्रकृतिः निरहंकारः ………………………………. च अस्ति। नायिका शकुन्तला ………………………………. अद्वितीय सुन्दरी ………………………………. सरल स्वभाव युक्ता- आदर्श ………………………………. चित्रिता अस्ति। शकुन्तलायाः सौन्दर्यं ………………………………. अकृत्रिमं चास्ति।
उत्तर:
शाकुन्तलस्य पात्र योजना श्लाघनीया वर्तते। सर्वाणि पात्राणि अस्यैव लोकस्य जीवाः सन्ति न तु कस्यचिद् दिव्यलोकस्य। अतएव सांसारिक मनुष्याणाम् इव मानवीय गुणाः अवगुणाः च तेषु विद्यमानाः सन्ति। अत्र दुष्यन्तस्य चरित्रस्य क्रमिकः विकासः दृश्यते। कथावस्तुना सह चरित्र-चित्रणम् अपि प्रशंसनीयम्। चरित्रचित्रणे कालिदासः निपुणः अस्ति। अभिज्ञान शाकुन्तलस्य नायकः दुष्यन्तः दशरूपककारेण धनञ्जयेन प्रस्तुतस्य धीरोदात्तनायकस्ये गुणोपेतम् अस्ति। सः महाबली, अतिगम्भीरः, क्षमाशीलः, अविकत्थनः स्थिर प्रकृतिः निरहंकारः दृढसङ्कल्पवान् चे अस्ति। नायिका शकुन्तला निसर्गकन्याः अद्वितीय सुन्दरी- मुग्धा नायिका – सरल स्वभाव युक्ता- आदर्श सखीरूपेण चित्रिता अस्ति। शकुन्तलायाः सौन्दर्यं स्वाभाविकम् अकृत्रिमं चास्ति।

(शाकुन्तल की पात्र योजना सराहनीय है। सभी पात्र इसी लोक के जीव हैं न कि किसी दिव्यलोक के। अत सांसारिक लोगों की तरह मानवीय गुण और अवगुण उनमें विद्यमान हैं। यहाँ दुष्यन्त के चरित्र का क्रमिक विकास देखा जाता है। कथावस्तु के साथ चरित्र-चित्रण भी प्रशंसनीय है। चरित्र-चित्रण में कालिदास निपुण है। अभिज्ञान शाकुन्तल का नायक दुष्यन्त दशरूपककार धनञ्जय द्वारा प्रस्तुत धीरोदात्त नायक के गुणों से युक्त है। वह महाबलशाली, अतिगम्भीर, क्षमाशील, गाल न बजाने वाला, स्थिर प्रकृति, अहंकार-रहित और दृढ़ संकल्प वाला है। नायिका शकुन्तला प्रकृति पुत्री, अद्वितीय सुन्दरी, मुग्धा नायिका, सरल स्वभाव युक्त तथा आदर्श सखी के रूप में चित्रित है। शकुन्तला का सौन्दर्य स्वाभाविक एवं बनावटीपन रहित है।)

6. स्वप्नवासवदत्तम्

सङ्केत सूची – वासवदत्ता, स्थितिकालं, स्वमालविकाग्निमित्रे, वैदर्भी रीत्याः, दूतघटोत्कचम्, मध्यमव्यायोगम्, स्वप्नवासवदत्तम्, वत्सराजः उदयनः, पद्मावत्या, कवि, अपहृतं राज्यं, यौगन्धरायणस्य, अस्य नाटकस्य, उदयनस्य विवाहः, पुनः प्राप्तम्।

महाकवि भासः ………………………………. प्रणेता आसीत्। विद्वांसः भासस्य ………………………………. ख्रीष्टपूर्व चतुर्थशतकादारभ्य द्वितीयशतक मध्ये मन्यते। कालिदासेन ………………………………. नाटके भासस्य प्रशंसा कृती। अतः भासः उत्कृष्टः प्राचीन नाटककारः आसीत्। अस्य त्रयोदश नाटकानि सम्प्रति उपलभ्यन्ते प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, ………………………………. उरुभंगम्, दूतवाक्यम्, पञ्चरात्रम्, बालचरितम्, ………………………………. कर्णभारम्, ………………………………. प्रतिमानाटकम्, अभिषेकनाटकम्, अविमारकम्, चारुदत्तमिति। अस्मिन् नाटके ………………………………. नायकः विद्यते। उदयनस्य ………………………………. कथं पुनः प्राप्स्यते इति चिन्ता मन्त्रिणः ………………………………. मनसि वर्तते। अतः तेन राज्ञी ………………………………. अग्नौ दग्धा इति प्रवादः प्रसारितः। तदनन्तरं यौगन्धरायणस्यैव योजनया ………………………………. सह ………………………………. अभवत्। तेन उदययनस्य अपहृतं राज्यं ……………………………….। अयं ………………………………. माधुर्यप्रसादगुणयो: च ………………………………. अस्ति।
उत्तर:
महाकवि भासः अस्य नाटकस्य प्रणेता आसीत्। विद्वांसः भासस्य स्थितिकाले ख्रीष्टपूर्व चतुर्थशतकादारभ्य द्वितीयशतक मध्ये मन्यते। कालिदासेन स्वमालविकाग्निमित्रे नाटके भासस्य प्रशंसा कृता। अतः भासः उत्कृष्टः प्राचीन नाटककारः आसीत्। अस्य त्रयोदशं नाटकानि सम्प्रति उपलभ्यन्ते प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्, स्वप्नवासवदत्तम्, उरुभंगम्, दूतवाक्यम्, पञ्चरात्रम्, बालचरितम्, दूतघटोत्कचम्, कर्णभारम्, मध्यमव्यायोगम्, प्रतिमानाटकम्, अभिषेकनाटकम्, अविमारकम्, चारुदत्तमिति। अस्मिन् नाटके वत्सराजः उदयनः नायुकः विद्यते। उदयनस्य अपहृतं राज्यं कथं पुनः प्राप्स्यते इति चिन्ता मन्त्रिणः यौगन्धरायणस्य मनसि वर्तते। अतः तेन राज्ञी वासवदत्ता अग्नौ दग्धा इति प्रवादः प्रसारित:। तदनन्तरं यौगन्धरायणस्यैव योजनया पद्मावत्या सह उदययनस्य विवाहः अभवत्। तेन उदयनस्य अपहृतं राज्यं पुनः प्राप्तम्। अयं वैदर्भी रीत्याः माधुर्यप्रसादगुणयोः च कवि अस्ति।।

(इस नाटक के प्रणेता महाकवि भास थे। विद्वान लोग भास का समय ईसा-पूर्व चतुर्थ शताब्दी से लेकर दूसरी शताब्दी के मध्य मानते हैं। कालिदास ने अपने नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’ में भास की प्रशंसा की है। अतः भास उत्कृष्ट प्राचीन नाटककार थे। इनके 13 नाटक अब उपलब्धा होते हैं-प्रतिज्ञायौगंधरायण, स्वप्नवासवदत्तम्, उरुभंगम्, दूतवाक्यम्, पंचरात्रम्, बाल-चरितम्, दूतघटोत्कचम्, कर्णभारम्, मध्यमव्यायोगम्, प्रतिमानाटकम्, अभिषेकनाटकम्, अविमारकम्, चारुदत्तम्। इस नाटक में वत्सराज उदयन नायक हैं। उदयन का अपहृत राज्य कैसे पुनः प्राप्त किया जाएगा, यह चिंता मंत्री यौगंधरायण के मन में है। अतः उसने ‘रानी वासवदत्ता अग्नि में जल गई’ यह अफवाह फैला दी। उसके पश्चात्। यौगंधरायण की योजना से पद्मावती के साथ उदयन का विवाह हो गया। इससे उदयन का अपहृत राज्य पुनः प्राप्त हुआ। यह वैदर्भी रीति के तथा माधुर्य और प्रसाद गुण के कवि हैं।)

7. पञ्चतंत्रम्

(सङ्केत सूची – उपदेशाश्च, प्रसादगुणः, बालोपयोगिकाव्यम्, दुरूहशब्दावली, गुणदोषाणां, यथार्थचित्रणं , पशु-पक्षिणः, ( अलङ्काराणाम्, एषाः कथाः, गूढनैतिकतथ्यानां, प्रमुखलघुकथासु, हास्यं विनोदश्च, पञ्चतन्त्रे।

पञ्चतन्त्रं ………………………………. अस्ति अतएव अस्य शैली सरला सरसा च अस्ति। अस्मिन् काव्ये ………………………………. माधुर्यगुणश्च स्तः। पाण्डित्यप्रदर्शनं, क्लिष्टता ………………………………. च न सन्ति। शैल्यां ………………………………. स्तः। लघुवाक्यानि, सूक्तयः, कथायां प्रवाहः अनुभूतीनां ………………………………. च पञ्चतन्त्रस्य वैशिष्ट्यम्। लघुकथामाध्यमेन ………………………………. शिक्षणं प्रदत्तम्। पात्राणि अपि ………………………………. सन्ति। अतएव ………………………………. जाति-सम्प्रदाय-राष्ट्रेभ्यश्च दूरं सन्ति। अस्माद् एव कारणात् विश्वस्य ………………………………. पञ्चतन्त्रस्य मुख्यं स्थानं वर्तते। कथा गद्यभागे वर्तते, ………………………………. पद्येषु सन्ति। पद्येषु सामान्यतया अनुष्टप्-उपजाति-आर्यादीनां छन्दसां. प्रयोगः कृतः। यथोचितरूपेण ………………………………. अपि प्रयोगः कृतः। जीवनस्य ………………………………. वर्णनं ………………………………. अस्ति।
उत्तर:
पञ्चतन्त्रं ,बालोपयोगिकाव्यम् अस्ति अतएव अस्य शैली सरला सरसा च अस्ति। अस्मिन् काव्ये प्रसादगुणः माधुर्यगुणश्च स्तः। पाण्डित्यप्रदर्शनं, क्लिष्टता दुरूहशब्दावली च न सन्ति। शैल्यां हास्यं विनोदश्च स्तः। लघुवाक्यानि, सूक्तयः, कथायां प्रवाहः अनुभूतीनां यथार्थचित्रणं च पञ्चतन्त्रस्य वैशिष्ट्यम्। लघुकथामाध्यमेन गूढनैतिकतथ्यानां शिक्षणं प्रदत्तम्। पात्राणि अपि पशु-पक्षिणः सन्ति। अतएव एषाः कथा: जाति-सम्प्रदाय-राष्ट्रेभ्यश्च दूरं सन्ति। अस्माद् एव कारणात् विश्वस्य प्रमुखलघुकथासु पञ्चतन्त्रस्य मुख्यं स्थानं वर्तते। कथा गद्यभागे वर्तते, उपदेशाश्च पद्येषु सन्ति। पद्येषु सामान्यतया अनुष्टुप्-उपजाति-आर्यादीनां छन्दसां प्रयोगः कृतः। यथोचितरूपेण अलङ्काराणाम् अपि प्रयोगः कृतः। जीवनस्य गुणदोषाणां वर्णनं पञ्चतन्त्रे अस्ति।

(पंचतन्त्र बालकों के लिए उपयोगी काव्य है अत: इसकी शैली सरल और सरस है। इस काव्य में प्रसाद और माधुर्य गुण है। पाण्डित्य प्रदर्शन; कठिनता और दुरूह शब्दावली नहीं है। शैली में हास्य और विनोद है। छोटे-छोटे वाक्य, सूक्तियाँ, कथा-प्रवाह और अनुभूतियों का यथार्थ चित्रण पंचतन्त्र की विशेषताएँ हैं। लघु कथाओं के माध्यम से गूढ़ नैतिक तथ्यों की शिक्षा दी गई है। पात्र भी पशु-पक्षी हैं। इसलिए ये कथाएँ जाति, सम्प्रदाय और राष्ट्रों से दूर हैं। इसी कारण से विश्व की प्रमुख लघु कथाओं में पंचतन्त्र का प्रमुख स्थान है। कथा गद्य भाग में है और उपदेश पद्यों में है। पद्यों में सामान्यतः अनुष्टुप्, उपजाति, आर्या आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है। यथोचित रूप से अलंकारों का भी प्रयोग किया गया है। पञ्चतन्त्र में जीवन के गुण-दोषों का वर्णन है।)

8. नीतिशतकम्।

सङ्केत सूची – संन्यासी, कथांश: नास्ति, भर्तृहरिः, मुक्तपद्यानां, लिपिकारः, भिन्नपद्यानि, शतकत्रयस्य, श्रृंगारशतकं, ख्रिस्तपूर्व, उज्जयिन्यां, स्वराज्यं, प्रारम्भं, शतककाव्यम्, विक्रमादित्याय, पराजित्य।

नीतिशतकं भर्तृहरिणा विरचितम् एकं ………………………………. अस्ति। अस्मिन् काव्ये कोऽपि ………………………………. अपितु एतत् काव्यं ………………………………. संग्रहः अस्ति। वर्तमानसंस्करणेषु नीतिशतक-काव्ये शताधिकपद्यानि सन्ति। भिन्न-भिन्नसंस्करणेषु भिन्न-भिन्नपद्यसंख्या उपलभ्यते, अस्य कारणम् अस्ति, ………………………………. स्वयम् अपि स्वरुच्यनुसारेण कानिचन ………………………………. अपि योजयति। भर्तृहरिः ………………………………. रचनां कृतवान्-नीतिशतकं, ………………………………. वैराग्यशतकं च। वाक्यपदीयमपि भर्तृहरेः रचना आसीत्। किन्तु सः वैयाकरणः ………………………………. भिन्नः आसीत्। भारतीयपरम्परानुसारेण ………………………………. प्रथम शताब्द्याम् भर्तृहरिः नाम नृपः आसीत्। सः केनचित् कारणेन संसारात् विरक्तः सञ्जातः, अतएव ………………………………. स्व-अनुजाय ………………………………. दत्वा, पत्नीं त्यक्त्वा ………………………………. अभवत्। विक्रमादित्यः एव ख्रिस्तपूर्वं 57 तमे वर्षे शकान् ………………………………. विक्रमसंवत्सरस्य ………………………………. कृतवान्।।
उत्तर:
नीतिशतकं भर्तृहरिणा विरचितम् एकं शतककाव्यम् अस्ति। अस्मिन् काव्ये कोऽपि कथांशः नास्ति अपितु एतत् काव्यं मुक्तपद्यानां संग्रहः अस्ति। वर्तमानसंस्करणेषु नीतिशतक-काव्ये शताधिकपद्यानि सन्ति। भिन्न-भिन्नसंस्करणेषु भिन्न-भिन्नपद्यसंख्या उपलभ्यते, अस्य कारणम् अस्ति, लिपिकारः स्वयम् अपि स्वरुच्यनुसारेण कानिचन भिन्नपद्यानि अपि योजयति। भर्तृहरिः शतकत्रयस्य रचनां कृतवान्-नीतिशतकं, शृंगारंशतकं वैराग्यशतकं च। वाक्यपदीयमपि भर्तृहरे: रचना आसीत्। किन्तु सः वैयाकरणः भर्तृहरिः भिन्नः आसीत्। भारतीयपरम्परानुसारेण ख्रिस्तपूर्व प्रथम शताब्द्याम् उज्जयिन्यां भर्तृहरिः नाम नृपः आसीत्। सः केनचित् कारणेन संसारात् विरक्तः सञ्जातः, अतएव स्वराज्यं स्व-अनुजाय विक्रमादित्याय, दत्वा, पत्नीं त्यक्त्वा संन्यासी अभवत्। विक्रमादित्यः एव ख्रिस्तपूर्वं 57 तमे वर्षे शकान् पराजित्य विक्रमसंवत्सरस्य प्रारम्भ कृतवान्।

(नीतिशतक भर्तृहरि द्वारा रचित एक शतक काव्य है। इस काव्य में कोई कथांश नहीं है अपितु यह काव्य मुक्त पद्यों को संग्रह है। वर्तमान संस्करणों में नीतिशतक काव्य में सौ से अधिक पद्य हैं। भिन्न-भिन्न संस्करणों में भिन्न-भिन्न पद्य संख्या प्राप्त होती है। इसका कारण है, लिपिकार स्वयं भी अपनी रुचि के अनुसार कुछ अन्य पद्य भी जोड़ देता है। भर्तृहरि ने तीन शतकों की रचना की-नीतिशतक, श्रृंगारशतक और वैराग्यशतक। वाक्यपदीय भी भर्तृहरि की रचना थी किन्तु वह वैयाकरण भर्तृहरि भिन्न था। भारतीय परम्परा के अनुसार ईसवी पूर्व प्रथम शताब्दी में उज्जयिनी में भर्तृहरि नाम का राजा था। वह किसी कारण से संसार से विरक्त हो गया इसलिए अपना राज्य अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को देकर पत्नी को त्यागकर संन्यासी हो गया। विक्रमादित्य ने ही ईसापूर्व 57 वें वर्ष में शकों को पराजित कर विक्रम संवत का आरम्भ किया।)

9. शिवराजविजयम्।

सङ्केत सूची – भाषा प्रयोगे, पं. अम्बिकादत्त, ऐतिहासिकः उपन्यासः, नायकः शिववीरः, यमकस्य, निश्वासेसु,) (शिवराजविजयस्य, प्रसङ्गानुकूलं, श्रृंगारस्यापि, स्वप्रतिभाया, अलङ्काराणां, भामिनी, कलाकलापकलनः, राजनैतिकदशानां।

शिवराजविजयः ………………………………. व्यासेनविरचितः संस्कृत साहित्यस्य प्रथमः ………………………………. अस्ति। शिवराजविजयस्य कथा यद्यपि इतिहास-प्रधाना तथापि लेखकेन ………………………………. कल्पनया च सज्जीकृता। अत्र कथाद्वयं समानरूपेण चलति। एकस्याः कथायाः ………………………………. द्वितीयायाः कथायाः नायक: रघुवीरसिंहः अस्ति। ग्रन्थोऽयं त्रिषु ………………………………. निबद्धः अस्ति। यद्यपि ………………………………. प्रधानरस: वीररसः अस्ति तथापि ………………………………. अन्ये रसाः अपि उपकारी रूपेणनिरूपिताः सन्ति। यत्र तत्र सात्विकशिष्ट ………………………………. वर्णनं कृतम्। कविना व्यासेन समुचित ………………………………. विधानं कृतम्। अनुप्रासस्य उदाहरणम्, यथा ………………………………. भूभङ्ग भूरिभाव प्रभाव, पराभूत वैभवेषु भटेषु”। ………………………………. उदाहरणं, यथा-”विलक्षणोऽयं भगवान सकल ………………………………. सकलकालन : कराल?”। भावानुरूपं ………………………………. पं. व्यास: दक्षः आसीत्। शिवराजविजये तात्कालिकसामाजिक ………………………………. समग्र चित्रणं वर्तते।
उत्तर:
शिवराजविजयः पं. अम्बिकादत्त व्यासेन विरचितः संस्कृत साहित्यस्य प्रथमः ऐतिहासिक उपन्यासः अस्ति। शिवराजविजयस्य कथा यद्यपि इतिहास-प्रधाना तथापि लेखकेन स्वप्रतिभाया कल्पनया च सज्जीकृता। अत्र कथाद्वयं समानरूपेण चलति। एकस्याः कथायाः नायकः शिववीरः द्वितीयायाः कथायाः नायकः रघुवीरसिंहः अस्ति। ग्रन्थोऽयं त्रिषु निश्वासेसु निबद्धः अस्ति। यद्यपि शिवराजविजयस्य प्रधानरस: वीररसः अस्ति तथापि प्रसङ्गानुकूलं अन्ये रसाः अपि उपकारी रूपेणनिरूपिताः सन्ति। यत्र तत्र सात्विकशिष्टश्रृंगारस्यापि वर्णनं कृतम्। कविना व्यासेन समुचित अलङ्काराणां विधानं कृतम्। अनुप्रासस्य उदाहरणम्, यथा-” भामिनी भूभङ्ग भूरिभाव प्रभाव, पराभूत वैभवेषु भटेषु’। यमकस्य उदाहरणं, यथा-”विलक्षणोऽयं भगवान सकल कलाकलापकलन: सकलकालन: करालः’। भावानुरूपं भाषा प्रयोगे पं. व्यासः दक्षः आसीत्। शिवराजविजये तात्कालिक-सामाजिक-राजनैतिकदशानां समग्र चित्रणं वर्तते।।

(शिवराजविजय पं. अम्बिकादत्त व्यास द्वारा विरचित संस्कृत साहित्य का पहला ऐतिहासिक उपन्यास है। शिवराजविजय की कथा यद्यपि इतिहास-प्रधान है तो भी लेखक ने अपनी प्रतिभा और कल्पना से इसे सजाया है। यहाँ दो कथाएँ समान रूप से चलती हैं। एक के नायक शिवाजी हैं और दूसरी का नायक रघुवीर सिंह है। यह ग्रन्थ तीन निश्वासों में निबद्ध है। यद्यपि शिवराजविजय का प्रधान रस वीर रस है तो भी प्रसङ्गानुकूल अन्य रस उपकारी रूप से निरूपित हैं। जहाँ-तहाँ सात्विक और शिष्ट श्रृंगार का वर्णन भी किया गया है। कवि व्यास ने समुचित अलङ्कारों का निवेश किया है। अनुप्रास का उदाहरण, जैसे-‘” भामिनी भूभङ्ग भूरिभाव प्रभाव पराभूत वैभवेषु भटेषु।” यमक का उदाहरण, जैसे-”विलक्षणोऽयं भगवान सकल कलाकलापकलनः सकलकालन: करालः।’ भावानुरूप भाषा प्रयोग में पं. व्यास दक्ष हैं। शिवराज विजय में तत्कालीन सामाजिक-राजनैतिक दशा का पूरा चित्रण है।)

10. मधुच्छंदवा

सङ्केत सूची – लोकशासनस्य, गीतिकाव्य, गीतिकाव्यानम्, ‘मधुच्छन्दा’, नवीनेषु गेय-छन्दसु, प्रयोगधर्मीविषयाणाम्, आह्लादकाश्च, ‘राष्ट्रिय’ वैदिककालादेव, वन्दनायाः, गीतिकाभ्यः, राष्ट्रियतायाः, डॉ. आचार्यः, शुभाशंसनापि,।

संस्कृतसाहित्ये ………………………………. परम्परायाम् ………………………………. सरसानां ………………………………. रचना अजम्नास्ति। इमामेवं परम्परा निर्वहन्। ………………………………. हृद्यं, भव्यं, सुश्राव्यं च गीतिकाव्यम् ………………………………. इति रचितवान्। अस्मिन् काव्ये ………………………………. रचिता: गीतिकाः सरसाः, सुमधुराः ………………………………. सन्ति। युगबोधपरकानां, भाव-प्रवणानां, ………………………………. गीतिकानां न केवलं रचना कृता अपितु काव्यमश्चेषु तासां पाठमपि कृतम्। मधुच्छन्दायां ………………………………. विषयान्तर्गते रचिताभ्यः ………………………………. सङ्कलितः। अस्यां कविना मातृभूभारते: ………………………………. आह्वानं कृतम्। मातृभूमेः स्वरूपाख्यानेन सह सुधिजनैः आचारणीया ………………………………. व्ख्यानं कृतम्। ………………………………. कृता यत् भारत-राष्ट्रं सुराष्ट्रं भवतु। सुशासनस्य ………………………………. च स्थापना भवतु।।
उत्तर:
संस्कृतसाहित्ये गीतिकाव्य परम्परायाम् वैदिककालादेव सरसानां गीतिकाव्यानम् रचना अजस्रा। इमामेव परम्परा निर्वहन् डॉ. आचार्य: हृद्यं, भव्यं, सुश्राव्यं च गीतिकाव्यम् ‘मधुच्छन्दा’ इति रचितवान्। अस्मिन् काव्ये नवीनेषु गेय-छन्दसु रचिताः गीतिकाः सरसाः, सुमधुराः आह्मदकाश्च सन्ति। युगबोधपरकानां, भाव-प्रर्वणानां, प्रयोगधर्मीविषयाणाम् गीतिकानां न केवलं रचना कृता अपितु काव्यमश्चेषु तासां पाठमपि कृतम्। मधुच्छन्दायां ‘राष्ट्रिय’ विषयान्तर्गते रचिताभ्यः गीतिकाभ्यः सङ्कलितः। अस्यां कविना मातृभूभारते: वन्दनायाः आह्वानं कृतम्। मातृभूमेः स्वरूपाख्यानेन सह सुधिजनैः आचारणीया राष्ट्रियतायाः आख्यानं कृतम्। शुभाशंसनापि कृता यत् भारत-राष्ट्र सुराष्ट्रं भवतु। सुशासनस्य लोकशासनस्य च स्थापना भवतु।

(संस्कृत-साहित्य-गीत काव्य परम्परा में वैदिक काल से ही सरस गीति काव्यों की रचना निरन्तर रही है। इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए डॉ. आचार्य ने हृदयस्पर्शी भव्य और सुश्राव्य गीति काव्य मधुच्छन्दा की रचना की। इस काव्य में नवीन गेयछन्दों में रचे गये गीत सरस, मधुर और आनन्ददायक हैं। इन्होंने युगबोधक, भावप्रवण प्रयोगधर्मी विषयों के गीतों . की न केवल रचना की अपितु काव्यमञ्चों पर उनका पाठ भी किया। मधुच्छन्दा में राष्ट्रीय विषयान्तर्गत रचे हुए गीत संकलित हैं। इसमें कवि ने मातृभूमि भारती की वन्दना का आह्वान किया। मातृभूमि के स्वरूपाख्यान के साथ सुधीजनों द्वारा आचरण करने योग्य, राष्ट्रीयता का आख्यान किया, शुभाशंसा भी की कि भारत राष्ट्र सुभारत हो। सुशासन और लोक शासन की स्थापना हो।)

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