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RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास आधुनिक काल

July 31, 2019 by Safia Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास आधुनिक काल are part of RBSE Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi Solutions साहित्य का इतिहास आधुनिक काल.

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास आधुनिक काल

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका का सम्पादन भार कब से सँभाला था ?
(क) 1900 ई.
(ख) 1920 ई.
(ग) 1903 ई.
(घ) 1910 ई.
उत्तर:
(क) 1900 ई.

प्रश्न 2.
विवाह मुक्ति एवं पुनर्विवाह की समस्या को प्रसाद जी ने किस नाटक में प्रस्तुत किया ?
(क) चन्द्रगुप्त
(ख) ध्रुवस्वामिनी
(ग) स्कन्दगुप्त
(घ) विशाख
उत्तर:
(ख) ध्रुवस्वामिनी

प्रश्न 3.
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ नामक गीत प्रसाद के किस नाटक का है ?
(क) स्कन्द गुप्त
(ख) ध्रुवस्वामिनी
(ग) चन्द्रगुप्त
(घ) चाणक्य
उत्तर:
(ग) चन्द्रगुप्त

प्रश्न 4.
इनमें से कौन-सा उपन्यास सबसे पहले लिखा गया ?
(क) दिल्ली का दलाल
(ख) सेवासदन
(ग) ठेठ हिन्दी का ठाठ
(घ) चन्द्रकान्ता
उत्तर:
(घ) चन्द्रकान्ता

प्रश्न 5.
‘टोपी शुक्ला’ किसकी कृति है ?
(क) राही मासूम रजा
(ख) मनोहरश्याम जोशी
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) पाण्डेय बेचन शर्मा
उत्तर:
(क) राही मासूम रजा

प्रश्न 6.
जैनेन्द्र का पहला उपन्यास है –
(क) सुनीता
(ख) त्यागपत्र
(ग) परख
(घ) कल्याणी
उत्तर:
(ग) परख

प्रश्न 7.
‘झूठा सच’ का प्रकाशन वर्ष है –
(क) 1947 ई.
(ख) 1957 ई.
(ग) 1960 ई.
(घ) 1968 ई.
उत्तर:
(ग) 1960 ई.

प्रश्न 8.
‘लखनऊ मेरा लखनऊ’ के लेखक इनमें से कौन है ?
(क) रामदरश मिश्र
(ख) अमृतलाल नागर
(ग) मनोहरश्याम जोशी
(घ) भगवतीचरण वर्मा
उत्तर:
(ख) अमृतलाल नागर

प्रश्न 9.
हिन्दी का सांस्कृतिक उपन्यासकार इनमें से कौन है ?
(क) अज्ञेय
(ख) धर्मवीर भारती
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(घ) जयशंकर प्रसाद
उत्तर:
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 10.
‘राई और पर्वत’ उपन्यास के लेखक हैं –
(क) निर्मल वर्मा
(ख) रांघेय राघव
(ग) गिरधर गोपाल
(घ) नरेन्द्र कोहली
उत्तर:
(ग) गिरधर गोपाल

प्रश्न 11.
इनमें से कौन-सा उपन्यास इलाचन्द्र जोशी का नहीं है ?
(क) जहाज का पंछी
(ख) पर्दे की रानी
(ग) व्यतीत
(घ) ऋतुचक्र
उत्तर:
(ग) व्यतीत

प्रश्न 12.
गणेश शंकर विद्यार्थी किस युग के निबंधकार हैं ?
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) शुक्ल युग
(घ) शुक्लोत्तर युग
उत्तर:
(ख) द्विवेदी युग

प्रश्न 13.
विद्यानिवास मिश्र का निबंध संग्रह ‘तुम चन्दन हम पानी’ कब प्रकाशित हुआ ?
(क) 1953 ई.
(ख) 1957 ई.
(ग) 1960 ई.
(घ) 1965 ई.
उत्तर:
(ख) 1957 ई.

प्रश्न 14.
इतिहास और संस्कृति की पृष्ठभूमि में लिखने वाला निबंधकार इनमें से कौन है ?
(क) भगवतशरण उपाध्याय
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(घ) कुबेरनाथ राय
उत्तर:
(घ) कुबेरनाथ राय

प्रश्न 15.
‘चीड़ों पर चाँदनी’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) यशपाल
(ख) डॉ. रघुवंश
(ग) निर्मल वर्मा
(घ) डॉ. नगेन्द्र
उत्तर:
(ग) निर्मल वर्मा

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतेन्दु के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर:
भारतेन्दु जी के पिता का नाम गोपालचन्द्र तथा उपनाम गिरिधरदास था।

प्रश्न 2.
भारतेन्दु ने कौन-सी पत्रिका निकाली ?
उत्तर:
भारतेन्दु जी ने -‘कविवचन सुधा’ तथा ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ पत्रिकाएँ निकाली।

प्रश्न 3.
‘रामायण’ महानाटक के रचयिता कौन हैं ?
उत्तर:
‘रामायण महानाटक’ के रचयिता प्राणचन्द चौहान हैं।

प्रश्न 4.
‘एकान्तवासी योगी’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
‘एकान्तवासी योगी’ श्रीधर पाठक की रचना है।

प्रश्न 5.
‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ पुरस्कार किसे प्रदान किया गया ?
उत्तर:
मंगलाप्रसाद पुरस्कार पहले अयोध्यासिंह उपाध्याय को और फिर महादेवी वर्मा को उनकी काव्य कृतियों के लिए प्रदान किया गया।

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतेन्दु युग के निबंधकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतेन्दु युग के प्रमुख निबंधकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्री निवासदास, राधाचरण गोस्वामी, काशीनाथ खत्री आदि थे।

प्रश्न 2.
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
द्विवेदी जी की गद्य-पद्य की रचनाओं की संख्या लगभग 80 है। पद्य रचनाओं में काव्य मंजूषा’, ‘सुमन’,’कान्यकुब्ज अबला विलाप’ ‘गंगा लहरी’, ‘ऋतु तरंगिणी’, कुमारसम्भव सार (अनुवाद) आदि हैं। ‘रसज्ञ रंजन’, ‘आत्मनिवेदन’ ‘प्रभात’, ‘म्यूनिस-पैलिटी कारनामे’ ‘प्राचीन पंडित और कवि’, ‘सुकवि संकीर्तन’, चरित चर्चा ‘अनुमोदन का अंत’, ‘सभा की सभ्यता ‘विज्ञानाचार्य बसु का विज्ञान मंदिर’ आदि द्विवेदी जी की गद्य रचनाएँ हैं।

प्रश्न 3.
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद रचित नाटक हैं-‘सज्जन’, ‘कल्याणी परिणय’, ‘प्रायश्चित’, ‘करुणालय’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’, ‘अजातशत्रु’, ‘कामना’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘एक बूट’, ‘चन्द्रगुप्त’ तथा ध्रुवस्वामिनी।

प्रश्न 4.
छायावादी कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
छायावादी कवियों में प्रमुख नाम हैं- जयशंकर प्रसाद, इनकी रचना कामायिनी प्रसिद्ध है। सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ इनकी ‘राम की शक्ति पूजा’ एक उत्कृष्ट रचना है। महादेवी वर्मा, इनके गीत संग्रह ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’ तथा ‘यामा’ लोकप्रिय रचनाएँ हैं। सुमित्रानंदन पंत ‘उच्छ्वास’, ‘ग्रन्थि’, ‘वीणा’ आपकी प्रसिद्ध छायावादी रचनाएँ हैं। अन्य कवियों में माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, भगवती चरण वर्मा, रामकुमार वर्मा, मोहनलाल महतो, लक्ष्मी नारायण मिश्र, गोपालसिंह नेपाली तथा केदारनाथ मिश्र आदि हैं।

प्रश्न 5.
‘प्रथम तार सप्तक’ के कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रथम तार सप्तक के सात कवि हैं- नेमिचन्दजैन, गजानन माधव मुक्तिबोध, भारत भूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे। गिरिजा कुमार माथुर, राम विलास शर्मा तथा अज्ञेय हैं।

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतेन्दुयुगीन निबंधकारों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
भारतेन्दु युग में सबसे अधिक सफलता निबंध लेखन में प्राप्त हुई। निबंधों का संबंध पत्र-पत्रिकाओं से सीधे जुड़ा हुआ था। इस युग में राजनीति, समाज-सुधार, धर्म-अध्यात्म, आर्थिक दुर्दशा, अतीत का गौरव, महापुरुषों की जीवनियाँ आदि विषयों पर निबंध लिखे गए। भारतेन्दु युग के प्रमुख निबंधकार थे- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्रीनिवासदास, राधाचरण गोस्वामी, काशीनाथ खत्री आदि। इन सभी निबंधकारों का संबंधी किसी-न-किसी पत्र-पत्रिकाओं से था। भारतेन्दु ने हरिश्चन्द्र मैगजीन’, प्रतापनारायण मिश्र ने ‘ब्राह्मण’, बालकृष्ण भट्ट ने ‘हिन्दी प्रदीप’, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ ने ‘आनन्दकादम्बनी’, श्रीनिवासदास ने ‘सदादर्श’ और राधाचरण गोस्वामी ने ‘भारतेन्दु’ का सम्पादन किया था।

बालकृष्ण भट्ट इस युग के सर्वाधिक समर्थ निबंधकार थे। उन्होंने सामयिक समस्याओं पर जमकर लिखा। ‘बालविवाह’, ‘स्त्रियाँ और उनकी शिक्षा’, ‘राजा और प्रजा’, ‘कृषकों की दुरावस्था’, ‘अंग्रेजी शिक्षा और प्रकाश’, ‘हमारे नये सुशिक्षितों में परिवर्तन’, ‘देश-सेवा-महत्त्व’, ‘महिला-स्वातंत्र्य’ आदि निबंध इसी प्रकार के हैं। इनके अतिरिक्त उन्होंने मनोभावों से संबंधित निबंध भी लिखे। इस युग में विचारात्मक, भावात्मक, वर्णनात्मक, विवरणात्मक, कथात्मक, इतिवृत्तात्मक, अनुसन्धानात्मक एवं भाषण आदि सभी शैलियों के निबंध लिखे गए।

प्रश्न 2.
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी युग की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का साहित्य क्षेत्र में पदार्पण होने के बाद, हिन्दी काव्य और गद्य क्षेत्र में अनेक सुधार तथा परिवर्तन हुए। सामाजिक और राजनीतिक वातावरण बदलने का प्रभाव साहित्य में प्रतिबिम्बित होने लगा। कविता की भाषा ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली होने लगी। कविता के विषयों में विविधता आ गई। ‘सरस्वती’ के प्रकाशन से हिन्दी-साहित्य में अभूतपूर्व परिवर्तन आए। द्विवेदी जी की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त, गोपालशरण सिंह, गया प्रसाद शुक्ल अयोध्यासिंह उपाध्याय, नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ आदि कवियों ने हिन्दी कविता की भाषा, शैली, विषय और सोच सभी को समयानुसार बदल डाला।

हिन्दी गद्य की प्रायः सभी विधाएँ फूली-फलीं। पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक तथा रोमांचक नाटक लिखे गए। उपन्यासों में तिलस्मी, जासूसी उपन्यासों के साथ-साथ, ऐतिहासिक तथा सामाजिक उपन्यास भी लिखे गये। कहानियाँ भी खूब लिखी गईं। जयशंकर प्रसाद जी की कहानियाँ तथा चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की प्रसिद्ध कहानी ‘उसने कहा था’ इसी युग की देन हैं। महावीर प्रसाद द्विवेदी, गोविन्द नारायण मिश्र, बाल मुकुन्द गुप्त, सरदार पूर्ण सिंह, रामचन्द्र शुक्ल, गणेश शंकर विद्यार्थी आदि ने निबन्ध-भण्डार को बढ़ाया। इनके अतिरिक्त आलोचना, जीवनी, यात्रावृत्त, संस्मरण आदि विधाओं में भी रचनाएँ हुईं।

प्रश्न 3.
छायावादी काव्य एवं काव्यकारों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
छायावाद का विकास द्विवेदीयुगीन कविता के बाद हुआ। छायावादी काव्य की समय सीमा मोटे रूप से 1918 ई. से 1936 ई. तक मानी जा सकती है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार – “छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए एक तो रहस्यवाद के अर्थ में, जहाँ उसका संबंध काव्यवस्तु से होता है, अर्थात् जहाँ कवि उस अनन्त और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यन्त चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में है।”
जयशंकर प्रसाद के अनुसार – “जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब हिंदी में उसे ‘छायावाद’ के नाम से अभिहित किया गया।

डॉ. नगेन्द्र के अनुसार – “छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है।
छायावादी काव्य और काव्यकारों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है

जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक सम्पन्न घराने में हुआ था, जो ‘सुंघनी साहु’ के नाम से प्रसिद्ध था। कवि होने के साथ-साथ ये गंभीर चिंतक भी थे। ‘कामायनी’ इनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। इनकी काव्य रचनाएँ हैं ‘वनमिलन’ ‘प्रेमराज्य’ ‘शोकोच्छ्वास’, ‘कानन कुसुम’, ‘प्रेम पथिक’, ‘करुणालय’, ‘झरना’, ‘आंसू’, लहर’। इनकी कविताओं में स्वार्थ का निषेध कर भारतीय समाज और विश्व के कल्याण की प्रतिष्ठा की गई है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म महिषादल स्टेट मेदिनीपुरी (बंगाल) में बसंत पंचमी को हुआ। इनका जीवन अनेक अभावों एवं विपत्तियों से भरा रहा। ये अपनी धुन के पक्के और फक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे। इनकी रचनाएँ – ‘जूही की कली’ (1916), ‘अनामिका’ (1923), ‘परिमल’ (1930), ‘गीतिका’ (1936), ‘तुलसीदास’ (1937)। इन्होंने ‘मतवाला’ और ‘समन्वय’ का संपादन भी किया। इनकी लम्बी कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ इनकी ही नहीं वरन् संपूर्ण छायावादी काव्य की एक उत्कृष्ट उपलब्धि है।

सुमित्रानन्दन पंत का जन्म उत्तरप्रदेश के जिला अल्मोड़ा के कौसानी ग्राम में हुआ था। बचपन में मातृस्नेह से वंचित हुए बालक पंत का मन अल्मोड़ा की प्राकृतिक सुषमा की ओर आकृष्ट हुआ। इनके प्रमुख काव्य ग्रंथ हैं – ‘उच्छ्वास’, ‘ग्रन्थि’,’वीणा’, पल्लव’ और ‘गुंजन’। ‘वीणा’ इनका अंतिम छायावादी काव्य-संग्रह कहा जा सकता है। महादेवी वर्मा का जन्म उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ। इनके काव्य संग्रह हैं – ‘नीहार’ (1930), ‘रश्मि’ (1932), ‘नीरज’ (1935), ‘नीरजा’ (1935) और ‘सान्ध्यगीत’ (1936)। ‘यामा’ (1940) में ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’ और ‘सान्ध्यगीत’ के सभी गीतों का संग्रह है।

छायावाद के अन्य कवियों में माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, भगवतीचरण वर्मा, डॉ. रामकुमार वर्मा, मोहनलाल महतो वियोगी’, लक्ष्मीनारायण मिश्र, जनार्दनप्रसाद झा ‘द्विज’, गोपालसिंह नेपाली, केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’, आर.सी.प्रसाद सिंह आदि उल्लेखनीय हैं। इस काल में प्रेम और मस्ती का काव्य भी खूब लिखा गया। इन कवियों में हरिवंशराय बच्चन’, नरेन्द्र शर्मा, गोपालसिंह नेपाली, हृदयेश, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, अंचल आदि उल्लेखनीय हैं। निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि छायावाद में स्वच्छन्दतावादी प्रवृत्ति मिलती है किन्तु इसमें नैतिक दृष्टि प्रधान है। छायावादी काव्य सर्ववाद, कर्मवाद, वेदांत, शैव दर्शन, अद्वेतवाद, भक्ति आदि भारतीय सिद्धांतों को लेकर चलता है। इसकी अभिव्यंजना शैली में नवीनता है।

प्रश्न 4.
प्रगतिवादी काव्य के कवियों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और रचनाएँ इस प्रकार हैं- ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’ (पंत), ‘कुकुरमुत्ता’ (निराला), ‘युग की गंगा’ (केदारनाथ अग्रवाल) ‘युगधारा’ (नागार्जुन), ‘धरती’ (त्रिलोचन), ‘जीवन के गान’, ‘प्रलय सृजन’ (शिवमंगलसिंह सुमन), ‘अजेय खंडहर’, ‘पिघलते पत्थर’, ‘मेधावी’ (रांघेय राघव), ‘मुक्तिमार्ग’, ‘जागते रहो’ (भारतभूषण अग्रवाल)। निराला जी व्यक्तिगत प्रणय के ही गीत न गाकर लोक-जीवन के सुख-दुःख को, यातना और संघर्ष को गहराई से उभारते हैं। निराला जी ने छायावाद से एकदम हटकर प्रगतिशील कविताएँ लिखी तथा छायावादी कविताओं से हटकर लोकपरक कविताएँ लिखीं। इनकी प्रगतिवादी कविताओं में ‘कुकुरमुत्ता’, ‘गर्म पकौड़ी’, ‘प्रेम-संगीत’, ‘रानी और कानी’, ‘खजोहरा’, ‘मास्को डायलाग्स’, ‘स्फटिक शिला’ और ‘नये पत्ते’ प्रमुख हैं। सुमित्रानन्दन पंत ने सन् 1936 ई. में ‘युगान्त’ की घोषणा कर 1939 ई. में ‘युगवाणी’ और सन् 1940 में ‘ग्राम्या’ लिखी। पंत ने मार्क्सवादी दर्शन को चिन्तन के स्तर पर स्वीकार किया।

केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 9 जुलाई सन् 1911 को कमासिन, जिला बांदा में हुआ। ये प्रगतिवादी वर्ग के सशक्त कवि हैं। ‘माझी न बजाओ वंशी’, ‘बसन्ती हवा’ आदि प्रतिनिधि कविताएँ ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ में संगृहीत हैं। रामविलास शर्मा का जन्म 1912 में झांसी में हुआ। ये प्रख्यात प्रगतिवादी समीक्षक हैं। ये प्रगतिशील लेखक संघ के मंत्री तथा ‘हंस’ के सम्पादक भी रहे। नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र है। इनका जन्म 1910 में तरौनी (दरभंगा) में हुआ था। ‘बादल को घिरते देखा’, ‘पाषाणी’, ‘चन्दना’, ‘रवीन्द्र के प्रति’, सिन्दूर तिलकित भाल’, ‘तुम्हारी दंतुरित मुस्कान’ आदि कविताएँ इनकी उत्तम प्रगतिवादी कविताएँ हैं। रांघेय राघव बहुमुखी प्रतिभा के प्रगतिवादी कवि हैं। ‘अजेय खंडहर’, ‘मेधावी’ और ‘पांचाली’ उनकी प्रबंधात्मक कृतियाँ हैं। रांघेय राघव की कविताओं में समाजवादी चिन्तन और उससे अनुप्राणित सामाजिक संवेदना की शक्ति है। अन्य प्रमुख कवियों में शिवमंगलसिंह सुमन (1915), त्रिलोचन (1917), मुक्तिबोध, अज्ञेय, भारतभूषण अग्रवाल, भवानीप्रसाद मिश्र, नरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती आदि हैं।

प्रश्न 5.
समकालीन हिंदी कहानी पर सारगर्भित टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सन् 1970 तक पहुँचते-पहुँचते हिन्दी कहानी ने साहित्य के अन्य रूपों की तुलना में केन्द्रीय स्थान बना लिया है। राजनीतिक, सामाजिक भटकाव की स्थिति में नई पीढ़ी के सृजनात्मक एवं मानिसक स्तर को उन्नत किया है। आठवें दशक के कहानीकारों ने जीवन के विविध, अंतरंग और तनावपूर्ण छवियों के जो चित्र ‘यथार्थ’ रूप में अंकित किए हैं, वे पुरानी पीढ़ी से एकदम अलग हैं। अब इस कहानी का स्वर अस्तित्ववादी न रहकर मानववादी हो गया है।

समकालीन कहानी जिसे नई कहानी भी कहा गया है, में नगरबोध की प्रवृत्ति प्रमुखता से व्यक्त हुई है। आज के नगरीय जीवन में पाई जाने वाली सतही सहानुभूति, आन्तरिक ईर्ष्या, स्वार्थपरता, जीवन की कृत्रिमता आदि की अभिव्यक्ति कमलेश्वर, निर्मल वर्मा, अमरकान्त की कहानियों में देखी जा सकती है। आधुनिक बोध से उत्पन्न अकेलेपन एवं रिक्तता की अनुभूति, युगीन संक्रमण एवं तनाव को भी उसमें अभिव्यक्त किया गया है। नई कहानी को समृद्ध करने में हिन्दी कथा लेखिकाओं का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। उषा प्रियंवदा, मन्नू भण्डारी, कृष्णा सोबती, शिवानी, मेहरुन्निसा परवेज एवं रजनीपनिकर जैसी कहानी लेखिकाओं ने पति-पत्नी एवं नारीपुरुष संबंधों को अपनी कहानियों में प्रमुखता से अभिव्यक्त किया है। मैं हार गई, त्रिशंकु, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच हैआदि मन्नू भण्डारी के कहानी संग्रह हैं।

प्रेम और विवाह के कटु-मधुर संबंधों का चित्रण भी नए कहानीकारों ने किया है। कमलेश्वर की ‘बयान’, ‘राजा निरबंसिया’, राजेन्द्र यादव की ‘टूटना’, ‘मन्नू भण्डारी’ की ‘यही सच है’ और मोहन राकेश की ‘अपरिचित’ कहानियाँ इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। नए कहानीकारों में कुछ चर्चित नाम हैं- महीप सिंह, दिनेश पालीवाल, राजकुमार भ्रमर, नरेन्द्र कोहली, गोविन्द मिश्र, श्रद्धा कुमार, ममता कालिया, निरूपमा सोबती, दीप्ति खण्डेलवाल आदि। नई कहानी हिन्दी कथा विकास यात्रा की एक उपलब्धि है। नई कहानी में मूल्यहीनता न होकर मूल्यों का परिवर्तन है। नई कहानी किसी एक क्षण या एक स्थिति या एक संवेदना को व्यक्त करने वाली कहानी है। मानव की दृष्टि बदलने के साथ ही नई कहानी का शिल्प भी बदला है। कुछ अन्य कहानीकार हैं- मृदुला गर्ग, मणिका मोहिनी, मार्कण्डेय, राजी सेठ, महेन्द्र भल्ला, अब्दुल विस्मिल्लाह, सर्वेश्वर दयाल, रामदरश मिश्र आदि।

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतेन्दु युग का उदय हुआ –
(क) 1868 में
(ख) 1870 में
(ग) 1865 में
(घ) 1872 में
उत्तर:
(क) 1868 में

प्रश्न 2.
भारतेन्दु युग के नाटककार हैं –
(क) प्राणचंद चौहान
(ख) विश्वनाथ प्रताप सिंह
(ग) राधाचरण गोस्वामी
(घ) रघुराय नागर
उत्तर:
(ग) राधाचरण गोस्वामी

प्रश्न 3.
जासूसी उपन्यासों का प्रारम्भ किया –
(क) देवकीनंदन खत्री ने
(ख) रामलाल वर्मा ने
(ग) दुर्गाप्रसाद खत्री ने
(घ) गोपालराम गहमरी ने
उत्तर:
(घ) गोपालराम गहमरी ने

प्रश्न 4.
हिन्दी की प्रथम कहानी है –
(क) ग्यारह वर्ष का समय
(ख) इन्दुमती
(ग) दुलाई वाली
(घ) प्लेग की चुडैल
उत्तर:
(ख) इन्दुमती

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में छायावादी कवि हैं –
(क) अयोध्यासिंह उपाध्याय
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) अज्ञेय
उत्तर:
(ग) महादेवी वर्मा

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में प्रगतिवादी कवि नहीं हैं –
(क) निराला
(ख) केदारनाथ अग्रवाल
(ग) रांघेय राघव
(घ) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(क) निराला

प्रश्न 7.
‘गजानन माधव मुक्तिबोध’ है –
(क) छायावादी कवि
(ख) प्रकृति प्रेमी कवि
(ग) प्रयोगवादी कवि
(घ) प्रगतिवादी कवि
उत्तर:
(ग) प्रयोगवादी कवि

प्रश्न 8.
छायावादोत्तर काल के प्रसिद्ध एकांकीकार हैं –
(क) भगवती चरण वर्मा
(ख) गणेश प्रसाद द्विवेदी
(ग) उदयशंकर भट्ट
(घ) रूपनारायण पाण्डेय
उत्तर:
(ग) उदयशंकर भट्ट

प्रश्न 9.
संस्मरणात्मक रेखाचित्र विधा में महत्वपूर्ण योगदान है –
(क) रामधारीसिंह दिनकर का
(ख) महादेवी वर्मा का
(ग) अज्ञेय का
(घ) नगेन्द्र का
उत्तर:
(ख) महादेवी वर्मा का

प्रश्न 10.
समकालीन ललित निबंधकार हैं –
(क) विद्यानिवास मिश्र
(ख) जैनेन्द्र
(ग) शान्तिप्रिय द्विवेदी
(घ) श्रीराम शर्मा
उत्तर:
(क) विद्यानिवास मिश्र

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतेन्दु युग के चार प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतेन्दुयुगीन चार प्रमुख कवि हैं –

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  2. प्रताप नारायण मिश्र
  3. बदरीनाथ चौधरी ‘प्रेमघन’
  4. अम्बिकादत्त व्यास।

प्रश्न 2.
भारतेन्दु रचित चार नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतेन्दु रचित चार नाटक हैं –

  1. सत्य हरिश्चन्द्र
  2. भारत दुर्दशा
  3. नीलदेवी
  4. अंधेर नगरी।

प्रश्न 3.
भारतेन्दु युग में किस-किस प्रकार के उपन्यास लिखे गए?
उत्तर:
भारतेन्दु युग में सामाजिक, ऐतिहासिक, तिलस्मी, जासूसी तथा रोमानी उपन्यास लिखे गए।

प्रश्न 4.
बालकृष्ण भट्ट ने किन विषयों पर निबन्ध लिखे?
उत्तर:
बालकृष्ण भट्ट ने बालविवाह, स्त्री शिक्षा, किसानों की दुर्दशा, अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव, समाज के सुशिक्षित लोग, देश-सेवा, महिला स्वतंत्रता आदि सामाजिक विषयों पर निबंध लिखे।

प्रश्न 5.
द्विवेदी युग में हिन्दी कविता की भाषा में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर:
द्विवेदी युग में हिन्दी कविता की भाषा खड़ी बोली बनाई गई।

प्रश्न 6.
अयोध्यासिंह उपाध्याय की प्रसिद्धि किसलिए है?
उत्तर:
अयोध्यासिंह उपाध्याय ने खड़ी बोली हिन्दी में प्रथम महाकाव्य ‘प्रियप्रवास’ की रचना की।

प्रश्न 7.
‘उसने कहा था’ कहानी के लेखक कौन थे?
उत्तर:
‘उसने कहा था’ कहानी के लेखक चन्द्रधर शर्मा गुलेरी थे।

प्रश्न 8.
द्विवेदी युग में किन राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियाँ लिखी गई थीं?
उत्तर:
द्विवेदी युग में लाला लाजपतराय, अरविंद घोष, गाँधीजी, मदन मोहन मालवीय तथा लोकमान्य तिलक आदि राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियाँ लिखी गईं।

प्रश्न 9.
स्वामी सत्यदेव परिव्राजक लिखित यात्रावृत्तों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वामी जी लिखित यात्रावृत्त हैं –

  1. अमरीका दिग्दर्शन
  2. मेरी कैलाश-यात्रा
  3. अमरीका भ्रमण।

प्रश्न 10.
छायावादी काव्य के तीन प्रसिद्ध रचनाकारों तथा उनकी एक-एक रचना के नाम लिखिए।
उत्तर:
तीन छायावादी कवि तथा उनकी एक-एक रचना इस प्रकार हैं –

  1. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, रचना – ‘अनामिका’
  2. सुमित्रानंदन पंत्र, रचना – ‘वीणा’
  3. महादेवी, रचना – ‘सांध्यगीत’।

प्रश्न 11.
‘सिन्दूर की होली’ नाटक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
‘सिन्दूर की होली’ नाटक के लेखक छायावादकालीन नाटककार लक्ष्मी नारायण मिश्र हैं।

प्रश्न 12.
जयशंकर प्रसाद लिखित तीन प्रसिद्ध कहानियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद की तीन प्रसिद्ध कहानियाँ हैं –

  1. आकाशदीप
  2. पुरस्कार
  3. गुण्डा।

प्रश्न 13.
छायावादी काव्यधारा के समर्थक चार आलोचकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
छायावाद के समर्थक चार आलोचनाकार हैं –

  1. नन्ददुलारे वाजपेयी
  2. डा. नगेन्द्र
  3. सुमित्रानंदन पंत
  4. शांतिप्रिय द्विवेदी।

प्रश्न 14.
रोमानीधारा की चार रचनाएँ और उनके रचनाकारों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रचनाएँ एवं लेखक हैं-

  1. ‘कदलीवन’ – नरेन्द्र वर्मा
  2. ‘पंछी’ – गोपालसिंह नेपाली
  3. ‘छबि के बंधन’ – भारत भूषण
  4. ‘निशा-निमंत्रण’- हरिवंश राय बच्चन।

प्रश्न 15.
‘प्रगतिवादी काव्य’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
जो काव्य मार्क्सवादी दर्शन जनित सामाजिक चेतना और भावबोध को अपना लक्ष्य बनाकर चला, उसे प्रगतिवाद कहा गया।

प्रश्न 16.
हिन्दी काव्य में ‘प्रयोगवाद’ का प्रारंभ कब से माना गया है?
उत्तर:
हिन्दी काव्य में ‘प्रयोगवाद’ का प्रारंभ सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ के प्रकाशन से माना जाता है।

प्रश्न 17.
नई कविता की एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
नई कविता में परंपरागत जीवन मूल्यों की नए दृष्टिकोण से व्याख्या की गई है।

प्रश्न 18.
‘बावरा अहेरी’ रचना के रचनाकार कौन हैं? लिखिए।
उत्तर:
‘बावरा अहेरी’ रचना के रचयिता सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हैं।

प्रश्न 19.
धर्मवीर भारती तथा मोहन राकेश लिखित एक-एक एकांकी का नाम लिखिए।
उत्तर:
धर्मवीर भारती लिखित एकांकी है- ‘नदी प्यासी थी’ तथा मोहन राकेश लिखित एकांकी ‘अंडे के छिलके’ है।

प्रश्न 20.
‘शेखर एक जीवनी’ किस गद्य विधा की रचना है?
उत्तर:

‘शेखर एक जीवनी’ उपन्यास विधा की रचना है।

प्रश्न 21.
समकालीन कहानी को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
समकालीन कहानी को ‘नई कहानी’ नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 22.
‘मुक्तिबोध’ के दो निबंध-संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
‘मुक्तिबोध’ के दो निबंध-संग्रह हैं –

  1. ‘नयी कविता का आत्मसंघर्ष’ तथा
  2. ‘नए साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र।’

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतेन्दु युग के साहित्य पर समकालीन जन चेतना और पुनर्जागरण का प्रभाव किस रूप में पड़ा? लिखिए।
उत्तर:
भारतेन्दु युग में जन-चेतना पुनर्जागरण की भावना से अनुप्राणित थी; फलस्वरूप सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में न केवल सक्रियता थी, अपितु इन सबमें गहरे आंतरिक संबंध विद्यमान थे। भारतेन्दुयुगीन कवियों पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। मातृभूमि-प्रेम, स्वदेशी वस्तुओं का व्यवहार, गोरक्षा, बालविवाह-निषेध, शिक्षा-प्रसार का महत्त्व, मद्य-निषेध, भ्रूण हत्या की निन्दा आदि विषयों को कविगण अधिकाधिक अपनाने लगे थे। राष्ट्रीय भावना का उदय भी इस काल की अनन्य विशेषता है।

प्रश्न 2.
भारतेन्दुकालीन प्रसिद्ध कवियों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस युग में शताधिक कवियों ने विविध प्रवृत्तियों के अन्तर्गत काव्य-रचना की है, किन्तु उनमें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, प्रतापनारायण मिश्र, जगमोहन सिंह, अम्बिकादत्त व्यास और राधाकृष्णदास ही प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त श्रीधर पाठक (1859-1928), बालमुकुन्द गुप्त (1865-1907) और हरिऔध (1865-1945) की कविताओं का प्रकाशन भी इस युग में आरंभ हो गया था।

प्रश्न 3.
भारतेन्दु युग में किन-किन विषयों पर नाट्य रचना हुई? लिखिए।
उत्तर:
इस युग में पौराणिक, ऐतिहासिक, रोमानी एवं समसामयिक समस्याओं को लेकर नाटक लिखे गए। ऐतिहासिक नाटकों में भारतेन्दु का ‘नीलदेवी’, श्रीनिवासदास का संयोगिता स्वयंवर’, राधाचरण गोस्वामी का ‘अमर सिंह राठौर’ आदि हैं। रोमानी नाटकों में श्रीनिवासदास का ‘रणधीर प्रेममोहिनी’ किशोरीलाल गोस्वामी का ‘प्रणयिनी परिणय’ ‘मंजरी’, शालिग्राम शुक्ल का ‘लावण्यवती सुदर्शन’ उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 4.
द्विवेदी युग में कविता की भाषा और विषयों में क्या परिवर्तन आया ? इसका श्रेय किसे जाता है?
उत्तर:
जब आचार्य द्विवेदी ‘सरस्वती’ के सम्पादक बने तो उन्होंने विविध विषयों पर कविताएँ लिखने के लिए कवियों को प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप कुछ कवियों ने अपना रास्ता बदला। द्विवेदी जी के प्रयत्नों से खड़ी बोली काव्य की मुख्य भाषा बन गई। विविध विषयों पर काव्य-रचना होने लगी। व्याकरण की दृष्टि से भाषा का मानक रूप सामने आने लगा। मैथिलीशरण गुप्त, गोपालशरण सिंह, अयोध्यासिंह उपाध्याय तथा नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ आदि ने खड़ी बोली अपनाई।

प्रश्न 5.
द्विवेदी युग में ‘आलोचना’ विधा के विकास का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
द्विवेदी युग में आलोचना का भी विकास हुआ। जगन्नाथप्रसाद ‘भानु’ ने ‘काव्य प्रभाकर’ तथा ‘छंद सारावली’ और लाला भगवानदीन ने ‘अलंकार मंजूषा’ नामक आलोचना लिखी। तुलनात्मक आलोचना का आरंभ पद्मसिंह शर्मा ने बिहारी और सादी की तुलना द्वारा किया। मिश्रबन्धुओं, लाल भगवानदीन, कृष्णबिहारी मिश्र अनुसन्धानपरक आलोचना का विकास ‘नागरीप्रचारिणी पत्रिका’ के प्रकाशन से हुआ। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ में परिचयात्मक आलोचनाएँ लिखीं।

प्रश्न 6.
द्विवेदी युग के रचनाकार गोपालराम गहमरी किस विधा में लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं? लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी में जासूसी उपन्यासों का प्रवर्तन गोपालराम गहमरी ने किया। आर्थर के उपन्यास ‘ए स्टडी इन स्कारलेट’ का इन्होंने ‘गोविन्दराम’ नाम से अनुवाद किया। ‘सरकटी लाश’, चक्करदार चोरी’, ‘जासूस’, ‘गुप्त भेद’, ‘जासूस की ऐयारी’ आदि उनके प्रसिद्ध जासूसी उपन्यास हैं।

प्रश्न 7.
द्विवेदीयुगीन कहानीकार प्रेमचंद जी की प्रमुख कहानियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रेमचंद जी ने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं- ‘बलिदान’, ‘आत्माराम’, ‘बूढ़ीकाकी’, ‘विचित्र होली’, ‘गृहदाह’, ‘हार की जीत’, ‘परीक्षा’, ‘आपबीती’, ‘उद्धार’, ‘सवासेर गेहूँ’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘माता का हृदय’, ‘कजाकी’, ‘सुजान भगत’, ‘इस्तीफा’, ‘अलग्योझा’, ‘पूस की रात’, ‘ठाकुर का कुआं’, ‘बेटों वाली विधवा’, ‘ईदगाह’,’नशा’, ‘बड़े भाई साहब’, ‘कफन’ आदि।

प्रश्न 8.
द्विवेदी युग में ‘संस्मरण’ विधा की स्थिति क्या थी? लिखिए।
उत्तर:
इस युग में ‘सरस्वती’ पत्रिका में कुछ संस्मरण भी समय-समय पर छपे, जिनमें महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुमोदन का अन्त’, ‘सभा की सभ्यता’, ‘विज्ञानाचार्य बसु का विज्ञान मंदिर’, रामकुमार खेमका ‘इधर-उधर की बातें, जगद्बिहारी सेठ ‘मेरी बड़ी छुट्टियों का प्रथम सप्ताह’ प्यारेलाल मिश्र ‘लन्दन का फाग या कुहरा’ प्रमुख हैं। पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित संस्मरण-साहित्य की दृष्टि से ‘हरिऔध जी के संस्मरण’ ही इस युग की उल्लेखनीय कृति हैं।

प्रश्न 9.
छायावाद काल के कहानीकार जैनेन्द्र तथा अज्ञेय की कहानियों में अंतर स्पष्ट करते हुए, अज्ञेय की प्रमुख कहानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हिन्दी-कहानी में अज्ञेय का स्थान जैनेन्द्र के समान ही महत्त्वपूर्ण है। जैनेन्द्र जहाँ मन:संसार में रमे रहते थे वहीं अज्ञेय के पात्र बहिर्मुखी हैं जो समाज तथा आसपास की परिस्थितियों से जूझने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते हैं। भारतीय समाज की रूढ़िप्रियता, शोषण, वर्तमान विश्व में व्याप्त संघर्ष आदि को लेकर उन्होंने अनेक कहानियाँ लिखी हैं। उनका प्रथम कहानी संग्रह त्रिपथगा’ है। इसी प्रकार ‘कड़ियाँ’, ‘अमर वल्लरी’, ‘मैना’, ‘सिगनेलर’, ‘रेल की सीटी’, ‘रोज’, ‘हरसिंगार’ आदि प्रसिद्ध कहानियाँ हैं।

प्रश्न 10.
छायावाद युग के प्रमुख निबंधकार कौन थे? उनके निबंध साहित्य का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस युग के सबसे प्रमुख निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं। इनके निबंध ‘चिन्तामणि’ के दो खण्डों में संकलित हैं। मनोविकार संबंधी निबंधों में आचार्य जी ने उत्साह, श्रद्धा, भक्ति, करुणा, लज्जा, ग्लानि, लोभ, प्रीति, ईर्ष्या, भय आदि भावों का विश्लेषण किया है। शुक्लजी का विशद पाण्डित्य, प्रौढ़ चिन्तन, सूक्ष्म विश्लेषण, व्यापक अनुभव सब कुछ अपने उत्कर्ष पर पहुँचा दिखाई देता है।

प्रश्न 11.
छायावाद युग में ‘जीवनी’ विधा के विकास का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
छायावाद युग में जीवनी लेखन की दिशा में पर्याप्त कार्य हुआ। इस समय राष्ट्रीय नेताओं पर जीवनियाँ लिखी गईं। ‘देशभक्त लाला लाजपतराय’, ‘बालगंगाधर तिलक’, ‘गाँधी मीमांसा’, गाँधी जी कौन हैं’, ‘गाँधी गौरव’, ‘चंपारन में महात्मा गांधी’, ‘चन्द्रशेखर आजाद’, (1938) प्रमुख हैं। इस काल में भारतीय इतिहास के महापुरुषों एवं महिलाओं से संबंधित जीवनियाँ भी लिखी गईं। इनमें ‘पृथ्वीराज चौहान’, ‘महाराणा प्रतापसिंह’, ‘सच्ची देवियाँ’।

प्रश्न 12.
छायावाद काल में संस्मरणात्मक रेखाचित्र’ नामक नई विधा के लोखकों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
इस युग में संस्मरणात्मक रेखाचित्रों की एक नई विधा का भी प्रचलन हुआ। जिसके विकास में श्रीराम शर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी तथा महादेवी वर्मा ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। श्रीराम शर्मा कृत ‘बोलती प्रतिमा’ विशेष उल्लेखनीय है। महादेवी जी के संस्मरणात्मक रेखाचित्रों में ‘रामा’, ‘बिन्दु’, ‘सबिया’, ‘बिट्टो’, घीसा’ आदि प्रमुख हैं। चतुर्वेदी जी ने संतों, समाजसेवियों, देशसेवकों और साहित्यकारों से संबंधित अनेक संस्मरणात्मक रेखाचित्र लिखे।

प्रश्न 13.
छायावादोत्तर काल का आरम्भ कब से माना जाता है? इसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
छायावाद युग की समाप्ति (1936 ई.) से आगे का समय छायावादोत्तर काल कहा गया है। इस बीच का साहित्य कई वादों और धाराओं से होकर गुजरा है। विभिन्न प्रकार की जीवन दृष्टियाँ, काव्य की वस्तु और शिल्प संबंधी मान्यताएँ उभरी हैं। इस

समय के साहित्य में व्यक्तिगत अनुभूति की गहनता, सामाजिक अनुभूति का विस्तार, रोमानी तथा बौद्धिक यथार्थवादी आदि दृष्टियाँ विकसित हुईं। इस समय काव्य की जो धाराएँ मुख्य रूप से उभरीं जिनमें राष्ट्रीय-सांस्कृतिक कविता, उत्तर छायावाद, वैयक्तिक गीतिकाव्य, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नयी कविता धारा प्रमुख हैं।

प्रश्न 14.
उत्तर:
छायावाद युग की प्रमुख राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक रचनाओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
उत्तर काव्यवाद युग की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्य धारा की प्रमुख कृतियों में ‘नहुष’, ‘कुणालगीत’, ‘अजित’, ‘जयभारत’, ‘माता’, ‘समर्पण’, ‘युगचरण’, ‘विनोबा-स्तवन’, ‘हम विषपायी जनम के’, ‘नकुल’, ‘नोआखाली’, ‘जयहिन्द’, ‘आत्मोत्सर्ग’, ‘हुंकार’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘दिल्ली’, ‘वासवदत्ता’, ‘भैरवी’, ‘कुणाल’, ‘सूत की माला’, ‘हल्दीघाटी’, ‘जौहर’, ‘मानसी’, ‘अमृत और विष’, ‘युगदीप’, ‘एकला चलो रे’ तथा ‘कालदहन’, ‘तप्तगृह’, ‘कैकयी’ प्रमुख हैं।

प्रश्न 15.
प्रगतिवादी के प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और रचनाएँ इस प्रकार हैं- ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’ (पंत), ‘कुकुरमुत्ता’ (निराला), ‘युग की गंगा’ (केदारनाथ अग्रवाल), युगधारा’ (नागार्जुन), ‘धरती’ (त्रिलोचन), ‘जीवन के गान’, ‘प्रलय सृजन’ (शिवमंगलसिंह सुमन), ‘अजेय खंडहर’, ‘पिघलते पत्थर’, ‘मेधावी’ (रांघेय राघव), ‘मुक्तिमार्ग’, ‘जागते रहो’ (भारतभूषण अग्रवाल)।

प्रश्न 16.
अज्ञेय जी ने ‘प्रयोगवाद’ के आशय को लेकर क्या कहा है? लिखिए।
उत्तर:
अज्ञेय जी ने ‘प्रयोगवाद’ शब्द से उत्पन्न भ्रम का निवारण करते हुए कहा है- “प्रयोग अपने आप में इष्ट नहीं है, वरन् वह साधन है; दोहरा साधन है। एक तो वह उस सत्य को जानने का साधन है जिसे कवि प्रेषित करता है, दूसरे वह उस प्रेषण-क्रिया को और उसके साधनों को जानने का साधन है।” इस समय के कवियों के दृष्टिकोण और कथ्य एक ही प्रकार के नहीं हैं। प्रयोगवादी कविताओं में ह्रासोन्मुख मध्यवर्गीय समाज के जीवन का चित्रण है।

प्रश्न 17.
‘तार सप्तक’ प्रथम तथा द्वितीय के कवियों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रथम तार सप्तक’ (1943) के 7 कवि नेमिचन्द जैन, गजानन माधव मुक्तिबोध, भारतभूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजा कुमार माथुर, रामविलास शर्मा तथा अज्ञेय हैं। द्वितीय तार सप्तक’ (1951) के 7 कवि भवानीप्रसाद मिश्र, शकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय और धर्मवीर भारती हैं।

प्रश्न 18.
‘प्रयोगवादी कवि यथार्थवादी हैं।’ इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रयोगवादी कवि यथार्थवादी हैं। वे भावुकता के स्थान पर ठोस बौद्धिकता को स्वीकार करते हैं। वे कवि मध्यवर्गीय व्यक्ति के जीवन की समस्त जड़ता, कुण्ठा, अनास्था, पराजय और मानसिक संघर्ष के साथ सत्य को बड़ी बौद्धिकता के साथ उद्घाटित करते हैं। लघुमानव को उसकी समस्त हीनता और महत्ता के संदर्भ में प्रस्तुत करके प्रयोगवादी कविता ने उसके प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से सोचने के लिए एक नया रास्ता खोला।

प्रश्न 19.
‘नई कविता’ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रयोगवाद का विकास ही कालान्तर में नई कविता के रूप में हुआ है। डॉ. शिवकुमार शर्मा के अनुसार- “ये दोनों एक ही धारा के विकास की दो अवस्थाएँ हैं। सन् 1943 से 1953 ई. तक कविता में जो नवीन प्रयोग हुए, नई कविता उन्हीं का परिणाम है। प्रयोगवाद उस काव्यधारा की आरम्भिक अवस्था है और नई कविता उसकी विकसित अवस्था।”

प्रश्न 20.
नई कविता के किसी एक कवि तथा उसकी कृतियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म कसया (देवरिया) में हुआ। ‘दिनमान’, ‘प्रतीक’,’प्रथम तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, तीसरा सप्तक’ इनके द्वारा संपादित काव्य संकलन हैं। इनकी काव्य कृतियाँ हैं- हरी घास पर क्षणभर, बावरा अहेरी, इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये, अरी ओ करुणा प्रभामय, आंगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार आदि।

प्रश्न 21.
समकालीन नाटकों पर राजनीतिक सिद्धान्तहीनता की प्रवृत्ति का प्रभाव किस रूप में पड़ा ? लिखिए।
उत्तर:
राजनीति की सिद्धान्तहीनता, अवसरवादिता, सरलीकरण और बौद्धिक दिवालियेपन ने आदमी को झकझोर दिया। इसका प्रभाव नाटककारों पर भी पड़ा। राजनीतिक संस्थाओं की मक्कारी को इंगित करते हुए डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल ने ‘रक्त कमल’, ‘चतुर्भुज राक्षस’, ‘पंचपुरुष’, ‘गंगा माटी’, संतोष कुमार नौटियाल ने ‘चाय पार्टियाँ’, कणाद ऋषि भटनागर ने ‘जहर’, ‘जनता का सेवक तथा ज्ञानदेव अग्निहोत्री ने शुतुरमुर्ग’ आदि नाटकों की रचना की।

RBSE Class 12 Hindi साहित्य का इतिहास निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल के सूत्रधार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनकी रचनाओं का परिचय दीजिए।
उत्तर:
कविवर हरिश्चन्द्र (1850-1885) इतिहास-प्रसिद्ध सेठ अमीचन्द की वंश-परंपरा में उत्पन्न हुए थे। उनके पिता बाबू गोपालचन्द्र ‘गिरिधरदास’ भी अपने समय के प्रसिद्ध कवि थे। हरिश्चन्द्र ने बाल्यकाल में अपनी काव्य प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था। उस समय के साहित्यकारों ने उन्हें ‘भारतेन्दु’ की उपाधि से सम्मानित किया। कवि होने के साथ भारतेन्दु पत्रकार भी थे’कविवचनसुधा’ और ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ पत्रिका का भी उन्होंने सम्पादन किया। उनकी काव्य-कृतियों की संख्या 70 है, जिनमें

‘प्रेम-मालिका’, ‘प्रेम-सरोवर’, ‘गीत गोविन्दानन्द’, ‘वर्षा-विनोद’, ‘विनय-‘प्रेम-पचासा’, ‘प्रेम-फुलवारी’, ‘वेणु-गीति’ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। उन्होंने हिन्दी, ब्रज और उर्दू शैली में भी कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविताओं में जहाँ प्राचीन परंपरागत विशेषताएँ मिलती हैं वहीं नवीन काव्यधारा का भी प्रवर्तन किया है। राजभक्त होते हुए भी वे एक सच्चे देशभक्त थे। भारतेन्दु कविता के क्षेत्र में वे नवयुग के अग्रदूत थे।

प्रश्न 2.
भारतेन्दु युग में किन विषयों पर उपन्यास लिखे गए? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
उत्तर:
इस युग में उपन्यास भी खूब लिखे गए एवं सभी विषयों को लेकर लिखे गए। अंग्रेजी ढंग का पहला मौलिक उपन्यास लाला श्रीनिवासदास का ‘परीक्षागुरु’ माना जाता है। इसके पूर्व श्रद्धाराम फुल्लौरी ने ‘भाग्यवती’ शीर्षक लघु सामाजिक उपन्यास लिखा था। इस युग के उपन्यासकारों में लाला श्रीनिवासदास, किशोरीलाल गोस्वामी, बालकृष्ण भट्ट, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधाकृष्णदास, लज्जाराम शर्मा, देवकीनन्दन खत्री और गोपालराम गहमरी प्रमुख हैं। भारतेन्दु काल में सामाजिक, ऐतिहासिक, तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी तथा रोमानी उपन्यासों की रचना खूब हुई। सामाजिक उपन्यासों में ‘भाग्यवती’ और ‘परीक्षागुरु’ के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट का ‘रहस्यकथा’, ‘नूतन ब्रह्मचारी’ और ‘सौ अजान एक सुजान’, राधाकृष्णदास का ‘निस्सहाय हिन्दू’, लज्जाराम शर्मा का ‘धूर्त रसिकलाल’, और ‘स्वतंत्र रमा और परतन्त्र लक्ष्मी’ तथा किशोरीलाल गोस्वामी का ‘त्रिवेणी वा सौभाग्यश्रणी’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। तिलस्मी-ऐयारी के उपन्यासों में देवकीनन्दन खत्री का ‘चन्द्रकान्ता’, ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’, ‘नरेन्द्र मोहिनी’, ‘वीरेन्द्र वीर’ और ‘कुसुमकुमारी’ तथा हरेकृष्ण जौहर का ‘कुसुमलता’ प्रसिद्ध हुए। इस युग के सर्वप्रधान उपन्यास लेखक किशोरीलाल गोस्वामी माने गए हैं। इस युग में बंगला और अंग्रेजी के उपन्यासों का अनुवाद भी बहुत हुआ।

प्रश्न 3.
द्विवेदी युग के किसी एक प्रसिद्ध कवि का और उसकी प्रमुख रचनाओं का परिचय दीजिए।
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त – द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवि हैं। इनका जन्म चिरगांव (झांसी) में हुआ था। ये द्विवेदी काल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। द्विवेदी के स्नेह और प्रोत्साहन से इनकी काव्य-कला में निखार आया। इनकी प्रथम पुस्तक ‘रंग में भंग’ है किन्तु इनकी ख्याति का मूलाधार ‘भारत-भारती’ है। उत्तर- भारत में राष्ट्रीयता के प्रचार और प्रसार में भारत-भारती’ के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। भारत-भारती’ ने हिंदी-मनीषियों में जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाएँ उत्पन्न की और तभी से ये राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए। ये रामभक्त कवि भी थे। ‘मानस’ के पश्चात् हिन्दी में रामकाव्य का दूसरा स्तम्भ इनके द्वारा रचित ‘साकेत’ ही है। खड़ी बोली के स्वरूप-निर्धारण और विकास में इनका अन्यतम योगदान है। गुप्त जी के प्रमुख काव्य ग्रंथ हैं- ‘जयद्रथ वध’, भारत-भारती, ‘पंचवटी’, ‘झंकार’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘जयभारत’, ‘विष्णुप्रिया’ आदि। ‘प्लासी का युद्ध’, ‘मेघनाद-वध’, ‘वृत्त-संहार’ आदि इनके अनूदित काव्य हैं।

प्रश्न 4.
हिन्दी कहानी का जन्म किस युग में माना जाता है? इस युग में हिन्दी कहानी के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानी का जन्म 1900 ई. के लगभग द्विवेदी युग में हुआ और 1912 से 1918 ई. के बीच वह पूर्णतः प्रतिष्ठित हो गई। ‘सरस्वती’ (1900) पत्रिका के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी कहानी का भी विकास हुआ। आरंभिक लेखकों में किशोरीलाल गोस्वामी, माधवप्रसाद मिश्र, बंगमहिला, रामचन्द्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, वृन्दावनलाल वर्मा आदि उल्लेखनीय हैं। किशोरीलाल गोस्वामी की ‘इन्दुमती’ कहानी सरस्वती में 1900 ई. में प्रकाशित हुई। माधव प्रसाद की ‘मन की चंचलता’ भगवानदीन की ‘प्लेग की चुडैल’ तथा रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और बंगमहिला की ‘दुलाईवाली’ कहानियाँ प्रकाशित हुईं।

ऐतिहासिक कहानी लेखकों में वृन्दावन लाल वर्मा की ‘राखीबन्द भाई’ आई। जयशंकर प्रसाद ने खूब कहानियाँ लिखीं। इनकी कहानियों का संग्रह ‘छाया’ नाम से सन् 1912 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद प्रेमचंद का आगमन हुआ। उनकी कहानियाँ सरस्वती में प्रकाशित हुईं जो इस प्रकार हैं- ‘सौत’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘सज्जनता का दण्ड’, ‘ईश्वरीय न्याय’, ‘दुर्गा का मन्दिर’। चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की प्रसिद्ध कहानी ‘उसने कहा था’ सन् 1915 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी थी। ज्वालादत्त शर्मा की ‘मिलन’, विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक’ की ‘रक्षाबंधन’, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की ‘झलमला’ प्रकाशित हुईं। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सन् 1900 के आस-पास हिन्दी कहानी का जन्म हुआ और 1918 तक वह पूर्णतः प्रतिष्ठित हो गई। साहित्य में उसकी स्वतंत्र सत्ता मान्य हुई और इसका मौलिक रूप भी सामने आया।

प्रश्न 5.
छायावाद काल में ‘नाटक’ विधा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
छायावाद काल को हिन्दी नाटक साहित्य की दृष्टि से ‘प्रसाद युग’ कहना उचित है। प्रसाद जी ने 1918 ई. के पूर्व से ही नाटक लिखने प्रारंभ कर दिए थे। उनकी आरंभिक रचनाएँ ‘सज्जन’, ‘कल्याणी-परिणय’, ‘प्रायश्चित’, ‘करुणालय’, ‘राज्यश्री’ हैं। इनके अतिरिक्त ‘विशाख”अजातशत्रु’, ‘कामना’, ‘जनमेजय का नाग यज्ञ’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘एक चूंट’,’चन्द्रगुप्त’ और ‘ध्रुवस्वामिनी’ ने हिन्दी नाट्य साहित्य को विशिष्ट स्तर एवं गरिमा प्रदान की। वस्तुत हिन्दी उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में जो स्थान प्रेमचंद का है, वही नाटक के क्षेत्र में प्रसाद का है। द्विवेदी युग में हुई नाट्यलेखन की क्षतिपूर्ति जयशंकर प्रसाद ने की। भारतेन्दु द्वारा स्थापित की गई हिन्दी नाटक और रंगमंच की परम्परा को जयशंकर प्रसाद ने ही नया जीवन और नई दिशा प्रदान की। प्रसाद जी मुख्यतः ऐतिहासिक नाटककार के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

प्रसाद के अतिरिक्त हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ और लक्ष्मीनारायण मिश्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हरिकृष्ण प्रेमी ने इस अवधि में ‘स्वर्णविहान’, ‘रक्षाबंधन’, ‘पाताल विजय’, ‘प्रतिशोध’, ‘शिवासाधना’ आदि नाटक लिखे। इनमें ‘स्वर्णविहान’ गीतिनाटक है। लक्ष्मीनारायण मिश्र ने इस काल में ‘अशोक’, ‘संन्यासी’, ‘मुक्ति का रहस्य’, ‘राक्षस का मन्दिर’, ‘राजयोग’, ‘सिन्दूर की होली’, ‘आधी रात’ आदि नाटकों की रचना की। इनके अतिरिक्त अम्बिकादत्त त्रिपाठी, रामचरित उपाध्याय, रामनरेश त्रिपाठी, गंगाप्रसाद अरोड़ा, गौरीशंकर प्रसाद, परिपूर्णानन्द, वियोगी हरि, गोकुलचन्द्र वर्मा, कैलाशनाथ भटनागर, लक्ष्मीनारायण गर्ग, सेठ गोविन्ददास, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ आदि के नाटक भी उल्लेखनीय हैं। यह काल नाटक साहित्य के लिए समृद्ध काल कहा जा सकता है। इस काल में ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक चेतना एवं यथार्थपरक नाटक लिखे गए।

प्रश्न 6.
छायावाद काल में प्रेमचंद के समकालीन उपन्यासकारों के कृतित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर:
प्रेमचन्द के समकालीन उपन्यासकारों की संख्या ढाई सौ से अधिक है। विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ ने ‘माँ’ और ‘भिखारिणी’ लिखकर प्रेमचन्द का सफल अनुकरण किया। चतुरसेन शास्त्री ने आलोच्य अवधि में हृदय की परख’ ‘हृदय की प्यास’, ‘अमर अभिलाषा’ और ‘आत्मदाह’ शीर्षक उपन्यासों की रचना की। प्रतापनारायण श्रीवास्तव ने ‘विदा’, ‘विजय’ नामक आदर्शवादी उपन्यास लिखे। शिवपूजन सहाय ने आंचलिक उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ लिखा। प्रेमचन्द युग के ही अक्खड़ उपन्यासकार बेचन शर्मा ‘उग्र’ ने ‘चन्द हसीनों के खुतूत’ (1927), ‘दिल्ली का दलाल’, ‘बुधुआ की बेटी’, ‘शराबी’ उपन्यासों की रचना की।

इन्होंने समाज की बुराइयों को, उसकी नंगी सच्चाई को बिना किसी लाग-लपेट के साहस के साथ कि सपाटबयानी के साथ प्रस्तुत किया। ऋषभचरण जैन ने वर्जित विषयों पर ‘दिल्ली का कलंक’, ‘दिल्ली का व्यभिचार’ आदि उपन्यास लिखे। प्रेमचन्द के समकालीन उपन्यासकारों में जयशंकर प्रसाद भी उल्लेखनीय हैं। इन्होंने ‘कंकाल’ और ‘तितली’ उपन्यासों की रचना की। ‘कंकाल’ विशेष उल्लेखनीय है। जैनेन्द्र ने ‘परख’, ‘सुनीता’ और ‘त्यागपत्र’ उपन्यासों में व्यक्ति के मन की शंकाओं, उलझनों और गुत्थियों का चित्रण किया। वृन्दावनलाल वर्मा ने ऐतिहासिक उपन्यास लेखन परंपरा का आरंभ किया तथा राहुल सांकृत्यायन ने अनूदित उपन्यास लिखे। प्रेममूलक उपन्यास लेखन का श्रेय सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ को जाता है।

प्रश्न 7.
‘छायावाद काल में ललित निबन्धों की परंपरा भी फूली-फली।’ इस कथन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
छायावाद काल में कई ललित निबंधकार सामने आए। ललित निबंध की दृष्टि से गुलाबराय की कुछ रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। ‘ठलुआ-क्लब’, ‘फिर निराशा क्यों’, ‘मेरी असफलताएँ’ आदि संग्रहों में कुछ श्रेष्ठ व्यक्तिगत निबंध संकलित हैं। ‘मेरा मकान’, ‘मेरे नापिताचार्य’, ‘मेरी दैनिकी का एक पृष्ठ’, ‘प्रीतिभोज’ आदि निबंध ललित निबंध की सभी विशेषताओं से युक्त हैं। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने भी कतिपय व्यक्तिगत निबंध लिखे, जो ‘पंचपात्र’ में संगृहीत हैं। इसमें संकलित ‘अतीत स्मृति’, ‘उत्सव’, ‘रामलाल पण्डित’, ‘श्रद्धांजलि के दो फूल’ आदि निबंधों में लेखक की भावुकता, आत्मीयता तथा व्यंग्यपूर्ण प्रतिक्रिया का सुन्दर समन्वय मिलता है। अन्य ललित निबंधकारों में शान्तिप्रिय द्विवेदी, शिवपूजन सहाय, बेचन शर्मा ‘उग्र’, रघुवीरसिंह और माखनलाल चतुर्वेदी के नाम लिए जा सकते हैं।

प्रश्न 8.
‘छायावाद काल में समालोचना साहित्य ने भी एक नवीन कलेवर ग्रहण किया।’ इस कथन पर अपना मत लिखिए।
उत्तर:
छायावाद काल में समालोचना – समालोचना-साहित्य ने एक नवीन कलेवर ग्रहण किया। इस काल के समालोचना साहित्य का परिष्कार और परिमार्जन करने का श्रेय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी को ही जाता है। उन्होंने हिन्दी में पहली बार अपने ग्रंथ ‘रस-मीमांसा’ में रस-विवेचना को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान किया। आलोचकों में लक्ष्मीनारायण ‘सुधांशु’काव्य में अभिव्यंजनावाद’ आलोचना ग्रंथ लिखा। डॉ. रामकुमार वर्मा ने भी ‘आलोचनादर्श’ और ‘साहित्य समालोचना’ समालोचनाएँ लिखीं। इस काल में रस रत्नाकर अलंकार-दर्पण, नवरस, काव्यांग कौमुदी, व्यंग्यार्थ आदि श्रेष्ठ रचनाएँ सामने आईं। इसी काल में शुक्लजी ने हिन्दी के तीन बड़े कवियों गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास और जायसी को चुना। सर्वप्रथम उन्होंने ‘तुलसी ग्रंथावली’ का संपादन किया। ‘जायसी-ग्रंथावली’ और ‘भ्रमरगीतसार’ का संपादन भी उन्होंने किया।

‘हिन्दी-साहित्य का इतिहास’ उनके गंभीर अध्ययन और विश्लेषण और सामर्थ्य का अन्य प्रमाण है। शुक्ल जी के समान ही ‘कृष्णशंकर’ शुक्ल ने ‘केशव की काव्य-कला’ और ‘कविवर रत्नाकर’ समालोचनाएँ लिखीं। इसी कड़ी में विश्वनाथ प्रसाद मिश्र भी उल्लेखनीय हैं। ‘बिहारी की वाग्विभूति’ और ‘हिन्दी नाट्यसाहित्य का विकास’ उनकी समालोचनाएँ हैं। इसी मध्य छायावाद पर बहुत आलोचनाएँ लिखी गईं। यहाँ छायावाद को लेकर दो मत हो गए। प्रसाद ने ‘काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध’ तथा महादेवी वर्मा ने ‘सान्ध्यगीत’ की भूमिका में छायावाद को महत्त्व दिया। इस प्रकार छायावाद युग में हिन्दी समालोचना को विद्वान समालोचकों ने स्तर और व्यापकता की दृष्टि से समृद्ध बनाया।

प्रश्न 9.
प्रयोगवादी और नई कविता के प्रमुख कवियों का नामोल्लेख करते हुए उनकी कुछ रचनाओं का परिचय भी दीजिए।
उत्तर:
प्रयोगवादी और नई कविता के कवियों में सर्वप्रथम अज्ञेय जी का नाम सामने आता है। इनके जीवन में छायावादी (घुमक्कड़ी) और क्रान्तिकारी सोच प्रभावी रही। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – हरीघास पर क्षणभर, बावरा अहेरी, अरी ओ करुणा प्रभामय आदि।
गिरिजाकुमार माथुर की कविता में प्रयोग और संवेदना का सुन्दर समन्वय है। ‘नाश और निर्माण’ धूप के धान, भीतरी नदी की यात्रा आपकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। गजानन माधव मुक्तिबोध को नई कविता का अग्रज कहा गया है। आपकी रचनाओं में लोक परिवेश की उपस्थिति उल्लेखनीय विशेषता है। आपकी प्रमुख रचनाएँ ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, भूरी-भूरी खाक धूल’ आदि हैं। भवानी प्रसाद मिश्र – कमल के फूल, सतपुड़ा के जंगल, गीत फरोश, चकित है दुख आदि। शमशेर बहादुर सिंह- चुका भी नहीं हूँ मैं, काल तुझसे होड़ मेरी आदि प्रमुख रचनाएँ हैं।

प्रश्न 10.
छायावादोत्तर काल में यात्रावृत्त’ विधा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस युग में स्वतन्त्रता प्राप्ति के फलस्वरूप भारत के विश्वभर के देशों के साथ राजनयिक एवं सांस्कृतिक संबंध जुड़े। इस कारण भारत के लोगों का विदेशों में खूब आना-जाना रहा। बहुत-से लोगों का ध्यान साम्यवादी देशों की यात्रा की ओर भी गया। इस दृष्टि से स्वामी सत्यदेव परिव्राजक, कन्हैयालाल मिश्र आर्योपदेशक, सन्तराम, राहुल सांकृत्यायन, सेठ गोविन्ददास, पं. नेहरू आदि उल्लेखनीय हैं। इस समय रूस से सम्बद्ध यात्रावृत्त अधिक लिखे गए क्योंकि रूस से हमारे संबंध अधिक सुदृढ़ रहे हैं। रूस यात्रा से संबंधित डॉ. सत्यनारायण (रोमांचक रूस), महेशप्रसाद श्रीवास्तव (दिल्ली से मास्को), राहुल सांकृत्यायन (रूस में पच्चीस मास), यशपाल जैन. (रूस में छियालीस दिन) आदि, डॉ. नगेन्द्र (तंत्रालोक से यंत्रालोक तक), लक्ष्मीदेवी चूंडावत (हिन्दुकुश के उस पार) तथा दुर्गावती सिंह (सीधी-सादी यादें) ने यात्रावृत्त लिखे। इसी प्रकार लेखकों ने चीन, जापान आदि अन्य देशों से संबंधित कई यात्राओं का वर्णन किया है।

इसी प्रकार स्वदेश-यात्रा संबंधी यात्रावृत्त भी पर्याप्त संख्या में प्रकाशित हुए हैं। स्वामी प्रणवानन्द तथा स्वामी रामानन्द द्वारा रचित ‘कैलाश मानसरोवर’ एवं ‘कैलाश दर्शन’ विष्णु प्रभाकर के ‘ज्योतिपुंज हिमालय’ राहुल जी के ‘किन्नर देश में’, ‘राहुल यात्रावलि’ तथा ‘दार्जिलिंग परिचय’ यात्रा विषयक कृतियाँ उल्लेखनीय हैं। अज्ञेय ने ‘अरे यायावर रहेगा याद’ (1953) में असम से लेकर पश्चिमी सीमा प्रान्त तक की गई यात्रा का वर्णन किया है। मुनि कांतिसागर द्वारा मूर्तियों की खोज के लिए यात्राएँ की, जो ‘खोज की पगडंडियाँ’ और ‘खण्डहरों का वैभव’ में वर्णित हैं। विद्यानिधि सिद्धान्तालंकार ने ‘शिवालिक की घाटियों में शिकारी यात्राओं का कलात्मक वर्णन किया है। काका कालेलकर ने ‘हिमालय की यात्रा’ तथा ‘सूर्योदय का देश’ द्वारा देश में ही की गई यात्राओं के वृत्त प्रस्तुत किए गए हैं।

प्रश्न 11.
समकालीन हिन्दी साहित्य में हुए कहानी आंदोलनों का और कहानीकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
समकालीन हिन्दी साहित्य में कई कहानी आंदोलनों ने जन्म लिया। इनमें नई कहानी, सचेतन कहानी (महीप सिंह), अचेतन कहानी, साठोत्तरी कहानी, अकहानी (निर्मल वर्मा) समानान्तर कहानी (कमलेश्वर), समकालीन कहानी (डॉ. गंगा प्रसाद विमल), जनवादी कहानी, सक्रिय कहानी, जन कहानी आदि प्रमुख हैं। कुछ प्रमुख कहानीकार और उनकी प्रमुख कहानियाँ इस प्रकार हैं- मृदुला गर्ग (दुनिया का कायदा, उसका विद्रोह), मंजुल भगत (सफेद कौआ, मृत्यु की ओर), मणिका मोहिनी (हम बुरे नहीं थे), मार्कण्डेय (हंसा जाई अकेला), राजी सेठ (तीसरी हथेली), ज्ञानरंजन (सम्बन्ध, शेष होते हुए), ओम गोस्वामी (दर्द की मछली), महेन्द्र भल्ला (एक पति के नोट्स, तीन चार दिन), गिरिराज किशोर (पेपर वेट, वल्दरोजी), उदयप्रकाश (तिरिछ, पीली छतरी वाली लड़की), धीरेन्द्र अस्थाना (उस रात की गन्ध, नींद के बाहर), ममता कालिया (बोलने वाली औरत), बटरोही (हिडिम्बा के गाँव में), अब्दुल बिस्मिल्लाह (रैन बसेरा), रामदरश मिश्र (दिन के साथ), दिनेशनंदिनी डालमिया (तितिक्षा), राजेन्द्र उपाध्याय (ऐश ट्रे), महेन्द्र वशिष्ठ (उसकी कहानी), मालती जोशी (रहिमन धागा प्रेम का) आदि हैं।

प्रश्न 12.
नई कहानी, सचेतन कहानी, अकहानी और समानान्तर कहानी का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नई कहानी – मार्कण्डेय के अनुसार – “नई कहानी से हमारा मतलब उन कहानियों से है जो सच्चे अर्थों में कलात्मक निर्माण हैं, जो जीवन के लिए उपयोगी हैं और महत्त्वपूर्ण होने के साथ ही, उसके किसी-न-किसी नए पहलू पर आधारित हैं।”
सचेतन कहानी – सन् 1964 के आसपास महीपसिंह द्वारा इसका प्रवर्तन किया गया। सचेतन कहानी में वैचारिकता को विशेष महत्त्व दिया गया।
अकहानी – 1960 के लगभग कुछ ऐसे कथाकार सामने आए जिन्होंने कहानी के स्वीकृत मूल्यों के प्रति निषेध व्यक्त करते हुए अपने स्वतन्त्र अस्तित्व की घोषणा की। निर्मल वर्मा को इस कहानी आंदोलन का प्रवर्तक माना गया।
समानान्तर कहानी – इस आंदोलन के सूत्रधार कमलेश्वर हैं जिन्होंने 1971 के लगभग समानान्तर कहानी का प्रवर्तन किया। इस प्रकार की कहानियों में निम्नवर्गीय समाज की स्थितियों, विषमताओं एवं समस्याओं का खुलकर चित्रण हुआ। ‘सारिका’ पत्रिका ने इस प्रकार की कहानियों का एक आंदोलन खड़ा किया।

भारतेन्दु-युग अथवा पुनर्जागरण-काल

यह उल्लेखनीय है कि भारतेन्दु द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका ‘कविवचनसुधा’ का प्रकाशन 1868 ई. में आरंभ हुआ था, अतः भारतेन्दु-युग का उदय 1868 ई. से मानना उचित है। इसी तर्क का अनुकरण करते हुए ‘सरस्वती’ के प्रकाशन-वर्ष (1900 ई.) को भारतेन्दु-युग की परिसमाप्ति का सूचक माना जा सकता है। भारतेन्दु युग में मातृभूमि-प्रेम, स्वदेशी वस्तुओं का व्यवहार, गोरक्षा, बालविवाह-निषेध, शिक्षा-प्रसार का महत्त्व, मद्य-निषेध, भ्रूण-हत्या की निन्दा.आदि विषयों को कविगण अधिकाधिक अपनाने लगे थे। राष्ट्रीय भावना का उदय भी इस काल की अन्य विशेषता है। परिणामस्वरूप तत्कालीन साहित्य-चेतना मध्यकालीन रचना-प्रवृत्तियों तक ही सीमित न रहकर नवीन दिशाओं की ओर उन्मुख होने लगी।

भारतेन्दु युग के प्रमुख कवि एवं रचनाएँ

इस युग में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, प्रतापनारायण मिश्र, जगमोहनसिंह, अम्बिकादत्त व्यास और राधाकृष्णदास श्रीधर पाठक (1859-1928), बालमुकुन्द गुप्त (1865-1907) और हरिऔध (1865-1945) की कविताओं का प्रकाशन इस युग में आरम्भ हो गया था।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र – हरिश्चन्द्र ने बाल्यकाल में अपनी काव्य प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था। उस समय के साहित्यकारों ने उन्हें भारतेन्दु’ की उपाधि से सम्मानित किया। ‘कविवचनसुधा और ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ पत्रिका का भी उन्होंने सम्पादन किया। उनकी काव्य-कृतियों की संख्या 70 है।
बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन – भारतेन्दु की भाँति ‘प्रेमघन’ ने भी पद्य और गद्य दोनों में विपुल साहित्य-रचना की है। ‘जीर्ण जनपद’, ‘आनन्द अरुणोदय’, ‘मयंक-महिमा’, ‘वर्षा-बिन्दु’ आदि उनकी प्रसिद्ध काव्य-कृतियाँ हैं।
प्रतापनारायण मिश्र – ‘कविता, निबंध और नाटक प्रताप नारायण मिश्र के मुख्य रचना-क्षेत्र हैं। ‘प्रेमपुष्पावली’, ‘मन की लहर’, ‘लोकोक्ति’ ‘शतक’, ‘तृप्यन्ताम्’ और ‘शृंगार विलास’ उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
जगमोहनसिंह – ठाकुर जगमोहनसिंह (1857-1899) मध्यप्रदेश की विजय-राघवगढ़ रियासत के राजकुमार थे। ‘प्रेमसम्पत्तिलता’ (1885), ‘श्यामालता’ (1885), ‘श्यामा-सरोजिनी’ (1886) और ‘देवयानी’ (1886), इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
अम्बिकादत्त व्यास – व्यास जी संस्कृत और हिंदी के अच्छे विद्वान थे। ‘पावस पचासा’ (1886), ‘सुकवि सतसई’ (1887), और ‘हो हो होरी’ (1891) इनकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।
राधाकृष्णदास – कविता के अतिरिक्त राधाकृष्ण दास ने नाटक, उपन्यास और आलोचना के क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय साहित्य-रचना की है। उनकी कविताओं में भक्ति, शृंगार और समकालीन सामाजिक-राजनीतिक चेतना को विशेष स्थान प्राप्त हुआ है।
अन्य कवि – भारतेन्दु काल के इनके अतिरिक्त अन्य कवियों का योगदान भी स्मरणीय है। नवनीत चतुर्वेदी, जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’, गोविन्द गिल्लाभाई, दिवाकर भट्ट, रामकृष्ण वर्मा बलवीर’, राजेश्वरीप्रसाद सिंह ‘प्यारे’, गुलाबसिंह, कृष्णदेवशरण सिंह ‘गोप’ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

भारतेन्दु युग का गद्य साहित्य –

भारतेन्दुकालीन साहित्य सांस्कृतिक जागरण का साहित्य है। इस युग में गद्य की लगभग सभी विधाओं-नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना आदि सभी का विकास एवं लेखन हुआ।

नाटक – भारतेन्दु अपने युग के श्रेष्ठ नाटककार थे। उन्होंने अनूदित और मौलिक नाटक लिखे। उन्होंने  1. विद्यासुन्दर, 2. रत्नावली, 3.पाखण्ड विडम्बन, 4.धनंजय विजय, 5. कर्पूरमंजरी, 6.भारत जननी, 7.मुद्राराक्षस, 8.दुर्लभ बन्धु,10.सत्य हरिश्चन्द्र आदि 17 नाटक-नाटिकाओं की रचना की। इस युग में पौराणिक, ऐतिहासिक, रोमानी एवं समसामयिक समस्याओं को लेकर नाटक लिखे गए। जीवनदास, राधाचरण गोस्वामी, राधाकृष्णदासं, बालकृष्ण भट्ट तथा गोपालराम गहमरी इस युग के प्रसिद्ध नाटककार थे।

उपन्यास – इस युग के उपन्यासकारों में लाली श्रीनिवासदास (1851-1887), किशोरीलाल गोस्वामी (1865-1932), बालकृष्ण भट्ट (1844-1914), ठाकुर जगन्मोहन सिंह (1857-1899), राधाकृष्णदास (1865-1907), लज्जाराम शर्मा (1863-1931), देवकीनन्दन खत्री (1861-1913) और गोपालराम गहमरी (1866-1946) प्रमुख हैं। भारतेन्दु काल में सामाजिक, ऐतिहासिक, तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी तथा रोमानी उपन्यासों की रचना खूब हुई।

कहानी – इस युग में आधुनिक कलात्मक कहानी का आरंभ नहीं हुआ था। कहानियों के नाम पर कुछ प्रकाशित संग्रह प्राप्त हैं, वस्तुतः ये लोक-प्रचलित तथा इतिहास-पुराण-कथित शिक्षा नीति या हास्य-प्रधान कथाएँ हैं, जिन्हें तत्कालीन लेखकों ने स्वयं लिखकर या लिखवाकर सम्पादन करके प्रकाशित करा दिया।

निबन्ध – भारतेन्दु युग में सबसे अधिक सफलता निबंध लेखन में प्राप्त हुई। इस युग में राजनीति, समाज-सुधार, धर्म-अध्यात्म, आर्थिक दुर्दशा, अतीत का गौरव, महापुरुषों की जीवनियाँ आदि विषयों पर निबंध लिखे गए। भारतेन्दु युग के प्रमुख निबंधकार थे – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनाराण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्रीनिवासदास, राधाचरण गोस्वामी, काशीनाथ खत्री आदि। बालकृष्ण भट्ट इस युग के सर्वाधिक समर्थ निबंधकार थे। उन्होंने सामयिक समस्याओं पर जमकर लिखा। –

आलोचना – भारतेन्दु युग में हिंदी आलोचना का आरंभ पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हुआ। ‘हिंदी प्रदीप’ एक ऐसा पत्र था जो गम्भीर आलोचनाएँ प्रकाशित करता था। बदरीनारायण चौधरी, बालकृष्ण भट्ट और बालमुकुन्द गुप्त ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। भट्ट जी की ‘नीलदेवी’, ‘परीक्षा गुरु’, ‘संयोगिता स्वयंवर’ और ‘एकान्तवासी योगी’ संबंधी आलोचनाएँ तत्कालीन समीक्षा-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

द्विवेदी युग :

इस युग को जागरण-सुधार-काल भी कहते हैं। इस काल के पथ प्रदर्शक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के नाम पर इस युग को ‘द्विवेदी युग’ कहा गया। अंग्रेजी सरकार की जन-विरोधी नीतियों के कारण असंतोष फैला। पूरे भारत में आंदोलन होने लगे। देश को गोपालचन्द्र गोखले तथा बालगंगाधर तिलक जैसे नेता मिले।

काव्यधारा
सन् 1903 में आचार्य द्विवेदी ‘सरस्वती’ के सम्पादक बने। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप कई कवि आगे आए जिनमें मैथिलीशरण गुप्त, गोपालशरण सिंह, गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’, लोचनप्रसाद पाण्डेय प्रमुख हैं। इस युग की कविता में विषय की दृष्टि से विविधता और नवीनता आई। द्विवेदी जी के प्रयत्नों से खड़ीबोली काव्य की मुख्य भाषा बन गई। द्विवेदीकालीन कविता में राष्ट्रीयता की भावना, नीति और आदर्श, वर्ण्य विषय का क्षेत्र-विस्तार, हास्य-व्यंग्यपूर्ण काव्य आदि को स्थान मिलने लगा।

प्रमुख कवि

नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ – देश-प्रेम, स्वदेशी-प्रयोग, समाज-सुधार, हिंदी-अनुराग तथा विधवाओं तथा अछूतोद्धार इनकी कविताओं के मुख्य विषय रहे।
श्रीधर पाठक – देश-प्रेम, समाजसुधार तथा प्रकृति चित्रण इनकी कविता के मुख्य विषय रहे। इनको सर्वाधिक सफलता प्रकृति चित्रण में मिली।
महावीर प्रसाद द्विवेदी – सन् 1903 में ये ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने और 1920 तक बड़े परिश्रम और लगन से यह कार्य करते रहे। ‘सरस्वती’ के संपादक के रूप में इन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के उत्थान के लिए जो कार्य किया, वह चिरस्मरणीय रहेगा। ये कवि, आलोचक, निबंधकार, अनुवादक तथा सम्पादकाचार्य थे।
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ – हरिऔध जी द्विवेदी युग के प्रख्यात कवि होने के साथ-साथ उपन्यासकार, आलोचक एवं इतिहासकार भी थे। इनके काव्य ग्रंथों में ‘प्रियप्रवास’ ‘पद्मप्रसून’ ‘चुभते चौपदे’, ‘चोखे चौपदे’ ‘बोलचाल’, ‘रसकलश’ तथा ‘वैदेही-वनवास’ प्रसिद्ध हैं। इनमें से ‘प्रियप्रवास’ खड़ीबोली में लिखा गया प्रथम महाकाव्य है।
राय देवीप्रसाद पूर्ण’ – इन्होंने देशभक्ति आदि नवीन विषयों पर खड़ीबोली में काव्य-रचना की। ‘मृत्यंजय’ ‘राम-रावणविरोध’ तथा ‘वसन्त-वियोग’ इनकी उल्लेखनीय काव्य-कृतियाँ हैं।
गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ – ये खड़ीबोली में कवित्त और सवैया छन्दों का प्रयोग करने में सिद्धहस्त थे। इन्होंने अनेक प्रयाण-गीत और बलिदान-गीत लिखे।
मैथिलीशरण गुप्त – इनकी ख्याति का मूलाधार ‘भारत-भारती’ है। उत्तर भारत में राष्ट्रीयता के प्रचार और प्रसार में ‘भारत-भारती’ के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। ये राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए। ‘मानस’ के पश्चात् हिंदी में रामकाव्य का दूसरा स्तम्भ इनके द्वारा रचित ‘साकेत’ ही है। गुप्त जी के प्रमुख काव्य ग्रंथ हैं – ‘जयद्रथ वध’, भारत-भारती, ‘पंचवटी’, ‘झंकार’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’ आदि हैं।
रामनरेश त्रिपाठी – इनके चार ग्रंथ प्रकाशित हुए – ‘मिलन’ ‘पथिक’ ‘मानसी’ ‘स्वप्न’। भगवानदीन, अमीर अली ‘मीर’, कामताप्रसाद गुरु, गिरिधर शर्मा ‘नवरत्न’, रूपनारायण पाण्डेय, लोचनप्रसाद पाण्डेय, गोपाल शरण सिंह, मुकुटधर पाण्डेय भी इस युग के उल्लेखनीय कवि हैं। द्विवेदीयुगीन काव्य सांस्कृतिक पुनरुत्थान, उदार राष्ट्रीयता, जागरण-सुधार एवं उच्चादर्शों का काव्य है। इस युग में सभी काव्य-रूपों का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्य साहित्य :

इस युग में गद्य साहित्य भी प्रचुर मात्रा में लिखा गया। गद्य की लगभग सभी विधाओं का इस काल में विकास हुआ। इस युग में साहित्य की प्रत्येक विधा में व्यापक राष्ट्रीय जागरण एवं सुधार की भावना विद्यमान है। .

नाटक – द्विवेदी युग में नाटक अपेक्षाकृत कम ही लिखे गए। राधाचरण गोस्वामी, महावीर सिंह, बालकृष्ण भट्ट, जयशंकर प्रसाद, वृन्दावन लाल वर्मा, प्रताप नारायण मिश्र, राधेश्याम कथावाचक आदि इस युग के प्रमुख नाटककार रहे। इस युग में प्रहसन भी. लिखे गए, जिनमें बद्रीनाथ भट्ट का ‘चुकी की उम्मीदवारी’ गंगाप्रसाद श्रीवास्तव का ‘उलटफेर’ और ‘नोक-झोंक’ प्रमुख हैं। इस युग में संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला भाषा से कुछ नाटकों के अनुवाद भी हुए। –

उपन्यास – इस काल में उपन्यास नाटक की अपेक्षा अधिक लिखे गए। इस युग में तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी, अद्भुत घटनाप्रधान, ऐतिहासिक एवं सामाजिक उपन्यास अधिक लिखे गए। तिलस्मी और ऐयारी उपन्यासों के लिए देवकीनंदन खत्री, किशोरीलाल गोस्वामी तथा दुर्गाप्रसाद खत्री की रचनाएँ, जासूसी उपन्यास के लिए गोपालराम गहमरी, ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए किशोरीलाल गोस्वामी तथा सामाजिक उपन्यासों के लिए लज्जाराम शर्मा, अयोध्यासिंह उपाध्याय तथा राधिका रमण प्रसाद सिंह उल्लेखनीय हैं।

कहानी – ‘सरस्वती’ (1900) पत्रिका के प्रकाशन के साथ ही हिंदी कहानी का भी विकास हुआ। आरंभिक लेखकों में किशोरीलाल गोस्वामी, माधवप्रसाद मिश्र, बंगमहिला, रामचन्द्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, वृन्दावनलाल वर्मा आदि उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त ‘सरस्वती’ में रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ (1903) और बंगमहिला की ‘दुलाईवाली’ (1907) कहानियाँ प्रकाशित हुईं। ऐतिहासिक कहानी लेखकों में वृंदावन लाल वर्मा प्रमुख हैं। जयशंकर प्रसाद ने खूब कहानियाँ लिखीं। इनकी कहानियों का संग्रह ‘छाया’ नाम से सन् 1912 में प्रकाशित हुआ। राधिकारमण सिंह की कहानी ‘कानों में कंगना’ (1913) ‘इंदु’ में प्रकाशित हुई। कुछ समय पश्चात प्रेमचंद का आगमन हुआ। उनकी कहानियाँ सरस्वती में प्रकाशित हुईं। चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की प्रसिद्ध . कहानी ‘उसने कहा था’ सन् 1915 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी थी। इनके अतिरिक्त ज्वालादत्त शर्मा, विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के नाम उल्लेखनीय हैं।

निबंध – इस युग के निबंध लेखकों में महावीरप्रसाद द्विवेदी, गोविन्दनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त, माधवप्रसाद मिश्र, मिश्रबन्धु (श्यामबिहारी मिश्र और शुकदेवबिहारी मिश्र), सरदार पूर्णसिंह, चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी, श्यामसुन्दरदास, पद्मसिंह शर्मा, रामचन्द्र शुक्ल, कृष्णबिहारी मिश्र आदि उल्लेखनीय हैं। सरदार पूर्णसिंह (1881-1939) इस युग के श्रेष्ठ निबंधकार हैं। इन्होंने कुल छह निबंध लिखे और प्रसिद्ध हो गए। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक निबंध ‘नागरीप्रचारिणी पत्रिका’ में प्रकाशित हुए थे। इनके ‘भय और क्रोध’, ‘ईर्ष्या’, ‘घृणा’, ‘उत्साह’, ‘श्रद्धा-भक्ति’, ‘करुणा’, ‘लज्जा और ग्लानि’ तथा ‘लोभ और प्रीति’ निबंध द्विवेदी युग में प्रकाशित हुए। –

आलोचना – इस युग में आलोचना का भी विकास हुआ। तुलनात्मक आलोचना का आरंभ 1907 ई. में पद्मसिंह शर्मा ने बिहारी और सादी की तुलना द्वारा किया। इसी कड़ी में मिश्रबन्धुओं का हिन्दी नवरत्न’ (1910) प्रकाशित हुआ। आगे चलकर लाला । भगवानदीन और कृष्णबिहारी मिश्र ने बिहारी और देव पर आलोचना लिखी।

जीवनी – इस युग में जीवनी लेखन भी पर्याप्त हुआ। यह युग राष्ट्रीय चेतना का युग था। आजादी की अलख जगाने के लिए इस युग में महापुरुषों के जीवन पर आधारित जीवनियाँ लिखी गईं। राष्ट्रीय नेताओं से संबंधित जीवनियों में ‘लाजपत महिमा’ (1907), ‘तपोनिष्ठ महात्मा अरविंद घोष (1909), ‘कर्मवीर गाँधी’ (1913); धर्मवीर गाँधी’ (1914), महात्मा गोखले’ आदि उल्लेखनीय हैं। ऐतिहासिक जीवनियों में ‘छत्रपति शिवाजी का जीवनचरित्र’ ‘लोकमान्य तिलक का चरित्र’ ‘पृथ्वीराज चौहान ‘ ‘लोकमान्य तिलक का चरित्र’ (1902), देवीप्रसाद की ‘महाराणा प्रतापसिंह’ ‘लोकमान्य तिलक का चरित्र’ (1903) प्रमुख हैं।

यात्रावृत्त – यात्रावृत्त के विकास की दृष्टि से भी यह युग महत्त्वपूर्ण है। स्वामी मंगलानन्द ने ‘मारीशस-यात्रा’ श्रीधर पाठक ने ‘देहरादून-शिमला-यात्रा’ उमा नेहरू ने ‘युद्ध-क्षेत्र की सैर’ और लोचनप्रसाद पाण्डेय ने ‘हमारी यात्रा’, इन्दु, यात्रावृत्तांत लिखे। गोपालराम गहमरी ने ‘लंका-यात्रा का विवरण’, ठाकुर गदाधर सिंह ने ‘चीन में तेरह मास’, हमारी एडवर्ड तिलक यात्रा नामक यात्रावृत्तांत लिखे। स्वामी सत्यदेव परिव्राजक इस युग के प्रमुख यात्रावृत्त लेखक थे। इनकी तीन कृतियाँ उपलब्ध हैं – ‘अमरीका दिग्दर्शन’, ‘मेरी कैलास-यात्रा’ तथा ‘अमेरिका भ्रमण’।

संस्मरण – ‘अनुमोदन का अन्त’, ‘सभा की सभ्यता’, ‘विज्ञानाचार्य बसु का विज्ञान मन्दिर’ ‘इधर-उधर की बातें’ पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित संस्मरण-साहित्य की दृष्टि से ‘हरिऔध जी के संस्मरण’ भी इस युग की उल्लेखनीय कृति हैं।

छायावाद

रामचन्द्र शुक्ल ने छायावाद का आरंभ सन् 1918 से माना है। इस काल के आस-पास साहित्य में एक नए मोड़ का आरंभ हो गया था, जो पुरानी काव्य-पद्धति को छोड़कर एक नई पद्धति के निर्माण का सूचक था। निराला की ‘जूही की कली’ (1916) और पंत की ‘पल्लव’ की कुछ कविताएँ सन् 1920 के आसपास आ चुकी थीं। प्रसाद, निराला ऑदि कवि भी इसी युग में हुए। माखनलाल चतुर्वेदी, रामनरेश त्रिपाठी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ आदि रचनाकार भी हुए जो अपने युग के आंदोलनों में सक्रिय भाग लेते थे और कविताएँ भी करते थे। कवित्व की दृष्टि से अनुभूति की तीव्रता, सूक्ष्मता और अभिव्यंजना-शिल्प के उत्कर्ष की दृष्टि से यह काव्य श्रेष्ठ है। छायावादी काव्य में ही अपने युग के जन-जीवन की समग्रता की अभिव्यक्ति मिलती है। छायावाद का युग भारत की अस्मिता की खोज का युग है। इस युग की एक प्रमुख प्रवृत्ति है – राष्ट्रीय और सांस्कृतिक काव्य का सृजन । इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक धारा के मुख्य कवि हैं – माखनलाल चतुर्वेदी, सियारामशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, सुभद्राकुमारी चौहान आदि।

छायावादी कवि –

छायावादी कवियों में प्रमुख नाम हैं- जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, छायावाद के अन्य कवियों में माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, भगवतीचरण वर्मा, डॉ. रामकुमार वर्मा, मोहनलाल महतो वियोगी’, लक्ष्मीनारायण मिश्र, जनार्दनप्रसाद झा ‘द्विज’, गोपालसिंह नेपाली, केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’, आर.सी.प्रसाद सिंह आदि। इस काल में प्रेम और मस्ती का काव्य भी खूब लिखा गया। इन कवियों में हरिवंशराय बच्चन’, नरेन्द्र शर्मा, गोपालसिंह नेपाली, हृदयेश, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, अंचल आदि उल्लेखनीय हैं। निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि छायावाद में स्वच्छन्दतावादी प्रवृत्ति मिलती है किन्तु इसमें नैतिक दृष्टि प्रधान है।

छायावाद काल का गद्य साहित्य
नाटक – हिंदी नाटक साहित्य की दृष्टि से इस युग को ‘प्रसाद युग’ कहना उचित है। ‘विशाख’ ‘अजातशत्रु’ ‘जनमजेय का नागयज्ञ’, ‘स्कन्दगुप्त”एक चूंट”चन्द्रगुप्त’ और ‘ध्रुवस्वामिनी’ ने हिंदी नाट्य साहित्य को विशिष्ट स्तर एवं गरिमा प्रदान की। प्रसाद के अतिरिक्त हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ और लक्ष्मीनारायण मिश्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। यह काल नाटक साहित्य के लिए समृद्ध काल कहा जा सकता है। इस काल में ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक चेतना एवं यथार्थपरक नाटक लिखे गए।

एकांकी नाटक – एकांकी लेखन का प्रचलन छायावाद काल में ही हुआ। बदरीनाथ भट्ट के एकांकी-संग्रह ‘लबड़ धों धों’ में मनोरंजक प्रहसन संकलित हैं। हनुमान शर्मा के एकांकी संग्रह मान-विजय’, बेचन शर्मा ‘उग्र’ का ‘चार बेचारे’ और प्रसाद का ‘एक घुट’ भी इस काल की उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। हिंदी में पश्चिमी ढंग के एकांकी नाटकों का प्रणयन 1930 ई. के बाद हुआ। रामकुमार वर्मा, उदयशंकर भट्ट, सेठ गोविन्ददास, जगदीशचन्द्र माथुर तथा भगवती चरण वर्मा इस कालखण्ड के लोकप्रिय एकांकीकार रहे।

उपन्यास – उपन्यास लेखन के लिए इस युग को निर्विवाद रूप से ‘प्रेमचन्द-युग’ कहा गया है। ‘सेवासदन’ के बाद प्रेमचन्द के ‘प्रेमाश्रय’ (1922), ‘रंगभूमि’ (1925), ‘कायाकल्प’ (1926), ‘निर्मला’ (1927), ‘गबन’ (1931), ‘कर्मभूमि’ (1933) और ‘गोदान’ (1935) शीर्षक से सात मौलिक उपन्यास प्रकाशित हुए। प्रेमचंद के समकालीन उपन्यासकारों में विश्वनाथ शर्मा, चतुरसेन शास्त्री, शिवपूजन सहाय तथा बेचन शर्मा ‘उग्र’, जयशंकर प्रसाद आदि उल्लेखनीय हैं। हिन्दी उपन्यास को नई दिशा देने वालों में जैनेन्द्र, भगवती प्रसाद वाजपेयी, वृन्दावन लाल वर्मा, राहुल सांकृत्यायन तथा निराला आदि उल्लेखनीय हैं।

कहानी – आधुनिक हिंदी का विकास सही अर्थ में इसी काल में हुआ। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द का स्थान हिंदी कहानी के क्षेत्र में भी अद्वितीय है। इन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं जिनमें प्रमुख हैं – ‘बलिदान’, ‘आत्माराम’,’बूढ़ीकाकी’, ‘सवासेर गेहूँ’, शतरंज के खिलाड़ी'”सुजान भगत’, ‘पूस की रात’ “ठाकुर का कुआँ’ ‘ईदगाह”नशा'”बड़े भाई साहब”कफन’ ‘नमक का दारोगा’ आदि हैं। इस काल के दूसरे प्रमुख कहानीकार जयशंकर प्रसाद हैं। ‘प्रतिध्वनि’ (1926), ‘आकाशदीप’ (1929), ‘आंधी’ (1931), ‘इन्द्रजाल’ (1936) इनके कहानी संग्रह हैं। ‘आकाशदीप’, ‘पुरस्कार’,’मधुवा’, ‘गुण्डा’, ‘सालवती’,’इन्द्रजाल’ इनकी उल्लेखनीय कहानियाँ हैं। अन्य कहानीकारों में विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक’, सुदर्शन आचार्य, चतुरसेन शास्त्री, रायकृष्णदास, विनोदशंकर व्यास। व्यास ने ‘दुखवा मैं कासो कहूं मोरी सजनी’, ‘अंबपालिका’, बाणवधू’ आदि कहानियाँ लिखीं। इस काल के पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, जैनेन्द्र, अज्ञेय का भी नई कहानीधारा को जन्म दिया। जैनेन्द्र ने कहानी को ‘घटना’ के स्तर से उठाकर ‘चरित्र’ और ‘मनोवैज्ञानिक सत्य’ पर लाने का प्रयास किया। अज्ञेय (1911-1987) का स्थान जैनेन्द्र के समान ही महत्त्वपूर्ण है। अज्ञेय के पात्र समाज तथा आसपास की परिस्थितियों से जूझने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते हैं।

निबंध – इस युग के सबसे प्रमुख निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं। इनके निबंध ‘चिन्तामणि’ के दो खण्डों में संकलित हैं। शक्ल जी ने तीन प्रकार के निबंध लिखे हैं – मनोविकार विषयक, साहित्य-सिद्धांत विषयक और साहित्यालोचन विषयक। ललित निबंध की दृष्टि से गुलाबराय (1888-1963) की कुछ रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। ठलुआ-क्लब’, फिर निराशा क्यों’, ‘मेरी असफलताएँ’
आदि संग्रहों में कुछ श्रेष्ठ व्यक्तिगत निबंध संकलित हैं। अन्य ललित निबंधकारों में पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी, शान्तिप्रिय द्विवेदी, शिवपूजन सहाय, बेचन शर्मा ‘उग्र’, रघुवीरसिंह और माखनलाल चतुर्वेदी के नाम लिए जा सकते हैं।

समालोचना – इस काल के समालोचना साहित्य का परिष्कार और परिमार्जन करने का श्रेय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी को ही जाता है। ‘काव्य में अभिव्यंजनावाद’ उनका आलोचना ग्रंथ है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने भी ‘आलोचनादर्श’ और ‘साहित्य समालोचना’ लिखीं। इसी मध्य छायावाद पर बहुत आलोचनाएँ लिखी गईं। छायावाद के समर्थन में नन्ददुलारे वाजपेयी, अवध उपाध्याय, कृष्णदेव प्रसाद गौड़, शान्तिप्रिय द्विवेदी, नगेन्द्र, सुमित्रानंनद पंत, जयशंकर प्रसाद तथा नन्ददुलारे वाजपेयी जी हैं।

जीवनी – आलोच्य युग में जीवनी लेखन की दिशा में पर्याप्त कार्य हुआ। इस समय राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियाँ लिखी गईं। इनमें लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, गाँधी जी तथा चन्द्रशेखर आजाद प्रमुख हैं।

आत्मकथा – हिंदी में इस विधा का आरंभ बनारसीदास जैन ने ‘अर्धकथानक’ से किया। सत्यानन्द अग्निहोत्री ने ‘मुझमें देव-जीवन का विकास’ आत्मकथा लिखी। भाई परमानन्द ने आपबीती’, मोहनदास करमचंद गाँधी ने आत्मकथा’ (1923), नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने ‘तरुण के स्वप्न’ उल्लेखनीय आत्मकथाएँ लिखी।

यात्रावृत्त – छायावाद युग में यात्रवृत्त भी खूब लिखे गए। इस युग के यात्रावृत्त लेखकों में स्वामी सत्यदेव परिव्राजक तथा राहुल सांकृत्यायन विशेष उल्लेखनीय हैं। पृथ्वी प्रशिक्षण, मेरी जर्मन यात्रा, ज्ञान के उद्यान में तथा ‘मेरी तिब्बत यात्रा’ आदि प्रसिद्ध यात्रावृत्त हैं।

संस्मरण तथा रेखाचित्र – इस युग में संस्मरण एवं रेखाचित्र भी पर्याप्त मात्रा में लिखे गए। ‘सरस्वती’ में रामकुमार खेमका, कृपानाथ मिश्र, रामनारायण मिश्र, भगवानदीन दुबे, रामेश्वरी नेहरू, श्रीमन्नारायण अग्रवाल के संस्मरण प्रकाशित हुए। इलाचन्द्र जोशी कृत ‘मेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियाँ’ तथा वृन्दावनलाल वर्मा कृत ‘कुछ संस्मरण’ भी उल्लेखनीय हैं। इस युग में संस्मरणात्मक रेखाचित्रों की एक नई विधा का भी प्रचलन हुआ। जिसके विकास में श्रीराम शर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी तथा महादेवी वर्मा ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। श्रीराम शर्मा कृत ‘बोलती प्रतिमा’ विशेष उल्लेखनीय हैं।

छायावादोत्तर काल (1936 से)
इस बीच का साहित्य कई वादों और धाराओं से होकर गुजरा है। विभिन्न प्रकार की जीवन दृष्टियाँ, काव्य की वस्तु और शिल्प संबंधी मान्यताएँ उभरी हैं। इस समय काव्य की जो धाराएँ मुख्य रूप से उभरीं जिनमें राष्ट्रीय-सांस्कृतिक कविता, उत्तर छायावाद, वैयक्तिक गीतिकाव्य, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नयी कविता धारा प्रमुख हैं। राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्य धारा की प्रमुख कृतियों में ‘नहुष’, ‘युगचरण’,’क्वासि’, ‘हम विषपायी जनम के ‘उन्मुक्त’, ‘हुंकार’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘वासवदत्ता’, ‘चित्रा’, ‘युगाधार’ ‘विसर्जन’, ‘कैकयी’ प्रमुख हैं। उत्तर छायावाद के प्रमुख कवि एवं रचनाएँ हैं – ‘तुलसीदास’, ‘अणिमा’, ‘अर्चना’, (निराला); ‘स्वर्णकिरण’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘मधुज्वाल’, ‘युगपथ’, ‘उत्तरा’, ‘रजतशिखर’, ‘शिल्पी’, ‘अतिमा’, ‘कला और बूढ़ा चाँद’, ‘लोकायतन’ (सुमित्रानन्दन पन्त); ‘दीपशिखा’ (महादेवी वर्मा); रूप अरूप’, ‘शिप्रा’, ‘मेघगीत’, ‘अवन्तिका’ (जानकीवल्लभ शास्त्री)। वैयक्तिक गीत काव्य में रोमानी धारा की कविताएँ आती हैं। इस प्रवृत्ति के अन्तर्गत आने वाली प्रमुख कविताएँ हैं – ‘निशा निमंत्रण’, ‘सतरंगिनी’, ‘मिलन यामिनी’ ‘रसवन्ती’ और ‘लाल चूनर’ ‘जीवन और यौवन’, ‘रागिनी’, ‘नवीन’ ‘नींद के बादल’ ‘मंजीर’ ‘छवि के बन्धन’।

प्रगतिवाद
जो काव्य मार्क्सवादी दर्शन को सामाजिक चेतना और भावबोध को अपना लक्ष्य बनाकर चला उसे प्रगतिवाद कहा गया। इसके विकास में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ तो सहायक हुईं साथ ही छायावाद की वायवी काव्यधारा भी इसमें सहायक सिद्ध हुई। भारत में 1935 ई. के आस-पास साम्यवादी आन्दोलन उठने लगा। प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और रचनाएँ इस प्रकार हैं – ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’ (पंत), कुकुरमुत्ता’ (निराला), युग की गंगा’ (केदारनाथ अग्रवाल), युगधारा’ (नागार्जुन), ‘धरती’ (त्रिलोचन), जीवन के गान’, ‘प्रलय सृजन’ (शिवमंगलसिंह सुमन), ‘अजेय खंडहर’, ‘पिघलते पत्थर’, ‘मेधावी’ (रांघेय राघव), ‘मुक्तिमार्ग’, ‘जागते रहो’ (भारतभूषण अग्रवाल)। अन्य प्रमुख कवियों में शिवमंगलसिंह सुमन (1915), त्रिलोचन (1917), मुक्तिबोध, अज्ञेय, भारतभूषण अग्रवाल, भवानीप्रसाद मिश्र, नरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती आदि हैं।

प्रयोगवाद और नई कविता
हिंदी काव्य में प्रयोगवाद’ का प्रारंभ सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ के प्रकाशन से माना जाता है। जो कविताएँ नए बोध, संवेदनाओं तथा शिल्पगत चमत्कारों के साथ सामने आईं उन कविताओं के लिए ‘प्रयोगवाद’ शब्द रूढ़ हो गया। प्रयोगवादी कविताओं में ह्रासोन्मुख मध्यवर्गीय समाज के जीवन का चित्रण है। प्रयोगवादी कवि यथार्थवादी हैं। वे भावुकता के स्थान पर ठोस बौद्धिकता को स्वीकार करते हैं। वे कवि मध्यवर्गीय व्यक्ति के जीवन की समस्त जड़ता, कुण्ठा, अनास्था, पराजय और मानसिक संघर्ष के सत्य को बड़ी बौद्धिकता के साथ उद्घाटित करते हैं।

नई कविता
प्रयोगवाद का विकास ही कालान्तर में ‘नई कविता’ के रूप में हुआ। वस्तुतः प्रयोगवाद और नई कविता में कोई सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती। नई कविता में जीवन को पूर्णरूप से स्वीकार करके उसे भोगने की लालसा दिखाई देती है। अनुभूति की सच्चाई नई कविता में दिखाई देती है। नई कविता में व्यंग्य के रूप में पुराने मूल्यों को अस्वीकार किया गया है। कुल मिलाकर नई कविता में नवीनता, बौद्धिकता, अतिशय वैयक्तिकता, क्षणवादिता, भोग एवं वासना, यथार्थवादिता, आधुनिक युगबोध, प्रणयानुभूति, लोक संस्कृति, नया शिल्प विधान आदि विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं।

प्रयोगवाद एवं नई कविता के प्रमुख कवि
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, गिरिजा कुमार माथुर, गजानन माधव मुक्तिबोध, भवानी प्रसाद मिश्र, शमशेर बहादुर सिंह तथा धर्मवीर भारती प्रयोगवाद तथा नई कविता के सुपरिचित नाम हैं। अज्ञेय द्वारा संपादित तीनों सप्तकों में इनकी प्रमुख रचनाएँ संग्रहीत हैं।

छायावादोत्तर गद्य साहित्य

नाटक – वस्तुत: उपेन्द्रनाथ अश्क पहले नाटककार हैं जिन्होंने हिंदी नाटक को रोमांस के कठघरे से निकालकर किसी सीमा तक आधुनिक भावबोध के साथ जोड़ा। यद्यपि ‘छठा बेटा’ ‘कैद’, ‘उड़ान’, भंवर’, ‘अंजो दीदी’, ‘अंधी गली’ और ‘पैंतरे’ प्रमुख नाटक हैं। विष्णु प्रभाकर, जगदीशचन्द्र माथुर, धर्मवीर भारती, डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल, मोहन राकेश आदि अन्य प्रमुख नाटककार हैं। इस काल में गीति-नाट्य भी प्रचुर मात्रा में लिखे गए। सुमित्रानन्दन पन्त ने ‘रजतशिखर’, ‘शिल्पी’, सेठ गोविन्ददास ने ‘स्नेह या स्वर्ग’ (1946), ‘कर्ण’ आदि लिखे। गिरजाकुमार माथुर ने ‘कल्पान्तर’, ‘सृष्टि की साँझ’, ‘लौह देवता’ आदि नाटकों की रचना थी।

एकांकी नाटक – इस समय के प्रमुख एकांकीकार हैं – भुवनेश्वर, रामकुमार वर्मा, उदयशंकर भट्ट, अश्क, सेठ गोविन्ददास, जगदीशचन्द्र माथुर आदि।
उपन्यास – प्रेमचन्द के उपरान्त हिंदी उपन्यास कई मोड़ों से गुजरता हुआ दिखाई पड़ता है, जिन्हें स्थूल रूप से तीन दशकों में बाँटा जा सकता है – 1950 ई. तक के उपन्यास, 1950 से 1960 ई. तक के उपन्यास और साठोत्तरी उपन्यास। 1950 ई. का दशक मुख्यतः फ्रायड और मार्क्स की विचारधारा से प्रभावित है। 1960 का दशक प्रयोगात्मक विशेषताओं का है तथा 1960 के बाद आधुनिकतावादी विचारधारा से पोषित है। फ्रायड से प्रभावित उपन्यासकारों में जैनेन्द्र जी प्रमुख हैं। अज्ञेय के ‘शेखर एक जीवनी’ (1941) के प्रकाशन के साथ हिंदी उपन्यास की दिशा में एक नया मोड़ आया। इस कालखण्ड के प्रमुख उपन्यासकार जैनेन्द्र, अज्ञेय, इलाचन्द्र जोशी, यशपाल, रामेश्वर शुक्ल, भगवती चरण वर्मा, उपेन्द्रनाथ अश्क, अमृतलाल नागर आदि हैं। ऐतिहासिक उपन्यासकारों में वृन्दावनलाल वर्मा, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, यशपाल, राहुल सांकृत्यायन और रांघेय राघव प्रमुख हैं।

फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास सही अर्थों में आंचलिक हैं। उनका ‘मैला आंचल’ (1954) विशेष प्रसिद्ध हुआ। नागार्जुन, रांघेयराघव, भैरवप्रसाद गुप्त, राही मासूम रज़ा आदि अन्य आंचलिक उपन्यासकार हैं। मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में धर्मवीर भारती, सामाजिक चेतना के उपन्यासों में मन्मथनाथ गुप्त, भैरवप्रसाद गुप्त, अमृतराय, लक्ष्मीनारायण लाल, राजेन्द्र यादव आदि प्रमुख हैं। आधुनिक भाव बोध के उपन्यासों में यन्त्रीकरण, दो महायुद्धों और अस्तित्ववादी चिन्तन के फलस्वरूप आधुनिकता की जो स्थिति उत्पन्न हुई है उसे लेकर भी उपन्यास लिखे गए। मोहन राकेश का ‘अंधेरे बन्द कमरे’ निर्मल वर्मा का ‘वे दिन’, राजकमल चौधरी का उपन्यास ‘मरी हुई मछली’, श्रीकान्त वर्मा का ‘दूसरी बार’, महेन्द्र भल्ला का ‘एक पति के नोट्स’, कमलेश्वर का ‘डाक बंगला’ और ‘काली आंधी’, गंगा प्रसाद विमल का ‘अपने से अलग’ आदि उपन्यास भी आधुनिक बोध की रचनाएँ हैं। श्रीलाल शुक्ल का ‘राग दरबारी’ रिपोर्ताज शैली में लिखा गया उल्लेखनीय उपन्यास है।

कहानी – कहानी हिन्दी गद्य की एक प्रमुख विधा है। नयी कविता के सादृश्य पर ‘नयी कहानी’ विकसित हुई। उसके बाद सचेतन कहानी, अ-कहानी आंदोलन भी चले। 1962 में भारत-चीन युद्ध ने हमें रोमांटिक छद्मावरण से यथार्थ की भूमि पर ला पटका, जिससे सातवें दशक में संत्रास, अलगाव, बेगानेपन और ऊब से संबंधित कहानियाँ सामने आईं। यशपाल ने प्रगतिवाद से प्रेरित होकर धन की विषमता पर प्रहार किए। इलाचन्द्र जोशी ने अपनी कहानियों में मनोवैज्ञानिक केस-हिस्ट्री पिरोयी है। इस दिशा में अग्रसर होने वाले वे अकेले कहानीकार हैं। अश्क की कहानियों में विविधता के दर्शन होते हैं। विष्णुप्रभाकर, कमल जोशी, निर्गुण, भैरवप्रसाद गुप्त, अमृतराय आदि अपेक्षाकृत नई पीढ़ी के कहानीकार हैं।

विष्णुप्रभाकर की ‘धरती अब भी घूम रही है’ कहानी नए बोध के निकट है। कमल जोशी की ‘शिराजी’ और ‘पत्थर की आँखें’ चर्चित कहानियाँ हैं। साठ के दशक में युगीन संक्रमण और तनाव भी कहानियों में दिखाई देता है। मोहन राकेश तनावों के कहानीकार हैं। उनके कहानी संग्रह हैं – नये बादल, जानवर और जानवर, एक और जिन्दगी आदि। राजेन्द्र यादव की कहानियों में आधुनिक भाव बोध को व्यापक सामाजिकता से जोड़ा गया है। उन्होंने निर्वैयक्तिकता पर विशेष बल दिया है। कमलेश्वर की कहानियों में युगीन संक्रमण का मूल्यान्वेषी स्वर मिलता है।

इसी दशक में नरेश मेहता, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, धर्मवीर भारती, कुंवर नारायण, रामदरश मिश्र आदि कवियों ने अपने-अपने ढंग से कहानियाँ लिखी हैं। लेखिकाओं में मन्नू भण्डारी, कृष्णा सोबती, शिवानी, उषा प्रियंवदा, रजनी पन्निकर, मेहरुन्निसा परवेज आदि प्रमुख हैं। इनका संसार कुछ सीमा तक पुरुषों से अलग है। सातवें दशक के आरंभ में निर्मल वर्मा की कहानियाँ विशेष चर्चित रहीं। सातवें दशक को मोहभंग का दशक कहना उचित होगा। चीन से पराजय के बाद पुरानी पीढ़ी के प्रति क्षोभ-आक्रोश का प्रारंभ यहीं से हुआ। ज्ञानरंजन, दूधनाथ सिंह, गंगाप्रसाद विमल, गिरिराज किशोर, रवीन्द्र कालिया, महेन्द्र भल्ला, ज्ञानप्रकाश, काशीनाथ सिंह आदि अन्य उल्लेखनीय कहानीकार हैं।

निबंध – शुक्ल जी के समीक्षात्मक निबंधों की परंपरा की अगली कड़ी के रूप में नन्ददुलारे वाजपेयी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जयशंकर प्रसाद के निबंधों में उनकी सूक्ष्म पकड़, संतुलित दृष्टि, गत्यात्मकता और रचनात्मकता का परिचय मिलता है। इस काल के सबसे महत्त्वपूर्ण निबंधकार हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं। उनके ललित निबंधों में सांस्कृतिक विरासत के वर्चस्व के साथ नवीन जीवन-बोध, उत्कट जिजीविषा और नई सामजिक समस्याओं के बीच राह पाने की लालसा सर्वत्र दिखाई देती है। इस काल में जैनेन्द्र का स्थान भी काफी ऊँचा है। उन्होंने निबंधों में धर्म, राजनीति, संस्कृति, साहित्य, काम, प्रेम, विवाह आदि सभी विषयों पर विचार किया है। हिंदी में प्रभाववादी समीक्षा के अग्रदूत शान्तिप्रिय द्विवेदी ने समीक्षात्मक निबंधों के अतिरिक्त साहित्येतर विषयों पर भी निबंध लिखे। रामधारीसिंह ‘दिनकर’ भी समय-समय पर महत्त्वपूर्ण निबंध लिखते रहे हैं। ‘अर्धनारीश्वर’, ‘मिट्टी की ओर’, ‘रेती के फूल’,’हमारी

सांस्कृतिक एकता’, ‘प्रसाद, पन्त और मैथिलीशरण’, ‘राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहित्य’ उनके निबंध संग्रह हैं। समीक्षात्मक निबंधकारों में वैयक्तिकता का सर्वाधिक संस्पर्श डॉ. नगेन्द्र के निबंधों में मिलता है। साहित्यिक विषयों से हटकर ललित निबंध रचना करने वाले लेखकों में रामवृक्ष बेनीपुरी, देवेन्द्र सत्यार्थी, भदन्त आनन्द कौसल्यायन, वासुदेव शरण अग्रवाल तथा यशपाल उल्लेखनीय हैं। अन्य ललित निबन्धकारों में कुबेरनाथ राय, विवेकी राय, लक्ष्मीकान्त, केदारनाथ अग्रवाल तथा लक्ष्मीचन्द्र जैन का योगदान भी स्मरणीय है। बनारसी दास चतुर्वेदी, माखनलाल चतुर्वेदी, विद्यानिवास मिश्र ने विषय-विविधता तथा शैलीगत चमत्कार से निबंधकारों में विशिष्ट स्थान बनाया। हास्य-व्यंग्य लेखकों में बेढब बनारसी पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने निबंधों द्वारा इस दिशा में पहल की। श्रीनारायण चतुर्वेदी ने भी विनोद शर्मा के छद्म नाम से ‘राजभवन की सिगरेटदानी’ लिखा। 60 के दशक के प्रमुख व्यंग्यकारों में हरिशंकर परसाई, केशवचन्द्र वर्मा, लक्ष्मीकान्त वर्मा, भीमसेन त्यागी, रवीन्द्रनाथ त्यागी, शरद जोशी, नरेन्द्र कोहली आदि ने भी काफी संख्या में व्यंग्यात्मक निबंधों की सृष्टि की है। इनमें हरिशंकर परसाई प्रमुख हैं।

अन्य गद्य विधाएँ

जीवनी साहित्य – आलोच्य युग में जीवनी-साहित्य का बहुमुखी विकास हुआ। लोकप्रिय नेताओं, संत-महात्माओं, साहित्यकारों, विदेशी महापुरुषों, वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों, उद्योगपतियों आदि से संबंधित जीवनियाँ प्रचुर मात्रा में लिखी गईं। महात्मा गांधी इस युग में सर्वप्रिय नेता थे। अत: उनसे संबंधित जीवनियाँ खूब लिखी गईं। भगतसिंह तथा चन्द्रशेखर आजाद पर तथा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर अनेक लोगों ने जीवनियाँ लिखी। विभिन्न लेखकों ने महात्मा बुद्ध, शंकराचार्य आदि के जीवन को आधार बनाकर जीवनियाँ लिखीं। इस युग में भारतीय इतिहास से संबद्ध महापुरुषों की जीवनियाँ भी लिखी गईं। शिवाजी, रणजीत सिंह, गुरुगोविन्द सिंह, भीष्म पितामह तथा युधिष्ठिर की जीवनियाँ लिखी गईं। विदेशी महापुरुषों पर भी जीवनियाँ लिखी गईं।

स्टालिन कार्लमार्क्स, माओत्से तुंग तथा मुसोलिनी ऐसे ही विदेशी पुरुष थे। साहित्यकारों में प्रेमचंद अत्यधिक लोकप्रिय रहे। प्रेमचंद को आधार बनाकर भी सर्वाधिक जीवनियाँ लिखी गईं। इनके इनकी पत्नी द्वारा 88 उपशीर्षकों के माध्यम से प्रेमचंद पर ‘प्रेमचन्द घर में’ (1956) नामक जीवनी लिखी, जो बहुत महत्त्वपूर्ण है। उनके पुत्र अमृतराय ने भी कलम का सिपाही’ (1967) नाम से प्रेमचंद पर जीवनी लिखी। सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ पर कई जीवनियाँ लिखी गईं, जिनमें गंगाप्रसाद पाण्डेय द्वारा लिखित ‘महाप्राण निराला’ तथा रामविलास शर्मा द्वारा लिखित ‘निराला की साहित्य साधना’ शांति जोशी द्वारा लिखित ‘सुमित्रानन्दन पंत जीवन और साहित्य’ (1970) विष्णुप्रभाकर विरचित ‘आवारा मसीहा’ हैं।

आत्मकथा – इस काल में आत्मकथाएँ प्रचुर मात्रा में लिखी गईं। श्यामसुन्दरदास, हरिभाऊ उपाध्याय, राहुल सांकृत्यायन, वियोगी हरि, यशपाल, स्वामी सत्यदेव परिव्राजक, शांतिप्रिय द्विवेदी, देवेन्द्र सत्यार्थी, चतुरसेन शास्त्री, देवराज उपाध्याय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, सेठ गोविन्ददास, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, संतराम बी.ए., भुवनेश्वरप्रसाद मिश्र माधव, हरिवंशराय बच्चन, वृन्दावनलाल वर्मा, रामविलास शर्मा की आत्मकथाओं का प्रकाशन इसी युग में हुआ। इस कालखण्ड में राजनीतिक-सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों की आत्मकथाएँ भी प्रकाशित हुईं, जिनमें राजेन्द्रप्रसाद, अलगूराय शास्त्री, जानकीदेवी बजाज, नरदेव शास्त्री, मोरारजी देसाई तथा बलराज मधोक के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

यात्रावृत्त – स्वामी सत्यदेव परिव्राजक, कन्हैयालाल मिश्र आर्योपदेशक, सन्तराम, राहुल सांकृत्यायन, सेठ गोविन्ददास, पं. नेहरू आदि उल्लेखनीय हैं। इस समय रूस से सम्बद्ध यात्रावृत्त अधिक लिखे गए क्योंकि रूस से हमारे संबंध अधिक सुदृढ़ रहे हैं। दिल्ली से मास्को, रूस में पच्चीस मास, रूस में छियालीस दिन, इसी प्रकार लेखकों ने चीन, जापन आदि अन्य देशों से संबंधित कई यात्राओं का वर्णन किया है। इसी प्रकार स्वदेश-यात्रा संबंधी यात्रावृत्त भी पर्याप्त संख्या में प्रकाशित हुए हैं। कैलाश मानसरोवर’ एवं ‘कैलाश दर्शन’ ‘ज्योतिपुंज हिमालय’ ‘किन्नर देश में’, ‘अरे यायावर रहेगा याद’ ‘आखिरी चट्टान तक’ उल्लेखनीय यात्रावृत्त हैं।

संस्मरण तथा रेखाचित्र – इन विधाओं के हिंदी लेखकों में बनारसीदास चतुर्वेदी का अन्यतम स्थान है। उन्होंने ‘हमारे आराध्य’ और ‘संस्मरण’ शीर्षक संस्मरणात्मक रचनाओं तथा रेखाचित्र’ एवं ‘सेतुबंध’ शीर्षक से रेखाचित्र संग्रहों को प्रस्तुत किया। श्रीराम शर्मा अन्य प्रमुख संस्मरण एवं रेखाचित्रकार हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी अपने अद्भुत शब्द शिल्प के लिए प्रख्यात हैं। ‘लाल तारा”माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’ तथा ‘मील के पत्थर’ इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। हिंदी के संस्मरणात्मक रेखाचित्र-साहित्य की श्रीवृद्धि में महादेवी वर्मा ने अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। ‘अतीत के चलचित्र ‘स्मृति की रेखाएँ’ ‘पथ के साथी’ ‘स्मारिका’ और ‘मेरा परिवार’ उनके उल्लेखनीय रेखाचित्र संग्रह हैं। इन दोनों विधाओं में विशेष योगदान देने के लिए प्रकाशचन्द्र गुप्त भी स्मरणीय हैं।

‘पुरानी स्मृतियाँ’ (1947) में इनके स्मृतिचित्र संकलित हैं तो ‘रेखाचित्र’ (1940) में निर्जीव वस्तुओं, स्थानों आदि पर लिखे गए रेखाचित्र प्रसिद्ध हैं। इस युग के अन्य संस्मरण लेखकों में राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह का नाम भी उल्लेखनीय है। उनके ‘टूटा तारा’ (1940) में संकलित ‘मौलवी साहब’, ‘देवी बाबा’ आदि संस्मरण विशेष पठनीय हैं। विनयमोहन शर्मा, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, शिवपूजन सहाय हैं, सत्यवती मल्लिक, देवेन्द्र सत्यार्थी, उपेन्द्रनाथ अश्क, राहुल सांकृत्यायन, डॉ. नगेन्द्र, जगदीश चन्द्र माथुर, सेठ गोविन्ददास ने भी संस्मरण तथा रेखाचित्र लिखे। संस्मरण साहित्य को अलंकृत करने वाले कवियों में माखनलाल चतुर्वेदी ‘समय के पाँव’ (1962), रामधारीसिंह दिनकर ‘लोकदेव नेहरू’ (1965) तथा ‘संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ’ (1969) तथा हरिवंशराय बच्चन ‘नये पुराने झरोखे’ (1962) उल्लेखनीय हैं। कैलाशनाथ काटजू, इन्द्र विद्यावाचस्पति, संपूर्णानन्द, पद्मिनी मेनन, परिपूर्णानन्द कृष्णा

सोबती, विष्णु प्रभाकर तथा फणीश्वरनाथ रेणु की कृतियाँ भी उल्लेखनीय हैं। संस्मरण साहित्य की सबसे अनमोल निधि वे पत्र-पत्रिकाएँ हैं जिनमें ये नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं। ‘सरस्वती’ में मनोरंजक संस्मरण, नई धारा में ‘मुझे याद है’, धर्मयुग में ‘एक दिन की बात’, ‘अविस्मरणीय’, ‘जब मैं सोलह साल की थी’ आदि शीर्षकों के अन्तर्गत अनेक संस्मरण प्रकाशित हुए।

समकालीन हिंदी साहित्य

समकालीन नाटक – 1960 के बाद नाटक अन्य विधाओं की अपेक्षाकृत कम ही लिखे गए। पिछले दशकों में हिंदी नाटक में नयेपन तथा प्रयोगशीलता ने नई नाट्य-भूमि की खोज की है। मोहन राकेश के बाद हिंदी नाटक निराशा और पराजय बोध के संसार से निकला है। उनके बाद अनेक नाटककार नाट्य क्षेत्र में आए जिन्होंने नई टेकनीक, नई रंग सृष्टि और प्रयोगधर्मिता के आधार पर नाट्य सृजन की संभावनाओं को जीवन्त कर दिया। इन नाटककारों ने जीवन की असंगतियों, अन्तर्विरोधों, तनावों, जटिल परिवेशगत स्थितियों को नए रूपतन्त्र के कौशल से नाटकों में अभिव्यक्ति दी। इस दृष्टि से भीष्म साहनी, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, ज्ञानदेव अग्निहोत्री, मणिमधुकर मुद्राराक्षस, शंकर शेष तथा सुरेन्द्र वर्मा आदि उल्लेखनीय हैं।

कुछ ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथाओं के माध्यम से भारतीयों की अस्मिता को खोज का प्रयास भी किया गया। इनमें शंकर शेष के ‘खजुराहो का शिल्पी’, दयाप्रकाश का इतिहास-चक्र’, लक्ष्मीनारायण भारद्वाज का ‘अश्वत्थामा’, जयशंकर त्रिपाठी का ‘कुरुक्षेत्र का सवेरा’, लक्ष्मीनारायण लाल का ‘राम की लड़ाई’, ‘नरसिंह कथा’, ‘एक सत्य हरिश्चन्द्र’, गिरिराज किशोर का ‘प्रजा ही रहने दो’, नरेन्द्र कोहली का ‘शंबूक की हत्या’, सुरेन्द्र वर्मा का ‘छोटे सैयद बड़े सैयद’,’आठवाँ सर्ग’ उल्लेखनीय हैं। राजनीति की सिद्धान्तहीनता, अवसरवादिता, सरलीकरण और बौद्धिक दिवालियेपन ने आदमी को झकझोर दिया। इसका प्रभाव नाटककारों पर भी पड़ा। इन समस्याओं और विसंगतियों को लक्ष्य करके अनेक नाटकों की रचना हुई। लक्ष्मी नारायण लाल, ऋषि भटनागर, शरद जोशी, शंकर शेष तथा मणि मधुकर के नाम उल्लेखनीय हैं।

समकालीन कहानी – राजनीतिक, सामाजिक भटकाव की स्थिति में नई पीढ़ी के सृजनात्मक एवं मानसिक स्तर को उन्नत किया है। पुरानी पीढ़ी की मानसिकता के इनके मूल्य एकदम भिन्न हैं। ये पिछली पीढ़ी की तरह तकलीफों से भागते नहीं हैं, उन्हें काबू में लाकर भोगते हैं। अब इस कहानी का स्वर अस्तित्ववादी न रहकर मानववादी हो गया है। समकालीन कहानी जिसे नई कहानी भी कहा गया है, में नगरबोध की प्रवृत्ति प्रमुखता से व्यक्त हुई है। आज के नगरीय जीवन में पाई जाने वाली सतही सहानुभूति, आन्तरिक ईर्ष्या, स्वार्थपरता, जीवन की कृत्रिमता आदि की अभिव्यक्ति, कमलेश्वर, निर्मल वर्मा, अमरकान्त की कहानियों में देखी जा सकती है। आधुनिक बोध से उत्पन्न अकेलेपन एवं रिक्तता की अनुभूति, युगीन संक्रमण एवं तनाव को भी उसमें अभिव्यक्त किया गया है। नई कहानी को समृद्ध करने में हिंदी कथा लेखिकाओं का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।

उषा प्रियंवदा, मन्नू भण्डारी, कृष्णा सोबती, शिवानी, मेहरुन्निसा परवेज एवं रजनी पनिकर ऐसी ही कहानीकार हैं। नए कहानीकारों में कुछ चर्चित नाम हैं – महीप सिंह, दिनेश पालीवाल, राजकुमार भ्रमर, नरेन्द्र कोहली, गोविन्द मिश्र, श्रद्धा कुमार, ममता कालिया, निरूपमा सोबती, दीप्ति खण्डेलवाल आदि। नई कहानी में मूल्यहीनता न होकर मूल्यों का परिवर्तन है। नई कहानी किसी एक क्षण या एक स्थिति या एक संवेदना को व्यक्त करने वाली कहानी है। समकालीन हिंदी साहित्य में कई कहानी आंदोलन भी हुए जिनमें नई कहानी, सचेतन कहानी (महीप सिंह), अचेतन कहानी, साठोत्तरी कहानी, अकहानी (निर्मल वर्मा), समानान्तर कहानी (कमलेश्वर), समकालीन कहानी (डॉ. गंगा प्रसाद विमल), जनवादी कहानी, सक्रिय कहानी, जन कहानी आदि प्रमुख हैं।

समकालीन उपन्यास – समकालीन दौर का अधिकांश लेखन व्यक्ति-केन्द्रित रहा और रचनाकार व्यक्ति के माध्यम से समय और समाज के हालात को सामने लाया है। इस प्रवृत्ति की सर्वाधिक मुखर अभिव्यक्ति ‘गोबर गणेश’, ‘किस्सा गुलाम’, ‘आपका बन्टी’ जैसे उपन्यासों में हुआ है। नए उपन्यासकारों में बौद्धिकता है एवं हर विषय को बौद्धिकता की कसौटी पर कसने और निश्चित राय देने की सामर्थ्य दिखाई देती है। आज के उपन्यासों में दैहिक-भौतिक संबंधों का बहुत बारीकी से परीक्षण किया गया है।

समकालीन कुछ प्रमुख उपन्यासकार एवं उनके उपन्यास इस प्रकार हैं – मृदुला गर्ग (चित्त कोबरा, उसके हिस्से की धूप, वंशज, अनित्य), निर्मल वर्मा (वे दिन, लाल टीन की छत), श्रीकान्त वर्मा (दूसरी बार), राजकमल चौधरी (मछली मरी हुई), यशपाल (क्यों फँसे ?) गोविन्द मिश्र (वह अपना चेहरा), मनोहरश्याम जोशी (कुरु-कुरु स्वाहा, कसप), कृष्णा सोबती (सूरजमुखी अंधेरे के), भीष्म साहनी (कड़ियाँ), गिरिराज किशोर (चिड़ियाघर), लक्ष्मीकान्त वर्मा (टैराकोटा), श्रीलाल शुक्ल (राग दरबारी), राही मासूम रजा (आधा गाँव, टोपी शुक्ला, हिम्मत जौनपुरी), मणि मधुकर (सफेद मेमने), नरेन्द्र कोहली (दीक्षा), प्रभाकर माचवे (परन्तु, क्षमा, सांचा), कमलेश्वर (सुबह दोपहर शाम, काली आंधी) शैलेश मटियानी (बोरीवली से बोरी बन्दर), बदी उज्जमा (एक चूहे की मौत)।

समकालीन निबंध – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की निबंध परंपरा का विकास यहाँ अवरुद्ध न होकर नई चिन्तन पद्धतियों को अभिव्यक्ति मिली है। अज्ञेय, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, निर्मल वर्मा, रमेशचन्द्र शाह, शरद जोशी, जानकीवल्लभ शास्त्री, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, नेमिचन्द्र जैन, विष्णु प्रभाकर, जगदीश चतुर्वेदी, डॉ. देवराज, डॉ. नामवरसिंह, विवेकीराय आदि ने हिंदी निबंध परंपरा को न केवल आगे बढ़ाया बल्कि उसमें कुछ ऐसे विशिष्ट प्रयोग किए जो हिंदी निबंध को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। मुक्तिबोध ने ‘नयी कविता का आत्मसंघर्ष’, ‘नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र’, ‘समीक्षा की समस्याएँ’ तथा ‘एक साहित्यिक की डायरी’ नामक निबन्ध संग्रहों से नई समीक्षा को गति दी। नए निबंधकारों में विजयदेवनारायण साही की भूमिका भी उल्लेखनीय है।

उनके निबंध ‘लघुमानव के बहाने हिन्दी कविता पर एक बहस’ ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया। निर्मल वर्मा जी ने भी हिंदी निबंध को नया रूप-रंग दिया। इन निबंधों में उनकी सृजनात्मक बौद्धिक यात्राओं का एक रोमांचक संसार है। नेमिचन्द्र जैन ने निर्मल जी से हट कर निबंध लिखे। उनके ‘अधूरे साक्षात्कार’, ‘रंगदर्शन’, ‘बदलते परिप्रेक्ष्य’ तथा ‘जनान्तिक’ के समीक्षात्मक निबंधों ने एक अलग पहचान बनाई।
– रामविलास शर्मा की निबन्ध शैली हिंदी-गद्य में स्वच्छता, प्रखरता और वैचारिकता लिए हुए है। ‘विराम चिह्न’, ‘मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य’, ‘परम्परा का मूल्यांकन’, ‘मानव सभ्यता का विकास’, ‘भाषा युगबोध और कविता’, ‘कथा-विवेचना और गद्य शिल्प’, ‘मार्क्स और पिछड़े हुए समाज’ जैसे निबंध संग्रह लिखे। हिंदी व्यंग्य साहित्य भी प्रगति कर रहा है। इस क्षेत्र में कुबेरनाथ राय, विवेकीराय, शरद जोशी, रवीन्द्र कालिया आदि ने हिंदी निबंध की एक समर्थ व्यंग्य-शैली विकसित की है।

युवा निबन्धकारों में प्रभाकर श्रोत्रिय, चन्द्रकान्त वांदिवडेकर, नन्दकिशोर आचार्य, बनवारी, कृष्णदत्त पालीवाल, प्रदीप मांडव, कर्ण सिंह चौहान, चंचल चौहान, ज्ञानरंजन, केदारनाथ अग्रवाल, लक्ष्मीचन्द्र, विवेकीराय जैसे बहुत से महत्त्वपूर्ण निबंधकार इस दौर में उभरे हैं। राजनीतिक-सांस्कृतिक विषयों पर चिन्तन की ताजगी से निबंध लिखना इन नए निबंधकारों की विशिष्ट प्रवृत्ति है।

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