Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 समूह प्रक्रियाएँ एवं सामाजिक प्रभाव
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 अभ्यास प्रश्न
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
परिवार किस प्रकार का समूह है?
(अ) आकस्मिक
(ब) औपचारिक
(स) प्राथमिक
(द) द्वितीयक
उत्तर:
(स) प्राथमिक
प्रश्न 2.
जब कुछ अजनबी व्यक्ति किसी चौराहे पर किसी दुर्घनाग्रस्त व्यक्ति की मदद करने के लिये समूह बना ले तो यह किस प्रकार का समूह का उदाहरण है?
(अ) प्राथमिक
(ब) आकस्मिक
(स) प्रयोजनात्मक
(द) एकान्तिक
उत्तर:
(ब) आकस्मिक
प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सी समूह निर्माण की अवस्था नहीं है?
(अ) निष्पादन अवस्था
(ब) निर्माण अवस्था
(स) सुषुप्त अवस्था
(द) प्रतिमान अवस्था
उत्तर:
(स) सुषुप्त अवस्था
प्रश्न 4.
समूह निर्माण की वह अवस्था जिसमें समूह के नियम या मानक निर्धारित किये जाते हैं, कहलाती है –
(अ) झंझावात अवस्था
(ब) निर्माण अवस्था
(स) समापन अवस्था
(द) प्रतिमान अवस्था
उत्तर:
(द) प्रतिमान अवस्था
प्रश्न 5.
‘अंगुली पकड़ कर हाथ पकड़ना’ सामाजिक प्रभाव की किस तकनीक का उदाहरण है?
(अ) अनुरूपता
(ब) अनुपालन
(स) चाटुकारिता
(द) आज्ञापालन
उत्तर:
(ब) अनुपालन
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समूह किसे कहते हैं?
उत्तर:
मनोविज्ञान में समूह को दो या दो से अधिक व्यक्तियों को सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया गया है। समूह के अंतर्गत सभी सदस्य किसी विशिष्ट उद्देश्य, कार्य या लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।
सेण्डरसन के अनुसार-“समूह दो या दो से अधिक उन व्यक्तियों का संग्रह है जिनके मध्य मनोवैज्ञानिक अंत:क्रिया का निश्चित प्रतिमान पाया जाता है। वे अपने विशिष्ट सामूहिक व्यवहार के कारण अपने सदस्यों तथा सामान्य रूप से दूसरों के द्वारा भी एक वास्तविक वस्तु माने जाते हैं।”
अत: यह स्पष्ट है कि समूह व्यक्तियों के उस एकत्रीकरण को कहते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सभी का सहयोग लिया जाए।
प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह को परिभाषित करें।
उत्तर:
फेयरचाइल्ड के अनुसार-“एक प्राथमिक समूह को जिसमें दो (2) से लेकर 50-60 लोगों के अर्थात् एक छोटी संख्या के, जो अपेक्षाकृत अधिक लम्बे समय तक चलने वाले आमने-सामने के सम्बन्धों में किसी एक उद्देश्य के लिए नहीं वरन् केवल एक व्यक्ति के रूप में भी न होकर किसी विशिष्ट कार्यकर्ताओं, प्रतिनिधियों या संगठनों के नियुक्तों के रूप में रहते हैं, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
अतः प्राथमिक समूह के लिए शारीरिक समीपता, समूह का छोटा आकार तथा सम्बन्धों की लम्बी अवधि का होना आवश्यक है। इन तीनों विशेषताओं के एक साथ होने पर प्राथमिक समूह का विकास सरलता से हो पाता है।
प्रश्न 3.
आकस्मिक एवं प्रयोजनात्मक समूह में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आकस्मिक समूह-आकस्मिक समूह ऐसे समूह को कहा जाता है जिसका निर्माण किसी परिस्थितिवश अचानक हो जाता है। इसका निर्माण किसी पूर्व निर्धारित उद्देश्य या प्रयोजन के तहत नहीं होता है। उदाहरण के लिये-जब सड़क पर कोई व्यक्ति दुर्घटना में घायल हो जाए, तो एकाएक व्यक्तियों के समूह का इकट्ठा हो जाना या कार्यात्मक रूप से मदद करने के लिए संगठित हो जाते हैं तो यह आकस्मिक समूह’ का उदाहरण है। प्रयोजनात्मक समूह-ये ऐसे समूह को कहा जाता है जिसका निर्माण पूर्व निश्चित उद्देश्य के अनुसार होता है। विद्यालय एवं स्वयं सेवी संगठन एक प्रकार के प्रयोजनात्मक समूह है जो शिक्षा व सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया जाता है।
प्रश्न 4.
औपचारिक समूहों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
औपचारिक समूह ऐसे समूहों को कहा जाता है, जिसका निर्माण किसी विशेष नियम तथा विधान के अनुसार होता है।
औपचारिक समूहों के कुछ उदाहरण:
1. औद्योगिक संगठन:
इसके अन्तर्गत कम्पनी या कारखानों का निर्माण विशेष उद्देश्यों के लिए किया है। जिसके अंतर्गत समस्त कार्य व कर्मचारी निश्चित नियमों के अनुसार कार्य करते हैं।
2. विश्वविद्यालय:
इसके अन्तर्गत भी समस्त शैक्षिक संस्थाएँ आदि निश्चित नियमों पर आधारित होते हैं। जिसके आधार पर ही, कॉलेजों में नामांकन प्रणाली, दाखिला प्रक्रिया तथा परीक्षा नियमबद्ध रूप में सम्पादित की जाती है।
प्रश्न 5.
समूह निर्माण की झंझावत अवस्था को समझाइए।
उत्तर:
‘टकमैन’ के अनुसार समूह पाँच विकासात्मक प्रक्रमों से गुजरता है। जिसके अंतर्गत झंझावत अवस्था (Storming stage) दूसरी अवस्था है। इस अवस्था के अंतर्गत इसमें समूह के सदस्यों के मध्य समूह के लक्ष्य क्या होंगे, अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति कैसे करें, समूह को नियंत्रित कौन करेगा, कौन-सा सदस्य क्या कार्य करेगा, समूह में उद्देश्य प्राप्ति के लिए किन नीतियों का अनुसरण किया जाएगा, समूह की बागडोर कौन सम्भालेगा आदि प्रश्नों को लेकर द्वंद्व चलता रहता है। इन सभी प्रश्नों के समाधान को लेकर समूह के सदस्यों में विचार होता है। इनमें मत भिन्नताएँ भी सामने आती हैं इसीलिए इसे झंझावत अवस्था कहते हैं।
प्रश्न 6.
समूह निर्माण की अवस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
समूह निर्माण की अवस्थाओं के नाम निम्नलिखित हैं –
1. निर्माण अवस्था:
इस अवस्था में लोग पहली बार मिलते हैं तो लक्ष्य के सम्बन्ध में अनिश्चितता होती है। इस अवस्था में लोग एक-दूसरे को जानने का प्रयत्न करते हैं।
2. झंझावत अवस्था:
इस अवस्था में लोगों के समक्ष अनेक प्रकार की भिन्नताएँ सामने आती हैं तथा उनके मत भी अलग-अलग पाए जाते हैं।
3. प्रतिमान अवस्था:
इस अवस्था में द्वितीय अवस्था के बाद कुछ निर्णय ले लिये जाते हैं। यह प्रतिमान समूह के सदस्यों के व्यवहार को निर्धारित करने हेतु आधार का कार्य करते हैं।
4. निष्पादन अवस्था:
समूह की संरचना इस अवस्था तक विकसित हो जाती है।
5. समापन अवस्था:
इस अवस्था में समूह कार्य पूर्ण हो जाने एवं लक्ष्य की पूर्ति हो जाने पर समूह भंग हो जाता है या समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 7.
सामाजिक प्रभाव किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामाजिक प्रभाव का अर्थ किसी व्यक्ति की मनोवृत्ति एवं व्यवहार में उस परिवर्तन से होता है जो अन्य व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न किया जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक अंतक्रिया द्वारा प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करता है।
यह सामाजिक प्रभाव दूसरे लोगों की काल्पनिक या वास्तविक उपस्थिति दोनों के द्वारा होता है। अध्यापक, मित्र, रेडियो, टेलीविजन के विज्ञापन आदि भी किसी न किसी प्रकार सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
उदाहरण के लिए:
शिक्षक अपने छात्रों को, अभिभावक अपने बच्चों को एवं एक सेल्समेन अपने ग्राहक को प्रभावित करता है, तब इसे ‘सामाजिक प्रभाव’ कहते हैं।
प्रश्न 8.
चाटुकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर:
चाटुकारिता की प्रविधि में व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति की बातों में हाँ से हाँ मिलाते हैं। विशिष्ट व्यक्ति का गुणगान उन्हीं के समक्ष करते हैं। ऐसा करने से विशिष्ट व्यक्ति उन्हें पंसद करने लगता है एवं चाटुकारिता कर रहे व्यक्तियों की इच्छाओं एवं अनुरोधों को स्वीकार कर लेता है।
चाटुकारिता की विशेषताएँ:
- यह स्वार्थ पर आधारित प्रविधि है।
- इसे सामान्य भाषा में ‘चापलूसी या जीहजूरी’ करना भी कहा जाता है।
- ऐसे व्यक्ति मौकापरस्त होते हैं।
- इसमें स्वहित या व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता दी जाती है।
प्रश्न 9.
अनुपालन को परिभाषित करें।
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अनुरोध या निवेदन के अनुरूप व्यवहार करता है तो उसे अनुपालन कहा जाता है। अर्थात् इसके अन्तर्गत व्यक्ति अपनी बात को मनवाने के लिए अनेक विधियों व तर्कों का उपयोग करता है।
उदाहरण:
- बेटी का अपने पिता से कॉलेज ट्रिप पर जाने की बात मनवाने के लिए किए जाने वाले व्यवहार को अनुपालन कहा जा सकता है।
- किसी सेल्समेन के हमारे घर पर आने पर जिस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित किया जाता है, वह अनुपालन का एक उत्तम उदाहरण है।
- किसी कर्मचारी का अपने अधिकारी से छुट्टी लेने के लिए किया जाने वाला अनुरोध भी अनुपालन का ही उदाहरण है।
प्रश्न 10.
अनुरूपता एवं अनुपालन में अंतर समझाइए।
उत्तर:
अनुरूपता एवं अनुपालन में निम्न आधारों पर अन्तर को स्पष्ट किया जा सकता है –
A. अनुपालन:
- इसमें अनुरोध या निवेदन को प्राथमिक दी जाती है।
- इसमें व्यक्ति अपनी बात मनवाने के लिए अनेक प्रविधियों का उपयोग करता है।
- इसमें व्यक्ति विनम्रतापूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं।
B. अनुरूपता:
- इसका अर्थ सदस्यों का नियमों के अनुरूप व्यवहार करने से है।
- कभी-कभी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार समूह के निर्णय या नियमों को स्वीकार कर लेता है।
- अनुरूपता के तहत निर्णय लेते समय व्यक्ति को मानसिक संघर्ष या दबाव का सामना करना पड़ता है।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समूह क्या है? समूह की विभिन्न विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति पारस्परिक रूप से एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा किन्हीं सामान्य हितों के लिए एक-दूसरे के साथ अर्थपूर्ण अंतक्रिया के द्वारा सम्बन्ध स्थापित करते हैं तो उसे ‘समूह’ कहते हैं।
समूह की विशेषताएँ:
- प्रत्येक समूह का निर्माण किसी-न-किसी उद्देश्य के कारण ही होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समूह के सदस्यों में कार्य विभाजन कर दिया जाता है।
- किसी भी समूह की स्थापना उन्हीं व्यक्तियों द्वारा होती है जिनकी रुचि एवं हित समान हो। विरोधी हितों वाले व्यक्ति समूह का निर्माण नहीं कर सकते।
- समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है। व्यक्ति सभी समूहों का सदस्य नहीं बनता वरन् उन्हीं समूहों की सदस्यता ग्रहण करता है, जिससे उसके हितों, आवश्यकताओं एवं रुचि की पूर्ति होती हो।
- समूहों में सभी व्यक्ति समान पदों पर नहीं होते वरन् वे अलग-अलग प्रस्थिति एवं भूमिका निभाते हैं। अतः समूह में पदों का उतार-चढ़ाव पाया जाता है।
- प्रत्येक समूह में सामूहिक आदर्श एवं प्रतिमान पाए जाते हैं जो सदस्यों के पारस्परिक व्यवहरों को निश्चित करते हैं एवं उन्हें एक स्वरूप प्रदान करते हैं।
- समूह में केवल व्यक्तियों का होना पर्याप्त नहीं है वरन उनके बीच सामाजिक सम्बन्धों का होना भी अनिवार्य है।
- एक समूह के सदस्य अपने विचारों का ही आदान-प्रदान नहीं करते वरन् एक-दूसरे के कष्ट में सहयोग एवं सहायता भी करते हैं।
- किसी भी समूह की स्थापना तभी सम्भव है जब उसके सदस्यों में समूह के उद्देश्यों, कार्य-प्रणाली, स्वार्थपूर्ति, नियमों आदि को लेकर कोई मतभेद न हो और इन बातों को लेकर उनमें समझौता हो।
प्रश्न 2.
समूह के विभिन्न प्रकारों को उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर:
समूह के विभिन्न प्रकारों का वर्णन निम्न प्रकार से है –
A. प्राथमिक समूह:
यह वे समूह होते हैं, जिसके सदस्यों के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाए जाते हैं, जो आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए होते हैं।
उदाहरण:
1. परिवार:
परिवार को उत्तम उदाहरण माना जाता है, प्राथमिक समूहों का, क्योंकि इसमें इनके सदस्यों के मध्य प्रत्यक्ष या आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं।
2. मित्र-मण्डली:
इसे भी प्राथमिक समूह माना जाता है, क्योंकि यहाँ बालक सहयोग, आपसी मेलजोल जैसी अति भावनाओं को सीखता है।
B. द्वितीयक समूह:
ये वे समूह होते हैं, जिनके मध्य अवैयक्तिक सम्बन्ध पाए जाते हैं तथा इन समूहों में सदस्यों के मध्य शारीरिक निकटता का होना अनिवार्य नहीं है।
उदाहरण:
विश्वविद्यालय:
इन्हें द्वितीयक समूहों का उत्तम उदाहरण माना जाता है क्योंकि इनके सदस्यों के मध्य अवैयक्तिक आवेष्ठन कम होता है।
C. औपचारिक समूह:
ये वे समूह है जो नियमों के आधार पर संचालित होते हैं।
उदाहरण:
1. मजदूर संघ:
इसे औपचारिक समूह कहा जाता है क्योंकि ये संघ कुछ निश्चित उद्देश्यों व नियमों पर आधारित होते हैं।
D. अनौपचारिक समूह:
ये वे समूह होते हैं जिसके निर्माण में नियमों व कानून का अधिक महत्व नहीं होता है।
उदाहरण:
पड़ोस:
पड़ोस भी एक प्रकार के अनौपचारिक समूह होते हैं जिसका निर्माण किसी नियमों के आधार पर नहीं किया जाता है। इसे एक प्रकार से अनौपचारिक समूह को प्राथमिक समूह भी माना जाता है।
प्रश्न 3.
समूह निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समूह निर्माण आराम की अनुभूति और सुरक्षित रहने की दृष्टि से होता है। ‘Tuckman’ के अनुसार समूह निर्माण की प्रक्रिया पाँच विकासात्मक प्रक्रमों से गुजरती है, जो निम्नलिखित है –
1. निर्माण अवस्था:
इस अवस्था में लोग प्रथम बार मिलते हैं तो लक्ष्य के सम्बन्ध में अनिश्चितता होती है। इस अवस्था में लोग एक-दूसरे को जानने का प्रयत्न करते हैं।
2. झंझावात अवस्था:
इसमें समूह के सदस्यों के मध्य समूह के लक्ष्य क्या होंगे, कैसे लक्ष्यों की प्राप्ति की जाएगी, क्या नियम होंगे आदि प्रश्नों को लेकर द्वंद्व चलता रहता है। इन सभी प्रश्नों को लेकर सभी सदस्यों में विचार चलता रहता है। इनमें मत भिन्नताएँ भी सामने आती हैं।
3. प्रतिमान अवस्था:
इस अवस्था में द्वितीय झंझावात अवस्था के दौरान कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं। समूह में इन नियमों व निर्णय को ‘प्रतिमान’ कहा जाता है। यह प्रतिमान समूह के सदस्यों के व्यवहार को निर्धारित करने हेतु आधार का कार्य करते हैं।
4. निष्पादन अवस्था:
समूह की संरचना इस अवस्था तक विकसित हो जाती है। अब समय कार्य करने का होता है। सभी सदस्य लक्ष्य प्राप्ति हेतु अपना-अपना पूर्व निर्धारित कार्य या जिम्मेदारी पूर्ण करते हैं।
5.समापन अवस्था:
इस अवस्था में समूह कार्य पूर्ण हो जाने एवं लक्ष्य की पूर्ति हो जाने पर समूह भंग हो जाता है या समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 4.
समूह दबाव किसे कहते हैं?
समूह दबाव पर किये गये प्रयोग को समझाइए।
उत्तर:
समूह दबाव से तात्पर्य समूह पर पड़ने वाले उस दबाव से है जिसमें समूह के अंतर्गत समूह का प्रत्येक सदस्य अपने ऊपर दबाव महसूस करता है अर्थात् सामाजिक अंतक्रिया के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करता है। इसी व्यवहार से प्रभाव या दबाव समूहों पर दृष्टिगोचर होता है।
अनुरूपता के द्वारा समूह दबाव के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों शेरीफ, सोलोमन ऐश एवं क्रयफिल्ड द्वारा प्रयोग किये गए हैं। इनमें ऐश द्वारा समूह दबाव पर किए गए प्रयोग का विवरण निम्न प्रकार से है –
सोलोमन ऐश के द्वारा किया गया प्रयोग:
ऐश ने अपने प्रयोग में यह जानना चाहा कि यदि किसी समूह के सभी सदस्य किसी परिस्थिति में उपलब्ध विकल्पों में से एक जैसा उत्तर देते हैं। सभी व्यक्तियों के एक समान उत्तर देने से वास्तविक प्रयोज्य जिस पर कि प्रयोग किया जा रहा है, के उत्तर पर क्या प्रभाव पड़ता हैं।
ऐश द्वारा किये गए प्रयोग में 7 व्यक्तियों के एक समूह में एक व्यक्ति वास्तविक प्रयोज्य था, शेष छह व्यक्ति प्रयोगकर्ता में ही साथी थे। सभी प्रतिभागियों को एक मानक रेखा दिखाई गई, जिसकी तुलना 3 विभिन्न लम्बाई की तुलनात्मक रेखाओं (अ, ब, स) से करते हुए यह बताना था, कि इन 3 में से कौन-सी रेखा ‘मानक रेखा’ के समान लम्बाई की है।
सभी प्रतिभागियों ने पूर्वनियोजित रूप से समान परन्तु गलत उत्तर दिया। इसके बाद वास्तविक प्रयोज्य से उसका उत्तर पूछा गया। ऐसे 12 प्रयास किये गए। यद्यपि वास्तविक प्रयोज्य यह जानता था कि उत्तर गलत है।
ऐश के प्रयोग में यह पाया गया कि लगभग 67 प्रतिशत प्रयोज्यों ने समूह दबाव में आकर अपना उत्तर समूह के उत्तर के समान दिया एक अनुरूपता प्रदर्शित की।
प्रश्न 5.
सामाजिक प्रभाव के मुख्य प्रकार कौन-से हैं? अनुरूपता की तकनीकों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
सामाजिक प्रभाव के तहत व्यक्ति तीन प्रकारों द्वारा प्रभावित होते हैं –
- अनुरूपता
- अनुपालन
- आज्ञापालन
अनुरूपता का अर्थ व्यक्ति का मानकों के अनुसार व्यवहार करने से है, जिसे निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –
1. यदि कोई व्यक्ति स्टेशन पर अन्य व्यक्तियों को टिकट लेते हुए लाइन में देखता है तो वह स्वयं भी लाइन में लगकर ही टिकट लेगा, इससे व्यक्ति अपने ऊपर दबाव महसूस करता है तथा नियम के अनुरूप स्वयं भी कार्य करेगा।
2. यदि किसी शादी-समारोह में भोजन की बफर व्यवस्था की गयी है और किसी व्यक्ति को जमीन पर बैठकर खाना पसन्द है, तो व्यक्ति उस समय अपने ऊपर समूह का दबाव महसूस करेगा तथा नियमों के कारण ही सभी लोगों की तरह बफर व्यवस्था के अनुसार ही भोजन करेगा।
3. यदि किसी व्यक्ति को हेलमेट लगाना पसन्द नहीं है तो ऐसा व्यक्ति भी कभी-कभी अपने ऊपर दबाव महसूस करता है क्योंकि उस व्यक्ति को यह पता होता है कि यदि उसने अन्य व्यक्तियों की भाँति ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं किया तो उसे दण्ड मिलेगा, इस दबाव के कारण भी वह इन नियमों का पालन करता है।
अत: उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति समूह से जुड़े होने के नाते हर समय दबाव में रहते हुए, अपनी क्रियाओं व व्यवहार को प्रदर्शित करता है तथा नियमों के अनुरूप ही कार्य करता है।
प्रश्न 6.
अनुपालन की बहुल तकनीकों के विभिन्न प्रकारों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
अनुपालन की बहुल तकनीकों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है –
1. चाटुकारिता तकनीक:
इस प्रकार की तकनीक में व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति का गुणगान उन्हीं के समक्ष करते हैं। ऐसा करने से विशिष्ट व्यक्ति उन्हें पसन्द करने लगता है एवं उनके अनुरोधों को स्वीकार कर लेता है। जैसे-किसी कम्पनी में कुछ कर्मचारियों का प्रोमोशन के लिए अधिकारी की चापलूसी करना इसका एक उत्तम उदाहरण माना जाता है।
2. पारस्परिकता तकनीक:
इस तकनीक का आधार यह परिकल्पना है कि जब हम किसी व्यक्ति को कोई लाभ पहुँचाते हैं तो वह व्यक्ति भी हमें भविष्य में कोई लाभ पहुँचा सकता है। इसके अन्तर्गत जब व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से कोई कार्य करवाना होता है तो वह पहले उसके छोटे-मोटे सभी अनुरोधों को मान लेता है। जैसे किसी व्यक्ति का पड़ोस में किसी उच्च प्रस्थिति वाले परिवार से सम्पर्क रखने, भविष्य में उसकी सहायता से कोई कार्य का लाभ ले सकते हैं।
3. बहल निवेदन:
इसमें अनेक तकनीकें शामिल हैं जिसका विवरण निम्न प्रकार से है –
A. अंगुली पकड़कर हाथ पकड़ना:
इसमें लक्षित व्यक्ति से पहले छोटे अनुरोध किये जाते हैं जिन्हें व्यक्ति आसानी से स्वीकार कर सकता है। लक्षित व्यक्ति अपने व्यवहार में एकरूपता बनाए रखने हेतु बड़े अनुरोधों को भी सामान्यतया स्वीकार कर लेता है।
B. बड़ी माँग बताकर छोटी माँग पूर्ति करना:
इस प्रविधि में यह माना जाता है कि एक बार बड़े अनुरोध को मना करने के बाद व्यक्ति यह महसूस करेगा कि कम से कम छोटे अनुरोध को तो स्वीकार कर ही लिया जाएगा तथा कई बार ऐसा हो भी जाता है।
C. लो-बॉल तकनीक:
इस तकनीक में लक्षित व्यक्ति से जो कार्य करवाना होता है, उसके बारे में पूर्व सूचना नहीं दी जाती है। इसमें अनुरोध के एक महत्वपूर्ण भाग को लक्षित व्यक्ति से छिपाया जाता है।
इसी के कारण अनुरोध लक्षित व्यक्ति को आकर्षक लगता है जिसके परिणामस्वरूप वह उस अनुरोध को स्वीकार कर लेता है। इस तकनीक में ऐसा माना जाता है कि एक बार किसी व्यक्ति ने किसी अनुरोध को स्वीकार कर लिया तो वह उसे पूर्ण करने हेतु प्रतिबद्ध हो जाते हैं।
प्रश्न 7.
आज्ञापालन किसे कहते हैं? आज्ञापालन पर मिलर द्वारा किये गए प्रयोग को समझाइए।
उत्तर:
आज्ञापालन में व्यक्ति को आदेश का पालन करना ही होता है, जबकि अनुरूपता एवं अनुपालन में व्यक्ति को स्वतंत्रता होती है कि वह अनुरोध का पालन करे या नहीं करे।
आज्ञापालन के अध्ययन हेतु मनोविज्ञान में स्टेनले मिलग्राम’ द्वारा एक अध्ययन किया गया जो काफी चर्चित हुआ। मिलग्राम द्वारा किये गए प्रयोग में एक व्यक्ति, जो वास्तविक प्रयोज्य था, को अन्य व्यक्ति को एक उपकरण के माध्यम से एक स्विच ऑन करके व्यक्ति को विद्युत आघात देने का आदेश दिया गया। वास्तव में किसी को कोई विद्युत आघात नहीं दिया गया था।
लेकिन प्रयोज्य को यह महसूस करवाया गया जैसे वह वास्तव में स्विच ऑन करके विद्युत आघात दे रहा है। ऐसा करने के लिये सामने वाले व्यक्ति से, जिसे विद्युत आघात दिये जा रहे थे, यह अभिनय करने के लिए कहा गया जैसे उसे वास्तविकता में विद्युत आघात लग रहे हों। इसके लिए उसे जोर से चिल्लाना, पैर पटकने आदि शारीरिक संकेत दिखाने को भी कहा गया। प्रयोज्य को धीरे-धीरे विद्युत आघात देना प्रयोग के लिए अत्यन्त ही आवश्यक है।
प्रयोग में यह पाया गया कि अनेक व्यक्तियों ने मिलग्राम के इस आदेश का पालन किया। इस प्रयोग से मिलग्राम ने यह निष्कर्ष निकाला कि किसी व्यक्ति से कोई कार्य करवाने के लिए आज्ञापालन भी एक प्रभावी तकनीक है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति द्वारा कोई कार्य करवाने व मानकों के अनुरूप व्यवहार करने की कई तकनीकें प्रविधियाँ होती हैं।
प्रश्न 8.
समूह द्वन्द्व किसे कहते हैं? समूह द्वन्द्व का समाधान कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
समूह के सदस्य रहते हुए विभिन्न समूह सदस्यों के मध्य विभिन्न लक्ष्यों, विषयों व समूह का नेता बनने सम्बन्धी निर्णयों आदि में मत भिन्नता होने के कारण समूह में द्वन्द्व उत्पन्न हो जाते हैं।
समूहों में असमानता होने पर समूह में द्वन्द्व उत्पन्न हो जाता है। समूह के सदस्यों में आपसी विश्वास कम हो जाता है। द्वन्द्व के समाधान के लिए सबसे आवश्यक है द्वन्द्व के कारणों को जानना। समूह द्वन्द्व को दूर करने हेतु निम्न प्रयास किये जा सकते हैं –
- द्वन्द्व के समाधान के लिए सबसे अधिक जरूरी है कि समूह के सदस्यों के मध्य द्वन्द्व के कारणों से सम्बन्धित मुद्दों पर वार्तालाप कराया जा सकता है जिससे समूह के सदस्य आपसी विचारधाराओं को अच्छी तरह समझ सकें।
- समूह के मानकों को स्पष्ट किया जाए। सभी सदस्यों को इन प्रतिमानों का अनुसरण करने हेतु प्रतिबद्ध किया जाए।
- समूह में हितों या संसाधनों के बँटवारे के नियमों को अधिक स्पष्ट किया जा सके, जिससे द्वंद्व में कमी आए।
- किसी विशेष मुद्दे के कारण द्वन्द्व होने पर सम्बन्धित सदस्यों के मध्य समझौता वार्ता कराई जाए।
- दोनों पक्षों की वार्ता में स्वीकार्य हल ढूँढ़ने का प्रयास किया जाए।
- समूह की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करने से प्रत्येक सदस्य को स्वयं की जिम्मेदारियों, अधिकारों व सीमाओं का ज्ञान होगा।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मनुष्य एक ………. प्राणी है –
(अ) सामाजिक
(ब) असामाजिक
(स) असभ्य
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) सामाजिक
प्रश्न 2.
समूह की सदस्यता कैसी होती है?
(अ) अनिवार्य
(ब) ऐच्छिक
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(ब) ऐच्छिक
प्रश्न 3.
इसमें से कौन-सा कथन समूह की विशेषता को व्यक्त नहीं करता?
(अ) व्यक्तियों का समूह होना आवश्यक है
(ब) एकता की भावना आवश्यक है
(स) समूह की सदस्यता अनिवार्य होती है
(द) सामाजिक सम्बन्धों का होना अनिवार्य है
उत्तर:
(स) समूह की सदस्यता अनिवार्य होती है
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(अ) समूह में सदस्यों की संख्या सीमित होती है
(ब) समूह में सदस्यों की संख्या असीमित होती है
(स) समूह की अपेक्षा व्यक्ति में अधिक स्थायित्व होता है
(द) समूह एक अमूर्त धारणा है
उत्तर:
(अ) समूह में सदस्यों की संख्या सीमित होती है
प्रश्न 5.
कौन-सी विशेषता प्राथमिक समूह से सम्बन्धित नहीं है?
(अ) शारीरिक समीपता
(ब) समूह का लघु आकार
(स) सम्बन्धों की लम्बी अवधि
(द) अवैयक्तिक सम्बन्ध
उत्तर:
(द) अवैयक्तिक सम्बन्ध
प्रश्न 6.
राजनीतिक दल किस प्रकार के समूह का उदाहरण है?
(अ) क्षेत्रीय समूह
(ब) प्राथमिक समूह
(स) द्वितीयक समूह
(द) सन्दर्भ समूह
उत्तर:
(स) द्वितीयक समूह
प्रश्न 7.
परिवार एवं पड़ोस किस प्रकार के समूह के अन्तर्गत आते हैं?
(अ) प्राथमिक समूह
(ब) द्वितीयक समूह
(स) हित समूह
(द) कोई भी नहीं
उत्तर:
(अ) प्राथमिक समूह
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से किन्हें एक समूह के अन्तर्गत माना जाएगा –
(अ) बस में बैठे यात्री
(ब) किसी मेले में एकत्रित लोग
(स) काम करने वाले मजदूर
(द) छुट्टी के बाद भागते विद्यार्थी
उत्तर:
(स) काम करने वाले मजदूर
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से द्वितीयक समूह का चयन कीजिए –
(अ) पड़ोस
(ब) श्रमिक संघ
(स) परिवार
(द) क्लब
उत्तर:
(ब) श्रमिक संघ
प्रश्न 10.
सामाजिक प्रभाव के कितने प्रकार हैं?
(अ) पाँच
(ब) चार
(स) तीन
(द) दो
उत्तर:
(स) तीन
प्रश्न 11.
इसमें से मनोवैज्ञानिक नहीं है –
(अ) शेरीफ
(ब) रोजनबर्ग
(स) दुर्थीम
(द) ऐश
उत्तर:
(स) दुर्थीम
प्रश्न 12.
मिलग्राम ने निम्न में से किस पर प्रायोगिक अध्ययन किया है –
(अ) निर्णय-प्रक्रिया
(ब) अनुरूपता
(स) अनुपालन
(द) आज्ञपालन
उत्तर:
(द) आज्ञपालन
प्रश्न 13.
अपने निजी निर्णय के विरुद्ध यदि कोई सदस्य अपने समूह निर्णय के अनुकूल व्यवहार करे तो इसे कहते हैं –
(अ) अनुरूपता
(ब) पालन
(स) अवैयक्तिता
(द) एकरूपता
उत्तर:
(अ) अनुरूपता
प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से कौन अनौपचारिक समूह है –
(अ) स्कूल
(ब) परिवार
(स) अस्पताल
(द) गैर-सरकारी संघ
उत्तर:
(ब) परिवार
प्रश्न 15.
समूह निर्माण की कितनी अवस्थाएँ हैं?
(अ) पाँच
(ब) चार
(स) तीन
(द) दो
उत्तर:
(अ) पाँच
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समूह की प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समूह की प्रकृति:
1. सामाजिक इकाई:
समूह एक सामाजिक इकाई है, जिसमें व्यक्तियों के निश्चित पद एवं भूमिका के आधार पर एक-दूसरे से संरचित व स्थिर सम्बन्ध स्थापित करते हैं।
2. समान लक्ष्य:
समूह में एकत्रित व्यक्तियों या समूह के सदस्यों का लक्ष्य समान होता है। इसी लक्ष्य को पाने के लिए सभी सदस्य सक्रिय रूप से प्रयास करते हैं।
3. परस्पर निर्भरता:
समूह में सदस्यों का भाग्य एक-दूसरे पर निर्भर होता है। समूह के परिणाम का प्रभाव प्रत्येक सदस्य पर समान रूप से पड़ता है।
4. कार्यात्मक सम्बन्ध:
समूह के सदस्यों के मध्य कार्यात्मक सम्बन्ध पाए जाते हैं। समूह के सदस्य परस्पर रूप से विचारों का आदान-प्रदान करते हैं एवं अन्तक्रियाएँ करते हैं।
प्रश्न 2.
समूह सम्बन्ध का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
समूह सम्बन्ध का अर्थ यह है कि समूह सदस्यों के मध्य आपसी सम्बन्धों का स्वरूप कैसा है ? किसी समूह के सदस्यों के आपसी सम्बन्ध अनेक प्रकार से प्रभावित होते हैं –
- समूह का आकार बड़ा है अथवा छोटा है।
- समूह स्थायी है अथवा अस्थायी।
- समूह के उद्देश्य क्या-क्या हैं?
- समूह के सदस्यों की उम्र क्या है?
अधिकांश अध्ययनों के आधार पर ज्ञात किया गया है कि छोटे समूहों के सदस्यों के सम्बन्ध प्रत्यक्ष, अनौपचारिक व अस्थायी होते हैं। इसके विपरीत बड़े आकार वाले समूहों के सदस्यों के सम्बन्ध औपचारिक व अस्थायी होते हैं।
प्रश्न 3.
सामाजिक मानकों या प्रतिमानों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक मानकों का तात्पर्य उन नियमों, आदर्शों, मूल्यों एवं परम्पराओं की उस व्यवस्था से है जिनका विकास व जन्म व्यक्ति एवं समूहों के जीवन एवं व्यवहार को नियंत्रित एवं नियमित करने के लिए तथा समाज द्वारा स्वीकृत एक उचित स्तर बनाए रखने के लिए सामाजिक अन्त:क्रियाओं के परिणामस्वरूप हुआ है।
सामाजिक मानक अपने समूह के सदस्यों पर इतना सशक्त प्रभाव व दबाव डालने की क्षमता रखता है कि प्रत्येक सदस्य के लिए उसका पालन करना अनिवार्य हो जाता है। समाज में नियंत्रण वह कुछ विशेष नियमों व संकेतों के माध्यम से करता है जिन्हें समाज मनोवैज्ञानिकों ने सामाजिक मानकों की संज्ञा दी है। वास्तव में ये सामाजिक मानक समूह में संगठन, स्थायित्व और अनुशासन लाने के परिप्रेक्ष्य में एक बहुत ही उपयोगी उपकरण साबित होते हैं।
प्रश्न 4.
अनुरूपता की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुरूपता की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है –
1. अनुरूपता द्वारा समूह के सदस्यों के प्रत्यक्षणों, व्यवहारों व विश्वासों में समानता उत्पन्न होती है। समूह के सभी सदस्य समूह के मानकों के साथ अनुरूपता स्थापित करने के क्रम में समूह निर्णय के अनुकूल प्रत्यक्षण व व्यवहार करते हैं जिसमें से उनके प्रत्यक्षण व व्यवहारों में समानता उत्पन्न हो जाती है।
2. प्रायः समस्त समूहों में अनुरूपता की मात्रा तथा उसका वितरण भिन्न-भिन्न होता है। यहाँ तक कि किसी एक ही समूह के सभी सदस्यों में पायी जाने वाली अनुरूपता की मात्रा व वितरण में परस्पर भिन्नता पायी जाती है।
3. अनुरूपता अंशत: व्यक्तित्व के गुणों तथा अंशत: परिस्थिति के स्वरूप पर निर्भर करती है।
प्रश्न 5.
प्राथमिक समूह एवं द्वितीयक समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक समूह:
- इस समूह में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं।
- इनका आकार छोटा होता है।
- सदस्यों के उद्देश्य समान होते हैं।
- इनके सदस्यों के सम्बन्ध स्थायी होते हैं।
- इसमें अनौपचारिकता की विशेषता पायी जाती है।
द्वितीयक समूह:
- इस समूह में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं।
- इनका आकार बड़ा होता है।
- इनके सदस्यों के उद्देश्यों में प्रायः असमानता पायी जाती है।
- इनके सदस्यों के सम्बन्ध अस्थायी होते हैं।
- इसमें औपचारिकता पायी जाती है।
प्रश्न 6.
निर्वैयक्तिकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
निर्वैयक्तिकता पर टिप्पणी को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
- यह ऐसी मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति की वैयक्तिक पहचान, उसकी आत्म-अवगतता में आयी कमी के कारण समाप्त हो जाती है।
- इसमें व्यक्ति अपनी वैयक्तिक पहचान खोकर पूर्णत: समूह में आप्लावित हो जाता है।
- पहचान सम्भव नहीं होने के कारण व्यक्ति को अपने नकारात्मक मूल्यांकन का भय नहीं सताता है।
- इसमें व्यक्ति के आवेगशील, आक्रामक, हिंसक तथा समाज-विरोध व्यवहारों का प्रमुख स्रोत होती है।
प्रश्न 7.
द्वितीयक समूह की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
द्वितीयक समूह की विशेषताएँ:
- इन समूहों में शारीरिक निकटता का अभाव पाया जाता है।
- इन समूहों में सदस्यों के उत्तरदायित्व सीमित होते हैं।
- इनका निर्माण स्वतः नहीं होता है।
- इनके सम्बन्धों का स्वरूप घनिष्ठ नहीं होता है।
- ये समूह कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठित किए जाते हैं।
- ये समूह व्यक्ति के जीवन के किसी विशेष पहलू से ही सम्बन्धित होते हैं।
प्रश्न 8.
प्राथमिक समूहों को प्राथमिक’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
प्राथमिक समूहों को समय एवं महत्व की दृष्टि से प्राथमिक माना है। समय की दृष्टि से सर्वप्रथम बच्चा प्राथमिक समूहों; जैसे-परिवार, पड़ौस एवं मित्र-मंडली के ही सम्पर्क में आता है। अन्य समूहों का सदस्य तो वह बाद के जीवन में बनता है। चूँकि प्राथमिक समूह का व्यक्ति के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होता है। मुख्यत: इस कारण से कि वे व्यक्तियों की सामाजिक प्रकृति एवं आदर्शों के निर्माण में मौलिक होते हैं। समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा प्राथमिक समूह ही बच्चे को सर्वप्रथम संस्कृति, मूल्यों, आदर्शों आदि का ज्ञान कराते हैं एवं उन्हें सामाजिक आदर्शों के अनुरूप ढालने एवं आचरण करने में योग देते हैं।
RBSE Class 12 Psychology Chapter 7 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समूह के कार्यों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
उत्तर:
समूह के कार्यों को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. आवश्यकताओं की सन्तुष्टि:
समूह व्यक्तियों की प्राथमिक आवश्यकताएँ जैसे-रोटी, कपड़ा व मकान, सुरक्षा की व्यवस्था करता है साथ ही द्वितीयक आवश्यकताएँ; जैसे-अनुमोदन आवश्यकता तथा सम्मान आवश्यकता की पूर्ति करता है।
2. समूह लक्ष्य की प्राप्ति:
वास्तव में समूह का संगठन ही किसी विशिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किया जाता है। जैसे-शैक्षिक संस्थान, औद्योगिक संगठन तथा धार्मिक समूह आदि का निर्माण एक समान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किया जाता है, जिसको प्राप्त करने का कार्य इन समूहों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक समूह का अपना एक लक्ष्य होता है, जिसकी प्राप्ति का प्रयास समूह के सदस्यों के द्वारा सामूहिक तौर पर किया जाता है।
3. समाजीकरण का अभिकर्ता:
व्यक्ति के समाजीकरण में समूह एक महत्वपूर्ण अभिकर्ता के रूप में कार्य करते हैं। व्यक्ति के समाजीकरण में विभिन्न सामाजिक समूहों; जैसे-परिवार, पड़ोस, जाति-समूह, खेल-समूह आदि की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों तरह की भूमिका होती है।
4. समूह विचारधारा का सम्पोषण:
समूह अपने सदस्यों को अपनी विचारधारा को सीखने व स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है तथा इसके लिए उन पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से बल भी डालता है। परिणामतः समूह सदस्य विचारधारा का अधिगम करते हैं तथा तदनुसार व्यवहार भी करते हैं। इस तरह प्रत्येक समूह अपनी विचारधारा की सुरक्षा तथा इसके सम्पोषण का प्रयास करता है।
अत: उपरोक्त विवरण के अनुसार समूह के अनेक कार्य हैं। इन कार्यों को करने से समूह अपने अस्तित्व और प्रभावशीलता को कायम रख पाता है।
प्रश्न 2.
समूह निर्माण के कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समूह निर्माण के कारकों का उल्लेख निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. स्थानिक समीपता:
समूह निर्माण का एक प्रधान कारक स्थानिक समीपता है। एक स्थान पर रहने के कारण सदस्यों में अंतक्रिया अधिक होती है जिससे उनके मध्य सामाजिक दूरी कम हो जाती है। फलत: वे एक समूह के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। इसका उत्तम उदाहरण पास-पड़ोस के लोगों द्वारा विभिन्न तरह के समूहों का निर्माण करना है।
2. मनोवृत्तियों एवं व्यवहारों में समानता:
समान मनोवृत्तियों व व्यवहारों वाले लोग एक-दूसरे के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं जिससे समूह का निर्माण शीघ्र हो जाता है। किसी कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारी अपनी मनोवृत्तियों व व्यवहारों के साथ समानता प्रदर्शित करने वाले कर्मचारियों के साथ जुड़कर अपनी-अपनी मित्र-मंडली बना लेते हैं।
3. कार्यात्मक एकता:
इससे आशय व्यक्तियों के बीच किसी कार्य व उद्देश्य के सम्बन्ध में सहमति से होता है। मनोवैज्ञानिकों ने कार्यात्मक एकता को समूह-निर्माण का एक प्रमुख कारक माना है। जब सदस्यों में कार्यात्मक एकता उत्पन्न हो जाती है, तो वे व्यक्ति अपनी आपसी भिन्नताओं को दरकिनार करके आपस में एक समूह का निर्माण कर लेते हैं।
4. पारस्परिक क्रिया:
दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच विचारों व व्यवहारों के आदान-प्रदान की क्रिया को पारस्परिक क्रिया कहते हैं। जिन लोगों के बीच पारस्परिक क्रिया अधिक होती है, उनके बीच अन्तर्वैयक्तिक आकर्षण भी अधिक होता है जिससे उनमें एक-दूसरे के प्रति समझ बढ़ती है।
5. असुरक्षा तथा चिन्ता का भाव:
असुरक्षा व चिन्ता की तीव्र मात्रा व्यक्ति में सम्बन्धन आवश्यकता की उत्पत्ति पर व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा दूसरे लोगों के साथ रहना चाहता है और व्यक्तियों की यही प्रवृत्ति उन्हें समूह निर्माण के लिए प्रेरित करती है।
अतः उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारक; जैसे-बाहरी धमकियाँ, पूरक आवश्यकताएँ एवं इच्छाएँ तथा सामाजिक-आर्थिक समानता आदि भी समूह निर्माण प्रक्रिया को महत्वपूर्ण तरीके से प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 3.
प्राथमिक समूहों की आन्तरिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्राथमिक समूहों की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है –
1. उद्देश्यों की समानता:
प्राथमिक समूह में प्रत्येक सदस्य दूसरे के हित को ही अपना उद्देश्य बना लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दूसरों के हित में कार्य करता है, एक के उद्देश्य दूसरों के उद्देश्य बन जाते हैं। उद्देश्यों की समानता के कारण ही प्राथमिक समूह के सदस्यों में हम की भावना तीव्र होती है।
2. सम्बन्ध सम्पूर्ण होते हैं:
प्राथमिक समूहों में सम्पूर्णता का गुण पाया जाता है। ऐसे सम्बन्ध में व्यक्ति के जीवन का केवल एक पहलू ही नहीं आता, बल्कि व्यक्ति अपनी सम्पूर्णता के साथ इसमें भाग लेता है। प्राथमिक सम्बन्ध में बँधने वाले व्यक्ति दीर्घकाल से चले आ रहे परिचय तथा घनिष्ठ सम्पर्क के कारण एक-दूसरे को पूरी तरह जानते हैं।
3. सम्बन्धों का स्वतः विकास:
इन समूहों का विकास स्वतः ही होता है, इनके लिए किसी पर कोई दबाव नहीं डाला जा सकता है। प्राथमिक सम्बन्ध ऐच्छिक प्रकार के होते हैं। किसी के उकसाने से ऐसे सम्बन्ध स्थापित नहीं होते हैं। सम्बन्ध तो व्यक्ति की स्वयं की इच्छा से ही बनते हैं।
4. सम्बन्ध वैयक्तिक होते हैं:
इसका तात्पर्य यह है कि समूह में प्रत्येक व्यक्ति की अन्य लोगों में व्यक्तियों के रूप में रुचि होती है। ये सम्बन्ध हस्तान्तरित नहीं किए जा सकते। मित्र अथवा माता-पिता का स्थान अन्य व्यक्ति नहीं ले सकता।
5. प्राथमिक सम्बन्धों की नियंत्रण शक्ति:
सम्बन्धों की सम्पूर्णता एवं घनिष्ठता के कारण व्यक्ति का अस्तित्व साधारणतः प्राथमिक समूह में विलीन हो जाता है। प्राथमिक सम्बन्धों के कारण व्यक्ति एक-दूसरे के साथ ऐसा बँधा रहता है कि वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहता जो समूह के अन्य सदस्यों के लिए कष्टदायी हो अथवा जिससे आदर्श-प्रतिमानों की अवहेलना होती हो।
प्रश्न 4.
अनौपचारिक समूहों के महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अनौपचारिक समूहों का महत्व:
1. अनौपचारिक समूह अपने सदस्यों को अपनी संस्कृति से परिचित कराते हैं तथा संस्कृति के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण में योग देते हैं।
2. अनौपचारिक समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जन्म के समय बच्चा एक प्राणीशास्त्रीय इकाई मात्र होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा परिवार, पड़ौस, मित्र-मण्डली एवं अन्य समूह उसके व्यक्तित्व का निर्माण कर उसे एक सामाजिक प्राणी बनाते हैं।
3. अनौपचारिक समूह के सदस्यों में घनिष्ठ सम्बन्ध एवं सहयोग पाया जाता है। पारस्परिक वार्तालाप, हँसी-मजाक, मनोरंजन, तर्क-वितर्क, विचार-विनिमय, स्नेह, प्यार, सहयोग, सहानुभूति एवं त्याग आदि के कारण व्यक्ति को अनौपचारिक समूह में मानसिक शान्ति एवं सन्तोष प्राप्त होता है।
4. अनौपचारिक समूह सामाजिक नियमों के पालन में भी अपूर्व योग देते हैं। सामाजिक नियन्त्रण बनाए रखने की दृष्टि से ये समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। व्यक्ति अपने परिवारजनों, मित्रों, साथियों और पड़ोसियों की नजरों में गिरना नहीं चाहता। अत: वह साधारणत: कोई ऐसा कार्य नहीं करता जिसे लोग अनुचित समझते हों।
5. ये समूह व्यक्ति व समाज के बीच एक प्रमुख कड़ी का कार्य करते हैं। सम्पूर्ण समाज के विकास का श्रेय इन समूहों को ही जाता है।
6. ये समूह अपने सदस्यों को मनोवैज्ञानिक सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। ऐसे समूह का प्रत्येक सदस्य यह जानता है कि संकट के समय उसे समूह से सहायता मिल सकती है। इस प्रकार व्यक्ति इन समूहों के माध्यम से अपने व्यक्तित्व में सुरक्षा व्यवस्था को एकीकृत कर लेता है।
अत: उपरोक्त महत्व से स्पष्ट होता है कि अनौपचारिक समूह समाज में एक विशेष भूमिका का निर्वाह करते हैं।
प्रश्न 5.
सामाजिक मानक/प्रतिमान की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामाजिक मानक/प्रतिमान की विशेषताएँ:
1. सामाजिक मानक वास्तव में सामाजिक व्यवहारों को नियंत्रित करने का ऐसा साधन है जो बहुत अंशों में आत्मप्रेरित होता है। व्यक्ति स्वेच्छा से अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखता है तथा अपने सामाजिक मानकों का उल्लंघन करने से बचता है।
2. मानकों की एक विशेषता यह है कि इनमें अर्थात् रूढ़ियों, जनरीतियों, प्रथा, धर्म, कानून व फैशन में स्तरीकरण किया जा सकता है।
3. अधिकांश मानक रूढ़िवादी प्रकृति के होते हैं। केवल विधान एवं फैशन ही ऐसे मानक हैं जिनमें परिवर्तन लाना सरल है, किन्तु अन्य मानक; जैसे-रूढ़ि, परम्परा व प्रथा आदि में परिवर्तन लाना अत्यन्त कठिन है। इनमें परिवर्तन लाने के लिए कभी-कभी समाज सुधारकों को अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ती है।
4. कुछ सामाजिक मानक; जैसे-प्रथा या फैशन आदि अलिखित होते हैं तो कुछ आदर्श नियम जैसे कानून लिखित होते हैं।
5. सामाजिक मानक किसी समाज का प्रतिबिम्ब होता है। मानकों के आधार पर उस समाज में प्रचलित नियमों, परम्पराओं व प्रथाओं आदि का बोध होता है।
6. मानकों का सम्बन्ध समाज विशेष के सांस्कृतिक प्रतिरूपों से होता है जो सांस्कृतिक प्रतिरूप एक समाज की संस्कृति में विकसित हो जाता है वह उस समाज के मानकों से सम्बन्धित हो जाता है।
7. सामाजिक मानकों का विकास एकाएक या अचानक न होकर सामाजिक अन्तक्रियाओं के दौरान होता है। इसका कारण यह है कि आदर्श नियम को लोग धीरे-धीरे स्वीकार करते हैं और जब लोग उनका पालन करना अपना कर्त्तव्य समझने लगते हैं तभी उनका सही मायने में विकास समझा जाता है।
प्रश्न 6.
समूह द्वन्द्व के उत्पत्ति के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समूह में द्वन्द्व व मतभेद होने के कारणों का उल्लेख हम निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं –
1. विभिन्न लक्ष्य:
समूह के अन्तर्गत अनेक सदस्य होते हैं, जिसमें कुछ सदस्यों के उद्देश्य अलग भी होते हैं। ऐसी स्थिति में समूह में मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जो द्वन्द्व का कारण बनती है।
2. विभिन्न कार्य प्रणाली:
समूह के अन्तर्गत सदस्यों की संख्या अधिक होने से कार्य प्रणाली पर भी काफी प्रभाव पड़ता है क्योंकि समूह में कुछ सदस्यों का कार्य करने का तरीका अन्य सदस्यों से भिन्न होता है, जिससे सदस्यों में द्वन्द्व की स्थिति पैदा हो जाती है।
3. निर्णयों में अन्तर:
अनेक बार समूह में सदस्यों के मध्य निर्णयों को लेकर असंमजस की स्थिति बनी होती है। कुछ सदस्य निर्णयों को स्वीकार कर लेते हैं तथा कुछ सहमत नहीं होते हैं, इससे समूह में दरार उत्पन्न हो जाती है। फलस्वरूप सदस्यों के मध्य द्वन्द्व की स्थिति पैदा हो जाती है।
4. उपसमूहों का निर्माण:
कई बार समूहों में से कुछ उपसमूहों का भी निर्माण किया जाता है, परन्तु ये उपसमूहों के सदस्य: किसी विशेष हितों की पूर्ति के उद्देश्य से मुख्य समूह से तर्क करने लगते हैं, जिससे इनके मध्य द्वन्द्व उत्पन्न हो जाता है।
5. प्रतिस्पर्धा:
समूहों के सदस्यों के मध्य अनेक बार प्रतिस्पर्धा या प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रतियोगिता के उत्पन्न होने से समूह के सदस्यों में स्वार्थहित की भावना प्रबल होने लगती है तथा कुछ सदस्य अपने ही हितों की पूर्ति में लग जाते हैं जिससे अन्य सदस्य सहमत नहीं होते हैं, फलतः द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
6. संसाधनों का विभाजन:
अनेक बार समूह में सदस्यों के मध्य भौतिक व सामाजिक संसाधनों के विभाजन को लेकर भी द्वन्द्व उत्पन्न हो जाता है।
7. असमानता:
समूह के अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य की अपनी एक विशेष भूमिका व प्रस्थिति होती है, इन आधारों पर भी सदस्यों के मध्य द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
8. उचित वार्तालाप का अभाव:
समूहों में कई बार कुछ सदस्यों के मध्य उचित वार्तालाप का अभाव पाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सदस्यों के मध्य द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
अत: उपरोक्त कारणों से यह स्पष्ट होता है कि समूह में इन आधारों पर द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
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