Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 उदारवाद
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सकारात्मक उदारवाद इनमें से किसमें आस्था नहीं रखता है?
(अ) सीमित राज्य
(ब) नैतिक माध्यम के रूप में राज्य
(स) क्रल्याणकारी राज्य
(द) सूक्ष्म राज्य
प्रश्न 2.
‘उदारवाद’ शब्द का सबसे पहले प्रयोग कब और कहाँ हुआ था?
(अ) 1815 में इंग्लैण्ड में
(ब) 1776 में संयुक्त राज्य अमेरिका में
(स) 1917 में सोवियत संघ में
(द) 1885 में जर्मनी में
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन – सा वक्तव्य गलत है?
(अ) ‘उदार’ पद स्वाधीन व्यक्तियों के उस वर्ग को सन्दर्भित करता है जो न तो कृषिदास है और न ही दास है।
(ब) ‘उदारवाद’ शब्द का प्रथम प्रयोग 1812 में स्पेन में हुआ।
(स) शास्त्रीय उदारवाद और आधुनिक उदारवाद में विभिन्नताएँ हैं।
(द) बाजार-विरोधियों की नैतिक कमियाँ बाजार-समर्थकों की भी नैतिक कमियाँ हैं।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सी उदारवाद की देन है?
(अ) पूँजीवाद
(ब) साम्यवाद
(स) गाँधीवाद
(द) संविधानवाद
प्रश्न 5.
समकालीन समाज में शक्तिशाली विचारधारा नहीं है
(अ) समाजवाद
(ब) साम्यवाद
(स) राजतंत्रवाद
(द) उदारवाद
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन – सा विचारक उदारवाद का समर्थक नहीं है?
(अ) कार्ल मार्क्स
(ब) जॉन लॉक
(स) जेरेमी बेंथम
(द) स्पेन्सर
प्रश्न 7.
परम्परागत उदारवाद एक राजनीतिक सिद्धान्त था जिसने
(अ) पूँजीवाद का समर्थन किया।
(ब) समाज में सामाजिक असमानता को समाप्त करने की बात की।
(स) निरंकुश राजतन्त्रों का समर्थन किया।
(द) सर्वहारा वर्ग की तानाशाही का समर्थन किया।
प्रश्न 8.
उदारवाद का जनक किस विचारक को माना जाता है?
(अ) जॉन लॉक
(ब) रिकार्डो
(स) एडम स्मिथ
(द) हॉब्स लॉक
उत्तर:
1. (ब), 2. (अ), 3. (ब), 4. (ब), 5. (स), 6. (अ), 7. (अ), 8. (अ)
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उदारवाद की आर्थिक क्षेत्र में प्रमुख माँग क्या थी?
उत्तर:
उदारवाद आर्थिक क्षेत्र में ‘सम्पत्ति के अधिकार’ तथा ‘मुक्त व्यापार’ का समर्थन करता है। यह बाजार व्यवस्था’ के स्थान पर मिश्रित व नियन्त्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है।
प्रश्न 2.
उदारवाद की राजनीतिक क्षेत्र में प्रमुख माँग क्या थी?
उत्तर:
उदारवाद राजनीतिक क्षेत्र में कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल देता है। साथ ही सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, निष्पक्ष चुनाव व व्यापक राजनीतिक सहभागिता पर भी बल देता है।
प्रश्न 3.
उदारवाद की सामाजिक क्षेत्र में प्रमुख माँग क्या थी?
उत्तर:
उदारवाद सामाजिक क्षेत्र में एकता की बात करता है। व्यक्ति के कार्यों में शासन हस्तक्षेप न करे इस बात पर भी जोर दिया गया। उदारवाद समाज को एक कृत्रिम संस्था मानता है जिसका उद्देश्य व्यक्ति के हितों की पूर्ति है।
प्रश्न 4.
उदारवाद की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
उत्तर:
उदारवाद अँग्रेजी के ‘लेबरेलिज्म’ (Liberalism) शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘लिबर’ (Liber) शब्द से हुई है जिसका अर्थ है ‘स्वतन्त्र’। उदारवाद का उदय यूरोप में पुनर्जागरण व धर्म सुधार आन्दोलन से जुड़ा है।
प्रश्न 5.
उदारवाद के प्रमुख विचारक कौन-कौन हैं?
उत्तर:
जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। अन्य विचारकों में प्रमुख हैं-एडम स्मिथ, जेरेमी बेंथम, जॉन स्टुअर्ट मिल, हरबर्ट स्पेन्सर।।
प्रश्न 6.
नकारात्मक उदारवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
17वीं व 18वीं शताब्दी में परम्परागत उदारवाद अस्तित्व में आया जो कि नकारात्मक चरित्र का था। इसमें स्वतन्त्रता को बंधनों का अभाव माना गया। उसी राज्य को सर्वोत्तम माना गया जो न्यूनतम हस्तक्षेप करे।
प्रश्न 7.
सकारात्मक उदारवाद क्या है?
उत्तर:
सकारात्मक उदारवाद लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थन करता है। इसमें निजी संपत्ति पर अंकुश लगाने व पूँजीपतियों पर कर की वकालत की जाती है।
प्रश्न 8.
परम्परागत उदारवाद का अर्थ बताइए।
उत्तर:
परम्परागत उदारवाद धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानता है। यह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल देता है तथा सीमित राज्य के अस्तित्व को स्वीकार करता है। यह निजी सम्पत्ति का समर्थन करता है।
प्रश्न 9.
आधुनिक उदारवाद के प्रवर्तक कौन – कौन हैं?
उत्तर:
आधुनिक उदारवाद के प्रवर्तक हैं – जॉन स्टुअर्ट मिल, लास्की, मैकाइवर आदि।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उदारवादी विचारधारा के राजनीतिक उद्देश्यों को बताइए। उत्तर-उदारवादी विचारधारा के प्रमुख राजनीतिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- उदारवाद लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का प्रबल समर्थक है।
- व्यक्ति को साध्य स्वीकार करते हुए इस विचारधारा ने राज्य के कार्यों को सीमित माना। प्रारम्भ में नकारात्मक उदारवाद द्वारा राज्य को एक अनावश्यक संस्था माना जाता था किन्तु सकारात्मक उदारवाद के द्वारा राज्य को एक सकारात्मक अच्छाई समझा जाने लगा। कालान्तर में व्यक्ति की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने के लिए राज्य के कार्यों को सीमित करने पर बल दिया गया।
- उदारवाद व्यक्ति को साध्य तथा राज्य को साधन मानता है।
- संविधानवाद, विधि का शासन, विकेन्द्रीकरण, स्वतन्त्र चुनाव व न्याय व्यवस्था, लोकतान्त्रिक प्रणाली, अधिकारों व स्वतन्त्रता की सुरक्षा उदारवाद के अन्य राजनीतिक लक्ष्य हैं।
प्रश्न 2.
परम्परागत उदारवाद के पाँच गुण बताइए।
उत्तर:
17वीं व 18वीं शताब्दी के उदारवाद को परम्परागत या शास्त्रीय अथवा उदात्त उदारवाद भी कहा जाता है। परम्परागत उदारवाद के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
- यह व्यक्तिवाद पर अत्यधिक बल देता है। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने के लिए ही सीमित राज्य के अस्तित्व को स्वीकार करता है।
- मनुष्य को मध्य युग की धार्मिक व साँस्कृतिक जंजीरों से मुक्त करने की बात करता है।
- मानव व्यक्तित्व के महत्त्व को स्वीकार करते हुए व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास करता है।
- व्यक्ति की स्वतन्त्र इच्छा में विश्वास करता है।
- मानव की विवेकशीलता और अच्छाई पर विश्वास करते हुए मानव की स्वतन्त्रता व अधिकारों का समर्थन करता है।
प्रश्न 3.
उदारवाद मार्क्सवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है। समझाइए।
उत्तर:
उदारवाद के सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इसका स्वरूप एवं कार्यक्षेत्र विकास के प्रथम चरण से लेकर वर्तमान तक बदलता रहा है। कभी यह पूँजीपतियों के पक्ष में प्रत्यक्ष रूप से सामने आता था, तो बाद में यह दबी जुबान में पूँजीपतियों के हित की बात भी करता। बाद में मार्क्सवादे के डर से पूँजीपतियों को बचाने के लिए यह गरीबों के हितों की बात करने लगा। उदारवाद लोककल्याण की अवधारणा का प्रबल समर्थक बन गया। 1990 के दशक में जब सोवियत संघ की साम्यवादी व्यवस्था ध्वस्त होने के बाद वह पुनः अपने परम्परागत स्वरूप की तरफ बढ़ चला है।
पुनर्जागरण तथा धर्म सुधार आन्दोलनों ने इसे जन्म दिया, औद्योगीकरण ने इसे आधार प्रदान किया। बढ़ते पूँजीवाद ने इसे स्वतंत्रता के निकट ला खड़ा किया, व्यक्ति के प्रति इस विचारधारा की आस्था ने राज्य को सीमित रूप दिया। सामान्यतया उदारवाद एक विचारधारा से अधिक हैं। यह सोचने का एक तरीका है, संसार को देखने की एक दृष्टि है तथा राजनीति को उदारवाद की ओर बनाए रखने का एक प्रयास है। ऐसी स्थिति में हम कह सकते हैं कि उदारवाद मार्क्सवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है।
प्रश्न 4.
आधुनिक उदारवाद परम्परागत उदारवाद से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
आधुनिक उदारवाद निम्नलिखित आधारों पर परम्परागत उदारवाद से भिन्न है
- परम्परागत उदारवाद निजी संपत्ति का समर्थन करता है जबकि आधुनिक उदारवाद निजी संपत्ति पर अंकुश लगाने का पक्षधर है।
- परम्परागत उदारवाद पूँजीवाद का पर्याय बन जाता है जबकि आधुनिक उदारवाद पूँजीपतियों पर कर की वकालत करता है तथा समानता की बात करता है।
- परम्परागत उदारवाद का स्वरूप नकारात्मक है जबकि आधुनिक उदारवाद की प्रकृति सकारात्मक है।
- परम्परागत उदारवाद का कार्य राजाओं की शक्तियों को सीमित करना था जबकि आधुनिक उदारवाद का कार्य व्यवस्थापिकाओं की शक्तियों को सीमित करना होगा।
- परम्परागत उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई के रूप में स्वीकार करता है जबकि आधुनिक उदारवाद राज्य को सामाजिक हित की पूर्ति का सकारात्मक साधन मानते हुए कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल देता है।
- परम्परागत उदारवाद बाजार व्यवस्था का समर्थक है जबकि आधुनिक उदारवाद बाजार अर्थव्यवस्था के स्थान पर मिश्रित व नियन्त्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है।
प्रश्न 5.
उदारवाद ने लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को स्थापित करने में किस प्रकार सहायता की?
उत्तर:
उदारवाद की विचारधारा का स्वरूप निरन्तर परिवर्तित होता रहा है। प्रारम्भ में इसका स्वरूप नकारात्मक था तथा यह पूँजीवाद के पक्ष में था किन्तु बाद में लोककल्याण की अवधारणा का प्रबल समर्थक बन गया। परम्परागत उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई मानता था किन्तु आधुनिक उदारवाद ने इसे सकारात्मक अच्छाई के रूप में तथा लोक कल्याण के साधन के रूप में स्वीकार किया।
उदारवाद व्यक्ति को साध्य तथा राज्य को साधन मानता है। उदारवाद की मान्यता है कि राज्य की उत्पत्ति व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए समझौते द्वारा हुई है। समझौते का उल्लंघन करने पर व्यक्ति को उसके विरुद्ध विद्रोह का अधिकार है। उदारवाद व्यक्ति को सम्पूर्ण क्षेत्रों में स्वतन्त्रता व समान अवसर प्रदान करने पर बल देता है।
प्रश्न 6.
उदारवाद की आलोचना के मुख्य बिन्दु क्या-क्या हैं?
उत्तर:
उदारवाद की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है-
- उदारवाद बुर्जुआ वर्ग का दर्शन है।
- यह पूँजीवाद को बनाये रखने पर बल देता है।
- यह निर्धनों की क्रान्तिकारी आवाज को दबाता है।
- निर्धनों को दबाने के लिए राज्य को अधिक शक्तिशाली बनाता है।
- उदारवाद का सामाजिक न्याय एक ढकोसला – मात्र है।
- यह स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक सामाजिक परिस्थितियों का बनाया जाना राज्य पर छोड़ देता है। ३
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परम्परागत व आधुनिक उदारवाद की समीक्षात्मक तुलना कीजिए।
उत्तर:
लॉक, बेंथम व एडम स्मिथ की रचनाओं में उदारवाद का वर्णन मिलता है। तत्कालीन दशा में तब इसका रूप नकारात्मक था और इसे व्यक्तिवाद व शास्त्रीय उदारवाद के रूप में जाना जाता था। 19वीं शताब्दी में जॉन स्टुअर्ट मिल ने इसे सकारात्मक रूप प्रदान किया। उदारवाद के परम्परागत व आधुनिक रूपों में निम्नलिखित आधारों पर अन्तर है
- राज्य के सम्बन्ध में – परम्परागत उदारवाद के अन्तर्गत राज्य को एक आवश्यक बुराई माना जाता था हालांकि इसका अस्तित्व अनिवार्य भी था किन्तु वैयक्तिक स्वतन्त्रता की दृष्टि से इसे एक बुराई के रूप में देखा जाता था। उदारवाद के आधुनिक स्वरूप में राज्य को एक सकारात्मक अच्छाई समझा जाने लगा।
- व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में – परम्परागत उदारवाद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल देता है तथा मानव को मध्ययुग की धार्मिक व सांस्कृतिक जंजीरों से मुक्त कराना चाहता था। व्यक्ति की स्वतन्त्र इच्छा व समानता में इसका विश्वास था। आधुनिक उदारवाद भी व्यक्ति को सभी क्षेत्रों में पूर्ण स्वतन्त्रता देकर सर्वांगीण विकास पर बल देता है।
- निजी सम्पत्ति व पूँजीवाद के सम्बन्ध में – परम्परागत उदारवादी सिद्धान्त निजी सम्पत्ति का समर्थन करता है तथा इस रूप में एक वर्ग विशेष अर्थात् पूँजीपतियों का पर्याय बन जाता है। इससे सामाजिक असमानता उत्पन्न होती है। परिणामस्वरूप मार्क्सवादी क्रान्ति आरम्भ होती है जो कि पूँजीवाद का विरोध करती है। ऐसे में मार्क्सवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए उदारवाद अपना स्वरूप बदल लेता है और आधुनिक उदारवाद अतित्व में आता है। यह लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थन करता है। निजी संपत्ति पर अंकुश लगाता है तथा पूँजीपतियों पर कर की वकालत करता है।
- अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में – परम्परागत उदारवाद का आर्थिक समाज ‘बाजारू समाज है जो केवल बुर्जुआ वर्ग के हितों का ध्यान रखता है, सामान्य व्यक्ति के हितों की अनदेखी करता है। उदारवाद का आधुनिक स्वरूप बाजार व्यवस्था के स्थान पर मिश्रित व नियन्त्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने पर बल देता है।
प्रश्न 2.
उदारवाद मूलतः एक पूँजीवाद का पोषण करने वाली विचारधारा है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उदारवाद का स्वरूप प्रारम्भ से ही परिवर्तनशील रहा है। परम्परागत या शास्त्रीय उदारवाद कभी पूँजीपतियों के पक्ष में प्रत्यक्ष रूप से सामने आता था तो कभी दबी जुबान में पूँजीपतियों के हित की बात करता था। सामाजिक एकता का समर्थन करने के साथ – साथ यह निजी संपत्ति की भी वकालत करता है जिसके कारण यह विचारधारा अप्रत्यक्ष रूप से पूँजीपतियों के हित को पोषित करती है।
इस अर्थ में यह एक क्रान्तिकारी विचारधारा न होकर एक वर्ग विशेष अर्थात् पूँजीपतियों की विचारधारा बन गई है। निजी सम्पत्ति व पूँजीपतियों को समर्थन देने के कारण समाज में एक निर्धन वर्ग का अस्तित्व बना रहता है। इसके साथ ही सामाजिक व आर्थिक विषमता उत्पन्न होती है। उदारवाद अब पूँजीवाद का पर्याय बन जाता है।
इसी उदारवाद समर्थित पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में वैज्ञानिक माक्र्सवादी क्रान्ति की शुरूआत होती है। मानवीय जीवन में असमानता को मिटाकर समानता लाने की बात मार्क्स करता है। इसके लिए वह संघर्ष का मार्ग अपनाने की बात करता है। मार्क्सवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए उदारवाद अपना स्वरूप बदल लेता है तथा लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थन करता है जिसमें निजी संम्पत्ति पर अंकुश लगाने तथा पूँजीपतियों पर कर लगाने की वकालत की जाती है।
परम्परागत उदारवाद आर्थिक क्षेत्र में मुक्त व्यापार व समझौते पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था की बात करता है। इसे नकारात्मक उदारवाद भी कहा जाता है क्योंकि यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में किसी प्रक’ के हस्तक्षेप तथा नियन्त्रण पर प्रतिबन्ध लगाता है। यही कारण है कि इसकी आलोचना की जाती है कि उदारवाद का आर्थिक समाज ‘बाजारू’ समाज है। जो केवल बुर्जुआ वर्ग के हितों का ध्यान रखता है तथा सामान्य व्यक्ति के हितों की अनदेखी करता है।
प्रश्न 3.
उदारवाद के प्रमुख सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उदारवाद का उदय पुनर्जागरण एवं धर्म सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप हुआ। जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। एडम स्मिथ व जेरेमी बेंथम भी उदारवाद के समर्थक रहे हैं। उदारवाद के स्वरूप में समय के साथ परिवर्तन आया है किन्तु फिर भी उदारवाद के कुछ सामान्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
पूँजीवाद का समर्थन: उदारवाद की विचारधारा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पूँजीवाद का समर्थन करती है। किन्तु मार्क्सवाद द्वारा प्रतिक्रिया दिखाने पर यह निर्धनों के हित की बात करती है। अपने प्रारम्भिक स्वरूप में यह विचारधारा पूँजीवाद का पर्याय प्रतीत होती है।
निजी सम्पत्ति का समर्थन: उदारवादी विचारधारा निजी सम्पत्ति का समर्थन करती है जो कि सामाजिक विभेद का प्रमुख कारण है। इससे सामाजिक असमानता की स्थिति उत्पन्न होती है तथा मार्क्सवाद इस सामाजिक विषमता को वर्ग संघर्ष द्वारा समाप्त करने की बात करता है। मार्क्सवाद के प्रभाव को नियन्त्रित करने के उद्देश्य से आधुनिक उदारवाद निजी संपत्ति पर अंकुश लगाने की बात करता है।
लोककल्याणकारी राज्य का समर्थन: प्रारम्भ में उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई मानता है किन्तु धीरे-धीरे राज्य को एक सकारात्मक अच्छाई मानने लगता है। अन्ततः राज्य के लोककल्याणकारी स्वरूप का समर्थन करता है। उदारवादी सिद्धान्त के अनुसार राज्य की उत्पत्ति व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए हुई है और यह एक समझौते के तहत हुई है। राज्य व व्यक्ति के आपसी सम्बन्ध इसी समझौते पर आधारित हैं तथा राज्य द्वारा समझौते का उल्लंघन करने पर व्यक्ति का न केवल अधिकार वरन् यह उत्तरदायित्व होगा कि वह राज्य के विरुद्ध विद्रोह करे।
व्यक्तिगत स्वतन्त्रता: उदारवाद व्यक्ति की स्वतन्त्रता का समर्थन करता है। व्यक्ति को महत्व देने के कारण व्यक्तिवाद का परम्परागत स्वरूप व्यक्तिवाद के नाम से भी जाना जाता है। उदारवाद के अनुसार मनुष्य को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक सहित सभी क्षेत्रों में स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिये।
मुक्त व्यापार का समर्थन: उदारवाद आर्थिक क्षेत्र में मुक्त व्यापार का समर्थन करता है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 बहुंचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्थायी मूल्यों की अनिश्चित उपलब्धि है
(अ) समाजवाद
(ब) पूँजीवाद
(स) उदारवाद
(द) ये तीनों
प्रश्न 2.
उदारवाद का जनक माना जाता है
(अ) जॉन लॉक को
(ब) एडम स्मिथ को
(स) जेरेमी बेन्थम को
(द) जे. एस. मिल को
प्रश्न 3.
मध्ययुग में निम्नलिखित में से किस व्यवस्था का अस्तित्व था?
(अ) सामन्तशाही
(ब) राजशाही
(स) पोपशाही
(द) ये सभी
प्रश्न 4.
उदारवाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कहाँ हुआ?
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) फ्रांस
(स) स्पेन
(द) जर्मनी
प्रश्न 5.
प्रारम्भिक उदारवाद को किस नाम से जाना जाता है?
(अ) परम्परागत
(ब) शास्त्रीय
(स) नकारात्मक
(द) ये सभी
प्रश्न 6.
निम्न में से असत्य कथन का चयन कीजिए
(अ) उदारवाद व्यक्ति प्रेमी विचारधारा है।
(ब) यह व्यक्ति को साध्य व राज्य को साधन मानती है।
(स) यह व्यक्ति को साधन तथा राज्य को साध्य मानती है।
(द) व्यक्ति की स्वतन्त्रता व अधिकारों पर बल देती है।
प्रश्न 7.
उदारवादी विचारधारा का निम्न में से कौन – सा लक्षण नहीं है?
(अ) केन्द्रीकरण
(ब) विकेन्द्रीकरण
(स) संविधानवाद
(द) लोकतन्त्र
प्रश्न 8.
गौरवपूर्ण क्रान्ति हुई-
(अ) 1688 ई. में
(ब) 1588 ई. में
(स) 1888 ई. में
(द) 1988 ई. में
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में किसने शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त प्रतिपादित किया?
(अ) जेरेमी बेन्थम
(ब) जे. एस. मिल
(स) एडम स्मिथ
(द) माण्टेस्क्यू
उत्तर:
1. (स), 2. (अ), 3. (द), 4. (अ), 5. (द), 6. (स), 7. (अ), 8. (अ), 9. (द)
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उदारवाद का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है।
प्रश्न 2.
उदारवाद के समर्थक किन्हीं चार विचारकों के नाम लिखिये।
उत्तर:
जॉन लॉक, जेरेमी बेंथम, एडम स्मिथ एवं जॉन स्टुअर्ट मिल।
प्रश्न 3.
उदारवादी दर्शन के उदय का क्या कारण था?
उत्तर:
उदारवादी दर्शन का उदय पुनर्जागरण एवं धर्म सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप हुआ।
प्रश्न 4.
पुँजीपतियों के सम्बन्ध में उदारवाद की क्या धारणा रही?
उत्तर:
उदारवाद प्रारम्भ से ही पूँजीपतियों का समर्थक रहा है।
प्रश्न 5.
उदारवाद को पूँजीवाद का समर्थक मानने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
इसका प्रमुख कारण यह है कि उदारवाद निजी संपत्ति का समर्थन करता है।
प्रश्न 6.
पूँजीपतियों के प्रति बाद में उदारवादी विचारधारा में परिवर्तन आने का क्या कारण था?
उत्तर:
परम्परागत उदारवाद पूँजीपतियों का समर्थन करने के कारण पूँजीवाद का पर्याय बन चुका था। ऐसे में सामाजिक विषमताओं को दूर करने के लिए मार्क्सवाद ने वर्ग संघर्ष की बात की। परिणामस्वरूप उदारवादी दृष्टिकोण में परिवर्तन आया।
प्रश्न 7.
उदारवाद के राज्य सम्बन्धी विचार क्या रहे हैं?
उत्तर:
उदारवाद प्रारम्भ में राज्य के कार्यों को सीमित कर देने का पक्षधर था किन्तु बाद में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का समर्थन किया।
प्रश्न 8.
उदारवादी विचारधारा के कोई चार लक्षण बताइये।
उत्तर:
- विधि का शासन
- लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण
- व्यक्तिगत स्वतन्त्रता
- मुक्त व्यापार।
प्रश्न 9.
गौरवपूर्ण क्रान्ति के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
गौरवपूर्ण क्रान्ति सन् 1688 में इंग्लैण्ड में हुई। इसे रक्तहीन क्रान्ति भी कहा जाता है। इसने शासकों के दैवी सिद्धान्त को अस्वीकृत कर राज्य को एक मानवीय संस्था बनाने का प्रयास किया।
प्रश्न 10.
फ्राँस की क्रान्ति कब हुई तथा इसका क्या महत्व रहा?
उत्तर:
फ्राँस की क्रान्ति सन् 1789 में हुई। इस क्रान्ति ने पश्चिमी समाज को स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व के विचार देकर निरंकुश शासन का अन्त किया।
प्रश्न 11.
शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया?
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त मॉण्टेस्क्यू ने प्रतिपादित किया।
प्रश्न 12.
किस विद्वान के मतानुसार “राजनीतिक कार्य सीमित होते हैं अतः राजनीतिक शक्ति भी सीमित होनी चाहिए।”
उत्तर:
यह मत जॉन लॉक द्वारा व्यक्त किया गया।
प्रश्न 13.
उदारवाद के परम्परागत स्वरूप को किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
उदारवाद के परम्परागत स्वरूप को शास्त्रीय उदारवाद, नकारात्मक उदारवाद एवं उदात्त उदारवाद आदि नामों से जाना जाता है।
प्रश्न 14.
परम्परागत उदारवाद का स्वरूप क्या था?
उत्तर:
मानव प्रतिष्ठा, तर्कशीलता, स्वतन्त्रता तथा व्यक्तिवाद पर बल देने के बावजूद इसका मौलिक चरित्र नकारात्मक था।
प्रश्न 15.
नकारात्मक उदारवाद की कोई दो विशेषतायें बताइये।
उत्तर:
- व्यक्तिवाद पर अत्यधिक बल
- व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास।
प्रश्न 16.
लॉक के उदारवादी दर्शन की दो विशेषतायें लिखिए।
उत्तर:
- कानूनों का आधार विवेक है न कि आदेश।
- वह सरकार सर्वश्रेष्ठ है जो कम से कम शासन करे।
प्रश्न 17.
परम्परागत उदारवाद को नकारात्मक उदारवाद क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
इसे नकारात्मक उदारवाद इसलिये कहा जाता है क्योंकि यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप तथा नियन्त्रण पर प्रतिबंध लगाता है।
प्रश्न 18.
नकारात्मक उदारवाद की आलोचना का कोई एक आधार बताइए।
उत्तर:
सामाजिक क्षेत्र में उदारवाद का अत्यधिक खुलापन नैतिकता के विरुद्ध है।
प्रश्न 19.
आधुनिक उदारवाद की दो विशेषतायें लिखिए।
उत्तर:
- लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल।
- व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर बल।
प्रश्न 20.
अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में परम्परागत व आधुनिक उदारवाद में क्या अंतर है?
उत्तर:
उदारवाद का परम्परागत स्वरूप बाजार व्यवस्था पर बल देता है जबकि आधुनिक उदारवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘उदारवाद’ विषयक विचारधारा कब अस्तित्व में आई?
उत्तर:
आधुनिक राजनीतिक विचारधाराओं में उदारवाद की विचारधारा सर्वाधिक प्राचीन है। उदारवादी दर्शन का उदय तथा विकास यूरोप में पुनर्जागरण व धर्म सुधार आन्दोलनों से सम्बद्ध है। 16वीं शताब्दी में सामन्तशाही, राजशाही तथा पोपशाही जैसी मध्ययुगीन व्यवस्था के विरुद्ध एक जबर्दस्त प्रतिक्रिया के फलस्वरूप क्रान्तिकारी दर्शन तथा विचारधारा के रूप में उदारवाद का आगमन हुआ। ‘उदारवाद’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1815 में इंग्लैण्ड में हुआ था।
प्रश्न 2.
‘उदारवादी विचारधारा एक परिवर्तनशील विचारधारा रही है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
उत्तर:
उदारवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसका स्वरूप एवं कार्यक्षेत्र विकास के प्रथम चरण से लेकर वर्तमान चरण तक बदलता रहा है। कभी यह पूँजीपतियों के पक्ष में प्रत्यक्ष रूप से सामने आता था तो बाद में यह दबी जुबान में पूँजीपतियों के हित की भी बात करता था। बाद में मार्क्सवाद के डर से पूँजीपतियों को बचाने के लिये यह गरीबों के हित की बात करने लगा। कालान्तर में उदारवाद लोक कल्याण की अवधारणा को प्रबल समर्थक बन गया। सन् 1990 में सोवियत संघ की साम्यवादी व्यवस्था के पतनोन्मुख होने पर यह अपने परम्परागत स्वरूप की ओर बढ़ गया।
प्रश्न 3.
उदारवाद की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
उदारवाद की प्रकृति उसके उदय व विकास के चरणों से सम्बद्ध है इसकी प्रकृति को हम इस प्रकार समझ सकते हैं –
- उदारवाद एक विकासशील विचारधारा है। सन् 1688 की गौरवपूर्ण अंग्रेजी क्रान्ति ने शासकों के दैवी सिद्धान्तों का तिरस्कार कर राज्य को एक मानवीय संस्था बनाने का प्रयास किया।
- उदारवाद व्यक्ति से जुड़ी विचारधारा है।
- उदारवाद स्वतंत्रता से जुड़ी विचारधारा है।
- उदारवाद व्यक्तियों के अधिकारों से जुड़ी विचारधारा है।
- उदारवाद संविधानवाद पर बल देता है।
प्रश्न 4.
परम्परागत या शास्त्रीय उदारवाद के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत उदारवादी सिद्धान्त धर्म को व्यक्ति को आन्तरिक और निजी मामला मानता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल देता है। सीमित राज्य के अस्तित्व को स्वीकार कर उसका समर्थन करता है। सामाजिक प्रतिमान में एकता की बात करता है। कालांतर में उदारवाद एक क्रान्तिकारी विचारधारा न होकर एक वर्ग विशेष (पूँजीवादी) की विचारधारा बन जाती है। यह रूप निजी सम्पति का समर्थन करता है।
इसके कारण मानवीय जीवन में असमानता का आगमन शुरू हो जाता है। उदारवाद अब पूँजीवाद का पर्याय बन जाता है। इसी उदारवाद समर्थित पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में वैज्ञानिक मार्क्सवादी क्रान्ति की शुरुआत होती है। मानवीय जीवन में असमानता को मिटाकर समानता लाने के लिए संघर्ष की बात माक्र्स करता है। जिसके फलस्वरूप उदारवाद अपना स्वरूप बदल देता है।
प्रश्न 5.
आधुनिक उदारवाद का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक उदारवाद-यह सिद्धान्त लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थन करता है। निजी सम्पति पर अंकुश लगाने व पूँजीपतियों पर कर की वकालत की जाती है। हरबर्ट स्पैन्सर (1820-1903) उदारवाद के बारे में लिखता है कि पहले के उदारवाद का कार्य राजाओं की शक्तियों को सीमित करना था तथा भविष्य के उदारवाद का काम व्यवस्थापिकाओं की शक्तियों को सीमित करना होगा।
लॉक के पश्चात् बेंथम, टॉमस पेन, मॉण्टेस्क्यू, रूसो तथा कई विचारकों ने उदारवादी दर्शन को आगे बढ़ाया, उन्होंने न केवल शक्ति, विवेकशीलता, तर्कशीलता, और योग्यता पर पक्का विश्वास अभिव्यक्त किया, बल्कि व्यक्ति के कार्यों में शासन हस्तक्षेप न करे इस पर भी जोर दिया। उदारवादी दर्शन के फलस्वरूप ही अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा 1776 व फ्राँस में 1779 ई में मानव अधिकारों की घोषणा हुई।
प्रश्न 6.
17वीं और 18वीं सदी के उदारवाद के बारे में आप क्या – क्या जानते हैं?
उत्तर:
17वीं और 18वीं शताब्दी के उदारवाद को परम्परागत या शास्त्रीय यो उदान्त उदारवाद भी कहा जाता है। यह उदारवाद नकारात्मक चरित्र का था। इस उदारवाद को मानव प्रतिष्ठा, तर्कशीलता, स्वतंत्रता तथा मानव के व्यक्तिवाद पर बल देने के बावजूद इसका मौलिक चरित्र नकारात्मक था। इस दृष्टिकोण में स्वतंत्रता को बंधनों का अभाव माना गया और पूँजीवादी वर्ग के लिए आवश्यक बुराई के रूप में स्वीकार कर लिया गया। जो राज्य कम से कम कार्य करे वही सर्वोत्तम है। आर्थिक क्षेत्र में इसने सम्पति के अधिकार मुक्त व्यापार का समर्थन किया।
प्रश्न 7.
लॉक के उदारवादी दर्शन की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। उसके उदारवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- राज्य की उत्पत्ति व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिये सामाजिक समझौते के द्वारा हुई।।
- राज्य द्वारा समझौते की शर्तों को पूर्ण न करने पर व्यक्ति का न केवल अधिकार वरन् उत्तरदायित्व है कि वह राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दे।
- राज्य एक आवश्यक बुराई है तथा वही सरकार सर्वश्रेष्ठ है जो कम से कम शासन करे।
- कानूनों का आधार विवेक है न कि आदेश।
प्रश्न 8.
उदारवाद के उदय एवं विकास का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
उदारवाद वस्तुतः पुनर्जागरण की देन है। जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। एडम स्मिथ व जेरेमी बेंथम भी उदारवादी विचारकों में गिने जाते हैं। लॉक, जेरेमी बेंथम व एडम स्मिथ की रचनाओं में जिस उदारवाद की झलक मिलती है वह नकारात्मक स्वरूप का था। यह नकारात्मक इसलिये कहलाता है क्योंकि इसके अन्तर्गत पूँजीवाद पर किसी भी नियन्त्रण का विरोध किया गया है। इस परम्परागत उदारवाद को व्यक्तिवाद व शास्त्रीय उदारवाद के नाम से भी जाना जाता था।
14वीं शताब्दी में जॉन स्टुअर्ट मिल ने उदारवाद को सकारात्मक रूप दिया। इसके अनुसार राज्य को एक आवश्यक बुराई नहीं वरन् एक सकारात्मक अच्छाई समझा जाने लगा। 20वीं शताब्दी में राज्य को एक आवश्यक संस्था तथा कानून को व्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिये आवश्यक समझा जाने लगा। 20वीं शताब्दी में माक्र्सवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण उदारवाद राज्य के कार्यों को सीमित करने का समर्थन करने लगा।
प्रश्न 9.
नकारात्मक उदारवाद की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नकारात्मक उदारवाद की विशेषताएँ – नकारात्मक उदारवाद की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा में विश्वास।
- मानव की विवेकशीलता और अच्छाई मानव की मानवता के लिए कुछ प्राकृतिक अदेय, अधिकारों, जीवन, स्वतंत्रता तथा सम्पति में विश्वास पर बल।
- मानव व्यक्ति के असीम मूल्य तथा व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास
- व्यक्तिवाद पर अत्यधिक बल
- मानव को मध्ययुग की धार्मिक तथा सांस्कृतिक जंजीरों से मुक्ति पर बल
प्रश्न 10.
नकारात्मक उदारवाद की कमियाँ क्या हैं? उत्तर-नकारात्मक उदारवाद की कमियाँ निम्नलिखित हैं
- उदारवाद का आर्थिक समाज ‘बाजारू समाज है जो केवल बुर्जुआ वर्ग के हितों का ध्यान रखता है, सामान्य व्यक्ति के हितों की अनदेखी करता है।”
- सांस्कृतिक क्षेत्र में नकारात्मक उदारवाद व्यक्ति को उच्छृखल बनाती है जो समाज के हितों के विपरीत है।
- सामाजिक क्षेत्र में उदारवाद का अत्यधिक खुलापन नैतिकता के विरुद्ध है।
- सीमित राज्य, जन कल्याण विरोधी अवधारणा है।
प्रश्न 11.
जॉन लॉक के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
जॉन लॉक (1632-1704 ई.) एक आंग्ल दार्शनिक एवं राजनीतिक विचारक थे। इनका जन्म 29 अगस्त 1632 को रिंगटन नामक स्थन पर हुआ था। लॉक ने ज्ञान की चार श्रेणियाँ बतायी हैं-विश्लेषणात्मक, गणित संबंधी, भौतिक विज्ञान एवं आत्मा – परमात्मा का ज्ञान। लॉक के सामाजिक व राजनीतिक विचार उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘टू ट्रीटाइज़ ऑफ गवर्नमेण्ट’ (Two Treatises of Government) में वर्णित हैं।
उनके अनुसार सरकार को किसी व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यही उसके राजनीतिक दर्शन का मूल है। जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। उन्होंने उदारवाद के परम्परागत स्वरूप का प्रतिपादन किया जिसे शास्त्रीय अथवा नकारात्मक उदारवाद भी कहा जाता है। निजी सम्पत्ति का समर्थन करने के कारण इसे पूँजीवाद का पोषक मानते हुए नकारात्मक कहा गया। जॉन लॉक की धारणा थी कि राजनीतिक कार्य सीमित होते हैं। अत: राजनीतिक शक्ति भी सीमित होनी चाहिये।
प्रश्न 12.
आधुनिक उदारवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उदारवाद की परम्परागत विचारधारा में व्यापक परिवर्तन आया तथा सकारा.” उदारवाद का जो रूप उभर कर सामने आया उसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- यह कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल देता है।
- व्यक्ति को सभी क्षेत्रों में स्वतन्त्रता प्रदान कर उसका सर्वांगीण विकास चाहता है।
- सभी व्यक्तियों को समान अवसर व समान अधिकार देने पर बल देता है।
- जनता के विकास एवं वैज्ञानिक प्रगति में विश्वास करता है।
- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, निष्पक्ष चुनाव एवं राजनीतिक सहभागिता पर बल देता है।
- सुधारवादी, शान्तिपूर्ण एवं क्रमिक सामाजिक परिवर्तन में विश्वास करता है।
- अल्पसंख्यकों वे कमजोर वर्गों के हितों के संवर्द्धन पर बल देता है।
- बाजार व्यवस्था के स्थान पर मिश्रित अर्थव्यवस्था का समर्थक है।
- लोकतान्त्रिक समाज की राजनीतिक संस्कृति पर बल देता है।
RBSE Class 12 Political Science Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उदारवाद के उदय एवं विकास पर एक विस्तृत नोट लिखिये।
उत्तर:
उदारवाद यूरोपीय इतिहास व दर्शन की महत्वपूर्ण विरासत है। यह वास्तव में पुनर्जागरण की देन है। जॉन लॉक को उदारवाद का जनक माना जाता है। उदारवाद’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1815 में इंग्लैण्ड में हुआ किन्तु एक दर्शन के रूप में उदारवादी विचारधारा का अस्तित्व 16वीं शताब्दी से रहा है। उदारवाद के विकास को निम्नलिखित चरणों में समझा जा सकता है विकास का प्रथम चरण -16वीं शताब्दी में सामन्तशाही, राजशाही और पोपशाही का बोलबाला था।
इस काल को अन्धकार युग के नाम से जाना जाता है। मध्ययुगीन इस व्यवस्था के विरुद्ध एक जबरदस्त प्रतिक्रिया स्वरूप क्रान्तिकारी दर्शन तथा विचारधारा के रूप में उदारवाद का आगमन हुआ।उदारवाद के इस प्रारम्भिक स्वरूप की झलक जॉन लॉक, बेंथम व एडम स्मिथ की रचनाओं में मिलती है। प्रारम्भ में इसका स्वरूप नकारात्मक था तथा इसे व्यक्तिवाद व शास्त्रीय उदारवाद के रूप में जाना जाता था।
विकास का द्वितीय चरण – उदारवाद के विकास का द्वितीय चरण 14र्वी शताब्दी से आरम्भ होता है जब जॉन स्टुअर्ट मिल ने उदारवाद को सकारात्मक रूप प्रदान किया। पहले राज्य को एक आवश्यक बुराई माना जाता था किन्तु अब इसे एक सकारात्मक अच्छाई के रूप में देखा जाने लगा। इसके साथ ही अनियन्त्रित वैयक्तिक स्वतन्त्रता को व्यवस्था के लिये खतरा समझते हुए इस पर आवश्यक प्रतिबन्ध लगाये जाने लगे।
विकास का तृतीय चरण-20वीं शताब्दी में लास्की एवं मैकाइवर ने इसे नवीन रूप में प्रस्तुत किया। अब राज्य को एक उत्तम व आवश्यक संस्था माना जाने लगा। साथ ही कानून को व्यक्ति की स्वतन्त्रता का रक्षक माना जाने लगा। विकास का चतुर्थ चरण – 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मार्क्सवाद की बढ़ती लोकप्रियता से भयभीत होकर उदारवाद पुन: व्यक्ति की स्वायत्तता की ओर झुकने लगा। इसी कारण राज्य के कार्यों को सीमित करने का समर्थन किया जाने लगा। इस प्रकार विकास के विभिन्न चरणों से गुजरकर उदारवाद ने अपना आधुनिक रूप प्राप्त किया। यह विचारधारा व्यक्ति को साध्य तथा राज्य को साधन मानती है।
प्रश्न 2.
आधुनिक व सम सामयिक उदारवाद किन बातों पर बल देता है? विस्तारपूर्वक समझाते हुए आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद परिवर्तित आर्थिक राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों में उदारवाद में भी व्यापक बदलाव आया। मार्क्सवाद व समाजवाद के डर से उदारवाद में सुधार कर सकारात्मक धारणी का जन्म हुआ। यह धारणा निम्नलिखित बातों पर बल देता है
- यह कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल देता है।
- व्यक्तियों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर बल देना।
- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, निष्पक्ष चुनाव व व्यापक राजनीतिक सहभागिता पर बल।
- यह व्यक्ति को सभी क्षेत्रों में सम्पूर्ण स्वतंत्रता देकर सर्वांगीण विकास पर बल देता है।
- लोकतांत्रिक समाज की राजनीतिक संस्कृति पर बल देता है।
- सभी व्यक्तियों को समान अवसर व अधिकार प्रदान करने पर बल।
- उदारवाद का यह स्वरूप क्रान्तिकारी तरीकों के विपरीत सुधारवादी, शान्तिपूर्ण और क्रमिक सामाजिक परिवर्तन में विश्वास रखता है।
- यह स्वरूप अल्पसंख्यकों, वृद्धों व दलितों के विशेष हितों को सम्वर्द्धन करने पर बल देता है।
- जनता का विकास तथा वैज्ञानिक प्रगति की धारणा में विश्वास ।
- राज्य, सामाजिक हित की पूर्ति का सकारात्मक साधन।
- समाज में व्याप्त साम्प्रदायिकता व वर्गगत असंतोष कम करने पर बल।
- लोकतंत्र की समस्याओं पर नये ढंग से विचार करने पर बल देता है।
- यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को लचीला बनाने व नियंत्रित अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों पर बल देता है।
- यह सामूहिक हित की बात करता है।
- आधुनिक उदारवाद ‘बाजार व्यवस्था’ के स्थान पर मिश्रित एवं नियंत्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है।
आलोचना: आधुनिक व समसामयिक उदारवाद की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है
- यह पूँजीवादी वर्ग से सम्बन्धित धारणा है।
- यह स्वतंत्रता के लिए आवश्यक सामाजिक परिस्थितियों का बनाया जाना राज्य पर छोड़ता है व पूँजी व्यवस्था को समाप्त नहीं करता।
- इसका सामाजिक न्याय मात्र ढकोसला है।
- उदारवाद का यह स्वरूप भी बुर्जुआ वर्ग का ही दर्शन है। यह मूलतः पूँजीवादी तथा स्थितिवादिता पर बल देता है।
- यह राज्य को शक्तिशाली बनाता है ताकि गरीबों को राजनीतिक वैधता के नाम पर दबा सके।
- यह स्वरूप गरीबों के क्रान्तिकारी आवाज को दबाने का सहारा है।
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