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RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 5 चिकित्सात्मक उपागम एवं परामर्श

August 19, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 चिकित्सात्मक उपागम एवं परामर्श

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनश्चिकित्सा का उद्देश्य निम्न में से है –
(अ) आन्तरिक संघर्षों एवं तनाव को कम करना
(ब) कुसमायोजित व्यवहार में परिवर्तन
(स) अंत: शक्ति में वृद्धि
(द) सभी
उत्तर:
(द) सभी

प्रश्न 2.
चिकित्सात्मक सम्बन्ध है –
(अ) सेवार्थी-परिवार के बीच का
(ब) चिकित्सक-परिवार के बीच का
(स) सेवार्थी-समाज के बीच का
(द) सेवार्थी-मनश्चिकित्सक के बीच का
उत्तर:
(द) सेवार्थी-मनश्चिकित्सक के बीच का

प्रश्न 3.
मनोगत्यात्मक चिकित्सा के प्रतिपादक हैं –
(अ) कार्ल रोजर्स
(ब) वाटसन
(स) फ्रायड
(द) ओल्प।
उत्तर:
(स) फ्रायड

प्रश्न 4.
मनश्चिकित्सा की सबसे प्राचीन विधि है –
(अ) व्यवहार चिकित्सा
(ब) मनोगत्यात्मक चिकित्सा
(स) संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा
(द) मानवतावादी-अस्तित्वपरक चिकित्सा
उत्तर:
(ब) मनोगत्यात्मक चिकित्सा

प्रश्न 5.
व्यवहार चिकित्सा के मुख्य समर्थक हैं –
(अ) फ्रायड
(ब) ओल्प
(स) युंग
(द) रोजर्स
उत्तर:
(ब) ओल्प

प्रश्न 6.
अलबर्ट एलिस ने किस चिकित्सा विधि का प्रतिपादन किया था?
(अ) व्यवहार चिकित्सा
(ब) रैसनल-इमोटिव चिकित्सा
(स) मॉडेलिंग
(द) विरुचि चिकित्सा
उत्तर:
(ब) रैसनल-इमोटिव चिकित्सा

प्रश्न 7.
एफ पर्ल्स का सम्बन्ध किस चिकित्सा विधि से है?
(अ) गेस्टाल्ट चिकित्सा
(ब) व्यवहार चिकित्सा
(स) क्लायट केन्द्रित चिकित्सा
(द) लोगो चिकित्सा
उत्तर:
(अ) गेस्टाल्ट चिकित्सा

प्रश्न 8.
स्वप्नों के अध्ययन के आधार पर मानसिक विकृति की पहचान किस विधि में होती है?
(अ) व्यवहार चिकित्सा
(ब) मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा
(स) व्यक्ति केन्द्रित चिकित्सा
(द) संज्ञानात्मक चिकित्सा
उत्तर:
(ब) मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा

प्रश्न 9.
गेस्टाल्ट का अर्थ है –
(अ) आधा
(ब) अर्थ
(स) कम
(द) समग्र
उत्तर:
(द) समग्र

प्रश्न 10.
वैकल्पिक चिकित्सा का प्रकार नहीं है –
(अ) शेपिंग
(ब) एक्यूपंचर
(स) योग
(द) ध्यान
उत्तर:
(अ) शेपिंग

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनश्चिकित्सा का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
चिकित्सा का शाब्दिक अर्थ है-रोगों का उपचार करना एवं मनश्चिकित्सा का अर्थ है-मानसिक रोगों का उपचार करना।

‘Rathus and Nevid’ के अनुसार:
“मनश्चिकित्सा उपचार की वह विधि है, जिसमें एक चिकित्सक तथा एक रोगी के बीच क्रमबद्ध पारस्परिक क्रिया संचालित होती है, जिसके द्वारा मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की सहायता से रोगी के विचारों, भावों या व्यवहारों को प्रभावित करके उसे अपने असामान्य व्यवहार पर विजय पाने अथवा अपने जीवन निर्वाह की समस्याओं से समायोजित होने में सहायता की जाती है।”

अत: यह स्पष्ट है कि मनश्चिकित्सा के अन्तर्गत रोगी व्यक्ति के मानसिक रोगों का उपचार किया है जिससे उसकी मानसिक स्थिति सबल हो सके।

प्रश्न 2.
मनश्चिकित्सा के लक्ष्य बताइए।
उत्तर:
मनश्चिकित्सा के अनेक लक्ष्य हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. ये उपयुक्त कार्यों को करने की प्रेरणा को मजबूत करता है।
  2. भावों की अभिव्यक्ति द्वारा सांवेगिक दबावों को कम करने में मदद करना।
  3. अपनी आदतों को बदलने में मदद करना।
  4. ज्ञान प्राप्त करने एवं निर्णय करने में प्रोत्साहन करना।
  5. शारीरिक अवस्थाओं में परिवर्तन करना।
  6. सेवार्थी के सामाजिक वातावरण को परिवर्तित करना।

प्रश्न 3.
स्थानान्तरण के प्रकार बताइए।
उत्तर:
स्थानान्तरण को अन्यारोपण भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे Transference भी बोला जाता है। इसके अन्तर्गत चिकित्सीय सत्र के दौरान सेवार्थी व चिकित्सक के मध्य जैसे-जैसे अन्तक्रिया बढ़ती जाती है वैसे ही सेवार्थी अपने जिन्दगी में अन्य सदस्यों की भाँति चिकित्सक के प्रति मनोवृत्ति को बनाकर विकसित कर लेता है अपने जीवन में इसे ही स्थानान्तरण की संज्ञा दी जाती है। इसके तीन प्रकार होते हैं –

1. धनात्मक स्थानान्तरण:
इसमें सेवार्थी चिकित्सक के प्रति प्रेम व स्नेह को दिखलाता है।

2. ऋणात्मक स्थानान्तरण:
इसमें सेवार्थी चिकित्सक के प्रति नकरात्मक संवेगात्मक प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करता है।

3. प्रति स्थानान्तरण:
इसमें चिकित्सक सेवार्थी के प्रति स्नेह, संवेगात्मक व प्रेम के लगाव को दर्शाता है।

प्रश्न 4.
चिकित्सात्मक सम्बन्ध को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
1. मनश्चिकित्सा के दौरान सेवार्थी और चिकित्सक के मध्य एक विशेष प्रकार का सम्बन्ध विकसित हो जाता है जिसे ‘चिकित्सात्मक सम्बन्ध’ कहा जाता है।

2. चिकित्सीय सम्बन्ध एक ऐसा सम्बन्ध होता है जिसमें चिकित्सक तथा सेवार्थी दोनों ही यह जानते हैं कि वे क्यों एकत्रित हुए हैं तथा उनकी अंत:क्रियाओं का नियम तथा लक्ष्य क्या है?

3. मनश्चिकित्सा की शुरुआत चिकित्सीय अनुबन्ध (Therapeutic Contract) से होती है, जिसमें उपचार का लक्ष्य चिकित्सा की प्रविधि जिसका उपयोग किया जाना है, सम्भावित जोखिम तथा चिकित्सा एवं सेवार्थी के वैयक्तिक जबावदेहियों का उल्लेख होता है।

प्रश्न 5.
व्यवहार चिकित्सा क्या है?
उत्तर:
आइजेंक के अनुसार, “व्यवहार उपचार पद्धति मानव के व्यवहार तथा संवेगों को सीखने के नियमों के आधार पर लाभदायक दिशा में बदल देने का प्रयास है।” इस उपचार विधि की कुछ आधारभूत मान्यताएँ निम्नलिखित हैं –

1. असामान्य व्यवहार का कारण व्यक्ति द्वारा अपेक्षित समायोजनपूर्ण प्रतिक्रियाओं को न सीख पाना है अथवा व्यक्ति को सीखने की उपर्युक्त सुविधाओं का न मिल पाना है।

2. उपचार कार्य सेवार्थी को सही प्रकार की प्रतिक्रियाओं का अनुभव करने की सुविधा प्रदान करना है जिससे वह छुटी हुई प्रतिक्रियाओं को सीख सके तथा अनुपयुक्त असमायोजित प्रतिक्रियाओं को छोड़कर सही तथा समायोजित प्रतिक्रियाओं को अपना सके। इस समस्त प्रक्रिया के पीछे अधिगम के सिद्धान्तों को अपनाया जाता है।

प्रश्न 6.
क्रमबद्ध असंवेदीकरण को समझाइए।
उत्तर:
इसे अंग्रेजी में ‘Systematic desensitisation’ कहा जाता है। यह व्यवहार चिकित्सा की वह प्रविधि है, जिसे ओल्प (Wolpe) ने प्रतिपादित व विकसित किया है। यह अन्योन्य प्रावरोध के सिद्धान्त पर आधारित है।

इस सिद्धान्त के अनुसार दो परस्पर विरोधी शक्तियों की एक ही समय में उपस्थिति कमजोर शक्ति को अवरुद्ध करती है। इस विधि में प्रतिअनुबन्धन के नियमों को उपयोग में लाकर सेवार्थी में चिन्ता की जगह पर विश्रांति की अवस्था को लाया जाता है। ओल्प के अनुसार क्रमबद्ध असंवेदीकरण की प्रविधि के तीन चरण होते हैं –

  1. आराम करने का प्रशिक्षण।
  2. चिन्ता के पदानुक्रम का निर्माण।
  3. असंवेदीकरण की कार्य-विधि।

प्रश्न 7.
व्यवहार चिकित्सा की प्रविधियों के नाम बताइए।
उत्तर:
1. क्रमिक विसंवेदीकरण:
यह ओल्प (Wolpe) ने विकसित किया है तथा यह अन्योन्य प्रावरोध के सिद्धान्त पर आश्रित है।

2. विमुखता चिकित्सा:
इस विधि में पीड़ा या दंड की सहायता से सेवार्थी में अवांछित व्यवहार के प्रति विमुखता या अरुचि उत्पन्न की जाती है।

3. मुद्रा मितव्ययिता:
इसके अन्तर्गत सेवार्थी जब अवांछित व्यवहार को छोड़कर वांछित व्यवहार करता है तो उसे छोटा कार्ड आदि वस्तु दी जाती है जिसे टोकेन कहते हैं।

4. अंतः स्फोटात्मक चिकित्सा व फ्लडिंग:
यह दोनों ही विधियाँ विलोपन के नियम पर आधारित हैं।

5. दृढ़ग्राही चिकित्सा:
इसका उपयोग उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है जिनमें पर्याप्त सामाजिक कौशल नहीं होता है।

6. प्रतिरूपण:
इसमें वांछित व्यवहार को सेवार्थी के सामने प्रदर्शित किया जाता है और सेवार्थी उसका निरीक्षण करता है, जिससे उसे उसी तरह से व्यवहार को करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 8.
लोगो चिकित्सा को समझाइए।
उत्तर:
लोगो चिकित्सा दो शब्दों से मिलकर बना है-लोगो तथा चिकित्सा। ‘लोगो’ अथवा ‘लोगस’ से तात्पर्य ‘अर्थ’ है एवं चिकित्सा का तात्पर्य ‘उपचार’ है। इस प्रकार लोगो चिकित्सा का तात्पर्य वह चिकित्सा है, जिसमें सेवार्थी की जिन्दगी में अर्थहीनता के भाव से उत्पन्न होने वाली समस्याओं व चिन्ताओं को दूर करने की कोशिश की जाती है। इस तरह की चिकित्सा में सेवार्थी में गत जिन्दगी को ऐतिहासिक पुनर्संरचना पर बल न डालकर उसके समकालीन आध्यात्मिक समस्याओं और उसके भविष्य या आगे के आशय को समझने पर बल डाला जाता है। लोगो चिकित्सा मनश्चिकित्सा का वह प्रकार है, जिसका प्रतिपादन ‘विक्टर फ्रेंकल’ ने किया है। यह पूर्ण रूप से सेवार्थी के अस्तित्व के अर्थ के विश्लेषण पर आधारित होता है।

प्रश्न 9.
गेस्टाल्ट चिकित्सा के बारे में बताइए।
उत्तर:
‘गेस्टाल्ट’ एक जर्मन शब्द है, जिसका तात्पर्य ‘समग्र अथवा सम्पूर्ण’ से होता है। इसका प्रतिपादन ‘फ्रेडरिक एस. पर्ल्स’ के द्वारा किया गया है। गेस्टाल्ट चिकित्सा मन तथा शरीर की एकता पर बल डालती है जिसमें चिन्तन, भाव तथा क्रिया के समन्वय की आवश्यकता पर सर्वाधिक बल डाला जाता है। गेस्टाल्ट चिकित्सा का उद्देश्य सेवार्थी में आत्म-जागरूकता एवं आत्म-स्वीकृति के स्तर को ऊँचा करना होता है।

एक अन्य अर्थ में इस चिकित्सा का मुख्य लक्ष्य सेवार्थी को अपनी आवश्यकता, इच्छा एवं आशंकाओं को समझने एवं स्वीकार करने में मदद करना होता है।

प्रश्न 10.
अस्तित्ववादी चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
इस चिकित्सा में सेवार्थी के व्यक्तिगत अनुभवों तथा स्वतन्त्र विचारों पर बल दिया जाता है तथा उसे नियंत्रित स्वतन्त्रता देकर रोग निदान तथा नयी जीवन-शैली की तलाश का मौका दिया जाता है। अस्तित्ववादी मनुष्य के अस्तित्व के सार से सम्बन्धित है।

इस चिकित्सा विधि के अनुसार व्यक्ति के मानसिक रोगों का कारण उसका अकेलापन, अन्य लोगों से खराब सम्बन्ध तथा अपने जीवन के अर्थ को समझने में अयोग्यता आदि है। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप से विकसित होने की सहज आवश्यकता से अभिप्रेरित होते हैं।

प्रश्न 11.
परामर्श को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
परामर्श एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसमें अनेक उपागमों एवं प्रविधियों को प्रयुक्त करके व्यक्तित्व का विकास, समस्याओं का समाधान कर जीवन को सहज, उद्देश्यपूर्ण एवं संतोषप्रद बनाने का प्रयत्न किया जाता है।

परामर्श मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसमें उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसके सहारे मनोवैज्ञानिक किसी दूसरे ऐसे व्यक्ति को जो समायोजन की साधारण समस्याओं से जूझते रहते हैं, उन्हें अपनी इन समस्याओं से निपटने के लिए विशेष सलाह देते हैं।

अत: परामर्श एक सतत् प्रक्रिया है, जिसमें अनेक अनुक्रमिक गतिविधियाँ सम्पन्न होती हैं।

प्रश्न 12.
परामर्श के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
परामर्श के निम्नलिखित उद्देश्य हैं –

1. मानसिक स्वास्थ्य:
परामर्श का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को अनुकूल रखना होता है जिससे व्यक्ति की मानसिक स्थिति सुदृढ़ रह सके।

2. सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास:
परामर्श के अन्तर्गत प्रकार्यात्मक दृष्टि से व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करने पर बल दिया जाता है।

3. स्व-आत्मीकरण व आत्म-सिद्धि:
परामर्श के द्वारा व्यक्ति के स्व-आत्मीकरण व आत्म-सिद्धि पर विशेष बल दिया जाता है।

4. व्यक्ति के संसाधन का संवर्धन:
परामर्श के आधार पर व्यक्ति के संसाधन का संवर्धन पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं प्रक्रिया को बताते हुए, चिकित्सात्मक सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं प्रक्रिया को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. इस चिकित्सा के अन्तर्गत विभिन्न सिद्धान्तों में अन्तर्निहित नियमों का अनुप्रयोग होता है।
  2. इसके अन्तर्गत केवल उन्हीं व्यक्तियों को मनश्चिकित्सा करने का अधिकार है जो व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किए गए हों, इसे हर कोई नहीं कर सकता है।
  3. मनश्चिाकित्सा प्रक्रिया में दो व्यक्ति शामिल होते हैं उनमें एक चिकित्सक और दूसरा सेवार्थी होता है। सेवार्थी अपनी संवेगात्मक समस्याओं के समाधान के लिए चिकित्सक और दूसरा स्वार्थी होता है। सेवार्थी चिकित्सा के लिए चिकित्सक की शरण में आता है।
  4. चिकित्सक एवं सेवार्थी के लिए एक चिकित्सात्मक सम्बन्ध का निर्माण होता है। यह एक गोपनीय, अन्तर्वैयक्तिक एक गत्यात्मक सम्बन्ध होता है।

चिकित्सात्मक सम्बन्ध:
यह सम्बन्ध चिकित्सक एवं सेवार्थी के मध्य पाए जाते हैं। एक उत्तम चिकित्सकीय सम्बन्ध में अनेक गुण शामिल होते हैं –

  1. चिकित्सक अपने शब्दों और व्यवहारों से यह सम्प्रेषित करता है कि वह सेवार्थी का मूल्यांकन नहीं कर रहा है तथा अशर्त सकारात्मक आदर की भावना रखता है।
  2. चिकित्सक की सेवार्थी के प्रति तदनुभूति होती है। तदनुभूति चिकित्सात्मक सम्बन्ध को समृद्ध बनाती है तथा इसे एक स्वास्थ्यकर सम्बन्ध में परिवर्तित करती है।
  3. इनके मध्य सम्बन्ध तब तक चलता है जब तक सेवार्थी अपनी समस्याओं का सामना करने में समर्थ न हो जाए तथा अपने जीवन का नियंत्रण अपने हाथ में न ले ले।
  4. उस चिकित्सकीय सम्बन्ध को उत्तम माना जाता है, जिसमें भूमिका निवेश होता है। भूमिका निवेश से तात्पर्य इस बात से होता है कि चिकित्सक तथा सेवार्थी दोनों ही चिकित्सा को सफल बनाने में व्यक्तिगत प्रयास करते हैं।

प्रश्न 2.
मनोगत्यात्मक चिकित्सा का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन सिगमण्ड फ्रायड द्वारा किया गया था। यह मनश्चिकित्सा का सबसे प्राचीन रूप माना जाता है। फ्रायड मनोगतिक उपागम में अन्त:मनोद्वन्द्व को मनोवैज्ञानिक विकारों का मुख्य कारण मानते हैं। अत: इसे उपचार के दौरान बाहर निकालना होता है। मनोगत्यात्मक चिकित्सा की महत्वपूर्ण विधियाँ निम्नलिखित हैं –

1. मुक्त साहचर्य:
मनोविश्लेषण उपचार विधि में अवदमित सामग्री अथवा संवेगों को प्रकट कराने की विधि को ही मुक्त साहचर्य विधि कहा जाता है। इसमें व्यक्ति को चिकित्सक को सब कुछ बताना होता है। इस प्रक्रिया के दौरान चिकित्सक का मुख्य कार्य विश्लेषण से प्रारम्भ होता है। चिकित्सक मुक्त साहचर्य के दौरान प्राप्त विचार सामग्री का गहन विश्लेषण करके सेवार्थी के संवेगों को पहचान कर सेवार्थी की अन्तर्दृष्टि को बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है जिससे कि सेवार्थी अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकने में समर्थ हो सके तथा अपने व्यक्तित्व का बेहतर विकास कर अपने वातावरण के साथ ठीक प्रकार से समायोजन कर सके।

2. दिन-प्रतिदिन के व्यवहारों की व्याख्या:
फ्रायड ने अपनी पुस्तक ‘The Psychopathology of Everyday Life’ में स्पष्ट किया है कि दिन-प्रतिदिन के व्यवहार से भी व्यक्ति के अचेतन द्वन्द्व तथा रक्षाओं का पता चलता है। नामों को भूलना तथा वस्तुओं को गलत स्थान पर रखना आदि दिन-प्रतिदिन के कुछ ऐसे व्यवहार हैं, जिनकी व्याख्या से व्यक्ति की अचेतन क्रियाओं व मनस्थिति का पता चलता है।

3. अन्यारोपण की प्रक्रिया:
अन्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिरोध (resistance) भी होता है। चूँकि अन्यारोपण की प्रक्रिया अचेतन इच्छाओं और द्वन्द्वों को अनावृत करती है, जिससे कष्ट का स्तर बढ़ जाता है, इसलिए सेवार्थी अन्यारोपण का प्रतिरोध करता है।

चिकित्सक दुश्चिता, भय तथा शर्म जैसे संवेगों को उभार कर जो इस प्रतिरोध के कारण होता है, इस प्रतिरोध को वह दूर करने का प्रयास करता है। अतः इस प्रकार की मनोगत्यात्मक विधियाँ व्यक्ति की मानसिक स्थिति में सुधार के लिए लाभप्रद होती है।

प्रश्न 3.
व्यवहार चिकित्सा पर लेख लिखिए।
उत्तर:
सरासन एवं सरासन के अनुसार-“व्यवहार चिकित्सा के अन्तर्गत व्यवहार परिमार्जन की कई प्रविधियाँ शामिल हैं, जो प्रयोगशालीय परिणामों से प्राप्त शिक्षण तथा अनुकूलन के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। व्यवहार चिकित्साओं में आंतरिक सन्दर्भ के बिना ही बाहरी व्यवहार को परिमार्जित किया जाता है।” इस उपचार की महत्वपूर्ण मान्यताएँ इस प्रकार हैं –

1. असामान्य व्यवहार का कारण व्यक्ति द्वारा अपेक्षित समायोजनपूर्ण प्रतिक्रियाओं को न सीख पाना है। उसके द्वारा अनुपयुक्त प्रतिक्रियाओं का अपनाया जाना या तो दोषपूर्ण सम्बद्ध प्रतिक्रियाओं का सीखना है अथवा व्यक्ति को सीखने की उपयुक्त सुविधाओं का न मिल पाना है।

2. अनुपयुक्त चिन्तात्मक प्रतिक्रियाएँ जो एक स्थिति विशेष में सीखी गयी हैं, सामान्यीकरण के फलस्वरूप वह उन्हें अन्य परिस्थितियों में भी प्रयुक्त करने लगता है। उपचार कार्य सेवार्थी को सही प्रकार की प्रतिक्रियाओं का अनुभव करने की सुविधा प्रदान करना है जिससे वह छूटी हुई प्रतिक्रियाओं को सीख सके तथा अनुपयुक्त असमायोजित प्रतिक्रियाओं को छोड़कर सही तथा समायोजित प्रतिक्रियाओं को अपना सके।

इस समस्त प्रक्रिया के पीछे अधिगम के सिद्धान्तों को अपनाया जाता है। व्यवहार चिकित्सा की प्रविधियों के नाम निम्नलिखित हैं –

  1. क्रमिक विसंवेदनीकरण
  2. विमुखता चिकित्सा
  3. मुद्रा मितव्ययिता
  4. अन्तःस्फोटात्मक चिकित्सा तथा फ्लडिंग
  5. दृढ़ग्राही चिकित्सा
  6. प्रतिरूपण।

अत: इस प्रकार से यह स्पष्ट है कि व्यवहार चिकित्सा से व्यक्ति के व्यवहार में विश्लेषण में सहायता मिलती है, जिसके अन्तर्गत व्यवहार चिकित्सक के विभिन्न प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
क्लायट केन्द्रित चिकित्सा की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
क्लायट केन्द्रित चिकित्सा को ‘कार्ल रोजर्स’ ने विकसित किया है। उपचार को सफल बनाने तथा सुधार की दिशा में प्रगति करने का उत्तरदायित्व सेवार्थी पर होने के कारण ही इसे सेवार्थी केन्द्रित अथवा अनिर्देशन पद्धति का नाम भी दिया जाता है।

क्लायट केन्द्रित चिकित्सा की आलोचनात्मक व्याख्या निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से कर सकते हैं –

  1. इस चिकित्सा विधि के अन्तर्गत क्लायट या सेवार्थी’ पर अधिक ध्यान दिया गया है अर्थात् इसमें पूर्ण रूप से केवल सवार्थी को महत्व दिया गया है।
  2. इस चिकित्सा विधि के अन्तर्गत चिकित्सक को गौण माना गया है, उसे सेवार्थी की अपेक्षा कम महत्व प्रदान किया गया है।
  3. इस चिकित्सा विधि के अन्तर्गत सेवार्थी को हर कार्यों को करने की पूर्ण रूप से स्वतन्त्रता प्रदान की गयी जैसे स्वयं के निर्णय को ही प्राथमिकता देते हुए, उसे स्वीकार करना।
  4. इस चिकित्सा विधि के अन्तर्गत चिकित्सक की भूमिका की अवहेलना की गयी है। उसे केवल इस विधि में सेवार्थी की सहायता करने का मात्र एक साधन माना गया है।
  5. इस चिकित्सा विधि में चिकित्सक को सेवार्थी को निर्देशित करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। वह सेवार्थी को कोई सलाह नहीं दे सकता है।
  6. इस चिकित्सा विधि में अनुनय करने का अधिकार मनोचिकित्सक को प्रदान नहीं किया गया है। सेवार्थी अपनी इच्छानुसार अपने किसी भी निर्णय या कार्य को स्वयं की इच्छानुसार अनुनय कर सकता है। उस पर किसी का दबाव नहीं होता है।
  7. इस विधि के अन्तर्गत चिकित्सक क्लायट के भावों को न तो अनुमोदित कर सकता है और न ही उसे नामंजूर कर सकता है, बल्कि वह उसे मात्र स्वीकार ही कर सकता है।

प्रश्न 5.
मानवतावादी अस्तित्वपरक चिकित्सा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानवतावादी अस्तित्वपरक चिकित्सा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से किया जा सकता है –

  1. इस चिकित्सा विधि में सेवार्थी के व्यक्तिगत अनुभवों तथा स्वतंत्र विचारों पर बल दिया जाता है।
  2. इस चिकित्सा विधि में सेवार्थी को नियंत्रित स्वतंत्रता देकर रोग निदान तथा नई जीवन शैली की तलाश का मौका दिया जाता है, जिससे सेवार्थी अपने जीवन का सर्वांगीण विकास कर सके।
  3. यह चिकित्सा विधि मनुष्य या सेवार्थी के अस्तित्व के सार से सम्बन्धित है जिसके अन्तर्गत सेवार्थी के समस्त पक्षों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
  4. इस चिकित्सा विधि के अनुसार व्यक्ति के मानसिक रोगों का कारण उसका अकेलापन, अन्य लोगों से खराब सम्बन्ध तथा अपने जीवन के अर्थ को समझने में अयोग्यता आदि है।
  5. इस विधि के अनुसार मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप से विकसित होने की सहज आवश्यकता से अभिप्रेरित होते हैं।
  6. चिकित्सा के दौरान एक अनुज्ञात्मक, अनिर्णयात्मक तथा स्वीकृतिपूर्ण वातावरण तैयार किया जाता है, जिसमें सेवार्थी के संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति हो सके तथा सन्तुलन और समाकलन प्राप्त किया जा सके।
  7. इस विधि में चिकित्सक केवल एक सुगमकर्ता और मार्गदर्शक होता है।
  8. इस विधि में सेवार्थी अपने जीवन में आत्मसिद्धि की बाधाओं को दूर करने के योग्य हो जाता है, तब उसका उपचार पूर्ण माना जाता है।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चिकित्सात्मक प्रक्रिया में कितने लोग शामिल होते हैं?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(अ) दो

प्रश्न 2.
चिकित्सात्मक सम्बन्ध कैसा होता है?
(अ) गोपनीय
(ब) अन्तर्वैयक्तिक
(स) गत्यात्मक
(द) सभी
उत्तर:
(द) सभी

प्रश्न 3.
मनश्चिकित्सा की शुरुआत किससे होती है?
(अ) चिकित्सकीय समझौते से
(ब) चिकित्सीय अनुबन्ध से
(स) चिकित्सीय प्रक्रिया से
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) चिकित्सीय अनुबन्ध से

प्रश्न 4.
चिकित्सीय सम्बन्ध में किसके कल्याण को प्राथमिकता दी जाती है?
(अ) चिकित्सक
(ब) समूह
(स) सेवार्थी
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(स) सेवार्थी

प्रश्न 5.
“चिकित्सकीय सम्बन्ध में अलगाव का सन्तुलन होना चाहिए।” यह कथन किसका है?
(अ) सरासन
(ब) फ्रायड
(स) आइजेंक
(द) कोरचीन
उत्तर:
(द) कोरचीन

प्रश्न 6.
मनश्चिकित्सा को कितने व्यापक समूह में वर्गीकृत किया जा सकता है?
(अ) पाँच
(ब) चार
(स) तीन
(द) दो
उत्तर:
(स) तीन

प्रश्न 7.
कौन-सी चिकित्सा व्यक्तिगत संवृद्धि को मुख्य लाभ मानती है?
(अ) मानवतावादी चिकित्सा
(ब) अस्तित्ववादी चिकित्सा
(स) मानवतावादी अस्तित्वपरक चिकित्सा
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) मानवतावादी अस्तित्वपरक चिकित्सा

प्रश्न 8.
The Interpretation of Dreams’ नामक पुस्तक किस वर्ष प्रकाशित हुई थी?
(अ) 1900
(ब) 1905
(स) 1910
(द) 1912
उत्तर:
(अ) 1900

प्रश्न 9.
चिकित्सा की किस प्रक्रिया में प्रतिरोध होता है?
(अ) अन्यारोपण
(ब) स्थानान्तरण
(स) दोनों में
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दोनों में

प्रश्न 10.
निर्वचन की कितनी तकनीकें हैं?
(अ) दो
(ब) चार
(स) छः
(द) आठ
उत्तर:
(अ) दो

प्रश्न 11.
व्याख्या की तकनीकें कौन-सी हैं?
(अ) प्रतिरोध
(ब) स्पष्टीकरण
(स) दोनों ही
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) दोनों ही

प्रश्न 12.
निर्वचन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत्त प्रक्रिया को क्या कहा जाता है?
(अ) अनुकूल कार्य
(ब) समाकलन कार्य
(स) समायोजन कार्य
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) समाकलन कार्य

प्रश्न 13.
क्रमिक असंवेदनीकरण चिकित्सा किस सिद्धान्त पर आधारित है?
(अ) विमुखता
(ब) अस्तित्ववादी
(स) अन्योन्य
(द) अन्योन्य प्रावरोध
उत्तर:
(द) अन्योन्य प्रावरोध

प्रश्न 14.
क्रमिक विश्राम प्रशिक्षण के प्रतिपादक कौन हैं?
(अ) ओल्प
(ब) जैकोवसन
(स) युंग
(द) रोजर्स
उत्तर:
(ब) जैकोवसन

प्रश्न 15.
क्रमिक विश्राम प्रशिक्षण किस वर्ष प्रतिपादित किया गया?
(अ) 1930
(ब) 1934
(स) 1936
(द) 1938
उत्तर:
(द) 1938

प्रश्न 16.
‘फ्लडिंग’ किस नियम पर आधारित है?
(अ) टोकेन
(ब) विलोपन
(स) प्रतिरूपण
(द) मुद्रा
उत्तर:
(ब) विलोपन

प्रश्न 17.
संज्ञानात्मक त्रिक किसके द्वारा कहा गया है?
(अ) एलिस
(ब) युंग
(स) बेक
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(स) बेक

प्रश्न 18.
CBT क्या है?
(अ) मनोविकृति
(ब) नियम
(स) प्रारूप
(द) उपागम
उत्तर:
(द) उपागम

प्रश्न 19.
‘अर्थ निर्माण की प्रक्रिया’ के प्रतिपादक कौन हैं?
(अ) युंग
(ब) फ्रॉयड
(स) फ्रेंकल
(द) रोजर्स
उत्तर:
(स) फ्रेंकल

प्रश्न 20.
‘गैस्टाल्ट’ किस भाषा का शब्द है?
(अ) जर्मन
(ब) स्पेनिश
(स) ग्रीक
(द) लैटिन
उत्तर:
(अ) जर्मन

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनोश्चिकित्सा के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मनोश्चिकित्सा का महत्त्व निम्न प्रकार से है –

  1. इससे व्यक्ति के संवेगात्मक समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है।
  2. इससे व्यक्ति के जीवन निर्वाह की समस्याओं से समायोजित होने में सहायता मिलती है।
  3. इससे व्यक्ति आत्म-ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है।
  4. मनोश्चिकित्सा से व्यक्ति के असामान्य व्यवहार पर रोक लगाने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 2.
मनोवैज्ञानिक समस्याएँ किन कारणों से उत्पन्न होती है?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक समस्याएँ निम्न कारणों से उत्पन्न होती है –

  1. दमित इच्छाएँ-व्यक्ति में दबी हुई इच्छाओं के परिणामस्वरूप लोगों में असामान्य व मनोवैज्ञानिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  2. संघर्ष की प्रवृत्ति-विभिन्न परिस्थितियों के कारण व्यक्ति के जीवन में अनेक बार संघर्ष की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप लोगों में मनोवैज्ञानिक समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  3. दोषपूर्ण अधिगम प्रक्रिया-व्यक्ति की विभिन्न गतिविधियाँ अनेक बार व्यवहार एवं संज्ञान के दोषपूर्ण सीखने के कारण समस्या उत्पन्न होती है।

प्रश्न 3.
व्यवहार चिकित्सा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
व्यवहार चिकित्सा की विशेषताएँ:

  1. व्यवहार चिकित्सा सेवार्थी को अनुपयुक्त असमायोजित प्रतिक्रियाओं को छोड़कर सही तथा समायोजित प्रतिक्रियाओं को अपनाना सिखाती है।
  2. व्यवहार चिकित्सा की प्रक्रिया के पीछे सम्बन्ध प्रत्यावर्तन की विधि अपनायी जाती है।
  3. इस चिकित्सा विधि के अन्तर्गत सेवार्थी अपनी समस्याओं पर खुलकर बात कर सकता है तथा चिकित्सक एक मार्गदर्शक की तरह कार्य करता है।
  4. इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यक्तित्व के पुनर्गठन का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 4.
मुक्त साहचर्य की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुक्त साहचर्य विधि का यह सामान्य नियम है कि एक व्यक्ति चिकित्सक को वह सब कहे जो उसके मन में आ रहा है। सामान्यतः मुक्त साहचर्य उपचार के दौरान सेवार्थी को एक एकान्त कमरे में कुर्सी पर आराम से बैठाया जाता है अथवा आरामदेह बिस्तर पर लिटा दिया जाता है। चिकित्सक सेवार्थी के पीछे या सिर की ओर बैठता है जिससे कि वह सेवार्थी को सीधे दिखायी न दे और सेवार्थी को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में कोई व्यवधान अनुभव न हो।

इसके पश्चात् चिकित्सक सेवार्थी को इस उपचार के सम्बन्ध में सामान्य निर्देश देता है कि किस प्रकार उसे अपने विचारों को स्वतंत्र एवं नि: संकोच बताना है। चिकित्सक सेवार्थी को अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

प्रश्न 5.
फ्रायड के स्वप्न विश्लेषण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

  1. फ्रायड का मत था कि स्वप्न सामग्री वह सामग्री है जो कि समय-समय पर प्रतिरक्षा क्रिया तन्त्र के द्वारा चेतन स्तर से अवदमित कर दी जाती है।
  2. कुछ आवश्यकताएँ ऐसी होती हैं, जिनकी तुष्टि खुले रूप से करना सम्भव नहीं होता है। यह तुष्टि ढके तथा प्रतीकात्मक रूप से की जाती है।
  3. यह चिकित्सक का कार्य होता है कि वह इन स्वप्नों के छिपे हुए प्रेरणाओं का अध्ययन अथवा विश्लेषण करके उसे अर्थ प्रदान करे।
  4. फ्रायड ने अपने स्वप्न विश्लेषण सम्बन्धी अनुभवों का उल्लेख अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘The Interpretation of Dreams’ में विस्तार से प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 6.
समाकलन कार्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
निर्वचन मनोविश्लेषण का शिखर माना जाता है, प्रतिरोध, स्पष्टीकरण तथा निर्णयन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत प्रक्रिया को समाकलन कार्य कहते हैं। यह सेवार्थी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में तथा बाहर आयी सामग्री को अपने अहम् में समाकलित करने में सहायता करता है। समाकलन कार्य का परिणाम है अन्तर्दृष्टि चिकित्सा के अन्त में विश्लेषक के सफल प्रयास के फलस्वरूप सेवार्थी को अपनी संवेगात्मक कठिनाई एवं मानसिक संघर्षों के अचेतन कारणों का एहसास होता है जिससे सेवार्थी में अन्तर्दृष्टि या सूझ का विकास होता है। सेवार्थी में सूझ का विकास हो जाने से उसके स्वयं तथा सामाजिक प्रत्यक्षण में परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 7.
टोकेन किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यवहार चिकित्सा की विधि में मुद्रा भितव्ययिता के अन्तर्गत इस विधि में ऐसी व्यवस्था की जाती है कि जब सेवार्थी अवांछित व्यवहार को छोड़कर वांछित व्यवहार करता है तो उसे छोटा कार्ड, करेदनी-चिप्पी (Poker chip), नकली सिक्का या इसी तरह की कोई वस्तु दी जाती है जिसे ‘टोकेन’ कहते हैं।

सेवार्थी इसकी सहायता से अपनी इच्छा के अनुकूल कोई भी चीज ले सकता है। स्पष्टत: यह टोकेन धनात्मक प्रबलक का काम करता है और सेवार्थी इससे वांछित व्यवहार को अर्जित कर लेता है।

प्रश्न 8.
संज्ञानात्मक चिकित्सा में सेवार्थी के लिए किन उपायों पर बल दिया जाता है?
उत्तर:
इस चिकित्सा में सेवार्थी के पाँच संबंधित उपायों पर बल दिया या डाला जाता है –

  1. संज्ञान-संवेग तथा व्यवहार के मध्य सम्बन्धों की पहचान करना।
  2. नकारात्मक संज्ञानात्मक त्रिक के परिणामों को मॉनीटर करना।
  3. गलत विश्वासों एवं विकृतियों के पक्ष तथा विपक्ष में सबूतों की परख करना।
  4. गलत एवं अनुचित संज्ञानों के विकल्प के रूप में अधिक वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत करना।
  5. कुछ गृह कार्यों को करना जिसमें सेवार्थी नये चिन्तन उपायों का रिहर्सल करता है तथा समस्याओं का हल निकालता है।

प्रश्न 9.
परामर्श के लक्ष्य बताइए।
उत्तर:

  1. आपादकालीन हस्तक्षेप एवं प्रबन्ध को करना।
  2. परिवेश एवं स्वयं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करना।
  3. जीवन में सार्थकता एवं अर्थबोध को विकसित करना।
  4. व्यवहार परिमार्जन एवं व्यक्तित्व परिवर्तन को प्रोत्साहन करना।
  5. व्यक्ति में स्वास्थ्य व्यवहार का विकास करना।
  6. आत्म-बोध को व्यक्ति में विकसित करना।

प्रश्न 10.
परामर्शदाता के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परामर्शदाता के महत्वपूर्ण कार्य:

  1. परामर्शदाता का मुख्य कार्य व्यक्ति को एक सही मार्ग प्रशस्त करना है।
  2. उनका कार्य व्यक्ति की समस्याओं के लिए उचित विकल्पों का निर्धारण करना है।
  3. उनका मुख्य कार्य उपयुक्त विधियों की खोज कर व्यक्ति का सही तौर पर उपचार करना है।
  4. परामर्शदाता व्यक्ति को उचित परामर्श देता है, जिससे उसमें जीवन के प्रति ऊर्जा का संचार हो।

RBSE Class 12 Psychology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनश्चिकित्सा के सामान्य चरणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मनश्चिकित्सा के सामान्य चरण निम्न प्रकार से हैं –

1. विश्वासपूर्ण सम्बन्धों की उत्पत्ति:
सेवार्थी एवं मनोचिकित्सक के मध्य विश्वासपूर्ण सम्बन्धों की उत्पत्ति किसी भी मनोपचार पद्धति के सफल प्रयोग के लिए यह आवश्यक है। दोनों के मध्य सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो जिससे वह बिना किसी झिझक के अपनी समस्याओं को चिकित्सक के सम्मुख रख सके।

2. संवेगात्मक अभिव्यक्ति:
संवेगात्मक भावनाओं की यह अभिव्यक्ति प्रभावी मनोचिकित्सा के लिए आवश्यक समझी जाती है। यह अन्तर्दृष्टि के विकास और उसकी समस्याओं के समाधान के लिए धनात्मक क्रियाओं का मार्ग प्रशस्त करती है।

3. अन्तर्दृष्टि:
जैसे-जैसे सेवार्थी की अवदमित विषय-सामग्री बाहर आती-जाती है, वैसे-वैसे उसकी कठिनाइयों तथा व्यवहार के वास्तविक स्वरूप के प्रति जानकारी बढ़ती जाती है। इसके आधार पर सेवार्थी की समायोजन प्रक्रिया में सुधार होने लगता है।

4. संवेगात्मक पुनर्शिक्षा:
इसमें जब सेवार्थी को अपनी कठिनाइयों तथा उनको सुलझाने हेतु प्रयुक्त त्रुटिपूर्ण ढंगों की जानकारी हो जाती है, तब वह इस स्थिति में होता है कि वह सही दिशा में गमन कर अपनी कठिनाइयों को सुलझा सके। इससे पूर्व अनपुयुक्त क्रियाओं के स्थान पर नवीन वांछित एवं उत्पादक क्रियाएँ सीखता है। यह धनात्मक क्रियाएँ धीरे-धीरे उसमें सामर्थ्य तथा आत्म-विश्वास का उदय करती है, जो व्यक्तित्व समायोजन के लिए अनिवार्य है।

5. समापन:
जब सेवार्थी अपने द्वन्द्वों पर काबू पा लेता है और अपनी समस्याओं के समाधान की ओर काफी कुछ अग्रसर हो जाता है तो चिकित्सा के समापन का समय आ जाता है।

प्रश्न 2.
बेक् की संज्ञानात्मक चिकित्सा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संज्ञानात्मक चिकित्सा विधि का विषादी बेक् द्वारा विषादी रोगियों के उपचार के लिए किया गया था। परन्तु बाद में इसका उपयोग अन्य विकृतियों के उपचारों में भी किया जाने लगा है।

अरॉन बेक् की संज्ञानात्मक पद्धति के अनुसार:
“अनेक विकृतियाँ विशेषकर विषाद व्यक्ति की स्वयं के प्रति, संसार के प्रति तथा भविष्य के नकारात्मक विश्वासों के कारण उत्पन्न होते हैं।”

बेक् ने इन तीन तरह के अतार्किक तथा गलत स्कीमा को संज्ञानात्मक त्रिक (Cognitive triad) कहा है। बेक ने विषादी रोगियों में विकृति चिन्तन के कई प्रकारों का वर्णन किया है जिनमें प्रमुख हैं –

1. मनचाहा अनुमान:
इसमें सेवार्थी अपर्याप्त या अतर्कसंगत सूचनाओं के आधार पर अपने बारे में अनुमान लगाता है; जैसे-कोई व्यक्ति यह विचार रखता है कि वह बेकार है क्योंकि उसे अमुक पार्टी में नहीं बुलाया गया।

2. आवर्धन:
इसमें सेवार्थी किसी छोटी घटना को बढ़ा-चढ़ा कर काफी विस्तारित कर देता है जैसे कोई व्यक्ति यह सोचता है कि उसके द्वारा बनाया गया सम्पूर्ण मकान बेकार हो गया क्योंकि उसमें अतिथियों के लिए एक विशेष कमरा नहीं बनवाया।

3. न्यूनीकरण:
इसमें सेवार्थी बड़ी घटना को संकुचित कर उसके बारे में विकृत ढंग से सोचता है। अत: यह आवर्धन के विपरीत है।

व्यवहार चिकित्सा के समान ही संज्ञानात्मक चिकित्सा भी सेवार्थी की किसी एक विशिष्ट समस्या के समाधान पर ध्यान केन्द्रित होती है। यह चिकित्सा अल्पकालीन होती है, जो 10-20 सत्रों तक समाप्त हो जाती है। अतः संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा वास्तव में व्यवहार चिकित्सा के सिद्धान्तों पर आधारित है। संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा में प्रतिमा, चिन्तन, कल्पना आदि प्रक्रियाओं पर विशेष रूप से बल दिया गया है।

प्रश्न 3.
योग एवं ध्यान की पद्धति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वैकल्पिक चिकित्सा में योग, ध्यान, ऐक्यूपंक्चर तथा वनौषधि आदि प्रमुख हैं जिसमें योग एवं ध्यान ने सबसे अधिक लोकप्रियता प्राप्त की है। योग एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जो प्राकृतिक नियमों पर आधारित है। इसका प्रतिपादन पतंजलि ने किया।

योग चिकित्सा के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. योग चिकित्सा के द्वारा मन को प्रशिक्षित किया जाता है।
  2. योग के द्वारा किसी व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों और प्रेरणाओं को एक स्थान पर संगठित किया जाता है।
  3. योग के द्वारा व्यक्ति ब्रह्म को प्राप्त करता है जिसमें कि वह परम अरोग्यता तक पहुँचता है।
  4. योग चिकित्सा पूर्णत: वैज्ञानिक व सैद्धान्तिक आधारों पर आधारित है तथा व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होता है।
  5. इससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है।
  6. इसके द्वारा किसी व्यक्ति की मानसिक व शारीरिक क्रियाओं का शुद्धिकरण होता है तथा केन्द्रीयता में वृद्धि होती है, जिसके कारण वह अपनी समस्या को पहचान कर स्वयं निर्देशित करने में सक्षम हो जाता है।
  7. योग में आसन, श्वसन या प्राणायाम जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है।
  8. ध्यान के अन्तर्गत व्यक्ति जानबूझकर थोड़े समय के लिए जिन्दगी के प्रवाह से अपने आपको दूर रखता है, इससे एकाग्रता में वृद्धि होती है।
  9. इसमें व्यक्ति निष्क्रिय रूप से विभिन्न शारीरिक संवेदनाओं एवं विचारों जो उसकी चेतना में आते रहते हैं, वह उनका प्रेक्षण करता है।
  10. योग विधि कुशल-क्षेम, भाव दशा, मानसिक केन्द्रीयता तथा दबाव सहिष्णुता को बढ़ाती है।
  11. अनिद्रा का उपचार भी योग से किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
परामर्श के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परामर्श के स्वरूप को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. परामर्श एक सतत् प्रक्रिया है।
  2. परामर्श, परामर्शी और परामर्शदाता के मध्य अन्तक्रियात्मक सम्बन्ध है।
  3. परामर्श मूलतः व्यक्ति के हित की दिशा में उन्मुख होता है।
  4. परामर्श का स्वरूप विकासात्मक, निरोधात्मक तथा उपचारात्मक होता है।
  5. परामर्श प्रक्रिया में परामर्शी के लिए अधिगम की परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं जिसके द्वारा व्यक्ति के संज्ञानात्मक अनुक्रिया आदि सम्बन्धों में परिवर्तन उत्पन्न करने में व्यक्ति को लोकतांत्रिक सहायता प्राप्त होती है।
  6. परामर्श का कार्य घर, विद्यालय, उद्योग, चिकित्सालय तथा सामुदायिक केन्द्र जैसी विविध परिस्थितियों में सम्पन्न किया जाता है।
  7. परामर्शदाता, परामर्शी के व्यवहार के बारे में निर्णय नहीं करता है।
  8. परामर्श प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और सम्मान को महत्व दिया जाता है।
  9. परामर्श में सम्बन्ध संरचना की विशेषताएँ स्नेह, स्वतः स्फूर्त रुचि और बोध होती है।
  10. एक व्यवसाय के रूप में परामर्श के क्षेत्र में आचार-संहिता का पालन किया जाता है। यह आचार संहिता सदैव सामाजिक आचार-संहिता के अनुरूप हो यह आवश्यक नहीं है।
  11. परामर्श प्रक्रिया में परामर्शदाता प्रशिक्षण, अनुभव और मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर सहायता देता है।
  12. परामर्श का मुख्य उद्देश्य भविष्य की समस्याओं का विरोध करने तथा भविष्य की समस्याओं के समाधान हेतु व्यक्ति को समर्थ बनाना होता है।

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