Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 6 वयस्कावस्था और वृद्धावस्था
RBSE Class 12 Home Science Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर चुनें –
(i) युवावस्था प्रायः होती है –
(अ) 18 – 19 से 40 वर्ष तक की
(ब) 19 – 20 से 40 वर्ष तक की
(स) 18 – 20 से 40 वर्ष तक की
(द) 20 – 21 से 40 वर्ष तक की।
उत्तर:
(द) 20 – 21 से 40 वर्ष तक की।
(ii) आर्थिक व सामाजिक स्थिरता की अवस्था होती है –
(अ) युवावस्था
(ब) प्रौढ़ावस्था
(स) बाल्यावस्था
(द) वृद्धावस्था।
उत्तर:
(ब) प्रौढ़ावस्था
(iii) वृद्धों का एकाकीपन बढ़ता जाता है –
(अ) जीवन साथी की मृत्यु से
(ब) बच्चों के विवाह कर अलग घर बसाने से
(स) बच्चों के नौकरी के लिए बाहर जाने से
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
(iv) वृद्धों का आहार निम्नानुसार दिया जाना चाहिए।
(अ) शारीरिक परिवर्तनों
(ब) स्वास्थ्य
(स) रुचि
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
(v) वृद्धावस्था में हड्डियों के जोड़ों में उपस्थित स्नेहक द्रव की मात्रा हो जाती है –
(अ) कम
(ब) यथावत्
(स) अधिक
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) कम
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. ………..वह समय होता है, जबकि किशोर अपनी संपूर्ण शारीरिक वृद्धि व विकास को प्राप्त कर मानसिक रूप से स्थिर एक परिपक्व युवा बन जाता है।
2. युवा एवं प्रौढ़ को सामूहिक रूप से…………कहते हैं।
3. शैशवावस्था मानव जीवन का है तो वृद्धावस्था उसकी………..है।
4. वृद्ध व्यक्ति के लिए………..ही उनके सामाजिक जीवन का केन्द्र होता है।
5. वृद्धावस्था का प्रारम्भ प्रायः………..की उम्र से माना जाता है।
उत्तर:
1. युवावस्था
2. वयस्क
3. प्रात:काले, जीवनसंध्या
4. पारिवारिक समूह
5. 60 वर्ष।
प्रश्न 3.
टिप्पणी लिखो
1. युवावस्था
2. प्रौढावस्था
उत्तर:
(1) युवावस्था:
यह अवस्था 21 से 40 वर्ष तक चलने वाली अवस्था है। इसे पूर्व प्रौढ़ावस्था भी कहते हैं। इस अवस्था में व्यवसाय, वैवाहिक क्षेत्रों में समयोजन करना पड़ता है। इस अवस्था के समय युवा विशिष्ट जीवन लक्ष्यों को निश्चित रूप से चुनाव कर लेता है और अपनी शक्तियों को अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में लगाता है। युवावस्था जीवन का वह पड़ाव है जब किशोर अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते हैं या करने वाले होते हैं। युवावस्था में सुखी होना अधिकांशत: संतोषजनक व्यावसायिक समायोजन पर निर्भर करता है।
यदि वह व्यवसाय से खुश नहीं होता तो अपने घरेलु जीवन में सामाजिक जीवन में और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अप्रसन्न ही रहता है। युवावस्था ही वह समय है जब जीवन की स्थिरता के लिये वह उपयुक्त जीवन साथी का चुनाव करता है। युवावस्था शारीरिक परिवर्तनों की अवस्था है। आर्थिक उत्पादन की इस अवस्था के फलस्वरूप राष्ट्र की उत्पादन क्षमता एवं सुख समृद्धि सुनिश्चित होती है।
(2) प्रौढावस्था:
प्रौढ़ावस्था को मध्यवय अवस्था भी कहते हैं। यह अवस्था 40 वर्ष से 60 वर्ष की आयु तक चलती है। इस अवस्था के आरम्भ और अन्त में शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। इस अवस्था में जनन क्षमता, शारीरिक शक्ति तथा स्फूर्ति कम हो जाती है। यह अवस्था आर्थिक व सामाजिक उन्नति की चरमोत्कर्ष अवस्था है। इस अवस्था में व्यक्ति अपनी सफलताओं में स्थिर हो जाता है। अब व्यक्ति संवेगात्मक रूप से स्थिर, शान्त, सौम्य एवं अनुभवी हो जाता है। शारीरिक परिवर्तनों के रूप में व्यक्ति का शरीर – भार बढ़ जाता है। बालों व त्वचा में परिवर्तन हो जाते हैं, बाल सफेद हो जाते हैं। त्वचा आँखों के नीचे झुर्रियाँ पड़ जाती हैं, नेत्र ज्योति की तीक्ष्णता घट जाती है। यह अवस्था काम क्षीणता तथा रजोनिवृत्ति का काल होता है।
प्रश्न 4.
सेवानिवृत्त होने के बाद व्यक्ति को प्रायः किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
वृद्धावस्था का आरम्भ 60 वर्ष की उम्र से माना जाता है। इस उम्र में व्यक्ति अपनी सेवाओं से सेवानिवृत्त होता है। और वह घर के सदस्यों के साथ पूर्ण समय बिताते हुए शांत एवं स्थिर जीवन जीना चाहता है। वृद्धावस्था की इस शांति में कई प्रकार की समस्याएँ आती हैं। ये समस्याएँ शारीरिक, आर्थिक तथा मानसिक प्रकार की होती हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उसकी मासिक आय पेंशन मिलने की अवस्था में कम या फिर न मिलने के कारण बिल्कुल बंद हो जाती है।
अतः ऐसी स्थिति में उसे अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये घर के अन्य सदस्यों; जैसे-बेटे-बहू आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि वृद्ध व्यक्ति के पुत्र व्यवसाय प्राप्त नहीं कर पाते या पुत्री का विवाह नहीं हो पाया है तो उसकी आर्थिक समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं तथा मानसिक यातना भी झेलनी पड़ती है। सेवानिवृत्ति के बाद उसका कार्यालय जाना बन्द हो जाता है। अत: उसे एकाकी जीवन व्यतीत करने की समस्या आती है।
इस समय घर के अन्य सदस्य किसी न किसी कार्य में व्यस्त होते हैं। अतः वृद्ध घर में बिल्कुल अकेले पड़ जाते हैं। जीवन – साथी के अभाव में यह अकेलापन अवसाद तथा तनाव उत्पन्न कर देता है। वृद्धावस्था में सेवानिवृत्ति के बाद उसके मित्र भी मिलने नहीं आ पाते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उसपर कोई काम नहीं होता है। अतः खाली समय काटने में अत्यन्त परेशानी उत्पन्न हो जाती है।
परिवार के सदस्यों से वैचारिक मतभेद होने के कारण उनके सम्बन्ध भी बिगड़ जाते हैं। पत्नी से तनावे व वैमनस्य भी हो जाता है। वृद्धावस्था की समस्याओं के प्रति परिवार के सभी सदस्यों को उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा वृद्धों को भी परिवार के सदस्यों के साथ सामंजस्य रखना चाहिए ताकि उनकी अपनी प्रतिष्ठा बनी रहे।
प्रश्न 5.
वृद्धावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन व उससे सम्बन्धित समस्याओं के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
वृद्धावस्था में होने वाले परिवर्तन व उससे सम्बन्धित समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
(1) वृद्धावस्था में नवीन कोशिकाओं को निर्माण टूट – फूट की दर से कम होने लगता है। अतः वृद्धावस्था में शरीर को भार कम होने लगता है। वसीय ऊतकों, तेल व स्वेद ग्रन्थियों की सक्रियता घट जाती है, जिससे त्वचा पतली, रूखी – सूखी व झुरींदार होकर जगह-जगह से लटक जाती है।
(2) वृद्धावस्था में दाँत गिरना प्रारम्भ हो जाते हैं या दाँतों में संक्रमण के कारण वे निकलवाने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति में उसे बोलने तथा भोजन करने में समस्या उत्पन्न होती है।
(3) सिर के बाल या तो कम होने लगते हैं या सिर गंजा हो जाता है। हाथ-पैर के नाखून मोटे व सख्त एवं भंगुर हो जाते हैं। इससे व्यक्ति मानसिक तनाव महसूस करता है।
(4) इस अवस्था में व्यक्ति की कमर व कंधे आगे की ओर झुक जाते हैं। इससे उसका कद छोटा लगने लगता है। इससे उसे चलने-फिरने में समस्या उत्पन्न होती है।
(5) सक्रिय माँसपेशियाँ कम हो जाती हैं। हड्डियों के जोड़ों में उपस्थित स्नेहक द्रव्य की मात्रा कम हो जाती है, इससे जोड़ों की सक्रियता कम हो जाती है, इनमें दर्द रहता है तथा उठने-बैठने व चलने-फिरने में कष्ट होता है।
(6) वृद्धावस्था में नाड़ी संस्थान कमजोर हो जाता है। इस कारण से उनके देखने, सुनने, सँघने, स्पर्श करने के स्वाद आदि की शक्ति क्षीण हो जाती है। दृष्टि दोष हो जाता है। स्वादिष्ट भोजन भी स्वादहीन लगता है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है, हाथ-पैर काँपने लगते हैं। जरावस्था आते-आते वृद्धों में गिरने व लड़खड़ाने आदि का खतरा भी बढ़ जाता है।
(7) अन्त: स्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले विभिन्न हारमोनों की मात्रा में कमी आ जाती है। पैराथारमोन हारमोन की कमी से अस्थिविकृति रोग ‘आस्टियो पोरोसिस’ होने की संभावना बढ़ जाती है। इस रोग के कारण हड्डयाँ कमजोर हो जाती हैं। तथा मामूली झटका लगने पर टूट जाती हैं। जो पुनः आसानी से जुड़ नहीं पाती है।
(8) उम्र के बढ़ने के साथ – साथ रक्त में कोलेस्ट्राल व लिपिड्स के स्तर बढ़ने लगते हैं। इससे हृदय सम्बन्धी रोग, उच्च रक्तचाप, छाती का दर्द (एन्जाइम) आदि की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
(9) वृद्धावस्था में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के कायिक रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है। शीत ऋतु में शरीर के तापमान का नियमन कठिन हो जाता है।
(10) वृद्धावस्था में व्यक्ति को पूरी नींद नहीं आती है। नींद की मात्रा में एक या दो घण्टों की कमी आ जाती है, इससे अधिकतर वृद्धों को अनिद्रा का रोग हो जाता है।
प्रश्न 6.
एक वृद्ध महिला की देखभाल आप कैसे करेंगे? समझाइये।
उत्तर:
एक वृद्ध महिला की देखभाल निम्नलिखित रूप से की जा सकती है –
- वृद्धावस्था में वृद्ध महिला को सन्तुलित आहार देना चाहिए जिससे उसे सन्तुष्टि प्राप्त हो सके। भोजन से संतुष्ट न होने के कारण वृद्धों में चिड़चिड़ापन आ जाता है।
- वृद्ध महिला को शोरगुल से दूर रखने का प्रबंध करना चाहिए तथा उसका कमरा इस प्रकार का होना चाहिए कि वह चैन से अपनी नींद पूरी कर सके।
- वृद्धों का कमरा अधिक ठण्डा नहीं होना चाहिए तथा उसमें मनोरंजन के पर्याप्त साधन भी होने चाहिए।
- वृद्धों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे शीघ्र रोगग्रस्त हो जाते हैं। अत: उन्हें नियमित रूप से चिकित्सक को दिखाते रहना चाहिए, चिकित्सा सुविधा घर के निकट हो तो वहाँ तक जाना आसान हो जाती है।
- वृद्ध व्यक्ति को सम्मान व स्नेह प्रदान करना चाहिए, जिससे वह अपने को उपेक्षित महसूस न कर सकें।
- आज वृद्धों को लोग एक बोझ समझने लगे हैं और वृद्धों को वृद्धाश्रमों में रखने की सलाह देते हैं। वृद्धावस्था की इन संस्थाओं में उन्हें परिवार के साथ रहने का सुख प्राप्त नहीं होता है। अतः वृद्ध व्यक्ति को परिवार के साथ ही रखना चाहिए तथा उसे संतुष्ट रखना चाहिए जिससे वह अपने को उपेक्षित न समझे।
- वृद्धों के पास समय-समय पर परिवार के सदस्यों को बैठना चाहिए, जिससे उनकी मानसिक वेदना कम हो जाती है तथा आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है।
- वृद्ध महिला यदि स्वयं शौच या स्नान नहीं कर सकती है तो उसे इस कार्य के लिये सहायता उपलब्ध करानी चाहिए।
- वृद्धा की असहाय अवस्था में उनकी साफ-सफाई करते रहना चाहिए तथा उनकी रुचियों का भी ध्यान रखना चाहिए।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 6 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Home Science Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रौढ़ावस्था प्रायः होती है।
(अ) 40 – 50 वर्ष तक की अवस्था
(ब) 40 – 60 वर्ष तक की अवस्था
(स) 50 – 60 वर्ष तक की अवस्था
(द) 30 से 50 वर्ष तक की अवस्था
उत्तर:
(ब) 40 – 60 वर्ष तक की अवस्था
प्रश्न 2.
उचित जीवन साथी का चुनाव किस अवस्था में होता है?
(अ) किशोरावस्था में
(ब) उत्तर किशोरावस्था में
(स) युवावस्था में
(द) प्रौढ़ावस्था में
उत्तर:
(स) युवावस्था में
प्रश्न 3.
जनन क्षमता व शारीरिक शक्ति कम हो जाती है –
(अ) युवावस्था में
(ब) प्रौढ़ावस्था में
(स) वृद्धावस्था में
(द) इनमें से किसी में नहीं
उत्तर:
(ब) प्रौढ़ावस्था में
प्रश्न 4.
सेवाओं से सेवानिवृत्ति की आयु क्या होती है –
(अ) 60 वर्ष
(ब) 62 वर्ष
(स) 55 वर्ष
(द) 58 वर्ष
उत्तर:
(अ) 60 वर्ष
प्रश्न 5.
पैराथायरायड ग्रन्थियों से निकलने वाले हारमोन की कमी से कौन – सा रोग होता है?
(अ) अस्थिविकृति रोग
(ब) ऑस्टियापोरोसिस
(स) जोड़ों में दर्द
(द) ये तीनों रोग
उत्तर:
(अ) अस्थिविकृति रोग
प्रश्न 6.
वृद्धों का कमरा होना चाहिए –
(अ) शोरगुल से दूर
(ब) बच्चों के कमरों के निकट
(स) अत्यधिक ठंडा
(द) परिवार से अलग
उत्तर:
(अ) शोरगुल से दूर
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. किशोरावस्था के समाप्त होते – होते…………प्रारम्भ हो जाती है।
2. युवावस्था में सुखी होना अधिकांशतः संतोषजनक…………समायोजन पर निर्भर करता है।
3. प्रौढावस्था में शरीर और शारीरिक…………में कुछ परिवर्तन होते हैं।
4. वृद्धावस्था में…………वृद्धि के साथ-साथ व्यक्ति के बल और स्फूर्ति की रफ्तार कम हो जाती है।
5. वृद्धावस्था में रोग…………क्षमता कम हो जाती है।
6. वृद्धावस्था में होने वाले परिवर्तन एवं…………को देखते हुए उनकी विशेष देखभाल करनी चाहिए।
उत्तर:
1. युवावस्था
2. व्यावसायिक
3. क्रियाओं
4. आयु
5. प्रतिरोधक
6. समस्याओं
RBSE Class 12 Home Science Chapter 6 अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
युवावस्था कब प्रारम्भ होती है?
उत्तर:
युवावस्था 20 – 21 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक चलती है।
प्रश्न 2.
आर्थिक व सामाजिक स्थिरता की अवस्था क्या कहलाती है?
उत्तर:
प्रौढ़ावस्था कहलाती है।
प्रश्न 3.
जरत्व किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह वृद्धावस्था की वह अवस्था है जिसमें हास धीमा और क्रमिक होता है और जिसकी क्षतिपूर्ति की जा सकती है, जरत्व कहलाती है।
प्रश्न 4.
जरावस्था किस कहते हैं?
उत्तर:
यह वृद्धावस्था की वह अवस्था है जिसेमें शरीर लगभग पूरी तरह टूट जाता है और मानसिक अस्त व्यस्तता आ जाती है।
प्रश्न 5.
सेवानिवृत्ति के बाद व्यक्ति की सबसे बड़ी। समस्या क्या होती है?
उत्तर:
सेवानिवृत्ति के बाद व्यक्ति को सबसे बड़ी समस्या अकेले घर पर समय काटने की आती है।
प्रश्न 6.
वृद्धावस्था में नाड़ी संस्थान के कमजोर होने से क्या समस्यायें आती हैं?
उत्तर:
नाड़ी संस्थान के कमजोर होने से उनके देखने, पूँघने, सुनने, स्पर्श करने आदि की शक्ति क्षीण हो जाती है। तथा स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
प्रश्न 7.
हड़डियों से कैल्शियम तथा फास्फोरस निकलने की दर अधिक होने से कौन-सा रोग हो जाता है?
उत्तर:
ऑस्टियोपोरोसिस रोग हो जाता है।
प्रश्न 8.
रक्त में कोलेस्ट्रोल बढ़ने से क्या समस्या उत्पन्न होती है?
उत्तर:
रक्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से हृदय रोग, उच्च रक्तचाप तथा एन्जाइम रोग होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
प्रश्न 9.
वृद्धावस्था में होने वाली संवेगात्मक अस्थिरता का क्या कारण है?
उत्तर:
वृद्धावस्था में होने वाली संवेगात्मक अस्थिरता का कारण कार्य निवृत्ति है।
प्रश्न 10.
वृद्धावस्था में किस प्रकार का आहार देना चाहिए?
उत्तर:
वृद्धावस्था में संतुलित आहार देना चाहिए।
प्रश्न 11.
वृद्धावस्था में नींद पूरी न होने पर क्या समस्या आती है?
उत्तर:
वृद्धावस्था में नींद पूरी न होने पर व्यक्ति तनाव ग्रस्त व चिड़चिड़ा हो जाता है।
प्रश्न 12.
वृद्धावस्था में अधिकतर कौन कौन से रोग हो जाते हैं?
उत्तर:
वृद्धावस्था में अधिकतर श्वसन रोग, हृदय सम्बन्धी रोग, मधुमेह, ऑस्टियोपोरोसिस तथा गठिया रोग होते हैं।
प्रश्न 13.
वृद्धावस्था में शरीर के भार में कमी क्यों हो जाती है?
उत्तर:
वृद्धावस्था में नयी कोशिकाओं के निर्माण की दर टूट – फूट होने की दर से कम हो जाती है।
प्रश्न 14.
युवावस्था में सुखी होना किस बात पर निर्भर करता है?
उत्तर:
युवावस्था में सुखी होना अधिकांशतः संतोषजनक व्यावसायिक समायोजन पर निर्भर करता है।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 6 लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धावस्था में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर:
वृद्धावस्था में आयु की वृद्धि के साथ सामाजिक क्रियाकलापों में सक्रियता भी कम हो जाती है। सेवानिवृत्ति के बाद उसके साथियों का साथ भी छूट जाता है, जीवन साथी की मृत्यु या घनिष्ठ मित्रों की मृत्यु तथा विविध बीमारियों के चलते स्वास्थ्य के कारण उसका दायरा सीमित व संकुचित हो जाता है। सेवा निवृत्ति के बाद उसके साथी ऐसे भी होते हैं जो दूर-दूर के होते हैं जो पुन: एकात्रित नहीं हो पाते हैं।
विवाहित वृद्धों में सामाजिक सक्रियता अधिक पायी जाती है। वृद्ध व्यक्ति के लिये पारिवारिक समूह ही उनके सामाजिक जीवन का केन्द्र होता है। विचारों में मतभेद के कारण कम आयु के पारिवारिक सदस्य अपने वृद्ध बुजुर्गों का खुले दिल से स्वागत भी नहीं कर पाते, ऐसे में आयु के बढ़ने के साथ – साथ वृद्ध व्यक्ति की अपने आप में रुचि बढ़ती जाती है तथा दूसरों में उसकी रुचि घटती जाती है।
प्रश्न 2.
वृद्धावस्था में होने वाले संवेगात्मक परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उम्र बढ़ने के साथ – साथ वृद्धों की संवेगात्मक स्थिरता में भी शीघ्र परिवर्तन आते हैं। संवेगात्मक परिवर्तन का मुख्य कारण होता है उनकी कार्यनिवृत्ति; सेवानिवृत्ति के बाद वृद्धों के लिये कोई कार्य नहीं रहता है। इस कारण उनका खाली वक्त काटे नहीं कटता है। निष्क्रियता और जरा मृत्यु की संकेतक होती हैं। कभी – कभी पत्नी से भी वैमनस्य हो जाता है जिसके कारण बुजुर्गों के सम्बन्ध परिवार के अन्य लोगों से भी बिगड़ जाते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद धन के अभाव में उसे अपने भविष्य से भय – सा लगने लगता है।
कार्य निवृत्ति, पारस्परिक मित्रों व जीवन – साथी के अभाव के कारण एकाकीपन, आर्थिक तंगी, पारिवारिक सदस्यों से बढ़ते मतभेद, गिरता हुआ स्वास्थ्य, संकुचित होता सामाजिक दायरा आदि कारक वृद्धों में उदासीनता बढ़ाते हैं जिससे उनमें चिड़चिड़ापन, झगड़ालू, सनकी व विरोधी होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। उनमें भय, व्याकुलता व निराशा की भावनाएँ अधिक पायी जाती हैं। संवेगात्मक स्थिरता के लिये वृद्धों को चाहिए कि वे किसी – न – किसी प्रकार के रुचिपूर्ण कार्य करें।
प्रश्न 3.
वृद्धावस्था की चिकित्सा सम्बन्धी क्या समस्याएँ होती हैं?
उत्तर:
वृद्धावस्था में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, इसके कारण वे शीघ्रता से रोगी हो जाते हैं। वृद्धावस्था में अधिकांशतः श्वसन सम्बन्धी समस्याएँ, हृदय सम्बन्धी रोग, मधुमेह, ऑस्टियोपोरोसिस, गठिया तथा पोषण ग्रन्थि का बढ़ना आदि रोग हो जाते हैं। अतः इन्हें नियमित चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता होती है। ये सुविधाएँ यदि घर के निकट होती हैं तो वे स्वयं ही समय-समय पर अपनी स्वास्थ्य जाँच करवा लेते हैं, अन्यथा परिवार के किसी सदस्य को यह जिम्मेदारी लेनी पड़ती है। कई बार आर्थिक संकट के कारण वृद्ध अपना इलाज नहीं करवा पाते हैं। हर व्यक्ति को वृद्धावस्था के लिये कुछ धन संचय करके जरूर रखना चाहिए।
प्रश्न 4.
वृद्धावस्था में नाड़ी संस्थान के कमजोर होने से क्या समस्याएँ आती हैं?
उत्तर:
वृद्धावस्था में नाड़ी संस्थान कमजोर हो जाता है। इस कारण उनके देखने, सुनने, सँघने, स्पर्श करने आदि की क्षमता क्षीण होने लगती है। आयु के साथ – साथ रंगों के प्रति संवेदनशीलता कम होती चली जाती है। वृद्ध प्रायः दूर की वस्तुओं को उचित ढंग से नहीं देख पाते हैं। स्वाद कलिकाएँ निष्क्रिय होने से स्वादिष्ट भोजन भी उन्हें स्वादहीन लगने लगता है।
वृद्धों की स्मरण शक्ति भी क्षीण होने लगती है। हाथ – पैरों की माँसपेशियों में सामंजस्य भी कम होने लगता है, इसके कारण हाथ – पैर काँपने लगते हैं। इस कारण से वृद्ध कोई भी कार्य कुशलता से नहीं कर पाते हैं। जरावस्था आते – आते वृद्धों को चलते समय गिरने तथा लड़खडाने आदि का खतरा बढ़ जाता है।
प्रश्न 5.
‘अस्थिविकृति’ ओस्टियोपोरोसिस रोग वृद्धावस्था में ही क्यों होता है?
उत्तर:
वृद्धावस्था में व्यक्ति की अन्त:स्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले विभिन्न हारमोनों के स्रावण की मात्रा कम होती चली जाती है। कम मात्रा में हारमोन के स्रावण से उनका असंतुलन हो जाता है। पैराथाइरॉयड ग्रन्थियों से निकलने वाले हारमोन का जब स्रावण कम हो जाता है तो इसके असंतुलन से वृद्धों में अस्थिविकृति रोग, ऑस्टियोपोरोसिस’ नामक अस्थि रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। इस रोग में हेडियों से कैल्शियम तथा फॉस्फोरस के निकलने की दर खनिजीकरण की दर से बहुत अधिक हो जाती है। हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं तथा थोड़े से झटके से टूट जाती हैं जो कि आसानी से व शीघ्रता से जुड़ भी नहीं पाती हैं।
RBSE Class 12 Home Science Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धावस्था में होने वाले आर्थिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य के अच्छा व सही होने की स्थिति में अधिकतर वृद्ध शारीरिक सामर्थ्य रहने तक काम करना और रोजगार में बने रहना चाहता है। कुछ वृद्धों के लिये काम आत्मसम्मान और योग्यता की भावना का आधार होता है, जबकि कुछ इसे प्रतिष्ठा का साधन मानते हैं तो कुछ वृद्ध काम के द्वारा साहचर्य का आनन्द लेना चाहते हैं तो कुछ के लिये काम एक जीविकोपार्जन का एक तरीका मात्र होता है। उम्र के बढ़ने के साथ – साथ व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता घटती चली जाती है।
उसका घटता हुआ बल व शक्ति उसकी इच्छाशक्ति कमजोर कर देती है। समाज अब उसे कार्य करने के अवसर प्रदान करने में कतराने लगता है। सेवानिवृत्ति इसी व्यवस्था का परिणाम है जो कि लगभग 60 वर्ष की आयु में दी जाती है। सेवानिवृत्ति के बाद वृद्धों को मिलने वाली मासिक आय में काफी मात्रा में कटौती हो जाती है व कई स्थानों में तो उन्हें पेंशन तक भी नहीं मिल पाती है।
सेवानिवृत्ति पर मिला संचित धन भी कई बार बच्चों की शिक्षा व देखभाल में खर्च हो जाता है, ऐसे में अब उन्हें अपनी मूलभूत आवश्यकताओं; जैसे-फल, भोजन, अण्डा आदि के लिये भी अपने बच्चों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी प्रकार व्यवसाय में जमे वृद्ध पुरुषों का कार्यभार भी धीरे-धीरे उनके युवा बच्चों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। इससे वृद्ध आर्थिक तंगी के शिकार हो जाते हैं और उनके समक्ष अनेक आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
साथ – ही – साथ उम्र के प्रभाव से वे रोगों से ग्रसित भी होते रहते हैं। इन बीमारियों के उपचार हेतु अधिक धन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार एक ओर तो वृद्धावस्था में आय का साधन समाप्त हो जाता है तो दूसरी ओर उनके चिकित्सा सम्बन्धी खर्चे बढ़ जाते हैं। इस कारण से वृद्धों को आर्थिक परेशानी उठानी पड़ती है।
आर्थिक समस्याएँ उस समय और अधिक जटिल हो जाती हैं जबकि उनके बच्चे व्यवसाय प्राप्त करने में असफल रह जाते हैं अथवा उन्हें किसी पुत्री का विवाह करना होता है। कार्य-मुक्त होने के पश्चात जीवन के शेष वर्षों के लिये पर्याप्त धन का प्रबन्ध नहीं होने पर उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगता है। जो कभी पूरे परिवार का पालन-पोषण करता था उसे अब एक आश्रित व्यक्ति की तरह जीवनयापन करना पड़ता है। आर्थिक समस्याओं के बढ़ने के कारण उनमें भय, व्याकुलता, निराशा और उत्पीड़न की भावनाएँ अधिक पायी जाती हैं।
हमारी प्राचीन संस्कृति में बूढ़े माँ-बाप की पूरी जिम्मेदारी बेटे – बहू बड़ी कुशलता व मनोयोग से उठाते थे लेकिन समय व परिस्थितियों में परिवर्तन आने के कारण वृद्धों को परिवार के सदस्य अब बोझ समझने लगे हैं एवं देखभाल के लिये उनके पास समय नहीं होता है। अब अनेक वृद्ध लोग वृद्धावस्था में अपने परिवार के साथ रहना पसन्द नहीं करते हैं। वृद्धावस्था में सुखी होने का तात्पर्य स्वस्थ होना, आर्थिक रूप से सुरक्षित होना, समाज द्वारा अपनाया जाना, अकेला न होना, धर्मनिष्ठा तथा संतुष्ट होना होता है।
प्रश्न 2.
वृद्धावस्था में वृद्धों की देखभाल किस प्रकार की जानी चाहिए?
उत्तर:
वृद्धावस्था में वृद्धों की देखभाल निम्नानुसार करनी चाहिए –
(1) सन्तुलित आहार:
वृद्धों के शारीरिक परिवर्तनों, स्वास्थ्य एवं रुचि के अनुसार आहार दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें संतुष्टि मिल सके। यदि वे असंतुष्ट होते हैं, वे चिड़चिड़े हो जाते हैं।
(2) पूर्ण विश्राम व निद्रा:
वृद्धावस्था में विश्राम व निद्रा का महत्त्व अधिक होता है। शारीरिक निष्क्रियता के कारण वृद्धों को पहले से कम नींद आती है। वृद्धों का कमरा शोरगुल से दूर होना चाहिये जिससे कि वे चैन की नींद सो सकें।
(3) आवास:
स्वयं के द्वारा बनाये गये आवास में ही व्यक्ति को आत्मसंतुष्टि प्राप्त होती है। परन्तु कई बार आर्थिक परिस्थितियों एवं आर्थिक कारणों से आवास छोड़ने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में वृद्धों को नये आवास में समायोजन करना पड़ता है। यह समायोजन उनके लिये अत्यन्त कष्टदायी होता है। वृद्धों का कैमरा ठंडा नहीं होना चाहिए तथा उसमें बड़ी खिड़कियाँ तथा पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए।
(4) चिकित्सा सुविधाएँ:
वृद्धों की रोग प्रतिरोधक क्षमता आयु के बढ़ने के साथ कम होती चली जाती है। अतः वृद्ध जल्दी – जल्दी बीमार होने लगते हैं। उन्हें अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। अतः उन्हें नियमित चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता पड़ती है। कई बार आर्थिक संकट के कारण वे अपना इलाज नहीं करा पाते हैं।
(5) सक्रियता:
वृद्धों को यदि परिवार के सदस्यों से स्नेह व सम्मान पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है तो वे सक्रिय रहते हैं। वे परिवार के सभी कार्यों में सहयोग भी करते रहते हैं। वृद्ध अपने खाली समय में छोटा – मोटा काम – धन्धा करके धन भी अर्जित कर सकते हैं। इस धन से वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद वे समाज सेवा कार्य में भी सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं। इससे वे अपने को अकेला महसूस नहीं करेंगे तथा समाज को भी उनके अनुभवों का लाभ प्राप्त होता है। अत: परिवार के सदस्यों का यह दायित्व होना चाहिए कि वे वृद्धों को सक्रिय रहने के लिये प्रेरित करते रहें।
(6) आर्थिक सहायता:
हर व्यक्ति भविष्य के लिये कुछ धन पूँजी के रूप में रखता है जिससे वह धन विपरीत परिस्थितियों में काम आ सके। बुढ़ापा भी एक ऐसा ही समय है जब व्यक्ति शारीरिक रूप से इतना सक्षम नहीं रह पाता कि वह धन कमा सके। सभी सन्तानें ऐसी नहीं होती हैं। जो वृद्धों को स्नेह व सम्मान दे सकें अत: कभी – कभी वृद्ध अपनी सन्तानों से अलग रहना अधिक पसन्द करते हैं।
यदि वृद्ध लोगों को सुखी रखना है तो उनके लिये यही पर्याप्त है कि समाज उनकी शारीरिक और आर्थिक आवश्यकताएँ पूरी करें। वृद्धावस्था में सुखी रहने का अर्थ वृद्धों का स्वस्थ रहना, आर्थिक रूप से सुरक्षित होना, अकेला न रहना, उपेक्षित न रहना तथा संतुष्ट रहना ही है। परिवार के सभी सदस्यों को वृद्धों का विशेष ध्यान रखना चाहिये तथा समय-समय पर उनकी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करते रहना चाहिए।
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