Rajasthan Board RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्र Chapter 10 कारुण्यं रामभद्रस्य
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 10 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 10 वस्तुनिष्ठप्रश्नाः
प्रश्न 1.
तमसा, मुरला च का स्तः?
(क) लताद्वयम्
(ख) पात्रद्वयम्
(ग) नदीद्वयम्
(घ) सखिद्वयम्
उत्तर:
(ग) नदीद्वयम्
प्रश्न 2.
परित्यागोपरान्तः सीता आत्मानं कुत्र निक्षिप्तवती?
(क) गोदावरीप्रवाहे
(ख) गंगाप्रवाहे
(ग) रसातले
(घ) वाल्मीकि-आश्रमे
उत्तर:
(ख) गंगाप्रवाहे
प्रश्न 3.
छायारूपिणी सीता रामं कुत्र अमिलत्?
(क) दण्डकारण्ये
(ख) जनस्थाने
(ग) पञ्चवटीवने
(घ) आश्रमे
उत्तर:
(ग) पञ्चवटीवने
प्रश्न 4.
सीता कस्य प्रसादात् अदृश्याऽभवत्?
(क) लोपामुद्राप्रसादात्
(ख) तमसाप्रसादात्
(ग) वनदेवताप्रसादात्।
(घ) भगीरथीप्रसादात्
उत्तर:
(घ) भगीरथीप्रसादात्
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक-प्रश्नाः
प्रश्न 1.
विदेहराजपुत्री का आसीत्?
उत्तर:
सीता
प्रश्न 2.
सीतायाः पुत्रयोः किम् अभिधानम्?
उत्तर:
कुशः लवः च।
प्रश्न 3.
रामस्य अश्वमेध-सहधर्मचारिणी का आसीत्?
उत्तर:
हिरण्यमयी सीताप्रतिकृतिः।
प्रश्न 4.
स्तन्यत्यागोपरान्तं सीतायाः दारकद्वयं कुत्र नीतम्?
उत्तर:
महर्षेः वाल्मीकेः समीपम्।
प्रश्न 5.
‘कपीन्द्र’ शब्दः कस्य कृते प्रयुक्त?
उत्तर:
सुग्रीवस्य कृते।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 10 लघूत्तरात्मक-प्रश्नाः
प्रश्न 1.
गोदावरीहृदात् आगच्छती सीता कीदृशी आसीत्?
उत्तर:
गोदावरीहृदात् आगच्छती सीता परिपाण्डुदुर्बलकपोलसुन्दरं विलोलकबरीकम् आननं दधती करुणस्य मूर्तिः शरीरिणी विरहव्यथा इव आसीत्।
प्रश्न 2.
रामाय सीतायाः स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
उत्तर:
रामाय सीतायाः स्पर्श: पुरा परिचितः संजीवन: मनसः परितोषण: चासीत्।
प्रश्न 3.
तमसा सीतां कुत्र अनयत्?
उत्तम्-तमसा सीतां रामस्य समीपम् अनयत्।
प्रश्न 4.
रामचन्द्रेण कृतानि सीतायाः सम्बोधननामानि लिखत।
उत्तर:
देवी, दण्डकारण्यप्रियसखी, विदेहराजपुत्री, जानकी, नन्दिनी, वैदेही।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 10 निबन्धात्मक-प्रश्नाः
प्रश्न 1.
रामानुसारेण सीतायाः प्राप्ति विषये के के व्यर्थाः अभवन्?
उत्तर:
रामानुसारेण सीतायाः प्राप्तिविषये सुग्रीवस्य मित्रता, वानराणां पराक्रम्, जाम्बवन्तः प्रज्ञा, हनुमतः गतिः, नलस्य मार्गम्, लक्ष्मणस्य च बाणा: व्यर्थाः अभवन्।
प्रश्न 2.
अस्मिन् पाठे करुणरसस्य विश्लेषणं कुरुत।
उत्तर:
अस्मिन् पाठे सीतापरित्यागानन्तरं रामः यदा शम्बूकवध प्रसङ्गे दण्डकारण्ये आगच्छति, तदा तत्र वनवासकाले सीतया सह दण्डकारण्यस्य निवासस्थानानि दृष्टवा रामस्य विरहवेदनाया: विलापस्य तथा तत्रैव अदृश्यरूपेणागतायाः सीतायाः रामस्य करुणदशां दृष्ट्वा करुणदशायाश्च वर्णनं वर्तते। सीतां स्मृत्वा रामस्य करुणदशायां रामं दृष्ट्वा च सीतायाः करुणदशायां कविना करुणरसस्य हृदयग्राही वर्णनं कृतम्।
प्रश्न 3.
‘छायाङ्क’ इति नाम्नः सार्थकता प्रतिपादयतु।
उत्तर:
उत्तररामचरितनाटकस्य तृतीयाङ्कस्य नाम छायाङ्कः वर्तते। अस्मिन् अङ्के दण्डकारण्ये यदा रामः पूर्वपरिचितदृश्यानि दृष्ट्वा सीतां स्मृत्वा करुणविलापं करोति, तदैव सीता छायारूपेण तत्रागच्छति। छायारूपेण रामस्य सीतां प्रति स्नेहं दृष्ट्वा सीता अलौकिकानन्दस्यानुभूतिं करोति। वस्तुतः अस्मिन् अङ्के सीतारामयोः करुणदशाया: यच्चित्रणं कविना कृतम्, तत् वर्णनं सीतायाः छायारूपेणैव सम्भवमासीत्। छायादृश्यस्य कल्पना कवेः अद्भुतप्रतिभाया निदर्शनमस्ति, सर्वथा विषयानुकूलं प्रसङ्गानुरूपं चास्ति।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 10 व्याकरणात्मक-प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधो-लिखितेषु पदेषु नामोल्लेखपुरस्सरसन्धिः कार्यः
उत्तर:
प्रश्न 2.
अधो-निर्दिष्टानां सन्धिपदानां सन्धि-नाम-निर्देशपूर्वक-विग्रहो विधेयः
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखितानां समस्तपदानां नाम-निर्देश-पुरस्सर-विग्रहो विधेयः–
उत्तर:
प्रश्न 4.
अधोनिर्दिष्टेषु पदेषु शब्द-विभक्ति-वचन-निर्देशं कुरुत
उत्तर:
प्रश्न 5.
निम्नलिखितानां तिङन्तपदानां धातुः लकारः पुरुषः वचनं च पृथक् निर्दिश्यताम्-
उत्तर:
प्रश्न 6. निम्नलिखितेषु पदेषु प्रकृतिः प्रत्ययश्च पृथक्-पृथक् लिख्यताम्
उत्तर:
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 10 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. शब्दार्थाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितशब्दानाम् हिन्द्याम् अर्थं लिखत
उत्तर:
2. प्रश्ननिर्माणम्
प्रश्न 2.
रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
- रामस्य करुणः रसः पुटपाकप्रतीकाशः वर्तते।
- दीर्घशोकसन्तापेन परिक्षीणो रामभद्रः।
- रामभद्रस्य मोहे मोहे जीवं तर्पय।
- सीता संवेगादात्मानं गंङ्गाप्रवाहे निक्षिप्तवती।
- अहमप्येतं वृत्तान्तं लोपामुद्रायै निवेदयामि।
- शरीरिणी विरहव्यथेव जानकी वनमेति।
- पुष्पावचयव्यग्रा सीता प्रविशति।
- अयं वध्वा सार्धं पयसि विहरति।
- आर्यपुत्रेण एवैतद् व्याहृतम्।
- मोहः माम् प्राक् आवृणोति।
- त्वमेव ननु जगत्पतिं संजीवय।
- ततः भूम्यां निपतितः रामः प्रविशति।
- हा धिक्, आर्यपुत्रो मां मार्गिष्यते।
- अहमेवैतस्य हृदयं जानामि।
- विधिः तवानुकूलो भविष्यति।
उत्तर:
प्रश्ननिर्माणम्
- रामस्य करुणः रमः कीदृशः वर्तते?
- केन परिक्षीणो रामभद्रः?
- कस्य मोहे मोहे जीवं तर्पय?
- सीता संवेगादात्मानं कुत्र निक्षिप्तवती?
- अहमप्येतं वृत्तान्तं कस्यै निवेदयामि?
- शरीरिणी विरहव्यथेव का वनमेति?
- कीदृशी सीता प्रविशति?
- अयं कया सार्धं पयसि विहरति?
- केन एवैतद् व्याहृतम्?
- कः माम् प्राक् आवृणोति?
- त्वमेव ननु कम् संजीवय:?
- ततः भूम्यां निपतितः कः प्रविशति?
- हा धिक्, को मां मार्गिष्यते?
- अहमेवैतस्य किम् जानामि?
- कः तवानुकुलो भविष्यति?
3. भावार्थलेखनम्
प्रश्न 3.
अधोलिखितवाक्यानां हिन्दीभाषया भावार्थं लिखत
(i) पुटपाकप्रतीकाशी रामस्य करुणो रसः।
(ii) ईदृशानां विपाकोऽपि जायते परमाद्भुतः।
(iii) प्रियस्पर्शी हि पाणिस्ते तत्रैष निरतो जनः।
उत्तर:
(i) पुटपाकप्रतीकाशी रामस्य करुणो रसः
भावार्थ-प्रस्तुत वाक्यांश कारुण्यं रामभद्रस्य’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ भवभूति विरचित ‘उत्तररामचरितम्’ नाटक के तृतीय अंक (छायांक) से संकलित है। लोक निन्दा के कारण राजा राम अपनी प्रिय धर्मपत्नी सीता का परित्याग कर देते हैं। उसके विरह में वे अन्दर ही अन्दर अत्यधिक दुःखी हैं, किन्तु गम्भीर स्वभाव होने के कारण वे अपने अन्तर्मन की पीड़ा को बाहर व्यक्त नहीं करते हैं। उनकी इसी दशा का चित्रण प्रस्तुत कथन में करते हुए कहा गया है कि राम का करुण-रस पुटपाक के समान है। वैद्य दो पात्रों में औषधि को रखकर तथा उस पर मिट्टी का लेप करके उसे अग्नि में तपाता है, वह दवा अन्दर ही अन्दर पकती है, उसे पुटपाक कहते हैं। राम के हृदय में सीता के परित्याग की एक गूढ व्यथा सदैव रहती है, वे हमेशा मन ही मन उस व्यथा से पीड़ित है तथापि गाम्भीर्य के कारण उसे वे किसी के सामने प्रकट नहीं होने देते हैं। अतः यहाँ उनके हृदय में स्थित करुण-रस की तुलना पुटपाक से की गई है।
(ii) ईदृशानां विपाकोऽपि जायते परमाद्भुतः।
भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश ‘कारुण्यं रामभद्रस्य’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ महाकवि भवभूति विरचित ‘उत्तररामचरितम्’ नाटक के छायांक से संकलित है। अपने प्रजानुरञ्जन धर्म का पालन करने हेतु लोकनिन्दा के कारण श्रीराम अपनी प्रियतमा धर्मपत्नी सीता का परित्याग कर देते हैं तथा लक्ष्मण द्वारा उसे वन में छुड़वा देते हैं। अकारण अपने परित्याग से दु:खी सीता स्वयं को गंगाजी के प्रवाह में फेंक देती है, वहाँ भगवती गंगा और पृथ्वी उसकी रक्षा करती हैं तथा कुश एवं लव नामक सीताजी के दो पुत्र उत्पन्न होते हैं, उनको बाद में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में सौंप दिया जाता है। इसी प्रकरण में मुरली नामक नदी (पात्र विशेष) के द्वारा प्रस्तुत पद्यांश में कहा गया है कि इस प्रकार के सीता व राम जैसे महानुभावों की विपत्तियाँ भी अत्यन्त अद्भुत होती हैं, जहाँ कि गंगा, पृथ्वी आदि अलौकिक व्यक्ति भी सहायक होते हैं। अर्थात् दिव्य व्यक्तियों के विपत्तिग्रस्त होने पर दिव्य शक्तियाँ मानवरूप में उनकी सहायता करती हैं।
(iii) प्रियस्पर्शी हि पाणिस्ते तत्रैष निरतो जनः।
भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश ‘कारुण्यं रामभद्रस्य’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। सीतापरित्याग करने के बाद शम्बूक-वध करने के प्रसंग में राम दण्डकारण्य में आते हैं। वहाँ जब वे पञ्चवटी-क्षेत्र में विविध दृश्यों को देखते हैं, तो वनवास-काल में सीता के साथ बिताये गये दिनों का स्मरण करके उनके हृदय में सीता-विरह कर शोक फूट पड़ता है तथा सीता को विविध नामों से पुकारते हुए करुण-विलाप करते हैं एवं मूर्छित हो जाते हैं। उसी समय अदृश्य रूप में सीताजी भी वहाँ अपनी सखी तमसा के साथ आती है एवं राम की करुण तथा मूर्छित दशा को देखकर सीताजी भी अत्यन्त व्याकुल हो जाती है, वे तमसा से राम को होश में लाने की प्रार्थना करती है। इसी | प्रसंग में तमसा सीताजी से कहती है कि–
हे कल्याणि! तुम ही अपने हाथ के स्पर्श से श्रीराम को जीवित करो, क्योंकि इन्हें तुम्हारे हाथ का स्पर्श अत्यन्त प्रिय है और ये उसी के अभ्यस्त है। अर्थात् श्रीराम ने सीताजी के अतिरिक्त अन्य किसी का इस रूप में स्पर्श नहीं किया है, तथा सीताजी के पवित्र एवं शीतल स्पर्श से ही उनको होश में लाया जा सकता है। अतः सीता के स्पर्श करने से श्रीराम के हृदय में अलौकिक आनन्द का संचार होगा।
4. अन्वयलेखनम्
प्रश्नः अधोलिखितश्लोकानाम् अन्वयं लिखत
(i) अनिर्भिन्नो ……………………………………….. करुणो रसः॥
(ii) ईदृशानां विपाको ……………………………………….. विधो जनः॥
(iii) परिपाण्डु ……………………………………….. वनमेति जानकी॥
(iv) अपरिस्फुट ……………………………………….. स्थिता॥
(v) त्वमेव नेनु ……………………………………….. निरतो जनः॥
उत्तर:
[ नोट-इस पाठ के सभी श्लोकों का अन्वय पूर्व में पाठ के हिन्दीअनुवाद के साथ ही दिया जा चुका है, अतः वहाँ से सम्बन्धित श्लोकों का अन्वय देखकर लिखें।]
प्रश्नः 5.
पाठ्यपुस्तकाधारितं भाषिककार्यम्
(क) कर्तृक्रियापदचयनम्प्रश्नः-अधोलिखितवाक्येषु कर्तृक्रियापदयोः चयनं कुरुत
(i) ततः प्रविशति नदीद्वयम्
(ii) सीता देवी संवेगादात्मानं गङ्गाप्रवाहे निक्षिप्तवती
(iii) यत्रोपकरणीभावमायात्येवं विधो जनः।
(iv) अहमप्येतं वृत्तान्तं लोपामुद्रायै निवेदयामि।
(v) विरहव्यथेव वनमेति जानकी।
(vi) उत्पीड इव धूमस्य मोहः प्रागावृणोति माम्
(vii) ततः प्रविशति सीतया स्पृश्यमानः रामः।
(viii) हा धिक् किमित्यार्यपुत्रो मां मार्गिष्यते
(ix) मां प्रेक्ष्य राजाधिकं कोपिष्यति
(x) अहमेवैतस्य हृदयं जानामि।
उत्तर:
(ख) विशेषणविशेष्यचयनम्
प्रश्न (i)
‘प्रेषितास्मि सरिद्वरा गोदावरीमभिधातुम्’-इत्यत्र विशेष्यपदं किम्?
उत्तर:
गोदावरीम्
प्रश्न (ii)
‘कम्पितमिव कुसुमसमबन्धनं मे हृदयम्’–इत्यत्र विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
कुसुमसमबन्धनम्।
प्रश्न (ii)
‘महाप्रमादानि शोकस्थानानि शंकनीयानि’–इत्यत्र विशेष्यपदं किम्?
उत्तर:
शोकस्थानानि
प्रश्न (iv)
‘भगवतीभ्यां भागीरथी-पृथिवीभ्यामस्युपपन्ना’ इत्यत्र विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
भगवतीभ्याम्।
प्रश्न (v)
अधोलिखितवाक्येषु विशेषणविशेष्यपदचयनं कुरुत
1. अहं भगवत्यै लोपामुद्रायै निवेदयामि।
2. विलोककबरीकमाननं दधती जानकी वनमेति।
3. दीर्घशोकः परिपाण्डुक्षाममस्याः शरीरं ग्लपयति।
4. ततः प्रविशति पुष्पावचयव्यग्रा सीता।
5. जानामि प्रियसखी वासन्ती व्याहरतीति।
उत्तर:
(ग) सर्वनाम-संज्ञा-प्रयोगः
प्रश्नः
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकित सर्वनामपदस्य स्थाने संज्ञापदस्य प्रयोगं कृत्वा वाक्यं पुनः लिखत
- परित्रायस्व मम तं पुत्रकम्।
- एतावदेदानीं मम बहुतरम्।
- अद्याप्यानन्दयति मां त्वम्।
- न माम् एवं विधं त्यक्तुमर्हसि।
- तदनुजानीहि मां गमनाय।
- अस्ति चेदानीमश्वमेधसहधर्मचारिणी मे।
- आर्यपुत्र, इदानीमसि त्वम्।
उत्तर:
- परित्रायस्व सीतायाः तं पुत्रकम्।
- एतावदेदानीं सीतायाः बहुतरम्।
- अद्याप्यानन्दयति रामं त्वम्।
- ने रामम् एवं विधं त्यक्तुमर्हसि।
- तदनुजानीहि रामं गमनाय।
- अस्ति चेदानीमश्वमेधसहधर्मचारिणी रामस्य।
- आर्यपुत्र, इदानीमस्ति रामः।
प्रश्नः
निम्नलिखितवाक्येषु सर्वनामपदचयनं कृत्वा लिखत
- तमवलोक्य कम्पितमिव मे हृदयम्।
- त्वया तत्र सावधानतया भवितव्यम्।
- दारकद्वयं तस्य प्राचेतस्य महर्षे समर्पितम्।
- परित्रायस्व मम तं पुत्रकम्।
- नन्वार्यपुत्रेणैवैतद् व्याहृतम्।
- त्वमेव ननु कल्याणि संजीवय जगत्पतिम्।
- आर्यपुत्रो मां मार्गिष्यते।
- असदृशं खल्वेतस्य वृत्तान्तस्य।
उत्तर:
- तम्, मे
- त्वया
- तस्य
- मम, तम्
- एतद्
- त्वम्
- माम्
- एतस्य।
(घ) समानविलोमपदचयनम्-
प्रश्नः
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां पर्यायबोधकपदानि लिखत
- प्रेषितास्मि अगस्त्यस्य पत्न्या गोदावरीमभिधातुम्।
- अनीर्भिन्नो गभीरत्वादन्तगूढधनव्यथः।
- स्वैरं स्वैरं प्रेरितैस्तर्पयेति।
- उचितमेव दाक्षिण्यं स्नेहस्य।
- तदैव तत्र द्वारकद्वयं प्रसूता।
- किं भणसि अपरिस्फुटेति।
- वत्से समाश्वसिहि।
- आर्यपुत्रस्योपरि निरनुक्रोशा भविष्यामि।
उत्तर:
- भार्यया
- अविदीर्ण:
- मन्दं मन्दम्
- औदार्यम्
- पुत्रद्वयम्
- कथयसि
- धैर्य धारयतु
- निर्दया।
प्रश्नः
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां विलोमार्थकपदानि लिखते
- उचितमेव दाक्षिण्यं स्नेहस्य।
- सञ्जीवनोपायः तु रामभद्रस्याद्य संनिहितः।
- विमानराज अत्रैव स्थीयताम्।
- एतावदेदानीं मम बहुतरम्।
- असदृशं खल्वेतस्य वृत्तान्तस्य।
- जन्मान्तरेष्वपि दुर्लभं दर्शनमस्य माम्।
- आर्यपुत्रस्योपरि निरनुक्रोशा भविष्यामि।
- दु:खाय एवेदानीम् रामदर्शनम्।
उत्तर:
- अनुचितमेव
- मारणोपायः
- गम्यताम्
- न्यूनतरम्
- सदृशम्
- सुलभम्
- सानुक्रोशा
- सुखाय।
(ङ) कः कस्मै कथयतिप्रश्नः-अधोलिखित वाक्यानि कः कस्मै कथयति
(i) किं भणसि अपरिस्फुटेति?
(ii) त्वमेव ननु कल्याणि! संजीवय जगत्पतिम्।
(iii) भगवति! मां प्रेक्ष्य राजाधिकं कोपिष्यति।
(iv) अहमेवैतस्य हृदयं जानामि।
(v) न मामेवं विधं त्यक्तुमर्हसि।
(vi) तदनुजानीहि मां गमनाय।
(vii) महानयं व्यतिकरोऽस्माकं प्रसादः।
उत्तर:
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