Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 11 श्वसन
RBSE Class 12 Biology Chapter 11 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Biology Chapter 11 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कोशिका में क्रेब्स चक्र कहाँ सम्पन्न होता है-
(अ) केन्द्रक ।
(ब) कोशिका द्रव्य
(स) हरितलवक
(द) माइटोकॉण्डिया
उत्तर:
(द) माइटोकॉण्डिया
प्रश्न 2.
अनॉक्सी श्वसन में कितने अणु ATP का शुद्ध लाभ होता है-
(अ) तीन
(ब) चार
(स) आठ
(द) दो ।
उत्तर:
(द) दो ।
प्रश्न 3.
जीवद्रव्य श्वसन में श्वसन क्रियाधार होता है-
(अ) वसा ।
(ब) प्रोटीन्स ।
(स) शंर्करा
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4.
कोशिका की सार्वत्रिक ऊर्जा मुद्रा कहलाती है-
(अ) ATP
(ब) DNA
(स) RNA
(द) AMP
उत्तर:
(अ) ATP
प्रश्न 5.
ग्लाइकोलिसिस में ऊर्जा का शुद्ध लाभ होता है।
(अ) 2ATP
(ब) 8ATP
(स) 4ATP
(द) शून्य ।
उत्तर:
(ब) 8ATP
प्रश्न 6.
पाइरूविक अम्ल के ऐसीटिल को-एन्जाइम A में रूपान्तरण कहाँ पर होता है-
(अ) कोशिकाद्रव्य में
(ब) मैट्रिक्स में
(स) माइटोकॉण्डिया की बाह्य झिल्ली पर
(द) आन्तरिक झिल्ली पर।
उत्तर:
(ब) मैट्रिक्स में
प्रश्न 7.
ग्लाइकोलिसिस में निर्मित NADH+H+ के दो अणु यदि मैलेट- ऐस्पारटेट शटल के द्वारा ETS में प्रवेश करते हैं तो इनसे कितने अणु ATP के बनेंगे-
(अ) दो
(ब) चार
(स) छः
(द) आठ
उत्तर:
(स) छः
प्रश्न 8.
पेंटोज फास्फेट पथ में ग्लूकोज के एक अणु के ऑक्सीकरण से कितने अणु ATP का निर्माण होता है-
(अ) 36
(ब) 38
(स) 40
(द) 8
उत्तर:
(अ) 36
प्रश्न 9.
ऑक्सीकारी फास्फोरिलीकरण के केमीऑस्मोटिक सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया था।
(अ) क्रेब्स ने
(ब) गिब्स ने
(स) पीटर मिशेल ने
(द) डीकन्स ने
उत्तर:
(स) पीटर मिशेल ने
प्रश्न 10.
क्रेब्स चक्र में बनने वाला पहला तथा एकमात्र पाँच कार्बन परमाणु वाला यौगिक है-
(अ) सिस-एकोनिटिक अम्ल
(ब) आक्सेलो सक्सीनिक अम्ल
(स) α-कीटोग्लूटेरिक अम्ल
(द) फ्यूमेरिक अम्ल ।
उत्तर:
(स) α-कीटोग्लूटेरिक अम्ल
प्रश्न 11.
श्वसन में श्वसन गुणांक एक से कम होता है-
(अ) ग्लूकोज में
(ब) सुक्रोज में
(स) स्टार्च में
(द) प्रोटीन्स में
उत्तर:
(द) प्रोटीन्स में
प्रश्न 12.
श्वसन का Q10 मान होता है-
(अ) तीन
(ब) दो
(स) चार
(द) छः
उत्तर:
(ब) दो
प्रश्न 13.
पेन्टोज फास्टेट पथ कोशिका में किस स्थल पर सम्पन्न होता है-
(अ) माइटोकाण्ड्रिया
(ब) परऑक्सीसोम
(स) कोशिकाद्रव्य
(द) केन्द्रक
उत्तर:
(स) कोशिकाद्रव्य
RBSE Class 12 Biology Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ग्लाइकोलाइसिस का अन्तिम उत्पाद क्या है?
उत्तर:
पाइरूविक अम्ल (Pyruvic acid)
प्रश्न 2.
ऑक्सीश्वसन कोशिका के किस स्थल पर सम्पन्न होता है?
उत्तर:
माइटोकॉण्डिया (Mitochondria)
प्रश्न 3.
क्रेब्स चक्र को TCA चक्र क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
सिट्रिक अम्ल (CH2COOH-COH) COOH -CH2COOH) में तीन (-COOH) समूह उपस्थित होते हैं। इसलिए इसे लिकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (Tricarboxylic acid cycle, TCA Cycle) कहते हैं। यह क्रेब्स चक्र का प्रथम उत्पाद होता है।
प्रश्न 4.
ग्लूकोस के ऑक्सीकरण के वैकल्पिक परिपथ का नाम बताइए।
उत्तर:
- हेक्सोस मोनोफॉस्फेट परिपथ अथवा पेण्टोस फॉस्फेट पथ (HMP या PPP)
- एन्टनर कुओडोरौफ पथ (Entner Doudoroff Pathway)
प्रश्न 5.
जीवद्रयी श्वसन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऑक्सीजन की उपस्थिति में जीवद्रव्य में होने वाला श्वसन जीवद्रव्यी श्वसन (Protoplasmic Respiration) कहलाता है।
प्रश्न 6.
किण्वन किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह श्वसन क्रिया जो O2 के बिना उपयोग के सम्भव होती है । किण्वन (Fermentation) कहलाती है। इससे ऐल्कोहॉल या कार्बोक्सिलिक अम्लों का निर्माण होता है।
प्रश्न 7.
श्वसन के क्रियाधारों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
श्वसन अभिक्रिया में भाग लेने वाले उच्च ऊर्जा युक्त पदार्थ जो ऑक्सीकृत होकर ऊर्जा मुक्त करते हैं श्वसन क्रियाधार (Respiratory Substrate) कहलाते हैं। उदाहरणार्थ : कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन।
प्रश्न 8.
ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण पर बनने वाले अन्तिम उत्पादों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), जल (H2O) तथा ऊर्जा
प्रश्न 9.
श्वसन गुणांक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
श्वसन में मुक्त होने वाली CO2, तथा प्रयुक्त होने वाली O2 के आयतनों का अनुपात श्वसन गुणांक (Respiratory quotient, RQ) कहलाता है।
प्रश्न 10.
अवायवीय श्वसन में श्वसन गुणांक अनन्त क्यों होता है?
उत्तर:
अवायवीय श्वसन में CO2 तो मुक्त होती है परन्तु O2 की अवशोषण नहीं होता है। इसलिए अवायवीय श्वसन में श्वसन गुणांक अनन्त होता है।
प्रश्न 11.
ग्लाइकोलाइसिस तथा क्रेब्स चक्र की योजक कड़ी किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसीटिल CO~A के निर्माण की क्रिया ग्लाइकोलाइसिस तथा क्रेब्स चक्र की योजक कड़ी कहलाती है।
प्रश्न 12.
अंकुरित अरण्डी के बीजों का श्वसन गुणांक कितना होता है?
उत्तर:
अंकुरित अरण्डी के बीजों का श्वसन गुणांक सदैव एक से कम होता है।
प्रश्न 13.
केमीऑस्मेटिक सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया था?
उत्तर:
पीटर मिशेल (Peter Mitchell) ने 1961 में ATP संश्लेषण का रसायन परासरणी (Chemiosmotic Theory) सिद्धान्त दिया था।
प्रश्न 14.
श्वसन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
- बाह्य या पर्यावरणीय कारक : तापमान, ऑक्सीजन, जल, प्रकाश, कार्बन डाइ ऑक्साइड।
- आन्तरिक या पादप कारक : जीवद्रव्य, श्वसनी क्रियाधार, कोशिका की आयु, चोट एवं घाव।
प्रश्न 15.
किण्वन में बनने वाले सम्भावित उत्पाद कौन से हैं?
उत्तर:
ऐल्कोहॉल तथा कार्बोक्सिलिक अम्ल।
RBSE Class 12 Biology Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मुक्तप्लावी तथा जीवद्रव्यी श्वसन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मुक्तप्लावी श्वसन (Floating Respiration) : यदि श्वसन क्रिया में श्वसनी पदार्थ कार्बोहाइड्रेटस होते हैं तब इसे मुक्तप्लावी श्वसन (Floating respiration) कहते हैं।
जीवद्रव्यी श्वसन (Protoplasmic Respiration) : यदि श्वसन क्रिया में श्वसन पदार्थ प्रोटीन होता है तो ऐसे श्वसन को जीवद्रव्यी श्वसन (Protoplasmic respiration) कहते हैं।
प्रश्न 2.
ऑक्सी तथा अनॉक्सी श्वसन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सी श्वसन तथा अनॉक्सी श्वसन में अन्तर
प्रश्न 3.
शीतगृहों में फल तथा सब्जियाँ अधिक समय तक सुरक्षित क्यों रहती हैं?
उत्तर:
अति निम्न ताप पर श्वसन की क्रिया में भाग लेने वाले एन्जाइम निष्क्रिय हो जाते हैं जिससे श्वसन दर घट जाती है। इस कारण ही शीतगृहों में फल तथा सब्जियाँ बिना सड़े-गले अधिक समय तक सुरक्षित रहती हैं।
प्रश्न 4.
पेण्टोज फॉस्फेट पथ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शर्करा विघटन के कुछ अन्य पद (Some other pathways of Glucose breakdown)
I. हेक्सोस मोनोफॉस्फेट पथ अथवा पेण्टोस फॉस्फेट पथ (Hexose monophosphate pathway or pentose phosphate pathway HMP or PPP)—सामान्यत: ऑक्सीश्वसन की क्रिया सामान्य पथ (ग्लाइकोलाइसिस तथा क्रेब्स चक्र) द्वारा सम्पन्न होती है परन्तु कुछ जीवधारियों में ऑक्सीकरण का वैकल्पिक पथ भी पाया जाता है जिसे पेण्टोस फॉस्फेट पथ (PPP) कहते हैं। इस प्रक्रम में हेक्सोस शर्करा का विघटन एक मध्यवर्ती S कार्बन परमाणु युक्त शर्करा के द्वारा होता है। इसलिए इसे पेण्टोस फॉस्फेट पथ (PPP) कहते हैं। इस पथ का सर्वप्रथम अध्ययन वारवर्ग तथा डिकिन्स (Warburg and Dickons, 1938) में जन्तु ऊतकों (Animal tissues) में किया था। इस पथ की विभिन्न अभिक्रियाओं का अध्ययन रेकर एवं साथियों (Racker et.al 1954) ने किया था। यह पथ कोशिका द्रव्य में ऑक्सीजन की उपस्थिति में पूर्ण होता है।
इस क्रिया के प्रमुख चरण निम्नवत हैं-
1. ग्लूकोस अणु को फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of Glucose molecule)-सर्वप्रथम 6 अणु ग्लूकोस ATP की उपस्थिति में फॉस्फोरिलीकृत होकर ग्लूकोस-6 फॉस्फेट के 6 अणुओं का निर्माण करते हैं।
2. ग्लूकोस-6-फॉस्फेट का ऑक्सीकरण (Oxidation of Glucose-6-phosphate)-ग्लूकोज-6-फॉस्फेट डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ग्लूकोज-6-फॉस्फेट फॉस्फोग्लूकोनिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है।
3. फॉस्फोग्लूकोनिक अम्ल का ऑक्सीकारी विकार्बोक्सिलीकरण (Oxidative decarboxylation of Phosphogluconic acid)-6-फॉस्फोग्लूकोनिक अम्ल डिहाइजोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में 6-फॉस्फोग्लूकोनिक अम्ल के ऑक्सीकारी विकार्बोक्सिलीकरण क्रिया द्वारा 5 कार्बन परमाणु युक्त राइबुलोस-5-फॉस्फेट का निर्माण होता है तथा NADP का NADPH + N+ में अपचयन हो जाता है।
राइबुलोस-5-फॉस्फेट से क्रमागत कई समावयवी अभिक्रियाओं द्वारा फॉस्फोरिलीकृत मध्यवर्ती उत्पाद निर्मित होते हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य ग्लूकोस फॉस्फेट को पूर्णतः विघटित करना होता है। इस प्रक्रिया में मुक्त होने वाले प्रत्येक CO2 अणु के साथ NADPH + H+ के दो अणु निर्मित होते हैं। इसके पूर्ण विघटन से CO2 के 6 अणु तथा NADPH + H+ के 12 अणुओं का निर्माण होता है। NADPH + H+ के 12 अणु इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र द्वारा 36 ATP अणुओं का निर्माण करते हैं क्योंकि एक NADPH + H+ अणु से 3 ATP अणु निर्मित होते हैं।
इस चक्र (HMP या PPP) के उत्पाद राइबुलोस-5-फॉस्फेट से विभिन्न पदार्थों का संश्लेषण होता है जैसे—DNA, RNA, ATP, FAD तथा CO~A आदि।
II. एन्टनर डूओडोरौफ पथ (Entner Doudoroff’s pathway)—यह पथ मुख्यत: कुछ जीवाणुओं (Bacteria) में पाया जाता है। यह पथ शर्करा के पाइरूविक अम्ल तक विखण्डन को प्रदर्शित करता है। इस पथ में बनने वाले मध्यवर्ती पदार्थ सामान्य ग्लाइकोलाइसिस में निर्मित पदार्थों से भिन्न होते हैं। इस पथ का सर्वप्रथम अध्ययन स्यूडोमोनास (Pseudomonas) नामक जीवाणुओं में किया गया था।
श्वसन क्रिया में श्वसनाधारों में अन्तर सम्बन्ध (Inter relationship between respiratory substrates in respiration)-श्वसन क्रिया में श्वसनाधार के रूप में सजीव सामान्यत: कार्बोहाइड्रेट का उपयोग करते हैं, परन्तु कुछ पादपों में विशेष परिस्थितियों में प्रोटीन, वसा तथा कार्बनिक अम्लों को भी श्वसन क्रियाधार के रूप में प्रयोग में लिया जाता है। श्वसन में यदि वसा क्रियाधार है तो यह सर्वप्रथम वसीय अम्ले (Fatty acid) एवं ग्लिसरॉल में विघटित हो जाता है। वसीय अम्ल ऐसीटिल CoA बनकर क्रेब्सचक्र (Kreb’s cycle) में प्रवेश करता है, (चित्र 11.6) तथा ग्लिसरॉल पहले PGAL में परिवर्तित होकर ग्लाइकोलिसिस में प्रवेश करता है। अगर प्रोटीन क्रियाधार हो तो यह प्रोटिएज एन्जाइम द्वारा विघटित होकर अमीनो अम्ल के रूप में पायरूविक अम्ल के साथ श्वसन पथ में प्रवेश करता है।
श्वसन क्रिया में काम आने वाले श्वसनाधारों के उपयोग क्रम के अनुसार सर्वप्रथम कार्बोहाइड्रेट, तत्पश्चात् क्रमशः वसाये, कार्बनिक अम्ल व अन्त में प्रोटीन होते हैं।
श्वसन एक उभयचय क्रिया है। (Respiration is an amphibolic process)
जीवधारियों में कार्बनिक पदार्थों के विघटन की क्रिया उपचयन (Catabolism) तथा संश्लेषण की प्रक्रिया उपचय (Anabolism) कहलाती है। श्वसनी पथ में अपचय एवं उपचय दोनों प्रकार की प्रक्रियाएँ होती हैं। इसलिए श्वसन को उभयचय क्रिया (Amphibolic process) कहा जाता है।
प्रश्न 5.
श्वसन क्रियाधारों के अन्तर्सम्बन्धों का आरेखी निरूपण कीजिए।
उत्तर:
श्वसन के क्रियाधार या श्वसनाधार (Respiratory Substrates)
श्वसन अभिक्रिया में भाग लेने वाले उच्च ऊर्जा युक्त पदार्थ (यौगिक) जो आक्सीकृत होकर ऊर्जा मुक्त करते हैं, श्वसन के क्रियाधार (Respiratory Substrates) कहलाते हैं। ये क्रियाकारक कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन के अणुओं के रूप में कोशिका में संग्रहित रहते हैं। इनमें से कार्बोहाइड्रेट श्वसन के प्राथमिक क्रियाधार हैं। श्वसन में सबसे पहले उपयोग में लिया जाने वाला क्रियाधार हेक्सोज शर्करा कार्बोहाइड्रेट होती है। कार्बोहाइड्रेट की अनुपस्थिति में वसा तथा वसा के भी उपयोग में आ जाने पर प्रोटीन का आक्सीकरण प्रारम्भ हो जाता है। ब्लैकमेन ने कार्बोहाइड्रेट से होने वाले श्वसन को जीवद्रव्यी श्वसन (Protoplasmic respiration) कहा है। यह भुखमरी एवं रोगों के समय होता है।
श्वसन के प्रकार (Types of Respiration)
श्वसन सामान्यत: दो प्रकार का होता है-
1. ऑक्सी अथवा वायुश्वसन (Aerobic Respiration)
2. अनॉक्सी या अवायुश्वसन (Anaerobic Respiration)
1. ऑक्सी अथवा वायुश्वसन (Aerobic Respiration)
यह श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में अर्थात O2 का उपभोग करते हुए सम्पन्न होता है जिसमें कार्बनिक पदार्थ का जल एवं कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) का पूर्ण अपघटन होता है तथा अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
यह जन्तुओं तथा पादपों में श्वसन की सामान्य विधि है। ऑक्सीश्वसन को निम्न रासायनिक समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-
C6H12O2 + 6O2 → 6CO2 + 6H20+ 686kcal ऊर्जा
2. अनॉक्सी या अवायु श्वसन (Anaerobic Respiration)
अनॉक्सी श्वसन में ऑक्सीजन का उपभोग नहीं होता है। इस क्रिया में कार्बनिक पदार्थ पूर्णतः ऑक्सीकृत नहीं होते हैं एवं ऐल्कोहॉल अथवा कार्बनिक अम्ल तथा CO2 का निर्माण होता है। श्वसन के इस प्रकार में अल्पमात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती है। अतः इसे अन्तरअणुक श्वसन (Intramolecular respiration) भी कहते हैं। अनॉक्सी श्वसन को निम्न रासायनिक अभिक्रिया द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-
संग्रहित व अंकुरित हुए बीजों में माँसल फलों में अस्थायी रूप से व अनेक जीवाणुओं (Bacteria) तथा कवकों (Fungi) में नियमित रूप से अनॉक्सी श्वसन की क्रिया पायी जाती है।
प्रश्न 6.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(क) किण्वन
(ख) पाइरूविक अम्ल का ऑक्सीकारी विघटन
(ग) श्वसन गुणांक
(घ) मिशेल का केमीऑस्मेटिक सिद्धान्त
उत्तर:
(क) किण्वन (Fermentation) :
किण्वन (Fermentation)
किण्वन अधिकांश जीवाणुओं (Bacteria) तथा कवकों (Fungi) में होने वाली क्रियां है जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अर्थात O2 के बिना उपयोग किए सम्पन्न होती है। इसमें ग्लूकोज का अपूर्ण ऑक्सीकर (Incomplete oxidation) होता है तथा ऐल्कोहॉल या कार्बोक्सिलिक अम्लों का निर्माण होता हैं एवं CO2 मुक्त होती है। पाश्चर (1857) ने सिद्ध किया कि ऐल्कोहॉलिक किण्वन की क्रिया यीस्ट कोशिकाओं की उपापचयी क्रियाओं के परिणामस्वरूप होती है। वुकनर (Buchner) 1897 में यीस्ट कोशिकाओं से जाइमेज नामक एन्जाइम को पृथक किया था। यह एन्जाइम जीवित कोशिकाओं के बिना किण्वन क्रिया करने में सक्षम होता है।
किण्वन के प्रकार (Types of fermentation)-किण्वन क्रिया के फलस्वरूप निर्मित उत्पादों के आधार पर किण्वन निम्न प्रकार का होता है-
1. ऐल्कोहॉलीय किण्वन (Alcoholic fermentation)—यह किण्वन यीस्ट, कुछ अन्य कवकों तथा उच्च वर्गीय पौधों में पायी जाती है। यह अनाक्सी श्वसन का सामान्यतः पाया जाने वाला स्वरूप है। ग्लाइकोलाइसिस में निर्मित पाइरूविक अम्ल से ऐल्कोहॉल का निर्माण दो चरणों में पूर्ण होता है-
(i) प्रथम चरण में पाइरूविक अम्ल के डिकार्बोक्सिलीकरण से ऐसीटेल्डिहाइड बनता है तथा CO2 मुक्त होती है।
(ii) द्वितीय चरण में ऐल्कोहॉल डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम तथा NADH + H+ की उपस्थिति में ऐसीटेल्डिहाइड का अपचयन होकर ऐल्कोहॉल तथा NAD+ का निर्माण होता है।
2. लैक्टिक अम्ल का किण्वन (Fermentation of lactic acid)-यह क्रिया जीवाणुओं (लैक्टोवेसिलस, क्लॉस्ट्रीडियम) व मांसपेशियों में होती है। इसमें पाइरूविक अम्ल का NADH + H+ तथा लैक्टिक डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में लैक्टिक अम्ल में अपचयन हो जाता है।
3. ऐसीटिक अम्ल का किण्वन (Fermentation of Acetic acid)-यह किण्वन क्रिया ऐसीटोवैक्टर ऐसीटाई जीवाणु की उपस्थिति में होती है। इस क्रिया में पहले पाइरूविक अम्ल से ऐसीटेल्डिहाइड तथा बाद में ऐसीटिक अम्ल का निर्माण होता है।
Pyruvic acid ➝ Acetaldehyde + CO2
4. ब्यूटाइरिक अम्ल किण्वन (Butyric acid fermentation)-यह क्रिया वेसिलस ब्यूटाइरिकस तथा क्लॉस्ट्रीडियम ब्यूटाइरिकस जीवाणुओं में होती हैं। इसमें पाइरूविक अम्ल से पहले ऐसीटोऐसीटिक अम्ल तथा बाद में ब्यूटाइरिक अम्ल का निर्माण होता है।
(ख) पाइरूविक अम्ल का ऑक्सीकारी विघटन (Oxidative decomposition of pyruvic acid)
ग्लाइकोलाइसिस या ग्लाइकॉलांशन (Glycolysis)
ग्लाइकोलाइसिस शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द ग्लाइकोज (Glycose) (शर्करा) तथा लाइसिस (Lysis = विश्लेषण, घुलना, टूटना) से मिलकर हुई है, जिसका अर्थ है-शर्करा का विघटन। यह एक जटिल जैव रासायनिक क्रिया है जो 10 क्रमबद्ध चरणों में पूर्ण होती है। इसके विभिन्न चरणों की खोज 1930 में तीन वैज्ञानिकों गुस्ताव एम्बडन (G. Embden) ऑटो मेयरहॉफ (Otto Meyerhoff) एवं जे० परनास (J. Parnas) द्वारा की गई थी। इसलिए इसे एम्बडन मेयरहॉफ परनास पथ (Embden, meyerhoff, paras path, EMP path) कहते हैं। ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया कोशिका द्रव्य में बिना ऑक्सीजन के सम्पन्न होती है। अर्थात इस प्रक्रम के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। लाइकोलाइसिस की क्रिया सभी जीवों में समान प्रकार से सम्पन्न होती है तथा ऑक्सी एवं अनॉक्सी दोनों प्रकार के श्वसन में पायी जाती है।
परिभाषा (Definition)-ग्लूकोस के एक अणु का क्रमबद्ध जैव रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा पाइरूविक अम्ल में विघटित होकर ऊर्जा मुक्त करने का प्रक्रम ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) कहलाता है। अधिक स्पष्टत: फ्रक्टोज 1,5 – डाइफॉस्फेट के एक अणु से पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं के निर्माण को ग्लाइकोलाइसिस (Glycotysis) कहते हैं।
ग्लाइकोलाइसिस में सम्पन्न होने वाली सभी 10 जैव रासायनिक अभिक्रियाओं को तीन पदों में समझाया जा सकता है-
(a) ग्लूकोस का फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of glucose)
(b) फॉस्फोरिलीकृत ग्लूकोस अणु का फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के दो अणुओं में विघटन (Spilliting of phosphorylated glucose molecule into Molecules of phosphoglyceraldehyde)
(c) पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण (Formation of two molecules of pyruvsic acid)
(a) ग्लूकोस को फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of Glucose)
ग्लाइकोलाइसिस के प्रथम चरण में ग्लूकोस का 1 अणु ATP अणु का उपयोग करके हेक्सोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ग्लूकोस-6 फॉस्फेट का निर्माण करता है। ग्लूकोस-6 फॉस्फेट आइसोमेरेज एन्जाइम की उपस्थिति में समावयवीकरण क्रिया द्वारा फ्रक्टोस-6 फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है। फ्रक्टोस-6 फॉस्फेट पुन: एक ATP अणु का उपयोग करके फॉस्फोफ्रक्टोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में फ्रक्टोस-1,6 डाई फॉस्फेट अणु का निर्माण करता है। इस प्रकार ग्लूकोज अणु के फॉस्फोरिलीकरण में होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नवत होती हैं-
(b) फॉस्फोरिलीकृत ग्लूकोज अणु का फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के दो अणुओं में विघटन (Splitting of Phosphorylated glucose molecule in two molecules of Phosphoglyceraldehyde)
इस अभिक्रिया में 6 कार्बन परमाणु युक्त फ्रक्टोस-1, 6 डाइफॉस्फेट ऐल्डोलेज एन्जाइम की उपस्थिति में विघटित होकर (3C युक्त) 3-फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड (3-PGAL) एवं 3 कार्बन परमाणुओं युक्त डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट, प्रत्येक के एक अणु का निर्माण करता है।
उपर्युक्त दोनों यौगिक ट्रायोजफॉस्फेट आइसोमेरेज एन्जाइम की उपस्थिति में अन्तः परिवर्तनीय होते हैं। इनमें से केवल 3-PGAL का ऑक्सीकरण होता है। अतः जैसे-जैसे 3-PGAL का ऑक्सीकरण होता है। डाई हाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट भी 3-PGAL में परिवर्तित होता है
(c) पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण (Formation of two molecules of Pyruvic acid)
3-PGAL (2 अणु) निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण करते हैं।
1. 3-PGAL से 1, 3-डाइ फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण (Formation of 1, 3 diphosphoglyceric acid from 3-PGL)
सर्वप्रथम 3 PGAL, फॉस्फोरिक अम्ल (H3PO4) से डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में क्रिया करके 1,3 डाइ फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड का निर्माण करता है जो ऑक्सीकरण के पश्चात 1,3 डाई फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल बनाता है। यह चरण ऑक्सीकरण चरण (Oxidation step) कहलाता है। इस अभिक्रिया में त्यागे गए हाइड्रोजन परमाणु को NAD+ ग्रहण कर NADH2 में परिवर्तित हो जाता है जो इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला में प्रविष्ट होकर ATP का निर्माण करते हैं।
2. 1,3- डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से 3- फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण (Formation of 3-Phosphoglyceric acid from 1,3-diphosphoglyceric acid)
इस अभिक्रिया में 1,3- डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल के अणु से एक फॉस्फेट समूह डाइफॉस्फोग्लिसरोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ADP से जुड़कर ATP का निर्माण करता है तथा इस क्रिया में 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण होता है।
3. 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल में रूपान्तरण (Conversion of 3-phosphoglyceric acid into 2-phosphoglyceric acid)
फॉस्फोग्लिसरोक्यूटेज एन्जाइम की उपस्थिति में 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल अपने समावयवी 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल में रूपान्तरित हो जाता है।
4. 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से 2-फॉस्फोइनोल पाइवेट का निर्माण (Formation of 2-phosphoenol pyruvate from 2-phosphoglyceric acid)
इनोलेज एन्जाइम की उपस्थिति में 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल जल का अणु त्यागकर 2-फॉस्फोईनोल पाइवेट का निर्माण करता है।
5. 2-फॉस्फोईनोल पाइरूविक अम्ल से पाइरूविक अम्ल का farmfut (Fomation of Pyruvic acid From 2- Phosphoenol Pyruvic acid)
पाइरूविक काइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में 2-फॉस्फोईनोल पाइरूविक अम्ल एक फॉस्फेट समूह त्यागकर पाइरूविक अम्ल तथा ATP का निर्माण करता है।
10. Phosphoenol Pyruvic acid
ग्लाइकोलाइसिस की समग्र प्रक्रिया को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।
(ग) श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient)
श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient R.Q.)
श्वसन क्रिया के दौरान विभिन्न कार्बनिक पदार्थ ऑक्सीकृत होते हैं। इस प्रक्रम में सामान्यत: ऑक्सीजन अवशोषित होती है तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड निर्मुक्त (release) होती है। अत: ‘‘श्वसन में मुक्त होने वाली CO2 तथा प्रयुक्त होने वाली O2 के आयतनों का अनुपात श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient, R.Q.) कहलाता है।” श्वसन गुणांक का मापन गेनांग के श्वसनमापी द्वारा किया जाता है।
श्वसनगुणांक (R.Q.) का मान श्वसन क्रिया में प्रयुक्त क्रियाधार (Substrate) तथा श्वसन क्रिया के प्रकार के निर्धारण में सहायक होता है। श्वसन क्रिया में उपयोग होने वाले विभिन्न क्रियाधारों के श्वसनगुणांक भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इसे निम्नवत समझा जा सकता है-
(i) कार्बोहाइड्रेट्स का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of Carbohydrates)श्वसन क्रिया में जब क्रियाधार कार्बोहाइड्रेट हो एवं जब इसका पूर्ण ऑक्सीकरण हो रहा हो तब श्वसन गुणांक (RQ) सदैव ‘इकाई’ अथवा ‘एक’ होता है क्योंकि इस प्रक्रम में श्वसन में विमुक्त CO2 का आयतन श्वसन में प्रयुक्त O2 के आयतन के बराबर होता है।
(ii) वसा का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of fats)-तैलीय बीजों जैसे- सरसों, मूंगफली, कपास के बीजों के अंकुरण के समय श्वसन की क्रिया में क्रियाधार वसा होती है। वसा के अणु में ऑक्सीजन की मात्रा कार्बोहाइड्रेट्स की तुलना में कम होती है। इसलिए वसा के ऑक्सीकरण के लिए वायुमण्डल से 0, की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। अत: वसा का श्वसन गुणांक सदैव एक से कम होता है।
2C51H98O6 + 145O2 →102COO2 + 98H2O
ट्राइपामिटिन
(iii) प्रोटीन का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of Proteins) – प्रोटीन अणुओं में भी वसा के समान ऑक्सीजन की मात्रा कार्बन की तुलना में कम होती है। अर्थात प्रोटीनों के ऑक्सीकरण में भी अधिक O2 की आवश्यकता पड़ती है। श्वसन की क्रिया में प्रोटॉन क्रियाधार की तरह कार्य कार्बोहाइड्रेट तथा वसा की अनुपस्थिति में करते हैं। उदाहरणार्थ-मनुष्य के लम्बे समय तक भूखे रहने पर प्रोटीन क्रियाधार के रूप में कार्य करने लगते हैं जो लगातार होने पर मनुष्य की मृत्यु का सूचक होता है। प्रोटॉनों का श्वसन गुणांक एक से कम प्रायः 0.7 – 0.9 होता है जो वसा के श्वसन गुणांक (R.Q.) से मामूली अधिक होता है।
(iv) कार्बोक्सिलिक अम्लों का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of carboxylic acids)-कुछ पादपों में श्वसन में क्रियाधार कार्बोक्सलिक अम्ल होते हैं जिनके अणुओं में कार्बन की तुलना में O2 की अधिक मात्रा पायी जाती है। इसलिए इन पदार्थों के ऑक्सीकरण में तुलनात्मक रूप से कम वायुमण्डलीय O2 की आवश्यकता होती है तथा अधिक मात्रा में CO2 निर्मुक्त होती है। अतः इनका श्वसन गुणांक सदैव एक से अधिक होता है।
2(COOH) + O2 → 4CO2 + H2O
ऑक्सेलिक अम्ल
सिट्रिक अम्ल तथा मैलिक अम्ल का श्वसन गुणांक क्रमशः 1.14 तथा 1.33 होता है।
(v) मांसल या सरस पादपों का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of succelent plants)-मांसल पादप जैसे नागफनी आदि में श्वसनाधार के रूप में कार्बोहाइड्रेट प्रयुक्त होते हैं परन्तु इनका पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता है जिससे मध्यवर्ती पदार्थ निर्मित होते हैं। लेकिन CO2 का निर्माण नहीं होता है। अत: इन पौधों में श्वसन गुणांक शून्य होता है।
(vi) अवायवीय श्वसन में श्वसन गुणांक (Respiratory Quotent in anaerobic respiration)-अवायवीय श्वसन में CO2 तो निर्मुक्त होती है लेकिन O2 का अवशोषण नहीं होता है। अतः इन क्रियाओं में श्वसनं गुणांक अनन्त होता है।
श्वसनाधार या क्रियाधार के R.Q. का मान जितना कम होता है उस स्थिति में उतनी ही अधिक मात्रा में ऊर्जा का विमोचन होता है। अत: वसा के एक अणु से अधिकतम ऊर्जा जब कार्बनिक अम्ल के एक अणु से या अवायवीय श्वसन से काफी कम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
(घ) मिशेल का केमीऑस्मेटिक सिद्धान्त
प्रश्न 7.
श्वसन गुणांक विभिन्न क्रियाधारों से किस प्रकार प्रभावित होता है? समझाइए।
उत्तर:
श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient R.Q.)
श्वसन क्रिया के दौरान विभिन्न कार्बनिक पदार्थ ऑक्सीकृत होते हैं। इस प्रक्रम में सामान्यत: ऑक्सीजन अवशोषित होती है तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड निर्मुक्त (release) होती है। अत: ‘‘श्वसन में मुक्त होने वाली CO2 तथा प्रयुक्त होने वाली O2 के आयतनों का अनुपात श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient, R.Q.) कहलाता है।” श्वसन गुणांक का मापन गेनांग के श्वसनमापी द्वारा किया जाता है।
श्वसनगुणांक (R.Q.) का मान श्वसन क्रिया में प्रयुक्त क्रियाधार (Substrate) तथा श्वसन क्रिया के प्रकार के निर्धारण में सहायक होता है। श्वसन क्रिया में उपयोग होने वाले विभिन्न क्रियाधारों के श्वसनगुणांक भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इसे निम्नवत समझा जा सकता है-
(i) कार्बोहाइड्रेट्स का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of Carbohydrates)श्वसन क्रिया में जब क्रियाधार कार्बोहाइड्रेट हो एवं जब इसका पूर्ण ऑक्सीकरण हो रहा हो तब श्वसन गुणांक (RQ) सदैव ‘इकाई’ अथवा ‘एक’ होता है क्योंकि इस प्रक्रम में श्वसन में विमुक्त CO2 का आयतन श्वसन में प्रयुक्त O2 के आयतन के बराबर होता है।
(ii) वसा का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of fats)-तैलीय बीजों जैसे- सरसों, मूंगफली, कपास के बीजों के अंकुरण के समय श्वसन की क्रिया में क्रियाधार वसा होती है। वसा के अणु में ऑक्सीजन की मात्रा कार्बोहाइड्रेट्स की तुलना में कम होती है। इसलिए वसा के ऑक्सीकरण के लिए वायुमण्डल से 0, की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। अत: वसा का श्वसन गुणांक सदैव एक से कम होता है।
2C51H98O6 + 145O2 →102COO2 + 98H2O
ट्राइपामिटिन
(iii) प्रोटीन का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of Proteins) – प्रोटीन अणुओं में भी वसा के समान ऑक्सीजन की मात्रा कार्बन की तुलना में कम होती है। अर्थात प्रोटीनों के ऑक्सीकरण में भी अधिक O2 की आवश्यकता पड़ती है। श्वसन की क्रिया में प्रोटॉन क्रियाधार की तरह कार्य कार्बोहाइड्रेट तथा वसा की अनुपस्थिति में करते हैं। उदाहरणार्थ-मनुष्य के लम्बे समय तक भूखे रहने पर प्रोटीन क्रियाधार के रूप में कार्य करने लगते हैं जो लगातार होने पर मनुष्य की मृत्यु का सूचक होता है। प्रोटॉनों का श्वसन गुणांक एक से कम प्रायः 0.7 – 0.9 होता है जो वसा के श्वसन गुणांक (R.Q.) से मामूली अधिक होता है।
(iv) कार्बोक्सिलिक अम्लों का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of carboxylic acids)-कुछ पादपों में श्वसन में क्रियाधार कार्बोक्सलिक अम्ल होते हैं जिनके अणुओं में कार्बन की तुलना में O2 की अधिक मात्रा पायी जाती है। इसलिए इन पदार्थों के ऑक्सीकरण में तुलनात्मक रूप से कम वायुमण्डलीय O2 की आवश्यकता होती है तथा अधिक मात्रा में CO2 निर्मुक्त होती है। अतः इनका श्वसन गुणांक सदैव एक से अधिक होता है।
2(COOH) + O2 → 4CO2 + H2O
ऑक्सेलिक अम्ल
सिट्रिक अम्ल तथा मैलिक अम्ल का श्वसन गुणांक क्रमशः 1.14 तथा 1.33 होता है।
(v) मांसल या सरस पादपों का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of succelent plants)-मांसल पादप जैसे नागफनी आदि में श्वसनाधार के रूप में कार्बोहाइड्रेट प्रयुक्त होते हैं परन्तु इनका पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता है जिससे मध्यवर्ती पदार्थ निर्मित होते हैं। लेकिन CO2 का निर्माण नहीं होता है। अत: इन पौधों में श्वसन गुणांक शून्य होता है।
(vi) अवायवीय श्वसन में श्वसन गुणांक (Respiratory Quotent in anaerobic respiration)-अवायवीय श्वसन में CO2 तो निर्मुक्त होती है लेकिन O2 का अवशोषण नहीं होता है। अतः इन क्रियाओं में श्वसनं गुणांक अनन्त होता है।
श्वसनाधार या क्रियाधार के R.Q. का मान जितना कम होता है उस स्थिति में उतनी ही अधिक मात्रा में ऊर्जा का विमोचन होता है। अत: वसा के एक अणु से अधिकतम ऊर्जा जब कार्बनिक अम्ल के एक अणु से या अवायवीय श्वसन से काफी कम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
RBSE Class 12 Biology Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ग्लाइकोलाइसिस से आप क्या समझते हैं? इस प्रक्रिया में सम्पन्न होने वाली विभिन्न अभिक्रियाओं एवं ऊर्जा सम्बन्धों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ग्लाइकोलाइसिस या ग्लाइकॉलांशन (Glycolysis)
ग्लाइकोलाइसिस शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द ग्लाइकोज (Glycose) (शर्करा) तथा लाइसिस (Lysis = विश्लेषण, घुलना, टूटना) से मिलकर हुई है, जिसका अर्थ है-शर्करा का विघटन। यह एक जटिल जैव रासायनिक क्रिया है जो 10 क्रमबद्ध चरणों में पूर्ण होती है। इसके विभिन्न चरणों की खोज 1930 में तीन वैज्ञानिकों गुस्ताव एम्बडन (G. Embden) ऑटो मेयरहॉफ (Otto Meyerhoff) एवं जे० परनास (J. Parnas) द्वारा की गई थी। इसलिए इसे एम्बडन मेयरहॉफ परनास पथ (Embden, meyerhoff, paras path, EMP path) कहते हैं। ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया कोशिका द्रव्य में बिना ऑक्सीजन के सम्पन्न होती है। अर्थात इस प्रक्रम के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। लाइकोलाइसिस की क्रिया सभी जीवों में समान प्रकार से सम्पन्न होती है तथा ऑक्सी एवं अनॉक्सी दोनों प्रकार के श्वसन में पायी जाती है।
परिभाषा (Definition)-ग्लूकोस के एक अणु का क्रमबद्ध जैव रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा पाइरूविक अम्ल में विघटित होकर ऊर्जा मुक्त करने का प्रक्रम ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) कहलाता है। अधिक स्पष्टत: फ्रक्टोज 1,5 – डाइफॉस्फेट के एक अणु से पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं के निर्माण को ग्लाइकोलाइसिस (Glycotysis) कहते हैं।
ग्लाइकोलाइसिस में सम्पन्न होने वाली सभी 10 जैव रासायनिक अभिक्रियाओं को तीन पदों में समझाया जा सकता है-
(a) ग्लूकोस का फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of glucose)
(b) फॉस्फोरिलीकृत ग्लूकोस अणु का फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के दो अणुओं में विघटन (Spilliting of phosphorylated glucose molecule into Molecules of phosphoglyceraldehyde)
(c) पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण (Formation of two molecules of pyruvsic acid)
(a) ग्लूकोस को फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of Glucose)
ग्लाइकोलाइसिस के प्रथम चरण में ग्लूकोस का 1 अणु ATP अणु का उपयोग करके हेक्सोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ग्लूकोस-6 फॉस्फेट का निर्माण करता है। ग्लूकोस-6 फॉस्फेट आइसोमेरेज एन्जाइम की उपस्थिति में समावयवीकरण क्रिया द्वारा फ्रक्टोस-6 फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है। फ्रक्टोस-6 फॉस्फेट पुन: एक ATP अणु का उपयोग करके फॉस्फोफ्रक्टोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में फ्रक्टोस-1,6 डाई फॉस्फेट अणु का निर्माण करता है। इस प्रकार ग्लूकोज अणु के फॉस्फोरिलीकरण में होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नवत होती हैं-
(b) फॉस्फोरिलीकृत ग्लूकोज अणु का फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के दो अणुओं में विघटन (Splitting of Phosphorylated glucose molecule in two molecules of Phosphoglyceraldehyde)
इस अभिक्रिया में 6 कार्बन परमाणु युक्त फ्रक्टोस-1, 6 डाइफॉस्फेट ऐल्डोलेज एन्जाइम की उपस्थिति में विघटित होकर (3C युक्त) 3-फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड (3-PGAL) एवं 3 कार्बन परमाणुओं युक्त डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट, प्रत्येक के एक अणु का निर्माण करता है।
उपर्युक्त दोनों यौगिक ट्रायोजफॉस्फेट आइसोमेरेज एन्जाइम की उपस्थिति में अन्तः परिवर्तनीय होते हैं। इनमें से केवल 3-PGAL का ऑक्सीकरण होता है। अतः जैसे-जैसे 3-PGAL का ऑक्सीकरण होता है। डाई हाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट भी 3-PGAL में परिवर्तित होता है
(c) पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण (Formation of two molecules of Pyruvic acid)
3-PGAL (2 अणु) निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण करते हैं।
1. 3-PGAL से 1, 3-डाइ फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण (Formation of 1, 3 diphosphoglyceric acid from 3-PGL)
सर्वप्रथम 3 PGAL, फॉस्फोरिक अम्ल (H3PO4) से डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में क्रिया करके 1,3 डाइ फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड का निर्माण करता है जो ऑक्सीकरण के पश्चात 1,3 डाई फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल बनाता है। यह चरण ऑक्सीकरण चरण (Oxidation step) कहलाता है। इस अभिक्रिया में त्यागे गए हाइड्रोजन परमाणु को NAD+ ग्रहण कर NADH2 में परिवर्तित हो जाता है जो इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला में प्रविष्ट होकर ATP का निर्माण करते हैं।
2. 1,3- डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से 3- फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण (Formation of 3-Phosphoglyceric acid from 1,3-diphosphoglyceric acid)
इस अभिक्रिया में 1,3- डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल के अणु से एक फॉस्फेट समूह डाइफॉस्फोग्लिसरोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ADP से जुड़कर ATP का निर्माण करता है तथा इस क्रिया में 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण होता है।
3. 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल में रूपान्तरण (Conversion of 3-phosphoglyceric acid into 2-phosphoglyceric acid)
फॉस्फोग्लिसरोक्यूटेज एन्जाइम की उपस्थिति में 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल अपने समावयवी 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल में रूपान्तरित हो जाता है।
4. 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से 2-फॉस्फोइनोल पाइवेट का निर्माण (Formation of 2-phosphoenol pyruvate from 2-phosphoglyceric acid)
इनोलेज एन्जाइम की उपस्थिति में 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल जल का अणु त्यागकर 2-फॉस्फोईनोल पाइवेट का निर्माण करता है।
5. 2-फॉस्फोईनोल पाइरूविक अम्ल से पाइरूविक अम्ल का farmfut (Fomation of Pyruvic acid From 2- Phosphoenol Pyruvic acid)
पाइरूविक काइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में 2-फॉस्फोईनोल पाइरूविक अम्ल एक फॉस्फेट समूह त्यागकर पाइरूविक अम्ल तथा ATP का निर्माण करता है।
10. Phosphoenol Pyruvic acid
ग्लाइकोलाइसिस की समग्र प्रक्रिया को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
श्वसन को परिभाषित कीजिए तथा ऑक्सी और अनॉक्सी श्वसन में विभेद कीजिए। ऑक्सी श्वसन का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सी श्वसन तथा अनॉक्सी श्वसन में अन्तर
ऑक्सी श्वसन की क्रियाविधि (Mechanism of Aerobic Respiration)
कार्बोहाइड्रेट्स श्वसन क्रिया का मुख्य श्वसनाधार (Respiratory Substrates) होते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स को अनुपस्थिति में क्रमश: वसा तथा प्रोटीन का उपयोग किया जाता है। ऑक्सी तथा अनॉक्सी श्वसन की प्रारम्भिक अभिक्रियाएँ कोशिका द्रव्य में सम्पन्न होती हैं एवं इनमें ग्लूकोस का एक अणु विघटित होकर पाइरूविक अम्ल के 2 अणु बनाता है एवं ऊर्जा मुक्त होती है। इस प्रक्रम को ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) अथवा EMP पथ कहते हैं। इस प्रक्रम के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। ग्लाइकोसिस से निर्मित पाइरूविक अम्ल माइटोकाण्ड्रिया में पहुँचकर ऐसीटिल को-एन्जाइम A (Acetyl CO~A) का निर्माण करता है। तथा माइटोकाण्ड्रिया में होने वाले क्रेब्स चक्र (या TCA चक्र) द्वारा जल, CO2 तथा ऊर्जा मुक्त करता है। इस क्रिया में O2 की उपस्थिति में ग्लूकोज को पूर्ण ऑक्सीकरण होता है।
वायुश्वसन की समग्र क्रियाविधि को तीन चरणों में विभक्त किया जा सकता है
- ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis)
- क्रेब्स चक्र या त्रिकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (Krebs cycle or Tricarboxylic acid cycle; TCA Cycle)
- इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (Electron Transport System)
प्रश्न 3.
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण से आप क्या समझते हैं? इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सी श्वसन की क्रियाविधि (Mechanism of Aerobic Respiration)
कार्बोहाइड्रेट्स श्वसन क्रिया का मुख्य श्वसनाधार (Respiratory Substrates) होते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स को अनुपस्थिति में क्रमश: वसा तथा प्रोटीन का उपयोग किया जाता है। ऑक्सी तथा अनॉक्सी श्वसन की प्रारम्भिक अभिक्रियाएँ कोशिका द्रव्य में सम्पन्न होती हैं एवं इनमें ग्लूकोस का एक अणु विघटित होकर पाइरूविक अम्ल के 2 अणु बनाता है एवं ऊर्जा मुक्त होती है। इस प्रक्रम को ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) अथवा EMP पथ कहते हैं। इस प्रक्रम के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। ग्लाइकोसिस से निर्मित पाइरूविक अम्ल माइटोकाण्ड्रिया में पहुँचकर ऐसीटिल को-एन्जाइम A (Acetyl CO~A) का निर्माण करता है। तथा माइटोकाण्ड्रिया में होने वाले क्रेब्स चक्र (या TCA चक्र) द्वारा जल, CO2 तथा ऊर्जा मुक्त करता है। इस क्रिया में O2 की उपस्थिति में ग्लूकोज को पूर्ण ऑक्सीकरण होता है।
वायुश्वसन की समग्र क्रियाविधि को तीन चरणों में विभक्त किया जा सकता है
- ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis)
- क्रेब्स चक्र या त्रिकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (Krebs cycle or Tricarboxylic acid cycle; TCA Cycle)
- इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (Electron Transport System)
ग्लाइकोलाइसिस या ग्लाइकॉलांशन (Glycolysis)
ग्लाइकोलाइसिस शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द ग्लाइकोज (Glycose) (शर्करा) तथा लाइसिस (Lysis = विश्लेषण, घुलना, टूटना) से मिलकर हुई है, जिसका अर्थ है-शर्करा का विघटन। यह एक जटिल जैव रासायनिक क्रिया है जो 10 क्रमबद्ध चरणों में पूर्ण होती है। इसके विभिन्न चरणों की खोज 1930 में तीन वैज्ञानिकों गुस्ताव एम्बडन (G. Embden) ऑटो मेयरहॉफ (Otto Meyerhoff) एवं जे० परनास (J. Parnas) द्वारा की गई थी। इसलिए इसे एम्बडन मेयरहॉफ परनास पथ (Embden, meyerhoff, paras path, EMP path) कहते हैं। ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया कोशिका द्रव्य में बिना ऑक्सीजन के सम्पन्न होती है। अर्थात इस प्रक्रम के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है। लाइकोलाइसिस की क्रिया सभी जीवों में समान प्रकार से सम्पन्न होती है तथा ऑक्सी एवं अनॉक्सी दोनों प्रकार के श्वसन में पायी जाती है।
परिभाषा (Definition)-ग्लूकोस के एक अणु का क्रमबद्ध जैव रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा पाइरूविक अम्ल में विघटित होकर ऊर्जा मुक्त करने का प्रक्रम ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) कहलाता है। अधिक स्पष्टत: फ्रक्टोज 1,5 – डाइफॉस्फेट के एक अणु से पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं के निर्माण को ग्लाइकोलाइसिस (Glycotysis) कहते हैं।
ग्लाइकोलाइसिस में सम्पन्न होने वाली सभी 10 जैव रासायनिक अभिक्रियाओं को तीन पदों में समझाया जा सकता है-
(a) ग्लूकोस का फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of glucose)
(b) फॉस्फोरिलीकृत ग्लूकोस अणु का फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के दो अणुओं में विघटन (Spilliting of phosphorylated glucose molecule into Molecules of phosphoglyceraldehyde)
(c) पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण (Formation of two molecules of pyruvsic acid)
(a) ग्लूकोस को फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation of Glucose)
ग्लाइकोलाइसिस के प्रथम चरण में ग्लूकोस का 1 अणु ATP अणु का उपयोग करके हेक्सोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ग्लूकोस-6 फॉस्फेट का निर्माण करता है। ग्लूकोस-6 फॉस्फेट आइसोमेरेज एन्जाइम की उपस्थिति में समावयवीकरण क्रिया द्वारा फ्रक्टोस-6 फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है। फ्रक्टोस-6 फॉस्फेट पुन: एक ATP अणु का उपयोग करके फॉस्फोफ्रक्टोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में फ्रक्टोस-1,6 डाई फॉस्फेट अणु का निर्माण करता है। इस प्रकार ग्लूकोज अणु के फॉस्फोरिलीकरण में होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नवत होती हैं-
(b) फॉस्फोरिलीकृत ग्लूकोज अणु का फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड के दो अणुओं में विघटन (Splitting of Phosphorylated glucose molecule in two molecules of Phosphoglyceraldehyde)
इस अभिक्रिया में 6 कार्बन परमाणु युक्त फ्रक्टोस-1, 6 डाइफॉस्फेट ऐल्डोलेज एन्जाइम की उपस्थिति में विघटित होकर (3C युक्त) 3-फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड (3-PGAL) एवं 3 कार्बन परमाणुओं युक्त डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट, प्रत्येक के एक अणु का निर्माण करता है।
उपर्युक्त दोनों यौगिक ट्रायोजफॉस्फेट आइसोमेरेज एन्जाइम की उपस्थिति में अन्तः परिवर्तनीय होते हैं। इनमें से केवल 3-PGAL का ऑक्सीकरण होता है। अतः जैसे-जैसे 3-PGAL का ऑक्सीकरण होता है। डाई हाइड्रॉक्सी ऐसीटोन फॉस्फेट भी 3-PGAL में परिवर्तित होता है
(c) पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण (Formation of two molecules of Pyruvic acid)
3-PGAL (2 अणु) निम्नलिखित रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा पाइरूविक अम्ल के दो अणुओं का निर्माण करते हैं।
1. 3-PGAL से 1, 3-डाइ फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण (Formation of 1, 3 diphosphoglyceric acid from 3-PGL)
सर्वप्रथम 3 PGAL, फॉस्फोरिक अम्ल (H3PO4) से डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में क्रिया करके 1,3 डाइ फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड का निर्माण करता है जो ऑक्सीकरण के पश्चात 1,3 डाई फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल बनाता है। यह चरण ऑक्सीकरण चरण (Oxidation step) कहलाता है। इस अभिक्रिया में त्यागे गए हाइड्रोजन परमाणु को NAD+ ग्रहण कर NADH2 में परिवर्तित हो जाता है जो इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला में प्रविष्ट होकर ATP का निर्माण करते हैं।
2. 1,3- डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से 3- फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण (Formation of 3-Phosphoglyceric acid from 1,3-diphosphoglyceric acid)
इस अभिक्रिया में 1,3- डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल के अणु से एक फॉस्फेट समूह डाइफॉस्फोग्लिसरोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ADP से जुड़कर ATP का निर्माण करता है तथा इस क्रिया में 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का निर्माण होता है।
3. 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल में रूपान्तरण (Conversion of 3-phosphoglyceric acid into 2-phosphoglyceric acid)
फॉस्फोग्लिसरोक्यूटेज एन्जाइम की उपस्थिति में 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल अपने समावयवी 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल में रूपान्तरित हो जाता है।
4. 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से 2-फॉस्फोइनोल पाइवेट का निर्माण (Formation of 2-phosphoenol pyruvate from 2-phosphoglyceric acid)
इनोलेज एन्जाइम की उपस्थिति में 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल जल का अणु त्यागकर 2-फॉस्फोईनोल पाइवेट का निर्माण करता है।
5. 2-फॉस्फोईनोल पाइरूविक अम्ल से पाइरूविक अम्ल का farmfut (Fomation of Pyruvic acid From 2- Phosphoenol Pyruvic acid)
पाइरूविक काइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में 2-फॉस्फोईनोल पाइरूविक अम्ल एक फॉस्फेट समूह त्यागकर पाइरूविक अम्ल तथा ATP का निर्माण करता है।
10. Phosphoenol Pyruvic acid
ग्लाइकोलाइसिस की समग्र प्रक्रिया को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
श्वसन को प्रभावित करने वाले कारकों पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
श्वसन को प्रभावित करने वाले कारक 5 (Factors affecting respiration)
श्वसन की दर अनेक कारकों से प्रभावित होती है। श्वसन की सर्वाधिक दर सक्रिय रूप में विभाजित होने वाली विभज्योतकी कोशिकाओं (Meristematic cells) में होती है। श्वसन दर प्रभावित करने वाले कारकों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है
(I) बाह्य कारक (External factors)
(II) आन्तरिक कारक (Internal factors) ॥
1. बाह्य या पर्यावरणीय कारक
(External or environmental factors)
श्वसन की दर को निम्नलिखित बाह्य या पर्यावरणीय कारक प्रभावित करते हैं-
1. तापमान (Temperature)-तापमान श्वसनदर को प्रभावित करने
वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। सामान्यतः एक निश्चित सीमा तक (5°C से 30°C तक) तापमान बढ़ने पर श्वसने दर में लगातार वृद्धि होती है। इन ताप परिसर के अन्तर्गत श्वसन दर में वृद्धि वाण्ट हॉफ के नियम (Vont Hoff’s rule) के अनुसार होती है। इस नियम के अनुसार तापमान में प्रति 10°C वृद्धि में श्वसन दर दोगुनी (Q 10 = 2) हो जाती है। 35°C से अधिक तापमान पर एंजाइम विकृत होने लगते हैं जिससे श्वसन दर में कमी आने लगती है। इस कारण ही शीतगृहों में फल तथा सब्जियाँ बिना सड़े-गले अधिक समय तक ठीक रह पाती हैं।
2. ऑक्सीजन (Oxygen)-ऑक्सीजन वायवीय श्वसन के लिए महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि ऑक्सीजन वायवीय श्वसन में अन्तिम इलेक्ट्रॉनग्राही का कार्य करती है। ऑक्सीजन की कम सान्द्रता पर वायवीय तथा अवायुवीय दोनों प्रकार की श्वसन क्रियाएँ होती हैं। जब ऑक्सीजन की सान्द्रता शून्य हो जाती है तब केवल अवायवीय श्वसन होता है। इस स्थिति में श्वसन गुणांक का मान अनन्त हो जाता है।
3. जल (Water)–जल जीवद्रव्य की उपापचयी क्रियाओं के लिए एक माध्यम का कार्य करता है। पादप जीवद्रव्य में 90-95% जल पाया जाता है। जल पादपों के परिवहन तन्त्र, एन्जाइमों के सक्रियण तथा गैसों के विसरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। जल की मात्रा कम होने के कारण ही शुष्क बीजों व फलों की श्वसन दर कम होती है। इसलिए इन्हें दीर्घावधि तक भण्डारित रखा जा सकता है। जबकि जल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट घुलनशील शर्करा में परिवर्तित होकर श्वसन दर में वृद्धि कर देते हैं।
4. प्रकाश (Light) – प्रकाश की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में श्वसन क्रिया समान रूप से चलती रहती है। अत: प्रकाश का श्वसन पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु परोक्ष रूप से प्रकाश कारके श्वसन क्रिया को निम्न प्रकार से प्रभावित करता है-
(क) प्रकाश के द्वारा तापवृद्धि से श्वसन दर बढ़ जाती है।
(ख) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा शर्करा का निर्माण होता है जो एक महत्वपूर्ण श्वसन क्रियाधार है।
(ग) प्रकाश में रं ले रहते हैं जिससे गैसों का आदान-प्रदान होता है।
5. कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) – कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता वढ़ाने के साथ-साथ श्वसन की दर कम हो जाती है। अत: इसका प्रतिकूल प्रभाव बीजों के अंकुरण व पादप की वृद्धि दर पर पड़ता है। हीथ (Heath) ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि CO2 की अधिक सान्द्रता में रन्ध्र (Stomata) बन्द हो जाते हैं जिससे O2 की कमी हो जाती है तथा श्वसन दर कम हो जाती है।
II. आन्तरिक या पादप कारक (Internal or Plant factors)
कोशिका जीवद्रव्य एवं श्वसन क्रियाधार श्वसन दर को प्रभावित करने वाले प्रमुख आन्तरिक कारक होते हैं।
- जीवद्रव्य (Protoplasm)-विभज्योतिकी कोशिकाओं (Meristematic cells) में जीवद्रव्य सक्रिय तथा अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिससे इन कोशिकाओं में श्वसन दर परिपक्व कोशिकाओं से अधिक होती है।
- श्वसनीय क्रियाधार (Respiratory substrates)कोशिका में उपस्थित विभिन्न प्रकार की शर्कराएँ जैसे – ग्लूकोस, फ्रक्टोस, माल्टोस श्वसन क्रिया में त्वरित प्रयोग की जाती हैं। इनकी तुलना में स्टॉर्च तथा वसाओं के प्रयोग से पूर्व शर्कराओं में परिवर्तित होना आवश्यक होता है। जिसके कारण श्वसन क्रिया विलम्ब से प्रारम्भ हो पाती है। यही कारण है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के भोजन में स्टॉर्च (चपाती, आलू तथा चावल) तथा वसा (तेल, घी) की अधिकता होती है जबकि बीमार
व्यक्ति को अस्पताल में सीधे ही ग्लूकोज का घोल दिया जाता है। - कोशिका की आयु (Age of the cell) – तरुण कोशिकाओं में श्वसन दर तीव्र एवं प्रौढ़ तथा वृद्ध कोशिकाओं में क्रमश: धीरे होती है।
- चोट एवं घाव (Injury and wounds) – चोटिल तथा क्षतिग्रस्त ऊतकों में श्वसन दर अधिक होती है।
प्रश्न 5.
श्वसन गुणांक किसे कहते हैं? श्वसन के प्रमुख क्रियाधारों के श्वसन गुणांक बताइये।
उत्तर:
श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient R.Q.)
श्वसन क्रिया के दौरान विभिन्न कार्बनिक पदार्थ ऑक्सीकृत होते हैं। इस प्रक्रम में सामान्यतः ऑक्सीजन अवशोषित होती है तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड निर्मुक्त (release) होती है। अत: ‘‘श्वसन में मुक्त होने वाली CO2 तथा प्रयुक्त होने वाली O2 के आयतनों का अनुपात श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient, R.Q.) कहलाता है।” श्वसन गुणांक का मापन गेनांग के श्वसनमापी द्वारा किया जाता है।
श्वसनगुणांक (R.Q.) का मान श्वसन क्रिया में प्रयुक्त क्रियाधार (Substrate) तथा श्वसन क्रिया के प्रकार के निर्धारण में सहायक होता है। श्वसन क्रिया में उपयोग होने वाले विभिन्न क्रियाधारों के श्वसनगुणांक भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इसे निम्नवत समझा जा सकता है-
(i) कार्बोहाइड्रेट्स का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of Carbohydrates)-श्वसन क्रिया में जब क्रियाधार कार्बोहाइड्रेट हो एवं जब इसका पूर्ण ऑक्सीकरण हो रहा हो तब श्वसन गुणांक (RQ) सदैव ‘इकाई’ अथवा ‘एक’ होता है क्योंकि इस प्रक्रम में श्वसन में विमुक्त CO2 का आयतन श्वसन में प्रयुक्त O2 के आयतन के बराबर होता है।
(ii) वसा का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of fats)-तैलीय बीजों जैसे- सरसों, मूंगफली, कपास के बीजों के अंकुरण के समय श्वसन की क्रिया में क्रियाधार वसा होती है। वसा के अणु में ऑक्सीजन की मात्रा कार्बोहाइड्रेट्स की तुलना में कम होती है। इसलिए वसा के ऑक्सीकरण के लिए वायुमण्डल से 0, की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। अत: वेसा का श्वसन गुणांक सदैव एक से कम होता है।
2C51H98 + O6 ➝ 102CO2 + 98H2O
ट्राइपामिटिन
(iii) uictat cat parha qulich (Respiratory Quotient of Proteins)-प्रोटीन अणुओं में भी वसा के समान ऑक्सीजन की मात्रा कार्बन की तुलना में कम होती है। अर्थात प्रोटीनों के ऑक्सीकरण में भी अधिक 0, की आवश्यकता पड़ती है। श्वसन की क्रिया में प्रोटॉन क्रियाधार की तरह कार्य कार्बोहाइड्रेट तथा वसा की अनुपस्थिति में करते हैं। उदाहरणार्थ-मनुष्य के लम्बे समय तक भूखे रहने पर प्रोटीन क्रियाधार के रूप में कार्य करने लगते हैं जो लगातार होने पर मनुष्य की मृत्यु का सूचक होता है। प्रोटॉनों का श्वसन गुणांक एक से कम प्राय: 0.7 – 0.9 होता है जो वसा के श्वसन गुणांक (R.Q.) से मामूली अधिक होता है।
(iv) कार्बोक्सिलिक अम्लों का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of carboxylic acids)-कुछ पादपों में श्वसन में क्रियाधार कार्बोक्सलिक अम्ल होते हैं जिनके अणुओं में कार्बन की तुलना में 0, की अधिक मात्रा पायी जाती है। इसलिए इन पदार्थों के ऑक्सीकरण में तुलनात्मक रूप से कम वायुमण्डलीय O2 की आवश्यकता होती है तथा अधिक मात्रा में CO2 निर्मुक्त होती है। अत: इनका श्वसन गुणांक सदैव एक से अधिक होता है।
2(COOH) + O2 ➝ 4CO2 + H2O
ऑक्सेलिक अम्ल
सिट्रिक अम्ल तथा मैलिक अम्ल का श्वसन गुणांक क्रमशः 1.14 तथा 1.33 होता है।
(v) मांसल या सरस पादपों का श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient of succelent plants)-मांसल पादप जैसे नागफनी आदि में श्वसनाधार के रूप में कार्बोहाइड्रेट प्रयुक्त होते हैं परन्तु इनका पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता है जिससे मध्यवर्ती पदार्थ निर्मित होते हैं। लेकिन CO2 का निर्माण नहीं होता है। अत: इन पौधों में श्वसन गुणांक शून्य होता है।
(vi) अवायवीय श्वसन में श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient in anaerobic respiration) – अवायवीय श्वसन में CO2 तो निर्मुक्त होती है लेकिन O2 का अवशोषण नहीं होता है। अतः इन क्रियाओं में श्वसनं गुणांक अनन्त होता है।
श्वसनाधार या क्रियाधार के R.Q. का मान जितना कम होता है उस स्थिति में उतनी ही अधिक मात्रा में ऊर्जा का विमोचन होता है। अतः वसा के एक अणु से अधिकतम ऊर्जा जब कार्बनिक अम्ल के एक अणु से या अवायवीय श्वसन से काफी कम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
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