Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 दबाव, मानवीय क्षमताएँ और खुशहाली
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सकारात्मक दबाव को कहते हैं –
(अ) स्ट्रेस
(ब) यूस्ट्रेस
(स) डिस्ट्रेस
(द) ब और स दोनों
उत्तर:
(ब) यूस्ट्रेस
प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा दबाव के कारण होने वाला सांवेगिक प्रभाव है?
(अ) जी घबराना
(ब) बुखार होना
(स) मन में डर होना
(द) धूम्रपान करना
उत्तर:
(स) मन में डर होना
प्रश्न 3.
दबाव का प्रभाव व्यक्ति के किस पक्ष पर होता है?
(अ) संज्ञानात्मक
(ब) संवेगात्मक
(स) व्यवहारात्मक
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 4.
दबाव का सामना करने की कौन-सी तकनीकें लैजारस एवं फॉकमेन द्वारा दी गई?
(अ) समस्या केन्द्रित
(ब) संवेग-केन्द्रित
(स) बायोफीडबैक
(द) अ और ब दोनों
उत्तर:
(द) अ और ब दोनों
प्रश्न 5.
दबाव का सामना करने में कौन-सी तकनीक उपयोगी है?
(अ) व्यायाम
(ब) ध्यान
(स) विश्रांति
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दबाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
दबाव को अंग्रेजी में ‘स्ट्रेस’ कहा जाता है। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘स्ट्रिक्टस’ से हुई है, जिसका अर्थ है – ‘तंग या संकीर्ण होना।’
दबाव विषम परिस्थितियों में व्यक्ति में होने वाले शारीरिक, सांवेगिक, संज्ञानात्मक एवं व्यवहारगत परिवर्तन है जो व्यक्ति के इन समस्त पक्षों को प्रभावित करता है। दबाव में होते हुए व्यक्ति में नियंत्रण की क्षमता क्षीण भी हो सकती है अथवा उसमें वृद्धि भी हो सकती है। अनेक बार दबाव होते हुए व्यक्ति गलत निर्णय ले लेते हैं जिसके परिणाम ज्यादातर नकारात्मक ही होते हैं।
प्रश्न 2.
दबावकारक क्या होते हैं?
उत्तर:
दबावकारक वे घटनाएँ हैं जो हमारे शरीर में दबाव उत्पन्न करती है। दबाव द्वारा उत्पन्न शारीरिक समस्याओं में अत्यधिक थकान, नींद की कमी, जी घबराना तथा तनावग्रस्तता जैसी अनुक्रियाएँ हो सकती हैं। इसके अन्तर्गत व्यक्तियों के व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तनों में हड़बड़ाना, मद्यपान तथा मादक पदार्थों का सेवन आदि शामिल है। दबावकारकों के कारण व्यक्ति में संवेगात्मक परिवर्तन भी दृष्टिगोचर होते हैं। जैसे इसमें चिन्ता, अवसाद तथा अधिक गुस्से को भी शामिल किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
बर्नआउट किसे कहते हैं?
उत्तर:
1. प्रतिरक्षण तंत्र शरीर के भीतर एवं बाहर से प्रवेश करने वाले जीवाणुओं तथा वायरस आदि से हमारे शरीर की रक्षा करता है। प्रतिरक्षण तंत्र में रक्त की श्वेत कणिकाएँ या श्वेताणु होते हैं, जो इन बाहरी तत्वों या प्रतिजनों की पहचान कर उन्हें नष्ट करता है।
2. दबाव के कारण शरीर के रक्षा तंत्र की कोशिकाएँ नष्ट हो जाती है जिससे शरीर को नुकसान पहुँचता है, व्यक्ति के इन जीवाणुओं, विषाणुओं से संक्रमित होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. अत: दबाव के निरन्तर बने रहने से व्यक्ति में उत्पन्न मनोवैज्ञानिक एवं संवेगात्मक समस्याओं की स्थिति को बर्नआउट (Burnout) कहा जाता है।
प्रश्न 4.
यूस्ट्रेस व डिस्ट्रेस में अन्तर समझाइये।
उत्तर:
यूस्ट्रेस की अवधारणा:
- यूस्ट्रेस एक सकारात्मक दबाव है।
- यूस्ट्रेस की प्रवृत्ति व्यक्ति में सही क्रियाओं का संचार करती है।
- यूस्ट्रेस व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान करती है।
डिस्ट्रेस की अवधारणा:
- डिस्ट्रेस एक नकारात्मक दबाव है।
- यूस्ट्रेस की प्रवृत्ति व्यक्ति में गलत या अमान्य क्रियाओं का संचार करती है।
- डिस्ट्रेस की धारणा व्यक्ति को ऊर्जाहीन बना देती है।
प्रश्न 5.
दबाव व्यक्ति के किन तीन पक्षों को प्रभावित करता है?
उत्तर:
दबाव व्यक्ति के तीन महत्वपूर्ण पक्षों को प्रभावित करता है, जो निम्न प्रकार से है –
1. संज्ञानात्मक पक्ष:
इस पक्ष के अन्तर्गत दबाव व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित करता है। इसके अन्तर्गत चिन्तन, स्मृति, निर्णय क्षमता तथा समस्या समाधान जैसी योग्यताओं को शामिल किया जाता है।
2. संवेगात्मक पक्ष:
यह पक्ष व्यक्ति के व्यवहार में भावात्मक पक्ष या भावनाओं से सम्बन्धित होता है। इसमें अवसाद की स्थिति, घबराहट तथा उदासी जैसी संवेगात्मक भावनाओं को शामिल किया जाता है।
3. व्यवहारात्मक पक्ष:
इस पक्ष के अन्तर्गत व्यक्ति को स्पष्ट रूप से दिखने वाली अनुक्रियाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हुआ दिखायी देता है। इसमें मद्यपान व धूम्रपान जैसी समस्याओं को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 6.
समस्या-केन्द्रित तकनीक से दबाव का सामना कैसे किया जाता है?
उत्तर:
समस्या-केन्द्रित तकनीक से दबाव का सामना निम्न आधारों पर किया जा सकता है –
- इस तकनीक के अन्तर्गत व्यक्ति दबावग्रस्त समस्या का विश्लेषण करता है।
- इस तकनीक के माध्यम से समस्या के विभिन्न पहलुओं को समझने व जानने का प्रयास करता है।
- समस्या को दूर करने के लिए अनेक तथ्यों का संकलन व प्रयास करता है।
- समस्या को दूर करने के लिए उपलब्ध विकल्पों पर पूर्ण रूप से अपना ध्यान केन्द्रित करता है।
- समस्या को दूर करने के लिए लक्ष्य प्राप्ति के लिए वह निरन्तर प्रयासरत रहता है।
प्रश्न 7.
बायोफीडबेक किसे कहते हैं?
उत्तर:
बायोफीडबेक शब्द में बायो का आशय-जैविक क्रियाओं से है। जैविक क्रियाओं के द्वारा ही व्यक्ति को उसके आन्तरिक दैहिक स्थितियों के बारे में पता चलता है। इसी तकनीक को बायोफीडबेक तकनीक कहा जाता है। इस प्रक्रिया में दबाव से शरीर में हुए विभिन्न शरीर क्रियात्मक एवं दैहिक परिवर्तनों जैसे- हृदय गति, श्वसन दर आदि पर व्यक्ति विभिन्न उपकरणों के माध्यम से ध्यान देता है।
इसके साथ ही वह स्व-नियंत्रण द्वारा दबाव को कम महसूस करने का अभ्यास करते हुए इन शारीरिक परिवर्तनों के परिवर्तन को जानने का प्रयास करता है।
प्रश्न 8.
दबाव का शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
दबाव का शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र पर अनेक रूप से प्रभाव पड़ता है, जो निम्न प्रकार से है –
- अत्यधिक दबाव के कारण व्यक्ति को अनेक शारीरिक समस्याओं जैसे पेट की खराबी, शरीर में दर्द तथा बुखार आदि पीड़ा झेलनी पड़ती है।
- अधिक दबाव के कारण व्यक्ति निरन्तर रूप से तनावग्रस्त व बीमार रहने लगता है।
- इससे दीर्घकालिक थकावट, ऊर्जा की कमी तथा उच्च रक्तचाप आदि समस्याएँ महसूस होती है।
प्रश्न 9.
दबाव के विभिन्न प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर:
दबाव के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं –
- यूस्ट्रेस-यह दबाव का सकारात्मक प्रकार है। जो व्यक्ति को ऊर्जा व शक्ति प्रदान करता है।
- डिस्ट्रेस-यह दबाव का नकारात्मक प्रकार है, यह व्यक्ति को ऊर्जाहीन व कमजोर करता है।
- भौतिक एवं पर्यावरणीय दबाव-इस प्रकार का दबाव भीड़, गर्मी, सर्दी आदि से उत्पन्न होता है। इस दबाव के कारण व्यक्ति शारीरिक दबाव महसूस करता है।
- मनोवैज्ञानिक दबाव-यह दबाव व्यक्ति के बाहरी कारकों द्वारा जनित या उत्पन्न नहीं होकर व्यक्ति के आन्तरिक कारकों के द्वारा होता है।
- सामाजिक दबाव-यह दबाव अन्य लोगों के साथ अन्तक्रिया के कारण उत्पन्न होता है। इस दबाव का व्यक्तित्व से गहन सम्बन्ध है।
प्रश्न 10.
सामाजिक दबाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक दबाव, दबाव का ही एक महत्वपूर्ण प्रकार है जो अन्य लोगों के साथ अन्तक्रिया के कारण उत्पन्न होता है। सामाजिक घटनाएँ जैसे परिवार के सदस्य की बीमारी या मृत्यु का होना, लोगों के साथ तनावपूर्ण सम्बन्ध आदि के कारण सामाजिक दबाव उत्पन्न होता है। सामाजिक दबाव का व्यक्तित्व के साथ भी गहन सम्बन्ध होता है। जैसे-पार्टी में जाना तथा लोगों से बातचीत करना कुछ परिस्थितियों में दबावकारक हो सकता है। यही परिस्थिति बहिर्मुखी व्यक्ति के लिए दबावपूर्ण नहीं होती है क्योंकि वह व्यक्ति मिलनसार होता है।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दबाव किसे कहते हैं ? दबाव के प्रकारों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
दबाव शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘स्ट्रिक्टस’ से हुई है, जिसका अर्थ होता है-तंग या संकुचित होना। दबाव एक बहुआयामी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के मूल्यांकन के बाद उसके प्रति की गयी एक तरह की प्रतिक्रिया है।
दबाव को मुख्य रूप से दो प्रकारों ‘यूस्ट्रेस तथा डिस्ट्रेस’ में बाँटा जाता है, परन्तु इसके अलावा दबाव के कारणों के आधार पर दबाव के अन्य महत्वपूर्ण प्रकार निम्नलिखित हैं –
1. भौतिक एवं पर्यावरणीय दबाव:
पर्यावरणीय दबाव से आशय पर्यावरणीय स्रोत से उत्पन्न होने वाले तनाव से है। मनुष्य को अनेक पर्यावरणीय दबाव जैसे-प्रदूषण, तूफान, बाढ़ या अकाल आदि से उत्पन्न दबावों का सामना करना पड़ता है। यह दबाव अत्यन्त तीव्रता वाले होते हैं। ये अचानक घटित होते हैं और व्यापक व दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाले होते हैं। उदाहरण-जैसे तूफान व चक्रवात से उत्पन्न प्रतिबल। इनकी अनुक्रिया सार्वभौमिक होती है। ये एक ही समय में कई लोगों को प्रभावित कर सकते हैं।
2. मनोवैज्ञानिक दबाव:
यह दबाव का वह प्रकार है, जिसकी उत्पत्ति में व्यक्ति की अपनी प्रतिकूल जैविक दशाओं, कुंठाओं, द्वंद्वों एवं व्यक्तित्व संरचना आदि मनोवैज्ञानिकों कारकों का हाथ होता है। ये दबाव वैयक्तिक होते हैं। उदाहरण-जब व्यक्ति अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाता है, तो उसके अंदर कुंठा की भावना प्रवेश करती है। यह कुंठा ही व्यक्ति के मन में प्रतिबल उत्पन्न करती है।
3. सामाजिक दबाव:
इस दबाव की उत्पत्ति का स्रोत सामाजिक दशाएँ व परिवर्तन होते हैं। सामाजिक दबाव के अन्तर्गत दैनिक जीवन में घटित होने वाली उलझनों से उत्पन्न तनाव को रखा जाता है तथा बीमारी, विवाह-विच्छेद, तनावपूर्ण सम्बन्ध एवं प्रतिकूल पड़ोसी आदि से उत्पन्न दबाव को सामाजिक दबाव के अन्तर्गत रखा जाता है।
उदाहरण:
इसमें दैनिक जीवन की उलझनों; जैसे-घर-परिवार की देखभाल, खाना खिलाना-बनाना आदि से यद्यपि उग्र स्तर का दबाव तो उत्पन्न नहीं होता है। परन्तु यह व्यक्ति के मन में हल्का तनाव, चिड़चिड़ापन व खीज पैदा करती है। यह दबाव उच्च दबावयुक्त घटनाओं व कारकों की तुलना में अधिक विनाशकारी होता है।
प्रश्न 2.
दबाव के शारीरिक प्रभावों को समझाइए।
उत्तर:
दबाव का शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. हृदयवाहिका विकृतियाँ:
दबाव के वृद्धि होने से व्यक्ति के शरीर में हृदय व रक्तनलिकाओं से सम्बन्धित समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे हृदय गति में वृद्धि तथा रक्त धमनी में विकृति भी उत्पन्न होती है।
2. सीने में दर्द:
इस प्रकार का दबाव शरीर में मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। इसके कारण व्यक्ति के शरीर में एकाएक व असहनीय दर्द रह-रहकर होता है। यह पीड़ा किसी न किसी तीव्र सांवेगिक आघात या सांवेगिक संघर्ष की सांकेतिक अभिव्यक्ति सीने की तीव्र पीड़ा के रूप में कर रहा होता है।
3. हाइपरटेंशन अथवा उच्च रक्तचाप:
अनेक मनोवैज्ञानिकों जैसे डेविस व वोल्फ ने अपने शोधों में पाया है कि संवेगात्मक तनावों के कारण उत्पन्न चिन्ता, डर, घृणा व कुंठा आदि संवेगों का यदि दमन कर दिया जाता है तो ये भाव शारीरिक विकार हृदय की दोषपूर्ण कार्यवाही के रूप में प्रकट होकर रक्तचाप में वृद्धि जैसी समस्याओं को जन्म देती है।
4. श्वसन विकृतियाँ:
संवेगों का स्वरूप व्यक्ति की श्वसन की गति पर भी प्रत्यक्षतः प्रभाव डालता है। जैसे-अत्यधिक उत्तेजक एवं निर्णायक संवेगात्मक परिस्थिति में व्यक्ति को अपनी श्वांस गति के एकाध सेकेण्ड के लिए रुकने का आभास होता है। इसी तरह किसी चिन्ताग्रस्त या तनावपूर्ण संवेगात्मक परिस्थिति में व्यक्ति को अपने फेफड़ों पर काफी दबाव की अनुभूति तथा उसे दम घुटने जैसा अहसास होता है।
5. श्वसनी दमा
दबाव के कारण श्वसनी दमा में मांसपेशियों में ऐंठन आ जाती है। इस विकृति के मुख्य लक्षण हैं-साँस लेने में कठिनाई, हाँफना तथा अत्यधिक घुटन का अनुभव आदि होता है।
6. हृदय धमनी विकृति:
दबाव के कारण व्यक्ति के हृदय को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों में रक्त का थक्का जम जाता है, जिससे हृदय को आवश्यक रक्त की मात्रा नहीं प्राप्त हो पाती है तथा उसके कुछ ऊतक (Tissues) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। आगे चलकर हृदय का दौरा पड़ने की भी आशंका हो जाती है।
अत: उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि दबाव के कारण व्यक्ति को अनेक शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 3.
मानवीय क्षमताओं पर दबाव के प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
मानवीय क्षमताओं पर दबाव के प्रभाव को मुख्यतः तीन पक्षों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –
1. संज्ञानात्मक पक्ष पर दबाव के प्रभाव:
- इसमें वे क्षमताएँ शामिल होती हैं जो मुख्य रूप से मस्तिष्क के द्वारा संचालित होती है।
- इस पक्ष के अन्तर्गत दबाव का प्रभाव व्यक्ति के चिन्तन, स्मृति, तर्कणा व निर्णय क्षमता पर दृष्टिगोचर होता है।
- इस पक्ष के अन्तर्गत व्यक्ति पर अधिक दबाव पड़ने के परिणामस्वरूप उसकी चिन्तन योग्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- इसके अलावा अधिक दबाव होने की स्थिति में व्यक्ति की जीवन के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति में वृद्धि होती है।
2. संवेगात्मक पक्ष पर दबाव के प्रभाव:
- इसमें वे क्षमताएँ होती हैं, जो व्यक्ति के व्यवहार के भावात्मक पक्ष या भावनाओं से सम्बन्धित होती है।
- इस पक्ष के अन्तर्गत अधिक दबाव के कारण व्यक्ति में अनेक संवेगात्मक परिवर्तन होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनमें घबराहट व उदासी की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
- इस पक्ष के अन्तर्गत व्यक्ति के लिए डर, दुश्चिन्ता तथा अवसाद की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
- दबाव से व्यक्ति के मन में निराशा व असफलता के भाव भी उत्पन्न होते हैं।
3. व्यवहारात्मक पक्ष पर दबाव के कारण:
- इसमें व्यक्ति के व्यवहार और उसकी अनुक्रियाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- इसमें दबाव अधिक होने पर नींद में कमी, भूख कम लगना तथा मद्यपान सेवन आदि की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है।
- इससे व्यक्ति का पारिवारिक व सामाजिक विघटन होता है। इसके अलावा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को भी गम्भीर रूप से क्षति पहुँचती है।
प्रश्न 4.
दबाव का सामना करने की विभिन्न तकनीकों को समझाइए।
उत्तर:
दबाव का सामना करने की विभिन्न तकनीकें हैं, जो निम्नलिखित हैं –
1. उचित क्रिया द्वारा दबाव का सामना:
इस क्रिया के अन्तर्गत दबावपूर्ण स्थिति की पूरी तरह जानकारी प्राप्त करके, उससे बचाव के लिए विकल्पों या साधनों को जुटाया जाता है। इससे समस्या के समाधान में सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए यदि किसी दफ्तर में कर्मचारी अपने काम को लेकर दबाव में है तो, उस कार्य को कम करने के लिए वह जल्दी दफ्तर आ सकता है, साथ ही किसी अन्य कर्मचारी की सहायता को प्राप्त कर सकता है, जिससे उस पर काम का दबाव इस उचित क्रिया के द्वारा कम हो सकता है।
2. संवेगों पर नियंत्रण द्वारा:
क्रोध, भय, प्रेम तथा दया आदि भावनाएँ संवेग पर आधारित होती हैं। इस तकनीक के अन्तर्गत व्यक्ति समस्या के निदान के लिए अपने संवेगों पर नियंत्रण रखने का प्रयास करता है, जिससे स्थिति सबल हो सके। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति विषम परिस्थितियों में भी अपने आपको सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रखता है तथा वह जोश में रहते हुए अपने कार्यों को पूर्ण करता है। वह नकारात्मक क्रियाओं जैसे भय व क्रोध आदि को अपने से दूर रखता है तथा अपने लक्ष्य की प्राप्ति में आने वाली समस्त बाधाओं को दूर करते हुए निरन्तर प्रयासरत रहता है।
3. परिहार द्वारा दबाव का सामना:
इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं को कठिन स्थिति में गम्भीर नहीं रखता है, बल्कि उसे नकार देता है जिससे मन ऐसी स्थिति को अपने पर हावी ही नहीं होने देता है।
उदाहरण के लिए:
1. ‘Laughter therapy’ इसका एक जीवन्त उदाहरण है, इसके अन्तर्गत व्यक्ति विषय स्थिति में जोर-जोर से हँस कर समस्या को दूर करने का प्रयास करता है।
2. योग प्रणाली के अन्तर्गत भी इस तथ्य को स्पष्ट किया गया है कि यदि व्यक्ति सुबह सैर करने के दौरान ताली बजाते हुए ठहाके लगाकर हँसता है, तो उसकी समस्या तो दूर होगी ही साथ ही इससे उसका स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा।
अत: उपरोक्त विधियों के द्वारा व्यक्ति दबाव का सामना कर सकता है।
प्रश्न 5.
स्वास्थ्य एवं खुशहाली में सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “स्वास्थ्य का अभिप्रायः केवल किसी प्रकार की बीमारी या रोग की अनुपस्थिति नहीं है। अपितु स्वास्थ्य एक ऐसा समग्र शब्द है जिसमें व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक तीनों पक्षों को शामिल किया गया है।”
इस परिभाषा के अन्तर्गत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने खुशहाली को एक महत्वपूर्ण कारक माना है। खुशहाली का स्वास्थ्य के साथ एक गहरा सम्बन्ध है। खुशहाली एवं स्वास्थ्य के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध को निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं –
- यदि देश में लोगों का स्वास्थ्य उत्तम या ठीक अवस्था में रहेगा तो, देश में विकास की प्रवृत्ति में वृद्धि होगी।
- खुशहाली में व्यक्ति के उत्तम स्वास्थ्य के साथ खुश रहने की प्रवृत्ति भी होनी चाहिए।
- देश में लोगों को यदि स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं तो इससे देश की आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होगी।
- समाज में लोगों के स्वस्थ रहने से, कार्यकारी लोगों से समाज प्रगति की ओर अग्रसर होता है।
- देश में निम्न जन्म-दर को ठीक करने के लिए लोगों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नीतियों से परिचय कराना चाहिए, जिससे समाज में खुशहाली आएगी।
- यदि समाज में व्यक्ति के अस्तित्व की प्रवृत्ति संतोषजनक होगी, तभी खुशहाली भी आएगी।
- व्यक्ति के मन में नकारात्मक का भाव हटाने के लिए उसे रोजगार के अवसर प्रदान किये जाएँगे जिससे देश में खुशहाली आएगी।
- इसके साथ ही यदि व्यक्ति किसी भी स्थिति के साथ समायोजन की आदत डाल ले तो भी समाज में खुशहाली आएगी।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
दबाव शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई है?
(अ) लैटिन
(ब) ग्रीक
(स) स्पेनिश
(द) पुर्तगाली
उत्तर:
(अ) लैटिन
प्रश्न 2.
‘स्ट्रिक्टस’ का अर्थ क्या है?
(अ) वृहद्
(ब) संकीर्ण
(स) वृद्धि
(द) कोई भी नहीं।
उत्तर:
(ब) संकीर्ण
प्रश्न 3.
दबाव कारक क्या है?
(अ) माध्यम
(ब) साधन
(स) घटनाएँ
(द) कोई भी नहीं।
उत्तर:
(स) घटनाएँ
प्रश्न 4.
दबाव को मुख्यत: कितने प्रकारों में बाँटा गया है?
(अ) चार
(ब) तीन
(स) दो
(द) एक
उत्तर:
(स) दो
प्रश्न 5.
डिस्ट्रेस किसे कहते हैं?
(अ) अप्रत्यक्ष दबाव
(ब) सकारात्मक दबाव
(स) अनियंत्रित दबाव
(द) नकारात्मक दबाव
उत्तर:
(द) नकारात्मक दबाव
प्रश्न 6.
वायु प्रदूषण किस दबाव से सम्बन्धित है?
(अ) सामाजिक दबाव
(ब) मनोवैज्ञानिक दबाव
(स) आर्थिक बाव
(द) भौतिक दबाव
उत्तर:
प्रश्न 7.
इसमें मनोवैज्ञानिक विद्वान कौन है?
(अ) फ्रायड
(ब) मार्क्स
(स) कॉम्टे
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) फ्रायड
प्रश्न 8.
सामाजिक दबाव का गहन सम्बन्ध किससे है?
(अ) मन
(ब) व्यक्तित्व
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) व्यक्तित्व
प्रश्न 9.
शरीर की बीमारियों से रक्षा कौन करता है?
(अ) रक्त
(ब) कोशिकाएँ
(स) प्रतिजन
(द) प्रतिरक्षण तन्त्र
उत्तर:
(द) प्रतिरक्षण तन्त्र
प्रश्न 10.
‘मधुमेह’ किससे सम्बन्धित है?
(अ) मधुमक्खी
(ब) मक्खी
(स) अन्य जीव से
(द) शुगर से
उत्तर:
(द) शुगर से
प्रश्न 11.
‘एडिनलिन’ क्या है?
(अ) कोशिका
(ब) हॉर्मोन
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) हॉर्मोन
प्रश्न 12.
मानवीय क्षमताओं का अध्ययन कितने पक्षों के अन्तर्गत किया जाता है?
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तर:
(स) तीन
प्रश्न 13.
संज्ञानात्मक पक्ष किससे सम्बन्धित है?
(अ) हृदय
(ब) मस्तिष्क
(स) धमनियाँ
(द) कोशिका
उत्तर:
(ब) मस्तिष्क
प्रश्न 14.
संवेगात्मक पक्ष किससे सम्बन्धित है?
(अ) भावनाओं
(ब) क्रियाओं
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) भावनाओं
प्रश्न 15.
समस्या केन्द्रित सामना विधि के प्रवर्तक कौन हैं?
(अ) डेविस
(ब) मुरे
(स) लैजारस व फॉकमैन
(द) मोरिस
उत्तर:
(स) लैजारस व फॉकमैन
प्रश्न 16.
‘बायो’ का क्या अर्थ है?
(अ) भौतिक क्रियाएँ
(ब) जैविक क्रियाएँ
(स) दैहिक क्रियाएँ
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) जैविक क्रियाएँ
प्रश्न 17.
व्यायाम से रक्त में वसा की मात्रा में कैसा परिवर्तन होता है?
(अ) घटती है
(ब) बढ़ती है
(स) कोई असर नहीं
(द) (अ) तथा (ब) दोनों
उत्तर:
(अ) घटती है
प्रश्न 18.
WHO का पूरा नाम क्या है?
(अ) World Human Organization
(ब) World Humanity Organization
(स) World Health Organization
(द) कोई भी नहीं/None of the above
उत्तर:
(स) World Health Organization
प्रश्न 19.
खुशहाली का सम्बन्ध किस प्रवृत्ति से है?
(अ) आर्थिक प्रवृत्ति
(ब) सामाजिक प्रवृत्ति
(स) सांस्कृतिक प्रवृत्ति
(द) संतोषजनक प्रवृत्ति
उत्तर:
(द) संतोषजनक प्रवृत्ति
प्रश्न 20.
‘यूस्ट्रेस’ का सम्बन्ध किससे नहीं है?
(अ) सकारात्मकता
(ब) ऊर्जावान
(स) क्रियाशील
(द) नकारात्मक
उत्तर:
(द) नकारात्मक
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दबाव की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
दबाव की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- दबाव व्यक्ति में होने वाले सांवेगिक, संज्ञानात्मक व व्यवहारात्मक परिवर्तन है।
- दबाव की अवधि कम भी हो सकती है तथा अधिक भी हो सकती है।
- दबाव में शारीरिक व मानसिक दोनों तरह के बदलाव सम्मिलित होते हैं।
- दबाव जीवन की सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही घटनाओं से उत्पन्न होता है।
प्रश्न 2.
सकारात्मक दबाव की विशेषताएँ/लाभ बताइए।
उत्तर:
सकारात्मक दबाव की विशेषताएँ:
- सकारात्मक दबाव से व्यक्ति ऊर्जावान व क्रियाशील रहता है।
- सकारात्मक दबाव में व्यक्ति चिन्तामुक्त व तनावमुक्त रहता है।
- इस दबाव में व्यक्ति समस्याओं को आसानी से सुलझा लेता है।
- इस दबाव के अन्तर्गत व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति भी एकाग्रता के माध्यम से कर लेता है।
प्रश्न 3.
कुंठा के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुण्ठा को दबाव का आंतरिक स्रोत माना जाता है। किसी लक्ष्य निर्देशित क्रिया में अवरोध या रुकावट को कुंठा कहते हैं। जब व्यक्ति की आवश्यकताओं और उसकी पूर्ति के साधन अर्थात् लक्ष्य के बीच किसी कारण अवरोध आ जाता है या जब कोई उपर्युक्त लक्ष्य की अनुपस्थिति हो जाती है। इस कारण वह अपेक्षित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाता है, तो उसमें कुंठा उत्पन्न हो जाती है। ऐसे कई कारक हैं जो व्यक्ति को कुंठित करते हैं; जैसे-पूर्वाग्रह, कार्य असंतोष, दैहिक विकलांगता तथा अत्यधिक दोष भाव आदि इसके अन्तर्गत आते थे।
इन सभी कारकों से कुंठाओं की उत्पत्ति होती है। जब व्यक्ति इनसे सही तरीके से निपटने में असफल हो जाता है तब कुंठा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है फिर इनसे ही दबाव का जन्म होता है।
प्रश्न 4.
द्वन्द्व की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
द्वन्द्व विक्षोभ या तनाव की वह स्थिति है जो विचारों, इच्छाओं, प्रेरणाओं, आवश्यकताओं अथवा उद्देश्यों के परस्पर विरोध के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ब्राउन ने द्वन्द्व को परिभाषित करते हुए कहा है कि “मनोविश्लेषकों के अनुसार मानसिक संघर्ष या द्वन्द्व का अर्थ व्यक्ति की उस परिस्थिति से है जिसमें दो ऐसी इच्छाएँ जो एक-दूसरे की इतनी विरोधी होती हैं कि उनमें से किसी एक की पूर्ति होने पर दूसरी इच्छा की पूर्ति सम्भव नहीं होती है।”
परिभाषा से स्पष्ट है कि द्वन्द्व की स्थिति व्यक्ति के लिए एक अति गम्भीर दुविधा की स्थिति होती है। इसमें उसके लिए प्रायः कोई निर्णय लेना अति कठोर व मुश्किल तथा पीड़ादायक हो जाता है। तब स्वभावतः ऐसी स्थिति में वह प्रतिबल/दबाव की अनुभूति करने लगता है।
प्रश्न 5.
ध्यान को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
‘ध्यान’ को अंग्रेजी में Attention’ कहते हैं। ध्यान या अवधान से अभिप्राय-व्यक्ति विशेष की मानसिक योग्यताओं से संचालित तथा संवेगात्मक एवं क्रियात्मक चेष्टाओं द्वारा प्रेरित एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा उसे अपने परिवेश में उपस्थित विभिन्न उद्दीपनों में से किसी एक का चयन तथा वांछित उद्देश्य की प्राप्ति हेतु उस पर अपनी चेतना को अच्छी तरह केन्द्रित करने में सहायता मिलती है। हर व्यक्ति की ध्यान की क्षमता अलग-अलग होती है और व्यक्ति विशेष में इसकी मात्रा समय और परिस्थिति अनुसार घटती-बढ़ती रहती है।
प्रश्न 6.
व्यायाम के लाभ बताइए।
उत्तर:
व्यायाम के गुण/लाभ:
- व्यायाम से व्यक्ति स्वस्थ व चुस्त रहता है।
- व्यायाम करने से व्यक्ति की हृदय की क्षमता में सुधार होता है।
- व्यायाम से फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
- व्यायाम से रक्त में वसा की मात्रा घटती जाती है।
- व्यायाम से शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है।
- व्यायाम से लोगों का मानसिक दबाव कम होता है।
प्रश्न 7.
संवेगों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
संवेगों की विशेषताएँ:
- संवेगात्मक अनुभूतियों के साथ कोई-न-कोई मूल प्रवृत्ति अथवा मूलभूत आवश्यकता जुड़ी रहती है।
- प्रत्येक जीवित प्राणी को संवेगों की अनुभूति होती है।
- व्यक्ति को अपनी वृद्धि व विकास की हर अवस्था में इनकी अनुभूति होती है।
- एक संवेग अपनी तरह के कई संवेगों को जन्म दे सकता है।
- संवेगों में स्थानान्तरण का गुण भी पाया जाता है।
प्रश्न 8.
समायोजन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समायोजन से तात्पर्य व्यक्ति विशेष की उस मनोदशा, स्थिति या की जाने वाली उस व्यवहार प्रक्रिया से है, जिसके माध्यम से वह यह अनुभव करता है कि उसकी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हो रही है और उसका व्यवहार समाज और संस्कृति की अपेक्षाओं के अनुकूल ही चल रहा है। दूसरे शब्दों में, जीव विज्ञान की भाषा में जिसे अनुकूलन कहा जाता है, मनोविज्ञान में इसी को समायोजन की संज्ञा दे दी जाती है।
जीवधारियों को जीने के लिए जिस रूप में अनुकूलन की जरूरत होती है वैसे ही व्यक्तियों को अपने से और अपने से वातावरण से तालमेल रखते हुए अपनी आवश्यकताओं की भली-भाँति संतुष्टि करते रहने के लिए समायोजन प्रक्रिया की आवश्यकता रहती है।
प्रश्न 9.
खराब मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
खराब मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण:
- संवेगात्मक रूप से अस्थिर होना व जल्दी से ही परेशान हो जाना।
- सहनशीलता व धैर्य का कमी।
- महत्वाकांक्षा का उचित स्तर स्थापित करने में असफलता।
- निर्णय लेने की योग्यता का अभाव।
- जीवन तथा लोगों के बारे में गलत दृष्टिकोण।
- सदैव बहुत चिन्तित तथा तनावग्रस्त रहना।
- आत्मविश्वास तथा इच्छाशक्ति का अभाव।
प्रश्न 10.
उच्च रक्तचाप (High blood pressure) के लक्षण बताइए।
उत्तर:
उच्च रक्तचाप के लक्षण:
- व्यक्ति को एकाएक पसीना आना।
- हृदय गति का तीव्र गति से चलना।
- माँसपेशियों में ऐंठन का होना।
- चक्कर का आना व नसों में दर्द का होना।
- श्वास प्रक्रिया में दिक्कत का होना।
प्रश्न 11.
संवेग केन्द्रित सामना के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
- संवेग केन्द्रित सामना दबाव को नियंत्रित करने की एक तकनीक है।
- इस तकनीक में समस्या या परिस्थिति में परिवर्तन लाने का प्रयास कम होता है।
- इसमें व्यक्ति उस परिस्थिति के कारण स्वयं को संवेगात्मक रूप से प्रभावित नहीं होने देता।
- यह व्यक्ति में नकारात्मक संवेगों को स्वयं को अधिक प्रभावित नहीं होने देता है।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 3 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दबाव के स्रोत या कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अनेक कारक या स्रोत व्यक्ति में दबाव की स्थिति उत्पन्न करते हैं। इस सम्बन्ध में अनेक अध्ययन मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये हैं, जिनसे यह पता चलता है कि निम्नलिखित कारण या स्रोतों की दबाव की स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका होती है –
1. जीवन की नवीन घटनाएँ:
दबाव की उत्पत्ति में जीवन में होने वाली विभिन्न घटनाओं व परिवर्तनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये परिवर्तन व घटनाएँ सुखद भी होती हैं तथा दुःखद भी। ये दोनों ही घटनाएँ व्यक्ति से पुर्नसमायोजन की माँग करती है। जब व्यक्ति के अनुकूलन परिस्थिति होती है तो वह आसानी से समायोजन कर लेता है किन्तु प्रतिकूल परिस्थिति होने पर समायोजन में असमर्थतता महसूस होती है पारिवारिक घटनाएँ व परिवर्तन जैसे अलगाव, विवाह कार्य में; जैसे अवकाश ग्रहण करना व अधिकारी से परेशानी साथ ही आर्थिक घटनाएँ जैसे नौकरी छूटना, गिरवी रखना आदि व्यक्ति पर दबाव उत्पन्न करने के महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं।
2. मानसिक आघात से सम्बन्धित घटनाएँ:
जब किसी व्यक्ति को अपने जीवन में अत्यधिक उग्र, विनाशकारी व अस्वाभाविक परिस्थिति जैसे, अपहरण या बंधक होना, बलात्कार का शिकार होना या किसी का खून होते हुए देखना आदि का सामना करना पड़ता है, तो इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यन्त घातक प्रभाव पड़ता है तथा उसमें गंभीर स्तर का दबाव पैदा हो जाता है।
3. दिन-प्रतिदिन की उलझनें:
विभिन्न शोधों में यह पाया गया है कि दैनिक जीवन में घटित होने वाली रोज की घटनाएँ या उलझनें भी दबाव की उत्पत्ति का महत्वपूर्ण स्रोत है। इन घटनाओं या दशाओं का अनुभव दबाव के रूप में केवल उन्हीं के द्वारा किया जाता है, जिसके साथ ये घटित होती है।
4. कार्य सम्बन्धी उलझनें:
इसमें कार्य या व्यवसाय सम्बन्धी असंतोष, नौकरी छूटने की आशंका या सम्भावना, पदोन्नति का अवसर न मिलना, कार्य सहयोगी से उचित तालमेल न होना आदि कारकों को रखा जाता है।
अतः उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न प्रकार के स्रोत, कारण या उद्दीपक परिस्थितियाँ दबाव या तनाव की उत्पत्ति करती है।
प्रश्न 2.
संवेगों के दौरान व्यक्ति में होने वाले आंतरिक शारीरिक परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन:
1. संवेगों के दौरान हृदय की धड़कन (Heart beat) पर असर पड़ता है। अक्सर यह सामान्य से बहुत ज्यादा तेज हो जाती है।
2. व्यक्ति का रक्तचाप (blood pressure) भी बढ़ जाता है तथा शरीर में रक्त प्रवाह (blood circulation) पर भी गहरा असर पड़ता है।
3. शरीर के तापमान में अन्तर आ जाता है। अधिक उत्तेजना की अवस्था में इसे प्रायः सामान्य के नीचे जाते हुए ही देखा गया है।
4. रक्त की रासायनिक संरचना (chemical composition) में भी परिवर्तन आ जाते हैं; जैसे रक्त में एड्रीनिन (Adrenin) की मात्रा का बढ़ जाना, चीनी (sugar) की मात्रा का बढ़ जाना तथा लाल कणों की संख्या तथा अनुपात में परिवर्तन आदि।
5. संवेगों के दौरान हमारे शरीर की पेशियों में खिंचाव या तनाव उत्पन्न हो जाता है। इसके फलस्वरूप कभी-कभी हमारा शारीरिक सन्तुलन भी डगमगा जाता है। पेट, बाहों, टाँगों तथा गर्दन की पेशियों में आने वाले तनाव को कई बार बाहर से भी अच्छी तरह देखा जा सकता है।
6. शरीर की ग्रन्थियों-नलिकायुक्त तथा नलिकाविहीन ग्रन्थियों (Duct and ductless glands) के स्रावों (secretion) में अन्तर आ जाता है। शरीर में बाहर बहने वाले इन स्रावों का; जैसे-पसीना, लार, आँसू, मल-मूत्र आदि का बाहर आते हुए आसानी से निरीक्षण भी किया जा सकता है।
7. संवेगों के फलस्वरूप मस्तिष्क की प्रक्रिया में भी उल्लेखनीय परिवर्तन आ जाते हैं। कई बार संवेगों का बहाव मस्तिष्क को क्रिया शून्य-सा कर अनुचित व्यवहार भी करा बैठता है। यहाँ तक कि संवेदनात्मक अनुभूति तथा प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रियाओं को भी इनसे प्रभावित होते हुए पाया गया है।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि संवेगों के द्वारा व्यक्ति के शरीर में अनेक बदलाव दृष्टिगोचर होते हैं।
प्रश्न 3.
कुंठा उत्पन्न करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कुंठा उत्पन्न करने वाले कारकों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है –
A. बाह्य कारक:
1. भौतिक कारक:
व्यक्ति विशेष के वातावरण में ऐसे बहुत से भौतिक कारक उपस्थित हो सकते हैं जो उसके विकास या जीवनपथ की राह में जरूरत से अधिक रोड़े अटकाने वाले सिद्ध होते हैं। पानी, बिजली तथा अच्छी उपजाऊ भूमि का अभाव एक किसान को निराशा की कगार पर खड़ा कर सकता है।
2. सामाजिक कारक:
इसमें समाज के सदस्यों, माँ-बाप, अभिभावकगण तथा अन्य समुदाय व कार्यस्थलों पर किये जाने वाले व्यवहार के उस प्रभाव को शामिल किया जा सकता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति विशेष के अभिप्रेरित व्यवहार का मार्ग अवरुद्ध हो जाए।
3. आर्थिक कारक से भी व्यक्ति के मन में तनाव व कुंठा उत्पन्न होती है।
B. आन्तरिक कारक:
1. शारीरिक दोष या असामान्यता:
व्यक्ति का बहुत मोटा या पतला होना, चेहरे की कुरूपता, चमड़ी का काला, लुला तथा असामान्य शारीरिक दोष जैसे अंधा, बहरापन से ग्रस्त होना आदि इस प्रकार की असामान्यताएँ किसी भी व्यक्ति में कुंठा की भावना को उत्पन्न कर सकती है।
2. इच्छाओं व उद्देश्यों को लेकर द्वन्द्व:
किसी भी व्यक्ति विशेष को अपनी एक-दूसरे से विरोधी इच्छाओं या उद्देश्यों की पूर्ति को लेकर उत्पन्न मानसिक स्थिति या अन्तः-द्वन्द्व के फलस्वरूप भी कुंठा का शिकार होना पड़ सकता है।
3. महत्वाकांक्षा का स्तर अधिक ऊँचा होना:
कुछ लोग अतिवादी होकर अपनी महत्वाकांक्षा का स्तर इतना अधिक तय कर लेते हैं कि उन्हें निराशा के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगता। इस तरह की स्थिति में व्यक्ति कुंठा का शिकार हो जाते हैं।
प्रश्न 4.
बच्चों में द्वन्द्व क्यों पैदा होते हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बच्चों में द्वन्द्व उत्पन्न होने के कारण:
A. घर का वातावरण:
- बच्चों के लालन-पोषण की कमी।
- माता-पिता के द्वारा बच्चों या अन्य सदस्यों की उपेक्षा करना।
- विरोधी इच्छाओं व अभिलाषाओं के कारण भी द्वन्द्व उत्पन्न होता है।
B. विद्यालय का वातावरण:
- अध्यापकों के द्वारा बालकों के साथ किया जाने वाला उपेक्षापूर्ण व्यवहार।
- विद्यार्थियों को स्व-अनुभूति एवं भावाभिव्यक्ति को मिलने वाले अवसरों की कमी।
- विद्यार्थियों से की जाने वाली अपेक्षाओं में विरोधाभास।
- पाठ्यक्रम के क्रियान्वयन में सिद्धान्त और व्यवहार में दिखायी देने वाला अन्तर।
- विद्यालय में सिखायी जाने वाली तथ्यों की व्यावहारिक जीवन की सच्चाई से दूरी का पाया जाना।
C. सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण:
- युवाओं व प्रौढ़ों को आर्थिक विफलता व विपन्नता का दण्ड भोगना।
- कामकाज की स्थितियों तथा साधनों से असन्तुष्टि से कुंठा व द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न होती है।
- नौकरी व स्वरोजगार के क्षेत्र में झेली जा रही परेशानियाँ।
- मनचाहा रोजगार तथा कार्य व्यापार न कर पाने की कसक।
अत: उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि इस समस्त कारकों से व्यक्ति या बच्चों के मन में अन्तः द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न होती है।
प्रश्न 5.
एक अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
एक अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों का स्पष्टीकरण निम्न प्रकार से है –
- एक स्वस्थ मानसिक स्वास्थ्य का व्यक्ति बदलती हुई परिस्थितियों तथा हालातों के अनुसार अपने आपको बदलने की पूरी योग्यता होती है।
- एक स्वस्थ मानसिक स्थिति वाला व्यक्ति कल्पना व स्वप्नों के संसार की अपेक्षा यथार्थ और वास्तविकता के अधिक निकट होता है।
- वह व्यक्ति जीवन में असफलताओं से वह विचलित नहीं होता और न अपनी त्रुटियों तथा असफलताओं के कारण चिन्तित व दुःखी रहता है।
- वह व्यक्ति जीवन के विषय में उचित दृष्टिकोण रखता है तथा उसके जीवन आदर्श और मूल्य भी उचित होते हैं।
- इस प्रकार के व्यक्ति में सामाजिक दृष्टि से उचित और स्वस्थ रुचियाँ तथा अभिरुचियाँ पायी जाती हैं।
- इस प्रकार के व्यक्ति में अच्छी आदतें और उचित सामाजिक गुण पाये जाते हैं। वह अपने कर्तव्यों को निभाने में पूरी तरह नियमित और समय का पाबन्द होता है।
- इस प्रकार के व्यक्ति अनावश्यक चिन्ताओं, मानसिक द्वन्द्वों, कुंठाओं, भग्नाशाओं तथा मानसिक अस्वस्थता और रोगों से पीड़ित नहीं होता है।
- वह सामाजिक रूप से समायोजित होता है क्योंकि उसमें अपने और दूसरों का साथ निभाने की यथेष्ठ योग्यता होती है।
- इस तरह व्यक्ति जीवन में कार्य, आराम तथा मनोरंजन इन तीनों में पर्याप्त संतुलन पाया जाता है। .
- वह आत्मविश्वासी व आत्मवादी होता है, किसी भी नवीन कार्य को करने में अनावश्यक रूप से चिन्तित और भयभीत नहीं होता है।
प्रश्न 6.
व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन में उत्तम स्वास्थ्य के महत्व को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से दर्शाया जा सकता है –
1. एक अच्छा स्वास्थ्य व्यक्तित्व के उचित एवं सर्वांगीण विकास में सहयक सिद्ध होता है। यह एक ऐसे व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होता है। जो सभी परिस्थितियों में संतुलित एवं संयमित व्यवहार का प्रदर्शन कर सके।
2. मानसिक स्वास्थ्य उचित शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है। बालक की शारीरिक क्षमताओं और उसकी शारीरिक वृद्धि व विकास में उसके अच्छे स्वास्थ्य को काफी सहायता मिलती है। चिन्ता, तनाव व मनोविकार आदि से मुक्त होना अच्छे स्वास्थ्य का परिचायक है।
3. जिन व्यक्तियों का स्वास्थ्य ठीक रहता है उनके संवेगात्मक व्यवहार में परिपक्वता, स्थिरता व एकरूपता पायी जाती है।
4. एक अच्छा स्वास्थ्य सामाजिकता के उचित विकास में पर्याप्त रूप से सहयोगी सिद्ध होता है। सामाजिकता के कारण ही वह उचित सामाजिक समायोजन के मार्ग पर ठीक प्रकार से आगे बढ़ सकता है।
5. एक उत्तम स्वास्थ्य व्यक्ति के नैतिक उत्थान में पर्याप्त सहयोग प्राप्त कर सकता है। बौद्धिक शक्तियों के ठीक ढंग से कार्य करने, भावनाओं व संवेगों पर उचित नियन्त्रण रखने पर ऐसा व्यक्ति स्वतः ही नैतिक मानदण्डों पर खरा उतरता है।
6. एक उत्तम स्वास्थ्य वाला व्यक्ति की सहज एवं सूक्ष्म भावनाओं के उचित विकास में सहयोगी सिद्ध होने के कारण उसकी कलात्मक रुचियों के पोषण और सौन्दर्यात्मक पक्ष को उकारने में सशक्त भूमिका निभायी जा सकता है।
7. इस प्रकार के व्यक्ति ही समाज में सफल नागरिक सिद्ध होते हैं। उनमें अधिकारों के प्रति सजगता व कर्त्तव्यबोध की भावना भी पायी जाती है।
8. इस प्रकार का व्यक्ति योग्यताओं व प्रतिभाओं के विकास में भी सहायक सिद्ध होता है।
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