Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 भक्ति आंदोलन और तुलसीदास
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता आन्दोलन से अलग भारत का सर्वाधिक प्रसिद्ध आन्दोलन है?
(क) मुस्लिम आन्दोलन
(ख) खिलाफत आन्दोलन
(ग) भक्ति आन्दोलन
(घ) अंग्रेजी आन्दोलन।
उत्तर:
(ग) भक्ति आन्दोलन
प्रश्न 2.
तुलसी के आराध्य देव कौन थे?
(क) श्रीराम
(ख) महादेव
(ग) श्रीकृष्ण
(घ) विष्णु
उत्तर:
(क) श्रीराम
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार भारत का श्रेष्ठ भक्त कवि कौन है?
उत्तर:
डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार भारत के श्रेष्ठ भक्त कवि तुलसीदास हैं।
प्रश्न 2.
भारतीयों को भावात्मक और राष्ट्रीय एकता में बाँधने वाला प्रमुख आन्दोलन कौन-सा था?
उत्तर:
भारतीयों को भावात्मक और राष्ट्रीय एकता में बाँधने वाला आन्दोलन भक्ति आन्दोलन था।
प्रश्न 3.
तुलसी साहित्य को कोई एक अन्य नाम दीजिए।
उत्तर:
तुलसी साहित्य का अन्य नाम भक्ति-साहित्य अधिक उपयुक्त है।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भक्ति आन्दोलन के प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कश्मीर में ललदेव, तमिलनाडु में आंदाल, बंगाल में चंडीदास, गुजरात में नरसी मेहता तथा कबीर, जायसी, सूर और तुलसी भक्ति आन्दोलन के प्रमुख कवि हैं।
प्रश्न 2.
भक्ति आन्दोलन से भारत की भावात्मक एकता कैसे मजबूत हुई?
उत्तर:
भक्ति आन्दोलन ने भावात्मक एकता स्थापित की। भक्ति आन्दोलन में फैलाव था, गहराई थी। भक्त कवियों ने भावात्मक एकता के आधार पर राष्ट्रीय एकता स्थापित की। यह अखिल भारतीय आन्दोलन था। देश और प्रदेश, राष्ट्र और जाति सबकी सांस्कृतिक धाराएँ एक थीं। बल्कि आंदोलन में जुलाहे, दर्जी, नाई आदि इतर वर्ग के लोग सिमटे हुए थे। इसमें कोई जातिगत भेदभाव नहीं था। तुलसीदास तथा अन्य कवियों ने भेदों को दूर करने का प्रयत्न किया। तुलसी ने निर्गुण-सगुण और वैष्णवों-शाक्तों को एक सूत्र में बाँधा था। इन कवियों ने भक्त और संत के भेद को मिटाया। प्रेम की भावात्मक एकता के क्षेत्र में कबीर, जायसी, सूर और तुलसी सभी एक सूत्र में बँधे हुए हैं। इसमें देश और काल की कोई सीमा नहीं थी।
प्रश्न 3.
तुलसी की कोई चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
तुलसी की चार प्रमुख रचनाएँ – रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली और गीतावली हैं।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भक्ति आन्दोलन में तुलसी का योगदान विषयक विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भक्ति आन्दोलन में तुलसी के द्वारा भावात्मक एकता स्थापित की गईं। तुलसीदास ने संत और भक्त को एक दूसरे का पर्यायवाची बताया। तुलसी ने कर्मकाण्ड को नहीं प्रेम को महत्व दिया। उन्होंने लिखा – “रामहि केवल प्रेम पियारा, जानि लेउ जो जाननिहारा।” उन्होंने प्रेम के आधार पर मानव समाज को बाँधने का प्रयत्न किया। तुलसी के समय में जड़-चेतन, सगुण-निर्गुण और ज्ञान-भक्ति का भेद था, किन्तु तुलसी ने इन भेदों को दूर किया। उनका कथन था – “अगुन-सगुन दुइ ब्रह्म स्वरूपा।” उन्होंने इस भेद को दृढ़ करने का प्रयत्न नहीं किया। भक्ति-आन्दोलन अखिल भारतीय सांस्कृतिक आन्दोलन था। इस आन्दोलन की श्रेष्ठ देन तुलसीदास थे। उन्होंने वैष्णव और शाक्तों को मिलाया, निर्गुण पंथियों और सगुण मतावलम्बियों को मिलाया। तुलसी ने समन्वय का कार्य
किया। उन्होंने भक्ति के आधार पर जनसाधारण के लिए धर्म को सरल और सुगम बनाया। वे मानवीय करुणा के कवि हैं। उनके राम दीनबन्धु हैं। इसलिए उन्होंने शबरी, गीध और वानरों को गले लगाया। वनवासी कोल-किरात, अभीर, स्वपच सभी उनके दर्शन से मोक्ष को प्राप्त करते हैं। उन्होंने राम को उपास्य बनाकर आस्था का भवन निर्मित किया। तुलसी-साहित्य आत्मनिवेदन और विनय का साहित्य है। उनका प्रभाव आज तक जनता पर व्याप्त है। उन्होंने प्रचलित मान्यताओं का तिरस्कार किया। उनका साहित्य निष्क्रियता का साहित्य नहीं है। राम का भक्त ही सुख की नीद सो सकता है, ऐसा वे मानते थे। उनके काव्य में जनता की व्यथा, प्रतिरोध भावना और सुखी जीवन की कल्पना है।
प्रश्न 2.
भक्ति आन्दोलन ने भारत में जातिवाद को छिन्न-भिन्न कर दिया, समझाइए।
उत्तर:
भक्ति आन्दोलन ने भावात्मक-सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय एकता को स्थापित किया। यह अखिल भारतीय आन्दोलन था। भक्ति-आन्दोलन की धारा पूरे वेग से सारे भारत में व्याप्त हुई। भक्ति आन्दोलन ने भावात्मक एकता स्थापित की। यह आन्दोलन अखिल भारतीय होने के साथ प्रादेशिक और जातीय आन्दोलन था। भक्ति-आन्दोलन ने संकीर्ण जातिवाद की जड़ों को हिला दिया। इस आन्दोलन में जुलाहे, दर्जी, नाई आदि इतर वर्गों के लोग सम्मिलित थे। यह आन्दोलन एक जाति का आन्दोलन नहीं था।
जाति प्रथा जितनी दृढ़ आज है उतनी नामदेव दर्जी, सेनानाई, चोखा महार, रैदास और कबीर के समय में नहीं थी। जातिवाद संकीर्णता जितनी शिक्षित जनों में है उतनी सूर और कबीर के पद गाने वाले अपढ़ जनों में नहीं थी। वर्णाश्रम धर्म और जाति प्रथा की जितनी तीव्र आलोचना भक्ति साहित्य में है उतनी आधुनिक साहित्य में नहीं है। उस समय भक्त और सन्त में कोई भेद नहीं थी। यदि जाति प्रथा दृढ़ होती तो मलिक मुहम्मद जायसी वेद-पुराण और कुरान सभी का आदर नहीं करते। आलवार संतों की कीर्ति सारे भारत में फैल गई। कश्मीर में ललदेव, तमिलनाडु में आंदाल, बंगाल में चंडीदास, गुजरात में नरसी मेहता ने अपनी अमृतवाणी से जनता के हृदय को सींचा। इससे सपष्ट है कि भक्ति आन्दोलन ने जाति प्रथा को छिन्न-भिन्न कर दिया।
प्रश्न 3.
भक्ति आन्दोलन की वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
उत्तर:
भक्ति आन्दोलन अखिल भारतीय आन्दोलन था। उसमें भावात्मक और राष्ट्रीय एकता व्याप्त थी। आज के युग में भावात्मक एकता का अभाव है। वर्तमान समय में राष्ट्रीय एकता के स्थान पर संकीर्ण प्रान्तीयता व्याप्त है। भक्ति साहित्य की सी विशालता नहीं है। आज भक्ति साहित्य की आवश्यकता है जिससे संकीर्णता का खण्डन हो सके। आज जातिप्रथा दृढ़ हो गई है। भक्ति काल में जाति प्रथा का भेद था किन्तु उसमें इतनी दृढ़ता नहीं थी। विभिन्न जाति के लोगों ने भक्ति आन्दोलन में सहयोग दिया। अपनी अमृतवाणी से जनता के हृदय का सिंचन किया। आज ऐसी ही एकता की आवश्यकता है। जातिगत भेदों को आलोचकों ने ही अधिक बढ़ाया है। राष्ट्रीय एकता की भावना इस समय अधिक थी। तुलसी ने राष्ट्रीय एकता के लिए लिखा
भलि भारत भूमि, भले कुल जन्म, समाज सरीर भलो लहि कै।
जो भजै भगवान सयान सोई तुलसी दृढ़ चातक ज्यों गहि कै।
आज ऐसे ही भक्ति साहित्य की आवश्यकता है जो शिक्षित और अशिक्षित सभी में भक्ति साहित्य की तरह भावात्मक और राष्ट्रीय एकता स्थापित कर सके। जातिवाद की जटिल दीवारों को तोड़ सके। राम ने जिस कोल, किरात, शवरी, वानर आदि को गले लगाया उसी प्रकार सभी आपस में प्रेम करें एक दूसरे को गले लगायें। हिन्दी और अन्य भाषाओं के साहित्य में समानता थी। आज ऐसे ही समान भावों के साहित्य की आवश्यकता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) भक्ति आंदोलन……………….अमृतवाणी से सींचते रहे।
(ख) सम्भवतः जाति प्रथा……………….साहित्य में नहीं है।
(ग) भक्ति आंदोलन अखिल……………….मोक्ष-लाभ करते हैं।
(घ) तुलसी का काव्य……………….अलग मानते हैं।
उत्तर:
इन गद्यांशों की व्याख्या महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ शीर्षक के अन्तर्गत देखिए।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
डॉ. रामविलास शर्मा की दृष्टि में भारत के श्रेष्ठ भक्त कवि हैं
(क) सूरदास
(ख) तुलसीदस
(ग) रैदास
(घ) कबीरदास
उत्तर:
(ख) तुलसीदस
प्रश्न 2.
तुलसीदास ने जड़े हिला दीं
(क) नास्तिकों की मान्यता की।
(ख) पुजारियों के अंधविश्वास की
(ख) पण्डों की धारणा की
(घ) पुरोहितों के धार्मिक अधिकार की।
उत्तर:
(घ) पुरोहितों के धार्मिक अधिकार की।
प्रश्न 3.
ईसा की दूसरी शताब्दी में कृष्णोपासना के चिह्न किस प्रदेश में पाए जाते हैं?
(क) आंध्र प्रदेश में
(ख) बिहार में
(ग) उत्तर प्रदेश में
(घ) गुजरात में।
उत्तर:
(क) आंध्र प्रदेश में
प्रश्न 4.
भक्ति कवियों ने जनता को एक किया
(क) राजनीतिक रूप से
(ख) आध्यात्मिक रूप से
(ग) भावात्मक रूप से
(घ) राष्ट्रीय एकता के रूप से
उत्तर:
(ग) भावात्मक रूप से
प्रश्न 5.
जनता के नेताओं में, उनकी पार्टियों में तुलसी-युग की सी नहीं मिलती
(क) धार्मिक एकता
(ख) राजनीतिक एकता
(ग) भावात्मक एकता
(घ) राष्ट्रीय एकता।
उत्तर:
(ग) भावात्मक एकता
प्रश्न 6.
अनेक विद्वान मानते हैं कि अंग्रेज न आते तो यहाँ के लोग फंसे रहते
(क) संकीर्ण जातिवाद में
(ख) संकीर्ण धार्मिकता में
(ग) संकीर्ण राष्ट्रीयता में
(घ) संकीर्ण अन्धविश्वास में।
उत्तर:
(क) संकीर्ण जातिवाद में
प्रश्न 7.
भक्ति काल की अपेक्षा आज किसमें अधिक दृढ़ता देखने को मिलती है?
(क) वर्ण व्यवस्था में
(ख) वर्ग भेद में
(ग) जाति प्रथा में
(घ) धार्मिक मान्यता में।
उत्तर:
(ग) जाति प्रथा में
प्रश्न 8.
निराला ने अपने निबन्धों में जिस कवि को रहस्यवादी कवि माना है, वह है।
(क) जायसी
(ख) सूरदास
(ग) कबीरदास
(घ) तुलसीदास
उत्तर:
(घ) तुलसीदास
प्रश्न 9.
तुलसी के उपास्यदेव को प्रिय है –
(क) कर्मकाण्ड
(ख) प्रेम।
(ग) भक्ति
(घ) धर्म
उत्तर:
(ख) प्रेम।
प्रश्न 10.
तुलसीदास अन्यतम कवि हैं –
(क) मानवीय धारणा के
(ख) मानवीय संवेदना के
(ग) मानवीय भावना के
(घ) मानवीय करुणा के
उत्तर:
(घ) मानवीय करुणा के
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
डॉ. रामविलास शर्मा ने तुलसी को भारत का श्रेष्ठ भक्त कवि क्यों माना है?
उत्तर:
रामविलास जी ने तुलसी को भारत का श्रेष्ठ भक्त कवि माना है क्योंकि उन्होंने भक्ति के आधार पर जन – साधारण के लिए धर्म को सरल और सुलभ बनाकर पुरोहितों के धार्मिक अधिकार की जड़े हिला दीं।
प्रश्न 2.
लेखक ने तुलसी को मानवीय करुणा का कवि क्यों माना है?
उत्तर:
तुलसी ने कोल, किरात, आभीर, जवन, खस, स्वपच आदि सभी अन्त्यजों और अछूतों को भक्ति का उत्तराधिकारी माना इसलिए वे मानवीय करुणा के कवि हैं।
प्रश्न 3.
तुलसी-साहित्य का सामाजिक महत्त्व किस पर निर्भर है?
उत्तर:
तुलसी-साहित्य का सामाजिक महत्त्व भक्ति आन्दोलन के सामाजिक महत्त्व पर निर्भर है, उससे पूरी तरह संबद्ध है।
प्रश्न 4.
भक्त कवियों ने अपने युग में कौन-सा बड़ा कार्य किया?
उत्तर:
भक्त-कवियों ने विभिन्न प्रदेशों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधने का जितना बड़ा कार्य किया उसको मूल्य आँकना सहज नहीं है।
प्रश्न 5.
तुलसीयुगीन साहित्यकार वर्तमान साहित्यकारों से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
तुलसीदास के युग के विभिन्न प्रदेशों के साहित्यकार एक-दूसरे की विचारधाराओं से जितना परिचित थे, उतना आज के साहित्यकार परिचित नहीं हैं। उनमें विचारों की भिन्नता है।
प्रश्न 6.
‘अंग्रेजों ने संकीर्ण जातिवाद को दूर किया।’ विद्वानों की इस मान्यता का लेखक रामविलास शर्मा ने किस प्रकार खण्डन किया?
उत्तर:
भक्तिकाल में भक्त कवियों के बीच संकीर्ण जातिवाद नहीं था। भक्ति-आन्दोलन में इतने जुलाहे, दर्जी, नाई आदि इतर वर्ग के लोग थे। उनमें संकीर्णता नहीं थी बल्कि सभी एक सूत्र में बँधे हुए थे। भक्ति-आन्दोलन में जाति प्रथा की तीव्र आलोचना हुई थी।
प्रश्न 7.
भक्त और सन्तों के सम्बन्ध में डॉक्टर साहब की क्या मान्यता है?
उत्तर:
भक्ति-आन्दोलन के समय भक्त और सन्त में कोई भेद-भाव नहीं था। यह भेद आलोचकों ने ही किया है। तुलसीदास की पंक्ति है- ‘बन्दउ संत समान चित, हित अनहित नहिं कोइ’ उनके लिए सन्त और भक्त शब्द पर्यायवाची हैं। कबीर और जायसी ने भी कोई भेद नहीं किया है।
प्रश्न 8.
भक्ति-आन्दोलन के कवियों में एक स्तर पर समानता दिखाई देती है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कबीर, जायसी, तुलसी की एक सामान्य दार्शनिक भूमिका है, उसी के अनुरूप उनके साहित्य की सामाजिक विषयवस्तु में बहुत बड़ी समानता है।
प्रश्न 9.
डॉ. रामविलास शर्मा ने तुलसीदास को मानवीय करुणा का अन्यतम कवि क्यों कहा है?
उत्तर:
तुलसीदास के राम दीनबन्धु हैं। उन्होंने शबरी, गीध, बन्दर, भालू सभी को गले लगाया है। वनवासी कोल किरात राम के दर्शन से प्रसन्न होते हैं। इसलिए तुलसीदास को मानवीय करुणा का अन्यतम कवि कहा है।
प्रश्न 10.
तुलसी-साहित्य किंस प्रकार का है?
उत्तर:
तुलसी-साहित्य एक ओर आत्मनिवेदन और विनय का साहित्य है, दूसरी ओर यह प्रतिरोध का साहित्य भी है। तुलसीदास ने अनेक प्रचलित मान्यताएँ अस्वीकार करके यह साहित्य रचा था।
प्रश्न 11.
तुलसी के राम उनकी भावनाओं के अनुरूप हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तुलसी के हृदय में जो प्रेम-प्रमोद-प्रवाह उमेगा था वही राम में साकार हो गया है। उन्होंने अपनी भावना के अनुसार राम को प्रेममय, अपार करुणामय देखा है। राम में हमें तुलसीदास की मानवीय छवि दिखाई देती है।
प्रश्न 12.
तुलसीदास के काव्य का सामाजिक महत्त्व बताइए।
उत्तर:
तुलसीदास के काव्य को सामाजिके महत्व यह है कि इसमें देश की कोटि-कोटि जनता की व्यथा, प्रतिरोध भावना और सुखी जीवन की आकांक्षा व्यक्त हुई है।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भक्ति-आन्दोलन की महत्ता प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
भक्ति-आन्दोलन अखिल भारतीय आन्दोलन है। सिंध, कश्मीर, पंजाब, बंगाल, महाराष्ट्र, आन्ध्र, तमिलनाडु में इसकी धारा प्रवल वेग से बही है। भक्त कवियों ने विभिन्न प्रदेशों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधने का बहुत बड़ा कार्य किया। उसका मूल्य आँकना सम्भव नहीं है। उनके पास राजनीति की तरह जनता को एकता के सूत्र में बाँधने के तरीके नहीं थे। भक्त को कवियों ने जनता को भावात्मक रूप से एक किया। इन्होंने भक्ति के आधार पर भावात्मक एकता स्थापित की।
प्रश्न 2.
रामविलास शर्मा ने तुलसी-युग के साहित्यकारों की क्या विशेषता बताई है?
उत्तर:
तुलसीदास के युग में विभिन्न प्रदेशों के साहित्यकार एक-दूसरे की विचारधाराओं से अधिक परिचित थे। आधुनिक युग के साहित्यकार एक-दूसरे की विचारधाराओं से परिचित नहीं हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के भक्ति साहित्य में समानता आकस्मिक नहीं है। यह समानता इस कारण है कि वे इतर प्रदेशों के साहित्य से परिचित थे।
प्रश्न 3.
भक्ति-आन्दोलन की व्यापकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भक्ति-आन्दोलन सीमित नहीं असीमित था। इस आन्दोलन से भावात्मक एकता स्थापित हुई। उसमें जितना फैलाव था उतनी ही गहराई थी। यह भावात्मक एकता केवल शिक्षित वर्ग तक ही सीमित नहीं थी। यह एकता प्रादेशिक भाषाओं के माध्यम से स्थापित हुई थी। भक्ति-आन्दोलन अखिल भारतीय आन्दोलन तो था ही, यह प्रादेशिक, जातीय आन्दोलन भी था। देश और प्रदेश एक साथ राष्ट्र और जाति दोनों की सांस्कृतिक धाराएँ एक साथ र्थी। भक्ति-आन्दोलन इसी कारण व्यापक था।
प्रश्न 4.
आधुनिक युग की अपेक्षा भक्ति-साहित्य में जाति प्रथा दृढ़ नहीं थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जातिप्रथा वर्तमान समय में, आधुनिक साहित्य में अधिक देखने को मिलती है। जाति प्रथा की इतनी दृढ़ता नामदेव दर्जी, सेना नाई, चोखा महार, रैदास और कबीर जुलाहे के समय में नहीं थी। भक्ति-अन्दोलन में जुलाहे, दर्जी, नाई आदि इतर वर्ग के लोग सिमट गए थे। आज की सी जातिगत दृढ़ता सूर और कबीर के पद गाने वाले अनपढ़ जनों में भी नहीं है। वर्णाश्रम धर्म और जाति प्रथा की तीव्र आलोचना भक्ति-साहित्य में देखने को मिलती है।
प्रश्न 5.
भक्त और सन्त के सम्बन्ध में भक्त कवियों की मान्यता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भक्त और सन्त का भेद आधुनिक आलोचकों ने अधिक किया है। भक्त कवियों ने इनमें इतना भेद नहीं किया। स्वयं भक्त और सन्त कवि भक्तों और सन्तों में भेद नहीं करते थे। तुलसी ने लिखा- ‘बन्दउ सन्त समान चित, हित अनहित नहि कोइ।” तुलसीदास के लिए भक्त और सन्त शब्द पर्यायवाची थे। कबीर ने भी इनमें कोई भेद नहीं किया। उनकी पंक्तियाँ हैं –
सहजै सहजै मेला होयगी, जागी भक्ति उतंगा।
कहै कबीर सुनो हो गोरख, चलौ मीत के संगा।
उस समय भेद थे, पर ये भेद अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थे जितने आधुनिक युग में जटिल और दृढ़ हो गए हैं।
प्रश्न 6.
भक्ति-साहित्य में प्रेम तत्त्व के दर्शन होते हैं, समझाइए।
उत्तर:
भक्ति साहित्य लोक धर्म की स्थापना करता है, जिसका आधार प्रेम है। कबीर, जायसी, तुलसी आदि कवि रहस्यवादियों के समान ज्ञान-नेत्र खुलने पर आनन्द विभोर हो जाते हैं और इस आनन्द को वे मानव-प्रेम से जोड़ देते हैं। जायसी ने प्रेम के सम्बन्ध में लिखा –
‘लेसा हिये प्रेम कर दिया, उठी जोति भा निरमल हिया।’
तुलसी भी ज्ञान नेत्र खुलने पर प्रेम की बात करते हैं। ज्ञान-नेत्र खुलने पर जो प्रकाश दिखाई देता है उसमें प्रेम प्रवाह ही उमगता है। प्रेम की यही भावात्मक एकता कबीर, जायसी, सूर और तुलसी को एक सामान्य भावभूमि पर लाकर खड़ा कर देती है। तुलसी उपास्य देव राम को भी प्रेम ही प्रिय है। वे लिखते हैं –
‘रामहि केवल प्रेम पियारा। जानि लेउ जो जाननि हारा।।’ यही प्रेम तत्त्व मानव-समाज को एक सूत्र में बाँधता है।
प्रश्न 7.
भक्ति-आन्दोलन के कवियों ने विरोधी तत्त्वों में एकरूपता कैसे स्थापित की?
उत्तर:
आधुनिक काल में जड़ और चेतन, सगुण और निर्गुण, ज्ञान और भक्ति का भेद देखने को मिलता है। आलोचकों के लिए यह भेद महत्त्वपूर्ण हो गया है। तुलसी के समय में इस प्रकार के भेद थे उनमें जटिलता और दृढ़ता नहीं थी। तुलसीदास और अन्य कवियों ने इन भेदों को दूर करने का प्रयत्न किया। जायसी ने लिखा
‘परगट गुपूत सो सरब बिआपी। धरमी चीन्ह न चीन्है पापी।
तुलसी ने इस भेद को मिटाते हुए भाव व्यक्त किया –
‘अगुन सगुन दुई ब्रह्म सरूपा’।
निर्गुण और सगुण परस्पर विरोधी नहीं हैं। एक ही सत्ता के दो पक्ष हैं। व्यक्त अव्यक्त दोनों हैं। कबीर ने भी इसी मते का समर्थन करते हुए कहा कि ये दो खम्भ हैं।
प्रश्न 8.
तुलसी-साहित्य का सामाजिक महत्त्व प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
तुलसीदास का साहित्य आत्मनिवेदन और विनय का साहित्य है। हमारे समाज पर इस साहित्य का गहरा प्रभाव है। तुलसी ने अनेक प्रचलित मान्यताओं को अस्वीकार करके इस साहित्य का सृजन किया था। आज घर-घर में इसका पारायण होता है। राम और भरत के आदर्श की चर्चा होती है। प्रत्येक वर्ग, वर्ण, जाति का व्यक्ति भक्ति भावना से ओतप्रोत होकर तुलसी के साहित्य को पढ़ता है। उनके साहित्य को आदर्श की दृष्टि से देखता है। इसमें पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक सभी प्रकार के आदर्शों की चर्चा है। आज समाज उनके साहित्य से अछूता नहीं है। उनका साहित्य आत्मनिवेदन और विनय की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 9.
तुलसी का साहित्य निष्क्रियता और जीवन की अस्वीकृत का साहित्य नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामन्ती समाज के साहित्य की सबसे बड़ी कमजोरी उसका निष्क्रिय होना है। तुलसीदास का साहित्य निष्क्रियता का साहित्य नहीं है। उनके धनुर्धर राम रावण का वध करने वाले पुरुषोत्तम हैं। तुलसी उन लोगों का मजाक उड़ाते हैं जो काम, क्रोध के भय के कारण रात को सो नहीं पाते हैं। केवल राम का भक्त चैन से सोता है। उनका प्रत्येक पात्र सक्रिय और आशावादी है। बन्दर, भालू तक सक्रिय और आशावादी हैं।
प्रश्न 10.
तुलसी के हृदय का प्रेम ही राम में साकार हो गया है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तुलसीदास ने राम में जो जन्मभूमि का प्रेम, निर्धन और परित्यक्त जनों के प्रति प्रेम चित्रित किया है, वह आकस्मिक नहीं है। स्वयं उनके हृदय में जो प्रेम उमड़ा था वही राम में साकार हो गया है। उन्होंने कहा भी है- ‘जाकी रही भावना जैसी । प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।’ तुलसीदास ने अपनी भावना के अनुसार राम को प्रेममय, अपार करुणामय देखा है। उनके राम अन्य कवियों के राम से भिन्न हैं। राम में हमें स्वयं तुलसीदास की मानवीय छवि दिखायी देती है। करुणामयी राम में कहीं तुलसी का चुनौती वाला स्वर दिखायी देता है। कहीं उनमें तुलसी की परिहासप्रियता दिखायी देती है। लक्ष्मण में यह परिहासप्रियता अधिक दिखायी देती है। रामचरितमानस के हर पात्र में तुलसी के मानस का कुछ-न-कुछ अंश विद्यमान है।
प्रश्न 11.
रामचरितमानस एक लोकप्रिय काव्य है। रामविलास शर्मा की इस धारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तुलसीदास की रचना रामचरितमानस लोक संस्कृति का अभिन्न अंग बन गयी है। रामचरितमानस को लोकप्रिय बनाने के लिए तुलसीदास ने किसी पन्थ या संघ का सहयोग नहीं लिया। मिथिला के गाँवों से लेकर मालवे की भूमि तक जनता ने इस ग्रन्थ को अपनाया। करोड़ों हिन्दीभाषियों के लिए धर्मग्रन्थ, नीतिग्रन्थ और काव्यग्रन्थ यदि कोई है तो वह रामचरितमानस है। इसका एक अप्रत्यक्ष सामाजिक प्रभाव यह हुआ कि हिन्दी भाषा जनता को संगठित करने में, उसमें जातीय एकता का भाव उत्पन्न करने में रामचरित मानस की अपूर्व भूमिका रही। इस कारण यह काव्य अधिक लोकप्रिय हो गया।
प्रश्न 12.
भक्ति-आन्दोलन और तुलसी-काव्य की सामाजिक महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भक्ति-आन्दोलन और तुलसीकाव्य का सामाजिक महत्व यह है कि इनमें देश की करोड़ों लोगों की व्यथा, प्रतिरोध भावना और सुखी जीवन की आकांक्षा व्यक्त हुई है। भारत के नए जागरण का कोई महान कवि भक्ति-आन्दोलन और तुलसीदास से विमुख नहीं हो सकता। यह जन-मानस का काव्य है।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 20 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भक्ति-आन्दोलन अखिल भारतीय आन्दोलन था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भक्ति-आन्दोलन के समान देश और काल की दृष्टि से ऐसा व्यापक सांस्कृतिक आन्दोलन संसार में दूसरा नहीं है। ईसा की दूसरी शताब्दी में ही आंध्रप्रदेश में कृष्णोपासना के चिह्न पाए जाते हैं। गुप्त सम्राटों के युग में विष्णुनारायण-कसुदेव उपासना ने अखिल भारतीय रूप ले लिया था। पाँचर्वी शताब्दी से लेकर नर्वी शताब्दी तक तमिलनाडु भक्ति-आन्दोलन का प्रमुख स्रोत रहा। आलवार संतों की कीर्ति सारे भारत में फैल गई। कश्मीर में ललदेव, तमिलनाडु में आंदाल, बंगाल में चंडीदास, गुजरात में नरसी मेहता आदि भारत के विभिन्न प्रदेशों के भक्त कवि लगभग डेढ़ हजार वर्ष तक जनता के हृदय को अपनी अमृतवाणी से सींचते रहे। सिन्ध, पंजाब, महाराष्ट्र, कश्मीर, बंगाल, आन्ध्र, तमिलनाडु आदि प्रदेशों में भक्ति-आन्दोलन की धारा पूरे वेग से बहती रही। भक्ति कवियों ने विभिन्न प्रदेशों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधा।
प्रश्न 2.
निराला ने तुलसीदास को रहस्यवादी कवि क्यों कहा है?
उत्तर:
निराला ने तुलसीदास को मूलत: रहस्यवादी कवि कहा है। उनकी इस धारणा के पीछे यह बोध था कि कबीर, जायसी, सूर, तुलसी की चेतना का एक सामान्य स्तर है। रहस्यवाद का सामाजिक महत्त्व असाधारण है। उनका रहस्यवाद अद्वैत ब्रह्म के साक्षात्कार का दावा करके अनेक धर्म के स्थान पर लोकधर्म की स्थापना करता था। इस लोकधर्म को आधार प्रेम था। कबीर, जायसी, तुलसी आदि कवि रहस्यवादियों के समान ज्ञान-नेत्र खुलने से आनन्द से विह्वल होने की बात करते हैं और इस आनन्द को वे मानव-प्रेम से जोड़ देते हैं।
प्रश्न 3.
भक्ति-आन्दोलन ने भावात्मक एकता स्थापित की। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भक्ति-आन्दोलन से भावात्मक एकता स्थापित हुई, उसमें फैलाव था, उसमें गहराई थी। यह एकता समाज के थोड़े से शिक्षित जनों तक सीमित नहीं थी। संस्कृत के द्वारा जो राष्ट्रीय और भावात्मक एकता स्थापित हुई उससे यह भिन्न थी। वह एकता प्रादेशिक भाषाओं के माध्यम से स्थापित हुई थी। भक्ति-आन्दोलन प्रदेशगत जातीय आन्दोलन भी था। देश और प्रदेश एक साथ राष्ट्र और जाति दोनों की सांस्कृतिक धाराएँ एक साथ थीं। इसका कारण भक्ति आन्दोलन की व्यापकता थी। इस आन्दोलन से जुलाहे, दर्जी, नाई आदि इतर वर्गों के लोग भी जुड़े हुए थे। प्रेम की भावात्मक एकता कबीर, जायसी सूर, तुलसी को एक सामान्य भावभूमि लाकर खड़ा कर देती है।
प्रश्न 4.
रामविलास शर्मा की दृष्टि में तुलसीदासे भारत के श्रेष्ठ भक्त कवि हैं। तुलसीदास की श्रेष्ठता बताइए।
उत्तर:
रामविलास शर्मा ने तुलसीदास को भक्ति-आन्दोलन का श्रेष्ठ कवि माना है। तुलसीदास ने निर्गुणपंथियों और सगुण मतावलम्बियों को एक किया। उन्होंने वैष्णवों और शाक्तों को मिलाया। तुलसीदास ने भक्ति के आधार पर जनसाधारण के लिए धर्म को सरल और सुलभ बनाया तथा पुरोहितों के धार्मिक अन्धविश्वासों की जड़े हिला दीं । तुलसी मानवीय करुणा के श्रेष्ठ कवि हैं। उनके राम साधारण मानव नहीं दीनों के बन्धु हैं। उन्होंने कोल, किरात, आभीर, जवने, खस, स्वपेच आदि सभी अन्त्यजों और अछूतों को भक्ति का उत्तराधिकारी माना। उनका साहित्य निष्क्रियता का साहित्य नहीं है। यह जीवन की अस्वीकृति को साहित्य भी नहीं है। इस कारण रामविलास शर्मा ने तुलसीदास को भक्ति-आन्दोलन का श्रेष्ठ कवि माना है।
प्रश्न 5.
‘भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ निबन्ध के मूल कथ्य को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भक्ति-आन्दोलन भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की अनूठी घटना है। विश्व में इसकी समता का दूसरा आन्दोलन दुर्लभ है। इस आन्दोलन ने ही भारतीयों को भावात्मक एकता और राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधा। रामविलास शर्मा ने तुलसी को भारत का श्रेष्ठ भक्त कवि माना है। क्योंकि उन्होंने भक्ति के आधार पर जनसाधारण के लिए धर्म को सरल और सुलभ बनाया तथा पुरोहितों के आडम्बर की जड़े हिला। तुलसीदास मानवीय करुणा के कवि हैं। उनके राम दीनबन्धु हैं। तुलसीदास ने कोल, किरात, आभीर, जवन, खस, स्वपच आदि सभी अन्त्यजों और अछूतों को भक्ति का उत्तराधिकारी माना। उनका साहित्य सक्रियता और स्वीकृति का साहित्य है। भारत का कोई कवि भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास से विमुख नहीं हो सकता।
लेखक – परिचय :
अंग्रेजी के प्रोफेसर होकर भी हिन्दी के प्रकांड विद्वान डा. रामविलास शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में स्थित उचगाँव सानी 10 अक्टूवर 1912 को हुआ। आपका निधन 30 मई 2000 को हुआ।
साहित्यिक परिचय – डा. रामविलास शर्मा समर्थ प्रगतिशील आलोचक थे। आप ऋग्वेद और मार्क्स के अध्येता होने के साथ आलोचक, इतिहासवेत्ता भाषाविद् होने के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी थे। आपकी आलोचना कट्टर रूप से मार्क्सवादी सिद्धान्तों पर आधारित है। इनकी आलोचना में आदेशात्मक तथा निर्णयात्मक स्वर अधिक मुखरित है। आपके स्थापित प्रगतिशील आलोचना तथा साहित्य के मानदण्डों में स्थायित्व है। आपने सरल भाषा अपनाई थी। शैली में प्रचारात्मकता है। छोटी-सी बात को बढ़ाकर और दुरूह बात को सरल रूप में प्रस्तुत करने की शक्ति आपकी भाषा-शैली में अपार है। आपकी आलोचना में प्रगतिशील साहित्य, जनसाहित्य की दुहाई बहुत है।
रचनाएँ – आपने सौ से अधिक पुस्तकें लिखीं। भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश’, निराला की साहित्य साधना, भारतीय साहित्य की भूमिका, आस्था और सौन्दर्य, पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद, साहित्य और संस्कृति, परम्परा का मूल्यांकन आदि रचनाएँ प्रमुख रूप से प्रसिद्ध हैं। अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक (1943 ई.) में एक कवि के रूप में अपनी रचनाएँ बहुत चर्चित हुईं।
पाठ – सार
तुलसीदास भारत के श्रेष्ठ कवि, भक्ति आन्दोलन के निर्माता हैं। उनके साहित्य का सामाजिक महत्व भक्ति-आन्दोलन के सामाजिक महत्त्व पर आधारित है। ऐसा व्यापक सांस्कृतिक आन्दोलन संसार में दूसरा नहीं हुआ। दूसरी शताब्दी में आंध्रप्रदेश में कृष्णोपासना के चिह्न पाये जाते हैं। गुप्त साम्राज्य में विष्णुनारायण-वासुदेव की उपासना ने अखिल भारतीय रूप ले लिया। भारत के विभिन्न प्रान्तों में भक्ति कवि डेढ़ हजार वर्ष तक जनता के हृदय को सींचते रहे। यह भक्ति-आन्दोलन ब्रह्मदेश, अफगानिस्तान और ईरान की सीमाओं पर रुक गया। सिन्ध, कश्मीर, पंजाब, बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र, तमिलनाडु आदि में तीव्र वेग से यह धारा बहती रही। भक्त कवियों ने विभिन्न प्रदेशों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधा। भक्ति की भावात्मक एकता से जनता को एक किया। तुलसीदास के युग की सी भावात्मक एकता आज देखने को नहीं मिलती। तुलसी के युग में विभिन्न प्रदेशों के साहित्यकार एक दूसरे के विचारों से परिचित थे। हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के भक्ति-साहित्य में समानताएँ आकस्मिक नहीं हैं।
भक्ति आन्दोलन से जो भावात्मक एकता स्थापित हुई उसमें फैलाव और गहराई दोनों थीं। यह आन्दोलन अखिल भारतीय और प्रदेशगत, जातीय आन्दोलन भी था। देश और प्रदेश तथा राष्ट्र और जाति दोनों की सांस्कृतिक धाराएँ एक साथ थीं। अनेक विद्वान मानते हैं कि राष्ट्रीय एकता और जनतंत्र का पाठ अंग्रेजों ने पढ़ाया। वे यह भूल जाते हैं कि भक्ति आन्दोलन में दर्जी, जुलाहे, नाई एतर वर्ग के लोग शामिल थे। जातिप्रथा आज अधिक दृढ़ है और शिक्षितों में अधिक देखने को मिलती है। इतनी दृढ़ सूर और कबीर के युग में नहीं थी। वर्णाश्रम धर्म और जाति प्रथा की तीव्र आलोचना भक्ति-साहित्य में है, आज के साहित्य में उतनी नहीं है। भक्त और संत कवि भक्तों और सन्तों में भेद नहीं मानते थे, केवल आलोचक उनमें अन्तर मानते हैं। तुलसीदास के लिए सन्त और भक्त शब्द पर्यायवाची थे। कबीर भी और जायसी भी दोनों में भेद नहीं करते । प्रेम-ज्ञान-वैराग्य, निर्गुण- सगुण के भेद उस समय थे, पर यह उतने महत्त्वपूर्ण नहीं थे जितने आज आलोचकों को लगते हैं।
निराला-तुलसी को रहस्यवादी मानते थे। वे मानते थे कि कबीर, जायसी, सूर-तुलसी की चेतना का एक सामान्य स्तर है। यह रहस्यवाद अद्वैत ब्रह्म का साक्षात्कार करके अनेक धर्मों और मतों के विद्वेष का खण्डन करता है। वह लोकधर्म की स्थापना करता था जिसका आधार प्रेम था। कबीर, तुलसी, जायसी आदि कवि ज्ञान नेत्र खुलने, आनन्द से विह्वल होने की बात करते हैं और इस आनन्द को वे मानव प्रेम से जोड़ देते हैं। प्रेम की भावात्मक एकता कबीर, जायसी, सूर और तुलसी को एक सामान्य भावभूमि पर खड़ा कर देती है। यह प्रेमतत्त्व मानव-समाज को एक सूत्र में बाँधता है। भक्त कवियों ने जड़-चेतन, सगुण-निर्गुण और ज्ञान-भक्ति के भेद को दूर किया। कबीर जायसी और तुलसी की एक सामान्य दार्शनिक भूमि है और उनके साहित्य और सामाजिक विषय वस्तु में बड़ी समानता है।
भक्ति आन्दोलन अखिल भारतीय सांस्कृतिक आन्दोलन था। तुलसीदास की देन है। उन्होंने समन्वय का कार्य किया। उन्होंने धर्म को सरल और सुलभ बनाया। वे मानवीय करुणा के अन्यतम कवि हैं। उनके राम दीबन्धु हैं। राम उनके उपास्य देवता थे, उसी के आधार पर उन्होंने आस्था का भवन निर्मित किया। भक्ति साहित्य निराशाजन्य साहित्य नहीं है। भक्ति-आन्दोलन तुर्क आक्रमणों से पहले का है। गुप्त सम्राटों के युग में वैष्णव भक्त का प्रसार हुआ। तमिलनाडु भक्ति-आन्दोलन का केन्द्र था। मुसलमान संतों ने इस आन्दोलन में योग दिया। यह आन्दोलन विशुद्ध देशज आन्दोलन है। यह सामन्ती व्यवस्था के विद्रोह का साहित्य है। तुलसी का साहित्य आत्मनिवेदन के साथ प्रतिरोध का साहित्य है। वे राम के सम्मुख विनम्र होते हैं। वे आत्मत्याग करने वाले को सबसे बड़ा भक्त मानते हैं।
तुलसी का साहित्य निष्क्रियता का साहित्य नहीं है, जीवन की अस्वीकृति का साहित्य नहीं है। यूरुप के सन्तों की तरह तुलसी को स्वर्ग का मोह नहीं है। न नरक का भय है। तुलसी ने अपनी भावना के अनुसार राम को प्रेममय अपार करुणामय देखा है। उनके राम सबसे भिन्न हैं। उनमें तुलसी की मानवीय छवि दिखाई देती है। रामचरितमानस के प्रत्येक पात्र में तुलसी के मानस का कुछ-न-कुछ अंश दिखाई देता है। तुलसी का काव्य लोक-संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया। मानस के प्रचार के लिए कोई संघबद्ध प्रयास नहीं किया। इसे सभी ने अपनाया । हिन्दी भाषियों के लिए धर्मग्रन्थ, नीतिग्रन्थ धर्मग्रन्थ रामचरितमानस ही है। हिन्दीभाषी जनता को संगठित करने, जातीय एकता का भाव उत्पन्न करने में रामचरितमानस की अपूर्व
भूमिका रही है। भक्ति-आन्दोलन और तुलसी-काव्य सामाजिक महत्त्व यह है कि इनमें देश की कोटि-कोटि जनता की व्यथा, प्रतिरोध भावना और सुखी जीवन की आकांक्षा व्यक्त हुई है।
कठिन शब्दों का अर्थ :
(पृष्ठ 120) उपलब्धि = प्राप्ति, समझ । संबद्ध = सम्बन्धित, जुड़ा हुआ।
(पृष्ठ 121) वेग = प्रवाह। आँकना = अनुमान करना। आकस्मिक = सहसा होने वाला । सामर्थ्य = कुछ कर सकने की शक्ति, योग्यता। संकीर्ण = संकुचित, क्षुद्र, तुच्छ।
(पृष्ठ 122) द्विजेतर = गैर ब्राह्मण। प्रतिपादित = निर्धारित । अद्वैत = परम ब्रह्म और जीव में कोई अन्तर नहीं देखने वाला सिद्धान्त। विद्वेष = विरोध। कर्मकाण्डी = विधिवत यज्ञादि कर्म करने वाला ब्राह्मण।
(पृष्ठ 123) उपास्य = आराध्य। अन्यतम = बहुतों में से एक। मर्मान्तक = मन में चुभने वाला, मर्मभेदी।
(पृष्ठ 124) विशुद्ध = जो बिल्कुल शुद्ध हो। देशज = स्थानीय। विद्रोह = द्वेष, बगावत । प्रतिरोध = तिरस्कार, विरोध।
(पृष्ठ 125) जनपद = बस्ती, आवासी। अभिनव = नवीन । पराङ्मुख = विमुख, उदासीन, विरुद्ध। अविच्छिन्न = निरन्तर।
महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ
1. भक्ति-आन्दोलन अखिल भारतीय है। देश और काल की दृष्टि से ऐसा व्यापक सांस्कृतिक आन्दोलन संसार में दूसरा नहीं है। ईसा की दूसरी शताब्दी में ही आंध्रप्रदेश में कृष्णोपासना के चिह्न पाए जाते हैं। गुप्त सम्राटों के युग में विष्णुनारायण-वासुदेव की उपासना ने अखिल भारतीय रूप ले लिया। पाँचवीं शताब्दी से लेकर नवीं शताब्दी तक तमिलनाडु भक्ति-आन्दोलन का प्रमुख स्रोत रहा। आलवार संतों की कीर्ति सारे भारत में फैल गई। कश्मीर में ललदेव, तमिलनाडु में आंदाल, बंगाल में चंडीदास, गुजरात में नरसी मेहता-भारत के विभिन्न प्रदेशों में भक्त कवि लगभग डेढ़ हजार वर्ष तक जनता के हृदय को अपनी अमृतवाणी से सींचते रहे। (पृष्ठ 120-121)
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के निबन्ध ‘भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ से उधृत है। इस निबन्ध के लेखक डॉ. रामविलास शर्मा हैं। लेखक ने स्पष्ट किया है कि भक्तिकाल का भक्ति आन्दोलन सीमित नहीं था, वह सर्वव्यापी था और विभिन्न जाति के लोगों ने उस आन्दोलन में अपना सहयोग प्रदान किया। इसे ही स्पष्ट करते हुए लेखक लिखते हैं।
व्याख्या – भक्ति आन्दोलन अखिल भारतीय है, सर्वव्यापी है। इसे देश और काल की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। यह ऐसा व्यापक सांस्कृतिक आन्दोलन था जिसकी समता कोई नहीं कर सकता। ईसा की दूसरी शताब्दी से ही यह आन्दोलन आरम्भ हो गया था। ईसा की दूसरी शताब्दी में कृष्णोपासना के चिह्न देखने को मिलते हैं। गुप्त काल में विष्णुनारायण वासुदेव की उपासना हुई, जिसने आगे चलकर अखिल भारतीय रूप ले लिया था। इसके बाद पाँच शताब्दी से नर्वी शताब्दी तक तमिलनाडु में भक्ति आन्दोलन व्याप्त रहा। यह भक्ति आन्दोलन का प्रमुख स्रोत था। विभिन्न सन्तों ने इस आन्दोलन में सहयोग प्रदान किया। आलवार संतों ने भक्ति की, जिनकी कीर्ति सारे संसार में फैल गई। इसके अतिरिक्त कश्मीर में ललदेव, तमिलनाडु में आंदाल, बंगाल में चंडीदास और गुजरात के नरसी मेहता ने भक्ति-आन्दोलन में भाग लिया। इस प्रकार लगभग डेढ़ हजार वर्ष तक भारत के विभिन्न प्रान्तों के भक्त कवि अपनी अमृतमयी वाणी से संसार के लोगों को हृदय सचते रहे।
विशेष –
- साहित्यिक तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
- भक्ति आन्दोलन के प्रचार-प्रसार का वर्णन है।
- विभिन्न प्रान्तों के भक्तों का आन्दोलन में सहयोग वर्णित है।
- भक्ति आन्दोलन अखिल भारतीय आन्दोलन था।
2. भक्ति-आन्दोलन से जो भावात्मक एकता स्थापित हुई, उसमें जितना फैलावे था, उतनी गहराई भी थी। यह एकता समाज के थोड़े से शिक्षित जनों तक सीमित नहीं थी। संस्कृत के द्वारा जो राष्ट्रीय एकता कायम हुई थी, उससे यह भिन्न थी। यह एकता प्रादेशिक भाषाओं के माध्यम से कायम हो रही थी। भक्ति-आन्दोलन एक ओर अखिल भारतीय आन्दोलन था, दूसरी ओर यह प्रदेशगत, जातीय आन्दोलन भी था। देश और प्रदेश एक साथ, राष्ट्र और जाति की सांस्कृतिक धाराएँ एक साथ। भक्ति-आन्दोलन की व्यापकता और सामर्थ्य का यही रहस्य है। (पृष्ठ-121)
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यावतरण पाठ्यपुस्तक के निबन्ध भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ. रामविलास शर्मा हैं। तुलसीदास के युग में विभिन्न प्रदेशों के साहित्यकार एक दूसरे के विचारों से परिचित थे। हिन्दी और अन्य भाषाओं के साहित्य में समानता थी। भक्ति आन्दोलन ने भावात्मक एकता स्थापित की। इसी भाव को यहाँ स्पष्ट किया है।
व्याख्या – भक्ति आन्दोलन ने भावात्मक एकता स्थापित की। उस आन्दोलन में अधिक विस्तार का रूप ले लिया था। यह आन्दोलन उथला नहीं गहराई लिए हुए था। भक्ति आन्दोलन की यह भावात्मक एकता केवल शिक्षित वर्ग तक ही सीमित नहीं थी, वह निम्नवर्ग तक व्याप्त थी। इसी कारण यह अधिक विस्तृत था। संस्कृत साहित्य से जो राष्ट्रीय एकता स्थापित हुई थी उससे इस आन्दोलन की भावात्मक एकता भिन्न थी। यह भावात्मक एकता केवल हिन्दी तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह प्रादेशिक भाषाओं के माध्यम से स्थापित हो रही थी। यह आन्दोलन अखिल भारतीय आन्दोलन था, इसके साथ ही यह प्रदेशगत जातीय आन्दोलन भी था। यह आन्दोलन इतना विस्तार पा गया था कि इसमें देश और प्रदेश, राष्ट्र और जाति सभी शामिल थीं। सबकी सांस्कृतिक धाराएँ एक साथ जुड़ी र्थी। इससे स्पष्ट होता है कि यह आन्दोलन बहुत व्यापक था और सामर्थ्यवान था।
विशेष –
- भक्ति आन्दोलन ने भावात्मक एकता स्थापित की।
- भक्ति आन्दोलन व्यापक था।
- संस्कृत की अपेक्षा इसकी भावात्मक एकता अधिक व्यापक थी।
- इस एकता में विभिन्न वर्गों के लोग सम्मिलित थे।
3. संभवतः जाति प्रथा जितनी दृढ़ आज है, उतनी नामदेव दर्जी, सेना नाई, चोखा महार, रैदास और कबीर जुलाहे के समय में न थी और जातिवाद संकीर्णता जितनी शिक्षित जनों में है, सम्भवतः उतनी सुर और कबीर के पद गाने वाले अपढ़ जनों में नहीं है। वर्णाश्रम धर्म और जातिप्रथा की जितनी तीव्र आलोचना भक्ति-साहित्य में है, उतनी आधुनिक साहित्य में नहीं है। (पृष्ठ -122)
संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. रामविलास शर्मा लिखित निबन्ध ‘ भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ से उधृत है। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। अधिकांश व्यक्ति यह मानते हैं कि अंग्रेजों ने हमें राष्ट्रीय एकता और जनतंत्र का पाठ पढ़ाया। उन्होंने हमें संकीर्ण जातिवाद से उभारा। इस धारणा को खण्डन करते हुए डॉ. रामविलास शर्मा कहते हैं कि ऐसी धारणा गलत है। भक्तिकाल में इतनी संकीर्णता नहीं थी। इस प्रसंग में वे कहते हैं
व्याख्या – जातिवाद की प्रथा वर्तमान काल में बहुत अधिक दृढ़ हो गई। जाति के आधार पर आज भेद बढ़ गए हैं। भक्तिकाल में जातिवाद इतना नहीं था। उस समय जातिवाद की इतनी दृढ़ता नहीं थी। भक्तिकाल में नामदेव दर्जी, सेना नाई, चोखा महार, रैदास और कबीर जुलाहे ने भक्ति की और भक्ति-साहित्य की रचना की। उनके समय में जातिवाद था किन्तु उसमें आज की सी जटिलता, दृढ़ता नहीं थी। आज शिक्षित वर्ग में जातिवाद की धारणा अधिक है।
सूर कबीर-तुलसी के पद गाने वाले अनपढ़ और अशिक्षित जनों में जातिवाद इतना दृढ़ नहीं है। सभी वर्ग और जाति के लोग इनके पदों को गाते हैं और आनन्दित होते हैं। जाति को लेकर उनमें किसी प्रकार का विवाद और संघर्ष नहीं है। भक्तिकालीन साहित्य में वर्णाश्रम धर्म और जाति प्रथा की कटु आलोचना के दर्शन होते हैं। कबीर, तुलसी आदि कवियों ने जाति प्रथा की धज्जियाँ उड़ाईं। यह कहना अत्युक्ति नहीं होगी कि आधुनिक साहित्य में वर्णाश्रम धर्म और जातिवाद की इतनी कटु आलोचना नहीं है, जितनी भक्तिकाल में हुई थी।
विशेष –
- भक्ति काल में वर्णाश्रम धर्म और जातिवाद की आलोचना हुई।
- वर्तमान साहित्य जातिवाद की दृढ़ता से अछूता है।
- भक्तिकाल और आधुनिक साहित्य की तुलना की गई है।
- भक्तिकालीन कवियों का स्मरण हुआ है।
4. यह रहस्यवाद’ का सामाजिक महत्त्व असाधारण है। यह रहस्यवाद अद्वैत ब्रह्म के साक्षात्कार का दावा करके अनेक धर्मों और मतों के परस्पर विद्वेष को खण्डन करता था। वह उच्चवर्गों के कर्मकाण्डी धर्म के स्थान पर लोकधर्म की स्थापना करता था। इस लोकधर्म का आधार था प्रेम। कबीर तुलसी जायसी आदि कवि रहस्यवादियों के समान ज्ञान-नेत्र खुलने, आनन्द से विह्वल होने की बातें करते हैं और इस आनन्द को वे मानव प्रेम से जोड़ देते थे। (पृष्ठ-122)
संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. रामविलास शर्मा के निबन्ध’ भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ से उधृत है। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। निराला ने तुलसीदास को रहस्यवादी कवि कहा है। कबीर, जायसी, सूर और तुलसी की चेतना का एक सामान्य स्तर है। तुलसी के रहस्यवाद की चर्चा करते हुए रामविलास शर्मा कहते हैं
व्याख्या – तुलसी के रहस्यवाद का असाधारण सामाजिक महत्त्व है। उनका रहस्यवाद परम ब्रह्म और जीव में कोई अन्तर न मानने वाले सिद्धान्त पर आधारित है। यह अद्वैत ब्रह्म के साक्षात्कार में विश्वास करता है। जीवात्मा परमात्मा के दर्शन कर सकती है। आत्मा
और परमात्मा में अटूट सम्बन्ध है, इस सिद्धान्त में विश्वास करता है। इसके साथ ही विभिन्न धर्मों और मतों के विरोध का खण्डन करता है। उनका रहस्यवाद सभी धर्मों और मतों में समानता के दर्शन करता है। यह उच्च वर्ग के कर्मकाण्ड में विश्वास नहीं करता । उनको रहस्यवाद यज्ञादि आडम्बर युक्त सिद्धान्तों में विश्वास नहीं करता। लोकधर्म की स्थापना में विश्वास करता है। उस लोक धर्म का आधार था प्रेम। भक्त कवि कबीर, जायसी और तुलसी रहस्यवादियों की तरह ज्ञान के नेत्र खुलने में विश्वास करते हैं। आनन्द में विभोर होने की बात करते हैं। वे इस आनन्द को मानव-प्रेम से जोड़ देते हैं।
विशेष –
- तुलसी रहस्यवादी कवि थे।
- उनका रहस्यवाद अद्वैत ब्रह्म में विश्वास करता है।
- कबीर, जायसी, तुलसी अपने आनन्द को मानव-प्रेम से जोड़ते हैं।
5. भक्ति-आन्दोलन अखिल भारतीय सांस्कृतिक आन्दोलन था। इस आन्दोलन की श्रेष्ठ देन थे, तुलसीदास उन्होंने निर्गुण-पंथियों और सगुण मतावलम्बियों को एक किया, उन्होंने वैष्णवों और शाक्तों को मिलाया। उन्होंने भक्ति के आधार पर जनसाधारण के लिए धर्म को सरल और सुलभ बनाकर पुरोहितों के धार्मिक अधिकार की जड़े हिला दीं। तुलसीदास मानवीय करुणा के अन्यतम कवि हैं। उनके राम दीनबन्धु हैं। ‘सबरी, गीध सुसेवकनि, सुगति करन्ह रघुनाथ।’ वनवासी कोल-किरात राम के दर्शन से प्रसन्न होते हैं। आभीर, वन, किरात, खस, स्वपचादि सभी राम के स्मरण से मोक्ष लाभ करते हैं। (पृष्ठ 123)
संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित निबन्ध’ भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ. रामविलास शर्मा हैं। आधुनिककाल में सगुण-निर्गुण, जड़-चेतन और ज्ञान-भक्ति का भेद आलोचकों ने कर दिया है। तुलसीदास के समय में भी ये भेद थे, किन्तु तुलसीदास ने समन्वयात्मक पद्धति के आधार पर इन भेदों को मिलाने का प्रयत्न किया। अन्य भक्त कवियों ने भी इनमें भेदों को दूर किया।
व्याख्या – भक्ति आन्दोलन किसी जाति, वर्ण या प्रान्त का आन्दोलन नहीं था। यह अखिल भारतीय सांस्कृतिक आन्दोलन था। यह आन्दोलन सीमित नहीं असीमित था। इस आन्दोलन के श्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास थे। उन्होंने समन्वय की प्रवृत्ति को अपनाया। तुलसी ने उनके निर्गुण-सगुण के भेद को मिटाया। उनकी मान्यता थी- ‘अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा । निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं है, दोनों ही ब्रह्म के स्वरूप हैं। ब्रह्म को प्राप्त करने की दो अलग-अलग पद्धतियाँ हैं। तुलसीदास ने वैष्णवों और शाक्तों के भेद को मिलाकर एकता स्थापित की। पण्डे, पुजारी और पुरोहितों ने धर्म की जो जटिलता फैला रखी थी उसे समाप्त कर धर्म को जनसाधारण के लिए सरल-सुगम बनाया तथा पुरोहितों के धार्मिक अधिकारों की जड़ खोद दी। जनसाधारण को पुरोहितों के आडम्बर से मुक्त कराया। तुलसीदास के काव्य में मानवीय करुणा के दर्शन होते हैं। उनके राम दीनबन्धु हैं। उन्होंने शवरी, गीध आदि को गले लगाया, उनका उद्धार किया, उपेक्षित वर्ग की उपेक्षा नहीं की। केवल उच्च वर्ग ही नहीं वनवासी कोलकिरात राम के दर्शन से प्रसन्न होते हैं। आभीर, जवन, किरात आदि सभी राम के स्मरण से मोक्ष प्राप्त करते हैं।
विशेष –
- भक्ति-आन्दोलने सर्वव्यापी था।
- तुलसी ने समन्वय की पद्धति अपनाई।
- तुलसी के राम दीनबन्धु थे।
- तुलसी ने अपने समय के भेदों का खण्डन किया।
6. तुलसी-साहित्य एक ओर आत्मनिवेदन और विनय का साहित्य है, दूसरी ओर वह प्रतिरोध का साहित्य भी है। हमारे समाज पर गोस्वामी तुलसीदास का इतना गहरा प्रभाव है कि आज यह कल्पना करना कठिन है कि तुलसीदास ने अनेक प्रचलित मान्यताएँ अस्वीकार करके यह साहित्य रचा था। वे राम के सम्मुख ही विनम्र और करुण स्वर में बोलने वाले कवि हैं, औरों के आगे सर हमेशा ऊँचा रखते थे। वे आत्मत्याग करने वाले को सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति मानते हैं। भक्त के पास अपना कुछ नहीं होता, इसलिए- ‘राम ते अधिक राम कर दासा।’ (पृष्ठ-124)
संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. रामविलास शर्मा के निबन्ध’ भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ का अंश है। यह पाठ्यपुस्तक में संकलित एक निबन्ध है। तुलसीदास ने अपने आराध्य के सम्मुख आत्मनिवेदन किया है। तुलसी के साहित्य का हमारे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। वे राम के सम्मुख ही अपना शीश झुकाते हैं। इसी प्रसंग में वे लिखते हैं
व्याख्या – तुलसीदास अपने आराध्य श्रीराम को ही सब कुछ मानते हैं। उनका साहित्य आत्मनिवेदन और विजय का साहित्य है। तुलसी ने प्रभु से अपनी दीनता को प्रकट किया है। यह तिरस्कार और विरोध का साहित्य है। तुलसी के साहित्य को पढ़ा जाता है और आदर की दृष्टि से देखा जाता है। उन्होंने अपने समय की सभी मान्यताओं को स्वीकार करके समन्वय की प्रवृत्ति को अपनाया। उनके साहित्य में सभी मान्यताओं को स्थान दिया गया है। वे राम को ब्रह्म मानकर उनके सामने अपनी शीश झुकाते हैं। उन्हीं के सम्मुख करुणा भरी आवाज में विनम्र निवेदन करते हैं। वे राम के अतिरिक्त अन्य किसी देवता के सामने दयनीय रूप में नहीं गिड़गिड़ाते।
राम उनके लिए सर्वस्व हैं। जो व्यक्ति राम के सम्मुख अपने आप को न्योछावर कर दे, राम के सम्मुख अपने हृदय को खोलकर रख दे, उसे ही वे सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति मानते हैं। भक्त के पास जो कुछ है वह सब राम का दिया हुआ है, अपना कुछ नहीं है। वे राम से बड़ा उनके दास को मानते हैं। कारण यह है वह अपना सब कुछ राम के चरणों में अर्पित कर देता है।
विशेष –
- तुलसी का साहित्य आत्मनिवेदन का साहित्य है।
- तुलसी राम से बड़ा उनके सेवक को मानते हैं।
- तुलसी के साहित्य का समाज पर गहरा प्रभाव है।
7. तुलसी का काव्य लोक-संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। उनके नाम के साथ कोई पन्थ नहीं जुड़ा है। ‘रामचरितमानस’ को लोकप्रिय बनाने के लिए कोई संघबद्ध प्रयास नहीं किया गया। अपने आप मिथला के गाँवों से लेकर मालवे की भूमि तक जनता ने इस ग्रन्थ को अपनाया। करोड़ों हिन्दी भाषियों के लिए धर्मग्रन्थ, नीतिग्रन्थ, काव्य ग्रन्थ यदि कोई है तो रामचरितमानस है। इसका एक अप्रत्यक्ष सामाजिक फल यह हुआ है कि हिन्दी भाषी जनता को संगठित करने में, उसमें जातीय एकता का भाव उत्पन्न करने में ‘रामचरितमानस’ की अपूर्व भूमिका रही है। आश्चर्य की बात है कि जिन । जनपदों में, गाँवों में तुलसी और सूर की रचनाओं का पाठ शताब्दियों से होता रहा है, उनके कुछ अभिनव नेता और बुद्धिजीवी अपने को हिन्दी भाषी क्षेत्र से अलग मानते हैं। (पृष्ठ 125)
संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश’ भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. रामविलास शर्मा हैं और यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि तुलसी का काव्य लोक प्रसिद्ध काव्य है। तुलसी ने अपने काव्य की ख्याति के लिए किसी संघ या सम्प्रदाय का सहयोग नहीं लिया, बल्कि यह काव्ये अपने आप ही दूर-दराज के गाँवों तक प्रसिद्धि पा गया।
व्याख्या – तुलसी का काव्य विशेषकर रामचरितमानस लोक जीवन में इतना घुल-मिल गया कि उसे उस जीवन से अलग करना सम्भव ही नहीं है। वह लोक संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया, तुलसीदास ने अपने काव्य अथवा अपनी प्रसिद्धि के लिए किसी पन्थ का सहारा नहीं लिया। रामचरितमानस की लोकप्रियता अपने आप हो गई। तुलसी ने रामचरितमानस को लोकप्रिय बनाने के लिए किसी संघ का सहारा नहीं लिया। यह काव्य इतना लोकप्रिय हो गया है कि उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक जन-जन की जिह्वा पर यह काव्य चढ़ गयो। मिथला के गाँवों से लेकर मालवे की भूमि तक सभी ने इसे अपनाया है।
करोड़ों हिन्दी भाषी रामचरितमानस को धर्मग्रन्थ, नीतिग्रन्थ और काव्य ग्रन्थ मानकर सराहना करते हैं। रामचरितमानस का अप्रत्यक्ष प्रभाव यह है कि इसने हिन्दी भाषी जनता को संगठित किया और उसमें जातीय एकता का भाव उत्पन किया। शताब्दियों से जनपदों और गाँवों में तुलसी और सूर के पदों का पठन-पाठन होता है, उन्हीं क्षेत्रों के आधुनिक नेता अपने आप को हिन्दी भाषी क्षेत्र से अलग मानते हैं, यह आश्चर्य की बात है। जबकि उन्हें तुलसी और सूर के काव्य की प्रशंसा करनी चाहिए थी।
विशेष –
- तुलसी का किसी पन्थ या संघ से सम्बन्ध नहीं है।
- रामचरितमानस लोकप्रिय काव्य है यह सिद्ध किया है।
- रामचरितमानस समाज को संगठित करने और राष्ट्रीय एकता उत्पन्न करने वाला काव्य है।
8. सामन्ती समाज के साहित्य की सबसे बड़ी कमजोरी होती है- निष्क्रियता। तुलसी का साहित्य निष्क्रियता का साहित्य नहीं है। धनुर्धर राम रावण का वध करने वाले पुरुषोत्तम हैं। तुलसी का साहित्य जीवन की अस्वीकृति का साहित्य नहीं है। वे उन लोगों का मजाक उड़ाते हैं जो काम, क्रोध के भय के मारे रात को सो नहीं पाते। केवल राम का भक्त चैन से सोता है। (पृष्ठ-124)
संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. रामविलास शर्मा के निबन्ध’ भक्ति आन्दोलन और तुलसीदास’ से उद्धृत है। यह हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। तुलसी के साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह निष्क्रियता और अस्वीकृति का साहित्य नहीं है। कामी, क्रोधी व्यक्ति ही चैन से नहीं सोता है। इसी क्रम में वे कहते हैं| व्याख्या- तुलसी का साहित्य सक्रियता का साहित्य है। उसमें निष्क्रियता नहीं है, जबकि सामन्त समाज का साहित्य दोष युक्त है, उसमें निष्क्रियता का भाव है। उनके राम वीर और धनुर्धर हैं जो शक्तिशाली रावण का वध करते हैं। वे साधारण वीर पुरुष नहीं हैं, वे पुरुषोत्तम हैं। उनका साहित्य जीवन के प्रति निराशा का भाव उत्पन्न करने वाला नहीं है। वह जीवन की स्वीकृति का साहित्य है। जीवन जीने की प्रेरणा देता है। जो लोग काम और क्रोध के कारण रात को चैन से सो नहीं पाते तुलसी उनका उपहास करते हैं। राम का भक्त निश्चिन्त होकर सोता है। उसे काम, क्रोध का भय नहीं सताता। उसे जीवन में कभी निराशा नहीं होती। वह जीवन को हँसकर जीता है।
विशेष –
- तुलसी का साहित्य सक्रियता का और स्वीकृति का साहित्य है।
- कभी क्रोधी व्यक्ति निश्चिन्त नहीं रहता।
- राम का भक्त चैन से रहता है।
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