Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 धर्मवैधता
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
“धर्म मनुष्य में पहले से व्याप्त देवत्व व आध्यात्मिकता का विस्तार मात्र हैं”– यह कथन किसका है?
(अ) कन्फ्यूशियस
(ब) स्वामी विवेकानन्द
(स) प्लेटो
(द) महात्मा गाँधी
प्रश्न 2.
मैथिलीशरण गुप्त किस हृदय को पत्थर मानते हैं?
(अ) धर्म विहीन हृदय
(ब) स्वदेश का प्यारविहीन हृदय
(स) शल्य क्रिया वाला हृदय
(द) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 3.
मनुस्मृति में कौन-सा लक्षण धर्म के विरुद्ध माना गया है?
(अ) क्षमा
(ब) धैर्य
(स) संचय करना
(द) क्रोध नहीं करना
प्रश्न 4.
धर्म निरपेक्ष राज्य से तात्पर्य है
(अ) धर्मविहीन राज्य
(ब) राज्य एक धर्म को मान्यता दें
(स) राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हों
(द) धार्मिक राज्य।
प्रश्न 5.
इस्लाम धर्म के संस्थापक हैं
(अ) पैगम्बर मोहम्मद
(ब) अबू बकर
(स) हसन व हुसैन
(द) मोहम्मद बिन कासिम।
उत्तर:
1. (ब), 2. (ब), 3. (स), 4. (स), 5. (अ)
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आध्यात्मिकता को धर्म का अभिकेन्द्र किस विद्वान ने माना है?
उत्तर:
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने आध्यात्मिकता को धर्म का अभिकेन्द्र माना है।
प्रश्न 2.
धर्म शब्द का अंग्रेजी अनुवाद लिखें।
उत्तर:
अंग्रेजी में धर्म का समानान्तर शब्द Religion (रिलीजन) है जिसका अर्थ है – आस्था, विश्वास अथवा अपनी मान्यता।
प्रश्न 3.
इस्लाम धर्म की स्थापना किस वर्ष मानी जाती है?
उत्तर:
इस्लाम धर्म की स्थापना 622 ई. में मोहम्मद पैगम्बर द्वारा की गयी थी।
प्रश्न 4.
ईसाई धर्म के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर:
ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह थे।
प्रश्न 5.
गौतम बुद्ध ने किस धर्म का प्रादुर्भाव किया?
उत्तर:
गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव किया।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
धर्म क्या है? बताइये।
उत्तर:
धर्म से अभिप्राय:
भारतीय संस्कृति और दर्शन में धर्म एक महत्वपूर्ण अवधारणा रही है। भारत में धर्म से तात्पर्य – कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण और सद्गुण से लगाया जाता है। धर्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘धृ’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है, धारण करना। इस प्रकार शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से धर्म को उस सिद्धांत अथवा तत्व के रूप में समझा जा सकता है जो किसी उद्देश्य को धारण करता है।
अंग्रेजी में धर्म का समानान्तर शब्द Religion (रिलीजन) है जिसका अर्थ है – आस्था, विश्वास अथवा अपनी मान्यता धर्म एक ऐसी एकीकृत प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो अपनी प्रथाओं और विश्वासों से एक समुदाय विशेष को नैतिकता से जोड़ता है। धर्म की अनेक परिभाषाएँ दी गयी हैं और इसके लक्षणों का उल्लेख किया गया है। मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं
‘धृतिः क्षमा दमाऽस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः।
घीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।
अर्थात् – धैर्य, क्षमाशीलता, आत्मसंयम, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रियों को वश में रखना, बुद्धिमत्ता, विद्याध्ययन करना, सत्य बोलना, क्रोध न करना आदि धर्म के दस लक्षण हैं।
प्रश्न 2.
धर्म निरपेक्षता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा-धर्म निरपेक्षता से अभिप्राय है किसी भी धर्म को मानने वाले के साथ भेदभाव न करना और सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखना। भारत में धर्म निरपेक्षता को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है और यह सर्वत्र स्वीकार्य है। धर्म निरपेक्षता भारतीय संस्कृति की मौलिक अस्मिता है। यहाँ अनेक मत-मतान्तरों के बावजूद सभी लोग एकत्व भाव में निवास करते हैं।
प्रश्न 3.
धर्म और नैतिकता में सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
धर्म और नैतिकता में सम्बन्ध-धर्म का मूल लक्ष्य मानव मात्र की सेवा करना है। धर्म अच्छे आचरण, करुणा, शील और अहिंसा पर बल देता है। धर्म बुराइयों से दूर रहने तथा भलाई व सदाचार के मार्ग पर चलने की शिक्षा देती है। धर्म का मूल स्वरूप आध्यात्मिक व आडम्बर रहित है। धर्म का कार्य भलाई करना है। धर्म एक नैतिक विचारधारा भी है। मानव मात्र की सेवा नैतिकता है और उक्त गुण नैतिकता के प्रमुख गुण हैं।
वस्तुतः वही धर्म श्रेष्ठ होता है जो नैतिकता के मापदण्डों पर खरा उतरता है और मानव मात्र के कल्याण के लिए प्रयासरत रहता है। सत्य और नैतिकता को देश व काले की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता है। नैतिकता सत्य, सभी धर्मों में सद्भाव, करुणा व दया का सन्देश देती है। वस्तुतः नैतिकता के नियमों का पालन करना ही धर्म का प्रतीक है।
प्रश्न 4.
ईसाई धर्म में धार्मिक अवधारणा क्या है?
उत्तर:
ईसाई धर्म की धार्मिक अवधारणा – इसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह थे। ईसाई धर्म एकेश्वरवादी है। विश्व की जनसंख्या की दृष्टि से यह सर्वाधिक अनुयायियों वाला धर्म है। यह सिद्धान्त अहिंसा का समर्थक है किन्तु इस धर्म में भी हिंसा का धार्मिक व राजनीतिक कारणों से कई बार प्रयोग हुआ है। पश्चिमी ईसाई राजनीतिक विचारधारा में धर्म और राजनीति की समानान्तर सत्ता को स्वीकार किया गया है। ईसाई धर्म में ईश्वर, कैसर, चर्च, राज्य, पादरी और समाज की समानान्तर स्थिति को मान्यता प्राप्त है।
प्रश्न 5.
इस्लाम धर्म के सर्वाधिक प्रसार वाले पाँच देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
इस्लाम दुनिया के नवीनतम धर्मों में से एक है। भौगोलिक दृष्टि से विश्व के केन्द्रीय भू-भाग पर इस्लाम का आधिपत्य है। इस्लाम धर्म के सर्वाधिक प्रसार वाले प्रमुख पाँच देश हैं
- इण्डोनेशिया
- भारत
- ईरान
- इराक
- सऊदी अरब
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
धर्म और राजनीति के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
धर्म और राजनीति में अन्तर्सम्बन्ध – प्राचीन समय से धर्म और राजनीति अन्तर्सम्बन्धित रहे हैं। राजनीति का मूल तत्व है–नीति के अनुसार राज करना। नीति वह है जो नैतिक मूल्यों और श्रेष्ठ धार्मिक मान्यताओं द्वारा पोषित हो। डॉ. राम मनोहर लोहिया के अनुसार, ‘धर्म और राजनीति के दायरे अलग-अलग हैं परन्तु दोनों की जड़े एक हैं। धर्म दीर्घकालीन राजनीति है जबकि राजनीति अल्पकालीन धर्म है। धर्म का काम भलाई करना और उसकी स्तुति करना है जबकि राजनीति का कार्य बुराई से लड़ना और बुराई की निन्दा करना है।
जब राजनीति एवं धर्म का नकारात्मक सम्बन्ध होता है तो समस्यायें आती हैं। बरौंड रसेल व ई.एम. फोस्टर ने कहा है। कि धर्म के नाम पर राजनीति सदैव समाज में विद्वेष व संघर्ष पैदा करती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अनेक शासकों ने धर्म विशेष को अपना राजधर्म घोषित किया। धर्म की आड़ में साम्राज्यों का विस्तार किया गया और युद्ध हुए। विगत लगभग दो हजार वर्षों में धर्म के नाम पर अनेक बार रक्तरंजित संघर्ष हुआ। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में धार्मिक श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए धर्म की आड़ में आतंकी गतिविधियों की बाढ़ आ गई है। भारत का पड़ोसी देश इसका जीता – जागता उदाहरण है।
21वीं शताब्दी में समाज में ऐसे वर्गों का उद्भव हुआ जो धार्मिक कट्टरवाद से ग्रस्त हैं। निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए शासकीय वर्ग व धर्माधीशों ने राजनीति व धर्म का अपने – अपने तरीके से उपयोग किया है। जब धर्म में आडम्बर व स्वार्थ घुस जाता है तो मानव अपने पथ से भ्रष्ट हो जाता है और समाज के लिए अभिशाप बन जाता है। वस्तुतः धर्म और राजनीति का विवेकपूर्ण मिलन मानव कल्याण में साधक है जबकि इसकी विपरीत परिस्थिति में दोनों का उद्देश्य नष्ट हो जाता है। वस्तुतः धर्म और राजनीति दोनों अलग-अलग अपना कार्य करें तो इनको दुरुपयोग नहीं होगा। धर्म और राजनीति में मर्यादित सम्पर्क बना रहना चाहिए। नीतिगत धर्म और धर्मप्रद राजनीति का अनुगमन विश्व शान्ति की स्थापना के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 2.
राष्ट्रधर्म के सम्बन्ध में मैथिलीशरण गुप्त की कविता के सन्दर्भो में स्वराष्ट्र की अवधारणा की मीमांसा कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रधर्म के सम्बन्ध में मैथिलीशरण गुप्त की कविता के सन्दर्भ में स्वराष्ट्र की अवधारणा:
हमने जिस राष्ट्र की मिट्टी में जन्म लिया है, जिसकी मिट्टी में पले-बढ़े हैं, जिसके पर्यावरण में उन्मुक्त विचरण कर रहे हैं; उस राष्ट्र के प्रति समर्पित रहना, आवश्यकता पड़ने पर उसके लिए प्राणों की आहुति तक दे देना ही राष्ट्र धर्म है। किसी कवि ने लिखा है
तुम जिसका जल अन्न ग्रहण कर
बड़े हुए लेकर जिसकी रज।
तन रहते कैसे तज दोगे,
उसको हे वीरों के वंशज ।।
वस्तुतः हम किसी भी धर्म के अनुयायी हों अथवा किसी भी पंथ का अनुसरण करते हों जिस राष्ट्र में हम रहे हैं, वह राष्ट्र हमारे लिए सर्वोपरि अर्थात् सबसे पहले है। हम किसी भी मत, भाषा, मान्यता और धर्म के अनुयायी हो सकते हैं किन्तु राष्ट्रधर्म व्यक्ति के लिए सर्वोपरि है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।
वह हृदय नहीं, वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।
राष्ट्र धर्म व्यक्ति के लिए सर्वोपरि है। राष्ट्र की सुरक्षा, राष्ट्र की एकता और राष्ट्र की उन्नति में ही सबका हित समाहित है। हम भारतीय भारत राष्ट्र को भारत माता’ कहकर पुकारते हैं। अतएव प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि वह तन, मन और धन से भारत माता की रक्षा का संकल्प ले। राष्ट्र धर्म का परिचय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के निम्न वाक्य से स्पष्ट होता है
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’
वस्तुत: भारत माता की अपने सत्कर्मों से पूजा करना, उसकी वन्दना करना हमारा धर्म है। जिस प्रकार सीमा पर तैनात एक सैनिक अन्तिम साँस तक लड़ते – लड़ते मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देता है, उसी प्रकार हम प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि हम मानवता के पुजारी बनें और धर्म, सम्प्रदाय व भाषा के भेदभावों से मुक्त होकर राष्ट्र सेवा में अखण्ड विश्वास व आस्था के साथ लग जाएँ।
परोपकार व परमार्थ धर्म का व्यावहारिक पहलू है। धर्म की मान्यता है कि हम अपने धर्म, समुदाय, वर्ण और आश्रम के अनुसार कर्म करते हुए राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि मानकर परमार्थ में लग जाएँ। युद्ध की विभीषिका में अथवा आतंकवादी गतिविधियों के समय व्यक्तिगत धार्मिक भावना से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव के साथ नि:स्वार्थ सेवा में लग जाना हमारा सच्चा राष्ट्रधर्म है।
प्रश्न 3.
भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म की अवधारणा को एक समन्वयवादी दृष्टिकोण माना गया है। कैसे? धर्म के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बताइए।
उत्तर:
भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म की अवधारणा:
भारतीय संस्कृति और दर्शन में धर्म की अवधारणा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। धर्म के विषय में मनन और चिन्तन सर्वप्रथम पूर्वी संस्कृतियों में ही हुआ। यहाँ धर्म का सदैव व्यापक अर्थ लिया गया। भारत में इसे कर्त्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण और सद्गुण के अर्थ में मान्यता दी गयी। भारत में धर्म को पवित्र एवं अलौकिक माना गया। अंग्रेजी में धर्म का समानान्तर शब्द ‘Religion (रिलिजन)’ है जिसका अर्थ है – आस्था, विश्वास अथवा अपनी मान्यता । गीता में श्रीकृष्ण ने स्वविवेक के आधार पर सर्वश्रेष्ठ जानने और करने को धर्म अर्थात् स्वधर्म कहा है।
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार – “धर्म मनुष्य में पहले से व्याप्त देवत्व व आध्यात्मिकता का विस्तार मात्र है।” डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने आध्यात्मिकता को धर्म का अभिकेन्द्र मानते हुए लिखा है-*धर्म का सार इस बात में निहित है कि यह आत्मा के उन्नयन के लिए आध्यात्मिक पक्ष पर बल दे और जीवन को धर्म निरपेक्षता की ओर अग्रसर करे।” भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म का समन्वयवादी दृष्टिकोण- भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म को व्यापक रूप में स्वीकार किया गया है। धर्म में सर्वक और परमार्थ की भावना का समावेश रहा है। भारतीय धर्म शास्त्र में उल्लिखित है
“यतो अभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धी सः धर्म”
अर्थात् जिससे सबकी उन्नति व कल्याण हो वही धर्म है। यद्यपि धर्म की समय – समय पर विभिन्न मतावलम्बियों ने अलग – अलग व्याख्या की है किन्तु धर्म का वास्तविक स्वरूप भारतीय संस्कृति में ही देखने को मिलता है जहां धर्म का व्यापक अर्थ – कर्त्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण एवं सद्गुण से लिया गया है। धर्म जीवन जीने की एक कला है जो व्यक्ति में इंसानियत और मानवता के भाव को भरने में मदद करता है। धर्म का प्रारम्भिक कार्य बच्चों में अच्छे संस्कारों को भरना है।
सनातन धर्म विश्व का प्राचीन धर्म माना गया है। सनातन धर्म वेदों पर आधारित है जिसमें भिन्न – भिन्न उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय एवं दर्शन सन्निहित हैं। यद्यपि इसमें कई देवी-देवाताओं की पूजा की जाती है किन्तु वह मूलतः एकेश्वरवादी धर्म है जिसे सनातन हिन्दू धर्म कहा जाता है। बौद्ध धर्म, जैन धर्म व सिक्ख धर्म की उत्पत्ति हिन्दू धर्म से ही मानी जाती है सर्व धर्म समन्वय की भावना को व्यक्त करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है
श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम।
आत्मेन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत ।।
सभी धर्मों के बारे में सुनें और सुन करके उनके मूल तत्वों पर विचार कीजिए। सभी धर्मों के मूल में यही तथ्य निहित है कि जो अपने लिए प्रतिकूल है उस तरह का आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए। समन्वयवादी वृत्ति का ही परिणाम है कि भारतीय धर्म में सर्वकल्याण को ही जीवन का ध्येय माना गया है। मानव मात्र का कल्याण भारतीय सनातन धर्म की अनूठी विशेषता है। गीता में उल्लिखित है
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नापुनर्भवम्।
कामये दु:ख तप्तानां प्राणिनाम् आर्तिनाशनम्।।
अर्थात् न तो मैं राज्य की कामना करता हूँ, न स्वर्ग की और न ही मोक्ष की। बस यही कामना करता हूँ कि दुखी प्राणियों के कष्ट को दूर कर सकूँ।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
धर्म का सबसे पहले चिन्तन हुआ
(अ) पाश्चात्य संस्कृति में
(ब) पूर्वी संस्कृतियों में
(स) उक्त दोनों में
(द) दोनों में से कोई नहीं।
प्रश्न 2.
गीता में श्रीकृष्ण के अनुसार व्यक्ति को प्रकृति प्रदत्त उपहार मिला है(अ) बुद्धि
(ब) परमार्थ की भावना
(स) तार्किक शक्ति
(द) विवेक।
प्रश्न 3.
निम्न में से किस अवधारणा को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है?
(अ) नैतिकता
(ब) पवित्रता एवं अपवित्रता
(स) धर्म निरपेक्षता
(स) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 4.
नैतिक सत्य के तत्व माने गये हैं
(अ) प्रेम
(ब) करुणा
(ब) दया
(द) ये सभी।
प्रश्न 5.
जो दूसरों के लिए जीते, वे सच में जीते हैं, शेष तो जीते हुए भी मरे जैसे हैं’ यह कथन है
(अ) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् का
(ब) श्रीकृष्ण का
(स) स्वामी विवेकानन्द का
(द) राममनोहर लोहिया का।
प्रश्न 6.
अहिंसा और धर्म के आधार तत्व हैं
(अ) क्षमा
(ब) दया
(स) करुणा
(द) ये सभी।
प्रश्न 7.
सभी व्यक्तियों के लिए सर्वोपरि है
(अ) अर्थलाभ
(ब) विद्याध्ययन करना
(स) सत्य बोलना
(द) राष्ट्रधर्म का पालन।
प्रश्न 8.
विश्व का जो प्राचीनतम धर्म माना गया है, वह है
(अ) सिक्ख धर्म
(ब) इस्लाम धर्म
(स) ईसाई धर्म
(द) सनातन धर्म
प्रश्न 9.
याज्ञवल्क्य ने धर्म के कितने लक्षणों का उल्लेख किया है?
(अ) पाँच
(ब) सात
(स) नौ
(द) ग्यारह।
प्रश्न 10.
ईसाई धर्म के संस्थापक थे
(अ) मोहम्मद पैगम्बर
(ब) ईसा मसीह
(स) महात्मा गाँधी
(द) गौतम बुद्ध।।
उत्तर:
1. (ब), 2. (द), 3. (स), 4. (द), 5. (स), 6. (द), 7. (द), 8. (द), 9. (स), 10. (ब)।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 बहुंचयनात्मक प्रश्न
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आज के वैज्ञानिक व तर्कप्रधान भौतिकवादी युग में धर्म पर बात करने वाला व्यक्ति क्या माना जा सकता है?
उत्तर:
आज के वैज्ञानिक व तर्कप्रधान भौतिकवादी युग में धर्म पर बात करने वाला व्यक्ति पुनरुत्थानवादी, परम्परावादी व प्रतिक्रियावादी माना जा सकता है।
प्रश्न 2.
स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिकता और बाह्य औपचारिक धर्म में अंतर करते हुए क्या कहा है?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि, “धर्म मनुष्य में पहले से व्याप्त देवत्व व आध्यात्मिकता का विस्तार मात्र
प्रश्न 3.
प्राचीन प्रमुख धर्मगुरुओं एवं आध्यात्मवादी विचारकों के नाम बताइये।
उत्तर:
प्राचीन प्रमुख धर्मगुरुओं एवं आध्यात्मवादी विचारकों में प्रमुख हैं-कन्फूशियस, मोजेस, पाइथागोरेस, बुद्ध, महावीर स्वामी, मोहम्मद पैगम्बर, मार्टिन लूथर, केल्विन, गुरुनानक आदि।
प्रश्न 4.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने धर्म का अभिकेन्द्र किसे माना है।
उत्तर:
आध्यात्मिकता को।।
प्रश्न 5.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के अनुसार धर्म का सार क्या है?
उत्तर:
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के अनुसार धर्म का सार है
- आत्मा के उन्नयन के लिए आध्यात्मिक पक्ष पर बल देना तथा
- जीवन को धर्म निरपेक्षता की ओर अग्रसर करना।
प्रश्न 6.
भारत में धर्म का सम्बन्ध किन पाँच अर्थों से है?
उत्तर:
भारत में धर्म का सम्बन्ध – कर्त्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण और सगुण आदि पाँच अर्थों में माना गया है।
प्रश्न 7.
भारतीय धर्मग्रन्थों में व्यक्ति का उच्चस्थ विकास क्या माना गया है?
उत्तर:
भारतीय धर्मग्रन्थों में ‘स्व’ को जानना व्यक्ति का उच्चस्थ विकास माना गया है।
प्रश्न 8.
गीता में श्रीकृष्ण ने धर्म (स्वधर्म) किसे माना है?
उत्तर:
गीता में श्रीकृष्ण ने प्रकृतिप्रदत्त विवेक के आधार पर सर्वश्रेष्ठ के ज्ञान एवं तदनुसार आचरण करने को धर्म (स्वधर्म) कहा है।
प्रश्न 9.
धर्मानुसार आचरण क्या है?
उत्तर:
स्वस्थ सामाजिक संरचना के लिए समाज के सभी वर्गों व सभी व्यक्तियों के लिए निर्धारित कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक आचरण करना धर्मानुसार आचरण है।
प्रश्न 10.
धर्मानुसार आचरण कब सम्भव है?
उत्तर:
धर्मानुसार आचरण तभी सम्भव है जब व्यक्ति स्वार्थ, संकीर्णता, अभिमान और वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा का परित्याग कर दे।
प्रश्न 11.
भारतीय परिप्रेक्ष्य में धर्मनिरपेक्षता क्या है?
उत्तर:
भारतीय परिप्रेक्ष्य में धर्म निरपेक्षता का अर्थ है, किसी भी धर्म को मानने वाले के साथ भेदभाव न करना और सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखना।
प्रश्न 12.
आज भारतीय जीवनधारा प्रदूषित हो गयी है-क्यों?
उत्तर:
आज भारतीय जीवनधारा प्रदूषित हो गयी है क्योंकि हमने प्राचीन धार्मिक जीवन मूल्यों को त्यागकर साम्प्रदायिकता जैसी विघटनकारी प्रवृत्तियों को स्थान प्रदान कर दिया है।
प्रश्न 13.
धर्म का मूल लक्ष्य है?
उत्तर:
धर्म का मूल लक्ष्य मानव मात्र की सेवा करना है।
प्रश्न 14.
धर्म किन बातों पर बल देता है?
उत्तर:
धर्म अच्छे आचरण, करुणा, शील व अहिंसा पर बल देता है।
प्रश्न 15.
धर्म क्या शिक्षा देता है?
उत्तर:
धर्म बुराइयों से दूर रहने एवं भलाई व सदाचार के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है।
प्रश्न 16.
धर्म और राजनीति के विवेकपूर्ण मिलन के क्या परिणाम हैं?
उत्तर:
धर्म और राजनीति का विवेकपूर्ण मिलन मानवीय कल्याण में साधक होता है।
प्रश्न 17.
धर्म में क्या अन्तर्निहित माना गया है?
उत्तर:
धर्म में नैतिकता के साथ – साथ नैतिक दायित्व के भौतिक गुणों, प्रकृति तथा मानव के सम्बन्धों और मनुष्य व जानवरों के व्यवहार को भी अन्तर्निहित माना गया है।
प्रश्न 18.
वर्तमान समय में धार्मिक संघर्ष के मूल कारण क्या हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में विभिन्न धार्मिक मतों व पंथों ने अपनी व्यक्तिगत श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए आपसी विरोध, विद्वेष एवं अन्तर्कलह की स्थिति उत्पन्न कर दी है। यही धार्मिक संघर्ष का मूल कारण है।
प्रश्न 19.
धर्म की सत्यता की कसौटी क्या है?
उत्तर:
धर्म की सत्यता की कसौटी दो शर्तों पर है
- धर्म की सार्वभौमिक ग्राह्यता तथा
- सार्वजनिक प्रयोजनीयता।
प्रश्न 20.
सत्य व नैतिकता देश व काल की परिधि से बाहर है, क्यों?
उत्तर:
सत्य व नैतिकता देश व काल की परिधि से बाहर है क्योंकि नैतिक सत्य के मूल आदर्श सभी धर्मों में प्रेम का उल्लेख सब में करुणा व जीवमात्र पर दया आदि सार्वभौमिक बाते हैं। इन पर भौगोलिक सीमाओं एवं काल आदि का प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 21.
नैतिक सत्य क्या संदेश देता है?
उत्तर:
नैतिक सत्य, प्रेम, करुणा व दया का संदेश देता है।
प्रश्न 22.
विश्व में श्रेष्ठ राज्य की स्थापना किस प्रकार सम्भव है।
उत्तर:
समस्त धर्मों के समान मूल्यों से ही विश्व में श्रेष्ठ राज्य की स्थापना सम्भव है।
प्रश्न 23.
धर्म के प्रतीक बताइए।
उत्तर:
नैतिकता के नियमों का कारण ही धर्म का प्रतीक है।
प्रश्न 24.
बर्टेड रसेल एवं ई.एम.फोस्टर ने धर्म की आलोचना किस बात पर की है?
उत्तर:
बर्टेण्ड रसेल एवं ई.एम.फोस्टर जैसे विद्वानों ने धर्म की आलोचना इस बात के लिए की है कि धर्म के नाम पर राजनीति करने से विश्व में सदैव रक्तपात हुआ है जो आज भी जारी है।
प्रश्न 25.
राजनीति का मूल तत्व क्या है?
उत्तर:
राजनीति का मूल तत्व है नीति के अनुसार राज करना। नीति नैतिक मूल्यों और श्रेष्ठ धार्मिक मान्यताओं द्वारा पोषित होती है।
प्रश्न 26.
धर्म और राजनीति के परस्पर नकारात्मक प्रभाव का परिणाम बताइये।
उत्तर:
धर्म का राजनीति को और राजनीति का धर्म को नकारात्मक रूप से प्रभावित करना मानवता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे धार्मिक प्रतिक्रियावाद, कट्टरपन, साम्प्रदायिकता व गुलामी की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है जो स्वतन्त्रता और समानता जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को प्रभावित करती है।
प्रश्न 27.
अहिंसा और धर्म दोनों के आधार तत्व क्या हैं?
उत्तर:
अहिंसा और धर्म दोनों के आधार नत्व हैं-क्षमा, दया, करुणा, सत्य, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी।
प्रश्न 28.
धर्म विमुख अनैतिक व्यक्ति किसे माना गया है?
उत्तर:
जब व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख होकर पतित होता है तब वह धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करता है। ऐसा व्यक्ति अधार्मिक या धर्म विमुख अनैतिक व्यक्ति कहलाता है।
प्रश्न 29.
मानव के लिए कौन-सा धर्म सर्वोपरि है? उत्तर-राष्ट्रधर्म।। प्रश्न 30. ‘धर्म’ शब्द की उत्पत्ति को समझाइये।
उत्तर:
‘धर्म’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘धृ’ धातु से हुई है जो “धारणात” शब्द से बना है जिसका अर्थ है धारण करना।
प्रश्न 31.
विश्व का प्राचीनतम धर्म कौन-सा है?
उत्तर:
सनातन धर्म व वैदिक धर्म।
प्रश्न 32.
सनातन धर्म का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
सनातन धर्म वेदों पर आधारित है जिसमें अलग – अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय व दर्शन सम्मिलित हैं। यद्यपि इसमें आराध्य देवों की संख्या अधिक है किन्तु यह मूलतः एकेश्वरवादी धर्म है।
प्रश्न 33.
हिन्दू धर्म क्या है?
उत्तर:
हिन्दू धर्म जीवन जीने की पद्धति है।
प्रश्न 34.
‘हिन्दू’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्कृत में कहा गया है – हिंसायाम् दूयते या सा हिन्दू अर्थात् जो मन, वचन व कर्म से हिंसा को दूर रखे वही हिन्दू है।
प्रश्न 35.
हिन्दू धर्म से किन धर्मों की उत्पत्ति हुई है?
उत्तर:
बौद्ध धर्म, जैन धर्म व सिक्ख धर्म की उत्पत्ति हिन्दू धर्म से हुई है।
प्रश्न 36.
प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक याज्ञवल्क्य ने धर्म के कौन – कौन से लक्षण बताए हैं?
उत्तर:
- अहिंसा
- सत्य
- चोरी न करना
- स्वच्छता
- इन्द्रियों को वश में रखना
- दान
- संयम
- दया
- शांति।
प्रश्न 37.
मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण कौन-कौन से बताए गए हैं?
उत्तर:
- धैर्य
- क्षमा
- संयम
- चोरी न करना
- स्वच्छता
- इन्द्रियों को वश में रखना
- बुद्धि
- विद्या
- सत्य
- क्रोध न करना।
प्रश्न 38.
भारतीय संस्कृति की एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
मानव मात्र के कल्याण की भावना।
प्रश्न 39.
ईसाई धर्म के प्रमुख समुदायों के नाम बताइये।
उत्तर:
ईसाइयों में बहुत से समुदाय हैं जिनमें कैथोलिक, प्रोटेस्टेण्ट, आर्थोडोक्स, मॉरोनी, एवन जीलक आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न 40.
ईसाई धर्म के सिद्धांत मूलतः किस बात पर बल देते हैं?
उत्तर:
अहिंसा पर।
प्रश्न 41.
इस्लाम धर्म का प्रादुर्भाव कब व किसने किया?
उत्तर:
522 ई. पू. में मोहम्मद पैगम्बर ने।
प्रश्न 42.
विश्व में मुस्लिम आबादी की स्थिति क्या है?
उत्तर:
भौगोलिक दृष्टि से विश्व के केन्द्रीय भूभाग पर इस्लाम का आधिपत्य है। विश्व की कुल आबादी का लगभग पाँचवाँ भाग मुस्लिम आबादी का है।
प्रश्न 43.
इस्लाम के पाँच महानगरीय केन्द्रों के नाम बताइये।
उत्तर:
इस्लाम के पाँच महानगरीय केन्द्र बगदाद, काहिरा, कोरडोबा, दमिश्क और समरकन्द हैं।
प्रश्न 44.
इस्लाम में स्वतन्त्रता और अधिकार की क्या स्थिति है?
उत्तर:
इस्लाम में स्वतन्त्रता और अधिकार पर सत्ता और कर्तव्य हावी हैं।
प्रश्न 45.
भारतीय संस्कृति में सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों का मूलाधार क्या रहा है?
उत्तर:
धर्म।
प्रश्न 46.
धर्म किस प्रकार अपने उद्देश्य में सफल रहा है?
उत्तर:
धर्म मानव को चिंतन, व्यवहार और कर्म के परिप्रेक्ष्य में उचित एवं अनुचित में भेद कराने में सफल रहा है।
प्रश्न 47.
वर्तमान युग में ईश्वर और मनुष्य का स्थान किसने ले लिया है?
उत्तर:
वर्तमान युग में ईश्वर का स्थान पैसे ने और मनुष्य का स्थान मशीन ने ले लिया है।
प्रश्न 48.
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में हमारे देश की नींव किस पर आधारित है?
उत्तर:
धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में हमारे देश की नींव धार्मिक सहिष्णुता, धार्मिक सद्भाव एवं नैतिकता पर आधारित
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
धार्मिक पवित्रता सापेक्षवादी है – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामान्यतया हम धर्म को विश्वासों और प्रथाओं की एक जैसी प्रणाली के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। जिसके माध्यम से लोगों का समूह यह व्याख्या करता है कि उसके लिए क्या पवित्र और अलौकिक है। निस्सन्देह धर्म सभी जगह पवित्र माना जाता है किन्तु धार्मिक पवित्रता का मानदण्ड अलग – अलग व्यक्ति व समुदाय के लिए अलग – अलग है।
किसी एक वस्तु को कोई धर्म पवित्र मानता है, किन्तु वही चीज दूसरे धर्म के लिए अपवित्र हो सकती है। वस्तुतः मनुष्य ही निर्धारित करते हैं कि उनके लिए क्या पवित्र है और क्या नहीं। उल्लेखनीय है कि पवित्रता और अपवित्रता की अवधारणा समुदाय विशेष की प्रथाओं और विश्वासों पर निर्भर करती है।
प्रश्न 2.
आज भारतीय जीवन धारा प्रदूषित हो रही है, कैसे?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता समाज की वह स्थिति है जिसमें विभिन्न धार्मिक समूह अन्य समूहों पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास करते हैं। वर्तमान समय में भारतीय जीवन में जिस साम्प्रदायिकता की बात हो रही है, वह विघटनकारी है। वस्तुतः साम्प्रदायिकता का स्वरूप सदैव एक जैसा नहीं होता। यदि किसी एक प्रकार की साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाता है तो स्वाभाविक रूप से दूसरे प्रकार की साम्प्रदायिकता उत्पन्न हो जाती है। जो राष्ट्र निर्माण के मार्ग में बाधक होती है। आज स्थिति यह हो गयी है कि हमने धार्मिक कारणों से अपने प्राचीन जीवन मूल्यों का त्याग करके विघटनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि आज भारतीय जीवन धारा प्रदूषित हो रही है।
प्रश्न 3.
सभी धर्मों की मौलिक विशेषताएँ क्या हैं? बताइए।
उत्तर:
सभी धर्मों की मौलिक भावना एक जैसी है जिसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
- धर्म का मूल लक्ष्य मानव मात्र की सेवा करना है।
- धर्म अच्छे आचरण, करुणा, शील व अहिंसा पर बल देता है।
- धर्म बुराइयों से दूर रहने तथा भलाई व सदाचार के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है।
- धर्म का मूल स्वरूप आध्यात्मिक व आडम्बरहित है।
- धर्म का कार्य भलाई करना और उसकी स्तुति करना है।
प्रश्न 4.
किसी धर्म की उपयोगिता कैसे प्रमाणित होगी? बताइए।
उत्तर:
किसी धर्म की उपयोगिता तब प्रमाणित होती है जब वह अन्य समान धर्मों से एकरूपता स्थापित करता है। जो धर्म दूसरे धर्मों की निन्दा, भर्त्सना व तिरस्कार करता हो व उसके धार्मिक विश्वासों एवं रीति – रिवाजों को घृणा की दृष्टि से देखता हो ऐसा धर्म कभी – भी सत्यपरक और सार्वभौमिक नहीं हो सकता। धार्मिक मान्यताओं और विश्वासों की कोई प्रयोगशाला नहीं है। वस्तुतः धर्म की श्रेष्ठता इसी में है कि वह आचरण की शुद्धता करुणा, सत्य व अहिंसा पर बल देता हो, बुराइयों से दूर रहने व भलाई तथा सदाचार के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता हो एवं नैतिकता की कसौटी पर खरा हो तथा मानव मात्र के कल्याण की कामना करता हो।
प्रश्न 5.
धर्म और राजनीति के सम्बन्ध पर राममनोहर लोहिया के विचारों को बताइये।
उत्तर:
राममनोहर लोहिया समाजवादी विचारक थे। 1934 ई. में आचार्य नरेन्द्र देव द्वारा स्थापित सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख नेता एवं इसके मुख्य पत्र ‘कांग्रेस सोशलिस्ट’ के संपादक थे। इन्होंने गोवा की आजादी के लिए भी संघर्ष किया। धर्म और राजनीति के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में राममनोहर लोहिया ने लिखा है कि-“धर्म और राजनीति के दायरे अलग – अलग हैं किन्तु दोनों की जड़े एक हैं। धर्म दीर्घकालीन राजनीति है जबकि राजनीति अल्पकालीन धर्म है। धर्म का काम भलाई करना और उसकी स्तुति करना है जबकि राजनीति का काम बुराई से लड़ना और उसकी निन्दा करना है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब राजनीति बुराई से लड़ने के स्थान पर केवल निन्दा करती है, तब वह कलहपूर्ण हो जाती है।”
प्रश्न 6.
धर्मों के ज्ञान व मूल्यों को कैसे उपयोगी बनाया जा सकता है?
उत्तर:
सभी धर्मों के सामान्य विश्वास व मूल्य यद्यपि एक जैसे हैं किन्तु वे एक साथ आने को तैयार नहीं हैं। विभिन्न धर्मों के ज्ञान व मूल्य विज्ञान से भी ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं। जिस प्रकार एक वैज्ञानिक सत्य अधिक प्रामाणिक तब माना जाता है जब वह अन्य देशों में हुए शोधों से प्रमाणिक हो। जिस प्रकार विज्ञान के क्षेत्रों में कोई विदेशी या बाहरी नहीं होता,
उसी प्रकार धर्म के क्षेत्र में भी कोई साम्प्रदायिकता नहीं होनी चाहिए। सभी धर्मों के मूल तत्वों को एक साथ इकट्ठा कर उसे जनकल्याण के लिए उपयोग में लाना चाहिए। यदि ऐसा हो तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि धर्म की स्थिति व प्रतिष्ठा एवं उसकी उपयोगिता विज्ञान के समान तथा लोकतन्त्र की आकांक्षाओं के अनुरूप हो सकती है।
प्रश्न 7.
धर्म का दुरुपयोग किस प्रकार हो रहा है? बताइये।
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अनेक शासकों ने धर्म विशेष को अपना राजधर्म घोषित किया और अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए धर्म के नाम पर युद्ध किये। धर्म का सहारा लेकर साम्राज्य विस्तार हेतु अनेक युद्ध हुए। इस्लाम, ईसाई, यहूदी और हिन्दू धर्म से पृथक् हुए कुछ वर्गों ने शक्ति के बल पर अपनी मान्यता और अपने धर्म का विस्तार किया। पिछले लगभग दो हजार वर्षों में धर्म के नाम पर अनेक बार भयंकर रक्तपात हुआ है। वर्तमान समय में धार्मिक श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए धर्म की आड़ में आतंकी गतिविधियाँ बढ़ गयी हैं। आतंकवादियों ने दूसरे धर्मानुयायियों को शिकार बनाना प्रारम्भ कर दिया है। भारत इस प्रकार की गतिविधियों का सबसे बड़ा भुक्तभोगी है।
प्रश्न 8.
धर्म की ईसाई परिकल्पना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ईसाई धर्म एकेश्वरवादी है। इसकी उत्पत्ति आज से 2016 वर्ष पूर्व ईसा मसीह ने की थी। ईसाईयों में बहुत से समुदाय हैं, जैसे-कैथोलिक, प्रोटेस्टेण्ट, आर्थोडोक्स, मॉरोनी आदि। यह धर्म विश्व जनसंख्या की दृष्टि से सर्वाधिक अनुयायियों वाला धर्म है। इसके सिद्धान्त दया, करुणा, सेवा, सच्चरित्रता, सहनशीलता एवं अहिंसा की पवित्र भावना पर आधारित हैं। ईसाई धर्म के अनुसार ईश्वर एक है तथा उसकी दृष्टि में सभी जीव समान हैं। ईसा मसीह ने मनुष्य की सच्चरित्रता पर बल दिया। ईसाई धर्म का पवित्र ग्रन्थ बाईबिल है। इस ग्रन्थ में ईसा मसीह के उपदेश समाहित हैं। पश्चिमी ईसाई राजनीतिक विचारधारा में धर्म और राजनीति दोनों की समानान्तर सत्ता को स्वीकार किया गया है।
प्रश्न 9.
धर्म व राजनीति की व्याख्या इस्लाम धर्म के परिप्रेक्ष्य में कीजिए।
उत्तर:
इस्लाम धर्म में, धर्म की राजनीति में और राजनीति की धर्म में झलक स्पष्ट दिखाई देती है। इस्लाम में स्वतन्त्रता और अधिकार पर सत्ता और कर्तव्य प्रभावी है। सभी इस्लामिक राज्यों में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता राज्य की सत्ता और शक्ति द्वारा मर्यादित है। इस्लामिक राजनीतिक चिन्तन का सम्बन्ध न केवल शासन के मामलों, राजनीति और राज्य से सम्बन्धित है बल्कि यह व्यक्ति के स्वीकार्य व्यवहार व शासक तथा शासित दोनों की ईश्वर के प्रति नैतिकता और निष्ठा पर भी बल देता है। इस्लाम धर्म को इस्लामी परम्परा की पृष्ठभूमि में भी समझा जा सकता है। इस्लाम ईश्वर और पैगम्बर की आज्ञाकारिता को पवित्र मानता है। इस्लाम स्वभाव से गतिशील धर्म है। भौगोलिक व राजनीतिक रूप से इस्लाम का निरन्तर विकास होता आया है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
इस्लाम धर्म की विकास प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस्लाम विश्व के नवीन धर्मों में से एक है। इस्लाम धर्म का प्रादुर्भाव 622 ई. में मोहम्मद पैगम्बर ने किया। वर्तमान समय में इस्लाम के अनुयायियों की संख्या लगभग 1.5 अरब है। विश्व की कुल जनसंख्या का पाँचवाँ भाग मुस्लिम आबादी है। भौगोलिक दृष्टि से विश्व के केन्द्रीय भूभाग पर इस्लाम का अधिकार है। इस्लाम पूर्व से पश्चिम तक एक जाल के रूप में फैला हुआ है। मोरक्को से मिंडानाओ तक फैले हुए इस्लाम में उत्तर के उपभोक्ता देशों से लेकर दक्षिण के वंचित देश शामिल हैं। अश्वेत अफ्रीका, भारत और चीन तक इस्लाम का बोलबाला है। इस्लाम किसी एक राष्ट्रीय संस्कृति व राष्ट्रीय सीमा की परिधि में बँधा हुआ धर्म नहीं है।
यह एक सार्वभौमिक शक्ति के रूप में सम्पूर्ण विश्व में फैला हुआ है। अपनी उत्पत्ति के समय से लेकर अब तक इस्लाम के अनुयायियों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। इस्लाम की उत्पत्ति सातवीं शताब्दी में एक छोटे से समुदाय के रूप में मक्का व मदीना में हुई। इसकी नींव मोहम्मद पैगम्बर ने अपने दो अनुयायियों के साथ रखी थी। उत्पत्ति के कुछ समय बाद ही इस्लाम के बैनर तले अरब जातियाँ एक जुट हो गईं। अपनी उत्पत्ति की पहली दो शताब्दियों के भीतर ही इस्लाम का प्रभाव विश्व में फैल गया। इस्लाम ने अपने निरन्तर विजय अभियान के माध्यम से सम्पूर्ण मध्य, पूर्व व उत्तरी अफ्रीका, अरेबियन प्रायद्वीप, ईरानी भूभाग, मध्य एशिया और सिन्धुघाटी के क्षेत्र को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लिया।
इस्लाम को मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताएँ विरासत में मिल गयीं। इस्लाम ने यूनान के दर्शन और विज्ञान को स्वीकार कर अपनी सुविधा अनुसार उसमें परिवर्तन करते हुए उसका इस्लामीकरण कर दिया। फारसे की शासन कला की बारीकियों को सीखते हुए उसने यहूदियों के कानून की तार्किकता और ईसाई धर्म के तरीकों को भी अपना लिया। पारसी द्वैतवाद और मेनेशिया की युक्तियों को इस्लाम ने अपने में मिला लिया। इस्लाम के महान महानगरीय केन्द्र बगदाद, काहिरा, कोरडोबा, दमिश्क और समरकन्द ऐसी भट्टियों में बदल गये जिसमें इन सांस्कृतिक परम्पराओं की ऊर्जा को नये धर्म और राजनीति में रूपान्तरित कर लिया गया।
इन शहरों के अलावा नव स्थापित प्रान्तीय राजधानियों-बसरी, कुफा, हैलाब, कुरावान, फेज, रेय (तेहरान) निशापुर और साना में अरब आदिवासी परम्परा की विरासत उत्पन्न हुई नवीन सांस्कृतिक प्रवृत्तियों में विलीन हो गई। इस्लाम धर्म, धर्म के आध्यात्मिक, लौकिक, अलौकिक, व्यावहारिक, धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में अंतर नहीं करता। इस्लाम धर्म और राजनीति को एक-दूसरे से सम्बन्धित मानता है। इस्लाम में स्वतंत्रता व अधिकार पर सत्ता और कर्तव्य प्रभावी दिखाई देते हैं। इस्लाम धर्म को मानने वाले समस्त देशों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता राज्य की सत्ता और शक्ति द्वारा मर्यादित है।
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