Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 यात्रा: एक पावन तीर्थ की (यात्रावृत्त)
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
इण्डियन बेस्टिल के नाम से प्रसिद्ध है
(क) रॉस द्वीप
(ख) सेल्यूलर जेल
(ग) पोर्ट ब्लेयर
(घ) वाईपर द्वीप
उत्तर:
(ख) सेल्यूलर जेल
प्रश्न 2.
सेल्यूलर जेल में किस स्वतंत्रता सेनानी ने यातनाएँ सहीं?
(क) वीर सावरकर
(ख) भगत सिंह
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले।
उत्तर:
(क) वीर सावरकर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अण्डमान निकोबार द्वीप समूह का क्षेत्रफल बताइये।
उत्तर:
अण्डमान निकोबार द्वीप समूह का कुल क्षेत्रफल 8249 वर्ग किलोमीटर है।
प्रश्न 2.
कौन-सा द्वीप खण्डहरों का द्वीप बनकर रह गया है?
उत्तर:
रॉस द्वीप खण्डहरों का द्वीप बनकर रह गया है।
प्रश्न 3.
किस द्वीप का चित्र भारत सरकार के बीस रुपये के नोट पर अंकित किया गया?
उत्तर:
वाईपर द्वीप का चित्र भारत सरकार के बीस रुपये के नोट पर अंकित किया गया है।
प्रश्न 4.
सेल्यूलर जेल की कोटड़ियों की बनावट कैसी है?
उत्तर:
सेल्यूलर जेल की कोटड़ियों की बनावट एकान्त जेल के समान है।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रॉस द्वीप के विषय में गाइड ने क्या बताया?
उत्तर:
गाइड ने बताया कि ब्रिटिश शासन के समय रॉस द्वीप अण्डमान तथा निकोबार द्वीप की राजधानी थी। उनके सभी सरकारी कार्यालय इसी द्वीप पर स्थित थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यह द्वीप जापानियों के अधीन भी रहा। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाषचन्द्र बोस ने इसी द्वीप पर सबसे पहले जापानी जनरल से भेंट की। जापानियों ने जब इस द्वीप को छोड़ा तब उन्होंने इस द्वीप को तहस-नहस कर दिया था।
प्रश्न 2.
चॉथम सॉ मिल की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
चॉथम सॉ मिल समुद्री किनारे पर स्थित एवं जंगल से जुड़ी एशिया की सबसे बड़ी सॉ (लकड़ी काटने वाली) मिल है। इस मिल में मूल्यवान लकड़ी से लेकर साधारण लकड़ी की कटाई आधुनिक मशीनों से होती है। विभिन्न आकार में कटी हुई लकड़ियों को रखने के लिए बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं। इस मिल में एक छोटा-सा म्यूजियम भी है। चॉथम सा मिल से लकड़ी मकान बनाने के लिए पूरे अण्डमान द्वीप एवं भारत के विभिन्न प्रान्तों में जाती है।
प्रश्न 3.
पठान शेर अली को फाँसी क्यों दी गई?
उत्तर:
पठान शेर अली ने 8 फरवरी 1872 ई. को वाईसराय लार्ड मेयो की हीपटाऊन जेट्टी पर चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी, इस अपराध के लिए पठान शेर अली को 30 मार्च 1982 ई. को फाँसी दे दी गई।
प्रश्न 4.
सेल्यूलर जेल को लेखक ने पावन मंदिर क्यों कहा है?
उत्तर:
सेल्यूलर जेल ब्रिटिश शासन काल का वह स्थान था, जहाँ पर ब्रिटिश सरकार भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी नामक सजा के तौर पर भेजती थी। यह उन महान स्वाधीनता सेनानियों का निवास स्थान रही, जिन्होंने अपनी राष्ट्र भक्ति और स्वतंत्रता पाने की लगन और लालसा से अंग्रेज सरकार को भयभीत किया। वे महान राष्ट्रप्रेमी थे, अंग्रेजों के अत्याचार सहते हुए देश पर शहीद हो गए, किन्तु कभी भी हार नहीं मानी। इसलिए लेखक ने इसे पावन मंदिर कहा है।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सेल्यूलर जेल में स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिये।
उत्तर:
सेल्यूलर जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को जिन कोटड़ियों में कैद करके रखा जाता था, वह अपने आप में एक एकान्त डेल के समान थीं। इन कोटड़ियों में शौच और मूत्र त्याग के लिए अलग से स्थान नहीं था। अतः रात्रि में शौच लगने या पेट खराब होने की दशा में उन्हें अपनी कोटड़ियों में ही शौच त्याग करना पड़ता था, जिससे कोटड़ी दुर्गन्ध से भर जाती थी। बीमार होने की दशा में भी उनके साथ बहुत अधिक सख्ती बरती जाती थी। डॉक्टरी जाँच से पहले उन्हें जेल के खूखार जेलर मिस्टर बेरी से आज्ञा लेनी पड़ती थी। स्वाधीनता सेनानियों को प्रतिदिन नारियल या सरसों का तेल भी निकालना पड़ता था। उन्हें कोल्हू में बैल के स्थान पर बाँधा जाता था और वे कोल्हू चलाकर तेल निकालते थे। बीमार सेनानियों को भी यह कार्य करना पड़ता था, उन्हें इस कार्य में कोई रियायत नहीं दी जाती थी।
साथ ही उन्हें नारियल के छिलकों को भी कूट-कूट कर साफ करना पड़ता था। कार्य पूरा न होने पर उन्हें स्टैण्ड पर उल्टा बाँधकर कोड़ों से तब तक पीटा जाता था, जब तक वे बेहोश न हो जाएँ। उन्हें खाने के लिए जो भोजन दिया जाता था, वह स्वादहीन होता था। रोटियाँ कच्ची अथवा जली हुई होती थीं। दाल या सब्जी नीरस घास के तिनकों और कीड़ों से युक्त और कम नमक वाली होती थी। इस भोजन को खाकर अक्सर क्रांतिकारी बीमार तक पड़ जाते थे। इन्हें शाम 5 बजे से सुबह 6 बजे तक कोटड़ियों में बन्द रखा जाता था। वर्ष में केवल एक ही बार पत्र लिखने की अनुमति थी। साथ ही इसके लिए आने वाले पत्रों को कड़ी जाँच के बाद दिया जाता था अथवा रोक लिया जाता था।
प्रश्न 2.
रॉस द्वीप और वाईपर द्वीप की ऐतिहासिकता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रॉस द्वीप- रॉस द्वीप का नामकरण डेनियल रॉस नामक मरिन इंजीनियर के नाम पर हुआ। यह अंग्रेजी शासन के समय अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी था। इस द्वीप पर अंग्रेजी शासनकाल के सभी भवन; जैसे- सोना बेरेक्स, मुख्य आयुक्त का बंगला, कार्यालय, चर्च, बेकरी, प्रेस, अस्पताल, पानी के टैंक, बिजलीघर, क्लब, कब्रिस्तान, जेलर का मकान, स्वीमिंग पुल, बाजार, अंग्रेजी नागरिकों के निवास वाली कई इमारतें और सभी सरकारी कार्यालय थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यह द्वीप जापानियों के अधीन रहा। इसी समय भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस ने 30 दिसम्बर 1943 ई. में इस द्वीप का दौरा किया और सर्वप्रथम यहीं जापान के सबसे पहले जापानी जनरल से भेंट की थी। जापानियों ने इस द्वीप को छोड़ा तो उन्होंने इस द्वीप को तहस-नहस कर दिया था।
वाईपर द्वीप- वाईपर द्वीप का नामकरण वाईपर सर्वे जहाज के नाम से किया गया है, जो यहाँ डूब गया था। इस द्वीप का चित्र भारत सरकार के 20 के नोट पर भी अंकित है। इसी द्वीप पर सबसे पहले सन् 1789 में कैदियों को रखने के लिए चेनग्यांग नामक जेल बनाई गई थी, जिसे सेल्युलर जेल बनने के बाद हटा दिया गया। इसी द्वीप पर ऐतिहासिक महत्त्व का फाँसीघर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस फाँसीघर में 30 मार्च 1872 ई. में पठान शेरअली को फाँसी की सजा दी गई थी, क्योंकि उसने वाईसराय लार्ड मेयो को 8 फरवरी, 1872 ई. को होपटाऊन जेट्टी पर चाकू से गोद कर मार डाला था।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बाल्यकाल में लेखक को किनके किस्से सुनने को मिलते थे? उन्हें सुनकर लेखक का दिल क्यों दहल जाता था?
उत्तर:
बाल्यकाल में लेखक को वीर सावरकर के स्वतंत्रता का पाने के लिए किए जा रहे संघर्षों के किस्से सुनने को मिलते थे। साथ ही अण्डमान द्वीप के पोर्ट ब्लेयर नामक द्वीप पर स्थित सेल्युलर जेल में सावरकर व अन्य स्वाधीनता सेनानियों को दी जाने वाली यातनाओं की रोमांचक घंटनाएँ सुनकर लेखक का दिल दहल जाता था।
प्रश्न 2.
सेल्युलर जेल देखने का अवसर लेखक को आयु के किस पड़ाव पर मिला? उनके साथ इस यात्रा में कितने सदस्य थे?
उत्तर:
लेखक को सेल्युलर जेल देखने का अवसर अपनी आयु के अस्सीवें दशक अर्थात् अस्सी साल की अवस्था में मिला। लेखक के साथ इस यात्रा में कुल 64 सदस्य थे, जिनमें 25 दम्पत्ति, एकाकी पुरुष, 5 एकाकी महिलाएँ व एक बालक था।
प्रश्न 3.
चेन्नई पहुँचकर लेखक व उनके दल के सभी सदस्यों ने किस-किस का लुफ्त उठाया?
उत्तर:
चेन्नई पहुँचकर लेखक व उनके दल के सभी सदस्य चेन्नई के प्रसिद्ध मेरिना बीच पहुँचे। वहाँ उन्होंने विशाल हिन्द महासागर देखा और समुद्र की लहरों का आनन्द लिया। इसके बाद सभी चेन्नई का म्यूजियम देखने के लिए गए। वहाँ उन्होंने चेन्नई के म्यूजियम की पुरातात्विक, ऐतिहासिका व सांस्कृतिक धरोहर को निहारा और दक्षिण भारत के ऐश्वर्य के दर्शन किए। फिर अपने-अपने होटल में वापस आकर क्रिकेट वर्ल्डकप का फाइनल मैच टी.वी. पर देखा और भारत की जीत का जश्न भी मनाया।
प्रश्न 4.
पोर्ट ब्लेयर पहुँचकर लेखक व उसके दल के सभी सदस्य सबसे पहले क्या देखने गए? उसके विषय में संक्षेप में जानकारी दीजिए।
उत्तर:
पोर्ट ब्लेयर पहुँचकर वे सभी सबसे पहले वाटर स्पोर्टस काम्पलेक्स देखने पहुँचे। यह स्थान जल क्रीड़ा की दृष्टि से सर्वोत्तम है। समुद्री ज्वार और भाटे के समय यह परिसर पानी से अपने आप भर जाता है और फिर खाली भी हो जाता है। स्थानीय पर्यटन विभाग जल-क्रीड़ा पर कम खर्च कराता है। इस परिसर के अन्दर और खुले समुद्र में जल-क्रीड़ा करने की सुन्दर व्यवस्था है।
प्रश्न 5.
‘यात्रा : एक पावन तीर्थ की’ पाठ के आधार पर अण्डमान एवं निकोबार द्वीप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह का कुल क्षेत्रफल 8249 वर्ग किलोमीटर है, जिनमें कुल 572 छोटे-बड़े द्वीप हैं। इन ‘ द्वीपों में से केवल 36 द्वीपों में आबादी है, शेष द्वीप निर्जन हैं। अण्डमान द्वीप की लम्बाई 467 किलोमीटर और अधिकतम चौड़ाई 52 किलोमीटर है। तो निकोबार द्वीप समूह की लम्बाई 259 किलोमीटर और अधिकतम चौड़ाई 58 किलोमीटर है। अण्डमान एवं निकोबार द्वीपों का सर्वप्रथम सर्वे लेफ्टिनेण्ट आर्चिबाल्ड ब्लेयर तथा लेफ्टिनेण्ट कोल बुक ने सन् 1778-79 में किया था।
प्रश्न 6.
रॉस द्वीप में स्थित अंग्रेजी शासनकाल की इमारतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
रॉस द्वीप पर अंग्रेजी शासनकाल के सभी भवन; जैसे-सेना का बेरेक्स, मुख्य आयुक्त का बंगला, कार्यालय, चर्च, बेकरी, प्रेस, अस्पताल, पानी के टैंक, बिजलीघर, क्लब, कब्रिस्तान, जेलर का मकान, स्वीमिंग पूल, बाजार व अंग्रेजी नागरिकों के निवास वाली इमारतें थीं। इनके अतिरिक्त अंग्रेजी सरकार के सभी सरकारी कार्यालय भी इसी द्वीप पर स्थित थे।
प्रश्न 7.
सेल्यूलर जेल में दिखाए गए ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम का विषय क्या था? इस कार्यक्रम का दर्शकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
इस कार्यक्रम का विषय सेल्यूलर जेल की कहानी व स्वाधीनता सेनानियों पर हुए अत्याचारों तथा शहीदों की शहादत था। . इस कार्यक्रम के दौरान भारतीय स्वाधीनता सेनानियों पर ब्रिटिश सरकार के नुमाइंदों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के विषय में देख-सुनकर सभी दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए। इस कार्यक्रम के माध्यम से स्वाधीनता सेनानियों के दृढ़ राष्ट्रभक्ति एवं गुलामी की बेड़ियों को तोड़ फेंकने की लगन व निष्ठा को देख-सुन व महसूस करके सभी का गला भर आया।
प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर वाईपर द्वीप का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वाईपर द्वीप का नामकरण वाईपर सर्वे जहाज के नाम पर हुआ था, जो यहाँ डूब गया था। वाईपर द्वीप में ही सबसे पहले सन् 1789 में कैदियों को रखने के लिए चेनग्यांग नाम की जेल बनाई गई थी, जिसे सेल्यूलर जेल के निर्माण के बाद हटा दिया गया। इसी द्वीप पर ऐतिहासिक महत्त्व का फाँसीघर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। इस फाँसीघर में महान स्वतंत्रता सेनानी पठान शेरअली को वाइसराय लार्ड मेयो को चाकू से गोदकर मार डालने के अपराध में 8 फरवरी 1872 ई. को फाँसी दी गई थी।
प्रश्न 9.
चिड़ियाँ टापू का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
अथवा
चिड़ियाँ टापू की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
चिड़ियाँ टापू पोर्ट ब्लेयर से 30 किमी दूर घने जंगल में स्थित है। इस द्वीप का केवल नाम ही चिड़ियाँ टापू है, किन्तु इस द्वीप पर चिड़ियाँ नहीं हैं। इस द्वीप का प्राकृतिक सौन्दर्य अद्भुत है। यहाँ पर भी सुनामी के भयंकर कहर का नजारा दिखाई देता है। इस टापू पर सूर्यास्त की अलौकिक छटा भी दर्शनीय है।
प्रश्न 10.
मण्डूर से जोलीब्वाय द्वीप तक जाने वाले समुद्र मार्ग दोनों टापुओं के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मण्डूर से जोलीब्वाय द्वीप तक जाने वाला समुद्री मार्ग काँच के समान स्वच्छ एवं नीलिमा लिए हुए था। पानी में मछली भी नजर नहीं आती है। पाँच-छ: किलोमीटर आगे बढ़ने पर समुद्री गलियारा आता है, जिसके दोनों ओर टापू हैं। इन टापुओं के बीच की दूरी 200 से 250 फीट है। दोनों टापू हरियाली से भरपूर हैं। इनका किनारा समुद्री लहरों के कारण कट जाने से विभिन्न आकर्षक और मनमोहक डिजायनों वाला बन गया है। टापुओं पर घने और गगनचुम्बी वृक्षों वाले जंगल भी हैं।
प्रश्न 11.
जोलीब्वाय द्वीप पर नियत सुरक्षाकर्मी बार-बार किसलिए सतर्क कर रहा था?
उत्तर:
जोलीब्वाय द्वीप पर एक सुरक्षाकर्मी नियत था, जो लेखक व उनके दल के सदस्यों को सतर्क रहने के लिए कह रहा था। साथ ही वह बार-बार द्वीप पर गन्दगी नहीं फैलाने और नाश्ता करने के बाद खाली प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बे आदि को नहीं छोड़कर जाने की चेतावनी भी दे रहा था। वह इस द्वीप से समुद्री जीव-जन्तुओं के अवशेष जैसे सीपी, पाषाण को एकत्रित करके नहीं ले जाने के लिए भी सतर्क कर रहा था। उसने ऐसा न करने के पीछे कानूनी पाबन्दी की बात बताई।
प्रश्न 12.
वापस मण्डूर द्वीप पहुँचकर दल के सभी सदस्यों ने क्या किया?
उत्तर:
जोलीब्वाय द्वीप से वापस मण्डूर द्वीप पहुँचकर दल के सभी सदस्यों ने सबसे पहले समुद्री किनारे पर बैठकर अपने साथ लाया हुआ डिब्बाबन्द भोजन किया, इसके पश्चात् वहाँ स्थित दुकानों पर बिक रहे पीले और हरे रंग के नारियलों में से अपनी-अपनी पसन्द के नारियल खरीदकर उनका पानी पीया। वर्षा में भीगने का आनन्द भी लिया।
प्रश्न 13.
सेल्यूलर जेल को विश्वभर में किस नाम से जाना जाता है? इस जेल के निर्माण के लिए में संक्षेप में लिखिए।
अथवा
सेल्यूलर जेल का निर्माण किस-किस की सिफारिश और आदेश पर कब और कितनी लागत में हुआ?
उत्तर:
सेल्यूलर जेल को विश्वभर में इण्डियन बेस्टिल जेल के नाम से जाना जाता है। यह जेल पोर्ट ब्लेयर नगर के अटलांटा पोइंट की ऊँचाई पर स्थित है जो इस नगर के उत्तर-पूर्व दिशा में है। इस जेल के निर्माण की सिफारिश जेल निर्माण कमेटी के सदस्य सर सी. जे. लायल एवं सर ए. एस. लैथ ब्रिज ने सन् 1890 में की तथा इसके निर्माण का आदेश पोर्ट ब्लेयर के तत्कालीन सुपरिन्टेडेन्ट कर्नल एन. एम. टी. हार्सफोर्ड ने प्रसारित किया था। इस जेल का निर्माण सन् 1896 से 1906 ई. के मध्य 5,17,352 रुपए की लागत से हुआ था।
प्रश्न 14.
सेल्यूलर जेल की बनावट के विषय में लिखिए।
अथवा
सेल्यूलर जेल की कोटड़ियों की बनावट कैसी है और वर्तमान समय में इस जेल में कितनी भुजाएँ और कोटड़ियाँ शेष हैं?
उत्तर:
सेल्युलर जेल की सात भुजाएँ हैं, यह सातों ही भुजाएँ जेल परिसर के मध्य भाग में स्थित एक टावर से जुड़ी हुई हैं। प्रत्येक भुजा तीन मंजिला है, जिसमें 696 कोटड़ियाँ (कमरे) हैं। प्रत्येक कोटड़ी 13.5 फीट लम्बी और 7 फीट चौड़ी है। कोटड़ी में बहुत ऊँचाई पर 3×1 का एक रोशनदान दिया गया है। कोटड़ियों का दरवाजा लोहे का बना है जो तीन फीट की राड के साथ बाहर से बन्द होता है। इन कोटड़ियों की बनावट अपने आप में एकान्त जेल के समान है। वर्तमान में इस जेल में तीन भुजाएँ तथा 291 कोटड़ियाँ ही विद्यमान हैं।
प्रश्प 15.
सेल्यूलर जेल की कोटड़ियों में कैदियों के लघु एवं दीर्घशंका (मूत्र एवं शौच) के निवारण विषय में गाइड ने क्या जानकारी दी?
उत्तर:
गाइड ने बताया कि इस जेल की कोटड़ियों में कैदियों के लघु एवं दीर्घशंका के निवारण की कोई व्यवस्था नहीं थी। रात्रि में लघुशंका के लिए उन्हें मिट्टी का एक बर्तन दिया जाता था, जिसमें केवल एक बार मूत्र विसर्जित किया जा सकता था। अधिक बार । जाने की स्थिति में उन्हें अपनी कोटड़ी में ही करना पड़ता था। यही स्थिति शौच त्याग की थी। शौच आने की स्थिति में वार्डन भी बहत सख्ती से पेश आते थे। पेट खराब होने, दस्त होने या शौच आने की स्थिति में उन्हें अपनी कोटड़ी में ही निवृत्त होना पड़ता था। जिससे कोटड़ी दुर्गन्ध से भर जाती थी।
प्रश्न 16.
जेल में स्वाधीनता सेनानियों को क्या कार्य करने पड़ते थे? कार्य पूरा न होने की दशा में उन्हें क्या दण्ड भुगतना पड़ता था?
उत्तर:
जेल में स्वाधीनता सेनानियों को प्रतिदिन नारियल या सरसों का तेल निकालने का कोटा अनिवार्य रूप से पूरा करना होता था। इन्हें तेल निकालने की घाणी में बैल की तरह जुतकर कोल्हू खींचना पड़ता था। बीमार क्रान्तिकारी को भी इसमें कोई छूट नहीं दी जाती थी। साथ ही इन्हें नारियल के छिलके कूट-कूट कर साफ करने होते थे। जो स्वाधीनता सेनानी अपने इस कार्य को नियत समय पर पूरा नहीं कर पाते थे, उन्हें एक स्टेण्ड से उल्टा बाँधकर बेरहमी के साथ पीटा जाता था।
प्रश्न 17.
सेल्यूलर जेल स्थित फाँसीघर को देखकर लेखक व अन्य सदस्यों ने क्या अनुभव किया? अपने शब्दों में लिखें।
अथवा
लेखक व उसके दल के सदस्यों के सिर श्रद्धा से क्यों झुक गए?
उत्तर:
सेल्यूलर जेल स्थित फाँसीघर आज भी अंग्रेजों की क्रूरता का साक्षी है। लेखक व उसके दल के अन्य सदस्य जब देखने के लिए इसके अन्दर गए तो उनके रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने अन्दर जाकर जाना कि किस प्रकार क्रान्तिकारी को ऊपर खड़ा करके पहले फाँसी दी जाती थी और फिर नीचे से पाटिया खिसका दिया जाता था। पाटिया के हटते ही शव धड़ाम से अन्डरग्राउण्ड में जाकर गिर जाता था। इस दृश्य को देखकर लेखक व उसके अन्य साथियों के मस्तक क्रान्तिकारियों के प्रति श्रद्धा से झुक गए।
प्रश्न 18.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नेताजी सुभाषचन्द्र बोस अण्डमान एवं निकोबार द्वीप के प्रवास के विषय में पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह जापानियों के अधीन था, तब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस 29, 30 एवं 31 दिसम्बर 1943 को तीन दिवसीय दौरे पर यहाँ आए थे। अपने इस प्रवास के दौरान उन्होंने सेल्यूलर जेल, रॉस द्वीप एवं पोर्ट ब्लेयर आदि द्वीपों का दौरा किया था तथा 30 दिसम्बर 1943 को पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में आजाद हिन्द गरकार का झण्डा फहराया और अपने भाषण में अण्डमान को शहीद द्वीप तथा निकोबार को स्वराज्य द्वीप का नाम दिया था।
प्रश्न 19.
वीर सावरकर को अपनी कैद में बनाए रखने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सेल्युलर जेल में क्या प्रबन्ध किए थे? लेखक ने इस कोटड़ी में क्या-क्या किया?
उत्तर:
वीर सावरकर से ब्रिटिश सरकार बहुत भयभीत थी। उसे डर था कि कहीं सावरकर जेल की कोटड़ी से बाहर निकलकर न भाग जाए। इसलिए उनकी कोटड़ी के बाहर एक और कोटड़ी बनवाई गई और उन्हें डबल लोक में कैद करके रखा गया। लेखक बहुत देर तक इस कोटड़ी को निहारता रहा। उसने इस कोठरी की दीवारों को चूमा और वीर सावरकर के चित्र के नीचे खड़े होकर अपनी फोटो भी खिंचवाई, जिससे वह भविष्य में भी इस कोठड़ी के दर्शन कर सके।
RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 11 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक डॉ. कोठारी का जीवन-परिचय लिखिए।
उत्तर:
डॉ. कोठारी का जन्म 27 अक्टूबर, 1941 को गोगुंदा जिला उदयपुर में हुआ। कोठारी जी ने हिन्दी, प्राकृत और इतिहास विषय में स्नातकोत्तर (एम.ए.) एवं राजस्थानी में विद्या वाचस्पति की उपाधि प्राप्त की। इनकी रुचि प्राचीन साहित्य के हस्तलिखित ग्रंथों के अध्ययन में अधिक रही। इन्होंने कई शोधपरक आलेख लिखकर प्राचीन तथ्यों को प्रकाशित किया। नई कहानी की रचना प्रक्रिया एवं शिल्प विधान पर इनका लेखन उल्लेखनीय है। श्री कोठारी जी साहित्य संस्थान, उदयपुर में निदेशक पद पर रहे एवं राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के अध्यक्ष भी रहे। डॉ. देव कोठारी को महाराणा फाउण्डेशन द्वारा प्रतिष्ठित महाराणा कुंभा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
प्रश्न 1.
उदयपुर से पोर्ट ब्लेयर तक की लेखक की यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
लेखक की यात्रा का आरंभ उदयपुर के टाउन हॉल से हुआ। यहाँ से लेखक अपने दल के अन्य सदस्यों के साथ सायं 9.30 बजे बसों के द्वारा अहमदाबाद के लिए रवाना हुए। बसें 2 अप्रैल को सुबह 3.00 बजे अहमदाबाद एअरपोर्ट पहुंची और प्रातः 5.50 पर किंग फिशर के वायुयान से वे सभी चेन्नई पहुँचे। चेन्नई पहुँचकर उन सभी ने चेन्नई के प्रसिद्ध मेरिना बीच और म्यूजियम का आनन्द लिया। वहाँ से रात को विश्राम करके 3 अप्रैल को प्रातः 7:00 बजे चेन्नई एयरपोर्ट के लिए बसों से रवाना हुए और वहाँ से प्रात: 9.30 बजे पोर्ट ब्लेयर के लिए हवाई यात्रा की। 1330 किलोमीटर की यात्रा तय करके वे 11.30 बजे पोर्ट ब्लेयर स्थित वीर सावरकर एअरपोर्ट पर पहुँचे। वहाँ से बसों के द्वारा अपने-अपने होटल पहुंचे। यहाँ पहुँचकर उन सभी ने सबसे पहले वाटर स्पोर्टस काम्प्लेक्स का आनंद उठाया।
इसके बाद सभी रॉस द्वीप घूमने पहुंचे और उसके ऐतिहासिक महत्त्व का गाइड अनुराधा से परिचय प्राप्त किया। साथ ही अण्डमान और निकोबार के विषय में भी जानकारी ग्रहण की। वहाँ से 5.30 पर सेल्यूलर जेल ध्वनि और प्रकाश का कार्यक्रम देखने पहुँचे। दूसरे दिन वे सभी सबसे पहले चाथम सॉ मिल देखने गए वहाँ से बोट से वाईपर द्वीप पहुँचे। फिर दोपहर का भोजन करने के बाद वे चिड़ियाँ वाले टापू पहुँचे। यहाँ से पुन: पोर्ट ब्लेयर पहुँचे, अगले दिन वे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय पार्क वेन्डूर पहुँचे। यहाँ से फिर जोलीब्वाय द्वीप पहुँचे और वहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता का लुफ्त लिया। यहाँ पुनः मण्डूर द्वीप पहुँचे और वहाँ खरीदारी की। यात्रा के अंतिम दिन सभी पुन: सेल्यूलर जेल पहुँचे और उसके भाग और ऐतिहासिकता की जानकारी प्राप्त की। यहाँ से निकलकर एअरपोर्ट पहुंचे और 11.55 पर चेन्नई के लिए हवाई यात्रा की और ठीक दो बजे वापस चेन्नई पहुँच गए।
प्रश्न 3.
“यात्रा : एक पावन तीर्थ की” पाठ के आधार पर अण्डमान एवं निकोबार के विषय में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
अण्डमान निकोबार द्वीप समूह का कुल क्षेत्रफल 8249 वर्ग किलोमीटर है, जिनमें कुल 572 छोटे-बड़े द्वीप हैं। इनमें से केवल 36 द्वीपों में ही आबादी है, शेष द्वीप निर्जन हैं। अण्डमान द्वीप की लम्बाई 467 किलोमीटर और अधिकतम चौड़ाई 52 किलोमीटर है। इसी तरह निकोबार द्वीप समूह की लम्बाई 259 किलोमीटर और अधिकतम चौड़ाई 58 किलोमीटर है। अण्डमान एवं निकोबार द्वीपों का सर्वप्रथम सर्वे लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर तथा लेफ्टिनेंट कोल ब्रुक ने सन् 1778-79 में किया था। अण्डमान द्वीप के सबसे बड़े द्वीप का नामकरण इन्हीं लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर के नाम से किया गया है।
पोर्ट ब्लेयर अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है। पोर्ट ब्लेयर से अण्डमान निकोबार पहुँचने में 12 घंटे लगते हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय प्रशासन से स्वीकृति भी लेनी पड़ती है। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह में अब भी जारवा, सेन्टिनिलीज, शौम्पेन, ओंगी, अण्डमानीज-निकोबारी तथा केरेन नाम की आदिवासी जातियाँ निवास करती हैं। इसकी राजधानी पोर्ट ब्लेयर में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध, जैन आदि सभी धर्म के लोग रहते हैं। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान रॉस द्वीप अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी था। अंग्रेजों के समस्त सरकारी कार्यालय रॉस द्वीप पर ही थे। यह द्वीप द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानियों के अधीन था। उन्होंने जब इस द्वीप को छोड़ा तब इसे तहस-नहस कर दिया। इसके बाद पोर्ट ब्लेयर इसकी राजधानी बना।
प्रश्न 4.
चाथम सॉ मिल एवं चिड़ियाँ टापू के विषय में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
चाथम सॉ मिल- चाथम सॉ मिल समुद्री किनारे पर स्थित एवं जंगल से जुड़ी एशिया की सबसे बड़ी सॉ अर्थात् लकड़ी काटने वाली मिल है। इस मिल में मूल्यवान लकड़ी से लेकर साधारण लकड़ी तक की कटाई आधुनिक मशीनों से होती है। यहाँ बड़े-बड़े
लकड़ी के लट्ठों की मशीनों से होने वाली कटाई देखने लायक है। इस मिल में, कटी हुई विभिन्न आकार-प्रकार एवं लम्बाई-चौड़ाई की लकड़ी रखने के बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं। चाथम मिल में ही एक छोटा-सा म्यूजियम (संग्रहालय) भी है। इस म्यूजियम में लकड़ी से बने हुए विभिन्न उपकरण, मूर्तियाँ, आभूषण, दैनिक उपयोग में काम आने वाली आकर्षक वस्तुएँ देखने लायक थीं। चित्रों के माध्यम से भी विभिन्न प्रकार की जंगली लकड़ी एवं उनके वृक्षों के स्वरूप आदि को बताया गया था। चाथम सॉ मिल से लकड़ी मकान निर्माण हेतु पूरे अण्डमान द्वीप एवं भारत के विभिन्न प्रान्तों में जाती हैं।
चिड़ियाँ टापू-चिड़ियाँ टापू पोर्ट ब्लेयर से लगभग 30 किलोमीटर दूर घने जंगल में स्थित है। इस टापू पर चिड़ियाँ नहीं हैं लेकिन इस द्वीप का अनूठा प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों के मन को मोह लेने वाला है। साथ ही यहाँ पर सूर्यास्त की छटा भी अलौकिक है।
प्रश्न 5.
गाइड ने लेखक व उसके साथियों को सेल्यूलर जेल के विषय में क्या-क्या जानकारियाँ दीं?
अथवा
सेल्यूलर जेल की स्थिति, निर्माण, बनावट आदि के विषय में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
सेल्यूलर जेल विश्वभर में इण्डियन बेस्टिल के नाम से विख्यात है। यह जेल पोर्ट ब्लेयर नगर के अटलांटा पोइंट की ऊँचाई पर स्थित है जो इस नगर के उत्तर-पूर्व दिशा में है। इस जेल निर्माण की सिफारिश जेल निर्माण कमेटी के सदस्य सर सी.जे. लायल एवं सर ए.एस. लैथ ब्रिज ने सन् 1890 में की तथा इसके निर्माण का आदेश पोर्ट ब्लेयर के तत्कालीन सुपरिटेडेन्ट कर्नल एन.एम.टी. हार्सफोर्ट ने दिए थे। इस जेल का निर्माण सन् 1896 से 1906 ई. के मध्य में हुआ था। इसके निर्माण में कुल 5,17,352 रुपये का खर्च आया था। इस जेल की सात भुजाएँ (कतारें) थीं जो जेल के मध्य भाग में स्थित एक टावर से जुड़ी थीं।
इस मध्य भाग के टावर से जेल की इन सातों भुजाओं पर एक साथ नजर रखी जा सकती थी। प्रत्येक भुजा तीन मंजिला जिसमें 699 कोटड़ियाँ (कमरे) थीं। इन कोटड़ियों की बनावट अपने आप में एकान्त जेल के समान है, इसी कारण इस जेल का नाम सेल्यूलर जेल रखा गया। इसकी प्रत्येक कोटड़ी 13.5 फीट लम्बी और 7 फीट चौड़ी है। कोटड़ी में बहुत ऊँचाई पर 3 x 1 का केवल एक ही रोशनदान बनाया गया था। कोटड़ी का दरवाजा लोहे का जो तीन फीट की राड के साथ बाहर से बन्द होता था। सभी कोटड़ियाँ लम्बी कतार में हैं, कोटड़ियों के बाहर चार फीट चौड़ा दालान है।
प्रश्न 6.
विनायक दामोदर सावरकर के विषय में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 में मराठी चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम दामोदर और माता का नामा राधाबाई सावरकर था। सन् 1901 में विनायक का विवाह रामचंद्र त्रिंबक चिपलूनकर की पुत्री यमुनाबाई से हुआ। श्री रामचंद्र त्रिंबक चिपलूकर ने ही विनायक की यूनिवर्सिटी पढ़ाई में सहायता की थी, बाद में सन् 1902 में उन्होंने पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में एडमिशन लिया। सावरकर के क्रान्तिकारी अभियान का आरंभ भारत और इंग्लैण्ड में पढ़ाई करते समय हुआ। इंग्लैण्ड में वे इंडिया हाउस से जुड़े हुए थे और उन्होंने अभिनव भारत सोसाइटी और फ्री इंडिया सोसाइटी के साथ मिलकर स्टूडेंड सोसाइटी की स्थापना की।
क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ इनके संबंध होने के कारण इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए उन्होंने कई बार भागने के असफल प्रयास किये। उनके बार-बार भागने के और उसमें सफल हो जाने के भय से उन्हें अण्डमान-निकोबार की सेल्यूलर जेल में कैद किया गया लेकिन 1921 में उन्हें एक समझौते के तहत रिहा कर दिया गया। सन् 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में अपने साथियों का साथ दिया। उनके भाषणों पर बैन लगाने के बावजूद उन्होंने राजनैतिक गतिविधि करना नहीं छोड़ा, 1966 में अपनी मृत्यु तक वे सामाजिक कार्य करते रहे। सावरकर दुनिया के अकेले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा मिली थी।
प्रश्न 7.
लेखक मे सेल्यूलर जेल में कौन-कौन से स्थान व स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित क्या-क्या वस्तुएँ देखीं? उन्हें देखकर उसके मन में क्या भावनाएँ उत्पन्न हुई?
उत्तर:
सेल्यूलर जेल में लेखक ने सर्वप्रथम जेल और उसकी कोठरियों की बनावट को देखा। उन्हें देखकर उसे वहाँ रहने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा सही गई यातनाओं का अनुभव हुआ। उसने जेल में स्थित बलिदान वेदी स्तंभ तथा 9 अगस्त 2004 को स्थापित स्वातंत्र्य ज्योति के दर्शन किए। तत्पश्चात् उसने इस जेल परिसर में स्थित विशिष्ट स्थान विशेषकर फाँसीघर, तेल कारखाना, सजा देने का स्टेण्ड एवं सजा देने के प्रकार, स्वतंत्रता सेनानियों की चित्रदीर्घा, नेताजी दीर्घा, आर्टीफैक्ट दीर्घा, अण्डमान चित्र दीर्घा, मध्य का टावर, वीर सावरकर की कोटड़ी आदि को एक-एक करके देखा।
फाँसीघर को देखकर उसे अंग्रेजों की क्रूरता का एहसास हुआ, साथ ही क्रांतिकारियों को फाँसी दिए जाने का दृश्य उसके समक्ष उपस्थित हो गया और उसका सिर उन क्रान्तिकारियों के प्रति श्रद्धा से झुक गया। लेखक ने क्रान्तिकारियों को सजा दिए जाने के अनेक तरीके चित्र के माध्यम से जाने। उसने इस जेल में सजा काटने वाले अधिकांश स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय भी प्राप्त किया। स्वतंत्रता सेनानियों की इस चित्र दीर्घा में उन्हें पहनाई जाने वाली ड्रेस, उनको लगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की बेड़ियाँ, उनके खाने के बर्तन आदि को देखा। उसने सेल्यूलर जेल के क्रूर लूंखार एवं अत्याचारी । जेलर डेविड बेरी के कार्यालय में लगी हुई नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की दीर्घा को भी देखा।
पाठ-सारांश :
‘यात्रा : एक पावन तीर्थ की’ लेखक डॉ. देव कोठारी द्वारा रचित एक यात्रावृत्त है। इस यात्रावृत्त में लेखक ने अपनी पोर्ट ब्लेयर की यात्रा का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। अपने इस यात्रावृत्त में उन्होंने पोर्ट ब्लेयर के साथ-साथ अण्डमान-निकोबार स्थित अन्य द्वीपों की यात्रा का बहुत मनोहारी वर्णन किया है। अपने इस यात्रावृत्त में उन्होंने पोर्ट ब्लेयर स्थित सेल्युलर जेल के प्रति अपना विशेष लगाव प्रदर्शित किया है।
देश को स्वतंत्र कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के जज्बे और अंग्रेज सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली यातनाओं के विषय में सुनकर बचपन में लेखक का मन दहल जाता था। इन सब बातों ने ही लेखक के मन में सेल्युलर जेल देखने की उत्कंठा जगाई। लेखक को सेल्युलर जेल देखने का अवसर 80 वर्ष की आयु में प्राप्त हुआ। वह महाराणा प्रताप वरिष्ठ नागरिक संस्थान के 53 सदस्यों के दल के साथ 1 अप्रैल 2011 को अहमदाबाद के लिए बस से निकले। अगले दिन 2 अप्रैल सुबह 3:00 बजे वे सभी अहमदाबाद एयरपोर्ट पहँचे, वहाँ से 5:50 पर किंग फिशर के हवाई जहाज से चेन्नई के लिए निकले। सुबह 8:10 पर सभी चेन्नई एयरपोर्ट पहुंचे और वहाँ से वातानुकूलित (एयरकंडीशनर) बसों से अपने-अपने होटल पहुँचे। होटल से सुबह का नाश्ता करने के बाद सभी पहले चेन्नई के मेरिना बीच घूमने पहुंचे और वहाँ से चेन्नई का म्यूजियम देखने गए। वापस आकर सभी ने क्रिकेट के फाइनल मैच का आनन्द लिया।
रात को होटल में आराम करने के बाद 3 अप्रैल की सुबह 7 बजे पोर्टब्लेयर जाने के लिए पुन: चेन्नई एयरपोर्ट पहुँचे। चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर की दूरी 1330 किलोमीटर है। दिन के 11:30 बजे सभी हवाई यात्रा करके पोर्ट ब्लेयर के TSG होटल पहुँचे। होटल से दोपहर का भोजन करने के बाद सभी पोर्ट ब्लेयर घूमने निकले। सबसे पहले वे सभी वाटर स्पोर्टस कॉम्पलेक्स पहुँचे। इसी के ही पास 26 दिसम्बर 2004 को आई सुनामी का स्मृति स्मारक स्थित है। वाटर स्पोर्टस के ठीक सामने रॉस द्वीप है। इसी द्वीप का नामकरण डेनियल रॉस नामक मरिन इंजीनियर के नाम पर है।
इसका क्षेत्रफल मात्र 0.8 वर्ग किलोमीटर है। इस द्वीप पर पहुँचकर लेखक व उसके दल के अन्य सदस्यों की मुलाकात अनुराधा राव की अधेड़ उम्र की छरहरे बदन एवं साँवले रंग की महिला गाइड से हुई। अनुराधा स्वभाव से जोशीली एवं फर्राटेदार हिन्दी एवं अंग्रेजी में बात करने वाली महिला थी। उन्होंने उन सभी का परिचय पोर्ट ब्लेयर व रॉस द्वीप से कराया। साथ ही यह भी जानकारी प्रदान की कि यह दोनों द्वीप अण्डमान एवं निकोबार द्वीप के हिस्से हैं। अण्डमान एवं निकोबार द्वीप का कुल क्षेत्रफल 8249 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ छोटे-छोटे-बड़े मिलाकर कुल 572 द्वीप हैं, जिनमें से केवल 36 द्वीपों में आबादी है, शेष द्वीप निर्जन हैं, अण्डमान द्वीप की लम्बाई 467 किमी और चौड़ाई 52 किमी है तो निकोबार द्वीप समूह की लम्बाई 259 किमी और चौड़ाई 5.8 किमी है।
सन् 1778-79 में अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह का सर्वे सर्वप्रथम लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर एवं लेफ्टिनेंट कोल ब्रुक ने किया था। अण्डमान के सबसे बड़े द्वीप का नाम लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर के नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर पड़ा। यह अण्डमान निकोबार द्वीप की राजधानी भी है। इस द्वीप पर जारवा, सेन्टिनिलीज, शोम्पेन, ओंगी, अण्डमानीज निकोबारी तथा केरेन नामक आदिवासी जातियाँ निवास करती हैं। पोर्ट ब्लेयर पर सभी धर्म के लोग रहते हैं।
रॉस द्वीप के विषय में जानकारी देते हुए अनुराधा राव ने बताया कि यह द्वीप ब्रिटिश शासन काल में अण्डमान तथा निकोबार द्वीप की राजधानी था। उनके सभी सरकारी कार्यालय यहीं थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब यह द्वीप जापानियों के अधीन था, तब सुभाष चन्द्र बोस ने यहीं पर सबसे पहले जापानी जनरल से मुलाकात की थी। अब तो यह द्वीप खण्डहर बन चुका है। यहाँ से सभी प्रकाश और ध्वनि कार्यक्रम देखने सेल्युलर जेल पहुंचे। इस कार्यक्रम ने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए। स्वाधीनता सेनानियों में देशभक्ति व स्वतंत्रता पाने की तीव्र लालसा और उनके प्रति अंग्रेजों के क्रूर व्यवहार को देख-सुनकर सभी का गला भर आया। अगले दिन नए कार्यक्रम के अनुसार सभी सबसे पहले चाथम सॉ मिल देखने गए, वहाँ से वाईपर द्वीप पहुँचे।
इस द्वीप का चित्र भारत सरकार के 20 रुपए के नोट पर भी छपा हुआ है। सन् 1789 में यहाँ चेनग्यांग नामक जेल थी, जिसे सेल्युलर जेल बनने के बाद हटा दिया गया। फाँसीघर यहाँ की ऐतिहासिक महत्त्व की इमारत है, जो वर्तमान समय में खण्डहर में बदल चुकी है। इसी फाँसीघर में 30 मार्च 1872 को पठान शेरअली को फाँसी पर लटकाया गया था, क्योंकि उसने 8 फरवरी 1872 को वाइसराय लार्ड मेयो को चाकू से गोदकर मार डाला था। पोर्ट ब्लेयर वापस पहुँचकर सभी ने पहले दोपहर का खाना खाया और फिर थामस कुक की सलाह पर सभी चिड़ियाँ के टापू देखने गए जो 30 किमी दूर घने जंगल में स्थित है। अगले दिन लेखक का पूरा दल महात्मा गाँधी राष्ट्रीय पार्क देखने के लिए वन्डूर पहुँचे। यह पार्क जीव-जन्तुओं से भरपूर 181.5 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ विशाल समुद्री पार्क है।
यहाँ से सभी जोलीब्वाय द्वीप पहुँचे। वहाँ से वापस मण्डूर पहुँचकर सभी ने पहले भोजन किया और फिर खरीदारी की। यात्रा के अंतिम दिन सभी जल्दी ही अपने नित्यकर्म से निवृत्त होकर सेल्युलर जेल पहुँचे। सेल्युलर जेल पहुँचकर गाइड महोदय ने उन सभी को विस्तार से सेल्युलर जेल के निर्माण, उसके निर्माण में आए खर्च, जेल की कोठरियों की लम्बाई-चौड़ाई के विषय में विस्तार से बताया। उन्होंने जेल में कैदियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की जानकारी देते हुए बताया कि इस जेल कोठरियों में एक ही रोशनदान होता था। इनमें कैदियों के शौच के लिए कोई अलग से स्थान नहीं होता। अतः रात्रि में शौच आने की दशा में उन्हें अपनी कोठरी में ही शौच करनी पड़ती थी, जिसके कारण उनकी कोठरियाँ दुर्गन्ध से भर जाती थीं।
अत्यधिक तबीयत खराब होने की स्थिति में उन्हें सबसे पहले जेल के खूखार जेलर मिस्टर बेरी के समक्ष उपस्थित होना पड़ता था। उसकी आज्ञा मिलने पर उनकी डॉक्टरी जाँच होती थी। साथ ही यहाँ कैदियों को तेल निकालने का काम भी करना पड़ता था। काम पूरा न होने की स्थिति में उन्हें कोड़े से मारने की कठोर सजा दी जाती थी। गाइड महोदय ने उन सभी को जेल के चप्पे-चप्पे से भी परिचित करवाया। जेल में सजा काटने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र, उनके नाम और परिचय के साथ लगे हुए हैं। साथ ही उनको पहनाई जाने वाली ड्रेस, बेड़ियाँ और उनके खाने के बर्तन भी लगे हुए हैं। आराधना राव ने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब सुभाष चन्द्र बोस अण्डमान-निकोबार द्वीप के दौरे पर आए थे तब उन्होंने 30 दिसम्बर 1945 ई. को पोर्ट-ब्लेयर के जिमखाना मैदान में आजाद हिन्द सरकार का झण्डा फहराया और भाषण दिया। उनके इस प्रवास का भी पूरा विवरण जेल में उपलब्ध है।
आराधना राव ने उन्हें वह कोठरी भी दिखाई जहाँ पर विनायक दामोदर सावरकर, गणेश दामोदर सावरकर और वीर सावरकर कैद रहे। वीर सावरकर कहीं जेल तोड़कर भाग न जाएँ इस डर से ब्रिटिश सरकार ने इस कोठरी के बाहर एक और कोठरी बनवाई। लेखक ने इस कोठरी में खड़े होकर तथा सावरकरजी के चित्र के नीचे खड़े होकर फोटो भी खिंचवाया, यहाँ से निकलकर सभी जेल के मध्य स्थित टावर में पहुँचे और गाइड महोदय ने बताया कि किस प्रकार वहाँ से पूरी जेल पर नियन्त्रण रखा जाता है। यहाँ लगे शिलापट्ट पर उन क्रान्तिकारियों के नाम लिखे हुए हैं जिन्होंने यहाँ रहकर कष्ट सहे। 11 फरवरी 1979 ई. को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित करके भारत को समर्पित कर दिया। जेल के बाहर स्थित सावरकर ।
पार्क में सावरकर जी के साथ शहीद इन्दू भूषण रे, बाबा भानसिंह, मोहित मोइत्रा, रामरक्श, महावीरसिंह और मोहनकिशोर नामदास की मूर्तियाँ लगी हुई हैं। वहाँ से वापस लौटने के लिए सभी निकल पड़े। लगभग 11.55 पर सभी हवाई जहाज से चेन्नई के लिए निकले और – ठीक दो बजे चेन्नई पहुँच गए। इस प्रकार अपने मन में अनेक सवाल लिए हुए लेखक पोर्ट ब्लेयर की अद्भुत यात्रा के विषय में और . स्वतंत्रता सेनानियों के इस मंदिर के विषय में विचार करता है।
कठिन शब्दार्थ :
(पा.पु.पृ.88) बाल्यकाल = बचपन। गुलामी = परतंत्रता। जकड़े हुए = बँधे हुए। मुक्त = आजाद । स्वर्णिम = स्वर्ण (सोने) के समान। प्रभात = सुबह। किस्से = घटनाएँ, बातें। यातनाओं = कष्टों। लोमहर्षक = रोमांचक। दिल दहल उठना = घबरा जाना। स्वतः = अपने आप। स्फूर्त = तेज। जिज्ञासा = जानने की इच्छा। पावन = पवित्र । माटी = मिट्टी। वन्दन = नमन । भावभीनी = भावनाओं में डूबी हुई। दशक = दस साल का समय। पुनीत = पवित्र। एकाकी = अकेले। वरिष्ठ = बुजुर्ग। दल = समूह।
(पा. पृ.पु. 89) सायं = शाम। रवाना होना = निकलना (किसी स्थान के लिए)। मार्ग = रास्ता। अनुभूति = एहसास। वातानुकूलित = एयरकंडीशनर। तत्पश्चात् = बाद में। पुरातात्विक = प्राचीनकाल से सम्बंधित। भव्यता = ऐश्वर्य। विश्राम = आराम। पुनः = दोबारा । उमंग = जोश। सराबोर = डूबे हुए, मस्त । भ्रमण करना = घूमना। प्रबल = तेज, उग्र। उत्कण्ठा = जिज्ञासा । वाटर = पानी, जल। दृष्टि = नज़र। अद्वितीय = अद्भुत। छरहरे = पतले। अनाम = जिनके नाम ज्ञात न हों। समीप = पास, नजदीक। हिस्से = भाग। निर्जन = आबादीरहित। .
(पा. पु.पृ 90) स्वीकृति = आज्ञा। निवास करना = रहना। कार्यालय = दफ्तर। अधीन होना = अधिकार में होना, कब्जे में होना। भेंट = मुलाकात। तहस-नहस = नष्ट करना। भव्यता = ऐश्वर्य। जिक्र करना = वर्णन करना। दृश्य = नजारा । ध्वनि = आवाज। प्रकाश = रोशनी। प्रतिनिधि = प्रतिनिधित्व करने वाला, आगे चलने वाला। शहादत = बलिदान। तीव्र = तेज। लालसा = इच्छा। दृढ़ता = मजबूत (इरादे)। लगन = निष्ठा। गला भर आना = रुआँसू होना। कोटड़ी = कोठरी, कैदियों के रहने का कमरा। स्थल = स्थान। प्रत्यक्ष = सामने । कपाट = किवाड़। म्यूजियम = संग्रहालय।
(पा.पु.पृ. 91) परिवर्तन = बदलाव। सॉ मिल = लकड़ी काटने वाली आरा मिल । नुकसान = हानि। जीर्ण-शीर्ण = टूटी-फूटी। अवस्था = हालात, स्थिति । अपराह्न = दोपहर । अनूठा = अद्भुत। नैसर्गिक = प्राकृतिक। सौन्दर्य = सुन्दरता, खूबसूरती। खून करना = जान से मार डालना। साहसी = बहादुर। भयावह = भयानक। अलौकिक = अद्भुत। छटा = दृश्य। दर्शनीय = देखने योग्य। निद्रा = नींद। नियत = निश्चित। विशाल = बड़ा।
(पा.पु.पृ. 92) सदृश = समान। नीलिमा = नीलापन। किनारा = तट। मनमोहक = मन को मोहने वाली। गगनचुम्बी = आकाश को छूने वाले। कलरव = पक्षियों के चहचहाने की आवाज। साहस कर = हिम्मत करके। आनन्द = मजा। सतर्क = सावधान। अवशेष = बचे हुए अंग। पाषाण = पत्थर। आकर्षक = अपनी ओर खींचने वाले। पाबन्दी = रोक। लुफ्त = आनंद। अवलोकन करना = निरीक्षण करना। तृप्त होना = इच्छा पूरी होना। प्रयास = कोशिश। दिवस = दिन। निवृत्त = फ्री होना, करके चुकना।
(पा. पु.पृ. 93) प्रतीत होना = महसूस होना। नसीब होना = प्राप्त होना। क्षण = पल। गौण = अन्य। परम = सबसे अधिक। पावन = पवित्र । वन्दन करना = प्रणाम करना। ख्याति = प्रसिद्धि । व्यय = खर्च। भुजाएँ = कतारें। कोटड़ियाँ = कोठरी, कमरा। एकान्त = अकेला। सदृश = समान। लघुशंका = मूत्र त्याग। दीर्घशंका= शौच। निवारण = निवृत्त होना। रात्रि = रात। समा सकना = आ पाना। शयनकक्ष = सोने का कमरा। दुर्गन्ध = बदबू । स्वीकृति = अनुमति।
(पा. पु.पृ. 94) अनिवार्य = निश्चित। स्वाधीनता = स्वतंत्रता। सेनानी = योद्धा, सैनिक। बेरहमी = बुरी तरह। छूट = मुक्ति। स्वादहीन = बेस्वाद। नीरस = बेस्वाद । सख्त = कठोर। मनाही = रोक। मुकाबला = सामना। जुल्म = अन्याय। कड़ा = कठोर, ‘ सख्त। चप्पे-चप्पे = प्रत्येक स्थान। मध्य = बीच। परिसर = आँगन। बलिदान वेदी स्तंभ = फाँसी का तख्ता। दीर्घा = पंक्ति। ग्राउण्ड फ्लोर = भूमिगत कमरा। क्रूरता = निर्दयता, अमानवीय। साक्षी = प्रमाण। उद्घोष करना = नारे लगाना।
(पा.पु.पृ.95) उपलब्ध होना = प्राप्त होना । क्रूर = निर्दयी। खूखार = खतरनाक । नामकरण करना = नाम रखना। प्रवास = रहने का समय। प्रभावी = प्रभावशाली। बन्दी = कैदी। भयभीत = डरी हुई। डबल लोक = दोहरे ताले में। लालसा = इच्छा। निहारना = देखना। विवश = मजबूर । स्पष्ट = साफ। उत्कीर्ण = छपे हुए। यातना = कष्ट। भू= भूमि । समर्पित करना = सौंपना। चिर = लम्बी। स्मृति = याद। परिसर = आँगन।
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