Rajasthan Board RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 गीतामृतम्
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः
प्रश्न 1.
श्रीमद्भगवद्गीता महाभारतस्य कस्मिन् पर्वणि अस्ति?
(क) भीष्म पर्वणि
(ख) वन पर्वणि
(ग) सभा पर्वणि
(घ) विराट् पर्वणि
उत्तर:
(क) भीष्म पर्वणि
प्रश्न 2.
धनञ्जयः कस्य अपरं नाम?
(क) युधिष्ठिरस्य
(ख) भीमस्य
(ग) सहदेवस्य
(घ) अर्जुनस्य
उत्तर:
(घ) अर्जुनस्य
प्रश्न 3.
योगस्य लक्षणं वर्तते
(क) रतिः
(ख) समत्वम्
(ग) वितृष्णा
(घ) आसक्तिः
उत्तर:
(ख) समत्वम्
प्रश्न 4.
स च मे प्रियः’ वाक्येऽस्मिन् ‘मे’ कस्यकृते प्रयुक्त:?
(क) अर्जुनस्य
(ख) भीष्मस्य
(ग) श्रीकृष्णस्य
(घ) वेदव्यासस्य
उत्तर:
(ग) श्रीकृष्णस्य
प्रश्न 5.
रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम्
उत्तर:
(क) योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
(ख) सः यत्प्रमाणं कुरुते लोकः तदनुवर्तते।
(ग) उद्धरेत् आत्मना आत्मानम्, न आत्मानम् अवसादयेत्।
(घ) शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अकर्मणः कः ज्यायः?
उत्तर:
अकर्मणः कर्म ज्यायः।
प्रश्न 2.
आत्मनः बन्धुः कः?
उत्तर:
आत्मा एवं आत्मनः बन्धुः।
प्रश्न 3.
योगः कस्य कृते दुष्प्राप भवति?
उत्तर:
असंयतात्मना योगः दुष्प्राप भवति।
प्रश्न 4,
जनकादयः केन सिद्धिमास्थिताः?
उत्तर:
जनकादयः कर्मणा एव सिद्धिमास्थिताः।
प्रश्न 5.
‘शुभाशुभपरित्यागी’ इति कस्य लक्षणम्?
उत्तर:
इति ईश्वरप्रियस्य (योगिनः) लक्षणम्।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
कस्मात् शरीरयात्रा न प्रसिद्धयेत्?
उत्तर:
अकर्मणः शरीरयात्रा न प्रसिद्धयेत्।
प्रश्न 2.
आत्मनः रिपुः आत्मा कथम्?
उत्तर:
यतोहि आत्मना एव आत्मनः उद्धारं भवति तथा आत्मा एव आत्मनः बन्धुः, अतः आत्मना एवं आत्मनः विनाशकारणाद् आत्मा एवं आत्मनः रिपुः।
प्रश्न 3.
युक्तस्य का परिभाषा?
उत्तर:
युक्तः आहारविहारस्य, कर्मसु युक्तचेष्टस्य तथा सर्वकामेभ्यः नि:स्पृहः युक्तः कथ्यते।
प्रश्न 4.
भगवन्तं ( श्रीकृष्णम् ) के प्राप्नुवन्ति?
उत्तर:
सर्वत्र समबुद्धयः, इन्द्रियग्रामं सन्नियम्य सर्वभूतहिते रताः जनाः भगवन्तं (श्रीकृष्णम्) प्राप्नुवन्ति।
प्रश्न 5. श्रीकृष्णस्य कृते के प्रियः सन्ति?
उत्तर:
सर्वभूतानाम् अद्वेष्टा, मैत्र:, करुणः, निर्ममः, निरहंकारः, सम-दुःखसुखः, क्षमी, यस्मात् लोकः न उद्विजते, यः लोकात् न उद्विजते, हर्षामर्षभयोद्वेगैः मुक्तः, यः न हृष्यति, न द्वेष्टि, न शोचति, न कांक्षति तथा शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः चैतादृशाः श्रीकृष्णस्य कृते प्रियः सन्ति।
प्रश्न-
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितान् पदान् आश्रित्य प्रश्ननिर्माण कुरुत
उत्तर:
(क) लोकसंग्रहम् एवापि सम्पश्यन् (कर्म) कर्तुमर्हसि।
कम् एवापि सम्पश्यन् (कर्म) कर्तुमर्हसि?
(ख) स यत्प्रमाणं कुरुते लोकः तदनुवर्तते।
स यत्प्रमाणं कुरुते कः तदनुवर्तते? न आत्मानम् अवसादयेत् न कम् अवसादयेत्?।
(घ) ते प्राप्नुवन्ति माम् एव सर्वभूतहिते रताः।
ते प्राप्नुवन्ति कम् एव सर्वभूतहिते रताः?
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
कर्मयोगस्य महत्त्वं प्रतिपादयत?
उत्तर:
कर्मयोगस्य महत्त्वं प्रतिपादयन् भगवता श्रीकृष्णेन कथितं यत् समत्वं योगः कथ्यते। सङ्गं त्यक्त्वा, योगस्थः भूत्वा, सिद्ध्यसिद्धयोः समो भूत्वा कर्माणि करणीयानि। नियतं कर्मकर्त्तव्यम्, यतोहि अकर्मणः कर्म ज्यायः, अकर्मणः च शरीरयात्रापि न प्रसिद्धयेत्। जनकादयः कर्मणा एव संसिद्धिमास्थिता। श्रेष्ठः यत् यत् आचरति, तदेव इतरः जनः आचरति, सः यत् प्रमाणं कुरुते, लोक तदनुवर्तते।
प्रश्न 2.
पञ्चमश्लोकस्य व्याख्या विधेया।
उत्तर:
प्रस्तुतश्लोकः ‘गीतामृतम्’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः श्लोकोऽयं श्रीमद्भगवद्गीतात: संकलितः। अस्मिन् श्लोके अर्जुनं प्रति समुपदिशन् श्रीकृष्णः कथयति यत् स्वयमेव स्वस्य रक्षा करणीया। स्वस्य आत्मानम् कदापि न पीडयेत्। यतोहि संसारे अन्यः कोऽपि कस्यापि न तु बन्धुः न च शत्रुः वर्तते। जनः स्वस्य स्वयमेव मित्रमस्ति, तथा च स्वयमेव स्वस्य शत्रुरपि वर्तते।
प्रश्न 3.
भक्तियोगस्य लक्षणानि प्रतिपादयत।
उत्तर:
‘गीतामृतम्’ इति पाठानुसारं भगवान् श्रीकृष्णः कथयति यत् ये जनाः सर्वेषु समबुद्धयः इन्द्रियसमूहं सम्यक् नियन्त्रणं कृत्वा सर्वेषां प्राणीनां कल्याणरताः सन्ति, ते ईश्वरं ( श्रीकृष्णं) प्राप्नुवन्ति। यः जनः सर्वथा द्वेषरहितः, मैत्रः, करुणः, ममतारहितः, निरहंकारः, यस्मात् लोकः न उद्विजते, यश्च स्वयं लोकात् न उद्विजते, हर्षामर्षभयोद्वेगैः मुक्तः, यः न हर्षति, न द्वेषं करोति, न शोचति, न कांक्षति, शुभाशुभपरित्यागी, भक्तिमान् च वर्तते, सः भक्तः ईश्वरप्रियः भवति।
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 व्याकरणात्मक प्रश्ना
प्रश्न 1.
अधोलिखितपदेषु नामोल्लेखपुरस्सरसन्धिः कार्यः।
उत्तर:
प्रश्न 2.
अधोनिर्दिष्टानां सन्धिपदानां सन्धि-नाम-निर्देशपूर्वक-विच्छेदो विधेयः।
उत्तर:
प्रश्न 3.
अधोलिखितानां पदानां नाम-निर्देशपूर्वक-समासो विधेयः।
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्नलिखितानां समस्तपदानां नाम-निर्देश-पुरस्सर-विग्रहो विधेयः।
उत्तर:
प्रश्न 5.
अधोनिर्दिष्टेषु शब्द-विभक्ति-वचन-निर्देशं कुरुत।
उत्तर:
प्रश्न 6.
निम्नलिखितानां तिङ्गतपदानां धातुः-लकारः-पुरुषः-वचनञ्च पृथक् निर्दिश्यताम्।
उत्तर:
प्रश्न 7.
निम्नलिखितेषु पदेषु प्रकृतिः प्रत्ययश्च पृथक् लिख्यताम्।
उत्तर:
प्रश्न 8.
अधोनिर्दिष्टान् पदान् आश्रित्य वाक्यानि रचयत।
उत्तर:
RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. शब्दार्थाः
प्रश्नः- अधोलिखितशब्दानाम् हिन्द्याम् अर्थं लिखत।
उत्तर:
2. प्रश्ननिर्माणम्
प्रश्नः-रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
- योगस्थः भूत्वा कर्माणि कुरु।
- सङ्गं त्यक्त्वा कर्माणि कुरुत।
- समत्वं योग उच्यते।
- त्वं नियतं कर्म कुरु।
- अकर्मणः कर्म ज्यायः।
- जनकादयः कर्मणा सिद्धिमास्थिताः।
- श्रेष्ठः यथा आचरति तथा इतरः जनः आचरति।
- आत्मना आत्मानम् उद्धरेत्।
- आत्मानं न अवसादयेत्।
- आत्मा एव आत्मनः बन्धुः।
- सर्वकामेभ्यः नि:स्पृहः युक्तः उच्यते।
- तस्य अहं न प्रणश्यामि।
- असंयतात्मना योगः दुष्प्रापः भवति।
- सर्वभूतहिते रताः मामेव प्राप्नुवन्ति।
- भक्तिमान् मे प्रियः भवति।
उत्तर:
प्रश्ननिर्माणम्
- योगस्थः भूत्वा कानि कुरु?
- किं त्यक्त्वा कर्माणि कुरुत?
- किं योग उच्यते?
- त्वं कीदृशं कर्म कुरु?
- कस्मात् कर्म ज्यायः?
- जनकादयः केन सिद्धिमास्थिताः?
- कथम् इतरः जनः आचरति?
- केन् आत्मानम् उद्धरेत्?
- कम् न अवसादयेत्?
- आत्मा एवं कस्य बन्धुः?
- केभ्यः नि:स्पृहः युक्तः उच्यते?
- कस्य अहं न प्रणश्यामि?
- केन योगः दुष्प्रापः भवति?
- के मामेव प्राप्नुवन्ति?
- कः मे प्रियः भवति?
3. भावार्थलेखनम्
प्रश्नः अधोलिखितपद्यांशानाम् हिन्दीभाषया भावार्थं लिखत
(i) समत्वं योगः उच्यते।
(ii) कर्म ज्यायो हि अकर्मणः।
(iii) यद्यदाचरति श्रेष्ठः तत्तदेवैतरो जनः।
(iv) आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।
(v) शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।
उत्तर:
(i) समत्वं योगः उच्यते।
भावार्थ-मूलतः श्रीमद्भगवद्गीता से उद्धृत प्रस्तुत पद्यांश में योग का लक्षण देते हुए भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि समत्व अर्थात् समानता की मनोवृत्ति को ही योग कहा जाता है। सभी कर्मों से छूटने का सर्वोत्तम उपाय समत्व योग है। आसक्ति को त्यागकर, समानता का भाव धारण करके और सफलता एवं असफलता में समान होकर कर्म करना ही समत्व योग कहा जाता है। इस कथन से श्रीकृष्ण ने नि:स्वार्थ भाव एवं हर्ष, शोकादि से रहित होकर कर्म करने की प्रेरणा दी है।
(ii) कर्म ज्यायो हि अकर्मणः।
भावार्थ-प्रस्तुत श्लोकांश ‘गीतामृतम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ भगवद्गीता से संकलित है। भगवान् कृष्ण अर्जुन को निष्काम कर्म करने का उपदेश देते हैं। वे कहते हैं कि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है। और यदि वह कर्म निष्काम भाव से किया जावे तो कहना ही क्या ! यह भी सत्य है कि सर्वथा कर्मों का त्याग सम्भव नहीं है क्योंकि शरीर के निर्वाह के लिए कुछ न कुछ कर्म तो तुम्हें करना ही पड़ेगा। यदि ऐसी बात है तो क्षत्रिय के लिए शास्त्र निर्धारित युद्ध को क्यों ने किया जाये। शास्त्रविहित कर्म न करने से तुम्हारा पतन ही होगा। अतः हर दृष्टिकोण से कर्म करना कर्म नहीं करने से श्रेष्ठ है।
(iii) यद्यदाचरति श्रेष्ठः तत्तदेवैतरो जनः।
भावार्थ- भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि संसार में श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, दूसरा जन-समुदाय भी उस-उसका ही आचरण करता है। भाव यह है कि संसार में मानव अनुकरण करता है। श्रेष्ठ पुरुष जैसा-जैसा काम करता है, दूसरे लोग भी देखा-देखी वैसा ही करने लगते हैं। श्रेष्ठ पुरुष अपने अच्छे गुणों तथा आचरण के कारण लोगों की श्रद्धा तथा विश्वास के पात्र बन जाते हैं। अतः वे जो भी आचरण करते हैं, उसे लोग श्रेष्ठ कर्म समझ उसी के अनुसार कर्म करने लगते हैं। इससे सृष्टि की व्यवस्था ठीक ढंग से चलती है। भाव यह है कि तुम श्रेष्ठ क्षत्रिय वीर हो तथा लोगों के समक्ष एक आदर्श हो। अतः तुम क्षत्रियजनोचित युद्ध-रूपी कर्तव्य कर्म को करो जिससे सृष्टि की व्यवस्था बनी रहे, जिससे जन-समुदाय तुम्हारे आचरण से सही शिक्षा ग्रहण करे तथा उचित मार्ग पर चले।
(iv) आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।
भावार्थ- भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य स्वयं ही स्वयं का मित्र है और स्वयं ही स्वयं का शत्रु है। भाव यह है कि हमारा अन्य कोई मित्र अथवा शत्रु है। सभी तरह से स्वयं पर नियन्त्रण करके, आसक्ति को त्यागकर, हर्ष, द्वेष, शोकादि से रहित होकर समत्वभाव से निष्काम कर्म करने वाला मनुष्य भगवान् का प्रिय हो जाता है, तथा मोह, माया आदि से ग्रसित होकर स्वार्थवश कर्म करने वाला मनुष्य स्वयं का ही शत्रु बन जाता है। अर्थात् श्रेष्ठ कर्म करने एवं स्वयं को नियन्त्रित रखने वाला मनुष्य स्वयं को ही मित्रवत् उपकार करता है तथा इसके विपरीत कर्म करने से शत्रु के समान मनुष्य स्वयं का ही विनाश कर लेता है।
(v) शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।
भावार्थ- भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य सभी प्रकार शुभ और अशुभ कर्मों के फलों का त्याग करने वाला है एवं भक्ति से युक्त है, वह मुझे प्रिय है। अर्थात् निष्काम भाव से कर्म करने वाला, समत्व बुद्धि से युक्त एवं सबकुछ भगवान् पर छोड़कर अपने श्रेष्ठ कर्तव्य का पालन करता है, वह ईश्वर का परम भक्त है। फल की इच्छा का त्याग करके ही श्रेष्ठ कर्म करना चाहिए।
4. अन्वयलेखनम्
प्रश्नः-अधोलिखितश्लोकानाम् अन्वयं लिखत
(i) योगस्थः कुरु कर्माणि …………………………………………. योग उच्यते ॥ 1 ॥
(ii) यद्यदाचरति …………………………………………. तदनुवर्तते ॥ 4 ॥
(iii) युक्ताहारविहारस्य …………………………………………. इत्युच्यते तदा ॥ 6 ॥
(iv) सन्नियम्येन्द्रियग्रामं …………………………………………. रताः ॥ 9 ॥
(v) यो न हृष्यतिः …………………………………………. स मे प्रियः ॥ 12 ॥
उत्तर:
[नोट-पाठ के अन्तर्गत श्लोकों का हिन्दी अनुवाद जहाँ दिया गया है, वहाँ श्लोक संख्या 1, 4, 6, 9 एवं 12 का अन्वय देखें। इसी प्रकार अन्य श्लोकों का अन्वय भी वहीं देखकर लिखिए।]
5. पाठ्यपुस्तकाधारितं भाषिककार्यम्
(क) कर्तृक्रियापदचयनम्
प्रश्नः
अधोलिखितपद्यांशेषु कर्तक्रियापदयोः चयनं कुरुत
(i) नियतं कुरु कर्म त्वम्।
(ii) यद्यदाचरति श्रेष्ठः।
(iii) लोकस्तदनुवर्तते।
(iv) कर्मणैव संसिद्धिमास्थिताः जनकादयः।
(v) युक्त इत्युच्यते तदा।
(vi) यो मां पश्यति सर्वत्र।
(vii) तस्याहं न प्रणश्यामि।
(viii) स च मे न प्रणश्यति।
(ix) ते प्राप्नुवन्ति मामेव।
(x) लोकान्नोद्विजते च यः।
उत्तर:
(ख) विशेषणविशेष्यचयनम्
प्रश्नः (i) त्वं नियतं कर्म कुरु।” इत्यत्र विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
नियतम्।
प्रश्नः (ii)
“तत्तदेवेतरो जनः आचरति।” इत्यत्र ‘जनः’ इत्यस्य विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
इतरः।
प्रश्नः (iii)
“असंयतात्मना योगः दुष्पः भवति।” इत्यत्र ‘असंयत’ इत्यस्य विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
आत्मना।
प्रश्नः (iv)
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।” इत्यत्र यतता’ इत्यस्य विशेष्यपदं किम्?
उत्तर:
वश्यात्मना।
प्रश्नः (v)
“सर्वेषां भूतानां हिते रताः।” इत्यत्र ‘सर्वेषाम्’ इत्यस्य विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
भूतानाम्।
प्रश्नः (vi)
“भक्तिमान् सः मे प्रियः।” इत्यत्र ‘सः’ इत्यस्य विशेषणपदं किम्?
उत्तर:
भक्तिमान्
(ग) सर्वनाम-संज्ञा-प्रयोगः
प्रश्नः अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदस्य स्थाने संज्ञापदस्य प्रयोगं कृत्वा वाक्यं पुनः लिखत
- त्वं नियतं कर्म कुरु।
- सः यत् प्रमाणं कुरुते लोकः तत् अनुवर्तते।
- त्वम् एवं कर्म कर्तुम् अर्हसि।
- ते माम् एव प्राप्नुवन्ति सर्वभूत हिते रताः।
- असंयतात्मा योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।
उत्तर:
- हे अर्जुन! नियतं कर्म करोतु।
- श्रेष्ठः जनः यत् प्रमाणं कुरुते लोकः तत् अनुवर्तते।
- हे अर्जुन! एवं कर्म कर्तुम् अर्हति।
- ते श्रीकृष्णम् एव प्राप्नुवन्ति सर्वभूतहिते रताः।
- असंयतात्मा योगो दुष्प्राप इति श्रीकृष्णस्य मतिः।
प्रश्नः-अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां सर्वनामपदानि लिखत
- हे अर्जुन ! त्वं नियतं कर्म कुरु।
- धनञ्जय ! त्वं सङ्गं त्यक्त्वा कर्माणि कुरु।
- सः यत् प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।
- यो जनः मां पश्यति सर्वत्र।
- सर्वं च मयि कृष्णे पश्यति।
- स च जनः मे ने प्रणश्यति।
- ते समबुद्धयः मामेव प्राप्नुवन्ति।
- भक्तिमान् सः मे प्रियः।
उत्तर:
- त्वम्,
- त्वम्,
- यत्,
- यः,
- मयि,
- सः,
- ते,
- सः।
(घ) समानविलोमपदचयनम्
प्रश्नः अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां पर्यायबोधकपदानि लिखत
- सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जयः कर्माणि करोतु।
- कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
- आत्मैव रिपुः आत्मनः।
- उद्धरेत् आत्मना आत्मानम्।
- यो मां पश्यति सर्वत्र।
- मैत्र: करुण एव च।
- तत्तदेवेतरो जनः।
- त्वं नियतं कर्म कुरु।
- लोकः तत् अनुवर्तते।
उत्तर:
- अर्जुनः, पार्थः।
- श्रेष्ठः, उत्तमः।
- शत्रुः, अरिः।
- जायेत्, रक्षेत्।
- अवलोकयति।
- प्रियः।
- मानवः, नरः।
- निश्चितम्, शास्त्रविहितम्।
- संसारः, जगत्।
प्रश्न:
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां विलोमार्थकपदानि लिखत
- त्वं नियतं कर्म कुरु।
- अकर्मणः कर्म ज्यायः।
- आत्मैव आत्मनः बन्धुः।
- आत्मैव रिपुः आत्मनः।
- युक्तः इत्युच्यते तदा।
- असंयतात्मना योगो दुष्प्रापः भवति।
- सर्वत्र समबुद्धयः।
- समदु:खसुखः क्षमी।
- अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्।
- स च मे प्रियः।
उत्तर:
- अनियतम्,
- कर्मणः,
- शत्रुः,
- मित्रम्,
- अयुक्तः
- वश्यात्मना,
- विपरीतबुद्धयः,
- सुखम्,
- द्वेषयुक्तः
- अप्रियः।
(ङ) कः कं कथयति
प्रश्नः अधोलिखितपद्यांशेषु कः के प्रति कथयति
(i) योगस्थः कुरु कर्माणि।
(ii) नियतं कुरु कर्म त्वम्।
(iii) अकर्मणः ते शरीरयात्रापि न प्रसिद्धयेत्।
(iv) लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि।
(v) ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।
(vi) न आत्मानम् अवसादयेत्।
(vii) भक्तिमान् यः स मे प्रियः।
उत्तर:
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