Rajasthan Board RBSE Class 12 Economics Chapter 10 फर्म का संतुलन
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 अभ्यासार्थ प्रश्न
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
जब फर्म को कुल आगम (TR) कुल लागत (TC) से अधिक होता है, तो फर्म को प्राप्त होता है।
(अ) असामान्य लाभ
(ब) हानि
(स) न लाभ न हानि
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 2.
समस्थिति बिन्दु होता है जहाँ
(अ) MR = MC
(ब) TR = TC
(स) MR > MC
(द) MR < MC
प्रश्न 3.
फर्म को हानि होती है जब
(अ) MR = MC
(ब) TR >TC
(स) TR < TC
(द) TR = TC
प्रश्न 4.
फर्म के सन्तुलन की प्रथम शर्त के अनुसार
(अ) MR = MC
(ब) MC > MC
(स) MR < MC
(द) MR ≠ MC
प्रश्न 5.
फर्म उत्पादन मात्रा निर्धारित करती है जहाँ
(अ) MR = MC और MC वक्र MR वक्र को नीचे से काटता है।
(ब) MR ≠ MC
(स) MR > MC
(द) MR < MC
उत्तरमाला:
- (अ)
- (स)
- (स)
- (अ)
- (अ)
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
फर्म सन्तुलन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
फर्म सन्तुलन या साम्य में उस समय होती है जब वह उत्पादन की मात्रा में बढ़ाने या घटाने की स्थिति में नहीं होती है। अर्थात् वह अधिकतम लाभ अर्जित कर रही होती है।
प्रश्न 2.
जिस बिन्दु पर TR = TC उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
जिस बिन्दु पर TR और TC बराबर होते हैं उसे समस्थिति बिन्दु (Break-even Point) कहते हैं। इस अवस्था में फर्म को न लाभ होता है और न ही हानि।
प्रश्न 3.
सीमान्त आगम का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है, उसे सीमान्त आगम कहते हैं।
प्रश्न 4.
कुल आगम कैसे ज्ञात होता है?
उत्तर:
कुल बिक्री मात्रा में कीमत की गुणा करने से कुल आगम ज्ञात हो जाता है। सूत्र रूप में – Total Revenue = Q × P
प्रश्न 5.
जब MR = MC होता है तो फर्म की कौन-सी अवस्था होती है?
उत्तर:
जब MR और MC बराबर होते हैं तो यह फर्म की आदर्श उत्पादन मात्रा होती है तथा इस अवस्था में फर्म का लाभ अधिकतम होता है।
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
फर्म सन्तुलन की दोनों विधियों (TR/TC और MR/MC) में से कौन-सी विधि श्रेष्ठ है और क्यों?
उत्तर:
फर्म का सन्तुलन जानने के लिए दोनों ही विधियों को प्रयोग में लाया जाता है। TRUTC विधि सरल है जबकि MR/MC विधि श्रेष्ठ विधि मानी जाती है क्योकि इसमें उत्पादन मात्रा एवं अधिकतम लाभ की स्थिति को आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
समस्थिति बिन्द से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब TR तथा TC दोनों बराबर होते हैं तो उस अवस्था में फर्म को न तो लाभ होता है और न ही हानि। इस अवस्था को ही सम स्थिति बिन्दु (Break-even Point) कहते हैं।
प्रश्न 3.
सीमान्त आय और सीमान्त लागत विधि में फर्म के सन्तुलन के लिए दो आवश्यक शर्ते कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
सीमान्त आय और सीमान्त लागत विधि में फर्म के सन्तुलन के लिए निम्न दो शर्तों का पूरा होना आवश्यक है –
- सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होने चाहिए।
- उस बिन्दु पर सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आगम वक्र को नीचे से काटता हो। (पूर्ण प्रतियोगिता बाजार के लिए आवश्यक)
प्रश्न 4.
कुल आगम और कुल लागत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कुल आगम (Total Revenue) – एक फर्म द्वारा किसी वस्तु की बिक्री से जो कुल धनराशि प्राप्त होती है उसे कुल आगम कहते हैं। सूत्र रूप में – कुल आगम = बेची गई मात्रा × कीमत
कुल लागत (Total Cost) – किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा के निर्माण पर होने वाले कुल व्यय को ही कुल लागत कहते हैं। सूत्र रूप में – कुल लागत = कुल स्थिर लागत + कुल परिवर्तनशील लागत
प्रश्न 5.
एक फर्म अधिकतम लाभ कैसे अर्जित करती है?
उत्तर:
एक फर्म को अधिकतम लाभ उस उत्पादन स्तर पर होता है जहाँ कुल आगम तथा कुल लागत में अन्तर सर्वाधिक होता है। यही फर्म की साम्यावस्था भी होती है। इस अवस्था में कुल लागत से कुल आगम और उत्पादन स्तरों की तुलना में सर्वाधिक होता है।
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
फर्म के सन्तुलन से क्या तात्पर्य है? सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि से चित्रों के द्वारा फर्म के सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
फर्म के सन्तुलन का आशय-एक फर्म के सन्तुलन अथवा साम्य की स्थिति तब होती है जबकि वह अधिकतम लाभ अर्जित कर रही हो। अधिकतम लाभ की स्थिति उस अवस्था में होती है जब फर्म की सीमान्त आय (MR) उसकी सीमान्त लागत (MC) के बराबर हो।
जिस बिन्दु पर सीमान्त आगम व सीमान्त लागत बराबर होती है उस बिन्दु से पहले सीमान्त आगम सीमान्त लागत से ज्यादा होता है। अत: फर्म अपना उत्पादन बढ़ाकर अपना लाभ और बढ़ाने का प्रयत्न करेगी लेकिन यदि साम्य बिन्दु से आगे उत्पादन किया जाता है तो MR से MC ज्यादा हो जाता है अर्थात् कुल लाभ में कमी होने लगती है। इसलिए कोई भी फर्म इस स्थिति में नहीं जाना चाहेगी। उसके लिए सबसे अच्छी स्थिति वही होगी जहाँ पर MR = MC है।
इस स्थिति को रेखाचित्र द्वारा और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है –
उपरोक्त रेखाचित्र में x अक्ष पर वस्तु की उत्पादन मात्रा तथा y अक्ष पर सीमान्त आगम तथा सीमान्त लागत दर्शायी गई है। MC सीमान्त लागत वक्र है तथा MR सीमान्त आगम वक्र है। अपूर्ण प्रतिस्पर्धा एवं एकाधिकारी बाजार में MR वक्र नीचे गिरता हुआ होता है जबकि सीमान्त लागत वक्र U आकार का होता है क्योंकि प्रारम्भ में सीमान्त लागत उत्पादन बढ़ने पर गिरती है तथा बाद में यह बढ़ती जाती है।
E बिन्दु साम्य बिन्दु है। यहाँ MR = MC है। अत: उत्पादन की OQ मात्रा आदर्श है क्योंकि इसी अवस्था में फर्म का लाभ अधिकतम रहता है।
यदि फर्म OQ से कम OM उत्पादन करती है तो सीमान्ते आगम (TM) सीमान्त लागत (T,M) से ज्यादा होती है। इस कारण कोई भी उत्पादक इस बिन्दु पर नहीं रुकना चाहेगा। वह इससे आगे तब तक बढ़ेगा जब तक कि MR और MC बराबर नहीं हो जाते हैं।
यदि फर्म अपने उत्पादन को OQ से बढ़ाकर ON करती है तो E बिन्दु के आगे MC, MR से ज्यादा हो जाती है। इसका आशय है कि फर्म को उन अतिरिक्त इकाइयों (QN) से हानि हो रही है जिसे तीर द्वारा दिखाया गया है। कोई भी फर्म ऐसा नहीं करना चाहेगी।
अत: फर्म के लिए आदर्श स्थिति OQ उत्पादन की ही है क्योंकि यहीं पर उसका लाभ अधिकतम होता है। E बिन्दु उसका साम्य बिन्दु है।
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में फर्म के साम्य के लिए उपरोक्त शर्त के साथ एक शर्त और पूरी करनी होती है। वह है कि सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आगम वक्र को नीचे से काटता हो। यह निम्न रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है –
चित्र में E बिन्दु साम्य बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर साम्य की दोनों शर्ते पूरी हो रही हैं – (i) MR और MC बराबर है तथा (ii) MC वक्र MR वक्र को नीचे से काट रहा है। इस अवस्था में ही फर्म को अधिकतम लाभ होगा।
चित्र में R बिन्दु पर भी MR और MC बराबर है लेकिन इस बिन्दु पर MC वक्र MR वक्र को ऊपर से काट रहा है। अत: यह साम्य बिन्दु नहीं है और न ही इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होगा। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है इस बिन्दु के बाद उत्पादन बढ़ाने पर MR, MC से ज्यादा रहता है। अत: फर्म इस लाभ को प्राप्त करना चाहेगी तथा उत्पादन को 09 तक बढ़ायेगी जिससे सम्पूर्ण लाभ अर्जित किया जा सके।
यदि फर्म अपना उत्पादन OM से कम रखती है तो उसे हानि उठानी पड़ेगी क्योंकि इसे अवस्था में MC, MR से ज्यादा है। इसी प्रकार यदि फर्म उत्पादन OQ से ज्यादा करती है तो भी E बिन्दु के बाद MC, MR से ज्यादा हो जाता है जिससे कुल लाभ में कमी आयेगी। अत: दोनों ही स्थिति फर्म के लिए लाभदायक नहीं हैं। उसको अधिकतम लाभ तो साम्य बिन्दु E पर ही होगा।
प्रश्न 2.
कुल आगम और कुल लागत विधि का उपयोग करते हुए फर्म के सन्तुलन को चित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
एक फर्म का सन्तुलन उस अवस्था में होता है जब वह अधिकतम लाभ प्राप्त कर रही हो। फर्म का अधिकतम लाभ कुल आगम एवं कुल लागत विधि के अनुसार उस स्थिति में होता है जब कुल आगम तथा कुल लागत में अन्तर सबसे ज्यादा हो। इसे निम्न चित्र द्वारा और स्पष्ट किया जा सकता है –
उपरोक्त चित्र में कुल आगम तथा कुल लागत वक्रों को क्रमश: TR व TC द्वारा दिखाया गया है। कुल आगम (TR) वक्र शून्य से। प्रारम्भ होता है जिसका आशय है कि उत्पादन के शून्य होने पर कुल आगम भी शून्य होता है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है कुल आगम में भी वृद्धि होती जाती है। इस कारण कुल आगम वक्र उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ बायें से दाईं ओर ऊपर उठता जाता है।
कुल लागत वक्र (TC) T बिन्दु से प्रारम्भ होता है न कि मूल बिन्दु से, क्योंकि T कुल स्थिर लागत है और उत्पादन न होने की अवस्था में भी यह तो होती ही है।
प्रारम्भिक अवस्था में जब फर्म का उत्पादन OQ1 से कम है, फर्म को हानि होती है क्योंकि इस अवस्था में TR से TC ज्यादा है। R बिन्दु पर कुल आगम (TR) तथा कुल लागत (TC) बराबर हो जाते हैं जबकि उत्पादन की मात्रा OQ1 होती है। अत: R बिन्दु को समस्थिति बिन्दु (Break-even Point) कहते हैं जो न लाभ और न ही हानि की अवस्था को दर्शाता है।
जब फर्म अपना उत्पादन OQ1 से अधिक बढ़ाती है तो फर्म को लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है क्योंकि इस बिन्दु के बाद कुल आगम कुल लागत से अधिक हो जाता है लेकिन फर्म को लाभ अधिकतम OQ मात्रा में उत्पादन करने पर ही होगा क्योंकि OQ मात्रा में उत्पादन पर उसके कुल आय वक्र तथा कुल लागत वक्र के बीच अन्तर अधिकतम है। अतः फर्म OQ उत्पादन मात्रा पर ही सन्तुलन की स्थिति में होगी।
TP वक्र, जोकि कुल लाभ को दर्शाता है, वो TR व TC वक्र के अन्तर के आधार पर बनाया या व्युत्पन्न किया गया है।
TR व TC वक्र के बीच अधिकतम अन्तर को ज्ञात करने के लिए दोनों वक्रों पर स्पर्श रेखाएँ खींचनी होती हैं। ये स्पर्श रेखाएँ जिस बिन्दु पर स्पर्श करती हैं (चित्र के अनुसार E व F पर) उस स्तर पर TC व TC के बीच की दूरी अधिकतम होती है। इसलिए इस स्तर पर लाभ भी अधिकतम होता है। चित्र के अनुसार अधिकतम लाभ की मात्रा GQ है।
QQ2, के मध्य उत्पादन पर भी लाभ प्राप्त होता है लेकिन TR व TC के मध्य अन्तर निरन्तर कम होता जाता है। इस कारण कुल लाभ भी घटने लगता है। इस अवस्था में कुल लाभ वक्र (TP) नीचे की ओर गिरने लगता है।
s बिन्दु पर पुनः कुल आगम व कुल लागत बराबर हो जाते हैं, यह समस्थिति बिन्दु है। यहाँ पर TP वक्र x अक्ष को स्पर्श करता है। इसके आगे उत्पादन बढ़ाने पर TR से TC ज्यादा हो जाता है। अतः फर्म को हानि होने लगती है। कुल लाभ वक्र (TP) इस अवस्था में x अक्ष के नीचे चला जाता है जो ऋणात्मक लाभ को दर्शाता है जिसका आशय है कि फर्म को हानि हो रही है।
अत: कोई भी फर्म OQ से ज्यादा उत्पादन नहीं करना चाहेगी। यही उसका सन्तुलन बिन्दु है। इस अवस्था में ही व्युत्पन्न लाभ वक्र (TP) अपने शीर्ष बिन्दु पर होता है जो अधिकतम लाभ मात्रा को दर्शाता है।
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
एक फर्म सन्तुलन की अवस्था में होती है जबकि
(अ) जब वह वस्तु का उत्पादन घटाने की स्थिति में हो
(ब) जब वह वस्तु का उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में हो
(स) जब वह वस्तु का उत्पादन न बढ़ा सके न घटा सके।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 2.
सभी फर्मों का उद्देश्य होता है।
(अ) लागत मूल्य पर अपनी वस्तु को बेचना
(ब) अधिकतम लाभ कमाना
(स) समाज सेवा करना
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 3.
जब उत्पादन शून्य होता है तो कुल आगम होता है।
(अ) शून्ये
(ब) अधिकतम
(स) स्थिर लागत के बराबर
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 4.
कुल लागत वक्र प्रारम्भ होता है।
(अ) शून्य से
(ब) कुल स्थिर लागत बिन्दु से
(स) कुल आगम बिन्दु से
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में साम्य के लिए शर्त पूरी होनी चाहिए।
(अ) सीमान्त आगम सीमान्त लागत के बराबर हो
(ब) सीमान्त लागते वक्र सीमान्त आगम वक्रे को नीचे से काटता हो
(स) उपर्युक्त दोनों।
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
- (स)
- (ब)
- (अ)
- (ब)
- (स)
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सभी फर्मे किस उद्देश्य से कार्य करती है?
उत्तर:
सभी फर्मों का उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम करना होता है। इसलिए वह उत्पादन की ऐसी मात्रा निर्धारित करती है। जिस पर उनके लाभ अधिकतम होते हैं।
प्रश्न 2.
फर्म का लाभ ज्ञात करने के लिए कौन-से तथ्यों की जानकारी आवश्यक है?
उत्तर:
फर्म का लाभ ज्ञात करने के लिए उसके आगम तथा लागत की जानकारी होना आवश्यक होता है।
प्रश्न 3.
आगम से क्या आशय है? कुल आगम की राशि कैसे निकाली जाती है?
उत्तर:
आगम से आशय उस राशि से लगाया जाता है जोकि फर्म को अपनी वस्तुओं को बेचने से प्राप्त होती है। कुल आगम की गणना करने के लिए बेची गई वस्तु की मात्रा में उसकी कीमत का गुणा किया जाता है।
प्रश्न 4.
लागत से क्या आशय है?
उत्तर:
फर्म द्वारा किसी वस्तु के निर्माण में जो व्यय किये जाते हैं उन्हीं के जोड़ को वस्तु की लागत कहते हैं।
प्रश्न 5.
सीमान्त लागत क्या होती है?
उत्तर:
फर्म द्वारा एक अतिरिक्त वस्तु का निर्माण करने के कारण कुल लागत में जो वृद्धि होती है उसे उस वस्तु की सीमान्त लागत कहते हैं।
प्रश्न 6.
फर्म को हानि हुई है या लाभ, यह कैसे पता चलता है?
उत्तर:
यदि किसी फर्म का आगम उसकी लागत से अधिक होता है तो फर्म को लाभ होता है। इसके विपरीत फर्म का आगम लागत से कम होने पर हानि होती है।
प्रश्न 7.
फर्म के सन्तुलन को ज्ञात करने की दो विधियों के नाम बताइए।
उत्तर:
(i) कुल आगम एवं कुल लागत विधि।
(ii) सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत विधि।
प्रश्न 8.
कुल आगम एवं कुल लागत विधि के अनुसार फर्म को सन्तुलन किस अवस्था में होता है?
उत्तर:
इस विधि के अनुसार फर्म को सन्तुलन उस अवस्था में होता है जबकि कुल आगम एवं कुल लागत में अन्तर सर्वाधिक होता है।
प्रश्न 9.
उत्पादन यदि शून्य हो तो कुल आगम कितना होगा?
उत्तर:
उत्पादन शून्य होने की अवस्था में कुल आगम भी शून्य ही होता है।
प्रश्न 10.
उत्पादन शून्य होने की अवस्था में कुल लागत कितनी होती है?
उत्तर:
उत्पादिन शून्य होने पर कुल लागत कुल स्थिर लागत के बराबर होती है।
प्रश्न 11.
सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत विधि में साम्य के लिए क्या शर्त पूरी होनी चाहिए?
उत्तर:
इस विधि में साम्य उस बिन्दु पर होता है जहाँ (MR) सीमान्त आगम (MC) सीमान्त लागत के बराबर होता है। साम्य के लिए एक शर्त और पूरी करनी होती है कि सीमान्त लागते वक्र सीमान्त आगमं वक्र को नीचे से काटे।
प्रश्न 12.
फर्म के सन्तुलन को ज्ञात करने की दोनों विधियों में से कौन-सी श्रेष्ठ है और क्यों?
उत्तर:
फर्म के सन्तुलन को ज्ञात करने की सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि श्रेष्ठ मानी जाती है क्योंकि इसकी सहायता से आसानी से अधिकतम लाभ और उत्पादन मात्रा ज्ञात की जा सकती है।
प्रश्न 13.
साम्य उत्पादन मात्रा से क्या आशय है?
उत्तर:
साम्य उत्पादन मात्रा से आशय उस मात्रा से होता है जिस पर फर्म अधिकतम लाभ अर्जित करती है। फर्म के लिए उससे कम या ज्यादा उत्पादन करना लाभदायक नहीं होता है।
प्रश्न 14.
समस्थिति (Break-even Point) क्या होती है?
उत्तर:
जिस उत्पादन स्तर पर कुल आगम व कुल लागत बराबर होते हैं वह न लाभ और न ही हानि की स्थिति होती है। इसे ही समस्थिति कहते हैं।
प्रश्न 15.
फर्म के सन्तुलन की कुल आगम व कुल लागत विधि तथा सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि किस बाजार में उपयोग में लाई जाती हैं?
उत्तर:
ये दोनों विधियाँ सभी प्रकार के बाजारों में उपयोग में लाई जा सकती हैं और फर्म/उद्योग के सन्तुलन की व्याख्या की जा सकती है।
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
फर्म सन्तुलन की अवस्था में कब होती है?
उत्तर:
फर्म सन्तुलन की अवस्था में उस समय होती है जबकि उसके लिए उत्पादन को घटाना तथा बढ़ानी दोनों ही सम्भव न हो क्योंकि दोनों ही अव्रस्थाओं में उसका लाभ अधिकतम नहीं होता है। कुल लागत व कुल आगम विधि के अनुसार जब कुल आगम व कुल लागत में अन्तर सर्वाधिक होता है तो फर्म सन्तुलन की स्थिति में होती है। सीमान्त लागत व सीमान्त आगम विधि के अनुसार फर्म सन्तुलन की अवस्था में उस समय होती है जब सीमान्त आगम सीमान्त लागत के बराबर होता है।
प्रश्न 2.
साम्य कीमत व उत्पादन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
साम्य कीमत और उत्पादन का अर्थ उस मात्रा से होता है जिस पर फर्म अधिकतम लाभ अर्जित करती है। इससे ऊपर व नीचे के मूल्य तथा उत्पादन दोनों ही स्थिति में फर्म अधिकतम लाभ अर्जित करने में समर्थ नहीं होती है।
प्रश्न 3.
कुल आगम वे कुल लागत विधि की कमियाँ बताइए।
उत्तर:
इस विधि में निम्न कमियाँ हैं –
- कुल आगम व कुल लागत के मध्य अधिकतम दूरी ज्ञात करना कठिन होता है।
- चित्र के आधार पर प्रति इकाई कीमत को ज्ञात करना सम्भव नहीं होता है।
प्रश्न 4.
फर्म का सन्तुलन ज्ञात करने की सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि को श्रेष्ठ क्यों माना जाता है?
उत्तर:
यह विधि इसलिए श्रेष्ठ मानी जाती है क्योकि इसमें अधिकतम लाभ तथा उत्पादन मात्रा को सरलता से ज्ञात किया जा सकता है। साथ ही इस विधि के अन्तर्गत औसत आगम व औसत लागत वक्रों का प्रयोग करके प्रति इकाई कीमत भी ज्ञात की जा सकती है।
प्रश्न 5.
फर्म के आगम व लागत के अन्तर से हमें क्या ज्ञात होता है?
उत्तर:
फर्म के आगम् व लागत के अन्तर से हमें फर्म को होने वाले लाभ या हानि को ज्ञान प्राप्त होता है। यदि फर्म का आगम उसकी लागत से अधिक होता है तो फर्म को लाभ प्राप्त होता है। इसके विपरीत यदि फर्म का आगम वस्तु की लागत से कम होता है तो फर्म को हानि होती है।
प्रश्न 6.
औसत आगम तथा सीमान्त आगम वक्र किस बाजार में अक्ष के समानान्तर होता है?
उत्तर:
औसत आगम तथा सीमान्त आगम वक्र पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में एक ही होता है तथा x अक्ष के समानान्तर होता है। क्योंकि फर्म मूल्य निर्धारित न होकर उद्योग द्वारा निर्धारित मूल्य को स्वीकार करने वाली होती है। वह उस मूल्य पर कितनी ही वस्तुएँ बेच सकती है। मूल्य को घटाना-बढ़ाना उसके हाथ में नहीं होता है।
प्रश्न 7.
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत, औसत आगम तथा सीमान्त अगम में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में कीमत, औसत आगम तथा सीमान्त आगम तीनों बराबर होते हैं अर्थात् P = AR = MR
प्रश्न 8.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में कुल आगम (TR) तथा सीमान्त आगम (MR) के बीच सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में एक फर्म का सीमान्त आगम तो स्थिर रहता है उसमें कोई बदलाव नहीं होता है, लेकिन कुल आगम (TR) निरन्तर बढ़ता जाता है।
प्रश्न 9.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार का सीमान्त आगम व औसत आगम वक्र बनाइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार का सीमान्त व औसत आगम वक्र
प्रश्न 10.
कुल लागत वक्र किस बिन्दु से प्रारम्भ होती है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुल लागत वक्र स्थिर लागत बिन्दु से प्रारम्भ होता है क्योंकि यह कुल लागत का न्यूनतम बिन्दु होता है। स्थिर लागत शून्य उत्पादन होने की अवस्था में भी विद्यमान रहती है और कुल लागत कभी भी इससे कम नहीं हो सकती है।
प्रश्न 11.
सीमान्त आगम तथा सीमान्त लागत विधि द्वारा साम्य की अवस्था को रेखाचित्र बनाकर दर्शाइये।
उत्तर:
सीमान्त आगम तथा सीमान्त लागत विधि द्वारा साम्य
रेखाचित्र में ‘E’ साम्य बिन्दु है तथा OQ साम्य मात्रा है। E बिन्दु पर MR = MC हैं।
प्रश्न 12.
फर्म का लाभ किस प्रकार ज्ञात किया जाता है? समझाइए।
उत्तर:
फर्म के लाभ को ज्ञात करने के लिए फर्म के आगम एवं लागत की जानकारी करनी होती है। आगम का आशय फर्म द्वारा बेची गई वस्तु से प्राप्त राशि से होता है यह राशि बेची गई वस्तु की मात्रा में वस्तु की कीमत को गुणा करके ज्ञात की जाती है। वस्तु की लागत का आशय वस्तु के निर्माण में किए जाने वाले खर्चे की राशि से होता है।
यदि फर्म का आगम उसकी लागत से ज्यादा होता है तो फर्म लाभ की स्थिति में होती है। जब फर्म का आगम लागत से कम होता है तो फर्म हानि की स्थिति में होती है। जब ये दोनों बराबर होते हैं तो फर्म न लाभ और न ही हानि की स्थिति में होती है।
प्रश्न 13.
कुल लागत, सीमान्त लागत तथा औसत लागत के सम्बन्ध को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
उत्पादन की प्रारम्भिक अवस्था में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होने के कारण जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा को बढ़ाया जाता है वैसे ही वैसे सीमान्त लागत घटने लगती है तथा औसत लागत में भी कमी आती है, लेकिन कुल लागत में वृद्धि घटती हुई दर से होती है। जब एक बिन्दु के बाद उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है तो सीमान्त व औसत लागते बढ़ने लगती है। तथा कुल लागत में वृद्धि तेज गति से होती है। औसत लागत की वृद्धि की देर सीमान्त लागत की वृद्धि दर से कम होती है।
प्रश्न 14.
कुल आगम तथा कुल लागत वक्र के अधिकतम अन्तर को किस प्रकार ज्ञात किया जाता है?
उत्तर:
कुल आगम (TR) तथा कुल लागत (TC) वक्र के अधिकतम अन्तर को जानने के लिए दोनों वक्रों पर स्पर्श रेखाएँ खींचनी होती हैं। कुल आगम तथा कुल लागते वक़ों पर ये स्पर्श रेखाएँ जहाँ स्पर्श करती हैं उन पर TR व TC के मध्य दूरी अधिकतम होती है। इसलिए इसे उत्पादने स्तर पर लाभ भी अधिकतम होता है।
प्रश्न 15.
समस्थिति बिन्दु (Break-even Point) क्या होता है? इस बिन्दु की क्या विशेषता है?
उत्तर:
समस्थिति बिन्दु उत्पादन का वह स्तर होता है जहाँ पर कुल आगम और कुल लागत बराबर होते हैं। अतः इस बिन्दु परे फर्म को न लाभ होता है और न ही हानि। प्रत्येक फर्म सदैव इस बिन्दु से आगे बढ़ने की कोशिश करती है जिससे वह लाभ की स्थिति में आ सके।
RBSE Class 12 Economics Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
फर्म को सन्तुलन ज्ञात करने की कुल आगम तथा कुल लागत विधि तथा सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर:
फर्म का सन्तुलन ज्ञात करने के लिए दो विधियों को प्रयोग में लाया जाता है –
- कुल आगम तथा कुल लागत विधि तथा
- सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि।
कुल आगम एवं कुल लागत विधि एक सरल तथा तर्कसंगत विधि है। अधिकांश फर्मे इस विधि का प्रयोग करती हैं लेकिन इस विधि में निम्न कमियाँ भी हैं –
- कुल आगम तथा कुल लागत के बीच अधिकतम दूरी ज्ञात करना कठिन कार्य होता है। कई स्पर्श रेखाएँ खींचने पर ही वास्तविक बिन्दु प्राप्त हो जाता है।
- रेखाचित्र के आधार पर वस्तु की प्रति इकाई कीमत ज्ञात करना सम्भव नहीं होता है क्योंकि कीमत को रेखाचित्र में प्रत्यक्ष रूप से दिखाया ही नहीं जाता है।
सीमान्त आगम व सीमान्त लागत विधि को श्रेष्ठ विधि माना जाता है क्योकि इसके द्वारा अधिकतम लाभ वे उत्पादन मात्रा को ज्ञात करना आसान होता है। फर्म के औसत आगम व औसत लागत वक्रों का प्रयोग करके प्रति इकाई कीमत भी ज्ञात की जा सकती है।
प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा की अवस्था में फर्म के सन्तुलन को कैसे ज्ञात करते हैं? रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की वह अवस्था है जिसमें वस्तु की कीमत उद्योग की कुल माँग तथा पूर्ति के आधार पर निश्चित होती है तथा प्रत्येक फर्म को उसी कीमत पर अपनी वस्तु बेचनी होती है। फर्म कीमत निर्धारक न होकर स्वीकार करने वाली होती है। इस अवस्था में फर्म को सीमान्त आगम वक्र x अक्ष के प्रति एक समानान्तर रेखा होती है।
सीमान्त लागत वक्र अन्य बाजार की तरह पूर्ण स्पर्धात्मक बाजार में भी U आकार का होता है क्योकि यह उत्पादन के नियमों से प्रभावित होता है।
पूर्ण प्रतिस्पर्धा वाले बाजार में फर्म का सन्तुलन उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर निम्न दो शर्ते पूरी होती हैं –
- जहाँ सीमान्त आगम (MR) सीमान्त लागत (MC) के बराबर होता है।
- जहाँ सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आगम वक्र को नीचे से काटता है।
इस स्थिति को निम्न रेखाचित्र द्वारा और स्पष्ट किया जा सकता है-
चित्र को स्पष्टीकरण – E: बिन्दु पर सीमान्त आगम (MR) तथा सीमान्त लागत (MC) बराबर है। साथ ही इस बिन्दु पर MC वक्र MR वक्र को नीचे से काट रहा है। अतः इस बिन्दु पर साम्य की दोनों शतें पूरी हो रही हैं। इसे ही फर्म की साम्य बिन्दु कहते हैं तथा OQ साम्य मात्रा है।
इसके विपरीत यदि फर्म उत्पादन ON के बराबर करती है तो साम्य की पहली शर्त तो पूरी हो रही है क्योंकि इस बिन्दु पर भी सीमान्त आगम सीमान्त लागत के बराबर है लेकिन दूसरी शर्त पूरी नहीं हो रही है क्योंकि इस बिन्दु पर सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आगम वक्र को नीचे से नहीं काट रहा है। अतः इस बिन्दु पर फर्म अधिकतम लाभ अर्जित नहीं कर सकती है। अत: यह साम्य की अवस्था नहीं है।
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