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RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

June 24, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में सुधारवादी आन्दोलन का एक उदाहरण है
(अ) नक्सलवादी आन्दोलन
(ब) बेटी बचाओ आन्दोलन
(स) बोडो आन्दोलन
(द) कावेरी जल विवाद

प्रश्न 2.
इनमें से कौन कृषक अधिकार आन्दोलन से सम्बन्धित नहीं है?
(अ) भारतीय किसान संघ
(ब) भारतीय किसान यूनियन
(स) शेतकारी संगठन
(द) प्रजामण्डल आन्दोलन

प्रश्न 3.
वनवासी कल्याण परिषद् है एक
(अ) सरकारी विभाग
(ब) गैर – सरकारी संगठन
(स) पेड़ बचाने वाली संस्था
(द) वनवासी लोग
उत्तर:
1. (ब), 2. (द), 3. (ब)

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी एक श्रमिक संघ का नाम बताइए।
उत्तर:
‘भारतीय मजदूर संघ’।

प्रश्न 2.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर:
मेधा पाटेकर से। इनके नेतृत्व में नर्मदा आंदोलन संचालित है।

प्रश्न 3.
शेतकरी संगठन किस राज्य में सक्रिय है?
उत्तर:
शेतकारी संगठन महाराष्ट्र राज्य में सक्रिय है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुधारवादी आन्दोलनों की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सुधारवादी आन्दोलनों की विशेषताएँ: सुधारवादी आन्दोलन एक प्रकार की सामूहिक क्रिया है। ये व्यक्तियों या संगठनों के विशाल औपचारिक समूह होते हैं जो कोई सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते हैं। सुधारवादी आन्दोलनों की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. सुधारवादी आन्दोलन प्रचलित असमानताओं व सामाजिक समस्याओं के धीरे – धीरे सुधार के समर्थक हैं। इसमें तीव्र परिवर्तन लाने का कोई लक्ष्य नहीं होता है।
  2. सुधारवादी आन्दोलन में सुधार लाने के लिए सामान्यतया सांविधानिक संसदीय परम्पराओं का सहयोग लिया जाता है। अधिकांश गैर सरकारी संगठन इसी श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 2.
किन्हीं दो नारीवादी आन्दोलनों की जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् 1950 से 1970 के बीच के समय में नारी संगठन देश के विभिन्न भागों में स्थापित हुए। नारी आन्दोलन से जुड़े मुद्दे थे-जीविका वृत्ति तथा परिवार में नारियों की स्थिति।

1. हिन्दू कोड बिल पर नारी आन्दोलन: सन् 1950 में नारी आन्दोलन के कार्यकर्ताओं ने हिन्दू कोड बिल पर विवाद शुरू किया। सरकार ने एक समिति नियुक्त की जिसने हिन्दू कोड बिल पर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत र्की । डॉ. अम्बेडकर ने भी नारीवादियों के साथ सहयोग किया किन्तु काँग्रेस के विरोध के कारण यह बिल पारित नहीं हो सका। अन्ततः 1956 में यह पारित हो सका।

2. ताड़ी विरोधी आन्दोलन: ताड़ी विरोधी आन्दोलन आन्ध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले के गाँव दुबरगंटा में सन् 1990 में महिलाओं द्वारा चलाया गया। गाँव के पुरुषों को शराब की गहरी लत लग गयी। इसके कारण वे शारीरिक व मानिसक रूप से ही कमजोर हो गए थे। शराबखोरी में क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हो रही थी। शराबखोरी के बढ़ने से कर्ज का बोझ भी बढ़ गया। पुरुष अपने काम से लगातार अनुपस्थित रहने लगे।

यहाँ परेशान होकर महिलाएँ ताड़ी (शराब) की बिक्री के खिलाफ आगे आर्मी व उन्होंने शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए दबाव बनाना प्रारम्भ कर दिया। यह समाचार तेजी से फैला और लगभग 5000 गाँवों की महिलाओं ने आन्दोलन में सहभागिता करना प्रारम्भ कर दिया। नेल्लौर जिले का यह आन्दोलन धीरे-धीरे सम्पूर्ण राज्य में फैल गया। यह आन्दोलन शराब के ठेकेदारों व सरकार के खिलाफ था।

प्रश्न 3.
विकास परियोजनाओं के विरुद्ध उठ खड़े हुए किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम बताइए। उत्तर-विकास परियोजनाओं के विरुद्ध उठ खड़े हुए दो आन्दोलन निम्नलिखित हैं

  1. नर्मदा बचाओ आन्दोलन
  2. शांत घाटी आन्दोलन

(i) नर्मदा बचाओ आन्दोलन: यह एक विकास के दुष्परिणामों के विरुद्ध आन्दोलन है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरण और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर निर्मित सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। प्रारम्भ में यह आन्दोलन जंगलों के बाँध के पानी में डूबने जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर केन्द्रित था परन्तु हाल में ही इस आन्दोलन का लक्ष्य बाँध के कारण विस्थापित निर्धन लोगों को सरकार से समस्त पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया है।

(ii) शांत घाटी आन्दोलन: शांत घाटी केरल के उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों का क्षेत्र है। यह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से सम्पन्न है। सरकार की योजना बहुउद्देशीय परियोजनाओं में एक प्रमुख पन विद्युत परियोजना पश्चिमी घाट के इस क्षेत्र में स्थापित करने की थी।

शांत घाटी क्षेत्र में बड़े बाँध के निर्माण से यहाँ की जैव विविधता नष्ट हो जाती इस कारण इसे पन विद्युत परियोजना की स्थापना के विरोध में आन्दोलन हुआ। इस आन्दोलन के कारण सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा तथा शांत घाटी को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर दिया गया।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में नव सामाजिक आन्दोलनों की प्रवृत्ति व प्रकारों पर विश्लेषणात्मक लेख लिखिए।
उत्तर:
नव सामाजिक आन्दोलनों की प्रवृत्ति: नव सामाजिक आन्दोलनों में ऐसी माँगों को रखा गया है जिन्हें अन्य सामाजिक आन्दोलनों ने उपेक्षित छोड़ दिया था। नवं सामाजिक आन्दोलन से जुड़ी प्रमुख माँगें हैं – पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार, नारीवादी आन्दोलन एवं जन – जागरण आन्दोलन। ये आन्दोलन मानव जीवन की गुणवत्ता पर आधारित हैं। ये आन्दोलन मानव जीवन में फैले अन्याय के प्रति नयी चेतना से प्रेरित हैं।

नव सामाजिक आन्दोलनों का उद्देश्य केवल राजनीतिक या प्रशासनिक क्षेत्र में सुधार लाना ही नहीं है वरन् इसके साथ-साथ वैयक्तिक एवं सामूहिक नैतिकता को भी बनाना है। ये आन्दोलन किसी एक वर्ग के हित से नहीं वरन् सामूहिक हित से सम्बद्ध होते हैं। भारत में इन आन्दोलनों का आरम्भ 1960 के दशक में हुआ। नव सामाजिक आन्दोलन के प्रकार – नव सामाजिक आन्दोलन के निम्नलिखित प्रकार हैं

(1) पर्यावरण संरक्षण आन्दोलन: पर्यावरण का मुद्दा आज वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग अथवा वैश्विक तापमान आज विश्व के समक्ष प्रमुख समस्या है। भारत में पर्यावरण आन्दोलन का आरम्भ सन् 1973 में चिपको आन्दोलन के साथ हुआ। पर्यावरण संरक्षण के संबंध में विश्व स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किये जाते रहे हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

इस संबंध में स्टॉकहोम सम्मेलन, रियोडिजनेरियो व पेरिस सम्मेलन उल्लेखनीय रहे। भारत में पर्यावरण आन्दोलन में महिलाएँ, निर्धन लोग आदि सभी शामिल हैं। कर्नाटक में वन विनाश को रोकने के लिये अप्पिको आन्दोलन चलाया गया। नर्मदा बचाओ आन्दोलन भी पर्यावरणीय आन्दोलन है।

(2) मानवाधिकार आन्दोलन: वर्तमान सभ्यता में मानव अधिकारों का अत्यधिक महत्व है। अधिकांश देशों के संविधानों में इन्हें समाहित किया गया है। मनुष्य को जन्म से ही कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं। किन्तु यह अत्यन्त खेद का विषय है कि आज सम्पूर्ण विश्व में खुलेआम मानव अधिकारों की उपेक्षा हो रही है। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय हिंसा में वृद्धि हो रही है। प्रत्येक क्षेत्र में मानव अधिकारों के हनन की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। भारत में सन् 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम पारित किया गया।

(3) महिला सशक्तिकरण आन्दोलन: भारत में स्वतन्त्रता से पूर्व भी महिलाओं की समस्यायें समाज सुधारकों के लिये चिन्ता का विषय रही हैं। स्वतन्त्रता के पश्चात बड़ी संख्या में जन संगठनों व नागरिक समाज संगठनों ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठायो संविधान में भी महिलाओं के उत्थान हेतु विशेष प्रावधान किए गए। पितृसत्तात्मक समाज होने के कारण भारत में महिलाओं की स्थिति सदैव से हीन रही है।

भारत में महिला सशक्तिकरण आन्दोलन से जुड़े मुख्य मुद्दे हैं – घरेलू हिंसा, शराब बिक्री, दहेज व बलात्कार के विरुद्ध आन्दोलन सन् 1978 में ‘ऑल इण्डिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन की स्थापना द्वारा महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन देने की बात कही गई।

1980 के दशक में नारीवादी आन्दोलन का स्वरूप अखिल भारतीय हो गया। वर्तमान में अनेक समूहों और आन्दोलनों ने महिला सशक्तिकरण को लक्ष्य बनाते हुए भारत में सफल आन्दोलन किए हैं। राष्ट्र सेविका समिति का नाम इस दिशा में उल्लेखनीय है।

(4) कृषक अधिकार आन्दोलन: इस प्रकार के आन्दोलन सन् 1991 के पश्चात् प्रारम्भ हुए। इन आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर में मुक्त बाजार व्यवस्था में भारतीय हितों की रक्षा करना है। भारतीय किसान संघ, भारतीय किसान यूनियन, शेतकारी संगठन आदि संगठन कृषक अधिकारों हेतु समर्पित हैं।

(5) श्रमिक आन्दोलन: इस प्रकार के आन्दोलन वैश्वीकरण व उदारीकरण के इस नवीन युग में सेवा क्षेत्र व औद्योगिक क्षेत्र के श्रमिकों के हितों को सुरक्षित करने के लिए चलाए जा रहे हैं। भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन इस दिशा में प्रयत्नरत हैं।

(6) विकास के दुष्परिणामों के विरुद्ध आन्दोल: यद्यपि विकास एक अनिवार्य एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है परन्तु इसके कुछ नकारात्मक परिणाम भी हमारे सामने आये हैं। नदियों पर बाँध के कारण आम जनता का विस्थापन, पर्यावरण क्षरण, नदी जल विवाद, सड़क व अन्य परियोजनाओं में विस्थापन आदि। अतः इन समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान दिलाने के लिए आन्दोलन चलाये जाते हैं।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नवीन सामाजिक आन्दोलनों की शुरुआत कब हुई?
(अ) 1950 के दशक में
(ब) 1930 के दशक में
(स) 1960 के दशक में
(द) 1970 के दशक में

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा संगठन श्रमिक आन्दोलन से सम्बन्धित है?
(अ) राष्ट्र सेवक समिति
(ब) वनवासी कल्याण परिषद
(स) स्वदेशी जागरण मंच
(द) शेतकारी संगठन

प्रश्न 3.
नक्सलवाद का उदय भारत के किस राज्य में हुआ?
(अ) उत्तर प्रदेश
(ब) महाराष्ट्र
(स) गुजरात
(द) पश्चिम बंगाल

प्रश्न 4.
किसी एक व्यक्ति विशेष या समस्या पर केन्द्रित आन्दोलन कहलाते हैं
(अ) परिवर्तनकारी
(ब) वैकल्पिक
(स) उपचारवादी
(द) सुधारवादी

प्रश्न 5.
निम्न में से किस सामाजिक संगठन ने राज्य की भूमिका व वैधता को चुनौती दिए बिना राज्य के कार्यों को . सामाजिक स्तर पर गति प्रदान की है
(अ) वनवासी कल्याण परिषद
(ब) सेवा भारती
(स) शिक्षा बचाओ आन्दोलन
(द) उपर्युक्त सभी

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 6.
विकास के दुष्परिणामों के विरुद्ध आन्दोलन से सम्बन्धित है
(अ) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
(ब) बेटी बचाओ आन्दोलन
(स) कावेरी जल विवाद
(द) सुधारवादी आन्दोलन

प्रश्न 7.
भारत में वैकल्पिक आन्दोलन का उदाहरण है
(अ) नक्सली आन्दोलन
(ब) बेटी बचाओ आन्दोलन
(स) कावेरी जल विवाद
(द) नारीवादी आन्दोलन

उत्तर:
1. (स), 2. (स), 3. (द), 4. (स), 5. (द), 6. (अ), 7. (द)।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन विद्यमान व्यवस्था में परिवर्तन के लिए किया गया सामूहिक प्रयास है। इसके माध्यम से सामाजिक जड़ता को दूर करते हुए समयानुकूल वांछित लक्ष्य प्राप्त करने के प्रयास किये जाते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य वंचित समूहों के हितों की रक्षा व संवर्द्धन कर एक न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करना होता है।

प्रश्न 3.
क्या’सामाजिक आन्दोलन’ व ‘लोककल्याणकारी राज्य’ की अवधारणाएँ एक-दूसरे के विपरीत हैं?
उत्तर:
नहीं, ‘सामाजिक आन्दोलन’ व ‘लोककल्याणकारी राज्य’ की अवधारणाएँ एक-दूसरे के विपरीत नहीं वरन् । पूरक हैं। वस्तुतः ‘सामाजिक आन्दोलन’ जनता के कल्याण की दिशा में किया गया प्रयास है।

प्रश्न 4.
सामाजिक आन्दोलनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलनों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है

  1. परिवर्तनकारी
  2. सुधारवादी
  3. उपचारवादी
  4. वैकल्पिक

प्रश्न 5.
परिवर्तनकारी आन्दोलन की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
परिवर्तनकारी आन्दोलन की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. ये सामाजिक आन्दोलन प्रचलित सामाजिक संस्थानों और व्यवस्थाओं में पूर्णरूपेण परिवर्तन के पक्षधर होते हैं।
  2. परिवर्तनकारी आन्दोलन हिंसात्मक भी हो सकते हैं।

प्रश्न 6.
परिवर्तनकारी और सुधारवादी आन्दोलन में कोई एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
परिवर्तनकारी आन्दोलन प्रचलित सामाजिक संस्थानों व व्यवस्था में पूर्णरूपेण परिवर्तन के पक्षधर होते हैं। जबकि सुधारवादी आन्दोलन प्रचलित सामाजिक समस्याओं में धीरे-धीरे सुधार लाना चाहते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 7.
वैकल्पिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वैकल्पिक आन्दोलन सम्पूर्ण सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तन लाकर एक अलग विकल्प स्थापित करने की बात करते हैं। इसमें सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन भी शामिल होता है। उदाहरण – नारीवादी आन्दोलन।

प्रश्न 8.
नव सामाजिक आन्दोलन का आरम्भ कब हुआ?
उत्तर:
नव सामाजिक आन्दोलन 1960 के दशक में आरम्भ हुआ।

प्रश्न 9.
नव सामाजिक आन्दोलन की शुरुआत सर्वप्रथम कहाँ हुई?
उत्तर:
नव सामाजिक आन्दोलन की शुरुआत सर्वप्रथम उन पाश्चात्य औद्योगिक समाजों से हुई जहाँ उत्तर औद्योगिक, उत्तर भौतिकवादी और उत्तर आधुनिकतावादी समस्यायें सतह पर आने लगी थीं।

प्रश्न 10.
नव सामाजिक आन्दोलन की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
नव सामाजिक आन्दोलन की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं(

  1. ये सामान्यतया वामपंथी विचारों की ओर झुकाव रखते हैं।
  2. युवाओं की आदर्शवादी प्रवृत्तियों का उपयोग करते हुए समाज के शिक्षित व सक्रिय वर्ग को अपने प्रयासों में सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 11.
सामाजिक आन्दोलनों का नागरिक समाज पर क्या प्रभाव हुआ है?
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलनों ने समकालीन राज्यों के नागरिक समाज की अवधारणा को मजबूती प्रदान की है।

प्रश्न 12.
वामपंथी विचारधारा के संगठनों एवं अन्य विचारधारा के संगठनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वामपंथी विचारधारा के संगठनों द्वारा राज्य की वैधता व शासन अधिकारों को चुनौती दी जाती रही है जबकि वामपंथी धारा के विपरीत वनवासी कल्याण परिषद जैसे संगठनों ने राज्य की वैधता व शासन अधिकारों को चुनौती दिये बिना रचनात्मक कार्य किये हैं।

प्रश्न 13.
नवीन सामाजिक आन्दोलन में कौन – कौन से समूह आते हैं?
उत्तर:
नवीन सामाजिक आन्दोलन में प्रमुख रूप से निम्नलिखित समूहों को सम्मिलित किया जाता है

  1. कृषक अधिकार आन्दोलन
  2. श्रमिक आन्दोलन
  3. महिला सशक्तिकरण आन्दोलन
  4. विकास योजनाओं के दुष्परिणामों के विरुद्ध आन्दोलन।।

प्रश्न 14.
नव कृषक आन्दोलन कब आरम्भ हुए? इनका प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
नव कृषक आन्दोलन 1991 के बाद आरम्भ हुए। इनका उद्देश्य मुख्य रूप से वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर में मुक्त बाजार व्यवस्था में भारतीय हितों की रक्षा करना है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 15.
नव कृषक आन्दोलन से सम्बन्धित तीन कृषक समूहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नव कृषक आन्दोलन से सम्बन्धित तीन कृषक समूह इस प्रकार हैं- भारतीय किसान संघ, भारतीय किसान यूनियन तथा शेतकारी संगठन।

प्रश्न 16.
परम्परावादी श्रमिक आन्दोलन के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
परम्परावादी श्रमिक आन्दोलन जो मुख्यतः वामपंथी समूहों तक केन्द्रित था, ने मुख्यतः औद्योगिक प्रतिष्ठानों और सरकारों से स्वयं को सामूहिक सौदेबाजी तक सीमित कर लिया था।

प्रश्न 17.
वर्तमान में महिला सशक्तिकरण आन्दोलन चलाने वाले भारत के किसी एक प्रमुख समूह का नाम बताइए।
उत्तर:
वर्तमान में अनेक समूहों ने महिला सशक्तिकरण को लक्ष्य करके सफल आन्दोलन चलाए हैं। इन समूहों में ‘राष्ट्र सेविका समिति का नाम उल्लेखनीय है।

प्रश्न 18.
विकास परियोजनाओं के दुष्प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विकास परियोजनाओं के दुष्प्रभाव हैं- विस्थापन, नदी जल विवाद, पर्यावरण क्षरण आदि।

प्रश्न 19.
क्या नर्मदा बचाओ आन्दोलन के तहत परियोजना का विरोध अनुचित था?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने विस्थापितों की समस्या के बजाय सम्पूर्ण परियोजना का विरोध किया जो कि तर्कसंगत नहीं था।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परिवर्तनकारी एवं सुधारवादी सामाजिक आन्दोलनों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परिवर्तनकारी एवं सुधारवादी सामाजिक आन्दोलन में अंतर परिवर्तनकारी सामाजिक आन्दोलन:

  1. परिवर्तनकारी सामाजिक आन्दोलन प्रचलित सामाजिक संस्थानों एवं व्यवस्थाओं में पूर्णतया परिवर्तन के पक्षधर होते हैं।
  2. ये हिंसात्मक भी हो सकते हैं; जैसे- नक्सलवादी वामपंथी आन्दोलन।
  3. परिवर्तनकारी सामाजिक आन्दोलन के प्रमुख उदाहरण हैं- नक्सलवादी आन्दोलन, वामपंथी आन्दोलन।।

सुधारवादी सामाजिक आन्दोलन-

  1. सुधारवादी आन्दोलन, प्रचलित असमानताओं सामाजिक समस्याओं के धीरे – धीरे सुधार के समर्थक होते हैं।
  2. इसके लिए सामान्यत: सांविधानिक संसदीय परम्पराओं का सहयोग लिया जाता है।
  3. अधिकांश गैर सरकारी संगठन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
उपचारवादी एवं वैकल्पिक आंदोलन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपचारवादी एवं वैकल्पिक आंदोलन में निम्नलिखित अन्तर हैं
उपचारवादी आन्दोलन-इस प्रकार के आंदोलन किसी एक व्यक्ति विशेष यो समस्या पर केन्द्रित होते हैं तथा इन आन्दोलनों के माध्यम से उस विशेष समस्या से छुटकारा दिलाने के प्रयास किए जाते हैं। वैकल्पिक आन्दोलन – इस प्रकार आन्दोलन सम्पूर्ण सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तन लाकर एक अलग विकल्प स्थापित करने की बात करते हैं। इनमें सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन भी सम्मिलित होता है। उदाहरण के रूप में नारीवादी आन्दोलन।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 3.
भारत में नवीन सामाजिक आन्दोलनों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में नवीन सामाजिक आन्दोलन-नवीन सामाजिक आन्दोलनों में ऐसी माँगों को रखा गया है, जिन्हें अन्य सामाजिक आन्दोलनों ने उपेक्षित छोड़ दिया था। नव सामाजिक आन्दोलन से जुड़ी प्रमुख माँगें हैं- पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार, नारीवादी आन्दोलन एवं जन – जागरण आन्दोलन।

ये आन्दोलन मानव जीवन की गुणवत्ता पर आधारित है ये आन्दोलन मानव जीवन में फैले अन्याय के प्रति नयी चेतना से प्रेरित होते हैं। नव सामाजिक आन्दोलनों का उद्देश्य केवल राजनीतिक या प्रशासनिक क्षेत्र में सुधार लाना ही नहीं है वरन् इसके साथ – साथ वैयक्ति तथा सामूहिक नैतिकता को भी बनाना है।

ये आन्दोलन किसी एक वर्ग के हित से नहीं वरन् सामूहिक हित से सम्बद्ध होते हैं। भारत में इन आन्दोलनों का आरम्भ 1960 के दशक में हुआ। कृषक अधिकार आन्दोलन, श्रमिक आन्दोलन महिला, सशक्तिकरण आन्दोलन एवं विकास के दुष्परिणामों के विरुद्ध आन्दोलन आदि नवीन सामाजिक आन्दोलन में प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं।

प्रश्न 4.
भारत में हुए महिला आन्दोलन के मुख्य उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
महिला आन्दोलन आरम्भ में निम्नलिखित उद्देश्यों से प्रेरित था-घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्य-स्थलों पर यौन उत्पीड़न आदि। इस दिशा में शहरी महिला समूह कार्यरत थे जो इन बुराइयों को समाप्त कराने हेतु प्रयत्नशील थे। सन् 1980 के दशक में नारीवादी आन्दोलन का केन्द्र बिन्दु था – परिवार व बाहर होने वाली यौन हिंसा की समाप्ति।

लैंगिक समानता के आधार पर अनेक कानूनों की माँग की गई। नारीवादी आन्दोलन अथवा महिला आन्दोलन का एकं लाभ यह हुआ कि धीरे – धीरे समाज में महिलाओं के मुद्दों के प्रति चेतना जागृत हुई। महिलाएँ भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुईं। उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई। शनैःशनैः इस जागरूकता में वृद्धि होती गई और सन् 1990 के दशक तक महिला आन्दोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की माँग करने लगा था।

संविधान के 73 वें व 74वें संशोधन के अन्तर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया। तत्पश्चात् संसद व विधानसभाओं में भी आरक्षण की माँग उठायी गयी। ‘अखिल भारतीय महिला परिषद’ तथा कई अन्य महिला संगठन आज भी महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों व लैंगिक असमानता के विरोध में आवाज उठा रहे हैं। महिलाओं का उत्पीड़न, अत्याचार व लैंगिक भेदभाव के मुद्दे सर्वाधिक जटिल हैं।

प्रश्न 5.
क्या आन्दोलन और विरोध की कार्यवाहियों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है ? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलनों का इतिहास हमें लोकतांत्रिक राजनीति को बेहतर तरीके से समझने में सहायता प्रदान करता है। इन आन्दोलनों का उद्देश्य दलीय राजनीति की कमियों को दूर करना था। समाज के गहरे तनावों और जनता के क्षोभ को एक सार्थक दिशा देकर इन आन्दोलनों ने एक प्रकार से लोकतंत्र की रक्षा की है।

सक्रिय भागीदारी को नए रूपों के प्रयोग ने भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है। अहिंसक व शान्तिपूर्ण आन्दोलनों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है। अपने उत्तर की पुष्टि में निम्नलिखित उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं

(i) चिपको आन्दोलन अहिंसक, शान्तिपूर्ण ढंग से चलाया गया जो एक व्यापक जन-आन्दोलन था। इससे वृक्षों की कटाई, वनों का उजड़ना बंद हुआ। पशु-पक्षियों, गिरिजनों को जल, जंगल, जमीन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक पर्यावरण मिला, सरकार लोकतांत्रिक माँगों के सामने झुकी।

(ii) वामपंथियों द्वारा शान्तिपूर्वक चलाए गए किसान व मजदूर आन्दोलन द्वारा जन-साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी व सर्वहारा वर्ग की उचित माँगों हेतु सरकार को जगाने में सफलता प्राप्त हुई।

(iii) ताड़ी विरोधी आन्दोलन ने नशाबंदी व मद्य निषेध के मुद्दे पर वातावरण तैयार किया। महिलाओं से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ (यौन उत्पीड़न, घरेलू समस्या, दहेज प्रथा तथा महिलाओं को विधायिकाओं में आरक्षण दिए जाने) उठीं। संविधान में कुछ संशोधन हुए तथा कानून बनाए गए।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि इन आन्दोलनों से लोकतंत्र को मजबूत आधार प्राप्त हुआ है।
ये जन आन्दोलन तथा कार्यवाहियाँ जनता की जायज माँगों का नुमाइंदा बनकर उभरे हैं तथा उन्होंने नागरिकों के एक बड़े समूह को अपने साथ जोड़ने में सफलता प्राप्त की है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 6.
कृषक अधिकार आन्दोलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कृषक अधिकार आन्दोलन-भारत में इस प्रकार के आन्दोलनों का प्रारम्भ सन् 1991 के पश्चात हुआ। 1991 ई. में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। उत्कृष्ट पूँजीवादी एवं वैश्वीकरण के पश्चात् भारतीय कृषकों, विशेष रूप से लघु कृषकों के हितों की रक्षा के लिए आन्दोलन होते रहे हैं।

इनका उद्देश्य मुख्य रूप से वैश्वीकरण एवं निजीकरण के दौर में मुक्त बाजार व्यवस्था में भारतीय हितों की रक्षा करना है। भारतीय किसान संघ, भारतीय किसान यूनियन, शेतकारी संगठन आदि समूह इन प्रयासों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 7.
“भारत में सामाजिक आन्दोलन लोकतंत्र में बाधक होने की अपेक्षा उसके विस्तार में सहायक रहते हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में सामाजिक आन्दोलन लोकतंत्र के विस्तार में सहायक रहते हैं। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं
(i) जन – आन्दोलन का इतिहास हमें लोकतांत्रिक राजनीति को अच्छे तरीके से समझने में सहायता प्रदान करता है। गैर-दलीय आन्दोलन दलीय राजनीति की कमियों को दूर करते हैं।

(ii) सामाजिक आन्दोलन ने समाज के उन नए वर्गों की सामाजिक, आर्थिक समस्याओं को उठाया जिन्हें वे चुनावी राजनीति के वातावरण में नहीं रख पा रहे थे।

(iii) समाज के गहरे तनावों व जनता में व्याप्त रोष को एक सार्थक दिशा देकर इन आन्दोलनों ने एक प्रकार से लोकतंत्र की रक्षा की है। इन्होंने भारतीय लोकतंत्र के जनाधार को बढ़ाया है।

(iv) लोकतांत्रिक राजनीति में समाज के अनेक उपेक्षित समूहों के गठबंधन की आवश्यकता रहती है। राजनीतिक दलों को विभिन्न वर्गों के हित समूहों को जोड़ना चाहिए परन्तु वे ऐसा करने में असमर्थ रहते हैं। इसी कारण जनाक्रोश सामाजिक आन्दोलनों के रूप में फूट पड़ता है।

(v) इन आन्दोलनों से हित – समूहों व दबाव समूहों की उत्पत्ति होती है। कालांतर में इनसे ही क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनीतिक दल बनते हैं। सत्ता की भागीदारी के युग में राजनीतिक दलों पर नियंत्रण रहना आवश्यक है एवं इस कार्य को सम्पन्न करने में जन-आन्दोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 8.
‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ के पक्ष और विपक्ष में कोई दो – दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के पक्ष और विपक्ष में तर्क इस प्रकार प्रस्तुत किए जा सकते हैं
पक्ष में तर्क-

  1. नर्मदा बचाओ आन्दोलन का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि बाँध के निर्माण से गुजरात के एक बहुत बड़े हिस्से सहित तीन पड़ोसी राज्यों में पीने के पानी, सिंचाई, विद्युत उत्पादन की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी और कृषि उपज में भी वृद्धि होगी।
  2. बाँध निर्माण से बाढ़ व सूखे की आपदाओं पर रोक लगाई जा सकेगी। समर्थकों का कहना है कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन नहीं चलाया जाना चाहिए क्योंकि बाँध बनने के बाद उन्हें इसी प्रकार के अनेक लाभ प्राप्त होंगे।

विपक्ष में तर्क:

  1. बाँध के लिए से संबंधित राज्यों के 245 गाँव डूबने की आशंका थी। इसमें ढाई लाख लोग निर्वासित हो सकते थे।
  2. पिछले अनुभव बताते थे कि इस प्रकार की परियोजनाओं का लोगों के स्वास्थ्य, आजीविका, संस्कृति व पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ता है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 15 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक आन्दोलन क्या हैं? सामाजिक आन्दोलनों का श्रेणी विभाजन कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन से आशय: ऐसे आन्दोलन मुख्य रूप से किसी भी संगठन द्वारा सामाजिक समस्याओं पर चलाए जाते हैं एवं इनसे समाज को एक नई दिशा मिलती है। सामाजिक आन्दोलन कहते हैं। ऐसे आन्दोलनों का उद्देश्य वंचित समूहों के हित की रक्षा करना और उनका संवर्द्धन करना है। सामाजिक आन्दोलन का सम्बन्ध समाज के उन समस्त सामाजिक हितों, समूहों एवं प्रयासों से है जो सामान्यतः प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व से वंचित रह जाते हैं।

इस प्रकार सामाजिक आन्दोलन एक नयी व्यवस्था एवं पुरानी व्यवस्था में परिवर्तन के लिए सचेतन सामूहिक एवं संगठित मानव प्रयास है। इनके माध्यम से सामाजिक व्यवस्था में जड़ता समयानुकूल मानवीय एवं अन्य वांछित परिवर्तन के लक्ष्य आधारित सामूहिक प्रयास किए जाते हैं। उन सभी आन्दोलनों का उद्देश्य एक न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की स्थापना होता है।

सामाजिक आन्दोलनों का श्रेणी विभाजन: सामाजिक आन्दोलनों का श्रेणी विभाजन निम्न प्रकार से है
(i) परिवर्तनकारी सामाजिक आन्दोलन – परिवर्तनकारी सामाजिक आन्दोलन प्रचलित सामाजिक संस्थानों एवं व्यवस्थाओं में पूर्णतया परिवर्तन के पक्षधर होते हैं। ये हिंसात्मक भी हो सकते हैं, जैसे – नक्सलवादी, वामपंथी आन्दोलन परिवर्तनकारी सामाजिक आन्दोलन के उदाहरण हैं। नक्सलवादी आन्दोलन, वामपंथी आन्दोलन।

(ii) सुधारवादी आन्दोलन – प्रचलित असमानताओं, सामाजिक समस्याओं के धीरे-धीरे सुधार के समर्थक होते हैं। इसके लिए सामान्यतः सांविधानिक संसदीय परम्पराओं का सहयोग लिया जाता है। अधिकांश गैर सरकारी संगठन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

(iii) उपचारवादी आन्दोलन – इस प्रकार के आन्दोलन किसी एक व्यक्ति विशेष या समस्या पर केन्द्रित होते हैं। तथा इन आन्दोलनों के माध्यम से उस विशेष समस्याओं से छुटकारा दिलाने के प्रयास किए जाते हैं।

(iv) वैकल्पिक आन्दोलन – इस प्रकार के आन्दोलन सम्पूर्ण सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तन लाकर एक अलग विकल्प स्थापित करने की बात करते हैं। इसमें सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन भी सम्मिलित होता है। उदाहरण के रूप में नारीवादी आन्दोलन।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 नव सामाजिक आन्दोलन

प्रश्न 2.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन क्या था? इसके विरुद्ध क्या आलोचना की गयी?
अथवा
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? इसकी आलोचना के प्रमुख बिन्दु बताइए।
अथवा
नर्मदा बचाओ आन्दोलन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से तात्पर्य-बीसवीं सदी के आठवें दशक के प्रारम्भ में भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के अन्तर्गत मध्य प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा व उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मॅझोले और 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। नर्मदा बचाओ आन्दोलन की कार्य-योजना से संबंधित प्रमुख बातें इस प्रकार हैं

(i) गुजरात के सरदार सरोवर तथा मध्य प्रदेश के नर्मदा सागर बाँध के रूप में दो सबसे विस्तृत तथा बहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्धारण किया गया। नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चलाया गया। इस आन्दोलन ने बाँधों के निर्माण का विरोध किया। नर्मदा बचाओ आन्दोलन, इन बाँधों के निर्माण के साथ-साथ देश में चल रही विकास परियोजनाओं के औचित्य पर भी सवाल उठाता रहा है।

(ii) सरदार सरोवर परियोजना के अन्तर्गत एक बहु-उद्देशीय विशाल बाँध बनाने का प्रस्ताव है। बाँध समर्थकों का कहना है कि इसके निर्माण से गुजरात के एक बहुत बड़े हिस्से सहित तीन पड़ोसी राज्यों में पीने के पानी, सिंचाई, बिजली के उत्पादन की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी और कृषि उपज में गुणात्मक वृद्धि होगी। बाँध की उपयोगिता को इस बात से भी संबंधित किया जा रहा था कि इससे बाढ़ व सूखे की आपदाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

(iii) प्रस्तावित बाँध के निर्माण से संबंधित राज्यों के 245 गाँव डूब के क्षेत्र में आ रहे थे। इसलिए प्रभावित गाँवों के तकरीबन ढाई लाख लोगों के पुनर्वास का मुद्दा सर्वप्रथम स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उठाया। इन गतिविधियों को एक आन्दोलन का स्वरूप सन् 1988-89 के दौरान मिला जब अनेक स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों ने स्वयं को नर्मदा बचाओ आन्दोलन के रूप में गठित किया।

(iv) नर्मदा बचाओ आन्दोलन अपने गठन के प्रारम्भ से ही सरदार सरोवर परियोजना को विकास परियोजना के वृहत्तर मसलों से जोड़कर देखता रहा है। यह आन्दोलन विकास के मॉडल तथा उसके सार्वजनिक औचित्य पर प्रश्न उठाता रहा है।

(v) नवें दशक के अन्त तक पहुँचते-पहुँचते नर्मदा बचाओ आन्दोलन से कई अन्य स्थानीय समूह तथा आन्दोलन भी आ जुड़े। ये सभी आन्दोलन अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की वृहत् परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं।

नर्मदा बचाओ आन्दोलन का आलोचनात्मक मूल्यांकन:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन दो दशकों से भी ज्यादा समय तक चला। आन्दोलन ने अपनी माँग मुखर करने के लिए यथासंभव लोकतांत्रिक रणनीति का प्रयोग किया। आन्दोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों तक उठाई। निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर इस आन्दोलन की आलोचनात्मक समीक्षा की जा सकती है

(i) बाँध निर्माण से प्राकृतिक संसाधनों; जैसे – नदियों, पर्यावरण आदि पर कुप्रभाव पड़ता है।

(ii) आलोचकों की यह दलील रही कि अब तक की सभी विकास परियोजनाओं पर हुए खर्च का विश्लेषण किया जाए। आन्दोलन के अनुसार परियोजनाओं के लागत विश्लेषण में इस बात का भी आंकलन किया जाना चाहिए कि समाज के विभिन्न वर्गों को इन परियोजनाओं का क्या नुकसान भुगतना पड़ा है।

(iii) इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया गया कि इन परियोजनाओं का लोगों के आवास, आजीविका, संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा असर पड़ा है।

(v) नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ताओं का गुजरात जैसे राज्यों में तीव्र विरोध हुआ है परन्तु अब सरकार और न्यायपालिका दोनों ही इस बात को स्वीकार करते हैं कि लोगों को पुनर्वास मिलना चाहिए। सरकार द्वारा सन् 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आन्दोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है।

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