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Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 रहीम
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
अकबर ने प्रभावित होकर रहीम को कौन-सी उपाधि दी थी?
(क) सूबेदार
(ख) मीर
(ग) खान-खाना
(घ) मिर्जा खान
उत्तर:
(ग) खान-खाना
प्रश्न 2.
रहीम ने किस धागे को चटकाकर न तोड़ने की बात कही है?
(क) प्रेम का धागा
(ख) सूत का धागा
(ग) रेशम की धागा
(घ) रिश्तों का धागा
उत्तर:
(क) प्रेम का धागा
प्रश्न 3.
रहीम ने किसकी भक्ति में पदों की रचना की?
(क) भगवान शिव
(ब) श्रीकृष्ण
(ग) माता दुर्गा
(घ) श्रीराम
उत्तर:
(ग) माता दुर्गा
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विपति कसौटी में कौन-सा अलंकार प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर:
विपति कसौटी में रूपक अलंकार है।
प्रश्न 2.
‘अच्युत चरन तरंगिनी’ में अच्युत किसे कहा है?
उत्तर:
‘अच्युत’ भगवान विष्णु को कहा गया है।
प्रश्न 3.
रहीम ने किन लोगों को धन्ये कहा है?
उत्तर:
गरीबों से हित करने वाले लोगों को रहीम ने धन्य कहा है।
प्रश्न 4.
‘रहिमन भंवरी के भए’ में भंवरी का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भंवरी का अर्थ है- शादी के फेरे (भाँवरें) लेना। हिन्दुओं में विवाह के समय वर-कन्या अग्नि की परिक्रमा करते हैं, इसको ‘भाँवर’ कहते हैं।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘काज परै कुछ और है, काज सरै कछु और’ को आशय लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य बड़ा स्वार्थी होता है। वह अपने मतलब के लिए ही किसी से प्रेम करता है। जब तक उसका मतलब पूरा नहीं होता, तब तक वह प्रेम और मित्रता का दिखावा करता है। मतलब निकल जाने पर उसका व्यवहार बदल जाता है, वह अपनी आँखें फेर लेता है। इस पंक्ति में मनुष्य की इसी स्वार्थ-परता का वर्णन है।
प्रश्न 2.
रहीम सच्चा मित्र किसे मानते हैं?
उत्तर:
सभी ने माना है कि सच्चा मित्र वही होता है जो सुख-दु:ख में समान रूप से साथ निभाता है। रहीम उसी को सच्चा मित्र मानते हैं जो संकट आने पर भी अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता तथा बुरे दिनों में उसका साथ निभाता है।
प्रश्न 3.
रहीम ने दीपक तथा कपूत की समता का वर्णन क्यों किया है?
उत्तर:
रहीम ने कुपुत्र को दीपक के समान बताया है। दीपक जलने पर उजाला करता है तथा बुझने पर अँधेरा हो जाता है। कुपुत्र का जन्म होता है तो लोग पुत्र-जन्म की खुशियाँ मनाते हैं। उसका जन्म घरवालों को आनन्द देता है किन्तु बड़ा होने पर अपने बुरे कार्यों के कारण अपमान का कारण बन जाता है।
प्रश्न 4.
‘रहिमन पानी राखिए’ में कौन-सा अलंकार प्रयुक्त हुआ है? .
उत्तर:
‘रहिमन पानी राखिए’ में पानी शब्द का प्रयोग तो एक बार ही हुआ है किन्तु ‘मोती, मानुष तथा चून’ के सम्बन्ध में उसके तीन अलग-अलग अर्थ हैं। मोती के सम्बन्ध में पानी का अर्थ है- उसकी चमक। मनुष्य के सम्बन्ध में पानी का अर्थ है- उसकी मान-मर्यादा तथा चून अर्थात् चूना के सम्बन्ध में उसका अर्थ है- जल इस प्रकार एक ही शब्द के तीन अर्थ होने के कारण इसमें श्लेष अलंकार है।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रहीम के काव्य की भाषागत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रहीम हिन्दी के एक प्रसिद्ध कवि हैं। वह बहुभाषाविद् कवि तथा विद्वान पुरुष थे। रहीम ने हिन्दी में नीति तथा भक्ति सम्बन्धी साहित्य की रचना की है। रहीम ने अपना साहित्य हिन्दी की तीन उपभाषाओं ब्रज, अवधी तथा खड़ी बोली में रचा है। रहीम ने जो दोहा लिखे हैं, उनमें उन्होंने सरस, मधुर, प्रवाहपूर्ण तथा साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इसमें तत्सम शब्दों का प्रधान है। यत्र-तत्र कुछ मुहावरों का प्रयोग ही सफलतापूर्वक हुआ है। ‘भीर परे ठहराय’ में भीर पड़ना अर्थात् संकट आना मुहावरे का प्रयोग हुआ है। रहीम ने अपने ‘बरवै’ छंदों की रचना के लिए अवधी भाषा को अपनाया है। उनकी अवधी सरल तथा बोधगम्य है। तत्सम प्रधानता के कारण वह आसानी से समझ में आ जाती है। हिन्दी की तीसरी उपभाषा खड़ी बोली है। यद्यपि उस समय खड़ी बोली का प्रयोग पद्य-रचना में नहीं होता था किन्तु रहीम ने अपने ग्रन्थ ‘मदनाष्टक’ की रचना के लिए खड़ी बोली को ही अपनाया है। रहीम की खड़ी बोली भी उनकी ब्रजभाषा तथा अवधी के समान तत्सम शब्दावली युक्त होने के कारण सरस और सुबोध है।
प्रश्न 2.
‘कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन’ को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
‘कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन’- पंक्ति में कवि रहीम ने स्वाति नक्षत्र में बादलों से गिरने वाली पानी की बूंद के माध्यम से संगति के मनुष्य के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जैसी संगति बैठिए तैसोई गुन दीन” अर्थात् मनुष्य जैसे लोगों की संगति में रहता है, उसमें वैसे ही गुण (दुर्गुण भी) उत्पन्न हो जाते हैं। स्वाति नक्षत्र में जब बादलों से वर्षा की बूंद गिरती है तो वह केले में गिरने पर कपूर बन जाती है, सीप में गिरने पर मोती बन जाती है तथा सर्प के मुख में गिरने पर विष बन जाती है। इस प्रकार जल की बूंद संगति के प्रभाव से तीन रूपों में बदल जाती है। केले का साथ मिलने पर कपूर बनती है तो सीप को साथ होने पर मोती बन जाती है। वही बूंद सर्प के मुख में गिरती है तो विष बन जाती है। इस उदाहरण द्वारा कवि संगति के प्रभाव का वर्णन करना चाहता है। मनुष्य जैसे लोगों के साथ रहता है, वैसा ही उसका चरित्र बन जाता है।
प्रश्न 3.
रहीम के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर संक्षेप में विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
(संकेत) – छात्र इस प्रश्न के उत्तर के लिए कवि परिचय का अवलोकन करके उत्तर लिखें।
प्रश्न 4.
रहीम दुष्ट लोगों से मित्रता तथा शत्रुता क्यों नहीं रखना चाहते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दुष्ट या ओछे लोग विश्वसनीय नहीं होते। अत: उनसे शत्रुता या मित्रता दोनों ही हानिकारक हो सकती हैं। यदि हम ओछे लोगों से शत्रुता का भाव रखेंगे तो वह हमको हानि पहुँचाने के लिए घटिया से घटिया उपाय अपना सकते हैं। इसी प्रकार दुष्टों की मित्रता पर भी विश्वास करना बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती। वह अपने स्वार्थ के लिए कभी भी हमारे साथ विश्वासघात कर सकते हैं। कवि ने कुत्ते का उदाहरण देकर अपने कथन की पुष्टि की है। कुत्ता यदि किसी कारण कुछ हो जाय तो वह तुरन्त काट लेता है। यदि प्रसन्न होकर वह आपके हाथ-पैर चाटता है तो भी अच्छा नहीं लगता। उस स्थान को धोना पड़ता है। | इस प्रकार कवि ने संदेश दिया है कि दुष्ट व्यक्तियों के प्रति तटस्थ भाव रखना चाहिए। उनसे दूरी बनाए रखनी चाहिए, न शत्रुता न मित्रता, अपितु सतर्कता के साथ अपने को उनसे सुरक्षित बनाए रखना ही बुद्धिमानी है।
प्रश्न 5.
पाठ में आए निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
(क) अमी पियावत………..विष दे बुलाय।
(ख) खैर-खून-खाँसी…………….. सकल जहान।
(ग) प्रीतम छवि…………….फिर जाये।
(घ) जो रहीम उत्तम प्रकृति…………….रहत भुजंग।
उत्तर:
(संकेत – छात्र संकलित दोहों की सप्रसंग व्याख्याओं का अवलोकन करके स्वयं (क), (ख), (ग), (घ) की व्याख्याएँ लिखें।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
‘इन्दव भाल’ का अर्थ है
(क) इन्द्र का मस्तक
(ख) इन्द्र का भाग्य
(ग) चन्द्रमा का भाल।
(घ) भगवान शिव
प्रश्न 2.
सच्चे मित्र वे होते हैं
(क) जो हमारे सगे-सम्बन्धी होते हैं।
(ख) जो मधुर व्यवहार करते हैं।
(ग) जो विपत्ति में साथ देते हैं।
(घ) जो हमारा विरोध नहीं करते हैं।
प्रश्न 3.
‘बारे उजियारो करै’ में अलंकार है
(क) यमक
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) श्लेष
(घ) अनुप्रास
प्रश्न 4.
रहीम के अनुसार कुसंग का प्रभाव नहीं पड़ता|
(क) संतों पर
(ख) मूर्ख लोगों पर
(ग) उग्र लोगों पर
(घ) उत्तम प्रकृति वालों पर
प्रश्न 5.
कवि रहीम ने ‘उपकारी’ व्यक्ति की तुलना की है|
(क) वृक्षों से
(ख) नदियों से
(ग) बादलों से।
(घ) मेंहदी बाँटने वाले से
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रहीम ने गंगा माता से क्या चाहा है ?
उत्तर:
रहीम ने गंगा से प्रार्थना की है कि वह उनको ‘हरि’ न बनाकर शिव का मस्तक बना दें।
प्रश्न 2.
रहीम किस प्रकार मरना श्रेष्ठ मानते हैं ?
उत्तर:
रहीम सम्मान के साथ विष का सेवन करके मरना श्रेष्ठ मानते हैं।
प्रश्न 3.
स्वाति एक गुन तीन’ का भावार्थ क्या है ?
उत्तर:
भाव यह है कि संगति के प्रभाव से स्वाति की एक ही बूंद तीन रूप धारण कर लेती है। अत: संगति का अच्छा या बुरा प्रभाव अवश्य पड़ता है।
प्रश्न 4.
‘विपति-कसौटी’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
‘विपति-कसौटी’ का अर्थ है कि विपत्ति पड़ने पर ही सच्चे और स्वार्थी मित्र की पहचान होती है।
प्रश्न 5.
भाँवरें पड़ने के बाद ‘मौर’ को नदी में सिरा देने वाले कथन के पीछे कवि का क्या संदेश निहित है?
उत्तर:
कवि इस कथन द्वारा बताना चाहता है कि काम निकल जाने पर वस्तु या व्यक्ति की उपेक्षा होने लगती है।
प्रश्न 6.
रहीम के अनुसार कौन-कौन सी बातें छिपाए जाने पर भी प्रकट हो जाती हैं ?
उत्तर:
खैरियत, हत्या, खाँसी और खुशी, बैर, प्रेम और शराब पीना ये सात बातें छिपाने पर भी देर-सवेर प्रकट हो जाती हैं।
प्रश्न 7.
चंदन विष व्यापत नहीं’ दोहे के इस कथन से कवि क्या सिद्ध करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि सिद्ध करना चाहता है कि उत्तम स्वभाव वाले व्यक्तियों पर कुसंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 8.
दीपक तथा कुल के कपूत में क्या समानता होती है ?
उत्तर:
दीपक और कपूत ‘बारे’ (जलाना/बचपन) पर उजाला करते हैं और बड़े (बुझाने/बड़ा होना) पर अंधकार करते हैं।
प्रश्न 9.
ओछे व्यक्तियों के प्रति रहीम क्या नीति अपनाने का परामर्श देते हैं ?
उत्तर:
रहीम कहते हैं कि ओछे व्यक्तियों से न शत्रुता रखनी चाहिए न मित्रता।
प्रश्न 10.
प्रेम को कवि रहीम ने किसके समान बताया है ?
उत्तर:
रहीम ने प्रेम को एक धागे के समान बताया है।
प्रश्न 11.
‘मोती, मनुष्य और चूना के साथ पानी’ के क्या-क्या अर्थ होते हैं ?
उत्तर:
मोती के साथ ‘दमक’, मनुष्य के साथ प्रतिष्ठा’ तथा चून के साथ ‘जल’ अर्थ होता है।
प्रश्न 12.
रहीम के अनुसार, ‘प्रीतम की छवि नयनों में बसा लेने पर क्या लाभ होता है ?
उत्तर:
‘प्रीतम’ की छवि नयनों में बसी होगी तो अन्य अवांछित छवियाँ अपने आप दूर रहेंगी।
प्रश्न 13.
यदि आप पिसी हुई गीली मेंहदी लोगों को हाथ से बाँटें तो आपके हाथ पर क्या प्रभाव होगा ?
उत्तर:
इससे हमारे हाथ पर बिना रचाए ही मेंहदी रच जाएगी।
प्रश्न 14.
‘बिगरी बात’ तथा ‘फाटे दूध में कवि रहीम ने क्या समानता बताई है ?
उत्तर:
कवि ने बताया है कि जैसे बात बिगड़ जाने पर, लाख उपाय करने पर भी नहीं बन पाती, उसी प्रकार दूध फट जाने पर कितना भी मथने पर मक्खन नहीं निकलता।
प्रश्न 15.
रहिमन सोई मीत है, भीरि परे ठहराय। पंक्ति में ‘भीर परे’ का आशय क्या है ?
उत्तर:
भीरि परे’ का आशय है- संकट आने पर अथवा कठिन समस्या उपस्थित होने पर।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘हरि न बनाओ’ सुरसरी, कीजौ इंदव भाल।” इस कथन के पीछे निहित कवि रहीम की भावनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस पंक्ति से सम्बन्धित दोहे में कवि ने माँ गंगा की स्तुति के साथ ही अपने उक्ति चमत्कार का नमूना भी प्रस्तुत किया है। गंगा का जन्म भगवान विष्णु (श्रीकृष्ण) के चरणों से माना गया है और भगवान शिव ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया है। कवि गंगा से प्रार्थना करता है कि वह हरि (विष्णु) के स्वरूप न प्रदान करें। उन्हें भगवान शिव का मस्तक बना दें। हरि बनने पर माता- गंगा को चरणों में रखने का पाप लगेगा और शिव-मस्तक बनने पर गंगा सदा कवि के सिर पर विराजमान रहेगी।
प्रश्न 2.
आत्मसम्मान के बारे में कवि रहीम के क्या विचार हैं? संकलितं दोहों के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
कवि रहीम स्वयं बड़े स्वाभिमानी व्यक्ति थे। स्वाभिमान के कारण ही उनको बहुत कष्ट झेलने पड़े। कवि ने अपने अनुभव को ही संकलित दोहे में व्यक्त किया है। वह कहते हैं कि बिना सम्मान के यदि उन्हें कोई अमृत भी पिलाए तो उनको स्वीकार नहीं। यदि आदर सहित बुलाकर कोई उन्हें विष भी दे तो वह आत्मसम्मान के साथ मर जाना स्वीकार करेंगे।
प्रश्न 3.
‘स्वाति एक गुन तीन’ कथन द्वारी कवि रहीम ने क्या संदेश देना चाहा है ? लिखिए।
उत्तर:
पुराने कविगण मानते रहे हैं कि स्वाति नक्षत्र की बूंद ही कपूर, मोती और विष बन जाती है। केले में पड़ने पर कपूर हो जाती है, सीपी में गिरने पर विष हो जाया करती है। कवि रहीम ने इस लोक प्रचलित मान्यता के द्वारा संगति के प्रभाव को प्रकाशित किया है। विभिन्न संगतियों के प्रभाव से स्वाति बूंद, भिन्न-भिन्न रूप ले लेती है। कवि संदेश देना चाहता है कि यदि जीवन में कपूर जैसा यश और मोती जैसा मूल्यवान बनना है तो अच्छी संगति करो।
प्रश्न 4.
कवि रहीम के अनुसार कौन-कौन सी बातें दबाने पर भी नहीं दबी रहतीं, प्रकट हो जाती हैं ? स्प्ष्ट करते हुए लिखिए।
उत्तर:
कवि रहीम के अनुसार सात बातें ऐसी हैं, जिन्हें मनुष्य कितना भी छिपाने का प्रयास करे वे छिपी नहीं रह पाती हैं और सारा समाज उन्हें जान लेता है। ये सात बातें क्रमश: इस प्रकार हैं- ‘खैर’ अर्थात् कुशल-मंगल होना। जब मनुष्य को किसी प्रकार का कष्ट या चिंता नहीं होती तो उसके हाव-भाव और व्यवहार से लोग जान लेते हैं कि वह सुख से रह रहा है। इसी प्रकार ‘खून’ अर्थात् किसी की हत्या, सदा छिपी नहीं रहती, खाँसी भी छिपाई नहीं जा सकती और खुशी का भी सबों को पता चलता है। ऐसे ही बैरभाव, प्रेम भाव भी व्यवहार से समझने में आते हैं। मदिरा पिए हुए व्यक्ति की पहचान गंध से हो जाती है।
प्रश्न 5.
कुसंग से कौन से लोग प्रभावित नहीं होते हैं ? और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुसंग और सत्संग का साधारण मनुष्य पर प्रभाव पड़ना निश्चित होता है। कवि रहीम भी स्वीकार करते हैं कि ”जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन”। परन्तु इस मान्यता के अपवाद भी होते हैं। कवि कहता है कि जो लोग उत्तम प्रकृति वाले हैं, स्वभाव से दृढ़ निश्चयी और आत्मनियंत्रण में सक्षम हैं, उन पर कुसंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कवि इस बात के पक्ष में चन्दन के वृक्ष का उदाहरण भी देता है जो कि विषले सर्यों के संपर्क में रहते हुए विषैला नहीं होता।
प्रश्न 6.
“टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।” कवि रहीम ने यह बात किस प्रसंग में कही है? इस कथन पर आपका क्या मत है ? लिखिए।
उत्तर:
कवि रहीम ने यह बात प्रेम संबंध के प्रसंग में कही है। उनके अनुसार प्रेम एक नाजुक धागा है। यदि अधिक तनाव डालोगे तो चटक कर टूट जाएगा। यह प्रेम का धागा एक बार टूटने पर फिर पूर्ववत नहीं जुड़ पाता। जोड़ो तो गाँठ लगाकर ही जुड़ेगा। मेरे मत से कवि रहीम का यह कथन बड़ा सच और मार्मिक है। एक तो, जो प्रेम सम्बन्ध चटकाकर तोड़ा गया है, उसकी चटक को भुला पाना आसान नहीं होता। यदि किसी प्रकार जुड़ भी गया, तो जो गाँठ लगाई गई है, वह मन में आजीवन गाँठ की तरह पड़ी रहती है और प्रेम में वह सहजता और सरसता नहीं रह जाती है।
प्रश्न 7.
‘रहिमन पानी राखिए’ कवि रहीम ने इस संदेश को किन उदाहरणों से पुष्ट किया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्लेष और यमक अलंकारों के प्रयोग में परम निपुण, कवि रहीम, अपनी बात को बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। ‘पानी
शब्द के सामान्य अर्थ जल के अतिरिक्त उसके लाक्षणिक अर्थ अनेक हैं। कवि दोहे में उनका प्रयोग अपने संदेश पानी की सदा रक्षा कीजिए’ को पुष्ट बनाने में किया है। मोती का पानी अर्थात् उसकी आव या दमक चली गई, तो वह काँच का टुकड़ा मात्र रह जाता है। मनुष्य का पानी उतर गया तो उसका जीवन ही व्यर्थ हो जाता है। इसी प्रकार चूने का पानी सूख गया तो वह किसी काम का नहीं रहता।।
प्रश्न 8.
रहीम दृष्टान्तों के द्वारा अपने कथन को प्रभावशाली बना देते हैं। ‘भरी सराय रहीम लखि, आप पथिक फिरि जाय’ कथन की इस दृष्टि से व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सराय या धर्मशाला यदि पहले से ही भरी है तो बाद में आने वाले यात्री स्वयं लौट जाया करते हैं। इस साधारण-सी बात को कवि ने अपने काव्य कौशल से असाधारण बना दिया है। कवि का भाव है कि मन बड़ा चंचल है। उसे प्रियतम प्रभु में लगाना सदा से टेढ़ी खीर रहा है। रहीम मन को प्रियतम में लगाने का बड़ा सरल उपाय बता रहे हैं-प्रियतम की छवि को नयनों में बसा लो। जब नयनों रूपी सराय में जगह ही नहीं बचेगी, तो मन के चंचल करने वाले पथिकरूपी विघ्न और आकर्षण अपने आप लौट जाया करेंगे। मन प्रभु में लगा रहेगा।
प्रश्न 9.
कवि रहीम ने कहा है-बिगरी बात बनै नहीं। इस कथन द्वारा कवि हमें क्या चेतावनी देना चाह रहा है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह ‘बात’ क्या है जो एक बार बिगड़ गई है तो फिर बनने में नहीं आती ? अपनी छवि के बारे में व्यक्ति को बड़ा सावधान और संवेदनशील रहना चाहिए। यदि असावधानी से एक बार भी लोगों की नजरों में गिए गए तो फिर लाख सफाई, विवशता और बहाने गिनाइए? बात फिर बन नहीं पाती। अपनी निर्मल छवि को फिर से लोगों के हृदयों में स्थापित कर पाना बड़ा कठिन काम होता है। इसलिए अपनी बात पर दृढ रहिए, सतर्क रहिए, उसे गिरने मत दीजिए, यही कवि का चेतावनी युक्त संदेश है।
RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
रहीम का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न था। उनके व्यक्तित्व की उनकी रचनाओं में झलक मिलती है।’ इस कथन की अपनी पाठ्यपुस्तक में संकलित रहीम के दोहों के आधार पर पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
संकलित दोहों से कवि रहीम के काव्य-कौशल, वृहद अनुभव, व्यावहारिक ज्ञान, स्वाभिमान, व्यक्ति की पहचान आदि अनेक गुणों पर प्रकाश पड़ता है। मुसलमान होते हुए भी कवि रहीम की हिन्दू देवताओं में आस्था है। गंगा-स्तुति पर आधारित दोहा उनकी गंगा, शिव तथा विष्णु के प्रति उनकी भक्ति-भावना का उदाहरण है। स्वाभिमानी रहीम के विचार दर्शनीय हैं
अमी पियावत मान बिन, रहिमन मोहिन सुह्मय।
मान सहित मरिबो भलो, जो विस देहि बुलाय।
कवि को मान सहित मर जाना स्वीकार है, परन्तु अपमान का अमृत स्वीकार नहीं है।
कवि के विशाल अनुभव-कोश का एक नमूना देखने योग्य है।
कहि रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपति-कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।
यह कवि का निजी अनुभव है। जब रहीम समृद्ध रहे, उनके चारों ओर मित्रों और संगों की भीड़ लगी रही और जब विपन्न हुए, वैभव छिन गया तो सारे मीत और सगे किनारा कर गए। रहीम का सारा जीवन उपकार करते बीता विशाल हृदय और खुले हाथों से बाँटते रहे। कभी लाभ या पुण्य के बारे में नहीं सोचा। उनकी मान्यता थी कि उपकारी तो मेंहदी बाँटने वाले के समान होता है। उसे किसी से सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी पड़ती। उसके हाथों में तो यश की मेंहदी अपने आप रचती रहती है। इस प्रकार कवि रहीम का उदार व्यक्तित्व उनकी रचनाओं से झाँक रहा है।
प्रश्न 2.
‘उक्ति वैचित्र्य की कला को रहीम ने अपने दोहों में पर्याप्त स्थान दिया है।’ पाठ्यपुस्तक में संकलित दोहों के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
उक्ति वैचित्र्य का अर्थ होता है, बात को कुछ विचित्र या असाधारण रूप से कहना ताकि श्रोता या पाठक उसे सुनकर या पढ़कर चकित और मुग्ध हो जाय। उक्ति वैचित्र्य का यह खेल, संकलित दोहों में अनेक स्थानों पर उपस्थित है। “हरि न बनाओ सुरसुरी, कीजौ इन्दव भाल” इस पंक्ति में कवि ने भगवान शिव में अपनी आस्था सीधे-सीधे व्यक्त नहीं की है, लक्षणा और व्यंजना की सहायता लेने पर ही भाव का आनन्द प्रकट होता है। इसी प्रकार ‘विपति-कसौटी पर कसे गए ‘मीत’ भी कवि की वाक्-कुशलता का परिचय करा रहे हैं। ‘खैर, खून, खाँसी …..सकल जहान’।। दोहा जहाँ कवि के अनुभव की व्यापकता दिखा रहा है वहीं ‘दाबे ना दबै’ वचन वक्रता का नमूना भी पेश कर रहा है। इसी प्रकार ‘काटे-चाटे स्वान के’, ‘टूटे से फिर ना जुड़े’, ‘पानी गए न ऊबरै’ तथा ‘बिगरी बात बनै नहीं’ आदि उदाहरण उक्ति वैचित्र्य में कवि की प्रवीणता का परिचय करा रहे हैं।
प्रश्न 3.
संकलित दोहों के आधार पर कवि रहीम के अलंकार विधान का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
कवि रहीम का भाव पक्ष ही नहीं कला पक्ष भी काव्य प्रेमियों को आकर्षित करता रहा है। संकलित दोहों में कवि ने अलंकारों के प्रभावशाली प्रयोग में अपनी दक्षता का परिचय दिया है। प्रथम दोहे में ‘सिव सिर मालति माल’ में उपमा है। ‘बनत बहुत बहु रीत’ में अनुप्रास है। ‘विपति कसौटी’ में रूपक है। ‘काज परे ……. सिरावत मौर’ में दृष्टान्त है। खैर, खून, खाँसी, खुसी में अनुप्रास ‘जो रहीम उत्तम…..सकत कुसंग’ में दृष्टान्त है। बारे उजियारो। …….. अँधेरों हाथ में श्लेष अलंकार है। इसी प्रकार ‘ धागा प्रेम का’ में कवि ने रूपक की छटा दिखाई। ‘गाँठि परि जाय’ में श्लेष का चमत्कार उपस्थित है। ‘पानी राखिए’ में श्लेष तथा ‘पानी गए न ऊबरै’ में श्लेष के साथ ‘पानी’ में यमक का सौन्दर्य भी उपस्थित है।’दृष्टान्त’ अलंकार के प्रयोग में तो कवि रहीम सिद्ध हस्त हैं। इस प्रकार कवि रहीम का अलंकार विधान बनावट और दिखावट से दूरी बनाते हुए पाठकों को आनंदित करने में सफल हुआ है।
कवि – परिचय :
अंब्दुल रहीम खानखाना अर्थात् हिन्दी के लोकप्रिय कवि ‘रहीम’ का जन्म सन् 1556 ई. में लाहौर में हुआ था। उनके पिता अकबर के संरक्षक बैरम खाँ थे। रहीम ने अरबी, फारसी, उर्दू, हिन्दी तथा संस्कृत भाषाओं के साहित्य का अध्ययन किया। रहीम महान दानी और गुणग्राहक थे। राजनीतिक कारणों से रहीम के जीवन का अंतिम समय निर्धनता और उपेक्षा में बीता था। सन् 1626 ई. में रहीम का देहावसान हो गया। रहीम बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे केवल साहित्यकार ही नहीं अपितु एक सफल सेनापति, प्रशासक, दानवीर, गुणग्राहक और उदार हृदय मनुष्य भी थे। रहीम ने ब्रज भाषा, अवधी तथा खड़ी बोली में प्रभावशाली और लोकप्रिय काव्य रचना की। इनके काव्य के विषय नीति, भक्ति तथा श्रृंगार हैं।a
रचनाएँ – रहीम की प्रमुख रचनाएँ दोहावली या सतसई, बरबै नायिका भेद, रास पंचाध्यायी, मदनाष्टक, श्रृंगार सोरठा, खेटकौतुक, नगर शोभा तथा फुटकर रचनाएँ हैं। रास पंचाध्यायी में हिन्दी और उर्दू (अरबी-फारसी) शब्दावली का साथ-साथ प्रयोग कवि की काव्यकुशलता तथा विशद् अध्ययन का परिचायक है।
पाठ – परिचय :
‘दोहे’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित रहीम के दोहे नीति’ विषय पर केन्द्रित हैं। इन दोहों में कवि ने जीवन उपयोगी अनेक विषयों पर अपना मत रोचक काव्यशैली में प्रस्तुत किया है। प्रारम्भ में कवि ने सुरसरि गंगा की स्तुति की है। कवि आत्मसम्मान की रक्षा पर बल देता है। संगति का प्रभाव, मित्र की पहचान, उत्तम स्वभाव का महत्व, कुपुत्र से हानि, प्रेम सम्बन्ध की कोमलता और सुरक्षा, पानी अर्थात् प्रतिष्ठा की रक्षा आदि विषयों को कवि ने इन दोहों का विषय बनाया है।
पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ
1. अच्युत चरन तरंगिनी, सिव सिर मालति माल।
हरि न बनाओ सुरसरी, कीजौ इंदव-भाल।।1।।
अमी पियावत मान बिनु, रहिमन मोहि न सुहाय।
मान सहित मरिबो भलो, जो बिस देय बुलाय।।2।।
कठिन शब्दार्थ – अच्युत = भगवान विष्णु। चरन = चरण, पैर। तरंगिनी = लहराने वाली। मालति = एक फूल। माल = माला। हरि = विष्णु। सुरसरी = गंगा। कीजौ = करना, बनाना। इन्दव भाल = जिनके मस्तक पर चन्द्रमा है, शिव। अमी = अमृत। मान बिनु = बिना सम्मान के। सुहाय = अच्छा लगना। मरिबौ = मरना। बिस = विष, जहर। बुलाय = बुलाकर।
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में ‘दोहे’ शीर्षक के अन्तर्गत संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। प्रथम दोहे में कवि गंगा से प्रार्थना कर रहा है कि वह उसका हरि न बनाकर शिव बनाने की कृपा करें ताकि वह उन्हें सिर पर धारण कर सकें। दूसरे दोहे में कवि ने अपमान सहित अमृत पीने की अपेक्षा मान सहितं विष पीना श्रेष्ठ बताया है।
व्याख्या – कवि रहीम परम पावन और सर्वसक्षम गंगा माता से प्रार्थना करता है कि आप भगवान विष्णु के चरणों में तथा भगवान शिव के सिर पर विराजती हैं। हे माता ! यदि आप कृपा करके मेरा उद्धार करें तो मुझे विष्णु नहीं शिव स्वरूप प्रदान करना, ताकि मैं आपके चरणों में रखने के पाप का भागी बनें। आपको अपने सिर पर धारण करने का सौभाग्य प्राप्त कर पाऊँ। द्वितीय दोहे में कवि ने आत्मसम्मान के साथ जीने की प्रेरणा दी है। कवि कहता है यदि कोई मुझे बिना उचित सम्मान के अमृत भी पिलाएँ तो मुझे वह स्वीकार नहीं होगा। यदि सम्मान सहित बुलाकर कोई मुझे विष भी पिलाए, तो मैं उस विष को पीकर सम्मान के साथ मरना स्वीकार करूंगा।
विशेष –
- मुसलमान होते हुए भी कवि रहीम ने हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति भक्ति और आदर का भाव प्रदर्शित किया है।
- कवि को हिन्दू धर्मग्रन्थों का अच्छा परिचय प्राप्त है।
- शिव स्वरूप पाने के पीछे कवि ने रोचक तर्क दिया है।
- कवि ने संदेश दिया है कि अपमानपूर्वक सुखी जीवन जीने से समम्मान सहित मृत्यु का वरण करना ही श्रेष्ठ जीवन शैली है।
- ‘शिव सिर’ तथा ‘मालति माल’ में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा साहित्यिक ब्रजी है तथा कथन शैली चमत्कारपूर्ण तथा उपदेशात्मक है।
2. कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए तैसोई फल दीन।।3।।
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति-कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।4।।
कठिन शब्दार्थ – कदली = केले का वृक्ष। सीप = जल के कीट द्वारा निर्मित कठोर खोल, जिसमें मोती बनता है। भुजंग = सर्प। स्वाति = ज्योतिष में मान्य एक नक्षत्र। तैसोई = वैसा ही। सम्पत्ति = सम्पन्नता के समय, धन होने पर। सगे = अति निकट सम्बन्धी, समान रक्त वाले सम्बन्धी। बनत = बन जाते हैं। बहुरीति = अनेक प्रकार से। बिपति = कसौटी, संकटरूपी परीक्षा। कसे = कसकर देखे गए, परखे गए। मीत = मित्र। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हामरी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। प्रथम दोहे में कवि ने संगति के विविध प्रभावों का वर्णन किया है। दूसरे दोहे में विपत्ति को ही सच्चे मित्रों की कसौटी बताया है।
व्याख्या – अच्छी और बुरी संगति का व्यक्ति और वस्तु पर अच्छा और बुरा प्रभाव देखने में आता है। स्वाति नक्षत्र के समय में गिरने वाली बादल के जल की बूंद जब केले पर गिरती है तो कपूर बन जाती है, सीपी में जा गिरती है तो मोती बन जाती है। वही बूंद जब सर्प के मुख में गिरती है तो प्राणघातक विष बन जाती है। स्पष्ट है कि मनुष्य जैसी संगति करेगा उसे वैसा ही (अच्छा या बुरा) फल प्राप्त होगा। कवि रहीम कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति धन सम्पन्न होता है तो बहुत से अपरिचित लोग भी अनेक उपायों से उसके सगे सम्बन्धी बन जाया करते हैं। परन्तु सगेपन और मित्रता की सच्ची परीक्षा तो संकट आने पर होती है। संकट के समय जो मनुष्य का सच्चे मन के साथ देता है वही उसका सच्च मित्र होता है। स्वामी मित्र तो सुख के साथी होते हैं, बुरे दिन आते ही किनारा कर जाते हैं।
विशेष –
- प्रथम दोहे द्वारा कवि ने संदेश दिया है कि मनुष्य को सदा अच्छे लोगों की संगति करनी चाहिए।
- कुसंग का बुरा फल मिलना अवश्यम्भावी है। कवि ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है।
- दूसरे दोहे में कवि ने एक उपयोगी मंत्र दिया है। सच्चा मित्र कौन है, कपटी मित्र कौन है? इसकी पहचान दुःख और अभाव …. के दिनों में ही होती है। जो उस समय साथ दे समझ लो वह आपका सच्चा मित्र है।
- ‘कसौटी’ एक काला पत्थर का टुकड़ा होता है, जिस पर सोने को घिसने से सोने की शुद्धता का पता चलता है।
- प्रथम दोहे में उदाहरण अलंकार है। ‘संपति सगे’ तथा ‘बनत बहुत बहु’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘विपति-कसौटी’ रूपक अलंकार है।
- भाषा साहित्यिक ब्रजी है और कथन शैली उपदेशात्मक और संदेशात्मक है।
3. काज परै कछु और है, काज सरै कछ और।
रहिमन भंवरी के भए, नदी सिरावत मौर।।5।।
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर-प्रीति मद-पान।
रहिमन दाबे ना दबैं, जानत सकल जहान।।6।।
कठिन शब्दार्थ – काज = काम। परै = पड़ने पर। कछु = कुछ। और = अन्य या भिन्न प्रकार का व्यवहार। सरै = सम्पन्न होना, पूरा होना, काम निकल जाना। भंवरी = हिन्दुओं के विवाहों में होने वाली एक रीति जिसमें वर और कन्या अग्नि के फेरे लेते हैं। सिरावत = प्रवाहित करना। मौर = विवाह के अवसर पर वर द्वारा सिर पर धारण किए जाने वाला मुकुट। खैर = कुशलता की भावना। खून = हत्या। वैर = शत्रुता। प्रीति = प्रेम। मद-पान = शराब आदि पीना, नशा करना। दावे = छिपाने पर। जानत = जानता है। जहान = संसार, दुनिया।।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – उपर्युक्त पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविवर रहीम के दोहे शीर्षक अंश से लिया गया है। प्रथम दोहे में कवि ने बताया है कि इस संसार में लोग अवसर देखकर अपने व्यवहार की नीति को बदल लिया करते हैं। द्वितीय दोहे में बताया गया है कि कुछ बातें ऐसी होती हैं कि वे प्रयत्न करने पर भी छिपाई नहीं जा सकतीं तथा दूसरों के सामने प्रकट हो जाती हैं।
व्याख्या – कवि रहीम कहते हैं कि यह संसार बड़ा मतलबी है। जब काम पड़ता है तो उसका व्यवहार कुछ भिन्न प्रकार का होता है तथा काम निकल जाने पर वह पूर्व के व्यवहार के विपरीत तरह का व्यवहार करता है। लोग अपना काम अटकने पर बड़ा मधुर और स्नेह-सम्मानपूर्ण व्यवहार करते हैं तथा काम निकलने पर मुँह फेर लेते हैं, पूछते तक नहीं। हिन्दुओं में विवाह के अवसर पर वर अपने सिर पर मौर बाँधकर कन्या के घर जाता है। वहाँ वर और कन्या अग्नि की परिक्रमा करते हैं अथवा फेरे लेते हैं। फेरे लेने से पहले जिस मौर को सम्मान के साथ सिर पर धारण किया जाता है, उसे फेरे लेने की क्रिया पूरी होने के पश्चात् नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।
कवि रहीम कहते हैं कि खैरियत अर्थात् कुशलता का होना, किसी की हत्या करना, खाँसी की बीमारी होना, मन में किसी कारण प्रसन्नता होना, किसी के प्रति शत्रुता होना अथवा प्रेम होना तथा शराब पीना या नशा करना आदि बातें ऐसी हैं कि मनुष्य के द्वारा छिपाने का प्रयत्न करने पर भी छिपती नहीं हैं और स्वयं ही पूरे संसार को उनके बारे में पता चल जाता है। मनुष्य को उनके बारे में पता चल जाता है। मनुष्य प्रयास करके भी इनको छिपा नहीं पाता और वे पूरे संसार में प्रगट हो जाती हैं।
विशेष –
- ‘काज परै और काज सरै’-में लोगों के दोहरे आचरण के बारे में बताया गया है।
- लोग बड़े मतलबी होते हैं तथा अपने लाभ को देखकर ही व्यवहार करते हैं।
- दोहा छंद ब्रजभाषा तथा दृष्टान्त अलंकार है।
- ‘खैर-खुशी’ में अनुप्रास अलंकार है।
- कुशलता, हत्या, खाँसी, प्रसन्नता, शत्रुता, प्रेम तथा मद्यपान आदि बातें छिपाने पर भी प्रकट हो जाती हैं। कवि रहीम ने यहाँ अपने अनुभव से मानवीय स्वभाव का वर्णन किया है।
4. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करे, बढ़े अँधेरो होय।।
कठिन शब्दार्थ – उत्तम = श्रेष्ठ, उज्च। प्रकृति = स्वभाव का = क्या। कुसंग = बुरी संगति। विष= जहर। व्यापत = प्रमाणित करना। भुजंग = साँप। गति = चाल, कार्यपद्धति। कपूत = कुपुत्र, अनाचारी बेटा। बारे = जलना, बचपन। बढ़ = बुझना, बड़ा होना। उजियारो = उजाला, प्रकाश, प्रशंसा। अँधेरो = अन्धकार, बदनामी।।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम हैं। कवि रहीम ने बताया है कि श्रेष्ठ प्रकृति के लोगों पर बुरे लोगों के साथ का प्रभाव नहीं होता। अपनी प्रकृति के कारण वे बुराई से अप्रभावित ही रहते हैं। दूसरे दोहे में कवि ने कुपुत्र के आचरण-व्यवहार को परिवार के लिए अहितकारी बताया है।
व्याख्या – कवि रहीम कहते हैं कि यदि मनुष्य का स्वभाव श्रेष्ठ और ऊँचा है तो बुरे लोगों के साथ रहने पर भी वह उनकी बुराइयों से अप्रभावित ही रहता है। उस पर बुरों की संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जिस प्रकार चन्दन के वृक्ष से सर्प लिपटे रहकर भी उसको अपने विष से हानि नहीं पहुँचा पाते तथा उसकी शीतलता नष्ट नहीं कर पाते, उसी प्रकार दुष्टों की संगति सज्जनों को प्रभावित नहीं कर पाती।
रहीम कहते हैं कि परिवार में जन्म लेने वाले कुपुत्र की कार्य-व्यवहार पद्धति दीपक के समान होती है, दीपक जलाया जाता है। तो उसका प्रकाश चारों ओर फैलकर सभी वस्तुओं को प्रकाशित कर देता है तथा उसके बुझने पर सर्वत्र अन्धकार छाया जाता है। इसी प्रकार जब किसी परिवार से कोई कुपुत्र जन्म लेता है तो लोग पुत्र-जन्म की खुशियाँ मनाते हैं और सर्वत्र प्रसन्नता का वातावरण फैल जाता है। उसके बड़े होने पर उसके बुरे कार्यों के कारण परिवार के लोग अपमानित तथा प्रताड़ित होते हैं तथा उनकी समाज में बेइज्जती होती है और पुत्र-जन्म के समय की खुशियाँ नष्ट हो जाती हैं।
विशेष –
- दोहा छंद है तथा साहित्यिक मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
- दृष्टान्त अलंकार व अनुप्रास अलंकार है।
- मनुष्य का स्वभाव यदि श्रेष्ठ है तो उस पर बुरे लोगों का साथ कोई प्रभाव नहीं डालता। कवि बताना चाहता है कि कमजोर चरित्र के व्यक्ति ही दूसरों से प्रभावित होते हैं।
- दूसरे दोहे में कुपुत्र के आचरण का वर्णन है जिसके कारण परिवार को दूसरों के सामने लज्जित होना पड़ता है।
- कवि ने इसकी तुलना दीपक के जलने और बुझने से की है।
- ‘बारो उजियारौ’ तथा ‘बढ़े अँधेरो’ में श्लेष अलंकार है।
5. रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोऊ भाँति बिपरीत।।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठि परि जाय।।
कठिन शब्दार्थ – ओछे = तुच्छ, नीच। स्वान = कुत्ता। भाँति = प्रकार। विपरीत = प्रतिकूल, अहितकर। धागा = डोरा। चटकाया = चट की आवाज के साथ, प्रथकता के विचार से। गाँठ = जोड़, अवरोध।।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता रहीम हैं। रहीम ने नीति सम्बन्धी प्रथम दोहे में नीचे मनुष्यों से तटस्थ रहने का परामर्श दिया है।
दूसरे दोहे में कवि ने संदेश दिया है कि प्रेम सम्बन्धों को असावधानीपूर्वक नष्ट नहीं करना चाहिए। एक बार प्रेम में व्यवधान होने पर उसमें पहले जैसी तन्मयता नहीं रह जाती है।
व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि मनुष्य को नीच स्वभाव के लोगों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में सावधानी से काम लेना चाहिए। उनके साथ न तो अथक प्रेम ही करना चाहिए और न उनसे बैर ही करना चाहिए। दोनों ही अवस्थाओं में वे दूसरों का अहित ही करते हैं। कुत्ता मनुष्य को काट लेता है तो उसको बहुत कष्ट होता है। वह मनुष्य के शरीर को चाटता है, तब भी छति होने का खतरा बना रहता है। उसका काटना तथा चाटना-दोनों ही मनुष्य के हित के प्रतिकूल होते हैं। कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम एक धागे के समान है। दूसरों के साथ अपने प्रेम के सम्बन्ध को हमें बिना विचारे असावधानीवश नष्ट नहीं करना चाहिए। प्रेम का सम्बन्ध टूटने पर दोबारा जुड़ता नहीं है। यदि जुड़ता भी है तो थोड़ा अवरोध तो रह ही जाता है। धागे को तोड़ने पर वह पहले की तरह नहीं जुड़ता, यदि जुड़ता भी है तो उसमें गाँठ लगानी पड़ती है।
विशेष –
- सरस, मधुर ब्रजभाषा है। दोहा छन्द में रचना है।
- कवि ने नीति विषयक बातें सरल ढंग से समझाई हैं।
- ओछे लोगों से प्रेम तथा शत्रुता का निषेध किया गया है तथा प्रेम के सम्बन्ध की सुरक्षा का आग्रह किया गया है।
- धागा प्रेम का’ में रूपक अलंकार है।
- प्रथम दोहे में दृष्टान्त अलंकार है।
6. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए ने ऊबरै, मोती मानुष चून।।
प्रीतम छवि नैनन बसी, पर छबि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय।।
कठिन शब्दार्थ – पानी = जल, मर्यादा, चमक। सून = शून्य, बेकार। पानी गए = पानी नष्ट होने, मर्यादा भंग होने, चमक मिटने। ऊबरे = उबरना, रक्षा होना। मानुष = मनुष्य। चून = चूना। प्रीतम = प्रियतम, प्रेमी। छवि = शोभा। पर = पराई, दूसरों की। समाय = स्थान प्राप्त होना। सराय = धर्मशाला। पथिक = यात्री। फिर जाय = लौटकर चला जाता है।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम हैं। कवि ने प्रथम दोहे में बताया है कि मनुष्य को अपनी मान-मर्यादा के प्रति सतर्क रहने चाहिए। मर्यादाहीन मनुष्य को संसार में कोई नहीं पूछता।। कवि ने दूसरे दोहे में ईश्वर के सच्चे भक्त का लक्षण यह बताया है कि उसके नेत्रों में सदा ईश्वर की छवि रहती है। उसे छोड़कर वह सांसारिक वस्तुओं में आसक्त नहीं होता।
व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि संसार में पानी का बड़ा महत्त्व है। पानी को नष्ट नहीं होने देना चाहिए। सदा उसकी रक्षा करनी चाहिए। पानी के बिना सब कुछ अर्थहीन हो जाता है। पानी के अभाव में मोती, मनुष्य तथा चूना का महत्व घट जाता है। मोती का पानी अर्थात् चमक उतरने पर उसका सौंदर्य तथा मूल्य घट जाता है। मनुष्य का पानी अर्थात् मर्यादा नष्ट होने से समाज में वह सम्माननीय नहीं रह जाता। चूने का पानी सूख जाने पर वह प्रयोग के योग्य नहीं रह जाता है। कविवर रहीम कहते हैं कि जिस मनुष्य के नेत्रों में अपने प्रियतम परमात्मा की छवि विराजमान है, वहाँ किसी अन्य सांसारिक वस्तु का आकर्षण टिक नहीं पाता। अथवा जब कोई प्रेयसी अपने प्रेमी से अनन्य प्रेम करती है तो किसी अन्य पुरुष की सुन्दरता उसको आकर्षित नहीं कर पाती। जब किसी धर्मशाला अथवा सराय में कोई स्थान रिक्त नहीं होता तो यह देखकर वहाँ आने वाला यात्री स्वयं ही लौटकर चला जाता है। उसी प्रकार प्रियतम की छवि वाली आँखों में सांसारिक वैभव के प्रति आकर्षण नहीं पाया जाता।
विशेष –
- श्लेष अलंकार के प्रयोग द्वारा कवि ने पानी के तीन अर्थ चमक, मर्यादा तथा जल बताए हैं। मोती के लिए चमक, मनुष्य के लिए मर्यादा तथा चूने के लिए जल का होना आवश्यक है।
- कवि ने संदेश दिया है कि मनुष्य को अपनी मान-मर्यादा की रक्षा के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
- अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
- दूसरे दोहे में ईश्वर के प्रति सच्ची लगन को भक्त के लिए आवश्यक बताया गया है।
- दृष्टान्त अलंकार है।
- दोहा छन्द है तथा सरस मधुर ब्रजभाषा है।
7. यों रहीम जस होत है, उपकारी के संग।
बाँटन वारे के लगै, ज्यों मेंहदी को रंग।।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करै किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
कठिन शब्दार्थ – यों = इस प्रकार। जस = यश, प्रशंसा। बाँटन वारे = पीसने वाला। मेंहदी = एक पेड़, जिसकी पत्तियाँ पीसकर हाथों पर रचाई जाती हैं। बिगरी = बिगड़ी, खराब हुई। बनै = सुधरना। लाख करै = लाखों प्रयत्न करना। फाटे = फटे हुए। माखन = मक्खन।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम हैं। प्रथम दोहे में कवि ने बताया है कि सज्जनों का साथ अच्छा होता है तथा सज्जनों के साथ रहने वाले को इसका लाभ बिना प्रयास के ही मिल जाता है। द्वितीय दोहे में कवि ने अपनी बात की रक्षा का संदेश दिया है तथा बताया है कि बात बिगड़ने के बाद लाखों प्रयत्न करके भी उसको सुधारा नहीं जा सकता।
व्याख्या – कवि कहता है कि परोपकार करने वालों के साथ रहना सदा लाभदायक होता है। साथ रहने वाले को इसका लाभ अनायास प्राप्त होता है। उसको संसार में प्रशंसा का पात्र समझा जाता है। जिस प्रकार पत्थर पर मेंहदी की पत्तियों को पीसने वाले के हाथ मेंहदी के रंग से बिना रचाएं ही लाल हो जाते हैं उसी प्रकार परोपकारी का साथी भी बिना कुछ करे प्रशंसनीय हो जाता है। – कविवर रहीम लोगों को सावधान करना चाहते हैं कि उनको अपने कार्यों के प्रति सजग रहना चाहिए। यदि असावधानीवश एक बार कोई काम बिगड़ जाता है तो लाखों प्रयत्न करने पर भी उसमें सुधार नहीं हो पाता। यदि दूध फट जाता है तो कोई उसको कितनी ही देर तक बिलोए उससे मक्खन नहीं निकलता।
विशेष –
- प्रस्तुत दोहों में कवि ने नीति से सम्बन्धित बातें बतलाई हैं।
- कवि ने बताया है कि परोपकारी पुरुष का साथ करना चाहिए क्योंकि उसका लाभ निष्प्रयास मिलता है।
- हमें अपना काम सतर्क रहकर करना चाहिए। खराब होने पर अपने किए हुए कार्य का फल प्राप्त नहीं होता।
- इन पद्यांशों में सरस एवं मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
- कवि ने दोहा छन्द में रचना प्रस्तुत की है।
- ‘बिगरी……..बनै’ में अनुप्रास अलंकार है। उदाहरण अलंकार भी है।
8. मथत-मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय।।
कठिन शब्दार्थ – मथत-मथत = बार-बार दही बिलौना। माखन = मक्खन। बिलगाय = अलग हो जाता है। सोई = वही। मीत = मित्र। भीर परे = कठिन समय आने पर। ठहराय = साथ रहे।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। कवि ने इस दोहे में सच्चे मित्र की पहचान बताई है।
व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि सच्चा मित्र सदा संकट में साथ निभाता है। सच्चे मित्र की पहचान यही है कि वह संकट आने पर कभी अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता। जिस प्रकार दही को बार-बार बिलोया जाता है तो दही और मट्ठा तो अलग हो जाते हैं किन्तु मक्खन वहीं स्थिर रहता है। तात्पर्य यह है कि सच्चा मित्र मक्खन की तरह अपने मित्र के सदा साथ रहता है।
विशेष –
- सरल, सरस, मधुर ब्रजभाषा है।
- दोहा छंद है।
- ‘मथत मथत माखन’ में अनुप्रास अलंकार है। दृष्टान्त अलंकार भी है।
- ‘भीर परे’ मुहावरे का प्रयोग है।
- सच्चे मित्र की पहचान बताई गई है कि वह मुसीबत के समय अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता।
- भाव-साम्य – “AFriend in need is friend Indeedl” – W. Shakespeare
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