Rajasthan Board RBSE Class 12 English Literature Literary Terms
Syllabus of Literary Terms :
- Metaphysical Poetry
- Impressionism
- Stream of consciousness
- Interior Monologue
- Anglo Indian Literature
- Indo-Anglian Literature
The two out of four terms are to be attempted. 2 x 3 = 6 Marks
1. Metaphysical Poetry :- In 17th Century, the term-‘Metaphysical Poetry’ was first used as a contempt against the poetry of John Donne, Abraham Cowley and Andrew Marwell, etc. by Dr Samuel Johnson. It denotes the habitual deviation from naturalness of thought and style, for novelty and quaintness by these poets. Their wish was to say what they hoped had never been said before. They enjoyed in display of wit, far fetched images, hyperbole and conceits. Metaphysical poets wrote love poems that exhibited their cynical attitude towards fair sex, joys of conjugal love and Platonic love too. In 20th Century, T.S Eliot revived Metaphysical poetry by calling it fruit of passionate thinking. He wrote- “A thought to Donne was an experience” and admired their talent by saying – “The figure of speech is elaborated to the farthest stage to which ingenuity can carry it in metaphysical poet.”
आध्यात्मिक काव्य :- 17वीं शताब्दी में ‘आध्यात्मिक काव्य’ (Metaphysical Poetry) शब्द का प्रयोग सबसे पहले Dr Samuel Johnson द्वारा John Donne, Abraham Cowley व Andrew Marwell आदि के काव्य के विरुद्ध एक तिरस्कार के रूप में किया गया था। यह इन कवियों द्वारा अपने काव्य (poetry) में नवीनता व अनोखापन लाने के उद्देश्य से विचार व शैली की स्वाभाविकता से आदतन विचलित होने (हटने) को इंगित करता है। उन्होंने यह कल्पना की कि वे अपने काव्य के माध्यम से ऐसा कुछ कहें जो पहले कभी न कहा गया हो। उन्हें बुद्धि, क्लिष्ट प्रतिबिम्बों, अतिशयोक्ति और अपने अहंकार भरे विचारों के प्रदर्शन में आनन्द आता था। आध्यात्मिक कवियों ने प्रेम पर आधारित कविताएँ लिखीं जो स्त्रियों, वैवाहिक प्रेम व दार्शनिक प्रेम के प्रति उनके विचित्र व्यवहार को प्रदर्शित करती हैं। 20वी शताब्दी में T.S. Eliot ने आध्यात्मिक काव्य को अत्यधिक उत्साही सोच का परिणाम (फल) कहकर इसे पुनर्जीवित किया। उन्होंने लिखा कि – “Donne के लिये विचार एक अनुभव था।” और यह कहते हुए उनकी (Metaphysical Poets की) प्रशंसा की-, “आध्यात्मिक कवियों द्वारा अपनी प्रतिभाशालता या वाग्विदग्धता के फलस्वरूप अपनी कविता में अलंकारों का सावधानीपूर्वक बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया।”
2. Impressionism :- Impressionism is a 19th Century art movement originated with a group of Paris based artists who faced harsh criticism from the conventional art community. Such artists violated the rules of academic painting, painted realistic scenes of modern life and often painted outdoors in their consistent pursuit of an art of spontaneity, sunlight and colour. The term ‘Impressionism’ has also been used to describe works of literature in which a few select details suffice to convey the sensory impressions of an incident or scene. Impressionist literature is closely related to symbolism. Authors such as Virginia Woolf, D.H Lawrence and Joseph Conrad have written works that are impressionistic in the way they describe rather than interpret the impressions, sensations and emotions that constitute a character’s mental life.
प्रभाववाद :- प्रभाववाद 19वीं शताब्दी का एक कला आन्दोलन है जिसे पेरिस के कलाकारों के एक समूह द्वारा आरम्भ किया गया था। ये वे कलाकार थे जिन्होंने रूढ़िवादी कला सम्प्रदाय द्वारा कड़ी आलोचना का सामना किया था। ऐसे कलाकारों ने शैक्षिक पेंटिंग के नियमों का उल्लंघन किया था, आधुनिक जीवन के वास्तविक दृश्य चित्रित किये थे और वास्तविक कला (स्वाभाविक/प्राकृतिक), सूरज की रोशनी और रंग (रंगों) की कला के अपने निरन्तर प्रयास में वे अधिकांशतः बाहर ही (outdoor) चित्रकारी करते थे।
Impressionism (प्रभाववाद) शब्द का प्रयोग उस साहित्यिक लेखन (कार्य) के बर्णन हेतु भी किया जाता रहा है जिसमें कि किसी घटना या दृश्य के ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्धित प्रभावों को अभिव्यक्त करने के लिये कुछ महत्वपूर्ण विवरण ही (details) पर्याप्त होता है । प्रभाववादी साहित्य का प्रतीकात्मकता (symbolism) के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। Virginia Woolf, D.H. Lawrence, और Joseph Conrad जैसे लेखकों ने ऐसा लेखन किया है (इस प्रकार की रचनाएं लिखी हैं) जो किसी पात्र के मानसिक जीवन को बनाने वाली अभिव्यक्तियों, उत्तेजनाओं व संवेगों की व्याख्या करने के बजाय उनका वर्णन करने के तरीके (ढंग) के कारण प्रभाववादी (impressionistic) है।
3. Stream of Consciousness :- The term “Stream of Consciousness” first came about in 1890 when the philosopher and psychologist William James used it in his book, “The Principles of Psychology”. He used it to describe the natural flow of thoughts that, even while the different parts are not necessarily connected. May Sinclair was the first person in 1918 to adapt the definition of ‘stream of consciousness’ to literature. In other words, ‘stream of consciousness’ is a literary technique that presents the thoughts and feelings of a character as they occur. Sometimes this device is also called “interior mono logue”.
चेतना का प्रवाह :- Stream of Consciousness (चेतना का प्रवाह) शब्द पहली बार लगभग 1890 में उस समय प्रयोग में आया जब दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने इसे अपनी पुस्तक ‘The Principles of Psychology’ (मनोविज्ञान के सिद्धान्त) में प्रयोग किया। उन्होंने इसका प्रयोग विचारों के स्वाभाविक प्रवाह, वह भी तब जबकि विभिन्न भाग (विचारों के विभिन्न भाग) आवश्यक रूप से सम्बद्ध नहीं हों, का वर्णन करने के लिये किया। May Sinclair प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने 1918 में साहित्य में Stream of Consciousness की परिभाषा को अनुकूलित किया। दूसरे शब्दों में Stream of Consciousness एक साहित्यिक तकनीक (विद्या) है जो कि पात्र के विचारों व भावनाओं को उस प्रकार प्रस्तुत करती है जिस प्रकार वे घटित होते हैं। कभी-कभी इस विद्या या तकनीक को आन्तरिक एकालाप” भी कहा जाता है।
4. Interior Monologue :- Interior Monologue, in Dramatic or Non-dramatic fiction, is the narrative technique that exhibits thoughts passing through the mind of the protagonist. These expressions may be either loosely related impressions, free associations or more rationally structured sequence of thoughts and emotions. Interior Monologue includes dramatized inner conflicts, self-analysis, imagined dialogues and rationalizations. It may be direct first person expression of a character who is free from control of the author. It may also be a third person treatment that begins with a phrase such as- “he thought…”
The term ‘Interior Monologue’ is often used interchangeably with ‘stream of consciousness’. But while an ‘interior monologue’ may mirror all the half thoughts, impressions and associations that impinge upon the character’s consciousness. It may also be restricted to an organized presentation of that character’s rational thoughts. It is closely related to soliloquy and dramatic monologue and has become a characterstic device of 20th century psychological novel.
आन्तरिक एकालाप :- नाटकीय या गैर-नाटकीय काल्पनिक उपन्यासों में आन्तरिक एकालाप अभिव्यक्ति की वह तकनीक (विद्या) है जो मुख्य पात्र (protagonist) के दिमाग में चल रहे विचारों को प्रदर्शित करती है। ये अभिव्यक्तियाँ या तो हल्की-फुल्की सम्बन्धित अभिव्यक्तियां, मुक्त सम्बद्धताऐं या फिर विचारों व संवेगों की अधिक तार्किक क्रमबद्धता हो सकती हैं। । आन्तरिक एकालाप में शामिल हैं-नाटकीकृत अन्तर्द्वन्द्व, आत्म-विश्लेषण, काल्पनिक संवाद और तार्किकता। यह किसी ऐसे पात्र की सीधी first person में अभिव्यक्ति हो सकती है जो कि लेखक के नियंत्रण से मुक्त हो। यह एक third person में अभिव्यक्ति भी हो सकती है जो कि “उसने सोचा”…..जैसे वाक्यांश से आरम्भ हो सकती है।
‘Interior Monologue’ शब्द का प्रयोग बहुत बार ‘Stream of Consciousness’ के स्थान पर भी किया जाता है। लेकिन एक आन्तरिक एकालाप उन सभी अधूरे विचारों, प्रभावों व सम्बद्धताओं को प्रतिबिम्बित कर सकता है जो पात्र की चेतना या मस्तिष्क पर प्रभाव डालते हैं। इसे उस पात्र के तार्किक विचारों के संगठित प्रस्तुतीकरण तक भी सीमित किया जा सकता है। यह स्वगत कथन (स्वगत भाषण) और नाटकीय एकालाप से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है और 20 वीं शताब्दी के मनोवैज्ञानिक उपन्यास की एक विशेष तकनीक बन चुका है।
5. Anglo-Indian Literature :- Strictly speaking, Anglo-Indian literature is a branch of English literature produced by Englishmen who lived in India at least for some time. It is the literature of the Empire— a product of British encounter with India. To put it in simple words, Anglo-Indian literature is the outcome of the two different cultures that of the East and the West-come into contact. E.F. Oaten has observed regarding the main themes of Anglo-Indian literature – ‘The first is the ever present sense of exile; the second, an interest in Asiatic religions; the third consists of the humorous sides of Anglo-Indian official life; the fourth is Indian native life and scenery’.
Anglo-Indian literature had its greatest author in Rudyard Kipling (1865-1936) who also received Nobel Prize for literature. The first few decades of Twentieth Century can be considered as the golden age of Anglo-Indian Literature. However, Anglo-Indian literature died its natural death with the independence of India. Works on India may still be written by the British authors but they can no longer be considered as Anglo-Indian Literature.
आंग्ल-भारतीय साहित्य :- सही रूप से कहें तो आंग्ल-भारतीय साहित्य उन लेखकों के द्वारा बनाई गयी अंग्रेजी साहित्य की एक शाखा है जो अंग्रेज लेखक कम से कम कुछ समय तक (तो) भारत में रहे। यह साम्राज्य का साहित्य हैभारत के साथ अंग्रेजी मुकाबले का एक उत्पाद । साधारण शब्दों में कहें तो आंग्ल-भारतीय साहित्य दो भिन्न संस्कृतियों पूरब व पश्चिम के सम्पर्क का परिणाम है। E.F. Oaten ने आंग्ल-भारतीय साहित्य की मुख्य विषय-वस्तु के सम्बन्ध में लिखा है- “प्रथम है सर्वदा उपस्थित रहने वाले निर्वासन का भाव; दूसरा है एशियाई धर्मों में रुचि, तीसरा आंग्ल-भारतीय आधिकारिक जीवन का हास्यास्पद पक्ष (पहलू) और चौथा है भारतीय सहज (देशी/स्वाभाविक) जीवन के प्राकृतिक दृश्य ।
आंग्ल-भारतीय साहित्य के महान लेखक थे Rudyard Kipling (1865-1936) जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी मिला। 20 वीं शताब्दी के आरम्भिक कुछेक दशकों को आंग्ल-भारतीय साहित्य का स्वर्णकाल भी माना जा सकता है। आंग्ल-भारतीय साहित्य का भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ स्वाभाविक अन्त (end) हो गया। भारत पर लेखन कार्य अब भी अंग्रेज लेखकों (ब्रिटिश लेखकों) द्वारा किया जा सकता है लेकिन अब उनके लेखन को आंग्ल-भारतीय साहित्य नहीं माना जा सकता है।
6. Indo-Anglian Literature :- Indo-Anglian Literature or Indian English Literature is a specific term that refers to the works of writers in India who write in English. Its early history began with the writers like R.K. Narayan, Mulk Raj Anand, Raja Rao, Nissim Ezekiel, A.K. Ramanujan, Girish Karnad etc. who wrote in English language. It is also associated with the works of members of Indian diaspora such as V.S. Naipaul, Kiran Desai, Jhumpa Lahiri, Salman Rushdie etc. The term Indo-Anglian literature should not be confused with the term Anglo-Indian Literature, which is a branch of English literature produced by Englishmen who lived in India, even if for a short while.
(diaspora (डाइएस्पर) = Writers of Indian origin living abroad)
भारतीय-आंग्ल साहित्य :- भारतीय-आँग्ल साहित्य या भारतीय अंग्रेजी साहित्य एक विशेष शब्दावली है जो भारत में उन लेखकों के लेखन को इंगित करती है जो अंग्रेजी में लिखते हैं । इसका आरम्भिक इतिहास R.K. Narayan, Mulk Raj Anand, Raja Rao, Nissim Ezekiel, A.K. Ramanujan, Girish Karnad आदि लेखकों से आरम्भ होता है। जिन्होंने अंग्रेजी भाषा में लिखा। यह भारतीय समुदाय (भारतीय मूल के लेखक जो अन्य देशों में रहते हैं) के सदस्यों जैसे V.S. Naipaul, Kiran Desai, Jhumpa Lahiri, Salman Rushdie आदि के लेखन से भी सम्बद्ध है। भारतीय-आंग्ल साहित्य (Indo-Anglian Literature) व आंग्ल-भारतीय साहित्य (Anglo-Indian Literature) में कोई भ्रम (confusion) नहीं होना चाहिये। आंग्ल-भारतीय साहित्य अंग्रेजी साहित्य की एक शाखा है जिसे उन अंग्रेजी लेखकों ने जन्म दिया जो बहुत थोड़े समय के लिये ही सही पर भारत में रहे।
RBSE Class 12 English Literature Literary Terms Examination Type Questions
Question 1.
What do you understand by Metaphysical Poetry ?
अध्यात्मिक काव्य से आप क्या समझते हैं?
Answer:
The term “Metaphysical Poetry” was first used by Dr Samuel Johnson. The hallmark of metaphysical poetry is the metaphysical conceit, a reliance on intellectual wit, learned imagery and subtle argument. The metaphysical poets infused new life into English poetry by the freshness and originality of their approach.
Metaphysical Poetry (आध्यात्मिक काव्य) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सैम्युअल जॉनसन के द्वारा किया गया था। आध्यात्मिक काव्य की विशेषता है आध्यात्मिक दम्भ, बौद्धिक कौशल पर विश्वास, विद्वत्तापूर्ण कल्पनाशक्ति और सटीक तर्क। आध्यात्मिक कवियों ने ताजगी व अपने मौलिक दृष्टिकोण के द्वारा अंग्रेजी काव्य को एक नया जीवन प्रदान किया।
Question 2.
What is the role of ‘Metaphysical Poetry’ in English Lieterature ?
अंग्रेजी साहित्य में ‘आध्यात्मिक काव्य’ की क्या भूमिका है?
Answer:
Metaphysical poetry investigates the relation between rational, logical argument on the one hand, and intuition or “mysticism” on the other, often depicted with sensuous details. The metaphysical poets reacted against the deliberately smooth and sweet tones of 16th century verse. And they adopted a style that is energetic, uneven, and rigorous. T.S. Eliot argued that their work fuses reason with passion.
आध्यात्मिक काव्य एक ओर तार्किक तत्व वे दूसरी ओर अन्तर्ज्ञान या रहस्यवाद के बीच सम्बन्ध का पता लगाता है, इसका चित्रण अधिकांशतः इन्द्रियजनित विवरण के साथ किया जाता है। आध्यात्मिक कवियों ने 16वीं शताब्दी के काव्य में विचारपूर्ण तरीके (सोच समझ कर किये गये तरीके) से प्रयुक्त की गयी सरल व मधुर लयों के विरुद्ध प्रतिक्रिया की। और उन्होंने काव्य की ऐसी शैली को अपनाया जो ऊर्जायुक्त, विलक्षण (uneven) और कठिन है। T.S. Eliot का तर्क था कि उनका (आध्यत्मिक कवियों का).लेखन तर्क को उनके अति उत्साह या passion से जोड़ता है।
Question 3.
What do you know about the nature of ‘Metaphysical Poetry’ ?
आध्यात्मिक काव्य के स्वभाव के विषय में आप क्या जानते हैं?
Answer:
Metaphysical poets use ordinary speech mixed with metaphors, puns, and paradoxes. Complicated terminologies often drawn from science or law are used in abundance. Often poems are presented in the form of an argument.
आध्यात्मिक कवि रूपक, श्लेष व विरोधाभास मिश्रित साधारण भाषण या वक्तव्यों का प्रयोग करते हैं। विज्ञान या कानून के क्षेत्र से ली गई जटिल शब्दावलियों का प्रयोग काफी अधिक होता है। अधिकांशत: कविताएँ तार्किक बहस के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं।
Question 4.
What are the special traits of ‘Impressionistic Literature’?
प्रभाववादी साहित्य के क्या विशेष गुण (विशेषताएँ) हैं?
Answer:
The special traits of Impressionistic Literature are :
प्रभाववादी साहित्य की विशेषताएँ हैं –
(a) Narrative style and ambiguous meanings are the hallmarks of impressionistic literature.
वर्णनात्मक शैली व अस्पष्ट शब्दावली प्रभाववादी साहित्य की अति विशिष्ट विशेषताएँ हैं।
(b) Impressionistic poets often describe the action through the eyes of the character while the events are occuring. They don’t provide minute details. All of the details seem unclear.
जब घटनाएँ घटित होती हैं तो प्रभाववादी कवि उस घटना का वर्णन अक्सर पात्र की आँखों के माध्यम से ही करते हैं। वे उनका पूर्णरूप से (संक्षिप्त से संक्षिप्त विवरण सहित) ब्यौरा नहीं देते हैं। सारी ब्यौरा (वर्णन) अस्पष्ट सा लगता है।
(c) These poets often avoid chronological telling of events. Instead, they give the readers information in a way that forces them to focus on how and why things happen.
ये कवी अधिकांशतः घटनाओं के क्रमबद्ध वर्णन से बचते हैं। इसके बजाय वे पाठकों को घटनाओं की सूचना इस प्रकार देते हैं कि वह उन्हें इस पर ध्यान केन्द्रित करने को बाध्य करती है कि घटनाएँ कैसे और क्यों होती हैं।
Question 5.
Define ‘Stream of Consciousness’? How is it different from ‘dramatic monofogue’ or ‘soliloquy’ ?
‘Stream of Consciousness’ की परिभाषा दीजिये। यह ‘नाटकीय एकालाप’ या ‘स्वगत भाषण’ (स्वगत कथन) से किस प्रकार भिन्न है?
Answer:
‘Stream of Consciousness’ is a method of narration that describes in words the flow of thoughts in the mind of the character. It is different from the dramatic monologue or soliloquy, where the speaker addresses the audience or the third person.
चेतना का प्रवाह वर्णन की एक शैली है, जो कि पात्रों के मस्तिष्क में चल रहे विचारों के प्रवाह का शब्दों में वर्णन करती है। यह नाटकीय एकालाप या आत्म-भाषण से भिन्न है जहाँ कि, वक्ता श्रोताओं को या third person को सम्बोधित करता है।
Question 6.
What is the use or significance of ‘stream of consciousness’ in literature ?
साहित्य में ‘stream of consciousness’ का क्या उपयोग या महत्व है?
Answer:
Authors use ‘Stream of Consciousness’ to more closely follow a character’s interior life. It gives a direct view into the subtle and sometimes rapid shifts in the way a character thinks while going about his or her day. It provides a very intimate relationship between the reader and the character.
लेखक ‘stream of consciousness’, अर्थात् चेतना के प्रवाह का प्रयोग किसी पात्र के आन्तरिक जीवन को अधिक नजदीक से देखने के लिये करते हैं। यह किसी पात्र (चरित्र) के विषय में एक सीधा दृश्य सूक्ष्म रूप में या कभी-क़भी तीव्र रूप में जैसा कि कोई पात्रे (चरित्र) सोचता है, प्रदान करता है। यह ‘stream of consciousness’ पाठक व पात्र के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करता है।
Question 7.
Define ‘Interior Monologue’ and also explain its types.
‘आन्तरिक एकीलाप’ की परिभाषा लिखिये और इसके प्रकारों का भी वर्णन करिये।
Answer:
In both fiction and non-fiction, an interior monologue is the expression of a character’s thoughts, feelings, and impressions in a narrative. An interior monologue may be either direct or indirect. Direct – In which the author seems not to exist and the interior self of the character is given directly. Indirect – In which the author serves as selector, presenter, guide, and commentator.
काल्पनिक और अकाल्पनिक दोनों ही उपन्यासों में आन्तरिक एकालाप किसी पात्र (चरित्र) के विचारों, भावनाओं और किसी वर्णन में उसके प्रभावों का प्रस्तुतीकरण होता है। एक आन्तरिक एकालाप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो सकता है। प्रत्यक्ष- प्रत्यक्ष आन्तरिक एकालाप वह होता है जिसमें कि लेखक की उपस्थिति नजर नहीं आती बल्कि चरित्र का आन्तरिक स्व (आत्म) सीधा सामने होता है। अप्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष आन्तरिक एकालाप वह होता है जिसमें लेखक चयनकर्ता, प्रस्तुतकर्ता, मार्गदर्शक, और। उद्घोषक का कार्य करता है।
Question 8.
Write a note on – Indo-Anglian Literature.
भारतीय-आंग्ल साहित्य पर एक टिप्पणी लिखिये
Or
Question 9.
What do you know about Indo-Anglian Literature ?
भारतीय-आंग्ल साहित्य के विषय में आप क्या जानते हैं?
Answer:
Indo-Anglian Literature or Indian English Literature is a specific term that refers to the works of Indian writers who write in English. Such writers are R. K. Narayan, Mulk Raj Anand, Raja Rao, Nissim Ezekiel, A.K. Ramanujan, Girish Karnad etc. It is also associated with the works of members of Indian diaspora (writers of Indian origin living abroad) like V.S. Naipaul, Kiran Desai, Jhumpa Lahiri, Salman Rushdie etc.
भारतीय-आंग्ल साहित्य या भारतीय अंग्रेजी साहित्य एक विशेष शब्द है जो उन भारतीय लेखकों के कार्य को इंगित करता है जो अंग्रेजी में लिखते हैं। ऐसे लेखक हैं- R. K. Narayan, Mulk Raj Anand, Raja Rao, Nissim Ezekiel, A.K. Ramanujan, Girish Karnad आदि। यह भारतीय समुदाय ( भारतीय मूल के अन्य देशों में रह रहे लेखक) के लेखकों के लेखन से भी सम्बद्ध है जैसे – V. S. Naipaul, Kiran Desai, Jhumpa Lahiri, Salman Rushdie hifci
Question 10.
Write a note on Anglo-Indian Literature.
आंग्ल-भारतीय साहित्य पर एक टिप्पणी लिखिये।
Or
Question 11.
What do you know about Anglo-Indian Literature ?
आंग्ल-भारतीय साहित्य के विषय में आप क्या जानते हैं?
Answer:
Anglo-Indian Literature is a branch of English Lieterature. It was produced by Englishmen who lived in India at least for some time. It is the outcome of the fusion of two different cultures– the East and the West. The first few decades of 20th century can be considered as the golden period of Anglo-Indian Literature. It came to an end with the independence of India.
आंग्ल-भारतीय साहित्य अंग्रेजी साहित्य की एक शाखा है। इसने उन अंग्रेज लेखकों ने जन्म दिया जो कुछ समय के लिये ही सही मगर भारत में रहे। यह (शाखा) दो भिन्न संस्कृतियों- पूरब और पश्चिम के मिलन का परिणाम है। 20वीं शताब्दी के आरंभिक कुछ दशकों को आंग्ल भारतीय साहित्य का स्वर्णिम काल माना जा सकता है। भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ इसका अन्त हो गया।
Question 12.
Write the difference between ‘Indo-Anglian Literature’ and ‘Anglo-Indian Literature’.
‘Indo-Anglian Literature’ तथा ‘Anglo-Indian Literature’ में अंतर स्पष्ट कीजिए।
Answer:
‘Indo-Anglian Literature’ or ‘Indian English Literature’ refers to the works of Indian writers who write in English. Such writers are R.K. Narayan, Mulk Raj Anand, Raja Rao, A.K. Ramanujan, Nissim Ezekiel etc. It also refers to the writers of Indian origin living abroad like Kiran Desai, Salman Rushdie etc. The term ‘Indo-Anglian Literature’ should not be confused with the term ‘AngloIndian Literature’ which is a branch of English Literature. It was produced by Englishmen who lived in India even if for a short while. Rudyard Kipling is the best example of such writers.
‘Indo-Anglian Literature या ‘Indian English Literature’ का आशय भारत के उन लेखकों की रचनाओं से है जो English में लिखते हैं। इस प्रकार के लेखकों में प्रमुख हैं- R. K. Narayan, Mulk Raj Anand, Raja Rao, A.K. Ramanujan, Nissim Ezekeil 54 proglasit got 371914 37 ata लेखकों से भी है जो विदेशों में रहते हैं जैसे Kiran Desai, Salman Rushdie आदि। ‘Indo Anglian Literature’ को कभी भी ‘Anglo-Indian Literature’ को मानने की भूल नहीं करनी चाहिए जो कि अंग्रेजी साहित्य की एक शाखा है। ‘Anglo-Indian Literature’ उन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया है जो चाहे थोड़े ही समय के लिए सही, पर भारत में रहे हों। इस प्रकार के लेखकों में Rudyard Kipling का उदाहरण सर्वश्रेष्ठ है।
Question 13.
How did Impressionism become an art movement of the 19th century ?
प्रभावाद 19वीं शताब्दी का एक कला आन्दोलन कैसे बन गया?
Answer:
Impressionism is a style of art that depicts the visual impression of a moment or mood. Some Paris based artists painted realistic scenes of modern life. They often painted out-doors in their consistent pursuit of an art of spontaniety, sunlight and colour. In doing so, they violated the rules of academic painting. As a result of it, they had to face harsh criticism from the conventional art community. Hence “Impressionism” emerged as an art movement.
प्रभाववाद कला का एक ऐसा तरीका है जिसमें किसी क्षण (या क्षणों) अथवा मनोदशा (मन के भाव/भावों) को दृश्य के रूप में चित्रित किया जाता है। पैरिस के कुछ कलाकारों ने आधुनिक जीवन के वास्तविक दृश्य चित्रित किये। वे वास्तविक कला (स्वाभाविक/प्राकृतिक), सूरज की रौशनी, और रंग (रंगों) की कला के अपने सतत प्रयास में अधिकांशतः खुले में (outdoor) ही चित्रकारी करते थे। ऐसा करते हुऐ उन्होंने शैक्षिक पेंटिंग (चित्रकारी) के नियमों का उल्लंघन किया। इसके परिणामस्वरूप उन्हें पारम्परिक कला सम्प्रदाय के लोगों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। अतः प्रभाववाद एक कला आन्दोलन के रूप में सामने आया।
Question 14.
When was the term ‘Stream of Consciousness’ used for the first time?
‘चेतना का प्रवाह’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कब किया गया?
Answer:
The term ‘Stream of Consciousness’ was first used by the philosopher and psychologist William James in 1890 in his book, “The Principles of Psychology.” After that May Sinclair was the first person who used the definition of ‘Stream of Consciousness’ in literature in 1918.
‘चेतना का प्रवाह’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स द्वारा 1890 में उनकी पुस्तक ‘The Principles of Psychology’ (मनोविज्ञान के सिद्धान्त) में किया गया। इसके बाद May Sinclair वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने 1918 में ‘चेतना के प्रवाह’ की परिभाषा को साहित्य में प्रयोग किया।
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