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RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

August 21, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर  

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य है
(अ) एक सामाजिक प्राणी
(ब) एक जंगली प्राणी
(स) एक जैविक प्राणी
(द) एक असामाजिक प्राणी।
उत्तर:
(अ) एक सामाजिक प्राणी

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र के जनक हैं
(अ) वेबर
(ब) मार्क्स
(स) दुर्थीम
(द) अगस्त कॉम्ट।
उत्तर:
(द) अगस्त कॉम्ट।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र के जन्म के लिये प्रमुख रूप से कौन-सा कारक उत्तदायी है?
(अ) फ्रांसीसी क्रान्ति व औद्योगिक क्रान्ति
(ब) वैश्वीकरण
(स) नगरीकरण
(द) अन्य।
उत्तर:
(अ) फ्रांसीसी क्रान्ति व औद्योगिक क्रान्ति

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 4.
भारत में समाजशास्त्र की वास्तविक शुरुआत कब से मानी जाती है?
(अ) सन् 1980
(ब) सन् 2000
(स) सन् 1919
(द) सन् 1900
उत्तर:
(स) सन् 1919

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र की प्रकृति है.
(अ) वैज्ञानिक
(ब) अवैज्ञानिक
(स) अमानवीय
(द) असामाजिक।
उत्तर:
(अ) वैज्ञानिक

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र के जनक कौन हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्र के जनक अगस्त कॉम्ट हैं।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र को विशेष विज्ञान कौन-सा सम्प्रदाय मानता है?
उत्तर:
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय समाजशास्त्र को विशेष विज्ञान मानता है।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र को सामान्य विज्ञान कौन-सा सम्प्रदाय मानता है?
उत्तर:
समन्वयात्मक सम्प्रदाय समाजशास्त्र को समान्य विज्ञान मानता है।

प्रश्न 4.
वस्तुनिष्ठता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
अध्ययनकर्ता द्वारा निष्पक्ष अध्ययन करना ही वस्तुनिष्ठता है।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। यह कौन मानता है?
उत्तर:
मैकाइवर एवं पेज यह मानते हैं कि समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का जाल है।

प्रश्न 6.
अर्थशास्त्र किसका अध्ययन करता है?
उत्तर:
अर्थशास्त्र आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 7.
मनोविज्ञान के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु क्या है?
उत्तर:
मनोविज्ञान के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं मानसिक स्थितियाँ हैं।

प्रश्न 8.
राजनीति विज्ञान किसका अध्ययन करता है?
उत्तर:
राजनीति विज्ञान राजनीतिक घटनाओं, कानून, प्रशासन, सम्प्रभुता, राज्य इत्यादि का अध्ययन करता है।

प्रश्न 9.
ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन विशेष रूप से कौन-सा विज्ञान करता है?
उत्तर:
ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन ‘इतिहास’ करता है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में दो अन्तर निम्नवत् हैं :

  1. समाजशास्त्र मुख्यतया सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है जबकि अर्थशास्त्र आर्थिक घटनाओं का अध्ययन करता है।
  2. समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र व्यापक है जबकि अर्थशास्त्र का विषय क्षेत्र अपेक्षाकृत संकुचित है।

प्रश्न 2.
सामाजिक मनोविज्ञान क्या है?
उत्तर:
अध्ययन की दृष्टि से समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान के समन्वित रूप को सामाजिक मनोविज्ञान कहा जाता है। वस्तुतः व्यक्ति का व्यवहार उसकी सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होता है और व्यक्ति के व्यवहार से समाज की गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं। ऐसी दशा में सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है जो इन दोनों का व्यापक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करती है। इसमें व्यक्ति के व्यवहार एवं समाज की अवधारणाओं में परस्पर हो रही अन्तःक्रियाओं को सूक्ष्मता से समझने का अवसर प्राप्त होता है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र’ दो शब्दों से मिलकर बना है। यहाँ ‘अर्थ’ का आशय धन तथा ‘शास्त्र’ का तात्पर्य विज्ञान से है। इस प्रकार वह विज्ञान जो धन अथवा आर्थिक क्रियाओं या आर्थिक घटनाओं का अध्ययन करता है, उसे अर्थशास्त्र कहते हैं। वर्तमान समय में अर्थशास्त्र एक विशिष्ट विज्ञान माना जाता है, क्योंकि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में बढ़ रही आर्थिक चुनौतियों के कारण इसका अध्ययन क्षेत्र अत्यन्त व्यापक और महत्वपूर्ण हो गया है।

प्रश्न 4.
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
हर विषय द्वारा समस्याओं के अध्ययन का नजरिया या दृष्टिकोण होता है जो कि दूसरे विषय से अलग होता है। इस दृष्टिकोण को ही परिप्रेक्ष्य कहा जाता है। जहाँ तक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य की बात है तो इसके अन्तर्गत हम किसी भी घटना अथवा स्थिति का अध्ययन सामाजिक सम्बन्धों एवं संस्थाओं, सामाजिक मूल्यों, प्रस्थिति एवं भूमिका, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक नियन्त्रण तथा सामाजिक व्यवस्था आदि पर पड़ने वाले प्रभाव के प्ररिप्रेक्ष्य में करते हैं।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र की दो परिभाषाएँ दीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र की दो परिभाषाएँ निम्नलिखित है
“समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है।” -एच.डब्ल्यू.ओडम

“समाजशास्त्र व्यापक अर्थ में व्यक्तियों के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अन्त:क्रियाओं का अध्ययन कहा जा सकता है।” -गिलिन एवं गिलिन

उपर्युक्त परिभाषाओं के सन्दर्भ में यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि समाजशास्त्र की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र’ ऐसा विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है। समाज में विभिन्न व्यक्ति अन्तः क्रियाएँ करते हैं। इन अन्तः क्रियाओं के कारण ही सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण होता है। समाजशास्त्र के अर्थ को समझने की दृष्टि से उल्लेखनीय तथ्य यह है कि भले ही समाजशास्त्री समाजशास्त्र की किसी एक परिभाषा पर सहमत नहीं हैं किन्तु अनेक परिभाषाओं के होने के बावजूद सभी में सर्वनिष्ठ तथ्य यह है कि सभी में अन्तः क्रियाओं का किसी न किसी रूप में समावेश है।

प्रश्न 7.
जार्ज सिमैल के समाजशास्त्र के विषय में विचार बताइए।
उत्तर:
जार्ज सिमैल समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनके मतानुसार प्रत्येक वस्तु का एक स्वरूप तथा एक अन्तर्वस्तु होती है। ये दोनों एक-दूसरे से पृथक होते हैं। ऐसी स्थिति में इनका एक-दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में सिमैल महोदय के अनुसार सामाजिक सम्बन्धों को भी स्वरूप और अन्तर्वस्तु के आधार पर अलग किया जा सकता है। सिमैल की दृष्टि में समाजशास्त्र में हमें केवल सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूपों का अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि अन्तर्वस्तु का अध्ययन अन्य विज्ञान कर रहे हैं।

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र की प्रकृति क्या है?
उत्तर:
किसी भी विषय की प्रकृति से आशय इस बात को सुनिश्चित करना है कि सम्बद्ध विषय विज्ञान है अथवा कला। जहाँ तक समाजशास्त्र की प्रकृति का सम्बन्ध है तो समाजशास्त्र के पिता अगस्त कॉम्ट सहित इमाईल दुर्थीम, मैक्स वेबर आदि प्रतिष्ठित समाजशास्त्रियों ने समाजशास्त्र को शुरू से ही विज्ञान माना है किन्तु यह बात सावधानी के साथ समझने की आवश्यकता है कि समाजशास्त्र प्राकृतिक विज्ञान न होकर सामाजिक विज्ञान है, ऐसी स्थिति में इसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं; जैसे—प्राकृतिक विज्ञानों की विषय सामग्री विवेकशील नहीं होती है। किन्तु समाजशास्त्र की सामग्री विवेकशील (मनुष्य) होती है। ऐसी दशा में समाजशास्त्र के लिए सत्यापनीयता व पूर्वानुमान लगाना प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में कठिन होता है।

प्रश्न 9.
विज्ञान का अर्थ बताइए।
उत्तर:
प्रसिद्ध विद्वान स्टुअर्ट चेस विज्ञान का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि “विज्ञान का सम्बन्ध पद्धति से है न कि विषय सामग्री से।” कार्ल पियर्सन का भी मानना है कि “सभी विज्ञानों की एकता उनकी पद्धति में है न कि . विषयवस्तु में।”

इन दोनों विद्वानों के कथनों से स्पष्ट है कि विज्ञान का सम्बन्ध ज्ञान प्राप्त करने की पद्धति से है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि एक विशेष प्रकार के तरीके से प्राप्त ज्ञान को विज्ञान कहते हैं। इसमें वस्तुनिष्ठता, सत्यापनीयता, निश्चितता, कार्य-कारण सम्बन्ध, सामान्यीकरण, पूर्वानुमान, आनुभाविकता, सार्वभौमिकता आदि सन्निहित होते हैं!

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 10.
वैज्ञानिक पद्धति की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं’ :

  • वस्तुष्ठिता (Objectivity) :
    इसका तात्पर्य अन्वेषणकर्ता अथवा अध्ययनकर्ता द्वारा पक्षपात रहित अथवा निष्पक्ष अध्ययन करने से है। इसके तहत अध्ययनकर्ता अपने विचारों, मनोवृत्तियों और पूर्व धारणाओं को अध्ययन में सम्मिलित न करके तथ्यों के आधार पर अध्ययन करता है।
  • सार्वभौमिकता (Universality) :
    जो नियम वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर बनाए जाते हैं। वे समय अथवा स्थान के आधार पर बदलते नहीं है अर्थात् वे सार्वभौमिक होते हैं। ऐसी स्थिति के कारण ही इन नियमों के आधार पर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 11.
समाजशास्त्र को विज्ञान मानने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र को विज्ञान मानने के दो कारण निम्नलिखित हैं :

  1. समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग, वस्तुनिष्ठ अध्ययन, सत्यापनीयता, निश्चितता, कार्य-कारण सम्बन्धों की स्थापना की स्थितियाँ विद्यमान रहती हैं, जो इसकी प्रकृति को वैज्ञानिक बनाती हैं।
  2. विज्ञान की ही तरह समाजशास्त्र में सामान्यीकरण करना, पूर्वानुमान लगाना, आनुभविक अध्ययन एवं सार्वभौमिकता की दशाएँ सन्निहित रहती हैं जो समाजशास्त्र को विज्ञान मानने के लिए बाध्य करती हैं।

उपरोक्त दोनों बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में यह बात समझना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि जब एक समाजशास्त्री अपने जैसे दूसरे मनुष्यों का अध्ययन करता है तो उसके मन में पूर्व धारणा हो सकती है तो उसके अध्ययन को प्रभावित कर सकती है। ऐसी दशा में समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में अधिक कठिन है। हमें यह सदैव ध्यान में रखना होगा कि समाजशास्त्र समाज विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं।

प्रश्न 12.
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के तहत हम किसी भी घटना अथवा स्थिति का अध्ययन सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक मूल्यों, प्रस्थिति, भूमिका, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक नियन्त्रण तथा सामाजिक व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के सन्दर्भ में करते हैं।

समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के दो हिस्से होते हैं :

  1. पहले हिस्से में हम व्यक्तियों के बीच बनने वाले सम्बन्धों, उनके निर्माण की प्रक्रिया तथा तथा उनके प्रभाव का अध्ययन करते हैं।
  2. दूसरे हिस्से में हम किसी घटना अथवा विषयवस्तु का अध्ययन हमारी सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक सम्बन्धों, प्रस्थिति एवं भूमिका, सामाजिक मूल्यों, मापदण्ड एवं सामाजिक व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के सन्दर्भ में करते हैं।

प्रश्न 13.
समाजशास्त्र एवं इतिहास में दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

  1. समाजशास्त्र में सभी घटनाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि इतिहास में बीती हुई अथवा भूतकालीन घटनाओं का ही अध्ययन किया जाता है।
  2. इतिहास की रुचि का विषय महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं जबकि समाजशास्त्र में सामान्य घटनाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 14.
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में दो अन्तर निम्नलिखित हैं :

  1. समाजशास्त्र का विषयक्षेत्र व्यापक है जबकि व्यक्ति केन्द्रित होने के कारण मनोविज्ञान का विषय क्षेत्र सीमित है।
  2. समाजशास्त्र में सामूहिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जबकि मनोविज्ञान व्यक्ति की मानसिक विशेषताओं व व्यक्तिगत व्यवहार का अध्ययन करता है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र के उद्भव के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र के उद्भव के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को समझना अत्यन्त आवश्यक है :
i. सन् 1450 से 1800 के बीच के समय में यूरोप में वाणिज्यिक क्रान्ति हुई। पुर्तगाल, इंग्लैण्ड, हालैण्ड तथा स्पेन जैसे देशों में एशिया में स्थित देशों से व्यापार को बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा प्रारम्भ हो गई। इसके कारण यूरोप का व्यापार एक वैश्विक व्यापार में बदलने लगा। इसके प्रभावों और कई अन्य प्रभावों के कारण एक नए वर्ग का उदय हुआ जिसे मध्यम वर्ग के नाम से जाना गया।

ii. मध्यकालीन यूरोप में हुआ पुनर्जागरण व्यक्तिगत एवं सामाजिक सम्बन्धों के लिए नया आयाम लेकर आया। इसके कारण लोगों में बौद्धिकता का विकास हुआ। परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के सम्बन्ध नए सिरे से परिभाषित किए जाने लगे।

iii. सन् 1789 में फ्रांस की क्रान्ति हुई। इस क्रान्ति के फलस्वरूप स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व का विचार उभरकर सामने आया। ऐसी दशा में लोग अपने अधिकारों के प्रति अधिक सचेत हो गए। इस क्रान्ति ने सामाजिक असमानता तथा शासन के अत्याचारों के प्रति लोगों को जागरूक करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।

iv. अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कुछ यूरोपीय देशों की तकनीक, आर्थिक स्थिति व सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों में अत्यधिक बदलाव आया। इस बदलाव का कारण औद्योगिक क्रान्ति थी। यद्यपि इस क्रान्ति का प्रारम्भ इंग्लैण्ड से माना जाता है किन्तु इस क्रान्ति ने यूरोप के अन्य देशों के नागरिकों के सामाजिक व आर्थिक जीवन में भी बदलावों का सूत्रपात किया। इस क्रान्ति से उद्योगों का मशीनीकरण हो गया। उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हो गई, पूँजीवाद जैसी विचारधारा का विकास हुआ। औद्योगिक श्रमिकों के रूप में नये वर्ग का उदय हुआ। नवीन शहरों का विकास हुआ।

उपर्युक्त समस्त विवरणों के परिप्रेक्ष्य में यह समझना महत्वपूर्ण है कि तत्कालीन परिस्थितियों में यूरोप में होने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक बदलाव समाज पर जो प्रभाव डाल रहे थे, उनको समझने के लिए एक नए विषय की आवश्यकता थी। इसी आवश्यकता को पूरा करने के प्रयास में समाजशास्त्र का उद्भव हुआ। सन् 1838 में फ्रांसीसी दार्शनिक अगस्त कॉम्ट ने एक विषय के रूप में समाजशास्त्र की शुरुआत की। यद्यपि पहले उन्होंने इसे सामाजिक भौतिकी नाम दिया किन्तु बाद में इसे बदलकर समाजशास्त्र कर दिया।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा समझाइए।
उत्तर:
सामान्य अर्थ में ‘समाजशास्त्र’ वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है। यदि विशेष तरीके से समाजशास्त्र का अर्थ समझना हो तो हमें समाजशास्त्र की निम्नलिखित परिभाषाओं को समझना पड़ेगा :

  1. समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। -किंग्सले डेविस
  2. समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है। -एच.डब्ल्यू. ओडम
  3. समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है। सम्बन्धों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं। -मैकाइवर एवं पेज
  4. समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है। -एच. एम. जानसन
  5. समाजशास्त्र व्यापक अर्थ में व्यक्तियों के एक दूसरे के सम्पर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अन्तः क्रियाओं का अध्ययन कहा जा सकता है। -गिलिन एवं गिलिन

उपर्युक्त पाँचों परिभाषाएँ अलग-अलग हैं। वस्तुतः समाजशास्त्र की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। किन्तु सभी परिभाषाओं में भिन्नता होते हुए भी सर्वनिष्ठ समानता यह है कि ये सभी परिभाषाएँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक अन्त:क्रियाओं की पक्षधर हैं। सामाजिक सम्बन्ध इन्हीं अन्त:क्रियाओं के माध्यम से बनते हैं।

समाजशास्त्र का अर्थ इस बात में सन्निहित है कि जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक-दूसरे से बात-चीत कर रहे होते हैं, तो उसे अन्तः क्रिया कहते हैं। यदि अन्तः क्रिया उद्देश्यपूर्ण होती है और उसमें स्थायित्व होता है। ऐसी स्थिति में स्वतः स्फूर्त ढंग से सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण हो जाता है। समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संस्थाओं (परिवार, विवाह, नातेदारी, शिक्षण संस्थाओं, राजनीतिक संस्थाओं, धार्मिक संस्थाओं आदि), समूहों, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक नियन्त्रण, प्रस्थिति तथा भूमिका आदि का अध्ययन समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से किया जाता है।

व्यापक परिप्रेक्ष्य में हम समाजशास्त्र को सामाजिक व्यवस्था का विज्ञान कह सकते हैं, क्योंकि समाज व्यवस्था में सामाजिक संस्थाएँ, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक नियन्त्रण, सामाजिक सम्बन्ध, प्रस्थिति एवं भूमिकाएँ आदि सभी समाहित होते हैं।

प्रश्न 3.
क्या समाजशास्त्र एक विज्ञान है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
समाजशास्त्र एक विज्ञान है, क्योंकि इसमें वे सभी प्रमुख विशेषताएँ विद्यमान हैं जो कि विज्ञान में होती हैं। ये विशेषताएँ हैं—वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग, वस्तुनिष्ठ अध्ययन, सत्यापनीयता का गुण, निश्चितता, कार्य-कारण सम्बन्धों की स्थापना, सामान्यीकरण की क्रिया, पूर्वानुमान लगाना, आनुभविक अध्ययन एवं सार्वभौमिकता आदि। समाजशास्त्र के पिता कहे जाने वाले अगस्त कॉम्ट सहित इमाईल दुर्थीम, मैक्स वेबर इत्यादि विद्वानों ने समाजशास्त्र को शुरू से ही विज्ञान माना है।

विज्ञान की सभी विशेषताओं के होने के बावजूद समाजशास्त्र की अपनी कुछ सीमाएँ हैं जिन्हें सूक्ष्मता से समझना अत्यन्त आवश्यक है। यदि हम प्राकृतिक विज्ञानों से इसकी तुलना करें तो पाएँगे कि प्राकृतिक विज्ञानों की विषय सामग्री विवेकशील नहीं होती, जबकि समाजशास्त्र की विषयवस्तु विवेकशील होती है क्योंकि इसकी विषयवस्तु मनुष्य होते हैं, जो अपने व्यवहार में कभी भी परिवर्तन ला सकते हैं। ऐसी स्थिति में समाजशास्त्र में सत्यापनीयता व पूर्वानुमान लगाना प्राकृतिक विज्ञानों से अधिक कठिन होता है।

प्राकृतिक वैज्ञानिकों को अपनी अध्ययन सामग्री से किसी प्रकार का अपनापन, मोह, प्रेम, ईर्ष्या, द्वेष, लगाव या नफरत आदि नहीं होता है। समाजशास्त्री के साथ स्थिति दूसरी होती है, वह अपने जैसे दूसरे व्यक्तियों का अध्ययन करता है। ऐसी दशा में उसके मन में पूर्व धारणा हो सकती है जो उसके अध्ययन को प्रभावित कर सकती है। इसी तरह समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में अधिक कठिन होता है। हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है प्राकृतिक विज्ञान नहीं।

प्राकृतिक विज्ञानों से अन्तर के बावजूद समाजशास्त्र समस्याओं के चयन, परिकल्पना के निर्माण, तथ्यों के संकलन, तथ्यों के वर्गीकरण एवं विश्लेषण तथा सिद्धान्त निर्माण में वही पद्धति अपनाता है जो कि प्राकृतिक विज्ञान अपनाते हैं। ऐसी दशा में समाजशास्त्र निश्चित रूप से एक विज्ञान है।

प्रश्न 4.
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य को विस्तार से समझाइए।
उत्तर;
किसी भी घटना अथवा समस्या को समझने के लिए हर विज्ञान का अपना एक नजरिया या दृष्टिकोण होता है। इसी को परिप्रेक्ष्य कहते हैं। समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए हमें निम्नलिखित समाजशास्त्रियों की परिभाषाओं को समझना होगा :

  1. मूल्य, विश्वास, अभिवृत्ति एवं अर्थ व्यक्ति को सन्दर्भ एवं दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जिसके अनुसार वह परिस्थिति का अवलोकन करता है, परिप्रेक्ष्य कहलाता है। -थियोडरसन एवं थियोडरसन
  2. हमारी स्थापित आदतों की व्यवस्था से सन्दर्भ परिधि का निर्माण होता है। आदतों की यह व्यवस्था लोक भाषा में होती है जिन्हें विश्वास, सिद्धान्त अथवा जीवन दर्शन कहा जाता है। -लुन्डबर्ग
  3. किसी घटना, वस्तु या स्थिति का अध्ययन विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है। किसी विषय का अध्ययन क्षेत्र, प्रकृति, सिद्धान्त, अवधारणाएँ एवं परिभाषाएँ उसके परिप्रेक्ष्य को निर्धारित करती हैं। -गुडे एवं हॉट

उपरोक्त तीनों वक्तव्यों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य अध्ययन का एक दृष्टिकोण है जो इसे अन्य विज्ञानों से अलग करता है। समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य को यदि सरलीकृत रूप में समझना हो, तो हमें समाजशास्त्री ई. चिनोय द्वारा दिए गए उदाहरण को समझना होगा। अपनी पुस्तक ‘सोशियोलोजिकल पर्सपेक्टिव’ में दिए गए उदाहरण में उन्होंने अत्यन्त साधारण खाद्य वस्तु ‘डबल रोटी’ की बात की, उनके अनुसार :

  1. यदि डबल रोटी का अध्ययन अर्थशास्त्री करेगा तो वह उसकी बाजार में माँग, उत्पादन लागत, विक्रय मूल्य, लाभ-हानि आदि का विश्लेषण करेगा। यह डबल रोटी का आर्थिक परिप्रेक्ष्य है।
  2. यदि इतिहासकार ‘डबल रोटी’ का विश्लेषण करना शुरू करेगा तो वह डबल रोटी की उत्पत्ति एवं उसके प्रसार पर ध्यान केन्द्रित करेगा।
  3. पोषाहार विशेषज्ञ इसके सेवन से मिल रहे पोषण एवं स्वास्थ्य वर्द्धकता पर विचार करेंगे।
  4. मनोवैज्ञानिक डबल रोटी का विश्लेषण खान-पान की आदतों के दृष्टिकोण से कर सकते हैं।

उपरोक्त चारों दृष्टिकोणों से अलग दृष्टिकोण के तहत समाजशास्त्री इस बात पर विचार कर सकते हैं कि डबल रोटी का सामाजिक सम्बन्धों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? यहाँ हम देख रहे हैं कि एक ही वस्तु (डबलरोटी) के सम्बन्ध में विभिन्न शास्त्रों का परिप्रेक्ष्य अलग-अलग है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
अगस्त कॉम्ट मूलतः थे
(अ) इतिहासकार
(ब) भौतिकविद्
(स) समाजशास्त्री
(द) दार्शनिक।
उत्तर:
(द) दार्शनिक।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र का प्रारम्भिक नाम था
(अ) सामाजिक विज्ञान
(ब) सामाजिकी
(स) सामाजिक भौतिकी
(द) सामाजिक विषय।
उत्तर:
(स) सामाजिक भौतिकी

प्रश्न 3.
भारत में समाजशास्त्र की वास्तविक शुरुआत मानी जाती है
(अ) बम्बई विश्वविद्यालय से
(ब) कलकत्ता विश्वविद्यालय से
(स) जोधपुर विश्वविद्यालय से
(द) इलाहाबाद विश्वविद्यालय से।
उत्तर:
(अ) बम्बई विश्वविद्यालय से

प्रश्न 4.
कलकत्ता विश्वविद्यालय में ऐच्छिक विषय के रूप में समाजशास्त्र की शुरुआत हुई
(अ) 1910 में
(ब) 1912 में
(स) 1915 में
(द) 1917 में।
उत्तर:
(द) 1917 में।

प्रश्न 5.
‘इण्डियन सोशियोलोजिकल सोसाइटी’ की स्थापना हुई
(अ) 1952 में
(ब) 1964 में
(स) 1932 में
(द) 1980 में।
उत्तर:
(अ) 1952 में।

प्रश्न 6.
‘प्रभुत्व जाति’ की अवधारणा निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री ने प्रस्तुत की?
(अ) राधाकमल मुखर्जी
(ब) एम.एन. श्रीनिवास
(स) योगेन्द्र सिंह
(द) पी.एच. प्रभु।
उत्तर:
(ब) एम.एन. श्रीनिवास

प्रश्न 7.
‘सामाजिक मूल्य’ निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री की अवधारणा है?
(अ) ए.के. सरन
(ब) डी.एन. मजुमदार
(स) ए.आर. देशाई
(द) राधाकमल मुखर्जी।
उत्तर:
(द) राधाकमल मुखर्जी।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 8.
जब दो या दो अधिक व्यक्ति आपस में बातचीत कर रहे होते हैं, तो उसे कहते हैं
(अ) बाह्य क्रिया
(ब) अन्तः क्रिया।
(स) परस्पर क्रिया
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) अन्तः क्रिया।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन स्वरूपात्मक सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं
(अ) जार्ज सिमेल
(ब) मैक्स वेबर
(स) ‘क’ व ‘ख’ दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) ‘क’ व ‘ख’ दोनों

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में कौन-सा समाजशास्त्री समन्वयात्मक सम्प्रदाय के अन्तर्गत नहीं आता?
(अ) एफ. टानीज
(ब) हॉब हाऊस
(स) सोरोकिन
(द) जिन्सबर्ग।
उत्तर:
(अ) एफ. टानीज

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र के उद्भव के लिए कौन-सी घटनाएँ प्रमुख रूप से जिम्मेदार मानी जाती हैं?
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रान्ति एवं औद्योगिक क्रान्ति समाजशास्त्र के उद्भव के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार मानी जाती हैं।

प्रश्न 2.
बम्बई विश्वविद्यालय में किसकी अध्यक्षता में समाजशास्त्र की शुरुआत हुई?
उत्तर:
पैट्रिक गेडिस की अध्यक्षता में।

प्रश्न 3.
लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
सन् 1921 ई. में।

प्रश्न 4.
आन्ध्र व मैसूर विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
सन् 1923 में।

प्रश्न 5.
प्रारम्भ में समाजशास्त्र को किन विषयों के साथ पढ़ाया जाता था?
उत्तर:
मानवशास्त्र तथा अर्थशास्त्र विषयों के साथ।

प्रश्न 6.
‘टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल वर्क’ कहाँ अवस्थित है?
उत्तर:
लखनऊ में।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 7.
आगरा में समाजशास्त्र विषयक किस संस्थान की स्थापना की गई?
उत्तर:
इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइन्स।

प्रश्न 8.
‘पश्चिमीकरण’ एवं ‘संस्कृतिकरण’ किस समाजशास्त्री द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणाएँ हैं?
उत्तर:
एम. एन. श्रीनिवास।

प्रश्न 9.
“विज्ञान का सम्बन्ध पद्धति से है न कि विषय सामग्री से” यह कथन किसका है?
उत्तर:
स्टूअर्ट चेस का।

प्रश्न 10.
किसका मानना है कि “सभी विज्ञानों की एकता उसकी पद्धति में है न कि विषयवस्तु में।”
उत्तर:
कार्ल पियर्सन का।

प्रश्न 11.
‘परिप्रेक्ष्य’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हर विज्ञान का समस्या का अध्ययन करने हेतु एक दृष्टिकोण होता है, जिसे ‘परिप्रेक्ष्य’ कहते हैं।

प्रश्न 12.
‘सोशियोलोजिकल पर्सपैक्टिव’ नामक पुस्तक किस समाजशास्त्री ने लिखी?
उत्तर:
समाजशास्त्री ई. चिनोय ने।

प्रश्न 13.
‘फाउण्डेशन ऑफ सोशियोलॉजी’ और ‘मेथड्स इन सोशल रिसर्च’ नामक पुस्तकें किन समाजशास्त्रियों द्वारा लिखी गईं?
उत्तर:
ये पुस्तकें क्रमशः जी.ए. लुण्डबर्ग और गुडे एवं हॉट द्वारा लिखी गईं।

प्रश्न 14.
“समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है।” यह परिभाषा किस समाजशास्त्री की है?
उत्तर:
किंग्सले डेविस की।

प्रश्न 15.
किस समाजशास्त्री का मानना है कि- “समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है।”
उत्तर:
एच.एम. जानसन का।

प्रश्न 16.
समाजशास्त्र के सम्बन्ध में गिलिन एवं गिलिन की परिभाषा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
गिलिन एवं गिलिन के अनुसार-“समाजशास्त्र व्यापक अर्थ में व्यक्तियों के एक दूसरे के सम्पर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अन्त:क्रियाओं का अध्ययन कहा जा सकता है।”

प्रश्न 17.
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के प्रवर्तक समाजशास्त्री कौन हैं?
उत्तर:
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के प्रवर्तक समाजशास्त्री जार्ज सिमेल एवं एफ. टॉनीज हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 18.
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के समर्थक समाजशास्त्रियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
इस सम्प्रदाय के समर्थक समाजशास्त्री हैं- वीरकान्त, वॉन वीज एवं मैक्स वेबर

प्रश्न 19.
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र क्या है?
उत्तर:
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र विशिष्ट एवं शुद्ध विज्ञान है।

प्रश्न 20.
समन्वयात्मक सम्प्रदाय के समर्थक समाजशास्त्रियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
समन्वयात्मक सम्प्रदाय के समर्थक समाजशास्त्री हैं- इमाईल दुर्थीम, सोरोकिन, जिन्सबर्ग, हाबहाऊस आदि।

प्रश्न 21.
ऐसे विद्वानों का नामोल्लेख कीजिए जिनको समाजशास्त्री मानने के साथ-साथ अर्थशास्त्री भी माना जाता है?
उत्तर:
कार्लमार्क्स, मैक्स वेबर, परेटो आदि।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उन घटनाओं का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए जिनके कारण समाजशास्त्र का उद्भव हुआ?
उत्तर:
निम्नलिखित चार महत्वपूर्ण घटनाएँ समाजशास्त्र के उद्भव का कारण बनीं

  • यूरोप की वाणिज्यिक क्रान्ति :
    यूरोप में हुई इस क्रान्ति का समय सन् 1450 से लेकर 1800 के बीच है। इस क्रान्ति के तहत यूरोपीय देशों के बीच एशिया के देशों से व्यापार बढ़ाने की होड़ शुरू हो गई जिससे कालान्तर में मध्यम वर्ग का उदय हुआ।
  • यूरोप में पुनर्जागरण :
    इससे तार्किकता का विकास हुआ, जिसके कारण वैज्ञानिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ।
  • फ्रांसीसी क्रान्ति :
    सन् 1789 में हुई इस क्रान्ति के कारण लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुए। स्वतन्त्रता, समानता एवं बन्धुत्व जैसी संकल्पनाओं का उद्भव हुआ।
  • औद्योगिक क्रान्ति :
    इसके कारण उत्पादन क्रियाओं का मशीनीकरण हो गया, जिसके कारण औद्योगिक श्रमिकों के रूप में नए वर्ग का उदय हुआ और नए-नए शहरों का विकास होने लगा।

प्रश्न 2.
भारत में समाजशास्त्र के उद्भव की प्रक्रिया को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में समाजशास्त्र का उद्भव बहुत समय बाद हुआ। जिस समय भारत में समाजशास्त्र का उद्भव हुआ उस समय भारत इंग्लैण्ड का उपनिवेश था। अतः शुरुआती समाजशास्त्रीय अध्ययन अधिकांशतः यूरोपीय विद्वानों द्वारा ही किए गए। अपने देश में समाजशास्त्र की वास्तविक शुरुआत बम्बई विश्व-विद्यालय से मानी जाती है। यहाँ सन् 1919 में पेट्रिक गेडिस की अध्यक्षता में समाजशास्त्र विभाग की शुरुआत हुई। यह सिलसिला धीरे-धीरे आगे बढ़ा और देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र विषय की पढ़ाई प्रारम्भ हुई। इस क्रम में आदर्श स्थिति तब उत्पन्न हुई जब 1952 ई. में ‘इण्डियन सोशियोलाजिकल सोसाइटी’ की स्थापना की गई, जिससे देश के समस्त समाजशास्त्रियों को एक दूसरे से जुड़ने का आधार प्राप्त हुआ।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 3.
भारत के प्रमुख समाजशास्त्रियों का नामोल्लेख करते हुए इनके द्वारा किए गए कार्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
एस.सी.दूबे, एम.एन. श्रीनवास, ए.के सरन, डी.एन. मजूमदार, जी.एस. घुरिए, के. एम. कपाड़िया, पी. एच. प्रभु, ए.आर. देसाई, इरावर्ती कर्वे, राधाकमल मुखर्जी, योगेन्द्र सिंह आदि भारत के प्रमुख समाजशास्त्री हैं। इन समाजशास्त्रियों में एम.एन. श्रीनिवास द्वारा दी गई ‘संस्कृतिकरण’, ‘पश्चिमीकरण’ तथा ‘प्रभुत्व जाति’ की अवधारणा तथा राधाकमल मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत ‘सामाजिक मूल्य’ की अवधारणा वैश्विक स्तर पर स्वीकृति प्राप्त हैं। खेदजनक बात यह है कि इन दोनों समाजशास्त्रियों के अलावा अन्य भारतीय समाजशास्त्रियों द्वारा किसी उल्लेखनीय सिद्धान्त अथवा अवधारणा का विकास नहीं हुआ है।

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र को विज्ञान मानने का कारण प्रस्तुत करते हुए प्राकृतिक विज्ञानों से इसकी भिन्नता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र को विज्ञान मानने का कारण यह है कि इसकी प्रकृति विज्ञान की तरह वैज्ञानिक है। विज्ञान की तरह इसमें भी वस्तुनिष्ठता, सत्यापनीयता, निश्चितता, कार्य-कारण सम्बन्ध, सामान्यीकरण, पूर्वानुमान, आनुभाविकता एवं सार्वभौमिकता जैसी वस्तुस्थितियाँ पायी जाती हैं। इन सबके बावजूद समाजशास्त्र में सत्यापनीयता व पूर्वानुमान लगाना प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में अधिक कठिन होता है। इसी प्रकार समाजशास्त्र के द्वारा वस्तुस्थितियों का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना भी प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में अधिक कठिन है क्योंकि समाजशास्त्र समाज विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं और समाज विज्ञान की अपनी कुछ सीमाएँ होती हैं।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के कितने हिस्से होते हैं? प्रत्येक को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के निम्नलिखित दो हिस्से होते हैं :

  • प्रथम पक्ष :
    इसके अन्तर्गत हम व्यक्तियों के बीच बनने वाले सम्बन्धों, उनके बनने की प्रक्रिया तथा प्रभाव का अध्ययन करते हैं।
  • द्वितीय पक्ष :
    इसमें हम किसी घटना अथवा अध्यययनवस्तु का हमारी सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक सम्बन्धों, प्रस्थिति एवं भूमिका, सामाजिक मूल्यों, मानदण्ड एवं सामाजिक व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक सम्प्रदाय का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय समाजशास्त्र को एक विशिष्ट एवं शुद्ध विज्ञान मानता है। इस सम्प्रदाम का यह मानना है कि जिस तरह राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, भौतिकशास्त्र की अध्ययन सामग्री होती है ठीक उसी तरह समाजशास्त्र की भी अपनी अध्ययन सामग्री होनी चाहिए, जिसका अध्ययन केवल समाजशास्त्र ही करे। यह सम्प्रदाय वस्तु अथवा घटना की अन्तर्वस्तु के बजाय उसके स्वरूप के अध्ययन को प्राथमिकता देता है। इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक जार्ज सिमेल एवं एफ. टॉनीज हैं। इस सम्प्रदाय के समर्थक विद्वानों में वीरकान्त, वॉन वीज एवं मैक्स वेबर सम्मिलित किए जाते हैं।

प्रश्न 7.
स्वरूपात्मक सम्प्रदाय की प्रमुख कमियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वरूपात्मकं सम्प्रदाय की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं :

  1. यह सम्प्रदाय घटना की अन्तर्वस्तु के स्थान पर उसके स्वरूप के अध्ययन पर अधिक बल देता है, जबकि सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूप एवं अन्तर्वस्तु में भेद करना अत्यन्त कठिन है।
  2. सामाजिक सम्बन्धों की अन्तर्वस्तु तथा स्वरूप एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं।
  3. समाजशास्त्र को अन्य विज्ञानों से पृथक एवं स्वतन्त्र तथा शुद्ध विज्ञान बनाना सम्भव ही नहीं है क्योंकि सभी समाज विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
  4. अर्थशास्त्र और कानूनशास्त्र सहित अन्य अनेक विषय भी सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूपों, समझौता, संघर्ष, शोषण, श्रम-विभाजन इत्यादि का अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र के समन्वयात्मक सम्प्रदाय के बारे में आप क्या जानते हैं? समझाइए।
उत्तर:
समन्वयात्मक सम्प्रदाय की विचारधारा स्वरुपात्मक सम्प्रदाय के विरुद्ध है। इस सम्प्रदाय के विचारकों का मानना है कि समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है तथा इसका अध्ययन क्षेत्र सम्पूर्ण समाज है। इनके अनुसार समाज किसी प्राणी के शरीर के समान है जिसके सभी अंग एक-दूसरे से जुड़े होने के कारण प्रभावित होते हैं। अतः इन अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों को समझना बहुत ही आवश्यक है। अतः समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान के रूप में समग्र अध्ययन करना चाहिए। समन्वयात्मक सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थक इमाईल दुर्थीम, सोरोकिन, जिन्सबर्ग, हाबहाऊस आदि प्रतिष्ठित समाजशास्त्री हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 9.
समन्वयात्मक सम्प्रदाय की प्रमुख कमियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समन्वयात्मक सम्प्रदाय की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं :

  1. समाजशास्त्र को सामान्य विज्ञान मानना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसी दशा में यह अन्य समाज विज्ञानों की खिचड़ी मात्र बनकर रह जाएगा।
  2. समाजशास्त्र अन्य समाज विज्ञानों पर पूर्णतः आश्रित हो जाएगा। परिणामस्वरूप इसका कोई स्वतन्त्र विषय क्षेत्र नहीं बचेगा।
  3. अन्य समाजविज्ञानों पर पूर्णतः आश्रित होने के कारण समाजशास्त्र की अपनी कोई पद्धति विकसित नहीं हो पाएगी।

प्रश्न 10.
क्या समाजशास्त्र के सम्बन्ध में स्वरूपात्मक एवं समन्वयात्मक सम्प्रदाय के मत सही हैं? समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के सम्बन्ध में स्वरूपात्मक सम्प्रदाय एवं समन्वयात्मक सम्प्रदाय-इन दोनों सम्प्रदायों के विचार एकाकी हैं। समाजशास्त्र न तो पूर्णतया विशिष्ट विज्ञान है और न पूरी तरह सामान्य विज्ञान। समाजशास्त्र अध्ययन की आवश्यकता के अनुरूप सामान्य तथा विशिष्ट दोनों प्रकार के दृष्टिकोण अपनाता है। अतः हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र के सम्बन्ध में उक्त दोनों सम्प्रदायों के दृष्टिकोण पृथक-पृथक तो सही नहीं हैं। किन्तु दोनों का समन्वय करने पर इनके संयुक्त दृष्टिकोण समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के लिए सही हैं।

प्रश्न 11.
समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में सम्बन्धों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। मैक्स वेबर, परेटो, कार्ल मार्क्स जैसे प्रतिष्ठित विद्वानों को समाजशास्त्री एवं अर्थशास्त्री दोनों ही माना जाता है। वस्तुतः सामजिक घटनाएँ आर्थिक घटनाओं पर प्रभाव डालती हैं और आर्थिक घटनाएँ सामाजिक घटनाओं को प्रभावित करती हैं। कुछ नियम या वस्तुस्थितियाँ तो ऐसी हैं, जिनका अध्ययन दोनों ही शास्त्रों द्वारा किया जाता है; जैसे-औद्योगीकरण, नगरीकरण, श्रम विभाजन, बेरोजगारी एवं सामाजिक कल्याण आदि। सम्भवतः इसीलिए थामस महोदय का मानना है कि ‘अर्थशास्त्र समाजशास्त्र के विस्तृत विज्ञान की शाखा है।’

प्रश्न 12.
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में सम्बन्धों को समझाते हुए अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान एक दूसरे पर आश्रित हैं क्योंकि व्यक्ति के व्यवहार से सामाजिक परिस्थितियाँ प्रभावित होती हैं और सामाजिक परिस्थितियों से व्यक्ति का व्यवहार। समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान के एक दूसरे पर आश्रित होने के बावजूद दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अन्तर हैं, जो निम्नलिखित हैं :

  1. समाजशास्त्र व्यक्तियों के सामूहिक व्यवहार का अध्ययन करता है, जबकि मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यक्तिगत व्यवहार का अध्ययन करता है।
  2. समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र व्यापक है जबकि मनोविज्ञान का विषय क्षेत्र सीमित है।
  3. समाजशास्त्र का परिप्रेक्ष्य सामाजिक है जबकि मनोविज्ञान का परिप्रेक्ष्य वैयक्तिक है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में समाजशास्त्र का विकास किस प्रकार हुआ? आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में समाजशास्त्र का विकास :
पश्चिमी देशों में वाणिज्यिक क्रान्ति, पुनर्जागरण, फ्रांसीसी क्रान्ति एवं औद्योगिक क्रान्ति के कारण समाजशास्त्र का उद्भव हुआ किन्तु भारत में एक विषय के रूप में समाजशास्त्र का प्रारम्भ बहुत देर से हुआ। औपनिवेशिक भारत में प्रारम्भिक समाजशास्त्रीय अध्ययन अधिकांशतः यूरोपीय विद्वानों द्वारा ही किए गए। भारत में समाजशास्त्र की वास्तविक शुरुआत बम्बई विश्वविद्यालय से मानी जाती है। यहाँ सन् 1919 ई. में पैट्रिक गेडिस की अध्यक्षता में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गई। यद्यपि एक ऐच्छिक विषय के रूप में यहाँ समाजशास्त्र सन् 1914 से ही पढ़ाया जाने लगा था। सन् 1917 में ऐच्छिक विषय के रूप में कलकत्ता विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की शुरुआत हुई। 1923 ई. में आन्ध्र व मैसूर विश्वविद्यालयों में इसकी शुरुआत हो गई।

1952 ई. में ‘इण्डियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी’ की स्थापना हुई। इससे सभी समाजशास्त्रियों को एक दूसरे से जुड़ने का मंच प्राप्त हुआ। महत्वपूर्ण बात यह रही कि स्वतन्त्रता से पहले भारत में समाजशास्त्र का उतना विकास नहीं हो पाया जितना कि होना चाहिए था।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के कुछ वर्ष बाद भारत में समाजशास्त्र का तीव्र गति से विकास हुआ। अनेक राज्यों के विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में इसे पढ़ाया जाने लगा। इस तरह समाजशास्त्र की लोकप्रियता बढ़ने लगी। कालान्तर में ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वर्क’ लखनऊ तथा ‘इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइन्स’ आगरा जैसे समाजशास्त्र विषयक अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना हुई, जहाँ समाजशास्त्रीय अनुसंधान कार्य होने लगे।

एस.सी. दूबे, एम.एन. श्रीनिवास, ए.के. सरन, डी.एन. मजुमदार, जी.एस. घुरिए, के.एम. कपाड़िया, पी.एच. प्रभु, ए.आर. देसाई, इरावती कर्वे, राधा कमल मुखर्जी, योगेन्द्र सिंह आदि जैसे समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में अपना विशिष्ट योगदान दिया।

एम.एन. श्रीनिवास द्वारा दी गई ‘संस्कृतिकरण’, ‘पश्चिमीकरण’, ‘प्रभुत्व जाति’ और राधाकमल मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत की गई ‘सामाजिक मूल्य’ की अवधारणा वैश्विक स्तर पर स्वीकार की गई। इसके बावजूद अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। समाजशास्त्र को केवल कक्षाओं में पढ़े जाने वाले विषय तक सीमित न रखकर इसमें प्रायोगिक एवं अनुसंधान कार्य को बढ़ावा देना होगा।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 2.
वैज्ञानिक प्रकृति के परिप्रेक्ष्य में समाजशास्त्र की प्रकृति की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
किसी भी विषय को वैज्ञानिक प्रकृति का होने के लिए उसमें निम्नलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक है :

  • वस्तुनिष्ठता :
    वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य अन्वेषणकर्ता द्वारा निष्पक्ष अध्ययन करने से है। अध्ययनकर्ता अपने विचारों, मनोवृत्तियों एवं पूर्व धारणाओं को अध्ययन में सम्मिलित नहीं करके तथ्यों के आधार पर अध्ययन करता है।
  • सत्यापनीय :
    विज्ञान में संकलित ज्ञान एवं तथ्यों पर सन्देह होने पर उन तथ्यों का प्रयोग द्वारा सत्यापन किया जा सकता है।
  • निश्चितता :
    वैज्ञानिक ज्ञान वैज्ञानिक प्रणाली के आधार पर ही प्राप्त किया जा सकता है। इसके निश्चित चरण होते हैं।
  • कार्य-कारण सम्बन्ध :
    विज्ञान कार्य-कारण सम्बन्धों को जानने का प्रयत्न करता है अर्थात् घटनाओं के पीछे छिपे कारणों को जानने की भरसक कोशिश करता है।
  • सामान्यीकरण :
    विज्ञान में अध्ययन के द्वारा प्राप्त तथ्यों के आधार पर किसी सामान्य एवं सार्वकालिक नियम को ज्ञात किया जाता है।
  • पूर्वानुमान :
    विज्ञान में तथ्यों के अध्ययन एवं विश्लेषण के आधार पर घटनाओं के भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जाता है।
  • आनुभाविकता :
    विज्ञान में अन्वेषणकर्ता या अध्ययनकर्ता इन्द्रियों की मदद से तथ्यों को एकत्र करता है एवं उनका अवलोकन करता है अर्थात् यह ज्ञान कल्पना पर आधारित नहीं होता है।
  • सार्वभौमिकता :
    वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर बनाए गये नियम सार्वकालिक होते हैं अर्थात् यह नियम अथवा सिद्धान्त समय व स्थान के साथ बदलते नहीं हैं।

उपरोक्त बिन्दु समाजशास्त्र में भी पाए जाते हैं। इसीलिए समाजशास्त्र के जनक अगस्त कॉम्ट के साथ-साथ इमाईल दुर्थीम, मैक्स वेबर आदि विद्वानों ने समाजशास्त्र को शुरू से ही विज्ञान माना है। परन्तु इस बात को समझना अत्यन्त आवश्यक है कि समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। इस कारण इसकी अपनी कुछ सीमाएँ हैं। प्राकृतिक विज्ञानों की विषय सामग्री विवेकशील नहीं होती जबकि समाजशास्त्र की विषय सामग्री मनुष्य होते हैं जो स्वयं के व्यवहार में परिवर्तन ला सकते हैं।

अतः समाजशास्त्र में सत्यापनीयता व पूर्वानुमान लगाना प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में कठिन कार्य होता है। इसी तरह समाजशास्त्री जब अपने जैसे दूसरे मनुष्यों का अध्ययन करता है तो उसके मन में पूर्वधारणा हो सकती है जो उसके अध्ययन को प्रभावित कर सकती है। ऐसी दशा में समाजशास्त्र के लिए अपनी विषयवस्तु का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में अधिक कठिन कार्य होता है। इन सबका कारण यह है कि समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं।

प्रश्न 3.
जार्ज सिमेल, वीरकान्त एवं मैक्स वेबर किस सम्प्रदाय के अन्तर्गत आते हैं। समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र के सम्बन्ध में इनके विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
जार्ज सिमेल, वीरकान्त एवं मैक्स वेबर स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के अन्तर्गत आते हैं। यह सम्प्रदाय समाजशास्त्र को एक विशिष्ट विज्ञान मानता है। यह सम्प्रदाय घटना की अन्तर्वस्तु के स्थान पर उसके स्वरूप के अध्ययन पर जोर देता है। इस सम्प्रदाय के विचारकों के अनुसार अन्य सामाजिक विज्ञानों की तरह ही समाजशास्त्र की अपनी विषय सामग्री होनी चाहिए। जिसका अध्ययन केवल समाजशास्त्र ही करे।

इस सन्दर्भ में उपरोक्त समाजशास्त्रियों के विचार क्रमशः निम्नलिखित हैं :
i. जार्ज सिमेल के विचार :
इस समाजशास्त्री के अनुसार प्रत्येक वस्तु का एक स्वरूप एवं एक अन्तर्वस्तु होती है जो एक दूसरे से पृथक होती हैं। अन्तर्वस्तु और स्वरूप का एक दूसरे पर कोई असर नहीं पड़ता है; जैसे-खाली गिलास या बोतल को स्वरूप मान सकते हैं तथा उसमें भरे जाने वाले पदार्थ को अन्तर्वस्तु मान लें तो अन्तर्वस्तु कोई भी हो उसका गिलास के स्वरूप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। सिमेल के अनुसार सामाजिक सम्बन्धों को भी स्वरूप एवं अन्तर्वस्तु के आधार पर पृथक किया जा सकता है। समाजशास्त्र में हमें केवल सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूपों (सहयोग, संघर्ष, प्रतिस्पर्धा आदि) का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि अन्तर्वस्तु का अध्ययन अन्य विज्ञान भी कर रहे

ii. वीरकान्त के विचार :
ये समाजशास्त्र को विशिष्ट विज्ञान मानते हैं। इनका मानना है कि समाजशास्त्र में मानसिक सम्बन्धों के स्वरूपों का अध्ययन होना चाहिए। से स्वरूप ही व्यक्तियों को एक दूसरे से बाँधते हैं। वीरकान्त के अनुसार प्रेम, सम्मान लज्जा, सहयोग, संघर्ष, स्नेह, यश इत्यादि मानसिक सम्बन्धों से ही सामाजिक सम्बन्ध विकसित होते हैं।

iii. मैक्स वेबर के विचार :
ये भी समाजशास्त्र को एक विशिष्ट विज्ञान मानते थे। इनका मानना था कि समाजशास्त्र में केवल सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए। हर एक क्रिया सामाजिक क्रिया नहीं होती है बल्कि वही क्रियाएँ सामाजिक होती हैं जिसमें क्रिया को करने वाले व्यक्ति अथवा व्यक्तियों द्वारा लगाए गये व्यक्तिनिष्ठ अर्थ के अनुसार यह क्रिया दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार द्वारा प्रभावित हो और उसी के अनुसार उसकी गतिविधि निर्धारित हो। इस प्रकार वेबर के अनुसार समाजशास्त्र में सामाजिक क्रियाओं का ही अध्ययन होना चाहिये।

प्रश्न 4.
समन्वयात्मक सम्प्रदाय की मान्यता को स्पष्ट करते हुए इमाईल दुर्थीम और सोरोकिन के विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
समन्वयात्मक सम्प्रदाय की मान्यता–समन्वयात्मक सम्प्रदाय यह मानता है कि समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है तथा इसका अध्ययन क्षेत्र सम्पूर्ण समाज है। इस सम्प्रदाय के अनुसार समाज जीवधारियों के शरीर के समान है जिनके समस्त अंग एक-दूसरे से जुड़े होने के कारण एक दूसरे से प्रभावित होते हैं। अतः इन अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों को समझना आवश्यक है। इसलिए समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान के रूप में समग्र अध्ययन करना चाहिए।

इस सम्प्रदाय से सम्बद्ध दो प्रमुख समाजशास्त्रियों के विचार निम्नलिखित हैं :
(क) इमाईल दुर्थीम के विचार :
फ्रांस के समाजशास्त्री इमाईल दुर्थीम के मतानुसार पहले समाजशास्त्र को एक विशिष्ट विज्ञान बनाकर अन्य विज्ञानों की तरह अपने स्वतन्त्र नियमों का विकास करना चाहिए फिर सामान्य विज्ञान के रूप में अन्य समाज विज्ञानों से समन्वय स्थापित करना चाहिए। दुर्थीम के मतानुसार, हमारा विश्वास है कि समाजशास्त्रियों को विशिष्ट विज्ञानों, जैसे-कानून, इतिहास, धर्म, सामाजिक, अर्थशास्त्र आदि में किये गये अन्वेषण से नियमित रूप से परिचित रहने की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि इनसे उपलब्ध सामग्रियों से ही समाजशास्त्र का निर्माण होता है। दुर्थीम के अनुसार समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु सामाजिक तथ्य हैं।

(ख) सोरोकिन के विचार :
समाजशास्त्री सोरोकिन समाजशास्त्र को समान्य विज्ञान मानते थे। इनके मतानुसार प्रत्येक सामाजिक विज्ञान विशिष्ट प्रकार की घटनाओं का अध्ययन करता है और ये घटनाएँ एक-दूसरे से सम्बद्ध रहती हैं। अतः समाजशास्त्र को इन सभी घटनाओं में जो सामान्य है उसका अध्ययन करना चाहिए। एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है :
आर्थिक – ABCDEF
राजनीतिक – ABCDGHI
धार्मिक – ABCIKL
वैधानिक – ABCMNO
मनोरंजनात्मक – ABCPQR

उपर्युक्त स्थिति से पता चलता है कि सभी विद्वानों के अध्ययन क्षेत्र में (ABC) आते हैं किन्तु वे उसका विशेष अध्ययन नहीं करते हैं। अर्थशास्त्र (DEF) का राजनीतिशास्त्र (GHI) का और अन्य समाज विज्ञान इसी प्रकार अपने-अपने अध्ययन क्षेत्र का अध्ययन करते हैं किन्तु इन सभी में जो सामान्य तथ्य (ABC) है। समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 1 समाजशास्त्र का परिचय

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर सारगर्भित टिप्पणी लिखिए(क) समाजशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान में सम्बन्ध एवं अन्तर (ख) समाजशास्त्र तथा इतिहास में सम्बन्ध और अन्तर
उत्तर:
(क) समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान में सम्बन्ध :
इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि सामाजिक व राजनीतिक घटनाएँ एक दूसरे को प्रभावित करती हैं। व्यक्ति का सामाजिक व्यवहार राजनीतिक घटनाओं से और राजनीतिक व्यवहार सामाजिक घटनाओं से प्रभावित होता है। ऐसी दशा में समाजशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।

अन्तर :
यद्यपि समाजशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। तथापि इनमें मूलभूत अन्तर भी हैं, जो निम्नलिखित हैं :

  1. समाजशास्त्र का सन्दर्भ व्यापक है जबकि राजनीति विज्ञान का सन्दर्भ (परिप्रेक्ष्य) सीमित है।
  2. समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान एक विशिष्ट विज्ञान है।
  3. समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं के एक हिस्से के रूप में राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन भी करता है जबकि राजनीति विज्ञान विशेष रूप से राजनीतिक घटनाओं का ही अध्ययन करता है।

(ख) समाजशास्त्र तथा इतिहास में सम्बन्ध :
समाजशास्त्र एवं इतिहास में कितना घनिष्ठ सम्बन्ध है, यह बात प्रसिद्ध विद्वान जार्ज. ई. होबार्ट के कथन से स्पष्ट होती है। होबार्ट महोदय के अनुसार, “इतिहास भूतकालीन समाजशास्त्र है और समाजशास्त्र वर्तमान का इतिहास।” इस कथन से दोनों विषयों की घनिष्ठता स्वयमेव सिद्ध हो जाती है।

अन्तर :
यद्यपि समाजशास्त्र और इतिहास एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं तथापि इनमें कुछ मूल-भूत अन्तर भी हैं, जो निम्नलिखित हैं :

  1. इतिहास के अध्ययन का विषय महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं जबकि समाजशास्त्र में वस्तुस्थितियों को अच्छी तरह समझने के लिए सामान्य घटनाओं का भी अध्ययन किया जाता है।
  2. समाजशास्त्र में घटनाओं का विश्लेषण किया जाता है जबकि इतिहास में घटनाओं का विवरण होता है।
  3. समाजशास्त्र में सभी प्रकार की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि इतिहास में भूतकाल की घटनाओं का ही अध्ययन किया जाता है।
  4. समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है जबकि इतिहास एक विशिष्ट विज्ञान है।

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