Rajasthan Board RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 मूलभूत अवधारणाएँ-II (संस्था, समिति, संगठन, मूल्य एवं मानदण्ड)
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
“समिति प्रायः किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों द्वारा मिलकर कार्य करने को कहते हैं।” यह कथन किस समाजशास्त्री का है?
(अ) गिन्सबर्ग
(ब) मैकाइवर एवं पेज
(स) गिलिन एवं गिलन
(द) बोगार्डस।
उत्तर:
(द) बोगार्डस।
प्रश्न 2.
निम्नांकित में से कौन-सी विशेषता समिति से संबंधित है?
(अ) मूर्त संगठन
(ब) स्थायित्व
(स) अनिवार्य सदस्यता
(द) नियमों की संरचना।
उत्तर:
(अ) मूर्त संगठन
प्रश्न 3.
निम्नांकित में कौन सी समिति है?
(अ) प्रजातंत्र
(ब) परिवार
(स) विवाह
(द) परीक्षा।
उत्तर:
(ब) परिवार
प्रश्न 4.
“हम समिति के सदस्य होते हैं, संस्था के नहीं।” यह कथन किस विद्वान का है?
(अ) गिन्सबर्ग
(ब) मैकाइवर एवं पेज
(स) बोगार्डस
(द) पारसंस।
उत्तर:
(ब) मैकाइवर एवं पेज
प्रश्न 5.
निम्नांकित में कौन सी संस्था है
(अ) परिवार
(ब) विवाह
(ग) राष्ट्र
(द) गाँव।
उत्तर:
(ब) विवाह
प्रश्न 6.
सामाजिक नियमों के संग्रह को
(अ) प्रस्थिति कहते हैं
(ब) समाज कहते हैं
(स) समिति कहते हैं
(द) संस्था कहते हैं।
उत्तर:
(द) संस्था कहते हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन सी एक समिति है
(अ) व्यापार संघ
(ब) राज्य
(स) टेनिस क्लब
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 8.
उन मानकों को क्या कहते हैं जिनके अनुसार व्यक्तियों की अन्तक्रियाएँ निर्धारित होती हैं
(अ) मानदंड (आदर्श नियम)
(ब) सामाजिक व्यवस्था
(स) अप्रतिमानता
(द) जनमत।
उत्तर:
(अ) मानदंड (आदर्श नियम)
प्रश्न 9.
“सामाजिक मानदंड समूह की आकांक्षाएँ हैं,” यह कथन किस विद्वान का है?
(अ) किंग्स्ले डेविस
(ब) किम्बल यंग
(स) रोबर्ट बीरस्टीड
(द) बुड्स।
उत्तर:
(ब) किम्बल यंग
प्रश्न 10.
निम्नांकित में से कौनसा मानदंड नहीं है?
(अ) जनरीति
(ब) प्रथा
(स) विचलन
(द) वैधानिक कानून।
उत्तर:
(स) विचलन
प्रश्न 11.
दैनिक जीवन के व्यवहार को नियंत्रित करने के सामान्य सिद्धांतों को क्या कहा जाता है?
(अ) समुदाय
(ब) समिति
(स) सामाजिक व्यवस्था
(द) सामाजिक मूल्य।
उत्तर:
(द) सामाजिक मूल्य।
प्रश्न 12.
सामाजिक मूल्यों में कौन से तत्व निहित हैं?
(अ) ज्ञानात्मक तत्व
(ब) भावात्मक तत्व
(स) क्रियात्मक तत्व
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समिति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
समिति मनुष्यों द्वारा विचारपूर्वक बनाया गया ऐसा संगठन है जिसके एक या अनेक उद्देश्य होते हैं, जिसकी अपनी एक कार्यकारिणी होती है।
प्रश्न 2.
संस्था को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के रूप में समाज द्वारा स्वीकृत नियमों एवं कार्यप्रणालियों की संगठित व्यवस्था, संस्था कहलाती है।
प्रश्न 3.
हम समिति के सदस्य होते हैं न कि संस्था के। किसने कहा है?
उत्तर:
उपर्युक्त कथन मैकाइवर एवं पेज का है।
प्रश्न 4.
संगठन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संगठन ऐसे लोगों की वृहद् समिति है जिसके समस्त क्रियाकलाप अवैयक्तिक सम्बन्धों द्वारा संचालित होते हैं। संगठन में किसी-न-किसी रूप में अधिकारी तन्त्र निश्चित रूप से मौजूद होता है।
प्रश्न 5.
औपचारिक संगठन किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे संगठन जिसकी प्रत्येक अन्तःक्रिया प्रणाली के कुछ लक्ष्य होते हैं; जैसे-सेना, सरकारी विभाग एवं राजनीतिक दल आदि। औपचारिक संगठन कहलाते हैं।
प्रश्न 6.
मूल्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मूल्य वे मानक अथवा धारणाएँ हैं, जिनके आधार पर हम किसी व्यक्ति के व्यवहार, लक्ष्य साधन, भावनाओं आदि को उचित या अनुचित, अच्छा-बुरा ठहराते हैं।
प्रश्न 7.
सामाजिक मानदण्ड की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक मानदण्ड समाज में व्यवहार करने के निश्चित एवं प्रामाणिक तरीके हैं जो समाज द्वारा स्वीकृत हैं और हमारे जीवन के हर क्षेत्र में विद्यमान हैं।
प्रश्न 8.
फैशन किसे कहते हैं?
उत्तर:
फैशन मानवीय व्यवहार से सम्बन्धित एक समाज अथवा समूह की एक समय विशेष में पसन्द है। यह समय के साथ परिवर्तित होती रहती है।
प्रश्न 9.
शिष्टाचार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी कार्य को करने का उचित ढंग शिष्टाचार कहलाता है।
प्रश्न 10.
नैतिकता से आप क्या समझते है?
उत्तर:
नैतिकता ऐसी संकल्पना है जिसमें न्याय, पवित्रता एवं सच्चाई के भाव सन्निहित होते हैं। यह व्यक्ति के स्वयं के अच्छे और बुरे महसूस करने पर निर्भर करती है।
प्रश्न 11.
जनरीति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
लोगों द्वारा अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनाए गए तरीके जनरीति कहलाते हैं। आवश्यकताओं में परिवर्तन के साथ इनमें भी परिवर्तन होता रहता है।
प्रश्न 12.
प्रथाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रथाएँ वे व्यवहार हैं, जिनका पालन केवल इसलिए किया जाता है कि बीते हुए समय में उनका पालन किया गया था। प्रथाओं में तर्क होना आवश्यक नहीं है।
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समिति की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
समिति की विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते हैं :
- समिति का निर्माण दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक समिति के अपने निश्चित उद्देश्य होते हैं।
- समिति विचारपूर्वक स्थापित किया गया एक निश्चित संगठन है। उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु, इसमें नियमों की व्यवस्था होती है।
- समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है। साथ ही साथ इसकी प्रकृति भी अस्थायी होती है जैसे ही उद्देश्यों की पूर्ति होती है, इनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
- समिति मूर्त संगठन है। समिति के सदस्यों के बीच सम्बन्ध औपचारिक होते हैं। समिति साधन है, साध्य नहीं है।
प्रश्न 2.
संस्था की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
संस्था की विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत समझ सकते हैं :
- संस्था के उद्देश्य सुपरिभाषित होते हैं एवं इनमें स्थायित्व भी होता है। इसी कारण यह व्यक्तियों की आवश्यकताओं को लगातार पूरा करती रहती है।
- संस्था के उद्देश्य सुस्पष्ट होते हैं। इसमें भौतिक, अभौतिक, सांस्कृतिक उपकरण भी विद्यमान रहते हैं।
- प्रत्येक संस्था का स्वयं का एक प्रतीक होता है। इन्हीं प्रतीकों के माध्यम से संस्थाओं की पहचान होती है।
- प्रत्येक संस्था की अपनी परम्परा होती है। ये परम्पराएँ लोगों के व्यवहार में अनुरूपता लाने में अपना योगदान देती हैं।
प्रश्न 3.
संगठन की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं :
- संगठन लोगों की विशाल समिति है, संगठन कोई भी हो उसमें लोगों की सदस्यता होती है। संगठन में शक्ति एवं प्राधिकार का बँटवारा होता है। संगठन में काम करने वाले लोग सोपानिक व्यवस्था की तरह संगठन से जुड़े होते हैं।
- संगठन में अधिकारी तन्त्र विद्यमान होता है, जो संगठन की निरन्तरता को बनाए रखने का प्रयास करता है। संगठन की प्रकृति प्रकार्यवादी होती है।
- संगठन विशेषज्ञों का जमावड़ा होता है। वस्तुतः संगठन अपने मूल में विशेषज्ञों का जोड़ है। एक बार जब संगठन का उद्भव हो जाता है तो वह अपने आपको बनाए रखना चाहता है।
- संगठन की अपनी एक वैचारिकी होती है। संगठन कोई भी हो, वह किसी न किसी वैचारिकी से अवश्य जुड़ा होता है। संगठन में स्रोत एवं उद्देश्य की संकल्पना निहित होती है।
प्रश्न 4.
सामाजिक मानदण्डों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सामाजिक मानदण्डों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- सामाजिक मानदण्ड में छोटे-बड़े नियम एवं उपनियम विद्यमान होते हैं। ये सभी समाजों में अनिवार्य रूप से पाए जाते हैं। सामाजिक मानदण्ड मानव समाज के साथ ही उत्पन्न हुए हैं।
- सामाजिक मानदण्ड सामाजिक अस्तित्व की रक्षा करते हैं। मा.व स्वचालित रूप से अपने व्यवहार में आजीवन सामाजिक मानदण्डों का पालन करता है। ये मानदण्ड मानव का पथ-प्रदर्शन करते हैं।
- सामाजिक मानदण्ड सापेक्ष होते हैं। ये नैतिक कर्तव्य की भावना से सम्बन्धित होते हैं। ये व्यक्ति को प्रभावित करने के साथ-साथ उनसे प्रभावित भी होते हैं।
- सामाजिक मानदण्ड लिखित एवं अलिखित दोनों ही प्रकार के होते हैं। इनका सम्बन्ध समाज की वास्तविक परिस्थितियों से होता है। सामाजिक मानदण्ड सामाजिक नियन्त्रण के साधन भी हैं।
प्रश्न 5.
मूल्यों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मूल्यों की विशेषताओं को हम निम्नलिखित तरह से समझ सकते है :
- मूल्य सामूहिक होते हैं। ये ऐसे मानक हैं जिनके द्वारा हम किसी वस्तु, व्यवहार, लक्ष्य, साधन व गुण आदि को उचित या अनुचित, अच्छा या बुरा एवं वांछित-अवांछित ठहराते हैं।
- मूल्यों के सम्बन्ध में समूह में एकमतता पायी जाती है। इन मूल्यों के साथ लोगों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं।
- मूल्य गतिशील होते हैं। ये सदैव एक समान नहीं होते। समय एवं परिस्थितियों के अनुसार इनमें बदलाव आते रहते हैं।
- मूल्यों में विभिन्नता पाई जाती है। ये सामाजिक कल्याण एवं सामाजिक आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।
प्रश्न 6.
मूल्यों के प्रकारों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मूल्यों के प्रकारों के सम्बन्ध में समाजशास्त्रियों में मतभेद हैं। भिन्न-भिन्न समाजशास्त्रियों ने मूल्यों के विभिन्न प्रकार बताए हैं। तथापि सी.एम. केस ने सामाजिक मूल्यों के निम्नलिखित चार प्रकार बताए हैं :
- सावयवी मूल्य
- विशिष्ट मूल्य
- सामाजिक मूल्य
- सांस्कृतिक मूल्य
उपर्युक्त के अलावा पेरी महोदय ने नकारात्मक, सकारात्मक, विकासवादी एवं वास्तविक मूल्यों की बात कही है। कुछ अन्य विद्वान मूल्यों को सुखवादी, सौन्दर्यवादी, धार्मिक, आर्थिक, नैतिक व तार्किक आदि प्रकारों में विभक्त करते हैं। इसी तरह स्प्रेगर महोदय ने मूल्यों को सैद्धान्तिक, आर्थिक, सौन्दर्यात्मक, सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक आदि भागों में विभक्त किया है। ऐसे ही एक अन्य वर्गीकरण धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सौन्दर्यात्मक रूप में किया गया है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि मूल्यों के प्रकारों के सम्बन्ध में कोई एक स्थिति सर्वमान्य नहीं है।
प्रश्न 7.
समिति एवं संस्था में दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
समिति एवं संस्था में दो अन्तर अग्रलिखित हैं :
क्र. सं. | समिति | संस्था |
1 | व्यक्तियों के समूह के रूप में समिति को देखा जा सकता है। अतः यह मूर्त है। | संस्था अमूर्त है क्योंकि यह नियमों, कार्यप्रणाली आदि की व्यवस्था है जिसे देखा नहीं जा सकता है। |
2 | समिति की नियन्त्रण शक्ति अपेक्षाकृत कमजोर या शिथिल होती है। | संस्था में नियन्त्रण शक्ति अधिक होती है। संस्था द्वारा मान्य रीति-नीति के विरुद्ध आचारण करना अनुचित व असामाजिक समझा जाता है। |
प्रश्न 8.
जनरीति की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
जनरीति की विशेषताएँ हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते हैं :
- ये एक प्रकार से स्थायी व्यवहार हैं। एक परिस्थिति में इनका पालन करना आवश्यक माना जाता है।
- जनरीतियों का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से नहीं होता। अतः ये अनियोजित होती हैं।
- जनरीतियों का विकास स्वतः एवं मानव अनुभवों के आधार पर होता रहता है। इनका पालन मनुष्य अचेतन रूप से करता रहता है।
- मानव आवश्यकताओं में परिवर्तन होने से जनरीतियों में भी परिवर्तन होता रहता है।
प्रश्न 9.
परम्परा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
परम्परा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- परम्पराओं में निरन्तरता पायी जाती है। ये लम्बे समय की देन होती हैं।
- समाज में परम्पराएँ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती हैं।
- मनुष्य द्वारा परम्पराओं का पालन अचेतन रूप से व बिना विचार किया जाता है।
- परम्पराओं में कठोरता पायी जाती है, इनमें परिवर्तन धीमी गति से होता है। इनका हस्तांतरण लिखित व मौखिक-किसी भी तरह से हो सकता है।
प्रश्न 10.
प्रथाओं की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रथाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- प्रथा में समूह कल्याण के भाव सन्निहित होते हैं।
- ये नवीनता की विरोधी होती हैं। इसलिए कार्य करने के परम्परागत तरीके पर बल देती हैं।
- ये लोकाचारों की तुलना में लोकरीतियों के सन्निकट होती हैं। इसके बावजूद यह दोनों के परम्परागत, स्वचालित तथा सामूहिक चरित्र को स्पष्ट करती हैं।
- प्रथाएँ समाज की सांस्कृतिक धरोहर होती हैं। इनमें तर्क का होना आवश्यक नहीं होता।
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संस्था को परिभाषित कीजिए तथा संस्था की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संस्था की परिभाषा संस्था की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। इस सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों ने अपनी-अपनी परिभाषाएँ दी हैं, जो निम्नलिखित हैं
“कुछ आधारभूत मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु संगठित एवं स्थापित प्रणालियों को सामाजिक संस्थाएँ कहते हैं।” -आगबर्न तथा निमकाफ
“संस्थाएँ सामूहिक क्रिया की विशेषता बताने वाली कार्यप्रणाली के स्थापित स्वरूप या अवस्था को कहते हैं” -मैकाइवर एवं पेज
“एक सामाजिक संस्था समाज की ऐसी संरचना है जिसे मुख्यतः सुस्थापित प्रणालियों के द्वारा लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संगठित किया गया है।” -बोगार्डस
“एक संस्था को किसी एक या अधिक प्रकार्यों के चारों ओर निर्मित अन्तर्सम्बन्धित जनरीतियों (लोकाचारों), रूढ़ियों ओर कानूनों के समुच्चय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” -किंग्सले डेविस
उपर्युक्त चारों परिभाषाओं से स्पष्ट है कि संस्था मानव की मूलभूत जरूरतों की पूर्ति के रूप में समाज द्वारा स्वीकृत नियमों एवं कार्यप्रणालियों की संगठित व्यवस्था है।
संस्था की विशेषताएँ :
संस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- सुपरिभाषित उद्देश्य :
प्रत्येक संस्था के निश्चित एवं सुस्पष्ट उद्देश्य होते हैं जिनकी पूर्ति के लिए संस्था का निर्माण किया जाता है। - स्थायित्व :
संस्थाओं का विकास एक लम्बी अवधि के पश्चात होता है। जब कोई कार्यविधि दीर्घ समय तक समाज के व्यक्तियों की आवश्यकताओं को लगातार पूरा करती रहती है तो उसे एक संस्था के रूप में स्वीकार किया जाता है। - परम्परा :
हर एक संस्था की अपनी परम्पराएँ होती हैं, जो कि लिखित या अलिखित होती हैं। ये परम्पराएँ लोगों के व्यवहारों में एकरूपता लाने में अपना योगदान देती हैं। - सुस्पष्ट उद्देश्य :
प्रत्येक संस्था के अपने एक या अनेक सुस्पष्ट निश्चित उद्देश्य होते हैं जो मानवीय आवश्यकताओं से जुड़े होते हैं। उदाहरण के रूप में शैक्षणिक संस्थाओं के कुछ पूर्णतया स्पष्ट उद्देश्य होते हैं। - सांस्कृतिक उपकरण :
प्रत्येक संस्था से संबंधित भौतिक एवं अभौतिक उपकरण होते हैं जो संस्था के उद्देश्यों की दृष्टि से उपयोगी होते हैं। उदाहरण के रूप में हिन्दू समाज में विवाह के दौरान होम-वेदी, मंडप, कलश, धूप, नैवेद्य इत्यादि भौतिक उपकरण हैं एवं जप, मंत्र इत्यादि विवाह संस्था से संबंधित अभौतिक तत्व हैं। - प्रतीक :
प्रत्येक संस्था का अपना एक निश्चित प्रतीक होता है जिसका स्वरूप भौतिक या अभौतिक हो सकता है उदाहरण के रूप में मंगल कलश विवाह का प्रतीक माना जाता है। इन्हीं प्रतीकों के माध्यम से संस्थाओं की पहचान होती है।
प्रश्न 2.
समिति से आप क्या समझते हैं? समिति की विशेषताओं की विस्तृत रूप से व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समिति:
मनुष्य परस्पर सहयोग के आधार पर अन्य व्यक्तियों के साथ मिल-जुलकर अपनी जरूरतों को पूरा करता है। दूसरे शब्दों में, कुछ लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संगठन बनाकर प्रयत्न करते हैं। इस संगठन को ही समिति कहा जाता है। राजनीतिक दल, कालेज, परिवार, स्कूल आदि समितियों के अन्तर्गत ही आते हैं। समितियों की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
समिति की विशेषताएँ :
समिति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- विचारपूर्वक स्थापना :
समिति विचारपूर्वक स्थापित किया गया संगठन है, जिसकी स्थापना व्यक्तियों के द्वारा कुछ या अनेक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की जाती है। - एक निश्चित संगठन :
प्रत्येक समिति के अपने निश्चित उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों को पूरा करने हेतु निश्चित संगठन का निर्माण किया जाता है। - नियमों पर आधारित :
उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समिति का अपना एक संगठन होता है जिसकी अपनी एक कार्य पद्धति या नियमों की व्यवस्था होती है जिसके आधार पर समिति से सम्बद्ध सदस्य कार्य करते हैं। - व्यक्तियों का समूह :
समिति का निर्माण दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। - निश्चित उद्देश्य :
प्रत्येक समिति के अपने निश्चित उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्ति सहयोग करते हैं। - ऐच्छिक सदस्यता :
किसी भी समिति का सदस्य बनना या नहीं बनना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर होता है। व्यक्ति अपने हित एवं रुचियों के आधार पर विभिन्न समितियों की सदस्यता ग्रहण करता है। - अस्थायी प्रकृति :
समिति की स्थापना एक या अनेक विशिष्ट उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की जाती है और जैसे ही इन समितियों के उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है उनका अस्तित्व खत्म हो जाता है। - मूर्त संगठन :
समिति से आशय व्यक्तियों के ऐसे संगठन से है जिसे कुछ उद्देश्यों की पूर्ति हेतु संगठित किया गया होता है चूँकि समिति का निर्माण व्यथितयों से होता है और व्यक्ति मूर्त दिखाई देते हैं- ऐसी दशा में समिति एक मूर्त संगठन हैं। - औपचारिक संबंध :
चूँकि समिति की सदस्यता व्यक्ति अपने उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए ग्रहण करता है। इस कारण से समिति में उद्देश्य महत्वपूर्ण होते हैं। इस वजह से समिति के विभिन्न सदस्यों के बीच औपचारिक संबंध पाये जाते हैं। - समिति साधन है, साध्य नहीं है :
समिति का निर्माण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है। अत: व्यक्ति अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किसी समिति की सदस्यता ग्रहण करता है। इस प्रकार से समिति के उद्देश्य व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होते हैं न कि संबंध बनाना। अतः समिति की सदस्यता ग्रहण करना हितपूर्ति का एक साधन मात्र है।
प्रश्न 3.
मूल्यों को परिभाषित करते हुए मूल्यों की विभिन्न विशेषताओं का विस्तृत रूप से विवेचन करें।
उत्तर:
मूल्यों के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं, जो निम्नलिखित हैं :
“मूल्यों के द्वारा सभी प्रकार की वस्तुओं, भावनाओं, विचार, क्रिया, गुण, पदार्थ, व्यक्ति, समूह, लक्ष्य एवं साधन आदि का मूल्यांकन किया जाता है।” -जॉनसन
“समाजशास्त्रीय दृष्टि से मूल्यों को उन कसौटियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसके द्वारा समूह या समाज व्यक्तियों, मानदण्डों, उद्देश्यों एवं अन्य सामाजिक सांस्कृतिक वस्तुओं के महत्व का निर्णय करते हैं।” -फिचर
“मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त इच्छाएँ तथा लक्ष्य हैं, जिनका आन्तरीकरण सीखने या समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो प्राकृतिक अधिमान्यताएँ, मानक तथा अभिलाषाएँ बन जाती हैं।” -राधाकमल मुखर्जी
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक मूल्य वे धारणाएँ या मानक हैं, जिनके आधार पर हम किसी व्यक्ति के व्यवहार, वस्तु के गुण, लक्ष्य, साधन एवं भावनाओं आदि को अच्छा या बुरा अथवा उचित-अनुचित ठहराते हैं।
मूल्यों की विभिन्न विशेषताएँ :
- मूल्य गतिशील होते हैं :
मूल्य हमेशा ही एक समान नहीं होते। समय एवं परिस्थितियों के साथ इनमें बदलाव आता रहता है। - मूल्यों में विभिन्नता पायी जाती है :
हर एक समाज के अपने मूल्य होते हैं जो दूसरे समाज के मूल्यों से अलग होते हैं। भारतीय समाज एवं पश्चिमी समाजों के मूल्यों में भिन्नता पायी जाती है। - मूल्य सामाजिक कल्याण एवं सामाजिक आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण समझे जाते हैं :
मूल्य समूह के कल्याण एवं जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं। - मूल्यों के बारे में समूहों में एकमतता पायी जाती है :
समूह एवं समाज के सभी लोगों में मूल्यों के बारे में एकमतता विद्यमान होती है। वे सभी इन्हें स्वीकार करते हैं और मान्यता प्रदान करते हैं। - मूल्यों के पीछे उद्वेग भावनाएँ होती हैं :
मूल्यों के साथ लोगों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं। यही कारण है कि वे व्यक्तिगत हितों को तिलांजलि देकर भी उनकी सुरक्षा करते हैं। - मूल्य सामूहिक होते हैं :
मूल्यों का संबंध किसी व्यक्ति विशेष से नहीं होता है बल्कि ये सारे समूह एवं समाज की धरोहर होते हैं और सारे समूह की इन्हें मान्यता प्राप्त होती है। इनका निर्माण किसी एक व्यक्ति के द्वारा नहीं किया जाता वरन् ये सामूहिक अन्त:क्रिया की उपज एवं परिणाम होते हैं। - मूल्य सामाजिक मानक हैं :
मानक वे होते हैं जिनके द्वारा हम किसी वस्तु को मापते हैं। मूल्य भी मानक हैं जिनके द्वारा हम किसी वस्तु, व्यवहार, लक्ष्य, साधन, गुण आदि को अच्छा या बुरा, उचित या अनुचित, वांछित एवं अवांछित ठहराते हैं। इन्हें हम उच्चस्तरीय सामाजिक मानदंड कह सकते हैं।
प्रश्न 4.
सामाजिक मानदण्डों से आप क्या समझते हैं? सामाजिक मानदण्डों के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
सामाजिक मानदण्ड :
ये समाज के वे नियम हैं जो समाज द्वारा स्वीकार किए गए होते हैं। इनका पालन समाज के अधिकांश लोग करते हैं। वस्तुतः सामाजिक मानदण्ड हमारे व्यवहारों पर नियन्त्रण रखते हैं और हमें उचित-अनुचित में अन्तर बताते हैं। दूसरे शब्दों में समाज में अचारण के नियम ही सामाजिक मापदण्ड कहलाते हैं। सामाजिक मानदण्ड जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पाए जाते हैं। इनकी संख्या अनगिनत है। इनकी सूची भी बनाना कठिन है। भोजन करने, उठने-बैठने, नृत्य करने, कपड़े पहनने, लिखने, गाने, बोलने, स्वागत करने एवं विदा करने आदि सभी क्रियाओं में सामाजिक मानदण्ड पाये जाते हैं। ये हमारे व्यवहार के पथ-प्रदर्शक हैं।
सामाजिक मानदण्डों के प्रकार :
सामाजिक मानदण्डों के तहत निम्नलिखित वस्तुस्थितियाँ सम्मिलित हैं :
जनरीतियाँ अथवा लोकरीतियाँ :
इनका अर्थ लोगों द्वारा अपनी इच्छाओं व आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनाए गए तरीकों से लिया जाता है। इनका पालन मनुष्य अचेतन रूप से करता रहता है। आवश्यकताओं में परिवर्तन होने पर इनमें भी परिवर्तन होता रहता है।
लोकाचार या रूढ़ियाँ :
ये मानव व्यवहार के वे मानदण्ड हैं, जिन्हें समूह कल्याणकारी समझता है। इनका उल्लंघन करना समाज का अपमान करना समझा जाता है। ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रहती हैं।
प्रथाएँ :
ये वह व्यवहार हैं, जिनका पालन केवल इसलिए किया जाता है कि बीते हुए समय में उनका पालन किया गया था। प्रथाओं में तर्क का होना आवश्यक नहीं है।
परम्परा :
सामाजिक विरासत का अभौतिक पक्ष ही परम्परा कहलाता है। इनका पालन लोगों द्वारा बिना किसी . तर्क-वितर्क के स्वतः ही किया जाता है।
नैतिकता तथा धर्म :
नैतिकता में न्याय, ईमानदारी, सच्चाई, निष्पक्षता, कर्तव्यपरायणता, अधिकार, स्वतन्त्रता, दया एवं पवित्रता आदि जैसी धारणाएँ सन्निहित होती हैं। इनमें तार्किकता पायी जाती है।
धर्म में तर्क का कोई स्थान नहीं है। यह विश्वास तथा भावनाओं पर जोर देता है। धार्मिक नियमों का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी कि मानव की सामाजिक चेतना।
कानून :
ये वे नियम हैं, जिनके पीछे राज्य की शक्ति होती है। इनका उल्लंघन करने पर दण्ड देने की शक्ति समाज के एक संगठित समूह में होती है, जिसे सरकार कहा जाता है।
परिपाटी एवं शिष्टाचार :
यह किसी भी कार्य को करने का एक परम्परात्मक तरीका है। इनके द्वारा व्यवस्था के एक निश्चित स्वरूप को प्रकट किया जाता है।
शिष्टाचार एक साधन है जिससे समाज के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों की पहचान होती है। शिष्टाचार दूसरों के प्रति हमारी बाह्य सद्भावना को भी व्यक्त करता है।
फैशन एवं धुन :
यह मानवीय व्यवहार से सम्बन्धित एक समाज अथवा समूह की एक समय विशेष में पसन्द है। यह समय के साथ बदलती रहती है।
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
“एक संस्था को किसी एक या अधिक प्रकार्यों के चारों ओर निर्मित अन्तर्सम्बन्धित जनरीतियों (लोकाचारों), रूढ़ियों और कानूनों के समुच्चय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” यह परिभाषा है
(अ) बोगार्डस की
(ब) किंग्सले डेविस की
(स) मैकाइवर एवं पेज की
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) किंग्सले डेविस की
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में किस समाजशास्त्री ने संस्था के उद्विकास को प्रकट किया है?
(अ) समनर ने
(ब) जिन्सबर्ग ने
(स) गिडिंग्स ने
(द) एम. एम. श्रीनिवास ने।
उत्तर:
(अ) समनर ने
प्रश्न 3.
जब कोई व्यक्ति किसी क्रिया को बार-बार दुहराता है तो उससे निर्माण होता है .
(अ) प्रवृत्ति का
(ब) प्रथा का
(स) आदत का
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) आदत का
प्रश्न 4.
संस्थाएँ प्रकृति से होती हैं
(अ) प्रयोगवादी
(ब) प्रगतिवादी
(स) लोकतन्त्रवादी
(द) रूढ़िवादी।
उत्तर:
(द) रूढ़िवादी।
प्रश्न 5.
महाविद्यालय है
(अ) केवल समिति
(ब) केवल संस्था
(स) समिति और संस्था दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) समिति और संस्था दोनों
प्रश्न 6.
“सामान्य हित या हितों की पूर्ति के लिए दूसरों के साथ सोच-विचार कर संगठित किए गए समूह को समिति कहते हैं”। यह परिभाषा है
(अ) समनर की
(ब) योगेन्द्र सिंह की
(स) इरावती कर्वे की
(द) मैकाइवर व पेज की।
उत्तर:
(द) मैकाइवर व पेज की।
प्रश्न 7.
संगठन चाहे किसी भी प्रकार का हो, उसकी एक विशेषता यह है कि.
(अ) उसमें अधिकारी तंत्र नहीं होता
(ब) अधिकारी तन्त्र होता है
(स) कभी होता है, कभी नहीं होता
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) अधिकारी तन्त्र होता है
प्रश्न 8.
“एक संगठन लोगों की ऐसी वृहत् समिति है, जिसकी गतिविधियाँ अवैयक्तिक सम्बन्धों द्वारा संचालित होती हैं। यह संगठन निश्चित लक्ष्यों की पूर्ति करता है।” संगठन के सम्बन्ध में यह परिभाषा है
(अ) एन्थोनी गिडेन्स की
(ब) बोगार्डस की
(स) गिडिंग्स की
(द) मिचेल्स की।
उत्तर:
(अ) एन्थोनी गिडेन्स की
प्रश्न 9.
सामान्यतया समाजशास्त्रियों ने संगठन को निम्नलिखित में किस रूप में देखा है?
(अ) एकाकी
(ब) सर्वनिष्ठात्मक
(स) प्रकार्यात्मक
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) प्रकार्यात्मक
प्रश्न 10.
“मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त इच्छाएँ तथा लक्ष्य हैं, जिनका आन्तरीकरण सीखने या समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो प्राकृतिक अधिमान्यताएँ, मानक तथा अभिलाषाएँ बन जाती हैं।” यह परिभाषा निम्नलिखित समाजशास्त्रियों में किसके द्वारा प्रस्तुत की गई?
(अ) एम.एन. श्रीनिवास
(ब) इरावती कर्वे
(स) योगेन्द्र सिंह
(द) राधा कमल मुखर्जी।
उत्तर:
(द) राधा कमल मुखर्जी।
प्रश्न 11.
सी.एम. केस ने सामाजिक मूल्यों को निम्नलिखित में कितने भागों में बाँटा है?
(अ) चार
(ब) पाँच
(स) छः
(द) आठ।
उत्तर:
(अ) चार
प्रश्न 12.
समाजशास्त्री इमाईल दुर्थीम व्यक्ति के लिए सामाजिक मूल्यों का पालन मानते हैं
(अ) स्वाभाविक
(ब) बाध्यकारी
(स) वैकल्पिक
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) बाध्यकारी
प्रश्न 13.
मानव को मानदण्डों का निर्माण करने वाला प्राणी बताया है
(अ) इमाईल दुर्थीम ने
(ब) मैकाइवर एवं पेज ने
(स) गिडिंग्स ने
(द) मैरिल ने।
उत्तर:
(द) मैरिल ने।
प्रश्न 14.
“सामाजिक मानदण्ड वे नियम हैं जो मानव व्यवहार को नियन्त्रित करते हैं, व्यवस्था में सहयोग देते हैं तथा किसी विशेष स्थिति में व्यवहार की भविष्यवाणी करना सम्भव बनाते हैं।” यह परिभाषा है
(अ) वुड्स की
(ब) मैरिल की
(स) हारालाम्बोस की
(द) किम्बाल यंग की।
उत्तर:
(अ) वुड्स की
प्रश्न 15.
सामाजिक मानदण्ड सभी व्यक्तियों पर अथवा सभी परिस्थितियों में
(अ) समान रूप से लागू होते हैं
(ब) समान रूप से लागू नहीं होते
(स) उदासीन रहते हैं
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 16.
बीरस्टीड ने मानदण्डों को विभक्त किया है
(अ) तीन श्रेणियों में
(ब) चार श्रेणियों में
(स) पाँच श्रेणियों में
(द) छः श्रेणियों में।
उत्तर:
(अ) तीन श्रेणियों में
प्रश्न 17.
परम्परा सामाजिक विरासत का है
(अ) भौतिक पक्ष
(ब) राजनैतिक पक्ष
(स) अभौतिक पक्ष
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) अभौतिक पक्ष
प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री ने कानूनों को दो भागों-प्रथागत कानून और वैधानिक कानून
में विभक्त किया?
(अ) रॉस
(ब) प्रो. डेविस
(स) किम्बाल यंग
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) प्रो. डेविस
प्रश्न 19.
निम्नलिखित में किस समाजशास्त्री ने फैशन को प्रथाओं के बीच पाए जाने वाले भेदों को दूर करने – वाला माना है?
(अ) किंग्सले डेविस
(ब) रॉस
(स) किम्बाल यंग
(द) स्पेंसर।
उत्तर:
(द) स्पेंसर।
प्रश्न 20.
“फैशन वह प्रचलन या फैली हुई रीति, तरीका, कार्य करने का ढंग अभिव्यक्ति की विशेषता या सांस्कृतिक लक्षणों को प्रस्तुत करने की विधि है, जिसे बदलने की आज्ञा स्वयं प्रथा देती है।” यह परिभाषा निम्नलिखित में किस समाजशास्त्री की है?
(अ) किम्बाल यंग
(ब) किंग्सले डेविस
(स) मैकाइवर एवं पेज
(द) रॉस
उत्तर:
(अ) किम्बाल यंग
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समाजशास्त्रीय दृष्टि से परिवार क्या है? इसके प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
समाजशास्त्रीय दृष्टि से परिवार एक समिति है। इसके मुख्य कार्य संतानोत्पत्ति, बच्चों का पालन-पोषण और सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं को परा करना है।
प्रश्न 2.
आगबर्न एवं निमकाफ की संस्था से सम्बन्धित परिभाषा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
कुछ आधारभूत मानवीय अवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु संगठित एवं स्थापित प्रणालियों को सामाजिक संस्थाएँ कहते हैं।”
प्रश्न 3.
संस्थाओं के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संस्थाओं के विभिन्न प्रकार हैं-सामाजिक संस्थाएँ, आर्थिक संस्थाएँ, राजनीतिक संस्थाएँ, धार्मिक संस्थाएँ, शैक्षणिक संस्थाएँ एवं मनोरंजनात्मक संस्थाएँ आदि।
प्रश्न 4.
आदत का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
किसी क्रिया को बार-बार दुहराने से आदत का निर्माण होता है।
प्रश्न 5.
जनरीति या लोकरीति किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई आदत सारे समूह की आदत बन जाती है तो उसे जनरीति या लोकरीति कहते हैं।
प्रश्न 6.
प्रथा का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
जब जनरीति में भूतकाल का सफल अनुभव जुड़ जाता है और समाज उसको मान्यता प्रदान कर देता है तो वह प्रथा का रूप धारण कर लेती है।
प्रश्न 7.
रूढ़ि या लोकाचार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब प्रथा में सामूहिक स्वीकृति और सामूहिक कल्याण की भावना सम्बद्ध हो जाती है तो उसे रूढ़ि या लोकाचार कहते हैं।
प्रश्न 8.
समिति तथा संस्था में एक महत्वपूर्ण अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समिति अस्थायी होती है जबकि संस्था अपेक्षाकृत स्थायी होती है।
प्रश्न 9.
समिति से सम्बन्धित मोरिस गिब्सबर्ग की परिभाषा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
समिति एक-दूसरे से सम्बद्ध सामाजिक प्राणियों का समूह है। यह किसी निश्चित हित या हितों की पूर्ति हेतु बनाया गया सामान्य संगठन है।
प्रश्न 10.
“सामान्य हित या हितों की पूर्ति के लिए दूसरों के साथ सोच-विचार कर संगठित किए गए समूह को समिति कहते हैं।” यह परिभाषा किनकी है ?
उत्तर:
मैकाइवर एवं पेज की।
प्रश्न 11.
विभिन्न प्रकार की समितियों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर;
विभिन्न प्रकार समितियाँ हैं-व्यापारिक समितियाँ, सांस्कृतिक समितियाँ, शैक्षिणक समितियाँ, राजनैतिक समितियाँ एवं मनोरंजनात्मक समितियाँ आदि।
प्रश्न 12.
औपचारिक संगठन के सम्बन्ध में जॉनसन की परिभाषा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
“संगठन अन्तः क्रिया प्रणाली है। प्रत्येक अन्तः क्रिया प्रणाली के कुछ लक्ष्य होते हैं। जिनके लिए सदस्य व्यक्तियों की गतिविधियों में सामंजस्य बिठाना कुछ अंशों तक आवश्यक है।”
प्रश्न 13.
संगठन एक तरह की ऐच्छिक समिति है। संगठन की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर है। यह किसने कहा ?
उत्तर:
समाजशास्त्री मिचेल्स ने।
प्रश्न 14.
“सामाजिक मानदण्ड समूह की अपेक्षाएँ हैं।” यह परिभाषा किस समाजशास्त्री की है?
उत्तर:
समाजशास्त्री किम्बल यंग की।
प्रश्न 15.
सामाजिक मानदण्ड के सम्बन्ध में हारालाम्बोस का दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हारालाम्बोस के अनुसार प्रत्येक संस्कृति में ऐसे निर्देश बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जो विशिष्ट परिस्थितियों में व्यवहार को निर्देशित करते हैं। ऐसे निर्देशों को ही मानदण्ड कहते हैं।
प्रश्न 16.
सामाजिक मानदण्ड की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक मानदण्ड व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं। साथ ही उनसे प्रभावित भी होते हैं।
प्रश्न 17.
प्रो. किंग्सले डेविस द्वारा प्रस्तुत सामाजिक मानदण्डों के वर्गीकरण में कौन-कौन सी वस्तु स्थितियाँ सन्निहित हैं?
उत्तर:
प्रो. किंग्सले डेविस द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण में जनरीतियाँ, रूढ़ियाँ, कानून, संस्थाएँ, नैतिकता व धर्म, परिपाटी, शिष्टाचार, फैशन व धुन आदि वस्तुस्थितियाँ सन्निहित हैं।
प्रश्न 18.
परम्पराओं के सम्बन्ध में जेम्स ड्रीवर की परिभाषा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
“परम्परा कानून, प्रथा, कहानी और पौराणिक कथाओं का वह संग्रह है जो मौखिक रूप में एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है।
प्रश्न 19.
परम्परा के किसी एक महत्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
परम्पराएँ व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित करती हैं।
प्रश्न 20.
हाबल की कानून से सम्बन्धित परिभाषा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
“कानून एक सामाजिक नियम है जिसका उल्लंघन होने पर धमकी देने या वास्तव में शारीरिक बल प्रयोग करने का एकाधिकार एक समूह को होता है, जिसे ऐसा करने का समाज द्वारा मान्य विशेषाधिकार प्राप्त है।”
प्रश्न 21.
प्रथागत कानून कहाँ पाए जाते हैं ?
उत्तर:
ये कानून उन समाजों में पाए जाते हैं जहाँ सामाजिक नियमों का पालन करवाने के लिए विशिष्ट संगठन नहीं होते।
प्रश्न 22.
वैधानिक कानून किन समाजों की विशेषता है?
उत्तर:
वैधानिक कानून आधुनिक समाजों की विशेषता है।
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
संस्था की परिभाषाओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
संस्था की कोई एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं, जो निम्नवत् हैं :
“एक संस्था को किसी एक या अधिक प्रकार्यों के चारों ओर निर्मित अन्तर्सम्बंधित जनरीतियों (लोकाचारों), रूढ़ियों और कानूनों के समुच्चय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” -किंग्सले डेविस
“एक सामाजिक संस्था समाज की ऐसी संरचना है जिसे मुख्यतः सुस्थापित प्रणालियों के द्वारा लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संगठित किया गया है।” -बोगार्डस
“कुछ आधारभूत मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु संगठित एवं स्थापित प्रणालियों को सामाजिक संस्थाएँ कहते हैं।” -आगबर्न एवं निमकाफ
“संस्थाएँ सामूहिक क्रिया की विशेषता बताने वाली कार्यप्रणाली के स्थापित स्वरूप या अवस्था को कहते हैं। -मैकाइवर एवं पेज
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि संस्थाएँ मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के रूप में समाज द्वारा स्वीकृत नियमों एवं कार्य पद्धतियों की संगठित व्यवस्था हैं।
प्रश्न 2.
संस्था का उद्विकास कैसे होता है? समझाइए।
उत्तर:
अमेरिका के समाजशास्त्री समनर ने संस्था के उविकास को जाना-समझा है। उनके अनुसार संस्था क्रमशः विकसित हुई वस्तुस्थितियों का परिणाम है। किसी भी संस्था का प्रारंभ मानव की जरूरतों को पूरा करने के विचार से होता है और जब वह विचार कार्यरूप में बदलता है तो उसे हम क्रिया कहते हैं। किसी भी क्रिया को बार-बार दुहराने पर वह व्यक्ति की आदत बन जाती है। यही आदत जब सारे समूह की आदत बन जाती है तब उसे जनरीति या लोकरीति कहते हैं। जब जनरीति में भूतकाल का सफल अनुभव जुड़ जाता है और समाज उसको मान्यता प्रदान कर देता है तो वह प्रथा का रूप ग्रहण कर लेती है। जब इस प्रथा में सामूहिक स्वीकृति तथा सामूहिक कल्याण की भावना जुड़ जाती है तब उसे रूढ़ि या लोकाचार कहते हैं। लोकाचारों के चारों ओर जब एक ढाँचा या कार्य प्रणाली विकसित हो जाती है तो वह एक संस्था का रूप धारण कर लेती है।
प्रश्न 3.
उद्देश्य एवं प्रकार की दृष्टि से संस्था की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक संस्था के एक या अनेक उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति अच्छी तरह से होती रहे इसलिए प्रत्येक संस्था के निश्चित नियम एवं कार्य प्रणलियाँ होती हैं। संस्थाओं का उद्देश्य पृथक्-पृथक् होने के कारण ही ये विभिन्न प्रकार की होती हैं; जैसे :
- सामाजिक संस्थाएँ
- आर्थिक संस्थाएँ
- राजनीतिक संस्थाएँ
- धार्मिक संस्थाएँ
- शैक्षणिक संस्थाएँ
- मनोरंजनात्मक संस्थाएँ
उपर्युक्त संस्थाएँ मनुष्य के विभिन्न हितों या उद्देश्यों की पूर्ति के माध्यम के रूप में कार्य करती हैं। इनमें से प्रत्येक प्रकार की संस्था के तहत नियम, विधि-विधान और कार्य-प्रणाली की व्यवस्था विद्यमान होती है।
प्रश्न 4.
महाविद्यालय का उदाहरण प्रस्तुत कर समिति एवं संस्था की संकल्पना प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
सामान्य अर्थों में समिति एवं संस्था को एक ही मान लिया जाता है किन्तु समाजशास्त्रीय दृष्टि से इन दोनों में आधारभूत अन्तर है। इस बात को हम महाविद्यालय के उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं। वस्तुतः महाविद्यालय एक समिति एवं संस्था दोनों ही है। जब हम महाविद्यालय पर एक संगठित समूह के रूप में विचार करते हैं अर्थात् प्राचार्य, विभागाध्यक्षों, प्राध्यापकों, अन्य कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों की दृष्टि से सोचते हैं तो यह एक समिति है, जिसके कुछ उद्देश्य हैं। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए महाविद्यालय की शिक्षण की पद्धति, समय-सारिणी, नियम एवं आचरण संबंधी बातें तथा परीक्षा की एक प्रणाली आदि होते हैं। यह सब मिलकर महाविद्यालय को एक संस्था का रूप प्रदान करते हैं। अन्य शब्दों में, यहा कहा जा सकता है कि जब हम महाविद्यालय पर नियमों, कार्य-प्रणाली अर्थात् कार्य के ढंग, शिक्षण-पद्धति, परीक्षा-प्रणाली आदि के रूप में विचार करते हैं तो वह एक संस्था है।
प्रश्न 5.
समिति की परिभाषा देते हुए उसका आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
समिति के सम्बन्ध में कोई एक परिभाषा सर्वमान्य नहीं है। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं, जो निम्नलिखित हैं :
“सामान्य हित या हितों की पूर्ति के लिए दूसरों के साथ सोच-विचार कर संगठित किए गए समूह को समिति कहते हैं।” -मैकाइवर एवं पेज
“समिति एक संगठनात्मक समूह है जिसका निर्माण सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया गया है और जिसका अपना एक आत्मनिर्भर प्रशासकीय ढाँचा तथा कार्यकर्ता होते हैं।” -फेयर चाइल्ड
“समिति एक-दूसरे से सम्बद्ध सामाजिक प्राणियों का समूह है। यह किसी निश्चित हित या हितों की पूर्ति हेतु बनाया गया एक सामान्य संगठन है।” -मोरिस गिब्सबर्ग प्रस्तुत
परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट है कि समिति को मनुष्यों के द्वारा विचारपूर्वक बनाये गये एक ऐसे संगठन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके एक या अनेक उद्देश्य होते हैं एवं जिसकी अपनी एक कार्यकारिणी होती है।
प्रश्न 6.
समिति के प्रकारों को समझाइए।
उत्तर:
समिति के प्रकार-चूँकि समाज में निवास करने वाले व्यक्तियों के हित या उद्देश्य अनेक होते हैं। ऐसी स्थिति में समाज में अनेक प्रकार की समितियों का निर्माण होता है, जो निम्नवत् हैं :
- हित आर्थिक समितियाँ, व्यापारिक समितियाँ-मजदूर संगठन
- सांस्कृतिक समितियाँ-लोक कला मण्डल
- राजनैतिक समितियाँ राजनीतिक दल
- शैक्षणिक समितियाँ-भारतीय समाजशास्त्रीय परिषद
- मनोरंजनात्मक समितियाँ-संगीत मण्डल, खेल मण्डल।
प्रश्न 7.
सी. एम. केस ने सामाजिक मूल्यों को कितने भागों में बाँटा है? प्रत्येक को समझाइए।
उत्तर:
समाजशास्त्री सी. एम. केस ने सामाजिक मूल्यों को निम्नलिखित चार भागों में विभक्त किया है :
- सावयवी मूल्य :
इस प्रकार के मूल्यों का संबंध आग, पानी आदि से है। - शिष्ट मूल्य :
प्रत्येक व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत विशेषताएँ, रुचि एवं विचार होते हैं। उन्हीं के आधार पर वह किसी वस्तु का मूल्यांकन करता है, उदाहरण के लिए, विधवा पुनर्विवाह एवं बाल विवाह को कोई व्यक्ति उचित मानता है तो कोई अनुचित - सामाजिक मूल्य :
कुछ मूल्यों का संबंध सामाजिक जीवन से होता है। सामाजिक व्यवहार, परंपराओं एवं आदतों के संबंध में प्रत्येक समाज में कुछ मूल्य पाये जाते हैं। - सांस्कृतिक मूल्य इनका संबंध संस्कृति से होता है। इसके अन्तर्गत उपकरणों, प्रतीकों, सत्यता, सुंदरता एवं उपयोगिता आदि से संबंधित मूल्य आते हैं।
प्रश्न 8.
प्रथागत कानून को समझाइए।
उत्तर:
प्रथागत कानून:
प्रथागत कानून उन समाजों में पाये जाते हैं जिन समाजों में सामाजिक नियमों का पालन करवाने के लिए विशिष्ट संगठन नहीं होते हैं। इस प्रकार के नियमों को प्रथागत कानून इसलिए कहते हैं क्योंकि वे समुदाय की अमर परंपरा के अंश होते हैं। इन्हें लागू करने के लिए कोई वैधानिक संस्था नहीं होती। वस्तुतः ये सांस्कृतिक विरासत के भाग होते हैं। इन्हें हम जनरीतियाँ एवं पूर्णतः विकसित कानूनों के बीच की अवस्था कह सकते हैं। प्रो. किंग्सले डेविस के अनुसार, ‘आरंभ में यदि मानव समाज में कई विधियाँ थीं तो वे ऐसी ही प्रथागत विधियाँ थीं। प्रथागत कानून हमें आदिम जातियों एवं कृषक समाजों में देखने को मिलते हैं। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण अफ्रीका की बुशमैन तथा होटेण्टोट जनजातियाँ हैं।
प्रश्न 9.
वैधानिक कानून को समझाइए।
उत्तर:
वैधानिक कानून-आधुनिक जटिल समाजों में केवल जनमत, अनौपचारिक शक्ति और नैतिक चेतना के द्वारा ही व्यवस्था स्थापित नहीं की जा सकती, बल्कि वहाँ किसी प्रकार का राजनैतिक संगठन आवश्यक हो जाता है। जब जनसंख्या एवं राज्य के कार्यक्षेत्र में वृद्धि होती है तो सारे समुदायों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे अपराधियों को पकड़ने के लिए स्वयं दौड़ पड़ें तथा उन्हें दंड दे। इस कारण हमें समाज के नियमों को लागू करने एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए किसी विशिष्ट संस्था की आवश्यकता पड़ती है।
इसके लिए पुलिस की व्यवस्था की जाती है। सामाजिक जीवन में जटिलता एवं विभिन्नता के बढ़ने पर नवीन परिस्थितियों में प्राचीन लोकाचार अनुपयुक्त होते जाते हैं, तब समुदाय के लिए कानून के रूप में नये नियम बनायें जाते हैं। विधान मंडल द्वारा यह कार्य किया जाता है। कानूनों को औपचारिक रूप से लागू किया जाता है। इसी को वैधानिक कानून कहते हैं।
प्रश्न 10.
बीरस्टीड के शिष्टाचार विषयक तीन उद्देश्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
बीरस्टीड के शिष्टाचार विषयक तीनों उद्देश्यों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत समझ सकते हैं :
- अन्य प्रतिमानों की तरह शिष्टाचार भी कुछ व्यवहारों को स्वीकृत करता है जिसका विशेष अवसरों पर प्रयोग किया जाना चाहिए।
- शिष्टाचार महत्वपूर्ण सामाजिक विशेषताओं को प्रकट करता है।
- यह उन व्यक्तियों से एक निश्चित सामाजिक दूरी बरतता है जहाँ अधिक परिचय एवं घनिष्ठता नहीं होती है।
शिष्टाचार में औपचारिकता ज्यादा होती है और यह उन लोगों के साथ अधिक प्रयुक्त होता है जिनसे घनिष्ठता न हो। शिष्टाचार के आधार पर हम एक व्यक्ति के वर्ग एवं सामाजिक प्रतिस्थति का भी निर्धारण कर सकते हैं। शिष्टाचार एक साधन है जिससे समाज के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों की पहचान होती है। शिष्टाचार दूसरों के प्रति हमारी बाह्य सद्भावना को भी व्यक्त करता है।
प्रश्न 11.
सामाजिक मानदण्डों के समाजशास्त्रीय महत्व को समझाइए।
उत्तर:
सामाजिक मानदण्डों के समाजशास्त्रीय महत्व को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते :
- बीरस्टीड की दृष्टि में बिना सामाजिक मानदंडों के सामाजिक संबंध अनियमित और संभवतः खतरनाक हो जायेंगे।
- सामाजिक मानदंड हमारे क्रियाकलापों एवं विचारों को प्रभावित करते हैं। इन्हीं के माध्यम से हम अपने व्यवहार को व्यवस्थित तथा समाज के अन्य सदस्यों के अनुकूल बनाते हैं जिससे सामाजिक जीवन के कार्य व्यवस्थित होते हैं।
- सामाजिक मानदंड सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाते हैं।
- सामाजिक मानदंड व्यक्ति में समूह के प्रति निष्ठा, उत्साह एवं आकांक्षाओं को उत्पन्न करते हैं। ये व्यक्ति में समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना को विकसित करते हैं।
उपर्युक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि सामाजिक मानदंड समाज में व्यवस्था, स्थिरता, समानता एवं एकरूपता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ समाज एवं संस्कृति से अनुकूलन में सहयोग देते हैं।
RBSE Class 11 Sociology Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संस्था के उद्विकास में कौन-से अवयव महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं? इनके क्रमिक विकास को समझाइए।
उत्तर:
संस्था के विकास में निम्नलिखित अवयव महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :
- विचार या अवधारणा :
मनुष्य की आवश्यकताएँ अनेक प्रकार की हैं जिनकी पूर्ति के लिए वह कुछ-न-कुछ विचार और साधनों को ढूँढने का प्रयत्न करता ही रहता है। इस प्रकार आवश्यकता-पूर्ति मानव को साधन ढूँढने हेतु विचार करने को प्रेरित करती है। - वैयक्तिक आदत :
आवश्यकता-पूर्ति से संबंधित विचारों को जब व्यक्ति कार्यरूप में परिणत करता है तो उसे क्रिया कहते हैं। जब व्यक्ति किसी भी क्रिया या कार्य को बार-बार दुहराता है अथवा प्रयोग में लाता है तो उससे आदत का निर्माण होता है। इस प्रकार जब तक आवश्यकता की पूर्ति के लिए वह किसी कार्य द्वारा सफलता प्राप्त करता है और भविष्य में भी वैसी ही आवश्यकता महससू होने की पर उसी कार्य को दुहराता है तो वह व्यक्ति की आदत बन जाती है। इस प्रकार आदत का निर्माण विचार और क्रिया को दुहराने से होता है। - समूह की आदत या जनरीति :
जब लोग किसी एक तरीके द्वारा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता पूर्ति में सफल होते हुए देखते हैं तो उस तरीके को समाज के अन्य लोग भी अपना लेते हैं। जब समाज के अनेक व्यक्ति उस तरीके की बार-बार पुनरावृत्ति करते हैं तो वह क्रिया जनरीति कहलाती है। - प्रथा :
जब जनरीति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है और उसमें भूतकाल का सफल अनुभव जुड़ा होता है तथा जिसे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हो जाती है तो वह प्रथा का रूप धारण कर लेती है। - रूढ़ि या लोकाचार :
जब प्रथा में सामूहिक कल्याण की भावना जुड़ी होती है और उसे सारे समूह की स्वीकृति मिल जाती है तथा समाज के अधिकांश लोग उसका पालन करने लगते हैं तो वे रूढ़ियाँ लोकाचार का रूप ४ पारण कर लेती हैं।
रूढ़ियों एवं लोकाचारों को समाज के लिए कल्याणकारी माना जाता है। ऐसी दशा में उनकी सुरक्षा के लिए उनके चारों ओर कई छोटे-छोटे नियमों, उपनियमों, कानूनों आदि का ढाँचा खड़ा कर दिया जाता है। इस ढाँचे के फलस्वरूप संस्था का जन्म होता है।
प्रश्न 2.
संस्था के कार्य एवं महत्व का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संस्था के कार्य एवं महत्व :
संस्था के कार्य एवं महत्व का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है :
- व्यवहारों पर नियंत्रण :
संस्थाएँ सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन हैं। प्रत्येक संस्था व्यक्तियों के कार्य की दिशा अथवा व्यवहार का एक तरीका निश्चित कर उन्हें उसी के अनुरूप कार्य करने का आदेश देती है। परिवार और जाति नामक संस्थाएँ हजारों वर्षों से समाज के सदस्यों के व्यवहारों को नियंत्रित कर रही हैं। - स्थिति एवं कार्य का निर्धारण :
संस्था व्यक्ति को स्थिति (पद) प्रदान करने और इससे संबंधित कार्य (भूमिका) का निर्धारण करती है। विवाह-संस्था के द्वारा एक पुरुष को पति की और स्त्री को पत्नी की प्रस्थिति प्राप्त होती है तथा साथ ही इनसे संबंधित कार्य भी निर्धारित होते हैं। एक महाविद्यालय में किसी को आचार्य की, किसी को व्यवस्थापक की तो किसी को पुस्तकालयाध्यक्ष की स्थिति प्राप्त होती है और साथ ही इनसे संबंधित कार्य भी। - सामाजिक परिवर्तन में सहायक :
संस्थाएँ प्रकृति से रूढ़िवादी होती हैं और इनसे शीघ्रता से कोई परिवर्तन नहीं आ पाता है लेकिन जब परिस्थितियाँ काफी कुछ बदल जाती हैं तो परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार संस्थाओं में बदलाव आना भी आवश्यक हो जाता है। ऐसी दशा में संस्थाएँ बदलती हैं। समय के साथ-साथ संस्थाओं को बदलने का प्रयत्न भी किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक परिवर्तन संभव हो पाता है। - संस्कृति की वाहक :
संस्था संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। संस्थाओं के माध्यम से ही संस्कृति की रक्षा होती है, उसे स्थायित्व प्राप्त होता है। परिवार संस्कृति के हस्तांतरण का एक प्रमुख साधन है। - व्यक्तियों के कार्य को सरल बनाती हैं :
संस्था मानव व्यवहार के सभी आचरणों को एक सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करके यह स्पष्ट करती है कि व्यक्तियों को क्या कार्य करना है अथवा उनके कार्यों की दिशा क्या होनी चाहिए। इस प्रकार संस्था कार्य करने की एक निश्चित विधि या प्रणाली का निर्धारण कर देती है। व्यक्ति साधारणतः इसी प्रणाली के अनुरूप कार्य करते रहते हैं। - व्यवहारों में अनुरूपता :
संस्था से संबंधित एक निश्चित कार्य-प्रणाली, कुछ नियम एवं परंपराएँ होती हैं। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन्हीं की मदद लेता है। जब एक समूह के लोग अपने कुछ विशिष्ट संस्थाओं के नियमों एवं परंपराओं को ध्यान में रखते हुए व्यवहार करते हैं तो उनके व्यवहारों में अनुरूपता या समानता होना स्वाभाविक है। अन्य शब्दों में संस्थाएँ, व्यक्तियों के व्यवहारों में अनुरूपता उत्पन्न करने में योगदान देती हैं। - मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति एवं कार्य की दिशा :
प्रत्येक संस्था का विकास किसी-न-किसी मानवीय आवश्यकता को लेकर होता है। इसी कारण संस्थाओं को मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन के रूप में देखा जाता है। जब संस्थाएँ आवश्यकताओं को पूरा करने का कार्य बंद कर देती हैं तो उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामाजिक संस्थाएँ अनेक उपयोगी कार्य करती हैं। ये कार्य व्यक्ति, समाज और संस्कृति की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होते हैं।
प्रश्न 3.
समिति तथा संस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समिति एवं संस्था में अन्तर निम्नलिखित हैं
प्रश्न 4.
‘हम समितियों के सदस्य होते हैं, संस्थाओं के नहीं’ इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
‘हम समितियों के सदस्य होते हैं, संस्थाओं के नहीं’ इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण मैकाइवर एवं पेज का यह कथन कि हम समितियों के सदस्य होते हैं, न कि संस्थाओं के पूर्णतः सत्य है। समिति से मनुष्यों के एक संगठित समूह का बोध होता है जबकि संस्था से एक कार्य-प्रणाली का। परिवार, महाविद्यालय, धार्मिक संगठन, राजनीतिक दल आदि व्यक्तियों के समूह के रूप में समितियाँ हैं और नियमों, विधि-विधानों और कार्य-प्रणालियों के ढाँचे के रूप में संस्थाएँ। जब समितियाँ बनायी जाती हैं तो उनके कार्य-संचालन के कुछ नियम, विधि विधान और कार्य-प्रणालियाँ भी विकसित हो जाती हैं जो संस्थाओं के नाम से जानी जाती हैं। मैकाइवर और पेज के अनुसार यदि किसी व्यवस्था पर संगठित समूह के रूप में विचार करते हैं तो वह एक समिति है और यदि कार्य-प्रणाली के रूप में तो वह संस्था है। समिति से सदस्यता का पता चलता है, संस्था से कार्य-प्रणाली या सेवा के तरीके के साधन का।
परिवार, आर्थिक संघ, धार्मिक संघ, राजनीतिक दल, राज्य, अस्पताल, लोकसभा आदि में से प्रत्येक समिति और संस्था दोनों ही हैं। ये सब संगठित समूह भी हैं और इन सबके अपने-अपने नियम, विधि-विधान एवं कार्य-प्रणालियाँ भी हैं। संगठित समूह के रूप में इनमें से प्रत्येक समिति है और नियमों व कार्य-प्रणाली की व्यवस्था के रूप में संस्था। हम समिति (संगठित समूह) के सदस्य तो हो सकते हैं और होते हैं परंतु नियमों एवं कार्य-प्रणाली की व्यवस्था (संस्था) के नहीं। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम समितियों के सदस्य होते हैं, न कि संस्थाओं के।
प्रश्न 5.
संगठन के लक्षणों को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
संगठन के लक्षण निम्नलिखित हैं :
- संगठन लोगों की विशाल समिति है :
संगठन कोई भी हो, उसमें लोगों की सदस्यता होती है। इन सदस्यों के संबंध संगठन के उद्देश्यों से सम्बद्ध होते हैं लेकिन ये संबंध अवैयक्तिक होते हैं। - शक्ति एवं प्राधिकार का बँटवारा :
संगठन में कार्य करने वाले व्यक्ति सोपानिक व्यवस्था की तरह संगठन से जुड़े होते हैं। इनमें गैर बराबरी होती है। संगठन कैसा भी हो-छोटा या बड़ा इसमें व्यक्तियों के प्राधिकार होते हैं। ये प्राधिकार गैर बराबर होते हैं। वस्तुतः संगठन शक्ति और प्राधिकार की एक ऐसी गठरी है जो अपने सदस्यों को उच्चोच्च व्यवस्था में रख देती है। - संगठन विशेषज्ञों का जमावड़ा है :
बर्न्स, स्टालकर, फिलिप जैसे कई समाजशास्त्री हैं जिनके अनुसंधान बताते हैं कि संगठन अपने मूल में विशेषज्ञों का जोड़ है। अमिताई एटिजिओनी ने एक जगह तर्क दिया है कि जब संगठन व्यावसायिक निर्णय लेता है तो इसका आधार विशेषज्ञों द्वारा दी गई तकनीकी सलाह है। यदि सार्वजनिक निर्माण विभाग किसी पुलिया को बनाने के लिए निर्णय लेता है तो इसके पीछे इंजीनियर का विशिष्ट ज्ञान होता है। कुछ इसी तरह चिकित्सालय, विश्वविद्यालय आदि के निर्माण का आधार भी विशिष्ट और तकनीकी ज्ञान पर निर्भर होता है। - संगठन वस्तुतः अधिकारी तन्त्र है :
संगठन एक अधिकारी तन्त्र है। ऐसी अवस्था में इसके पीछे मूल धारणा यह है कि इसके सदस्य उसकी निरंतरता को बराबर बनाये रखने का प्रयास करते हैं। सरकार किसी की भी बने, कोई भी प्रधानमंत्री या मुख्य सचिव बने, सरकार का संगठन तो बराबर बना रहता है। अधिकारी तन्त्र और संगठन की यह प्रकृति अपने आप में जीवित रहने का प्रयास करती है। - संगठन बना रहना चाहता है :
एक बार जब संगठन का आविर्भाव हो जाता है तब ताकतवर प्रवृत्ति अपने आपको टिकाए रखने की होती है। संगठन में भी पुनरावृत्ति, निरंतरता और जीवित रहने की क्षमता है। श्रमिक संगठन, राजनीतिक दल संगठन हैं। एक बार जब ये अस्तित्व में आ जाते हैं तो इन्हें समाप्त करना कठिन हो जाता है। यह संभव है कि समय की शक्ति के साथ संगठन की स्थिति खराब हो जाए, फिर भी बने रहने की इसकी क्षमता इसका शक्तिशाली लक्षण है। - संगठन प्रकार्यात्मक है, यह एक व्यवस्था है :
संगठन की प्रकृति प्रकार्यवादी है। अधिकतर विचारकों के अनुसार संगठन की बुनियादी धारणा व्यवस्था सिद्धान्त से जुड़ी है। मैक्स वेबर वस्तुतः प्रकार्यवादी थे और इसी तरह फिलिप भी प्रकार्यवादी थे। हर दृष्टि से संगठन की प्रकृति प्रकार्य और व्यवस्था से बँधी हुई है।
उपरोक्त के अलावा संगठन की अपनी वैचारिकी होती है। समाज में जितने भी संगठन होते हैं वे किसी-न-किसी वैचारिकी से अवश्य जुड़े होते हैं। संगठन में संसाधनों एवं उद्देश्य की भूमिका भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 6.
सामाजिक मूल्यों के महत्व की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक मूल्यों का महत्व निम्नलिखित है :
- सामाजिक संगठन एवं एकीकरण :
सामाजिक मूल्य समाज में एक विशिष्ट प्रकार के स्वीकृत एवं प्रतिभाजित व्यवहारों को जन्म देते हैं। समूह के सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इन प्रतिमानित व्यवहारों के अनुरूप आचरण करें, ताकि समाज में संगठन एवं एकीकरण बना रहे। समान आदर्शों, व्यवहारों एवं मूल्यों को स्वीकार करने के कारण आत्मीयता एवं सामुदायिक भावना का विकास होता है। - भौतिक संस्कृति का महत्व बढ़ाते हैं :
भौतिक संस्कृति के कुछ तत्व कुछ लोगों या समूह के लिए चाहे इतने अधिक महत्वपूर्ण न भी हों किंतु उनके पीछे सामाजिक मूल्य होते हैं। अतः लोग उन वस्तुओं को रखने में रुचि रखते हैं। उदाहरण के लिए, टेलीविजन, कार एवं टेलीफोन कुछ व्यक्तियों के लिए अधिक उपयोगी न होने पर भी वे उन्हें इसलिए रखना चाहते हैं क्योंकि इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। सामाजिक मूल्य इन वस्तुओं को उपयोगी एवं प्रतिष्ठासूचक मानते हैं। - व्यक्ति के लिए महत्व :
सामाजिक मूल्यों का व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से भी घनिष्ठ संबंध है। सामाजिक मूल्य सारे समूह एवं समाज की देन होते हैं। व्यक्ति समाजीकरण द्वारा इन सामाजिक मूल्यों को आत्मसात् करता है और अपने व्यवहार, आचरण एवं जीवन को उनके अनुरूप ढालने का प्रयत्न करता है। इसके परिणामस्वरूप वह सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन सरलता से कर लेता है। - सामाजिक भूमिकाओं का निर्देशन :
सामाजिक मूल्य यह भी तय करते हैं कि एक व्यक्ति किसी विशिष्ट प्रस्थिति में किस प्रकार भूमिका निभायेगा। समाज उससे किस प्रकार का आचरण करने की अपेक्षा करता है। सामाजिक मूल्यों में अन्तर के कारण ही सामाजिक भूमिकाओं में भी अंतर पाया जाता है। भारत में प्रति-पत्नी की भूमिका अमरीका व इंग्लैंड में पति-पत्नी की भूमिका से इसलिए भिन्न है कि इन देशों की मूल्य व्यवस्था में भी अंतर है और ये मूल्य ही भूमिका निर्वाह का निर्देशन करते हैं। - अनुरूपता एवं विपथगमन को स्पष्ट करते हैं :
सामाजिक मूल्यों के आधार पर ही हम सामाजिक व्यवहार को अनुरूपता तथा विपथगमन में बाँटते हैं, जो व्यवहार सामाजिक मूल्यों के अनुकूल होते हैं उन्हें अनुरूपता एवं जो व्यवहार इनके विपरीत होते हैं, उन्हें विपथगमन कहते हैं। समाज में अनुरूपता एवं विपथगमन का अध्ययन सामाजिक मूल्यों के ज्ञान के आधार पर ही किया जा सकता है। - सामाजिक नियंत्रण :
सामाजिक मूल्य सामाजिक नियंत्रण के सशक्त साधन हैं। ये व्यक्ति एवं समह पर एक निश्चत प्रकार का व्यवहार करने या न करने के लिए दबाव डालते हैं।’ - समाज के आदर्श विचारों एवं व्यवहारों के प्रतीक :
सामाजिक मूल्यों में आदर्श निहित होते हैं। सामाजिक मूल्यों को सामाजिक स्वीकृति एवं मान्यता प्राप्त होती है। यही कारण है कि सामाजिक मूल्यों को उस समाज के आदर्श विचारों एवं व्यवहारों का प्रतीक माना जाता है। - समाज में एकरूपता उत्पन्न करते हैं :
सामाजिक मूल्य सामाजिक संबंधों एवं व्यवहारों में एकरूपता उत्पन्न करते हैं। सभी व्यक्ति समाज में प्रचलित मूल्यों के अनुसार ही आचरण करते हैं। इसके परिणामस्वरूप सभी के व्यवहरों में समानता उत्पन्न होती है। - सामाजिक क्षमता का मूल्यांकन :
सामाजिक मूल्यों द्वारा ही समाज के व्यक्ति यह जानने में समर्थ होते हैं कि दूसरे लोगों की दृष्टि से उनका क्या स्थान है, वे सामाजिक संस्तरण में कहाँ स्थित हैं। समूह एवं व्यक्ति की क्षमता का मूल्यांकन सामाजिक मूल्यों के आधार पर किया जाता है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि हर एक समाज की दिशा निर्धारित करने में सामाजिक मूल्यों की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
प्रश्न 7.
परम्पराओं के महत्व को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
परम्पराओं के तहत समस्याओं को सुलझाने एवं परिस्थितियों का सामना करने के पुराने ढंगों के आधार पर नए ढंगों की खोज की जा सकती है। वस्तुतः परम्पराएँ हमें आत्मविश्वास, साहस एवं धैर्य प्रदान करती हैं। इनके महत्व को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते हैं :
- ये व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- परंपराओं में भूतकाल का अनुभव निहित होता है। अतः हम उनके सहारे नवीन संकटों एवं परिस्थितियों का मुकाबला आसानी से कर सकते हैं।
- परंपराएँ राष्ट्रीय भावना के विकास में सहायक होती हैं। गिन्सबर्ग के अनुसार, परंपराएँ राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। परम्पराएँ सामाजिक तनाव को कम करके सामाजिक विकास की एक दिशा निर्धारित करती हैं। परम्पराओं से सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं का अस्तित्व बना रहता है।
- परंपराएँ सामाजिक जीवन को सरल बनाती हैं। हमारे व्यवहार का मार्गदर्शन करती हैं और समाजीकरण में योगदान देती हैं।
- परंरपराएँ सामाजिक जीवन में एकरूपता लाती हैं।
- परंपराएँ व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करती हैं।
Leave a Reply