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RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

August 14, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) सिंगर मशीन का आविष्कार कब किया गया था?
(अ) सन् 1830 में
(ब) सन् 1848 में
(स) सन् 1891 में
(द) सन् 1935 में
उत्तर:
(स) सन् 1891 में

(ii) सन 1935 में किस मशीन का कारखाना भारत में स्थापित किया गया था?
(अ) साधारण मशीन
(ब) सिंगर मशीन
(स) उषा मशीन
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) उषा मशीन

(iii) धागा लपेटने वाली फिरकी को कहते हैं –
(अ) बॉबिन
(ब) बॉबिन केस
(स) स्पूल पिन
(द) बॉबिन वाइंडर
उत्तर:
(अ) बॉबिन

(iv) वस्त्र की उत्तम सिलाई के आवश्यक चरण है –
(अ) नाप लेना
(ब) ड्राफ्टिंग करना
(स) ले-आउट करना
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. हाथ की सिलाई करते समय दायें हाथ की बड़ी अंगुली में …………पहना जाता है।
2. सूई को मशीन में फिट करने की चुटकी को …………कहते हैं।
3. वस्त्र पर पेपर पैटर्न के सभी हिस्सों को सही ढंग से बिछाना …………कहलाता है।
4. नाप लेने हेतु…………का प्रयोग करते हैं।
5. मशीन में समय-समय पर …………देना आवश्यक है।

उत्तर:
1. अंगुस्तान
2. क्लैम्प स्क्रू
3. ले – आउट
4. इंची टेप
5. तेल।

प्रश्न 3.
स्पूल पिन किसे कहते हैं?
उत्तर:
स्पूल पिन एक या दो लम्बी गोल कीलों के समान होती है जो सिलाई मशीन के ऊपरी भाग पर फिट होती है। इसमें धागे की रील लगाई जाती है।

प्रश्न 4.
सिलाई मशीन के निम्नलिखित अंगों का क्या महत्त्व है? प्रेशर फुटवारलिफ्टर, टेकअप लीवर, बॉबिन वाइन्डर।
उत्तर:
प्रेशर फुटवारलिफ्टर – यह एक प्रकार की घुमावदार रॉड है यह दबाव पद की छड़ पर होती है। इसके ऊपर नीचे करने से दबाव पद भी ऊपर नीचे होता है। सिलाई समाप्त करने के बाद इसे ऊपर उठा देना चाहिए। टेकअप लीवर-यह मशीन के मुख प्लेट पर लगा होता है। थ्रेड टेंशन डिस्कस से धागे का निकालकर टेकअप लीवर में डाला जाता है। सिलाई करते समय “फ्लाई व्हील” के घूमने से यह लीवर ऊपर नीचे होकर बखिया बनाने में सहायता करता है। – बॉबिन वाइन्डर-यह फ्लाईव्हील के सहारे लगा हुआ एक छड़ के समान पिन है जिसके सहारे बॉबिन अर्थात् फिरकी में धागा भरा जाता है।

प्रश्न 5.
कैंचियाँ तथा शिअर्स से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
कैंचियाँ-अलग-अलग वस्त्रों को काटने के लिये कैंचियाँ भी अलग:
अलग प्रयोग में लाई जाती हैं। साधारण कपड़ा 4 इंच से 6 इंच की कैंची का उपयोग सामान्य रूप से किया जाता है। मोटे, भारी तथा ऊनी कपड़ों के लिये 6 इंच से 9 इंच तक लम्बी कैंची का उपयोग किया जाता है। इन्हें शिअर्स कहते हैं। हाथ की मशीन के लिये छोटी कैंची प्रयोग में लायी जाती है। इनसे धागा काटा जाता है।

तुरपाई करने में भी यह काम आती है। शिअर्स-यह एक प्रकार की बड़ी कैंची है जिसकी लम्बाई 6 इंच से 9 इंच तक होती है। इससे मोटे कपड़े, भारी तथा ऊनी कपड़े काटे जाते हैं। इनके हैंडल विशेष प्रकार से थोड़ा झुके होते हैं। इनके सिरों पर एक काफी बड़ा काफी बड़ा घेरा होता है, जिससे पकड़ अच्छी होती है। इतनी बड़ी कैंची से कपड़ा काटते समय कपड़े को उठाना नहीं पड़ता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

प्रश्न 6.
सिलाई मशीन के विभिन्न पुर्जा तथा उनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिलाई मशीन के विभिन्न पुर्जे तथा उनकी उपयोगिता निम्नलिखित है –
(1) दबाव पद छड़:
यह धातु की बनी छड़ होती है। इसके नीचे दबाव पद होता है।

(2) दबाव पद:
यह दबाव पद छड़ के नीचे की ओर लगा होता है। एक पेंच द्वारा यह दबाव पद छड़ से जुड़ा रहता है। इसका आकार दो छोटे जूते के समान होता है। इसे पैर भी कहते हैं। यह निडिल बार में लगा होता है। यह सिलाई के समय कपड़े को दबाने का कार्य करता है।

(3) सुई छड़:
इसका एक सिरा ऊपर तथा एक नीचे होता है। नीचे के भाग में सुई लगायी जाती है जो वस्त्रों को सिलाने का कार्य करती है।

(4) क्लैम्प स्क्रू / सुई कसने का पेच:
मशीन में सुई को फिट करने की चुटकी को क्लैम्प स्क्रू या सुई कसने का पेंच कहते हैं। स्क्रू को ढीला करके सुई को ऊपर नीचे किया जा सकता है। सुई लगाते समय सुई का गोल भाग बाहर व चपटा भाग अन्दर की ओर फिट करते हैं।

(5) स्पूल पिन:
यह दो लम्बी पिनों के समान होती है। यह मशीन के ऊपरी भाग में फिट रहती है। सिलाई के समय धागे की रील इसी पर लगाई जाती है।

(6) प्रेशर फुटवार लिफ्टर:
दबाव पद की छड़ पर एक घुमावदार रॉड लगी होती है जिसके ऊपर नीचे करने से दबाव पद भी ऊपर नीचे होता है।

(7) थ्रेड टेंशन डिवाइस एवं डिस्कस:
यह धागे के तनाव को नियोजित करने वाला भाग है। इसमें एक स्प्रिंग में दो गोल पत्तियों के बीच सामने की ओर एक पेंच लगा रहता है। जिसे कसने तथा ढीला करने पर धागे का तनाव कम या अधिक किया जाता है। इसलिये इसे थ्रेड टेंशन डिवाइस कहते हैं। इसके पीछे दो चकरियाँ थ्रेड टेंशन डिस्कस कहलाती है। सामने का धागा इन्हीं डिवाइस चकरियों के बीच से निकालकर टेकअप लीवर से निकालकर सुई में पिरोते हैं।

(8) टेकअप लीवर:
यह मशीन के मुखप्लेट पर लगा होता है। थ्रेड टेंशन डिस्कस से धागे को निकालकर टेकअप लीवर में
डालते हैं। सिलाई करते समय ‘फ्लाई व्हील’ के घूमने से यह लीवर ऊपर नीचे होकर बखिया करने में सहायता करता है।

(9) मुखपट:
यह मशीन का मुख है जो सामने की ओर रहता है। इस पर टेकअप लीवर थ्रेडटेंशन व डिस्कस आदि लगे होते हैं। सुई छड़ इसी के नीचे लगी होती है।

(10) स्लाइड प्लेट:
यह स्टील का बना चौकोर भाग है। जो निडिल प्लेट के साथ लगा होता है। इसे बाईं ओर खिसकाकर आसानी से बॉबिन को निकाला व लगाया जा सकता है।

(11) निडिल प्लेट:
यह सुई और प्रेशर फुट के नीचे स्टील की बनी प्लेट है जिससे बने छेद में जाकर, बॉबिन से घागा ऊपर लाती है। सिलाई करते समय छेद से सुई अन्दर बाहर आती जाती है और टाँके लगाती है। इसके नीचे कपड़े को – खिसकाने वाले दाँते लगे होते हैं।

(12) बॉबिन वाइन्डर:
यह फ्लाई व्हील के सहारे लगा एक छड़ जैसा पिन है जिसके सहारे बॉबिन अर्थात् फिरकी में धागा भरा रहता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

(13) टाँकानियामक:
यह मशीन के पीछे पर सामने की ओर एक लम्बा खाँचा होता है जिसके बीच में एक स्क्रू लगा होता है जिसे ऊपर नीचे करने पर बखिया छोटी बड़ी होती है। इस खाँचे पर ऊपर की ओर ऐसे 5 अंक अंकित होते हैं। सबसे ऊपर की ओर बखिया बारीक से मोटा होता जाता है। अर्थात् 5 नम्बर पर बखिया सबसे मोटी होती हैं और 3 नम्बर से नीचे जाने पर बखिया महीन होती जाती है।

(14) फ्लाई व्हील:
यह एक गोल पहिया है जिसके घुमाने पर ही मशीन चलती है। इसे हत्थे से घुमाया जाता है।

(15) बॉबिन और बॉबिन केस:
धागा लपेटने वाली फिरकी को “बॉबिन और जिस डब्बी में यह रखा जाता है, उसे बॉबिन केस कहते हैं।
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई-1

प्रश्न 7.
आरेखन या ड्राफ्टिग किसे कहते हैं?
उत्तर:
वस्त्र काटने के लिए नाप लेने के पश्चात् किए गये नाप के आधार पर कटाई हेतु बनाई गई वस्त्र की आकृति को आरेखन या ड्राफ्टिग कहते हैं। ड्राफ्टिग नाप के आधार पर पुराने अखबार या ब्राउन पेपर पर इंच टेप एवं पेंसिल की सहायता से बनाई जाती है।
RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई-2
(क) छोटे स्केल की ड्राफ्टिग:
यह ड्राफ्टिग नोट-बुक या फाइल पर बनायी जाती है। यह छोटे स्केल जैसे 1 इंच = 1 सेमी. मानकर की जाती है। ड्राफ्ट का अभ्यास बार-बार करते हुए सही ड्राफ्ट तैयार करना चाहिए। तैयार ड्राफ्ट की कटिंग करने से तैयार ‘पेपर पैटर्न’ द्वारा वस्त्र की कटिंग की जाती है।

(ख) पूरे स्केल की ड्राफ्टिग:
यह ड्राफ्टिग इंच एवं सेन्टीमीटर के नापों में ब्राउन पेपर या अखबार पर तैयार की जाती है।

प्रश्न 8.
नाप लेना क्यों महत्त्वपूर्ण है और नाप लेते समय किन बातों का ध्यान रखेंगी?
उत्तर:
सिलाई से पहले सर्वप्रथम जिस भी व्यक्ति की पोशाक बनानी है। उसके नाप होने आवश्यक होते हैं, क्योंकि वस्त्र की सही फिटिंग शरीर के सही नाप पर ही आधारित होती है। अत: सिलाई से पूर्व शरीर की नाप सावधानीपूर्वक लेनी चाहिए। नाप लेने का एक कारण यह भी होता है कि प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक संरचना में अन्तर होता है। अत: व्यक्ति विशेष का नाप लेना आवश्यक है। अत: नाप लेते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

  • नाप लेते समय इंची टेप का प्रयोग करना चाहिए। यह मुलायम होना चाहिए।
  • नाप क्रमबद्ध लेना चाहिए।
  • नाप एक ओर से लेवें, व्यक्ति को बार-बार न घुमावें।
  • नाप लेते समय व्यक्ति सीधा खड़ा रहे, झुके नहीं।
  • वस्त्र बनाने हेतु सभी आवश्यक नाप लेने चाहिए; जैसे-लम्बाई, चौड़ाई, तीरा, कमर, बाँहों की लम्बाई, मोहरी की.. चौड़ाई, गले की गहराई आदि।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

प्रश्न 9.
कटाई के निमित्त वस्त्र को तैयार करने से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
कपड़े की कटिंग और सिलाई से पूर्व कपड़े को तैयार करना आवश्यक होता हैं। अधिकांश सूती वस्त्र धुलाई के बाद सिकुड़ जाते हैं। ऐसे में अगर बिना सिकुड़न निकाले वस्त्र की कटिंग करके सिल दिया जाता है और उसके बाद धोया जाता है तो जिस नाप से वस्त्र सिला है वह नाप कपड़े के सिकुड़ने के कारण कम हो जाती है; जैसे – लम्बाई कम हो जाती है। चौड़ाई में सिकुड़कर वस्त्र शरीर में तंग हो जाता है। इसके लिये वस्त्र को सर्वप्रथम पानी की बाल्टी में इतने पानी में डुबोकर रखें कि वस्त्र डूबा रहे कम-से-कम दो घंटे तक। इसके बाद वस्त्र को पानी से निकाल कर अच्छी तरह निचोड़ लें और सुखा दें। सूखने पर इसके ऊपर हल्की इस्त्री कर देनी चाहिए।

प्रश्न 10.
ले-आउट से आप क्या समझती हैं? इसके महत्त्व की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
कपड़े की कटिंग करने के लिए टेबिल अथवा समतल स्थान पर रखकर तैयार किये गये पेपर के पैटर्न के सभी हिस्सों को ताने की दिशा में रखकर चॉक के द्वारा निशान लगाने की क्रिया को ले – आउट कहा जाता है। ऐसा करने से कपड़े की बचत होती है तथा कपड़े की कटिंग आसान रहती है। कटिंग करने से पूर्व इस बात की ओर विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पैटर्न के सभी भाग लम्बवत् हैं अथवा नहीं; अन्यथा कटिंग करने पर वस्त्र गलत हो सकता है। सिलाई रेखा के बाद दबाव या तुरपाई के लिये 1 / 2 इंच से लेकर 2 इंच तक के अतिरिक्त निशान लगाये जाते हैं। इन्हें कटिंग रेखाएँ कहते हैं। परिधान की सही कताई और आकर्षक फिटिंग का रहस्य यही है।

प्रश्न 11.
सही व उत्तम सिलाई के आवश्यक चरणों का विस्तृत वर्णन कीजिए-
उत्तर:
वस्त्रों की उत्तम सिलाई करने हेतु निम्न महत्त्वपूर्ण चरणों की जानकारी करना आवश्यक है –
1. कपड़ा तैयार करना:
सिलाई करते समय सर्वप्रथम वस्त्र को तैयार करना अनिवार्य है। यदि वस्त्र सूती है तो उसको कम-से-कम सिलने से पूर्व 1 बाल्टी पानी में 4-5 घंटे तक अवश्य भिगोना चाहिए, जिससे सिलने से पूर्व जितना वस्त्र को सिकुड़ना है, सिकुड़ जायेगा।

2. नाप लेना:
वस्त्र दिखने में सुन्दर एवं आकर्षक हो इसके लिए सही नाप लेना अनिवार्य है। सही नाप लेते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए.

  • नाप लेते समय इंच टेप का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इंच टेप उलट न जाये।
  • पोशाक सिलते समय क्रमबद्धता की ओर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसे फ्रॉक बनाने के लिए लम्बाई, सीना एवं तीरे का नाप लेना चाहिए।
  • नाप इस प्रकार लेना चाहिए कि व्यक्ति को बार-बार न घुमाना पड़े।
  • नाप लेते समय व्यक्ति सीधा खड़ा हो।
  • लम्बाई, चौड़ाई, तीरा, बाँहों की लम्बाई, मोहरी की चौड़ाई एवं गले की गहराई सबका आवश्यक नाप लेना चाहिए।

3. ड्राफ्टिग एवं पेपर पेटर्न तैयार करना:
उत्तम एवं आकर्षक सिलाई हेतु अखबार अथवा ब्राउन पेपर पर ड्राफ्टिंग करना अनिवार्य है। ड्राफ्टिग निम्न दो प्रकार की होती है –

(1) छोटे स्केल की ड्राफ्टिग:
यह ड्राफ्टिग नोट-बुक पर बनायी जाती है। ड्राफ्ट का अभ्यास बार-बार करते हुए सही ड्राफ्ट तैयार करने पर पेपर पैटर्न तैयार हो जाता है। इस पेपर पैटर्न द्वारा वस्त्र की कटिंग की जाती है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

(2) पूरे स्केल की ड्राफ्टिग:
यह ड्राफ्टिग इंच एवं सेन्टीमीटर के नापों से ब्राउन पेपर या अखबार पर तैयार की जाती है।

4. ले – आउट एवं कटिंग करना:
कपड़े की कटिंग करने के लिए टेबिल अथवा समतल स्थान पर रखकर तैयार किये गये पेपर के पैटर्न के सभी हिस्सों को ताने की दिशा में रखकर चॉक के द्वारा निशान लगाने की क्रिया को ले-आउट कहा जाता है। ऐसा करने से कपड़े की बचत होती है तथा कपड़े की कटिंग आसान रहती है। कटिंग करने से पूर्व इस बात की ओर विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पैटर्न के सभी भाग लम्बवत् हैं अथवा नहीं; अन्यथा कटिंग करने पर वस्त्र गलत हो सकता है।

5. सिलाई:
कटिंग सही प्रकार से हो जाने पर वस्त्र के प्रत्येक भाग को हाथ अथवा मशीन से सिल देना चाहिए। सिलाई करते समय इस्त्री साथ ही साथ करने पर जोड़ों वाले स्थान पर सिलवटें नहीं आती हैं एवं सुन्दर पोशाक तैयार होती है।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
धागे की रील मशीन में लगायी जाती है –
(अ) स्पूल पिन में
(ब) सुई छड़ में
(स) दबाव पद में
(द) बॉविन वाइन्डर में
उत्तर:
(अ) स्पूल पिन में

प्रश्न 2.
टाँका नियामक के खाँचे में कितने अंक अंकित होते हैं?
(अ) 0 – 10 तक
(ब) 0 – 5 तक
(स) 1 – 5 तक
(द) 0 – 20 तक
उत्तर:
(ब) 0 – 5 तक

प्रश्न 3.
इंची टेप पर चिह्न लगे होते हैं –
(अ) 1 – 100 इंच तक
(ब) 1 – 50 इंच तक
(स) 1 – 60 इंच तक
(द) 1 – 40 इंच तक
उत्तर:
(स) 1 – 60 इंच तक

प्रश्न 4.
शिअर्स की लम्बाई होती है –
(अ) 6 – 9 इंच
(ब) 4 – 6 इंच
(स) 3 – 6 इंच
(द) 9 – 12 इंच
उत्तर:
(अ) 6 – 9 इंच

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

प्रश्न 5.
किस कैंची के किनारे दाँतेदार होते हैं ?
(अ) साधारण कैंची के
(ब) छोटी कैंची के
(स) शिअर्स के
(द) पिंकिंग शिअर्स के
उत्तर:
(द) पिंकिंग शिअर्स के

प्रश्न 6.
सिलाई के चरण होते हैं –
(अ) 3
(ब) 4.
(स) 5
(द) 6
उत्तर:
(स) 5

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. स्पूल पिन की कील में धागे की ………… लगायी जाती है।
2. मशीन के सभी ………… पुों तथा ………… में भी तेल लगाना चाहिए।
3. मापक फीता को सामान्य भाषा में ………… कहा जाता है।
4.  पिंकिंग शिअर्स के दोनों किनारे ………… भारी के समान होते हैं।
5. कपड़े की…………को दूर करने के लिये प्रेस की आवश्यकता होती है।
6. नाप लेते समय व्यक्ति को…………खड़ा रहना चाहिए।

उत्तर:
1. रील
2. गतिशील, जोड़ों
3. इंचीटेप
4. दाँतेदार
5. दाँतेदार
6. सीधा।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 अति लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिलाई की मशीन का सर्वप्रथम कहाँ और कब आविष्कार हुआ?
उत्तर:
फ्रांस में एक दर्जी ने सन् 1830 में साधारण सिलाई की मशीन का आविष्कार किया।

प्रश्न 2.
भारत में सर्वप्रथम कौन-सी सिलाई मशीन का कारखाना स्थापित हुआ?
उत्तर:
भारत में सर्वप्रथम सन् 1935 में ऊषा मशीन का कारखाना स्थापित हुआ।

प्रश्न 3.
“फैशन मेकर” क्या है?
उत्तर:
सिलाई के विशिष्ट कार्य जैसे-सज्जा, टाँके, बटन लगाना, काज बनाना आदि के लिए एक विशिष्ट मशीन का उपयोग होता है जिसे ‘फैशन मेकर’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 4.
सिलाई मशीन में प्रेशर फुट का क्या कार्य है?
उत्तर:
सिलाई के समय प्रेशर फुट कपड़े को दबाए रहता है।

प्रश्न 5.
बॉबिन वाइण्डर क्या है? इसका क्या कार्य
उत्तर:
यह फ्लाई व्हील के सहारे लगा एक छड़ के समान पिन है, जिसके सहारे बॉबिन अर्थात् फिरंकी में धागा भरा जाता है।

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प्रश्न 6.
फ्लाई व्हील का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह एक गोल पहिया होता है जिसके घुमाने पर मशीन चलती है जब वह आगे की ओर घूमता है तभी मशीन चलती हैं और सिलाई कर पाना संभव है।

प्रश्न 7.
सिलाई मशीन को कहाँ रखना चाहिए?
उत्तर:
सिलाई मशीन को सूखे एवं गर्म स्थान पर रखना चाहिए। नम वाले स्थानों में व्याप्त सीलन से मशीन के पुर्जी में जंग लगने का भय रहता है।

प्रश्न 8.
ड्राफ्टिंग टेबिल की लम्बाई तथा ऊँचाई कितनी होनी चाहिए?
उत्तर:
ड्राफ्टिंग टेबिल की लम्बाई पाँच फुट तथा ऊँचाई 3 से 3- फुट होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
सिलने वाले कपड़ों पर निशान टेलर्स चॉक से ही क्यों लगाते हैं?.
उत्तर:
टेलर्स चॉक से निशान लगाना आसान होता है तथा इन्हें आसानी से मिटाया भी जा सकता है।

प्रश्न 10.
पिकिंग सिअर्स क्या काम आती है?
उत्तर:
यह वस्त्रों के किनारों को परिसज्जित करने के काम आती है।

प्रश्न 11.
इस्त्री कितने प्रकार की होती है ? केवल नाम लिखिए।
उत्तर:
इस्त्री तीन प्रकार की होती है –

  • साधारण
  • स्वचालित
  • वाष्पयुक्त।

वाष्पयुक्त इस्त्री दो प्रकार की होती है –

  • कोयले से गर्म होने वाली
  • बिजली से गर्म होने वाली।

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प्रश्न 12.
पेपर पैटर्न किसे कहते हैं?
उत्तर:
कटिंग के बाद जो आकृति हमें प्राप्त होती है उसे पेपर पैटर्न कहते हैं।

प्रश्न 13.
पूरे स्केल की ड्राफ्टिंग किस पर की जाती है?
उत्तर:
पूरे स्केल की ड्राफ्टिंग नोटबुक, या फाइल पर बनायी जाती है।

प्रश्न 14.
पोशाक बनाने हेतु कौन-कौन सी नाप ली जाती है?
उत्तर:
पोशाक बनाने हेतु लम्बाई – चौड़ाई, तीरा, कमर, बाँहों की लम्बाई, मोहरी की लम्बाई व गले की गहराई आदि नाप ली जाती है।

प्रश्न 15.
सूती वस्त्रों को सिलने से पहले पानी में धोना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
सूती वस्त्रों को सिलने से पहले पानी से इसलिये धोया जाता है जिससे कि वे सिलने के बाद सिकुड़ न सकें।

प्रश्न 16.
अंगुश्तान का क्या उपयोग है?
उत्तर:
हाथ से सिलाई करते समय सुई अँगुली में न चुभे इसके लिये अँगुली में अंगुश्तान पहना जाता है। इससे सुई अँगुली में चुभती नहीं और न ही त्वचा खुरदरी होती है।

प्रश्न 17.
ट्रेसिंग व्हील का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह लकड़ी के हैंडिल में लगा धातु की छड़ के साथ दाँतों वाला छोटा पहिया है। यह कपड़े पर ड्राफ्टिंग उतारने और सिलाई के लिये निशान लगाने के काम आता है। इससे निशान लगाना आसान होता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
थ्रेड टेंशन डिवाइस एवं डिस्कस का क्या उपयोग है?
उत्तर:
थ्रेड टेंशन डिवाइस एवं डिस्कस में एक स्प्रिंग में दो गोल पत्तियों के बीच सामने की ओर एक पेच लगा होता है जिसे कसकर या ढीला करने पर धागे के तनाव को कम या अधिक किया जाता है, इसलिए इसे ‘थ्रेड टेंशन डिवाइस’ कहते हैं। पेच के पीछे वाली गोल चकरियों को थ्रेड टेंशन डिस्कस कहते हैं।

प्रश्न 2.
स्टिच रेगुलेटिंग स्क्रू किस काम आता है?
उत्तर:
बॉबिन वाइन्डर के नीचे, एक लम्बा साँचा होता है, जिस पर एक प्लेट लगी होती है। उसी के बीच एक स्क्रू होता है जिसे ऊपर-नीचे किया जा सकता है। इस प्लेट पर 0 से 5 नम्बर अंकित होते हैं 0 से ऊपर आने पर बखिया बारीक, 0 से नम्बर 5 पर पहुँचने पर बखिया मोटी हो जाता है।

प्रश्न 3.
कैंची कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
कैंची दो प्रकार की होती है –

  • छोटी कैंची – इसके दोनों हिस्से नुकीले होते हैं। इसकी धार तेज होती है, इसीलिए इसका प्रयोग छोटा कपड़ा या धागा काटने में होता है।
  • बड़ी कैंची – यह कपड़ा काटने के काम में आती है। इसकी लम्बाई 20 सेमी. से 25 सेमी. तक होती है।

प्रश्न 4.
सिलाई मशीन का ऐतिहासिक विवरण दीजिए।
उत्तर:
जब से मनुष्य द्वारा कपड़े का आविष्कार हुआ और उसमें अच्छे ढंग से कपड़े पहनने की इच्छा जाग्रत हुई तब से सिलाई-कटाई का जन्म हुआ। मशीनी युग में सिलाई मशीन का आविष्कार सर्वप्रथम फ्रांस के एक दर्जी द्वारा 1830 में साधारण मशीन बनाकर किया गया। सन् 1848 में इसमें काफी सुधार हुआ। सन् 1881 में सिंगर नामक व्यक्ति ने एक अच्छी किस्म की मशीन का आविष्कार किया तथा इस आविष्कार ने सिलाई की दुनिया में एक क्रान्ति ला दी। भारत में सर्वप्रथम सन् 1935 ई. में ऊषा मशीन का कारखाना स्थापित किया गया। आधुनिक समय में अनेक कारखाने हैं जिनमें हाथ, पैर व बिजली से चलने वाली सिलाई मशीनें बनायी जाती हैं।

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प्रश्न 5.
इस्त्री हेतु आवश्यक सामग्री बताइए।
उत्तर:
इस्त्री हेतु निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है –

  • प्रैस – सिलाई करते समय अपनी सुविधानुसार किसी भी प्रेस का उपयोग किया जा सकता है। स्वचालित प्रैस सिलाई हेतु उत्तम मानी जाती है, क्योंकि कपड़े की प्रकृति जैसे ऊनी, रेशमी के अनुसार ताप को नियंत्रित किया जा सके।
  • प्रेसिंग टेबल – प्रेस करने हेतु प्रेसिंग टेबल का उपयोग करना चाहिए। यह साफ-सुथरा होना चाहिए। प्रेसिंग टेबल के अभाव में जमीन पर दरी बिछाकर उस पर साफ कपड़ा लगाकर भी प्रैस की जा सकती है।

प्रश्न 6.
मापक फीता का संक्षिप्त विवरण लिखिए।
उत्तर:
मापक फीता:
सिलाई प्रारम्भ करने से पूर्व नाप लेना आवश्यक होता है। नाप लेने के लिये इंची टेप का प्रयोग किया जाता है। ये लचीले व मुलायम होते हैं तथा शारीरिक बनावट के अनुसार मुड़ने की क्षमता रखते हैं। इसके एक ओर 1 इंच से 60 इंच और दूसरी ओर 1 से 162 सेमी तक के निशान अंकित रहते हैं। फीते के दोनों किनारों पर पीतल की पत्ती लगी रहती है। फीते का प्रत्येक एक इंच आठ भागों में बँटा रहता है। इंच सूचक अंकों के बीच एक बड़ी रेखा होती है जो आधा इंच की द्योतक होती है। प्रत्येक 1 सेमी दस भागों में बँटा होता है। सेमी सूचक अंकों के बीच एक बड़ी रेखा होती है, जो आधा सेमी का नाप दर्शाती है।

प्रश्न 7.
सिलाई मशीन की देखभाल किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
सिलाई मशीन की देखभाल:
सिलाई मशीन का रख – रखाव करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  • समय – समय पर मशीन में तेल देना आवश्यक है अन्यथा पुर्जे जल्दी ही घिस जाने पर मशीन भारी चलती है एवं आवाज भी करती है।
  • मशीन के ऊपरी एवं निचले भाग में स्थान-स्थान पर बने हुए छिद्रों में कुप्पी के सहयोग द्वारा किसी अच्छी कम्पनी के तेल की एक-दो बूंदें सप्ताह में कम-से-कम एक बार अवश्य डालें।
  • सिलाई करने के बाद मशीन को कपड़े अथवा ढक्कन से अवश्य ढक दें, जिससे मशीन के पुों में धूल न पहुँचे।
  • सिलाई करने के पश्चात् मशीन के पुों में कपड़ों के रेशे घुस जाते हैं। यदि इन रेशों की समय पर सफाई न की जाये तो मशीन भारी चलने लगती है एवं सुई टूट जाती है। अत: प्रत्येक बार सिलाई करने के बाद मशीन को साफ करके रखना चाहिए।

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RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सिलाई हेतु आवश्यक वस्तुओं का वर्णन करिए।
उत्तर:
सिलाई हेतु आवश्यक उपकरण अथवा वस्तुएँ –

  •  कटिंग हेतु कैंची – कैंची दो प्रकार की होती है – एक बड़ी व एक छोटी।
  • बड़ी कैंची – कपड़ा काटने के काम में आती है। इसकी लम्बाई 20 सेमी. से 25 सेमी. तक होती है।
  • छोटी कैंची – इसके दोनों हिस्से नुकीले होते हैं। इसकी धार तेज होती है। इसीलिये इसका प्रयोग छोटा कपड़ा या धागा काटने में होता है।
  • नाप हेतु

1.इंची टेप:
इंची टेप कपड़े की नाप लेने के काम आता है। इसके दोनों ओर इंच व सेमी. में निशान रहते हैं। एक इंची टेप में 162 सेमी. व 60” होते हैं। इसमें इंच व आधे इंच तथा चौथाई इंच के निशान होते हैं। इससे गोलाई की नाप लेना आसान होता है। फीते के दोनों सिरों पर पीतल की पत्ती लगी होती है। इससे नाप लेने में सहायता मिलती है और इस पत्ती पर इंच टेप को लपेटकर रखा जाता है।

2. टेलर्स चॉक अथवा मिल्टन चॉक:
चिकनी मिट्टी से बनी चौकोर नुकीली बट्टी को चॉक या खड़िया कहते हैं। यह कई रंगों में मिलती है। यह कपड़ों पर डिजाइन या कटाई से पहले निशान लगाने के काम आती है।

3. पिन:
इसकी लम्बाई एक या दो सेमी होती है। कपड़ा काटते समय खिसके नहीं, इसलिये इसका प्रयोग किया जाता है। पिन अच्छी होनी चाहिए, ताकि कपड़ा खराब न हो।

4. बुश:
ब्रुश द्वारा कपड़े पर पड़े मिल्टन चॉक के निशान मिटाये जा सकते हैं।

5. मिल्टन क्लाथ:
कपड़े काटने से पहले इस पर निशान लगाकर अभ्यास किया जा सकता है। इस कपड़े पर निशान आसानी से मिट जाते हैं। यह गर्म कपड़े के समान मोटा होता है।

6. ट्रेसिंग ह्वील:
यह लकड़ी की गोल लम्बी छड़ के आगे दाँतों वाले पहियेनुमा बना एक यन्त्र है, जिसे ‘ट्रेसिंग ह्वील’ कहा जाता है। यह कपड़े के एक ओर से दूसरी ओर निशान लगाने के काम आता है।

7. ड्राफ्टिंग कागज:
कागज के बड़े पैटर्न बनाने के लिए खाकी या सफेद रंग के कागज बाजार में उपलब्ध होते हैं। ये कपड़े के नाप में आसानी से मिल जाते हैं। इसकी जगह पुराने अखबार का प्रयोग भी किया जा सकता है।

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8. कटिंग व ड्राफ्टिंग टेबिल:
कटिंग और ड्राफ्टिंग करने के लिए टेबिल की आवश्यकता होती है। इस पर मिल्टन क्लॉथ को खींचकर चारों ओर से कसकर लगा दिया जाता है। इस टेबिल की ऊँचाई लगभग साढ़े तीन फुट तथा लम्बाई चार फुट होनी चाहिए। टेबिल के बायीं या दायीं ओर एक दराज बनानी चाहिए ताकि कटिंग हेतु आवश्यक सामग्री उसमें रख सकें।
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(स) सिलाई हेतु:
1. अँगूठी:
जीन्स या मोटे कपड़े को हाथ से सिलते समय इसका प्रयोग किया जा सकता है। यह अँगुलियों के नाप की हल्के लोहे की बनी होती है। इससे अंगुली में सुई नहीं चुभती। इसकी मोटाई के अनुसार ये 6 से 11 नम्बर तक की होती हैं। यह खुली व बन्द दोनों प्रकार की होती है।

2. सुई:
मशीन व हाथ दोनों तरह की सुई की आवश्यकता पड़ती है। यह कपड़े के अनुसार अलग-अलग नम्बरों की प्रयोग की जाती हैं। सुई का नम्बर कपड़े के अनुसार लेना चाहिए। हाथ की सुई में 6 से 8 नं. तक की सुई का अधिक उपयोग किया जाता है।

3. धागा:
सिलाई करने हेतु अच्छी कम्पनी का मजबूत धागा अलग-अलग रंग में लेकर रख लेना चाहिए। धागों का रंग पक्का होना चाहिए।

4. सिलाई का डिब्बा:
सिलाई से सम्बन्धित छोटी-मोटी चीजों को सुरक्षित रखने के लिए एक प्लास्टिक, लोहे अथवा लकड़ी का डिब्बा होना चाहिए।

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RBSE Class 12 Home Science Chapter 23 प्रयोगात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्त्रों को सिलने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले विभिन्न टाँकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिलाई के लिए उपयोगी टाँके:
जब दो या अधिक कपड़ों को जोड़ना होता है तो उन्हें सिलाई करके जोड़ा जाता है। वस्त्र मशीन में सिलने से पूर्व हाथ द्वारा भी सिला जाता है तथा मशीन द्वारा सिलने के पश्चात् नीचे घेर इत्यादि मोड़ने में भी हाथ के टाँकों का प्रयोग किया जाता है। सिलाई करते समय किस स्थान पर कौन-सा टाँका उपयुक्त रहेगा? यह वस्त्र में आने वाले जोड़, आकार एवं कपड़े की बनावट पर निर्भर करता है। अतः गृहिणी को विभिन्न प्रकार के टाँकों का ज्ञान होना आवश्यक है, जो निम्न है –

1. कच्चा टाँका (Basting/Tacking):
यह स्थायी टाँका नहीं है। यह टाँका केवल दो कपड़ों को अस्थायी रूप से जोड़ने के लिए किया जाता है। जब दो कपड़े अस्थायी टाँकों से जोड़ दिये जाते हैं तो वास्तविक सिलाई बाद में की जाती है। कच्चे टाँके लगाने से स्थायी अन्तिम सिलाई सरलता से और उत्तम होती है। धागे को गाँठ देकर कपड़े की दायीं ओर से बायीं ओर सिलाई की जाती है। यह टाँका – सेमी. से 1 सेमी. लम्बा हो सकता है। इसके लिए लम्बे धागे व लम्बी सुई का उपयोग किया जाता है। जब वस्त्र पर पक्की सिलाई हो जाती है तो कच्ची सिलाई निकाल दी जाती है।
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2. बखिया टाँका:
हाथ की सिलाई का यह सर्वाधिक मजबूत टाँका है। यह टाँका मशीन के टाँके की तरह मजबूत होता है। ये टाँके सामने से मशीन के टाँके जैसे लगते हैं। जहाँ मशीन द्वारा सिलाई नहीं की जा सकती है। वहाँ पर बखिया टाँके का उपयोग किया जाता है। इस टाँके को बनाने के लिये एक सादा टाँका लगाया जाता है। अब सुई को वापिस पीछे की तरफ उसी जगह से निकालते हैं। जहाँ से पहले निकाली थी और पहले वाले टाँके से आगे की ओर ले जाते हैं अर्थात् सुई एक कदम पीछे ओर दो कदम आगे चलती है।

3. तुरपाई:
सिले हुए वस्त्रों के किनारों को मोड़कर यह टाँका लगाया जाता है। इसे ‘स्थायी हस्त टाँका’ भी कहते हैं। तुरपाई वस्त्र के निचले घेरे, पैंट की मोहरी, गले की पट्टियाँ आदि पर की जाती है। इसमें कपड़े के सीधे तरफ टाँके न के बराबर दिखाई देते हैं। तुरपाई वाले स्थान को सर्वप्रथम प्रैस करते हैं फिर कपड़े के किनारों को अन्दर की ओर अच्छी तरह से मोड़ लें। तुरपाई का टाँका हमेशा उल्टी तरफ से लगाया जाता है। तुरपाई के वस्त्र को बराबर मोड़ते हुए कपड़े को अपने बायें हाथ की अंगुलियों में फँसाकर, दायें हाथ से सुई पकड़कर नीचे वाले हिस्से को लेते हुए ऊपर वाले हिस्से की ओर छोटा टाँका निकालें। इस प्रकार थोड़ी-थोड़ी दूरी पर टाँका लगाते जायें। उल्टी तरफ टाँका तिरछापन लिये दिखाई देता है।
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RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 23 वस्त्रों की सिलाई

4. चोर सिलाई:
किनारों से रेशे अधिक निकलने वाले वस्त्रों पर यह सिलाई की जाती है। जैसे – साटिन, कृत्रिम सिल्क आदि। दोनों कपड़ों की सीधी साइड बाहर की और रखकर कपड़ों के किनारे की सादा सिलाई से सिलें। सिलाई करने के बाद कपड़े को पलटकर उल्टे भाग की ओर पड़ने वाली सिलाई के बीच में लेते हुए पुनः टाँका लगा दें।

5. इन्टरलॉक टाँका:
ये टाँके सज्जा के लिये बच्चों के गर्म कपड़ों व कम्बलों के किनारों पर लगाये जाते हैं। फ्रॉक, ब्लाउज आदि के गले व बाँह आदि के किनारों की सुन्दरता बढ़ाने के लिये भी ये टाँके लगाये जाते हैं। इसे ‘लूप’ टाँका भी कहते हैं। यह हाथ से बनाया जाता है। बायीं ओर से शुरू करते हुए सुई को कपड़े की परत में डालकर, ऊपर किनारों की ओर आगे को ऊपर डालते हुए लूप बनाते हुए निकालें। इस प्रकार एक के बाद एक टाँका लगाते जायें। ये टाँके धागा बाहर न निकले इसके कारण वस्त्रों के किनारों पर लगाये जाते हैं।
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प्रश्न 2.
बन्द करने के साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अलग – अलग वस्त्रों को पहनने और खोलने में आसानी हो इसके लिये बटन तथा पट्टियाँ लगायी जाती हैं और इन पर बंधक लगाये जाते हैं। जैसे-पुरुषों की शर्ट पर काज-बटन, पैंट में जिपर, महिलाओं के परिधानों में हुक, आई एवं जिपर ओर बच्चों के वस्त्रों में प्रेस बटन डोरी व कभी-कभी जिपर का भी उपयोग किया जाता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं

1. काज बनाना:
कपड़ों की सुन्दरता और अच्छी फिटिंग के लिये काज बटन किये जाते हैं। बटन के लिये काज की आवश्यकता होती है। बटन की साइज के अनुसार ही काज बनाने चाहिए जैसे कि छोटे बटन के लिये छोटे काज तथा बड़े बटन के बड़े काज, शर्ट की बायीं पट्टी पर बटन व दायीं पट्टी पर काज बनाया जाता है। वस्त्र की पट्टी पर जितना बड़ा काज बनाना है उतना निशान लगाकर कपड़े को दोहरा कर तेज धार की कैंची से कट लगाये। कटे किनारों पर बारीक कच्चा टाँका लगायें। इसके बाद पास-पास में लूप टाँका कसकर बनाते हुए काज भरना शुरू करें इस प्रकार दोनों किनारों पर लूप टाँके गोलाई में भरकर काज बनायें।
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2. बटन लगाना:
काज की सहायता से कपड़े पर पेंसिल से निशान लगाने के उपरान्त बटन को सही प्रकार से जमा कर दो छेद या चार छेद के अनुसार छेद में से सुई निकालें। कपड़े के निचले हिस्से तक सुई को बाहर निकालते हैं। इस तरह कई बार सुई निकाल कर बटन को मजबूती से लगाना चाहिए। बटन की मजबूती के लिए बटन को सतह से ऊपर उठाकर बटन के नीचे गोलाई में धागा घुमाकर टाँका पक्का करना चाहिए।

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3. हुक एवं आई:
सबसे पहले जहाँ हुक लगाना है वहीं पर निशान लगा लें। हुक को निशान लगे स्थान पर रखकर हुक के ‘अ’ भाग पर गोलाई में सुई द्वारा दोहरे धागे को चार-पाँच बार निकालें । ‘ब’ भाग पर धागे को दो बार निकालकर पक्का कर लें। – आई दो प्रकार से लगाई जाती है। एक धातु से बनी और दूसरी धागों से बनायी गयी। धातु से बनी आई को लगाने के लिए निशान पर रखते हुए मजबूत दोहरे धागे से काज टाँके से लगाइये । धागे से आई बनाने के लिए धागा लेकर कपड़े के नीचे से एक सिरे से कुछ दूरी पर दूसरा सिरा बनाकर तीन-चार बार धागा निका कर आई बना लें। फिर उसे बटन होल टाँके से भरकर तैयार कर लें।
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4. जिपर या चैन लगाना:
सामान्यतया जिपर या चैन पुरुष व महिलाओं के साथ बच्चों के परिधानों में भी लगायी जाती है। इसे लगाना आसान होता है। जिप के दोनों हिस्सों पर नायलॉन के फीते पर दाँत लगे होते हैं। इन फीतों को परिधान की पट्टियों पर रखकर मशीन से सावधानीपूर्वक सिल देते हैं।

प्रश्न 3.
पैबन्द लगाना एवं रफू लगाने की विधि लिखिए।
उत्तर:
प्रयोग में लाने के समय कभी:
कभी वस्त्र फट जाते हैं। कभी-कभी वस्त्र किसी बाहरी वस्तु में फँसकर या अटक कर भी फट जाते हैं। कभी-कभी वस्त्र घर्षण से भी फट जाते हैं। वस्त्र जहाँ से फटता है उसके आसपास का भाग मजबूत व सही स्थिति में होता है। ऐसी स्थिति में वस्त्रों की मरम्मत करना आवश्यक होता है। परिधान के फटने और किस्म के आधार पर दो तरह से मरम्मत की जाती है –
(1) रफू करना
(2) पैबन्द लगाना।

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(1) रफू करना:
कभी-कभी वस्त्र घिसकर या किसी वस्तु में अटककर फट जाते हैं। इस प्रकार से फटे वस्त्रों को पुनः उसी बुनाई में नये धागे से बुन देने को रफू कहते हैं। रफू करने के लिए उसी वस्त्र में से लम्बाई में से तार खींच लिए जाते हैं। रफू करने के सामान्य नियम –

  • जिस स्थान से वस्त्र घिस गया हो उसे वहाँ से तुरन्त रफू कर देना चाहिए अन्यथा वस्त्र में सूराख पड़ जायेगा।
  • कपड़े की लम्बाई में से धागा निकाल लेना चाहिए। परन्तु यदि किसी कारण से धागा न निकल सके तो वस्त्र के रंग से मिलता धागा उपयोग में लाना चाहिए।
  • सुई लम्बी व पतली होनी चाहिए ताकि अधिक-से-अधिक धागे एक ही समय में लिए जा सकें।
  • बुनाई करते समय दोनों ओर थोड़ा-थोड़ा धागा छोड़ देना चाहिए ताकि खिंचे नहीं।
  • रफू कपड़े के उल्टी ओर की जाती है। पहले लम्बाई में फिर चौड़ाई में रफू किया जाता है।

घिसे हुए स्थान की रफू:
कपड़ा बहुत अधिक पहनने पर घिस जाता है। उस पर पुन: बुनाई की जाती है।

विधि:
सुई में लम्बाई में निकाला हुआ उसी वस्त्र का धागा या उससे मिलता – जुलता धागा डालकर बहुत महीन कच्चे टाँके से रफू करनी चाहिए। इस बात का पूरा – पूरा ध्यान रहे कि जिस स्थान पर लम्बाई – चौड़ाई परस्पर मिलें वहाँ L का आकार बनना चाहिए। रफू की आकृति स्थान के अनुसार बुनी जाती है।

कटे स्थान पर रफू:
चाकू, छुरी, ब्लेड आदि से कटने पर कपड़ा तिरछे आकार में ही कटता है और झाडी. काँटों आदि से अटककर L की शक्ल में कटता है। दोनों ही अवस्थाओं में पहले कपड़े के कटने के स्थान को मझली टाँकों से परस्पर जोड़ना चाहिए। इस प्रकार जोड़ने के बाद आकार निश्चित करके निशान लगायें। निशान लगाने के उपरान्त कटे स्थान पर रफू करें।
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(2) पैबन्द लगाना:
जब वस्त्र अधिक फट जाये या ऐसे फट जाये जिसकी मरम्मत रफू द्वारा नहीं की जा सकती हो तो फटे स्थान पर उसी परिधान का दूसरा टुकड़ा सफाई के साथ लगा देना ही ‘पैबन्द लगाना’ है। इससे फटे हुए हिस्से पर आई कमजोरी दूर हो जाती है और परिधान सुदृढ़ हो जाता है। पैबन्द लगाने के लिए मूल वस्त्र का कपड़ा ही सर्वोत्तम रहता है। यदि कपड़ा टेढ़ा-मेढ़ा फटा हों तो फटे हुए स्थान के आस-पास का जितना कपड़ा कमजोर या अनियमित हो उसको चौकोर, त्रिकोण, वर्गाकार, गोल या अन्य किसी आकृति में काटकर निकाल देना चाहिए। पैबन्द लगाने वाला कपड़ा फटे हुए स्थान से 2-3 सेमी लम्बाई व चौड़ाई में अधिक होना चाहिए ताकि फटा हिस्सा ढक जाये और किनारे आसानी से मोड़े जा सकें।

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पैबन्द वाले टुकड़े को फटे हुए स्थान पर कपड़े की बनावट के अनुसार रखकर सीधी ओर से टाँका लगायें फिर कपड़े को उलट कर कटे हुए छिद्र के किनारों पर अच्छे से बखिया या तुरपन करनी चाहिए। पैबन्द वाले टुकड़े को चारों ओर से 1 सेमी मोड़ कर बखिया या तुरपाई कर दें। गर्म वस्त्रों में पैबन्द लगाकर किनारे मोड़ने नहीं चाहिए या पैबन्द वाले कपड़े को मूल कपड़े के साथ रफू कर देना चाहिए। छपे हुए, धारीदार व चैक वाले कपड़े पर पैबन्द लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पैबन्द की छपाई व धारी, कपड़े की छपाई व धारी से मिल जाये।
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प्रश्न 4.
एप्रेन मिलाने की ड्राफ्टिग कीजिए।
उत्तर:
एप्रेन सिलना व ड्राफ्टिग करनातैयार नाप:
लम्बाई – 33′
चौड़ाई – 25″
अनुमानित कपड़ा : प्रिन्टेड -1 मीटर
प्लेन कपड़ा – \(\frac { 1 }{ 2 }\) मीटर (पाइपिन के लिए)
आरेखन:
ब्राउन पेपर पर चित्र की सहायता से आरेखन बनायें। नाप के अनुसार ब्राउन पेपर लें। अब ब्राउन पेपर को चौड़ाई की तरफ से दोहरा करें। किनारों को नाम दें, अ, ब, स तथा द।
अ से ब =12”
अ से द = 32”
अ द = ब स
आरेखन अ ब + द स
अ से य =5 \(\frac { 1 }{ 2 }\), ब से र = 10′
य को र से गोलाई देते हुए मिलायें। इस तैयार ड्राफ्ट को काटकर पेपर पैटर्न तैयार करें।
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प्रश्न 5.
एप्रेन काटने व सिलाई करने की विधि लिखिए।
उत्तर:
एप्रेन काटना:
कपड़े का पेपर पैटर्न जमाकर काट लें। कपड़े को लम्बवत् ही काटना चाहिए। कपड़े की 1 इंच चौड़ी अरेव पट्टियाँ काटें।
सिलाई करना:

    • लगभग 40 से 50 इंच लम्बी एक उरेब पट्टी जोड़कर बना लें।
    • सर्वप्रथम य से य, तक पाइपिंग लगा लें।
    • दस इंच पट्टी को छोड़कर र से पट्टी लगाते हुए य तक जोड़ें।
    • य से 10-12 इंच उरेब को गले में पहनने के लिए छोड़ते हुए फिर से य से र, तक पट्टी लगायें।
    • पूरी उरेब पट्टी को दोहरा मोड़ कर सिल लें।
    • द से स तक नीचे घेर में भी पाइपिंग लगा दें।
    • मनचाही आकृति की जेब पाइपिंग लगाते हुए लगायें।

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