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RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् अव्यय प्रकरणम्

June 24, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् अव्यय प्रकरणम्

पठित-पाठ्यांशेषु अव्यय-पदानां प्रयोगः

अभ्यास:1

प्रश्न:
मंजूषातः उचितं अव्ययपदं चित्वा रिक्तस्थानं पूरयत- (मंजूषा से उचित अव्यय-शब्द चुनकर रिक्त स्थान भरिए-)।
पुनः, अद्य, श्वः, चिरम्, सहसा, मिथ्या, पुरा, प्रायः, नूनम्, भूयः, खलु, किल, धिक्, उच्चैः, शनैः, अधः, ह्यः, ईषत्

  1. हिमकिरीटा सिन्धुरशना भारती भू: ……………………………………. नन्दतु।
  2. ……………………………………. वयं तेषां पुण्यचरितैः हृदयं पावयाम:।
  3. वीरभोग्याम् इमां वसुधां ……………………………………. कृतात्मानः झुंजते।
  4. ……………………………………. स लुब्धो नोपायमन्तरेण वध्यः स्यात्।
  5. अत्र ……………………………………. सरसि ये जलचरास्ते निश्चिन्ताः सन्ति।
  6. सोऽपि तान् भक्षयित्वा ……………………………………. अपि जलाशयं समासादितः।
  7. सः जलचराणाम् ……………………………………. वार्तासन्देशकैर्मनांसि रंजयति स्म।
  8. भगवन्! वरः ……………………………………. एषः आशिषः।
  9. हा ……………………………………. हा ……………………………………. अन्तर्हिता शकुन्तला वन राज्या।
  10. जनन्या मया च सह ……………………………………. समेधितः गन्ता असि।
  11. एषा ……………………………………. गुरूभिः अभिहितनामधेयस्यास्माकं महाराजदर्शकस्य भगिनी पद्मावती।
  12. भर्तुः विजयेन ……………………………………. श्लाघ्यं गमिष्यसि।
  13. सम्यगुक्तम्, ……………………………………. राजकुमार्या सह वार्तालापं करिष्ये।
  14. तस्य शतकत्रयं जगति प्रसिद्धं …………………………………….।
  15. तदेवं ……………………………………. अतिकुटिल राजतन्त्रे तथा प्रयतेथा।
  16. यथा नोपहस्यसे जनैः, न ……………………………………. क्रियसे गुरुभिः।
  17. ……………………………………. दिने यद् भवितातृ वर्तते तद् युद्धं चत्वारो वयं पाण्डवाः अपि न विजेष्यामहे।
  18. ‘क्षुद्रं हृदय दौर्बल्यम्-त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतपः’ इतिभगवद् वाक्यं विस्मृतं ……………………………………. पूज्यैः।
  19. वयं व्यूहभेदनेऽशक्ताः आत्मानं च ……………………………………. कुर्मः।
  20. किं ……………………………………. श्रीरामोन जितो लवेन।

उत्तर:
1. चिरम्, 2. अद्य, 3. किल, 4. नूनम्, 5. पुन:, 6. भूयः, 7. मिथ्या, 8. खलु, 9. धिक्-धिक्, 10. श्वः, 11. खलु, 12. पुनः, 13. श्वः, 14. खलु, 15. प्रायः, 16. धिक्, 17. श्वः, 18. किल, 19. धिक्, 20. पुरा।

अभ्यास: 2

प्रश्न:
मंजूषातः अव्ययं चित्वा रिक्त-स्थान पूर्ति कुरुत– (अद्य, सहसा, पुरा, सायम्, किल, श्वः, ह्यः, शनैः शनैः, प्रायः, मिथ्या)

  1. शशकः तीव्र धावति, कच्छप ……………………………………. गच्छति।
  2. ……………………………………. विदधीतं न क्रियामविवेकपरमापदां पदम्।
  3. राम ……………………………………. स्वकार्य समये करिष्यति।
  4. मम मित्रं ललित ……………………………………. मम गृहम् आगच्छति।
  5. ……………………………………. बुधवासरः आसीत्। ……………………………………. गुरुवासरः अस्ति। ……………………………………. शुक्रवासरः भविष्यति।
  6. ……………………………………. ‘कृषकाः हलेन बलिवर्द-सहायेन च कृषिकर्म कुर्वन्ति स्म।
  7. अनन्तसारं ……………………………………. शब्दशास्त्रं अल्पश्च आयुः बह्वश्च विघ्नाः।
  8. ……………………………………. काले जनाः भ्रमणार्थम् उद्याने गच्छति।

उत्तर:

  1. शनैः शनैः
  2. सहसा
  3. किल्
  4. प्रायः
  5. हच: अद्य, श्वः
  6. पुरा
  7. मिथ्या
  8. सायम्।

अभ्यास: 3
प्रश्न:
उचित अव्ययं चित्वा रिक्त-स्थानं पूरयतु

  1. बधिरस्य पाश्र्वे जनाः ……………………………………. वदन्ति। (शनै:/उच्चैः/मिथ्या)
  2. गणतन्त्र दिवसे सैनिकाः राजमार्गे ……………………………………. चलन्ति। (चिरम्/युगपत्/शनै:)
  3. ……………………………………. त्वाम्। अकारणमेव मिथ्या वदसि। (धिक्/नूनम्/किल)
  4. छात्रा ……………………………………. प्रश्न:ान् पृच्छन्ति, शिक्षक: वारं-वारं उत्तरम् ददाति। (चिरम्/तुष्णीम्/पुनः पुनः)
  5. स ……………………………………. निवसति? (सर्वत्र/कुत्र/एकत्र)
  6. ईश्वर ……………………………………. अस्ति। (सर्वत्र/कुत्र/एकत्र)
  7. रामस्य पिता ……………………………………. जयपुरं गमिश्यति। (श्व:/ह्य:/अद्य)
  8. मम माता ……………………………………. उदयपुरनगरात् आगच्छत। (श्व:/ह्य:/अद्य)
  9. सः अत्र’ ……………………………………. कालात् प्रतीक्षा करोति। (पुर:/प्राय:/चिरम्)
  10. येदा कक्षायां शिक्षकः आगच्छति तदा कक्षे ……………………………………. भवति। (पुर:/तूष्णीम्/भूयः)

उत्तर:

  1. उच्चैः
  2. युगपत्
  3. धिक्
  4. पुनः पुनः
  5. कुत्रः
  6. सर्वत्र
  7. श्वः
  8. हृचः
  9. चिरम्।
  10. तूष्णीम्।

अभ्यास: 4
प्रश्न:
अधोलिखितेषु पदेषु उपसर्गान् लिखतु- (निम्नलिखित पदों में विद्यमान उपसर्ग लिखिए-)
(i) न्यवसत्, (ii) प्रत्येकम्, (iii) संगच्छध्वम्, (iv) निर्गच्छति, (v) निराहारः, (vi) स्वागतम्, (vii) विज्ञानम्, (xiii) अध्यारोपः, (ix) अन्वगच्छत्, (x) अपहरति।
उत्तर:
(i) नि + अवसत् (ii) प्रति + एकम् (iii) सम् + गच्छध्वम् (iv) निर् + गच्छति (v) निर् + आहारः (vi) सु + आगतम् (vii) वि + ज्ञानम् (viii) अधि + आरोपः (ix) अनु + अगच्छत् (x) अप + हरति।

अभ्यास: 5
प्रश्न:
अधोलिखितेषु पदेषु उपसर्ग योजयित्वा पद-निर्माणं कुरुत: (निम्नलिखित पदों में उपसर्ग जोड़कर पद-निर्माण कीजिए-)
(i) परा+जि, (ii) अनु+गम, (iii) दुस्+क, (iv) अधि+रुह,, (v) नि+पत्, (vi) अपि+गम, (vii) परि+गम, (viii) उप+वस, (ix) आ+दा, (x) आ+दा।
उत्तर:
(i) पराजितः, (ii) अनुगमनम्, (iii) दुष्कर्मः, (iv) अधिरोहति, (v) निपतत्, (vi) अपिगीर्ण, (vii) परिगत, (viii) उपवसति, (ix) छर्गम्, (x) आदाय।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अभ्यास: 4

प्रश्न:
अधोलिखितवाक्येषु उचितमव्ययपदं चित्वा रिक्त-स्थानं पूरयत(निम्नलिखित वाक्यों में उचित अव्यय चुनकर रिक्त-स्थान की पूर्ति कीजिए-)
(क) शिखराणि ……………………………………. लताभिः पुष्पिताग्रामिरूपगूढानि। (पुरुत:/सर्वत:)
(ख) वीरो ……………………………………. गर्वित कुञ्जरथः। (तथा/यथा)
(ग) बोधिसत्व: ……………………………………. कस्मिंश्चित् सरसि मत्स्याधिपति: बभूव। (किल/खलु)
(घ) वर्षनिवृत्ति साशङ्कः ……………………………………. पर्जन्यमाबभाषे। (मुहुर्मुहुः/पुनः पुनः)
(ङ) तवैव ……………………………………. एषः सत्यातिशयप्रभावः। (किल/खलु)
(च) सः नैव स्त्री न ……………………………………. पुमान्। (तत:/पुन:)
(छ) हा ……………………………………. अयमपि नाम परसम्पत्त्या सन्तप्यते? (धिक्/हन्त)
(ज) हम्मीरदेवेन ……………………………………. युद्धं कृतवान्। (सार्क/प्रति)
(झ) महिमासाहिना ……………………………………. त्वामनतकपुरं नेष्यामि। (पुर:/सह)
(ण) ……………………………………. परश्वोः वा दुर्गं ग्राहयिष्यावः। (ह्य/श्व:)
उत्तर:
(क) सर्वतः (ख) यथा (ग) किल (घ) पुनः पुनः (ङ) खलु (च) पुनः (छ) धिक् (ज) साकम्। (झ) सह (ण) श्वः।

अभ्यास: 5
प्रश्न:
उचितेन अव्ययपदेन रिक्त-स्थानं पूरयत। (उचित अव्यय पद से रिक्त-स्थान की पूर्ति कीजिये।)
(क) मयि जीवति यमः ……………………………………. त्वां पराभवितुं न शक्नोति।
(ख) हम्मीरदेवेन साकं युद्धं कृतवान्। ……………………………………. जयं न लब्धवान्।
(ग) यद्येनं न दास्यति ……………………………………. श्वस्तने प्रभाते तव दुर्गं नाशयिष्यामि।
(घ) श्वः ……………………………………. वा दुर्गं ग्राहयिष्यावः।
(ङ) किञ्च यदि मन्यसे ……………………………………. निर्भयं स्थानं त्वां प्रापयामि।
(च) ……………………………………. एव क्रीडित्वा सोऽपि समागतः।
(छ) स्वामिन्याः ……………………………………. भविष्यति।
(ज) कियद्वारं निर्दिष्टोऽसि ……………………………………. प्रवचनं न कार्यम्।
(झ) अद्यागत ……………………………………. एव वात्याचक्रमुत्थापयसि।
(अ) तव पिता ……………………………………. किं करोति?
उत्तर:
(क) अपि
(ख) परं
(ग) तदा
(घ) परश्वः
(ङ) तदा
(च) इदानीम्
(छ) पाश्र्वे
(ज) यत्
(झ) प्रायः
(ब) च।

अभ्यास: 6
प्रश्न:
अधोलिखितानाम् अव्ययशब्दानां स्वरचित संस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत। (निम्नलिखित अव्यय शब्दों का स्वरचित संस्कृत वाक्यों में प्रयोग कीजिए।) उच्चैः, शनैः, अधः, अद्य, ह्यः, सायं, चिरम्, ईषत्, तूष्णीम्, सहसा, पुरा, नूनम्, भूयः, खलु, धिक्।
उत्तर:

  1. बालक: दृश्यम् अवलोक्य उच्चैः हसति। (बालक दृश्य को देखकर जोर से हँसता है।)
  2. कच्छपः शनैः शनैः चलति। (कछुआ धीरे-धीरे चलता है।)
  3. वृक्षस्य अधः एव साधोः उटजम्। (वृक्ष के नीचे ही साधु की कुटिया है।)
  4. अद्य अहं विद्यालयं न गमिष्यामि। (आज मैं विद्यालय नहीं जाऊँगा।)
  5. ह्यः सत्यदेवः जयपुरम् अगच्छत्। (कल सत्यदेव जयपुर गया।)
  6. सायंकाले खगाः स्व स्व नीडे प्रत्यागच्छन्ति। (सायंकाल पक्षी अपने-अपने घोंसले में लौट आते हैं।)
  7. चिरं जीवतु रामः। (राम चिरायु हों!)
  8. मह्यम् ईषद् जलं देहि। (मुझे थोड़ा जल दो।)
  9. तूष्णीं भव नोचेदाचार्यं निवेदयिष्यामि। (चुप हो जा नहीं तो आचार्य से कह दूंगा।)
  10. सहसैव सः तत्र प्राप्त:। (अकस्मात् ही वह वहाँ पहुँच गया।)
  11. पुरा आदिकवि: वाल्मीकिः रामचरितमलिखत्। (पहले आदिकवि वाल्मीकि ने रामचरित लिखा।)
  12. अद्य सा नूनम् आगमिष्यति। (आज वह अवश्य आयेगी।)
  13. भूयो भूयः नमाम्यहम्। (मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ।)
  14. नीचैः विघ्न भयेन खलु न प्रारभ्यते। (नीच लोगों द्वारा विघ्नों के भय से निश्चय ही कार्य प्रारम्भ नहीं किया जाता है।)
  15. धिङ मूर्खम्। (मूर्ख को धिक्कार है)

अभ्यास: 7
प्रश्न:
अधोलिखिताव्ययानामर्थं हिन्दीभाषायां लिखित्वा संस्कृत वाक्येषु प्रयोगं कुरुत (निम्नलिखित अव्ययों को हिन्दी में अर्थ लिखकर संस्कृत वाक्यों में प्रयोग कीजिए) तथा, नीचैः, युगपत्, मिथ्या, श्वः, अचिरम्, पाश्र्वे, किल, यत्र, यत्।
उत्तर:
तथा – (वैसे) यथा मेघाः गर्जन्ति तथा एव जलं वर्षति। (जैसे मेघ गर्जते हैं वैसे ही जल बरसता है।)
नीचैः – (धीमे) त्वं सर्वदा नीचैः एव वदसि। (तुम हमेशा धीमे बोलते हो।)
युगपत् – (एक साथ) चक्रेण युगपत्। (चक्र के साथ)।
मिथ्या – (झूठ) मिथ्या वचनं पापमूलम्। (मिथ्या वचन पाप का मूल है।)
श्वः – (आने वाला कल) अहं श्वः एव विदेशं गमिष्यामि। (मैं कल ही विदेश जाऊँगा।)
अचिरम् – (शीघ्र) अचिरमेव सः अरोदत्। (वह शीघ्र ही रो पड़ा)।
पाश्र्वे – (पास, बगल में) मातुः पार्वे भविष्यति। (माँ के पास होगा।)
किल – (निश्चय, अवश्य ही) गायन्ति देवाः किल गीतकानि। (निश्चित ही देवता गीत गाते हैं।)
यत्र – (जहाँ) सः तत्र गच्छति यत्र त्वं गच्छति। (वह वहाँ जाता है जहाँ तू जाता है।)
यत्- (कि) अहं जानामि यत् त्वं मूर्खाऽसि। (मैं जानता हूँ कि तुम मूर्ख हो)

अव्यय-प्रकरणम्
शब्दज्ञान-सार्थक शब्दों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-
(1) विकारी तथा
(2) अविकारी।

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया शब्द विकारी होते हैं तथा अव्यय अविकारी होते हैं।

अव्यय की परिभाषा-जिन शब्दों पर लिङ्ग, वचन, पुरुष और काल आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हो अर्थात् जो तीनों लिङ्गों, तीनों वचनों, तीनों कालों में तथा सभी विभक्तियों में एक समान रहते हों अर्थात् बिना किसी विकार के प्रयोग किये जाते हों, जिनके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता हो, उन शब्दों को अव्यय कहते हैं। संस्कृत व्याकरण में इसे इस प्रकार परिभाषित किया गया है

सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु, यन्न व्येति तदव्ययम्।

अर्थात् अव्यय शब्द वे हैं जो कि तीनों लिंगों- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग में, प्रथमा आदि सभी विभक्तियों में और तीनों वचनों-एकवचन, द्विवचन, बहुवचन इन सभी वचनों में समान रूप से प्रयुक्त होते हैं तथा जिनमें कोई परिवर्तन नहीं करना पड़ता है। अव्यय के भेद–अव्यय शब्द चार प्रकार के हैं-

  1. उपसर्ग
  2. क्रिया-विशेषण
  3. समुच्चयबोधक
  4. विस्मयादिबोधक अथवा मनोविकारसूचक।

अव्यय शब्द संस्कृत में अनेक हैं परन्तु यहाँ पाठ्यक्रम में निर्धारित अव्यय शब्द ही उनके अर्थ एवं प्रयोग सहित दिये गए हैं।
(1) उपसर्ग अव्यय- उपसर्ग वे अव्यय शब्दांश हैं जो क्रियादि पदों से पूर्व जुड़कर उनके अर्थ को बदल देते हैं या उसमें कुछ विशेषता ला देते हैं। ये प्र आदि 22 होते हैं अत: इन्हें ‘प्रादय’ कहते हैं। इनका अपना कोई अर्थ या स्वतन्त्र प्रयोग नहीं होता है। ये हैं-प्र (अधिक), परा (पीछे), अप (दूर), सम् (अच्छी तरह), अनु (पीछे), अव (दूर नीचे), निस (बिना), निर (बाहर), दुस (कठिन), दुर (बुरा), वि (बिना), आङ (तक), नि (नीचे), अधि (ऊपर), अपि (भी), अति (बहुत), सु (अच्छा), उद् (ऊपर), अभि (ओर), प्रति (ओर, उल्टा), परि (चारों ओर), उप (निकट)।

यथा-प्रणाम, पराजय, अपमान, संयोग, अनुरागः, अवमानना, निस्सन्देह, निराकार, दुस्साहस, दुर्जय, वियोगः आवास, विरोधः, अधिकारः, अपिधानम् (पिधानम्) अतिक्रमण, सुभग, उत्थानम्, अभिमानम्, प्रत्युत्तरम, परितः उपयोगः।

(नोट-उपर्युक्त शब्दों में स्थूल शब्दांश उपसर्ग हैं।]

(2) क्रिया-विशेषण अव्यय-जो अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, उन्हें क्रिया-विशेषण अव्यय कहा जाता है। इन्हें मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- (1) कालवाचक (2) स्थानवाचक तथा (3) रीतिवाचक क्रिया विशेषण। कुछ क्रिया-विशेषण सु आदि अव्यय में परिगणित होते हैं, कुछ सर्वनाम शब्दों से निर्मित होते हैं, कुछ संख्यावाचक शब्दों से निर्मित होते हैं और कुछ तद्धित प्रत्ययों के योग से निर्मित होते हैं। जैसे-अपि, इति, इव, उच्चैः, एवं, कदा, कुतः, खलु, चित्, कश्चन, नूनम्, पुरा, मा, इतस्तत: यत्-यत्, अत्र-तत्र, यत्र-तत्र, यदा-कदा, यथा-तथा, यावत्-तावत्, विना, सहसा, श्वः, यः, अधुना, बहिः, वृथा, कदापि, शनैः-शनैः, किमर्थम्। इनमें से ‘इतस्तत:’ आदि कुछ जोड़े से भी प्रयोग किए जाते हैं तथा पृथकशः भी प्रयुक्त होते हैं। ‘कदापि’ आदि में दो अर्थों को मिला दिया जाता है तथा शनैः-शनैः आदि दो बार भी प्रयोग किए जाते हैं। पाठ्यक्रम में निर्धारित सभी अव्यय क्रिया-विशेषण की श्रेणी में आते हैं।
(i) कालवाचक
अव्यय अर्थ वाक्य प्रयोग

कदा कब
(i) त्वं कदा विद्यालयं गमिष्यसि? (तुम कब विद्यालय जाओगे?)
(ii) ईश्वरः कदा अवतरति? (ईश्वर कब अवतार लेता है?)

यदा-तदा जब-तब
(i) यदा सः पठति तदा एव अहं गच्छामि।
(जब वह पढ़ता है तब ही मैं जाता हूँ।)
(ii) यदा-यदा मेघाः गर्जन्ति तदा-तदा एवं जलं वर्षति।
(जब-जब बादल गरजते हैं तब-तब ही जल बरसता है।)

पहले, प्राचीनकाल में
(i) पुरा पुरुः नाम नृपः आसीत्। (पहले पुरु नाम का राजा था।)
(ii) पुरा ग्रामे काऽपि वृद्धा, आसीत्। (पहले गाँव में कोई बुढ़िया थी।)

इदानीम् अब, अभी
(i) इदानीम् अहं पठिष्यामि। (अब मैं पहँगा।)
(ii) इदानीम् त्वं कुत्र गच्छसि? (अभी तुम कहाँ जा रहे हो?)

अब, इस समय
(i) अधुना त्वं पठ। (अब तू पढ़े।)
(ii) अधुना अहं अर्चनं करोमि। (अब मैं अर्चना करता हूँ।)

सम्प्रति अब, हाल में, इस समय
(i) सम्प्रति सः न आगमिष्यति। (अब वह नहीं आएगा।)
(ii) सम्प्रति सः व्यायाम न करोति। (अब वह व्यायाम नहीं करता है।)

यदा-कदा। जब-कभी
(i) नेतारः यदा-कदा एवं क्षेत्रे आयान्ति।
(नेता जब-कभी इस क्षेत्र में आते हैं।)
(ii) सः आत्मजं द्रष्टुम् अत्र यदा-कदा आगच्छति।
(वह पुत्र को देखने के लिए यहाँ जब कभी आता है।)

यावत्-तावत् जब तक, तब तक
(i) यावत् वृष्टिः न भवति तावत् शस्यं न भवति।
(जब तक वर्षा नहीं होती है तब तक फसल नहीं होती है।)
(ii) यावत् अहम् अस्मि तावत् त्वं तिष्ठ।
(जब तक मैं हूँ तब तक तुम ठहरो।)

विना बिना
(i) न सुखं धनं विना। (धन के बिना सुख नहीं।)
(ii) न मुक्तिः ज्ञानेन विना। (ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं।)

हा: कल (बीता हुआ)
(i) ह्यः त्वं कुत्र अगच्छ:? (कल तुम कहाँ गये थे?)
(ii) अद्य सोमवारः ह्यः रविवारः आसीत्।
(आज सोमवार है, कल रविवार था।)

श्वः कल (आने वाला)
(i) श्वः अहं जयपुरं गमिष्यामि। (कल मैं जयपुर जाऊँगा।)
(ii) श्वः किं भविष्यति इति को जानाति? (कल क्या होगा यह कौन जानता है?)

कदापि किसी समय कभी-कभी,
(i) अहं कदापि असत्यं न वदामि। (मैं कभी झूठ नहीं बोलता हूँ।)
(ii) एकः कदापि निर्जने वने न गच्छेत्।
(अकेले कभी निर्जन वन में नहीं जाना चाहिए।)

अद्य आज
(i) अद्य सा गृहं न गमिष्यति। (आज वह घर नहीं जाएगी।)
(ii) अद्य अहम् अत्रैव तिष्ठामि। (आज मैं यहीं ठहर रहा हूँ।)

कदा कब
(i) त्वं विदेशं कदा गमिष्यसि? (तुम विदेश कब जाओगे?) सदा हमेशा
(i) सदा सत्यं वद। (हमेशा सत्य बोलो।) तावत्

तब तक, उतना
(i) तावत् अहम् अपि गच्छामि। (तब तक मैं भी जा रही हूँ।)
(ii) स्थानवाचक

अव्यय अर्थ वाक्य-प्रयोग
कुतः कहाँ से, किधर से
(i) कुतः आगच्छति भवान्? (कहाँ से आ रहे हैं आप?)
(ii) अतिथिः कुतः आगच्छत्? (अतिथि कहाँ से आया?)

कुत्र। कहाँ
(i) भवान् कुत्र गच्छति? (आप कहाँ जा रहे हैं?)
(ii) तस्य गृहं कुत्र विद्यते? (उसका घर कहाँ है?)

यत्र-तत्र जहाँ-वहाँ
(i) यत्र सा पठति, तत्रैव अहम् अपि पठामि।
(जहाँ वह पढ़ती है, वहाँ मैं भी पढ़ती हूँ।)
(ii) सः यत्र गच्छति, तत्र एव कलहं करोति।
(वह जहाँ जाता है, वहाँ ही कलह करता है।)

वहाँ तत्र
(i) रात्रौ तत्र कोऽपि न आयाति। (रात को वहाँ कोई नहीं आता है।)
(ii) अहम् अपि तत्र एव निवसामि। (मैं भी वहाँ ही रहता हूँ।)।

बाहर बहि
(i) ग्रामाद् बहिरेव विद्यालयः। (गाँव के बाहर ही विद्यालय है।)
(ii) रात्रौ बहिर् न गच्छेत्। (रात को बाहर नहीं जाना चाहिए।)

यहाँ से, इधर से, इस दिशा में
(i) त्वम् इतः मा गच्छ। (तुम यहाँ से मत जाओ।)
(ii) इदानीम् एव इतः कः अगच्छत्? (अभी यहाँ से कौन गया था?)

वहाँ से, तब, उसके बाद।
(i) ततः सः मम गृहम् आगच्छत्। (तब वह मेरे घर आ गया।)
(ii) सः ततः दूरम् अगच्छत्। (वह वहाँ से दूर चला गया।)

अत्र यहाँ
(i) मम मित्रम् अपि अत्र एव निवसति।
(मेरा मित्र भी यहाँ ही निवास करता है।)
(ii) रात्रौ अन्न कः आगच्छति?
(रात को यहाँ कौन आता है?)

इतस्ततः इधर-उधर
(i) काकः इतस्ततः जलार्थम् अभ्रमत्।
(कौआ इधर-उधर पानी के लिए घूमता रहा।)
(ii) सः इतस्ततः व्यर्थमेव भ्रमति। (वह इधर-उधर व्यर्थ ही घूमता है।)

पुरः/पुरुत:/ पुरस्तात् सामने
(i) भवनस्य पुर:/पुरत:/पुरस्तात् गजः विलसति।
(घर के सामने हाथी शोभा देता है।)

(iii) रीतिवाचक

अव्यय। अर्थ वाक्य-प्रयोग
अपि भी
(i) अहम् अपि जयपुरे एव निवसामि।
(मैं भी जयपुर में ही रहता हूँ।)।
(ii) त्वमपि अत्रैव तिष्ठ। (तू भी यहीं ठहर।)

इति। – ऐसा
(i) जलात् जायते इति जलजः।
(पांनी से पैदा होता है, वह जलज है।)
(ii) ‘सीता’ इति नामधेया मे जननी।
(सीता इस नामवाली है मेरी माँ।)

इव – तरह से, की तरह
(i) नरः व्याघ्र इव इति नरव्याघ्रः।
(मनुष्य बाघ के समान ऐसा नरव्याघ्र।)
(ii) घन इव श्यामः। (बादल की तरह काला।)

एव ही
(i) मम जनकः अत्र एव निवसति।
(मेरे पिताजी यहाँ ही रहते हैं।)।
(ii) मा गच्छ, अत्र एव तिष्ठ। (मत जाओ, यहाँ ही ठहरो।)

नूनम् – निश्चय ही, अवश्य।
(i) सः नूनं स्वमातरं सेवते।।
(वह अवश्य अपनी माता की सेवा करता है।)
(ii) नूनम् एषा सञ्जीवनी। (यह निश्चित संजीवनी है।)

खलु – निश्चय ही, अनुरोध, कभी-कभी पूरक
(i) सः खलु सत्यमेव वदति। (निश्चय ही वह सत्य बोलता है।)
(ii) मा खलु चापलं कुरु। (निश्चय ही चपलता मत करो।)

यथा-तथा जैसे-वैसे
(i) यथा जलं वर्षति तथा एव पादपाः वर्धन्ते।
(जिस प्रकार-उस प्रकार (जैसे जल बरसता है वैसे ही पौधे बढ़ते हैं।)
(ii) यथा-यथा जन सम्मर्दः वर्धते तथा तथा अशान्तिः भवति।
(जैसे-जैसे जनसमूह बढ़ता है, वैसे-वैसे अशान्ति होती है।)

वृथा। निरर्थक, व्यर्थ
(i) विद्यां विना जीवनं वृथा। (विद्या के बिना जीवन व्यर्थ है।)
(ii) वृथा इतस्ततः मा भ्रमत। (व्यर्थ इधर-उधर मत घूमो।)।

शनैः धीरे
(i) गजः शनैः-शनैः चलति। (हाथी धीरे-धीरे चलता है।)
(ii) सी शनैः कक्षे प्रविशति। (वह धीरे से कमरे में प्रवेश करती है।)

किमर्थम्। किसलिए, क्यों:
(i) राम: किमर्थं वनम् अगच्छत्? (राम किसलिए वन को गया?)
(ii) सा किमर्थं रोदिति? (वह किसलिए रोती है?)

कश्चित्/कश्चन कोई
(i) कश्चित् आगच्छति। (कोई आता है।)
(ii) कश्चन पुरुषः तत्रागच्छत्। (कोई व्यक्ति वहाँ आया।)

कदाचित् कभी, शायद
(i) कदाचित् सः न वदेत्। (शायद वह न बोले।)
(ii) सा कदाचित् अत्र आयाति। (वह कभी यहाँ आती है।)

उच्चैः। ऊँचा, उच्च स्वर में
(i) मेघाः उच्चैः गर्जन्ति। (मेघ ऊँचे स्वर में गरजते हैं।)
(ii) बालः उच्चैः रोदिति। (बालक ऊँचे स्वर से रोता है।)

सहसा अचानक
(i) सहसा कृष्णोऽवदत्। (अचानक कृष्ण बोला।)
(ii) सहसा विदधीत न क्रियाम्।
(अचानक कोई क्रिया नहीं करनी चाहिए।)

सह/साकम्/सार्धम्/ साथ
(i) महेन्द्रः जनकेन सह/समें नगरं गमिष्यति। समम्।
(महेन्द्र पिताजी के साथ नगर को जाएगा।)
(ii) मया साक/सार्धं त्वं न चलिष्यसि। (मेरे साथ ही तू नहीं चलेगा।)

मा नहीं
(i) कुपथं मा गच्छ। (बुरे रास्ते पर मत जाओ।)
(ii) असत्यं मा वद। (झूठ मत बोलो।)

कदापि कभी:
(i) कदापि आलस्यं मा कुरु। (कभी आलस्य मत करो।)
(ii) कदापि निर्जने कानने मा गच्छ (कभी निर्जन वन में मत जाओ।).

(2) सम्बन्धबोधक अव्यय-जो अव्यय शब्द संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के सम्बन्ध को बोध कराते हैं, उन्हें सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। यथा–
(i) नगरस्य मध्ये एंव चिकित्सालयः अस्ति। (नगर के मध्य ही चिकित्सालय है।)
(ii) ग्रामस्य समीपे एव नदी प्रवहति। (गाँव के समीप ही नदी बहती है।) यहाँ ‘मध्ये’ और ‘समीपे’ सम्बन्धबोधक अव्यय हैं।

(3) समुच्चयबोधक अव्यय-जो अव्यय शब्द दो पदों या वाक्यों को परस्पर जोड़ने का काम करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे–च (और), वा (अथवा) आदि।
(i) सुरभित: शीतलः च पवन: वहति। (सुगन्धित और शीतल हवा चल रही है।)
(ii) महेशः दिनेशः वा गायति। (महेश अथवा दिनेश गा रहा है.।)।

(4) विस्मयादिबोधक अव्यय-जो अव्यय शब्द हर्ष, विषाद, सम्बोधन, दु:ख, खेद, घृणा, आश्चर्य, आशीर्वाद, भय, लज्जा आदि भावों या मनोविकारों को प्रकट करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक या मनोविकारसूचक अव्यय कहते हैं, जैसेआः, अहो, आम्, अहह, धिक्, हा, हन्त आदि।
(i) आ:! स्वयं मृतोऽसि। (अरे! स्वयं मर गये हो।)
(ii) अहो! देशस्य दुर्भाग्यम्। (अरे! देश का दुर्भाग्य।)
(iii) अहो! बलीयः खलु भीतोऽस्मि। (अरे! बहुत अधिक डर गया हूँ।)

कुछ अव्ययों को वाक्यों में प्रयोग-
श्व- रमेशः श्वः आगमिष्यति। (रमेश कल आयेगा)
अद्य-मोहनः अद्य विद्यालयं आगच्छति। (आज मोहन विद्यालय आ रहा है।)
शनैः-शनैः-सः शनैः-शनैः कार्यं करोति। (वह धीरे-धीरे कार्य करता है।)
उच्चैः-राम उच्चैः वदति। (राम जोर से बोलता है।)
ह्य-ह्यः रविवासरः आसीत्। अद्य सोमवासरः अस्ति। श्वः मंगलवासरः भविष्यति। (कल रविवार था। आज सोमवार है। कल मंगलवार होगा।)
युगपत्-सर्वे छात्रा: युगपत् चलन्ति। (सभी छात्र मिलकर चलते हैं।)
सायम्-सायम् काले वृद्धाः भ्रमणार्थम् उद्याने गच्छन्ति। (सायंकाल वृद्ध भ्रमण के लिए उद्यान में जाते हैं।)।
चिरम्-अहम् अत्र चिरकालात् प्रतीक्षा करोमि किन्तु सः अद्यावधि न ओगतः। (मैं यहाँ पर बहुत देर से प्रतीक्षा कर रहा हूँ किन्तु वह अभी तक नहीं आया है।)
ईषत्-रुग्णजनैः ईषत् ईषत् भोजनं ग्रहीतव्यम्। (रोगियों को थोड़ा-थोड़ा भोजन ग्रहण करना चाहिए।)
तूष्णीम्-अध्यक्षमहोदयस्य आगमने सभागारे तूष्णीम् अभवत्। (अध्यक्ष महोदय के आगमन पर सभागार में चुप्पी हो गई।)
सहसा-यदा अहं मार्गे गच्छामि स्म तदा सहसा मम सम्मुखे कारयानम् आगतम्। (जब मैं रास्ते में जा रहा था तब अचानक मेरे सामने कार आ गई।)
पुरा-पुरी ग्रामे कूपाः भवन्ति स्म किन्तु अधुना न सन्ति। (पहले गाँवों में कुएँ होते थे किन्तु अब नहीं हैं।)
प्रायः-प्रायः नरेन्द्रश्री सोत्साहैरेव भुज्यते। (प्रायः नरेन्द्र श्री उत्साहपूर्वक ही भोजन करते हैं।)
नूनम्-राधा नूनम् स्वकार्यं करिष्यति। (राधा निश्चित ही अपने कार्य को करेगी।)
भूयः-माहेश्वर-सूत्राणां भूयः भूयः उच्चारणेन स्मरणं भविष्यति। (माहेश्वर सूत्रों का बार-बार उच्चारण से स्मरण हो जायेगा।)
खलु-न खलु अहं त्वाम् अवगच्छामि। (मैं तुम्हें बिल्कुल नहीं जानता।)
धिक्-धिक् त्वां च तं च मदनं च इमां च मां च। (तुमको, उसको, मदन को, इसको और मुझको धिक्कार है।)
किल-कुतः किल स्वयम् अक्षि आकुली कृत्य अश्रुकारणं पृच्छसि। (अवश्य कहाँ से अपनी आँखों को विह्वल करके आँसुओं का कारण पूछते हो।)
पुनः- बालकः पुनः पुनः पृच्छति शिक्षकः वारं-वारम् उत्तरं ददाति। (बालक बार-बार पूछता है शिक्षक बार-बार उत्तर देता है।)
कुत्र, यत्र, तत्र, सर्वत्र-ईश्वरः कुत्र नास्ति? ईश्वरः यत्र, तत्र, सर्वत्र एव अस्ति। (ईश्वर कहां नहीं है? ईश्वर यहाँ-वहाँ सभी जगह है।)
यदा-तदा-यदा अहं आगच्छामि तदा त्वं गमिष्यसि। (जब मैं आ जाऊँ तब तुम जाओगे।)।

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