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RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 मैथिलीशरण गुप्त

July 24, 2019 by Safia Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Chapter 7 मैथिलीशरण गुप्त is part of RBSE Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi Chapter 7 मैथिलीशरण गुप्त.

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 मैथिलीशरण गुप्त

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
यह गौरव की बात कि स्वामी गये|
(क) वैराग्य हेतु
(ख) सिद्धि हेतु
(ग) राज्य प्राप्ति हेतु
(घ) तीर्थ यात्रा हेतु।
उत्तर:
(ख) सिद्धि हेतु

प्रश्न 2.
यशोधरा को पीड़ा है कि उसके पति चले गए हैं –
(क) सोता हुआ छोड़कर
(ख) लक्ष्य बताए बिना
(ग) चोरी-चोरी
(घ) खाना खाए बिना।
उत्तर:
(ग) चोरी-चोरी

प्रश्न 3.
कवि के अनुसार प्रकृति का पुण्य तीर्थस्थल है –
(क) भारतवर्ष
(ख) हिमालय
(ग) गंगा
(घ) सागर।
उत्तर:
(क) भारतवर्ष

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘यशोधरा’ का काव्यरूप क्या है ?
उत्तर:
‘यशोधरा’ गुप्त जी द्वारा रचित खण्डकाव्य है।

प्रश्न 2.
यशोधरा दुःखी क्यों है ?
उत्तर:
यशोधरा अपने पति सिद्धार्थ के उसको बताए बिना चोरी-चोरी चले जाने के कारण दु:खी है।

प्रश्न 3.
भारतवर्ष अन्य देशों को सिरमौर क्यों है?
उत्तर:
भारतवर्ष संसार का सबसे प्राचीन देश होने के कारण अन्य देशों का सिरमौर है।

प्रश्न 4.
भारतवर्ष को प्रकृति का पुण्य तीर्थस्थल क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
भारतवर्ष में प्रकृति का अपार वैभव बिखरा पड़ा है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यशोधरा की मूल संवेदना अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
यशोधरा अपने पति के प्रति समर्पित है। जो उसके पति को मान्य है, वही यशोधरा को भी स्वीकार है। सिद्धि हेतु उनके जाने में भी वह गौरव अनुभव करती है। किन्तु उनके चुपचाप चोरी-चोरी, उससे कुछ कहे बिना चले जाना उसको बहुत पीड़ा पहुँचाता है। इसमें उसको अपनी उपेक्षा का भाव प्रतीत होता है यह उपेक्षा उसके विरह दु:ख को दूना कर देती है।

प्रश्न 2.
“दुःखी न हों इस जन के दुःख से पंक्ति में यशोधरा ने ‘जन’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है ?
उत्तर:
“दुखी न हों इस जन के दुःख से’ पंक्ति में ‘जन’ शब्द का प्रयोग यशोधरा ने स्वयं अपने लिए किया है। यद्यपि उसे इस बात की पीड़ा है कि उसके पति ने उसकी उपेक्षा की है, वह उसको बिना बताए घर से चले गए हैं। परन्तु वह उनके सुख तथा सिद्धि पाने में बाधक बनना नहीं चाहती। वह चाहती है कि उसके पति सुखी रहें तथा अपने लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त करें।

प्रश्न 3.
“उपालम्भ हूँ मैं किस मुख से”-यशोधरा ने यह क्यों कहा है ?
उत्तर:
यद्यपि सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा से बिना कुछ कहे सुने चोरी-चोरी घर त्याग कर चले गए हैं और इससे यशोधरा बहुत आहत भी है, तथापि वह इसका उलाहना उनको देना नहीं चाहती है। उसके पति सिद्धि पाने गए हैं, यह जानकर वह स्वयं भी गौरव को अनुभव करती है। वह उनकी लक्ष्यप्राप्ति की इच्छुक है। महान् सिद्धि पाने में लगे उसके पति उसको अब पहले से भी अधिक अच्छे लगते हैं।

प्रश्न 4.
कवि ने भारतवर्ष को भू-लोक का गौरव क्यों बताया है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। यहाँ पर्वतराज हिमालय तथा गंगानदी हैं। संसार के सभी देशों की अपेक्षा भारत महान् तथा समुन्नत है। भारत ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है। कवि ने इस कारण भारत को पृथ्वी का गौरव बताया है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“यशोधरा’ के पठित काव्यांश के आधार पर यशोधरा की चारित्रिक विशेषताएँ प्रकट कीजिए।
उत्तर:
‘यशोधरा’ के पठित काव्यांश में उसकी नायिका यशोधरा के चरित्र की विशेषताएँ व्यञ्जित हुई हैं। यशोधरा अपने पति से प्रेम करती हैं वह उनके प्रति पूरी तरह समर्पित है। उसने अपने जीवन में उसी काम को महत्वपूर्ण समझा है और वही किया जो उसके पति को मान्य रहा है। यशोधरा यह जानकर गौरव अनुभव करती हैं कि उसके पति सिद्धि पाने के लिए गए हैं। वह चाहती है कि वह सुखपूर्वक रहें और सिद्धि प्राप्त करें। वह यशोधरा के दुःख की चिन्ता करके दुःखी न हों।

इससे उसका नि:स्वार्थ प्रेम प्रगट होता है। यशोधरा की आत्मग्लानि तथा वेदना भी इस अंश में व्यक्त हुई है। उसके पति बिना उससे कुछ भी कहे चोरी-चोरी घर से चले गए। हैं, यह बात उसके संताप को बढ़ाने वाली है। उसने तो पति की प्रत्येक बात को माना था फिर ऐसा कारण क्या रहा कि उन्होंने उसकी उपेक्षा की। यह सोचकर यशोधरा-ग्लानि से भर उठती है तथा दु:ख के सागर में डूब जाती है। यशोधरा आशावादी है। उसको अपने पति की लक्ष्य-सिद्धि में पूर्ण विश्वास है। वह जानती है कि उसके पति से उसका पुनर्मिलन अवश्य होगा। जब वह आयेंगे तो उनकी अनुपम उपलब्धियाँ भी उनके साथ होंगी। इस प्रकार इस अंश में यशोधरा का पति से प्रेम, पति- भक्ति, आशावाद, आत्मग्लानि, क्षोभ तथा विरह, संताप आदि व्यक्त हुए हैं।

प्रश्न 2.
मैथिलीशरण गुप्त जी को भारतीय सांस्कृतिक नव जागरण काल का राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि माना जाता है। उनके काव्य में राष्ट्रीयता की प्रबल भावना है। वह साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता तथा धर्मान्धता के विरुद्ध है। उनको राष्ट्रकवि मानने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं राष्ट्रवाद के गायक-गुप्त जी राष्ट्रीय भावनाओं के गायक हैं। उनके द्वारा लिखी ‘भारत-भारती’ नामक काव्य-रचना में स्वदेश प्रेम, भारत के अतीत गौरव, राष्ट्रीय जागरण, सर्वधर्म समभाव आदि का वर्णन मिलता है। गुप्त जी की इस रचना ने उनका राष्ट्रीय भावनाओं के कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया है।

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा भाव – गुप्त जी में मातृभूमि के प्रति अपूर्व श्रद्धा का भाव है। स्वदेश में उनको सर्वेश की साकार मूर्ति दिखाई देती है।

करते अभिषेक प्रमोद हैं बलिहारी इस देश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।

संकीर्णता विरोधी – गुप्त जी संकीर्ण विचारों तथा भावनाओं को राष्ट्र के लिए हितकर नहीं मानते। उनके काव्य में संकीर्णता का । विरोध मिलता है। वह धर्म, सम्प्रदाय, प्रदेश आदि का भेद नहीं मानते। उनकी एकता से ही राष्ट्र की एकता को वह सम्भव मानते हैं।

गौरवमय अतीत – भारत के निवासी आर्य हैं, जिन्होंने विश्व को सभ्य और सुसंस्कृत बनाया है। अतीत पर गर्व का भाव भी गुप्त जी की राष्ट्रीय भावना का पोषक है

यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है इसके निवासी आर्य हैं।
विद्या कला कौशल सभी के जो प्रथम आचार्य हैं।

राष्ट्र के प्रति समर्पण – गुप्त जी राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के प्रचारक हैं। राष्ट्र के लिए सर्वस्व त्यागने की भावना उनके काव्य में मिलती है

जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही उल्लास रहे यह हर्ष।
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।।

प्रश्न 3.
भारत की श्रेष्ठता’ में अभिव्यक्त विचारों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘भारत की श्रेष्ठता’ शीर्षक काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध रचना ‘भारत-भारती’ से उद्धृत है। इससे भारतवर्ष के अतीतकालीन गौरव का भव्य चित्र अंकित हुआ है। भारत इस पृथ्वी लोक का गौरव है। यह प्रकृति का मनोरम क्रीड़ास्थल है। यहाँ पर्वतराज हिमालय तथा पावन गंगा नदी है। यह ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है। भारत संसार के सभी देशों में सर्वश्रेष्ठ है। प्राचीन देश भारत संसार के देशों का सिरमौर है। इस संसार में इतना अधिक पुरातन देश कोई दूसरा नहीं है। पृथ्वी पर ईश्वर की जो देन है उन सबका भण्डार भारत में ही हुआ है। भारत भूमि पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का आरम्भ किया है। इस पावन भूमि के निवासी आर्य कहलाते हैं। आर्य ज्ञान-विज्ञान और कला-कौशल के ज्ञाता तथा विद्वान हैं। समस्त संसार को उन्होंने ही ज्ञान की दीक्षा दी है। हम भारतीय उनकी ही संतान हैं, यद्यपि हम पतन के गर्त में पड़े हैं। किन्तु उनकी श्रेष्ठता के कुछ चिह्न अब भी यहाँ विद्यमान हैं।

प्रश्न 4.
भारतवर्ष के अतीत की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत इस संसार का प्राचीनतम देश है। संसार में सर्वप्रथम इसी देश में सृष्टि आरम्भ हुई थी। इस देश के निवासी आर्य कहलाते थे। आर्य शब्द का अर्थ होता है- श्रेष्ठ। आर्य श्रेष्ठ पुरुष थे। वे ज्ञान-विज्ञान के ज्ञाता तथा कला-कौशल के विद्वान थे। भारत के लोगों ने ही समस्त संसार को ज्ञान सिखाया था। भारत ने दूसरे देशों में सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा दी थी। भारत को विश्व गुरु कहने का यही कारण है। भारत भूमि की प्राकृतिक सुषमा अद्वितीय थी। यह भूमि शस्य-श्यामला थी। यहाँ विविध ऋतुएँ समय पर आती और जाती थीं। तरह-तरह की वनस्पतियाँ इस देश में उत्पन्न होती थीं। ईश्वर ने अपनी समस्त विभूतियाँ सर्वप्रथम इसी देश को प्रदान की थीं।

प्राचीन भारत सुसंस्कृत और सभ्य तो था ही वह सम्पन्न भी था। यहाँ धन-धान्य का भण्डार था। लोग सुखी और समृद्ध थे। इस . कारण अनेक बर्बर जातियों की लूट-खसोट तथा हिंसा का सामना भारत को करना पड़ा था। प्राचीन भारत के निवासी सुसंस्कृत, सभ्य तथा शिक्षित थे, वे परोपकारी, दानी, स्नेही तथा सेवाभावी थे। इस प्रकार भारत का अतीत अत्यन्त गौरवपूर्ण था।

प्रश्न 5.
पाठ में आए निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) स्वयं सुसज्जित करके ……. कहकर जाते।
(ख) ‘भू-लोक का गौरव ……. भारतवर्ष ।
(ग) “यह पुण्य भूमि…….कुछ हैं खड़े।
उत्तर:
उपर्युक्त पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या पूर्व में ही दी जा चुकी है। ‘महत्वपूर्ण पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ’ शीर्षक देखिए।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित महाकाव्य है|
(क) साकेत
(ख) यशोधरा
(ग) कुरुक्षेत्र
(घ) कामायनी।
उत्तर:
(क) साकेत

प्रश्न 2.
‘यशोधरा’ शीर्षक काव्यांश में व्यक्त भाव है
(क) उपालम्भ
(ख) पीड़ा
(ग) उल्लास
(घ) गर्व।
उत्तर:
(ख) पीड़ा

प्रश्न 3.
भारत की श्रेष्ठता’ कविता संकलित है
(क) जयद्रथ वध में
(ख) साकेत में
(ग) द्वापर में
(घ) भारत-भारती में।
उत्तर:
(घ) भारत-भारती में।

प्रश्न 4.
गुप्त जी ने काव्य रचना की है
(क) ब्रजभाषा में
(ख) अवधी में
(ग) खड़ी बोली में
(घ) भोजपुरी में।
उत्तर:
(ग) खड़ी बोली में

प्रश्न 5.
प्राचीन भारत के निवासी थे
(क) अनार्य
(ख) आर्य
(ग) द्रविड़
(घ) संथाल
उत्तर:
(ख) आर्य

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित यशोधरा कैसा काव्य है ?
उत्तर:
‘यशोधरा’ गुप्त जी द्वारा रचित खण्डकाव्य है।

प्रश्न 2.
यशोधरा कौन थी ?
उत्तर:
यशोधरा गौतम बुद्ध की पत्नी थी।

प्रश्न 3.
“यशोधरा’ काव्य किस शैली की रचना है?
उत्तर:
‘यशोधरा’ गीतिशैली की रचना है।

प्रश्न 4.
यशोधरा क्यों कहती है-सखि, वे मुझसे कहकर जाते ?
उत्तर:
गौतम बुद्ध यशोधरा को बिना बताए घर से चले गए हैं। इससे वह पीड़ित है।

प्रश्न 5.
फिर भी क्या पूरा पहचाना’ किसने किसको पूरा नहीं पहचाना है?’
उत्तर:
गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी यशोधरा को पूरा नहीं पहचाना है।

प्रश्न 6.
क्षत्राणियाँ अपना धर्म कैसे निभाती हैं ?
उत्तर:
क्षत्राणियाँ युद्ध की अवस्था में अपने पति को स्वयं युद्ध के लिए सजाकर विदा करती हैं।

प्रश्न 7.
प्रियतम को प्राणों के पण में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 8.
गौतम बुद्ध ने गृह त्यागे क्यों किया है ?
उत्तर:
गौतम बुद्ध ने सिद्धि प्राप्त करने के लिए गृह त्याग किया है।

प्रश्न 9.
गौतम बुद्ध द्वारा यशोधरा को सोता छोड़कर जाने के पीछे क्या कारण है ?
उत्तर:
गौतम बुद्ध यशोधरा को जाते समय रोता नहीं देख सकते थे। उनको उस पर तरस आ रहा था।

प्रश्न 10.
यशोधरा की क्या मनोकामना है?
उत्तर:
यशोधरा की कामना है कि उसके पति को सिद्धि प्राप्त हो।

प्रश्न 11.
‘गये, लौट भी वे आयेंगे’ पंक्ति क्या भाव है ?
उत्तर:
गये, लौट भी वे आवेंगे, में यशोधरा की आशा व्यक्त हुई है कि उसके पति लौटकर आवेंगे।

प्रश्न 12.
“कुछ अपूर्व अनुपम लावेंगे’, पंक्ति में क्या संकेत है?
उत्तर:
इस पंक्ति में संकेत है कि गौतम बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हो जायेगा।

प्रश्न 13.
गौतम बुद्ध को चुपचाप अपनी पत्नी को छोड़कर जाना क्या आपको उचित लगता है ?
उत्तर:
गौतम बुद्ध ने विश्व कल्याण हेतु गृह त्याग किया था, अत: यह उचित है।

प्रश्न 14.
भारत की श्रेष्ठता’ कविता किस पुस्तक में संकलित है?
उत्तर:
भारत की श्रेष्ठता’ शीर्षक कविता गुप्त जी के ‘भारत-भारती’ नामक काव्य में संकलित है।

प्रश्न 15.
भारत की श्रेष्ठता’ कविता में किस भारतीय पर्वत तथा नदी का उल्लेख है?
उत्तर:
‘भारत की श्रेष्ठता’ कविता में हिमालय पर्वत तथा गंगा नदी का उल्लेख है।

प्रश्न 16.
भारत की श्रेष्ठता’ कविता की संवेदना क्या है ?
उत्तर:
‘भारत की श्रेष्ठता’ कविता की संवेदना राष्ट्रीयता की भावना है।

प्रश्न 17.
भारत की श्रेष्ठता’ में किसको भारत का निवासी बताया गया है ?
उत्तर:
‘भारत की श्रेष्ठता’ कविता में आर्यों को भारत का निवासी बताया गया है।

प्रश्न 18.
ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम सृष्टि रचना कहाँ की थी ?
उत्तर:
ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम सृष्टि रचना भारत में की थी।

प्रश्न 19.
क्या आप मानते हैं कि ऐसा पुरातन देश विश्व में क्या कोई और है ?
उत्तर:
हम मानते हैं कि ऐसा पुरातन देश विश्व में कोई और नहीं है। भारत अत्यन्त प्राचीन देश है।

प्रश्न 20.
आपकी दृष्टि में अन्तर्राष्ट्रीय तथा वसुधैव कुटुम्बकम् में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जिसको आज अन्तर्राष्ट्रीय कहते हैं वही विचार प्राचीन भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् के रूप में मान्य है। दोनों में कोई अन्तर नहीं है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में स्वदेश प्रेम, राष्ट्रीय भावना, भारतीय संस्कृति, भारत के अतीत तथा इतिहास आदि का चित्रण हुआ है। उनकी प्रसिद्ध काव्य-रचना भारत-भारती में भारतीयों को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण कराया गया है तथा उनमें उत्साह तथा स्वाधीनता के प्रति प्रेम का भाव जगाया गया है। इस सभी के कारण उनको राष्ट्र कवि का गौरव प्राप्त है।

प्रश्न 2.
मैथिलीशरण गुप्त के काव्य की विषय-वस्तु क्या है ?
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में भारत के अतीत गौरव का चित्रण हुआ है। आपका काव्य भारत की प्राचीन संस्कृति तथा पौराणिक कलाओं को नवीन स्वर देने वाला है। उसमें पौराणिक पात्रों को युगीन चेतना के अनुरूप नवीन स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। राष्ट्रीयता, स्वदेश-प्रेम, युगीन चेतना आदि आपके काव्य में व्यंजित हुए हैं।

प्रश्न 3.
“गुप्त जी में भारतीय संस्कृति की प्राचीनता के प्रति पुण्यभाव है तो नए परिवर्तन के प्रति तीव्र उत्साह है।” इस कथन पर अपना मत प्रगट कीजिए।
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में पुरातन तथा नवीन का समन्वय मिलता है। वह भारतीय संस्कृति की प्राचीनता का सम्मान करते हैं। किन्तु वर्तमान में हो रहे परिवर्तन के प्रति भी वह उत्साहित हैं। आपके काव्यों के कथानक तथा पात्र पौराणिक युग के हैं। किन्तु उनको वर्तमान युग के परिवर्तित स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। उनके राम, कैकेयी, उर्मिला आदि पात्रों के चरित्र पर वर्तमान की स्पष्ट छाप है।

प्रश्न 4.
‘यशोधरा’ काव्य की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. ‘यशोधरा’ एक खण्ड-काव्य है।
  2. ‘यशोधरा’ की कथावस्तु गौतम बुद्ध के गृह त्याग के पश्चात् उनकी पत्नी यशोधरा की वेदना से सम्बन्धित है।
  3. इस काव्य में वियोग श्रृंगार रस है।
  4. यह एक गीति काव्य है। इसकी रचना गीत छंद में हुई है।
  5. इसमें अनुप्रास, रूपक, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश आदि अलंकार आए हैं।
  6. काव्य में यशोधरा के सहज नारीगत संताप, आत्मग्लानि, वेदना के साथ वात्सल्य का प्रभावशाली अंकन हुआ है।

प्रश्न 5.
“यशोधरा’ के संकलित अंश की कथा संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
गौतम बुद्ध सिद्धि पाने के लिए गृहत्याग कर चले जाते हैं। यशोधरा इससे अत्यन्त दु:खी होती है। इस गीत में वह अपनी सखी से अपने मन की पीड़ा को व्यक्त करती है। उसके पति सिद्धि हेतु गए हैं, यह बात गौरवूपर्ण है। वह उसकी सफलता की कामना करती है। यदि वह उससे कहकर जाते तो क्या वह उनको रोकती ? क्षत्राणियाँ तो अपने प्रियतम को स्वयं सुसज्ज्ति करके रणभूमि के लिए विदा करती हैं। उसके पति उसे पहचान नहीं पाए। वह पुन: आयेंगे और सिद्धि प्राप्त करके लौटेंगे। किन्तु वह उससे कहकर जाते हैं तो उसे इतना कष्ट न होता।।

प्रश्न 6.
“कह तो क्या मुझको वे अपनी पथ बाधा ही पाते ?” यशोधरा द्वारा यह पूछने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
यशोधरा कह रही है कि उसके पति गौतम बुद्ध उसको बिना बताए चले गए हैं। वह सिद्धि हेतु गए हैं। सम्भवतः उन्होंने सोचा होगा कि यशोधरा उनको जाने से रोकेगी और उनके सिद्धि प्राप्त करने के मार्ग में बाधक बनेगी। लेकिन वह ऐसी नहीं है। उसने अपने पति की इच्छा के प्रतिकूल कभी कोई काम नहीं किया है। वह उनको जाने से नहीं रोकती।।

प्रश्न 7.
फिर भी क्या पूरा पहचाना?’ यशोधरा ने यह क्यों कहा है कि गौतम बुद्ध उसको पूरी तरह पहचान नहीं सके?
उत्तर:
गौतम बुद्ध के चोरी-चोरी यशोधरा से बिना कहे घर से जाने से यशोधरी को शंका होती है कि गौतम अपनी पत्नी को अच्छी तरह पहचान नहीं सके। उनको आशंका थी कि यदि वह यशोधरा को बताकर जायेंगे तो वह उनको जाने नहीं देगी। यशोधरा ऐसी नहीं है। वह अपने पति की इच्छा के अनुकूल चलने वाली है। वह सिद्धि पाने के लिए जाने वाले अपने स्वामी को कभी नहीं रोकती। किन्तु गौतम की चुपचाप जाना सिद्ध करता है कि वह अपनी पत्नी की भावना को जान नहीं सके।

प्रश्न 8.
क्षात्र धर्म क्या है ?
उत्तर:
युद्ध के आह्वान पर घर-परिवार छोड़कर देश की रक्षा के लिए उसमें कूद पड़ना, पत्नी-बच्चों और अपने जीवन की मोह त्याग देना तथा शत्रु का निर्भीक होकर साहस के साथ सामना करना क्षात्र धर्म है। क्षत्रिय स्त्रियों का धर्म यह है कि वे अपने पतियों को युद्ध के लिए सुसज्जित करके स्वयं विदा करें तथा उसके कर्तव्य का पालन से विमुख होने का कारण न बनें । कर्तव्यपालन में पति की सहायता करना ही क्षत्रिय नारी का धर्म है।

प्रश्न 9.
हुआ ने वह भी भाग्य अभागा’ -पंक्ति में यशोधरा ने स्वयं को अभागा कहा है। इसका क्या कारण है ?
उत्तर:
‘यशोधरा’ बता रही है कि पत्नी का कर्तव्य है कि वह अपने पति के कर्तव्यपालन में सहयोगिनी बने। वह उसको कर्तव्य पालन के लिए प्रेरित और उत्साहित करें। यदि उसके मन में कोई मोह है तो उससे उसको विरत करे। युद्ध भूमि के लिए अपने वीर पति को स्वयं विदा करना क्षत्राणी को धर्म है। यशोधरा के पति चुपचाप चले गए। वह सोती ही रह गई। उसको तो अपने पति को विदा करने का सौभाग्य भी प्राप्त न हो सका।

प्रश्न 10.
“गये, लौट भी वे आवेंगे। कुछ अपूर्व अनुपम लावेंगे” – इन पंक्तियों से यशोधरा की मनोदशा के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर:
अपने पति के चुपचाप घर से जाने के कारण यशोधरा का मन आत्मग्लानि तथा पीड़ा से भरा है, किन्तु उसमें आत्मविश्वास का अभाव नहीं है। उसको विश्वास है कि उसके पति को सिद्धि प्राप्त होगी। यह सिद्धि उनकी अनुपम और अपूर्व उपलब्धि होगी। इसके बाद वह पुनः आयेंगे तथा यशोधरा को उनके दर्शन की सौभाग्य प्राप्त होगा। यशोधरा के मन में स्थित प्रबल आवश्यक भावना का पता भी इन पंक्तियों से चलता है।

प्रश्न 11.
जिस प्रकार गौतम बुद्ध के गृह त्याग के बाद उनकी पत्नी यशोधरा के मन में अनेक भावनाएँ उत्पन्न हुईं, उसी तरह गौतम के मन में कुछ भावनाएँ उत्पन्न हुई होंगी। वे भावनाएँ क्या और कैसी होंगी, यह कल्पना के आधार पर बताइए।
उत्तर:
गौतम बुद्ध विचारशील और चिन्तक थे। वह भावुक भी थे। पहले भी वृद्ध रोगी और मृत मनुष्यों को देखकर वह भावनाओं में डूब चुके थे। वह लोक कल्याण के लिए सिद्धि पाना चाहते थे। वह गृहत्याग का निश्चय कर चुके थे। उनके मन में मोह और ममता नहीं रहे थे। जो विश्व कल्याण के लिए समर्पित हो वह परिवार की ममता में नहीं फंस सकता । गौतम के मन में भावनाएँ तो उठी होंगी किन्तु उनमें विश्व का हित ही रहा होगा। इस सार्वभौम कल्याण भाव में ही यशोधरा और राहुल का कल्याण भी सम्मिलित होगा।

प्रश्न 12.
भारत की श्रेष्ठता काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त की किस काव्य-रचना से उद्धृत है। इस काव्य की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
भारत की श्रेष्ठता काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध काव्य’ भारत-भारती’ से उद्धृत है। ‘भारत-भारती’ में गुप्त जी ने भारत के अतीत के गौरव, पुरातन भारतीय संस्कृति तथा पूर्वजों में महान् गुणों का वर्णन किया है। कवि ने पराधीनता तथा निराशा में डूबी भारतीय जनता को जगाया है। उसने उनको बताया है कि भारत ने ही विश्व को सभ्यता तथा ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दी थी। उनको अपने गौरवमय अतीत को स्मरण करनी चाहिए तथा स्वदेश के उत्कर्ष के लिए कार्य करना चाहिए। भारत-भारती राष्ट्रीयता की उद्घोषक रचना है।

प्रश्न 13.
आर्य कौन थे? गुप्त जी ने उनके सम्बन्ध में भारत की श्रेष्ठता’ कविता में क्या बताया है?
उत्तर:
आर्य भारत के निवासी तथा हमारे पूर्वज थे। वे विद्या कला-कौशल तथा ज्ञान-विज्ञान के ज्ञाता तथा विद्वान थे। उन्होंने समस्त संसार को ज्ञान दिया था। इस कारण भारत को विश्व का गुरु कहा जाता है। भारतीयों ने ही विश्व को सभ्यता और संस्कृति सिखाई थी। आर्य का अर्थ श्रेष्ठ होता है। हम अपने उन्हीं श्रेष्ठ पूर्वजों की सन्तान हैं। यद्यपि आज उनका पुरातन गौरव शेष नहीं है किन्तु उनकी उच्चता की कुछ पहचान आज भी बाकी है।

प्रश्न 14.
“विधि ने किया नर-सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है”- यह कहकर कवि भारत की किस विशेषता का वर्णन करना चाहता है ?
उत्तर:
भारत विश्व की प्राचीनतम देश है। ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम भारत-भूमि पर ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। इसकी शस्यश्यामला भूमि पर ही जीवों की उत्पत्ति सर्वप्रथम हुई थी और भूमि को माता होने का गौरव प्राप्त हुआ था। उसके पश्चात् ही समस्त विश्व में सृष्टि का विस्तार हुआ। हमारा पुरातने देश भारत ही विश्व के देशों का सिरमौर है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“भारत की श्रेष्ठता” कविता में गुप्त जी ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर:
भारत की श्रेष्ठता” कविता में मैथिलीशरण गुप्त ने भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन किया है। उसने बताया है कि भारत ही विश्व का वह देश है जहाँ सर्वप्रथम सृष्टि आरम्भ हुई तथा यहाँ से ही समस्त विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला। समस्त संसार को ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल तथा सभ्यता-संस्कृति सिखाने वाला देश भारत ही है। गुप्त जी का संदेश है कि भारतीयों को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करना चाहिए तथा निराशा और उत्साहहीनता त्यागकर देशोत्थान के कार्य में जुट जाना चाहिए। हमें स्वदेश प्रेम करना चाहिए तथा राष्ट्र को उन्नति के शिखर पर पहुँचाना चाहिए।

प्रश्न 2.
“गुप्त जी को भारतीय सांस्कृतिक नव-जागरण काल का कवि कहा जाता है”-उदाहरण देकर इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के कवि हैं। उस समय भारत में गाँधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आन्दोलन चल रहा था। इसका प्रभाव राजनीति तक ही सीमित न था, वह भारत के समाज को भी प्रभावित कर रहा था, भारत के लेखक और कवि अपने साहित्य द्वारा लोगों को भारत की पुरातन संस्कृति से परिचित करा रहे थे तथा उनको अज्ञान निद्रा से दूर कर उनको जगा रहे थे। ऐसे कवियों में मैथिलीशरण गुप्त का प्रमुख स्थान है। उनके काव्य का भाव पक्ष सांस्कृतिक नवजागरण को संदेश देने वाला है। भारतीय संस्कृति और देशप्रेम गुप्त जी के काव्य के प्रमुख तत्व हैं। भारत की श्रेष्ठ पुरातन संस्कृति के वर्णन के साथ ही स्वदेश प्रेम की भावना उनके काव्य में पाई जाती है, जिसको स्वदेश से प्रेम नहीं है। कवि उसको मनुष्य मानने को तैयार नहीं है।

जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है।
वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान है।

मानवतावाद की स्थापना गुप्त जी के साथ की अन्य विशेषता है। यह भी नवजागरण का एक लक्षण है। कवि का कहना है वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे’। समाज में प्रचलित बुराइयों को मिटाकर मनुष्य-मुनष्य के बीच के भेद-भाव मिटाकर तथा समाज में उच्चादर्शों और प्रेम का प्रसार, करके ही इस संसार को उन्नत बनाया जा सकता है। ‘साकेत’ में गुप्त जी के राम कहते हैं

संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया।
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।

प्रश्न 3.
“यशोधरा’ काव्य के आधार पर यशोधरा के मन में आने वाले विचारों तथा भावों को शब्दबद्ध कीजिए।
अथवा
गौतम बुद्ध के गृह त्याग के कारण हुई यशोधरा की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यशोधरा’ शीर्षक में संकलित अंश की प्रमुख पात्र यशोधरा है। वह सिद्धार्थ की पत्नी है। सिद्धार्थ सिद्धि प्राप्त करने के लिए गृह त्याग कर चले गए हैं। वह रात में यशोधरा को सोती हुई छोड़कर उसको बिना बताए ही चले गए हैं। यह बात यशोधरा के मन को अत्यन्त दु:ख दे रही है। इस गीत में यशोधरा के मन की यह पीड़ा व्यक्त हुई है। अत: खण्डकाव्य का यह गीत अत्यन्त करुण तथा मर्मस्पर्शी है।

यशोधरा अपने मन की पीड़ा को अपनी सखी से बताती है उसके पति उसको छोड़कर सिद्धि पाने गए हैं। यह जानकर उसका मन गर्व से भर उठता है किन्तु उनका चोरी-चोरी उसको बिना बताए चले जाना उसको बहुत पीड़ा पहुँचा रहा है। यदि वे उससे कहकर जाते। तो क्या वह उनको जाने से रोकती, उसने तो सदैव वही काम किया जो उसके पति को अच्छा लगता था। उनकी अवज्ञा करने का तो वह विचार भी नहीं कर सकती थी।

ऐसा लगता है कि उसको बहुत मान देकर भी उसके पति उसके मन को पढ़ नहीं पाये, अन्यथा वह चुपके-चुपके नहीं जाते। वह क्षत्राणी है। क्षत्रिय-नारियाँ अपने पति को युद्ध के लिए प्रसन्नता के साथ विदा करती हैं, फिर वह उनको सिद्धि हेतु जाने से क्यों रोकती। उसका दुर्भाग्य है कि किसी श्रेष्ठ लक्ष्य को पाने के लिए घर से जाने वाले अपने पति को वह खुशी-खुशी विदा भी नहीं कर सकी। यशोधरा को आशा है कि उसके पति सिद्धि प्राप्त करने में सफल होंगे, उसके पश्चात् वह लौटेंगे और यशोधरा को उनसे मिलने का अवसर मिलेगा। वह आयेंगे तो सिद्ध पाने के गौरव से सुशोभित होंगे। यह यशोधरा के लिए भी आनन्ददायक होगा। ‘यशोधरा’ काव्यांश में हम देखते हैं कि उसके मन की ग्लानि, वेदना, विरह-पीड़ा, आत्मसंतोष तथा आशा की भावना आदि का भव्य चित्रण हुआ है।

प्रश्न 4.
“यशोधरा’ काव्य की कला-पक्षीय विशेषताओं का परिचय दीजिए।
उत्तर:
‘यशोधरा’ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित काव्य है। उसकी कलापक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
भाषा – ‘यशोधरा’ की भाषा सरल तथा सरस है। वह साहित्यिक खड़ी बोली है, भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है। उसमें कथा को स्पष्ट करने की सामर्थ्य है।
शैली – कवि ने ‘यशोधरा’ की रचना गीतिशैली में की है। यह एक खण्डकाव्य है। इसमें प्रमुख पात्र यशोधरा की अपने पति द्वारा गृह त्याग से उत्पन्न मनोदशा का चित्रण हुआ है। शैली वर्णनात्मक तथा इतिवृत्तात्मक है। उसमें अनुप्रास, रूपक, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश इत्यादि अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है। उक्ति वैचित्र्य का भी प्रयोग है।
छंद – गीत छंद है, जो तुकान्त है। गीत की प्रमुख पंक्ति जिसे टेक कहते हैं। ‘सखि वे मुझसे कहकर जाते है। प्रत्येक चरण के पश्चात् इसको दोहराया गया है।
कला – पक्ष की दृष्टि से ‘यशोधरा’ एक सफल रचना है।

कवि – परिचय :

प्रश्न 1.
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन-परिचय देकर उनके साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगंव, जिला झाँसी उत्तर प्रदेश में 3 अगस्त, सन् 1886 ई. को हुआ था। आपके पिता श्री रामचरण थे। वह काव्यप्रेमी थे। वे ब्रजभाषा में कविताएँ लिखते थे। गुप्तजी पर बचपन से ही पारिवारिक वातावरण का प्रभाव पड़ा और वह कविता लिखने लगे। आरम्भ में आपकी कविताएँ “वैश्योपकारक” नामक पत्रिका में छपती थीं। बाद में आप महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आए और ‘सरस्वती’ में लिखना आरम्भ किया। उन्हीं की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली में काव्य रचना आरम्भ की। आपकी काव्य रचना ‘भारत-भारती ने आपको राष्ट्रकवि के पद पर प्रतिष्ठित कराया। काव्य रचना करने के साथ ही आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया तथा जेल यात्रा भी की। भारत सरकार ने आपकी साहित्य सेवा को देखकर आपको राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया। 12 दिसम्बर, सन् 1964 को आपका देहावसान हुआ।

साहित्यिक परिचय – गुप्त जी द्विवेदी युग के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। आपकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, स्वदेश प्रेम तथा भारतीय संस्कृति का वर्णन मिलता है। गुप्त जी ने भारत के अतीत कालीन गौरव का भव्य चित्रण किया है। किन्तु वह युग के परिवर्तन के विरोधी नहीं हैं। उनके काव्य में धर्मान्धता तथा साम्प्रदायिकता के विरोध तथा राष्ट्रीय एकता की प्रबल भावना मिलती है। द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली में काव्य रचना करके उसको काव्ये- भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया है। युग के अनुरूप प्राचीन पौराणिक कथाओं तथा पात्रों को आपने नवीन स्वरूप प्रदान किया है। उर्मिला, कैकयी, यशोधरा आदि नारी पात्रों पर युगीन प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। उनका चरित्र मनोवैज्ञानिक आधार पर चित्रित किया गया है। आपको हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य वाचस्पति की उपाधि प्राप्त हुई। आपके महाकाव्य ‘साकेत’ पर आपको ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

गुप्त जी के काव्य में राष्ट्रीयता की भावना प्रमुख रूप में पाई जाती है। उसमें प्रकृति के सौन्दर्य का भव्य चित्रण भी मिलता है। आपने सामाजिक, पौराणिक तथा ऐतिहासिक विषयों को एक नवीन दृष्टि से देखा है। गुप्त जी की भाषा सरल-सरस तथा साहित्यिक खड़ी बोली है। उसमें लाक्षणिकता है। उनकी शैली वर्णनात्मक तथा इतिवृत्तात्मक है। उसमें आलंकारिकता तथा उक्ति वैचित्र्य है। आपने प्राचीन छन्दों में भी रचना की है। अनुप्रास, श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि आपके प्रिय अलंकार हैं।

कृतियाँ – 64 वर्ष की साहित्य सेवा में गुप्त जी ने लगभग 42 रचनाएँ हिन्दी को भेंट की हैं। कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
‘साकेत’, “जय भारत’ (महाकाव्य), ‘जयद्रथ वध’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘सिद्धराज’ ‘पंचवटी’ (खण्डकाव्य) आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
इनके अतिरिक्त ‘अनघ’, ‘झंकार’, ‘पृथ्वी पुत्र’ ‘गुरुकुल’, ‘विष्णु प्रिया’ इत्यादि की रचना भी आपने की है।
‘भारत-भारती’, आपके राष्ट्र प्रेम की संदेशवाहक रचना है।

पाठ – परिचय :

यशोधरा – प्रस्तुत काव्यांश यशोधरा मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध खण्डकाव्य ‘यशोधरा’ से संकलित है। कवि ने इसमें गीति शैली को अपनाकर गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की मनोभावना को प्रस्तुत किया है। गौतम बुद्ध अपनी-पत्नी यशोधरा तथा पुत्र राहुल को सोता हुआ छोड़कर घर से चले गए हैं। प्रात:काल उनको न पाकर यशोधरी अत्यन्त दु:खी होती है। वह अपनी सखी को सम्बोधित करके कहती है कि हे सखि, उनको मुझसे कहकर गृह त्याग करना चाहिए था। मैं उनको जाने से नहीं रोकती। वह संसार के हित के लिए सिद्धि पाने गए हैं, यह बात गौरवपूर्ण है परन्तु उनको चोरी-चोरी जाना मुझे दु:ख दे रहा है।

वह मुझे पहचान ही नहीं सके मैं तो सदा उनके मन के अनुकूल चलती थी। मैं क्षत्रिय नारी हूँ, जो अपने पति को अपने हाथों से सजाकर युद्ध भूमि में भेजती हैं। दुर्भाग्य से मुझे यह अवसर भी नहीं मिला। वह मुझे अपने विरह से पीड़ित नहीं देख सकते थे। अत: तरस खाकर चुपचाप चले गए हैं। उनसे मुझे कोई शिकायत नहीं है। वे सफल हों और सुखी रहें, मेरी यही कामना है। अब वह मुझको पहले से भी अधिक प्रिय लग रहे हैं। मुझे विश्वास है कि वह अपूर्व उपलब्धियाँ पाकर पुनः आयेंगे और मेरा उनसे पुनः मिलन होगा।

भारत की श्रेष्ठता – ‘भारत की श्रेष्ठता काव्यांश राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध काव्य ‘भारत – भारती’ से लिया गया है। ‘भारत-भारती’ गुप्त जी की राष्ट्रीय भावों से पूर्ण रचना है। भारत ऋषि-मुनियों की पावन-भूमि है। इसका प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। भारतवर्ष संसार के समस्त देशों का सिरमौर है। यह विश्व का सबसे पुराना देश है। ईश्वर ने इसी भूमि पर सृष्टि का शुभारम्भ किया है। इस पावन भूमि के निवासी आर्य विविध कलाओं तथा विधा में पारंगत थे, उनकी सन्तान आज पतित हो रही है। किन्तु उनकी श्रेष्ठता के लक्षण अभी भी विद्यमान हैं।

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ यशोधरा

1. सिद्धि-हेतु स्वामी गये, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गये, यही बड़ा व्याघात।।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते
मुझको बहुत उन्होंने माना,
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना,
जो वे मन में लाते। सखि,
वे मुझसे कहकर जाते।

शब्दार्थ – सिद्ध-हेतु = सफलता पाने के लिए। व्याघात = चोट, पीड़ा।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक से संकलित ‘यशोधरा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्र-कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा तथा पुत्र राहुल को रात में सोता छोड़कर चुपचाप तपस्या करने के लिए घर से चले गए है। उनका इस प्रकार जाना यशोधरा को बहुत पीड़ा देता है। वह अपने कष्ट की बात अपनी सहेली को बता रही है।

व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे पति तपस्या में सफलता पाने के लिए मुझे छोड़कर चले गए हैं। यह बात मुझे गौरव प्रदान करने वाली है, किन्तु वह मुझको बिना बताये चुपचाप चले गए, यह बात मुझे अत्यन्त चोट पहुँचा रही है। हे सखि, यदि वे मुझसे बताकर जाते तो मुझे इतना कष्ट न होता । तू ही बता, यदि वे मुझको बता देते तो क्या उनको सिद्धि के लिए जाने से रोकती ? मैं जानती । हैं कि उन्होंने मुझको बहुत माना है, किन्तु तब भी वह मुझे पूरी तरह पहचान नहीं पाए। मैंने कभी उनकी उपेक्षा नहीं की। जो बात उनको ठीक लगती थी, मैंने सदैव उसको ही अपनाया तथा महत्वपूर्ण माना। परन्तु वह मुझको बिना बताए ही चले गए। यदि वे मुझसे कहकर जाते तो मुझे इतनी पीड़ा न होती।

विशेष –

  1. उपर्युक्त पंक्तियों में यशोधरा की मार्मिक व्यथा का चित्रण हुआ है।
  2. यशोधरा सिद्धार्थ को बहुत चाहती है, उनका चुपचाप जाना उसको पीड़ा पहुँचा रहा है।
  3. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार हैं। गीतिकाव्य शैली है।
  4. भाषा सरल, सरस खड़ी बोली है।

2. स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण मेंक्षात्र धर्म के नाते।।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
हुआ न वह भी भाग्य अभागा,
किस पर विफल गर्व अब जागा ?
जिसने अपनाया था, त्यागा।
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

शब्दार्थ – प्राणों का पण = जीवन का बाजार अर्थात् युद्ध भूमि। रण = युद्ध। क्षात्र-धर्म = क्षत्रिय का कर्तव्य।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “यशोधरा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। यशोधरा को पीड़ा इस बात की है कि उसके पति सिद्धार्थ ने उसको गृह-त्याग के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं बताया । यदि वह उसको बताकर जाते तो वह उनको जाने के लिए स्वयं ही कह देती।

व्याख्या – यशोधरा ने अपनी सखी से कहा-हम क्षत्राणियाँ हैं। जब स्वदेश की रक्षा के लिए युद्ध का आह्वान होता है, तो हम स्वयं अपने प्रिय पतियों को अस्त्र-शस्त्र से सजाकर युद्ध भूमि के लिए विदा करती हैं। उसमें थोड़ा भी विलम्ब नहीं होता। युद्ध भूमि में प्राणों का बाजार सजा होता है। किन्तु हम क्षत्रिय नारियों का जो कर्तव्य है, उसके पालन में देर नहीं करर्ती। काश ! वह मुझसे कहकर जाते। मुझे उन्होंने यह सौभाग्य भी प्रदान नहीं किया। मुझे तो अपने क्षत्राणी-धर्म के पालन करने पर गर्व करने की अवस्था भी प्राप्त नहीं हुई। कभी जिसने मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में अपनाया था, अब उसने ही मुझको त्याग दिया है। अब तो मेरी यही कामना है कि वह मुझको याद आते रहें। हे सखि, यदि वे मुझसे बताकर जाते तो मुझे इतना दु:ख न होता।

विशेष –

  1. कवि ने यशोधरा की मार्मिक व्यथा का सजीव चित्रण किया है।
  2. वियोग शृंगार रस है। अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  3. गीति शैली है।
  4. भाषा संरल, सरस तथा विषयानुकूल है।

3. नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते। सखि,
वे मुझसे कहकर जाते।

शब्दार्थ – निष्ठुर = दयाहीन, निर्दय। सदय = दयालु।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘यशोधरा’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं। यशोधरा के पति सिद्धार्थ गृह त्याग कर चले गए हैं। इससे दुःखी यशोधरा अपनी सखी से अपने संताप की चर्चा कर रही है। अपने पति को उसको बिना बताए चुपचाप चले जाना आहत कर रहा है।

व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे नेत्र कहते हैं कि मेरे पति निर्दय हैं तभी तो वह बिना बताए चुपचाप चले गए हैं। किन्तु यह बात सच नहीं है वह अत्यन्त दयालु हैं। यदि वह मुझे बताकर घर से जाते तो मेरी आँखों से दु:ख के कारण आँसू बहने लगते। उन आँसुओं को दयालु हृदय वाले मेरे वह प्रियतम सहन नहीं कर पाते। मुझ पर तरस खाकर ही उन्होंने मझे कुछ नहीं बताया और वह चुपचाप चले गए। काश ! वह मुझ से कहकर वन के लिए प्रस्थान करते।

विशेष –

  1. गीति छन्द है।
  2. वियोग श्रृंगार रस है मानवीकरण अलंकार है।
  3. सरल, सरस तथा प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है।
  4. यशोधरा को प्रतीत होता है कि चुपचाप जाकर भी सिद्धार्थ ने उस पर दया ही प्रदर्शित की है।

4. जाएँ, सिद्ध पावें वे सुख से,
दुःखी न हों इस जन के दुःख से
उपालम्भ हूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते !
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे ?
रोते प्राण उन्हें पावेंगे?
पर क्या गाते-गाते,
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

शब्दार्थ – सिद्धि = सफलता। इस जन = यशोधरा। उपालम्भ = उलाहना। भाते = अच्छे लगते हैं।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘यशोधरा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।
प्रसंग – यशोधरा अपने पति सिद्धार्थ के घर छोड़ जाने के कारण ब्रहुत दु:खी है। वह अपनी सखी से अपने मन के दु:ख के बारे में बातें कर रही है। उसको आशा है कि भविष्य में कभी उसके पति उसको अवश्य दर्शन देंगे।

व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे पति चले जाएँ, मैं उनको नहीं रोकेंगी। वह सुख पावें और अपने लक्ष्य को पाने में सफल हों वह मेरे बारे में सोचकर अपने मन में दुःखी नहीं हों। मैं उनसे कोई उलाहना नहीं दे रही। मुझे तो आज वह पहले से भी अधिक प्रिय लगते हैं, अच्छा होता वह मुझसे कहकर जाते। वह चले तो गए हैं, किन्तु मुझे विश्वास है कि वह पुनः आयेंगे। जब वह आयेंगे तो अपने साथ अपनी अनोखी उपलब्धि, अपनी सिद्धि भी लायेंगे। आज मैं उनके विरह में आँसू बहा रही हैं किन्तु उनसे मिलकर मेरा कष्ट मिट जायेगा और मैं गा-गाकर उनका स्वागत-सत्कार करूंगी। हे सखि, यदि वह मुझसे कहकर जाते तो कितना अच्छा होता ।

विशेष –

  1. यशोधरा के विरह का मार्मिक चित्रण कवि ने किया है।
  2. विरह शृंगार रस है। पुनरुक्ति तथा अनुप्रास अलंकार हैं।
  3. गीतिकाव्य है।
  4. भाषा सरल, सरस तथा विषयानुरूप है। भारत की श्रेष्ठता

1. भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहाँ ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल जहाँ ।।
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश को उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।।

शब्दार्थ – भू-लोक = धरती । पुण्य = पवित्र। लीलास्थल = क्रीड़ाभूमि। गिरि = पर्वत । उत्कर्ष = उत्थान।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित “भारत की श्रेष्ठता’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। गुप्त जी ने भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन करते हुए उसे संसार का सर्वश्रेष्ठ देश बताया है। भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है।

व्याख्या – कवि पूछता है कि इस पृथ्वी का गौरव कौन-सा देश है? प्रकृति की पवित्र क्रीड़ा भूमि कौन-सी है। सुन्दर पर्वत हिमालय कहाँ स्थित है तथा गंगा कहाँ प्रवाहित होती है ? वह कौन-सा देश है। जो संसार के सभी देशों में सर्वाधिक उन्नत है ? ऋषि-मुनियों का पावन स्थल कौन-सा है ? कवि स्वयं उत्तर देता है कि उस देश को भारतवर्ष कहते हैं।

विशेष –

  1. इन पंक्तियों में भारत की महिमा का वर्णन है।।
  2. कवि का उद्देश्य भारतवासियों के मन में स्वदेश के प्रति प्रेम और सम्मान पैदा करना है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. भाषा प्रवाहपूर्ण साहित्यिक खड़ी बोली है।
  5. ये पंक्तियाँ गुप्त जी की श्रेष्ठ काव्य-रचना ‘भारत भारती’ से ली गई हैं।

2. हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है?
भगवान की भव-भूतियों का यह प्रथम भण्डार है।
विधि ने किया नर-सृष्टि का पहले यहीं विस्तार है।

शब्दार्थ – वृद्ध = बूढ़ा, प्राचीन । सिरमौर = सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च । पुरातन = पुराना। और = अन्य, दूसरा। भव-भूति = सांसारिक वैभव । भण्डार = संग्रह। विधि = ब्रह्मा । नर-सृष्टि = जीवों का जन्म।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कविता भारत की श्रेष्ठता से उद्धृत है। यह मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध रचना ‘भारत-भारती’ का एक अंश है।
प्रसंग – कवि ने भारत के अतीत-गौरव का वर्णन किया है। भारत विश्व का सर्वश्रेष्ठ देश है। वह ऋषियों की भूमि है तथा प्रकृति का क्रीड़ास्थल है।

व्याख्या – कवि कहता है कि भारत विश्व का सर्वाधिक प्राचीन देश है। यह समस्त देशों में सर्वश्रेष्ठ है। भारत के समान प्राचीन देश संसार में कोई नहीं है। ईश्वर का जितना सांसारिक वैभव है, उस सबका संग्रहालय भारत ही है अर्थात् भारत में सृष्टि की सर्वोत्तम चीजें पाई जाती है। ब्रह्मा ने जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति को कार्य सर्वप्रथम भारतवर्ष में किया था। तात्पर्य यह है कि सृष्टि का आरम्भ भारतवर्ष से ही हुआ था।

विशेष –

  1. भारत के अतीत गौरव का वर्णन है।
  2. प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्र-भावना से ओत-प्रोत हैं।
  3. भाष सरल, विषयानुकूल तथा प्रवाहपूर्ण है।
  4. अनुप्रास अलंकार वीर रस है।।

3. यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है इसके निवासी ‘आर्य’ हैं,
विद्या, कला-कौशल सभी के जो प्रथम आचार्य हैं।
सन्तान उनकी आज यद्यपि हम अधोगति में पड़े।
पर चिह्न उनकी उच्चता के आज भी कुछ हैं खड़े।।

शब्दार्थ – पुण्यभूमि = पवित्र स्थान। आर्य = श्रेष्ठ, एक जाति। आचार्य = शिक्षक। अधोगति = पतन। उच्चता = ऊँचापन।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘भारत की श्रेष्ठता’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। गुप्त जी भारत के अतीत कालीन गौरव के गायक हैं। भारत संसार का प्राचीनतम तथा श्रेष्ठतम देश है। यहाँ के निवासी विद्वान तथा कला-कौशल में दक्ष थे।

व्याख्या – कवि कहता है कि भारत संसार का प्रसिद्ध पावन स्थल है। इस देश के रहने वाले आर्य कहलाते हैं। आर्य श्रेष्ठ मनुष्य को कहते हैं। वे महान् विद्वान थे तथा अनेक विधाओं और कलाओं के शिक्षक थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही संसार को सुशिक्षित बनाया था तथा कला-कौशल की शिक्षा दी थी। हम उन्हीं आर्यों की संतान हैं। यद्यपि आज हमारा पतन हो गया, किन्तु अब भी उनकी श्रेष्ठता और ऊँचेपन की अनेक पहचान संसार में बाकी हैं।

विशेष –

  1. यह कविता ‘ भारत भारती’ से ली गई है।
  2. कवि ने भारत तथा उसके निवासियों की श्रेष्ठता का वर्णन किया है।
  3. भाषा सरल है तथा भावों की व्यंजना में समर्थ है।
  4. अनुप्रास अलंकार व वीर रस है।

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