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RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

August 7, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

RBSE  Class 12 Home Science Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) शिशु के जन्म के बाद 1 वर्ष तक की अवस्था को कहते हैं –
(अ) बाल्यावस्था
(ब) युवावस्था
(स) शैशवावस्था
(द) गर्भावस्था
उत्तर:
(स) शैशवावस्था

(ii) एक स्वस्थ शिशु की लम्बाई जन्म के समय कितनी होती है?
(अ) 50 – 55 सेमी.
(ब) 30 – 40 सेमी.
(स) 42 – 45 सेमी.
(द) 55 – 60 सेमी.
उत्तर:
(अ) 50 – 55 सेमी.

(iii) जन्म के समय शिशु के शरीर में पानी की मात्रा वसा से होती है –
(अ) कम
(ब) ज्यादा
(स) बराबर
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) ज्यादा

(iv) प्रथम 6 माह में शिशु को प्राटीन की आवश्यकता होती है –
(अ) 1.16 ग्रा. / किलो शरीर भार
(ब) 2.5 ग्रा. / किलो शरीर भार
(स) 2.0 ग्रा. / किलो शरीर भार
(द) 1.0 ग्रा. / किलो शरीर भार
उत्तर:
(अ) 1.16 ग्रा. / किलो शरीर भार

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

(v) स्तनपान छुड़ाने के लिए दिये जाने वाले आहार कहलाते हैं –
(अ) स्तन त्याग आहार
(ब) पूरक आहार
(स) परिपूरक आहार
(द) ये सभी
उत्तर:
(अ) स्तन त्याग आहार

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. नवजात की हृदय गति………होती है।
2. जन्म के समय शिशु के रक्त में हीमोग्लोबिन की सान्द्रतो………तक होती है।
3. 0 -12 माह के शिशु को………कैल्सियम की आवश्यकता होती है।
4. शिशु के जन्म के तुरन्त बाद माँ के स्तनों का पहला स्रवण………कहलाता है।
5. कोलस्ट्रम में प्रोटीन की मात्रा परिपक्व दूध से……..पायी जाती है।
6. पशु दूध में………एवं………की सान्द्रता बहुत अधिक होती है, जबकि………की कम।
7. ………से तात्पर्य शिशु को घड़ी के अनुसार स्तनपान करना है।
उत्तर:
1. 120-140 / मिनट
2. 17-20 ग्राम / 100 मिलि.
3. 500 मि.ग्राम
4. कोलस्ट्रम
5. अधिक
6. प्रोटीन, खनिज लवणों, लैक्टोज
7. लैक्टोज
8. समयानुसार स्तनपान।

प्रश्न 3.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
1. माँग स्तनपान
2. कोलस्ट्रम
3. पूरक आहार।
उत्तर:
1. माँग स्तनपान:
शिशु की माँग अर्थात् जब भूखा होने पर शिशु रोता है तो उसे स्तनपान करानां माँग स्तनपान कहलाता है। जब जब शिशु रोता है तो उसे स्तनपान करा दिया जाता है। यदि शिशु भूख के कारण के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से रोता है जैसे—कान दर्द, पेट में दर्द, बिस्तर गीला होना आदि कारणों से माँ को इसका पता नहीं चल पाता है। ऐसी स्थिति में स्तनपान कराने में कठिनाई आती है।

2. कोलस्ट्रम:
माँ के स्तनों का प्रथम स्रवण शिशु के जन्म के बाद होता है। स्रवण द्वारा निकला द्रव्य पीले रंग का गाढ़ा क्षारीय द्रव्य होता है जिसमें भरपूर प्रोटीन एवं प्रतिरक्षी पदार्थ होते हैं, यह द्रव्य शिशुओं को सम्पूर्ण जीवनभर रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। इसे खीस यो “कोलस्ट्रम’ कहते हैं। माँ के स्तनों से कोलस्ट्रम का स्राव प्रारंभिक 2 – 3 दिनों तक लगभग 10 – 40 मिली. तक होता है। इसके बाद यह द्रव्य श्वेत रंग के पतले दूध में बदलने लगता है। 10 दिनों के बाद पूर्ण परिपक्व दूध स्रावित होने लगता है। कोलस्ट्रम को कभी भी तुच्छ, गंदा स्राव समझकर फेंकना नहीं चाहिए इसे नवजात शिशु का अवश्य पिलाना चाहिए।

कोलस्ट्रम में प्रोटीन तो अधिक मात्रा में पायी जाती है परन्तु वसा की मात्रा परिपक्व दूध से कम होती है। इसमें विटामिन ‘A’ तथा ‘E’ भी भरपूर मात्रा में होते हैं। जिंक की मात्रा कोलस्ट्रम में 20 मिग्रा / लीटर होती है, जबकि परिपक्व दूध में यह मात्रा 2.6 मिग्रा/लीटर पायी जाती है। कोलस्ट्रम शिशु की अपरिपक्व आहारनाल के अनुकूल सुपाच्य होता है तथा शिशु के प्रथम बार मल त्याग में सहायक होता है। कोलस्ट्रम के बाद स्रावित होने वाला दूध शिशु की सभी पोषणिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाला होता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

3. पूरक आहार:
शिशु को पूरक आहार देना एक क्रमिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक शिशु पूर्णरूप से दुग्ध आहार के स्थान पर विविधता पूर्ण पारिवारिक भोज्य पदार्थ लेने लगता है। इस समय शिशु दूध के स्थान पर घर में बनने वाले अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों को लेना प्रारम्भ कर देता है। पूरक आहार के रूप में शिशु को पूर्ण रूप से तरल भोज्य पदार्थ जैसे – फलों का रस, दाल का पानी, दूध आदि से प्रारम्भ करके धीरे – धीरे अर्द्ध ठोस भोज्य जैसे – सूजी की खीर, पतली खिचड़ी एवं दलिया, मुलायम भोज्य जैसे – मसाल हुआ केला, उबला आलू, मसले हुए दाल चावल, दाल / सब्जी में मसली रोटी तथा पूर्ण ठोस भोज्य पदार्थ; जैसे – चपाती, बिस्कुट, मठरी, टोस्ट व सेब आदि दिये जा सकते हैं।

एक वर्ष का होते – होते शिशु घर में बने सभी प्रकार के भोज्य पदार्थों को खाना प्रारम्भ कर देता है। 6 माह के शिशु को 2 – 2 घंटे के अन्तर पर बारीबारी से स्तनपान तथा पूरक आहार देना चाहिए। धीरे – धीरे समय अन्तराल बढ़ाकर 12 माह के शिशु को 3 – 4 घंटों के बाद स्तनपान व पूरक आहार देना चाहिए। पूरक आहार में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व होने चाहिए।

प्रश्न 4.
छ: माह के शिशु के लिये एक दिन की आहार तालिका बनाइये।
उत्तर:
छ: माह के शिशु के लिए एक दिन का आहार – आयोजन
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं - 1

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

प्रश्न 5.
शिशु के जीवन में पौष्टिक आहार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
शिशु के जन्म के बाद 1 वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था कहते हैं। जन्म के 1 माह बाद वह शिशु कहलाता है। शिशु को ऊर्जा की आवश्यकता वयस्क से प्रति यूनिट शारीरिक भार अधिकतम होती है। जन्म के बाद प्रथम 6 माह में ऊर्जा की आवश्यकता अधिकतम 92 किलो कैलोरी / किलोग्राम शरीर भार है जोकि 6 माह बाद कम होकर 80 किलो कैलोरी / किलोग्राम शरीर भरि रह जाती है। शिशु को यह ऊर्जा माँ के दूध में तथा पूरक आहार में उपस्थित प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त होती है।

शिशु के पौष्टिक आहार में प्रोटीन की आवश्यकता एक सामान्य व्यक्ति से अधिक होती है। शिशु के लिये पौष्टिक आहार में इसकी प्रमुखता इसलिये रखी जाती है जिससे शिशु का शारीरिक भार बढ़ सके, माँसपेशियों में वृद्धि हो सके, मस्तिष्क का विकास तथा हड्डियों की लम्बाई व चौड़ाई बढ़ सके। शिशु के लिये वसा की आवश्यकता विकास के लिये होती है। शिशु को यह मात्रा दूध से प्राप्त हो जाती है।

शिशु के उचित पोषण के लिये लिनोलिक अम्ल की अधिक आवश्यकता होती है जोकि माता के दूध में पाया जाता है। माता के दूध में आवश्यक खनिज लवण पाये जाते हैं। कैल्सियम तथा फास्फोरस शिशु में अस्थियों तथा दाँतों का निर्माण करते हैं। लौह लवण को छोड़कर सभी खनिज लवणों की आवश्यकता की पूर्ति शिशु का माता के दूध से हो जाती है।

माता के दूध में सभी प्रकार के विटामिन्स पाये जाते हैं। शिशु सभी विटामिनों को माता के दूध से प्राप्त कर लेता है। हड्डियों का विकास विटामिन ‘D’ से होता है। नवजात शिशु को जितना लाभदायक एवं पौष्टिक माता का दूध सिद्ध होता है, उतनी संसार की कोई दूसरी वस्तु नहीं हो सकती। शिशुओं को 6 माह तक केवल माता का दूध ही देना चाहिए अन्य कोई पदार्थ नहीं देना चाहिए चाहे वह फलों का जूस, चाय या केवल पानी ही क्यों नहीं। शिशु को पौष्टिक आहार के रूप में 6 माह के बाद पूरक आहार दिया जा सकता है।

क्योंकि 6 माह तक माता का दूध ही शिशु की सभी पौष्टिक तत्वों की पूर्ति कर देता है। शिशुओं को उसकी पोषणिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सभी भोज्य समूहों में से विविध भोज्य पदार्थ संतुलित आहार के अनुसार देने चाहिए। जिससे उसकी वृद्धि व विकास समुचित ढंग से हो सके। आहार शिशु के विकास का ध्यान में रखते हुए पर्याप्त मात्रा में और पोषक तत्त्वों से युक्त होना चाहिए। ऊर्जा मूल्य बढ़ाने के लिये पूरक आहार में थोड़ा-सा घी या तेल मिलाकर देना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

प्रश्न 6.
“माँ का दूध सर्वोत्तम आहार है” समझाइये।
उत्तर:
माँ का दूध शिशु के लिए अमृत समान होता है। यह प्रकृति द्वारा शिशु के लिए अद्भुत उपहार है। इसलिए नवजात शिशु के लिए जितना लाभदायक और पौष्टिक माँ का दूध होता है, अन्य और कोई वस्तु नहीं होती है। शिशु के लिए सबसे उत्तम आहार माँ का दूध होता है। शिशु के विकास एवं वृद्धि के लिए यह सर्वोत्तम होता है। माता के दूध में सभी पौष्टिक तत्त्व; जैसे – कार्बोज, वसा, प्रोटीन, जल, खनिज लवण तथा विटामिन पाये जाते हैं जो शिशु की वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक होते हैं। नवजात शिशु के पाचन अंग अपरिपक्व होते हैं, लेकिन वे माता को दूध सुगमता से पचा लेते हैं।

आरम्भ में माता का दूध पतला होता है, लेकिन शिशु के पाचन अंगों में शक्ति आने के साथ-साथ माँ का दूध गाढ़ा होता जाता है तथा शिशु की आवश्यकतानुसार दूध में वृद्धि भी होती जाती है। माता के दूध में कार्बोहाइड्रेट्स लैक्टोज के रूप में होता है जिसको अवशोषण सरलता से होता है एवं शिशु के लिए अत्यन्त उपयोगी भी होता है। अत: मानव शिशु के लिए माँ का दूध ही सर्वोत्तम आहार है। माँ का दूध स्वच्छ, जीवाणुरहित व कीटाणुरहित, सुपाच्य, पौष्टिक, उचित तापक्रम वाला, ताजा तथा सदैव उपलब्ध रहता है। माँ के दूध की तुलना अन्य किसी भी दूध से नहीं की जा सकती है।

यह शिशु की शारीरिक एवं पोषणिक आवश्यकताओं के अनुरूप ईश्वर प्रदत्त वरदान है जो हर शिशु को अपनी माँ से प्राप्त होता है। मातृ दूध के निर्माण एवं स्रवण की मात्रा शिशु की शारीरिक ग्राह्यता के अनुरूप होती है। प्रथम 2 – 3 दिन अत्यन्त कम मात्रा में कोलस्ट्रम स्रवण होता है जिसकी मात्रा व स्वरूप में 10-15 दिनों में धीरे-धीरे वृद्धि व श्वेत दूध के रूप में परिवर्तन हो जाता है। नवजात शिशु का आमाशय छोटा होने के कारण एक बार में 10 -12 मिली. दूध ही आ सकती है। इसलिए माँ को प्रारम्भ में 1/2-1/2 घंटे के अंतराल में स्तनपान कराना चाहिए।

शिशु के जन्म के तुरन्त बाद माँ के स्तनों का प्रथम स्रवण हल्के पीले रंग का गाढ़ा, क्षारीय तरल द्रव होता है जिसमें भरपूर प्रोटीन एवं प्रतिरक्षी पदार्थ होते हैं, जो शिशुओं को जीवनपर्यन्त विविध रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसे खीस या कोलस्ट्रम (Colostrum) कहते हैं। माँ के स्तनों से कोलस्ट्रम का स्राव प्रारम्भिक 2-3 दिनों तक होता है, तत्पश्चात् यह श्वेत रंग के पतले रंग के दूध में परिवर्तित होने लगता है तथा 10 दिनों में पूर्ण परिपक्व दूध स्रवित होने लगता है। कोलस्ट्रम को न तो फेंकना चाहिए और न ही हेय दृष्टि से देखना चाहिए अपितु इसे नवजात शिशु को सुपाच्य होने के कारण अवश्य पिलानी चाहिए।

RBSE for Class 12 Home Science Chapter 11 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE  Class 12 Home Science Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
नवजात शिशु के आमाशय की क्षमता होती है –
(अ) 10 – 12 मिली.
(ब) 12 – 14 मिली.
(स) 8 – 10 मिली.
(द) 6 – 8 मिली.
उत्तर:
(अ) 10 – 12 मिली.

प्रश्न 2.
प्रथम 6 माह में शिशुओं को ऊर्जा की आवश्यकता होती है –
(अ) 110 किलो कैलोरी / किलो शरीर भार
(ब) 108 किलो कैलोरी / किलो शरीर भार
(स) 102 किलो कैलोरी / किलो शरीर भार
(द) 107 किलो कैलोरी / किलो शरीर भार
उत्तर:
(द) 107 किलो कैलोरी / किलो शरीर भार

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

प्रश्न 3.
शारीरिक वृद्धि व विकास के अनुसार एक स्वस्थ शिशु का जन्म भार होता है –
(अ) 2.2 किलोग्राम
(ब) 3.2 किलोग्राम
(स) 4.2 किलोग्राम
(द) 2.3 किलोग्राम
उत्तर:
(ब) 3.2 किलोग्राम

प्रश्न 4.
जन्म के समय शिशु के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा होती है –
(अ) 17 – 20 ग्राम/100 मिली.
(ब) 10 – 15 ग्राम/100 मिली.
(स) 5 – 10 ग्राम/100 मिली.
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) 17-20 ग्राम/100 मिली.

प्रश्न 5.
कोलस्ट्रम में जिंक की मात्रा होती है –
(अ) 10 मिग्रा. / लीटर
(ब) 15 मिग्रा. / लीटर
(स) 25 मिग्रा. / लीटर
(द) 20 मिग्रा. / लीटर
उत्तर:
(द) 20 मिग्रा. / लीटर

प्रश्न 6.
पूरक आहार शिशु को दिया जाता है –
(अ) 0-3 माह के बाद
(ब) 6 माह के बाद
(स) 9 माह के बाद
(द) 1 वर्ष के बाद
उत्तर:
(ब) 6 माह के बाद

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. दो वर्ष का होते-होते शिशु ………चलना-फिरना सीख जाता है।
2. एक वर्ष के अन्त तक शिशु की………का विकास पूरा हो जाता है।
3. नवजात का उत्सर्जन तंत्र तथा वृक्क………होते हैं।
4. माँ के स्तनों से ………का स्राव प्रारंभिक दिनों में 10 – 40 मिली. होता है।
5. स्तनपान कराने से माता को………तृप्ति मिलती है।
6. स्तनपान शिशु की………दर को कम करता है।

उत्तर:
1. स्वयं
2. माँसपेशियों
3. अपरिपक्व
4. कोलस्ट्रम
5. मानसिक
6. मृत्यु।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

RBSE  Class 12 Home Science Chapter 11 अति लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शैशवावस्था किसे कहते हैं?
उत्तर:
शिशु के जन्म के पश्चात् एक वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था कहते हैं।

प्रश्न 2.
गर्भावस्था के पश्चात शिशु का वृद्धि व विकास किस अवस्था में सबसे तीव्र गति से होता है?
उत्तर:
शैशवावस्था में।

प्रश्न 3.
नवजात शिशु के रक्त में हीमोग्लोबिन की सान्द्रता कितनी होती है?
उत्तर:
18-20 ग्राम / 100 मिली. रक्त।

प्रश्न 4.
प्रथम 6 माह में शिशु को कितनी प्रोटीन की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
2.05 ग्राम / किग्रा वजन के अनुपात में।

प्रश्न 5.
कितने माह तक के शिशु की सभी पोषणिक आवश्यकताएँ मातृ दूध से पूर्ण हो जाती हैं?
उत्तर:
6 माह तक के शिशु की सभी पोषणिक आवश्यकताएँ मातृ दूध से पूर्ण हो जाती हैं।

प्रश्न 6.
माँ का दूध ही शिशु के लिए श्रेष्ठ क्यों है?
उत्तर:
माँ को दूध स्वच्छ, जीवाणु व कीटाणुरहित, सुपाच्य एवं पौष्टिक होता है।

प्रश्न 7.
माँग स्तनपान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
माँग स्तनपान से तात्पर्य है, शिशु की माँग अर्थात् रोने पर स्तनपान कराना।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

प्रश्न 8.
स्तनपान के बाद शिशु को कंधे पर लेकर क्यों थपथपाना चाहिए?
उत्तर:
स्तनपान के बाद शिशु को कंधे पर लेकर उसकी पीठ थपथपानी चाहिए जिससे स्तनपान के दौरान पेट में चली गई हवा निकल जाये।

प्रश्न 9.
शिशु को पशु – दूध, पानी और शक्कर मिलाकर क्यों देना चाहिए?
उत्तर:
पशु – दूध में प्रोटीन व खनिज लवणों की सांद्रता बहुत अधिक होती है तथा शर्करा की कमी होती है। इसलिए दूध में पानी व शक्कर मिलाकर दिया जाता है।

प्रश्न 10.
फॉर्मूला दूध किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाजार में उपलब्ध डिब्बाबन्द दूध जिसमें सभी संघटक माँ के दूध जैसे ही होते हैं फार्मूला दूध (Formula Milk) कहलाता है।

प्रश्न 11.
पूरक आहार किसे कहते हैं?
उत्तर:
शिशु की वृद्धि व विकास की दर को बनाये रखने के लिए स्तन दूध के अतिरिक्त दिए जाने वाले आहार | पूरक आहार कहलाते हैं।

प्रश्न 12.
स्तन त्याग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
माता द्वारा शिशु को दो बार के स्तनपान के समयान्तराल में ऊपरी आहार देने की प्रक्रिया को स्तन त्याग (Weaning) कहते हैं।

प्रश्न 13.
स्तनपान छुड़ाने के समय दिये जाने वाले आहार को क्या कहते हैं?
उत्तर:
स्तनपान छुड़ाने के समय दिये जाने वाले आहार को स्तन त्याग आहार (Weaning Foods) कहते हैं।

प्रश्न 14.
पूर्ण तरल भोज्य पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर:
फलों का रस, दाल का पानी, दूध आदि पूर्ण तरल भोज्य पदार्थ हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

प्रश्न 15.
अर्द्ध ठोस भोज्य पदार्थों में कौन-से भोज्य पदार्थ सम्मिलित हैं?
उत्तर:
अर्द्ध ठोस भोज्य पदार्थों में सूजी की खीर, पतली खिचड़ी और दलिया सम्मिलित हैं।

प्रश्न 16.
ठोस मुलायम भोज्य एवं पूर्ण भोज्य पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ठोस मुलायम भोज्य पदार्थ – मसला केला, उबालकर मसला हुआ आलू, मसले हुए दाल-चावल तथा सब्जी में मसली हुई रोटी ठोस मुलायम भोज्य पदार्थ हैं। पूर्ण ठोस भोज्य पदार्थ – चपाती, बिस्कुट, मठरी, टोस्ट, सेब आदि पूर्ण ठोस भोज्य पदार्थ हैं।

RBSE  Class 12 Home Science Chapter 11 लघूत्तरीय प्रश्न (SA – 1)

प्रश्न 1.
शैशवावस्था में शिशु में कौन-कौन से शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:
शैशवावस्था में शिशु में निम्न परिवर्तन होते हैं –

  • शारीरिक वृद्धि एवं विकास में तीव्रता आती है।
  • पाचन क्रिया प्रारम्भ होने लगती है।
  • रक्त परिसंचरण तंत्र तीव्रता से कार्य करने लगता है।
  • मल-मूत्र का उत्सर्जन होने लगता है।
  • पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ बढ़ने लगती हैं।

प्रश्न 2.
शैशवावस्था में पोषण स्तर किन कारकों से प्रभावित होता है?
उत्तर:
शैशवावस्था में पोषण स्तर 3 कारकों से प्रभावित होता है –

  • गर्भावस्था एवं धात्रीवस्था के दौरान माता का पोषण स्तर।
  • स्तनपान या ऊपरी दूध व भोजन की पर्याप्तता
  • माता या पिता से प्राप्त जन्मजात विशेषताएँ जैसे-छोटे कद वाले माता-पिता, मोटे माता-पिता।

प्रश्न 3.
शैशवावस्था में शिशु को ऊर्जा की आवश्यकता का विवरण दीजिए।
उत्तर:
जन्म के बाद प्रथम 6 माह में ऊर्जा की आवश्यकता अधिकतम 108 किलो कैलोरी / किग्रा शरीर भार है जोकि 6 माह बाद कम होकर 98 किलो कैलोरी / किग्रा शरीर भार रह जाती है। उदाहरण के लिए नवजात शिशु की ऊर्जा की आवश्यकता 3 x 108 = 324 कि. कैलोरी है जो 4-6 माह में 6 x 108 = 648 कि. कैलोरी हो जाती है तथा 1 वर्ष की आयु में 9 x 98= 882 कि. कैलोरी हो जाती है, क्योंकि जन्म के समय शिशु का भार 3 किग्रा था जोकि 4 – 6 माह में 6 क्रिग्रा तथा 1 वर्ष में लगभग 9 किग्रा हो जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं

प्रश्न 4.
शैशवावस्था में शिशु को प्रोटीन की आवश्यकता का विवरण दीजिए।
उत्तर:
बढ़ते हुए शरीर के निर्माण हेतु प्रोटीन की आवश्यकता भी प्रथम 6 माह में सर्वाधिक (2.05 ग्राम / किग्रा भार) तथा 6 – 12 माह में कुछ कम (1.65 ग्राम / किग्रा भार) होती है किन्तु अभी भी यह अन्य सभी अवस्थाओं से अधिक होती है।

प्रश्न 5.
माता के 100 ग्राम दूध में विद्यमान पोषक तत्वों की तालिका बनाइए।
उत्तर:
माता के 100 ग्राम दूध में विद्यमान पोषक तत्त्व
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं - 2

RBSE  Class 12 Home Science Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्न (SA-II)

प्रश्न 1.
शैशवावस्था के दौरान शारीरिक वृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया के बारे में समझाइए।
उत्तर:
एक स्वस्थ शिशु का जन्म:
भार लगभग 3 किग्रा तक होता है। जन्म- भार गर्भावस्था के दौरान माँ के पोषण स्तर पर निर्भर करता है। जन्म के बाद पहले 2 – 3 दिनों में शिशु के जन्म-भार में 100-200 ग्राम तक की गिरावट दर्ज की जाती है। ऐसा शिशु में शारीरिक जल के नुकसान तथा उसका बाह्य वातावरण में सामंजस्य बैठाने के प्रयासों के परिणामस्वरूप होता है। तत्पश्चात् धीरे-धीरे शिशु के वजन में तीव्र वृद्धि होती है। शिशु का वजन 4-6 माह में जन्म – भार का दुगना तथा 1 वर्ष में तिगुना हो जाता है।

एक वर्ष में शिशु की लम्बाई भी जन्म की लम्बाई की लगभग 15 गुनी हो जाती है। शैशवावस्था में शिशु के मस्तिष्क का विकास 90 प्रतिशत तक पूरा हो जाता है तथा सिर की गोलाई के माप में भी तीव्र वृद्धि हो जाती है। जन्म के समय छाती व सिर के घेरे का अनुपात जोकि एक से भी कम था, शैशवावस्था खत्म होते-होते यह एक से भी अधिक बढ़ जाता है जोकि शिशु की उपयुक्त वृद्धि एवं विकास का द्योतक है।

प्रश्न 2.
एक सामान्य पोषण स्तर वाले शिशु की कौन-सी विशेषताएँ होती हैं?
उत्तर:
एक सामान्य पोषण स्तर वाले शिशु की विशेषताएँ-एक सामान्य पोषण स्तर वाले बालके में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं। यदि इनमें परिवर्तन होता है तो वे बालक के पोषण स्तर में गिरावट को प्रकट करती हैं –

  1. बच्चे की त्वचा के नीचे वसा की परत में वृद्धि हो जाती है।
  2. बच्चे के वजन एवं लम्बाई में निरन्तर, नियमित व क्रमिक विकास होता है।
  3. बच्चा 2 से 3 घण्टों के लिए गहरी नींद में सोता है।
  4. शिशु जाग्रत अवस्था में चंचल और क्रियाशील रहता है।
  5. शिशु अधिकतर प्रसन्नचित्त और हँसता रहता है।
  6. शिशु नियमित मल विसर्जन करता है।
  7. छ: माह तक शिशु के दाँत निकलने शुरू हो जाते हैं तथा प्रथम वर्ष के अन्त तक 6 से 12 दाँत निकल आते हैं।
  8. छ: माह तक शिशु बैठने लगता है। 10 माह में खड़ा होने लगता है और 1 वर्ष तक सहारे से अथवा बिना सहारे के , चलने का प्रयास करता है या चलने लगता है।

प्रश्न 3.
माता के दूध के सर्वोत्तम होने के कारण लिखिए।
उत्तर:
माता का दूध निम्न कारणों से सर्वोत्तम होता है –

  1. माता का दूध सुपाच्य होता है।
  2. माता के दूध में रोग निरोधक क्षमता होती है।
  3. माता का दूध पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होता है।
  4. माता का दूध बलवर्धक, लाभदायक तथा शिशु के मानसिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
  5. माता के दूध में कोलस्ट्रम के रूप में रोग प्रतिरोधक तत्त्व विद्यमान रहते हैं।
  6. माता के दूध से अत्यधिक ऊर्जा प्राप्त होती है, क्योंकि उसमें अन्य दूधों की अपेक्षा अधिक मात्रा में वसा होती है।
  7. माता के दूध में उत्तम प्रकार की प्रोटीन होती है।
  8. माता का दूध रोगाणुरहित होता है।
  9. माता के दूध में सदैव ताजगी बनी रहती है।
  10. माता के दूध को बार – बार गर्म करने की आवश्यकता नहीं होती है।

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प्रश्न 4.
वे कौन-सी बाधाएँ हैं जिनके कारण माता अपने शिशु को स्तनपान नहीं कराती है?
उत्तर:
स्तनपान में आने वाली बाधाएँ – निम्नलिखित अपरिहार्य कारणों से शिशु स्तनपान नहीं कर पाता है –

  1. यदि माता गम्भीर बीमारियों से पीड़ित है; जैसे – क्षय रोग, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मिर्गी, नेफ्राइटिस, हिपेटाइटिस आदि।
  2. स्तन रोग होने पर शिशु को स्तनपान नहीं कराना चाहिए; जैसे – स्तन कैंसर, स्तन में मवाद पड़ जाना, निपिल का खुरदरा होना आदि।
  3. यदि माता किसी संक्रामक रोग से पीड़ित है।
  4. माता का शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर होने पर स्तनपान नहीं कराया जाना।
  5. माता के स्तनों में पर्याप्त दूध का निर्माण न होना।
  6. माती के स्तनों से पर्याप्त दूध का स्राव न होना।
  7. शिशु के कटे होंठ (Hare Lip) या फटी तालू (Cleft Palate) का होना।
  8. माता के अतिशीघ्र दूसरा गर्भ धारण कर लेने पर शिशु को स्तनपाने नहीं करवाया जाता है।
  9.  माता के स्तनों में दूध न होने तथा निपिल अविकसित होने के कारण भी माताएँ स्तनपान नहीं करवा पाती हैं।

प्रश्न 5.
शिशु को गाय के दूध में शक्कर एवं पानी किस अनुपात में मिलाकर देना चाहिए?
उत्तर:
आयु के अनुसार शिशु को गाय का दूध निम्न अनुपात में पानी एवं शक्कर मिलाकर देना चाहिए –
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प्रश्न 6.
एक से तीन माह के बच्चे की दैनिक आवश्यकताओं की तालिका बनाइए।
उत्तर:
1 से 3 माह तक के बच्चे की दैनिक आवश्यकताएँ –
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प्रश्न 7.
शिशु की बढ़ती उम्र के साथ – साथ कौन – कौन से पूरक आहार देने चाहिए?
उत्तर:
शिशु की बढ़ती उम्र के साथ – साथ निम्नलिखित पूरक आहार शिशु को दिए जाने चाहिए –
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प्रश्न 8.
शैशवावस्था (6 -12 माह) के लिए दैनिक सन्तुलित आहार तालिका बनाइये।
उत्तर:
शैशवावस्था के लिए दैनिक सन्तुलित आहार तालिका –
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प्रश्न 9.
नौ माह के शिशु के लिए दिन का आहार-आयोजन तालिका बनाइए।
उत्तर:
नौ माह के शिशु के लिए दिन का आहार-आयोजन तालिका –
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प्रश्न 10.
एक वर्ष के शिशु के लिए एक दिन की आहारे-तालिका बनाइए।
उत्तर:
एक वर्ष के शिशु के लिए एक दिन की आहार-तालिका इस प्रकार है –
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RBSE  Class 12 Home Science Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद् 1989 में शैशवावस्था के लिए पौष्टिक तत्त्वों से युक्त कैसी दैनिक आहारिक मात्राएँ प्रस्तावित की हैं? तालिका द्वारा स्पष्ट कीजिए। उत्तर:
शैशवावस्था के लिए पौष्टिक तत्वों की दैनिक प्रस्तावित आहार-तालिका
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 शैशवावस्था में पोषणं - 9

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प्रश्न 2.
विविध प्रकार के दूध का संगठन तालिका द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विविध प्रकार के दूध को संगठन
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प्रश्न 3.
शिशु का स्तनपान किस प्रकार छुड़ाना चाहिए? अचानक स्तनपान छुड़ाने से शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिशु का अचानक स्तनपान छुड़ाना माता एवं शिशु दोनों के लिए हानिकारक होता है। शिशु का स्तनपान धीरे – धीरे छुड़ाना चाहिए। स्तनपान के जरिये बच्चा माता से शारीरिक रूप से नहीं, वरन् भावनात्मक रूप से जुड़ा रहता है। यकायक स्तनपान छुड़ा देने पर उसके मस्तिष्क पर इसका बुस प्रभाव पड़ता है। बच्चे के जैसे-जैसे दाँत निकलने लगते हैं, वैसे-वैसे माता की दूध पिलाने की शक्ति कम होने लगती है तथा माता के नेत्रों की ज्योति भी कम हो जाती है।

बच्चे के दाँत आने के पश्चात् से दुग्धपान कराने से माता स्वयं को काफी थकी एवं शिथिल अनुभव करने लगती है। ऐसी स्थिति में माता को चाहिए कि वह शिशु का स्तनपान छुड़ा दे। यदि ऐसी स्थिति में भी माता शिशु को दूध पिलाना जारी रखती है तो माता को उल्टियाँ, कोष्ठबद्धता आदि रोगों का सामना करना पड़ता है। शिशु के दाँत आना इस बात का संकेत है कि बच्चा अन्न पचाने में सक्षम है। आरम्भ में बच्चे को दूध की बोतल से पानी पिलाना चाहिए तथा बाद में दूध पिलाना चाहिए। इस प्रकार बच्चा सरलता से ऊपर का दूध पीने लगेगा।

माता का दूध छुड़ाना कोई सरल कार्य नहीं है। इसके लिए माता को काफी कोशिश करनी पड़ती है। कई माताएँ स्तनों पर नीम, मिर्च आदि लगा लेती हैं लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। इस प्रकार से बच्चे की दूध के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती ह स्तनपान छुड़ाने का उत्तम तरीका यही है कि धीरे-धीरे बच्चे को दूध पिलाने की मात्रा कम करते जाना चाहिए।

सबसे पहले सुबह का दूध छुड़ाना चाहिए, इस समय शिशु को बोतल से दूध पिलाना चाहिए। जब बच्चा सुबह का दूध पीना छोड़ दे, तब इसी प्रकार शाम का दूध छुड़ा देना चाहिए। दूध छुड़ाने के पश्चात् माता को भी कष्ट होता है। इस समय माता को दूध तथा पानी पीना चाहिए। सीने पर कसकर कपड़ा बाँध लेना चाहिए। इस तरह माता का दूध सूख जाता है।

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प्रश्न 4.
स्तनपान छुड़ाने में क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए? स्तनपान छोड़ने के पश्चात शिशु का आहार किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर:
स्तनपान छुड़ाने में सावधानियाँ:

स्तनपान छुड़ाने में निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए –
1. स्तनपान एकदम नहीं छुड़ाना चाहिए। अचानक स्तनपान छुड़ा देने से बच्चा चिड़चिड़ा एवं ढीठ हो जाता है। बच्चे की मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चा निरन्तर रोता रहता है। इससे माता को भी काफी कष्ट होता है, क्योंकि माता के स्तनों से एकदम दूध सूख नहीं पाता है।

2. नये खाद्य – पदार्थ खाने की बच्चे में आदत न होने के कारण उसकी पाचन क्रियाओं में विकार उत्पन्न हो जाता है।

3. बच्चे को एकाएक ऊपरी दूध देने पर अपच हो जाती है। अपच रोकने के लिए बच्चे को सुपाच्य हल्के ठोस पदार्थ देने चाहिए। धीमी आग पर पका हुआ फलों का रस, भुना हुआ सेब देना लाभकारी होता है।

स्तनपान छोड़ने के पश्चात् शिशु का आहार:
स्तनपान छोड़ने के पश्चात् शिशु को दिया जाने वाला आहार पौष्टिक एवं वैज्ञानिक नियमों के अनुकूल होना चाहिए। जो बच्चा अभी तक माता का दूध पीता था, वह समस्त भोज्य-पदार्थों को पचाने में समर्थ नहीं होता है। इसलिए बच्चे का आहार ऐसा होना चाहिए जो उसकी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करता हो।

1. कार्बोज:
बच्चे को काबूज की काफी आवश्यकता होती है, क्योंकि बच्चा काफी क्रियाशील होता है। प्रति 100 ग्राम शारीरिक भार के लिए 10 से 15 ग्राम कार्बोज की आवश्यकता होती है। कार्बोज प्राप्ति के साधनों में डबलरोटी, दलिया, कार्नफ्लेक्स, सूखे फल, फेरेक्स, शक्कर आदि उत्तम साधन हैं।

2. वसा:
वसा शरीर को ताप एवं शक्ति प्रदान करती है। अत: बच्चे के आहार में घी, तेल तथा मक्खन का समावेश होना चाहिए। वसा की अत्यधिक मात्रा कोष्ठबद्धता रोग को जन्म देती है।

3. प्रोटीन, विटामिन ‘ए’ तथा खनिज लवण:
इन तत्त्वों को संरक्षक पदार्थ कहा जाता है। ये पदार्थ शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक होते हैं। बच्चे के आहार में दूध, दही, मछली का तेल, खमीर एवं हरी सब्जियाँ होनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
विभिन्न आयु वर्ग वाले बच्चों के लिए कैलोरी की आवश्यकता का विवरण दीजिए।
उत्तर:
बच्चे के लिए कैलोरी की आवश्यक मात्रा:
बच्चे अधिक क्रियाशील होते हैं, इसलिए उनकी शक्ति अधिक व्यय होती है। इसी वजह से उन्हें अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है।
विभिन्न आयु के बच्चों को उनके शारीरिक भार के अनुसार कैलोरी की मात्रा
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बच्चे के शारीरिक भार के अनुसार ही उसे कैलोरी की मात्रा देनी चाहिए। यदि बच्चे को उसके शारीरिक भार के अनुसार कैलोरी नहीं मिल पाती है तो उसके शरीर में ऊर्जा एवं शक्ति दोनों का ह्रास होने लगता है।

तीन वर्ष तक के बच्चे के आहार की समयानुसार सूची:
बच्चे का स्तनपान छुड़ाने के पश्चात् उसे समयानुसार आहार देना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में इसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है। सुबह 6 बजे डबलरोटी का सिका पीस या बिस्कुट, फलों का रस या दूध। 8 बजे मक्खन लगा टोस्ट, सूजी का हलवा या दूध, दलिया, एक कप दूध, फल। दोपहर 12 बजे 1 / 2 कटोरी सब्जी, 1 कटोरी दही, सब्जी का सूप या 2 चम्मच उबले चावल, 2 चम्मच दाले और एक रोटी की पपड़ी।

प्रश्न 6.
महिला द्वारा पूरक आहार घर पर किस प्रकार तैयार किया जा सकता है एवं बढ़ती उम्र के साथ – साथ शिशु को कौन-कौन से पूरक आहार दिये जा सकते हैं?
उत्तर:
पूरक आहार एक धीमी प्रक्रिया है जो 6 माह से प्रारम्भ होकर लगभग 12 माह तक चलती है। इस दौरान माता शिशु को पूर्णत: घर में बनाये जाने वाले भोज्य पदार्थ देती है। गृहिणी इसे फलों का रस, दाल का पानी, दूध आदि पूर्ण तरल भोज्य पदार्थ से प्रारम्भ कर सूजी की खीर, पतली खिचड़ी एवं दलिया आदि अर्द्ध ठोस भोज्य पदार्थ तथा ठोस मुलायम भोज्य पदार्थ; जैसे – मसला हुआ केला, मसला हुआ आलू, मसले हुए चावल एवं दाल, दाल/सब्जी में मसली हुई रोटी तथा पूर्ण ठोस पदार्थ; जैसे-चपाती, बिस्कुट, मठरी, टोस्ट, सेब आदि दिये जाते हैं। पूरक आहार को कोई भी महिला घर पर आसानी से बना सकती है।
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विधि:

  1. गेहूँ को तवे पर अच्छी प्रकार से भून लें।
  2. भुने हुए चनों को रगड़कर उनके छिलके उतारें।
  3. भुने हुए गेहूँ एवं चनों को अलग-अलग बारीक पीस लें।
  4. स्वादानुसार पिसी हुई शक्कर मिला दें।
  5. इस पोषक / पूरक आहार को दूध, छाछ या गर्म पानी में गाढ़ा घोल बनाकर शिशु को खिलाएँ।
  6. इससे लड्डू, बर्फी, हलुआ आदि बनाकर खिलाएँ।
  7. बिना शक्कर पोषक को आटे या बेसन की तरह काम में लेकर पूरी अथवा पराठा बना लें।
  8. गेहूँ एवं चने के स्थान पर घर में उपलब्ध अन्य अनाज अथवा दलहन को सिकवाकर प्रयोग कर सकते हैं।
  9. इसे और अधिक पौष्टिक बनाने के लिए मूंगफली / तिल / सोयाबीन व दुग्ध पाउडर भी मिला सकते हैं।
    छः माह के शिशु को 2 – 2 घंटे के अन्तराल में बारी-बारी से पूरक आहार एवं स्तनपान देना चाहिए। धीरे – धीरे 12 माह के शिशु के लिए अन्तराल बढ़ाकर 3-4 घंटे पर पूरक आहार एवं स्तनपान देना चाहिए।

प्रश्न 7.
शिशु को पूरक आहार देते समय किन – किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? समझाइए।
उत्तर:
जब माता शिशु को स्तनपान द्वारा पूर्ण आहार नहीं दे पाती है तो उसे पूरक आहार (Supplementary Food) की व्यवस्था करनी पड़ती है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि माता के दूध से शिशु की भूख शान्त न हो तो पूरक आहार के रूप में शिशु के भार के अनुरूप दो-तीन बार बोतल का दूध दिया जा सकता है। स्तनपान छुड़ाना एवं पूरक आहार देना एक-दूसरे के क्रमिक एवं पूरक हैं। पूरक आहार देने की प्रक्रिया 6 माह से प्रारम्भ होकर 12 माह तक चलती है। माता को शिशु को पूरक आहार देते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

1. प्रारम्भ में शिशु भोज्य पदार्थ को मुंह से बाहर निकाल देता है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भोजन उसे पसन्द नहीं आया बल्कि इसका कारण यह है कि शुरू – शुरू में शिशु को भोजन निगलना नहीं आता है।

2. माता को चाहिए कि वह प्रारम्भ में पूरक आहार के रूप में शिशु को पहले तरल पदार्थ ही दे। बाद में धीरे-धीरे कुछ ठोस पदार्थ देना प्रारम्भ करे।

3. पूरक आहार देते समय माता को ध्यान रखना चाहिए कि वह स्तनपान कराने से पूर्व ही दे, क्योंकि स्तनपान के बाद पूरक आहार देने पर पेट भरा होने के कारण शिशु पूरक आहार का सेवन नहीं करेगा।

4. प्रारम्भ में शिशु की स्वाद कलिकाएँ अधिक विकसित न होने के कारण शिशु को प्रतिदिन जितने नये भोज्य पदार्थ खिलाए जाएँगे बड़ा होकर उतना ही विविधतापूर्ण भोजन ग्रहण करेगा।

5. शिशु का भोजन बिना मिर्च – मसाले का सात्विक होना चाहिए; जैसे – शिशु को खिचड़ी, दलिया, सूप, खीर, सब्जियाँ आदि थोड़ा-सा घी अथवा तेल एवं नमक मिलाकर देने से ऊर्जा में वृद्धि होती है।

6. शिशु को नया भोजन प्रारम्भ में अत्यधिक कम मात्रा में देकर धीरे-धीरे उसकी मात्रा बढ़ानी चाहिए।

7. माता शिशु को एक बार में केवल एक ही नया भोजन दें। जब शिशु इसे पचाने लायक हो जाए तब ही दूसरा भोजन देना प्रारम्भ करें।

8. पूरक आहार देते समय भोज्य पदार्थ में नमक एवं शर्करा की मात्रा कम रखनी चाहिए एवं मीठे भोज्य पदार्थ भी कम ही देने चाहिए।

9. चबाने योग्य हो जाने पर शिशु को फलों एवं रोटी इत्यादि के टुकड़े देने चाहिए।

10. रोगों से रक्षा करने हेतु शिशु का भोजन बहुत ही साफ एवं स्वच्छ बर्तनों में बनाना एवं खिलाना चाहिए।

11. अरुचिकर भोज्य पदार्थ को कुछ समय बंद करके पुन: किसी अन्य व्यंजन के रूप में खिलाकर देखना चाहिए।

12. शिशु का आहार न बहुत अधिक ठंडे और न बहुत अधिक गर्म तापमान पर होना चाहिए।

13. न तो शिशु को खाते समय टोकना चाहिए और न ही बहुत अधिक भोजन देने का प्रयास करना चाहिए अन्यथा वह चिड़चिड़ा हो जाएगा।

14. शिशु को भोजन देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि गिलास, कटोरी एवं प्याली काँच की न हो और न ही किनारे तीखे हों।

15. स्वयं खाने का प्रयास करने पर शिशु के हाथ में रोटी का टुकड़ा अथवा चम्मच पकड़ा देना चाहिए तथा उसे स्वयं खाने देना चाहिए।

16. शिशु के दाँत निकलने पर माँ को कोई कड़ी चीज खाने के लिए हाथ में पकड़ानी चाहिए जिससे मसूड़ों के दर्द में आराम मिले।

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