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RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम्

June 24, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम्

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
अभ्यास: 1

प्रश्न 1.
अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृति-प्रत्ययौ लिखतु- (निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय लिखिए-)
(i) नीत्वा, (ii) आगम्य, (iii) पठित्वा, (iv) सम्भूय, (v) अर्चितः, (vi) स्नातवत्, (vii) त्यक्तः, (xiii) गच्छत्, (ix) ददानः, (xi) कुर्वाण:, (xii) द्रष्टव्यम्, (xiii) भनीयम्, (xiv) पातुम्, (xv) कारकः, (xvi) ज्ञेयः, (xii) मन्त्री, (xviii) स्तुतिः।
उत्तर:
(i) नी + क्त्वा (ii) आ + गम् + ल्यप् (iii) पठ् + क्त्वा (iv) सम् + भू + ल्यप् (v) अर्च + क्त (vi) स्नात् + क्तवतु (vii) त्यज् + क्त (viii) गम् + शतृ (ix) दा + शानच् (x) हृ + शतृ (xi) कृ + शानच् (xii) दृश् + तव्यत् (xiii) भू + अनीयर् (xiv) पा + तुमुन् (xv) कृ + ण्वुल् (xvi) ज्ञा + यत् (xvii) मन्त्र + णिनि (xviii) स्तुत् + ङीष्।

अभ्यास: 2
प्रश्न-अधोलिखितेषु पदेषु प्रकृति-प्रत्ययौ योजयित्वा पद-निर्माणं कुरुत
(i) कृ+तृय्, (ii) दण्ड + इनि, (iii) रेवती + ठक्, (iv) शिव + अण्, (v) भस्म + मयट्, (vi) पटु + तर, (vii) लघु + तमप्, (viii) कोकिल + टाप्, (ix) नर्तक + क्ती, (x) भव + क्ती, (xi) मूषक + टाप्, (xii) गोप + ङीष्।
उत्तर:
(i) कर्तृ (ii) दण्डिन (iii) रैवतिकः (iv) शैवः (v) भस्ममयम् (vi) पटुतरः (vii) लघुतमः (viii) कोकिला (ix) नर्तकी (x) भवानी (xi) मूषिका (xii) गोपी।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
अभ्यास- 3
प्रश्न
प्रकृति-प्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत। (प्रकृति प्रत्यय को मिलाकर पद-रचना कीजिये।)
(क) जन् + क्त।
(ख) क्रीड् + शतृ
(ग) त्यज् + क्त्वा
(घ) वि + श्रम् + ल्यप्
(ङ) भक्ष् + तुमुन्।
(च) नि + वृत् + क्तिन्।
(छ) प्र + यत् + तव्यत्
(ज) भुञ्ज + शान
(झ) गुह् + क्ते + टाप्।
(अ) जि + अच्।
(ट) ग्रह् + ण्वुल्।
(ठ) लभ् + क्तवतु।
(ड) अधि + वच् + तृच्।
(ढ) कृ + क्तवतु + ङीप्।
(ण) कृ + अनीयर्।
उत्तर:
(क) जातः, (ख) क्रीडन्, (ग) त्यक्त्वा, (घ) विश्रम्य, (ङ) भक्षितुम्, (च) निवृत्तिः, (छ) प्रयतितव्यम्, (ज) भुञ्जानः, (झ) गूढा, (अ) जयः, (ट) ग्राहकः, (ठ) लब्धवान्, (ड) अधिवक्ता, (ढ) कृतवती, (ण) करणीयः।

अभ्यास-4
प्रश्न
अधोलिखितपदेषु प्रकृति-प्रत्यय विभागः क्रियताम्(निम्नलिखित पदों में प्रकृति-प्रत्यय पृथक् कीजियें-)
(क) प्रयुक्तम्,
(ख) भवितव्यम्,
(ग) गन्तुम्,
(घ) पर्यटन्तः ,
(ङ) वहमानस्य,
(च) क्रीत्वा,
(छ) दृष्टिः ,
(ज) कर्ता,
(झ) अतितराम्,
(अ) प्रतीक्षमाणः,
(ट) करणीया,
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय,
(ड) कारकः,
(ढ) कृतवती,
(ण) विक्रेता।
उत्तर:
(क) प्रयुक्तम् = प्र + युज् + क्त,
(ख) भवितव्यम् = भू + तव्यत्,
(ग) गन्तुम् = गम् + तुमुन्,
(घ) पर्यटन्तः = परि + अट् + शत् (प्र.ब.व.),
(ङ) वहमानस्य = वह् + शानच् (ष.ए.व.),
(च) क्रीत्वा = क्री + क्त्वा,
(छ) दृष्टिः = दृश् + क्तिन्,।
(ज) कर्ता = कृ + तृच्,
(झ) अतितराम् = अति + तरप् + टाप् (द्वि.ए.व.),
(ज) प्रतीक्षमाणः = प्रति + ईक्ष् + शनिच्,
(ट) करणीया = कृ + अनीयर् + टार्,
(ठ) प्रत्यभिज्ञाय = प्रति + अभि + ज्ञा + ल्यप्,
(ड) कारकः = कृ + ण्वुल्,
(ढ) कृतवती = कृ + क्तवतु + ङीप्,
(ण) विक्रेता = वि + क्री + तृच्।

अभ्यास-5
प्रश्न
रिक्तस्थानानि यथानिर्दिष्टपदेन पूरयत-(रिक्त-स्थानों की पूर्ति निर्देशानुसार कीजिए-)
(क) रूपं यथा ………………………………… महार्णवस्य। (शम् + क्त)
(ख) ………………………………… नृत्यन्ति। (शिखा + इनि)
(ग) सलिलतीरं ………………………………… पक्षिणः वायसगणाः च। (वस् + णिनि)
(घ) अपयानक्रमो नास्ति ………………………………… अप्यन्यत्र को भवेत्। (नी + तृच्)
(ङ) तत्किमत्र प्राप्तकालं स्यादिति। ………………………………… समहात्मास्वकीय सत्यतपोबलमेव तेषां रक्षणोपायम् अमन्यत्। (वि + मृश् + शतृ)
(च) स्मरामि न प्राणिवधं यथाहं ………………………………… कृच्छ्रे परमेऽपि कर्तुम्। (सम् + चिन्त् + ल्यप् )
(छ) अतः शील विशुद्धौ ………………………………… (प्र + यत् + तव्यत्)
(ज) ………………………………… राज संसत्सु श्रुतवाक्या बहुश्रुता (वि + श्रु + क्त + टाप्)
(झ) स लोके लभते कीर्ति परत्र च शुभां ………………………………… (गम् + क्तिन्)
(ज) ततः प्रविशति दारकं ………………………………… रदनिका। (ग्रह् + क्त्वा)
(ट) उष्णं हि ………………………………… स्वदते। (भुज् + कर्म + शानच्)
(ठ) कालोऽपि नो ………………………………… यमो वा। (नश् + णिच् + तुमुन्)
(ड) अस्ति कालिन्दीतीरे ………………………………… पुरं नाम नगरम्। (योग + इनि + ङीप्)
(ढ) हम्मीरदेवेन साकं युद्धं …………………………………। (कृ + क्तवतु)
(ण) सः पराक्रमं ………………………………… दुर्गान्नि:सृत्य सत्ग्रामभूमौ निपपात्। (कृ + शानच्)
उत्तर:
(क) शान्तम् (ख) शिखिनः (ग) वासिनः (घ) नेता (ङ) विमृशन् (च) सञ्चिन्त्य (छ) प्रयतितव्यम् (ज) विश्रुता (झ) गतिम् (ञ) गृहीत्वा (ट) भुज्यमानं (ठ) नाशयितुम् (ड) योगिनी (ढ) कृतवान् (ण) कुर्वाणः।

अभ्यास- 6
प्रश्न
प्रकृतिप्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां विधाय रिक्तस्थानं पूरयत। (प्रकृति-प्रत्यय को जोड़कर पद-रचना करके रिक्त-स्थान की पूर्ति कीजिये।)
(क) (सम् + उद् + बह् + शतृ) सलिलाऽतिभारं बलाकिनो वारिधरा: नदन्तः।
(ख) शालिवनं (वि + पच् + क्त)
(ग) तान् मत्स्यान् (भक्ष् + तुमुन्) चिन्तयन्ति।
(घ) (मुह् + क्त) मुखेन अतिकरुणं मन्त्रयसि। (क्त) जीवितार्थं कुलं (त्यज् + क्त्वा) यो जनोऽतिदूरं व्रजेत् किं तस्य जीवितेन?
(च) तेन (रक्ष् + अनीयर्) रक्षा भविष्यन्ति।
(छ) भृत्यौ (हस् + शतृ) गृहाभ्यन्तरं पलायेते।
(ज) भो कि (कृ + क्तवतु) सिन्धु।
(झ) स्वपुस्तकालये (नि + सद् + क्त) दूरभाषयन्त्रं बहुषः प्रवर्तयति।
(ज) वत्स सोमधर मित्रगृहान्नैव (गम् + तव्यत्)
(ट) देवागारे (अपि + धा + क्त) द्वारे भजसे किम्?
(ठ) ध्यानं (हा + क्त्वा) बहिरेहित्वम्।
(ड) शाकफल (वि + क्री + तृच्) दारकः कथं त्वामतिशेते।
(ढ) स लोके लभते (कृ + क्तिन्)।
(ण) तद् ग्रहाण एतम् (अलम् + कृ + ण्वुल्)।
उत्तर:
(क) समुद्वहन्तः (ख) विपक्वम् (ग) भक्षितुम् (घ) मुग्ध्न (ङ) त्यक्त्वा (च) रक्षणीय (छ) हसन्तौ (ज) कृतवान् (झ) निषण्णः (अ) गन्तव्यम् (ट) पिहित (ठ) हित्वा (ड) विक्रेतुः (ढ) कीर्तिम् (ण) अलंकारकम्।

अभ्यास- 7
प्रश्न
कोष्ठकात् उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानं पूरयतः (कोष्ठक से उचित पद चुनकर रिक्तस्थान भरिये।)
(क) इति दारकमादाय ………………………………… रदनिका। (निष्क्रान्तः/निष्क्रान्ता)
(ख) मम हृदये नित्य ………………………………… स्तः। (सन्निहिता/सन्निहित:)
(ग) किन्तु अनुज्ञां ………………………………… गन्तुं शक्येत्। (प्राप्त्वा/प्राप्य)
(ध) वार्तालाप ………………………………… भृत्यौ रत्ना च बहिरायान्ति। (श्रुतौ/श्रुत्वा)
(ङ) दारकस्य कर्णमेव ………………………………… प्रवृत्तोऽसि। (भक्तुम्/भञ्जयितुम्)
(च) ………………………………… अस्मि तवे न्यायालये। (पराजित:/पराजितम्)
(छ) रामदत्तहरणौ आगच्छतः। (धावन्त:/धावन्तौ)
(ज) देवस्य शत्रु ………………………………… प्रभोर्मनोरथं साधयष्यामः। (हनित्वा/हत्वा)
(झ) रे रे ………………………………… अहं यवनराजेन समं योत्स्यामि। (योद्धा:/योद्धार:)
(ब) रक्ष स्व ………………………………… परहा भवाऽर्यः। (जातिम्/जात्याः)
(ट) नशक्तो कालोपि नो ………………………………… (नष्टुम्/नाशयितुम्)
(ठ) अतिविलम्बितं हि ………………………………… न तृप्तिमधिगच्छति। (भुञ्जन्/भुञ्जानो)
(ड) ………………………………… चाग्निमौदर्यमुदीयति। (भुक्तम्/भुक्त:)
(ढ) स्वबाहुबलम् ………………………………… योऽभ्युज्जीवति सः मानवः। (आश्रित्य/आश्रित्वा)
(ण) निर्जितं सिन्धुराजेन ………………………………… दीनचेतसम्। (शयमानम्/शयानम्)
उत्तर:
(क) निष्क्रान्ता (ख) सन्निहितौ (ग) प्राप्य (घ) श्रुत्वा (ङ) भञ्जयितुम् (च) पराजितः (छ) धावन्तौ (ज) हत्वा (झं) योद्धार: (ञ) जातिम् (ट) नाशयितुम् (ठ) भुञ्जानो (ड) भुक्तम् (ढ) आश्रित्य (ण) शयानम्।

प्रत्यय की परिभाषा- धातु अथवा प्रातिपादिक के बाद जिनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। अर्थात् किसी धातु अथवा शब्द के बाद किसी विशेष अर्थ को प्रकट करने के लिए जो शब्द या शब्दांश जोड़ा जाता है, उसे ‘प्रत्यय कहते हैं। ये प्रत्यय मूलरूप से निरर्थक से प्रतीत होते हैं, किन्तु किसी शब्द के अन्त में प्रयुक्त प्रत्यय अत्यन्त सार्थक होकरे शब्द निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

प्रत्यय के भेद-प्रत्ययों के मुख्यतः तीन भेद होते हैं-

  1. कृत् प्रत्यय
  2. तद्धित प्रत्यय
  3. स्त्री प्रत्यय।

1. कृत् प्रत्यय-जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया) के बाद किया जाता है, वे कृत् प्रत्यय कहलाते हैं। अर्थात् मूल धातु के बाद भिन्न-भिन्न अर्थों के बोधक जिन प्रत्ययों को जोड़कर संज्ञा, विशेषण, अव्यय तथा कहीं-कहीं क्रिया पद का निर्माण किया जाता है, उन प्रत्ययों को कृत् प्रत्यय कहा जाता है।
जैसे–
कृ + तव्यत् = कर्त्तव्यम्,
पठ् + अनीयर् = पठनीयम्।

[नोट-‘कृत् प्रत्ययों’ में शतृ, शानच्, तव्यत्, अनीयर, क्तिन्, ल्युट् तथा तृच् प्रत्ययों का अध्ययन अपेक्षित है।]।

2. तद्धित प्रत्यय-जिन प्रत्ययों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के बाद किया जाता है वे तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।
जैसे–
उपगु + अण् = औपगवः,
दशरथ + इ = दाशरथिः,
धन + मतुप् = धनवान्।

3. स्त्री प्रत्यय-जिन प्रत्ययों का प्रयोग पुल्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है, वे स्त्री प्रत्यय कहलाते हैं।
जैसे–
कुमार + ङीप् = कुमारी,
अज + टाप् = अजा।

(1) कृत् प्रत्यय
(i) क्त्वा प्रत्यय-‘क्त्वा’ प्रत्यय में से प्रथम वर्ण ‘क’ का लोप होकर केवल ‘त्वा’ शेष रहता है। ‘समान कर्तृकयो पूर्व काले” पूर्णकालिक क्रिया को बनाने के लिए ‘कर’ या ‘करके अर्थ में उपसर्गरहित क्रियाशब्दों में ‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इस प्रत्यय से बना हुआ शब्द अव्यय शब्द होता है। अतः उसके रूप नहीं चलते हैं, अर्थात् वह सभी विभक्तियों, सभी वचनों, सभी लिंगों तथा सभी पुरुषों में एक जैसा ही रहता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे–’वह पुस्तक पढ़कर खेलता है।’ इस वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करने पर ‘सः पुस्तक पठित्वा क्रीडति’ बना। इस वाक्य में दो क्रियाएँ हैं-प्रथम क्रिया ‘पढ़कर’ (पठित्वा) तथा दूसरी क्रिया ‘खेलंता’ (क्रीडति) है। दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही ‘वह’ (सः) है। यहाँ पठ् मूल क्रिया में क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ने पर ‘क्त्वा’ में ‘क्’ का लोप करने पर त्वा’ शेष रही। ‘पठ् + त्वा’ धातु और प्रत्यय के मध्य ‘इ’ जोड़ने पर ‘पठित्वा’ पूर्वकालिक क्रिया का रूप बना, जिसका अर्थ-‘पढ़कर’ या ‘पढ़ करके हुआ। धातु और प्रत्यय के मध्य सब जगह ‘इ’ नहीं जुड़ता है। ‘‘सेट् धातुओं में ‘इ’ जुड़ता है।’ ‘इ’ केवल वहीं जुड़ता है, जहाँ क्रिया में ‘इ’ के जोड़े जाने की आवश्यकता होती है। यहाँ सन्धि के सभी नियम भी लगते हैं।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 1

अन्य उदाहरण-
क्त्वा प्रत्यय रूप
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 2

(ii) ल्यप् प्रत्यय-‘ल्यप् प्रत्यय में ल् तथा प् का लोप हो जाने पर ‘य’ शेष रहता है। ‘समासेऽनज पूर्वे ल्यप् धातु से पूर्व कोई उपसर्ग हो तो वहाँ ‘क्त्वा’ के स्थान पर ‘ल्यप् प्रत्यय प्रयुक्त होता है। यह ‘ल्यप् प्रत्यय भी ‘कर’ या ‘करके अर्थ में होता है। यह अव्यय शब्द होता है अतः रूप नहीं चलते हैं। जिन उपसर्गों के साथ ल्यप् वाले रूप अधिक प्रचलित हैं, उनके उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 3

अन्य उदाहरण-
ल्यप् प्रत्ययान्त रूप
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 4

(iii-iv) क्त एवं क्तवतु प्रत्यय-
(i) किसी कार्य की समाप्ति का ज्ञान कराने के लिए अर्थात् भूतकाल के अर्थ में क्त और क्तवतु प्रत्यय होते हैं।
(ii) क्त प्रत्यय धातु से भाववाच्य या कर्मवाच्य में होता है और इसको ‘त’ शेष रहता है। क्तवतु प्रत्यय कर्तृवाच्य में होता है और उसका ‘तवत्’ शेष रहता है।
(iii) क्त और क्तवतु के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। क्त प्रत्यय के रूप पुल्लिंग में राम के समान, स्त्रीलिंग में ‘आ’ लगाकर रमा के समान और नपुंसकलिंग में फल के समान चलते हैं। क्तवतु के रूप पुल्लिंग में भगवत् के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ जुड़कर नदी के समान तथा नपुंसकलिंग में जगत् के समान चलते हैं।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 5
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 6

अन्य उदाहरण
क्त प्रत्ययान्त रूप
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 7

क्तवतु प्रत्ययान्त रूप
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 8
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 9

(v- vi) शतृ एवं शानच्-प्रत्यय (लट् शतृशानचाव प्रथमा समानाधिकरणे)-वर्तमान काल में हुआ’ अथवा रहा’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए ‘शतृ’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। ‘शतृ’ प्रत्यय सदैव परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ता है। ‘शतृ’ के ‘श्’ और तृ के ‘ऋ’ का लोप होकर ‘अत्’ शेष रहता है। शतृ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं, यहाँ ‘शतृ’ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों के उदाहरण पुल्लिंग में दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।

उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 10

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 11
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 12

शानच् प्रत्यय-‘शतृ’ प्रत्यय के ही समान ‘शानच्’ प्रत्यय वर्तमान काल में हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रही’, ‘रहे’ अर्थ का बोध कराने के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे–‘शतृ’ प्रत्यय केवल परस्मैपदी धातुओं (क्रिया-शब्दों) से ही जुड़ता है, उसी प्रकार ‘शानच्’ प्रत्ययं केवल आत्मनेपदी धातुओं में ही जुड़ता है। शानच् प्रत्यय में से ‘श्’ और ‘च’ का लोप होकर ‘आन’ शेष रहता है। आन’ के स्थान पर अधिकतर ‘मान’ हो जाता है। यहाँ ‘शानच्’ प्रत्यय से बने कुछ क्रियापदों के उदाहरण पुल्लिंग में ही दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और कण्ठाग्र कर लें।
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 13

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 14
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 15

(vii) तव्यत् प्रत्यय (तव्यत्तव्यानीयरः)- ‘तव्यत्’ प्रत्यय ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘तव्यत्’ प्रत्यय में से ‘त्’ का लोप होने पर ‘तव्य’ शेष रहता है। ‘तव्यत्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझें और स्मरण कर लें।

उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 16

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 17
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 18

(viii) ‘अनीयर् प्रत्यय-‘अनीयर् प्रत्यय भी ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘अनीयर् प्रत्यय में से र का लोप होने पर ‘अनीय’ शेष रहता है। अनीयर् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के. ही रूप दिये जा रहे हैं। छात्र इन्हें समझे और कण्ठाग्र कर लें।
उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 19

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 20
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 21

(ix-x) तुमुन्, ण्वुले-“तुमुनण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्” जिस क्रिया को करने के लिए अन्य क्रिया की जाती है। तब (उसी धातु में) धातु का भविष्यत् अर्थ प्रकट करने के लिए तुमुन्–ण्वुल प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। जैसे–‘रामं द्रष्टुं दर्शको यांति’ इस वाक्य में दो क्रियाएँ हैं-देखना और जाना। जाने की क्रिया देखने की क्रिया के हेतु होती है, अतः दृश् (देखना) धातु में तुमुन् जोड़ दिया गया है। तुमुनन्त क्रिया जिस क्रिया के साथ आती है वह क्रिया सदा बाद में आती है।

तुमुन् प्रत्यय-‘तुमुन् प्रत्यय में से ‘मु’ के उ एवं अन्तिम अक्षर न् का लोप हो जाने पर तुम्’ शेष रहता है। ‘तुमुन्’ प्रत्यय से बना रूप अव्यय होता है। अत: उसके रूप नहीं चलते हैं। ‘तुमुन् प्रत्यय से बने कतिपय शब्दों के उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 22

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 23
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 24

(नोट-जिस क्रिया के साथ तुमुनन्त क्रिया आती है, उस क्रिया का और तुमुनन्त क्रिया का कर्ता एक ही होना चाहिए। भिन्न-भिन्न कर्ता होने पर तुमुनन्त क्रिया का प्रयोग नहीं हो सकता।

एबुल् प्रत्यय-धातु से धातु का कर्ता बनाने के लिए इसका ‘व’ लगाया जाता है जो ‘अक’ में परिवर्तित हो जाता है। इससे बने शब्दों के रूप तीनों लिंगों में क्रमशः राम, रमा और फल की तरह चलते हैं। धातु के अन्तिम अ इ उ ऋ की वृद्धि होकर क्रमश: आ, ऐ, औ तथा आर् हो जाता है। धातु की उपधा के अ इ उ ऋ का क्रमशः आ, ए, ओ, अर् होता है। अकारान्त में युक् (य्) लगता है तथा कुछ धातुओं में गुण-वृद्धि न होकर सीधा जुड़ जाता है। जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 25

अन्य उदाहरण-
नी + ण्वुल् = नायकः (नी = ने + ण्वुल् (अक) = नायूअक = नायकः, श्रु + ण्वुल् = श्रावक, लिख् + ण्वुल् = लेखकः, युज् + ण्वुल् = योजकः, गै + ण्वुल् = गायकः, रक्ष् + ण्वुल् = रक्षकः, हन् + ण्वुल् = घातकः।

(xi) तृच् प्रत्यय-कर्ता अर्थ में अर्थात् हिन्दी भाषा में करने वाला’ इस अर्थ में धातु के साथ तृच् प्रत्यय होता है। इसका ‘तृ’ भाग शेष रहता है और ‘च्’ का लोप हो जाता है। तृच्-प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यहाँ केवल पुल्लिंग के ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 26

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 27
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 28

(xii) यत् प्रत्यय-यह भी कृत्य प्रत्यय है जो कर्म एवं भाववाच्य में ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ के अर्थ में प्रयोग होता है। यत्’ का स्वरान्त धातुओं से केवल ‘य’ लगाया जाता है। ऋकारान्त धातुओं से नहीं लगता। यह ‘अ’ उपधा वाली ‘प’. वर्गान्त धातुओं से भी लगाया जाता है। धातु के अन्तिम आ, इ, ई, का, ए तथा उ का अत् हो जाता है। ‘अ’ उपधा वाली ‘प’ वर्गान्त धातुओं से इसका सीधा ‘य’ लगता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 29

(xiii) णिनि प्रत्यय-ग्रह आदि गण के शब्दों (ग्राही, उत्साही, मन्त्री, अयाची, अवादी, विषयी, अपराधी आदि) में णिनि का इन् लगता है।
जैसै-
ग्रह् + णिनि = ग्राहिन्, ग्राही, उत्साह् + णिनि = उत्साही, मन्त्र + णिनि = मन्त्री, अयाच् + णिनि = अयाची, अवद् + णिनि = अवादी, विषम् + णिनि = विषयी, अपराध् + णिनि = अपराधी। इसी प्रकार-वासी = वस् + णिनि। कारिणम् = कृ + णिनि। दर्शिन् = दृश् + णिनि।

(xiv) अच् प्रत्यय-
(i) पच् आदि धातुओं के अनन्तर ‘अच्’ प्रत्यय का ‘अ’ लगाकर कर्तृबोधक शब्द बनाये जाते हैं।
जैसे–
पच् + अच् = पचः,
वद् + अच् = वदः,
चल् + अच् = चलः।

(ii) कर्म के योग में ‘अर्ह’ धातु के अनन्तर अच् प्रत्यय लगता है।
यथा-
पूजा + अर्ह + अच् = पूजार्हः।

(iii) इकारान्त धातुओं से अच् जोड़ा जाता है। जैसे–जि + अच् = जयः, नी + अच् = नयः, भी + अच् = भयम्। सरः = सृ + अच्। करः = कृ + अच्। रसः = रस् + अच्।

(xv) क्तिन प्रत्यय-स्त्रियां क्तिन्-भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ‘क्तिन्’ प्रत्यय होता है। इसका ‘ति’ भाग शेष रहता है, ‘कृ’ और ‘न्’ का लोप हो जाता है। ‘क्तिन्’ प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिंग में ही होते हैं। इनके रूप ‘मति’ के समान चलते हैं।

उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 30

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 31
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 32

(2) तद्धित प्रत्यय
जो प्रत्यय शब्दों के योग में प्रयुक्त किये जाते हैं, वे तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं।
1. इनि प्रत्यय-अत इनिठनौ’-अकारान्त शब्दों से ‘वाला’ या ‘युक्त’ अर्थ में इनि और ‘ठन्’ प्रत्यय होते हैं। इनि का ‘इन्’ और ‘ठन्’ का ‘ठ’ शेष रहता है।
(i) ‘इनि’ प्रत्यय अकारान्त के अतिरिक्त आकारान्त शब्दों में भी लग सकता है। जैसे–माया + इनि = मायिन्, शिखा + इनि = शिखिन्, वीणा + इनि = वीणिन् आदि।
(ii) इनि प्रत्ययान्त शब्द के रूप पुल्लिंग में ‘करिन्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ लगाकर ‘नदी’ के समान और ‘ नपुंसकलिंग में ‘मनोहारिन्’ शब्द के समान चलते हैं।
(iii) ‘ठन्’ प्रत्यय के ‘ठ’ को ‘इक’ हो जाता है, जैसे–दण्ड + ठन् = दण्ड + इक् = दण्डिकः (दण्ड वाला), धन+ ठन् = धन + इ = धनिकः (धन वाला)।

अन्य उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 33

2. ठक् प्रत्यय-रेवतादिभ्यष्ठक्-रेवती, अक्ष, दधि, मरीच आदि शब्दों में अपत्य अर्थ में ठक् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। ‘ठक्’ प्रत्यय में से ककार का लोप होने पर ‘ठ’ शेष रहती है। ‘ठ’ के स्थान पर ‘ठस्येकः’ सूत्र से ‘इक्’ हो जाता है।

‘जानकार’, ‘करने वाला’ या ‘सम्बन्धी’ अर्थ में भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए संज्ञा या विशेषण शब्दों में ठक् प्रत्यय का ‘इक’ लगाया जाता है। इससे बने शब्दों का प्रयोग पुल्लिंग में राम की तरह होता है। प्रत्यय लगाते समय शब्द की ‘ति’ अर्थात् अन्तिम स्वर सहित उसके बाद वाले हल वर्ण का लोप हो जाता है। शब्द के आरम्भ में ‘अ’, का, ‘आ’, ‘इ’, का ‘ऐ’ तथा ‘उ’, का ‘औ’ हो जाता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 34

3. अण् प्रत्यय-अश्वपत्यादिभ्यश्च-अश्वपति, गणपति, कुलपति, गृहपति, धर्मपति, सभापति, प्राणपति, क्षेत्रपति, इत्यादि शब्दों से अपत्य अर्थ बताने के लिए ‘अर्’ प्रत्यय होता है। ‘अण’ का ‘अ’ शेष रहता है,
जैसे–
अश्वपतेः अपत्यम् = अश्वपत्यम्,
गणपतेः अपत्यम् = गणपत्यम्।

(i) इसी तरह अपत्य या सन्तान, पुत्र, पौत्र, वंश आदि अर्थ को बताने के लिए षष्ठी विभक्त्यन्त शब्दों से ‘अर्’ प्रत्यय होता है।
जैसे–
उपगोः अपत्यं पुमान् = औपगवः (उपगु का पुत्र),
वसुदेवस्य अपत्यं पुमान् = वासुदेवः (वसुदेव का पुत्र)।
मनोः अपत्यं = मानवः।

(ii) शिव, मगध, पर्वत, पृथा, मनु आदि (शिवादि गण के शब्दों) से अपत्य अर्थ में ‘अर्’ प्रत्यय होता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 35

(iii) नदी वाचक तथा मनुष्य जाति के स्त्रीवाचक जो शब्द संज्ञाएँ (नाम) हों तथा जिनके आदि में दीर्घ वर्ण न हो, उनसे अपत्य अर्थ में अण् प्रत्यय होता है। जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 36

(iv) ऋषिवाचक, कुलवाचक, वृष्णि कुलवाचक, कुरुवंश वाचक, शब्दों से अपत्य अर्थ में ‘अण्’ प्रत्यय होता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 37

(v) इसी प्रकार सन्तान अर्थ के समान ही अन्य अर्थों को बताने के लिए भी ‘अण्’ प्रत्यय होता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 38

4. मयट् प्रत्यय-‘मयड्वैतयोभषायामभक्ष्याच्छादनयो:”-विकार और अवयव के अर्थ में ‘मयट्’ प्रत्यय का। प्रयोग किया जाता है। ‘मयट्’ प्रत्यय में से टकार का लोप होने पर ‘मय’ शेष रहता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 39

5. तमप् प्रत्यय-बहुतों में से एक को श्रेष्ठ या निकृष्ट बताने के लिए शब्द के साथ ‘तमप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें ‘तम’ शेष रहता है। ‘तमप्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं-पुल्लिंग में ‘राम’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘रमा’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘फल’ के समान।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 40
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 41

6. ‘तरप् प्रत्यय-दो वस्तुओं में से एक को श्रेष्ठ या निकृष्ट बताने के लिए शब्द में ‘तरप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसमें से ‘तर’ शेष रहता है और इसके तीनों लिंगों में रूप चलते हैं। ‘तरप’ प्रत्यय विशेषण शब्दों में लगता है। पुल्लिंग में इस प्रत्यय से बने शब्दों के रूप ‘राम’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘रमा’ के समान तथा नपुंसलिंग में ‘फल’ के समान चलते हैं।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 42

(3) स्त्री प्रत्यय
जो प्रत्यय पुल्लिंग शब्दों से स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए लगाए जाते हैं, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं। टाप्, ङीप्, ङीष्, छीन् , ऊङ , ति इत्यादि स्त्री प्रत्यय हैं।
1. टाप् प्रत्यय-पुल्लिंग से स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए अजादिगण के शब्दों से, अकारान्त शब्दों से तथा प्रत्यय के ‘अक’ अन्त वाले शब्दों से टाप् प्रत्यय लगाया जाता है। टाप् का ‘आ’ शेष रहता है। जैसे–
(i) अजादिगण शब्दों से-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 43
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 44

(ii) अकारान्त शब्दों से
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 45

(iii) जिन शब्दों के अन्त में प्रत्यय का ‘अक’ हो उनमें टाप् लगाने पर अक’ का ‘इक’ करके ‘आ’ लगाया जाता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 46

2. ङीष् प्रत्यय-षिद्गौरादिभ्यश्च-जहाँ ‘ष’ का लोप हुआ हो (षित्) तथा गौर, नर्तक, नट, द्रोण, पुष्कर आदि गौरादिगण में पठित शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीष्’ (ई) प्रत्यय होता है।
जैसे–
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 47

अन्य उदाहरण
निम्नलिखित शब्दों से ङीप् के स्थान पर ङीष् प्रत्यय लगता है। इसमें भी ‘ई’ ही लगता है। जैसे–
(i) गौरादि गण के शब्दों में-
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 48

(ii) गुणवाचक ‘उ’ अन्त वाले शब्दों से
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 49

(iii) निम्नलिखित शब्दों में शब्द के पश्चात् आनुक् (आन्) लगाकर ङीष् का ‘ई’ लगाया जाता है
RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय ज्ञानम् 50

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