Rajasthan Board RBSE Class 12 English Inside The Haveli Introduction
About the Author
(लेखिका के विषय में)
रमा मेहता का जन्म 1923 में नैनीताल में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह प्रतिष्ठित भारतीय विदेश सेवा के लिए चुनी जाने वाली प्रथम महिला हैं। राजनयिक व्यवस्था में सदस्य के रूप में कार्यरत जगत मेहता से विवाह के पश्चात् उन पर अपने पद से त्याग-पत्र देने का अत्यधिक दबाव पड़ा। इसके पश्चात् उन्होंने अपना ध्यान समाज-शास्त्र पर केन्द्रित कर दिया। उन्होंने भारतीय परिवार के गुप्त तथा गुप्त जीवन मूल्यों और परम्पराओं को पहचाना और लिपिबद्ध किया। उन्होंने सामाजिक राजनैतिक जीवन, इतिहास, संस्कृति, ग्रामीण परिवेश इत्यादि से सम्बन्धित विषयों का अध्ययन किया और उन्हें अपनी लेखनी से जीवंत किया। ये वे विषय-वस्तु हैं जिन पर भारतीय एवम् अंग्रेज लेखकों ने अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में कलम चलायी है। रमा मेहता की Inside the Haveli (हवेली के अन्दर) भी इसका अपवाद नहीं है। रमा मेहता की मुख्य रचनाओं की विषय वस्तु भारतीय परम्पराओं से बंधी वह भारतीय नारी है जो आज बड़ी तेजी से स्वयं को बदल रही है। 1978 में अपने निधन से पूर्व रमा मेहता ने भारतीय मूल के हिन्दू परिवार में नारी के स्थान के सन्दर्भ में अपना अध्ययन पूरा किया।
About the Novel
(उपन्यास के विषय में)
PLOT (कथानक) – यह उपन्यास गीता के जीवन से सम्बन्धित उसकी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की कहानियों का प्रस्तुतीकरण है जो एक शिक्षित, जिंदादिल व सहज बम्बई (मुंबई) निवासी लड़की है, जो हवेली में अजय सिंह की दुल्हन के रूप में प्रवेश करती है। गीता को अपने आपको हवेली की कठोर परम्पराओं को स्वीकार करने तथा उनके अनुसार चलने में बहुत कठिनाई महसूस होती है जहाँ स्त्रियाँ पर्दा करती थीं। गीता स्वयं को एक विशाल हवेली में फंसा हुआ और पिंजरे में बन्द पक्षी की तरह महसूस करती है जहाँ हर समय वह खुद को औरतों से घिरी पाती है। हवेली में अपनी सासू माँ और दूसरी स्त्रियों के दोषारोपण के स्वभाव के कारण उसका जीवन आत्म-ग्लानि, सूनेपन और अत्यधिक परेशानियों से भरपूर बनकर रह गया है।
स्वतन्त्र तथा आधुनिक महिला होने के कारण गीता प्रारम्भ में हवेली के रूढ़िवादी संसार में अपना व्यक्तित्व बनाये रखने के लिये संघर्ष करती है परन्तु धीरे-धीरे हवेली की परम्पराओं की प्रशंसा करने लगती है और लोगों के प्यार मोहब्बत को स्वीकारने लगती है। गीता के प्रगतिशील विचार उसके पति के रूढ़िवादी परिवार से दो महत्वपूर्ण स्वीकृतियां प्राप्त कराने में उसकी सहायता करते हैं। ये स्वीकृतियाँ हैं – लड़की को शिक्षा का अधिकार चाहे वह किसी भी जाति की हो और अपनी बेटी की शादी का फैसला लेने में मां का अधिकार। इसका अर्थ था बाल-विवाह को रोकना जिसे परम्परा ने अनुमति दे रखी थी। गीता का अनुकूल स्वभाव, समझौता और सहनशीलता, आधुनिकता और परम्परा के बीच के संघर्ष को हल कर देता है। उसके पति और उसके रिश्तेदारों की देख-रेख और परवाह ने इस आपसी मेल-जोल को स्थापित करने में बड़ी सहायता की। गीता को अब हवेली का जीवन अच्छा लगता है। वह हवेली के लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित करती है और इसकी स्वामिनी बन जाती है।
विषय वस्तु (Theme) – इस उपन्यास में स्त्री की अन्तः संवेदना, प्राकृतिक लक्षण तथा स्त्रियों के अधिकार तथा स्वतन्त्रता के पक्षधरों की स्त्रियों की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता का रोचक ढंग से वर्णन किया गया है। उपन्यास की दूसरी विषय-वस्तु खामोशी (चुप रहने का गुण) तथा परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बनाना है। Inside the Haveli (हवेली के अन्दर) उपन्यास प्राचीन परम्परागत जीवन शैली को सरलता तथा कोमलता से वर्णित की गई एक सुन्दर रचना है। यह जागीरदारी समय से ही सामाजिक तथा आर्थिक आधार पर चली आ रही परम्परागत व्यवस्था का मनोरंजक वर्णन है। उपन्यास की विषय वस्तु न तो विजय है और न ही हार है। यह आधुनिकता तथा परम्परागत विचारधारा के मध्य द्वंद का लेखा-जोखा है।
Autobiographical Element
(आत्मकथात्मक तत्व)
उपन्यास रमा मेहता की तीव्र दृष्टि और आत्मकथा की एक संवेदनशील सुन्दर प्रस्तुति है। वह स्वयं भी खुले विचारों वाली पाश्चात्य सभ्यता में शिक्षित उदयपुर की रहने वाली लड़की है। वह उदयपुर में स्थित “जीवन निवास” नामक इस हवेली का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती है जो परम्पराओं से बंधी है और जिसमें रहकर वह उन प्रतिबन्धों एवं परम्पराओं का स्वयं अनुभव कर चुकी है। उदयपुर में जगत मेहता का ‘जीवन-निवास’ पारिवारिक घर है। गीता का विरोध, शनैः-शनैः बदलाव, हवेली के सदस्यों तथा उसकी परम्पराओं के बीच स्थापित किये गये सामंजस्यों का वर्णन काफी कुछ मेहता के व्यक्तिगत जीवन से मिलता-जुलता है। रमा मेहता अपने चित्रण के द्वारा, राजस्थान की संस्कृति एवं वहाँ की जीवन शैली को अपने उपन्यास के पात्रों द्वारा प्रस्तुत करती हैं।
Symbols and Symbolism
(प्रतीक एवं प्रतीकवाद)
हवेली मानसिक उत्पीड़न का प्रतीक है जो नारी की खामोशी का प्रतिनिधित्व करती है। हवेली के नियम भी वैसे ही कठोर हैं जैसे कि हवेली के पत्थर जो महिलाओं को सामाजिक सीमाओं के अन्दर रखते हैं। हवेली को इस प्रकार से बनाया । गया है कि बाह्य संसार विशेष अवसरों के अलावा परदे के पीछे की झलक भी नहीं पी सकता। यद्यपि परदा बड़ों के प्रति सम्मान का प्रतीक है परन्तु वास्तव में यह नियन्त्रण तथा बहिष्कार का प्रतीक है। हवेली आन्तरिक भावनाओं का ऐसा मुखोटा बना लेती है कि जो धरातल पर कोई भी असन्तुष्टि प्रकट नहीं करता। दीवार, जो उदयपुर को दो भागों (पुराना और नया शहर) में बाँटती है वह परम्परागत रीति रिवाजों तथा आधुनिकता को बाँटने का प्रतीक बन जाती है।
Characterization
(चरित्र-चित्रण)
यह वह विधि है जिसके द्वारा लेखक पाठकों के लिये अपने पात्रों का प्रतिबिम्ब तैयार करता है। पात्रों के व्यक्तित्व और उनके अन्य पात्रों पर प्रभाव को समझाने में यह पाठकों की सहायता करता है। इस विधि में पात्रों की शारीरिक बनावट का वर्णन, उनकी गतिविधि, अन्दरूनी विचार प्रतिक्रियाओं और बोलचाल शामिल होते हैं। रमा मेहता उनके मनोवैज्ञानिक पक्ष की अपेक्षा सामाजिक पक्ष पर अधिक ध्यान केन्द्रित करती हैं। उनके पात्रों का व्यवहार अपने सामाजिक नियमों और स्थिति के अनुसार होता है। वह अपने पात्रों के जीवन को अत्यन्त सावधानी तथा श्रेष्ठता से प्रस्तुत करती हैं।
Major Characters of the Novel
(उपन्यास के मुख्य पात्र)
1. गीता – गीता उपन्यास की मुख्य पात्र है। उपन्यास की सम्पूर्ण कहानी उसी के चारों ओर घूमती है। वह अजय सिंह की पत्नी है। वह शिक्षित, जीवन्त तथा प्रसन्नचित्त बम्बई की लड़की है जो हवेली की परम्पराओं, रीति-रिवाजों के प्रति अत्यधिक सचेत है जिनमें से अधिकांश को वह पसन्द नहीं करती है। शुरू-शुरू में हवेली की परम्पराओं के प्रति उसके हृदय में एक आन्तरिक संघर्ष दिखाई पड़ता है। परन्तु धीरे-धीरे जो प्रेम, देखभाल और अपनापन वह परम्पराओं से बंधी हवेली में अनुभव करती है उससे प्रभावित हो वह हवेली के जीवन की प्रशंसा करने लगती है और उसे स्वीकार कर लेती है। वह स्वयं को हवेली की जीवन शैली के अनुकूल बना लेती है और अन्त में उसकी मालकिन बन जाती है।
2. अजय सिंह – अजय सिंह भगवतसिंह जी का इकलौता पुत्र है। वह शिक्षित है और उदयपुर विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान विभाग में तदर्थ नियुक्ति पर कार्यरत है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक है और वह बम्बई के एक आधुनिक परिवार की लड़की गीता से विवाहित है। गीता उसकी संगिनी है और वह (अजय सिंह) अच्छी तरह से जानता है कि हवेली का अलग-थलग जीवन तथा सोच उसके लिये दु:खद है। वह अपने माता-पिता तथा जन्मभूमि के प्रति गहन लगाव रखता है। वह शुद्ध तथा सरल हृदयवाला शक्तिशाली व्यक्ति है।
3. भगवतसिंह जी – भगवत सिंह जी इस हवेली (जीवन निवास) के मालिक हैं। वे उदयपुर दरबार के जाने-माने मन्त्री संग्राम सिंह जी के पुत्र हैं। वह प्रतिष्ठित एवं विश्वसनीय पुरुष हैं। वह अजय सिंह के पिता तथा विजय और विक्रम के दादा हैं। उन्हें अपने चारों ओर प्रगतिशील विचारधारा का पूर्ण ज्ञान है। वे हवेली के स्वामी हैं तथा हवेली के सम्बन्ध में किसी भी मामले में निर्णय लेने का पूरा अधिकार रखते हैं। । 4. कन्वारानी-कन्वारानी सा भगवंत सिंह जी की पत्नी तथा गीता की सासू मां हैं। वह हवेली की मालकिन हैं और हवेली की शान-शौकत, रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं की रक्षक हैं। वह प्रत्येक नौकरानी और उनके बच्चों के लिये कोमल प्रेम रखती हैं तथा एक शक्तिशाली महिला हैं। वह गीता (पुत्र-वधू) को बहुत प्रेम करती हैं तथा उसे हवेली के बारे में सब कुछ बताती हैं।
Minor Characters
(गौण-पात्र)
- संग्राम सिंह जी – वह भगवत सिंह जी के पिता और अजय सिंह के दादा थे। वह उदयपुर के राणा के दरबार में मन्त्री थे तथा दरबार के रत्न माने जाते थे। उनकी पत्नी माया सा हैं।
- गोपाल सिंह जी – गोपाल सिंह जी कन्वारानी सा के भाई हैं जो बीमार हैं और बीमारी के कारण उनके तीन बेटों के बीच सम्पत्ति वितरण का विवाद है। उनकी बहन समस्या को हल कर देती है।
- विजय बाई सा – विजय बाई सा अजय सिंह और गीता की पुत्री हैं। वह प्यारी और सभी का ध्यान रखने वाली बच्ची है और सभी उसको प्यार करते हैं। लक्ष्मी की पुत्री गीता उसकी सहेली है और साथ-साथ खेलती है।
- नन्दू बाई सा – नन्दू बाई सा गीता की बुआ सास और भगवत सिंह जी की बहन है। वह प्रायः हवेली में आती रहती है।
- कान्ता बाई-सा – कान्ता बाई-सा भगवत सिंह जी की विधवा भतीजी है। वह उपन्यास में सदा नन्दू बाई सा और मानजी बाई के साथ दिखाई देती हैं।
- मानजी बाई सा – मानजी बाई सा भगवत सिंह जी की निकट सम्बन्धी हैं।
- परी – परी हवेली की सबसे पुरानी और वरिष्ठतम नौकरानी है। वह कठोर परिश्रमी, व्यवहार कुशल तथा हवेली के प्रति समर्पित है। उसने हवेली की सेवा पैंतालिस साल तक की है और परिवार में अपने लिए एक विशेष स्थान बनाए हुए है। हर कोई उसका सम्मान करता है गीता (हवेली की पुत्र वधू) सदा उसके चरण स्पर्श करती है। वह कन्वारानी सा की व्यक्तिगत सेविका है। और हवेली के प्रत्येक क्रिया-कलाप से जुड़ी दिखाई देती है।
- सरजू – सरजू एक धाय मां (प्रसव-सहायिका) है। लक्ष्मी के जब एक बच्ची का जन्म होता है तो वह हवेली में दिखाई देती है। वह हवेली में शुभ अवसरों पर ही आती है।
- धापू – धापू हवेली के छोटे-मोटे काम करती है। वह गीता की मुख्य सेविका, मित्र और मार्गदर्शक है। वह उसे (गीता को) पुत्र-वधू से अपेक्षित हवेली के शिष्टाचार सिखाती है। धापू छोटे कद की सुन्दर, शान्त, समझदार एवं चतुर महिला है। गीता को उसका साथ संग अच्छा लगता है।
- ख्याली – ख्याली हवेली का रसोईया है। वह हवेली के अन्य नौकरों की अपेक्षा धनी है और उन्हें ऊँची ब्याज दर पर पैसा उधार देता है। वह घमण्डी हृदय का कठोर एवं समझदार व्यक्ति है।
- लक्ष्मी – लक्ष्मी नौकरानी है। जब उसका पति उस पर व्यभिचारिणी होने का आरोप लगाता है तो वह हवेली के रूढ़िवादी वातावरण से डरकर भाग जाती है। दुर्भाग्यवश वह एक अनचाही भयंकर स्थिति में पहुँच जाती है और उस पर कुलटा होने का तमगा लग जाता है।
- गोपी बाई, चम्पा बाई, भटयानिजी एवं गंगा – ये सभी सेविकाएं हवेली के घरेलू कार्यों में सहायता करती है।
- अर्जुन – अर्जुन भविष्य बताने वाला ज्योतिषी है और गोपा जी के नाम से प्रसिद्ध है। वह ढोंगी व्यक्ति है और अपनी भविष्यवाणियों के द्वारा यह दिखाना चाहता है कि वह ईश्वरीय शक्तियों का स्वामी है।
- दौलत सिंह जी – दौलत सिंह जी उदयपुर में अत्यन्त प्रतिष्ठित एवं आदर्श व्यक्ति हैं। वह नगर की विशालतम हवेली के स्वामी हैं। वह अपनी हवेली को बहुत अच्छी दशा में बनाये रखते हैं। दौलत सिंह जी अपने पुत्र वीर सिंह का विवाह गीता की पुत्री विजय के साथ सम्पन्न करवाना चाहते हैं। अतः उनकी पत्नी समय-समय पर भगवत सिंह जी की हवेली जाती रहती है।
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