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RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 10 मनोवैज्ञानिक कौशल विकास

August 20, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 मनोवैज्ञानिक कौशल विकास

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान की रुचि है –
(अ) मानव के स्वभाव को जानने के बारे में
(ब) मौसम के बारे में जानने में
(स) संस्कृति को जानने में
(द) समाज को जानने में
उत्तर:
(अ) मानव के स्वभाव को जानने के बारे में

प्रश्न 2.
कौशल को कैसे अर्जित किया जा सकता है?
(अ) आनुवांशिकता से
(ब) प्रशिक्षण और अनुभव से
(स) साक्षात्कार से
(द) परामर्श से
उत्तर:
(ब) प्रशिक्षण और अनुभव से

प्रश्न 3.
सहभागी प्रेक्षण में प्रेक्षणकर्ता –
(अ) सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है।
(ब) दूर से प्रेक्षण करता है
(स) अशाब्दिक व्यवहारों का संप्रेक्षण करता है
(द) परामर्श देता है
उत्तर:
(अ) सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है।

प्रश्न 4.
मानव सम्प्रेषण के घटक हैं –
(अ) कूट संकेत
(ब) श्रवण
(स) भाषा
(द) साक्षात्कार
उत्तर:
(अ) कूट संकेत

प्रश्न 5.
प्रकृतिवादी प्रेक्षण (Naturalistic Observation) की सबसे प्रमुख पूर्वकल्पना (Assumption) क्या है?
(अ) प्राणी एक स्वाभाविक परिस्थिति में व्यवहार ठीक ढंग से करता है
(ब) अनुसंधानकर्ता के हस्तक्षेप से व्यवहार प्रभावित हो सकता है
(स) अनुसंधानकर्ता प्राणी के व्यवहारों का अध्ययन आनुभाविक ढंग से (Empirically) करता है
(द) अनुसंधानकर्ता स्वाभाविक परिस्थिति में व्यवहारों के अध्ययन में उत्तम ढंग से कारण-परिणाम सम्बन्ध स्थापित करता है
उत्तर:
(अ) प्राणी एक स्वाभाविक परिस्थिति में व्यवहार ठीक ढंग से करता है

प्रश्न 6.
प्रभावी मनोवैज्ञानिक के लिये क्या आवश्यक है?
(अ) सक्षमता
(ब) अखंडता
(स) व्यावसायिक उत्तरदायित्व
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

प्रश्न 7.
प्रभावी सम्प्रेषण की विकृति को कैसे कम किया जा सकता है?
(अ) पर्यावरणीय शोर को नियन्त्रित करके
(ब) अच्छी वेश-भूषा पहन कर
(स) मीठी बातें करके
(द) चिकित्सापरक हस्तक्षेप करके
उत्तर:
(अ) पर्यावरणीय शोर को नियन्त्रित करके

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौशल किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
कौशल का शाब्दिक अर्थ है-प्रवीणता। किसी भी कार्य करने की दक्षता को ‘कौशल’ की संज्ञा दी जाती है। कौशल अनेक प्रकार के होते हैं –

  1. सामान्य कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के होते हैं। इसकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिकों को होती है।
  2. प्रेक्षण कौशल में मनोवैज्ञानिक व्यक्ति व उनके व्यवहारों का प्रेक्षण करता है।
  3. विशिष्ट कौशल मनोवैज्ञानिक सेवाओं के आधारभूत कौशल है।
  4. सम्प्रेषण कौशल व्यक्तिगत सम्बन्धों एवं व्यक्तिगत प्रभाविता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना होता है।
  5. मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल मनोविज्ञान के ज्ञान के आधार पर आधारित होते हैं।
  6. साक्षात्कार कौशल में साक्षात्कारकर्ता एवं सूचनादाता दोनों ही आमने-सामने बैठते हैं तथा साक्षात्कारकर्ता सूचनादाता से अध्ययन समस्या के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त करने का कार्य करता है।
  7. परामर्श कौशल एक सफल मनोवैज्ञानिक बनने में काफी महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 2.
प्रभावी मनोवैज्ञानिक के रूप में विकसित होने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
प्रभावी मनोवैज्ञानिक के रूप में विकसित होने के लिए निम्नलिखित कौशल आवश्यक है, जो इस प्रकार है –

1. सामान्य कौशल:
सामान्य कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के हैं और इनकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिकों को होती है, चाहे वे नैदानिक एवं स्वास्थ्य मनोविज्ञान के क्षेत्र या सामाजिक मनोविज्ञान से सम्बन्धित हों।

2. प्रेक्षण कौशल:
इसके अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक अपने चारों ओर के वातावरण का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करता है तथा वह व्यक्तियों एवं उनके व्यवहारों का भी प्रेक्षण करता है।

3. विशिष्ट कौशल:
ये कौशल मनोवैज्ञानिक सेवाओं के आधारभूत कौशल हैं। विशिष्ट कौशलों को सम्प्रेषण, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, साक्षात्कार एवं परामर्श कौशलों में वर्गीकृत किया जाता है।

प्रश्न 3.
सम्प्रेषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
सम्प्रेषण मानव अन्तःक्रिया का एक आवश्यक अंग है। संचार/सम्प्रेषण अर्थात् “Communication” शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के कम्यूनिस (Communis) से हुई है, जिसका अर्थ होता है सामान्य (Common)।

सम्प्रेषण एक आवश्यक मानवीय प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्तियों के मध्य अर्थ, ज्ञान, विचार, भाव, सूचना और अनुभवों का परस्पर आदान-प्रदान भाषा तथा अन्य प्रतीकों के माध्यम से एक स्थान और समय से दूसरे स्थान व समय में होता है।

अतः शाब्दिक अर्थ के अनुसार संचार का तात्पर्य उस अर्थपूर्ण सूचना भेजने वाले (Sender) तथा सूचना पाने वाले (Receiver) दोनों के लिए सामान्य होता है। लेकिन इस शाब्दिक परिभाषा से संचार के स्वरूप और अर्थ को पूरी तरह हम नहीं समझ पाते हैं।

प्रश्न 4.
विशिष्ट कौशल क्या है?
उत्तर:
विशिष्ट कौशल, मनोवैज्ञानिक सेवाओं के आधारभूत कौशल हैं। जिस प्रकार नैदानिक स्थितियों में कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि मनोवैज्ञानिक चिकित्सापरक हस्तक्षेप की तकनीकों, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं परामर्श में प्रशिक्षण प्राप्त करें।

उसी प्रकार संगठनात्मक मनोवैज्ञानिक को शोध कौशलों के अलावा मूल्यांकन तथा सुगमीकरण परामर्श कौशलों जैसे विशिष्ट कौशलों में पारंगत होना चाहिए।

विशिष्ट कौशलों को चार भागों में बाँटा गया है –

  1. सम्प्रेषण कौशल – वाचन, सक्रिय श्रवण व शरीर भाषा।
  2. मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल।
  3. साक्षात्कार कौशल।
  4. परामर्श कौशल।

प्रश्न 5.
प्रेक्षण किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी घटना अथवा वस्तु का व्यवस्थित रूप में अध्ययन करने, उसे सूक्ष्म रूप से देखने-परखने तथा उसके आलेखन करने की प्रक्रिया को अवलोकन या प्रेक्षण विधि के नाम से जाना जाता है। यह घटनाओं को भौतिक रूप से देखने के साथ-साथ मानसिक रूप में उनके प्रत्यक्षीकरण की एक विधि है।

इस प्रेक्षण विधि में जिह्वा (शब्दों) और कानों की अपेक्षा चक्षुओं (आँख) के प्रयोग पर अधिक बल दिया जाता है। शब्दों का प्रयोग चक्षुओं के सहायक अथवा संपूरक की दृष्टि से किया जाता है। अध्ययन को वैज्ञानिक, उद्देश्यपूर्ण एवं सटीक बनाने के लिए कभी-कभी सूक्ष्मदर्शक यंत्र या दूरबीन, टेप रिकॉर्डर, वीडियो कैमरा जैसे यंत्रों का प्रयोग भी किया जाता है।

वैज्ञानिक शोध की एक विधि के रूप, यह हमारे रोजमर्रा के इधर-उधर देखने या निहारने से भिन्न होती है, जो बहुधा उद्देश्यपूर्ण, निष्पक्ष और सटीक नहीं होते हैं। इसके अनेक रूप हैं; जैसे-नियंत्रित-अनियंत्रित अवलोकन, सहभागी-असहभागी या अर्द्ध-सहभागी अवलोकन आदि।

प्रश्न 6.
परामर्श क्या है? प्रभावी सहायक की विशेषताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
परामर्श एक ऐसा प्रक्रम है जिसके अन्तर्गत सेवार्थी यह सीखते हैं कि निर्णय कैसे लिया जाए तथा व्यवहार करने की अनुभूति करने एवं चिन्तन करने के नए तरीकों को कैसे रूप दिया जाए। प्रभावी सहायक की विशेषताएँ –

1. प्रमाणिकता:
इसका अर्थ है कि आपके व्यवहार की अभिव्यक्ति व्यक्ति (परामर्शदाता) के मूल्यों, भावनाओं एवं आत्मछवि के साथ संगत होती है।

2. पुनर्वाक्यविन्यास:
सेवार्थी की कही हुई बातों को या भावनाओं को विभिन्न शब्दों का प्रयोग करते हुए उपयोग करते हुए कहा जा सकता है।

3. तद्नुभूति:
यह एक परामर्शदाता की योग्यता है जिसके द्वारा वह सेवार्थी की भावनाओं को उसके ही परिप्रेक्ष्य से समझता है।

4. दूसरों के प्रति सकारात्मक आदर:
परामर्शदाता को सेवार्थी कैसा महसूस कर रहा है और उसके बारे में एक सकारात्मक आदर का भाव प्रदर्शित करना चाहिए।

प्रश्न 7.
साक्षात्कार किसे कहते हैं? साक्षात्कार का विशिष्ट प्रारूप क्या है?
उत्तर:
साक्षात्कार का शाब्दिक अर्थ है-आन्तरिक रूप से देखना। इस विधि में साक्षात्कारकर्ता इकाई (व्यक्ति) से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करता है और घटना अथवा समस्या के सम्बन्ध में अनौपचारिक वार्ता करता है तथा व्यक्ति की भावनाएँ, प्रतिक्रियाएँ व विचार जानकर तथ्यों को एकत्रित करता है।

साक्षात्कार के दो विशिष्ट प्रारूप निम्न हैं –

1. संरचित एवं प्रामाणिक साक्षात्कार में व्यवहार एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी जिन बातों के बारे में जानकारी एकत्रित करनी हो, उनसे सम्बन्धित उचित एवं आवश्यक प्रश्नों की रचना साक्षात्कार लेने से पहले ही कर ली जाती है। उन प्रश्नों का क्रम भी पहले से तय होता है। इससे समय और शक्ति का अपव्यय भी रुक जाता है।

2. असंरचित एवं अप्रामाणिक साक्षात्कार में विद्यार्थियों से पूछे जाने वाले प्रश्न पहले से तैयार नहीं किए जाते हैं तथा न उनकी संख्या ही निश्चित की जाती है। साक्षात्कार लेने वाला विद्यार्थी से अपनी इच्छानुसार कोई भी प्रश्न पूछने को स्वतंत्र होता है। विश्वसनीयता व वस्तुनिष्ठता दोनों की इस साक्षात्कार प्रक्रिया में काफी कमी दिखायी देती है। इसमें काफी समय भी लग जाता है।

प्रश्न 8.
तद्नुभूति किसे कहते हैं और परामर्शदाता के लिए यह आवश्यक क्यों है?
उत्तर:
तद्नुभूति का अर्थ-इसका अर्थ है दूसरों की अनुभूति को स्वयं की अनुभूति मानना। तद्नुभूति एक परामर्शदाता की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह सेवार्थी की भावनाओं को उसके ही परिप्रेक्ष्य से समझता है।

परामर्शदाता के लिए यह अनेक कारणों से आवश्यक है –

  1. तद्नुभूति परामर्शदाता के लिए इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा वह अन्य सेवार्थियों की अनुभूतियों व मनोभावों को उनके परिप्रेक्ष्य से ही समझता है।
  2. तद्नुभूति परामर्शदाता को एक प्रभावी सहायक बनाने में सहायता प्रदान करती है।
  3. तद्नुभूति के माध्यम से परामर्शदाता सेवार्थी को उसकी समस्या के निराकरण के लिए उचित परामर्श दे सकता है।

प्रश्न 9.
श्रवण में संस्कृति की क्या भूमिका है?
उत्तर:
एक सफल सम्प्रेषण में श्रवण की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है, जिसे निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट किया
जा सकता है –

  1. श्रवण के द्वारा ही एक व्यक्ति स्रोत द्वारा दी गयी सूचना को उचित ढंग से ग्रहण कर पाता है।
  2. यदि व्यक्ति या प्राप्तिकर्ता सूचना को सुन न पाए तो वह सूचना का सही अर्थ लगाने में असफल हो जाते हैं।
  3. अंतर्वैयक्तिक सम्प्रेषण के लिए वाचन जितना जरूरी है, उतना ही आवश्यक श्रवण भी है।
  4. श्रवण में एक प्रकार की ध्यान सक्रियता होती है, जो उसे स्रोतों का सही अर्थ लगाने में कारगर साबित होती है।
  5. श्रवण के द्वारा व्यक्ति किसी अन्य सेवार्थी या व्यक्ति के मनोभावों को स्पष्ट रूप से समझ सकता है तथा उसकी एक कुशल अभिव्यक्ति भी कर सकता है।
  6. श्रवण के माध्यम से व्यक्ति में धैर्य के साथ-साथ विश्लेषण की क्षमता का भी उदय होता है।

प्रश्न 10.
मानव सम्प्रेषण के घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मानव सम्प्रेषण के निम्नलिखित घटक हैं –

  1. स्रोत से सम्प्रेषण प्रक्रिया आरम्भ होती है। स्रोत से ही सूचना की उत्पत्ति भी होती है।
  2. सूचना सम्प्रेषण में सूचना लिखित या मौखिक शब्दों के द्वारा दी जाती है।
  3. कूट संकेतन में दी गयी सूचनाओं को समझने योग्य संकेत में बदला जाता है। यह प्रक्रिया सरल व जटिल दोनों ही है।
  4. माध्यम से आशय उन साधनों से होता है जिसके द्वारा सूचनाएँ स्रोत से निकलकर प्राप्तिकर्ता तक पहुँचती है।
  5. प्राप्तिकर्ता से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है, जो सूचना को प्राप्त करता है।
  6. अर्थ परिवर्तन के माध्यम से सूचना में संकेतों के अर्थ की व्याख्या होती है।
  7. पुनर्निवेशन एक तरह की सूचना होती है जो प्राप्तिकर्ता की ओर से स्रोत या संप्रेक्षक को प्राप्त होती है।
  8. आवाज के माध्यम से प्राप्तिकर्ता स्रोत द्वारा सूचनाओं की प्राप्ति करता है।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए कौन-कौन-सी सक्षमताएँ आवश्यक होती हैं?
उत्तर:
एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए निम्नलिखित सक्षमताओं का होना आवश्यक है –

1. व्यक्तित्व सम्बन्धी क्षमताएँ:
एक कुशल मनोवैज्ञानिक होने के लिए व्यक्तित्व उच्च कोटि का होना चाहिए। वह धैर्यवान, विनम्र, स्पष्टवादी हो तो वह एक अच्छी भूमिका का निर्वाह कर सकता है।

2. मनोविज्ञान का ज्ञान:
एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए व्यक्ति को मनोविज्ञान के विषय का पूर्ण ज्ञान भी होना चाहिए, जिससे वह अन्य व्यक्तियों के भावों तथा व्यवहार का अवलोकन कर उचित राय कायम कर सके।

3. कौशल क्षमताओं का होना:
एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए यह आवश्यक है कि उसे सामान्य, विशिष्ट तथा प्रेक्षण कौशल आदि में पारंगत होना चाहिए, जिससे वह रोगी व्यक्ति की समस्या का उचित तरीके से निदान कर सके।

4. कुशल प्रेक्षक:
एक उच्च मनोवैज्ञानिक बनने के लिए व्यक्ति को अपने चारों ओर के वातावरण का ज्ञान होना चाहिए तथा अन्य व्यक्तियों के व्यवहारों का निरीक्षण करना भी ज्ञात होना चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप वह क्रमबद्ध व विश्वसनीय सूचनाएँ एकत्रित कर सके।

5. व्यवहारों का क्रमबद्ध स्पष्टीकरण:
एक व्यक्ति को प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए रोगी व्यक्ति के द्वारा किए जाने वाले व्यवहारों, उसके हाव-भाव, संकेतों तथा प्रतिक्रियाओं को नोट करना चाहिए, जिससे क्रमबद्ध तरीके से व्यवहारों की जाँच की जा सके।

6. एक कुशल परामर्शदाता:
एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए व्यक्ति को कुशल व सामाजिक रूप से कुशल परार्मशदाता भी होना चाहिए, जिससे वह रोगी व्यक्ति के जीवन में होने वाली घटनाओं को समझते हुए, उसे उसका सही मार्गदर्शन करना चाहिए तथा जीवन में आगे विकास करने के लिए समाज में समायोजित करने के लिए नए उपायों का सृजन भी करना चाहिए।

प्रश्न 2.
सम्प्रेषण को परिभाषित कीजिए। सम्प्रेषण प्रक्रिया का कौन-सा घटक सबसे महत्वपूर्ण है?
उत्तर:
सम्प्रेक्षण एक आवश्यक मानवीय प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्तियों के मध्य अर्थ, ज्ञान, विचार तथा भाव आदि का परस्पर आदान-प्रदान, भाषा और अन्य प्रतीकों के माध्यम से एक स्थान और समय से दूसरे स्थान व समय में होता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण घटक ‘स्रोत’ है, क्योंकि ‘स्रोत’ ही सम्प्रेषण प्रक्रिया की आधारशिला है। स्रोत से ही सूचना की उत्पत्ति होती है तथा सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत स्रोत का आदान-प्रदान भाषा के माध्यम से होता है, जो इसे काफी प्रभावशाली बनाता है।

सम्प्रेषण की प्रक्रिया में ‘भाषा’ एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। ‘भाषा’ के उपयोग की योग्यता, मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करती है। ‘भाषा’ सम्प्रेषण का एक महत्वपूर्ण वाहक है, जिससे हम स्वयं से तथा दूसरे लोगों के साथ बातचीत करते हैं। ‘भाषा’ अर्थ का संचार करती है। भाषा की सहायता से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, रुचियों तथा विभिन्न सूचनाओं आदि को दूसरों तक सम्प्रेषित करते हैं तथा उन्हें समझ पाते हैं।

एक व्यक्ति भाषा को अपनी सांस्कृतिक दाय के एक अंश के रूप में सीखता है। साथ ही साथ भाषा उसके सामाजिक अन्तक्रिया के लिए महत्वपूर्ण यंत्र बनती जाती है, क्योंकि बिना भाषा के ज्ञान के एक बालक को सामाजिक अन्तःक्रिया की विभिन्न विधियों व तरीकों का अधिगम कराना असम्भव तो नहीं लेकिन मुश्किल अवश्य है। भाषायी यंत्र का प्रयोग करके वह अधिक सामाजिक हो जाता है, वह सामाजिक अन्त:क्रिया सम्बन्धी और अधिक कौशल सीख लेता है, जिसमें भाषा का अधिक कुशलता से प्रयोग भी सम्मिलित होता है।

सामाजिक अन्त:क्रिया अथवा सामाजिक सन्दर्भ के अन्तर्गत भाषा ही भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक सम्बन्धों को स्थापित करती है। सामाजिक संज्ञान तथा सामाजिक अधिगम (Social Learning) आदि के सन्दर्भ में भाषा मूल उपकरण (Basic Tool) के रूप में सक्रिय रहती है।

अत: उपयुक्त वर्णन से यह अच्छी तरह स्पष्ट हो गया कि सामाजिक अन्तःक्रिया तथा भाषा के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है, जिसकी अभिव्यक्ति विविध रूपों में होती है। वास्तविकता तो यह है कि बालक को जैविक प्राणी से सामाजिक मानव के रूप में विकसित करने में भाषा की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 3.
मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल का अर्थ-मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल से अभिप्राय ऐसे कौशल से है, जिसके अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक व्यक्तियों या समूहों की समस्याओं को समझते हुए, उसका निराकरण करते हैं। इस कौशल के माध्यम से मनोवैज्ञानिक व्यक्तियों की मानसिक स्थिति को समझने में निपुण होते हैं।

उदाहरण के लिए-यदि किसी व्यक्ति को शराब पीने की बुरी आदत लग गयी है और वह इस आदत से मुक्ति माना चाहता है, किन्तु प्रयासों के बावजूद वह सफल नहीं हो पाया है, तो इस स्थिति में मनोवैज्ञानिक उस व्यक्ति की सम्पूर्ण दैनिक कार्यविधि, उसके काम करने के तरीके तथा अन्य दबावों का अध्ययन करेगा। इसी के आधार पर मनोवैज्ञानिक उस व्यक्ति के व्यवहार का परीक्षण अपने स्वविवेक या कौशल से करेगा तथा उसे अनेक प्रकार की युक्तियाँ बताएगा, जिससे उस व्यक्ति की यह आदत छूट जाएगी। इस आधार पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण मनोविज्ञान के ज्ञान के आधार पर आधारित होते हैं।

मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल की विशेषताएँ:

  1. मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल व्यक्ति के मापन एवं मूल्यांकन से सम्बन्धित होता है।
  2. मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने में अभिरुचि रखते हैं।
  3. मनोवैज्ञानिक, इस कौशल का प्रयोग करते हुए अपने परीक्षणों में वस्तुनिष्ठता, वैज्ञानिक उन्मुखता तथा मानकीकृत व्याख्या के प्रति काफी सजग रहते हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल का प्रयोग एक मनोवैज्ञानिक द्वारा मुख्यतः सामान्य बुद्धि, व्यक्तित्व, विभेदक अभिक्षमताओं, शैक्षिक उपलब्धियों, व्यावसायिक उपयुक्तता या अभिरुचियों, अभिवृत्तियों के विश्लेषण एवं निर्धारण में किया जाता है।
  5. इसके अलावा मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग आयु, लिंग, शिक्षा तथा संस्कृति आदि अनेक कारकों के आधार पर उत्पन्न अन्तरों के अध्ययन में किया जाता है।

प्रश्न 4.
प्रेक्षण किसे कहते हैं और यह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
मोजर के अनुसार-“निरीक्षण विधि स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक अन्वेषण की शास्त्रीय विधि है।” अर्थात् निरीक्षण में कान तथा वाणी की अपेक्षा नेत्रों का प्रयोग होता है। सामान्यत: निरीक्षण विधि चार प्रकार की होती है –

1. अनियंत्रित निरीक्षण विधि:
इस विधि में निरीक्षणकर्ता अध्ययन या निरीक्षण किए जाने वाले व्यक्तियों के व्यवहारों या किसी घटना व गोचर का निरीक्षण एक स्वाभाविक परिस्थिति में करता है। इस तरह का निरीक्षण बिना किसी पूर्व निश्चित योजना के होता है, इसलिए इसे अव्यवस्थित या क्रमविहीन निरीक्षण विधि भी कहते हैं। इसमें जब किसी समस्या या घटना का अध्ययन, प्रयोगशाला की परिस्थिति में नहीं किया जा सकता है, तब यही विधि व्यवहार में लायी जाती है।

2. नियंत्रित निरीक्षण विधि:
वह अध्ययन विधि जिसमें निरीक्षणकर्ता तथा अध्ययन विषय या घटना या व्यवहार दोनों पर नियंत्रण स्थापित करके अध्ययन किया जाता है, नियंत्रण निरीक्षण विधि कहा जाता है। इसके अन्तर्गत निर्धारित योजना के अनुसार नियंत्रित परिस्थिति में व्यवहार का निरीक्षण किया जाता है।

3. सहभागी निरीक्षण विधि:
इसमें अध्ययनकर्ता को जिस समूह का अध्ययन करना होता है वह उस समूह या समुदाय में जाकर उसका एक सदस्य बन जाता है तथा वहाँ के लोगों के साथ घुल-मिलकर उनके व उनके समूह के विषय में वास्तविक तथ्य एकत्रित करता है।

4. असहभागी निरीक्षण विधि:
इस विधि में अध्ययनकर्ता अध्ययन किए जाने वाले समूह या समुदाय में उसके सदस्य के रूप में वास्तविक तौर पर शामिल हुए बिना ही केवल आवश्यकतानुसार समय-समय पर जाकर निरीक्षणकर्ता के रूप में समान एवं तटस्थ भाव से निरीक्षण करता है तथा आवश्यक तथ्यों का संग्रह करता है।

5. अर्द्ध-सहभागी निरीक्षण विधि:
इस विधि में अध्ययनकर्ता समूह में कभी-कभी ही भाग लेता है तथा बाकी गतिविधियों में शामिल नहीं होता है, इस कारण इस विधि को अर्द्ध-सहभागी निरीक्षण विधि कहा जाता है।

प्रश्न 5.
सामान्य कौशल की आवश्यकता को समझाइए। सामान्य कौशल कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सामान्य कौशल की आवश्यकता:

  1. एक मनोवैज्ञानिक को कुशल व निपुण मनोवैज्ञानिक बनने के लिए सामान्य कौशल का होना जरूरी है।
  2. एक मनोवैज्ञानिक सामान्य कौशल के आधार पर व्यक्तियों के प्रतिदिन की क्रियाओं का अध्ययन करता है।
  3. एक मनोवैज्ञानिक सामान्य कौशल के आधार पर शोध में सैद्धान्तिक नियमों की खोज करता है।
  4. एक मनोवैज्ञानिक सामान्य कौशल के आधार पर व्यक्तियों की समस्या का समाधान करता है तथा उसे सुलझाने के लिए उपायों का निरूपण भी करता है।

सामान्य कौशल निम्नलिखित हैं –

  1. संज्ञानात्मक कौशल-समस्या समाधान की योग्यता तथा बौद्धिक जिज्ञासा इस कौशल के अन्तर्गत आते हैं।
  2. भावात्मक कौशल-सांवेगिक नियंत्रण एवं सन्तुलन, अन्तर्वैयक्तिक द्वन्द्व के प्रति सहनशीलता।
  3. व्यक्तित्व-दूसरों के प्रति सहायता की इच्छा, ईमानदारी तथा नवीन विचारों के प्रति खुलापन इसमें शामिल है।
  4. वैयक्तिक कौशल-वैयक्तिक संगठन, स्वास्थ्य, समय प्रबन्धन तथा उचित परिधान या वेश।
  5. अभिव्यक्तिपरक कौशल-अपने विचारों और भावनाओं को लिखित रूप में संप्रेषित करने की योग्यता।
  6. अंतर्वैयक्तिक कौशल-सुनने की क्षमता, दूसरों की संस्कृति के प्रति सम्मान, अनुभवों, मूल्यों, लक्ष्यों एवं इच्छाओं को समझने व ग्रहण करने का खुलापन एवं सकारात्मक या हितैषी भावना इस कौशल के अन्तर्गत शामिल है।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नियंत्रित निरीक्षण को कहते हैं –
(अ) व्यवस्थित निरीक्षण
(ब) अव्यवस्थित
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) व्यवस्थित निरीक्षण

प्रश्न 2.
निरीक्षण व्यवहार के निरीक्षण के विश्लेषण के बाद किया जाता है –
(अ) नीति निर्माण
(ब) व्यवहार की व्याख्या
(स) प्रस्तुत करना
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) व्यवहार की व्याख्या

प्रश्न 3.
प्रेक्षण में सर्वाधिक प्रयोग होता है –
(अ) वाणी
(ब) कानों
(स) आँख
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) आँख

प्रश्न 4.
निरीक्षण में कौन-से तत्त्व शामिल हैं?
(अ) क्रमबद्धता
(ब) वस्तुनिष्ठता
(स) प्रमाणिकता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
समाज मनोविज्ञान की कौन-सी प्रकृति नहीं है?
(अ) समाजीकरण
(ब) वस्तुनिष्ठता
(स) प्रमाणिकता
(द) पद्धति
उत्तर:
(अ) समाजीकरण

प्रश्न 6.
एक अप्रयोगात्मक वैज्ञानिक शोध है –
(अ) साक्षात्कार
(ब) सर्वेक्षण शोध
(स) प्रश्नावली
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) सर्वेक्षण शोध

प्रश्न 7.
नियंत्रित परिस्थितियों में किया गया अध्ययन कहलाता है –
(अ) व्यवस्थित शोध
(ब) अव्यवस्थित शोध
(स) प्रयोग
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) प्रयोग

प्रश्न 8.
अध्ययनकर्ता समूह के सदस्य के रूप में कार्य करता है –
(अ) असहभागी प्रेक्षण
(ब) व्यवस्थित प्रेक्षण
(स) अव्यवस्थित प्रेक्षण
(द) सहभागी निरीक्षण विधि
उत्तर:
(द) सहभागी निरीक्षण विधि

प्रश्न 9.
चरों के योजनानुसार परिचालित करना, विशेषता है –
(अ) प्रयोगात्मक विधि
(ब) निरीक्षण विधि
(स) साक्षात्कार विधि
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) प्रयोगात्मक विधि

प्रश्न 10.
योजना निरीक्षण विधि के अध्ययन के पहले आवश्यक है –
(अ) सिद्धान्त बनाना
(ब) निरीक्षण विधि के पद
(स) व्यवहार की व्याख्या
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) निरीक्षण विधि के पद

प्रश्न 11.
व्यवहार को नोट करने के लिए उपयोग किया जाता है –
(अ) शोध
(ब) विश्वास
(स) उपकरण
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) उपकरण

प्रश्न 12.
अन्तर्वैयक्तिक सम्प्रेषण सम्बन्धित होता है –
(अ) एक व्यक्ति से
(ब) दो व्यक्ति से
(स) दो से अधिक व्यक्ति
(द) केवल
उत्तर:
(द) केवल

प्रश्न 13.
‘वाचन’ अंग है –
(अ) सम्प्रेषण
(ब) प्रश्नावली
(स) प्रेक्षण
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) सम्प्रेषण

प्रश्न 14.
स्रोत से सूचना की उत्पत्ति को कहा जाता है –
(अ) सूचना
(ब) सम्प्रेक्षक
(स) माध्यम
(द) पुनर्निवेशन
उत्तर:
(ब) सम्प्रेक्षक

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निरीक्षण विधि में अध्ययनकर्ता को किन-किन बातों का ध्यान रखना पड़ता ?
उत्तर:
अध्ययनकर्ता को निरीक्षण कार्य में निम्न बातों का ध्यान रखना होता है –

  1. टेलीस्कोप का प्रयोग दूर से निरीक्षण करने में किया जाना ठीक रहता है।
  2. किसी एक प्रकार के व्यवहार या व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण की जाँच कार्य को दोहराया जाना चाहिए, जिससे निरीक्षण के परिणामों में अधिक विश्वसनीयता लायी जा सके।
  3. एक निरीक्षणकर्ता के स्थान पर अगर अनेक लोग किसी एक बात का या उसी व्यवहार का विभिन्न परिस्थितियों में अवलोकन करें तो इससे निरीक्षण कार्य में अधिक वैधता, वस्तुनिष्ठता तथा विश्वास उत्पन्न किया जा सकता है।
  4. व्यवहार जब घटित हो रहा है तभी उसे बारीकी से निरीक्षण कर सम्बन्धित बातों को नोट या रिकॉर्ड करते जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
अनियंत्रित निरीक्षण विधि के दोष बताइए।
उत्तर:
अनियंत्रित निरीक्षण विधि के दोष निम्नलिखित हैं –

  1. इस प्रकार का निरीक्षण बिना किसी पूर्व निश्चित योजना के होता है।
  2. इस विधि में निरीक्षणकर्ता को अध्ययन परिस्थिति या स्वतंत्र चरों पर नियंत्रण प्राप्त नहीं होता है।
  3. इस विधि में प्राप्त परिणाम तथा निष्कर्ष दोषपूर्ण तथा वस्तुनिष्ठता रहित होते हैं।
  4. इस अनियंत्रित निरीक्षण पर निरीक्षणकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपातों के प्रभावों से प्रभावित होने की सम्भावना अधिक होती है।
  5. यह विधि प्राय: व्यवस्थित नहीं होती है, इसलिए इस विधि को अव्यवस्थित या क्रमविहीन निरीक्षण विधि भी कहा जाता है।
  6. इसमें नियंत्रण का अभाव भी पाया जाता है।

प्रश्न 3.
सहभागी निरीक्षण विधि के गुण-दोष की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सहभागी निरीक्षण विधि के गुण:

  1. इस विधि से अध्ययनकर्ता को समूह या समुदाय से सम्बन्धित प्राथमिक तथ्यों को एकत्रित करने में सहायता मिलती है।
  2. इस विधि द्वारा सूक्ष्म अध्ययन करना सरल होता है।

सहभागी निरीक्षण विधि के दोष:

  1. इस विधि में समूह या समुदाय के सदस्यों के विचार आदि अध्ययन परिणामों को प्रभावित करते हैं।
  2. इस विधि से केवल छोटे समूहों का ही अध्ययन सम्भव है, अर्थात् बड़े समूह के अध्ययन के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है।

प्रश्न 4.
शरीर भाषा पर समुचित टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
‘शरीर भाषा’ से अभिप्राय उस भाषा से है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने शारीरिक अंगों की सहायता से अन्य व्यक्तियों में सूचनाओं का संचार करता है। सम्प्रेषण में व्यक्ति सिर्फ भाषा का ही प्रयोग नहीं करता है बल्कि उसके अलावा वह अन्य अशाब्दिक व्यवहारों का भी प्रयोग करता है। जैसे-शारीरिक मुद्रा, स्वर का उतार-चढ़ाव आदि का प्रयोग किया जाता है। अशाब्दिक संचार का यह तत्व सम्प्रेक्षक द्वारा दिखाए गए शारीरिक स्थिति, शारीरिक मुद्रा, हाव-भाव, शारीरिक गति एवं विभिन्न संकेतों से भी होता है। शरीर भाषा का अध्ययन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी एक अवाचिक संकेत अपने आप में सम्पूर्ण अर्थ नहीं रखता है।

प्रश्न 5.
परामर्श के लक्ष्य को बताइए।
उत्तर:
परामर्श के लक्ष्य:
1. अवलम्ब:
इसके अन्तर्गत व्यक्ति के लिए उसके संज्ञान तथा संवेग आदि में चुनौतियों का सामना करने के सामर्थ्यो का समर्थन तथा प्रोत्साहन आवश्यक होता है।

2. मनोशैक्षिक निर्देशन:
इसका लक्ष्य व्यक्ति को सूचनाएँ देना, प्रशिक्षण देना, दक्षताओं का विकास करना आदि में व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास में अहम् भूमिका निभाना है।

3. निर्णय रचना:
परामर्श का प्रमुख लक्ष्य परामर्शी को उपयुक्त निर्णय के विकास हेतु सहायता प्रदान करना होता है।

4. समायोजन:
इसमें व्यक्ति के समायोजन के लिए व्यक्ति की क्षमताओं व विशेषताओं का विकास किया जाता है, जिससे वह भविष्य में होने वाली समस्याओं का सामना कर सके।

प्रश्न 6.
परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परामर्श की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. यह एक व्यवहारगत प्रक्रिया है, जिसमें कम-से-कम दो व्यक्ति परामर्श लेने वाला तथा परामर्श देने वाला शामिल होते हैं।
  2. परामर्श देने तथा लेने के लिए लगातार प्रत्यक्ष सम्पर्क में आना अति आवश्यक है।
  3. परामर्शदाता तथा परामर्श लेने वाले व्यक्तियों के मध्य आपस में मधुर-संबंध होने अत्यन्त आवश्यक हैं, जिससे उनके मध्य एक-दूसरे के प्रति निष्ठा भाव बना रहे।
  4. परामर्श का मुख्य प्रयोजन व्यक्ति को अपने आप अपने समायोजित होने के प्रयत्नों में लगाना है।
  5. परामर्शदाता, व्यक्ति को वैचारिक सहायता तथा भावनात्मक सहायता देता है, जिससे वह व्यक्ति स्वयं ही अपनी समस्याओं को हल कर सके।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 10 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निरीक्षण विधि को कैसे काम में लाया जाए? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निरीक्षण विधि को प्रयोग में लाने के लिए सामान्यतया निम्न सोपानों का अनुसरण करना उपयुक्त रहता है –

1. योजना बनाना तथा आवश्यक तैयारी करना:
निरीक्षण किस प्रकार करना है, किसके द्वारा करना है, किन साधनों एवं उपकरणों की मदद लेनी है तथा किस प्रकार की परिस्थितियाँ रखनी हैं, आदि बातों पर पहले से ही समुचित विचार कर सभी आवश्यक तैयारियाँ कर लेनी चाहिए। निरीक्षण के समय क्या-क्या कठिनाइयाँ आ सकती हैं और उनके लिए क्या विकल्प ढूँढ़े जा सकते हैं, इस बात का भी पूर्व अनुमान लगाकर उचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए।

2. निरीक्षण कार्य का विश्लेषण और व्याख्या:
निरीक्षण के दौरान जो कुछ भी निरीक्षण के आधार पर नोट या रिकॉर्ड किया जाता है उन तथ्यों का फिर भली-भाँति विश्लेषण कर व्यक्ति विशेष के व्यवहार सम्बन्धी बातों और व्यक्तिगत सम्बन्धी गुणों के बारे में उचित निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न किया जाता है।

3. व्यवहार का निरीक्षण करना:
इस सोपान के अन्तर्गत निरीक्षणकर्ता द्वारा व्यवहार का क्रियात्मक रूप से निरीक्षण किया जाता है। निरीक्षण करने के तरीकों तथा उसके विभिन्न रूपों आदि का प्रयोग इस कार्य हेतु किया जाता है।

4. सामान्यीकरण करना:
मनोवैज्ञानिक अध्ययन की एक विशेषता यह भी है कि इसमें अध्ययन के परिणामों के आधार पर कुछ सर्वमान्य नियम बनाने का प्रयत्न किया जाता है, जिसके आधार पर यह अनुमान लगाने का प्रयत्न किया जाता है कि किसी विशेष आयु, परिवेश तथा क्षमता से युक्त व्यक्ति विशेष द्वारा किसी एक परिस्थिति में किस प्रकार के व्यवहार की आशा की जा सकती है अथवा व्यक्ति के व्यवहार की किसी एक दशा के मूल में क्या-क्या सम्भावित कारण हो सकते हैं, आदि।

अतः स्पष्ट है कि निरीक्षण कार्य के दौरान उपर्युक्त सोपानों का क्रमबद्ध व व्यवस्थित रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
असहभागी अवलोकन/प्रेक्षण के गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
असहभागी अवलोकन के गुण:

1. सही आलेखन:
इसमें अवलोकनकर्ता सहभागी न होने के कारण समस्त सूचनाओं का आलेखन आसानी से घटना के निरीक्षण के साथ-साथ कर लेता है जिससे तथ्यों में स्मृति दोष के कारण त्रुटि नहीं आ पाती।

2. स्वाभाविक अध्ययन:
इस विधि के द्वारा समूह की क्रियाओं का अध्ययन उनके स्वाभाविक रूप में किया जा सकता है, क्योंकि इस अवलोकन में अनुसंधानकर्ता समूह से दूर रहता है। अतः समूह के सदस्य बिना संकोच के अपने व्यवहार को प्रस्तुत करते हैं और अवलोकनकर्ता दूर से उनके व्यवहार को नोट करता रहता है। इससे अध्ययन में कृत्रिमता नहीं आ पाती और अध्ययन स्वाभाविक होता है।

3. वैषयिक अध्ययन:
असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता अध्ययन किए जाने वाले समूह के साथ, उनकी क्रियाओं में भाग नहीं लेता। अत: उसका दृष्टिकोण तटस्थ एवं वैज्ञानिक बना रहता है, जिससे पक्षपात त अध्ययन की सम्भावना रहती है।

4. अपरिचित का गुण:
असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता के समूह के साथ अपरिचित होने के कारण समूह की प्रत्येक घटना उसका ध्यान आकर्षित करती है तथा वह उनका सूक्ष्म अवलोकन करता है। इससे विस्तृत अध्ययन की सम्भावना रहती है। इस विशेषता को ‘अपरिचित का गुण’ कहा जाता है।

असहभागी अवलोकन के दोष:

1. कृत्रिम अध्ययन:
असहभागी अवलोकन के द्वारा समूह के व्यवहार का अध्ययन स्वाभाविक रूप में नहीं हो पाता, क्योंकि अवलोकनकर्ता से दूर रहकर अवलोकन करने से भी समूह के सदस्य सचेत हो सकते हैं तथा एक परिचित की उपस्थिति में उनके व्यवहार में कृत्रिमता तथा बनावटीपन आ सकता है। इससे समूह के सामान्य व्यवहार का अध्ययन नहीं हो सकता है।

2. घनिष्ठ सम्बन्धों का अभाव:
इस विधि में समूह के सदस्यों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध के अभाव होने के कारण, उनसे सहयोग प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है।

3. पक्षपातपूर्ण अध्ययन:
इस विधि द्वारा पक्षपातपूर्ण अध्ययन की सम्भावना रहती है, क्योंकि अनुसंधानकर्ता समूह की क्रियाओं या व्यवहार का अवलोकन अपने दृष्टिकोण से करता है, न कि व्यवहार में भाग लेने वालों के दृष्टिकोण से। इससे वह कई घटनाओं तथा व्यवहारों का वास्तविक महत्व समझने में भी असमर्थ रहता है। वह बहुत-सी क्रियाओं तथा व्यवहारों का अर्थ अपने दृष्टिकोण से लगाता है, इससे अध्ययन में पक्षपात के पनपने की सम्भावना बनी रहती है।

4. अन्य सीमाएँ:

  • इस विधि में अवलोकनकर्ता केवल उन्हीं घटनाओं का अवलोकन कर सकता है, जो उसके सम्मुख घटती है।
  • अवलोकनकर्ता क्रम में सभी क्रियाओं का अवलोकन नहीं कर पाता।।
  • अवलोकनकर्ता बिना समूह सदस्यों से पूछे और बिना समूह की क्रियाओं में भाग लेने से, केवल थोड़ी-सी क्रियाओं के अवलोकन मात्र से समूह के व्यवहार को ठीक से नहीं समझा जा सकता।

प्रश्न 3.
नियंत्रित एवं अनियंत्रित अवलोकन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियंत्रित तथा अनियंत्रित अवलोकन में निम्नलिखित अंतर है –

1. अध्ययन के आधार पर:
नियंत्रित अवलोकन के द्वारा गहन तथा सूक्ष्म अध्ययन सम्भव नहीं है, जबकि अनियंत्रित अवलोकन के द्वारा सम्भव है।

2. परिणाम के आधार पर:
नियंत्रित अवलोकन से प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि उन पर अवलोकनकर्ता के निजी गुण, विचार तथा मनोवृत्तियों आदि का प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि अनियंत्रित अवलोकन से प्राप्त परिणाम कम विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि उन पर अवलोकनकर्ता के निजी गुणों के प्रभाव पड़ने की सम्भावना रहती है।

3. योजना के आधार पर:
नियंत्रित अवलोकन में योजना पहले से तैयार कर ली जाती है तथा उसी के अनुसार अवलोकन कार्य को सम्पादित किया जाता है, परन्तु अनियंत्रित अवलोकन में ऐसा नहीं होता है।

4. उपकरणों के आधार पर:
नियंत्रित अवलोकन के तथ्यों के एकत्रीकरण के लिए कुछ विशिष्ट अवलोकन यंत्रों/उपकरणों (अनुसूची, मानचित्र तथा क्षेत्रीय नोट्स आदि) का प्रयोग किया जाता है, जबकि अनियंत्रित अवलोकन में इस तरह के विशेष यंत्रों का प्रयोग नहीं होता है।

5. पक्षों के आधार पर:
नियंत्रित अवलोकन से घटना के निश्चित पक्षों का अध्ययन सम्भव होता है, जबकि अनियंत्रित अवलोकन में घटना के निश्चित पक्षों का अध्ययन सम्भव नहीं होता है।

6. निर्देशों के आधार पर:
नियंत्रित अवलोकन में अवलोकनकर्ता अपना व्यवहार कुछ निश्चित निर्देशों के अनुसार करता है, जबकि अनियंत्रित अवलोकन में ऐसे व्यवहार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।

7. घटकों के आधार पर:
नियंत्रित अवलोकन में अध्ययन की जाने वाली अवस्थाओं व घटकों पर नियंत्रण किया जाता है, जबकि अनियंत्रित अवलोकन में ऐसा नहीं होता है।

प्रश्न 4.
साक्षात्कार की विशेषताओं तथा उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
साक्षात्कार की विशेषताएँ:

  1. साक्षात्कार विधि में दो पक्षों अर्थात् अनुसंधानकर्ता और अध्ययन इकाई के बीच भेंट या मुलाकात होती है।
  2. इस विधि में साक्षात्कारकर्ता व अध्ययन इकाई में परस्पर प्रत्यक्ष या आमने-सामने के सम्बन्ध होते हैं। दोनों पक्षों में समस्या या घटना के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष रूप से लाप होता है।
  3. साक्षात्कारकर्ता व अध्ययन इकाई में भेंट या वार्तालाप का एक विशिष्ट उद्देश्य होता है। वास्तव में साक्षात्कारकर्ता किसी घटना या समस्या के सम्बन्ध में इकाई के आन्तरिक विचारों, उद्वेगों और भावनाओं को ज्ञात करने के लिए उससे भेंट तथा वार्तालाप करता है।
  4. साक्षात्कार विधि द्वारा, साक्षात्कारकर्ता अध्ययन इकाई से भेंट तथा वार्तालाप द्वारा उसकी भावनाएँ और विचारों को ज्ञात करके घटना या समस्या के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष रूप से या प्राथमिक सूचनाएँ संकलित करता है।

साक्षात्कार के उद्देश्य:

  1. साक्षात्कार के माध्यम से अध्ययनकर्ता व्यक्तियों की भावनाओं, विचारों और मनोवृत्तियों आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करता है, जिसके आधार पर उसे नई उपकल्पनाओं के निर्माण में सहायता मिलती है।
  2. साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता सूचनाएँ सूचनादाताओं से प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने का सम्बन्ध स्थापित कर वार्तालाप के माध्यम से प्राप्त करता है, जिससे उसे सूचनादाताओं के विचार, भावना व अभिरुचि आदि अज्ञात तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है।
  3. कभी-कभी साक्षात्कार का आयोजन नवीन जानकारी न प्राप्त करना होकर अध्ययनकर्ता के विशिष्ट विचारों या निष्कर्षों की वैज्ञानिकता जानने की चेष्टा करना होता है।
  4. साक्षात्कार के माध्यम से साक्षात्कारकर्ता व्यक्ति से ऐसी सूचनाएँ प्राप्त करता है, जिनको कोई विशिष्ट व्यक्ति ही जानता है तथा उन्हें अन्य किसी स्थान द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5.
साक्षात्कार विधि के गुण/लाभ/महत्व एवं दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
साक्षात्कार विधि के गुण:

1. साक्षात्कार के माध्यम से साक्षात्कारकर्ता सूचनादाता के हाव-भाव, मुख-मुद्रा आदि पर नजर रखता है। वह अनेक मनोवैज्ञानिक प्रश्नों द्वारा सूचनादाता के हृदय की बात जानने की चेष्टा करता है, जिससे उसकी मनोदशा का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

2. बहुत-सी बातें और घटनाएँ, प्रत्यक्ष अवलोकन के योग्य नहीं होती है। इनका पता केवल व्यक्ति विशेष (सूचनादाता) को ही होता है। साक्षात्कार के दौरान, उन्मुक्त वार्तालाप की स्थिति में, सूचनादाता भावावेश में सब कुछ अर्थात् गुप्त तथ्यों को भी प्रस्तुत कर देते हैं। इस प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए सामाजिक अनुसंधान में साक्षात्कार ही उपयुक्त विधि है।

3. साक्षात्कार की विधि द्वारा साक्षात्कारदाता द्वारा अपने जीवन की बीती हुई घटनाओं और पिछले अनुभवों का विवरण प्रस्तुत किया जा सकता है। अर्थात् उसकी भूतकालीन घटनाओं का वास्तविक चित्र के आधार पर साक्षात्कारकर्ता वैज्ञानिक निष्कर्ष निकाल सकता है।

4. इस विधि में साक्षात्कारकर्ता तथा सूचनादाता इन दोनों पक्षों में प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहता है। सूचनादाता से बीच-बीच में आवश्यकतानुसार सहायक प्रश्न करके, कुछ उत्साहपूर्वक वाक्यों का प्रयोग करके, अपने व्यक्तित्व द्वारा सूचनादाता को प्रभावित करके, उसका विश्वास जीत के, उससे सम्पूर्ण तथ्य प्राप्त कर सकता है और साथ ही अपने किसी संदेह को भी प्रत्यक्ष रूप से दूर कर सकता है।

5. साक्षात्कार की विधि में आरम्भ से अन्त तक अनेक सावधानियाँ बरत कर, वैध तथा प्रामाणिक निष्कर्ष प्राप्त किए जा सकते हैं। उन्मुक्त वार्तालाप, प्रत्यक्ष सम्पर्क तथा मनोवैज्ञानिक अध्ययन आदि ऐसी परिस्थितियाँ हैं, जिनके कारण साक्षात्कारकर्ता वैध तथा सत्य निष्कर्ष निकाल सकता है।

साक्षात्कार विधि के दोष:

1. साक्षात्कार विधि में पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है; क्योंकि साक्षात्कारदाताओं से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके, सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं।

2. वर्णनात्मक साक्षात्कार भावों तथा उद्वेगों से पर्याप्त रूप से पर्याप्त रूप से प्रभावित करते रहते हैं, अत: उनका सांख्यिकीय विवेचन नहीं हो सकता है।

3. साक्षात्कार विधि द्वारा प्राप्त सामग्री पक्षपातपूर्ण होती है। अत: इसकी सत्यता के विषय में संदेह रहता है। स्वतंत्र साक्षात्कार में, सूचनादाता मनमाने ढंग से अतिश्योक्तिपूर्ण विवरण प्रस्तुत करता है। अत: पक्षपातपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है, जिससे अवैध निष्कर्ष निकलते हैं।

4. कुशल साक्षात्कारकर्ताओं का होना एक समस्या है। साक्षात्कारकर्ता को मानवीय व्यवहार का मनोवैज्ञानिक ज्ञान होना चाहिए, उसमें वाक्पटुता, सामयिक सूझ-बूझ तथा बुद्धिकौशल आदि गुण होने चाहिए। अधिकांश क्षेत्रीय कार्यकर्ता, जिनकी नियुक्ति साक्षात्कारकर्ताओं के रूप में की जाती है, इन गुणों से मुक्त नहीं होते। परिणामस्वरूप वे सफलतापूर्वक साक्षात्कार सम्पन्न नहीं कर पाते। अत: उनके द्वारा संकलित सामग्री भी वैध नहीं होती है।

5. साक्षात्कार की विधि में अधिक समय के साथ-साथ इसके आयोजन में अधिक धन भी खर्च होता है जिससे यह विधि अधिक खर्चीली विधि बन जाती है।

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