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RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

August 26, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर  

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मुम्बई विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रथम प्रोफेसर कौन थे?
(अ) जी.एस.घुर्ये
(ब) पैट्रिस गिडीज
(स) एम. एन. श्रीनिवास
(द) ए. आर. देसाई।
उत्तर:
(ब) पैट्रिस गिडीज

प्रश्न 2.
घुर्ये कब मुम्बई विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने?
(अ) 1920
(ब) 1922
(स) 1924
(द) 1934
उत्तर:
(द) 1934

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 3.
घुर्ये ने जाति की कितनी विशेषताएँ बतलाईं?
(अ) 4
(ब) 6
(स) 8
(द) 10
उत्तर:
(ब) 6

प्रश्न 4.
डी.पी. मुकर्जी ने किसे समाज शास्त्र की विषयवस्तु माना है?
(अ) परम्परा
(ब) द्वन्द्व
(स) संस्कृति
(द) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
(अ) परम्परा

प्रश्न 5.
मुकर्जी ने परम्पराओं को समझने के लिए कौन-सी पद्धति का प्रयोग किया?
(अ) प्रकार्यात्मक
(ब) संरचनात्मक
(स) मार्क्सवादी द्वन्द्वात्मक
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) मार्क्सवादी द्वन्द्वात्मक

प्रश्न 6.
परम्परा का तात्पर्य है
(अ) संस्कृति का हस्तान्तरण
(ब) भौतिक वस्तुओं का हस्तान्तरण
(स) व्यापार का हस्तान्तरण
(द) कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) संस्कृति का हस्तान्तरण

प्रश्न 7.
ए. आर. देसाई ने किस समाजशास्त्री के सानिध्य में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की?
(अ) गिडिज
(ब) घुर्ये
(स) आर. के. मुकर्जी
(द) डी. पी. मुकर्जी।
उत्तर:
(द) डी. पी. मुकर्जी।

प्रश्न 8.
देसाई ने राज्य को क्या माना?
(अ) वर्ग
(ब) सरकार
(स) संस्था
(द) राजनीतिक दल।
उत्तर:
(अ) वर्ग

प्रश्न 9.
देसाई के अनुसार राज्य किसका हितेषी है ?
(अ) कृषक वर्ग
(ब) श्रमिक वर्ग
(स) दलित वर्ग
(द) पूँजीपति वर्ग।
उत्तर:
(द) पूँजीपति वर्ग।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 10.
एम. एन. श्रीनिवास ने किस विषय पर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की?
(अ) रामपुरा गाँव
(ब) दक्षिण भारत के ब्राह्मण
(स) दक्षिण भारत के कुर्ग
(द) दक्षिण भारत के दलित।
उत्तर:
(स) दक्षिण भारत के कुर्ग

प्रश्न 11.
श्रीनिवास ने पुस्तक रिमेम्बर्ड विलेज कैसे लिखी।
(अ) तथ्यों के आधार पर
(ब) पाठीय परिप्रेक्ष्य पर
(स) क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य पर
(द) स्मरण शक्ति के आधार पर।
उत्तर:
(द) स्मरण शक्ति के आधार पर।

प्रश्न 12.
श्रीनिवास ने अपने गाँव के अध्ययन में किस कारण से जाति व्यवस्था में जातियाँ एक दूसरे पर निर्भर रहती हैं? बताया।
(अ) जजमानी व्यवस्था
(ब) जातीय संघर्ष
(स) आपसी सहयोग
(द) कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) जजमानी व्यवस्था

प्रश्न 13.
लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की स्थापना किसने की थी?
(अ) डी.पी. मुकर्जी
(ब) आर.के. मुकर्जी
(स) एम.एन. श्रीनिवास
(द) ए.आर. देसाई।
उत्तर:
(ब) आर.के. मुकर्जी

प्रश्न 14.
आर. के मुकर्जी ने किसे समाजशास्त्र की विषय वस्तु माना?
(अ) परम्परा
(ब) गाँव
(स) जाति
(द) मूल्य।
उत्तर:
(द) मूल्य।

प्रश्न 15.
भारत में मूल्यों का समाजशास्त्र के जनक कहे जाते हैं?
(अ) आर.के. मुकर्जी
(ब) डी.पी. मुकर्जी
(स) एम.एन. श्रीनिवास
(द) जी.एस. घुर्ये।
उत्तर:
(अ) आर.के. मुकर्जी

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जाति का अध्ययन जी.एस. घुर्ये ने कौनसी पुस्तक में किया?
उत्तर:
जाति का अध्ययन जी.एस. घुर्ये ने अपनी पुस्तक ‘कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया’ में किया।

प्रश्न 2.
जाति एक अन्तर्विवाही समूह है। सही/गलत
उत्तर:
सही।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 3.
किस समाजशास्त्री के प्रजाति के विचार से घुर्ये प्रभावित हुए?
उत्तर:
रिजले के प्रजाति की अवधारणा के विचार से घुर्ये प्रभावित हुए।

प्रश्न 4.
डी.पी. मुकर्जी ने भारतीय समाज का विश्लेषण किस परिप्रेक्ष्य से किया?
उत्तर:
डी.पी. मुकर्जी ने श्रुति और अनुभव से भारतीय समाज का विश्लेषण किया, जिसमें वाद-विवाद तथा बुद्धि विचार के कारण परिवर्तन होता है।

प्रश्न 5.
डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परम्पराओं में परिवर्तन किस आधार पर होता है?
उत्तर:
डी.पी. मुकर्जी के अनुसार श्रुति, स्मृति और अनुभव के आधार पर परम्पराओं में परिवर्तन होता है।

प्रश्न 6.
किन आधारों पर डी. पी. मुकर्जी ने भारतीय समाज में परम्पराओं में परिवर्तन को दर्शाया है?
उत्तर:
डी.पी. मुकर्जी ने श्रुति, स्मृति और अनुभव के आधार पर भारतीय समाज के परम्पराओं में होने वाले परिवर्तन को दर्शाया है।

प्रश्न 7.
आई.सी.एस.एस.आर (ICSSR) का पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस एण्ड रिसर्च।

प्रश्न 8.
ए.आर. देसाई की प्रथम पुस्तक का नाम बताइए?
उत्तर:
सोशल बैकग्राउण्ड ऑफ इंडियन नेशनलिज्म-1946।

प्रश्न 9.
देसाई के अनुसार भारत में पूंजीवाद कब विकसित हुआ।
उत्तर:
देसाई के अनुसार भारत में पूँजीवाद ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान विकसित हुआ।

प्रश्न 10.
एम. एन. श्रीनिवास को किसने रामपुरा गाँव पर पुस्तक स्मरण के आधार पर लिखने के लिए प्रोत्साहिन किया?
उत्तर:
एम.एन. श्रीनिवास के मित्र सोलटोक्स ने रामपुरा गाँव पर पुस्तक स्मरण के आधार पर लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 11.
रामपुरा गाँव के व्यक्तियों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
उत्तर:
रामपुरा गाँव के व्यक्तियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 12.
एम. एन. श्रीनिवास ने किसे भारतीय समाज का केन्द्रीय तत्व माना?
उत्तर:
एम. एन. श्रीनिवास ने गाँव को भारतीय समाज का केन्द्रीय तत्व माना।

प्रश्न 13.
आर. के. मुकर्जी ने किस विश्वविद्यालय में लम्बे समय अपनी सेवाएँ दीं?
उत्तर:
आर. के. मुकर्जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय में लम्बे समय तक अपनी सेवाएँ दीं?

प्रश्न 14.
आर. के. मुकर्जी की सामाजिक मूल्यों पर प्रमुख पुस्तक कौन सी है?
उत्तर:
आर.के. मुकर्जी की सामाजिक मूल्यों पर प्रमुख पुस्तक The structure of social values तथा Dimensions of human values है?

प्रश्न 15.
आर.के. मुकर्जी के अनुसार किस सामाजिक संगठन में सामाजिक मूल्यों का अभाव पाया जाता है?
उत्तर:
आर.के. मुकर्जी ने ‘भीड़’ में सामाजिक मूल्यों का अभाव माना है?

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
घुर्ये ने जाति को कैसे परिभाषित किया?
उत्तर:
जाति को अंग्रेजी में कास्ट कहते हैं। अंग्रेजी के कास्ट (cast) शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के कास्टा (casta) से हुई मानी जाती है। जिसका अर्थ जाति तथा मत विभेद से लिया गया है। घुर्य ने जाति व्यवस्था को अन्तर्विवाही समूह के रूप में माना है। जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी ही जाति के अन्दर विवाह करता

प्रश्न 2.
घुर्ये द्वारा दी गई जाति की विशेषताओं को बताइए?
उत्तर:
जाति की विशेषताएँ घूर्ये ने जाति की प्रमुख छः विशेषताओं का वर्णन किया है जो निम्नलिखित हैं

  • समाज का खण्डात्मक विभाजन :
    घुर्ये के अनुसार जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज को खण्डों में विभाजित किया है। प्रत्येक खण्ड के सदस्यों के पद, स्थिति और कार्य पूर्व निश्चित हैं। समाज अनेक जाति-खण्डों में और जातियाँ विभिन्न उपखण्डों में बँटी होती हैं। जैसे-भारत में वर्णव्यवस्था।
  • संस्तरण :
    जाति व्यवस्था में ऊँच-नीच का. संस्तरण पाया जाता है। जाति जन्म पर आधारित है।
  • भोजन तथा सामाजिक सहवास पर प्रतिबन्ध :
    जाति व्यवस्था में भोजन एवं व्यवहार के सम्बन्ध में अनेक निषेध पाये जाते हैं। जातियों के खानपान के कुछ नियम हैं।
  • नागरिक एवं धार्मिक निर्योग्यताएँ एवं विशेषाधिकार :
    जाति व्यवस्था में उच्च और निम्न का संस्तरण पाया जाता है। धार्मिक निर्योग्यता पायी जाती है।
  • निश्चित व्यवसाय :
    प्रत्येक जाति का एक निश्चित व्यवसाय निर्धारित है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होता है।
  • विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्ध :
    जाति एक अन्तर्विवाही समूह है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही जाति में विवाह कर सकता है। जाति के बाहर विवाह नहीं कर सकता।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 3.
घुर्ये ने प्रजाति को किस रूप में समझाया है?
उत्तर:
घुर्ये ने अपनी पुस्तक कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया में प्रजाति एवं जाति के बारे में बताया है। उन्होंने प्राचीन विद्वानों द्वारा प्रस्तुत उनके अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर बताया कि इण्डो आर्यन प्रजाति 2500 ईसा पूर्व भारत में आई थी। इस प्रजाति का धर्म वैदिक धर्म था। इस प्रजाति के लोग मुख्य रूप से ब्राह्मण थे, जो गंगा नदी के मैदानी भागों में रहकर अपनी संस्कृति को विकसित किया। आगे चलकर यही संस्कृति हिन्दू संस्कृति के रूप में विकसित हुई। वह रिजले के विचार से सहमत नहीं थे।

प्रश्न 4.
डी. पी. मुकर्जी के परम्पराओं के परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। .
उत्तर:
डी. पी. मुकर्जी ने परम्पराओं के परिवर्तन के तीन सिद्धान्त बताए हैं-श्रुति, स्मृति और अनुभव। उच्च परम्पराएँ बौद्धिक रूप में थीं, जो श्रुतियों एवं स्मृतियों पर निर्भर थीं, जिनमें तर्क, वाद-विवाद तथा बुद्धि विचार से परिवर्तन होता है। ये परम्पराएँ बौद्धिकता के आधार पर थीं। व्यक्तिगत अनुभव के कारण परिवर्तन होता है। मध्य युग का पूरा इतिहास अनुभव पर आधारित है। विभिन्न सम्प्रदायों और धार्मिक ग्रन्थों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण संतों के अपने व्यक्तिगत अनुभव थे।

प्रश्न 5.
मुकर्जी के अनुसार परम्पराओं मेंन्द्र कैसे होता है?
उत्तर:
डी.पी. मुकर्जी द्वन्द्वात्मक उपागम के पक्षधर थे। किसी समाज का विकास द्वन्द्वात्मक क्रिया के कारण होता है। दो विरोधी शक्तियाँ प्रत्येक समाज में पाया जाती हैं। इन शक्तियों में परस्पर संघर्ष के कारण इसका अंत नये समाज के रूप में होता है। मार्क्स इसको वाद विवाद संवाद का रूप बताते हैं। वाद के कारण किसी विषय की शुरुआत होती है, जो विरोधी विचारों को जन्म देती है। दूसरी और एक शक्ति इसके विपरीत होती है, जिसे प्रतिवाद कहा जाता है, इनमें संघर्ष होता है। इस संघर्ष के कारण नई स्थिति का जन्म होता है। इसे संवाद कहते हैं। संवाद एवं वाद के कारण प्रतिवाद उत्पन्न होता है। वाद-प्रतिवाद में संघर्ष और पुनः समन्वय पाया जाता हैं। इस प्रक्रिया से समाज का विकास होता है।

प्रश्न 6.
क्यों मुकर्जी ने परम्पराओं को भारतीय समाजशास्त्र की विषयवस्तु माना है?
उत्तर:
मुखर्जी ने 1955 में भारतीय देहरादून अधिवेशन के अपने अध्यक्षीय भाषण में भारतीय परम्परा एवं सामाजिक परिवर्तन विषय पर विचार व्यक्त किये और माना कि प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य उन सामाजिक परम्पराओं का अध्ययन करने से जुड़ा है, जहाँ उसने जन्म लिया है और जीवन व्यतीत किया है। परम्पराएँ जीवित रहती हैं। मुकर्जी का मानना है कि भारतीय समाजशास्त्रियों के लिए समाजशास्त्री होने के साथ पहले उसे एक भारतीय होना चाहिए। समाजव्यवस्था को जानने के लिए जनरीतियों, रूढ़ियों एवं प्रथाओं का ज्ञान आवश्यक है। भारत की जाति व्यवस्था का अध्ययन जरूरी है तथा भारतीय भाषाओं की जानकारी होना जरूरी है।

प्रश्न 7.
राज्य क्या है?
उत्तर:
राज्य का एक निश्चित क्षेत्र होता है। राज्य में जनसंख्या निवास करती है। वह एक इकाई के रूप में कार्य करता है। राज्य के अपने नियम एवं कानून होते हैं। ए. आर. देसाई ने अपनी पुस्तक में भारतीय समाज व राज्य के विषय में लिखा है। ए. आर. देसाई के अनुसार राज्य पूँजीवादी ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कारण बने हैं। आधुनिक राज्य पूँजीवादी राज्य हैं, जो सर्वहारा समाज का शोषण करने के साथ पूँजीपतियों के हितों की रक्षा करते हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 8.
क्या राज्य एक वर्ग है?
उत्तर:
देसाई मानते हैं कि राज्य पूँजीवादी वर्ग की तरह एक वर्ग है। आजादी के बाद राज्य एक पूँजीपति वर्ग के समान कार्य कर रहा है, वह पूँजीपतियों का साथी और एक वर्ग की प्रकृति की तरह कार्य करता है। वर्ग सामंत, पूँजीवादी एवं समाजवादी के रूप में दिखाई देता है। यह स्थिति ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कारण ही है। भारत की उत्पादन प्रक्रिया में राज्य का अधिक हिस्सा होता है। राज्य पूँजीवाद को लेकर अपनी एक निजी नीति बनाते हैं।

प्रश्न 9.
रजनी कोठारी ने किन आधारों पर ए. आर. देसाई के राज्य की अवधारणा की आलोचना की है?
उत्तर:
रजनी कोठारी एक उदारवादी विद्वान थे और वे मार्क्सवाद से सहमत नहीं थे। उनका विचार है कि भारतीय राज्य एक पूंजीवादी राज्य नहीं है किन्तु राज्य पूँजीवाद के विकास में बड़ी भूमिका निभाता है। राज्य और पूँजीवाद का हमेशा विरोधी सम्बन्ध रहा है। देसाई की मान्यता के विपरीत कोठारी ने बातया कि पहले राज्य पूँजीवाद की पकड़ से दूर थे, राज्य का प्रमुख लक्ष्य समाज में समानता लाना था।

कोठारी ने स्पष्ट किया कि राज्य की स्थिति आपातकाल के बाद बदल गयी है। पूँजीपति वर्ग का विस्तार हुआ है और राज्य अब हाशिये पर आ चुके हैं। भारत में राज्य पूँजीवादी प्रकृति के हैं। कोठारी ने देसाई के राज्य की अवधारणा की आलोचना की है।

प्रश्न 10.
गाँव को एम. एन श्रीनिवास ने कैसे परिभाषित किया?
उत्तर:
गाँव श्रीनिवास के अध्ययन का प्रमुख केन्द्र बिन्दु था। भारतीय गाँव के अध्ययन की उनको ब्राउन से प्रेरणा मिली। श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक रिमेम्बर्ड विलेज में कर्नाटक के रामपुरा गाँव का वर्णन किया है। एम. एन. श्रीनिवास ने गाँव का चयन भावनात्मक रूप से किया और गाँव के किसानों की आर्थिक स्थिति के बारे वर्णन किया है। उन्होंने गाँव की सामाजिक संरचना को भी बताया है और बताया कि गाँव के लोगों की जीविका का मुख्य साध न कृषि है। गाँव में पुरुष घर के बाहर कार्य करते हैं तथा महिला घर के अन्दर कार्य करती है। उन्होंने जाति व्यवस्था परिवर्तन और स्तरीकरण के बारे में बताया है। श्रीनिवास ने गाँव को भारतीय समाज की एक प्रमुख इकाई माना है। आज गाँव में परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 11.
गाँव की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
गाँव की प्रमुख विशेषताएँ :

  1. गाँव में अधिकतर किसान, मजदूर लोग रहते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति खराब रहती है।
  2. गाँव में सभी सुविधाओं का होना आवश्यक नहीं है, वहाँ इन का अभाव पाया जाता है। गाँव में जजमानी व्यवस्था पायी जाती है।
  3. गाँव में अधिकतर लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। इसके साथ-साथ पशुपालन भी होता है।
  4. गाँव में पुरुष घर के बाहर के कार्य करते हैं जबकि स्त्रियाँ घर का कार्य एवं बच्चों की देखरेख करती हैं।
  5. गाँव में जजमानी व्यवस्था पायी जाती है।
  6. गाँव में गुटबाजी अधिक पायी जाती है तथा जातियों में संघर्ष होता रहता है।
  7. अब गाँव में आधुनिककीकरण के कारण कृषि में ट्रैक्टर, सिंचाई के साधन उपलब्ध हुए हैं।
  8. आज भी गाँव में झगड़ों का निपटारा ग्राम पंचायतों के द्वारा किया जाता है।
  9. गाँव में देवों देवताओं की पूजा, अंधविश्वास, रूढ़ियाँ अधिक पायी जाती हैं।

प्रश्न 12.
भारतीय गाँवों में परिवर्तन के कारणों को बताइये।
उत्तर:
भारतीय गाँव में परिवर्तन के कारण भारतीय गाँव में धीरे-धीरे परिवर्तन हो रहा है, इसके निम्न कारण हैं :
तकनीकी विकास से गाँवों में भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं। इन परिवर्तनों के कारण अब गाँव में परिवार, व्यवसाय, विवाह एवं जाति व्यवस्था में बहुत परिवर्तन हुआ है। मशीनीकरण के कारण कृषि के यन्त्र ट्रैक्टर तथा सिंचाई के साधनों का विकास हुआ है। गाँवों को धीरे-धीरे मुख्य भागों से सड़कें बनाकर जोड़ा जा रहा है। रोजगार के लिए लघु उद्योग एवं प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान की जा रही है। शिक्षा का विकास हो इसलिए गाँवों में विद्यालय खोले गये हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 13.
सामाजिक मूल्य को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
डा. राधा कमल मुकर्जी ने अपनी पुस्तक The Structure of Social Values तथा Dimeninsions of Human Values में सामाजिक मूल्य सम्बन्धी अपने विचार प्रकट किये। मुकर्जी ने सामाजिक मूल्यों को समझाने हेतु एक अन्तः वैज्ञानिक उपागम का समर्थन किया है। सामाजिक मूल्यों के अर्थ को समझाते हुए कहा है कि मूल्य मानव समूहों और व्यक्तियों द्वारा प्रकृति व सामाजिक विश्व से तालमेल बनाने के साधन हैं। मूल्य उन प्रतिमानों को बताते हैं जो मनुष्यों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिशा-निर्देश देते हैं। मूल्यों को समाज के अस्तित्व का प्रमुख तत्व माना जाता है, क्योंकि मूल्य हैं तब समाज है, समाज है तो व्यक्ति है। इस कारण व्यक्ति इन मूल्यों की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। मूल्य मानव समूहों और व्यक्तियों के द्वारा प्राकृतिक-सामाजिक संसार से. तालमेल करने का साधन है।

प्रश्न 14.
सामाजिक मूल्यों के क्या नियम होते हैं?
उत्तर:
सामाजिक मूल्यों के नियम :
सामाजिक मूल्यों के निम्नलिखित नियम हैं :

  1. समाज पर नियंत्रण से सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन होता है।
  2. सामाजिक मूल्यों से सन्तुष्ट होने पर मनुष्य में मूल्यों के प्रति उदासीनता उत्पन्न होती है।
  3. सामाजिक मूल्यों के परस्पर अन्त:क्रिया से अनेक प्रकार के सम्मिलन उत्पन्न होते हैं।
  4. मूल्यों में प्रतिस्पर्धा होने से उनमें संस्तरण उत्पन्न होता है।
  5. व्यक्ति श्रेष्ठ मूल्यों का चुनाव करता है।
  6. समाज व संस्कृति के कारण मानवीय मूल्यों को मुख्य प्रतिमान प्रदान होते हैं।
  7. सामाजिक मूल्यों में विभिन्नता, वैयक्तिकता एवं अनूठापन पाया जाता है।
  8. सामाजिक मूल्यों में भी परिवर्तन होता रहता है।
  9. सामाजिक मूल्य मनुष्य की अन्तर्दृष्टि, परानुभूति और सहयोग में छिपे रहते हैं।

प्रश्न 15.
सामाजिक मूल्यों के सोपानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डा. मुकर्जी का मत यह था कि सभी मूल्य समान स्तर के नहीं होते, उन सामाजिक मूल्यों में एक स्तर देखने को मिलता है। यह मूल्यों का स्तर सामाजिक संगठन के स्तरों पर निर्भर रहता है। मुकर्जी ने सामाजिक संगठनों के चार प्रकार के स्तरों का वर्णन अपने अध्ययन में किया है; जैसे-भीड़, स्वार्थ समूह, समाज या समुदाय और सामूहिकता आदि।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जी. एस. घुर्ये के जाति सम्बन्धी विचार पर एक लेख लिखिये?
उत्तर:
जी. एस. घुर्ये की रुचि सभ्यताओं के तुलनात्मक अध्ययन में थी, वे सभ्यता के विकास के अध्ययन के विशेषज्ञ माने जाते हैं। भारतीय समाज उनके अध्ययन का प्रमुख केन्द्र बिन्दु था। प्रजाति एवं जाति ही भारतीय समाज के अध्ययन का मुख्य विषय था। अपनी पुस्तक ‘कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया’ में उन्होंने इनके बारे में विस्तार से लिखा है। प्राचीन विद्वान एवं संतों के अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर यह माना जाता है कि आर्य 2500 ईसापूर्व भारत में आये थे। इनका धर्म वैदिक था, जो गंगा नदी के मैदानी क्षेत्रों में बसे और वहीं अपनी संस्कृति को विकसित किया। यही संस्कृति आगे चलकर हिन्दू संस्कृति कहलायी। घुर्ये, रिजले की प्रजाति अवधारणा से बहुत प्रभावित थे, किन्तु रिजले के विचारों को अस्वीकार किया और सिद्ध किया कि प्रजाति को जाति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने अपनी पुस्तक जाति, वर्ग व व्यवरः । में जाति व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताया है। जाति शब्द का अर्थ जो कास्ट से लिया गया है मत विभेद था जाति है। यह अन्तर्विवाही समूह के रूप में है। उन्होंने जाति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित तरह से बतायी हैं

  • समाज का खण्डात्मक विभाजन :
    भारत में जाति व्यवस्था ने समाज को अनेक खण्डों में बाँट दिया है। प्रत्येक खण्ड के सदस्यों के पद, स्थिति और कार्य निश्चित हैं। ये सभी जातियाँ उपखण्डों में विभाजित हैं। जैसेभारत में वर्ण व्यवस्था, भारत की जाति व्यवस्था में सभी के कार्यों का विभाजन किया गया है।
  • संस्तरण :
    भारत में जाति व्यवस्था खण्डों में विभाजित है, इसका यह अर्थ नहीं कि वे सभी एक समाज के रूप में है। जाति व्यवस्था में ऊँच-नीच का एक संस्तरण पाया जाता है। भारत में यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है। इस कारण यहाँ संस्तरण में बड़ी दृढ़ता एवं स्थिरता देखने को मिलती है।
  • भोजन तथा सामाजिक सहवास पर प्रतिबन्ध :
    जाति व्यवस्था में जातियों में परस्पर भोजन एवं व्यवहार के सम्बन्ध में अनेक निषेध पाये जाते हैं, यहाँ ऐसे नियम बनाये गये हैं कि किसी जाति के सदस्य किन-किन जातियों के साथ भोजन कर सकते हैं और किनके साथ नहीं।
  • नागरिक एवं धार्मिक निर्योग्यताएँ एवं विशेषाधिकार :
    जाति व्यवस्था में ऊँच-नीच के संस्तरण के कारण सामाजिक समनाता का अभाव है। इस व्यवस्था के कारण भारत को समाज व्यवस्था में काफी क्षति उठानी पड़ी है।
  • निश्चित व्यवसाय :
    घुर्ये ने जाति व्यवस्था की एक विशेष विशेषता बतायी है कि प्रत्येक जाति का अपना एक व्यवसाय निश्चित होता है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता है। यह सभी जातिगत होते हैं, उनमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं होता है। इन व्यवसायों द्वारा ही लोग अपना जीवन-यापन चलाते हैं। उन्हें अपने व्यवसाय को बदलने की अनुमति नहीं थी।
  • विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्ध :
    जाति व्यवस्था के कारण प्रत्येक जाति के व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करने का नियम है, अपनी जाति से बाहर विवाह करने की अनुमति समाज नहीं देता है। भारत में जाति एक अन्तर्विवाही समूह के रूप में है। विवाह करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि जिस स्त्री पुरुष में विवाह हो रहा है वह उसके गोत्र का तो नहीं है। व्यक्ति अपने गोत्र से बाहर ही विवाह कर सकता है, गोत्र के अन्दर विवाह करने की अनुमति समाज एवं जाति नहीं देती है।

घुर्ये ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बताया कि जाति व्यवस्था भारत में बड़ी ही विस्तृत है। जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है इसलिए जाति एक प्रदत्त प्रस्थिति है न कि अर्जित प्रस्थिति।

जाति व्यवस्था में परिवर्तन-जाति व्यवस्था में अनेक परितर्वन हुए हैं :

  1. संस्तरण में परिवर्तन
  2. व्यवसायों में परिवर्तन
  3. खान-पान में परिवर्तन
  4. विवाह-सम्बन्धों में परिवर्तन आदि।

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प्रश्न 2.
डी. पी. मुकर्जी की परम्पराओं की अवधारणा पर प्रकाश डालिये?
उत्तर:
डी.पी. मुकर्जी की परम्पराओं की अवधारणा–परम्पराओं का अर्थ समाज की प्रथाओं, रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, विचार एवं संस्कारों को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित करना है। भारत में समाज के अन्दर परम्पराएँ प्राचीन समय से आज तक अस्तित्व में बनी हुई हैं। इन परम्पराओं में समय के अनुसार कुछ परिवर्तन अवश्य हुए हैं।

डी. पी. मुकर्जी ने भारतीय समाजशास्त्र में भारतीय परम्पराओं के अध्ययन को सम्मिलित किया है। उनके अनुसार परम्पराएँ ही भारतीय समाजशास्त्र की प्रमुख विषयवस्तु है। उन्होंने अपने अध्ययन में परम्पराओं को जानने पर विशेष बल दिया है।

पश्चिमी परम्पराओं के आदर्श पर भारतीय समाजशास्त्र को ढालने पर मुकर्जी ने इसका विरोध किया है। मुकर्जी ने अपने लेखों एवं भाषण में भारतीय सामाजिक परम्पराओं के अध्ययन पर जोर दिया है। उनका मानना है कि व्यक्ति को उन परम्पराओं का अध्ययन करना जरूरी है जहाँ उसने जन्म लिया है। उनका विचार है कि भारतीय समाजशास्त्री के लिए एक समाजशास्त्री की अपेक्षा एक भारतीय होना आवश्यक है। भारतीय समाज व्यवस्था को समझने के लिए उसे उसकी जनरीतियों, विचारों, रूढ़ियों, प्रथाओं एवं व्यवहार आदि का अध्ययन करना चाहिए एवं सीखना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि उसे स्थानीय भाषाओं का ज्ञान भी हो। डी. पी. मुकर्जी ने भारतीय परम्पराओं में परिवर्तन लाने वाले प्रमुख सिद्धान्त बताए हैं- श्रुति, स्मृति और अनुभव।

मुकर्जी के अनुसार अच्छी परम्पराएँ प्रमुख रूप से बौद्धिक थीं जो श्रुति एवं स्मृतियों पर आधारित थीं। वाद-विवाद, तर्क-बुद्धि-विचार से इनमें परिवर्तन होता रहता है। परम्पराएँ श्रुति से, स्मृति से बनी थीं और उनमें बौद्धिकता के कारण परिवर्तन होता था। यह एक क्रान्तिकारी सिद्धान्त भी है। व्यक्तिगत अनुभव ही परिवर्तन का मुख्य कारण रहा है। यदि हम भारत के विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों, सम्प्रदायों और मठों की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्राप्त करें तो हम पाते हैं कि उनका प्रारम्भ उनके जन्मदाता संतों के व्यक्तिगत विचार एवं अनुभव के कारण ही हुआ जो धीरे-धीरे सामूहिक अनुभव के रूप में फैलता चला गया।

मुकर्जी ने स्मृति, श्रुति और अनुभव के द्वारा भारतीय समाज में विद्यमान परम्पराओं में आने वाले परिवर्तन को बताने का प्रयास किया है। अपने सिद्धान्त द्वारा मुकर्जी ने यह सिद्ध किया कि वर्तमान का अध्ययन अतीत के संदर्भ में भी हो सकता है। आधुनिकीकरण के दौर को समझने से पहले अपनी परम्पराओं को समझना जरूरी है। उन्होंने कहा है कि परम्पराएँ नहीं मरतीं, वह नवीन परिस्थितियों के साथ अपना सामंजस्य एवं अनुकूलन करती हैं। तेज गति से होने वाले परिवर्तन ही परम्पराओं को खत्म कर सकते हैं।

मुकर्जी ने कहा है कि परम्परा एक गतिशील तथ्य है। यह एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है। परम्पराओं के अभाव में आधुनिकीकरण का कोई भी महत्व नहीं रह जाता है। परम्परा स्थिर अवधारणा नहीं है, वह गतिशील है। परम्परा आधुनिकता के लिए प्रेरक का कार्य करती है। उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि परम्पराओं में श्रुति, स्मृति व अनुभव के कारण परिवर्तन होता है। परिवर्तन ही परम्पराओं के मध्य होने वाला द्वन्द्व है।

प्रश्न 3.
ए. आर. देसाई की राज्य की अवधारणा का समाज में भूमिका को समझाइये?
उत्तर:
राज्य की अवधारणा के सम्बन्ध में ए. आर. देसाई ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय समाज में राज्य व समाज’ में विस्तृत व्याख्या की है। मार्क्स की विचारधारा ऐतिहासिक द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से देसाई बहुत प्रभावित थे। अतः उन्होंने राज्य की इसी विचारधारा को स्पष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने माना कि भारतीय समाज को पूँजीवादी बनने के पीछे ब्रिटिश उपनिवेशवाद जिम्मेदार है। स्वतन्त्रता के पश्चात देश को औद्योगिक बनाने में राज्य ने पूँजीवादियों को पूरा सहयोग दिया है।

वह ये बात स्वीकारते हैं कि भारत के राज्य अनेक दृष्टिकोण से पूँजीवादी राज्य ही हैं। राज्य स्वयं तो सर्वहारा समाज का दोहन करते हैं साथ में पूँजीपतियों के हितों का ख्याल रखने में आगे हैं। राज्य एवं पूँजीपतियों की हमेशा यह नीति रहती है कि सर्वहारा वर्ग की स्थिति में किसी भी प्रकार का कोई भी सुधार न होने पाये। परिवर्तन का समय जो गाँव में चल रहा है वह सिर्फ प्रमुख वर्ग के लिए है। इन सबके कारण राज्य और बुर्जुआ वर्ग (पूँजीपतियों) ही अधिक ताकतवर हुए हैं। देसाई ने राष्ट्रवाद के अध्ययन में ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवर्तन का, सामाजिक तथा आर्थिक नीतियों एवं समाज और राज्य की संरचना का भी विश्लेषण किया है। उनके अनुसार राज्य एक वर्ग है।

आजादी के बाद राज्य एक पूँजीपति वर्ग के जैसा कार्य कर रहा है। वह अब भी बुर्जुआ वर्ग का सहयोगी है एवं उसकी प्रकृति एक वर्ग की प्रकृति की तरह है। वर्ग सामंत एवं पूँजीपति हैं। ये कभी-कभी समाजवादी की तरह भी दिखाई देते हैं। अपनी कृतियों में देसाई ने इन सभी तथ्यों को स्पष्ट करते हुए यह बताया है कि ब्रिटिश उपनिवेश में राज्य पूँजीवादी थे और आजादी के बाद भी भारत में पूँजीवाद बना हुआ है। इस समय भी राज्य पूँजीपतियों के साथ तालमेल रखकर लक्ष्य की पूर्ति करते हैं। भारत की उत्पादन प्रक्रिया में राज्य का हिस्सा अधिक है। देसाई के कथन से मार्क्सवादी एवं गैर मार्क्सवादी सहमत नहीं हैं। मार्क्सवादियों के अनुसार उत्पादन के विवाद में राज्य तटस्थ रहते हैं। पूँजीवाद को लेकर राज्यों की अपनी एक नीति होती है। विद्वान लोग राज्य को आधुनिक या परम्परागत समझकर छोड़ देते हैं। गैर-मार्क्सवादी राज्य को वर्ग की ही तरह मानते हैं।

राज्य की अवधारणा का समाज में प्रमुख भूमिका के विषय में देसाई के साथ कोठारी ने कहा है कि भारतीय राज्य पूँजीवादी राज्य नहीं हैं, किन्तु राज्य पूँजीवाद के विकास में पूरा सहयोग करते हैं। भले ही राज्य एवं पूँजीवाद का परस्पर विरोधी सम्बन्ध रहा हो। कोठारी ने यह स्पष्ट किया है कि भारतीय राज्य पहले पूँजीपतियों की पकड़ से दूर थे। राज्य का प्रमुख उद्देश्य समाज में समानता लाना है।

देसाई ने माना है कि राज्य पिछड़े वर्गों का शोषण ही करते हैं। भारतीय संविधान में लोगों को कुछ मौलिक (मूल) अधिकार प्रदान किये गए हैं किन्तु लोग उनका सही उपयोग भी नहीं कर पाते हैं। राज्य हिंसा की प्रवृत्ति द्वारा लोगों पर नियंत्रण रखता है और दबाव डालता है। देसाई ने माना है कि भारत में पूँजीवादी सोच के कारण ही गंदी बस्तियों, आर्थिक असमानता, किसान संघर्ष आदि को प्रोत्साहन मिला है। इन सभी कारणों से भारत विकास नहीं कर पाया है।

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प्रश्न 4.
‘स्मरण रखा गया गाँव’ नामक पुस्तक की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्मरण रखा गया गाँव’ नामक पुस्तक की विवेचना श्रीनिवास के अध्ययन का प्रमुख केन्द्र भारतीय गाँव था। गाँव के अध्ययन की प्रेरणा 1945-46 में श्रीनिवास को रेडक्लिफ ब्राउन से मिली थी। उनकी पुस्तक ‘रिमेम्बर्ड विलेज’ में कर्नाटक के गाँव रामपुरा के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। रामपुरा गाँव के सभी तथ्यों के दस्तावेज पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में जमा कराये गए थे किन्तु एक घटना में यह सभी दस्तावेज नष्ट हो गये। अपने मित्र सोलटोक्स की सलाह पर अपने स्मरण के आधार पर गाँव के बारे में लिखा। रिमेम्बर्ड विलेज पुस्तक का प्रकाशन 1976 में कराया। समाजशास्त्र ने रिमेम्बर्ड विलेज को एक शास्त्रीय ग्रन्थ माना जाता है। यह पुस्तक क्षेत्रीय कार्य के आधार पर लिखी गयी थी। इस पुस्तक के कुल ग्यारह अध्याय हैं।

प्रथम अध्याय :
इस अध्याय में उन्होंने बताया है कि इस पुस्तक को लिखने का विचार उनके मन में कैसे आया। गाँव का चयन तर्क विधि द्वारा नहीं किया गया। वे वास्तव में भावनात्मक रूप से रामपुरा गाँव से जुड़े थे।

द्वितीय अध्याय :
इस अध्याय में रामपुरा गाँव का परिचय दिया गया है। साथ ही गाँव के लोगों के साथ किस प्रकार सामाजिक सम्बन्ध बनाकर तथ्यों को एकत्रित किया इसके बारे में तथा गाँव की आर्थिक स्थिति एवं किसानों की आर्थिक दशा का विवरण दिया है।

तीसरा अध्याय :
इसमें गाँव की सामाजिक संरचना आर्थिक व्यवस्था से संचालित होती है, का वर्णन किया गया है।

चौथा अध्याय :
इस अध्याय में गाँव की कृषि के विषय में बताया है, क्योंकि कृषि ही गाँव के अधिकतर लोगों का मुख्य व्यवसाय है। गाँव के लोगों की आजीविका कृषि के इर्द-गिर्द ही घूमती है।

पाचवाँ अध्याय :
इस अध्याय में गाँव की परिवार व्यवस्था के विषय में बताया गया है। पुरुष और स्त्रियों के काम के बँटवारे किस तरह हैं, इस पर प्रकाश डाला गया है। पुरुष घर के बाहर का कार्य एवं स्त्रियाँ घर के अन्दर का कार्य करती हैं।

छठवाँ अध्याय :
यह पुस्तक का मुख्य अध्याय है। इसमें जाति व्यवस्था का विश्लेषण किया गया है। गाँव में सभी जातियाँ जजमानी व्यवस्था के कारण एक दूसरे पर निर्भर रहती हैं। एक जाति का दूसरी जाति से किस प्रकार का सम्बन्ध है, इस बात पर प्रकाश डाला गया है।

सातवाँ अध्याय :
जातियों के बीच पायी जाने वाली गुटबाजी के बारे में चर्चा की गयी है तथा बताया गया है कि किन जातियों के मध्य संघर्ष होता है।

आठवाँ अध्याय :
श्रीनिवास ने रामपुरा के यांत्रिक परिवर्तन के दौर के प्रभाव का अध्ययन किया गया है। मशीनीकरण के कारण कृषि व्यवसाय में ट्रैक्टर, सिंचाई के पम्प एवं अन्य प्रकार के उपकरणों का उपयोग हुआ जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरी।

नौवाँ (नवम) अध्याय :
इस अध्याय में रामपुरा गाँव की सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था का वर्णन है, मित्रता का वर्णन है, लोगों के आपसी झगड़ों, अफवाहों और चौपाल पर होने वाली गप्पों के बारे में बात की गई है।

दसवाँ अध्याय :
इस अध्याय में गाँव में श्रीनिवास धर्म की चर्चा करते हैं। उन्होंने वैदिक धर्म का उल्लेख तो नहीं किया है किन्तु लोगों के दिन-प्रतिदिन के व्यवहार में कैसे पूजा-उपासना की जाती थी गाँव वाले कौन से देवी-देवताओं की आरती करते हैं, इस बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।

ग्यारहवाँ अध्याय :
श्रीनिवास बताते हैं कि जब उस गाँव को उन्होंने छोड़ा तो किस प्रकार भावनात्मक रूप से गाँव से जुड़े थे। गाँववालों ने किस प्रकार उनको विदाई दी थी।

निष्कर्ष :
श्रीनिवास ने गाँव को भारतीय समाज की प्रमुख इकाई माना। उन्होंने भारतीय समाज को समझने के लिए गाँव के अध्ययन पर बल दिया है। वे मानते हैं कि तकनीकी प्रगति के कारण गाँव में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों के कारण गाँव की जाति व्यवस्था, परिवार, विवाह रूपी संस्थाओं में भी परिवर्तन हो रहा है, व्यक्तियों के सम्बन्धों में भी परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 5.
आर. के. मुकर्जी के सामाजिक मूल्यों के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए?
उत्तर:
सामजिक मूल्य का अर्थ एवं परिभाषा-मुकर्जी ने मूल्यों का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है कि मूल्य मानव समूहों और व्यक्तियों के द्वारा प्राकृतिक व सामाजिक संसार से तालमेल करने के साधन हैं। मूल्य ऐसे प्रतिमानों को कहते हैं जो व्यक्तियों की विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिशा-निर्देश करते हैं। मूल्य एक प्रकार के सामूहिक लक्ष्य होते हैं, जिनके प्रति सदस्यों की आस्था स्वाभाविक होती है।

मुखर्जी के अनुसार “मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त इच्छाएँ तथा लक्ष्य हैं जिनका आन्तरीकरण सीखने या सामाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो प्राकृतिक अधिमान्यताएँ मानक तथा अभिलाषाएँ बन जाते है।”

सामाजिक मूल्यों की विशेषताएँ सामाजिक मूल्यों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

  1. सामाजिक मूल्य सामूहिक होते हैं।
  2. सामाजिक मूल्यों के पीछे भावनाएँ होती हैं।
  3. सामाजिक मूल्य समाज के मापक होते हैं।
  4. सामाजिक मूल्यों के बारे में एकमतता पायी जाती है।
  5. सामाजिक मूल्य गतिशील होते हैं।
  6. सामाजिक मूल्यों में विभिन्नता पायी जाती है।
  7. सामाजिक मूल्य सामाजिक कल्याण एवं सामाजिक आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
  8. सामाजिक मूल्य सार्वभौमिक होते हैं।

सामाजिक मूल्यों का उद्भव :
मुकर्जी ने मूल्यों के उद्भव के तीन आधार बताए हैं :

  • लक्ष्य :
    प्रत्येक व्यक्ति का अपना जीवन जीने का लक्ष्य होता है। जीवन जीने के लिए उसे मूल्यों का निर्माण करना होता है।
  • आदर्श :
    जब व्यक्ति मूल्यों को स्वीकार करता है तो वह मूल्य उसके लिए आदर्श बन जाते हैं। वह उसी के अनुरूप व्यवहार करता है।
  • मान्यताएँ :
    आदर्शों की स्थापना के बाद मूल्य सामूहिक मान्यताओं का रूप लेते हैं।

सामाजिक मूल्यों के नियम :
मुकर्जी ने सामाजिक मूल्यों के निम्न नियम बताए हैं :

  1. समाज में नियत्रण एवं समर्थन के कारण मानवीय प्रेरणाएँ मूल्यों में परिवर्तित हो जाती हैं।
  2. भौतिक मूल्यों की संतुष्टि हो जाने पर मानव में उन मूल्यों के प्रति उदासीनता उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में समाज एवं संस्कृति में नवीन इच्छाएँ, साधन एवं लक्ष्य ढूँढ़े जाते हैं जो नवीन मूल्यों को जन्म देते हैं।
  3. मूल्यों के परस्पर अन्तः क्रिया के कारण वे आपस में घुल-मिलकर अनेक प्रकार के सम्मिलन को उत्पन्न करते हैं।
  4. कुछ मूल्यों में प्रतिस्पर्धा के कारण उनमें संस्तरण उत्पन्न होता है।
  5. मूल्यों में संघर्ष होने के कारण व्यक्ति अपने आदर्शों के आधार पर श्रेष्ठ मूल्यों का चयन करता है।
  6. समाज व संस्कृति मानवीय मूल्यों को मौलिक प्रतिमान प्रदान करते हैं।
  7. मूल्यों में वैयक्तिकता, विभिन्नता और अनूठापन पाया जाता है, जिनका चयन व्यक्ति अपनी आवश्यकता, आदत, क्षमता आदि के आधार पर करता है।
  8. पर्यावरण, समूह, संस्थाओं की तरह मानवीय मूल्यों में भी परिवर्तन होते हैं।
  9. मनुष्य के आदर्श मूल्यों की जड़ मानव की अन्तर्दृष्टि, परानुभूति और सहयोग में निहित होती है।

इस विवेचना से स्पष्ट होता है कि मुकर्जी ने समाजशास्त्र की विषयवस्तु सामाजिक मूल्यों को माना है। उनके द्वारा स्थापित मूल्यों का सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है।

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RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सामूहिक मूल्य होते हैं
(अ) व्यक्तिगत
(ब) परिस्थितिगत
(स) सामूहिक
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) सामूहिक

प्रश्न 2.
“फाउण्डे न ऑफ इण्डियन इकोनोमी’ नामक पुस्तक के लेखक हैं
(अ) आर. के मुकर्जी
(ब) इरावती कर्वे
(स) एम.एन. श्रीनिवास
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) आर. के मुकर्जी

प्रश्न 3.
“भारतीय समाज में राज्य व समाज” नामक पुस्तक का प्रकाशन हुआ
(अ) 1972 में
(ब) 1973 में
(स) 1974 में
(द) 1975 में।
उत्तर:
(द) 1975 में।

प्रश्न 4.
घुर्ये ने जाति व्यवस्था को परिभाषित किया
(अ) बर्हिविवाही समूह के रूप में
(ब) अन्तर्विवाही समूह के रूप में
(स) ‘अ’ व ‘ब’ दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) अन्तर्विवाही समूह के रूप में

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प्रश्न 5.
“टैगोर एक अध्ययन’ कृति है
(अ) एम. एन. श्रीनिवास की
(ब) योगेन्द्र सिंह की
(स) इरावती कर्वे की
(द) डी.पी. मुकर्जी की।
उत्तर:
(द) डी.पी. मुकर्जी की।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“कास्ट” शब्द की उत्पत्ति किस भाषा के किस शब्द से हुई?
उत्तर:
“कास्ट” शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के ‘कास्टा’ शब्द से हुई।

प्रश्न 2.
घुर्ये ने किस विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की?
उत्तर:
इन्होंने “रेस एण्ड कास्ट इन इण्डिया’ नामक विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

प्रश्न 3.
किस समाजशास्त्री ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पद पर कार्य किया?
उत्तर:
डी. पी. मुकर्जी ने।

प्रश्न 4.
डी.पी. मुकर्जी के अनुसार आधुनिकीकरण क्या है?
उत्तर:
डी. पी. मुकर्जी के अनुसार आधुनिकीकरण गतिशील तथ्य है।

प्रश्न 5.
ए. आर. देसाई ने किसके मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की?
उत्तर:
गोविन्द सदाशिव घुर्ये के निर्देशन में।

प्रश्न 6.
‘इण्डियाज पाथ ऑफ डेवलपमेण्ट’ नामक पुस्तक किसने, कब लिखी?
उत्तर:
यह पुस्तक सन् 1984 में ए. आर. देसाई ने लिखी।

प्रश्न 7.
एम. एन. श्रीनिवास की किन्हीं दो महत्वपूर्ण कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. मैसूर में विवाह एवं परिवार
  2. भारतः सामाजिक संरचना।

प्रश्न 8.
भारतीय संस्कृति’ एवं ‘सामाजिक पारिस्थितिकी’ नामक कृतियों के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
राधा कमल मुकर्जी (आर. के. मुकर्जी)

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प्रश्न 9.
भारत में समाजशास्त्र का प्रारम्भ किस विश्वविद्यालय से हुआ?
उत्तर:
बम्बई विश्वविद्यालय से।

प्रश्न 10.
‘भारतीय समाज का रूपान्तरण’ किस समाजशास्त्री की कृति है?
उत्तर:
ए. आर. देसाई की।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्तरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
घुर्ये के अनुसार जाति व्यवस्था समाज का खण्डात्मक विभाजन करती है, उसमें ऊँच-नीच का एक संस्तरण पाया जाता है। जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित है। इस कारण संस्तरण में भी स्थिरता एवं दृढ़ता पायी जाती है।

प्रश्न 2.
जाति व्यवस्था में कौन से परिवर्तन आ रहे हैं।
उत्तर:
जाति का निर्धारण तो जन्म पर आधारित है किन्तु वर्तमान में जाति व्यवस्था में अनेक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। जाति व्यवस्था में अब संस्तरण में कमी आयी है। आज प्रत्येक जाति अपने को दूसरी जाति से श्रेष्ठ समझने लगी है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परम्परागत व्यवसाय को छोड़कर नये-नये व्यवसायों से आजीविका कमा रहा है। संविधान में कहा गया है कि राज्य किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। जातियों की निर्योग्यताएँ समाप्त कर दी गयी हैं। कोई भी व्यक्ति देश में कहीं भी आ जा सकता है, पूजा कर सकता है और अपना व्यवसाय स्थापित कर सकता है। विवाह सम्बन्धी निर्योग्यताएँ समाप्त हो गयी हैं। विवाह के स्वरूपों में परिवर्तन आया है।

प्रश्न 3.
रिमेम्बर्ड विलेज से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास ने कर्नाटक के रामपुरा गाँव का वर्णन अपनी पुस्तक ‘रिमेम्बर्ड विलेज’ में किया था। अध्ययन के सभी दस्तावेज पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में जमा करा दिये थे। एक घटना में वे सभी दस्तावेज जल गये। श्रीनिवास के मित्र सोलटोक्स ने उन्हें अपने स्मरण के आधार पर गाँव का विवरण पुनः लिखने की प्रेरणा दी। उनकी प्रेरणा से प्रेरित होकर श्रीनिवास ने ‘रिमेम्बर्ड विलेज’ (स्मरण रखा गया गाँव) नामक पुस्तक का प्रकाशन 1976 में कराया रिमेम्बर्ड विलेज को समाजशास्त्र में एक शास्त्रीय ग्रन्थ माना गया है। यह पुस्तक पूरी तरह से क्षेत्रीय कार्यों के आधार पर लिखी गयी थी। इस पुस्तक में ग्यारह अध्याय हैं।

प्रश्न 4.
समाज या समुदाय का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समाज या समुदाय जैसे सामाजिक संगठनों का तार्किक एवं नैतिक आधार पर निर्माण होता है। समाज में व्यक्ति अन्य व्यक्ति या सदस्यों के हित में सहयोगी व्यवहार करता है। संगठन में समानता और न्याय की व्यवस्था मिलती है। समाज इनको स्वीकार करता है।

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प्रश्न 5.
सामाजिक मूल्य कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
सामाजिक मूल्य निम्नलिखित प्रकार के होते हैं। :

  • तात्कालिक मूल्य :
    इनसे समाज की तात्कालिक आवश्यकताएँ पूरी की जाती हैं।
  • विशिष्ट सामाजिक मूल्य :
    मनुष्य समाज की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिस मूल्य का निर्धारण करता है वे मूल्य विशिष्ट मूल्य कहलाते हैं।
  • सार्वलौकिक मूल्य :
    ऐसे मूल्य जो किसी व्यक्ति या समाज के जीवन को प्रभावित करते हैं।
  • अन्तर्निहित मूल्य :
    वे मूल्य जो व्यक्ति और समाज के आन्तरिक जीवन में समाहित हो जाते हैं।
  • आदर्शात्मक मूल्य :
    जिन सामाजिक मूल्यों का विकास आदर्श प्राप्त करने के साधन के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 6.
जी. एस. घुर्ये ने कौन-कौन सी कृतियाँ लिखी हैं?
उत्तर:
घुर्ये ने निम्न कृतियाँ लिखी हैं-कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया, कल्चर एण्ड सोसाइटी, आफ्टर ए सेन्चुरी एण्ड ए क्वार्टर, कास्ट क्लास एण्ड ओक्युपेशन, सिटीज एण्ड सिविलाइजेशन, दि शिड्युल्ड ट्राइब्ज, एनोटोमो ऑफ ए रूरल कम्युनिटी, वैदिक इण्डिया, इण्डिया रिक्रियेटस डेमोक्रेसी तथा वैदिक इण्डिया आदि।

प्रश्न 7.
मुकर्जी का प्रमुख योगदान क्या है?
उत्तर:
डी. पी. मुकर्जी का समाजशास्त्र के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वे भारतीय समाजशास्त्र के जनक हैं। उनके कृत कार्य को हम निम्नलिखित तरह से समझ सकते हैं :

  1. व्यक्तित्व
  2. आधुनिक भारतीय संस्कृति
  3. परम्पराएँ
  4. समाजशास्त्र की प्रकृति तथा पद्धति
  5. संगीत
  6. नये मध्यम वर्ग की भूमिका
  7. आधुनिकीकरण
  8. भारतीय इतिहास की रचना।

प्रश्न 8.
देसाई की प्रमुख कृतियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्री ए. आर. देसाई ने निम्नलिखित पुस्तकों की रचना की है- सोशयल बैकग्राउण्ड ऑफ इंडियन नेशनलिज्म, रूरल सोश्लोजी इन इण्डियन, पीजेन्ट स्ट्रगल इन इण्डिया, स्ल्म्स एण्ड अरबेनाइजेशन (डि. पिल्लई के साथ) स्टेट एण्ड सोसायटी इन इण्डिया आदि।

प्रश्न 9.
मूल्यों के उद्भव के क्या आधार हैं?
उत्तर:
मुकर्जी सामूहिक परिस्थितियों को मूल्य की उत्पत्ति का प्रमुख आधार मानते हैं, जिससे व्यक्ति के मन में चेतना जागृत होती है एवं विकास होता है।
मुकर्जी ने मूल्यों के उद्भव के तीन आधार माने हैं :

  1. लक्ष्य
  2. आदर्श
  3. मान्यताएँ

मनुष्य का अपना जीवन जीने का एक लक्ष्य होता है। जीवन जीने के लिए उसे मूल्यों का निर्माण करना पड़ता है। वह मूल्यों को स्वीकार करता है। यही मूल्य उसके आदर्श बन जाते हैं। आदर्शों की स्थापना के बाद मूल्य सामूहिक मान्यताओं का रूप धारण कर लेते हैं।

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प्रश्न 10.
सामाजिक मूल्यों की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक मूल्यों की विशेषताएँ :
सामाजिक मूल्यों की निम्न विशेषताएँ हैं :

  1. सामाजिक मूल्य समाज के मापक होते हैं।
  2. सामाजिक मूल्य सामूहिक होते हैं।
  3. इन मूल्यों में एकरूपता पायी जाती है।
  4. ये मूल्य गतिशील होते हैं।
  5. इन मूल्यों के पीछे भावनाएँ छिपी होती हैं।
  6. इन मूल्यों में विभिन्नता पायी जाती है।
  7. ये मूल्य सार्वभौमिक होते हैं।
  8. इन मूल्यों में सामाजिक कल्याण और सामाजिक आवश्यकता प्रमुख होती है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 10 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जी. एस. घुर्ये के जीवन-परिचय तथा कृतियों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
जी.एस. घर्ये का जीवन-परिचय जी.एस. घुर्ये के जीवन को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है :
जन्म :
जी.एस. घुर्ये का जन्म 21 दिसम्बर 1893 को महाराष्ट्र के मालवा क्षेत्र में हुआ था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे।

शिक्षा-दीक्षा :
सन् 1918 में एम.ए. की परीक्षा एलिफस्टन महाविद्यालय मुम्बई से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उन्हें हैडन के निर्देशन में ‘रेस एण्ड कास्ट इन इण्डिया’ नामक विषय पर डाक्ट्रेट की उपाधि मिली।।

प्रशिक्षण एवं शोध कार्य :
सन् 1924 में घुर्ये को मुम्बई विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के रीडर एवं विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। सन् 1934 में वह उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए। सन् 1959 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद मुम्बई विश्वविद्यालय ने उन्हें नए पद प्रोफेसर ‘एमरीटस’ पर रखा।

जी.एस. घुर्ये की प्रमुख कृतियाँ :
घुर्ये ने अपने जीवनकाल में 25 से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं :

  • दि शिड्यूल्ड ट्राइब्ज 1963 :
    इस पुस्तक में घुर्ये ने भारत की जनजातियों की प्रमुख समस्याएँ एवं उनके समाधान के विषय में विवेचना की है।
  • जाति वर्ग व्यवसाय :
    सन् 1961 में ‘कास्ट क्लास एण्ड ओक्युपेशर’ पुस्तक लिखी, जिसमें जाति प्रथा के लक्षणों, स्वरूपों, तत्वों, उत्पत्ति, व्यवसाय तथा भविष्य के बारे में विवेचना की गयी है।
  • भारत में सामाजिक तनाव :
    सन् 1968 में प्रकाशित पुस्तक में भारत में सामाजिक तनावों का विश्लेषण किया गया है।
  • संस्कृति तथा समाज :
    इस पुस्तक में घुर्ये ने संस्कृति एवं समाज के सम्बन्धों का वर्णन किया है।

घुर्ये की कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियाँ :

  1. कल्चर एण्ड सोसाइटी।
  2. फैमिली एण्ड किन इन इण्डो यूरोपियन कल्चर।
  3. सिटीज एण्ड सिविलाइजेशन
  4. दि महादेव कोलिज
  5. एनोटोमो ऑफ ए रूरल कम्युनिटी
  6. दि इण्डियन साधुज
  7. आई एण्ड अदर एक्सप्लोरेशन्स
  8. विदर इण्डिया
  9. इण्डिया रिक्रियेट्स डेमोक्रेसी
  10.  वैदिक इण्डिया

घुर्ये का अन्य क्षेत्रों में योगदान-घुर्ये ने शिक्षण, शोध के अतिरिक्त भी अन्य क्षेत्र में महत्त्पूर्ण योगदान दिया है। ये प्रमुख क्षेत्र धर्म, प्रजाति, नातेदारी व्यवस्था, ग्रामीण नगरीकरण, भारतीय वेशभूषा, संघर्ष और समन्वयता के क्षेत्र हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 2.
डी. पी. मुकर्जी का जीवन परिचय प्रमुख कृतियाँ एवं उनके प्रमुख योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डी.पी. मुकर्जी का जीवन-परिचय :
जन्म :
मुकर्जी का जन्म 5 अक्टूबर सन् 1894 में बंगाल के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम धुर्जति प्रसाद मुकर्जी था। उनकी शिक्षा-दीक्षा कोलकाता में हुई थी। इतिहास उनका सबसे प्रिय विषय था। उन्होंने अर्थशास्त्र, इतिहास और राजनीतिशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। सन् 1920 में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि इंग्लैण्ड से प्राप्त की। प्रथम विश्वयुद्ध के समय वह भारत वापस आ गये थे। 1922 में वह लखनऊ आ गये थे।

शिक्षण एवं शोध कार्य :
सन् 1922 से वह लखनऊ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र के व्याख्याता पद पर कार्यरत रहे। सन् 1954 में इसी विश्वविद्यालय से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत हुए। सेवानिवृति के बाद वह हेग के इण्टरनेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 5 दिसम्बर सन् 1961 को उनका स्वर्गवास हो गया।
प्रमुख कृतियाँ :

  1. आधुनिक भारतीय संस्कृति
  2. व्यक्तित्व और सामाजिक विज्ञान
  3. समाजशास्त्र की मूल अवधारणाएँ
  4. भारतीय युवकों की समस्याएँ
  5. भारतीय संगीत का परिचय
  6. टैगोर एक अध्ययन
  7. विचार एवं प्रतिविचार
  8. भारतीय इतिहास पर एक अध्ययन
  9. विविधाताएँ आदि।

अन्य क्षेत्रों में योगदान :
मुकर्जी ने भारतीय समाज का विश्लेषण भौतिकवादी, मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में किया। उन्होंने न केवल समाजशास्त्र बल्कि अर्थशास्त्र, साहित्य, संगीत, कला, भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में परम्पराओं, आधुनिकीकरण के क्षेत्र में भी योगदान दिया। उनके तीन उपन्यास और एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए। उन्होंने निम्नलिखित क्षेत्रों में भी योगदान दिया है :

  1. व्यक्तित्व का अध्ययन
  2. आधुनिक भारतीय संस्कृति।
  3. परम्पराएँ
  4. नये मध्यम वर्ग की भूमिका
  5. आधुनिकीकरण
  6. संगीत आदि।

प्रश्न 3.
डॉ. देसाई का जीवन परिचय, कृतियाँ एवं प्रमुख योगदान पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
ए. आर. देसाई का जीवन परिचय :
डॉ. अक्षय कुमार रमनलाल देसाई का जन्म 16 अप्रैल सन् 1915 को गुजरात के नाडियाद कस्बे में हुआ था। इनके पिता उच्चकोटि के साहित्यकार थे।

शिक्षा-दीक्षा :
देसाई ने बड़ोदरा विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की। सन् 1946 में उन्होंने घुर्ये के निर्देशन एवं मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

अध्यापन कार्य :
मुम्बई विश्वविद्यलाय से ही उन्होंने अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया। सन् 1951 में वे मुम्बई विश्वविद्यालय में नियुक्त किये गये। वहाँ सन् 1976 तक कार्य किया। सन् 1976 में सेवानिवृत्ति के बाद इण्डियन काउंसिल ऑफ सोशल साइन्स एण्ड रिसर्च ने देसाई को नेशनल फेलो के पद पर नियुक्त किया। 12 नवम्बर 1994 को उनका निधन हो गया।

प्रमुख कृतियाँ :
सन् 1946 में उन्हें ‘द सोशल बैक ग्राउण्ड ऑफ इण्डियन नेशनलिज्म’ नामक पुस्तक पर डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गयी। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं :

  1. रिसेन्ट ट्रेन्डस इन इण्डियन नेशनलिज्म
  2. स्ल्म्स एण्ड अरबेनाइजेशन
  3. रूरल सोश्लोजी इन इंडियन
  4. पीजेन्ट स्ट्रगल इन इंडिया
  5. स्टेट एण्ड सोसाइटी इन इंडिया
  6. इंडियाज पाथ ऑफ डेवलपमेंट
  7. अग्रेरियन स्ट्रगल्स इन इंडिया आफ्टर इंडिपेन्डेंस

योगदान :
देसाई आजीवन मार्क्सवादी रहे। देसाई ने अपने पिता के साथ रहकर लोगों की समस्याओं को निकट से देखा और वहीं से सीख ली। उन्होंने शिक्षण कार्य के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी योगदान दिया है। जो निम्न हैं :

  1. भारत में ग्राम
  2. भारतीय समाज का रूपान्तरण
  3. किसान संघर्ष
  4. राज्य और समाज
  5. भारतीय राष्ट्रवाद की सामाजिक पृष्ठभूमि
  6. गंदी बस्तियाँ और नगरीकरण
  7. राष्ट्रीय आन्दोलन

इन सभी विषयों एवं क्षेत्रों में उन्होंने लेखों, विचारों आदि के द्वारा अपने विचार प्रकट किए। आगे चलकर इनके आधार पर अनेक समाजशास्त्रीय कार्य प्रारम्भ हुए।

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प्रश्न 4.
एम. एन. श्रीनिवास का जीवन-परिचय, कृतियाँ एवं उनके योगदान पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
एम. एन. श्रीनिवास का जीवन-परिचय :
मैसूर नरसिम्हाचार श्रीनिवास का जन्म 16 नवम्बर सन् 1916 को मैसूर में हुआ था। उनके पिता मैसूर के ऊर्जा एवं बिजली विभाग में कार्यरत थे।

शिक्षा-दीक्षा :
प्रारम्भिक शिक्षा उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से प्राप्त की। मुम्बई विश्वविद्यालय से उन्होंने समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। दक्षिण भारत के कुर्ग लोगों के विषय पर उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई, जिसके बाद वह ब्रिटेन चले गये और वहाँ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी.फिल की उपाधि प्राप्त की।

अध्यापन कार्य :
श्रीनिवास ने बैंगलोर के इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल एण्ड इकोनोमिक चेंज में कार्य किया। सन् 1951 में वे बड़ौदा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए और बड़ौदा विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की। उनके प्रयास से ही दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना हुई। सन् 1959 में उनकी नियुक्ति दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर के पद पर हुई। 30 नवम्बर सन् 1999 को उनका निधन हो गया।

प्रमुख कृतियाँ :
श्रीनिवास ने अनेक पुस्तकें एवं लेख लिखे हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं :

  1. दक्षिण भारत के कुर्ग में धर्म व समाज
  2. मैसूर में विवाह और परिवार
  3. भारतीय गाँव
  4. आधुनिक भारत में जाति और अन्य लेख
  5. दि रिमेम्बर्ड विलेज
  6. आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन
  7. भारतः सामाजिक संरचना
  8. प्रभु जाति और अन्य लेख
  9. दि कोहिजिवे रोल ऑफ संस्कृताईजेशन
  10. विलेज, कास्ट, जेन्डर एण्ड मेथड
  11. इण्डियन सोसाइटी श्रू पर्सनल राइटिंग्ज

प्रमुख योगदान :
श्रीनिवास की पुस्तक ‘रिमेम्बर्ड विलेज’ एक गाँव का विस्तृत अध्ययन है, जिसमें उन्होंने वहाँ की जाति, व्यवसाय, जजमानी प्रथा आदि का वर्णन किया है। गाँव उनके अध्ययन का प्रमुख केन्द्र बिन्दु था। उन्होंने अन्य क्षेत्रों में भी कार्य किए जो निम्नलिखित हैं :

  1. सामाजिक परिवर्तन : पश्चिमीकरण, ब्राह्मणीकरण
  2. धर्म और समाज
  3. गाँव
  4. जाति
  5. प्रभु जाति
  6. विवाह और परिवार
  7. आधुनिक भारत

श्रीनिवास ने गाँव को भारतीय समाज की महत्वपूर्ण इकाई के रूप में स्थापित किया। उन्होंने जाति, आधुनिकीकरण तथा सामाजिक परिवर्तन पर अपने विचार व्यक्त किये एवं उन पर कार्य किया।

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प्रश्न 5.
राधाकमल मुकर्जी के जीवन, कृतियाँ एवं उनके योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राधाकमल मुकर्जी का जीवन-परिचय-राधाकमल मुकर्जी का जन्म 7 सितम्बर सन् 1889 को बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बरहामपुर में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता वकील थे। उनकी रुचि इतिहास में थी।

शिक्षा-दीक्षा :
डा. मुकर्जी ने बरहामपुर के कृष्णनाथ महाविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। कोलकाता के प्रेजीडेन्सी महाविद्यालय से इतिहास तथा अंग्रेजी में ऑनर्स किया।

अध्यापन कार्य एवं शोध :
सन् 1910 में मुकर्जी बरहामपुर महाविद्यालय में अर्थशास्त्र के शिक्षक नियुक्त हुए। यहीं पर उन्होंने ‘फाउण्डेशन ऑफ इण्डियन इकोनोमी’ नामक पुस्तक लिखी। ग्रामीण समुदाय में सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन पर उन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि मिली।

सन् 1917 से 1921 ई. तक आपने कोलकाता विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र विषयों को पढ़ाया। आपने अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र विभाग में कई शोधकार्य भी कराये।

सन् 1955 से 1957 तक आप लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। सन् 1958 में आप लखनऊ विश्वविद्यालय के इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशयोलॉजी एण्ड ह्यूमन रिलेशन के निदेशक के पद पर भी रहे। सन् 1968 में आपका निदेशक के पर रहते हुए निधन हो गया।

प्रमुख कृतियाँ :
राधाकमल मुकर्जी ने निम्न कृतियों की रचना की :

  1. दी फाउण्डेशन ऑफ इण्डियन इकॉनोमिक्स
  2. दी रूरल इकॉनोमी ऑफ इण्डिया
  3. रिजनल सोशयोलॉजी
  4. दी लेण्ड प्रॉब्लम ऑफ इण्डिया
  5. इन्ट्रोडेक्शन ऑफ सोशयल साइकोलॉजी
  6. फील्ड एण्ड फारमर ऑफ ओउध
  7. सोशयोलॉजी ऑफ मैसटीसीजल
  8. रिजनल बैलेन्स ऑफ मेन
  9. मेन एण्ड हीस हेबेटेशन
  10. इण्टर कास्ट टेंशन
  11. ए जनरल थ्योरी ऑफ सोसायटी
  12. दी डाइमेन्शंस ऑफ ह्यूमन वेल्यूस
  13. दी बेस ऑफ ह्यूमेनीजम : ईस्ट एण्ड वेस्ट

प्रमुख योगदान
मूल्यों की अवधारणा :
डा. मुकर्जी ने मूल्यों की अवधारणा प्रदान की जिसके कारण वे देश-विदेश में विख्यात हुए। उनके योगदान से भारत में मूल्यों का अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र में एक शाखा के रूप में “मूल्यों का समाजशास्त्र” का विकास हुआ।

अन्य योगदान :

  1. भारतीय संस्कृति
  2. समाज का सिद्धांत
  3. सार्वभौमिक सभ्यता का सिद्धान्त
  4. आर्थिक क्रियाकलाप और सामाजिक व्यवहार
  5. व्यक्तित्व, समाज और मूल्य
  6. समुदायों का समुदाय
  7. नगरीय सामाजिक समस्या
  8. सामाजिक पारिस्थितिकी

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