Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit व्याकरणम् सन्धि प्रकरणम्
आपने पिछली कक्षाओं में सन्धि प्रकरण के अन्तर्गत स्वर सन्धि के ‘दीर्घ’, ‘अयादि’, ‘गुण’ ‘वृद्धि’ तथा ‘यण’ आदि भेदों का तथा व्यञ्जन व विसर्ग सन्धियों के भेदों का अध्ययन किया है। अंब आप ग्यारहवीं कक्षा में स्वर सन्धि के अन्तर्गत दीर्घ, अयादि वृद्धि, यण् तथा गुण भेदों का अध्ययन एवं अभ्यास करेंगे। आपसे उपर्युक्त सन्धियों के भेदों के अन्तर्गत सन्धि-विच्छेद करने और सन्धियुक्त पद बनाने का ज्ञान अपेक्षित है। यहाँ केवल कक्षा 11 के पाठ्यक्रम में दी हुई सन्धियों के भेदों पर ही प्रकाश डाला जा रहा है। सन्धि शब्द की व्युत्पत्ति-सम् उपसर्गपूर्वक (धा) धातु से (उपसर्गे धोः किः) सूत्र से ‘कि’ प्रत्यय करने पर सन्धि शब्द की व्युत्पत्ति होती है।
सन्धि शब्द की परिभाषा-‘वर्ण संधानं सन्धिः अर्थात् दो वर्षों का परस्पर मेल या संधान सन्धि कही जाती है।
पाणिनीय परिभाषा-‘परः सन्निकर्षः सहिंता’ वर्गों की अत्यन्त निकटता संहिता कही जाती है। वर्षों का परस्पर मेल सन्धि कहा जाता है। संस्कृत भाषा में एक पद में, धातु-उपसर्ग के बीच में तथा समास के बीच में सन्धि कार्य नित्य होता है। वाक्य में तो सन्धि वक्ता की विविक्षा पर होती है।
संहितैकपदे नित्या नित्या धातूपर्सगयोः।
नित्या समासे वाक्ये तु सा विवक्षामपेक्षते।
सन्धि का अर्थ-सामान्यतया ‘सन्धि’ शब्द का अर्थ मेल, समझौता या जोड़ है, किन्तु सन्धि प्रकरण में इसका अर्थ थोड़ा भिन्न होते हुए यह है कि जब एक से अधिक स्वर अथवा व्यञ्जन वर्ण अत्यधिक निकट होने के कारण, मिलकर एक रूप धारण करते हैं, तो वह सन्धि का ही परिणाम होता है और यही सन्धि करना कहलाता है। सन्धियुद्ध पद में दो या दो से अधिक शब्दों को अलग-अलग करके रखना सन्धि–विच्छेद करना कहलाता है। जैसे-‘हिम + आलय:’ में हिम के ‘म’ में ‘अ’ के सामने आलय का ‘आ’ मौजूद है। यहाँ दोनों ओर ‘अ’ + आ’ स्वर हैं। इन दोनों स्वर वणो को मिलाकर एक दीर्घ ‘आ’ हो गया है, जिससे हिम + आलयः’ को मिलाकर ‘हिमालयः’ एक सन्धियुक्त पद बन गया है। ‘हिमालयः’ का सन्धि-विच्छेद करने पर ‘हिम + आलयः’ ये दो पद अलग-अलग होंगे। यह स्वर सन्धि के ‘दीर्घ’ भेद का उदाहरण है।
इसी प्रकार ‘सद् + जनः’ में सद् के ‘द्’ व्यञ्जन वर्ण तथा इसके समीप में सामने जनः के ‘ज्’ व्यञ्जन वर्गों में परस्पर मेल होन पर ‘द्’ को ‘ज्’ में बदलने पर ‘सज्जनः’ सन्धियुक्त पद बन जाता है। यह व्यञ्जन सन्धि के अन्तर्गत ‘श्चुत्व’ भेद का उदाहरण है।
इसी प्रकार ‘नमः + ते’ में नम: के ‘म्’ के आगे विद्यमान विसर्ग (:) को ‘त्’ सामने होने के कारण ‘स्’ होने से ‘नमस्ते’ सन्धियुक्त पद बन गया। यह विसर्ग सन्धि के अन्तर्गत ‘सत्व’ भेद का उदाहरण है।
इस प्रकार सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं और ये ही इनके भेद कहे जाते हैं। सन्धि के भेद-सामान्य रूप से सन्धि के तीन प्रमुख भेद माने गये हैं
- स्वर यो अच् सन्धि,
- व्यञ्जन या हल् सन्धि,
- विसर्ग सन्धि।
- अच् (स्वर) सन्धि-जहाँ स्वरों का परस्पर मेल होता है वहाँ स्वर सन्धि होती है। स्वर सन्धि के दीर्घ, गुण, यण, वृद्धि अयादि, पूर्व रूप और पररूप भेद हैं।
- हल् (व्यञ्जन) सन्धि-जहाँ व्यञ्जन वर्गों का परस्पर मेल होता है वहाँ व्यञ्जन सन्धि होती है। व्यञ्जन सन्धि के श्चुत्व, ष्टुत्व, णत्व, षत्व और छत्व आदि भेद हैं।
- विसर्ग सन्धि-जहाँ विसर्ग के स्थान पर परिवर्तन होता है, वहाँ विसर्ग सन्धि होती है। विसर्ग के स्थान पर सकार, रुत्व, उत्व होता है और विसर्ग का लोप होता है।
(i) स्वर या अच् सन्धि
(1) दीर्घ सन्धि
अंकः सवर्णे दीर्घः- जब (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ) स्वरों के पश्चात् (आगे) ह्रस्व या दीर्घ ‘अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ स्वर आयें तो दोनों सवर्ण (एक जैसे) स्वरों को मिलाकर एक दीर्घ वर्ण ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ हो जाता है। जैसे-रत्न + आकरः + रत्नाकरः।
यहाँ पर रत्न के ‘न’ में ह्रस्व अकार है, उसके बाद ‘आकर:’ का दीर्घ ‘आ’ आता है, अत: ऊपर के नियम के अनुसार दोनों (ह्रस्व ‘अ’ और दीर्घ ‘आ’) के स्थान में दीर्घ ‘आ’ हो गया। इसी प्रकार
- अ/ आ +अ/आ=आ
- इ/ई + ई/ई = ई
- उ/ऊ + /उ/ऊ = ऊ
- ऋ/ऋ + ऋ/ऋ = ऋ
यथा-
अन्य उदाहरण
(2) गुण सन्धि
आद् गुणः-
- अ अथवा आ के बाद इ अथवा ई आये तो दोनों के स्थान में ‘ए’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद उ अथवा ऊ आये तो दोनों के स्थान में ‘ओ’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद ऋ आये तो ‘अर्’ हो जाता है।
- अ अथवा आ के बाद लू आये तो ‘अल्’ हो जाता है।
जैसे–देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः। यहाँ पर देव के ‘व’ में ‘अ’ है, उसके बाद इन्द्रः की ‘इ’ है, इसलिए ऊपर के नियम के अनुसार दोनों (देव के ‘अ’ और इन्द्र की ‘इ’) के स्थान में ‘ए’ हो गया। इसी प्रकार
- अ/आ+इ/ई=ए,
- अ/आ+उ/ऊ=ओ,
- अ/आ+ऋ/ऋ = अर्
- अ/आ+लू = अल्।
यथा-
अन्य उदाहरण
(3) वृद्धि सन्धि
वृद्धिरेचि- यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आये तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ और यदि ‘ओ’ या ‘औ’ आवे तो दोनों के स्थान में ‘औ’ वृद्धि हो जाती है। जैसे-अद्य +एव = अद्यैव। यहाँ अद्य के ‘द्य’ में स्थित ‘अ’ तथा उसके बाद ‘एव’ का प्रथम वर्ण ‘ए’ मौजूद है। अतः (अ+ ए =ऐ) अ तथा ए के स्थान में ‘ऐ’ वृद्धि हो जायेगी। अतः अद्य + एव मिलाने पर अद्यैव रूप बना। इसी प्रकार
- अ/आ+ए/ए=ऐ
- अ/आ/+ओ/औ=औ।
यथा-
अन्य उदाहरण
(4) यण् सन्धि
इको यणचि-इ अथवा ई के बाद असमान स्वर आने पर इ, ई का य्; उ अथवा ऊ के बाद असमान स्वर आने पर उ, ऊ का व्, ऋ के बाद असमान स्वर आने पर ऋ को र् तथा लू के बाद असमान स्वर आने पर लू के स्थान में लू हो जाता है।
अर्थात् –
- जब इ या ई के बाद इ, ई को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तब इ, ई के स्थान में ‘य’ हो जाता है।
- जब उ या ऊ के बाद उ, ऊ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तब ‘उ, ऊ’ के स्थान में ‘व्’ हो जाता है।
- जब ऋ या ऋ के बाद ऋ, ऋ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये तब ‘ऋ, ऋ’ के स्थान में ‘र’ हो जाता है।
जैसे – यदि + अपि = यद्यपि। यहाँ ‘यदि’ के ‘दि’ में इ’ है। इसके बाद ‘अपि’ के आदि में ‘अ’ स्वर है जो कि असमान है। अतः ‘इ’ के स्थान में ‘यू’ होने पर ‘य + द् + य् + अपि’ रूप बना। इनको मिलाने पर ‘यद्यपि रूप बना। इसी प्रकार
- इ/ई+असमान स्वर= य्
- उ/ऊ+असमान स्वर:= व्
- ऋ/p+असमान स्वर= र्
- लृ + असमान स्वर = ल्।
तथा-
अन्य उदाहरण
(5) अयादि सन्थि
एचोऽयवायावः- ए, ऐ, ओ, औ के बाद जब कोई असमान स्वर आता है, तब ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’, ‘ओ’ के स्थान पर ‘अ’, ‘ऐ’ के स्थान पर ‘आय’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आवं’ हो जाता है। जैसे- भो + अति = भवति। यहाँ * भो’ में ‘ओ’ है तथा उसके बाद ‘अति’ का प्रथम वर्ण ‘अ’ है, जो कि असमाने स्वर है; ऊपर के नियम के अनुसार ‘ओ’ के स्थान में ‘अव्’ हुआ, तब ‘भव् + अति’ रूप बना, इन सबको मिलाने पर ‘भवति’ रूप बना। इसी प्रकार
- ए + असमान स्वर = अय्
- ओ + असमान स्वर = अव्
- ऐ + असमान स्वर =आय्।
- औ + असमान स्वर = आव्।
यथा-
अन्य उदाहरण
नोट-यदि ओ अथवा औ के बाद यकारादि वर्ण वाला प्रत्यय हो तो ओ का अव् तथा औ को आव होता है। जैसे –
अन्य उदाहरण
(6) पूर्वरूपं सन्धि
एङः पदान्तादति- यदि पद के अन्त में ‘ए’ अथवा ‘ओ’ हों तथा इनके बाद ह्रस्व ‘अ’ हो तो ‘अ’ का पूर्वरूप (ऽ) हो जाता है। जैसे –
अन्य उदाहरण
(7) परसवर्ण सन्धि
अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:-यदि पद के मध्य अनुस्वार के आगे किसी वर्ग का कोई वर्ण हो तो अनुस्वार के स्थान पर उसी वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है। जैसे-
(ii) व्य ञ्जन सन्धि
परिभाषा-व्यञ्जन का किसी व्यञ्जन के साथ या स्वर के साथ मेल होने पर व्यञ्जन में जो परिवर्तन होता है, उसे व्यञ्जन सन्धि कहते हैं। इसे हल् सन्धि भी कहते हैं। जैसे- ‘वागीशः = वाक् + ईशः’ यहाँ स्वर ई के साथ मेल होने पर क् के स्थान में गे परिवर्तन होकर वागीशः’ शब्द बना।
नोट-व्यञ्जन सन्धि के अनेक भेद हैं। उनमें से श्चुत्व, ष्टुत्व, जश्त्व, चव एवं अनुस्वार भेदों का यहाँ निरूपण किया जा रहा है।
(1) श्चुत्व सन्धि
स्तोः श्चुना श्चुः-जब सु (वर्ण) अथवा त वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के आगे या सामने शु (वर्ण) अथवा च वर्ग (चू छ। ज् झ् ञ्) हो तो स् (वर्ण) को श् (वर्ण) और त् थ् द् ध् न् (त वर्ग) को क्रमशः च् छ् ज् झ् ञ् (च वर्ग) हो जाता है। अर्थात् स् के आगे श् या च वर्ग (च्, छ्, ज, झ, ञ्) का कोई वर्ण होगा तो स् के स्थान पर श् हो जाता है। इसी तरह ‘त्’ के स्थान पर ‘च्’ ‘थ्’ के स्थान पर ‘छ्’, ‘द्’ के स्थान पर ‘ज्’, ‘धू’ के स्थान पर ‘झ्’ तथा ‘न’ के स्थान पर ” हो जाता है। इसी को श्चुत्व सन्धि कहा जाता है। जैसे-
(2) ष्टुत्व सन्धि
ष्टुना ष्टुः- जब वर्ण स् त् थ् द् ध् न् के पहले अथवा बाद में वर्ण ष् ट् ठ् ड् ढ् ण में से कोई भी वर्ण आता है तो स् त् थ् द् ध् न् को क्रमशः ष् ट् द् ड् ढ् ण् वर्ण हो जाता है। ष् के बाद तवर्गीय वर्ण को क्रमश: टवर्गीय वर्ण हो जाता है। इसी को ष्टुत्व सन्धि कहते हैं। जैसे-
(3) णत्वविधानम्।
रषाभ्यां नो णः समानपदे। अकुप्वाङ नुम्व्यायेऽपि ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्। (अर्थात् यदि र, ष, ऋ तथा ऋ के बाद ‘न्’ आये तो उसका ‘ए’ हो जाता है।) जैसे-
नोट – यदि र्, ष, ऋ, ऋ तथा ‘न्’ के बीच में कोई स्वर, कवर्ग, पवर्ग, य, व, र, है, तथा अनुस्वार आ जाये तो भी ‘न्’ का ‘ण’ हो जाता है जैसे – रामे + न = रामेण। किन्तु पदान्त ‘न’ का ‘ण’ नहीं होता यथा – रामा + न् = रामान्।
(4) षत्वविधानम्।
अपदान्तस्य मूर्धन्यः। इण्कोः। आदेशप्रत्यययोः। (अर्थात् ‘अ’ तथा ‘आ’ को छोड़कर यदि कोई स्वर ह, य, व, र, लु तथा विसर्ग (:) के बाद ‘स्’ आये और वह ‘स्’ पदान्त का न हो, तो उसका ‘ष’ हो जाता है।) जैसे-
(iii) विसर्ग सन्धि
परिभाषा-जब विसर्ग के स्थान पर कोई भी परिवर्तन होता है तब वह विसर्ग सन्धि कही जाती है। विसर्ग (:) का स्वर-वर्ण अथवा व्यञ्जन-वर्ण से मेल होने पर जब विसर्ग में कोई परिवर्तन होता है तो उसे ‘विसर्ग सन्धि’ कहते हैं।
(1) सत्व सन्धि
विसर्जनीयस्य सः- यदि विसर्ग के परे (सामने) क् ख् च् छ्, ट्, छ्, त्, थ्, श्, य् फ् ष् अथवा स् वर्षों में से कोई एक वर्ण होता है, तो विसर्ग (:) का (त्, थ् आने पर) स्, (च्, छ् आने पर) श् तथा (ट्, व् आने पर) ष् हो जाता है। इसी। को सत्व सन्धि कहते हैं। जैसे –
(2) उत्वसन्धि
(I) अतो रोरप्लुतादप्लुते- जब विसर्ग (:) के पहले ह्रस्व ‘अ’ हो तथा विसर्ग (:) के परे (बाद में) भी ह्रस्व ‘अ’ स्वर हो तो विसर्ग (:) के स्थान पर ‘ओ’ तथा बाद में आने वाले ह्रस्व ‘अ’ के स्थान पर अवग्रह चिह्न (ऽ) लगा दिया जाता है। जैसे-
बालकः + अयम् = बालकोऽयम्। (विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘ऽ’ अवग्रह होने पर)
कः + अपि = कोऽपि। (विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘ऽ’ अवग्रह होने पर)
लक्ष्मणः + अस्ति = लक्ष्मणोऽस्ति। (विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘ऽ’ अवग्रह होने पर)
रामः + अगच्छत् = रामोऽगच्छत्। (विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘ऽ’ अवग्रह होने पर)
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्। (विसर्ग को ओ होने से तथा पर ‘अ’ को ‘ऽ’ अवग्रह होने पर)
(II) हशि च- यदि विसर्ग (:) के पूर्व (पहले) ह्रस्व ‘अ’ हो और विसर्ग (:) के आगे किसी भी वर्ग का तीसरा (ग, ज्, ड्, द्, ब्), चौथा (घ्, झू, द्, , भ्), पाँचवां (ङ, ञ, ण, न्, म्) अथवा य, र, ल, व, ह-इन बीस वर्षों में से कोई भी एक वर्ण हो तो विसर्ग (:) के पूर्व वाले ‘अ’ तथा विसर्ग (:) दोनों के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
विशेष ध्यातव्य – उपुर्यक्त दोनों उत्व सन्धियों में होने वाले विसर्गः (:) को उत्व सन्धि के नियम से ‘उ’ हो जाता है और फिर ‘अ + उ’ को मिलाकर गुण सन्धि के नियम से ‘ओ’ हो जाता है तथा ओ से परे अकार रहने पर अकार का पूर्वरूप होने से ऽ हो जाता है
(3) रुत्व सन्धि
ससजुषोरु:-यदि विसर्ग के पूर्व अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और उस विसर्ग (:) के बाद कोई स्वर, वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां अक्षर, य, र, ल, व, ह वर्ण हों तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है। जैसे-
(4) रेफ लोप सन्धि रोरि- यदि, विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है तथा ‘रोरि’ सूत्र द्वारा ‘र’ का लोप हो जाता है। यदि ‘र’ के पहले अ, इ, उ हों तो उनका दीर्घ हो जाता है। जैसे-
अभ्यास : 1
प्रश्न
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिविच्छेदं कुरुत-(निम्नलिखित पदों में सन्धि-विच्छेद कीजिए-)
(i) पाण्डवाग्रजः, (ii) गत्वैकं, (iii) प्रत्येकः, (iv) भवनम्:, (v) पावकः, (vi) प्रेजते, (vii) कीटोऽपि, (viii) वध्वागमः,(ix) सर्वेऽस्मिन्, (x) गंगैषा, (xi) लाकृति, (xii) हरिश्शेतेः, (xiii) तट्टीका, (xiv) विष्णुस्त्राता, (xy) देवो वन्द्यः।
उत्तर:
(i) पाण्डव + अग्रज: (ii) गत्वा + एकं (iii) प्रति + एकं (iv) भो + अनम् (v) पौ + अकः (vi) प्र + एजते (vii) कीटः + अपि (viii) वधू + आगमः (ix) सर्वे + अस्मिन् (x) गंगा + एषा (xi) लृ + आकृति (xii) हरिः + शेते (xiii) तत् + टीका (xiv) विष्णुः + त्राता (xv) देवो + वन्द्यः।
अभ्यास : 2
प्रश्न
अधोलिखितेषु पदेषु संधि कृत्वा संधिनामोल्लेखं कुरुत(निम्नलिखित पदों में सन्धि करके सन्धि का नाम बताइए-)
(i) श्री + ईशः, (ii) साधु + ऊचुः, (iii) देव + ऋषिः, (iv) रमा + ईशः, (v) सदा + एव, (vi) महा + ओषधिः, (vii) दधि + अत्र, (viii) नै + अकः, (ix) जे + अः, (x) प्र + एजते, (xi) सत् + चि, (xii) पेष् + ताः, (xiii) रामे + सु, (xiv) राम + स्, (xv) शिवस + अर्घ्य।
उत्तर:
(i) श्रीशः (दीर्घ सन्धिः) (ii) साधूचुः (दीर्घ सन्धि) (iii) देवर्षिः (गुण सन्धि) (iv) रमेशः (गुण सन्धि) (v) सदैव (वृद्धि सन्धि) (vi) महौसधिः (वृद्धि सन्धि) (vii) दध्यत्र (यण् सन्धि) (viii) नायकः (अयादि सन्धिः ) (ix) जयः (अयादि सन्धिः ) (x) प्रेजते (पररूप सन्धिः ) (xi) सच्चित् (श्चुत्व सन्धिः ) (xii) पेष्टारष्टुत्व सन्धि:) (xiii) रमेसु (षत्वविधानम्) (xiv) रामः (विसर्ग सन्धि) (xv) शिवोऽर्थ्य (उत्व सन्धिः)।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
अभ्यास : 3
प्रश्नः
अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धिविच्छेदं कुरुत(निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि-विच्छेद कीजिए-)
- अद्याहम् आपणं गमिष्यामि।
- पर्वतानां नृपः हिमालयः अस्ति।
- अद्य राधा विद्यालयं न गमिष्यति।
- तव नाम रवीन्द्रः अस्ति ?
- प्रात:काले सूर्योदयः भवति।
- इन्द्रः हि सुरेन्द्रः अस्ति।
- सिंहः मृगेन्द्रः भवति।
- सायंकाले चन्द्रोदयः भवति।
- प्रतिजनस्य हृदये परमेश्वरः वसति।
- राकेशः कुत्र निवसति ?
- देवर्षिः नारदः महान् अस्ति।
- रमेशः स्वगृहस्य नायकः अस्ति।
- राजर्षिः प्रतापवान् आसीत्।
- रमनः श्रेष्ठः गायकः अस्ति।
- स्वामी दयानन्दः महर्षिः आसीत्।
- प्रतिगृहे पावकः भवति।
- श्यामः कुशलः नाविकः अस्ति।
- राहुलः धावकः अस्ति।
- अयम् आश्रमः पवित्रः अस्ति।
- तव गृहे परमैश्वर्यम् अस्ति।
उत्तर:
1. अद्य + अहम् 2. हिम + आलयः 3. विद्या + आलयम् 4. रवि + इन्द्रः 5. सूर्य + उदयः 6. सुर + इन्द्रः 7. मृग + इन्द्रः 8. चन्द्र + उदयः 9. परम + ईश्वरः 10. राका + ईशः 11. देव + ऋषिः 12. नै + अकः 13. राजा + ऋषिः 14. गै + अकः 15. महा + ऋषिः 16. पौ + अक: 17, नौ + इकः 18. धौ + अक: 19. पो + इत्र: 20. परमे + ऐश्वर्यम्।
अभ्यास : 4
प्रश्नः
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धिविच्छेदं कुरुत(निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि-विच्छेद कीजिए-)
- तव हृदये परमौदार्यम् अस्ति।
- निम्बः महौषधम् भवति।
- त्वं गच्छ, तदैव अहम् गमिष्यामि।
- यथा माता करोति तथैव पुत्रः करोति।
- एतस्मिन् पात्रे तण्डुलौदनम् अस्ति।
- सः किं प्रत्युवाच।
- इत्युक्त्वा सः अगच्छत्।
- मम हृदये अत्यौत्सुक्यम् अस्ति।
- त्वं गुर्वाज्ञा न जानासि।
- मम गृहे तव स्वागतम्।
- त्वं पठ, इति पित्रादेशः।
- समयेऽस्मिन् सः कुत्र भविष्यति ?
- वृक्षेऽस्मिन् कः तिष्ठति ?
- राम: विद्यालये सच्छात्रः अस्ति।
- गगनमण्डलः उज्ज्वलः अस्ति।
- राहुलः सज्जनः बालकः अस्ति।
- जनकस्य मनः, कुण्ठितः आसीत्।
- भिक्षुकः शान्तः आसीत्।
- माता नाविकं पश्यति।
- बालानां हृदय: निश्छलः भवति।
उत्तर:
1. परम + औदार्यम् 2. महा + औषधम् 3. तदा + एव 4. तथा + एव 5. तण्डुल + ओदनम् 6. प्रति + उवाच 7. इति + उक्त्वा 8. अति + औत्सुक्यम् 9. गुरु + आज्ञा 10. सु + आगतम् 11. पितृ + आदेश: 12. समये + अस्मिन् 13. वृक्षे + अस्मिन् 14. सत् + छात्रः 15. उद् + ज्वलः 16. सत् + जनः 17. कुम् + ठितः 18. शाम् + तः 19. नौ + इकम् 20. निः + छलः।
अभ्यास : 5
प्रश्नः
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धि कुरुत(निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि कीजिए-)
- पूर्णिमायाः दिवसे पूर्ण: रजनी + ईशः उदेति।
- मम दु:ख + अन्तः अवश्यमेव भविष्यति।
- रमा प्रातः देव + आलयम् गच्छति।
- उपवने पदम् + आकरः अस्ति।
- सोहनः पुस्तक + आलयं गच्छति।
- मम विद्या + आलयः निकटमस्ति।
- मोहितः प्रवीणः विद्या + अर्थी अस्ति।
- जलाय महती + इच्छा भवति।
- सोहनस्य अभि + इष्टः देवः रामः अस्ति।
- शंकर: गौरी + ईशः अस्ति।
- विष्णुः लक्ष्मी + ईशः अस्ति।
- चन्द्रः एव सुधा + आकरः भवति।
- रवीन्द्रः कवि + इन्द्रः आसीत्।
- मम गृहे विवाह + उत्सवः अस्ति।
- हरि + ईशः प्रवीणः छात्रः अस्ति।
- हिम + आलये विविधाः वृक्षाः सन्ति।
- रत्न + आकरः गम्भीरः भवति।
- तव जनकस्य नाम फ्रम + आनन्दः अस्ति।
- जनस्य उपरि पितृ + ऋणं भवति।
- नर + इन्द्रः चालकः अस्ति।
उत्तर:
1. रजनीशः 2. दुःखान्त: 3. देवालयम् 4. पद्माकरः 5. पुस्तकालयं 6. विद्यालयः 7. विद्यार्थी 8. महतीच्छा 9. अभीष्टः 10. गौरीशः 11. लक्ष्मीशः 12. सुधाकरः 13. कवीन्द्रः 14. विवाहोत्सवः 15. हरीशः 16. हिमालये 17. रत्नाकरः 18. परमानन्दः 19. पितृणम् 20, नरेन्द्रः।
अभ्यास : 6
प्रश्नः
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिनियमान् आधारीकृत्य सन्धिं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों में स्थूल-पदों में सन्धि-नियमों को आधार बनाकर सन्धि कीजिए-)
- पुष्प + इन्द्रः कुत्र गमिष्यति?।
- शिवः एव महा + ईशः अस्ति।
- पर + उपकारः महान् गुणः भवति।
- हित + उपदेशः लाभकारी भवति।
- रामः पुरुष + उत्तमः आसीत्।
- अद्य विद्यालये महा + उत्सवः भविष्यति।
- अद्यापि गगनमण्डले सप्त + ऋषयः दीप्यन्ति।
- ग्रीष्मानन्तरे वर्षा + ऋतुः आगमिष्यति।
- संदा सत्यस्य विजयः भो + अति।
- सः देवं ध्यै + अति।
- हरे + ए रोचते भक्तिः।
- सदा + एव सत्यं वद।
- मम उपरि तु ईश्वर + औदार्यम् अस्ति।
- अद्य जनकस्य गृहे वधू + आगमनम् भविष्यति।
- पुरुषो + अयम् बलवान् अस्ति।
- शय्यां हरिस् + शेते।
- रीना सत् + चरित्रा बालिका अस्ति।
- मम मित्रं सद् + जनः अस्ति।
- विद्यालये. अहम् + पठामि।
- बालिका गृहम् + गच्छति।
उत्तर:
1. पुष्पेन्द्रः 2. महेशः 3. परोपकार: 4. हितोपदेशः 5. पुरुषोत्तमः 6. महोत्सवः 7. सप्तर्षयः 8. वर्षर्तुः 9. भवति 10. ध्यायति 11. हरये 12. सदैव 13. ईश्वरौदार्यम् 14. वध्वागमनम् 15. पुरुषोऽयम् 16. हरिश्शेते 17. सच्चरित्रा 18. सज्जनः 19. अहं पठामि 20. गृहं गच्छति।
Leave a Reply