Rajasthan Board RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 कम्प्यूटरीकृत लेखांकन पद्धति
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित उपकरणों में से निवेश युक्ति (Input Device) है
(अ) की-बोर्ड
(ब) मॉनीटर
(स) हार्ड डिस्क
(द) प्रिन्टर।
उत्तर-
(अ)
प्रश्न 2.
कम्प्यूटर में मेमोरी (Memory) का मुख्य कार्य है ।
(अ) प्रोग्राम को चलाना
(ब) हार्डवेयर को नियन्त्रित करना
(स) स्टोरेज करना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(स)
प्रश्न 3.
सी.पी.यू. का पूरा नाम है.
(अ) कन्ट्रोल प्रोसेस यूनिट (Control Process Unit),
(ब) सेन्ट्रल प्रोडक्शन यूनिट (Central Production Unit)
(स) सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit)
(द) कन्ट्रोल प्रोग्राम यूनिट (Control Programme Unit)
उत्तर-
(स)
प्रश्न 4.
कम्प्यूटर निर्देशों का एक समूह जो समंकों को प्रभावी रूप से व्यवस्थित व संगठित करता है, उसे कहते हैं
(अ) प्रोग्राम
(ब) सूचना प्रणाली
(स) डाटाबेस (Database)
(द) समंक (Data)
उत्तर-
(अ)
प्रश्न 5.
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के लाभ हैं
(अ) गति
(ब) विश्वसनीयता
(स) सुपाठ्य
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(द)
प्रश्न 6.
किसी संस्था के व्यापारिक खाता, लाभ-हानि खाता आदि कार्यों का प्रतिवेदन होता है
(अ) अपवाद प्रतिवेदन
(ब) प्रतिवेदन का ढाँचा
(स) उत्तरदायित्व प्रतिवेदन
(द) संक्षिप्त प्रतिवेदन
उत्तर-
(द)
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से प्रबन्धकीय प्रक्रिया है
(अ) योजना बनाना
(ब) निर्देश देना
(स) नियन्त्रण
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(द)
प्रश्न 8.
सॉफ्टवेयर (Software) है.
(अ) भाषा
(ब) क्रमादेश
(स) कम्प्यूटर के भौतिक भाग
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन-सी भाषा को कम्प्यूटर सीधा समझ लेता है
(अ) मशीन भाषा
(ब) असेम्बली भाषा,
(स) अंग्रेजी भाषा
(द) उच्चस्तरीय भाषा
उत्तर-
(अ)
प्रश्न 10.
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन की सॉफ्टवेयर के संघटक हैं-
(अ) विक्रय
(ब) क्रय
(स) खाताबही
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(स)
प्रश्न 11.
लेखांकन (कम्प्यूटरीकृत) प्रणाली की विशेषता है
(अ) क्रय-विक्रय छपे हुए रूप में
(ब) लेखा समंकों का ऑनलाइन निवेश
(स) उपर्युक्त (अ) और (ब) दोनों
(द) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर-
(स)
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कम्प्यूटर लेखा प्रणाली के कोई दो लक्षण बताइए।
उत्तर-
कम्प्यूटर लेखा प्रणाली के दो महत्वपूर्ण लक्षण (Characteristics) निम्न हैं
1. सटीकता (Accuracy) – इसका तात्पर्य कम्प्यूटर द्वारा की गई गणना एवं संक्रिया के सम्पूर्ण स्तर से है। इसे परिशुद्धता भी कहा जा सकता है। उपयोगकर्ता द्वारा की गई गणना की त्रुटियों को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के माध्य से कुछ ही समय में शुद्ध कर दिया जाता है। मेनुअल प्रणाली में इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है । कम्प्यूटर सभी त्रुटियों एवं अशुद्धियों को शुद्ध करने का कार्य बड़ी तीव्रता से करता है। त्रुटियों के निवारण के बाद परिणामों में सटीकता रहती है।
2. गति (Speed) – किसी निश्चित कार्य को करने के लिए कम्प्यूटर द्वारा लिए समय को गति कहा जाता है। मेनुअल लेखांकन प्रक्रिया में खाताबही बनाने से लेकर तलपट, लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा बनाने में काफी समय की बर्बादी होती है । कम्प्युटर लेखांकन के सॉफ्टवेयर द्वारा यह कार्य काफी कम समय में कर दिया जाता है। ऐसा इसके प्रोसेसिंग के कारण होता है। साधारणतः समय की गणना मिनट या सेकण्ड में की जाती है परन्तु कम्प्यूटर समय की गणना सेकण्ड के अंशों तक करने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 2.
कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली (Computerized Accounting System)-“कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा सम्पूर्ण लेखांकन की गतिविधियों को कम्प्यूटर के माध्यम से संचालित किया जाता है।”
प्रश्न 3.
प्रबन्धन सूचना प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रबन्ध सूचना प्रणाली (Management Information System)-
एक व्यावसायिक प्रणाली का प्रबन्धन उसके द्वारा लिए गये निर्णयों पर आधारित होता है। यह निर्णय समय पर प्राप्त होने वाली सूचनाओं पर आधारित होते हैं। एक व्यवसाय की सूचना प्रणाली जितनी सुदृढ़ होगी, उसके निर्णयों में उतनी ही सटीकता एवं पारदर्शिता रहेगी। यह सब एक कुशल प्रबन्धन सूचना प्रणाली द्वारा सम्भव है । प्रबन्धन सूचना प्रणाली वह प्रणाली है, जो एक संस्था की बाकी प्रणालियों का आधार तैयार करती है । लेखांकन सूचना प्रणाली में सूचनायें समयानुकुल, सटीक तथा व्यवस्थित होती हैं। अन्य शब्दों में प्रबन्धन सूचना प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जो निर्णय लेने एवं किसी व्यवसाय के सुचारु रूप से प्रबन्ध के लिए जरूरी सूचना तैयार करती है। लेन-देन परितन्त्र लेन-देन वृत्त में खरीद बही, विक्रेता/सप्लायर की अग्रिम,सूची को बढ़ाना,खाते की देनदारी आदि सभी कुछ होती है। ये सभी सूचनायें प्रबन्ध सूचना प्रणाली संस्था के अन्य विभागों को वितरित करता है। अतः यह निर्णय लेने वाले व्यक्तियों को जरूरी वित्तीय डेटा की सूचना देता है जो कि कम्प्यूटरीकृत सूचना प्रणाली का एक उपभाग है। इस विवरण की माँग नियमित अथवा विशिष्ट भी हो सकती है। संस्था के दीर्घकालीन नीतिगत लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को पूरा करने में यह प्रणाली सहयोग करती है । प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली को मुख्य रूप से निम्न बिन्दुओं में परिभाषित किया जा सकता है
- एक एकीकृत यूजर मशीन सिस्टम है।
- सूचना उपलब्ध कराती है।
- प्रबन्धन, संचालन विश्लेषण
- व्यवसाय द्वारा उपयोग।
प्रश्न 4.
कस्टमाइड लेखीकन सॉफ्टवेयर किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के लिए लेखांकन सॉफ्टवेयर एक प्रमुख अंग है। इसके अभाव में कम्प्यूटर द्वारा लेखांकन कार्य सरलता से नहीं हो सकता है।
व्यवस्थित सॉफ्टवेयर (Customized Software)
यह मध्यम एवं बड़े व्यापारियों के लिए उपयोगी होती है। इनकी स्थापना एवं देखरेख की लागत अधिक आती है क्योंकि तैयार सॉफ्टवेयर में उपयोगकर्ता की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करना पड़ता है। इसमें गोपनीयता बढ़ जाती है तथा अधिकृत व्यक्ति ही इसका उपयोग कर सकता है। ये सब सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के कारण उपयोगकर्ता के प्रशिक्षण तथा बिक्री के बाद की सेवा की लागते अधिक आती हैं।
प्रश्न 5.
कम्प्यूटर के विभिन्न घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर-
कम्प्यूटर के तीन प्रमुख घटक होते हैं
- इनपुट इकाई
- आउटपुट इकाई
- केन्द्रीय प्रोसेसिंग इकाई (Central Processing Unit)
1. इनपुट यत्र (Input Device)-
यह वह डिवाइस होती है जिससे हम कम्प्यूटर से कोई भी डाटा या कमाण्ड इनपुट करा सकते हैं। इनपुट डिवाइस के उदाहरण हैं, माउस, की-बोर्ड, स्केनर, डी. वी. डी, पेन ड्राइव, कार्डरीडर, माइक्रोफोन ।
2. आउटपुट यन्त्र (Output Device)-
यह वह हार्डवेयर डिवाइस होती है जिससे हमें कम्प्यूटर से कोई भी डाटा या कोई भी आउटपुट प्राप्त होती है। उदाहरण के लिये—मॉनीटर, स्पीकर, प्रिन्टर, प्रोजेक्टर, हैडफोन । जैसे लेखा समंकों को कम्प्यूटर में फीड करने के पश्चात् उनकी प्रोसेसिंग द्वारा लाभ-हानि खाता एवं तलपट निकाला जाता है। जिसे मोनीटर के माध्यम से प्रदर्शित किया जा सकता है।
3. केन्द्रीय प्रोसेसिंग इकाई (Central Processing Unit)-
कम्प्यूटर का मुख्य भाग है, इसे आप कम्प्यूटर का मस्तिष्क भी कह सकते हैं। इसका कार्य कम्प्यूटर पर आने वाले इनपुट और निर्देशों को प्रोसेस करना है।
प्रश्न 6.
सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट क्या है ?
उत्तर-
सेण्ट्रल प्रोसेसिंग इकाई (Central Processing Unit)-कम्प्यूटर का मुख्य भाग है,इसे आप कम्प्यूटर का मस्तिष्क भी कह सकते हैं। इसका कार्य है कम्प्यूटर पर आने वाले इनपुट और निर्देशों को प्रोसेस करना है। । कम्प्यूटर की यह यूनिट अंकगणित, तार्किक, नियन्त्रण से जुड़े कार्य, इनपुट कार्य, आउटपुट कार्य सम्पन्न करती है । इसे आमतौर पर प्रोसेसर के रूप में भी जाना जाता है। कम्प्यूटर को ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों की आवश्यकता होती है। यह दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर से हार्डवेयर कमाण्ड दी जाती है किसी हार्डवेयर को कैसे कार्य करना है उसकी जानकारी सॉफ्टवेयर के अन्दर पहले से ही स्टोर कर दी जाती है । कम्प्यूटर के सीपीयू से कई प्रकार के हार्डवेयर जुड़े रहते हैं, इन सबके बीच तालमेल बनाकर कम्प्यूटर को ठीक प्रकार से चलाने का काम करता है।
इसे कम्प्यूटर में मदर बोर्ड पर लगाया जाता है और मदर बोर्ड के माध्यम से ही कम्प्यूटर के अन्य घटकं एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
CPU के मुख्य घटक –
- अंकगणितीय तर्क इकाई (Arithmetic Logic Unit)
- प्रोसेसर रजिस्टर (Processor Register)
- नियन्त्रण इकाई (Control Unit)-कम्प्यूटर के कार्य प्रणाली की प्रक्रिया एक चरणबद्ध तरीके से होती है
इनपुट (Input)—–प्रोसेसिंग (Processing)——आउटपट (Output)
कम्प्यूटर की पूर्ण प्रक्रिया निम्न चरणों में समझी जा सकती है –
इनपुट के लिये आप की-बोर्ड,माउस इत्यादि इनपुट डिवाइस का प्रयोग करते हैं साथ ही कम्प्यूटर को सॉफ्टवेयर के माध्यम से कमाण्ड या निर्देश देते हैं या डेटा एंटर करते हैं।
यह इस प्रक्रिया का दूसरा भाग है, इसमें आपके द्वारा दी गयी कमाण्ड या डेटा को प्रोसेसर द्वारा सॉफ्टवेयर में उपलब्ध जानकारी, और निर्देशों के अनुसार प्रोसेस कराया जाता है।
तीसरा और अन्तिम भाग आउटपुट, इसमें आपके द्वारा दी गयी कमाण्ड के आधार पर प्रोसेस की गयी जानकारी का आउटपुट कम्प्यूटर द्वारा आपको दिया जाता है, जो आपको आउटपुट डिवाइस द्वारा प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न 7.
लेखकन सूचना प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लेखांकन सूचना प्रणाली (Accounting Information System)
लेखांकन में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग को लेखा सूचना प्रणाली कहते हैं। इसके माध्यम से कम्प्यूटर का प्रयोग वित्तीय लेखांकन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों, जैसे—कर, अंकेक्षण, बजटिंग आदि। इन सभी क्षेत्रों की सूचनाओं का उपयोग प्रबन्धकीय निर्णयों के लिए किया जाता है । लेखांकन सूचना प्रणाली अन्य क्रियाशील सूचना प्रणालियों के लिए सूचनाओं का आदान-प्रदान करती है। इस प्रणाली में संस्था द्वारा किए गए व्यवसाय का सामूहिक, क्रमबद्ध लेखा-जोखा होता है। जैसे व्यवसाय द्वारा किसी माल के विक्रय पर उसका बीजक बनाना, विक्रय आदेश लेना एवं उसका क्रियान्वयन करना, स्टॉफ की स्थिति, परिवहन की स्थिति, कर्मचारियों का वेतन आदि । लेखांकन सूचना प्रणाली के अन्तर्गत वित्त से सम्बन्धित सभी सूचनाओं का उच्च प्रबन्धन से लेकर, मध्य एवं निचले प्रबन्धन तक आदान-प्रदान किया जा सकता है । इस प्रणाली के द्वारा किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में आर्थिक सूचना को अनेक प्रकार के उपयोगकर्ताओं के लिए पहचान, संग्रह एवं प्रक्रम तैयार करती है। वित्तीय सूचनाओं से सम्बन्धित डेटा इस तरह से व्यवस्थित होते हैं कि उनका उपयोग कर सही निर्णय लिया जा सके। इसके अतिरिक्त लेखांकन सूचना प्रणाली समस्त संसाधनों का एक मिश्रण है, जिससे वित्तीय एवं अन्य डेटा को सूचना में परिवर्तित करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सूचनाएँ विभिन्न प्रकार के उपयोगकर्ताओं एवं निर्णयकर्ताओं को उनकी सुविधानुसार प्रदान की जाती हैं। इस प्रणाली का प्रयोग इस बात की सुनिश्चितता प्रदान करता है, विभिन्न प्रकार के वित्तीय लेन-देन एवं सौदों का नियन्त्रण किया जा सके। कम्प्यूटर के प्रयोग के साथ इस प्रणाली में तीव्रता से सूचनाओं का आदान-प्रदान करना एवं सुविधानुसार वित्तीय प्रतिवेदनों को निकालना है। प्रबन्धन को निर्णय लेने के लिए जानकारी का उपयोग करने के लिए उस जानकारी को सही तरह से प्रबन्धन करना चाहिए। अतः सूचना प्रबन्धन में शामिल है।
- जरूरी जानकारी निर्धारित करना,
- जानकारी एकत्रित करना और उसका विश्लेषण करना,
- जानकारी को भण्डारित करना और जब जरूरत हो, पुनः प्राप्त करना,
- उपयोग करना और जानकारी को फैलाना।
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हार्डवेयर (Hardware)-
कम्प्यूटर यन्त्र के वह अंग जिससे इस मशीन को चालित किया जाता है ऐसे सभी अंगों को हार्डवेयर कहते हैं। इन सभी अंगों (यन्त्र) का संचालन विद्युत द्वारा किया जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं। इनपुट यन्त्र—जिसके माध्यम से सूचनाओं को कम्प्यूटर में फीड किया जाता है, जैसे-की-बोर्ड, माउस, पेन ड्राइव । आउटपुट यन्त्र—जिसके माध्यम से सूचनाओं को प्रकट (Display) किया जाता है। मॉनीटर एवं प्रिन्टर इसके उदाहरण हैं।
सॉफ्टवेयर (Software)-
सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर को चलाने के लिए अथवा कोई निश्चित परिणाम प्राप्त करने के लिए कम्प्यूटर को दिए गए निर्देश प्रोग्राम्स का एक समूह है, जो हार्डवेयर के माध्यम से कार्य करता है। यह सारे निर्देश कोड के माध्यम से कम्प्यूटर में स्टोर किये जाते हैं। सॉफ्टवेयर में सबसे प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम होता है जिससे पूरी कम्प्यूटर प्रणाली संचालित होती है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर एवं उपयोगकर्ता के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है, जिसके द्वारा कम्प्यूटर के स्रोत व्यवस्थित हो जाते हैं, एवं . इस पर कार्य करना उपयोगकर्ता के लिए आसान हो जाता है। सॉफ्टवेयर को तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है
(i) कम्प्यूटर पर कुछ निश्चित प्रकार के कार्य करने के लिए यूटिलिटी प्रोग्राम्स बनाये जाते हैं, जिसके माध्यम से मुख्य कार्य के अतिरिक्त कुछ सहयोगी सक्रियाओं का कार्य होता है। यह सभी प्रोग्राम्स भी सॉफ्टवेयर की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार के प्रोग्राम्स द्वारा किसी फाइल को हस्तान्तरित करना, डेटा को डिलिट करना, स्टोर करना, कॉपी करना आदि कार्य किये जाते हैं।
(ii) इसी प्रकार लैंगुएज प्रोसेस एक सॉफ्टवेयर है जो एक स्रोत प्रोग्राम को मशीन की मात्रा में परिवर्तित करता है । मशीन भाषा वह भाषा है जिसके द्वारा कम्प्यूटर को दिए गए निर्देशों को कम्प्यूटर अपनी भाषा में परिवर्तित करता है।
(iii) अनुप्रयोग (application) सॉफ्टवेयर एक प्रोग्रामों का समूह जिसके द्वारा किसी एक निश्चित प्रक्रिया को किया जाता है, ऐसे सॉफ्टवेयर को अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर अथवा (application software) कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर; वित्तीय लेखांकन पे-रोल (वेतन की गणना), स्कन्ध का लेखा आदि । इसी प्रकार से सिस्टम सॉफ्टवेयर मशीन की आनतरिक क्रियाओं को नियन्त्रित एवं संचालित करता है।
प्रश्न 2.
कम्प्यूटर लेखा प्रणाली की सीमाएँ बताइए।
उत्तर-
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली की सीमाएँ (Limitations of Computerized Accounting System)-
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली की मुख्य सीमाओं का उदय उसके प्रचालकों के वातावरण में कार्य करने के द्वारा होता है। ये सीमायें नीचे दी गयी हैं
1. प्रशिक्षण की लागत कम्प्यूटरीकृत लेखांकन पैकेज के लिये सामानयतः प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। फलतः कम्प्यूटर लेखांकन प्रणाली को प्रभावशाली एवं कार्यक्षमता के लिये, हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर के प्रयोग करने की तकनीकी की जानकारी को प्राप्त करने के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
2. कर्मचारियों का विरोध जब कभी भी लेखांकन को कम्प्यूटरीकृत किया जाता है तब लेखा कर्मचारियों द्वारा इसका विरोध, किया जाता है ये कर्मचारी इसकी पूर्व धारणा से ग्रसित होते हैं कि संगठन में उनकी महत्वता कम हो जायेगी तथा इनकी संगठन संख्या पर भी प्रभाव पड़ेगा।
3. विघटन जब कोई संगठन कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली की ओर अग्रसर होता है तो उसे लेखांकन प्रणाली के कार्य में समय की बर्बादी के दौर से गुजरना पड़ता है। यह केवल कार्य के वातावरण में परिवर्तन के कारण होता है एवं इसके लिये ऐसे लेखा कर्मचारियों की आवश्यकता होती है जो इस प्रणाली व उसके कार्य करने के तरीके को अपना सकें।
4. प्रणाली की विफलता कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली की गम्भीर सीमा तब आती है जब प्रणाली में टकराव के कारण हार्डवेयर की विफलता और अनुवर्ती कार्य की हानि के कारण भयानक स्थिति उत्पन्न हो जाती है । जबकि बैक-अप व्यवस्था द्वारा इस स्थिति से निजात पाया जा सकता है । सॉफ्टवेयर की विफलता उस परवाइरस के आक्रमण के कारण आ सकती है। ऐसी स्थिति वस्तुतः लेखांकन प्रणाली संक्रिया में इण्टरनेट का व्यापक ऑनलाइन प्रयोग के कारण आती है। सॉफ्टवेयर वाइरस के आक्रमण को रोकने के लिये कोई भी त्रुटिरहित या सुस्पष्ट हल उपलब्ध नहीं है।
5. गलती की जाँच में असमर्थ चूँकि कम्प्यूटर में न्याय करने की क्षमता का अभाव होता है जैसा कि मानव जाति में विद्यमान है । कम्प्यूटर स्वयं अनिरूपित गलती को ढूंढ़ नहीं सकते हैं। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सॉफ्टवेयर के प्रोग्राम में पहचान की गई गलतियों का समूह होता है जिसे यह सॉफ्टवेयर पकड़ सकता है।
6. सुरक्षा में दरार कम्प्यूटर से सम्बन्धित अपराधों को खोजना एक कठिन कार्य है, किसी भी डाटा की प्रतिलिपि की सूचना के बिना आगे बढ़ा जा सकता है । मानवीय लेखांकन प्रणाली में इसे प्रथम दृष्टि में ही साधारण रूप से ही हूँढ़ लिया जाता है । कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली में धोखाधड़ी और गबन को डाटा या प्रोग्रामों के बदल द्वारा सम्पादित किया जाता है । लेखांकन अभिलेखों को उपयोगकर्ता के पासवर्ड (Password) की चोरी या अधिकृत जानकारी में फेरबदल कर इसे प्राप्त कर सकते हैं। इसे दूरसंचार की टेपिंग, लाइन टेपिंग अथवा प्रोग्रामों (क्रमादेश) को पुनः खोलकर प्राप्त किया जाता है । मानवीयकृत प्रणाली में इन कार्यों को सरलता से किया जाता है।
7. स्वास्थ्य पर बीमारी का प्रभाव कम्प्यूटर के व्यापक प्रयोग से कई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जैसेकमर दर्द, आँखों में जलन, माँसपेशियों में दर्द । एक और लेखांकन कर्मचारियों की कार्यदक्षता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और दूसरी ओर कर्मचारियों के चिकित्सक सम्बन्धी व्यय बढ़ जाते हैं।
8. सामान्य चेतना की शुन्यता-कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग इस प्रकार से की जाती है कि वह उसके अनुसार निर्णय देता है। यदि हमारे निर्देशों में किसी भी प्रकार की कोई छोटी गलत हो तो परिणामों पर बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। मशीन में यह क्षमता नहीं होती है कि वह स्वतः ही उस छोटी त्रुटि में सुधार कर सही परिणाम उपयोगकर्ता को दे सकें। इसलिए सामान्य चेतना के अभाव के कारण गलत परिणामों की सम्भावनायें रहती हैं।
9. निर्णय लेने की असमर्थता कम्प्यूटर किसी भी प्रकार का निर्णय स्वयं नहीं ले सकता क्योंकि वह उपयोगकर्ता द्वारा प्रोग्राम किए गए निर्देशों के अनुसार कार्य करता है। उसे हर प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए प्रोग्राम के द्वारा निर्देश देने होते हैं । कम्प्यूटर में मनुष्यों जैसे स्वयं निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती है। किसी भी प्रकार के छोटे से छोटे निर्णय लेने हेतु कम्प्यूटर को निर्देश देने पड़ते हैं।
10. खर्चीली प्रणाली कम्प्यूटर प्रणाली को व्यवसाय में स्थापित करने के लिए बड़े व्यय करने की आवश्यकता होती है। मेनुअल प्रणाली में होने वाले खर्चे सीमित होते हैं। समय-समय पर सॉफ्टवेयर का नवीनीकरण भी कराना पड़ता है जिससे व्ययों के बढ़ने की सम्भावना रहती है। किसी छोटे व्यापारी के लिए यह खर्च वहन करना सम्भव नहीं होता है। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी करना पड़ता है।
11. सुरक्षा की कमी-कम्प्यूटर में संचित किया हुआ डेटा एक व्यवसाय की सारी गुप्त सूचनाओं का समावेश होता है । कोई भी अनाधिकृत व्यक्ति उस डेटा को निकाल कर उसका दुरुपयोग कर सकता है।
प्रश्न 3.
कम्प्यूटर लेखा प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कम्प्यूटर लेखा प्रणाली की विशेषताएँ (Importance of Computer Accounting System)- एक कम्प्यूटर अपनी कुछ विशिष्टताओं के कारण मैन्युअल सिस्टम से ज्यादा कार्यदक्षता रखता है। तीव्र प्रतिस्पर्धा एवं बढ़ते व्यापारिक लेन-देन की जटिलताओं को कम करने के लिए इस प्रणाली का महत्व बढ़ता जा रहा है। प्रमुख रूप से इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं|
1. सटीकता (Accuracy) – इसका तात्पर्य कम्प्यूटर द्वारा की गई गणना एवं संक्रिया के सम्पूर्ण स्तर से है। इसे परिशुद्धता भी कहा जा सकता है। उपयोगकर्ता द्वारा की गई गणना की त्रुटियों को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के माध्यम से कुछ ही समय में शुद्ध कर दिया जाता है । मेनुअल प्रणाली में इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है । कम्प्यूटर सभी त्रुटियों एवं अशुद्धियों को शुद्ध करने का कार्य बड़ी तीव्रता से करता है। त्रुटियों के निवारण के बाद परिणामों में सटीकता रहती है।
2. गति (Speed) – किसी निश्चित कार्य को करने के लिए कम्प्यूटर द्वारा लिए समय को गति कहा जाता है । मेनुअल लेखांकन प्रक्रिया में खाताबही बनाने से लेकर तलपट, लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा बनाने में काफी समय की बर्बादी होती है । कम्प्यूटर लेखांकन । के सॉफ्टवेयर द्वारा यह कार्य काफी कम समय में कर दिया जाता है। ऐसा इसके प्रोसेसिंग के कारण होता है। साधारणतः समय की गणना मिनट या सेकण्ड में की जाती है, परन्तु कम्प्यूटर द्वारा समय की गणना सेकण्ड के अंशों तक करने की क्षमता रखता है।
3. विश्वसनीयता (Reliability) – कम्प्यूटर द्वारा उपयोगकर्ता को प्रदान की जाने वाली सेवा की निपुणता को विश्वसनीयता कहते हैं। कम्प्यूटर एक मशीन है, जो कि अप्राकृतिक बुद्धिमत्ता के माध्यम से क्रियाशील रहता है । यह मशीन किसी भी प्रकार के मानवीय भावों से मुक्त होती है, जैसे छल-या कपट करना आदि। यह कई घण्टों तक बिना किसी व्यवधान के कार्य कर सकते हैं। इसलिए ये मनुष्यों से ज्यादा विश्वसनीय साबित हुए हैं। प्रोग्रामिंग के तहत दिये गये निर्देशों के अनुसार ही नतीजों की प्रोसेसिंग होती है।
4. बहुआयामी (Multipurpose) – कम्प्यूटर विविध प्रकार के कार्य कर सकता है। इसका प्रयोग किसी एक या दो कार्यों के लिए नहीं, वरन् कई कार्यों को एक ही मशीन पर किया जा सकता है। एक साधारण कम्प्यूटर का उपयोग विज्ञान, व्यवसाय, तकनीकी संचार, रक्षा, उद्योग, गवर्नेन्स आदि कई क्षेत्रों के लिए किया जा सकता है । यह अपनी बहुआयामी क्षमता की वजह से कई कार्यों को कर सकता है । इसके लिए विशिष्ट कार्यों के लिए उससे सम्बन्धित विशिष्ट प्रोग्रामिंग तैयार की जाती है। उदाहरण के लिए, हम एक कम्प्यूटर पर लेखांकन सम्बन्धी कार्य कर सकते हैं एवं उसी कम्प्यूटर पर कर्मचारियों के पे-रोल सम्बन्धी कार्य भी किये जा सकते हैं। उपयोगकर्ता कम्प्यूटर पर ऑन लाइन टिकट, ऑन लाइन क्रय-विक्रय, ई-मेल आदि अनेक कार्य कर सकता है। इस प्रकार कम्प्यूटर अपनी क्षमता का पूर्णरूप से उपयोग करता है।
5. स्वचालन (Automation) – एक कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली कई बोझिल और समय लगाने वाली मेनुअल प्रक्रियाओं को समाप्त अथवा कम कर देता है। गणना करने के अतिरिक्त यह लेखांकन सॉफ्टवेयर के माध्यम से एक बटन के क्लिक करने पर ही वर्ष के अन्त में सभी लेखा प्रतिवेदनों को बना सकता है। घण्टों में तैयार होने वाले लेखाबही को सेकण्ड में तैयार कर सकता है । लेखा प्रक्रिया को स्वचालित करने के अतिरिक्त यह लेखांकन प्रतिवेदनों एवं सूचनाओं को विभिन्न उपयोगकर्ताओं को साझा करने की क्षमता भी रखता है । लेखांकन सूचनाओं को स्वतन्त्र रूप से अधिकृत उपयोगकर्ताओं द्वारा कम्प्यूटर में प्रविष्टि किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त वित्तीय सूचनाओं एवं दस्तावेजों को कुछ ही श्रेणी में ई-मेल किया जा सकता है।
6. अनुकूलता (Compatibility) – एक कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली अलग-अलग व्यापारिक गतिविधियों के अनुसार कार्य करने की क्षमता रखती है। यह दो व्यवसाय के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान को अनुकूल बनाती है, जैसे—यदि दो कम्पनियाँ कम्प्यूटरीकृत प्रणाली का उपयोग करती हैं तो दोनों कम्पनियों के एकीकरण की अवस्था में सभी लेखों को एक-दूसरे में समायोजित किया जा सकता है। दो अलग-अलग प्रकार के व्यापारों के लिए उस व्यापार के अनुसार लेखांकन के सॉफ्टवेयर तैयार किये जा सकते हैं।
7. संचयन (Storage) – कम्प्यूटर कई प्रकार की जानकारियाँ एवं समंकों को अपने स्टोरेज मीडिया के माध्यम से संचय कर सकता है। यह डेटा को फाइलों के माध्यम से संचय करता है। यह फाइल मीडिया, ऑडियो-वीडियो, लेख सॉफ्टवेयर आदि की हो सकती है। आवश्यकता पड़ने पर इन समंकों अथवा फाइलों का उपयोग उपयोगकर्ता द्वारा किया जा सकता है। कम्पनी में कई प्रकार के डेटा का संचयन किया जा सकता है, जैसे स्टॉक, वेतन, क्रय, विक्रय, कर आदि के समंकों की संचय करके रखा जा सकता है। कम्प्यूटर में समंकों को स्टोर करना, उसकी स्टोरेज क्षमता पर निर्भर करता है। डेटा के स्टोरेज क्षमता का मापन टीबी (टेरा बाईट), जीबी (गीगा बाईट), केबी (किलोबाईट) द्वारा किया जाता है । समंकों को संचलन स्टोरेज मीडिया के द्वारा किया जाता है। जैसे कम्प्यूटर में लगी हार्डडिस्क एक स्टोरेज मीडिया है। इसी प्रकार डेटा को पेन ड्राईव, सीडी रोम में भी स्टोर किया जा सकता है। इन सभी समंकों एवं फाइलों को इन्टरनेट के माध्यम से हस्तान्तरित किया जा सकता है । यदि एक कम्पनी की दो शाखाएँ अलग-अलग शहरों में स्थित हैं तो एक शाखा के समंकों को इन्टरनेट के माध्यम से दूसरी शाखा में हस्तान्तरित किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
कम्प्यूटर प्रणाली के विभिन्न अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कम्प्यूटर प्रणाली के विभिन्न अंग निम्न हैं
1. इनपुट यन्त्र (Input Device) – यह वह हार्डवेयर डिवाइस होती है जिसमें हम कम्प्यूटर से कोई भी डाटा या कमाण्ड इनपुट करा सकते हैं। इनपुट डिवाइस के उदाहरण हैं—माउस, की-बोर्ड, स्केनर, डी.वी.डी, पेन ड्राइव, कार्ड रीडर,माइक्रोफोन ।
2. आउटपुट यन्त्र (Output Device) – यह वह हार्डवेयर डिवाइस होती है जिससे हमें कम्प्यूटर से कोई भी डाटा या कोई भी आउटपुट प्राप्त होती है। उदाहरण के लिये मॉनीटर, स्पीकर,प्रिन्टर,प्रोजेक्टर, हैडफोन । जैसे लेखा समंकों को कम्प्यूटर में फीड करने के पश्चात् उनकी प्रोसेसिंग द्वारा लाभ-हानि खाता एवं तलपट निकाला जाता है। जिसे मॉनीटर के माध्यम से प्रदर्शित किया जा सकता है।
3. केन्द्रीय प्रोसेसिंग इकाई (Central Processing Unit) – कम्प्यूटर का मुख्य भाग है, इसे आप कम्प्यूटर का मस्तिष्क भी कह सकते हैं। इसका कार्य कम्प्यूटर पर आने वाले इनपुट और निर्देशों को प्रोसेस करना है।
कम्प्यूटर की यह यूनिट अंकगणित, तार्किक, नियन्त्रण से जुड़े कार्य,इनपुट कार्य, आउटपुट कार्य सम्पन्न करती है। इसे आमतौर पर प्रोसेसर के रूप में भी जाना जाता है। कम्प्यूटर को ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों की आवश्यकता होती है। यह दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर से हार्डवेयर कमाण्ड दी जाती है। किसी हार्डवेयर को कैसे कार्य करना है उसकी जानकारी सॉफ्टवेयर के अन्दर पहले से ही स्टोर कर दी जाती है। कम्प्यूटर के सीपीयू से कई प्रकार के हार्डवेयर जुड़े रहते हैं, इन सबके बीच तालमेल बनाकर कम्प्यूटर को ठीक प्रकार से चलाने का काम करता है।
इसे कम्प्यूटर में मदर बोर्ड पर लगाया जाता है और मदर बोर्ड के माध्यम से ही कम्प्यूटर के अन्य घटक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
CPU के मुख्य घटक-
- अंकगणितीय तर्क इकाई (Arithmetic Logic Unit)
- प्रोसेसर रजिस्टर (Processor Register)
- नियन्त्रण इकाई (Control Unit)–कम्प्यूटर के कार्य प्रणाली की प्रक्रिया एक चरणबद्ध तरीके से होती है
इनपुट (Input)–प्रोसेसिंग (Processing)–आउटपुट (Output)
कम्प्यूटर की पूर्ण प्रक्रिया निम्न चरणों में समझी जा सकती है-
इनपुट के लिये आप की-बोर्ड, माउस इत्यादि इनपुट डिवाइस का प्रयोग करते हैं साथ ही कम्प्यूटर को सॉफ्टवेयर के माध्यम से कमाण्ड या निर्देश देते हैं या डेटा एंटर करते हैं।
यह इस प्रक्रिया का दूसरा भाग है इसमें आपके द्वारा दी गयी कमाण्ड या डाटा को प्रोसेसर द्वारा सॉफ्टवेयर में उपलब्ध जानकारी और निर्देशों के अनुसार प्रोसेस कराया जाता है।
तीसरा और अन्तिम भाग आउटपुट इसमें आपके द्वारा दी गयी कमाण्ड के आधार पर प्रोसेस की गयी जानकारी का आउटपुट, कम्प्यूटर द्वारा आपको दिया जाता है, जो आपको आउटपुट डिवाइस द्वारा प्राप्त हो जाता है। ..
प्रश्न 5.
कम्प्यूटर लेखा प्रणाली किसे कहते हैं ? इसकी क्या उपयोगिताएँ हैं ?
उत्तर-
कम्प्यूटर लेखा प्रणाली (Computer Accounting System) – “कम्प्यूटर लेखा प्रणाली ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा सम्पूर्ण लेखांकन की गतिविधियों को कम्प्यूटर के माध्यम से संचालित किया जाता है।”
उपयोगिताएँ इसकी उपयोगिताएँ निम्नलिखित हैं –
- लेखांकन का कार्य तीव्रगति से एवं सटीकता के साथ किया जा सकता है।
- लेखा समंकों का संचयन किया जा सकता है।
- बड़े व्यावसायिक संगठन ERP (इण्टरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग) पैकेजेज का उपयोग कर सकते हैं।
- सभी प्रकार के वित्तीय विवरणों की सॉफ्ट कॉपी रखी जा सकती है।
- खातों का सामूहीकरण प्रारम्भ से ही किया जा सकता है।
- लेखों को कोड के माध्यम से प्रविष्ट किया जा सकता है।
- वित्तीय लेखों की सुरक्षा रहती है।
- लेखांकन प्रतिवेदनों के प्रिन्ट आउट लिए जा सकते हैं।
प्रश्न 6.
मेनुअल लेखा प्रणाली एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मेनुअल एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली के अन्तर को निम्न बिन्दुओं में समझा जा सकता है
1. मानवीय लेखा प्रणाली के तत्व (Elements of Manual Accounting System)
- लेन-देन वाले वित्तीय व्यवहारों की पहचान मेनुअल रूप से होती है।
- लेन-देन का रिकार्ड एवं उनकी पुनः प्राप्ति मूल प्रविष्टियों की पुस्तकों से प्राप्त होती है।
- लेन-देन की प्रविष्टि सर्वप्रथम जर्नल में की जाती है, उसके बाद उसे बही खातों में पोस्ट किया जाता है। इस प्रकार वित्तीय लेन-देन को दो बार दर्ज किया जाता है।
- खाताबही बनाने के बाद खातों का संक्षिप्तीकरण करने हेतु तलपट तैयार किया जाता है।
- तलपट के माध्यम से अन्तिम खाते तैयार किये जाते हैं, जिसमें लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा बनाया जाता है।
- यदि किसी प्रकार की प्रविष्टियों या खाताबही में गलतियाँ रह जाती हैं तो उसमें सुधार हेतु समायोजन किये जाते हैं। इसके लिए त्रुटियों में प्रविष्टियों द्वारा किये जाते हैं।
- वर्ष के अन्त में लेखा खातों को बन्द कर दिया जाता है एवं उनके खाता शेष को अगले साल हस्तान्तरित कर दिया जाता
2. कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली (Computerized Accounting System)
- लेन-देन वाले वित्तीय व्यवहारों की पहचान कम्प्यूटर द्वारा स्वचालित पूर्व निर्धारित प्रोग्रामिंग के द्वारा की जाती है।
- वित्तीय व्यवहारों को डेटाबेस के माध्यम से रिकार्ड किया जाता है।
- संग्रहित किया हुआ डेटा खाताबही में अपने आप प्रोसेस हो जाता है।
- तलपट बनाने के लिए खाताबही की जरूरत नहीं पड़ती है। हर प्रविष्टि स्वतः ही खाता बही शेष निकाल सकती है। हर प्रविष्टि के बाद खाताबही शेष स्वतः ही तैयार हो जाता है।
- अन्तिम खाते, जैसे–लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा प्रविष्टियों के बाद ही बन जाता है। इसका कारण यह है कि कोई भी प्रविष्टि सीधे प्रोसेस होकर अन्तिम खाते बनाने के लिए तलपट पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।
- त्रुटि सुधार के लिए किसी प्रकार की मेनुअल प्रविष्टि दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है। वाउचर के माध्यम से त्रुटि सुधार स्वतः ही हो जाता है।
- प्रारम्भिक एवं अन्तिम खाता शेष डेटाबेस में जमा हो जाते हैं।
प्रश्न 7.
लेखांकन प्रतिवेदन किसे कहते हैं ? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन प्रतिवेदन (Accounting Report)-किसी भी व्यापारिक संस्था एवं व्यावसायिक संगठन में समस्त वित्तीय लेन-देन, स्कन्ध एवं सम्पत्तियों का मूल्यांकन, भण्डारण, कर्मचारियों के वेतन आदि का हिसाब लेखांकन प्रतिवेदन कहलाता है । एक इकाई के संचालन के निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए यह आवश्यक है।
उदाहरण –
Employee Earning Report
प्रश्न 8.
लेखांकन में कम्प्यूटर के योगदान को समझाइए।
उत्तर-
लेखांकन में कम्प्यूटर का निम्नलिखित योगदान है
- लेखांकन का कार्य तीव्रगति से एवं सटीकता के साथ किया जा सकता है।
- लेखा समंकों को संचयन किया जा सकता है।
- बड़े व्यावसायिक संगठन ERP (इण्टरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग) पैकेजस का उपयोग कर सकते हैं।
- सभी प्रकार के वित्तीय विवरणों की सॉफ्ट कॉपी रखी जा सकती है।
- खातों का समूहीकरण प्रारम्भ से ही किया जा सकता है।
- लेखों को कोर्ड के माध्यम से प्रविष्ट किया जा सकता है।
- वित्तीय लेखों की सुरक्षा रहती है।
- लेखांकन प्रतिवेदनों के प्रिन्ट आउट लिए जा सकते हैं।
प्रश्न 9.
कम्प्यूटर सम्बन्धित विभिन्न सूचना प्रणालियों को समझाइए।
उत्तर-
प्रबन्ध सूचना प्रणाली (Management Information System)–एक व्यावसायिक प्रणाली का प्रबन्धन उसके द्वारा लिये गये निर्णयों पर आधारित होता है। यह निर्णय समय पर प्राप्त होने वाली सूचनाओं पर आधारित होते हैं। एक व्यवसाय की सूचना प्रणाली जितनी सुदृढ़ होगी, वहाँ निर्णयों में उतनी ही सटीकता एवं पारदर्शित रहेगी। यह सब एक कुशल प्रबन्धन सूचना प्रणाली द्वारा सम्भव है। प्रबन्धन सूचना प्रणाली वह प्रणाली है, जो एक संस्था की बाकी प्रणालियों का आधार तैयार करती है। लेखांकन सूचना प्रणाली में सूचनायें समयानुकूल सटीक तथा व्यवस्थित होती हैं। अन्य शब्दों में, प्रबन्धन सूचना प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जो निर्णय लेने एवं किसी व्यवसाय के सुचारु रूप से प्रबन्धन के लिए जरूरी सूचना तैयार करती है। लेन-देन परितन्त्र लेन-देन वृत्त में खरीद बही
विक्रेता/सप्लायर कीअग्रिम सूची को बढ़ाना, खाते की देनदारी आदि सभी कुछ होती है। वे सभी सूचनायें प्रबन्ध सूचना प्रणाली संस्था के अन्य विभागों को वितरित करता है। अतः यह निर्णय लेने वाले व्यक्तियों को जरूरी वित्तीय डेटा की सूचना देता है जो कि. कम्प्यूटरीकृत सूचना प्रणाली का एक उप भाग है। इस विवरण की माँग नियमित अथवा विशिष्ट भी हो सकती है। संस्था के दीर्घकालीन नीतिगत लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को पूरा करने में यह प्रणाली सहयोग करती है। प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली को मुख्य रूप से निम्न बिन्दुओं में परिभाषित किया जा सकता है
- एक एकीकृत यूजर मशीन सिस्टम है।
- सूचना उपलब्ध कराती है।
- प्रबन्ध संचालन विश्लेषण
- व्यवसाय द्वारा उपयोग।
लेखांकन सूचना प्रणाली (Accounting Information System)–लेखांकन में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग को लेखा सूचना प्रणाली कहते हैं। इसके माध्यम से कम्प्यूटर का प्रयोग वित्तीय लेखांकन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों, जैसे—कर, अंकेक्षण, बजटिंग आदि। इन सभी क्षेत्रों की सूचनाओं का उपयोग प्रबन्धकीय निर्णयों के लिए किया जाता है । लेखांकन सूचना प्रणाली अन्य क्रियाशील सूचना प्रणालियों के लिए सूचनाओं का आदान-प्रदान करती है। इस प्रणाली में संस्था द्वारा किये गये व्यवसाय का सामूहिक क्रमबद्ध लेखा-जोखा होता है। जैसे व्यवसाय द्वारा किसी माल के विक्रय का उसका बीजक बनाना, विक्रय आदेश लेना एवं उसका क्रियान्वयन करना, स्टॉफ की स्थिति, परिवहन की स्थिति,कर्मचारियों का वेतन आदि। लेखांकन सूचना प्रणाली के अन्तर्गत वित्त से सम्बन्धित सभी सूचनाओं का उच्च प्रबन्ध से लेकर मध्य एवं निचले प्रबन्धन तक आदान-प्रदान किया जा सकता है। इस प्रणाली के द्वारा किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में आर्थिक सूचना को अनेक प्रकार के उपयोगकताओं के लिए पहचान संग्रह एवं प्रक्रम तैयार करती है। वित्तीय सूचनाओं से सम्बन्धित डेटा इस तरह से व्यवस्थित होते हैं कि उनका उपयोग कर सही निर्णय लिया जा सके। इसके अतिरिक्त लेखांकन सूचना प्रणाली समस्त संसाधनों का एक मिश्रण है, जिससे वित्तीय एवं अन्य डेटा को सूचना में परिवर्तित करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सूचनाएँ विभिन्न प्रकार के उपयोगकर्ताओं एवं निर्णयकर्ताओं को उनकी सुविधानुसार प्रदान की जाती है । इस प्रणाली का प्रयोग इस बात की सुनिश्चितता प्रदान करता है, विभिन्न प्रकार के वित्तीय लेन-देन एवं सौदों का नियन्त्रण किया जा सके। कम्प्यूटर के प्रयोग के साथ, इस प्रणाली में तीव्रता से सूचनाओं का आदान-प्रदान करना एवं सुविधानुसार वित्तीय प्रतिवेदनों को निकालना है। प्रबन्धन निर्णय लेने के लिए जानकारी का उपयोग करने के लिए उस जानकारी को सही तरह से प्रबन्धन करना चाहिए। अतः सूचना प्रबन्धन में शामिल है।
- जरूरी जानकारी निर्धारित करना,
- जानकारी एकत्रित करना और उसका विश्लेषण करना,
- जानकारी को भण्डारित करना और जब जरूरत हो, पुनः प्राप्त करना,
- उपयोग करना और जानकारी को फैलाना।
प्रश्न 10.
लेखांकन के सॉफ्टवेयर पैकेजेस कितने प्रकार के होते हैं ? समझाइए।
उत्तर-
लेखांकन सॉफ्टवेयर जिन्हें लेखांकन पैकेज भी कहते हैं, निम्न प्रकार के होते हैं
1. उपयोग के लिए तैयार सॉफ्टवेयर (Ready to Use Software) – इनका निर्माण किसी विशेष उपयोगकर्ता के अनुसार नहीं किया जाता है। यह छोटे व्यापारियों के लिए उपयोगी सॉफ्टवेयर है, जिनके बहुत कम मात्रा में व्यवहार होते हैं। इनमें गोपनीयता का अभाव होता है परन्तु यह सीखने में सरल तथा कम खर्चीले होते हैं। इसका प्रशिक्षण सरल होता है और प्रशिक्षण लागत भी नहीं लगती क्योंकि विक्रेता स्वयं ही बिना किसी लागत की प्राप्त किये प्रशिक्षण दे देता है। इनका सम्बन्ध दूसरी सूचना प्रणाली से सामान्यतया नहीं होता है। इस समय बाजार में लोकप्रिय प्रक्रिया सामग्री में टेली (Tally) है। इस सॉफ्टवेयर में धोखे की सम्भावना अधिक रहती है। क्योंकि गोपनीयता निम्न स्तर की रहती है।
2. व्यवस्थित सॉफ्टवेयर (Customized Software) – यह मध्यम एवं बड़े व्यापारियों के लिए उपयोगी होती है। इनकी स्थापना एवं देखरेख की लागत अधिक आती है क्योंकि तैयार सॉफ्टवेयर में उपयोगकर्ता की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करना पड़ता है। इसमें गोपनीयता बढ़ जाती है तथा अधिकृत व्यक्ति ही इसका उपयोग कर सकता है। वे सब सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के कारण उपयोगकर्ता के प्रशिक्षण तथा बिक्री के बाद की सेवा की लागते अधिक आती हैं।
3. आवश्यकतानुसार या उपयुक्त सॉफ्टवेयर (Tailored Software) – यह पूर्णतया उपयोग करने वाले के निर्देशों के अनुरूप । तैयार किया जाता है। इसकी माँग बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों में होती है जो भौगोलिक रूप से दूर-दूर विभिन्न स्थानों पर होते हैं। इसके उपयोगकर्ता अधिक होते हैं, और बिना उचित प्रशिक्षण के इनका उपयोग नहीं किया जा सकता है। प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली में इनका | महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इनमें गोपनीयता, अधिकृतता या प्रामाणिकता की जाँच करने के लिए एक सुदृढ़ पद्धति होती है।
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कम्प्यूटरीकृत लेखा पद्धति के क्रियान्वयन हेतु आवश्यकताएँ बताइए।
उत्तर-
इस पद्धति के क्रियान्वयन हेतु आवश्यकता होती है
- कम्प्यूटर (Computer),
- सॉफ्टवेयर (Software),
- हार्डवेयर (Hardware),
- उपयोगकर्ता (User),
- नेटवर्किंग प्रक्रिया (Networking Procedures)
प्रश्न 2.
उपयोगकर्ता एवं परिचालनकर्ता के विषय में बताइए।
उत्तर-
यह उन व्यक्तियों का समूह होता है जो कम्प्यूटर के संचालन में अपना योगदान देते हैं।
प्रश्न 3.
डेटा क्या होता है ?
उत्तर-
डेटौं समंकों को कहा जाता है जो किसी भी प्रकार के अंकों या लेख के रूप में कम्प्यूटर में किसी निश्चित उपयोग के लिए स्टोर किये जाते हैं।
प्रश्न 4.
डेटा पुष्टिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
डेटा पुष्टिकरण (Data Validation) डेटा पुष्टिकरण कम्प्यूटर द्वारा स्वचालित एक जाँच प्रक्रिया है, जिससे डेटा में इनपुटं त्रुटियों को कम करने में मदद मिलती है।
प्रश्न 5.
डेटा मेनिपुलेशन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
डेटा मेनिपुलेशन (Data Manipulation) – इस प्रक्रिया के अन्तर्गत समंकों में आवश्यकता अनुसार कुछ बदलाव किए जाते हैं, जिससे उनका उपयोग आसानी से किया जा सके।
प्रश्न 6.
डेटा संचयन क्या होता है ?
उत्तर-
डेटा संचयन (Data Storage) – संमंकों का संचयन कम्प्यूटर में विभिन्न स्टोरेज उपकरणों द्वारा किया जा सकता है। जैसे पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क या सीडी । आवश्यकतानुसार इन समंकों का उपयोग डेटा स्टोरेज उपकरण से ऐक्सस कर किया जा सकता है।
प्रश्न 7.
डेटा कोडिंग के विषय में बताइए।
उत्तर-
डेटा कोडिंग (Data Coding) – कोड एक लघु शब्द या अंक होता है । कोड के माध्यम से लेखांकन की विश्लेषण प्रक्रिया सरल हो जाती है। जैसे Cash Sales के लिए कोड CS एवं Credit Sales के लिए CRS हो सकता है। उसी प्रकार जनवरी में की गई Sales को JS कोड दिया जा सकता है।
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कार्य करने के उद्देश्य आधार पर कम्प्यूटर के प्रकार बताइए ।
उत्तर-
कम्प्यूटर के प्रकार (Types of Computer) – कार्य करने के उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटर को अलग-अलग प्रकारों में बाँटा गया है । हर क्षेत्र में क्षमता के अनुसार अलग-अलग कम्प्यूटरों का उपयोग किया जाता है। कुछ कम्प्यूटर शक्तिशाली, बड़े, अधिक राति या लम्बे समय तक चलने वाले हो सकते हैं।
1. एनालॉग कम्यूटर (Analog Computer) – एनालॉग कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर होते हैं जो भौतिक मात्राओं, जैसे दाब, तापमान, लम्बाई आदि को मापकर उनके परिमाप को अंकों में व्यक्त करते हैं। ये कम्प्यूटर किसी राशि का परिमाप तुलना के आधार पर करते हैं। एनालॉग कम्प्यूटर मुख्य रूप से विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रयोग किये जाते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में मात्राओं का अधिक उपयोग होता है। उदाहरण के लिए; एक पेट्रोल पम्प में लगा एनालॉग कम्प्यूटर पम्प से निकले पेट्रोल की मात्रा को मापता है और लीटर में दिखाता है तथा उसके मूल्य की गणना करके स्क्रीन पर दिखाता है।
2. डिजिटल कम्प्यूटर (Digital Computer) – डिजिटल कम्प्यूटर वह कम्प्यूटर होता है, जो अंकों की गणना करता है। कम्प्यूटर का प्रयोग घर का बजट तैयार करना, पत्र लिखना, चित्र बनाना, संगीत सुनना, फोटो व वीडियो देखना, गेम खेलना आदि होता है। डिजिटल कम्प्यूटर बायनरी अंकों (0-1) पर आधारित होता है । यह कम्प्यूटर शत-प्रतिशत शुद्धता से गणना कर सकता है। डिजिटल कम्प्यूटर Data और Program को 0 तथा 1 में परिवर्तित करके इलेक्ट्रॉनिक रूप में ले आता है।
3. हाइब्रिड़ कम्प्यूटर (Hybrid Computer) – हाइब्रिड का अर्थ एनालॉग और डिजिटल दोनों के गुण (features) होना है। अर्थात् कम्प्यूटर जिनमें एनालॉग कम्प्यूटर और डिजिटल कम्प्यूटर दोनों की विशेषता हो, Hybrid Computer कहलाते हैं। जैसे-कम्प्यूटर की एनालॉग डिवाइस किसी रोगी के लक्षणों अर्थात् तापमान, रक्तचाप आदि को मापती है। वे परिमाप बाद में डिजिटल के द्वारा अंकों में बदले जाते हैं। इस प्रकार रोगी के स्वास्थ्य में आये उतार-चढ़ाव का तत्काल इलाज किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार बताइए।
उत्तर-
उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटरों के प्रकार (Types of Computer Based on Purpose) :
उद्देश्यों के आधार पर कम्यूटर निम्न प्रकार के होते हैं
1. सामान्य उद्देशीय कम्प्यूटर (General Purpose Computer) – General purpose computer ऐसे कम्प्यूटर हैं जिनमें अनेक प्रकार के कार्य करने की क्षमता होती है। लेकिन ये Word Processing से पत्र व दस्तावेज तैयार करना, दस्तावेजों को छापना, डेटाबेस बनाना आदि जैसे सामान्य कार्यों को ही सम्पन्न करते हैं। साथ ही मनोरंजन करना, जैसे-फिल्म देखना, गीत सुनना, गेम खेलना,नेट चलाना आदि किया जाता है। अक्सर विद्यालय,घर या ऑफिस में उपयोग किये जाते हैं। प्रयोगकर्ता अपने बजट या कार्य के अनुसार कम्प्यूटर खरीद सकता है। भविष्य में सामान्य से विशिष्ट कम्प्यूटर में बदलने के लिए असेम्बल्ड पद्धति के द्वारा बदला जा सकता है।
2. विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर (Special Purpose Computer) – विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर ऐसे कम्प्यूटर हैं जन्हें किसी विशेष कार्य के लिए तैयार किया जाता है। इनके सीपीयू की क्षमता उसे कार्य के अनुरूप होती है। इसी श्रेणी के कम्प्यूटर जैसे High Configuration वाले Personal Computer, मिनी कम्प्यूटर, सुपर कम्प्यूटर आदि आते हैं। इसका मुख्य कार्य, जैसे-Audio Mixing, Video Editing, Space Control, Medical आदि किये जाते हैं। यह कम्प्यूटर आम पीसी के तुलना में महँगे होते हैं । इसका नियन्त्रण किसी विशिष्ट प्रयोगकर्ता के द्वारा किया जाता है ।।
प्रश्न 3.
प्रबन्ध सूचना प्रक्रिया के प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर-
प्रबन्ध सूचना प्रक्रिया के कार्य (Functions of MIS) :
प्रबन्ध सूचना प्रक्रिया के निम्न कार्य हैं
(i) प्रबन्धन के लिए आवश्यक सूचना को निर्धारित करना–परियोजना के आयोजन, कार्यान्वयन और निरीक्षण के दौरान बहुत सारी जानकारी उत्पन्न होती है,कुछ जानकारी तत्काल फैसले लेने के लिए आवश्यक है और कुछ बाद में लिए जाने वाले प्रबन्धन निर्णयों के लिए जरूरी है, इसलिए एक अच्छी प्रबन्ध सूचना प्रणाली, परियोजना के प्रबन्धकों को यह जानने में मदद करती है कि अलग-अलग समय पर विविध प्रबन्ध निर्णय लेने के लिए किस तरह की जानकारी को प्राप्त करना चाहिए।
(ii) सूचना प्रबन्धन के लिए जानकारी को प्राप्त करके उसका विश्लेषण करना—जानकारी इन स्रोतों से प्राप्त की जा सकती है— तकनीकी रिपोर्ट, ग्रामीण पुस्तकें, विभिन्न कर्ताओं द्वारा पूरे किए गए फार्म या प्रपत्र, सामूहिक बैठक या सम्मेलन, भेट, प्रेक्षण और सामूहिक ढाँचे ।
(iii) सूचना भंडारित करना—यह जरूरी है कि प्राप्त की गयी जानकारी को एक जगह सुरक्षित किया जाए जिससे बाद में इसका उपयोग किया जा सके, जानकारी ग्रामीण पुस्तकों या दस्तावेजों, परियोजना विवरण, फार्म या प्रपत्र और हमारे दिमाग में रखा जा सकता है, सूचना को सुरक्षित या भंडारित करने का मूल सिद्धान्त यह है कि इस जानकारी को आसानी से पुनः प्राप्त किया जा सके।
(iv) जानकारी का उपयोग करना जानकारी के कई उपयोग हैं—सामूहिक समस्याओं को सुलझाना, संसाधन निर्धारित करना (मात्रा और प्रकार) सहयोग प्रापत करना और आने वाली परियोजनाएँ निर्धारित करना ।
(v) सूचना का प्रवाह जानकारी का पर्याप्त रूप में उपयोग होने के लिए यह जरूरी है कि उसे सभी हिस्सेदार और उपभोक्ताओं के साथ बाँटा जाए,बाकी हिस्सेदार इस जानकारी का प्रबन्ध निर्णय लेने में प्रयोग कर सकते हैं, वे जानकारी संग्रहित करने वाले को उस जानकारी का मतलब और उपयोग निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं, जिसका प्रबन्धन प्रक्रियाओं में प्रयोग किया जा सकता है। निरीक्षण जानकारी अधिकारियों से हो या हिस्सेदारों से हो इसका समर्थ रूप से प्राप्त करने के लिए वार्षिक समीक्षा का उपयोग किया। जा सकता है। इसका विवरण सहभागी प्रबन्धन सूचना प्राप्त करने के तरीकों में किया गया है, मगर निरीक्षण सूचना प्राप्त करने में भी यह लागू है।
प्रश्न 4.
लेखा प्रतिवेदन तैयार करने की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर-
लेखा समंकों से ही लेखा प्रतिवेदन तैयार किए जाते हैं। उसकी प्रक्रिया निम्न प्रकार से है-
- प्रतिवेदनों के उद्देश्य निर्धारित करना ।
- प्रतिवेदनों के उपयोगकर्ता निर्धारित करना ।
- समंकों एवं प्रतिवेदनों का ढाँचा तैयार करना ।
- डेटा बेस सम्बन्धित क्वेरी तैयार करना ।
- प्रतिवेदनों को अन्तिम रूप देना ।
प्रश्न 5.
एक अच्छी लेखा प्रणाली के प्रारूप में किन तत्वों का समावेश जरूरी है ?
उत्तर-
एक अच्छी लेखा प्रणाली में निम्न तत्वों का समावेश होना जरूरी है
- शुद्धता,
- प्रासंगिकता,
- समयबद्धता,
- संक्षिप्तता,
- सुपाठ्य,
- परिपूर्ण
प्रश्न 6.
प्रबन्यकीय सूचना प्रणाली का प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर-
प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली का प्रमुख कार्य एक संस्था के विभिन्न उपयोगकर्ताओं को कम्प्यूटर के माध्यम से सूचनाओं को प्रदान करता है। इन सूचनाओं द्वारा प्रबन्धकीय निर्णय लेने में सहायता मिलती है। इस प्रकार की प्रणाली में कई विभागों एवं क्रियाशील क्षेत्रों में समन्वय स्थापित करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि किसी एक ही विभाग या क्रियाशील क्षेत्र को सूचना के आधार पर सम्पूर्ण व्यावसायिक संगठन के बारे में निर्णय नहीं लिया जा सकता । इसमें हर विभाग या क्रिया की अपनी एक अलग सूचना प्रणाली तैयार की जाती है, जिसे उप-अव्यय (Sub-Component) कहते हैं।
RBSE Class 12 Accountancy Chapter 14 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कम्प्यूटरीकृत लेखा पद्धति के क्रियान्वयन हेतु आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली (Computerized Accounting System)
कम्प्यूटरीकृत लेखा पद्धति के क्रियान्वयन हेतु निम्न आवश्यकता होती है –
1. कम्प्यूटर (Computer)-
कम्प्यूटर शब्द अंग्रेजी के “Compute” शब्द से बना है, जिसका अर्थ “गणना” करना होता है। इसलिए इसे गणक या संगणक भी कहा जाता है। *कम्प्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जिसमें समंकों को स्वीकार करके उसका परिचालन करने एवं समस्याओं का समाधान करने की क्षमता होती है। इसका आविष्कार गणना करने के लिये हुआ था। पुराने समय में कम्प्यूटर का कार्य केवल गणना करने के लिये किया जाता था किन्तु आजकल इसका प्रयोग डाक्यूमेन्ट बनाने, ई-मेल, ऑडियो, वीडियो, इलेक्ट्रॉनिक गेम्स, डेटाबेस बनाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग बैंकों में, शैक्षणिक संस्थानों में, कार्यालयों में, घरों में, दुकानों में बहुतायत रूप से किया जा रहा है। कम्प्यूटर केवल वह काम करता है जो हम उसे करने को कहते हैं यानी केवल उन निर्देशों को मानता है जो पहले से कम्प्यूटर के अन्दर डाले गये हैं।
2. सॉफ्टवेयर (Software)-
सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर को चलाने के लिए अथवा कोई निश्चित परिणाम प्राप्त करने के लिए कम्प्यूटर को दिए गए निर्देश प्रोग्राम्स का एक समूह है, जो हार्डवेयर के माध्यम से कार्य करता है। यह सारे निर्देश कोड के माध्यम से कम्प्यूटर में स्टोर किए जाते हैं। सॉफ्टवेयर में सबसे प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम होता है, जिससे पूरी कम्प्यूटर प्रणाली संचालित होती है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर एवं उपयोगकर्ता के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है, जिसके द्वारा कम्प्यूटर के स्रोत व्यवस्थित हो जाते हैं,एवं इस पर कार्य करना उपयोगकर्ता के लिए आसान हो जाता है। सॉफ्टवेयर को तीन प्रकार से विभाजित किया गया है.
(i) कम्प्यूटर पर कुछ निश्चित प्रकार के कार्य करने के लिए यूटिलिटी प्रोग्राम्स बनाये जाते हैं, जिसके माध्यम से मुख्य कार्य के अतिरिक्त कुछ सहयोगी संक्रियाओं का कार्य होता है । यह सभी प्रोग्राम्स भी सॉफ्टवेयर की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार के प्रोग्राम द्वारा किसी फाइल को हस्तान्तरित करना,डेटा को डिलिट करना, स्टोर करना, कॉपी करना आदि के कार्य किए जाते हैं।
(ii) इसी प्रकार लेंगुएज प्रोसेसस एक सॉफ्टवेयर है जो एक स्रोत प्रोग्राम को मशीन की भाषा में परिवर्तित करता है । मशीन भाषा वह भाषा है जिसके द्वारा कम्प्यूटर को दिए गए निर्देशों को कम्प्यूटर अपनी भाषा में परिवर्तित करता है।
(iii) अनुप्रयोग (application) सॉफ्टवेयर एक प्रोग्रामों का समूह जिसके द्वारा किसी एक निश्चित प्रक्रिया को किया जाता है, ऐसे सॉफ्टवेयर को अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर अथवा (application software) कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर वित्तीय लेखांकन, पे-रोल (वेतन की गणना), स्कन्ध की लेखा आदि । इसी प्रकार से सिस्टम सॉफ्टवेयर मशीन की आन्तरिक क्रियाओं को नियन्त्रित एवं संचालित करता है।
3. हार्डवेयर (Hardware)-
कम्प्यूटर यन्त्र के दो अंग जिससे इसे मशीन को चलित किया जाता है,ऐसे सभी अंगों को हार्डवेयर कहते हैं। इन सभी अंगों (यन्त्रों का संचालन विद्युत द्वारा किया जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं, इनपुट यन्त्र, जिसके माध्यम से सूचनाओं को कम्प्यूटर में फीड किया जाता है, जैसे की-बोर्ड, माउस, पेन ड्राइव । आउटपुट यन्त्र, जिसके माध्यम से सूचनाओं को प्रकट (Display) किया जाता है। मॉनीटर एवं प्रिन्टर इसके उदाहरण हैं।
4. उपयोगकर्ता एवं परिचालनकर्ता (Users & Operators)-
यह उन व्यक्तियों का समूह है जो कम्प्यूटर के संचालन में अपना : योगदान देते हैं। इसमें प्रमुख रूप से सिस्टम विश्लेषक (System Analyst) होते हैं, जो डेटा प्रोसेसिंग सिस्टम के प्रारूप को तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त प्रोग्रामर वे लोग हैं जो डेटा प्रोसेसिंग की प्रारूप ने कुछ प्रोग्रामिंग की भाषा द्वारा लागू करते हैं। अन्त में संचालक (Operators) जो कम्प्यूटर को संचालित करने का कार्य करते हैं।
5. डेटा (Data)-
डेटा, समंकों को कहा जाता है जो किसी भी प्रकार के अंकों या लेख के रूप में कम्प्यूटर में किसी निश्चित उपयोग के लिए स्टोर किए जाते हैं। जैसे एक स्कूल के डेटा में छात्रों से सम्बन्धित सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध रहती है । कम्प्यूटर डेटा को व्यवस्थित एवं वर्गीकृत कर इसका समन्वय करता है। किसी भी प्रकार का निर्णय लेने में डेटा का उपयोग किया जाता है।
6. संयुक्तिकरण (Networking)-
सूचनाओं के आदान-प्रदान हेतु कम्प्यूटर को कई उपकरणों से जोड़ा जाता है। इसमें इंटरनेट प्रमुख है । एक छोटे नेटवर्क के रूप में इसे लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) के माध्यम से जोड़ा जा सकता है। बड़े नेटवर्क के लिए WAN (Wide Area Network) का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 2.
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन पद्धति की मूल संरचना को विस्तार से समझाइए।
उत्तर-
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन पद्धति की मूल संरचना (Structure of Computerized Accounting System)
कम्प्यूटरीकृत लेखा पद्धति प्रमुख रूप से एक संगठित प्रणाली है जिसके माध्यम से लेखा निर्णय लिये जाते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत सर्वप्रथम लेखा से सम्बन्धित विभिन्न डेटा को एकत्र किया जाता है। एक सुदृढ़ कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली की संरचना को निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है–
1. लेखांकन आँचा (Accounting Framework) – यह कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली को लागू करने के लिए वातावरण तैयार करती है। यह लेखांकन की आधारभूत संरचना को तैयार करती है। इसमें लेखांकन के सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं, डेटा बेस, डेटा एवं खातों का वर्गीकरण आदि के मिश्रण को तैयार किया जाता है। डेटा इनपुट की प्रक्रिया, डेटा की प्रोसेसिंग, यूजर के अनुसार परिणाम, प्रतिवेदनों के प्रारूप आदि को निश्चित किया जाता है।
2. संचालन प्रक्रिया (Operating Procedure) – एक अच्छी तरह से परिकल्पना की गई संचालन प्रक्रिया एवं उसके साथ एक उपयुक्त लेखांकन के संचालन का वातावरण कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के लिए अति आवश्यक है। एक कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली कम्प्यूटरीकृत लेखांकन का डेटाबेस उन्मुख अनुप्रयोगों में से एक है। लेन-देन से सम्बन्धित डेटा संग्रहित किया जाता है। उपयोगकर्ता आवश्यक इंटरफेस का उपयोग कर डेटाबेस से लेखांकन सम्बन्धित सूचनाओं एवं प्रतिवेदनों को प्राप्त कर सकता है एवं । उनका संग्रहण कर सकता है। इसलिए कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के मूल सिद्धान्तों में डेटाबेस उन्मुख अनुप्रयोग की मूल आवश्यकताएँ ही सम्मिलित होती हैं।
3. लेखांकन क्वेरी (Accounting Query) – कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली में किसी भी प्रकार की कोई जानकारी प्राप्त करने के लिए क्वेरी का उपयोग किया जाता है । क्वेरी एक प्रश्न है, जो किसी निश्चित सूचना को प्राप्त करने के लिए सॉफ्टवेयर के माध्यम से डेटाबेस में डाली जा सकती है। उदाहरण के लिए; एक लेखाकार या उपयोगकर्ता को उन सभी देनदारों या उपभोक्ताओं की पहचान करनी है, जिन्होंने क्रेडिट सीमा की अवधि के भीतर भुगतान नहीं किया है तो इस प्रकार की सूचना को स्ट्रक्चर्ड क्वेरी लेंगुएज के माध्यम से ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार की सुविधा मानवीय लेखांकन पद्धति में सम्मिलित नहीं होती है ?
4. डेटा एवं सूचनाएँ (Data & Information) – सर्वप्रथम कम्प्यूटर लेखा प्रणाली सम्पूर्ण रूप से लेन-देन की सूचनाओं पर निर्भर करती है। यह एक व्यवसाय में सूचनाओं के माध्यम से निर्णय लेने की प्रणाली है। यह एक संगठित एवं सुव्यवस्थित प्रक्रिया के माध्यम से उपयोगकर्ता को लेखांकन से सम्बन्धित निर्णय लेने एवं लेखे तैयार करने की सुविधा प्रदान करता है। सर्वप्रथम लेखांकन से सम्बन्धित आँकड़ों को एकत्र किया जाता है। तत्पश्चात् उनका वर्गीकरण कर आँकड़ों को ऐडिट किया जाता है। यह प्रक्रिया आँकड़ों को अनुकूल सूचनाओं में रूपान्तरित करती है। डेटा क्रय, विक्रय, आय-व्यय, लेनदार-देनदार, सम्पत्ति आदि से सम्बन्धित होते हैं। यह डेटा विभिन्न विभागों द्वारा एकत्र कर एक मास्टर फाइल तैयार की जाती है । डेटा को एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से काम में लिया जाता है । एक व्यावसायिक संगठन की आवश्यकतानुसार सॉफ्टवेयर पैकेज बनाए जाते हैं। यह सॉफ्टवेयर लेन-देन प्रक्रम प्रणाली के माध्यम से संचालित होता है । इस प्रणाली में डेटा को सूचनाओं से परिवर्तित करने हेतु सभी सूचनाओं को शुद्ध, पूर्ण एवं अधिकृत किया जाता है। यह प्रणाली इनपुट प्रोसेसिंग एवं आउटपुट पर आधारित होती है। सही सूचनाओं के रूप में सटीक निर्णय लेने के लिए, सही प्रकार के डेटा का इनपुट के तौर पर निर्धारण करना आवश्यक होता है।
5. कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रक्रिया (Computerized Accounting Process) – यह प्रक्रिया लेन-देन प्रक्रम प्रणाली के माध्यम से संचालित होती है। यह प्रणाली व्यापार में होने वाले लेन-देन (Transactions) को रिकार्ड, प्रोसेस, वैध एवं संग्रहण करने का कार्य करती है । यह लेन-देन कारोबार की प्रक्रियाओं, जैसे क्रय-विक्रय, बिलिंग, उत्पादन, पेरोल आदि से सम्बन्धित होते हैं। यह लेन-देन आन्तरिक अथवा बाह्य हो सकते हैं। जब उत्पादन विभाग,कच्चे माल की खरीद के लिए क्रय विभाग को निवेदन करता है, या एक विक्रय केन्द्र से दूसरे विक्रय केन्द्र में माल का हस्तान्तरण होता है तो इसे आन्तरिक लेन-देन की परिभाषा में लिया जायेगा। जब विक्रय विभाग, किसी ग्राहक को माल बेचता है तो यह बाह्य लेन-देन है । सामान्यतः वित्तीय लेखा विभाग का लेखा बाहर के लेन-देन से ही सीमित रहता है ।
प्रश्न 3.
कुछ प्रमुख प्रतिवेदन (Reports) के विषय में बताइए।
अथवा
एक बड़ी संस्था के प्रतिवेदन, प्रवन्धन सूचना प्रणाली के अनुसार कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर-
प्रमुख प्रतिवेदन (Main Reports)
(i) सारांश प्रतिवेदन (Summary Reports) – लेखांकन की गतिविधियों को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रतिवेदन मुख्य रूप से एक लेखांकन अवधि, व्यापार इकाई, शाखा या एक उत्पाद का कुल डेटा होता है। इसमें सूचनाओं को संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के लिए, लाभ-हानि खाता, स्कन्ध की सामग्री, बिक्री सारांश, लेनदार एवं देनदारों का सारांश आदि ।
(ii) प्रवृत्ति प्रतिवेदन (Trend Reports) – प्रवृत्ति प्रतिवेदन दो या दो से अधिक इकाइयों, उत्पाद, शाखाओं की तुलना करने के उद्देश्य से बनाये जाते हैं। यह प्रतिवेदन पूर्व के लेखी आँकड़ों के अनुसार भविष्य में होने वाले आँकड़ों को ज्ञात कर सकता है। जैसे पिछले पाँच वर्षों की बिक्री के माध्यम से यह ज्ञात किया जा सकता है कि भविष्य में होने वाली बिक्री किस दिशा में जा सकती है। यह व्यापार इकाई या उत्पादन इकाई औसत से कम बिक्री या उत्पाद कर रही है तो उसकी बिक्री बढ़ाने के लिए प्रबन्धकीय निर्णय लिए जा सकते हैं।
(iii) अपवाद प्रतिवेदन (Exception Reports) – इस प्रकार के प्रतिवेदन में सूचनाओं को सामान्य सूचनाओं से अलग कर दर्शाया जाता है। अपवाद प्रतिवेदन असामान्य परिस्थितियों की सूचनाओं को ही प्रस्तुत करते हैं। अपवाद की स्थिति में किसी भी प्रकार के प्रबन्धकीय निर्णयों में तत्काल निर्णय लेने हेतु यह प्रतिवेदन काफी सहायक होते हैं। प्रबन्धक को अन्य किसी भी प्रकार की रिपोर्ट को देखने की जरूरत नहीं रहती है जिससे समय एवं संसाधनों की बचत होती है। उदाहरण के लिए; किन्हीं साधारण दिवस पर असामान्य बिक्री होने की दशा में ऐसे दिनों की एक रिपोर्ट अपवाद रिपोर्ट की श्रेणी में आती है जिससे उन दिनों में क्रय का विवेचन किया जा सके एवं अल्प समय में ही कुछ ठोस निर्णय लिये जा सकें।
(iv) माँग प्रतिवेदन (Demand Reports) – माँग यह प्रतिवेदन प्रबन्ध के आग्रह पर ही तैयार की जाती है । इसकी अवधि की कोई निश्चितता नहीं होती है। इन प्रतिवेदन का प्रारूप माँग पर निर्धारित रहता है। इसका प्रारूप सारांश प्रतिवेदन,प्रवृत्ति प्रतिवेदन या अपवाद प्रतिवेदन जैसा हो सकता है। जैसे प्रबन्धकों को अपने देनदारों को नकद बट्टा प्रदान करना है, तो वह कुल देनदारों में से डूबत ऋणों की जानकारी ले सकते हैं, जिससे उन्हें निर्णय लेने में सहायता रहे। यह डूबते ऋणों की जानकारी एक माँग प्रतिवेदन होगी।
(v) व्यक्तिगत प्रतिवेदन (Personal Reports) – यह प्रतिवेदन किसी व्यक्ति विशेष समूह अथवा संस्था से सम्बन्धित होता है। जैसे—देनदार, लेनदार, बैंक, ग्राहक,कच्चे माल का आपूर्तिकर्ता के बारे में लेखों को व्यक्तिगत प्रतिवेदन के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सका है। उदाहरण के लिए; रमेश एण्ड कम्पनी की छमाही बिक्री रिपोर्ट एक व्यक्तिगत प्रतिवेदन का उदाहरण है।
प्रश्न 4.
लेखांकन सॉफ्टवेयर के उपयोग से पहले किन परिस्थितियों पर ध्यान देना चाहिए।
उत्तर-
लेखांकन सॉफ्टवेयर के उपयोग से पहले निम्नलिखित सामान्य परिस्थितियों पर ध्यान देना चाहिए
1. लचीलापन (Flexible) – आँकड़ों के डाटा को उपयोगकर्ता हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर की मदद से अपनी आवश्यकतानुसार प्रयोग में ले सकें। सॉफ्टवेयर तथा उपयोगकर्ता के मध्य कुछ लचीलापन होना चाहिए एवं हार्डवेयर तथा सक्रिय प्रणाली और उपयोगकर्ता में भी लचीलापन होना चाहिए।
2. संस्थापन तथा देखभाल की लागत (Cost of Installation) – संस्था के उद्देश्यों के आधार पर ही सॉफ्टवेयर का चुनाव करना चाहिए। ऐसे सॉफ्टवेयर जो मितव्ययी हों उनकी रख-रखाव आदि में अधिक खर्चा न हो, का उपयोग किया जाना चाहिए।
3. सरलता से समायोजित तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता (Need of Easy Adjustment) – ऐसे लेखांकन सॉफ्टवेयर का चुनाव करना चाहिए जो उपयोग में सरल हों और जिनके लिए अधिक प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं हो । कुछ सॉफ्टवेयर उपयोगकर्ता के अनुकूल होते हैं और आसान प्रशिक्षण द्वारा पूर्ण हो जाते हैं। पर कुछ जटिल सॉफ्टवेयर पैकेज जो किसी दूसरी संचार प्रणाली से जुड़े होते हैं, उनके लिए व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
4. गोपनीयता का स्तर (Level of Secrecy) – यदि गोपनीयता को ध्यान में नहीं रखा जाए तो संस्था के सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रलेख सार्वजनिक हो सकते हैं जो कि किसी भी संस्था के लिए घातक हो सकते हैं। गोपनीयता का स्तर जितना अधिक होना, उतना ही संस्था से सम्बन्धित सूचनाओं को सुरक्षित रखा जायेगा।
5. संगठन का आकार (Size of Secrecy) – संगठन का आकार जित्ना बड़ा होगा, वहाँ लेखांकन सॉफ्टवेयर अधिक जटिल एवं खर्चीला होगा। छोटे संगठन में जहाँ लेखांकन सौदों की संख्या ज्यादा नहीं होती है। ऐसे संगठन सरल व सकल उपयोगकर्ता वाले सॉफ्टवेयर को ले सकते हैं जबकि बड़े संगठनों में उपयोगकर्ता की जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष सॉफ्टवेयर की आवश्यकता होती है।
6. उपयोगिता (Utility) – यदि प्रबन्धन सूचना प्रणाली का स्तर उच्च है तो वहाँ सॉफ्टवेयर भी उच्च स्तर का ही चाहिए। किसी संगठन में प्रबन्धन सूचना प्रणाली तथा उसकी उपयोगिता की दर से सॉफ्टवेयर की आवश्यकता को मालूम किया जाता है।
7. विक्रेताओं की जानकारी (Knowledge of Sellers) – अर्थात् विक्रेताओं से सम्बन्धित जानकारी हमेशा क्रेता को रखनी चाहिए। जैसे कि उसका नाम तथा उसकी सुविधा देने की क्षमता की आवश्यक जानकारी ले लेनी चाहिए कि वह कितने समय में सॉफ्टवेयर तैयार करने के व्यापार में संलग्न है ।
8. डेटा का आदान-प्रदान (Exim Data) – कभी-कभी लेखांकन सॉफ्टवेयर के डाटाबेस को एक प्रणाली या सॉफ्टवेयर से दूसरी प्रणाली या सॉफ्टवेयर में बदलने की जरूरत हो जाती है। संस्था का खाताबही की सूचनाओं को सीधे स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर में बदलना पड़ता है। लेखांकन सॉफ्टवेयर को ऐसा होना चाहिए जो डाटा को मूलरूप से हस्तान्तरित कर सके। प्रयोग के लिए तैयार (ready-to-use) कुछ लेखांकन सॉफ्टवेयरों में आयात-निर्यात की सुविधा उपलब्ध होती है लेकिन ये MS Office तक ही सीमित होते हैं। उपयुक्त (tailored) सॉफ्टवेयर को ऐसे तरीके से तैयार किया जाता है कि वह सभी सूचनाओं को प्रबन्ध सूचना प्रणाली (MIS) के विभिन्न उपघटकों के साथ पारस्परिक आदान-प्रदान कर सकें।
प्रश्न 5.
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के प्रमुख लाभ बताइए।
उत्तर-
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के लाभ (Advantages of Computerised Accounting System) :
1. परिशुद्धता (Error less) – गलतियाँ कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली में विलुप्त हो जाती हैं क्योंकि प्रारम्भिक लेखांकन डेटा को एक बार में प्रविष्ट कर दिया जाता है फिर इनका उपयोग लेखांकन विवरणों को तैयार करने में किया जाता है। मानवीय लेखांकन प्रणाली में गलतियों की सम्भावना होती है क्योंकि विभिन्न लेखांकन प्रलेखों को तैयार करने के लिये समंकों को कई बार समान प्रविष्टियों के लिये प्रयोग में लाया जाता है । कम्प्यूटर पूर्ण शुद्धता से लेखा सम्बन्धी कार्य करता है। इसके द्वारा त्रुटियों की सम्भावनाएँ न्यून स्तर पर रहती हैं।
2. अद्यतन सूचना (Automated Information) – लेखांकन अभिलेख कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली में स्वतः ही अद्यतन हो जाते हैं अतः नवीनतम जानकारी के लिये खातों के विवरणों को तैयार कर उनका मुद्रण कर लिया जाता है। उदाहरण के लिए; जब लेखांकन डाटा में सामान की खरीद पर नगद भुगतान को प्रविष्ट कर भण्डारित किया खाता,नगद खाता,क्रय खाता, और अन्तिम खाता (व्यापार, लाभ व हानि खाता) पर इन सौदों का प्रभाव तुरन्त ही प्रदर्शित हो जाता है । कम्प्यूटर लेखों का प्रभाव प्राथमिक प्रविष्टि के तुरन्त बाद ही हो जाता है। इसमें खाताबही या तलपट में दोबारा प्रतिलिपि प्रविष्टियाँ करने की आवश्यकता नहीं रहती है। किसी भी तिथि .. तक के प्रलेखों का विवरण हर समय तैयार मिलता है।
3. डेय का आदान-प्रदान (Import Export of Data) – लेखांकन प्रणालियों के आपस में सम्बन्ध होते हैं। लोकल एरिया नेटवर्क के माध्यम से डेटा को एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर शेयर किया जा सकता है। इससे विभिन्न उपयोगकर्ताओं के पास एक ही समय में कई सूचनाएँ होती हैं जिन्हें वे आपस में उपलब्ध कराते हैं।
4. दस्तावेजों को तैयार करना (Preparation of Documents) – अधिकतर कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के मापदण्ड होते हैं जो उपयोगकर्ता की आवश्यकतानुसार लेखांकन प्रतिवेदन को स्वतः ही तैयार कर देता है । लेखांकन प्रतिवेदन एक रोकड़ पुस्तक, तलपट, खाते के वर्णन को केवल माउस द्वारा क्लिक मात्र से प्राप्त हो सकता है।
5. सुपाठ्य (Clarity) – कम्प्यूटर के मॉनीटर पर डाटा जब आता है तो वह सुपाठ्य होता है क्योंकि टाइपिंग के मानक़ फॉन्ट लिये गये हैं। ये मानवीय लेखांकन प्रणाली में संख्याओं को हाथ से लिखने की प्रक्रिया द्वारा होने वाली गलती को खत्म करता है।
6. प्रतिवेदन (Reports) – कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली प्रबन्धन के लिये सूचनाएँ तुरन्त प्रभाव से उपलब्ध कराता है जो व्यापार के प्रबन्धन व नियन्त्रण के लिये कारगर साबित होता है। देनदारों का विश्लेषण धन डूबने की सम्भावना (डूबत ऋणों) को अंकित करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी कम्पनी की निजी उधार विक्रय की अधिकतम राशि पर प्रतिबन्ध लगाती है तो यह जानकारी तुरन्त कम्प्यूटर पर उपलब्ध होगी जब कि प्रत्येक प्रमाणक डाटा प्रविष्टि आलेख द्वारा प्रवेशित होगा। जबकि इस गलती को ढूँढ़ने के लिये मानवीय लेखांकन प्रणाली में समय लग जाता है । सुस्पष्ट जानकारी भी प्राप्त नहीं हो सकती है।
7. भण्डारण एवं पुनः प्राप्ति (Storage and Access) – कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली एक पद्धति के अनुरूप डाटा को, भण्डारित करती है। इसके लिये वस्तुतः ज्यादा जगह की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि हार्डडिस्क, सी. डी. रोम, फ्लॉपी आदि बहियों की तुलना में बहुत कम जगह लेती हैं। इसके अतिरिक्त डाटा एवं सूचनाओं को अति शीघ्र प्राप्त कर सकते हैं।
8. प्रोत्साहन और कर्मचारियों का हित (Motivation and Benefits to Employees) – कम्प्यूटर प्रणाली में कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है जिससे वे अपने आपको अधिक मूल्यवान मानने लगते हैं। ये प्रोत्साहन उनकी नौकरी में रुचि को बनाये रखता है जबकि वे इसका विरोध भी उत्पन्न करते हैं। जब मानवीय लेखांकन प्रणाली से कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली में इसे बदला जाता है।
प्रश्न 6.
मानवीय एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली के अन्तर को समझाइए।
उत्तर-
मानवीय एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली के अन्तर को निम्न बिन्दुओं में समझा जा सकता है–
1. मानवीय लेखा प्रणाली (Manual Accounting System)-
- लेन-देन वाले वित्तीय व्यवहारों की पहचान मेनुअल रूप से होती है।
- लेन-देन का रिकार्ड एवं उनकी पुनः प्राप्ति मूल प्रविष्टियों की पुस्तकों से प्राप्त होती है।
- लेन-देन की प्रविष्टि सर्वप्रथम जरनल में की जाती है, उसके बाद उसे बही खातों में पोस्ट किया जाता है। इस प्रकार वित्तीय लेन-देन को दो बार दर्ज किया जाता है।
- खाताबही बनाने के बाद खातों का संक्षिप्तीकरण करने हेतु तलपट तैयार किया जाता है।
- तलपट के माध्यम से अन्तिम खाते तैयार किए जाते हैं जिसमें लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा बनाया जाता है।
- यदि किसी प्रकार की प्रविष्टियों या खाताबही में गलतियाँ रह जाती हैं तो उसमें सुधार हेतु समायोजन किए जाते हैं। इसके लिए त्रुटियों में प्रविष्टियों द्वारा. सुधार किए जाते हैं।
- वर्ष के अन्त में लेखा खातों को बन्द कर दिया जाता है एवं उनके खाता शेष को अगले साल हस्तान्तरित कर दिया
जाता है।
2. कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली (Computerized Accounting System)-
- लेन-देन वाले वित्तीय व्यवहारों की पहचान कम्प्यूटर द्वारा स्वचालित पूर्व निर्धारित प्रोग्रामिंग के द्वारा की जाती है।
- वित्तीय व्यवहारों को डेटाबेस के माध्यम से रिकार्ड किया जाता है।
- संग्रहित किया हुआ डेटा खाताबही में अपने आप प्रोसेस हो जाता है।
- तलपट बनाने के लिए खाताबही की जरूरत नहीं पड़ती है। हर प्रविष्टि स्वतः ही खाताबही शेष निकाल सकती है। हर प्रविष्टि के बाद खाताबही शेष स्वतः ही तैयार हो जाता है।
- अन्तिम खाते जैसे लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा प्रविष्टियों के बाद ही बन जाता है। इसका कारण यह है कि कोई भी प्रविष्टि सीधे प्रोसेस होकर अन्तिम खाते बनाने के लिए तलपट पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।
- त्रुटि सुधार के लिए किसी प्रकार की मेनुअल प्रविष्टि दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है। वाउचर के माध्यम से त्रुटि सुधार स्वतः ही हो जाता है।
- प्रारम्भिक एवं अन्तिम खाता शेष डेटा बेस में जमा हो जाते हैं।
प्रश्न 7.
क्रियान्वयन के उद्देश्य से मानवीय लेखा प्रणाली एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली के मुख्य अन्तर बताइए।
ऊतर-
क्रियान्वयन के उद्देश्य से मानवीय लेखा प्रणाली एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली के मुख्य अन्तर (Main differences in Computerised and Manual Accounting System)
(i) गति (Speed)-मानवीय लेखा एवं कम्प्यूटरीकृत लेखा प्रणाली में मुख्य अन्तर गति का है। लेखांकन, सॉफ्टवेयर डेटा संसाधित रहता है और मेनुअल प्रणाली की तुलना में बहुत तेजी से लेखा एवं वित्तीय वितरण तैयार करता है। सॉफ्टवेयर के माध्यम से लेखों की गणना आदि गणितीय कार्य स्वचालित हो जाता है। मानवीय लेखा पद्धति में प्रविष्टि से लेकर अन्तिम खातों तक कार्य श्रृंखलाबद्ध तरीके से लेखाकार द्वारा हस्तलिखित होते हैं, जिनमें त्रुटियाँ होने की सम्भावना बनी रहती है। इन्हीं कारणों से लेखांकन प्रक्रिया पूरी होने में भी समय लग जाता है । कम्प्यूटरीकृत प्रणाली में त्रुटियों की सम्भावनाएँ भी कम होती हैं और यदि हो भी जाए तो उन्हें सुधारने में मेनुअल लेखा प्रणाली से काफी कम समय लगता है । कम्प्यूटरीकृत प्रणाली में सिर्फ एक ही बार डेटा इनपुट किया जाता है और एक ही बटन के क्लिक पर समूचे लेखा विवरण तैयार हो जाते हैं।
(ii) लागत (Cost)-मानवीय एवं कम्प्यूटरीकृत सिस्टम के बीच दूसरा अन्तर लागत होती है। कागज एवं पेन्सिल से मेनुअल लेखांकन की तुलना में सॉफ्टवेयर आधारित कम्प्यूटरीकृत प्रणाली ज्यादा खर्चीली होती है। कम्प्यूटरीकृत प्रणाली के रख-रखाव की लागत भी अधिक आती है। इसे चलाने के लिए दक्ष कर्मचारियों की आवश्यकता होती है एवं उनकी प्रशिक्षण पर भी काफी खर्च आता है । कम्प्यूटर के अतिरिक्त अन्य हार्डवेयर जैसे पेन ड्राइव, यू.पी.एस, सर्वर, प्रिन्टर, हार्ड डिस्क आदि की आवश्यकता रहती है जिसके रख-रखाव में भी काफी खर्च आता है। इस प्रकार यह लेखा प्रणाली, मानवीय लेखा प्रणाली से अधिक खर्चीली होती है।
(iii) बैकअप (Backup)-मानवीय और कम्प्यूटराइज्ड प्रणाली में तीसरा अन्तर वित्तीय विवरणों के बैकअप से है। इस प्रणाली में कई प्रकार के विवरणों को कहीं दूसरी जगह पर स्टोर किया जा सकता है। किसी प्रकार की दुर्घटना घटने पर उन विवरणों को सुरक्षित रखा जा सकता है। कागजों के रिकार्ड के साथ ऐसा करना सम्भव नहीं होता है।
(iv) सुरक्षा (Security)-कम्प्यूटरीकृत प्रणाली में लेखा विवरणों एवं प्रतिवेदनों को पासवर्ड के माध्यम से सुरक्षित रखा जा सकता है। इन कम्प्यूटराइज्ड विवरणों को चुराना या अन्य किसी प्रकार से गलत उपयोग में लाना सम्भव नहीं होता है। मेनुअल प्रणाली के अन्तर्गत तैयार की गई पुस्तकों को चुराना अथवा उनके किसी अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा उपयोग करने की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं।
(v) वर्गीकरण (Classification)-मानवीय लेखांकन प्रणाली में लेन-देन को प्रारम्भिक पुस्तकों में रिकार्ड करने के पश्चात् पुनः बहियों में वर्गीकृत किया जाता है। इसके फलस्वरूप लेन-देन के डाटा की प्रतिलिपि तैयार हो जाती है जबकि कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली में वर्गीकृत सौदों की प्रतिलिपि तैयार नहीं हो पाती है। बहियाँ तैयार करने के लिए भण्डारित सौदों के डाटा को प्रलेख के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। एक समान लेन-देन सम्बन्धी डाटा को विभिन्न प्रलेखों (Statement) द्वारा दिखाया जाता है।
(vi) संक्षिप्तीकरण (Summarization)-मानवीय लेखांकन प्रणाली में लेन-देनों को संक्षिप्त रूप से बहियों में दिखाया जाता है, तत्पश्चात् उनके खाता शेष को तलपट में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। जबकि कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली में,प्रारम्भिक तौर पर एकत्रित डाटाओं से विभिन्न खातों के शेष तैयार कर लिए जाते हैं जिसे अन्ततः तलपट प्रलेख में दर्शाया जाता है। तलपट के निर्माण हेतु बहियों को तैयार करना कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली के अन्तर्गत आवश्यक स्थिति नहीं होती है।
(vii) समायोजन प्रविष्टि (Adjustment Entry)-मानवीय लेखांकन प्रणाली में यह प्रविष्टियाँ आगम-लागत मिलान के सिद्धान्त पर अभिलेखित की जाती हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि, इन प्रविष्टियों का अभिलेखन एक लेखांकन अवधि में किए गए व्ययों को उसी समयावधि के दौरान प्राप्त आगम के मिलान के रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य समायोजित प्रविष्टियाँ त्रुटियाँ और उनके सुधार के लिए भी की जाती हैं। जबकि कम्प्यूटरीकृत लेखांकन में आगम-व्यय मिलान सिद्धान्त की पूर्ति के लिए प्रमाणक तैयार किया जाता है और सिद्धान्त अशुद्धि को छोड़ बहियों में दिखाया जाता है। तत्पश्चात् उनके खाता शेष को तलपट में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।
प्रश्न 8.
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन पद्धति के विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तर-
कम्यूटरीकृत लेखांकन पद्धति के प्रकार (Types of Computer Accounting)
कम्प्यूटरीकृत लेखांकन प्रणाली एक बहुविकल्पीय लेखा प्रणाली है जिसमें डेटा के माध्यम से प्रविष्टियाँ की जाती हैं और स्वतः ही लेखा बही, तलपट, लाभ-हानि खाता एवं चिट्ठा तैयार हो जाता है। यह प्रणाली लेखांकन के विभिन्न सह-कार्यों को ही संचालित करती है। इन सभी क्षेत्रों का उल्लेख निम्न प्रकार से है
1. प्रबन्धकीय लेखांकन (Management Accounting)-प्रबन्धकीय लेखांकन का उद्देश्य, व्यापार को सुचारु रूप से चलाने हेतु प्रबन्धकों को वित्तीय सूचनाएँ प्रदान करना है। इन सूचनाओं के द्वारा प्रबन्धक व्यापारिक गतिविधियों की योजना बना उन गतिविधियों को नियन्त्रित कर सकते हैं। यह लेखांकन की वह शाखा है, जो व्यापारिक निर्णय लेने हेतु प्रबन्धकों के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान करती है। यह वास्तविक लागत को रिकार्ड करती है, एवं विभिन्न लागत नियन्त्रण तकनीकी द्वारा लागत कम करने का प्रयत्न करती है जैसे—अमाप लागत, बजटरी कंट्रोल, सीमान्त लागत लेखांकन आदि । यह प्रणाली कम्प्यूटर के द्वारा नियोजित लागत एवं वास्तविक लागत में तुलना कर उनमें विवरण ज्ञात करती है । इस पद्धति का एक सह-भाग अनुमानित लेखांकन है, जिसमें किसी प्रक्रिया में कम लागत का उपयोग कर किस प्रकार से अधिक लाभ अर्जित किया जाए, इस बात पर परीक्षण किया जाता है। इसे संसाधनों की बर्बादी को नष्ट करने एवं ज्यादा लाभ अर्जित करने पर बल दिया जाता है। डेटा का उपयोग कर कम्प्यूटर के माध्यम से यह कार्य प्रबन्धकों द्वारा तीव्रगति से किया जा सकता है।
2. स्कन्थ लेखांकन (Inventory Accounting)-स्कन्ध लेखा प्रणाली सामग्रियों के मूल्यांकन एवं उनके स्तर को ज्ञात करने के लिए प्रयोग में ली जाती है। जब माल को क्रय किया जाता है तो उसकी प्रविष्टि इनवार्ड (आवक) में कर दी जाती है। यह प्रविष्टि इकाई के कोड के अनुसार की जाती है। इसे डेटा इन्टरफेस के माध्यम से उत्पादन विभाग एवं क्रय विभाग से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार उपयोग में लेने हेतु कितनी मात्रा में सामग्री उपलब्ध है, इसकी जानकारी सदैव स्टोर प्रबन्धक के पास उपलब्ध रहती है। यदि कई प्रकार की सामग्री उपयोग में ली जाती है, तो हर सामग्री का वर्गीकरण कर उसे कोड दिए जाते हैं। निर्मित इकाइयों के सन्दर्भ में बार कोडिंग की जाती है। बार कोडिंग से सामग्री को चिन्हित किया जा सकता है। स्कन्ध के मूल्यांकन हेतु भी विभिन्न निर्गमन के नियमों के अनुसार अन्तिम स्कन्ध (Closing Stock) का मूल्यांकन किया जा सकता है।
3. उद्योग विशेष लेखांकन (Industry Specific Accounting)-लेखांकन प्रणाली में उद्योग विशेष अनुप्रयोग (Application) भी शामिल है । एक खुदरा व्यापारी के लिए लेखांकन की आवश्यकताएँ अन्य उद्योगों से अलग होती हैं। इसी प्रकार एक किराना व्यापारी के लिए यह प्रणाली खुदरा व्यापारी से अलग होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि किराना व्यापारी की बिक्री नकद में ज्यादा होगी एवं उसके स्कन्ध का मूल्यांकन एक जटिल प्रक्रिया होगी क्योंकि स्कन्ध में कई प्रकार की सामग्रियाँ सम्मिलित होती हैं। एक कोरियर व्यवसाय के लिए भेजे गए सामान की ट्रेकिंग आवश्यक होती है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि भेजा गया सामान सही व्यक्ति के पास पहुँचा है या नहीं। इसी प्रकार किसी भी उद्योग विशेष का प्रचलित सामान्य व्यावहारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विशेष लेखांकन सॉफ्टवेयर तैयार किये जाते हैं, जिससे उनके संचालन में साध्यता लायी जा सके। एक व्यवसाय सुचारु रूप से चल सके।
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