Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 41 प्राणियों का घरेलूकरण (ग्राम्यन), संवर्धन तथा आर्थिक महत्व
RBSE Class 12 Biology Chapter 41 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Biology Chapter 41 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कुक्कुट पालन हेतु प्रयुक्त निम्न में से कौन-सी प्रजाति देशी नस्ल की है-
(अ) सफेद लैगहॉर्न
(ब) पेकिन,
(स) न्यूहैम्पशायर
(द) लैगस
उत्तर:
(द) लैगस
प्रश्न 2.
कुक्कुट (मुर्गी) के अण्डों का उष्मायन समय कितना है-
(अ) 21 दिन
(ब) 28 दिन
(स) 0 दिन
(द) 12 दिन
उत्तर:
(अ) 21 दिन
प्रश्न 3.
कुक्कुटपालन से प्राप्त होता है-
(अ) अण्डे व शहद
(ब) माँस व लाख
(स) अण्डे व मोम
(द)माँस व अण्डे
उत्तर:
(द)माँस व अण्डे
प्रश्न 4.
रेशमकीट की किस अवस्था से रेशम प्राप्त होता है-
(अ) अण्डे से।
(ब) कैटरपिलर से
(स) वयस्क से
(द) कोकून से
उत्तर:
(ब) कैटरपिलर से
प्रश्न 5.
यूरोपियन मधुमक्खी का वैज्ञानिक नाम है-
(अ) एपिस मैलीफेरा
(ब) एपिस डोर्सेटा
(स) एपिस फ्लोरिया
(द) एपिस इण्डिका
उत्तर:
(अ) एपिस मैलीफेरा
प्रश्न 6.
रानी मधुमक्खी का कार्य है-
(अ) दूसरी मक्खियों पर नियन्त्रण
(b) छत्ते की सुरक्षा करना
(c) प्रजनन करना
(द) मधु तैयार करना
उत्तर:
(c) प्रजनन करना
प्रश्न 7.
निम्न में से मेजर कार्प की श्रेणी में नहीं आती है-
(अ) लेबियो रोहिता
(b) कतला कतला
(c) सिरिनयस मृगला
(द) चैनोज चैनोज
उत्तर:
प्रश्न 8.
पशुओं का ऐन्छेक्स रोग होता है-
(अ) विषाणु जनित
(b) हैल्मिन्थ जनित
(c) जीवाणु जनित
(द) प्रोटोजोआ जनित
उत्तर:
(c) जीवाणु जनित
प्रश्न 9.
कुसुमी प्रकार की लाख कीट के पोषण पादप है-
(अ) खेर
(b) बबूल
(c) शीशम
(द) बेर
उत्तर:
(b) बबूल
प्रश्न 10.
“मूगा सिल्क’ किस रेशमकीट से प्राप्त होती है-
(अ) बॉम्बिक्स मोराई
(b) एन्थैरिया आसामेन्सिस
(c) एन्थैरिया पैफियां
(द) एटकेस रेसिनी
उत्तर:
(द) एटकेस रेसिनी
RBSE Class 12 Biology Chapter 41 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ग्राम्यन किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानव के लिए उपयोगिता की दृष्टि से मानव द्वारा जन्तुओं के पालतू बनाने को जन्तुओं का घरेलूकरण या ग्राम्यन कहते हैं।
प्रश्न 2.
अण्डे उत्पादन हेतु पाली जाने वाली मुर्गियों को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अण्डे उत्पादन हेतु पालन की जाने वाली मुर्गियाँ लेयर्स (Layers) कहलाती हैं।
प्रश्न 3.
कुक्कुट पालन के क्षेत्र में विश्व में भारत का कौन-सा स्थान है।
उत्तर:
कुक्कुट पालन के क्षेत्र में विश्व में भारत तीसरे स्थान पर है।
प्रश्न 4.
मछलियों के पालन एवं प्रबन्धीकरण को क्या कहते हैं?
उत्तर:
मछलियों के पालन एवं प्रबन्धीकरण को मत्स्य पालन या जलकृषि कहते हैं।
प्रश्न 5.
मत्स्य पालन के क्षेत्रों में भारत में कार्यरत किन्हीं दो अनुसंधानों केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
केन्द्रीय अंतः स्थलीय मत्स्य शोध संस्थान (Central Inland Fisheries Research Institute) तथा सैंट्रल मैरीन फिशरीज रिसर्च इन्स्टीट्यूट केरल।
प्रश्न 6.
लाख कीट का वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
लैसिफेरा लैक्का (टैकार्डिया लैक्का) है।
प्रश्न 7.
रेशम कीट के किसी एक रोग का नाम लिखिए।
उत्तर:
वाइरस पैब्राइन रोग जो कि Borreling bombycis नामक वायरस के द्वारा फैलती है।
प्रश्न 8.
रेशम कीट में पायी जाने वाली रेशम ग्रन्थियाँ किसका रूपान्तरण होती हैं?
उत्तर:
कैटरपिलर में एक जोड़ी रेशम ग्रन्थियाँ (Silk glands) विकसित हो जाती हैं, जो लार ग्रन्थियों (Salivary Glands) का रूपान्तरण होता है।
प्रश्न 9.
मधुमक्खी पालन के दौरान कौन-कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर:
- फल व फूलों के पौधों की दूरी छत्ते से आधे मील से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- मधुमक्खी पेटिका को ठण्डे तथा छायादार स्थान पर रखना चाहिए।
- ताजे पानी के स्रोत निकट दूरी पर भी होना चाहिए।
प्रश्न 10.
मत्स्य बीज क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मछलियों के अंडे या इनके निम्फों को मत्स्य बीज कहते हैं।
RBSE Class 12 Biology Chapter 41 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मुर्गियों में होने वाले विषाणुजनित रोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुर्गियों के मुख्य विषाणु रोग, चेचक संक्रामक ब्रोन्काइटिस (Infectious Bronchitis) लिम्फॉइड ल्यूकोसिस (Lymphoid leukosis) तथा रानीखेत रोग शामिल हैं। रानीखेत रोग मुर्गों का सर्वाधिक सामान्य रोग है। जिसमें रोगी मुर्गियों को ज्चर व अतिसार हो जाता है। रोग की उग्रता बढ़ने पर चोंच से म्यूकस का स्राव, पंखों का लकवा तथा गोल-गोल चक्कर लगाने जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।
प्रश्न 2.
मधुमक्खियों में सामाजिक संगठन को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
मधुमक्खी के निवह (Colony) में उच्चस्तरीय सामाजिक संगठन पाया जाता है। जो कि विकसित प्रकार का श्रम विभाजन दर्शाता है। मधुमक्खी में तीन प्रभेद (Castes) पाये जाते हैं-
- रानी (Queen)-पूरे निवह में केवल एक बड़े आकार की रानी मक्खी होती है। इसका कार्य प्रजनन करना होता है।
- नर या ड्रोन (Drone)—ये अनिषेचित अण्डों से विकसित होता है तथा इसका कार्य केवल रानी के साथ मैथुन कर अण्ड निषेचन करना होता है।
- श्रमिक (workers)—ये हजारों की संख्या में होती हैं तथा ये निषेचित अण्डों से उत्पन्न बन्ध्य मादाएँ होती हैं। ये निवह के समस्त आन्तरिक व बाहरी कार्य करते हैं। इनका कार्य परागकण एकत्रीकरण, शहद, मोम निर्माण, भोजन संग्रह व छत्ते की सुरक्षा करना होता है।
प्रश्न 3.
लाख के उपयोग लिखिए।
उत्तर:
लाख का उपयोग निम्न प्रकार से करते हैं-
- लाख का उपयोग चूड़ियाँ बनाने में।
- बर्तन निर्माण, खिलौने बनाने में ।
- पॉलिस वार्निश व बिजली के सामान बनाने में किया जाता है।
- भारत में महिलाएँ इसे महावर के रूप में उपयोग करती हैं।
प्रश्न 4.
रेशम कीट की प्रमुख जातियाँ व उनके द्वारा उत्पादित रेशम का नाम दीजिए।
उत्तर:
रेशम कीट की प्रमुख जातियाँ उनसे प्राप्त रेशम का प्रकार तथा जिन पादपों की पत्तियों को वे भोजन के रूप में उपयोग करते हैं। इसमें बॉम्बिक्स मोराई (Bombyx Mori) ही प्रमुखत: महत्वपूर्ण है। जैसे-
- बॉम्बिक्स मोराई से उत्पादित रेशम मल्बरी सिल्क
- एन्थौरिया पौफिस से टसर सिल्क
- एन्थौरिया आसामोन्सिस से मूगा सिल्क
- एटकेश रोसिनी से ऐरी सिल्क।
- थायोपेलिया रेलीजिओया से देव मूगा सिल्क प्राप्त होती है।
प्रश्न 5.
रेशम कीट में होने वाले विभिन्न रोगों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
रेशम कीट में होने वाले रोग निम्न हैं-
1. पैब्राइन (Pebrine)-यह दो प्रकार की होती है-
(क) वाइरस पैब्राइन—यह Borreline bombycis नामक वायरस के द्वारा फैलती है तथा 8-10 दिन के पश्चात् लार्वा मरने लगते हैं। इससे बचने के लिए मरे हुए लार्वा को अलग कर देना चाहिए तथा उपकरणों को 30% ट्राईक्लोरो ऐसीटिक एसिड से 15 मिनट तक और फिर पानी से धोना चाहिए।
(ख) प्रोटोजोअन पैब्राइन-यह Nosema bombycis नामक प्रोटोजोअन से होती है। यह लार्वा तथा प्रौढ़ दोनों कीटों में लगती है। प्रौढ़ कीट का शरीर अनियमित (Irregular) तथा सिकुड़ जाता है एवं लार्वा भी छोटा रह जाता है तथा कृमि कोष बनने से पहले ही मर जाता है। इससे बेचने के लिए यह आवश्यक है कि स्वस्थ शलभों के अण्डे भी प्रयोग किये जायें।
2. फ्लेचरी तथा गेरेसरी (Flacherie and Garsseris)—यह बीमारियाँ बैक्टीरिया द्वारा फैलने वाली होती हैं।
RBSE Class 12 Biology Chapter 41 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मत्स्य पालन पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारतवर्ष जैसे विकासशील देश में जहाँ दूध व माँस की प्रति व्यक्ति आपूर्ति बहुत ही कम है, केवल अनाज के रूप में लिए जा रहे असन्तुलित आहार के पूरक भोजन में मछली का महत्व बहुत ही बढ़ जाता है। देश में मत्स्य प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ टन मछली की आवश्यकता है। मछली पालन तटीय राज्यों में मछुआरों व किसानों को आय व रोजगार प्रदान करता है।
भारत में मत्स्य उत्पादन की क्षमता वाले अंत: स्थलीय जल का क्षेत्र लगभग 75 लाख हैक्टेयर है, जो देश की कुल क्षेत्रफल का 2.34% है। केन्द्रीय अंत: स्थलीय मत्स्य शोध संस्थान में किये गये अनुसंधानों के फलस्वरूप भारत में मछलीपालन के क्षेत्र में एक क्रान्ति आई है।
मछलियों की उपयोगिता तथा उच्च उत्पादन क्षमता से युक्त प्रजातियों का नियन्त्रण परिस्थितियों में संवर्धन करने को मत्स्य पालन कहते हैं।
मछलियाँ प्रोटीन का उत्तम स्रोत हैं। प्रोटीन के अतिरिक्त खनिज लवण, विटामिन (A तथा D) वसाएँ प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं।
कुछ मछलियाँ जैसे-कॉमन कार्प, कतला, रोहू (अलवणीय जल में) तथा हिलसा, सार्डीन व पामफ्रेट (लवणीय जल) को खाया जाता मछलियों समेत कुछ अन्य जलीय जीवों प्रॉन, लोब्स्टर मौलस्का आदि के पालन व सम्वर्धन को जल संवर्धन या जल कृषि (Aquaculture) कहते हैं।
संवर्धनशील मछलियों के प्रकार—यह तीन प्रकार की होती हैं-
- देशज (Indigenous)-स्वच्छ जल में प्राकृतिक रूप में पायी जाने वाली मछलियाँ जैसे—मेजर कार्प (Major Carps)
- लवणजलीय-जो अलवण जल (Fresh Water) के लिए अनुकूलित हो गई हैं। जैसे-चानोस (Chanos), मुलेट्स (Mullets) आदि ।
- विदेशी मछलियाँ (Exotic Fishes)-जो दूसरे देशों से लाई गई हैं। जैसे-मिटर कार्प, चीनी कार्प, क्रूसियन कार्प तथा सामान्य कार्प आदि।
मत्स्य पालन कार्यक्रम का प्रबंधन मत्स्य पालन एक जटिल प्रक्रिया है। स्फुटन (Hatching), संवर्धन (Nursing), पालन-पोषण (Rearing) तथा संग्रहण (Stocking), कुण्डों (Ponds) को सम्मिलित किया जाता है।
1. प्रजनन कुण्ड (Breeding Pond)—मत्स्य पालन के प्रथम चरण के रूप में प्रजनन के लिए विशेष प्रकार के कुण्डों का निर्माण किया जाता है जिन्हें प्रजनन कुंड कहते हैं। ये कुण्ड नदी या दूसरे प्राकृतिक जलोद्गम स्रोतों के पास बनाये जाते हैं।
प्रजनन के प्रकार–सामान्यतः प्रजनन दो प्रकार के होते हैं-
- प्राकृतिक प्रजनन (बंध प्रजनन) (Natural breeding)
- प्रेरित प्रजनन (Induced breeding)
संवर्धन (Nursing)-संवर्धन तालाब को मत्स्य पौना या जीरो के स्फुटन से पूर्व ही तैयार करना ठीक रहता है। इस तालाब में जल का प्रवेश तथा निकास भी नियंत्रित होना जरूरी है। तालाब में परभक्षी मछलियाँ नहीं होनी चाहिए, इसमें प्राकृतिक एवं रासायनिक उर्वरकों का उपयोग भी करना पड़ता है, जो मछलियों का भोजन है। संवर्धन तालाब में मृत्युदर बढ़ जाती है। अतः पूरी सावधनी बरतनी चाहिए तथा पौने की जीरो की लम्बाई 10-15 cm तक हो जाती है तो उन्हें पालन-पोषण कुण्ड में स्थानान्तरित किया जाता है।
पालन-पोषण (Rearing)-इस कुण्ड में अंगुली मीन (Finger lings) को पूरा पोषण प्राप्त होता है। इस कारण ये लम्बे कुण्ड होते हैं। जिनमें परभक्षी जन्तु नहीं होते, किन्तु अंगुली मीन की उचित वृद्धि व्यवस्था की जाती है। ये मौसमी अथवा बारहमासी भी हो सकते हैं। जब अंगुली मीन की लम्बाई 20 cm हो जाती है तो उन्हें संग्रहण तालाब में स्थानान्तरित करते है।
इन्हें संग्रहण तालाब में ले जाने के लिए 1000 ली. की क्षमता के पात्र काम लाते हैं। इन पात्रों के भीतरी सतह पर फोम लगा हुआ होता है। जिससे छोटी मछलियों की चोट व धक्कों से रक्षा की जा सके।
संग्रहण (Stocking)-संग्रहण तालाब में भोजन की पर्याप्त मात्रा का पूरा ध्यान रखा जाता है। जिससे मछलियों की अच्छी वृद्धि हो सके। । पूर्ण विकसित व वयस्क मछलियों को पकड़कर बिक्री के लिए ले जाते हैं और छोटी-छोटी मछलियों को पुनः पोषण कुण्ड अथवा संग्रहण तालाब में लम्बाई व भार आदि के आधार पर छोड़ दिया जाता है।
मछलियों को पकड़ने की विधियाँ–प्राचीनकाल से मछलियों को पकड़ा जाता है। पहले पत्थर व भालों द्वारा पकड़ी जाती थीं किन्तु अब उन्हें जटिल फन्दों, जालों व लाइनों द्वारा पकड़ा जाता है। हमारे देश में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग विधियाँ काम में लाई जाती हैं। मछलियाँ पकड़े जाने को मत्स्ययन (Fishing) कहते हैं।
प्रश्न 2.
लाख कीट की मुख्य विशेषताएँ देते हुए इसके पोषण पादपों का नाम लिखिए।
उत्तर:
लाख कीट में नर एवं मादा पृथक-पृथक होते हैं। यह लैंगिक द्विरूपता दर्शाता है। नर की लम्बाई 1.2-1.5 मिमी. होती है व रंग लाल होता है। ये आकार में मादा से छोटे होते हैं। मादा का शरीर कोमल व आकार अण्डकार होता है। वक्ष एवं उदर भाग बहुत अधिक स्पष्ट नहीं होते हैं। माता का रंग सुर्ख लाल तथा इसमें पंखों का अभाव होता है। मादा रेजिन से निर्मित एक कोष्ठ में रहती है। मादा द्वारा अपने रेजिन कोष्ठ में भी 200-500 अण्डे दिये जाते हैं।
अण्डे देने के 6 सप्ताह बाद प्रथम इन्सटार (Instar) लार्वा निकलता है। इसे अर्भक (Nimph) भी कहा जाता है। अर्भक सक्रिय जीव होते हैं। ये मादा के कोष्ठ से बाहर निकलकर प्रायः गूदेदार (Succulent) पादपों की छोटी-छोटी कोमल टहनियों पर एकत्रित हो जाते हैं। इनकी देह पर स्थित चर्म ग्रन्थियों द्वारा लाख स्रावित किया जाता है, जो हवा के सम्पर्क में आकर सूख जाता है। ये अर्भक रसदार पादपों से रस (sap) ग्रहण करके पोषण प्राप्त करते हैं। अर्भक के 6-8 सप्ताह की स्थिर अवस्था के बाद कायान्तरण द्वारा लगभग 70% पंखविहीन मादाएँ एवं 30% पंखयुक्त नर उत्पन्न होते हैं। लाख कीट प्रतिवर्ष एक पोषण पादप पर दो बार (अक्टूबर-नवम्बर तथा जून-जुलाई में) अपना जीवन चक्र पूरा करता है।
लाख कीटों के पोषण पादप (Host Plants of Lac)–भारत में लाख कीटों के अनेक पादप हैं; जिनमें से कुछ मुख्य पादप जाति को तालिका में दर्शाया है-
लाख कीट अपने मुखांग को पादप ऊतकों में डालकर इसका रस चूसता है। लाख की गुणवत्ता पोषी पादप पर निर्भर करती है। बेर व पलास पादपों पर प्राप्त कुसुमी लाख (Kusumic lac) सर्वश्रेष्ठ प्रकार का होता है।
प्रश्न 3.
कुक्कुट पालन का सविस्तार विवरण दीजिए।
उत्तर:
कुक्कुट पालन-प्राचीन समय से मुर्गे पालतू जन्तुओं के रूप में प्रयुक्त होते रहे हैं। बीसवीं शताब्दी में मनुष्य की स्वाद प्रवृत्ति तथा पौष्टिक भोजन की आवश्यकताओं ने मुर्गी पालन को एक महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग का दर्जा दिया है। मुर्गी अपने अण्डे तथा माँस दोनों ही रूपों में भोजन प्रदान करती है। इसकी इसी उपयोगिता के कारण वैज्ञानिकों का ध्यान मुर्गों के प्रजनन, अंडज, उत्पत्ति, पालन-पोषण की कई नई तकनीकों के अनुसंधान की ओर आकर्षित हुआ।
कुक्कुट पालन में उपयोगी पक्षी कुक्कुट पालन में प्रजातियों को कुक्कुट पालन हेतु उपयोग में लिया जाता है।
(i) मुर्गी प्रजातियाँ-भारत में घरेलू मुर्गी Domestic Fowl, गैलस डोमेस्टिकस को मुख्य रूप से पाला जाता है। दो प्रकार की मुर्गियों को कुक्कुट पालन हेतु उपयोग में लाया जाता है।
(अ) पारम्परिक देशी नस्लें-इनमें असील, ककरनाथ, ब्रह्मा, बेसरा, बैंगस, चिटगॉन आदि नस्लें हैं। इनमें से असली नस्ल की मुर्गों की लम्बाई (Cock fighting) के लिए गेम बर्ड की तरह पाला जाता है।
(ब) विदेशी नस्लें इसमें अधिकतर यूरोपियन नस्लें शामिल हैं। विदेशी नस्लों में सफेद लैगहॉर्न, प्लाइमॉथ रॉक, रोडे आइलैण्ड रैड, न्यू हैम्पशायर आदि प्रमुख हैं।
(ii) बत्तख (Ducks)-ऐनास प्लेटोरिन्कोज से भी अण्डे व माँस प्राप्त होते हैं। भारत में कुल कुक्कुटों की जनसंख्या का 6% योगदान बत्तखों का है।
भारतीय नस्लें रनर भारतीय (Indian Runner) सिहलेट मेटा व नागेश्वरी प्रमुख हैं। जबकि मस्कोरी, पैकिन, आयलेसबरी कैम्पबैल आदि महत्वपूर्ण विदेशी नस्लें हैं
प्रजनन के लिए मुर्गे-मुर्गियों का चुनाव
1. प्रजनन के लिए मुर्गे का चुनाव करना-मुर्गे का शरीर चमकीला, चौड़ा तथा गठीला होना चाहिए। उसकी आँखें चमकदार, चोंच छोटी, मुड़ी हुई, कॅलगी चमककदार लाल तथा बड़ी, पीठ चौड़ी, त्वचा पतली लचीली, पूँछ लम्बी व ऊपर की ओर मुड़ी होनी चाहिए।
2. प्रजनन के लिए मुर्गी का चयन-मुर्गी के शरीर का आकार बड़ा उसका सिर अच्छे आकार का तथा आँखें उभरी हुईं। एक वर्ष से कम आयु की परिपक्व मुर्गी का भी चुनाव करना चाहिए। मुर्गी अच्छे स्वास्थ्य वाली, तेज बढ़ने वाली, अधिक अण्डे देने वाली होनी चाहिए। उससे चूजे भी अच्छे उत्पन्न होंगे।
प्रजनन विधि-कुक्कुट पालन में प्रजनन विधियाँ निम्न हैं-
- लाइन प्रजनन (Line Breading)
- बाहय विनिमय (Out crossing)
- विनिमय (Crossing)
- ग्रेडिंग Grading)
उष्मायन अंडजोत्पत्ति या स्फुटन-कुक्कुट के अण्डों की उष्मायन अवधि प्रत्येक जाति के कुक्कुट में भिन्न होती है। जैसे मुर्गी 21 दिन, टर्की, 28 दिन, वत्तख 28 दिन, जापानी बटेर 17-18 दिन होती है। ऊष्मायन के दौरान श्वसन, उत्सर्जन, पोषण एवं रक्षण (उल्व जरायु, अपरा पौषिक) आदि।
अण्डे सेना तथा चूजा पालन-अण्डे लेने को Brooding तथा इन्क्यूबेटर में से चूजा प्राप्त होने के बाद उसे पालने की क्रिया को Rearing कहते हैं। यह दो प्रकार से चूजों को पाला जाता है-
- प्राकृतिक ब्रूडिंग (Natural Brooding)
- कृत्रिम ब्रूडिंग (Artificial Brooding)
ब्रूडर गृह-इसमें चूजों को बाहर के जानवरों से बचाया जाता है। इसे हवा, आँधी, शीत लहर से भी बचाव किया जाता है।
कुक्कुट आहारकुक्कुट आहार निम्न प्रकार का होता है-
(अ) कार्बोहाइड्रेट आहार—इसमें मक्का, गेहूँ, ओट, (जई) जौ, ज्वार, चावल, राव, आलू आदि कार्बोहाइड्रेट आहार हैं।
(ब) फैट फीट-सोयाबीन तेल, मूंगफली का तेल, बिनौले का । तेल, मक्का का तेल, व्हीट जर्म आयल, पशुओं की चर्बी, जमाये गये तेल आदि का प्रयोग किया जाता है।
(स) प्रोटीन फीड्स-यह इसमें सबसे मूल्यवान भाग है। इसे दूध, मीट स्क्रेप, फिश मील Ca, P, Mn, लवण आदि शाक प्रोटीन फीड के अन्तर्गत आते हैं।
मुर्गियों के सामान्य रोगइनमें सामान्य बीमारियाँ निम्न हैं-
- विषाणु जनित रोग
- जीवाणु जनित रोग
- कवक जनित रोग ।
यदि कोई भी संक्रामक रोग अधिक उम्र हो जाये तो रोगग्रस्त प्राणियों को मार देना चाहिए। इनके व्यवसायी को सामान्य रोग की जानकारी होना आवश्यक है।
प्रश्न 4.
रेशम कीट पालन के विभिन्न चरणों का विस्तार से उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यावसयिक स्तर पर रेशम के उत्पादन के लिए रेशम कीट के पालन-पोषण को रेशम कीट पालन कहते हैं। मल्बरी रेशम कीट-जीवन चक्र—वयस्क रेशम कीट लगभग 4-5 cm लम्बा तथा गंदले सफेद रंग का होता है। इसके जीवन-चक्र में अण्डा लार्वा, प्यूपा व वयस्क मॉथ अवस्थाएँ पायी जाती हैं। इनमें आन्तरिक निषेचन होता है। सामान्यत: दस दिन तक व लार्वा अवस्था 30-35 दिन तक की होती है। रेशम कीट के लार्वा को कैटरपिलर कहा जाता है। रेशम कीट की लार्वा अवस्था में पाँच इन्सटार स्टेज पायी जाती हैं। जिसमें चार बार निर्मोचन (Maulting) होता है।
कैटरपिलर सक्रिय रूप में शहतूत की पत्तियों को खाता है तथा पूर्ण विकसित होने पर भोजन ग्रहण करना बन्द कर देता है। अपने ऊपर रेशम के धागे को लपेटकर कोकून (Cocoon) बना लेता है वे स्वयं प्यूपा में बदलकर प्यूपा को क्राइसेलिस (Chrysalis) कहते हैं। प्यूपा 10-12 दिन के बाद Cocoon को गलाकर वयस्क मॉथ की तरह बाहर आता है।
रेशम उत्पादन उद्योग की सामान्य आवश्यकताएँ-
- मचान (Machana)-रेशम कीट को पालने के लिए उचित स्थान।
- पालन पोषण ट्रे_शहतूत के पत्रों के साथ रेशम कीट के अण्डों को रखने के लिए।
- बुनने वाली या चन्ट्राकिस ट्रे
- डाल-(शहतूत की पत्ती लाने के लिए)
- पत्तियाँ काटने वाला चाकू
- टोकरियाँ-शहतूत की पत्तियों को वितरित करने के लिए
- आर्द्रतामापी
- तापमापी
- ओवन
- फ्रीजर-अगली पीढ़ी के लिए अण्डे (बीज) संग्रहीत करने के लिए।
रेशम कीट पालन के कारण
(i) रेशम कीट का पालन-पोषण–अण्डे देने से लेकर ग्रीष्म सुप्तावस्था, शीत सुप्तावस्था, अण्डे सेना, झिल्लियों की प्रारम्भिक अवस्थाओं की देखभाल से लेकर कोकून बनाने तक की प्रक्रिया है।
(ii) बीजागार का प्रबंधन- रेशम कीट पालकों को उत्तम उचित प्रकार का बीज उपलब्ध कराना तथा मौलिक गुणों को बनाये रखना भी बीजगार प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य है। इस कार्य के लिए बीज (Seed egg) प्राप्ति के लिए पाले जाते हैं। रेशम कीट अर्थात् कैटरपिलर अवस्था को उचित पोषण, रोगों से रोकथाम तथा अन्य देखभाल पर ध्यान देना चाहिए। अंतिम चयन के बाद कोयों को लिंग के अनुसार अलग-अलग कर लेते हैं। इसके लिए नागाहार मशीन उपयोग में लाते हैं। इसके द्वारा 1 घंटे में 1000 से 15000 तक कोकून काटे जा सकते हैं। व्यापारिक दृष्टि से अण्डों के उत्पादन हेतु श्लथ (loose) प्रकार के कोयों को उपयोग में लाया जाता है।
(iii) रेशम कीट पालकों तथा व्यापारिक पालन-पोषण के लिए बीज की आपूर्तिबीजागार प्रबंधन के पश्चात् अगल चरण कीट पालकों को बीज की व्यवस्था है। यह ज्ञान अनुभव के अनुसार दो प्रकार की होती है-यथा-अण्डों आपूर्ति तथा 2nd Instar इल्ली की आपूर्ति ।
पुराने पालक कर्ता अण्डे खरीद सकते हैं। किन्तु नये कीट पालक जो पहली बार कार्य कर रहे हैं उन्हें पालन-पोषण तकनीक की कोई जानकारी नहीं है उन्हें हमेशा IInd इन्सटार इल्ली ही ले जानी चाहिए Ist, IInd तथा IIIrd Instar इल्ली की देखभाल सावधानीपूर्वक करनी चाहिए। 4th तथा 5th Instar Caterpillar का पालन-पोषण मुख्यतः नायलोन जाल द्वारा लटकी ट्रे या जमीन पर रखी ट्रे में होता है।
इस प्रकार रेशम कीट उन्नत तकनीक द्वारा उच्चकोटि के कोयों का उत्पादन संभव हो सकता है। Ist, 2nd, 3rd, 4th, 5th इन्स्टार इल्ली के पालन-पोषण के लिए उत्तम तापमान क्रमशः 27,27,25,24,23°C है।
(iv) कोयों का बनाना—यह वह समय है जब पूर्ण परिपक्व इल्ली भोजन बंद कर देती है तथा अपनी रेशम ग्रन्थियों से एक चिपचिपा पदार्थ स्रावित करती है। इस अवस्था में इल्ली को स्पिनिंग ट्रे में स्थानातरिक कर देते हैं तथा इन्हें कुछ समय के लिये सूर्य की ओर तिरछा कर के रख देते हैं। तीन दिन में स्पिनिंग पूर्ण हो जाने के बाद कोया बन जाता है जो रेशम कीट पालन की अन्तिम अवस्था है।
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