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RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

June 22, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी इनमें से किसे जीवन मूल्य नहीं मानते थे
(अ) अहिंसा
(ब) सत्य
(स) प्रेम
(द) धन संग्रह

प्रश्न 2.
गाँधीजी ने कार्ल मार्क्स के किस विचार का समर्थन किया
(अ) वर्ग संघर्ष
(ब) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
(स) राज्यविहीन व वर्गविहीन समाज
(द) अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त

प्रश्न 3.
गाँधीजी की प्रमुख पुस्तक, जिसमें राजनीतिक दर्शन की झलक मिलती है
(अ) हिन्द स्वराज
(ब) डिस्कवरी ऑफ इण्डिया
(स) गीतांजलि
(द) लेवियाथन

प्रश्न 4.
हिजरत का तात्पर्य है
(अ) हज करना।
(ब) अपना निवास स्थान छोड़, अन्यत्र जाना
(स) अहिंसात्मक आन्दोलन
(द) सामाजिक बहिष्कार

प्रश्न 5.
ट्रस्टीशिप सिद्धान्त का अर्थ है कि व्यक्ति
(अ) सार्वजनिक सम्पत्ति का मालिक है।
(ब) सार्वजनिक सम्पत्ति का ट्रस्टी है।
(स) निजी सम्पत्ति नहीं रख सकता है।
(द) सम्पत्तियों का त्याग कर दे।

उत्तरमाला:
1. (द), 2. (स), 3. (अ), 4. (ब), 5. (ब)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी के चार प्रमुख जीवन मूल्य क्या हैं?
उत्तर:
गाँधीजी के चार प्रमुख जीवन मूल्य हैं सत्य, अहिंसा, प्रेम एवं भ्रातृभाव।

प्रश्न 2.
गाँधीवाद क्या है?
उत्तर:
गाँधीजी के विचारों और आदर्शों का ही दूसरा नाम गाँधीवाद है।

प्रश्न 3.
गाँधीजी पर किन धर्म ग्रन्थों का प्रभाव पड़ा था?
उत्तर:
गाँधीजी पर पतंजलि के योग – सूत्र, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, भगवद्गीता एवं बाइबिल आदि धर्म ग्रन्थों का गहरा प्रभाव पड़ा था।

प्रश्न 4.
गाँधीजी की प्रथम प्रयोगशाला कहाँ थी?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका गाँधीजी की प्रथम प्रयोगशाला थी।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी किन समाज सुधार आन्दोलनों से प्रभावित हुए थे?
उत्तर:
गाँधीजी के विचारों और आदर्शों को ‘गाँधीवाद’ के नाम से जाना जाता है। धार्मिक ग्रन्थों का प्रभाव; दार्शनिक विचारधारा का प्रभाव; सुधारवादी आन्दोलन का प्रभाव एवं सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों आदि प्रभाव गाँधीजी के विचारों पर परिलक्षित होता है। जहाँ तक समाज सुधार आन्दोलनों के प्रभाव का प्रश्न है, गाँधीजी पर भारत में चल रहे सांस्कृतिक, दार्शनिक एवं धर्म सुधारवादी आन्दोलनों का व्यापक प्रभाव पड़ा। रामकृष्ण परमहंस एवं स्वामी विवेकानन्द से वे विशेष रुप से प्रभावित थे। गाँधीजी ने स्वदेश प्रेम और स्वदेशी की भाषा इन्हीं से सीखी।

प्रश्न 2.
राजनीति के आध्यात्मीकरण से क्या आशय है?
उत्तर;
गाँधीजी के लिये धर्म व राजनीति एक ही कार्य के दो नाम हैं। उनके अनुसार धर्म व राजनीति का समान उद्देश्य है। यह उद्देश्य है – उन सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन लाना जो अन्याय, सदाचार व शोषण पर आधारित हैं। दोनों का उद्देश्य समाज में न्याय व न्यायपरायणता की व्यवस्था करना है। इसके अतिरिक्त सच्चे धर्म व सच्ची राजनीति का संबंध मुख्य रुप से मानव जीवन और मानव क्रियाओं से है। क्योंकि मानव क्रियाओं से पृथक कोई धर्म नहीं है। गाँधीजी के लिये इन दोनों का सामान्य आधार नैतिकता के सामान्य मूल्यों से निर्धारित होता है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 3.
गाँधीजी के सत्याग्रह की सात प्रमुख विशेषतायें बताइये।
उत्तर;
साधारण भाषा से सत्याग्रह बुराई को दूर करने अथवा विवादों को अहिंसक तरीकों से दूर करने का उपाय है। साहित्यिक दृष्टि से यह
सत्य + आग्रह दो शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ है सत्य के मार्ग पर दृढ़ रहना। सत्याग्रह की सात अनिवार्य विशेषतायें इस प्रकार हैं

  1. ईश्वर में श्रद्धा
  2. सत्य, अहिंसा पर अटल विश्वास
  3. चरित्र
  4. निर्व्यसनी
  5. शुद्ध ध्येय
  6. हिंसा का त्याग
  7. उत्साह, धैर्य और सहिष्णुता

प्रश्न 4.
उपवास की अवधारणा पर टिप्पणी लिखिए
उत्तर:
उपवास ऐसा कष्ट है जिसे व्यक्ति अपने ऊपर स्वयं लागू करता है। यह सत्यग्रह के शास्त्रागार में सबसे शक्तिशाली है। उपवास को गाँधीजी ने अध्यात्मिक औषधि’ की संज्ञा दी है जिसका प्रयोग इसमें निपुण वैद्य ही कर सकता है। यह चिकित्सा विशिष्ट रोगों में ही फलदायी होती है। गलत जगहों पर प्रयोग करने से इसमें भारी जोखिम होता है। इस तरह अनुकूल परिस्थितियों में ही उपवास परम श्रेष्ठ अपील है।

प्रश्न 5.
राजनीति शास्त्र को गाँधीजी की प्रमुख देन बताइए।
उत्तर:
राजनीति शास्त्र को गाँधीजी की निम्नलिखित देन रही हैं

  1. गाँधी दर्शन में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं धर्म सभी एक दूसरे से सम्बद्ध हैं। इनमें सामंजस्य की स्थिति है।
  2. गाँधीजी ने राजनीति का अध्यात्मीकरण करते हुए इसे नैतिक आधार प्रदान किया।
  3. गाँधीजी की राजनीति शास्त्र को सर्वाधिक महत्वपूर्ण देन अहिंसा व सत्याग्रह का सिद्धान्त है।
  4. गाँधीजी ने साधन व साध्य की पवित्रता में आस्था व्यक्त की।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीवाद के मूल तत्व क्या हैं? क्या यह आज भी सार्थक हैं? सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
गाँधीवाद के मूल तत्व:
गाँधीवाद के चार मूल तत्व हैं – सत्य, अहिंसा, प्रेम व भ्रातृत्व। ये तत्व व्यक्ति को उसकी विकृत प्रवृत्तियों से हटा देते हैं। इन चार तत्वों के आधार पर गाँधीवाद सबके कल्याण की बात करता है। हिंसक शस्त्रों के स्थान पर पर अहिंसक साधनों को अधिक श्रेष्ठ मानता है। शत्रुता के स्थान पर मित्रता तथा प्रेम के स्थान पर घृणा सिखाता है।

वर्तमान में गाँधीवाद की सार्थकता:
गाँधीजी के विचार व आदर्श किसी व्यक्ति, देश या समय के लिये नहीं थे बल्कि वे मानवता के लिये और सार्वदेशिक व सार्वभौमिक हैं। गाँधी जी ने स्वयं कहा था – ”गाँधी मर सकता है। परन्तु सत्य, अहिंसा सर्वदा जीवित रहेंगे।” वास्तव में गाँधीजी के विचार व आदर्श इतने शाश्वत हैं कि उनका अनुकरण करने में ही विश्व में शांति रह सकती है।

तनाव का वातावरण समाप्त हो सकता है। घृणा को प्रेम में परिवर्तित किया जा सकता है। हिंसक उपायों द्वारा कभी भी स्थायी शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती है। इतिहास साक्षी है कि युद्ध ने सदैव युद्ध को ही जन्म दिया है। वर्तमान के आशन्ति से मुक्त एवं हिंसक वातावरण में गाँधीजी के आदर्शों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है

गाँधीजी के विचार व आदर्श क्रांतिकारी हैं। इनका क्रान्तिकारी प्रभाव मनोवैज्ञानिक हैं। ये मनुष्य की मूल भावनाओं में ही परिवर्तन लाना चाहते हैं। नैतिक दृष्टि से ये विचार मानव सौहार्द बढ़ाने के कारण श्रेष्ठ हैं। राजनीतिक दृष्टि से अधिक सरल, व्यापक और व्यावहारिक होने से संभव हैं। सामाजिक दृष्टि से तथा मानवता व व्यवहारिक होने के साथ-साथ सहयोग उत्पन्न करने वाले तथा मानवता से परिपूर्ण हैं। गाँधीजी के विचार समाजवाद का ही निर्दोष रूप हैं जो पूँजीपतियों की क्रूरता से जनता को सुरक्षा प्रदान करते हैं।

साथ ही उन्हें नैतिक व आध्यात्मिक बनाने का भी प्रयास करते हैं। गाँधीजी के विचार व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व सभी को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उन्होंने सभी को सत्य, अहिंसा, प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, बलिदान और त्याग का पाठ सिखाया। ये सभी आदर्श किसी एक देश के लोगों से सम्बन्धित नहीं हैं वरन् सर्वदेशीय व सार्वकालिक मानवीय गुण हैं। निस्संदेह इसी आधार पर गाँधीजी के विचार व आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 2.
गाँधीवाद आधुनिक सभ्यता को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
गाँधीजी के विचार सत्य, अहिंसा व भ्रातृत्व के मूल तत्वों पर आधारित थे। इन तत्वों के द्वारा वे विकृत प्रवृत्तियों को दूर कर आधुनिक सभ्यता का विकास करना चाहते थे।

जीवन शैली में सुधार:
गाँधीजी अपने आदर्शो के द्वारा व्यक्ति में प्रेम व स्वतन्त्रता का संचार करना चाहते थे। वे व्यक्ति को पुरुषार्थ का महत्व समझाना चाहते थे। गाँधीवाद में कार्य की प्रेरणा का स्त्रोत सत्य, धर्म और ईश्वर है। इसमें छल – कपट, क्रूरता तथा हिंसा व द्वेष के लिये कोई स्थान नहीं है। इस प्रकार में आदर्श मनुष्य को विकृत प्रवृत्तियों से मुक्त कराते हैं और उनकी जीवन शैली में सुधार लाते हुए आधुनिक सभ्यता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

जीवन की समस्याओं का समाधान:
जीवन आदि समस्याओं से घिरा हो तो सभ्यता के विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। गाँधीजी ने समकालीन समाज की समस्याओं के समाधान हेतु कुछ आदर्श प्रस्तुत किये थे जो न केवल उस समय वरन् आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने प्रेरणा दी कि हिंसा का सामना अहिंसक साधनों से किया जाये। शत्रुता को मित्रता से तथा घृणा को प्रेम से दूर करने का प्रयास किया जाये।

गाँधीजी ने जीवन की विभिन्न समस्याओं पर परिस्थितिजन्य विचार व्यक्त किये। गाँधीजी का मानना था कि किसी भी विचार में परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है। यही कारण है कि आधुनिक समय में भी परिस्थितियों के अनुरूप संशोधनों के साथ उनके आदर्श अनुकरणीय हैं।

सार्वदेशिक तथा सार्वभौमिक:
गाँधीजी अपने पीछे कोई वाद छोड़ना नहीं चाहते थे। उनका तरीका प्रयोगात्मक, अनुभववादी तथा वैज्ञानिक था। गाँधीजी के सत्य, अहिंसा, प्रेम व भ्रातृत्व के आदर्श किसी व्यक्ति, देश या समय के लिये नहीं थे वरन् मानवता के लिये सार्वदेशिक व सार्वभौमिक हैं।

नैतिकता पर आधारित:
गाँधीजी के विचार धर्म व नैतिकता पर आधारित हैं। वे विचारशील होने के साथ – साथ एक आचारवान व्यक्ति थे। जिस विचार को वह आचार में नहीं ला सकते थे, उसे गौण समझते थे। वह ईश्वर पर अटल विश्वास रखते थे तथा अहिंसा व नैतिकता का मार्ग अपनाते हुए लक्ष्य प्राप्ति के लिये प्रेरित करते थे। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गाँधीजी एक व्यावहारिक आदर्शवादी थे। उनके विचार व्यापक व बहुआयामी है जो कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी पूर्णतया तो नहीं, किन्तु एक बड़ी सीमा तक अनुकरणीय हैं।

आध्यात्मिक समाजवाद का प्रतिपादक होने के कारण उन्होंने इतिहास की आध्यात्मिक व्याख्या की उन्होंने केवल भौतिक क्रियाकलापों को सभ्यता व संस्कृति का वाहक नहीं माना वरन् गहन आन्तरिक विकास पर बल दिया। गाँधीजी की मान्यतानुसार मानव जाति की ऊर्जा के प्रमुख स्त्रोत सत्य, अहिंसा व प्रेम हैं। गाँधीजी राजनीतिक व आर्थिक विकेन्द्रीकरण के समर्थक थे जो कि आधुनिक राज्यों की प्रमुख विशेषता है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 3.
गाँधीवाद राज्य को कम से कम कार्य क्यों सौंपना चाहता है?
उत्तर:
गाँधीजी अपनी आदर्श शासन व्यवस्था में राज्य के हिंसक और बल पर आधारित किसी भी स्वरुप को अस्वीकार करते हैं। गाँधीजी अत्यन्त शक्तिशाली राज्य को निम्नलिखित दो कारणों से अस्वीकार करते हैं प्रथम, केन्द्रित रुप में राज्य हिंसा का प्रतिनिधित्व करता है। द्वितीय, सभी मनुष्य मूल रुप से सामाजिक प्राणी होते हैं तथा प्रत्येक परिस्थिति में वे नैतिक व्यवहार नहीं कर पाते हैं और न ही सदैव समाज के प्रति अपने वांछित नैतिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हैं।

मर्यादित राज्य:
गाँधीजी ने मर्यादित राज्य की आवश्यकता को अनुभव किया। उन्होंने ऐसे राज्य का विरोध किया जो विशुद्ध रुप से राजनीति व सत्ता का प्रतिनिधित्व करता है। वे राज्य शक्ति में वृद्धि को शंका की दृष्टि से देखते थे। कल्याणकारी राज्य का गाँधीजी के अनुसार हिंसा का प्रतिनिधित्व करने वाला राज्य एक आदर्श अनैतिक संस्था है। उनकी धारणा है कि निरंकुश सत्ता व्यक्ति की स्वतन्त्रता और समाज कल्याण के लिये बाधक है।

उन्होंने निरपेक्ष सम्प्रभुता का विरोध किया तथा ‘सीमित राज्य की स्थापना पर बल दिया। राज्य का उद्देश्य मात्र शासन करना नहीं वरन् उच्च, श्रेष्ठ एवं कल्याणकारी होना चाहिये। गाँधीजी राज्य की शक्ति में अभिवृद्धि के पक्षधर नहीं हैं। राज्य को व्यक्ति के विकास के लिये कार्य करना चाहिये और व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को अवरुद्ध करने वाले सभी अवरोधों को दूर करने का प्रयास करना चाहिये।

राज्य शक्ति व्यक्ति के विकास में बाधक:
गाँधीजी के मतानुसार राज्य शक्ति की बाध्यता व्यक्ति के कार्य के नैतिक मूल्यों को नष्ट कर देती है तथा उसके विकास को भी कुंठित करती है। व्यक्ति का विकास स्वतन्त्र वातावरण में ही संभव है। जब व्यक्ति राज्य रुपी यन्त्र में एक पुर्जे की तरह कार्य करता है तो नैतिकता का लोप होने लगता है।

व्यक्ति को प्राथमिकता:
गाँधीजी राज्य को व्यक्ति के दैनिक जीवन से बाहर की संस्था मानते हैं। वे व्यक्तिगत पहल व स्वैच्छिक नैतिकता को व्यक्ति, समाज व सम्पूर्ण मानवता के लिये श्रेष्ठ मानते हैं। गाँधीजी एक ऐसे विकेन्द्रित आदर्श समाज की स्थापना करने पर बल देते है जिसमें व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की सर्वाधिक संभावनाएँ निहित हों गाँधी जी आदर्श अहिंसक राज्य की स्थापना करना चाहते हैं जिसे बहुमत पर आधारित स्वराज्य की संज्ञा दी जा सकती है।

स्थानीय स्वशासन का समर्थन:
गाँधीजी ने राजनीतिक विकेन्द्रीकरण का समर्थन करते हुए आत्मनिर्भर ग्रामीण समुदायों से निर्मित शासन की वकालत की। उनका मानना था कि प्रत्येक नगारिक को अपनी अन्तरात्मा की आवाज से प्रेरित होकर कार्य करना चाहिये। उन्होंने गाँवों व शहरों के आपसी संबंधों को निष्क्रिय प्रतिरोध के सिद्धान्त से हल करने पर बल दिया।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 4.
“आर्थिक समता का स्त्रोत टुस्टीशिप से गुजरता है।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
गाँधीजी ने आर्थिक असन्तोष को दूर करने के लिये न तो पश्चिमी अर्थव्यवस्था का समर्थन किया और न ही पूर्वी अर्थव्यवस्था का। इसका कारण यह था कि पश्चिमी अर्थव्यवस्था पूँजीवाद पर आधारित होने के कारण शोषण, प्रतिद्वंदिता व संघर्ष को जन्म देती है जबकि पूर्वी अर्थव्यवस्था विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहन देती है। गाँधीजी ने विद्यमान आर्थिक असमानता व असन्तोष को दूर करने के लिये ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त के अनुसार पूँजीपति आवश्यकतानुसार ही अपनी सम्पत्ति का उपयोग करे तथा शेष सम्पत्ति का ट्रस्टी बन जाये एवं उस सम्पत्ति को जनकल्याण में लगाये।

टुस्टीशिप सिद्धान्त के प्रमुख तत्व: गाँधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

  1. यह वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था को समतावादी समाज में बदलने का साधन है।
  2. यह पूँजीपतियों अर्थात् धन के स्वामियों को सुधार का अवसर प्रदान करता है।
  3. यह हृदय परिवर्तन में विश्वास करता है। मनुष्य को धन के लोभ से मुक्ति दिलाना चाहता है।
  4. यह सिद्धान्त सम्पत्ति के निजी स्वामित्व के अधिकार का विरोध करता है तथा व्यक्ति की केवल उचित आवश्यकताओं को ही स्वीकार करता है।
  5. आवश्यकता पड़ने पर सम्पत्ति को राज्य कानून द्वारा नियन्त्रित करने का पक्षधर है।
  6. संपत्ति का प्रयोग न तो स्वार्थ सिद्धि के लिये किया जाना चाहिये और न ही सामाजिक हितों के विरोध में
  7. इसका संबंध धन या वस्तु के स्वामित्व की अपेक्षा समाज कल्याण से अधिक है।
  8. इसमें आय की न्यूनतम व अधिकतम सीमाएँ निर्धारित की जायेंगी। समय-समय पर इनमें परिवर्तन होता रहेगा जिसका उद्देश्य इन भिन्नताओं को समाप्त करना होगा।
  9. इसमें उत्पादन लाभ द्वारा नहीं वरन् सामाजिक आवश्यकता द्वारा निर्धारित होगा।
    अतः स्पष्ट है कि ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के द्वारा गाँधी जी समाज में आर्थिक समानता लाना चाहते थे।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी के विचारों और आदर्शों को किस नाम से जाना जाता है?
(अ) गाँधीवाद
(ब) गाँधी मार्ग
(स) गाँधीवादी राजनीतिक दर्शन
(द) उक्त सभी

प्रश्न 2.
निम्न में से असत्य कथन का चयन कीजिए।
(अ) गाँधीजी एक कर्मयोगी थे।
(ब) गाँधीजी अपने पीछे एक वाद छोड़ना चाहते थे।
(स) गाँधीजी का तरीका प्रयोगात्मक एवं अनुभववादी था।
(द) गाँधीजी किसी वाद या सिद्धान्त में विश्वास नहीं करते थे।

प्रश्न 3.
गाँधीजी निम्न में से किसके विचारों से प्रभावित थे
(अ) महात्मा बुद्ध
(ब) महावीर स्वामी
(स) स्वामी विवेकानन्द
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
किसी वस्तु को आवश्यकता से अधिक एकत्र न करना कहलाता है
(अ) अपरिग्रह।
(ब) अस्तेय
(स) आस्वाद
(द) समभाव

प्रश्न 5.
शत्रुता को मित्रता से तथा बुराई को अच्छाई से जीतने का मार्ग गाँधीजी ने किस धर्म ग्रन्थ से सीखा?
(अ) भगवद्गीता
(ब) उपनिषद
(स) बाइबिल
(द) रामायण

उत्तरम:
1. (घ), 2. (ब), 3. (घ), 4. (अ), 5. (स)

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 अति लघूउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी राजनीति को किन आदर्शों पर आधारित करना चाहते थे?
उत्तर:
गाँधीजी राजनीति को धर्म व न्याय पर आधारित करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
यह कथन किसका है – ”गाँधीवाद सिद्धान्तों का, मतों का, नियमों का, विनियमों का और आदर्शों का समूह नहीं है। वह जीवन शैली या जीवन – दर्शन है।”
उत्तर:
यह कथन पट्टाभि सीतारमैय्या है।

प्रश्न 3.
गाँधीवाद किसकी पवित्रता पर बल देता है?
उत्तर:
गाँधीवाद साध्य व साधन की पवित्रता पर बल देता है।

प्रश्न 4.
यह किसने कहा था – “गाँधी मर सकता है परन्तु सत्य, अहिंसा सर्वदा जीवित रहेंगे।”
उत्तर:
यह स्वयं गाँधीजी ने कहा था।

प्रश्न 5.
गाँधीजी किस विचार को गौण समझते थे?
उत्तर:
गाँधीजी जिस विचार को आचार में नहीं ला सकते थे उसे वह गौण समझते थे।

प्रश्न 6.
गाँधीजी पर किसके विचारों का प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गाँधीजी पर महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, सुकरात, थोरो, क्रोपोटकिन एवं रस्किन के विचारों का प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 7.
गाँधीजी ने मार्क्स की इतिहास की आर्थिक व्याख्या को क्यों नकार दिया?
उत्तर:
गाँधीजी ने मार्क्स की इतिहास की आर्थिक व्याख्या को इसलिये नकार दिया क्योंकि यह हिंसा पर आधारित थी।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 8.
गाँधीजी ने किस प्रकार के समाजवाद का समर्थन किया?
उत्तर:
गाँधीजी अध्यात्मिक समाजवाद के प्रतिपादक थे इसलिये उन्होंने इतिहास की आध्यात्मिक व्याख्या की।

प्रश्न 9.
गाँधीजी के अनुसार मानव जाति के ऊर्जा स्त्रोत क्या हैं?
उत्तर:
गाँधीजी के अनुसार सत्य, अहिंसा व प्रेम मानव जाति के ऊर्जा स्त्रोत हैं।

प्रश्न 10.
गाँधीजी की किसी एक रचना का नाम बताइए।
उत्तर:
हिन्द स्वराज्य।

प्रश्न 11.
गाँधीजी के विचारों पर किसका प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गाँधीजी के विचारों पर चार प्रकार के प्रभाव नजर आते हैं

  1. धार्मिक ग्रन्थों का प्रभाव
  2. दर्शन का प्रभाव
  3. सुधारवादी आन्दोलनों का प्रभाव
  4. सामाजिक – आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव।

प्रश्न 12.
गाँधीजी के विचारों पर किन दार्शनिकों का प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जॉन रस्किन, हेनरी डेविड थोरो, लियो टॉलस्टॉय एवं सुकरात ।

प्रश्न 13.
गाँधीजी पर किन चीनी विचारकों को प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गाँधीजी पर चीनी विचारक लाओत्से व कन्फ्यूशियम की विचारधाराओं का प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 14.
धार्मिक ग्रन्थों पर गाँधीजी किस सीमा तक विश्वास करते थे?
उत्तर:
गाँधीजी के जीवन में धार्मिक ग्रन्थों का अत्यधिक महत्व था किन्तु जो धार्मिक तथ्य तर्क पर खरे नहीं उतरते थे उन्हें वे स्वीकार नहीं करते थे।

प्रश्न 15.
गाँधीजी ने पतंजलि के योगशास्त्र का अध्ययन कब और कहाँ किया?
उत्तर:
गाँधीजी ने पतंजलि के योगशास्त्र का अध्ययन सन् 1903 में अफ्रीका के जोहान्सवर्ग जेल में किया था।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 16.
गाँधीजी का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक ग्रन्थ कौन-सा था?
उत्तर:
गाँधीजी का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक ग्रन्थ, भगवद्गीता था। यह उनकी ‘पथ प्रदर्शक’, ‘आध्यात्मिक निर्देशक’ तथा ‘ आध्यात्मिक माता’ थी।

प्रश्न 17.
गाँधीजी के इंग्लैण्ड जाते समय किसने उनसे तीन प्रतिज्ञाएँ ली थी?
उत्तर:
गाँधीजी के इंग्लैण्ड जाते समय एक जैन साधु ने उनसे तीन प्रतिज्ञाएँ ली थीं कि वह कभी मदिरा, पराई स्त्री और माँस को नहीं छुएँगे।

प्रश्न 18.
अहिंसा का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अहिंसा का अर्थ है मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न देना अर्थात् किसी का दिल न दुखाना।

प्रश्न 19.
गाँधीजी ने सत्याग्रह का सर्वप्रथम प्रयोग कहाँ किया?
उत्तर:
गाँधीजी ने सत्याग्रह का सर्वप्रथम प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में किया।

प्रश्न 20.
सत्याग्रह की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:

  1. ईश्वर में श्रद्धा
  2. सत्य, अहिंसा पर अटल विश्वास
  3. चरित्र
  4. निर्व्यसनी
  5. शुद्ध ध्येय
  6. हिंसा का त्याग
  7. उत्साह, धैर्य और सहिष्णुता।

प्रश्न 21.
गाँधीजी ने किस चीज की तुलना बीज व वृक्ष से की?
उत्तर:
गाँधीजी के लिये साधन एक बीज की तरह है तथा एक वृक्ष की तरह है।

प्रश्न 22.
सत्याग्रह के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सत्याग्रह के विभिन्न रूप हैं – असहयोग, हिजरत, सविनय अवज्ञा एवं उपवास।

प्रश्न 23.
हिजरत को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
हिजरत को प्रवजन भी कहा जाता है।

प्रश्न 24.
हिजरत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
हिजरत वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने आत्म सम्मान की सुरक्षा हेतु अपने निवास स्थान को छोड़कर अन्य स्थान पर चला जाता है।

प्रश्न 25.
गाँधीजी ने अपनी किस पुस्तक में वर्तमान सभ्यता की आलोचना की है?
उत्तर:
गाँधीजी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में वर्तमान सभ्यता की आलोचना की है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 26.
गाँधीजी ने पूँजीवाद का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
गाँधीजी ने पूँजीवाद का विरोध किया क्योंकि उनका विश्वास था कि पूँजीवाद ने दरिद्रता, बेरोजगारी, शोषण और साम्राज्यवाद की भावनाओं को बढ़ावा दिया है।

प्रश्न 27.
ट्रस्टीशिप सिद्धान्त गाँधीजी ने क्यों प्रतिपादित किया?
उत्तर:
समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता को दूर करने के लिये गाँधीजी ने ट्रस्टीशिप सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

प्रश्न 28.
‘खादी का अर्थशास्त्र’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गाँधीजी का विश्वास था कि खादी का अर्थशास्त्र सरल, सस्ता एवं व्यावहारिक तरीका है। यह गाँवों को स्वावलम्बी बनाने का भी एक तरीका था।

प्रश्न 29.
गाँधीजी ने किस प्रकार के राज्य का समर्थन किया?
उत्तर:
गाँधीजी ने ‘सीमित राज्य’ की अवधारणा का समर्थन किया।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीजी के विचार को क्या नाम दिया गया है और क्यों? अथवा. गाँधीवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गाँधीजी के विचारों और आदर्शों का ही दूसरा नाम ‘गाँधीवाद’, ‘गाँधी मार्ग,’ ‘गाँधी दर्शन’ एवं ‘गाँधीवादी राजनीतिक दर्शन’ है। इन विचारों तथा आदर्शो को भिन्न – भिन्न नाम इसलिये दिये गये हैं क्योंकि गाँधीजी स्वयं किसी वाद, सम्प्रदाय या सिद्धान्त में विश्वास नहीं करते थे और न ही अपने पीछे किसी प्रकार का ‘वाद’ छोड़ना चाहते थे। उनका तरीका प्रयोगात्मक, अनुभववादी तथा वैज्ञानिक था। गाँधीजी एक कर्मयोगी थे। अत: उनके विचारों व आदर्शों की प्रस्तुति एक ‘वाद’ या ‘दर्शन’ के रुप में करना उचित ही है।

प्रश्न 2.
गाँधीजी मार्क्स के विचारों से किस सीमा तक सहमत थे?
उत्तर:
गाँधीजी ने मार्क्स के समाजवाद तथा इतिहास की आर्थिक व्याख्या को स्वीकार नहीं किया क्योंकि यह हिंसा पर आधारित थी। वह मार्क्स के वर्ग- संघर्ष के विचारों से भी सहमत नहीं थे। उसके स्थान पर वह वर्ग समन्वय और वर्ग सामंजस्य जैसी विचार धारा के पक्षधर थे। मार्क्स के भौतिक समाजवाद के स्थान पर उन्होंने आध्यात्मिक समाजवाद की अवधारणा प्रस्तुत की।

प्रश्न 3.
गाँधीजी के समाजवाद की मुख्य विशेषतायें बताइए।
उत्तर:

  1. गाँधीजी आध्यात्मिक समावाद के प्रतिपादक थे इसलिये उन्होंने इतिहास की आध्यात्मिक व्याख्या की थी। उन्होंने केवल भौतिक क्रियाकलापों को ही सभ्यता व संस्कृति का वाहक नहीं माना। उन्होंने गहन आन्तरिक विकास पर बल दिया।
  2. गाँधीजी ने मार्क्स के समाजवाद व वर्ग – संघर्ष के विपरीत वर्ग सहयोग व वर्ग- सामंजस्य की वकालत की।
  3. गाँधीजी का समाजवाद नैतिकता, मानवतावाद एवं प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों पर आधारित है।
  4. गाँधीजी के अनुसार समाजवाद की स्थापना राजनीतिक सत्ता प्राप्त करके हिंसा के आधार पर नहीं की जा सकती। सच्चा समाजवाद अनुग्रह, सद्भावना और प्रेम पर आधारित होता है।

प्रश्न 4.
गाँधीवाद किस प्रकार अस्तित्व में आया?
उत्तर:
गाँधीजी ने अपने विचारों की व्याख्या अपनी रचनाओं विशेषकर हिन्द स्वराज्य, आत्मकथा तथा पत्रिकाओं विशेषकर हरिजन, यंग इण्डिया, इण्डियन ओपीनियन, नवजीवन एवं अनेक भाषणों में की है। बाद में चिन्तकों ने इन्हीं का संग्रह करके इसे ‘गाँधीवाद’ के नाम से प्रस्तुत किया।

प्रश्न 5.
गाँधीजी के जीवन में रामायण व भगवद्गीता का क्या महत्व था?
उत्तर:
गाँधीजी पूर्ण धार्मिक व्यक्ति थे तथा अध्यात्म उनका प्रमुख विषय था। उन पर वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत एवं भगवद्गीता का गहरा प्रभाव पड़ा। गाँधीजी रामायण को भक्ति मार्ग का सर्वोच्च ग्रन्थ मानते थे । भगवद्गीता के तो गाँधी जी भक्त थे। यह पुस्तक उनकी ‘पथप्रदर्शक’ ‘आध्यात्मिक निर्देशक तथा आध्यात्मिक माता भी थी।

यह उनका ‘ धार्मिक कोश’ थी। यह उन्हें अँधरे में उजाला; सन्देह में विश्वास तथा निराशा में आशा की किरण दिखाती थी। गीता का यह वाक्य कि ‘कर्म करो, फल की चिन्ता मत करो’- उनके जीवन की क्रियाओं का आधार बन गया।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 11 गाँधीवाद

प्रश्न 6.
बाइबिल ने गाँधीजी पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
गाँधीजी पर विभिन्न धर्म ग्रन्थों का व्यापक प्रभाव पड़ा और उनकी बातों को उन्होंने अपने जीवन में आत्मसात किया। बाइबिल का प्रभाव तो इतना प्रत्यक्ष था कि उसने गाँधीजी के हृदय में तत्काल स्थान प्राप्त कर लिया। बुराई को भलाई से; हिंसा को अहिंसा से बद्दुआ को दुआ से; घृणा को प्रेम से एवं अत्याचार को प्रार्थना से जीतने का मार्ग गाँधी जी ने इसी धर्मग्रन्थ से सीखा।

प्रश्न 7.
‘गाँधीजी व दक्षिण अफ्रीका’ पर संक्षिप्त नोट लिखिये।
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका गाँधीजी के प्रयोगों की प्रयोगशाला थी। उनकी धार्मिक चेतना का विकास वहीं पर हुआ। वहीं पर उन्होंने पश्चिम के लेखकों की विचारधाराओं का अध्ययन किया। वहीं पर उनके राजनीतिक दर्शन सत्याग्रह का विकास हुआ। उन्होंने सत्याग्रह के प्रारम्भिक प्रयोग भी दक्षिण अफ्रीका में किये। वहीं पर उनमें निस्वार्थ मानव सेवा की भावना उत्पन्न हुई तथा अपने समाज के प्रति कर्तव्यों की अनुभूति भी हुई। वहीं पर उनके प्रमुख, राष्ट्रवादी विचार बने।

प्रश्न 8.
अहिंसा की कोई चार विशेषताएँ बताइए।।
उत्तर:
अहिंसा की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. अहिंसा का अर्थ है मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न देना अर्थात् किसी का दिल न दुखाना।
  2. अहिंसक व्यक्ति प्रेम, दया, क्षमा, सहानुभूति व सत्य की मूर्ति होता है।
  3. विश्व प्रेम, जीव मात्र पर करुणा तथा अपनी ही देह को होम कर देने वाली शक्ति का नाम अहिंसा है।
  4. अहिंसा प्रेम की एक जड़ी-बूटी है जो कट्टर शत्रु को भी मित्र बना सकती है तथा सर्वाधिक शक्तिशाली अस्त्र को भी पराजित कर सकती है। अहिंसा आत्मा का गुण है जो अजेय व चिरंजीवी है।

प्रश्न 9.
सहयोग से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न रुप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सत्याग्रह की विभिन्न विधियों में सर्वप्रथम नाम असहयोग का आता है। गाँधीजी इसे ‘संतृप्त प्रेम की अभिव्यक्ति’ कहते थे। इसका अभिप्राय यह है कि जिसे व्यक्ति ‘असत्य’, ‘अवैध’, ‘अनैतिक’ या ‘अहितकर समझता है अर्थात् जिसे व्यक्ति बुराई समझता है उसके साथ सहयोग नहीं करता। गाँधीजी के लिये बुराई के साथ असहयोग करना न केवल व्यक्ति का कर्तव्य है बल्कि उसका धर्म भी है। असहयोग कई प्रकार का होता है जैसे कि हड़ताल, सामाजिक बहिष्कार आदि।

प्रश्न 10.
”गाँधीवाद एक जीवन दर्शन है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँधीजी सत्य, अहिंसा, प्रेम व भ्रातृत्व के के पुजारी थे। इन जीवन मूल्यों की व्याख्या कर वह व्यक्ति को उसकी विकृत प्रकृतियों से हटाना चाहते थे। वे राजनीति को पवित्रं करना चाहते थे तथा उसे धर्म और न्याय पर आधारित करना चाहते थे। गाँधी जी व्यक्ति में प्रेम और स्वतन्त्रता का संचार करना चाहते थे।

व्यक्ति को पुरुषार्थ का महत्व समझाना चाहते थे। इस प्रकार गाँधी जीवनशैली से सम्बन्धित है किसी सिद्धान्त से नहीं। बी.पी. सीतारमैय्या के शब्दों में -”गाँधीवाद सिद्धान्तों का, मतों का, नियमों का, विनियमों का और आदेशों का समूह नहीं है। वह जीवन शैली या जीवन दर्शन है। यह एक नयी दिशा की ओर संकेत करता है तथा मनुष्य के जीवन व समस्याओं के लिये समाधान प्रस्तुत करता है।” यह एक ऐसा दर्शन है जो सभी के कल्याण की बात करता है।

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प्रश्न 11.
गाँधीजी ने साध्य व साधन के बीच क्या सम्बन्ध बताया है?
उत्तर:
गाँधीजी के विचारों की यह विशेषता है कि इसमें साध्य और साधन में कोई भिन्नता नहीं है। वह कहा करते थे- “मेरे जीवन दर्शन में साधन और साध्य संपरिवर्तनीय शब्द है।” न केवल साध्य ही नैतिक, पवित्र शुद्ध व उच्च होने चाहिये बल्कि साधन भी उसी मात्रा में नैतिक, पवित्र व शुद्ध होने चाहिये। वह दोनों को अविभाज्य समझते थे।

उनके लिये साधन एक बीज की तरह है और साध्य एक पेड़। साधन और साध्य में वही सम्बन्ध है जो बीज और पेड़ में है। गाँधीजी ने राजनीतिक स्वतन्त्रता की लड़ाई में अपवित्र (हिंसक) साधनों का समर्थन नहीं किया। साधन व साध्य दोनों की पवित्रता पर बल देकर गाँधीजी ने राजनीति में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया।

प्रश्न 12.
‘सत्याग्रह’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘सत्याग्रह’ शब्द की उत्पत्ति गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में की थी। इंग्लैण्ड और दक्षिण अफ्रीका में चल रहे निष्क्रिय प्रतिरोध में भेद दिखाने के लिये भी इस शब्द की उत्पत्ति की गई थी। साधारण भाषा में सत्याग्रह बुराई को दूर करने अथवा विवादों को अहिंसक तरीकों से दूर करने का तरीका है। साहित्यिक दृष्टि से यह एक संयुक्त शब्द है। सत्य + आग्रह – इसका अर्थ है सत्य की प्राप्ति के लिये डटे रहना।
सत्याग्रह इन विशेषताओं के बिना अधूरा है:

  1. ईश्वर में श्रद्धा
  2. सत्य – अहिंसा पर अटल विश्वास
  3. चरित्र
  4.  निर्व्यसनी
  5.  शुद्ध ध्येय
  6. हिंसा का त्याग
  7. उत्साह, धैर्य और सहिष्णुता।

सत्याग्रह के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं:

  1. असहयोग
  2. प्रवजन या हिजरत
  3. सविनय अवज्ञा
  4. उपवास,

इनमें असहयोग करने की भी विभिन्न विधियाँ हैं जैसे कि:

  1. हड़ताल
  2. सामाजिक बहिष्कार एवं
  3. धरना।

प्रश्न 13.
सामाजिक बहिष्कार का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक बहिष्कार एक प्राचीन परम्परा है जिसका जन्म जातियों के उदय के साथ हुआ। यह निषेधात्मक है और एक ऐसा भयंकर दण्ड है जिसका प्रयोग बड़े प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। जिसमे व्यक्ति का बहिष्कार किया जाता है, उसे समाज द्वारा एक प्रकार का दण्ड दिया जाता है। उसे समाज के अन्य सदस्यों से मेलजोल बढ़ाने का कोई अवसर नहीं दिया जाता है। व्यक्ति को सबसे बड़ा दण्ड उसे समाज से अलग करना है।

इसी प्रकार जिस वस्तु का बहिष्कार किया जाता है उसके उत्पादन और खपत पर प्रहार करके उन वस्तुको समाप्त करने का प्रयास किया जाता है। इसका उद्देश्य अप्रत्यक्ष रुप से उसके उत्पादकों को हानि पहुँचाकर उन्हें भी दण्डित करना होता है। इसीलिये गाँधी जी ने बहिष्कार को घेरेबन्दी की संज्ञा दी।

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प्रश्न 14.
गाँधीजी ने यन्त्रों पर निर्भरता को दुखदायी क्यों माना है?
उत्तर:
गाँधीजी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज्य’ में वर्तमान सभ्यता की भर्त्सना की है। यन्त्र के बारे में गाँधीजी के विचार रस्किन, टालस्टॉय और आर.सी. दत्ता के विचारों से प्रभावित थे। यन्त्र की तुलना गाँधी जी ने उस साधन से की है जो मानव या पशु श्रम का पूरक या उसकी कुशलता बढ़ाने वाला नहीं बल्कि उसका ही स्थान प्राप्त करने वाला है। यन्त्र में बुराइयाँ विद्यमान होने से गाँधीजी उसे अवांछनीय मानते थे। उनके लिये यन्त्र में तीन मुख्य बुराइयाँ हैं

  1. इसकी नकल हो सकती है।
  2. इसके विकास की कोई सीमा नहीं।
  3. यह मानव श्रम का स्थान ले लेता है।
    इन बुराइयों के यन्त्रों में नैतिक और आर्थिक बुराइयाँ पाई जाती हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 11 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधीवाद के प्रमुख पहलुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
गाँधीजी के विचारों व आदर्शों को ‘गाँधीवाद’, ‘गाँधी दर्शन’ एवं ‘गाँधी मार्ग’ आदि नामों से जाना जाता है।
गाँधीजी के जीवन मूल्य: गाँधीजी के चार आदर्श या जीवन मूल थे – सत्य, अहिंसा, प्रेम एवं भ्रातृत्व। इनके द्वारा वह व्यक्ति को उसकी दुष्प्रवृत्तियों से हटाना चाहते थे। वह राजनीति को भी धर्म व नैतिकता पर आधारित करना चाहते थे। वह व्यक्ति में प्रेम, स्वतन्त्रता, पुरुषार्थ, धर्म आदि सद्गुणों का विकास करना चाहते थे। इस प्रकार गाँधीवाद जीवन-दर्शन या जीवन शैली से सम्बन्धित है।

गाँधीवाद विचारों का समूह मात्र: गाँधीजी के विचार व आदर्श परिस्थितिजन्य होने के कारण सार्वदेशिक तथा सार्वभौमिकं थे। उनके विचार व्यापक, बहुमार्गी एवं बहुआयामी थे। उनके विचारों पर भारतीय व पाश्चात्य दोनों श्रेणियों के विचारों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। वह एक व्यक्तिवादी, आदर्शवादी, समाजवादी, उदारवादी, राष्ट्रवादी तथा अन्तर्राष्ट्रवादी थे किन्तु सबसे पहले वह एक मानवतावादी थे।

आध्यात्मिक समाजवाद: गाँधीजी ने मार्क्स की इतिहास की भौतिकतवादी या आर्थिक व्याख्या एवं वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया क्योंकि ये हिंसा पर आधारित थे। इसके स्थान पर उन्होंने ‘आध्यात्मिक समाजवाद’ का प्रतिपादन किया। उन्होंने गहन आन्तरिक विकास पर बल दिया। साथ ही वर्ग – सहयोग की वकालत की। उनका समाजवाद नैतिकता, हिन्दुत्व, ग्राम्य मानवतावाद एवं प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों पर आधारित था।

गाँधीवाद के स्त्रोत- गाँधी जी के विचारों के चार स्त्रोत रहे हैं –

  1. धार्मिक ग्रन्थों का प्रभाव – गाँधीजी सनातन धर्म ग्रन्थों जैसे कि वेद, उपनिषदे, रामायण, महाभारत व भगवद्गीता की शिक्षाओं से बहुत अधिक प्रभावित थे। इसके अतिरिक्त जैन व बौद्ध धर्म ग्रन्थों तथा बाइबिल की शिक्षाएँ भी उनके विचारों की प्रेरणा स्त्रोत रहीं।
  2. दार्शनिकों का प्रभाव – गाँधीजी के विचारों पर जॉन रस्किन, हेनरी डेविड थोरो, लियो टॉलस्टॉय व सुकरात के विचारों का भी प्रभाव पड़ा।
  3. सुधारवादी आन्दोलनों का प्रभाव
  4. सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों को प्रभाव

राजनीति का आध्यात्मीकरण: गाँधी के लिये धर्म राजनीति से पृथक नहीं है वरन् एक ही कार्य है। दोनों का ही उद्देश्य सामाजिक जीवन में अनुकूल परिवर्तन लाना है तथा न्याय पर आधारित समाज की स्थापना करना है।
साध्य और साधनों की पवित्रता: गाँधीजी साध्य व साधन में कोई भेद नहीं करते हैं। उनके अनुसार दोनों शुद्ध, श्रेष्ठ व पवित्र होने चाहिये। साधन एक बीज की तरह है और साध्य वृक्ष के समान है।

साधन रुप में अहिंसा व सत्याग्रह: गाँधीजी के अनुसार अहिंसा का अर्थ है मन, वचन और कर्म से किसी का दिल न दुखाना । सत्याग्रह का अर्थ है कि व्यक्ति सत्य की प्राप्ति के लिये अटल रहे। गाँधीजी ने सत्याग्रह का प्रयोग सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में किया। सत्याग्रह का प्रयोग निम्नलिखित विधियों से किया जाता है

  1. असहयोग – इसका अर्थ है कि व्यक्ति जिसे असत्य समझता है या बुराई समझता है उसके साथ सहयोग न करे। इसके लिये हड़ताल, सामाजिक बहिष्कार व धरना आदि का सहारा लिया जाता है।
  2. हिजरत – प्रवजन या हिजरत वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति आत्मसम्मान को बचाने के लिये अपना स्थान छोड़कर अन्य किसी स्थान पर चला जाता है।
  3. सविनय अवज्ञा – इसका अभिप्राय अनैतिक रूप से अधिनियमित कानून को भंग करना है।
    (4) उपवास – गाँधीजी ने इसे ‘आध्यात्मिक औषधि’ की संज्ञा दी।

पूँजीवाद का विरोध – गाँधीजी ने यन्त्रों की भर्त्सना की। उनके अनुसार यह मानव श्रम का स्थान ले लेता है। साथ ही उन्होंने पूँजीवाद की भी आलोचना की कि यह शोषण, निर्धनता व साम्राज्यवाद को बढ़ावा देता है।
आर्थिक – सामाजिक असमानता दूर करने के लिए गाँधी जी ने निम्नलिखित चार सुझाव दिये–

  1. अस्तेय और अपरिग्रह- अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना अर्थात् कोई वस्तु या धन उसके स्वामी की आज्ञा के बिना न लेना। गाँधीजी ने शारीरिक, मानसिक, वैचारिक व आर्थिक सभी प्रकार की चोरी से दूर रहने के लिए कहा था। उनके अनुसार इससे आर्थिक विषमता का अस्त होगा।
  2.  दृस्टीशिप का सिद्धान्त – इसके अनुसार पूँजीपतियों को अपनी आवश्यकता के अनुसार ही संपत्ति का प्रयोग करना चाहिये तथा शेष संपत्ति का ट्रस्टी बनकर इसका उपयोग जनकल्याण के कार्यों में करना चाहिये।
  3. स्वदेशी – गाँधीजी सभी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार नहीं करते थे वरन् उन विदेशी वस्तुओं को स्वीकार करते थे जो भारतीय उद्योगों को कुशल बनाने के लिये अनिवार्य हैं।
  4. खादी का अर्थशास्त्र – भारत के आर्थिक पुनर्निमाण तथा ग्रामों की आत्म निर्भरता के लिये गाँधीजी ने खादी अर्थात् चरखे को महत्व दिया।

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