Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 गठबंधन की राजनीति
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
देश के प्रथम तीन आम चुनावों में जिस दल का वर्चस्व रहा वह है
(अ) भारतीय जनता पार्टी
(ब) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
(स) भारतीय साम्यवादी दल
(द) समाजवादी दल
प्रश्न 2.
कौन से आम चुनाव के बाद गठबंधन की राजनीति का प्रारम्भ हुआ
(अ) 1967 ई.
(ब) 1977 ई.
(स) 1980 ई.
(द) 1971 ई.
प्रश्न 3.
जनता पार्टी का गठन हुआ
(अ) 1980
(ब) 1990
(स) 2000
(द) 1977
प्रश्न 4.
डा. मनमोहन की गठबंधन सरकार जिस गठबंधन की थी वह है
(अ) वामपंथी
(ब) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
(स) संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
(द) राष्ट्रीय गठबंधन
प्रश्न 5.
राजनीतिक दलों की दृष्टि से भारत में जो दलीय व्यवस्था है वह
(अ) द्विदलीय व्यवस्था
(ब) निर्दलीय व्यवस्था
(स) बहुदलीय व्यवस्था
(द) एक दलीय व्यवस्था
उत्तर:
1. (ब) 2. (ब) 3. (द)) 4. (स) 5. (स)।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
यू.पी.ए. गठबंधन के प्रधानमंत्री कौन रहे?
उत्तर:
यू.पी.ए. गठबंधन के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह रहे थे।
प्रश्न 2.
जनता पार्टी के विघटन का तत्कालीन मुख्य मुद्दा क्या था?
उत्तर:
दोहरी सदस्यता का मुद्दा।
प्रश्न 3.
एन.डी.ए. गठबंधन में प्रधान राजनीतिक दल कौन – सा है?
उत्तर:
एन.डी.ए. गठबंधन में प्रधान राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी’ है।
प्रश्न 4.
वर्तमान में कौन से गठबंधन की सरकार है?
उत्तर:
वर्तमान में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) की सरकार है।
प्रश्न 5.
16 वीं लोकसभा चुनाव में किस राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिला?
उत्तर:
16 वीं लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी’ को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिला।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वर्तमान समय में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में कौन-कौन से गठबंधन हैं। उनमें मुख्य दल कौन – से हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य रूप से तीन धाराएँ या गठबंधन हैं
- राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन. डी. ए.) – भारतीय जनता पार्टी एवं उसके साथ गठबंधन में शामिल अन्य। राजनीतिक दल जैसे अकाली दल, शिवसेना, लोकजनशक्ति पार्टी, तेलगुदेशम, आई.एल.एस.पी., पी.एम.के. सहित 13 दल शामिल हैं।
- यू.पी.ए.- इसमें प्रमुख रूप से कांग्रेस पार्टी है। उसके साथ अन्य राजनीतिक दल है – राष्ट्रीय कांग्रेस दल, राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस आदि।
- वामपंथी राजनीतिक दल – तीसरा गठबंधन वामपंथी राजनीतिक दलों का हैं, जिसका शासन पं. बंगाल एवं केरल में था। वर्तमान में पश्चिम बंगाल में इनका शासन खत्म हो चुका है।
- अन्य राजनीतिक दल-इसमें वे राजनीतिक दल हैं जो इन तीनों ही गठबंधन में शामिल नहीं हैं। अन्नाद्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, आम आदमी पार्टी, जनता दल सेकुलर आदि।
प्रश्न 2.
गठबंधन की राजनीति सरकार के स्थायित्व के लिए खतरा है कैसे?
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति सरकार के स्थायित्व के लिए खतरा है। इसे निम्नलिखित तथ्यों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
- “गठबंधन सरकार के कारण भारतीय राजनीति में आया राम, गया राम” की प्रवृत्ति देखने को मिलती है जिसके कारण शासन के स्थायित्व के लिए खतरा बना रहता है।
- भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीतिक सिद्धांतों एवं विचारधारा के बजाय नेताओं के आधार पर होते हैं। इसके परिणामस्वरूप गठबंधन का कोई उचित आधार न होने से सरकार के स्थायित्व के लिए खतरा बना रहता है।
- राजनीतिक लाभ के लिए विरोधी विचारधारा के राजनीतिक दल गठबंधन में शामिल हो जाते हैं। चुनावों में एक-दूसरे की कार्य-पद्धति की आलोचना करने वाले दल चुनाव के बाद किसी गठबंधन में शामिल हो जाते हैं। गठबंधनों का आधार विचारधारा न होकर केवल सत्ता प्राप्त करना या किसी को सत्ता में आने से रोकना होता है। इस प्रकार से गठबंधन राजनीति सरकार के स्थायित्व के लिए खतरा है।।
प्रश्न 3.
क्या जनता पार्टी की सरकार एक गठबंधन सरकार थी?
उत्तर:
1977 में बनी जनता पार्टी की सरकार एक गठबंधन सरकार थी क्योंकि जनता पार्टी में पाँच दल सम्मिलित थे जिन्होंने मिलकर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार का गठन किया था। इस सरकार ने एक गठबंधन सरकार की तरह ही व्यवहार किया। अल्पकाल से ही जनता पार्टी दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर बिखर गयी और सरकार का पतन हो गया।
प्रश्न 4.
गठबंधन की राजनीति के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति के लाभ: गठबंधन की राजनीति के दो लाभ निम्नलिखित हैं
1. शासन निरंकुश नहीं बन पाता – गठबंधन मंत्रिपरिषद पर प्रधानमंत्री का उतना वर्चस्व नहीं होता जितना एक दल की सरकार में होता है। मंत्रिपरिषद को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर कार्य करना पड़ता है। मंत्रिपरिषद मनमाने तरीके से कार्य नहीं कर सकती है। गठबंधन में शामिल सभी दलों की नीतियों एवं सिद्धातों को ध्यान में रखना पड़ता है।
2. अतिवादी दृष्टिकोण से बचाव – गठबंधन की राजनीति से अतिवादी दृष्टिकोण से बचा जा सकता है। एक दल की सरकार अपने दृष्टिकोण को थोपने का प्रयत्न कर सकती है। गठबंधन में कोई भी दल केवल अपनी नीति एवं सिद्धांत को थोप नहीं सकता क्योंकि गठबंधन में शामिल अन्य दल विरोध कर सकते हैं।
प्रश्न 5.
भारतीय गठबंधन राजनीति की तीन विशेषताएँ बताए?
उत्तर:
भारतीय गठबंधन राजनीति की विशेषताएँ – भारतीय गठबंधन राजनीति की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- गठबंधन में एक दल की प्रधानता रही है – भारतीय राजनीति में जो गठबंधन बने हैं उनमें एक दल की प्रधानता रही है। सहयोगी दलों का प्रभाव प्रमुख दल के सांसदों की संख्या एवं अन्य सहयोगी दलों के सहयोग पर निर्भर करता है। सत्तारूढ़ गठबंधन से यदि कोई सहयोगी दल अलग हो जाता है तो भी गठबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- दल – बदल की प्रवृत्ति – गठबंधन सरकारों के कारण भारतीय राजनीति में आया राम गया राम’ की प्रवृत्ति भी देखने को मिलती है, जिसके कारण शासन के स्थायित्व को खतरा बना रहता है।
- दबाव की राजनीति-गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री पर दबाव डालते रहते हैं। उदाहरण के लिए-तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने अपने दल के कोटे से बने रेलमंत्री को बदलने एवं रेल का बढ़ा हुआ किराया वापस लेने यू.पी.ए. की मनमोहन सरकार को मजबूर कर दिया।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गठबंधन की राजनीति के भारतीय राजनीति पर क्या – क्या नकारात्मक प्रभाव पड़े?
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति का भारतीय राजनीति पर नकारात्मक प्रभाव – गठबंधन की राजनीति के भारतीय राजनीति पर निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव पड़े–
- कमजोर सरकार – गठबंधन की सरकार कमजोर होती है। वह मजबूती से निर्णय लेने में असमर्थ होती है चाहे वैदेशिक क्षेत्र से संबंधित निर्णय हों या आंतरिक निर्णय।।
- सरकार का स्पष्ट नीति पर कार्य न कर पाना – गठबंधन में अलग-अलग विचारधारा एवं सिद्धांतों के राजनीतिक दल शामिल होते हैं। सभी दल अपनी नीति को सरकार की नीति बनाना चाहते हैं। परिणाम यह होता है कि सरकार कोई स्पष्ट नीति निर्धारित नही कर पाती जिसका प्रभाव सरकार के कार्यों पर पड़ता है।
- सरकारों में स्थायित्व का अभाव – गठबंधन की सरकार में स्थायित्व का अभाव रहता है। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल सरकार पर अपने हितों की पूर्ति के लिए दबाव डालते रहते हैं।
- गठबंधनों में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव – क्षेत्रीय दलों का गठबंधनों पर प्रभाव बढ़ता जा रहा है जो राष्ट्रीय हितों के बजाय क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं। इससे राष्ट्रीय हितों का नुकसान होता हैं।
- राष्ट्रीय एकता को नुकसान – गठबंधन में क्षेत्रीय दलों को प्रभाव बढ़ जाने के कारण क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्रीय हितों को पूरा करने पर बल देते हैं। प्रधानमंत्री भी सरकार के स्थायित्व के कारण उनके दबाव में आने के लिए मजबूर होता है। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय एकता का हनन होता है।
- सदढ विदेश नीति का अभाव – गठबंधन सरकार में विदेश नीति के मामले में देश की स्थिति कमजोर रहती है। प्रधानमंत्री सहयोगी दलों के दबाव में रहता है। उसे विदेशों में किए जाने वाले समझौतों तथा संधियों में सहयोगी दलों की सलाह लेनी पड़ती है। विदेशों के सामने हमारी स्थिति कमजोर पड़ती है।
- प्रधानमंत्री की भूमिका में सीमितता – गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री का अपनी मंत्रिपरिषद में सम्मिलित अपने व अन्य दलों के सदस्यों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं होता हैं। सरकार में सम्मिलित मंत्री अपने दल के नेतृत्व के निर्देशों का पालन करते हैं। प्रधानमंत्री अपनी कमजोर भूमिका के कारण अनिर्णय की स्थिति में रहता है।
- अन्य नकारात्मक प्रभाव:
- गठबंधन शासन में सरकार के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों में तालमेल का अभाव पाया जाता है।
- गठबंधन से छोटे-छोटे राजनीतिक दलों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है, अधिक राजनीतिक दलों का निर्माण स्थायी सरकारों के निर्माण में बाधा है।
- इसमें प्रधानमंत्री का अपने मंत्रिपरिषद में शामिल अपने व अन्य दलों के सदस्यों पर प्रभावशाली नियंत्रण नहीं । होता।
प्रश्न 2.
गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक पक्ष का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक पक्ष:
गठबंधन की राजनीति के सकारात्मक पक्ष को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है
1. जनमत का समर्थन-एक दल के मंत्रिपरिषद के बजाय गठबंधन मंत्रिपरिषद के जनमत के समर्थन का दायरा बड़ा होता है। गठबंधन में शामिल दलों की संख्या जितनी अधिक होती है उतना ही उसे जन समर्थन मिल जाता है। सरकार की स्वीकार्यता बढ़ जाती है।
2. अतिवादी दृष्टिकोण से बचाव-गठबंधन की राजनीति से अतिवादी दृष्टिकोण से बचा जा सकता है। एक दल की सरकार अपने दृष्टिकोण को थोपने का प्रयत्न कर सकती है। गठबंधन में कोई भी दल केवल अपनी नीति एवं सिद्धांत को थोप नहीं सकता है क्योंकि गठबंधन में शामिल अन्य दल विरोध कर सकते हैं।
3. सशक्त विपक्ष का निर्माण-गठबंधन राजनीति का एक लाभ यह भी है कि एक राजनीतिक दल सत्तारूढ़ दल का उतना प्रभावशाली प्रतिरोध नही कर सकता है जितने कई दलों से मिलकर बना गठबंधन कर सकता है। जब यू.पी.ए. गठबंधन की सरकार थी, तब एन.डी.ए. गठबंधन प्रभावशाली ढंग से सरकार का प्रतिरोध कर उसकी मनमानी रोकने में सक्षम होता था। अब वर्तमान में एन.डी.ए. की सरकार है तथा यू.पी.ए. गठबंधन सरकार की मनमानी को प्रभावशाली ढंग से रोकता
4. शासन निरंकुश नही बन पाता-गठबंधन मंत्रिपरिषद पर प्रधानमंत्री का उतना वर्चस्व नही होता है, जितना एक दल की सरकार में होता है। मंत्रिपरिषद को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर कार्य करना पड़ता है। मंत्रिपरिषद मनमाने तरीके से कार्य नहीं कर सकती। प्रधानमंत्री को गठबंधन में सम्मिलित समस्त दलों की नीतियों के सिद्धातों को ध्यान में रखना पड़ता है।
5. योग्य लोगों के योगदान का देश को लाभ-एक दल की सरकार में उसी दल के लोगों में से मंत्री लेने पड़ते हैं, दूसरे दल के लोगों का कोई योगदान नहीं होता है। गठबंधन की स्थिति में गठबंधन में शामिल सभी दलों के योग्य लोगों को मंत्रिपरिषद में लिया जाता है। इन सभी दलों के वरिष्ठ एवं योग्य लोगों की योग्यता का लाभ देश को मिलता है। मन्त्रि परिषद के गठन का दायरा बढ़ जाने से अधिक योग्य लोगों की मंत्रिपरिषद का निर्माण होता है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 24 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत का प्रतिनिधि सदन है
(अ) लोकसभा
(ब) राज्यसभा
(स) विधानसभा
(द) कोई भी नहीं।
प्रश्न 2.
किस स्थिति में सरकार का चलना असंभव होता है
(अ) बिना बहुमत
(ब) स्पष्ट बहुमत
(स) दोनों ही
(द) कोई भी नहीं।
प्रश्न 3.
कुछ दल मिलकर बना लेते हैं………..।
(अ) समूह
(ब) गठबंधन
(स) समिति
(द) संस्था।
प्रश्न 4.
चतुर्थ आम चुनाव किस वर्ष में सम्पन्न हुए थे
(अ) 1964
(ब) 1965
(स) 1966
(द) 1967
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में किस प्रधानमंत्री की सरकार मात्र 13 दिन चल पाई
(अ) मनमोहन सिंह
(ब) इन्द्रकुमार गुजराल
(स) एच. डी. देवेगौड़ा
(द) अटल बिहारी वाजपेयी
प्रश्न 6.
U.P.A. का पूर्ण नाम क्या है?
(अ) Union Progressive Alliance
(ब) United Progressive Alliance
(स) United Protective Alliance
(द) None of above (कोई भी नहीं)
प्रश्न 7.
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन है
(अ) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
(ब) वामपंथी गठबंधन
(स) संयुक्त मोर्चा
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 8.
किस वर्ष में बनी जनता पार्टी की सरकार एक तरह का गठबंधन-सा ही थी
(अ) 1977
(ब) 1978
(स) 1979
(द) 1980
प्रश्न 9.
जनता पार्टी की गठबंधन सरकार के मुखिया थे
(अ) चरण सिंह
(ब) मोरारजी देसाई
(स) इंदिरा गाँधी
(द) वी. पी. सिंह
प्रश्न 10.
कांग्रेस से मतभेद होने पर किस प्रधानमंत्री को 6 मार्च 1991 को त्याग-पत्र देना पड़ा था
(अ) अटल बिहारी वाजपेयी
(ब) वी.पी. सिंह
(स) चन्द्रशेखर
(द) चरण सिंह
11. एच.डी. देवगौड़ा कितने माह सत्ता में रहे|
(अ) एक वर्ष
(ब) आठ माह
(स) दो वर्ष
(द) दस माह
प्रश्न 12.
भारत के कौन-से प्रधानमंत्री भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे थे
(अ) डॉ. मनमोहन सिंह
(ब) नरेन्द्र मोदी
(स) इन्द्र कुमार गुजराल
(द) चरण सिंह
प्रश्न 13.
1984 के पश्चात् प्रथम बार किस दल को जनता ने स्पष्ट बहुमत प्रदान किया था?
(अ) कांग्रेस
(ब) लोकजन शक्ति पार्टी
(स) भारतीय जनता पार्टी
(द) शिवसेना 14.
प्रश्न 16
वीं लोकसभा के चुनाव किस वर्ष हुए थे
(अ) 2013 में
(ब) 2014 में
(स) 2015 में
(द) 2016 में
प्रश्न 15.
16वीं लोकसभा में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का दूसरा प्रमुख दल है
(अ) शिवसेना
(ब) अकालीदल
(स) तेलगुदेशम
(द) लोक जनशक्ति पार्टी
प्रश्न 16.
16 वीं लोकसभा में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का प्रमुख दल है
(अ) राष्ट्रीय कांग्रेस
(ब) कांग्रेस
(स) झारखण्ड मुक्ति मोर्चा
(द) राष्ट्रीय जनता दल
प्रश्न 17.
भारतीय गठबंधन की राजनीति की प्रमुख विशेषता है
(अ) एक दल की प्रधानता
(ब) विचारधारागत समानता का अभाव
(स) दल-बदल की प्रवृत्ति
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 18.
निम्न में से गठबंधन की राजनीति का लाभ नहीं है
(अ) शासन निरंकुश नहीं बन पाता
(ब) व्यापक जन समर्थन
(स) अस्थायी सरकारों का निर्माण
(द) सशक्त विपक्ष का निर्माण
प्रश्न 19.
गठबंधन की राजनीति का नकारात्मक पक्ष है
(अ) कमजोर शासन
(ब) राष्ट्रीय एकता को नुकसान
(स) सुदृढ़ विदेश नीति का अभाव
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 20.
राजनीतिक दलों की मुख्य धाराएँ कितनी हैं
(अ) चार
(ब) दो
(स) तीन
(द) पाँच
उत्तर:
1. (अ), 2. (अ), 3. (ब), 4. (द), 5. (द), 6. (ब), 7. (अ), 8. (अ), 9. (ब), 10. (स),
11. (द), 12. (अ), 13. (स), 14. (ब), 15. (अ), 16. (ब), 17. (द), 18. (सं), 19. (द),
20. (स)
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मिलीजुली सरकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिलीजुली सरकार एक ऐसी सरकार होती हैं, जिसमें कम – से – कम दो राजनीतिक दलों की भागीदारी होती है।
प्रश्न 2.
कौन – से आम चुनाव में प्रथम बार केन्द्र में कांग्रेस की हार हुई?
उत्तर:
1977 के आम चुनाव में।
प्रश्न 3.
एन.डी.ए. का पूर्ण नाम बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
प्रश्न 4.
मोरारजी देसाई की सरकार के गिरने के पश्चात् कांग्रेस के बहारी समर्थन से किसने सरकार बनायी?
उत्तर:
चौधरी चरणसिंह ने।
प्रश्न 5.
दिसम्बर 1989 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व में किस दल की सरकार बनी।
उत्तर:
जनता दल की।
प्रश्न 6.
एच.डी. देवगौड़ा सरकार में कितने दल सम्मिलित थे?
उत्तर:
13 राजनीतिक दल।
प्रश्न 7.
इन्द्र कुमार गुजराल सरकार में कितने राजनीतिक दल शामिल थे?
उत्तर:
15 राजनीतिक दल।
प्रश्न 8.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन कब हुआ?
उत्तर:
12 वीं लोकसभा में किसी को बहुमत नही मिला तो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन हुआ।
प्रश्न 9.
भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय किस घटना को कहा जाता है?
उत्तर:
अप्रैल 1999 में एन. डी. ए. की सरकार का मात्र एक मत से गिरना
प्रश्न 10.
अप्रैल 1999 में एन. डी. ए. की सरकार का मात्र एक मत से गिरने को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि इसमें बिना किसी विकल्प के विपक्ष ने सरकार तो गिरा दी पर विपक्ष स्वयं किसी तालमेल के अभाव में अपनी सरकार गठित नहीं कर पाया।
प्रश्न 11.
13 वीं लोकसभा चुनाव के बाद किसकी सरकार बनी थी?
उत्तर:
13 वीं लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी थी।
प्रश्न 12.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रधानमंत्री कौन रहे?
उत्तर:
अटल बिहारी वाजपेयी।
प्रश्न 13.
14 वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी का नेता कौन था?
उत्तर:
14 र्वी लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी के नेता मनमोहन सिंह थे।
प्रश्न 14.
वर्तमान में एन.डी.ए. गठबंधन के कौन-से नेता प्रधानमंत्री है?
उत्तर:
नरेन्द्र मोदी।
प्रश्न 15.
मोदी मंत्रिमंडल में किन दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए?
उत्तर:
मोदी मंत्रिमंडल में शिवसेना, तेलगु देशम्, अकाली दल, लोकजन शक्ति पार्टी जैसे दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
प्रश्न 16.
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी को कितनी सीटें प्राप्त हुई थीं?
उत्तर:
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 282 सीटें प्राप्त हुई थीं।
प्रश्न 17.
यू.पी.ए. गठबंधन में प्रधान राजनीतिक दल कौन – सा है?
उत्तर:
कांग्रेस।
प्रश्न 18.
भारतीय गठबंधन की राजनीति की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- स्थायित्व का अभाव
- दल – दबल की प्रवृत्ति
प्रश्न 19.
वर्तमान में भारतीय राजनीति में कौन – कौन – से गठबंधन महत्वपूर्ण व प्रभावशाली हैं?
उत्तर:
- राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
- संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन।
प्रश्न 20.
1977 में निषेधात्मक आधार पर कांग्रेस के विरूद्ध गठित राजनीतिक गठबंधन का नाम बताइए?
उत्तर:
जनता पार्टी
प्रश्न 21.
दल – बदल से क्या आशय है?
उत्तर:
जब कोई जनप्रतिनिधि किसी विशेष राजनैतिक पार्टी का चुनाव चिह्न लेकर चुनाव लड़े, जब चुनाव में वह जीत जाए तथा अपने स्वार्थ के लिए अथवा किसी अन्य कारण से अपने दल को छोड़कर अन्य किसी दल में सम्मिलित हो जाए तो इसे दल – बदल कहा जाता है।
प्रश्न 22.
भारतीय राजनीति में किस प्रवृति के लिए आयाराम – गयाराम शब्द का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
दलबदल की प्रवृत्ति के लिए।
प्रश्न 23.
भारतीय राजनीति में क्या स्थायी तत्व बन गया है?
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति भारतीय राजनीति का स्थायी तत्व बन गया है।
प्रश्न 24.
गठबंधन की राजनीति के कोई दो लाभ बताइए?
उत्तर:
- जन समर्थन का व्यापक रूप से समाहित होना
- अतिवादी दृष्टिकोण से मुक्ति
प्रश्न 25.
गठबंधन की राजनीति से होने वाली कोई दो हानि बताइए।
उत्तर:
- अस्थायी सरकारों का निर्माण
- राष्ट्रीय एकता को नुकसान।
प्रश्न 26.
राष्ट्रीय राजनीतिक गठबंधन में सम्मिलित किन्हीं दो दलों के नाम लिखिए?
उत्तर:
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
- शिवसेना।
प्रश्न 27.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में सम्मिलित किन्हीं दो दलों के नाम लिखिए?
उत्तर:
- कांग्रेस
- राष्ट्रीय जनता दल।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गठबंधन की राजनीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति- लोकसभा या राज्यों में विधानसभा के चुनावों में कई बार किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है। जबकि सरकार चलाने के लिए इन संस्थाओं में बहुमत की आवश्यकता होती है। अतः कुछ दल मिलकर अपना – अपना एकं गठबंधन बना लेते हैं तथा आपसी विचार – विमर्श द्वारा साझा कार्यक्रम तय कर लेते हैं क्योंकि अलग – अलग दलों के सिद्धान्त एवं विचार अलग – अलग होते हैं। गठबंधन में शामिल दल सबकी विचारधारा में स्वीकार्य ऐसे कार्यक्रम तय कर लेते हैं, जिस पर गठबंधन में शामिल दलों का विरोध न हो।
विरोध में भी कुछ दल मिलकर एक गठबंधन का निर्माण कर लेते हैं। इस प्रकार का गठबंधन चुनाव पूर्व भी हो सकता है। इस प्रकार ऐसी राजनीति जिसमें चुनाव के पूर्व या पश्चात् आवश्यकतानुसार दलों में सरकार के गठन या किसी अन्य मामले (जैसे राष्ट्रपति चुनाव) में आपसी सहमति बन जाए एवं वे सामान्यतः एक स्वीकृत न्यूनतम साझे कार्यक्रम के अनुसार राष्ट्र में राजनीति चलाएँ तो इसे गठबंधन की राजनीति कहा जाता है।
प्रश्न 2.
मिलीजुली सरकारों के लक्षणों को स्पष्ट कीजिए। अथवा गठबंधन सरकारों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मिलीजुली सरकारों (गठबंधन सरकार) के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) निम्नलिखित हैं
- मिलीजुली सरकार में कम – से – कम दो दल भागीदार होते हैं।
- भागीदार दल गठबंधन की राजनीति को कुछ प्राप्त करने के लिए अपनाते हैं। लक्ष्य सारभूत रूप में कुछ प्राप्ति का हो सकता है या मनोवैज्ञानिक रूप में प्राप्ति का।।
- गठबंधन एक अस्थायी प्रबंध होता है।
- मिलीजुली सरकार का गठन समझौते के आधार पर होता है। इसमें कठोर सिद्धांतवादी राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं होता है अर्थात् मिलीजुली सरकारें यथार्थवाद पर आधारित होती हैं।
- गठबंधन का प्रत्येक प्रमुख भागीदार दल अपनी राजनीतिक शक्ति में वृद्धि कर अकेले ही सत्ता प्राप्त करने की इच्छा रखता है।
प्रश्न 3.
16वीं लोकसभा चुनाव के पश्चात् एन.डी.ए. गठबंधन की स्थिति को बताइए।
उत्तर:
16वीं लोकसभा चुनाव के पश्चात् एन.डी.ए गठबंधन की स्थिति – 16र्वी लोकसभा के चुनाव सन् 2014 में सम्पन्न हुए। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) को बहुमत प्राप्त हुआ इस गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी व अन्य राजनीतिक दल, जैसे – अकाली दल, शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी, तेलगुदेशम सहित 13 दल शामिल हैं।
इन दलों को लोकसभा में प्राप्त सीटों का विवरण इस प्रकार है भाजपा- 282, शिवसेना- 18, तेलगु देशम- 16, एन.पी.एफ. 01, लोकजन शक्ति पार्टी- 06, एस. डब्लू.पी.- 01, अकाली दल-04 एन.आई.एन.आर.सी.-01, आई.एल.एस.पी.-03 एन.पी.पी.-01, ए.डी.-02, पी.एम. के-01 । इस प्रकार इस गठबंधन को लोकसभा में 336 सीटें प्राप्त हुईं।
प्रश्न 4.
लोकसभा चुनाव के पश्चात् यू.पी.ए. गठबंधन की स्थिति को बताइए।
उत्तर:
लोकसभा चुनाव के पश्चात् यू.पी.ए गठबंधन की स्थिति – 16 वीं लोकसभा के चुनाव सन् 2014 में सम्पन्न हुए। इस चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए) को हार का सामना करना पड़ा। इस गठबंधन में मुख्य रुप से कांग्रेस पार्टी है तथा उसके साथ अन्य राजनीतिक दल हैं। वर्तमान लोकसभा में इस गठबंधन को 59 सीटें प्राप्त हुई हैं। जो इस प्रकार से हैं- कांग्रेस- 44, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा – 02, राष्ट्रीय कांग्रेस-06, आई.यू.एम.एल-02, राष्ट्रीय जनता दल -04 केरल कांग्रेस (एम)-01
प्रश्न 5.
भारतीय राजनीति में गठबंधन के प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए?
उत्तर:
भारतीय राजनीति में गठबंधन के प्रकार – भारतीय राजनीति में गठबंधन एक नियति बन चुका है। भारतीय राजनीति में गठबंधन के दो प्रकार हैं
- चुनाव पूर्व के गठबंधन – लोकसभा या राज्यों के विधानसभा चुनावों में जब राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिए आपस में विचार – विमर्श कर एक साझा कार्यक्रम तय करके एक गठबंधन बना लेते हैं, तो इसे चुनाव पूर्व गठबंधन कहते हैं। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) तथा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए) ये दोनों गठबंधन चुनाव पूर्व गठबंधन थे।
- चुनाव पश्चात् के गठबंधन – इस प्रकार के गठबंधन वे हैं, जो चुनाव के पश्चात् सत्ता प्राप्ति के लिए सिद्धान्तों को ताक पर रख कर बनाये जाते हैं। ऐसे गठबंधनों में वे दल गठजोड़ करते हैं जो चुनाव में एक दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ते हैं, आलोचना करते हैं, चुनाव के बाद मिल कर सत्ता सुख भोगने लगते हैं।
प्रश्न 6.
मिलीजुली सरकारें सम्मिलन की राजनीति का परिणाम होती हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मिलीजुली सरकारें सम्मिलन की राजनीति का परिणाम होती हैं तथा विभिन्न राजनीतिक दल सम्मिलन की इस राजनीति को चुनाव के पूर्व या चुनाव के पश्चात् अपना सकते हैं। चुनाव के पूर्व जो गठबंधन बनते हैं, उनमें अवसरवादिता का तत्व कम होता है और साथ – साथ काम करने का आधार बन जाता है। चुनाव के पश्चात् और चुनाव से उत्पन्न स्थिति का सामना करने के लिए जो गठबंधन बनाए जाते हैं, उनमें अवसरवादिता का तत्व अधिक अंशों में विद्यमान होता है और यही बात इन गठबंधनों को कमजोर कर देती है। ऊपर से देखने पर गठबंधन सरकार चाहे कितनी ही ठोस प्रतीत होती हो, उसके अंदर मतभेद के स्वर विद्यमान होते ही हैं।
प्रश्न 7.
राजनीतिक व्यवस्था पर मिलीजुली सरकारों के प्रभावों को बताइए।
उत्तर:
राजनीतिक व्यवस्था पर मिली-जुली सरकारों का प्रभाव
- राजनीतिक दल-बदल को बढ़ावा -1967 – 70 के काल में अधिकांश मिलीजुली सरकारों के कारण राजनीतिक दल – बदल ने जन्म लिया था। एक बार सरकार बन जाने के बाद भी राजनीतिक दल-बदल की यह स्थिति बनी रही।
- गैर – कांग्रेसवाद पर आधारित सरकारें – 1967 – 70 तथा 1977 – 79 में राज्य स्तर पर मिलीजुली सरकारों का गठन एक निश्चित किंतु निषेधात्मक आधार पर हुआ और वह आधार रहा है, ‘गैर कांग्रेसवाद’ अर्थात् ‘कांग्रेस दल को सत्ता से दूर रखना।’ निषेधात्मक आधार पर एकत्रित होना इन दलों की एक बड़ी कमजोरी थी।
प्रश्न 8.
क्या मिलीजुली सरकारों में विकासशीलता का गुणं पाया जाता है?
उत्तर:
मिलीजुली सरकार की संकल्पना और प्रबंध में एक मूलभूत विकासशीलता होती है। यह विकासशीलता अनेक रूपों में हो सकती है। यह सरकार चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करने के लिए किसी विशेष राजनीतिक तकनीक को अपना सकती है। इसके अतिरिक्त सह – मिलन की राजनीति में एक राजनीतिक दल आज जिसका सबसे अधिक प्रबल रूप में विरोध कर रहा है, कल उसे अपना सहयोगी समझ सकता है। 1988 – 89 में जनता दल कांग्रेस को अपना सबसे प्रमुख विरोधी और भाजपा को कुछ सीमा तक सहयोगी समझता था, किंतु 1996 – 97 के वर्षों में जनता दल ने भाजपा को अपना प्रमुख विरोधी और कांग्रेस को कुछ सीमा तक सहयोगी समझा।
प्रश्न 9.
उदाहरण सहित वताइए कि गठबंधन में विचारधारा की समानता का अभाव रहता है।
उत्तर:
राजनीतिक गठबंधन में विचारधारागत समानता का अभाव रहता है। कई बार राजनीतिक लाभ के लिए विरोधी विचारधारा के राजनीतिक दल गठबंधन में सम्मिलित हो जाते हैं। चुनावों में एक दूसरे की कार्य पद्धति की आलोचना करने वाले दल चुनाव के पश्चात् एक गठबंधन में सम्मिलित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल में एक दूसरे की विरोधी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.एम) राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को समर्थन प्रदान कर रही थी।
वर्ष 2016 में पश्चिमी बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस वे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.एम) ने एक – दूसरे के साथ गठबंधन किया था जबकि विचारधारात्मक आधार पर इन दोनों दलों के मध्य कोई समानता नहीं है। इसी प्रकार बिहार में जय प्रकाश नारायण को आदर्श मानने वाली समता पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन बना कर वहीं चुनाव लड़ती है जबकि जय प्रकाश नारायण के विचार कांग्रेस की नीतियों से कहीं मेल नहीं खाते हैं। वस्तुतः गठबंधनों का आधार विचारधारा न होकर केवल सत्ता प्राप्त करना अथवा किसी को सत्ता में आने से रोकना है।
प्रश्न 10.
भारतीय राजनीति में गठबंधन दल एवं सिद्धांतों की अपेक्षा नेताओं के आधार पर होते हैं।’कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह बात सत्य है कि भारतीय राजनीति में गठबंधन दल एवं सिद्धान्तों की अपेक्षा नेताओं के आधार पर होते हैं। इसे निम्न उदाहरणों द्वारा समझाया जा सकता है
- जय प्रकाश नारायण को आदर्श मानने वाली एवं उनकी विचारधाराओं में विश्वास करने वाली समाजवादी विचारधारा की पार्टी समता पार्टी का गठबंधन राष्ट्रीय जनता दल से होने के बजाय भारतीय जनता पार्टी से था। जब श्री नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने अपना नेता घोषित किया तो समता पार्टी ने उससे गठबंधन तोड़ दिया।
- 1997 में एच.डी. देवगौड़ा को कुछ दिन समर्थन देने के बाद कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को बदलने के आधार पर समर्थन की शर्त रखी तो इन्द्र कुमार गुजराल को 10 माह बाद अप्रैल 1997 को प्रधानमंत्री बनाया गया। कांग्रेस ने पुनः समर्थन दे दिया।
- बिहार में समता पार्टी के गठबंधन में शामिल लालू प्रसाद का राष्ट्रीय जनता दल उत्तर प्रदेश चुनावों में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया है जो कभी एक दूसरे के विरोधी थे।
प्रश्न 11.
भारतीय राजनीति में ‘आयाराम – गयाराम’ की प्रवृत्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति में आयाराम – गयाराम की प्रवृत्ति – इस शब्द का सम्बन्ध मुख्य रूप से दल – बदल से है। सांसदों तथा विधायकों द्वारा तुरत – फुरत पार्टी छोड़कर दूसरी – तीसरी पार्टी में शामिल होने की घटना से राजनीतिक शब्दकोश में आयाराम – गयाराम’ का मुहावरा सम्मिलित हुआ। इस शब्द को लेकर बहुत से चुटकुले एवं कार्टून बने। गठबंधन सरकारों के कारण भारतीय राजनीति में आयाराम-गयाराम की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। आयाराम, गयाराम का मुहावरा भारतीय राजनीति में दल-बदल की अवधारणा का द्योतक है।
दल – बदल का अभिप्राय यह कि जब कोई जन प्रतिनधि किसी विशेष राज-तिक पार्टी का चुनाव चिह्न लेकर लड़े एवं वह चुनाव जीत जाए एवं अपने स्वार्थ के लिए या किसी अन्य कारण से अपने दल को छोड़कर किसी अन्य दल में सम्मिलित हो जाए तो इसे दल – बदल कहा जाता है। आयाराम – गयाराम सन् 1967 से संबंधित घटना थी। टिप्पणी सन् 1967 में कांग्रेस के हरियाणा के एक विधायक से सबंधित है जो सन् 1967 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर विधायक बना था। उसने एक पखवाड़े में तीन बार दल-दल-बदल कर दल बदलने का एक कीर्तिमान बनाया था।
प्रश्न 12.
गठबंधन सरकार में दबाव की राजनीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गठबंधन सरकार में दबाव की राजनीति:
गठबंधन सरकार में एक से अधिक राजनीतिक दल सम्मिलित होते हैं जो अलग-अलग विचारधारओं तथा क्षेत्रीय हितों वाले होते हैं। ये राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री पर निरन्तर दबाव डालते रहते हैं। इससे सरकार की स्थिति कमजोर हो जाती है। वह उचित समय पर उपयुक्त निर्णय नहीं ले पाती है। ऐसे में कई बार राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर क्षेत्रीय हित हावी होते जाते हैं।
विकास अवरुद्ध हो जाता है। उदाहरण के लिए डा. मनमोहन सिंह की पिछली यूपीए सरकार में तृणमूल कांग्रेस सम्मिलित थी। सरकार में अपने दल के कोटे से नियुक्त रेलमंत्री को बदलने एवं रेल का बढ़ा हुआ किराया वापस लेने पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की मोहन उरकार को मजबूर कर दिया गया। इस प्रकार राजनेताओं द्वारा अपने निहित स्वार्थ के लिए देशहित को ठुकरा देना कहीं से भं। न्यायोचित नहीं है।
प्रश्न 13.
भारत में गठबंधन सरकारों के बनने के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में गठबंधन सरकारों के बनने के कारण:
भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहाँ विभिन्न वर्गों, धर्मों, संस्कृतियों तथा जातियों के लोग निवास करते हैं। इनके वर्गीय हितों के आधार पर सैकड़ों की संख्या में राजनीतिक दलों का निर्माण हुआ। सत्ता प्राप्ति हेतु एक गठबंधन में 20 से 24 राजनीतिक दल सम्मिलित हो रहे हैं।
जब किसी भी दल को लोकसभा अथवा राज्यों की विधानसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो सरकार का निर्माण नहीं हो पाता है। चूंकि बिना बहुमत के संसदीय शासन का निर्माण एवं संचालन संम्भव नहीं होता है। अतः बहुमत प्राप्त करने के लिए गठबंधन बनाने का दलों के मध्य प्रचलन चल पड़ा। फलस्वरूप गठबंधन सरकारों का निर्माण हुआ? 16 वीं लोकसभा में बहुमत प्राप्त होने के बावजूद भी अकेले भारतीय जनता पार्टी की सरकार न बनाकर गठबंधन की सरकार बनायी गयी।
प्रश्न 14.
‘गठबंधन की राजनीति में शासन निरंकुश नहीं बन पाता है।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह बात सत्य है कि गठबंधन की राजनीति में शासन निरंकुश नहीं बन पाता है, जहाँ एक ओर एक दल की। सरकार में मन्त्री-परिषद में प्रधानमन्त्री का वर्चस्व रहता है। वह अपने फैसलों को आसानी से बहुमत के आधार पर पारित करा लेता है? वहीं गठबंधन सरकार में ऐसा सम्भव नहीं होता । मंत्रिपरिषद को न्यूनतम साझाा कार्यक्रम के आधार पर गठबंधन में सभी दलों की नीतियों तथा सिद्धान्तों को ध्यान में रखना पड़ता है। इस प्रकार शासन निरंकुश नहीं हो पाता है।
प्रश्न 15.
गठबंधन की राजनीति में अधिक योग्य के योगदान का देश को किस प्रकार लाभ मिलता है?
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति में अधिक योग्य लोगों के योगदान का देश को लाभ मिलता है। जहाँ एक दल की। सरकार में उसी दल के लोगों में से मन्त्रिपरिषद का गठन करना पड़ता है। चाहे वे देश चलाने लायक उतने योग्य हों नहीं। इसमें दूसरे दल के लोगों का कोई योगदान नहीं होता। वहीं गठबंधन सरकार की स्थिति में गठबंधन में सम्मिलित सभी दलों के वरिष्ठ एवं योग्य लोगों को मन्त्रिपरिषद में लिया जाता है। गठबंधन में विभिन्न दलों के होने के कारण योग्य मन्त्रियों का आसानी से चयन हो जाता है। मन्त्रिपरिषद के गठन का दायरा बढ़ जाने से अधिक योग्य लोगों की मंत्रिपरिषद का निर्माण होता है। अतः इन सभी दलों के वरिष्ठ एवं योग्य लोगों की योगयता का लाभ देश को मिलता है।
प्रश्न 16.
गठबंधन की राजनीति में सशक्त विपक्ष का निर्माण होता है। कथन के औचित्य को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति से यह एक प्रमुख लाभ मिलता है कि इससे सशक्त विपक्ष का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए जब कई दलों की मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए) की केन्द्र में सरकार थी तो राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) ने एक प्रभावशाली विपक्ष की भूमिका निभाकर सरकार का प्रतिरोध किया और उसकी मनमानी रोकी। इसी प्रकार वर्तमान में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार है और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन एक विपक्ष के रूप में अपनी भूमिका को निभाकर सरकार की मनमानी के फैसलों को रोक रहा है।
प्रश्न 17.
‘गठबंधन सरकार व्यापक जन समर्थन पर आधारित होती है।’ कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
गठबंधन सरकार व्यापक जन समर्थन पर आधारित होती है। क्योंकि इस प्रकार की सरकार में एक दल ही नहीं होता है बल्कि 15-20 दल सम्मिलित होते हैं। इन समस्त दलों को जनता के एक बड़े भाग का समर्थन प्राप्त होता है। सरकार में सम्मिलित मन्त्रियों को मिलने वाले जनमत के समर्थन का दायरा बड़ा होता है। गठबंधन में सम्मिलित दलों की। संख्या जितनी ज्यादा होती है उतना ही उसे जन समर्थन मिल जाता है।
सरकार की स्वीकार्यता बढ़ जाती है और वह जनता के हित में अच्छे फैसले लेती है। विदेशों में भी इसको महत्व प्रदान किया जाता है। वर्तमान में हमारे देश में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) की गठबंधन सरकार है। जो अच्छे फैसले ले रही है तथा इसे विदेशों में भी भरपूर सम्मान मिल रहा है।
प्रश्न 18.
गठबंधन की राजनीति की कोई दो हानि बताइए। अथवा भारत में गठबंधन राजनीति के कोई दो नकारात्मक पक्ष बताइए।
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति के नकारात्मक पक्ष: भारत में गठबंधन की राजनीति के दो नकारात्मक पक्ष निम्नलिखित हैं- ..
- अस्थायी सरकारों का निर्माण – सरकार में सम्मिलित दल अपने राजनीतिक लाभ-हानि को ध्यान में रख कर समर्थन वापस भी लेते रहते हैं। इससे सरकार का बहुमत खत्म हो जाता है। सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ता है। इस प्रकार सरकारों का स्थायित्व प्रभावित होता है। अस्थायी सरकारें स्थायी विकास के कार्य नहीं कर पाती हैं।
- राष्ट्रीय एकता को नुकसान- गठबंधन में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ जाने के कारण क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्रीय हितों को साधने पर अधिक बल देते हैं। प्रधानमंत्री का सरकार के स्थायित्व के लिए उनके दबाव में आने के लिए मजबूर होता है। उदाहरण के लिए ममता बनर्जी के विरोध के कारण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बंगला देश के साथ सम्बन्धों में दबाव में रहे। क्षेत्रीय हितों पर अधिक दवाब होने से राष्ट्रीय हितों को हानि होती है।
प्रश्न 19.
गठबंधन की राजनीति ने अस्थायी सरकारें प्रदान की हैं। कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति ने देश को अस्थायी सरकारें प्रदान की हैं। यह गठबंधन राजनीति का एक नकारात्मक पक्ष है। गठबंधन सरकार में कई दल सम्मिलित रहते हैं, जिनके अपने – अपने सिद्धान्त एवं विचार होते हैं जिसका आपस में मिलना एक जटिलता होती है। ये दल अपने – अपने गुप्त एजेण्डे पर कार्य करते हैं। ये सरकार से अपने राजनीतिक लाभ-हानि को ध्यान में रखकर समर्थन वापस लेते रहते हैं। इससे सरकार का संसद में बहुमत समाप्त हो जाता है।
फलस्वरूप सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ता है। इसके बाद या तो नई सरकार गठित होती है। अथवा देश एक ओर नए चुनाव की और चला जाता है। बार-बार चुनाव होना देशहित में नहीं हैं। अस्थायी सरकारें स्थायी विकास के कार्य नहीं कर पाती हैं। उदाहरण के रूप में मई 1996 में गठित अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन सरकार मात्र 13 दिन चल पाई। इसी प्रकार देवगौड़ा व गुजराल सरकार भी गठबंधन की आपसी खीचतान से शीघ्र गिर गई। उनसे कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था।
प्रश्न 20.
मिलीजुली सरकारों में सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धान्त कमजोर पड़ जाता है। कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धान्त ‘एक सबके लिए एवं सब एक के लिए की नीति पर आधारित है अर्थात् जब प्रधानमंत्री के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद के सदस्यों में विभिन्न विभागों तथा मंत्रालयों का बँटवारा कर दिया जाता है तो वे सभी व्यक्तिगत रूप से संसद में अपने-अपने विभागों से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर देते हैं। मंत्रिपरिषद, सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
यदि लोकसभा किसी मंत्री के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे या किसी मंत्री द्वारा रखे गये विधेयक को अस्वीकार कर दे तो समस्त मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। यही सामूहिक उत्तरदायित्व का अर्थ है। यह सिद्धान्त गठबंधन सरकार में कमजोर पड़ जाता है क्योंकि अलग अलग दलों के मंत्रियों में विचारधारागत भिन्नताएँ होती है। अलग-अलग विचारधारा के लोगों को एक सूत्र में पिरोकर कार्य करना बहुत कठिन है। कई गठबंधन सरकार के मंत्रियों के मतभेद खुल कर सामने आ जाते हैं एवं यह टकराव कार्य बार शीर्ष नेतृत्व की कर्थक्षमता व शैली पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
प्रश्न 21.
मिली – जुली सरकारों में प्रधानमंत्री की स्थिति बताइए।
उत्तर:
मिली-जुली सरकारों में प्रधानमंत्री की स्थिति – मिली – जुली सरकार में प्रधानमंत्री की स्थिति अच्छी नहीं रहती। ऐसी सरकार में प्रधानमंत्री का अपने मंत्रीपरिषद में शामिल अपने व अन्य दलों के सदस्यों पर प्रभावशाली नियन्त्रण नहीं होता है। गठबंधन में सम्मिलित मंत्री अपने दल के नेतृत्व के निर्देशों का पालन करते हैं। कमजोर प्रधानमंत्री प्रभावशाली भूमिका नहीं निभा पाता तथा अनिर्णय की स्थिति में रहता है। गठबंधन में सम्मिलित राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हितों को पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री पर निरन्तर दबाव डालते हैं।
हमारे देश में 1989 व 1990 में अल्पमत सरकारों के प्रधानमंत्री कमजोर स्थिति में थे, 1998, 1999 तथा 2004 में मिली-जुली सरकारों (गठबंधन सरकार) का गठन हुआ। इन सरकारों ने प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा को कभी कम एवं कभी भारी आघात पहुँचाया है। इस प्रकार मिली-जुली सरकार या बाहरी समर्थन पर निर्भर अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे। प्रधानमंत्री की स्थिति कमजोर होती है।
प्रश्न 22.
गठबंधन सरकारों से राष्ट्रीय एकता को किस प्रकार नुकसान पहुँचता है? बताइए।
उत्तर:
गठबंधन सरकारों से राष्ट्रीय एकता को नुकसान-गठबंधन सरकार में कई दल सम्मिलित होते हैं। ये दल आपसी विचार विमर्श द्वारा साझा कार्यक्रम तय कर लेते हैं क्योंकि अलग – अलग दलों के सिद्धान्त एवं विचार अलग – अलग होते हैं? ये गठबंधन सत्ता प्राप्ति के लिए सिद्धान्तों को ताक पर रखकर बनाये जाते हैं। गठबंधन में राष्ट्रीय दलों की तुलना में क्षेत्रीय दलों की संख्या अधिक होती है। इस कारण गठबंधन में क्षेत्रीय दलों को प्रभाव बढ़ जाने के कारण प्रधानमंत्री में
उनके दबाव में आने के लिए मजबूर होता है। उदाहरण के लिए पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए) की सरकार में तृणमूल कांग्रेस, यह पश्चिमी बंगाल का एक क्षेत्रीय दल है, इसी पार्टी की ममता बनर्जी के विरोध के कारण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बंगला देश के साथ सम्बन्धों में दबाव में रहे। क्षेत्रीय हितों का अधिक दबाव होने से राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचती है।
प्रश्न 23.
गठबंधन सरकार होने की स्थिति में सदृढ़ विदेश नीति का अभाव रहता है। कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
देश में गठबंधन सरकार होने की स्थिति में सृदृढ़ विदेशनीति का अभाव-देश में गठबंधन सरकार होने की स्थिति में सुदृढ़ विदेश नीति का अभाव रहता है। गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री सुदृढ़ विदेश नीति बनाने तथा संचालन करने में समर्थ नहीं हो पाता क्योंकि वह अपने सहयोगी दलों के दबाव में होता है और स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पाता है। इस प्रकार विदेश नीति के मामले में देश की स्थिति कमजोर होती है।
विदेशों से किये जाने वाली संधि अथवा समझौते के समय सहयोगी दलों की सलाह लेनी पड़ती है। विदेशों के सामने हमारी स्थिति कमजोर पड़ती है। वहीं एक दल का प्रधानमंत्री अथवा सरकार स्वतंत्र तथा सुदृढ़ नीति अपनाने में सफल होता है। देश की विदेशों में प्रतिष्ठा बढ़ती है। अत: विदेश नीति की दृष्टि से देखा जाए तो गठबंधन सरकारों में मतभेद की स्थिति रहती है। फलस्वरूप सुदृढ़ विदेश नीति का निर्माण नहीं हो पाता है।
प्रश्न 24.
गठबंधन की राजनीति से छोटे – छोटे राजनीतिक दलों के निर्माण को क्यों प्रोत्साहन मिलता है? बताइए।
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति से छोटे-छोटे दलों के निर्माण को प्रोत्साहन गठबंधन की राजनीति में छोटे – छोटे राजनीतिक दलों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है। गठबंधन में शामिल सभी दलों को सरकार में मंत्री पद मिलता है लेकिन इन पदों पर बड़े एक दो नेता ही कब्जा कर लेते हैं जो दल के सर्वेसर्वा होते हैं। इसलिए कई नेता अपने दल का सर्वेसर्वा अर्थात अध्यक्ष बनने के लिए नए दल का गठन कर लेते हैं और सरकार में शामिल होने का प्रयत्न करते हैं। ये भी सरकार में मंत्री पद, संसदीय दल का नेता अथवा अन्य कोई छोटा-मोटा पद प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को प्रोत्साहन मिलता है। देश में अधिक राजनीतिक दलों का निर्माण स्थायी सरकारों के निर्माण एक बाधा का कार्य करता है।
एश्न 25.
मिली – जुली सरकार में सरकार के विभिन्न मंत्रालय के मध्य ताल – मेल का अभाव क्यों रहता है? बताइए।
उत्तर:
मिली – जुली सरकार में विभिन्न मंत्रालायों के मध्य ताल – मेल का अभाव रहता है क्योंकि इस सरकार में विभिन्न दलों के नेता होते हैं, जिनके अलग-अलग राजनीतिक सिद्धान्त होते हैं। वे अपने दल के कार्यक्रमों से प्रभावित रहते हैं। जब ऐसे नेता सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में मन्त्री पद सम्भालते हैं तो वे सरकार के कार्यक्रमों को लागू करने पर इतना ध्यान नहीं देते जितना की अपने दल के कार्यक्रमों पर। विभिन्न दलों के मंत्रियों में आपसी सहयोग उतना नहीं होता जितना एक राजनीतिक दल के मंत्रियों में रहता है। अलग – अलग राजनीतिक दल अपने अपने गुप्त एजेन्डे पर कार्य करते हैं तथा अपना हित साधन करते हैं। शासन के इन मंत्रालयों का आपसी असहयोग कई बार शासन में प्रतिरोध पैदा करता है। शासन के सुचारु संचालन के लिए विभिन्न विभागों में आपसी सहयोग बहुत आवश्यक है।
प्रश्न 26.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पर सक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
उत्तर:
राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन – इसे एन.डी.ए के नाम से जाना जाता है। इस गठबंधन का मुख्य दल भारतीय जनता पार्टी है। इसके साथ गठबंधन में सम्मिलित अन्य दल हैं- शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी, तेलगु देशम, सहितं 13 दल शामिल हैं। वर्तमान में इस गठबंधन की लोकसभा में 336 सीटे हैं। अकेली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की 282 सीटे हैं। वर्तमान में इस गठबंधन की केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन – इसे यू.पी.ए के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रमुख रूप से कांग्रेस पार्टी है तथा इसके साथ अन्य राजनीतिक दल हैं राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, केरल, कांग्रेस आदि। वर्तमान में इस गठबंधन की लोकसभा में 59 सीटे हैं इसमें से कांग्रेस के पास 44 सीटे हैं। वर्तमान में यह गठबंधन एक विपक्षी दल के रूप में अपनी भूमिका निभा रहा है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 27 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गठबंधन की राजनीति क्या है? भारत में गठबंधन की राजनीति का उदय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
गठबंधन की राजनीति- लोकसभा अथवा राज्यों में विधानसभा के चुनावों में कई बार किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है जबकि सरकार चलाने के लिए बहुमत की आवश्यकता होती है। अतः कुछ दल मिलकर अपना एक गंठबंधन बना लेते हैं तथा आपसी विचार-विमर्श द्वारा साझा कार्यक्रम तय कर लेते हैं क्योंकि अलग-अलग दलों के सिद्धान्त तथा विचार अलग-अलग होते हैं। गठबंधन में शामिल दल सबकी विचारधारा में स्वीकार्य ऐसे कार्यक्रम तय कर लेते हैं जिस पर गठबंधन में शामिल दलों का विरोध न हो। विरोध में भी कुछ दल मिल कर एक गठबंधन का निर्माण कर लेते हैं।
इस प्रकार का गठबंधन चुनाव पूर्व भी हो सकता है। इस प्रकार ऐसी राजनीति जिसमें चुनाव के पूर्व या पश्चात् आवश्यकतानुसार दलों में सरकार के गठन या किसी अन्य मामले (जैसे राष्ट्रपति चुनाव) में आपसी सहमति बन जाए एवं वे सामान्यत एक स्वीकृत न्यूनतम साझे कार्यक्रम के अनुसार राष्ट्र में राजनीति चलाएँ तो इसे गठबंधन की राजनीति कहा जाता है।
भारत में गठबंधन की राजनीति का उदय – स्वतन्त्रता के पश्चात् 1952 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी बहुमत प्राप्त हुआ। दूसरा आम चुनाव 1957 में तथा तीसरा चुनाव सन् 1962 में हुआ इन चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपनी पूर्व स्थिति बरकरार रखी व उसे तीन चौथाई सीटें प्राप्त हुई।
राज्यों में भी कांग्रेस को बहुमत मिलता रहा है लेकिन चौथे आम चुनाव में कांग्रेस को केन्द्र में सरकार बनाने में कठिनाई आई। कांग्रेस को कई राज्यों में बहुमत से भी हाथ धोना पड़ा। राजस्थान, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश की विधान सभाओं में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। वह केवल बड़ा दल बन कर रह गई।
केरल, उड़ीसा तथा तमिलनाडु में उसे बहुत कम सीटें मिलीं । चतुर्थ आम चुनावों के इन परिणामों ने गठबंधन की राजनीति की शुरूआत की। कई राज्यों में एक से अधिक राजनीतिक दलों ने मिल कर सरकार बनायी कुछ राज्यों में एक दूसरे के बिलकुल विरोधी विचारधारा वाले राजनीतिक दलों ने मिल कर सरकार बनायी।
1977 में गठित जनता पार्टी भी एक तरह का गठबंधन-सा ही था। इसके पश्चात् 11 वीं से 15वीं लोकसभा तक किसी भी दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। कोई भी दल अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना पाया, उसे अन्य दलों से गठबंधन करना पड़ा। इस प्रकार अस्थायी सरकारों का दौर शुरू हुआ। मई 1996 में गठित अटल बिहारी वाजपेयी की अल्पमत सरकार मात्र 13 दिन चल पाई।
इसके पश्चात् कांग्रेस के समर्थन से संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी, जिसको अपना प्रधानमंत्री बदलना पड़ा। एच. डी. देवगौड़ा के स्थान पर इन्द्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। 12वीं लोकसभा में स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। धीरेधीरे भारतीय राजनीति में दो महत्वपूर्ण गठबंधन उभर कर आये।
एक भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) तथा कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए)। 16र्वी लोकसभा के लिए चुनाव भी मूल रूप से दो गठबंधनों यथा, भाजपा नेतृत्व वाले एन.डी.ए तथा कांग्रेस नेतृत्व वाले यू.पी.ए गठबंधन के मध्य हुए जिसमें भाजना के नेतृत्व वाले गठबंधन ने विजय प्राप्त कर अपनी सरकार बनाई।
प्रश्न 2.
भारत में गठबंधन अथवा मिली-जुली सरकारों के इतिहास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में गठबंधन अथवा मिली-जुली सरकारों का इतिहास – भारत में गठबंधन या मिली-जुली सरकारों के इतिहास का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है।
(i) सन् 1977 के लोकसभा चुनावों में प्रथम बार कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। जनता पार्टी के नेतृत्व में 5 दलों के गठबंधन ने लोकसभा में बहुमत प्राप्त किया और मोरारजी देसाई को अपना नेता चुना। मोरारजी देसाई ने गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली लेकिन आपसी मतभेद के कारण यह सरकार शीघ्र ही गिर गई।
(ii) इसके पश्चात् चौधरी चरणसिंह ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनायी लेकिन कुछ ही समय बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया। सरकार लोकसभा का सामना भी नहीं कर सकी एवं नये चुनाव कराने पड़े।
(iii) सन् 1980 में इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई तत्पश्चात् इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी देश के प्रधानमंत्री बने। इनकी कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। 1980 से 1989 के बीच का काल कांग्रेस पार्टी के बहुमत का काल था।
(iv) 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इन चुनावों में भाजपा को आशा से अधिक सफलता प्राप्त हुई एवं इसने कांग्रेस का विकल्प बनने की इच्छा शक्ति दिखाई। कांग्रेस से बाहर हुए वी.पी. सिंह ने जनता दल का गठन किया और सन् 1989 में लोक सभा का चुनाव लड़ा। उन्हें पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ लेकिन भाजपा
ने उन्हें बाहर से समर्थन देकर संयुक्त मोर्चा की सरकार गठित की। भाजपा के समर्थन वापस लेने पर अक्टूबर 1990 में यह सरकार गिर गयी।
(v) वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाला जनता दल बिखर गया और इससे टूटकर जनता दल (एस) नामक पार्टी बनी। इस पार्टी के नेता चन्द्रशेखर ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई लेकिन कुछ महीने बाद कांग्रेस से मतभेद होने के कारण चन्द्रशेखर सरकार को 6 मार्च 1991 को त्यागपत्र देना पड़ा।
(vi) 10 वीं लोकसभा में 1991 वे 1996 तक नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस की अल्पमत सरकार बाहरी समर्थन से चलती रही।
(vii) 11वीं लोकसभा के चुनाव के बाद आयी त्रिशंकु लोकसभा के कारण अप्रैल-मई 1996 के बाद फिर गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ। सन् 1996 के लोकसभा के चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस नाते भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण प्राप्त हुआ, किन्तु अधिकांश संसद सदस्य भाजपा की कुछ नीतियों के विरुद्ध थे।
इसी कारण भाजपा की सरकार लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी। भाजपा के साथ शिव सेना, अकाली दल तथा हरियाणा विकास पार्टी गठबंधन की सरकार बनी। बहुमत साबित न कर पाने के कारण 13 दिन बाद ही प्रधानमंत्री को त्याग-पत्र देना पड़ा।
(viii) अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के बतन के पश्चात् कांग्रेस के बाहरी समर्थन से एच.डी. देवगौड़ा की सरकार बनी किन्तु कुछ ही महीनों बाद कांग्रेस ने समर्थन के लिए प्रधानमंत्री (नेता) बदलने की शर्त रख दी। इसलिए 10 माह में ही एच.डी. देवगौड़ा सत्ता से बाहर हो गये एवं इन्द्र कुमार गुजराल को नेता चुन कर प्रधानमंत्री बनाया गया।
जहाँ देवगौड़ा सरकार में 13 राजनीतिक दल भागीदार थे तो गुजराल सरकार में 15 राजनीतिक दल सम्मिलित थे। इन दलों के मध्य विभिन्न राजनैतिक विषयों व समस्याओं पर वैचारिक समानता का पूर्ण रूप से अभाव था। फलस्वरूप केन्द्र सरकार को निरन्तर दबाव में काम करना पड़ रहा था।
(ix) 12वीं लोकसभा के चुनाव में भी किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया। सबसे बड़े दल के आधार पर भारतीय जनत,पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद के लिए आमंत्रित किया गया। 18 दलों को मिलाकर सरकार का गठन किया गया। यहाँ प्रभावशाली प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य कर रही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) सरकार अप्रैल 1999 में मात्र एक मत से गिरा दी गई।
(x) 13वीं लोकसभा के चुनाव के पश्चात् अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी। इस सरकार में 20 से अधिक दल सम्मिलित थे। इस सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।
(xi) 14वीं लोकसभा में चुनावों के पश्चात् वामपंथियों के बाहरी समर्थन से 20 दलों की डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। यह भी एक गठबंधन सरकार थी। 15 वीं लोकसभा के चुनाव के बाद पुनः यू.पी.ए. गठबंधन की सरकार बनी एवं मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
(xii) 16र्वी लोकसभा के चुनाव सन् 2014 में सम्पन्न हुए। यह चुनाव भी मूलतः दो गठबंधनों भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए) के मध्य हुए। इस चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की विजय हुई और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। 1884 के पश्चात् पहली बार किसी एक दल को जनता ने स्पष्ट बहुमत प्रदान किया है।
प्रश्न 3.
भारतीय गठबंधन की राजनीति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय गठबंधन की राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ- भारतीय गठबंधन की राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है:
(1) एक दल की प्रधानता – भारतीय राजनीति में जो गठबंधन निर्मित हुए हैं उनमें एक दल की ही प्रधानता रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी कर रही है तो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए) का नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पास है। सहयोगी दल बहुत अधिक प्रभावी भूमिका निभाने में असमर्थ हैं।
(2) विचारधारागत समानता को अभाव – राजनीतिक लाभ के लिए विरोधी विचारधारा के राजनीतिक दल गठबंधन में सम्मिलित हो जाते हैं। चुनावों में एक दूसरे की कार्य पद्धति की आलोचना करने वाले दल निहित लाभ के लिए एक गठबंधन में शामिल हो जाते हैं। उदाहरण के लिए बिहार में जय प्रकाश नारायण को आदर्श मानने वाली समता पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन बना कर चुनाव लड़ती है जबकि जय प्रकाश नारायण के विचार कांग्रेस की नीतियों से कहीं मेल नहीं खाते हैं। वस्तुतः गठबंधनों का आधार विचारधारा न होकर केवल सत्ता प्राप्त करना अथवा किसी को सत्ता के आने से रोकना है।
(3) स्थायित्व का अभाव – गठबंधन में स्थायित्व का अभाव देखने को मिलता है। कई बार राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए एक गठबंधन को छोड़कर दूसरे गठबंधन से जुड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल के चुनावों को देखकर तृणमूल कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) छोड़ दिया। वहीं कभी समता पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा थी। लेकिन उसने बिहार विधानसभा चुनावों में इसका साथ छोड़कर कांग्रेस से गठबंधन कर लिया था।
(4) गठबंधन -राजनीतिक सिद्धान्त व विचारधारा की अपेक्षा नेताओं के आधार पर- भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीति सिद्धान्त तथा विचारधारा के अपेक्षी नेताओं के आधार पर होता है। उदाहरण के लिए समाजवादी विचार रा होने के बावजूद समता पार्टी का गठबंधन राष्ट्रीय जनता दल से होने के बजाय भारतीय जनता पार्टी से था। जब श्री नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने अपना नेता घोषित किया तो समता पार्टी ने उससे गठबंधन तोड़ लिया।
(5) गठबंधनों में स्पष्ट विचारधारागत अलगाव को अभाव – भारतीय राजनीति में इस समय दो ही गठबंधन महत्वपूर्ण तथा प्रभावशाली हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए) जो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में चलता है। दोनों गठबंधनों में विचारधारागत एवं सैद्धान्तिक अन्तर खोजना कठिन है। तीसरा मोर्चा जो मूलतः वामपंथी प्रभाव का धड़ा है। कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी को पूँजीवादी मानता है, लेकिन इसने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यू.पी.ए सरकार को बाहर से समर्थन दिया था।
(6) दबाव की राजनीति – गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हितों को पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री पर निरन्तर दबाव डालते रहते हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) में सम्मिलित तृणमूल कांग्रेस पार्टी की नेता ममता बनर्जी ने अपने दल के कोटे से केन्द्रीय मंत्री-परिषद में शामिल रेल मंत्री को बदलने एवं रेल का बढ़ा हुआ किराया वापस लेने के लिए पिछली मनमोहन सिंह सरकार को मजबूर कर दिया था। इस दबाव की राजनीति से कई बार राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर क्षेत्रीय हित हावी हो जाते हैं।
(7) निषेधात्मक आधार पर गठित राजनीतिक गठबंधन – स्वतन्त्रता के पश्चात् से ही एक लमबे समय तक कांग्रेस केन्द्र व राज्यों में सरकार में रही है। भारतीय राजनीति में पहले कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए गठबंधन किया जाता था। 1977 की जनता पार्टी का गठन भी कांग्रेस के विरुद्ध किया गया था। वर्तमान में जनता दले, समाजवादी पार्टी, बसपा तथा समता पार्टी अपना एक ही घोषित एजेन्डा बताती हैं। भाजपा को सत्ता से बाहर रखना। किसी दल के कार्यक्रम या नेतृत्व या विचारधारा का मात्र विरोध के लिए विरोध लोकसभा के स्वास्थ्य के लिए अच्छा लक्षण नहीं कहा जा सकता।
(8) दल-बदल की प्रकृति – गठबंधन सरकारों के कारण भारतीय राजनीति में दल-बदल की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। दल-बदल सरकारों के बनने व बिगड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे शासन के स्थायित्व को निरन्तर खतरा बना रहता है।
प्रश्न 4.
मिलीजुली सरकारों या संयुक्त सरकारों के विभिन्न प्रतिमानों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मिलीजुली सरकारों का कोई एक नही वरन् विभिन्न प्रतिमान हैं। मिलीजुली सरकारों के प्रमुख प्रतिमानों का उल्लेख निम्न प्रकार है
1. निषेधात्मक आधार पर गठित अनेक राजनीतिक दलों का गठबंधन – यह अनेक राजनीतिक दलों का ऐसा गठबंधन होता है, जिसमें भागीदार दल किसी अन्य राजनीतिक दल को अपना समान और शक्तिशाली शत्रु मानते हैं तथा उस शक्तिशाली शत्रु को सत्ता से दूर रखने के लिए गठबंधन की राजनीति को अपनाते हैं। इस प्रतिमान में सामान्यतया मिलीजुली सरकार के भागीदार दलों के बीच समान राजनीतिक विचारधारा का तत्व नही होता।
2. लगभग समान शक्तिशाली दो परस्पर विरोधी गठबंधन-ये गठबंधन सामान्यतया चुनाव के पूर्व ही बन जाते हैं। और राज्य की राजनीति इन दो गठबंधनों में बँट जाती है। केरल की राजनीति इसका उदाहरण है। केरल की राजनीति के दो गठबंधन है प्रथम संयुक्त लोकतांत्रिक गठबंधन, जिसका नेतृत्व कांग्रेस के द्वारा किया जाता है और द्वितीय संयुक्त वाम मोर्चा गठबंधन जिसका नेतृत्व सामान्यतया मार्क्सवादी दल के द्वारा किया जाता है। इस स्थिति में सामान्यतया जनता ही निर्णय दे एक्सीलैण्ट राजनीति विज्ञान कक्षा-12525 देती है कि किस गठबंधन को सत्ता प्राप्त होगी। कुछ अर्थों में दो गठबंधनों की यह स्थिति द्विदलीय व्यवस्था के समान कार्य करती है।
3. राष्ट्रीय सरकार – गठबंधन का चौथा प्रतिमान ‘राष्ट्रीय सरकार के रूप में होता है। इस राष्ट्रीय सरकार का गठन सामान्यतया राष्ट्रीय संकट का सामना करने के लिए किया जाता है तथा राष्ट्रीय सरकार में देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दल शामिल होते हैं। द्वितीय महायुद्ध के समय ब्रिटेन में राष्ट्रीय सरकार का गठन हुआ था। भारत में राष्ट्रीय सरकार के गठन की बात कुछ परिस्थितियों में (1979, 1996 तथा 1997 में) विभिन्न स्तरों पर चली, लेकिन अब तक कभी राष्ट्रीय सरकार का गठन नही हुआ है।
12, 13, 14 तथा 15 र्वी लोकसभा चुनावों के बाद भारत में केन्द्रीय स्तर पर मिलीजुली सरकार का जो गठन हुआ, वह कुछ बातों से मिलीजुली सरकार के इन सभी प्रतिमानों से अलग हटकर रहा है। 16 वीं लोकसभा चुनावों (2014) में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को भारी सफलता मिली। इससे उसे गठबंधन के साझीदारों की मनमानी व दबाव को नही झेलना पड़ा।
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