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RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

June 22, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय समाजवादी विचारक कौन-सी अवधारणा के पक्षधर हैं?
(अ) मानव गरिमा की स्थापना
(ब) वर्ग संघर्ष
(स) असीमित धन संग्रह
(द) नैतिक मूल्यों में दूरी

प्रश्न 2.
समाजवादी विचारधारा का घर कौन-सा देश कहलाता है?
(अ) भारत
(ब) सोवियत संघ
(स) इंग्लैण्ड
(द) अमेरिका

प्रश्न 3.
“धनवानों की आय पर अतिरिक्त कर लगाना व इस राशि का उपयोग निर्धन कल्याण में करना” कौन-सी विचारधारा का लक्ष्य है
(अ) पूँजीवादी
(ब) समाजवादी
(स) अतिवादी
(द) व्यक्तिवादी

प्रश्न 4.
इनमें से कौन समाजवादी विचारक नहीं है
(अ) राममनोहर लोहिया
(ब) पं. दीनदयाल उपाध्याय
(स) लॉर्ड मैकाले
(द) हेराल्ड लास्की

प्रश्न 5.
भारतीय समाजवाद की गणना किस रूप में की जाती है
(अ) लोकतान्त्रिक समाजवाद
(ब) श्रेणी समाजवाद
(स) साम्यवाद
(द) धार्मिक समाजवाद

उत्तर:
1. (अ), 2. (स), 3. (ब), 4. (स), 5. (अ)

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवाद का आरम्भ कहाँ से हुआ था?
उत्तर:
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति ने शहरी श्रमिक वर्ग को जन्म देकर समाजवादी क्रान्ति को संभव बनाया। इस प्रकार समाजवाद का आरम्भ इंग्लैण्ड में हुआ।

प्रश्न 2.
पं. दीनदयाल उपाध्याय ने समाजवाद को किस नाम से सम्बोधित किया?
उत्तर:
पं. दीनदयाल उपाध्याय ने समाजवाद को ‘एकात्म मानववाद’ के नाम से सम्बोधित किया।

प्रश्न 3.
समाजवाद का एक प्रमुख तत्व क्या है?
उत्तर:
समाजवाद जनतान्त्रिक व्यवस्था एवं मानववाद में विश्वास करता है।

प्रश्न 4.
भ्रष्ट व्यवस्था कहाँ अधिक पनपने की संभावना है?
उत्तर:
समाजवाद के अन्तर्गत नौकरशाही व्यवस्था में भ्रष्टाचार पनपने की अधिक संभावना होती है।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में समाजवाद के सबसे प्रमुख प्रतिपादक कौन-कौन हैं?
उत्तर:
भारत में समाजवाद का प्रारम्भ ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौरान ही हो गया था। गाँधी जी ने भारतीय आदर्शों और परिस्थितियों के अनुकूल समाजवाद का प्रतिपादन किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान और बाद में पं. जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, मानवेन्द्र नाथ रॉय, आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और पं. दीनदयाल उपाध्याय आदि नेताओं ने समाजवादी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में और मानव गरिमा की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण तथा जन सहमति के तरीकों से न कि बल द्वारा स्थापित की जाने वाली न्यायपूर्ण व्यवस्था ही लोकतान्त्रिक समाजवाद है।”

प्रश्न 2.
समाजवाद के चार प्रमुख सिद्धान्त बताइये।
उत्तर:
समाजवाद के चार प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. जनतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास समाजवाद सर्वसत्तावाद के सभी रूपों का घोर विरोध करता है क्योंकि सर्वाधिकारवाद में मानवीय व्यक्तित्व, उसकी गरिमा व स्वतन्त्रता को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। समाजवाद, प्रजातन्त्र का पूरक है। प्रजातान्त्रिक प्रणाली समाजवाद का अभिन्न अंग है।
  2. मानवता में विश्वास समाजवाद के अनुसार मनुष्य एक भौतिक या आर्थिक नहीं वरन् एक नैतिक प्राणी है। वह भौतिक विचारों से नहीं वरन् आदर्शों से प्रभावित होता है।
  3. वर्ग संघर्ष अस्वीकृत-समाजवाद पूँजीपतियों व श्रमिकों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए भी वर्ग संघर्ष को अस्वीकार करता है। समाजवाद वर्ग संषर्घ की अपेक्षा सहयोग व सामंजस्य पर आधारित है।
  4. सम्पत्ति के असीमित संग्रह के विरुद्ध-समाजवाद निजी संपत्ति को सीमित करने का पक्षधर है। बड़े उद्योगों पर अन्तिम नियन्त्रण राज्य का होना चाहिए। समाजवाद निजी संपत्ति को समाप्त नहीं वरन् सीमित करना चाहता है।

प्रश्न 3.
समाजवाद के चार गुण बतलाइए।
उत्तर:
समाजवाद के गुणों ने इसे आज विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय विचारधारा बना दिया है। साम्यवाद एवं पूँजीवाद – दोनों विचारधाराओं ने अतिवादी दर्शन ग्रहण किया जबकि समाजवाद ने इन दोनों के गुणों को ग्रहण करते हुए मध्यम मार्ग अपनाया। समाजवाद के चार प्रमुख गुण इस प्रकार हैं

  1. यह व्यक्ति और समाज दोनों के हितों का समान रूप से ध्यान रखता है।
  2. यह व्यक्तियों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास हेतु उन्हें अधिकाधिक सीमा तक नागरिक, राजनीतिक व आर्थिक स्वतन्त्रता देने का पक्षधर है।
  3. समाजवाद निजी सम्पत्ति की समाप्ति नहीं चाहता है किन्तु सामाजिक हित में उसे सीमित करना चाहता है।
  4. यह आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण का मार्ग अपनाता है।

प्रश्न 4.
समाजवाद के विरुद्ध चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
यद्यपि समाजवाद को सर्वाधिक उपयोगी एवं व्यावहारिक विचारधारा बताया जाता है किन्तु आलोचकों ने इसके विरुद्ध कुछ तर्क प्रस्तुत किये हैं जो कि निम्नलिखित हैं

  1. समाजवादी विचारधारा में बहुत से तथ्य अस्पष्ट व अनिश्चित हैं, उदाहरणार्थ-कुछ समाजवादी राष्ट्रीयकरण के समर्थक हैं तो कुछ समाजीकरण के।
  2. यह विचारधारा समानता की धारणा पर आधारित है किन्तु प्राकृतिक दृष्टि से यह समानता संभव नहीं है।
  3. समाजवादी व्यवस्था में राज्य की शक्तियाँ अत्यधिक बढ़ जाने के कारण भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ जाती है।
  4. समाजवाद में उत्पादन पर राज्य का अधिकार स्थापित हो जाने से उपभोक्ता की सम्प्रभुता समाप्त हो जाती है तथा उसके हितों को नुकसान पहुँचता है।

प्रश्न 5.
समाजवाद का आशय क्या है ?
उत्तर:
समाजवाद प्रजातन्त्र के मार्ग का समर्थन व अनुकरण करता है। समाजवाद लोकतान्त्रिक मार्ग को अपनाकर ही अपने समस्त कार्य सम्पन्न करता है। अतः कहा जा सकता है कि यह विचारधारा समाजवाद व लोकतन्त्र के आदर्शों का समन्वित रूप है। राजनीतिक क्षेत्र में इसकी आस्था मानवीय स्वतन्त्रता पर आधारित उदारवादी दर्शन में है किन्तु राज्य के कार्यक्षेत्र के सन्दर्भ में यह लोककल्याणकारी राज्य के मार्ग को प्रशस्त करता है। इस प्रकार यह व्यवस्था लोकतन्त्र व समाजवाद दोनों को बनाये रखना चाहती है। अत: इसे लोकतान्त्रिक समाजवाद कहना कहीं अधिक उपयुक्त होगा।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवाद से आप क्या समझते हैं? इसके गुण-दोषों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
समाजवाद की विचारधारा का विकास 19 व 20वीं शताब्दियों में पाश्चात्य चिंतन में हुआ। तत्पश्चात समस्त विश्व में इसका तेजी से विकास हुआ। इसका उद्देश्य शोषणरहित समतामूलक समाज की स्थापना करना रहा है। भारत सहित अनेक लोकतान्त्रिक देशों ने इसे सांविधानिक मान्यता प्रदान की है। प्रजातान्त्रिक मार्ग का अनुसरण करने के कारण इसे ‘प्रजातान्त्रिक समाजवाद’ भी कहा जाता है। विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित रूपों में समाजवाद को परिभाषित किया है

पं. जवाहरलाल नेहरू:
“राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण तथा जन सहमति के तरीकों से न कि बल द्वारा स्थापित की जाने वाली न्यायपूर्ण व्यवस्था ही लोकतान्त्रिक समाजवाद है।”

डॉ. राममनोहर लाल लोहिया के शब्दों में:
“समाजवाद ने साम्यवाद के आर्थिक लक्ष्य (उत्पादन के साधनों पर समाज का स्वामित्व, बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा योजनाबद्ध आर्थिक विकास) तथा पूँजीवाद के सामान्य लक्ष्यों (राष्ट्रीय स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र तथा मानव अधिकार) को अपना लिया है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद का लक्ष्य दोनों में सामंजस्य स्थापित करना है।”

न्यायमूर्ति गजेन्द्र गड़कर के अनुसार, “प्रजातान्त्रिक समाजवाद लोककल्याणकारी राज्य के सिद्धान्तों को व्यवहार में लाने की व्यवस्था है। इसका आधार उदारवादी सामाजिक दर्शन है। इसकी मुख्य भावना यह है कि व्यक्ति को सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करना चाहिए।’

समाजवाद के गुण:
समाजवाद के निम्नलिखित गुणों ने इसे विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय विचारधारा बना दिया है।

  1. यह व्यक्ति और समाज दोनों के हितों का समान रूप से ध्यान रखता है।
  2. यह पूँजीवाद और साम्यवाद दोनों के ही दोषों से परिचित और स्वयं को उनसे दूर रखने के लिए प्रयत्नशील है।
  3. समाजवाद व्यक्तियों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास हेतु उन्हें राजनीतिक, आर्थिक व नागरिक क्षेत्रों में अधिकाधिक स्वतन्त्रता देने का पक्षधर है।
  4. समाजवाद निजी सम्पत्ति की समाप्ति नहीं चाहता वरन् सामाजिक हित में उसे सीमित करने का पक्षधर है।
  5. समाजवाद जीवन को व्यवस्थित करने में धर्म व नैतिकता के महत्व को स्वीकार करता है। यह सभी धर्मों के सार मानव धर्म पर आधारित है।
  6. यह आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण का मार्ग अपनाता है।
  7. सत्ता जनता द्वारा निर्वाचित संसद के प्रति उत्तरदायी होनी चाहिए।
  8. यह समानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था की स्थापना में सहायक है।

समाजवाद के दोष:
आलोचकों के अनुसार समाजवाद की विचारधारा में निम्नलिखित दोष हैं

  1. समाजवाद की विचारधारा में अस्पष्टता व अनिश्चितता है। उदाहरण के लिये कुछ समाजवादी राष्ट्रीयकरण पर बल देते हैं तो कुछ अन्य समाजीकरण पर। निजी सम्पत्ति पर किस सीमा तक नियन्त्रण रखा जाये, इस सम्बन्ध में भी समाजवादियों में मतभेद हैं।
  2. प्रजातन्त्र स्वतन्त्रता का पक्षधर है जबकि समाजवाद नियन्त्रणों का समर्थन करता है। इस प्रकार समाजवादियों की विचारधारा विरोधाभास है।
  3. समाजवाद समानता की धारणा पर आधारित है किन्तु प्राकृतिक रूप से मनुष्यों में पर्याप्त असमानताएँ हैं। ऐसे में समानता की स्थापना का प्रयास पूर्णतया अव्यावहारिक प्रतीत होता है।
  4. समाजवाद में राज्य की शक्तियों का अत्यधिक विस्तार हो जाता है तथा व्यवहार में इन शक्तियों का प्रयोग नौकरशाही द्वारा किया जाता है जिसके भ्रष्ट होने की पूर्ण सम्भावना बनी रहती है।
  5. समाजवाद में उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व होने के कारण उपभोक्ताओं को पर्याप्त क्षति का सामना करना पड़ता है। उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि प्रजातन्त्र के समान ही समाजवाद का कोई विकल्प नहीं है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

प्रश्न 2.
समाजवाद के प्रमुख घटक बताइए।
उत्तर:
समाजवाद समाज को एक ऐसा तत्व मानता है जिसका विकास धीरे-धीरे होना चाहिए तथा जिसमें विकास की प्रक्रिया द्वारा स्वयं को परिवर्तित करने की क्षमता होनी चाहिए। समाजवाद के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

(क) सहयोग की भावना पर आधारित समाजवाद समाज के सभी वर्गों के मध्य सहयोग से विकास को बढ़ाना चाहता है। समाजवाद न केवल श्रमिक वर्ग वरन् समाज के सभी वर्गों के लिये हितकारी है। उच्च आदर्शों व नैतिकता की अपील से जनता के बड़े भाग को इसमें सम्मिलित किया जा सकता है।

(ख) आर्थिक समानता का पक्षधर – समाजवाद के अनुसार धनवानों की बढ़ती हुई आय पर आयकर लगाना चाहिए और प्राप्त राशि का उपयोग निर्धनों के हित में किया जाना चाहिए। आर्थिक समानता की स्थापना के लिए काले धन के संग्रह को रोका जाना चाहिए।

(ग) आर्थिक प्रगति पर बल – समाजवाद की मान्यता है कि आर्थिक विकास हेतु नियोजन की पद्धति को अपनाया जाना चाहिए। कृषि भूमि पर जोतने वाले का अधिकार होना चाहिए। इससे वह कार्य में अधिक रुचि लेगा जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन वृद्धि होने से आर्थिक विकास को बल मिलेगी। साथ ही इस प्रकार के भू-स्वामित्व से आर्थिक विषमता भी कम होगी।

(घ) राष्ट्रीयकरण की नीति – उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था पर राज्य का प्रभावी नियन्त्रण हो। साथ ही निजी उद्योगों का राज्य द्वारा निर्देशन किया जाना चाहिए जिससे उनका संचालन सामाजिक हित की दृष्टि से हो।।

(ङ) सामाजिक हित की भावना से प्रेरित – सभी व्यक्तियों के लिए उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार, उचित पारिश्रमिक व अवकाश की व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही राज्य के द्वारा अधिकाधिक कल्याणकारी सेवाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे नागरिक सुखी जीवन व्यतीत कर सकें।

(च) वैधानिक साधनों में विश्वास समाजवाद के समर्थकों का विश्वास है कि धैर्य सावधानी व बुद्धिमता के साथ समाजवाद का प्रचार जनता को विकास के मार्ग पर ले आयेगा तथा क्रान्ति की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी। समाजवाद वैधानिक साधनों जैसे कि विचार अभिव्यक्ति, भाषण, मंच, साहित्य प्रकाशन व अन्य प्रचार साधनों के द्वारा सत्ता प्राप्त करने में विश्वास करता है।

प्रश्न 3.
प्रजातान्त्रिक समाजवाद के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रजातान्त्रिक समाजवाद की विचारधारा में प्रजातन्त्र और समाजवाद का स्पष्ट समन्वय है। वस्तुतः समाजवाद दो विचारधाराओं, प्रजातन्त्र व समाजवाद का मिश्रित रूप है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि वह विचारधारा जो लोकतान्त्रिक मार्ग को अपनाकर अपने समस्त कार्य करती है, उसे समाजवाद कहते हैं। समाजवाद के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

(i) पूँजीवाद व साम्यवाद का विरोध – प्रजातान्त्रिक समाजवाद के अनुसार पूँजीवाद असमानता और सामान्य जनता के शोषण पर आधारित है। ऐसी व्यवस्था से कभी भी समस्त जनता का कल्याण नहीं हो सकता। प्रजातान्त्रिक समाजवाद साम्यवाद का विरोध इसलिए करता है कि साम्यवाद धर्म व नैतिकता के विरोध पर टिका हुआ है।

वर्ग संघर्ष और हिंसक क्रान्ति की धारणा में विश्वास करता है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद, साम्यवाद को अपना प्रथम शत्रु मानता है और नवीन साम्राज्यवाद’ कहकर उसकी आलोचना करता है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद इन दोनों विचारधाराओं से पृथक एक नवीन मार्ग का अनुसरण करता है।

(ii) जनतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास प्रजातान्त्रिक समाजवाद सर्वसत्तावादे के सभी रूपों का घोर विरोधी है। क्योंकि इसमें मानवीय व्यक्तित्व, स्वतन्त्रता व गरिमा को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद का दृढ़ विश्वास है कि आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में जो भी परिवर्तन किये जाने हों उनके लिये प्रजातान्त्रिक पद्धति को ही अपनाया जाना चाहिए। |

(iii) मानवता में विश्वास – पूँजीवाद व साम्यवाद दोनों विचारधाराओं के अन्तर्गत मानव को एक आर्थिक प्राणी माना गया है किन्तु प्रजातान्त्रिक समाजवाद मानव को एक नैतिक प्राणी मानता है। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य भौतिक विचारों से नहीं वरन् आदर्शो, सहयोग, समाजिकता आदि से प्रेरित होकर कार्य करता है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

(iv) आध्यात्मिक, नैतिक मूल्यों का समर्थक – समाजवाद का विचार है कि समस्त सामाजिक व्यवस्था धर्म और नैतिकता पर टिकी हुई है। धर्म व नैतिकता से आशय कर्मकाण्ड व आडम्बर से नहीं है अपितु मानवता को गरिमा प्रदान करने से है। इसके अतिरिक्त प्रजातान्त्रिक समाजवाद अपने को किसी एक विशेष धर्म से नहीं वरन् सभी धर्मों में समान रूप से प्रतिपादित आध्यात्मिक नैतिक मूल्यों से सम्बद्ध करता है।

(v) वर्ग संघर्ष के विरुद्ध – समाजवाद समाज में पूँजीपतियों और श्रमिकों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए भी वर्ग संघर्ष को नहीं मानता है। वर्ग संघर्ष की भावना हिंसात्मक वातावरण को जन्म देने के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्र में गतिरोध की स्थिति उत्पन्न करती है। समाजवाद के अनुसार पूँजीपति और श्रमिक वर्ग के हितों में एकता स्थापित की जा सकती है।

(vi) आर्थिक व राजनीतिक स्वतन्त्रता के पक्षधर साम्यवाद व्यक्तियों की आर्थिक स्वतन्त्रता को अति आवश्यक मानता है जबकि पूँजीवाद नागरिकों की राजनीतिक स्वतन्त्रता पर बल देता है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद की मान्यता है कि राजनीतिक व नागरिक स्वतन्त्रता के साथ-साथ आर्थिक स्वतन्त्रता भी प्राप्त होनी चाहिए।

(vii) उत्पादन व वितरण पर जनतान्त्रिक नियन्त्रण – पूँजीवाद के विपरीत, प्रजातान्त्रिक समाजवाद का मानना है कि अर्थव्यवस्था पर जनतान्त्रिक सरकार का नियन्त्रण होना चाहिए अर्थात् सामान्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित संसद द्वारा अर्थव्यवस्था पर नियन्त्रण रखा जाना चाहिए।

(viii) उत्पादन का लक्ष्य समाजीकरण – प्रजातान्त्रिक समाजवाद के द्वारा प्रारम्भ में हर क्षेत्र में राष्ट्रीयकरण पर अधिक बल दिया गया किन्तु शीघ्र ही यह अनुभव किया गया कि राष्ट्रीयकरण आर्थिक क्षेत्र की सभी समस्याओं का समाधान नहीं है। अत: संशोधित व्यवस्था में समाजवाद के द्वारा राष्ट्रीयकरण के स्थान पर समाजीकरण पर बल दिया गया।

(ix) सम्पत्ति के असीमित संग्रह के विरुद्ध प्रजातान्त्रिक समाजवाद निजी सम्पत्ति को समाप्त करने के स्थान पर उसे सीमित करने का समर्थक है। समाजवाद के अनुसार जो सम्पत्ति शोषण को जन्म देती है उसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए। किन्तु जो निजी सम्पत्ति समाज के लिए उपयोगी है उसे बनाये रखना चाहिए। इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि व्यक्ति के हाथ में असीमित पूँजी जमा न हो जाए।

(x) श्रेष्ठ मानव जीवन का लक्ष्य प्रजातान्त्रिक समाजवाद मनुष्य में सामाजिक गुणों को विकसित करने के लिए राज्य के अस्तित्व को आवश्यक मानता है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद के अनुसार राज्य का कार्यक्षेत्र अधिकाधिक व्यापक होना चाहिए। राज्य के द्वारा मानव कल्याण के अधिकाधिक कार्य किये जाने चाहिए।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 बहुंचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से किस विचारधारा का प्रमुख उद्देश्य समाजवाद रहा है?
(अ) मार्क्सवाद का
(ब) कल्याणकारी उदारवाद का
(स) मार्क्सवाद व कल्याणकारी उदारवाद का
(द) साम्यवाद का

प्रश्न 2.
‘यूटोपिया’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना किसने की?
(अ) थॉमस मूर
(ब) फ्रांसिस बेकन
(स) रॉबर्ट ओवन
(द) ब्लैंकी

प्रश्न 3.
किस देश की क्रान्ति समाजवाद के विकास में मील का पत्थर सिद्ध हुई?
(अ) अमेरिकी क्रान्ति
(ब) फ्राँसीसी क्रान्ति
(स) इंग्लैण्ड की क्रान्ति
(द) रूसी क्रान्ति

प्रश्न 4.
‘साम्यवादी घोषणा पत्र’ की रचना किसने की ?
(अ) थॉमस मूर
(ब) बेकन
(स) लेनिन
(द) मार्क्स

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

प्रश्न 5.
‘ह्वाट इज प्रोपर्टी’ (What is Property) नामक पुस्तक का रचयिता कौन हैं?
(अ) अँधों
(ब) संत साइमन
(स) ब्लैंकी
(द) बेकन

उत्तर:
1. (स), 2. (अ), 3. (ब), 4. (द), 5. (अ)।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
थॉमस मूर की प्रसिद्ध कृति का नाम बताइए।
उत्तर:
थॉमस मूर ने 1516 में अपनी प्रसिद्ध कृति ‘यूटोपिया’ की रचना की। इसमें उसने एक आदर्श समाजवादी राज्य की परिकल्पना प्रस्तुत की।

प्रश्न 2.
बेकन ने किस पुस्तक में समाजवादी विचारों का उल्लेख किया ?
उत्तर:
बेकन ने अपनी पुस्तक ‘न्यू अटलांटिस’ में समाजवादी विचारों का उल्लेख किया।

प्रश्न 3.
फ्रांस की क्रान्ति कब हुई तथा इसका ध्येय वाक्य क्या था?
उत्तर:
फ्रांस की क्रान्ति सन् 1789 में हुई। इसका ध्येय वाक्य था – स्वतन्त्रता, समानता एवं बन्धुत्व।

प्रश्न 4.
किस विचारक ने निजी सम्पत्ति को चोरी की संज्ञा दी ?
उत्तर:
प्रधों ने अपनी पुस्तक ‘ह्वाट इज प्रोपर्टी’ में निजी सम्पत्ति को चोरी की संज्ञा दी।

प्रश्न 5.
समाजवाद की किन्हीं तीन धाराओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
समाजवाद की अनेक धाराएँ हैं जिनमें से तीन प्रमुख हैं-फेबियनवाद, श्रेणी समाजवाद एवं श्रमिक संघवाद।

प्रश्न 6.
श्रेणी समाजवाद का प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर:
श्रेणी समाजवाद का प्रतिपादन जी. डी. कोल ने किया।

प्रश्न 7.
मार्क्सवादी समाजवाद का सूत्रपात कब हुआ?
उत्तर:
मार्क्सवादी समाजवाद का विधिवत सैद्धान्तिक सूत्रपात 1848 में कार्ल मार्क्स द्वारा लिखित पुस्तक ‘साम्यवादी घोषणा पत्र के साथ हुआ।

प्रश्न 8.
औद्योगिक क्रान्ति किस देश में सम्पन्न हुई?
उत्तर:
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में सम्पन्न हुई और इसी के साथ श्रमिक वर्ग अस्तित्व में आया।

प्रश्न 9.
भारत के किन्हीं तीन विचारकों के नाम बताइए जिन्होंने समाजवाद की व्याख्या की है।
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राम मनोहर लोहिया एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

प्रश्न 10.
समाजवाद का अर्थ बताइए।
उत्तर:
समाजवाद का अर्थ है लोकतान्त्रिक मार्ग को अपनाकर आर्थिक व सामाजिक न्याय की स्थापना करना तथा व्यक्ति की गरिमा को बनाये रखना।

प्रश्न 11.
भारत में समाजवाद का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
भारत में समाजवाद का प्रारम्भ ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौरान हुआ। सर्वप्रथम सन् 1929 के लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की घोषणा द्वारा इसकी पुष्टि हुई।

प्रश्न 12.
समाजवाद किस आधार पर पूँजीवाद का विरोध करता है ?
उत्तर:
पूँजीवाद असमानता और सामान्य जनता के शोषण पर आधारित है। समाजवाद के अनुसार ऐसी व्यवस्था कभी भी समस्त जनता के कल्याण नहीं कर सकती।

प्रश्न 13.
समाजवाद ने किसे अपना प्रथम शत्रु कहा है ?
उत्तर:
साम्यवाद के विरोधी विचारों के कारण समाजवाद ने इसे अपना प्रथम शत्रु माना है।

प्रश्न 14.
समाजवाद सर्वसत्तावाद का विरोध क्यों करता है ?
उत्तर:
समाजवाद सर्वसत्तावाद के सभी रूपों का घोर विरोधी है क्योंकि सर्वाधिकारवाद में मानवीय व्यक्तित्व, उसकी गरिमा और स्वतन्त्रता को कोई महत्व प्राप्त नहीं होता है।

प्रश्न 15.
यह किसने कहा, ”समाजवाद प्रजातन्त्र की ही पूर्ण सिद्धि है।”
उत्तर:
यह कथन नार्मन थॉमस का है।

प्रश्न 16.
धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में समाजवाद की दृष्टि क्या है ?
उत्तर:
धर्म और नैतिकता से समाजवाद का आशय कर्मकाण्ड, भाग्यवाद आदि को अपनाने से नहीं है वरन् मानवता को गरिमा देने से है।

प्रश्न 17.
‘वर्ग संघर्ष’ के सम्बन्ध में समाजवाद की क्या धारणा है ?
उत्तर:
समाजवाद पूँजीपतियों व श्रमिकों के अस्तित्व को तो स्वीकार करता है किन्तु वर्ग संघर्ष को नहीं मानता है। इस विचारधारा के अनुसार इन दोनों वर्गों के मध्य सामंजस्य व सहयोग के आधार पर एकता स्थापित की जा सकती है।

प्रश्न 18.
समाजवाद उत्पादन व वितरण पर किसका नियन्त्रण स्वीकार करता है ?
उत्तर:
समाजवाद उत्पादन व वितरण पर जनतान्त्रिक सरकार के नियन्त्रण का पक्षधर है।

प्रश्न 19.
समाजवाद राष्ट्रीयकरण पर बल देता है अथवा समाजीकरण पर ?
उत्तर:
समाजवाद के द्वारा प्रारम्भ में राष्ट्रीयकरण पर अधिक बल दिया गया था किन्तु शीघ्र ही यह अनुभव किया गया कि इससे सभी आर्थिक समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं। अत: संशोधित रूप से समाजीकरण पर बल दिया गया।

प्रश्न 20.
राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में समाजवाद का क्या विचार है ?
उत्तर:
समाजवाद के अनुसार राज्य को कार्यक्षेत्र अधिकाधिक व्यापक होना चाहिए।

प्रश्न 21.
क्या समाजवाद हिंसात्मक साधनों का समर्थक है?
उत्तर:
नहीं, समाजवाद सदैव ही वैधानिक साधनों के द्वारा लक्ष्य प्राप्ति का समर्थक रहा है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

प्रश्न 22.
आर्थिक समानता की स्थापना हेतु समाजवाद क्या सुझाव देता है? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. धनवानों की बढ़ती आय पर कर लगाकर प्राप्त राशि का उपयोग निर्धनों के हित में किया जाना चाहिए।
  2. कालेधन का संग्रह हर हालत में रोका जाये।

प्रश्न 23.
समाजवाद के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:

  1. व्यक्तियों को अधिकाधिक राजनीतिक, नागरिक व आर्थिक स्वतन्त्रता देने का पक्षधर।
  2. निजी सम्पत्ति को सीमित करने की संकल्पना।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवाद और प्रजातन्त्र के मध्य सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजवाद एवं प्रजातन्त्र की अवधारणाएँ एक – दूसरे से सम्बद्ध हैं। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि दोनों विचारधाराएँ एक – दूसरे की पूरक हैं। समाजवाद की स्थापना प्रजातान्त्रिक मार्ग को अपनाकर ही की जाती है। अतः जो विचारधारा लोकतन्त्र के मार्ग को अपनाकर ही अपने समस्त कार्य सम्पन्न करे, उसे समाजवाद कहा जाता है। इसी कारण इस व्यवस्था को ‘प्रजातान्त्रिक समाजवाद’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस की कार्यसमिति ने क्या घोषणा की ?
उत्तर:
1929 के लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्य समिति ने घोषित किया था: ”भारतीय जनता की भयंकर दरिद्रता विदेशियों द्वारा किये गये शोषण के कारण ही नहीं वरन् समाज की आर्थिक व्यवस्था के कारण भी है जिसके कारण विदेशी शासक अपना शोषण जारी रखे हुए हैं। समाज की वर्तमान सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन करने पड़ेंगे।”

प्रश्न 3.
समाजवाद के विकास में किन भारतीय नेताओं ने योगदान दिया ?
उत्तर:
सर्वप्रथम गाँधीजी ने भारतीय आदर्शों और परिस्थितियों के अनुकूल समाजवाद का प्रतिपादन किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन काल में तथा बाद में पं. जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, मानवेन्द्र नाथ राय, आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और पं. दीनदयाल उपाध्याय आदि नेताओं ने समाजवादी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में और मानव गरिमा की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीयकरण व समाजीकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजवाद द्वारा प्रारम्भ में राष्ट्रीयकरण पर अधिक बल दिया गया था किन्तु बाद में समाजीकरण को महत्व दिया गया। राष्ट्रीयकरण का तात्पर्य उद्योगों पर सार्वजनिक स्वामित्व से है जबकि समाजीकरण का अर्थ यह है कि उद्योग चाहे सार्वजनिक क्षेत्र में हों या निजी क्षेत्र में, उन पर नियन्त्रण की व्यवस्था राज्य के निर्देशानुसार होनी चाहिए तथा उनका संचालन लाभ की दृष्टि से नहीं वरन् सामाजिक हित की दृष्टि से किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
समाजवाद की विकास प्रक्रिया पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
समाजवाद समाज को एक ऐसा तत्व मानता है जिसका विकास धीरे-धीरे होना चाहिए तथा जिसमें विकास की प्रक्रिया के द्वारा स्वयं को परिवर्तित करने की क्षमता होनी चाहिए। समाजवाद समाज के सभी वर्गों के सहयोग से विकास को आगे बढ़ाना चाहता है। समाजवाद वैधानिक साधनों से सत्ता प्राप्त करने में विश्वास करता है तथा वैधानिक तरीकों से ही विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता है।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

प्रश्न 6.
समाजवाद किन आधारों पर पूँजीवाद व साम्यवाद का विरोध करता है ?
उत्तर:
प्रजातान्त्रिक समाजवाद, पूँजीवाद तथा साम्यवाद दोनों विचारधाराओं का समान रूप से विरोधी है। उसके अनुसार पूँजीवाद असमानता और सामान्य जनता के शोषण पर आधारित है और ऐसी व्यवस्था कभी भी समस्त जनता का कल्याण नहीं कर सकती। प्रजातान्त्रिक समाजवाद, साम्यवाद का विरोध इसलिए करता है कि साम्यवाद धर्म व नैतिकता के विरोध पर टिका हुआ है।

यह वर्ग संघर्ष और हिंसक क्रान्ति की धारणा में विश्वास करता है और उसके अन्तर्गत अधिनायकवाद (सर्वहारावर्ग के अधिनायकवाद) को अपनाया गया है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद के अनुसार ये ऐसे विचार हैं जो कभी भी मानव जीवन के लिये श्रेयस्कर नहीं हो सकते हैं। इसी कारण वह साम्यवाद को अपना प्रथम शत्रु मानता है और ‘नवीन साम्राज्यवाद का यन्त्र’ कहकर उसकी भत्र्सना करता है।

प्रश्न 7.
“समाजवाद मानव को एक नैतिक प्राणी मानता है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूँजीवाद और साम्यवाद विचारधाराओं के अन्तर्गत मानव को एक आर्थिक प्राणी माना गया है किन्तु समाजवाद मानव को एक नैतिक प्राणी मानता है। पूँजीवाद इस गलत धारणा पर आधारित है कि व्यक्ति केवल लाभ या दण्ड के भय से ही क्रियाशील होता है। इसी प्रकार साम्यवादी मानते हैं कि हिंसा व आतंक के आधार पर ही कोई कार्य किया जा सकता है।

इन विचारधाराओं के विपरीत समाजवाद की मान्यता है कि मनुष्य एक भौतिक या आर्थिक नहीं वरनु नैतिक प्राणी है। वह केवल भौतिक विचारों से नहीं वरन् नैतिक मूल्यों व आदर्शों से भी प्रभावित होता है। वह सहयोग व भाइचारे की भावना से प्रेरित होकर कार्य करता है। इस प्रकार मनुष्य को एक नैतिक प्राणी मानते हुए समाजवाद उसके नैतिक विकास पर बल देता है।

प्रश्न 8.
समाजवाद व्यक्तियों को किस सीमा तक स्वतन्त्रता देना चाहता है ?
उत्तर:
साम्यवाद के अनुसार व्यक्तियों के लिये आर्थिक स्वतन्त्रता अति आवश्यक है। उनके अनुसार काम करने का अधिकार, उचित पारिश्रमिक और अवकाश का अधिकार ही व्यक्तियों के लिए सब कुछ है। दूसरी ओर पूँजीवाद नागरिकों की राजनीतिक स्वतन्त्रता पर बल देता है लेकिन यहाँ आर्थिक स्वतन्त्रता के महत्व को स्वीकार नहीं किया जाता।

इन दोनों विचारधाराओं के विपरीत समाजवादी व्यवस्था व्यक्ति के लिए विचार, भाषण, संगठन और सम्मेलन आदि राजनीतिक स्वतन्त्रताएँ तो आवश्यक मानता ही है, साथ ही यह भी मानता है कि नागरिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता के साथ-साथ आर्थिक स्वतन्त्रता भी प्राप्त होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
निजी सम्पत्ति पर समाजवादियों के क्या विचार हैं?
उत्तर:
समाजवाद निजी संपत्ति को समाप्त करने के स्थान पर उसे सीमित करने का समर्थक है। इस विचारधारा के अनुसार जो सम्पत्ति शोषण को जन्म देती है उसे समाप्त कर दिया जाना चाहिये।

उदाहरणार्थ – बड़े – बड़े उद्योगों पर अन्तिम नियन्त्रण राज्य का होना चाहिये, निजी पूँजीपतियों का नहीं क्योंकि पूँजीपति इन उद्योगों के आधार पर सामान्य जनता को अपना दास बना सकते हैं किन्तु जो निजी संपत्ति समाज के लिये उपयोगी है उसे बनाये रखना चाहिये अर्थात् निजी संपत्ति, निजी घर, जीवन के लिये उपयोगी वस्तुएँ, कृषि, हस्तशिल्प, खुदरा व्यापार और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को निजी क्षेत्र में बनाये रखा जा सकता है।

इस प्रकार समाजवाद निजी सम्पत्ति को पूर्णतया समाप्त कर देने की बात नहीं करता है किन्तु इस बात का ध्यान अवश्य रखता है कि व्यक्तियों के हाथों में असीमित पूँजी जमा न हो जाये।

प्रश्न 10.
समाजवाद के प्रमुख तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजवाद के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं –

  1. धनवानों की बढ़ती हुई आय पर आयकर लगाया जाना चाहिये और प्राप्त राशि का उपयोग निर्धनों के हित में किया जाना चाहिये।
  2. काले धन का संग्रह हर हालत में रोका जाये।
  3. कृषि भूमि पर जोतने वाले का अधिकार होना चाहिये।
  4. उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिये जिससे अर्थव्यवस्था पर राज्य का प्रभावी नियन्त्रण हो।
  5. निजी उद्योगों को राज्य द्वारा निर्देश दिया जाना चाहिये कि उनका संचालन सामाजिक हित की दृष्टि से हो।
  6. आर्थिक असमानता दूर की जानी चाहिये।
  7. सभी व्यक्तियों के लिये उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार, उचित पारिश्रमिक व अवकाश की व्यवस्था की जानी चाहिये।
  8. राज्य के द्वारा अधिकाधिक कल्याणकारी सेवाओं की व्यवस्था की जानी चाहिये जिससे नागरिक सुखी जीवन व्यतीत कर सकें।
  9. आर्थिक विकास हेतु नियोजन की पद्धति को अपनाया जाना चाहिये।

RBSE Class 12 Political Science Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक अवधारणा के विकास पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक अवधारणा के विकास का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है
(1) विभिन्न रचनाओं व घटनाओं का प्रभाव – प्राचीनकाल में यूनान के स्टॉइक दर्शन ने आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय का सिद्धान्त दिया। मध्यकाल में थॉमस मूर की प्रसिद्ध कृति ‘यूटोपिया’ (1516) में एक आदर्श समाजवादी राज्य की परिकल्पना प्रस्तुत की गई।

17वीं शताब्दी में फ्रांसिस बेकन ने अपनी पुस्तक ‘न्यू अटलांटिस’ में समाजवादी विचारों का उल्लेख किया। समाजवाद की प्रगति की दिशा में फ्राँस की राज्य क्रान्ति (1789) एक मील का पत्थर सिद्ध हुई ज़ब इस क्रान्ति के ध्येय वाक्य में समानता, स्वतन्त्रता व बन्धुत्व’ को शामिल किया गया।

(2) विद्वानों द्वारा समाजवादी विचारों का प्रसार – विभिन्न विद्वानों ने भी अन्य विचारधाराओं की अपेक्षा समाजवाद का समर्थन करते हुए इसका प्रचार – प्रसार किया। फ्रांस के बेबियफ ने समाजवादी विचारों की वकालत की। बेबियफ के विचारों को बाद में ब्लैंकी ने प्रसारित किया।

19वीं शताब्दी में सन्त साइमन, चार्ल्स फूरियर, रॉबर्ट ओवन जैसे विचारों ने पूँजीवाद के दोषों को मानवीय स्वचेतना के आधार पर दूर कर सामाजिक व आर्थिक कल्याण की बात की। प्रधों ने अपनी पुस्तक ‘ह्वाट इज़ प्रोपर्टी’ में निजी सम्पत्ति को चोरी की संज्ञा दी। राज्य को समाप्त करने की बात कहकर बकुनिन तथा अन्य अराजकतावादियों ने एक नई सामाजिक परम्परा की शुरुआत कर दी।

(3) समाजवाद की विभिन्न धाराओं का विकास – शनैः शनैः समाजवाद की अनेक धारायें अस्तित्व में आईं जैसे कि फेवियनवाद, श्रेणी समाजवाद एवं श्रमिक संघवाद आदि। जॉर्ज बर्नाड शॉ, जी. डी. कोल एवं जॉर्ज सोरेल जैसे विचारकों ने समाजवाद से सम्बद्ध विभिन्न धाराओं के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। 19वीं सदी में साम्यवाद और मार्क्सवादी समाजवाद का प्रादुर्भाव हुआ। इसका विधिवत् सैद्धान्तिक सूत्रपात 1848 में कार्ल मार्क्स द्वारा लिखित पुस्तक ‘साम्यवादी घोषणा – पत्र के साथ हुआ।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 समाजवाद

(4) औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव – औद्योगिक क्रान्ति जिसने कि शहरी श्रमिक वर्ग को जन्म दिया और समाजवादी क्रान्ति को सम्भव बनाया, सबसे पहले इंग्लैण्ड में हुई थी और इसी कारण इंग्लैण्ड को समाजवादी विचारधारा का घर’ कहा जाता है। ब्रिटिश लोगों ने अपने स्वभाव व जीवन मूल्यों के कारण समाजवाद के विचार को अपनाया।

उल्लेखनीय है कि समाजवाद का कोई एक विचारक या एक प्रेरणा स्रोत नहीं है जो सभी समयों के लिये कानून बनाता हो। विलियम इन्स्टीन के शब्दों में -“इंग्लैण्ड में अधिकांश वे प्रभावशाली समाजवादी विचारक रहे हैं, जिन्हें राजनीतिक दलों या शासन में कोई महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त नहीं थी किन्तु उनका प्रभाव मुख्यतया उनकी नैतिक शक्ति और उनके लेखन की शैली के कारण था।”

समाजवाद के विकास में इन विद्वानों का विशेष योगदान रहा है – आर. एन. टॉनी, रैम्जे मैक्डॉनल्ड, सिडनी और बेट्रिस वैब, हेरॉल्ड लास्की, क्लेमेण्ट एटली, ऐवन, एफ. एम. डार्विन, नार्मन थॉमस, पं. जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय।

प्रश्न 2.
भारत में समाजवाद के विकास पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
समाजवाद आधुनिक युग की सर्वाधिक प्रचलित विचारधारा है। भारत सहित अनेक लोकतान्त्रिक राज्यों ने इसे सांविधानिक मान्यता प्रदान की है। इस विचारधारा के अन्तर्गत लोकतान्त्रिक मार्ग को अपनाकर सामाजिक व आर्थिक न्याय की स्थापना की जाती है तथा व्यक्ति की गरिमा को भी बनाये रखने के प्रयास किये जाते हैं।

भारत में समाजवाद के विकास का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है लाहौर अधिवेशन में घोषणा – भारत में समाजवाद का आरम्भ ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध चलाये जा रहे राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान हुआ।

सर्वप्रथम सन् 1929 के लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की कार्यसमिति ने घोषित किया था कि -“भारतीय जनता की भयंकर दरिद्रता विदेशियों द्वारा किये गये शोषण के कारण ही नहीं वरन् समाज की आर्थिक व्यवस्था के कारण भी है जिसके कारण विदेशी शासक शोषण जारी रखे हुए हैं। अतः समाज की वर्तमान सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन करने पड़ेंगे।

कराँची अधिवेशन में पारित प्रस्ताव – सन् 1931 में कराँची अधिवेशन में काँग्रेस द्वारा पारित प्रस्ताव के प्राक्कथन में कहा गया था -“यदि हम सर्वसाधारण के लिये स्वराज्य को वास्तविक स्वराज्य बनाना चाहते हैं तो इसका अर्थ केवल देश की राजनीतिक स्वतन्त्रता से नहीं है वरन् सर्वसाधारण की आर्थिक स्वतन्त्रता से भी है।”

भारतीय नेताओं का योगदान – गाँधी जी ने भारतीय आदर्शों व परिस्थितियों के अनुकूल समाजवाद का प्रतिपादन किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन के काल में और बाद में पं. जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, मानवेन्द्र नाथ रॉय, आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया व पं. दीनदयाल उपाध्याय आदि नेताओं ने समाजवादी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में और मानव गरिमा की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

व्यावहारिक स्थिति – स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर अब तक केन्द्र के शासक दल और विपक्ष सभी के द्वारा अपने आपको समाजवाद का पक्षधर घोषित किया जाता रहा है, किन्तु व्यवहार में अब तक इस दिशा में जो कुछ किया गया है, वह निश्चित रूप से अपूर्ण माना जायेगा क्योंकि भारतीय समाज में आर्थिक विषमता आज भी व्यापक पैमाने पर विद्यमान है।

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