Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 प्रबन्ध के सिद्धान्त एवं तकनीकें
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 पाठयपस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति किस प्रकार की है?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का व्यावहारिक रूप से प्रयोग प्रत्येक संगठन, समाज व देश की परिस्थितियों पर निर्भर करता है तथा इनका निर्माण लम्बे शोध, अनुभव, प्रयोग एवं शोध के द्वारा होता है।
प्रश्न 2.
सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी विषय के सन्दर्भ में पर्याप्त प्रमाणों के आधार पर एवं पर्याप्त तर्क-वितर्क के पश्चात् निश्चित किया गया मत या विचार, जो समय, अनुभव एवं निरीक्षण की कसौटी पर खरा उतरता है, सिद्धान्त कहलाता है।
प्रश्न 3.
उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध विचार के जनक कौन हैं?
उत्तर:
उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध विचार के जनक पीटर एफ. डुकर हैं।
प्रश्न 4.
‘अपवाद द्वारा प्रबन्ध’ का मूलमन्त्र क्या है?
उत्तर:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध की यह तकनीकी उच्च प्रबन्धकों के समक्ष केवल वही जानकारी प्रस्तुत करने पर बल देती है जिसकी उन्हें जरूरत होती है।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध के कौन – से सिद्धान्त सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किए गए हैं?
उत्तर:
कार्य का विभाजन, अधिकार एवं उत्तरदायित्व, अनुशासन, आदेश की एकता, निर्देश की एकता, सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों का समर्पण, कर्मचारियों का पारिश्रमिक, केन्द्रीयकरण, सम्पर्क कड़ी, व्यवस्था, समता, कर्मचारियों के कार्यकाल की स्थिरता, प्रेरणा, सहयोग की भावना आदि।
प्रश्न 6.
व्यवस्था के सिद्धान्त से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
व्यवस्था सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति के लिये निश्चित स्थान होना चाहिए तथा प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति को अपने नियत स्थान पर होना चाहिए।
प्रश्न 7.
बाजार की कौन – सी दशा या स्थिति ने व्यूह रचना प्रबन्ध तकनीकी को अपनाने पर बल दिया है?
उत्तर:
बाजार की बढ़ती हुई गलाघोंट प्रतिस्पर्धा की स्थिति ने व्यूह रचना प्रबन्ध तकनीकी को अपनाने पर बल दिया है।
प्रश्न 8.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध क्या है?
उत्तर: समस्त प्रबन्धकीय कार्यों का उद्देश्योन्मुखी किया जाना ही उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध है जो उपलब्धि तथा परिणामों पर बल देता है।
प्रश्न 9.
व्यूह रचना प्रबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यूह रचना प्रबन्ध का आशय संगठन के लिए पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु भावी दिशा के बारे में निर्णय लेना एवं लागू करवाना है।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परस्पर हित संषर्घ की दशा में फेयोल ने किस हित को सर्वोपरि रखने का सुझाव दिया?
उत्तर:
परस्पर हित संघर्ष की दशा में फेयोल के अनुसार संगठन के हितों को कर्मचारी विशेष के हितों की अपेक्षा प्राथमिकता पर रखना चाहिए। कर्मचारी एवं कम्पनी दोनों के अपने-अपने हित होते हैं, उनमें कम्पनी के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
प्रश्न 2.
अधिकारों के भारार्पण सम्बन्धी निर्देशात्मक सुझाव हेनरी फेयोल के कौन-से सिद्धान्त में निहित हैं?
उत्तर:
अधिकारों के भारार्पण सम्बन्धी निर्देशात्मक सुझाव हेनरी फेयोल के पदाधिकारियों में सम्पर्क की कड़ी सिद्धान्त में निहित हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार संगठनों में अधिकारों के भारार्पण की एक श्रृंखला होनी चाहिए जो ऊपर से नीचे तक हो तथा उसी के अनुसार प्रबन्धक एवं अधीनस्थ होने चाहिए। इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए। आपातकालीन स्थितियों में ही इसका उल्लंघन हो सकता है।
प्रश्न 3.
हेनरी फेयोल की प्रसिद्ध पुस्तक के अंग्रेजी संस्करण का प्रकाशन अमेरिका में कब हुआ?
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा प्रबन्ध एवं उससे सम्बन्धित विषयों पर कई पुस्तकें लिखी गर्दी जिनमें फ्रांसीसी भाषा में प्रकाशित पुस्तक ‘Administration Industrille at Generale’ प्रमुख है। पुस्तक फ्रांसीसी भाषा में होने के कारण फेयोल के विचारों का व्यापक विस्तार नहीं हो पाया। पुस्तक का सन् 1929 में अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया गया, किन्तु इसका वितरण केवल यूरोपीय देशों तक ही सीमित रहा, तत्पश्चात् इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद सन् 1949 में अमेरिका में प्रकाशित हुआ।
प्रश्न 4.
फेयोल ने प्रबन्ध समस्या के शोध कार्य हेतु औद्योगिक संगठन की समस्त क्रियाओं को कौन – कौन – से 6 वर्गों में विभाजित किया?
उत्तर:
फेयोल ने प्रबन्ध समस्या के शोध कार्य हेतु औद्योगिक संगठन की समस्त क्रियाओं को अग्र छः वर्गों में विभाजित किया है –
- तकनीकी क्रियाये – उत्पादन से सम्बन्धित।
- वाणिज्यिक क्रियायें – क्रय – विक्रय एवं विनिमय से सम्बन्धित।
- वित्तीय क्रियायें – पूंजी प्राप्ति एवं उसके अधिकतम उपयोग से सम्बन्धित।
- सुरक्षात्मक क्रियायें – सम्पत्ति तथा माल की सुरक्षा से सम्बन्धित।
- लेखांकन क्रियायें – स्टॉक मूल्यांकन, आर्थिक चिट्ठा तैयार करना, सांख्यिकी इत्यादि से सम्बन्धित।
- प्रबन्धकीय क्रियायें – नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय एवं नियन्त्रण से सम्बन्धित।
प्रश्न 5.
अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीकी के प्रणेता कौन हैं?
उत्तर:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीकी का इतिहास अति प्राचीन है किन्तु व्यवसाय के क्षेत्र में इसकी प्रयुक्ति की पहचान 19 वीं शताब्दी के अन्त में की गयी थी। इस प्रयुक्ति की पहचाने का श्रेय वैज्ञानिक प्रबन्ध के पिता W.F. टेलर को दिया जाता है।
प्रश्न 6.
प्रबन्धकों का ध्यान जटिल व आवश्यक मामलों पर केन्द्रित हो, इसके लिये कौन – सी प्रबन्ध तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए?
उत्तर:
प्रबन्धकों को ध्यान जटिल व आवश्यक मामलों पर केन्द्रित हो, इसके लिये अपवाद द्वारा प्रबन्ध की तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रबन्ध की यह तकनीक उच्च प्रबन्धकों के समक्ष केवल वही जानकारी प्रस्तुत करने पर बल देती है जिसकी उन्हें जरूरत होती है तथा उनका ध्यान भी विशिष्ट समस्याओं एवं परिस्थितियों के पैदा होते ही आकृष्ट करने की व्यवस्था करती है।
प्रश्न 7.
संस्था, विभाग व व्यक्ति के उद्देश्यों को संयुक्त रूप से निर्धारण कौन – सी प्रबन्ध तकनीकी में होता है?
उत्तर:
संस्था, विभाग व व्यक्ति के उद्देश्यों का संयुक्त रूप से निर्धारण ‘उद्देश्यों का प्रबन्ध’ तकनीकी में होता है। क्योंकि उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध संगठन के प्रत्येक स्तर पर संयुक्त रूप से उद्देश्यों, तथ्यों व दायित्वों का निर्धारण करने, प्रभावी कार्य नियोजन करने तथा लक्ष्यों की प्राप्ति के सन्दर्भ में कार्य निष्पादन का मूल्यांकन करने का एक व्यवस्थित दर्शन एवं तकनीक है।
प्रश्न 8.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी के निम्नलिखित लाभ हैं –
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की तकनीकी से संस्था में श्रेष्ठ प्रबन्ध का निर्माण होता है जिससे प्रबन्धक को अपने संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी होती है।
- उद्देश्यानुसार प्रबन्ध के कारण कर्मचारियों, लक्ष्यों, योजनाओं, कार्य-कलापों, कार्य-प्रगति आदि पर प्रभावी नियन्त्रण बना रहता है।
प्रश्न 9.
वातावरण में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने एवं चुनौतियों का ठीक से सामना करने के लिए कौन – सी प्रबन्धकीय तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिए?
उत्तर:
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध भविष्योन्मुखी प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत भावी घटनाओं, अवसरों, चुनौतियों एवं खतरों आदि का अनुमान लगाया जाता है। इसलिए वातावरण में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने एवं चुनौतियों का ठीक से सामना करने के लिए व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध तकनीकी महत्वपूर्ण है।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है? फेयोल के प्रबन्ध सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध का सिद्धान्त:
किसी संगठन के संचालन हेतु निर्णय लेने एवं व्यवहार के लिये व्यापक तथा सामान्य मार्गदर्शक नियमों को प्रबन्ध के सिद्धान्त कहा जाता है।
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्त –
फेयोल ने 14 सिद्धान्त प्रतिपादित किए थे जो प्रबन्धं की क्लासिकल विचारधारा के सिद्धान्त कहलाते है। फेयोल के प्रबन्ध सिद्धान्त प्रशासकीय प्रवृत्ति के माने जाते हैं।
- कार्य विभाजन – फेयोल के अनुसार कार्यों को छोटे – छोटे भागों में बाँटकर किया जाना चाहिए, जिससे विशिष्टीकरण को बल मिलेग तथा कार्य प्रभावी एवं कुशलतापूर्वक पूरा किया जा सकेगा।
- अधिकार एवं उत्तरदायित्व –
फेयोल के अनुसार अधिकार और उत्तरदायित्वों में समानता होनी चाहिए। प्रबन्धक को यह अधिकार है कि वह कर्मचारी को दण्डित करे लेकिन कर्मचारी को भी अपना पक्ष रखने का अधिकार दिया जाना चाहिए। - अनुशासन –
संगठन में अनुशासन अत्यन्त आवश्यक है। फेयोल के अनुसार, संगठन के आवश्यक नियमों और शर्तों का पालन अनिवार्य है। इसके लिए प्रत्येक स्तर पर पर्यवेक्षण सन्तोषजनक समझौते एवं न्यायोचित दण्ड का विधान आवश्यक है। इससे श्रमिक एवं प्रबन्धक दोनों ही बिना किसी विद्वेष की भावना के अपने – अपने कार्यों का निष्पादन कर सकेंगे। - आदेश की एकता –
फेयोल के अनुसार, विभिन्न विभागों में समन्वय होना चाहिए। प्रत्येक कर्मचारी का केवल एक ही अधिकारी होना चाहिए जो उसे आदेश दे सके। इससे कर्मचारी को आदेश के क्रियान्वयन में किसी प्रकार को दुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा। यदि कोई कर्मचारी एक ही समय में दो अधिकारियों से निर्देश लेता है तो आदेश की प्रभुसत्ता कम हो जाती है तथा अनुशासन में व्यवधान उत्पन्न होता है। - निर्देश की एकता –
फेयोल के अनुसार, निर्देश की एकता समन्वित एवं केन्द्रित प्रयत्नों के द्वारा पूरे संगठन को प्रभावित करती है। दो विभागों के कार्य एक-दूसरे से हस्तक्षेप रहित होने चाहिए। संगठन की सभी इकाइयों के कार्यों का विभेदीकरण स्पष्ट होना चाहिए। समान उद्देश्य वाली गतिविधियों के लिए एक अध्यक्ष एवं एक ही अधिकारी होना चाहिए। - सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों का समर्पण –
एक कुशल प्रबन्धक अपने आदर्श व्यवहार व कार्यशैली से यह सुनिश्चित कर सकता है कि किसी के भी हितों का हनन न हो सके। कम्पनी अपने कर्मचारियों से कम लागत पर अधिक उत्पादन की आशा करती है, कर्मचारी कम – से – कम कार्य पर अधिक वेतन की आशा करते हैं। फेयोल के अनुसार, इस जटिल परिस्थिति को इस ढंग से नियोजन होना चाहिए कि संगठन के हितों को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों को भी सन्तुष्ट रखा जा सके। प्रबन्धक को किसी व्यक्ति विशेष के हित के लिए सार्वजनिक हितों को अनदेखा नहीं करना चाहिए तथा अपने अधिकारों का दुरुपयोग भी नहीं करना चाहिए। - कर्मचारियों को प्रतिफल –
फेयोल के अनुसार, प्रत्येक कर्मचारी को इतना पारिश्रमिक अवश्य मिलना चाहिए कि उसकी मूलभूत आवश्यकताएँ उचित ढंग से परिपूर्ण हो सकें। पारिश्रमिक न्यायोचित होना चाहिए ताकि उनका जीवन – स्तर समयानुकूल तर्कसंगत हो। इससे कर्मचारी का मनोबल बढ़ता है, कार्य का वातावरण सकारात्मक रहता है। कर्मचारी मन लगाकर कार्य करते हैं। कम्पनी उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर रहती है। - केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण –
केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीकरण की स्थितियाँ संगठन के आकार और कार्य परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। सामान्य रूप से बड़े संगठनों में विकेन्द्रीयकरण का महत्व अधिक होता है। इसमें निर्णय के अधिकार कई लोगों में कार्य और विभागों के अनुसार बँट जाते हैं। उदाहरण के लिए, हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर विकेन्द्रीयकरण की व्यवस्था है। इससे कार्य निष्पादन सरल हो जाता है। - सोपान श्रृंखला –
किसीकिसी भी संगठन में कर्मचारियों की एक श्रृंखला होती है। इस श्रृंखला में उच्चाधिकारी, अधीनस्थ अधिकारी, कर्मचारी आदि होते हैं। उच्च पद से निम्न पद तक की इस औपचारिक अधिकार रेखा को सोपान श्रृंखला कहते हैं। फेयोल के शब्दों में, संगठनों में अधिकार एवं सम्प्रेषण की एक श्रृंखला होनी चाहिए जो ऊपर से नीचे तक हो उसी के अनुसार प्रबन्धक एवं अधीनस्थ होने चाहिए। इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए। आपातकालीन स्थितियों में ही इसका उल्लंघन हो सकता है। केवल ऐसी स्थितियों में ही श्रमिक, उच्च स्तरीय प्रबन्ध तन्त्र से सम्पर्क कर सकता है। - व्यवस्था –
किसी भी कार्य को सुचारु रूप से संचालित करने में व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान होता है। प्रत्येक वस्तु प्रत्येक कर्मचारी के लिए जो उत्पादन में प्रयोग करता है, उचित स्थान पर व्यवस्थित तरीके से होनी चाहिए। फेयोल के शब्दों में, “अधिकतम उत्पादन के लिए व्यक्ति एवं सामान उचित स्थान पर होने चाहिए।” यदि प्रत्येक वस्तु के लिए स्थान निश्चित है तो कार्य संचालन में कोई कठिनाई नहीं होगी। इससे उत्पादकता एवं क्षमता में वृद्धि होगी। - समता –
संगठनसंगठन में निष्पक्ष और भेदभावरहित वातावरण होना चाहिए। जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र या राष्ट्रीयता की कोई सीमाएँ नहीं होनी चाहिए। प्रबन्ध को सबके साथ समानता की नीति का पालन करना चाहिए। फेयोल का यह सिद्धान्त व्यावहारिक रूप से श्रमिकों के साथ विनम्रता और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार पर बल देता है। इसका उदाहरण आजकल की बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हैं। इन कम्पनियों में विभिन्न देशों के लोग भेदभाव अथवा पक्षपातरहित वातावरण में कार्य कर रहे हैं। - कर्मचारियों का स्थायित्व –
फेयोल के अनुसार, कर्मचारियों का चयन बहुत ही सावधानीपूर्वक कठोर प्रक्रिया के द्वारा करना चाहिए। योग्यता की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कर्मचारी के अन्दर असुरक्षा की भावना नहीं आनी चाहिए। इसलिए परिवीक्षा अवधि के बाद उसका कार्यकाल स्थिर होना चाहिए। कर्मचारी के कार्यकाल की स्थिरता उसके रोजगार की सुरक्षा, संगठन के हित में लाभकारी रहती है। - पहल क्षमता –
सभी कर्मचारियों का मानसिक स्तर एक-सा नहीं होता इसलिए सभी व्यक्तियों में पहल क्षमता नहीं पायी जाती। लेकिन कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जिनके अन्दर रचनात्मकता होती है। यह बुद्धिमता की निशानी है। यदि कोई कर्मचारी ऐसा सुझाव देता है जिससे संगठन को लाभ होता है तो उसकी इस पहल । का स्वागत करना चाहिए। - सहयोग की भावना –
फेयोल के अनुसार, प्रबन्ध को कर्मचारियों में एकता एवं पारस्परिक सहयोग की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। बड़े संगठनों में प्रबन्ध को सामूहिक कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि ऐसा न करने पर सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करना कठिन हो जायेगा।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध के क्षेत्र में हेनरी फेयोल के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक क्रियात्मक या प्रशासनिक प्रबन्ध के सिद्धान्तों के विशेषज्ञ हेनरी फेयोल का प्रबन्ध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। फेयोल ने फ्रांस की कम्पनी में अपना सम्पूर्ण कार्यकारी जीवन व्यतीत किया और अपने इस लम्बे अनुभव के आधार पर प्रबन्ध एवं उससे सम्बन्धित विषयों पर कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें 1916 में फ्रांसीसी भाषा में प्रकाशित पुस्तक ‘Administration Industrielle at Generale’ प्रमुख है और इसमें प्रबन्ध के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया गया।
प्रबन्धकीय क्रियाओं के सम्बन्ध में फेयोल ने अपने विचारों को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया है –
- प्रबन्धकीय योग्यता एवं प्रशिक्षण –
प्रबन्ध के विकास के क्रम में सर्वप्रथम हेनरी फेयोल द्वारा प्रबन्धकों की योग्यता और उनके प्रशिक्षण को प्रभावित किया। उनके अनुसार एक – एक : प्रबन्धक में शारीरिक, मानसिक, सदाचार, शैक्षणिक, प्राबधिक एवं अनुभव सहित छः विशेषताओं का होना आवश्यक है। - प्रबन्ध के तत्व –
हेनरी फेयोल के अनुसार प्रबन्ध प्रक्रिया में नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय और नियन्त्रण पांच तत्वों का होना आवश्यक है। उनके अनुसार नियोजन प्रबन्ध सबसे प्रमुख कार्य है, क्योंकि इसी के आधार पर सभी कार्यों की रूपरेखा तैयार की जाती है। उचित नियोजन के अभाव में किसी उपक्रम में कार्यों के निष्पादन में संशय बना रहता है। नियोजन द्वारा निर्धारित कार्यों के निष्पादन के लिये संगठन संरचना की। आवश्यकता होती है जिसके द्वारा कार्य का विभिन्न व्यक्तियों में वितरण किया जाता है। कार्य वितरण के बाद अधीनस्थों को उचित निर्देश की व्यवस्था की जाती है। नियन्त्रण की आवश्यकता कार्य को नियोजन के अनुसार सम्पादित कराने के लिए होती है। - प्रबन्ध के सिद्धान्त –
हेनरी फेयोल द्वारा प्रबन्ध के क्षेत्र में विकास प्रबन्ध के 14 सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया जो प्रबन्धकों को उनके कार्यों के निष्पादन में सहायता प्रदान करते हैं। फेयोल के सिद्धान्तों में कार्य विभाजन, अधिकार एवं उत्तरदायित्व, अनुशासन, आदेश की एकता, निर्देश की एकता, सामूहिक हितों के लिये व्यक्तिगत हितों का समर्पण, कर्मचारियों को प्रतिफल, केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण, सोपान श्रृंखला, व्यवस्था, समता, कर्मचारियों का स्थायित्व, पहल क्षमता एवं सहयोग की भावना शामिल है।
फेयोल ने प्रबन्ध समस्या के शोध कार्य हेतु औद्योगिक संगठन की समस्त क्रियाओं को छ: वर्गों में विभाजित किया है। ये क्रियायें उत्पाद, क्रय – विक्रय एवं विनिमय, पूंजी की प्राप्ति एवं उसके अधिकतम उपयोग, सम्पत्ति तथा माल की सुरक्षा, स्टॉक मूल्यांकन एवं आर्थिक चिट्ठा निर्माण और प्रबन्धकीय क्रियाओं (नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय एवं नियंत्रण) से सम्बन्धित होती है।
प्रश्न 3.
“अपवाद द्वारा प्रबन्ध विचार की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध का अर्थ है कि प्रबन्धकों को सिर्फ उन्हीं स्थितियों व तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए जो निर्धारित किए गए मानकों से महत्वपूर्ण विचलन और अपवाद के रूप में उत्पन्न होते हैं। अपवाद द्वारा प्रबन्ध की तकनीकी का इतिहास काफी पुराना है किन्तु व्यवसाय क्षेत्र में इसकी पहचान 19वीं शताब्दी के अन्त में की गयी थी। अपवाद द्वारा प्रबन्ध के प्रतिपादक वैज्ञानिक प्रबन्ध के जनक फ्रेडरिक विन्सलो टेलर माने जाते हैं। अपवाद द्वारा प्रबन्ध वह तकनीकी है जो यह बताती है कि उन समस्त कार्यों तथा मामलों में उच्च प्रबन्धकों को ध्यान आकृष्ट नहीं किया जाना चाहिए, जो कि नियमित रूप से निर्धारित परिणामों की उपलब्धि दे रहे हैं।
वे कार्य तो अधीनस्थ प्रबन्धकों द्वारा ही कर दिये जाने चाहिए जो कि अपवाद स्वरूप उत्पन्न हो रहे हों। अपवाद द्वारा प्रबन्ध की तकनीक नियन्त्रण को सरल और प्रभावी बनाती है, लेकिन, यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि अपवादों की प्रस्तुति न होने का अर्थ सदैव यह नहीं कि सब कुछ ठीक प्रकार चल रहा है। कई बार, सामान्य नियोजित निष्पादनों में भी रूपान्तरण की आवश्यकता होती है। अपवाद द्वारा प्रबन्ध की समीक्षा इसके लाभ एवं सीमाओं से की जा सकती है।
अपवाद द्वारा प्रबन्ध का महत्व:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध को निम्न तथ्यों के माध्यम से समझा जा सकता है –
- इससे प्रबन्धकों के व्यक्तिगत समय की बचत होती है।
- जटिल समस्यायें एवं मामले उच्चाधिकारियों के ध्यान से नहीं बच पाते हैं।
- प्रबन्धकीय क्षेत्र को व्यापकता प्रदान करना आसान हो जाता है।
- उपलब्ध समंक, इतिहास एवं प्रवृत्तियों की जानकारी का पूर्णतम उपयोग सम्भव होता है।
- अधिक योग्य एवं उच्च वेतन वाले व्यक्तियों को उच्च प्रत्याय वाले कार्यों पर लगाया जा सकता है।
- संगठन की कठिन समस्याओं एवं संकटों को शीघ्रता से जानकर अवसर एवं कठिनाइयों के प्रति प्रबन्ध को सावधान किया जा सकता है।
- अनुभव रहित अथवा कम अनुभवी प्रबन्धकों के लिए बिना प्रशिक्षण के भी नवीन कार्यों को सम्पन्न करना आसान हो जाता है।
- व्यवसाय क्रियाओं के समस्त पहलुओं की व्यापक जानकारी तथा संस्था के विभिन्न अंगों के बीच प्रभावी संचार को प्रोत्साहित करती है।
अपवाद द्वारा प्रबन्ध की सीमाएँ:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध की निम्नलिखित सीमाएँ हैं –
- अपवाद द्वारा प्रबन्ध की तकनीकी प्रायः अविश्वसनीय समंकों पर आधारित रहती है।
- यह संगठन के व्यक्तिगत विचार को बढ़ाती है।
- यह कागजी कार्यवाही को बढ़ाती है।
- यह प्रणाली अपवादों की प्रस्तुति के अभाव में सब कार्य ठीक प्रकार से हो रहा है, मानकर चलती है। इससे प्रबन्ध को झुठी सूचना प्राप्त होती है।
- यह प्रणाली अनेक घटकों की माप ठीक तरह से नहीं करती है।
- यह व्यावसायिक मामलों में अक्सर एक अस्वाभाविक स्थिरता को मानकर चलती है जबकि ऐसी स्थिरता देखने में नहीं आती है।
प्रश्न 4.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध – तकनीकी से क्या तात्पर्य है? इसके लाभ – दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध का आशय:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया एवं प्रणाली है जिसमें सभी श्रेणी के प्रबन्ध तथा अधीनस्थ मिलकर संयुक्त रूप से संस्थागत, विभागीय एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों का निर्धारण कर उनकी प्राप्ति हेतु प्रबन्धकीय क्रियाओं का संचालन करते है जिससे संसाधनों का प्रभावी उपयोग किया जा सके और व्यक्ति, संगठन एवं पर्यावरण में एकीकरण स्थापित किया जा सके।
- एनीनी राया के अनुसार –
“यह प्रबन्ध का परिणाम अभिमुखी दर्शन है जो उपलब्धि तथा परिणामों पर बल देता है। सामान्यतः इसका ध्येय वैयक्तिक एवं संगठनात्मक प्रभावशीलता में वृद्धि करना होता है।” - आरेन अरिस के अनुसार – “मूलत: उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एक सरल अवधारणा है। यह वांछित परिणामों से निर्देशित अथवा पथ – प्रदर्शित कार्य निष्पादन एवं उपलब्धि है।”
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के लाभ:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध से सम्पूर्ण संस्था, उच्च प्रबन्धक तथा अधीनस्थ कर्मचारियों को निम्नलिखित लाभ होते हैं।
(i) संस्था को लाभ:
उद्देश्यों का प्रबन्ध से संस्थाओं को निम्नलिखित लाभ होते हैं –
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीक से प्रबन्धकीय कौशल एवं निष्पादन में सुधार होता है जिससे प्रबन्धकों को अपने लक्ष्यों की प्राप्त करने में सुविधा होती है।
- इस प्रणाली से संगठनात्मक भूमिकाओं, संरचनाओं, सत्ता, दायित्व, कार्य भारार्पण आदि की स्थिति भी स्पष्ट हो जाती है।
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के माध्यम से कर्मचारियों, लक्ष्यों, योजनाओं, कार्य – कलापों, कार्यप्रगति आदि पर प्रभावी नियन्त्रण बना रहता है।
(ii) उच्च प्रबन्धकों को लाभ:
उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध से उच्च प्रबन्धकों को निम्न लाभ होते हैं –
- इस तकनीकी से प्रबन्धकों को अधीनस्थों का मार्गदर्शन एवं अभिप्रेरित करने में आसानी होती है।
- अधीनस्थों के कार्यों के मूल्यांकन का उचित आधार मिल जाता है।
- विभागों एवं कर्मचारियों के मध्य समन्वय सरल हो जाता है।
(iii) अधीनस्थों को लाभ:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध से अधीनस्थों के निम्नलिखित लाभ होते हैं –
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध से कर्मचारियों को अपने लक्ष्य प्राप्ति में सरलता होती है।
- इस प्रणाली से सन्तुष्टि में वृद्धि होती है तथा निराशा भी समाप्त होती है।
- अधीनस्थों का वरिष्ठ प्रबन्धकों से निरन्तर सम्पर्क बना रहने के कारण भ्रान्तियाँ उत्पन्न नहीं होती हैं तथा वे अधिकारियों की अपेक्षाओं को भली प्रकार से समझ सकते हैं।
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के दोष:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीक में निम्नलिखित दोष है –
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध से भावी अनिश्चितताओं, पूर्वानुमानों की कठिनाई, गतिशील वातावरण, सरकारी नीतियाँ आदि घटकों के कारण उद्देश्यों के निर्धारण में कठिनाई होती है।
- नीतियों, प्राथमिकता एवं दशाओं में तेजी से परिवर्तन होने के बाद भी उनके अनुरूप उद्देश्यों में कोई परिवर्तन करना सम्भव नहीं हो पाती है, फलस्वरूप कर्मचारी अवास्तविक उद्देश्यों का ही अनुसरण करते रहते हैं, किन्तु ऐसे उद्देश्य अर्थहीन होते हैं।
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध से अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उद्देश्यों में सामंजस्य एवं सन्तुलन की समस्या होती है।
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीक में उच्च प्रबन्धकों की सहभागिता, एवं सहयोग के अभाव के साथ – साथ कार्यक्रम के प्रति सच्ची निष्ठा का भी अभाव पाया जाता है।
- यह प्रणाली दीर्घकालीन नियोजन की उपेक्षा कर अल्पकालीन लक्ष्यों पर अधिक बल देती है।
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी में मुख्य जोर परिणामों पर होता है फलतः परिणाम प्राप्ति के लिये कर्मचारी गलत साधनों को भी अपनाने लगते हैं।
प्रश्न 5.
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मक प्रबन्ध:
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध संगठन के उद्देश्यों का निर्धारण, व्यूह रचना का निर्माण, उसके लागू करने एवं क्रियान्वित करने की प्रक्रिया है जिसमें उपयुक्त सुधारात्मक कदमों को उठाया जाता है।
- स्टोनर एवं फ्रीमैन के अनुसार –
“व्यूह रचना प्रबन्ध की एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक संगठन को व्यूह रचना नियोजन एवं उन योजनाओं पर कार्यवाही करने हेतु बाध्य करती है।” - जॉच एवं गुलिक के अनुसार –
“व्यूह रचना प्रबन्ध निर्णय एवं कार्यवाही का एक प्रवाह है जो निगमीय उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता हेतु प्रभावी व्यूह रचना के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध प्रक्रिया का वह पथ है। जिसके अन्तर्गत व्यूह रचनाकर्ता उद्देश्यों का निर्धारण करता है एवं व्यूह रचनात्मक निर्णय लेता है।”
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध की विशेषताएँ:
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध औपचारिक प्रबन्धकीय प्रक्रिया है क्योंकि इसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्य, व्यूह रचना का निर्माण, क्रियान्वयन, अनुवर्तन एवं उसके क्रियान्वयन से सम्बद्ध सुधारात्मक कदम उठाये जाते है।
- संगठन के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वातावरण का विश्लेषण, उद्देश्यों का निर्धारण, व्यूह रचनाओं का निर्माण, क्रियान्वयन, मूल्यांकन एवं अनुवर्तन आदि तर्कसंगत एवं क्रमबद्ध कदमों का उपयोग किए जाने के कारण यह एक व्यवस्थित प्रक्रिया है।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध संगठन का उसके लक्ष्य की उपलब्धि के साधन के रूप में उसके वातावरण के साथ सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए प्रबन्ध करने पर बल देता है। व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध का सम्बन्ध साध्य एवं साधन दोनों से है।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध का कार्य संगठन में उच्चस्तरीय प्रबन्ध द्वारा ही किया जाता है। इसके लिये वे समग्र संगठन के उद्देश्यों एवं व्यूह रचनाओं का विकास करते हैं, परिचालन प्रबन्ध करते हैं एवं प्रशसनिक प्रबन्ध का विकास करते हैं।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध एक भविष्योन्मुखी प्रक्रिया है क्योंकि इसमें भावी घटनाओं, अवसरों, चुनौतियों एवं खतरों आदि का अनुमान लगाया जाता है।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध तकनीकी के अन्तर्गत संगठन में संगठन के बाहर विभिन्न क्षेत्रों में बदली परिस्थितियों के अनुसार व्यावसायिक उद्देश्यों, नीतियों, निर्णयनों एवं मूल्यांकन में परिवर्तन किया जाता है।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध तकनीकी प्रबन्धकों की प्रतिबद्धता को इस रूप में प्रकट करता है कि वे कुछ निश्चित व्यूह रचनाओं को अपनायेंगे और ऐसे संसाधन उपलब्ध करेंगे जिससे संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की रचना की जाती है –
(अ) प्रयोगशाला में
(ब) प्रबन्धकों के अनुभव द्वारा
(स) ग्राहकों के अनुभव द्वारा
(द) समाज वैज्ञानिकों के द्वारा।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध के 14 सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है –
(अ) एफ.डब्ल्यू. टेलर ने
(ब) एल्टन मेयो ने
(स) हेनरी फेयोल ने
(द) मेक्स वेबर ने।
प्रश्न 3.
सार्वभौमिक रूप से सर्वस्वीकार्य प्रबन्ध का सिद्धान्त है –
(अ) कार्य का विभाजन
(ब) अनुशासन
(स) आदेश की एकता
(द) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 4.
आधुनिक क्रियात्मक या प्रशासनिक प्रबन्ध सिद्धान्त का जनक माना जाता है –
(अ) हेनरी फेयोल को
(ब) एफ. डब्ल्यू. टेलर को
(स) पी.एफ डुकर को
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 5.
“Administration industrielle at Generale” पुस्तक के लेखक हैं –
(अ) उर्विक
(ब) पी.एफ. डुकर
(स) एफ.डब्ल्यू. टेलर
(द) हेनरी फेयोल।
प्रश्न 6.
हेनरी फेयोल ने प्रबन्धकीय क्रियाओं के सम्बन्ध में अपने विचारों को मुख्य भागों में विभाजित किया है –
(अ) तीन भागों में
(ब) दो भागों में
(स) पांच भागों में
(द) छ: भागों में
प्रश्न 7.
21 वीं सदी के प्रबन्ध गुरु के रूप में जाना जाता है –
(अ) डुकर को
(ब) हेनरी फेयोल को
(स) GX/ टेलर को
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 8.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध का प्रतिपादन हुआ था –
(अ) सन् 1929 में
(ब) सन् 1949 में
(स) सन् 1954 में
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 9.
“प्रबन्ध उद्देश्यपूर्ण है, यह कुछ उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।” यह कथन है –
(अ) जार्ज आर. टेरी का
(ब) पीटर एफ. डुकर का
(स) आरेन उरिस को
(द) लेस्टर आर. विटेल का
प्रश्न 10.
अपवाद द्वारा प्रबन्ध का जनक माना जाता है –
(अ) हेनरी फेयोल को
(ब) F.W. टेलर को
(स) ड्रकर को
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरमाला:
1. (ब)
2. (स)
3. (द)
4. (अ)
5. (द)
6. (अ)
7. (अ)
8. (स)
9. (अ)
10. (ब)
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सदियों पूर्व के संगठन, समाज तथा शासकों का लक्ष्य किस ध्येय वाक्य पर आधारित था?
उत्तर:
सर्वे भवन्ति सुखिनः ध्येय वाक्य पर आधारित था।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध के सिद्धान्त से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी संगठन के संचालन हेतु निर्णय लेने एवं व्यवहार के लिए व्यापक तथा सामान्य मार्गदर्शक नियमों को प्रबन्ध के सिद्धान्त कहा जाता है।
प्रश्न 3.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की रचना प्रबन्धकों के अनुभवों द्वारा होती है।
प्रश्न 4.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त सर्वव्यापी होते हैं।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का एक महत्व बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों से संसाधनों में समन्वय स्थापित होता है।
प्रश्न 6.
आधुनिक प्रबन्ध को किस अन्य नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध।
प्रश्न 7.
वैज्ञानिक प्रबन्ध की अवधारणा का प्रादुर्भाव किस मॉडल से हुआ है?
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध की अवधारणा का प्रादुर्भाव हेनरी फेयोल द्वारा विकसित प्रशासनिक प्रबन्ध मॉडल से हुआ है।
प्रश्न 8.
हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध के कितने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है?
उत्तर:
14 सिद्धान्तों का।
प्रश्न 9.
सार्वभौमिक रूप से स्वीकार प्रबन्ध के दो सिद्धान्त बताइए।
उत्तर:
- आदेश की एकता
- निर्देशन की एकता।
प्रश्न 10.
कार्य विभाजन सिद्धान्त का सकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
कार्य विभाजन सिद्धान्त से विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 11.
किस सिद्धान्त में एक योजना एक अधिकारी पर बल दिया जाता है?
उत्तर:
निर्देशन की एकता सिद्धान्त में एक योजना, एक अधिकारी पर बल दिया जाता है।
प्रश्न 12.
पदाधिकारियों में सम्पर्क की कड़ी के सिद्धान्त के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
- सम्प्रेषण अन्तराल नहीं
- सम्प्रेषण का सरल प्रवाह।
प्रश्न 13.
किसी संगठन की सफलता कर्मचारियों के परस्पर सहयोग की भावना पर निर्भर करती है। यह कथन प्रबन्ध के किस सिद्धान्त पर लागू होता है?
उत्तर:
सहयोग की भावना के सिद्धान्त पर।
प्रश्न 14.
आधुनिक क्रियात्मक या प्रशासनिक प्रबन्ध का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
हेनरी फेयोल को।
प्रश्न 15.
हेनरी फेयोल ने अपना सम्पूर्ण कार्यकारी जीवन कहां व्यतीत किया?
उत्तर:
हेनरी फेयोल ने फ्रांस की कम्पनी Commentary – Four chambault में अपना सम्पूर्ण कार्यकारी जीवन व्यतीत किया।
प्रश्न 16.
हेनरी फेयोल द्वारा सन् 1916 में फ्रांसीसी भाषा में प्रकाशित पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
‘Administration Industrielle at Generale’
प्रश्न 17.
हेनरी फेयोल की प्रमुख पुस्तक को अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?.
उत्तर:
पुस्तक फ्रांसीसी भाषा में होने के कारण फेयोल के विचारों का व्यापक विस्तार नहीं हो पाया था, इसलिए पुस्तक का सन् 1929 में अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ था।
प्रश्न 18.
हेनरी फेयोल ने औद्योगिक संगठन की क्रियाओं को कितने वर्गों में विभाजित किया है?
उत्तर:
हेनरी फेयोल ने औद्योगिक संगठन की क्रियाओं को छः (तकनीकी, वाणिज्यिक वित्तीय, सुरक्षात्मक, लेखांकन, प्रबन्धकीय) वर्गों में विभाजित किया है।
प्रश्न 19.
प्रबन्धकीय क्रियाओं के सम्बन्ध में फेयोल ने अपने विचारों को कौन – कौन – से तीन मुख्य भागों में विभाजित किया है?
उत्तर:
- प्रबन्धकीय योग्यता एवं प्रशिक्षण
- प्रबन्ध के तत्व
- प्रबन्ध के सिद्धान्त
प्रश्न 20.
हेनरी फेयोल के अनुसार एक प्रबन्धक में कौन – कौन – सी छः विशेषताओं का होना आवश्यक है?
उत्तर:
- शारीरिक
- मानसिक
- सदाचार
- शैक्षणिक
- प्राविधिक
- अनुभव
प्रश्न 21.
फेयोल द्वारा प्रबन्ध क्रियाओं में कौन – कौन से आवश्यक तत्व होते हैं?
उत्तर:
- नियोजन
- संगठन
- निर्देशन
- समन्वय
- नियन्त्रण
प्रश्न 22.
हेनरी फेयोले का समता का सिद्धान्त किस पर जोर देता है?
उत्तरं:
प्रबन्धकों का श्रमिकों के प्रति व्यवहार में यह सिद्धान्त दयाभाव एवं न्याय पर जोर देता है।
प्रश्न 23.
पीटर एफ. डुकर का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
आस्ट्रिया में।
प्रश्न 24.
21 वीं सदी के प्रबन्ध गुरु पीटर एफ. डुकर को अमेरिकन राष्ट्रपति पुरस्कार कब प्राप्त हुआ?
उत्तर:
सन् 2002 में।
प्रश्न 25.
पीटर एफ. डुकर को ‘प्रबन्ध गुरु’ के रूप में किसने अलंकृत किया?
उत्तर:
अमेरिकन पत्रिका Business Week एवं मैकेन्से ने पीटर एफ. डुकर को प्रबन्ध गुरु से अलंकृत किया।
प्रश्न 26.
“प्रबन्धक का मुख्य कार्य सृजन एवं नवप्रवर्तन होता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
पीटर एफ. डुकर का।
प्रश्न 27.
पीटर एफ. डुकर द्वारा सन् 1980 में लिखित पुस्तक कौन – सी है?
उत्तर:
‘Managing in Trubulent Times’
प्रश्न 28.
पीटर एफ. डुकर ने प्रबन्ध के कौन – कौन – से प्रमुख कार्य बताये हैं?
उत्तर:
पी.एफ. डुकर के मतानुसार, प्रबन्ध के प्रमुख कार्य ध्येय एवं लक्ष्य, उत्पादक कार्य एवं श्रमिक उपलब्धि, सामाजिक प्रभाव एवं सामाजिक उत्तरदायित्व, समय, आयाम, प्रशासन एवं उद्यमिता हैं।
प्रश्न 29.
डुकर द्वारा प्रतिपादित उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीक को प्रो. स्नेह ने किस नाम से प्रस्तुत किया है?
उत्तर:
‘परिणामों का प्रबन्ध’।
प्रश्न 30.
“स्पष्ट उद्देश्यों के बिना प्रबन्ध करना एक अव्यवस्थित एवं अलटप्पू कार्य होता है।” यह कथन किसका है।
उत्तर:
कूण्ट्ज़ एवं ओ’ डोनेल का।
प्रश्न 31.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की पद्धति की दो विशेषताएँ में बताइए।
उत्तर:
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एक कार्यात्मक अवधारणा है जो कि उद्देश्यों के निर्धारण की प्रक्रिया को अत्यन्त महत्व देती है।
- यह परिणामोन्मुखी विचारधारा है।
प्रश्न 32.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीक से संस्थाओं को होने वाले दो लाभ बताइए।
उत्तर:
- प्रबन्धकीय कौशल एवं निष्पादन में सुधार।
- कर्मचारियों, लक्ष्यों, योजनाओं, क्रिया – कलापों, कार्य – प्रगति आदि पर प्रभावी नियन्त्रण।
प्रश्न 33.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध से अधीनस्थों को होने वाले दो लाभ बताइए।
उत्तर:
- कार्य सन्तुष्टि में वृद्धि होती है।
- अधीनस्थ अपने अधिकारियों की अपेक्षाओं को भली प्रकार समझ सकते हैं।
प्रश्न 34.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की दो सीमायें (दोष) बताइए।
उत्तर:
- उद्देश्य निर्धारण में कठिनाई।
- यह दीर्घकालीन नियोजन की उपेक्षा कर अल्पकालीन लक्ष्यों पर अधिक बल देता है।
प्रश्न 35.
अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीक क्या है?
उत्तर:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध वह तकनीक है जो यह बताती है कि उन समस्त कार्यों तथा मामलों में, उच्च प्रबन्धकों का ध्यान आकृष्ट नहीं किया जाना चाहिए, जो कि नियमित रूप से निर्धारित परिणामों की उपलब्धि दे रहे हैं।
प्रश्न 36.
‘अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीकी की प्रयुक्ति की पहचान का श्रेय किसे दिया जाता है’?
उत्तर:
F.W. टेलर को।
प्रश्न 37.
अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीकी से होने वाले दो लाभ बताइए।
उत्तर:
- अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीकी से प्रबन्धकों के व्यक्तिगत समय की बचत होती है।
- अधिक योग्य एवं उच्च वेतन वाले व्यक्तियों को उच्च प्रत्याय वाले कार्यों पर लगाया जा सकता है।
प्रश्न 38.
अपवाद द्वारा प्रबन्ध की दो सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
- अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीक प्राय: अविश्वसनीय समंकों पर आधारित रहती है।
- यह तकनीक मानवीय व्यवहार आदि की माप ठीक प्रकार से नहीं करती है।
प्रश्न 39.
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- व्यूहरचनात्मक प्रबन्ध औपचारिक प्रबन्धकीय प्रक्रिया है।
- व्यूह रचनात्मकं प्रबन्ध का कार्य संगठन में उच्च स्तरीय प्रबन्ध द्वारा ही किया जाता है।
प्रश्न 40.
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध के दो महत्वों को समझाइए।
उत्तर:
- व्यूहरचनात्मक प्रबन्ध के माध्यम से संस्था के कर्मचारियों को संगठन के उद्देश्यों की जानकारी हो जाती है।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध द्वारा संगठन की योग्यता एवं क्षमता में वृद्धि होती है।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – I)
प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सिद्धान्त की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त की अवधारणा–प्रबन्ध विषय से सम्बन्धित विचारकों एवं लेखकों ने प्रबन्ध के सिद्धान्तों के प्रतिपादन हेतु व्यापक शोध कार्य किये हैं। अतः प्रबन्ध के सिद्धान्तों का विकास एक सतत् प्रक्रिया है। प्रबन्ध के सिद्धान्त सामान्य दिशा – निर्देश होते हैं। इनका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में कार्य के सुचारु संचालन हेतु किया जाता है तथा ये सिद्धान्त संगठन के सामान्य कार्यों में सकारात्मक रूप से सहायक होते हैं।
प्रश्न 2.
प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक होते हैं। क्यों?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रयोग सार्वभौमिक रूप से किया जाता है, क्योंकि इनका प्रयोग छोटे – बड़े, सामाजिक – व्यावसायिक, उत्पादक – अनुत्पादक, विनिर्माण – सेवा सभी प्रकार के संगठनों में किया जाता है। प्रबन्ध के सिद्धान्त सामान्य प्रकृति के होते हैं। अतः इनको सभी संगठन कहीं – न – कहीं उपयोग में लाते ही हैं।
प्रश्न 3.
आदेश की एकता सिद्धान्त को बताइए।
उत्तर:
आदेश की एकता सिद्धान्त के अनुसार एक कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए तथा उसे उसी एक अधिकारी के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। ऐसा करने से कर्मचारी को बहानेबाजी करने का मौका नहीं मिलेगा तथा वह कार्य को समय से समाप्त करने का प्रयास करेगा।
प्रश्न 4.
आदेश की एकात्मकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आदेश की एकात्मकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं –
- इसके अन्तर्गत एक अधिकारी, एक कर्मचारी’ सिद्धान्त पर बल दिया जाता है।
- इस सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रत्येक कर्मचारी के कार्यात्मक उत्तरदायित्व को स्पष्ट रूप से निश्चित किया जाता है।
- यह सिद्धान्त श्रमिक की कार्यशील स्थिति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
प्रश्न 5.
निर्देश की एकता सिद्धान्त को बताइए।
उत्तर:
निर्देश की एकता सिद्धान्त बताता है कि एक समान प्रकृति के कार्य जिनके उद्देश्य समान होते हैं, उनके समूह का एक ही अध्यक्ष एवं योजना होनी चाहिए। इसका आशय यह है कि एक जैसा कार्य करने वाले कर्मचारियों के समूह को एक ही अधिकारी द्वारा निर्देश मिलने चाहिए।
प्रश्न 6.
निर्देश की एकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निर्देश की एकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं –
- संगठन में समान उद्देश्य वाली क्रियाओं का निर्धारण एक ही उच्च अधिकारी द्वारा होता है।
- संगठन की सभी क्रियाओं को एक-दूसरे पर आश्रित न होना।
- निर्देश की एकता से पूरे संगठन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 7.
केन्द्रीयकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
केन्द्रीयकरण से आशय अधिकारों के उच्च सत्ता में केन्द्रित होने से है। जब संगठन में अधिकार कम या अधिक मात्रा में केन्द्रीय या उच्च सत्ता के पास होते हैं, तो इसे अधिकारों का केन्द्रीयकरण कहा जाता है और जब ये अधिकार अपने अधीनस्थों में बाँट दिये जाते हैं, तो यह विकेन्द्रीयकरण कहलाता है।
प्रश्न 8.
व्यवस्था का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
व्यवस्था का सिद्धान्त संगठन की सजीव एवं निर्जीव सभी वस्तुओं को एक व्यवस्था प्रदान करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति के लिए निश्चित स्थान होना चाहिए तथा प्रत्येक वस्तु व व्यक्ति अपने नियत स्थान पर होना चाहिए।
प्रश्न 9.
समता से क्या आशय है?
उत्तर:
समता से आशय यह है कि सभी व्यक्तियों को समान दृष्टि से देखा जाए एवं उनके पारिश्रमिक तथा दण्ड व्यवस्था में भेदभाव नहीं किया जाए। समता, न्याय एवं दयालुता का मिश्रण है, इससे कर्मचारियों में संगठन के प्रति निष्ठा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 10.
पहल क्षमता (प्रेरणा) सिद्धान्त क्या बताता है?
उत्तर:
संगठन में सकारात्मक बदलाव हेतु कर्मचारियों को पहल करने के लिए प्रेरित करना प्रबन्ध के कार्यों को आसान बना देता है। इससे कर्मचारी खुलकर अपनी बात प्रबन्ध से कह सकते हैं। प्रबन्ध द्वारा निर्णय लेने में कर्मचारियों की भावना को प्रोत्साहित करने को फेयोल ने पहल क्षमता सिद्धान्त का नाम दिया है।
प्रश्न 11.
हेनरी फेयोल ने ‘नियोजन’ को प्रबन्ध की सबसे प्रमुख प्रक्रिया क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हेनरी फेयोल के अनुसार नियोजन प्रबन्ध की सबसे प्रमुख प्रक्रिया है क्योंकि इसी के आधार पर सभी कार्यों की रूपरेखा तैयार की जाती है। उचित नियोजन के अभाव में किसी उपक्रम में कार्यों के निष्पादन में संशय बना रहता है।
प्रश्न 3.
आदेश की एकता सिद्धान्त को बताइए।
उत्तर:
आदेश की एकता सिद्धान्त के अनुसार एक कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए तथा उसे उसी एक अधिकारी के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। ऐसा करने से कर्मचारी को बहानेबाजी करने का मौका नहीं मिलेगा तथा वह कार्य को समय से समाप्त करने का प्रयास करेगा।
प्रश्न 4.
आदेश की एकात्मकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आदेश की एकात्मकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं –
- इसके अन्तर्गत ‘एक अधिकारी, एक कर्मचारी’ सिद्धान्त पर बल दिया जाता है।
- इस सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रत्येक कर्मचारी के कार्यात्मक उत्तरदायित्व को स्पष्ट रूप से निश्चित किया जाता है।
- यह सिद्धान्त श्रमिक की कार्यशील स्थिति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
प्रश्न 5.
निर्देश की एकता सिद्धान्त को बताइए।
उत्तर:
निर्देश की एकता सिद्धान्त बताता है कि एक समान प्रकृति के कार्य जिनके उद्देश्य समान होते हैं, उनके समूह का एक ही अध्यक्ष एवं योजना होनी चाहिए। इसका आशय यह है कि एक जैसा कार्य करने वाले कर्मचारियों के समूह को एक ही अधिकारी द्वारा निर्देश मिलने चाहिए।
प्रश्न 6.
निर्देश की एकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
निर्देश की एकता सिद्धान्त के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं –
- संगठन में समान उद्देश्य वाली क्रियाओं का निर्धारण एक ही उच्च अधिकारी द्वारा होता है।
- संगठन की सभी क्रियाओं का एक-दूसरे पर आश्रित न होना।
- निर्देश की एकता से पूरे संगठन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 7.
केन्द्रीयकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
केन्द्रीयकरण से आशय अधिकारों के उच्च सत्ता में केन्द्रित होने से है। जब संगठन में अधिकार कम या अधिक मात्रा में केन्द्रीय या उच्च सत्ता के पास होते हैं, तो इसे अधिकारों का केन्द्रीयकरण कहा जाता है और जब ये अधिकार अपने अधीनस्थों में बाँट दिये जाते हैं, तो यह विकेन्द्रीयकरण कहलाता है।
प्रश्न 8.
व्यवस्था का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
व्यवस्था का सिद्धान्त संगठन की सजीव एवं निर्जीव सभी वस्तुओं को एक व्यवस्था प्रदान करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति के लिए निश्चित स्थान होना चाहिए तथा प्रत्येक वस्तु व व्यक्ति अपने नियत स्थान पर होना चाहिए।
प्रश्न 9.
समता से क्या आशय है?
उत्तर:
समता से आशय यह है कि सभी व्यक्तियों को समान दृष्टि से देखा जाए एवं उनके पारिश्रमिक तथा दण्ड व्यवस्था में भेदभाव नहीं किया जाए। समता, न्याय एवं दयालुता का मिश्रण है, इससे कर्मचारियों में संगठन के प्रति निष्ठा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 10.
पहल क्षमता (प्रेरणा) सिद्धान्त क्या बताता है?
उत्तर:
संगठन में सकारात्मक बदलाव हेतु कर्मचारियों को पहल करने के लिए प्रेरित करना प्रबन्ध के कार्यों को आसान बना देता है। इससे कर्मचारी खुलकर अपनी बात प्रबन्ध से कह सकते हैं। प्रबन्ध द्वारा निर्णय लेने में कर्मचारियों की भावना को प्रोत्साहित करने को फेयोल ने पहले क्षमता सिद्धान्त का नाम दिया है।
प्रश्न 11.
हेनरी फेयोल ने ‘नियोजन’ को प्रबन्ध की सबसे प्रमुख प्रक्रिया क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हेनरी फेयोल के अनुसार नियोजन प्रबन्ध की सबसे प्रमुख प्रक्रिया है क्योंकि इसी के आधार पर सभी कार्यों की रूपरेखा तैयार की जाती है। उचित नियोजन के अभाव में किसी उपक्रम में कार्यों के निष्पादन में संशय बना रहता है।
प्रश्न 12.
प्रबन्धकीय क्षेत्र की नवीन तकनीकी कौन – कौन – सी हैं? बताइए।
अथवा
प्रबन्धकीय क्षेत्र की नवीन प्रवृत्तियाँ बताइए।
उत्तर:
- उद्देश्य द्वारा प्रबन्ध
- अपवाद द्वारा प्रबन्ध
- व्यूहरचनात्मक प्रबन्ध
- उत्पादकता प्रबन्धं
- प्रौद्योगिकी प्रबन्ध
- प्रबन्ध सूचना प्रणाली
- परिवर्तन का प्रबन्ध
- संघर्ष का प्रबन्ध
- परिचालनात्मक प्रबन्ध
- ज्ञान का प्रबन्ध
- तन्त्र दृष्टिकोण
- आकस्मिकता या सांयोगिक दृष्टिकोण
प्रश्न 13.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी से क्या आशय है?
उत्तर:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया एवं प्रणाली है जिसमें सभी श्रेणी के प्रबन्धक तथा अधीनस्थ मिलकर संयुक्त रूप से संस्थागत, विभागीय एवं वैयक्तिक उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं और फिर उनकी प्राप्ति हेतु प्रबन्धकीय क्रियाओं का संचालन करते हैं जिससे संसाधनों का प्रभावी उपयोग किया जा सके और व्यक्ति, संगठन एवं पर्यावरण में एकीकरण स्थापित किया जा सके।
प्रश्न 14.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी से उच्च प्रबन्धकों को क्या लाभ होता है?
उत्तर:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी से उच्च प्रबन्धकों को निम्नलिखित लाभ होते हैं –
- अधीनस्थों के कार्य मूल्यांकन में सुगमता होती है।
- अधीनस्थों का मार्गदशन करने में आसानी होती है।
- उच्च प्रबन्धकों को लक्ष्य स्थापित करने तथा प्राप्त करने हेतु विशिष्ट कार्य योजनाएँ तैयार करने में सहायता मिलती है।
- विभागों एवं कर्मचारियों के मध्य समन्वय सरल हो जाता है।
- अधीनस्थों को अभिप्रेरित करने में आसानी होती है।
प्रश्न 15.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी में दोषों को बताइए।
अथवा
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी की चार सीमायें बताइए।
उत्तर:
उददेश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीक में निम्नलिखित दोष (सीमायें) होते हैं –
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध से भावी अनिश्चितताओं, पूर्वानुमानों की कठिनाई, गतिशील वातावरण, सरकारी नीतियाँ आदि घटकों के कारण उद्देश्यों के निर्धारण में कठिनाई होती हैं।
- नीतियों, प्राथमिकता एवं दशाओं में तेजी से परिवर्तन होने के बाद भी उनके अनुरूप उद्देश्यों में कोई परिवर्तन करना सम्भव नहीं हो पाता है, फलस्वरूप कर्मचारी अवास्तविक उद्देश्यों का ही अनुसरण करते रहते हैं, किन्तु ऐसे उद्देश्य अर्थहीन होते हैं।
- यह दीर्घकालीन नियोजन की उपेक्षा कर अल्पकालीन लक्ष्यों पर अधिक बल देता है।
- प्रबन्धकों में कार्यक्रम के प्रति सच्ची निष्ठा का अभाव पाया जाता है।
प्रश्न 16.
अपवाद द्वारा प्रबन्ध तकनीकी को परिभाषित कीजिए।
उत्तरे:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध वह तकनीकी है जो यह बताती है कि उन समस्त कार्यों तथा मामलों में, उच्च प्रबन्धकों का ध्यान आकृष्ट नहीं किया जाना चाहिये, जो कि नियमित रूप से निर्धारित परिणामों की उपलब्धि दे रहे है। रेमण्ड मेकलियोड के अनुसार, ”अधिकांश प्रबन्धकों के पास इतने ज्यादा उत्तरदायित्व होते हैं कि वे सभी मामलों पर उचित ध्यान देना अव्यावहारिक या कठिन पाते हैं। प्रबन्धकों को चाहिये कि वे अपना ध्यान अत्यन्त अच्छे तथा अत्यन्त बुरे निष्पादन पर ही केन्द्रित करें।”
प्रश्न 17.
व्यावसायिक संगठन में अपवाद द्वारा प्रबन्ध की आवश्यकता को समझाइए।
उत्तर:
आधुनिक समय में विभिन्न व्यावसायिक संगठनों में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा व्यवसाय के सभी क्षेत्रों में लागतों एवं लाभों के योगदान पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये ‘अपवाद द्वारा प्रबन्ध’ की तकनीकी महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है क्योंकि प्रबन्ध की यह तकंनीक उच्च प्रबन्धकों के समक्ष केवल वही जानकारी प्रस्तुत करने पर बल देती है जिसकी उन्हें जरूरत होती है तथा उनका ध्यान भी विशिष्ट समस्यायों एवं परिस्थितियों के पैदा होने पर ही आकृष्ट करने की व्यवस्था करती है।
प्रश्न 18.
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध –
व्यूहरचनात्मक प्रबन्ध संगठन के लिये पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु भावी दिशा के बारे में निर्णय लेने एवं उन निर्णयों को लागू करने से सम्बन्धित है। स्टोनर एवं फ्रीमैन के अनुसार “व्यूह रचना प्रबन्ध की एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक संगठन को व्यूह रचना नियोजन एवं उने योजनाओं पर कार्यवाही करने हेतु बाध्य करती है।”
प्रश्न 19.
“व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध तकनीक भविष्योन्मुखी प्रक्रिया है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध तकनीक के अन्तर्गत भविष्य की घटनाओं, अवसरों, चुनौतियों एवं खतरों आदि को अनुमान लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त इनके अनुसार व्यूह रचनाओं का निर्माण तथा क्रियान्वयन द्वारा किया जाता है। इस सम्बन्ध में पीयर्स एवं रॉबिन्स ने कहा कि, “यह प्रबन्धकों द्वारा अपने प्रतिस्पर्धी वातावरण के लिये अन्तक्रिया हेतु अपनायी गयी वृहत् भविष्योन्मुखी योजना है।”
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA – II)
प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के महत्व को बताइए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के महत्व निम्नलिखित हैं –
- इनसे प्रबन्धकों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
- संसाधनों की सोपान श्रृंखला एवं समतल सम्पर्क का अधिकतम उपयोग।
- इनके प्रयोग से प्रबन्ध वैज्ञानिक रीति से निर्णय करता है।
- इनसे परिवर्तित वातावरण की आवश्यकताएँ पूरी की जा सकती हैं।
- ये सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करने में सहायक होते हैं।
- उचित अनुसंधान एवं विकास में प्रबन्ध के सिद्धान्त सहायक होते हैं।
- प्रबन्ध को प्रशिक्षण एवं प्रभावपूर्ण प्रशासन हेतु प्रेरित करना।
- शिक्षण एवं शोधकार्य की व्यवस्था करना।
प्रश्न 2.
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के आधारभूत सिद्धान्तों को बताइए।
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के आधारभूत सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं –
- कार्य विभाजने का सिद्धान्त
- अधिकार एवं उत्तरदायित्व का सिद्धान्त
- अनुशासन का सिद्धान्त
- आदेश की एकता का सिद्धान्त
- निर्देश की एकता का सिद्धान्त
- सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों के समर्पण का सिद्धान्त
- कर्मचारियों को प्रतिफल का सिद्धान्त
- केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण का सिद्धान्त
- सोपान श्रृंखला का सिद्धान्त
- व्यवस्था का सिद्धान्त
- समता का सिद्धान्त
- कर्मचारियों की उपयुक्तता का सिद्धान्त
- पहल क्षमता का सिद्धान्त
- सहयोग की भावना का सिद्धान्त
प्रश्न 3.
हेनरी फेयोल ने विशिष्टीकरण का लाभ लेने के लिये कौन – से सिद्धान्त को उपयोगी बताया है?
उत्तर:
हेनरी फेयोल ने विशिष्टीकरण का लाभ लेने के लिये कार्य – विभाजन का सिद्धान्त उपयोगी बताया है। इस सिद्धान्त के अनुसार श्रमिक एवं प्रबन्धक विशिष्ट कार्यों में संलग्न होते हैं इसलिये कार्य क्षमता को बढ़ाने के लिये कार्यों का विभाजन इस प्रकार से करना चाहिये जिससे कार्य एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों में सामंजस्य बना रहे और कार्य करने वाले व्यक्तियों की पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सके। फेयोल का मानना था कि सभी क्रियाओं को छोटे – छोटे भांगों में बाँटकर सरलतापूर्वक एवं अधिक कुशलता से पूरा किया जा सकता है। फिर चाहे वे प्रबन्धकीय हो या तकनीकी।
प्रश्न 4.
आदेश की एकता का सिद्धान्त प्रबन्ध के लिए किस प्रकार उपयोगी है? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
आदेश की एकता के सिद्धान्त के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि किसी भी अधीनस्थ कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त होने चाहिए। ऐसा करने से कर्मचारी एकाग्रता से कार्य कर सकेगा। इसके विपरीत यदि एक कर्मचारी को एक से अधिक अधिकारियों से आदेश मिलेगा तो वह भ्रम में पड़ जायेगा कि वह पहले कौन – सा कार्य करे। इससे अधिकार प्रभावहीनता, अनुशासन, स्थिरता आदि समस्यायें पैदा हो जायेंगी। साथ ही कर्मचारी को उत्तरदायित्व से बचने का अवसर भी मिल जायेगा। इसलिए भ्रम से बचने के लिए एक समय में एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए। इस प्रकार इस सिद्धाने का पालन करके विरोधाभासी आदेशों से मुक्ति मिलती है।
प्रश्न 5.
आदेश की एकता एवं निर्देश की एकता में अन्तर बताइए।
उत्तर:
आदेश की एकता एवं निर्देश की एकता में अन्तर को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
आधार | आदेश की एकता | निर्देश की एकता |
अर्थ | आदेश की एकता सिद्धान्त के अन्तर्गत यह निश्चित किया जाता है कि किसी भी अधीनस्थ कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त करना चाहिए तथा उसी अधिकारी के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। | निर्देश की एकता सिद्धान्त के अन्तर्गत समान उद्देश्यों वाली क्रियाओं के लिए एक अध्यक्ष एवं एक योजना अधिकारी होना चाहिए। जिससे कार्य में एकरूपता बनी रहे। |
लक्ष्य | आदेश की एकता सिद्धान्त का प्रमुख उद्देश्य कर्मचारी को दोहरी अधीनता से बचाना है। | निर्देश की एकता सिद्धान्त का लक्ष्य क्रियाओं के एक – दूसरे पर अच्छादन को रोकना होता है। |
प्रभाव | यह कर्मचारी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करता है एक ही अधिकारी से आदेश मिलने के कारण वह समय से कार्य पूरा करने को प्रयास करता है। | | यह पूरे संगठन को प्रभावित करता है क्योंकि एक ही अध्यक्ष होने के कारण इसमें कार्य की एकरूपता को कार्य के प्रति बहानेबाजी नहीं कर सकता है तथा वह बल मिलता है। |
प्रश्न 6.
केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण से क्या आशय है? इनके सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीयकरण का आशय: अधिकार एवं उत्तरदायित्वों का एक ही व्यक्ति या केन्द्रीय सत्ता में केन्द्रित होना केन्द्रीयकरण कहलाता है।
विकेन्द्रीयकरण का आशय: अधिकार एवं उत्तरदायित्वों का प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर समान वितरण विकेन्द्रीयकरण कहलाता है।
सिद्धान्त –
ऐसे छोटे संगठन जिनके कर्मचारी पूर्ण रूप से दक्ष एवं प्रशिक्षित नहीं होते हैं उनमें केन्द्रीयकरण का सिद्धान्त लागू किया जाना चाहिए जिससे कि प्रबन्ध अपने अनुसार कार्य को पूर्ण करा सके और जब संगठन या संस्था बड़ी होती है जिसमें कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर भी व्यय किया जाता है, उनमें विकेन्द्रीयकरण का सिद्धान्त लागू किया जाना चाहिए जिससे कि प्रत्येक स्तर पर कार्यरत उत्तराधिकारी अपने अधिकार एवं कर्तव्यों को जानकर बेहतर प्रदर्शन कर सके। केन्द्रीयकरण में निर्णय का अधिकार एक – दो व्यक्तियों में निहित होने के कारण सामयिक लाभ प्राप्त होते हैं जबकि विकेन्द्रीयकरण में परिस्थिति विशेष के अनुरूप निर्णय पर आधारित लाभ प्राप्त होता है।
प्रश्न 7.
सोपान श्रृंखला को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
सोपान श्रृंखला:
किसी संगठन में उच्च क्रम से निम्न क्रम तक अधिकारियों की औपचारिक अधिकार रेखा को सोपान श्रृंखला कहते है। इसमें निम्न पद पर कार्यरत् अधिकारी को उच्चाधिकारी से सम्पर्क करने के लिए एक श्रृंखला से गुजरना पड़ता है। इसे चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है।
इसे चित्र से ज्ञात होता है कि यदि F को O से सम्पर्क करना है तो उसे EDCBALMN के माध्यम से गुजरना होगा। यदि कोई आकस्मिक स्थिति उत्पन्न हो जाय, तो F सीधे O से समतल सम्पर्क के द्वारा सम्बन्ध स्थापित कर सकता है। समतले सम्पर्क का प्रावधान सम्पर्क में देरी न हो इसलिए छोटे मार्ग से किया गया है।
प्रश्न 8.
यदि किसी संगठन में शारीरिक एवं मानवीय संसाधनों के लिए उचित स्थान की व्यवस्था नहीं है तो इसमें कौन – से सिद्धान्त को उल्लंघन हुआ है। इसके क्या परिणाम निकलते हैं?
उत्तर:
यदि किसी संगठन में शारीरिक एवं मानवीय संसाधनों के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं है, तो ऐसी स्थिति में हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित ‘व्यवस्था’ के सिद्धान्त का उल्लंघन होता है, क्योंकि फेयोल का यही सिद्धान्त ऐसा है जो इस बात पर जोर देता है कि कार्य करने की गति को बनाये रखने के लिए मानव एवं अन्य भौतिक संसाधन उचित समय पर उचित स्थान पर उपलब्ध होने चाहिए। अतः यह कह सकते हैं कि यह सिद्धान्त वास्तव में एक संगठन में व्यक्तियों व वस्तुओं की व्यवस्था का सिद्धान्त है। यदि सभी वस्तुएँ अपने नियत स्थान पर तथा सभी व्यक्ति अपने लिए निश्चित स्थान पर हैं, तो संगठन के कार्य में लगे हुए भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का कुशलतापूर्वक एवं अपेक्षित उपयोग हो सकेगा तथा ऐसा न होने पर संगठन अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पायेगा।
प्रश्न 9.
फेयोल द्वारा प्रतिपादित पहल सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुए इसके सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पहल सिद्धान्त:
पहल सिद्धान्त, के अन्तर्गत फेयोल ने बताया है कि किसी योजना को बनाने और उसके कार्य निष्पादन की रूपरेखा तैयार करने के सम्बन्ध में श्रमिकों को अवसर दिया जाना चाहिए तथा उनके सकारात्मक विचारों का प्रबन्ध द्वारा स्वागत किया जाना चाहिए।
सकारात्मक प्रभाव –
- कर्मचारियों में संस्था/संगठन के प्रति अपनत्व की भावना का विकास होता है।
- कर्मचारियों में आपसी सहयोग की भावना विकसित होती है। .
- प्रबन्ध द्वारा कर्मचारियों के सहयोग से तैयार की गयी निष्पादन की रूपरेखा के अनुसार कर्मचारी संस्था के लक्ष्यों को समय पर प्राप्त करने में सफल होते हैं।
प्रश्न 10.
हेनरी फेयोल के अनुसार किसी संगठन के विभिन्न स्तरों पर क्रियाओं का निष्पादन किस प्रकार होता है? सारणी द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपरोक्त तालिका में हेनरी फेयोल के अनुसार सभी क्रियायें किसी भी औद्योगिक संगठन में सम्पादित की जाती है। उन्होंने पाया कि प्रथम पाँच क्रियाओं के सम्बन्ध में उचित ज्ञान विद्यमान है। इसीलिये उन्होंने अपना पूरा ध्यान प्रबन्धकीय क्रियाओं के ऊपर केन्द्रित किया।
प्रश्न 11.
हेनरी फेयोल के अनुसार एक प्रबन्धक में कौन – कौन – सी छः विशेषताओं का होना आवश्यक है?
उत्तर:
हेनरी फेयोल के अनुसार एक प्रबन्धक में निम्नलिखित छः विशेषताओं का होना आवश्यक है –
- शारीरिक – स्वास्थ्य, सुशील स्वभाव एवं स्फूर्ति
- मानसिक – समझने एवं सीखने की योग्यता, विवेकशीलता, सतर्कता और निर्णय लेने की क्षमता।
- सदाचार – उत्तरदायित्व स्वीकार करने की क्षमता, पहल करने की क्षमता, निष्ठा, गौरवमयिता।
- शैक्षणिक – कार्य विशेष से सम्बन्धित क्रियायों एवं उनके प्रतिपादन का ज्ञान।
- प्राविधिक – कार्य से प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखने का ज्ञान।
- अनुभव – कार्य करने की दक्षता होना।
प्रश्न 12.
व्यावसायिक संगठनों में प्रबन्धकीय कार्य हेतु नयी – नयी तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वर्तमान में भौगोलिक, वैधानिक, प्रौद्योगिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि बाह्य वातावरण के सभी घटकों में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है जिसका प्रभाव मनुष्य के जीवन दर्शन व योग्यताओं पर तथा संगठन के आन्तरिक वातवरण पर भी पड़ रहा है। प्रौद्योगिक द्वारा नित नये नये आविष्कार हो रहे हैं, समाज के मूल्य एवं मान्यतायें । बदल रही हैं, भोगौलिक वातावरण अनिश्चित हो गया है, राजनैतिक विचारधारायें बदलती जा रही हैं, वैश्विक सन्धियों (SAARC, G – 20, BRIC, WTO) से व्यापार व उद्योग में तीव्र प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो रही है। इन सभी परिवर्तनों का प्रभाव संगठन के लक्ष्यों एवं उनकी प्राप्ति हेतु किये जा रहे प्रबन्धकीय प्रयासों पर भी पड़ता है। परिर्णामस्वरूप प्रबन्धकीय कार्यो को सफलता एवं सुगमता से सम्पन्न करने के लिये नयी – नयी तकनीकों की आवश्यकता पड़ रही है।
प्रश्न 13.
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी क्या है? इसकी प्रकृति बताइए।
उत्तर:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया एवं प्रणाली है जिसमें सभी श्रेणी के प्रबन्धक तथा अधीनस्थ मिलकर संयुक्त रूप से संस्थागत, विभागीय एवं वैयक्तिक उद्देश्यों को निर्धारण करते हैं और फिर उनकी प्राप्ति हेतु प्रबन्धकीय क्रियाओं का संचालन करते है जिससे संसाधनों का प्रभावी उपयोग किया जा सके और व्यक्ति संगठन एवं पर्यावरण में वर्गीकरण स्थापित किया जा सके।
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की प्रकृति:
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की प्रकृति निम्न प्रकार है –
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एक कार्यात्मक अवधारणा है जो कि उद्देश्य निर्धारण की प्रक्रिया को अत्यन्त महत्व देती है।
- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध तकनीकी परिणामोन्मुखी विचारधारा है।
- यह अवधारणा क्रियान्वयन के साधनों की अपेक्षा उद्देश्यों के निर्धारण पर जोर देती है।
- यह विचारधारा सहभागिता के विचार पर आधारित है, जो यह मानती है कि लोग स्वयं के द्वारा निर्धारित उद्देश्यों के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होते हैं।
प्रश्न 14.
“अपवाद द्वारा प्रबन्ध” क्या है? इसकी सीमायें बताइए।
उत्तर:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध से आशय:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध वह तकनीकी है जो यह बताती है कि उन समस्त कार्यों तथा मामलों में उच्च प्रबन्धकों का ध्यान आकृष्ट नहीं किया जाना चाहिये जो कि नियमित रूप से निर्धारित परिणामों की उपलब्धि दे रहे हैं।
प्रबन्ध विद्वान स्टार के अनुसार:
“जब कार्यक्रम सही चल रहा होता है तो वहाँ प्रबन्ध कार्य नहीं करता है। जब अपवाद (समस्या अवरोध, महत्वपूर्णता) उत्पन्न होता है, तब प्रबन्धक की आवश्यकता होती है और वह अपने विवेक का प्रयोग करता है। इस कार्य की प्रक्रिया को अपवाद द्वारा प्रबन्ध कहा जाता है।”
अपवाद द्वारा प्रबन्ध की सीमायें:
अपवाद द्वारा प्रबन्ध की सीमायें निम्न हैं –
- यह संगठन में व्यक्ति के व्यक्तिगत विचार को बढ़ाती है।
- यह प्रायः अविश्वसनीय समंकों पर आधारित रहता है।
- यह प्रणाली मानवीय व्यवहार जैसे घटकों की माप ठीक प्रकार से नहीं करती है।
- यह प्रणाली कागजी कार्यवाही को बढ़ाती है।
- यह व्यापक अवलोकन एवं रिपोर्टिंग की आवश्यकता रखती है जो कि सम्भव नहीं है।
प्रश्न 15.
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध किसे कहते हैं? इसकी विशेषतायें बताइये।
उत्तर:
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध संगठन के लिये पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु भावी दिशा के बारे में निर्णय लेने एवं उन निर्णयों को लागू करने से सम्बन्धित है।
जॉच एवं गुलिक के अनुसार:
“व्यूह रचना प्रबन्ध निर्णय एवं कार्यवाही की एक प्रवाह है जो निगमीय उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता हेतु प्रभावी व्यूह रचना के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। व्यूह रचना प्रबन्ध प्रक्रिया का वह पथ है। जिसके अन्तर्गत व्यूह रचनाकर्ता उद्देश्यों का निर्धारण करता है एवं व्यूह रचनात्मक निर्णय लेता है”।
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध की विशेषतायें:
व्यूह रचात्मक प्रबन्ध की विशेषतायें निम्नलिखित हैं –
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध औपचारिक प्रबन्ध प्रक्रिया है।
- यह एक व्यवस्थित प्रक्रिया है क्योंकि संगठन के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये तर्कसंगत एवं क्रमबद्ध कदमों का उपयोग किया जाता है।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध एक गतिशील प्रक्रिया है।
- संगठन में व्यूह रचनात्मक कार्य उच्च स्तरीय प्रबन्ध द्वारा ही किया जाता है।
- व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध एक भविष्योन्मुखी प्रक्रिया है।
RBSE Class 12 Business Studies Chapter 3 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
फेयोल के प्रबन्ध के निम्नलिखित सिद्धान्तों को उदाहरण सहित समझाइए।
- निर्देश की एकता
- समता
- सहयोग की भावना
- व्यवस्था
- केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण
- पहल क्षमता
उत्तर:
- निर्देश की एकता:
समान उद्देश्यों वाली क्रियाओं के लिए एक ही अधिकारी होना चाहिए जो कार्यप्रणाली में संगठन के द्वारा निर्धारित क्रियाओं में एकरूपता लाकर उसे पूर्व निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचा सके।
उदाहरण –
माना कि एक कम्पनी मोटर साइकिल बनाती है। उसे कच्चा माल क्रय करने आदि के लिए एक अधिकारी नियुक्त करना चाहिए तथा विपणन कार्य के लिए अलग एवं उत्पादन के लिए अलग। इससे एक प्रकार का कार्य करने वाले कर्मचारी एक साथ कार्य कर सकेंगे। - समता: इस सिद्धान्त के अनुसार सभी कर्मचारियों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। किसी भी कर्मचारी को यह न लगे कि उसके साथ भेदभाव किया जा रहा है।
उदाहरण –
किसी संगठन में यदि शिफ्ट के हिसाब से कार्य होता है तो सभी कर्मचारियों को बारी – बारी से सभी शिफ्टों में कार्य करना चाहिए। अर्थात् किसी एक कर्मचारी को केवल दिन में तथा किसी अन्य कर्मचरी को केवल रात में कार्य करने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। - सहयोग की भावना:
सभी कर्मचारियों के अन्दर संस्था का सदस्य होने का भाव होना चाहिए अर्थात् वे यह समझे कि संस्था का अहित होगा तो हमारा भी अहित होगा। इससे वे एक-दूसरे का सहयोग करेंगे जिससे संस्था की प्रगति होगी।
उदाहरण –
यदि अधिकारी ने पाँच कर्मचारियों के एक समूह को 50 इकाई तैयार करने का कार्य सौंपा है, तो उनमें से कोई एक 9 बना सकता है तथा दूसरा 11, इस प्रकारे कार्य करने से सहयोग दिखता है। जबकि 11 बनाने वाला यदि 10 बनाकर ही कार्य बन्द कर दे, तो यहाँ सहयोग का भाव नहीं माना जा सकता है। - व्यवस्था:
यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि संगठन में कार्यरत् प्रत्येक वस्तु एवं व्यक्ति के लिए एक निश्चित स्थान होना चाहिए। वह व्यक्ति या वस्तु अपने नियत स्थान पर ही होनी चाहिए। इससे अनावश्यक समय एवं शक्ति नष्ट नहीं होगी।
उदाहरण –
माना कि एक मशीन को चालू करने के लिए हैन्डिल की आवश्यकता होती है, तो प्रत्येक शिफ्ट में आने वाले कर्मचारी द्वारा मशीन को चालू करने के बाद हैन्डिल को उसके नियत स्थान पर ही रखना चाहिए। इससे उसमें कार्यरत् अन्य व्यक्ति भी उसे ढूँढ़ सके। - केन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीयकरण:
केन्द्रीयकरण का आशय है कि अधिकारों का कुछ ही लोगों (उच्च स्तर) में समाहित होना। जबकि विकेन्द्रीयकरण में प्रबन्ध में लगे सभी लोगों में अधिकारों का वितरण समान रूप से किया जाता है। फेयोल के अनुसार, अधिकारों का केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण होना संगठन के स्वरूप पर निर्भर करता है। यदि संगठन छोटा है तो केन्द्रीकरण होना चाहिए और यदि संगठन बड़ा है तो विकेन्द्रीयकरण उचित रहेगा।
उदाहरण –
ऊपर से ही बजट बनाकर विभागों को उसके अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना केन्द्रीयकरण है। जबकि विभिन्न विभागों द्वारा बनाये गये बजट को उच्च प्रबन्ध द्वारा पास कराकर लागू करना विकेन्द्रीयकरण है। - पहल:
फेयोल के अनुसार, संगठन में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत् कर्मचारियों को कार्य योजना बनाने एवं उसे निष्पादित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। कर्मचारियों द्वारा कार्य – योजना से सम्बन्धित की जाने वाली प्रत्येक पहल का स्वागत किया जाना चाहिए तथा उन्हें पुरस्कृत भी किया जाना चाहिए। इससे वे संस्था से भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे तथा अपने कार्यों को ठीक प्रकारे से निष्पादित करेंगे।
उदाहरण –
एक कम्पनी दन्त मंजन का उत्पादन करती है। वह अपने मंजन की खपत बढ़ाना चाहती है। एक कर्मचारी ने प्रबन्धन से कहा कि हमारे पैकिंग के डिब्बे का मुँह छोटा होने से इसमें से कम मंजन निकलता है। अतः उपभोक्ता कम मंजन से काम चला लेता है। यदि इसे बड़ा कर दिया जाये तो खपत बढ़ जायेगी। ऐसा ही किया गया तथा लाभ प्राप्त हुआ। कम्पनी ने उस कर्मचारी को पुरस्कृत किया। अत: प्रत्येक कर्मचारी की पहल क्षमता का विकास करना चाहिए।
प्रश्न 2.
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध के महत्व को समझाइये।
उत्तर:
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध का महत्व:
वर्तमान में विभिन्न कम्पनियों के मध्य प्रतिस्पर्धा एवं वैश्वीकरण के वातावरण में व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है, जिसको निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।
- व्यवसाय संचालन में सहायक –
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध द्वारा किसी भी व्यावसायिक संगठन का सफल संचालन किया जा सकता है। इस तकनीकी के माध्यम से व्यवसाय में होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाना, नये अवसरों का लाभ उठाने के लिये नवाचार और भविष्य का अनुमान लगाते हुए व्यावसायिक जोखिमों को कम किया जा सकता है। - उद्देश्यों की स्पष्टता –
संस्था में कार्यरत् कर्मचारियों को जब संगठन के उद्देश्यों की स्पष्ट जानकारी हो जाती है तो वह उनकी प्राप्ति हेतु प्रेरित होते है लेकिन ये सब व्यूहरचनात्मक प्रबन्ध के माध्यम से ही सम्भव हो पाता है। - वातावरणीय चुनौतियों का सामना एवं अवसरों का लाभ –
संगठन के सामने विभिन्न प्रकार की वातावरणीय चुनौतियाँ होती हैं जिससे प्रबन्धकों को कार्य करने में कठिनाई होती है, लेकिन व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध के माध्यम से इस प्रकार की समस्याओं का समाधान आसानी से किया जा सकता है। इसके साथ ही प्रबन्धक विशेष अक्सरों का लाभ उठाने के लिये भी सक्षम हो जाते हैं। - निर्णयों में सहायक –
संगठन में सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करना, महत्वपूर्ण निर्णय लेने की विधि, मुख्य समस्या से सम्बन्धित जाँच करना आदि के सम्बन्ध में निर्णय लेने पड़ते है जिसके लिये आवश्यक तत्व, समंक, सूचनाओं की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध के माध्यम से कार्य आसान हो जाता है। - परिवर्तन प्रतिरोधों में कमी –
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध परिवर्तनों के प्रतिरोधों में कमी लाने में सहायक है, क्योंकि यह कर्मचारियों की सहभागिता प्रदान कर उनकी भ्रान्तियों, अफवाहों, मिथ्या धारणाओं को दूर करता है, उनसे विचार विमर्श करता है, आर्थिक प्रेरणा देता है, उचित परिवर्तन के लाभ बताता है और प्रतिस्पर्धात्मक भावना का विकास करे परिवर्तनों को आसानी से लागू भी कर सकता है। - संगठन की योग्यता एवं क्षमता में वृद्धि –
व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध तकनीक के माध्यम से संगठन की योग्यता एवं क्षमता में वृद्धि होती है, क्योंकि यह वातावरण के साथ अनुकूलतम समन्वय स्थापित करता है, कर्मचारियों में अभिप्रेरणा का कार्य करता है, व्यावसायिक जोखिमों को कम करता है, मुख्य संसाधनों एवं प्रयत्नों का उपयोग करता है, कार्य निष्पादन में मदद करता है और निम्न रेखा स्तर पर सफलता को सुनिश्चित करता है।
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