Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 भारत में संरचनात्मक परिवर्तन-परम्परा एवं आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अभ्यासार्थ प्रश्न
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
आजादी से पहले भारत के लोगों में गतिशीलता को किसने बढ़ाया?
(अ) अंग्रेजों ने
(ब) फ्रांसीसियों ने
(स) पुर्तगालियों ने
(द) डचों ने
उत्तरमाला:
(अ) अंग्रेजों ने
प्रश्न 2.
‘मॉडर्नाइजेशन ऑफ इण्डियन ट्रेडीशन्स’ पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) श्रीनिवास
(ब) योगेन्द्र सिंह
(स) दुबे
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) योगेन्द्र सिंह
प्रश्न 3.
भारतीय सनातन परम्परा में जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्या घोषित किया गया है?
(अ) धर्म
(ब) अर्थ
(स) मोक्ष
(द) काम
उत्तरमाला:
(स) मोक्ष
प्रश्न 4.
योगेन्द्र सिंह ने आधुनिकता के कितने लक्षण बताए हैं?
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तरमाला:
(द) चार
प्रश्न 5.
तकनीक ने भौगोलिक दूरी को …………… है।
(अ) बढ़ाया
(ब) कम किया
(स) बदलाव नहीं
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) कम किया
प्रश्न 6.
पारिवारिक तनाव को किसने बढ़ाया है?
(अ) नगरीकरण
(ब) औद्योगीकरण
(स) दोनों ने
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) दोनों ने
प्रश्न 7.
ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात कब हुआ?
(अ) 1560 के आस – पास
(ब) 1460 के आस – पास
(स) 1760 के आस – पास
(द) 1860 के आस – पास
उत्तरमाला:
(स) 1760 के आस – पास
प्रश्न 8.
लन्दन की आबादी बढ़ने का कारण क्या था?
(अ) पश्चिमीकरण
(ब) संस्कृतिकरण
(स) औद्योगीकरण
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) औद्योगीकरण
प्रश्न 9.
ब्रिटिश भारत में औद्योगीकरण का प्रारम्भिक प्रभाव क्या पड़ा?
(अ) ग्रामीण कारीगर कृषि की तरफ झुके
(ब) कुटीर उद्योग – धन्धों का विकास
(स) उपर्युक्त दोनों
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) ग्रामीण कारीगर कृषि की तरफ झुके
प्रश्न 10.
आजादी के बाद भारत में सरकार ने कैसी आर्थिक नीति प्रारम्भ की?
(अ) सार्वजनिक क्षेत्र को प्रोत्साहन
(ब) निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन
(स) मिश्रित
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(स) मिश्रित
प्रश्न 11.
भारत वर्तमान में कैसा देश है?
(अ) कृषि प्रधान
(ब) उद्योग प्रधान
(स) सेवा प्रधान
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) कृषि प्रधान
प्रश्न 12.
व्यवहार में कृत्रिमता तथा दिखावा किस प्रक्रिया का परिणाम है?
(अ) नगरीकरण
(ब) संस्कृतिकरण
(स) ब्राह्मणीकरण
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) नगरीकरण
प्रश्न 13.
जनगणना 2011 के अनुसार भारत में एक लाख से अधिक तथा दस लाख से कम आबादी वाले शहरों की संख्या कितनी है?
(अ) 408
(ब) 409
(स) 411
(द) 412
उत्तरमाला:
(द) 412
प्रश्न 14.
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार महानगरों (मेगासिटी) की संख्या कितनी है?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) एक
उत्तरमाला:
(ब) तीन
प्रश्न 15.
वर्तमान में भारत की सबसे बड़ी मेगासिटी कौन – सी है?
(अ) दिल्ली
(ब) कोलकाता
(स) ग्रेटर मुम्बई
(द) चेन्नई
उत्तरमाला:
(स) ग्रेटर मुम्बई
प्रश्न 16.
उपभोक्ता संस्कृति के केन्द्र हैं –
(अ) नगर
(ब) गाँव
(स) राज्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) नगर
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय समाज एवं संस्कृति पर सर्वाधिक प्रभाव किस विदेशी संस्कृति का पड़ा है?
उत्तर:
ब्रिटिश संस्कृति का प्रभाव सर्वाधिक भारतीय समाज एवं संस्कृति पर पड़ा है।
प्रश्न 2.
भारत में चाय बागानों का विकास किसने किया?
उत्तर:
भारत में चाय बागानों का विकास अंग्रेजों ने अपने हितों के पूर्ति के लिए किया।
प्रश्न 3.
अंग्रेजों ने भारत में किस भाषा का प्रचार – प्रसार किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रचार – प्रसार किया।
प्रश्न 4.
व्यक्ति पर समूह की प्रधानता को स्थापित करने वाली परम्परा की विशेषता कौन – सी है?
उत्तर:
“सामूहिक सम्पूर्णता” व्यक्ति पर समूह की प्रधानता को स्थापित करने वाली परम्परा की विशेषता है।
प्रश्न 5.
“कर्म एवं पुनर्जन्म” की अवधारणा किसकी पोषक है?
उत्तर:
“कर्म एवं पुनर्जन्म” की अवधारणा निरंतरता की पोषक है।
प्रश्न 6.
भूत एवं वर्तमान के बीच कड़ी का काम कौन करती है?
उत्तर:
‘परम्परा’ भूत एवं वर्तमान के बीच कड़ी का एक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
प्रश्न 7.
धर्मनिरपेक्षता किसका लक्षण है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता आधुनिकता की अवधारणा का एक प्रमुख लक्षण है।
प्रश्न 8.
श्रम – विभाजन के बढ़ने से विभिन्न समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
श्रम विभाजन के बढ़ने से विभिन्न समुदायों में परस्पर अंतर्निर्भरता में वृद्धि हुई है।
प्रश्न 9.
सामाजिक पृथक्करण की भावना में कमी का क्या कारण है?
उत्तर:
सामाजिक पृथक्करण की भावना में कमी का प्रमुख आधुनिक शिक्षा, औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा श्रम – विभाजन की प्रक्रिया है।
प्रश्न 10.
वर्तमान में कौन – सी प्रस्थिति महत्त्वपूर्ण होती जा रही है?
उत्तर:
वर्तमान समय में प्रदत्त प्रस्थिति के स्थान पर अर्जित प्रस्थिति का महत्त्व बढ़ा है।
प्रश्न 11.
वंशानुगत नेतृत्व कौन से समाज की विशेषता रही है?
उत्तर:
वंशानुगत नेतृत्व परम्परागत समाज की एक अनूठी विशेषता रही है।
प्रश्न 12.
‘धर्मनिरपेक्षता’ के मूल्य में वृद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के मूल्य में वृद्धि का कारण प्रमुख कारण आधुनिकता है।
प्रश्न 13.
लोगों का रुझान कृषि के स्थान पर किस क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है?
उत्तर:
लोगों का रुझान कृषि के स्थान पर सेवा क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है।
प्रश्न 14.
मशीनों द्वारा उत्पादन बढ़ाने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर:
मशीनों द्वारा उत्पादन बढ़ाने की प्रक्रिया को “औद्योगीकरण” कहते हैं।
प्रश्न 15.
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में विश्व का सबसे बड़ा नगर कौन – सा था?
उत्तर:
लंदन बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में विश्व का सबसे बड़ा नगर था, जिसकी आबादी लगभग 7 करोड़ थी।
प्रश्न 16.
फोर्ट विलियम की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
1698 में फोर्ट विलियम की स्थापना रक्षा एवं सैन्य ठिकाने के विकास के उद्देश्य से की गई थी।
प्रश्न 17.
भारत में चाय उद्योग का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर:
भारत में 1851 ई. में असम में चाय उद्योग का प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 18.
लोगों के जीवन स्तर में सुधार का क्या कारण है?
उत्तर:
लोगों के जीवन स्तर में सुधार का प्रमुख कारण आधुनिक शिक्षा, विज्ञान, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण आदि है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
औपनिवेशिक काल में भारत में समाज की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत में समाज की स्थिति को निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है –
- भारत में समाज कई वर्गों व स्तरों में विभाजित था, जिसमें लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि करना था।
- समाज में जाति – प्रथा के कारण समाज में निम्न जातियों के साथ भेदभाव या छुआछूत की भावना पाई जाती थी।
- भारतीय समाज में एक स्वस्थ शिक्षा पद्धति का अभाव था।
- अंग्रेजों ने भारतीय समाज में फसल निर्धारण, उत्पादन प्रणाली व वितरण व्यवस्था आदि में परिवर्तन किए थे।
- भारत में जनजातियाँ जंगलों में निवास करती थीं तथा जंगलों के उत्पादों से ही अपना जीवन – यापन भी करते थे।
- अंग्रेजों ने चाय के बागान लगवाए।
- समाज में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार किया।
- अंग्रेजों ने अपने आर्थिक हितों की अधिकतम पूर्ति हेतु भारतीय लोगों की गतिशीलता में वृद्धि की।
प्रश्न 2.
योगेन्द्र सिंह के अनुसार भारत में परम्परा की विशेषताएँ बनाइए।
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री योगेन्द्र सिंह ने अपनी पुस्तक “Modernisation of Indian Traditions” में भारतीय परम्परा की चार महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख किया है –
- सामूहिक सम्पूर्णता:
यह धारणा व्यक्तियों पर समूह की प्रधानता को स्थापित करती है। इस प्रवृत्ति ने जाति, गाँव आदि में व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान के स्थान पर सामूहिक समूह की पहचान को जन्म दिया है। - संस्तरण:
समाज में जातियों का ऊँच – नीच के आधार पर एक संस्तरण पाया जाता है। समाज में जाति, गुण तथा लक्ष्य संस्तरणात्मक व्यवस्था को स्थापित करते हैं। - परलोकवादी विचारधारा:
इसके अंतर्गत जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना है जो जीवन में संन्यास आश्रम के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। - निरंतरता:
समाज में परम्परा का आधार निरंतरता की प्रवृत्ति का होना है। इसके साथ ही कर्म व पुनर्जन्म की अवधारणा निरन्तरता की पोषक है।
प्रश्न 3.
परम्परा में परिवर्तन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
परम्परा भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही चली आ रही है। ये समाज में पीढ़ी – दर – पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। प्रसिद्ध विद्वान एडवर्ड शील्स का कहना है कि “परम्परागत समाज न तो पूर्णतया परम्परागत है और न ही आधुनिक समाज पूर्णतया परम्परा मुक्त।” भारतीय समाज में परम्परा में परिवर्तन दो प्रकार से दृष्टिगोचर होता है –
- प्रत्यक्ष परिवर्तन:
यह वह परिवर्तन है जो समय – समय पर हमारी परम्पराओं में होते रहे हैं, जैसे – जैन, बौद्ध, आर्य समाज, ब्रह्म समाज आदि के चिंतकों ने अपनी विचारधाराओं से भारतीय परम्परा में परिवर्तन किया है। - संरचनात्मक परिवर्तन:
भारतीय सामाजिक संरचना में पर-संस्कृतिकरण तथा सात्मीकरण की परम्परा रही है, अर्थात् हमारी सामाजिक संरचना में परिवर्तनों को स्वीकार करने का संरचनात्मक प्रावधान विद्यमान था, जिससे बदलाव में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई।
प्रश्न 4.
आधुनिकता के लक्षण कौन – कौन से होते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता सोचने – समझने अथवा विचार का एक विशिष्ट दृष्टिकोण होता है, जो तर्क पर आधारित होता है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री योगेन्द्र सिंह ने आधुनिकता के चार लक्षणों का उल्लेख किया है –
- व्यक्तिवादिता:
इसके अंतर्गत व्यक्ति में औपचारिकता का समावेश होता है। - समानता:
यह व्यक्ति को समाज में रहते हुए उसे विकास करने के लिए समान अवसर प्रदान करता है, जिससे सदस्यों में समानता की भावना बनी रहती है। - परिवर्तन के प्रति आस्था:
आधुनिकता की धारणा समाज में परिवर्तन का सूचक है। एक व्यक्ति को आधुनिक तभी कहा जा सकता है, जब उसके अंतर्गत परिवर्तन को स्वीकार करने की क्षमता व आस्था दोनों हों। - धर्म – निरपेक्षता:
यह आधुनिकता का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है, जो समाज में सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखने को प्रेरित करता है।
प्रश्न 5.
एन. के. सिंघी के अनुसार आधुनिकता में कौन से तत्त्व होते हैं?
उत्तर:
प्रसिद्ध विद्वान एन. के. सिंघी ने. आधुनिकता की अवधारणा पर अपने विचारों को व्यक्त किया है, उनके अनुसार आधुनिकता में प्रमुख तौर पर तीन तत्त्वों की प्रधानता होती है, जो निम्न प्रकार से है –
- तार्किकता:
आधुनिकता की अवधारणा एक प्रकार से तर्क पर ही आधारित है। तर्क के बिना आधुनिकता की प्रक्रिया को समझा नहीं जा सकता है। तार्किकता के आधार पर ही व्यक्ति सही व गलत तथ्यों की पहचान कर सकते हैं। - वैज्ञानिकता:
वैज्ञानिकता की धारणा आधुनिकता की प्रक्रिया का सार है। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर घटनाओं की प्रकृति की जाँच की जा सकती है। विज्ञान वह होता है जहाँ ‘किन्तु या परन्तु’ की गुंजाइश न पाई जाए। - आर्थिक संरचना:
मार्क्स के अनुसार किसी भी समाज का विकास उसकी आर्थिक संरचना पर निर्भर करता है। यदि आर्थिक संरचना सबल है तो समाज विकसित अवस्था की ओर अग्रसर होगा, किन्तु यदि समाज में आर्थिक उत्पादन प्रणाली कमजोर है तो उस समाज में विकास पतन की ओर अग्रसर होगा।
प्रश्न 6.
औद्योगीकरण के प्रारम्भ के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हस्त उपकरणों के स्थान पर निर्जीव शक्ति द्वारा संचालित मशीनों के आधार पर किया जाता है। औद्योगीकरण के प्रारम्भ के विषय को कुछ बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं, जो इस प्रकार से है –
- 17वीं सदी से लेकर 18वीं सदी के मध्य में यूरोप में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी विकास हुआ, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 1760 ई. में ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत हुई।
- औद्योगिक क्रान्ति के द्वारा मशीनों से उत्पादन प्रारम्भ हुआ।
- औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया ने ब्रिटेन एवं यूरोप में औद्योगीकरण की ओर बढ़ावा प्रदान किया।
- औद्योगीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप समाज में श्रम – विभाजन, विशेषीकरण व नगरीकरण आदि में वृद्धि हुई।
प्रश्न 7.
‘मेनचेस्टर प्रतियोगिता’ क्या है?
उत्तर:
वस्त्र उद्योग में रेशम तथा सूती वस्त्र के निर्माण एवं ब्रिकी बाजार में माँग बढ़ने से दो देशों के वस्त्र उद्योगों के मध्य जो प्रतियोगिता हुई, उसे ‘मेनचेस्टर प्रतियोगिता’ कहते हैं। मेनचेस्टर प्रतियोगिता के कारण सूरत नाकी, तंजौर, मुर्शिदाबाद आदि स्थानों के बने हुए वस्त्र ब्रिटिश संरक्षण के मेनचेस्टर में बने कपड़े भारत की उच्च कोटि की तुलना में बहुत ही सस्ते थे। इस प्रतियोगिता के कारण भारत के वस्त्र उद्योग की माँग कम हो गई थी, जबकि ब्रिटिश में बने कपड़ों की माँग में वृद्धि हो गई थी।
प्रश्न 8.
जॉब चारनॉक ने कौन से क्षेत्र पट्टे पर लिए थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में प्राचीन शहरों का उनकी व्यावसयिक गतिविधियाँ ठप पड़ने से अस्तित्व कमजोर हो गया तथा इनकी जगह नए औपनिवेशिक शहरों का उद्भव तथा विकास हुआ। उसी समय भारत में कोलकाता पहला औपनिवेशिक शहर था। तभी सन् 1690 में ‘जॉब चारनॉक’ नाम के एक अंग्रेज व्यापारी ने लाभ प्राप्ति व व्यापार के लिए हुगली नदी के तट के तीन गाँवों को व्यापार का केन्द्र बनाने के लिए पट्टे पर लिया, जिनमें प्रमुख नाम शामिल हैं –
- कोलीकाता (गाँव)।
- गोविंदपुर (गाँव)।
- सुतानुती (गाँव)।
इसके पश्चात् 1698 में फोर्ट विलियम की स्थापना रक्षा एवं सैन्य ठिकाने का विकास करने के उद्देश्य से की गई थी।
प्रश्न 9.
भारत में चाय उद्योग पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारत में चाय उद्योग पर आधारित निम्नलिखित तथ्यों को बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
- भारत में 1851 में असम के क्षेत्र में चाय उद्योग का प्रारम्भ किया गया था।
- भारत में अधिकतर चाय बागान मालिक अंग्रेज व्यापारी थे।
- 1903 में असम के चाय बागानों में 4790 स्थायी तथा 930 अस्थायी लोगों को काम पर रखा गया था, जिनमें अधिकांश मजदूर बिहार एवं झारखंड के थे।
- श्रमिकों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए अंग्रेजों ने Transport of Native Labour Act, No.111. 1863 में बनाया, जिसमें 1865, 1870 व 1873 में संशोधन कर दिया गया था।
- चाय बागानों के अंतर्गत श्रमिकों की स्थिति काफी दयनीय थी, जबकि मालिकों का जीवन विलासितापूर्ण था।
प्रश्न 10.
स्वतंत्रता पश्चात् भारत में कौन – कौन से औद्योगिक क्षेत्र अस्तित्व में आए?
उत्तर:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया से समाज में परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए। औद्योगीकरण के कारण भारी मशीनों द्वारा निर्मित उद्योग – धंधों का तेजी से विकास हुआ। रूई, जूट, कोयला खानें, रेलवे, लोहा, इस्पात उद्योग भारत के प्रथम आधुनिक उद्योग थे। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने देश के तीव्र आर्थिक विकास का लक्ष्य रखा था।
इसके अंतर्गत भारत सरकार ने परिवहन, सुरक्षा, ऊर्जा तथा संचार आदि उद्योगों को सम्मिलित किया था। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिसके अंतर्गत कुछ क्षेत्र सरकारी क्षेत्र में आरक्षित रखे गए तथा कुछ क्षेत्र निजी में रखे गए। आजादी के बाद मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई आदि प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र अस्तित्व में आए थे। इसके अलावा फरीदाबाद, पुणे, बोकारो, बड़ौदा तथा दुर्गापुर आदि अन्य क्षेत्र भी औद्योगिक बन गए थे।
प्रश्न 11.
नगरीकरण की प्रक्रिया से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर:
‘नगरीकरण’ की अवधारणा नगरों में होने वाले विकास की प्रक्रिया को इंगित करती है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री डेविस के अनुसार – “नगरीकरण एक निश्चित प्रक्रिया है। परिवर्तन का वह चक्र है जिससे कोई समाज कृषक से औद्योगिक समाज में परिवर्तित होता है।”
नगरीकरण का समाज पर पड़ने वाले प्रभाव या उसकी विशेषताएँ:
- प्रव्रजन के माध्यम से शहरी जनसंख्या में वृद्धि होती है।
- कृषि कार्य गैर – कृषि कार्यों में परिवर्तित हो जाते हैं।
- लोगों का औद्योगिक व्यवसायों के प्रति रुझान बढ़ता है।
- पुराने नगरों में तेजी से जनसंख्या बढ़ती है तथा साथ ही नए नगरों की भी उत्पत्ति होती है।
प्रश्न 12.
भारत में मेगासिटीज के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत में कुल आबादी का 31.16 फीसदी शहरी आबादी है जो कि आजादी के बाद की प्रथम जनगणना 1951 में 17.29% थी। इस प्रकार पिछले 60 वर्षों में 2011 तक भारत की कुल आबादी में ग्रामीण आबादी का हिस्सा लंगातार कम हो रहा है एवं नगरीय आबादी का हिस्सा बढ़ रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले नगर महा – नगर (Megalopis/Megacities) की संख्या 3 थी। भारत में 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले मेगा-सिटी निम्नलिखित हैं –
प्रश्न 13.
जजमानी प्रथा की समाप्ति के क्या कारण दिखाई देते हैं?
उत्तर:
जजमानी व्यवस्था की अवधारणा का प्रथम प्रयोग समाजशास्त्र में विलियम वाइजर ने अपनी पुस्तक “The Hindu Jajmani System” में किया है। जजमान का शाब्दिक अर्थ है – ‘यजमान’ अर्थात् जो सेवाएँ लेते हैं। पर वहीं, एक अन्य शब्द है परजन अर्थात् जो सेवाएँ देते हैं। अर्थात् यह वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत प्राचीन समाजों में निम्न जाति (परजन) के सदस्य अपनी सेवाएँ ऊँची जातियों (जजमान) को देते हैं तथा उन सेवाओं के बदले वे उन्हें पारिश्रमिक देते हैं। जजमानी प्रथा के समाप्ति के अग्र कारण इस प्रकार से हैं –
- शिक्षा के प्रसार के परिणामस्वरूप लोगों में जागरूकता का संचार हुआ है।
- औद्योगीकरण के कारण लोगों को नए रोजगार की प्राप्ति हुई है।
- नगरीकरण के कारण लोगों में जातीय भेद में कमी आई है।
- धन के महत्त्व में वृद्धि से भी इस प्रथा का समाज में अंत हो गया है।
- मानसिकता को परिवर्तित करने में संचार के साधनों ने भी अहम् भूमिका का निर्वाह किया है।
प्रश्न 14.
उपभोगवादी प्रवृत्ति में विकास के क्या कारण हैं?
उत्तर:
उपभोगवादी प्रवृत्ति में विकास के अनेक कारण हैं –
- नगरों के विकास एवं पश्चिमी मूल्यों को बढ़ावा मिलने से उपभोगवादी प्रवृत्ति का विकास हुआ है।
- भौतिक साधनों में वृद्धि जैसे – कूलर, फ्रिज, टी. वी., सिलाई मशीन, फैंसी साधन आदि के कारण इस प्रवृत्ति का विकास हुआ है।
- साधनों में उपयोगिता के गुण में वृद्धि होने से इस प्रवत्ति का विकास हुआ है।
- जीवन – शैली में सुधार होने से भी इसका समाज में विकास हुआ है।
- सुख – सुविधाओं में सुधार होने से भी वृद्धि हुई है।
प्रश्न 15.
इन्द्रियपरक संस्कृति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन्द्रियपरक संस्कृति वह संस्कृति है जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने के प्रयास करता है। आज के भौतिकवादी युग में लोगों को एक उच्च जीवन जीने के लिए अनेक साधनों को जुटाना होता है जिससे वह आसानी से अपना जीवन – यापन कर सके। वर्तमान समय में नगरीय जीवन का प्रभाव, आपसी होड़ या प्रतियोगिता व पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से इन्द्रियपरक संस्कृति समाज के लोगों पर हावी होती जा रही है। समाज में सदस्यों की इच्छाएँ अब असीमित हो गई हैं। उनमें संतोष की भावना का अभाव पाया जाता है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परम्परा तथा आधुनिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परा तथा आधुनिकता की अवधारणा का स्पष्टीकरण निम्न प्रकार से है –
1. परम्परा:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री फेयरचाइल्ड ने अपनी पुस्तक ‘Dictionary of Sociology’ में परम्परा के अमूर्त तत्त्व पर बल दिया है। वे इसे सोच और भावनाओं का मिला – जुला रूप मानते हैं, जो विरासत में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता है। अर्थात् मूल्यों, प्रतिमानों व जीवन की पद्धति की प्रचलित प्रणालियाँ जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरन्तर हस्तांतरित होती रही हैं।
अतः परम्परा में निम्नलिखित तत्त्व सम्मिलित होते हैं –
- परम्परा में जड़ता होती है जो सहज ही परिवर्तन को स्वीकार नहीं करती। इसमें परिवर्तन आसानी से नहीं होता है।
- इसमें अभौतिक तत्त्वों की प्रधानता होती है। जैसे – विश्वास, आदर्श, विचार, ज्ञान व व्यवहार के तरीके।
- इसमें निरंतरता पाई जाती है।
- इसमें कठोरता भी पाई जाती है।
- परम्परा में स्वीकृति के लक्षण होते हैं, उन्हें समाजीकरण की प्रक्रिया में ही आत्मसात् करा दिया जाता है। अतः उन्हें प्रत्येक व्यक्ति स्वीकार कर लेता है।
- परम्परा का सम्बन्ध भूतकाल से होता है।
2. आधुनिकता:
शाब्दिक रूप में आधुनिकता परम्परा के विपरीत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उत्तर – औद्योगिक काल की देन है। आधुनिकता एक दृष्टिकोण होता है जिसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गतिशीलता पाई जाती है। यह गतिशीलता हमारे धार्मिक जीवन, आर्थिक जीवन, चिंतन व अन्य तरीकों में देखी जा सकती है। संक्षेप में हम आधुनिकता को निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर समझ सकते हैं –
- आधुनिकता व्यक्ति व समाज में प्रदत्त पदों के स्थान पर अर्जित पदों को स्थापित करती है।
- यह एक दृष्टिकोण है जो परम्पराओं में परिवर्तन किए जाने के उपरान्त विकसित होता है।
- आधुनिकता रूढ़िगत परम्पराओं को स्वीकार नहीं करती है।
- तर्कवाद तथा विज्ञान के प्रति रुझान आधुनिकता का अनिवार्य लक्षण है।
- इसमें गतिशीलता को महत्त्व दिया जाता है।
- इसमें व्यक्ति अपनी प्रस्थिति व वर्ग को अपनी योग्यता के अनुसार बदल सकता है।
प्रश्न 2.
परम्परा एवं आधुनिकता के मध्य क्या सम्बन्ध हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सामान्यत:
आधुनिकता एवं परम्परा को एक – दूसरे का विरोधी माना जाता है। यह भी सच है कि परम्परागत समाज वर्तमान आधुनिक समाजों का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक सभी क्षेत्रों में अनुकरण कर रहे हैं परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि परम्परागत समाज आधुनिक से एकदम भिन्न है और परम्परागत ही हैं तथा आधुनिक समाज में परम्पराओं का कोई महत्त्व नहीं है।
वास्तविकता यह है कि कोई भी समाज न तो पूर्णत: आधुनिक होता है और न ही पूर्णतः परम्परागत। किसी भी समाज में आधुनिकता का निर्माण भी परम्परा के कन्धों व अनुभवों पर ही होता है। इस कारण वह भूत व वर्तमान के बीच एक कड़ी है। प्रो. शील्स परम्परा व आधुनिकता को एक सातत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। इन दोनों अवधारणाओं में पाए जाने वाले सम्बन्धों को हम निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –
- समाज में आर्थिक क्षेत्रों में विकास हुआ है व आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहे हैं।
- समाज में विषमता व विभाजन के स्थान पर समरसता व समानता को बढ़ावा मिला है।
- प्रदत्त प्रस्थिति के स्थान पर अर्जित प्रस्थिति का महत्त्व बढ़ा है।
- औद्योगीकरण व नगरीकरण की प्रक्रियाओं में वृद्धि हुई है।
- देश की जनसंख्या में नगरीय अनुपात बढ़ा है।
- प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि हुई है।
- समाज की प्रकृति अधिकाधिक लोकतांत्रिक हुई है।
- धार्मिक कट्टरता के स्थान पर धर्मनिरपेक्षता का विकास हुआ है।
- समाज में जन्म के स्थान पर गुण व योग्यता का महत्त्व बढ़ा है।
- वर्तमान समाज खुले समाज का पक्षधर है।
- वस्तु के स्थान पर मुद्रा विनिमय का प्रचलन बढ़ा है।
- धर्म, जाति व रंग आदि के आधार पर भेदभाव कम हुआ है।
- संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन बढ़ा है।
- व्यक्तिवादिता की भावना का संचार हुआ है।
- जागीरदारी तथा जमींदार प्रथा का उन्मूलन हुआ है।
प्रश्न 3.
औद्योगीकरण का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है? प्रकाश डालिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण का भारतीय समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का विवरण इस प्रकार से है –
- नगरीकरण:
औद्योगीकरण के कारण विशाल नगरों का विकास हुआ, जहाँ उद्योग स्थापित हो जाते हैं वहाँ कार्य करने के लिए गाँव में अनेक लोग आकर बस जाते हैं व धीरे-धीरे वह स्थान औद्योगिक नगर का रूप ले लेता है। - श्रम: विभाजन एवं विशेषीकरण:
जब उत्पादन मशीनों की सहायता से होने लगा तो सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया को अनेक छोटे – छोटे भागों में बाँट दिया गया। इसी कारण श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण का समाज में उदय हुआ। - उत्पादन में वृद्धि: औद्योगीकरण में श्रम:
विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण व मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्रा में होने लगा। - यातायात के साधनों का विकास:
कारखानों में कच्चे माल को तथा निर्मित माल को मंडियों तक पहुँचाने में यातायात के साधनों ने एक अहम् भूमिका निर्वाह किया है। अनेक साधनों जैसे – रेल, मोटर, वायुयान व जहाज आदि का आविष्कार हुआ, कच्ची व पक्की सड़कें बनीं। - सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि:
इस प्रक्रिया से सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। लोग अपने व्यवसाय, स्थान व विचारों में परिवर्तन करने लगे। - स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन:
औद्योगिक नगरों में स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त कर धनोपार्जन करने लगी। इससे उनकी पारिवारिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। - मानवीय शक्ति में वृद्धि:
इससे मानव की शक्तियों में वृद्धि हुई। उसने अनेक आविष्कारों एवं वैज्ञानिक खोजों के द्वारा मशीनों का आविष्कार किया है जिससे समस्त कार्य आसानी से हो जाते हैं। - राजनीतिक प्रभाव:
औद्योगीकरण के कारण देश में अनेक राजनीतिक व संसदीय सुधार हुए। दबाव समूहों के रूप में श्रम संघों का उदय हुआ। उनके प्रतिनिधि राज्य विधानसभाओं व संसद में जाने लगे।
प्रश्न 4.
भारत में नगरीकरण पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
‘नगर’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘सिटी’ (City) का हिन्दी अनुवाद है। स्वयं ‘सिटी’ शब्द लैटिन भाषा के सिविटाज’ (Civitas) से बना है जिसका तात्पर्य है नागरिकता। नगरीकरण शब्द नगर से ही बना है। सामान्यतः नगरीकरण का अर्थ नगरों के उद्भव, विकास, प्रसार एवं पुनर्गठन से लिया जाता है। वर्तमान औद्योगिक नगर औद्योगीकरण की ही देन हैं।
आज विश्व में सभी देशों में नगरीकरण की गति में तीव्रता से वृद्धि हुई है जैसे पहले कभी नहीं रही है। विकासशील देशों में जहाँ विश्व की तीन – चौथाई जनसंख्या रहती है, वहाँ जनसंख्या का स्थानान्तरण गाँव से नगरों की ओर बहुत हुआ है और हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में विश्व की नगरीय आबादी तीव्र गति से बढ़ी है।
नगरीकरण की विशेषताएँ:
- नगरीकरण में लोग नगरों में अन्य व्यवसायों को करने के लिए जाते हैं।
- नगरीकरण ग्रामों के नगरों में बदलने की प्रक्रिया का नाम है।
- नगरीकरण जीवन जीने की एक विधि है जिसका प्रसार नगरों से गाँवों की ओर होता है। नगरीय जीवन जीने की विधि को नगरीयता या नगरवाद कहते हैं। नगरवाद केवल नगरों तक ही सीमित नहीं होता है वरन् गाँव में रहकर भी लोग नगरीय जीवन – विधि को अपना सकते हैं।
- नगरीकरण के प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भारत में अनेक सामाजिक परिवर्तन हुए हैं।
- नगरीकरण के कारण भारतीयों के विचार एवं मूल्यों में परिवर्तन आया है।
- परम्परावादी विचारों के स्थान पर वैज्ञानिक सोच का विकास हुआ है।
- आधुनिक शिक्षा, विज्ञान आदि के कारण समाज में भेदभावों में कमी आई है।
- संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ है तथा नगरीय परिवारों का चलन बढ़ा है।
- नगरों में उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का विकास हुआ है।
- नगरों में पाश्चात्य जीवन शैली व पश्चिमी मूल्यों को प्रोत्साहन मिलता है।
- आधुनिक प्रवृत्ति का विकास नगरों में ही हुआ है।
- नगरों में द्वितीयक व तृतीयक समूहों की प्रधानता होती है।
- पश्चिमी शिक्षा पद्धति का विकास नगरों में ही हुआ है।
- महिलाओं की प्रस्थिति में बदलाव आया है, जिससे उनमें सजगता आई है, अपने अधिकारों के प्रति।
- नगरीकरण से लोगों के जीवन में विश्वव्यापीकरण को बल मिला है।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
परिवर्तन का सम्बन्ध किससे है?
(अ) गतिशीलता
(ब) निरंतरता
(स) दोनों से
(द) किसी से नहीं
उत्तरमाला:
(स) दोनों से
प्रश्न 2.
विदेशी जाति कौन – सी है?
(अ) गोंड
(ब) भील
(स) मंगोल
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(स) मंगोल
प्रश्न 3.
ब्रिटिश उपनिवेशवाद किस पर आधारित था?
(अ) आर्थिक व्यवस्था
(ब) पूँजीवादी व्यवस्था
(स) सामाजिक व्यवस्था
(द) राजनीतिक व्यवस्था
उत्तरमाला:
(ब) पूँजीवादी व्यवस्था
प्रश्न 4.
परम्परा का सम्बन्ध किस काल से है?
(अ) भूतकाल
(ब) वर्तमान
(स) भविष्य काल
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) भूतकाल
प्रश्न 5.
परम्परा का सम्बन्ध किससे है?
(अ) प्राचीनता
(ब) नवीनता
(स) दोनों से
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) प्राचीनता
प्रश्न 6.
योगेन्द्र सिंह ने परम्परा की कितनी विशेषताओं का उल्लेख किया है?
(अ) दो
(ब) चार
(स) छः
(द) आठ
उत्तरमाला:
(ब) चार
प्रश्न 7.
व्यक्ति के जीवन में कितने गुणों की प्रधानता होती है?
(अ) तीन
(ब) पाँच
(स) सात
(द) नौ
उत्तरमाला:
(अ) तीन
प्रश्न 8.
जाति किस पर आधारित व्यवस्था है?
(अ) जन्म
(ब) प्रदत्त प्रस्थिति
(स) ऊँच – नीच पर
(द) सभी पर
उत्तरमाला:
(द) सभी पर
प्रश्न 9.
जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है?
(अ) धर्म
(ब) अर्थ
(स) काम
(द) मोक्ष
उत्तरमाला:
(द) मोक्ष
प्रश्न 10.
व्यक्ति के जीवन को कितने आश्रमों में बाँटा गया है?
(अ) दो
(ब) चार
(स) पाँच
(द) सात
उत्तरमाला:
(ब) चार
प्रश्न 11.
परम्परा में परिवर्तन कितने प्रकारों में दृष्टिगोचर होता है?
(अ) तीन
(ब) दो
(स) चार
(द) पाँच
उत्तरमाला:
(ब) दो
प्रश्न 12.
योगेन्द्र सिंह ने आधुनिकता के कितने लक्षण बताए हैं?
(अ) चार
(ब) पाँच
(स) दो
(द) छः
उत्तरमाला:
(अ) चार
प्रश्न 13.
आधुनिक समाज कैसा समाज है?
(अ) बंद
(ब) मुक्त
(स) गतिशील
(द) (ब) व (स) दोनों ही
उत्तरमाला:
(द) (ब) व (स) दोनों ही
प्रश्न 14.
औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात किस वर्ष में हुआ?
(अ) 1760 में
(ब) 1765 में
(स) 1780 में
(द) 1790 में
उत्तरमाला:
(अ) 1760 में
प्रश्न 15.
वह कौन – सा पहला शहर था, जो गाँव से नगर बना?
(अ) लंदन
(ब) ब्रिटेन
(स) दोनों
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) ब्रिटेन
प्रश्न 16.
1690 में किस अंग्रेज व्यापारी ने हुगली नदी पर व्यापार के लिए गाँव पट्टे पर लिए थे?
(अ) जॉब चारनॉक
(ब) विलियम
(स) डेविस
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(अ) जॉब चारनॉक
प्रश्न 17.
फोर्ट विलियम की स्थापना किस वर्ष में हुई थी?
(अ) 1598
(ब) 1698
(स) 1798
(द) 1898
उत्तरमाला:
(ब) 1698
प्रश्न 18.
कहवा सबसे अधिक कहाँ उत्पन्न होता था?
(अ) सूरत
(ब) मुम्बई
(स) चेन्नई
(द) कोलकाता
उत्तरमाला:
(स) चेन्नई
प्रश्न 19.
कपास का उत्पादन सर्वाधिक कहाँ होता है?
(अ) मुम्बई
(ब) चेन्नई
(स) कोलकाता
(द) सूरत
उत्तरमाला:
(अ) मुम्बई
प्रश्न 20.
सर्वप्रथम चाय उद्योग का प्रारम्भ किस स्थान पर हुआ था?
(अ) दुर्गापुर
(ब) तंजौर
(स) कोलकाता
(द) असम
उत्तरमाला:
(द) असम
प्रश्न 21.
भारत में चाय उद्योग का आरम्भ किस वर्ष में हुआ था?
(अ) 1851
(ब) 1751
(स) 1651
(द) 1855
उत्तरमाला:
(अ) 1851
प्रश्न 22.
भारत में जनगणना कितने वर्षों के पश्चात् की जाती है?
(अ) 5 वर्ष
(ब) 8 वर्ष
(स) 10 वर्ष
(द) 12 वर्ष
उत्तरमाला:
(स) 10 वर्ष
प्रश्न 23.
इससे पहले जनगणना भारत में कब हुई थी?
(अ) 2001
(ब) 2005
(स) 2009
(द) 2011
उत्तरमाला:
(द) 2011
प्रश्न 24.
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार नगरीय आबादी कितने प्रतिशत है?
(अ) 31.16%
(ब) 30%
(स) 35.17%
(द) 32.16%
उत्तरमाला:
(अ) 31.16%
प्रश्न 25.
भारत में 1 लाख से अधिक एवं 10 लाख से कम आबादी वाले नगरों की संख्या कितनी है?
(अ) 140
(ब) 430
(स) 450
(द) 412
उत्तरमाला:
(द) 412
प्रश्न 26.
1901 विधेयक असम लेबर खंड इमीग्रेटस में क्या प्रावधान किया गया?
(अ) 5 वर्षों तक श्रमिक कार्य करेंगे
(ब) मजदूर मजदूरी के अलावा कुछ नहीं कर सकते
(स) 4 वर्षों के लिए मजदूरी के अलावा कुछ नहीं कर सकते
(द) सभी प्रावधान
उत्तरमाला:
(द) सभी प्रावधान
प्रश्न 27.
1991 तक कुल कार्यकारी जनसंख्या में से कितनी प्रतिशत जनसंख्या बड़े उद्योगों में कार्यरत थी?
(अ) 30%
(ब) 20%
(स) 19%
(द) 28%
उत्तरमाला:
(द) 28%
प्रश्न 28.
नगरीकरण की प्रक्रिया के विस्तार ने किस संस्कृति का प्रसार किया?
(अ) उपभोक्तावादी संस्कृति
(ब) पूँजीवादी संस्कृति
(स) मानवतावादी संस्कृति
(द) खाओ – पीओ संस्कृति
उत्तरमाला:
(अ) उपभोक्तावादी संस्कृति
प्रश्न 29.
20वीं सदी में लंदन में कितनी आबादी थी?
(अ) 6 करोड़
(ब) 7 करोड़
(स) 5 करोड़
(द) 3 करोड़
उत्तरमाला:
(ब) 3 करोड़
प्रश्न 30.
नगरों में किन परिवारों का चलन अधिक पाया जाता है?
(अ) संयुक्त परिवार
(ब) एकाकी परिवार
(स) मिश्रित परिवार
(द) कोई भी नहीं
उत्तरमाला:
(ब) एकाकी परिवार
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समाज में परिवर्तन किन विदेशी जातियों के आगमन से हुआ?
उत्तर:
शक, हूण, कुषाण, मंगोल तथा अरब जैसी आदि विदेशी जतियों के आगमन से भारतीय सामाजिक संरचना में बदलाव हुए।
प्रश्न 2.
ब्रिटिश उपनिवेशवाद का सम्बन्ध किस व्यवस्था से था?
उत्तर:
ब्रिटिश उपनिवेशवाद का सम्बन्ध पूँजीवादी व्यवस्था से था।
प्रश्न 3.
असम में चाय के बागानों में कार्य करने के लिए श्रमिक कहाँ से लाए गए?
उत्तर:
बिहार, झारखंड, बंगाल तथा मद्रास आदि स्थानों से कार्य करने के लिए श्रमिक लाए गए।
प्रश्न 4.
योगेन्द्र सिंह ने किस पुस्तक में परम्परा की विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर:
‘Modernization of Indian Traditions’ में योगेन्द्र सिंह ने परम्परा की विशेषता का उल्लेख किया है।
प्रश्न 5.
भारत में चाय के बागानों का विकास किस उद्देश्य से किया गया था?
उत्तर:
भारत में चाय के बागानों का विकास अंग्रेजों ने अपने हितों की पूर्ति के उद्देश्य से किया था।
प्रश्न 6.
व्यक्ति के जीवन में किन गुणों की प्रधानता होती है?
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन – काल में मुख्यतः तीन गुण पाए जाते हैं –
- सतोगुण।
- तमोगुण।
- रजोगुण।
प्रश्न 7.
व्यक्ति के जीवन को कितने आश्रमों में विभाजित किया गया है?
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन को 4 आश्रमों में विभाजित किया गया है –
- ब्रह्मचर्य आश्रम।
- ग्रहस्थ आश्रम।
- वानप्रस्थ आश्रम।
- संन्यास आश्रम।
प्रश्न 8.
व्यक्ति के जीवन काल में अंतिम लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन का अंतिम लक्ष्य ‘मोक्ष’ प्राप्ति है, जो संन्यास आश्रम के माध्यम से प्राप्त होता है।
प्रश्न 9.
परम्परा में निहित परिवर्तन कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय समाज में परम्परा में दो प्रकार से परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं –
- प्रत्यक्ष परिवर्तन।
- संरचनात्मक परिवर्तन।
प्रश्न 10.
पर – संस्कृतिकरण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
वह प्रक्रिया जिसमें एक संस्कृति के तत्त्व प्रतिमान या रीतियाँ दूसरी संस्कृति के द्वारा ग्रहण किए जाते हैं, उसे पर – संस्कृतिकरण कहते हैं।
प्रश्न 11.
एन. के. सिंघी के अनुसार आधुनिकता में कौन – से तत्त्व निहित होते हैं?
उत्तर:
तार्किकता, वैज्ञानिकता तथा आर्थिक संरचना में मुख्य तौर पर यही तीन तत्त्व निहित होते हैं।
प्रश्न 12.
औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात किस देश में हुआ था?
उत्तर:
1760 ई. सदी में ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात हुआ था।
प्रश्न 13.
वह कौन – सा देश था, जिसमें सर्वप्रथम लोग ग्रामीण से नगरीय बने थे?
उत्तर:
ब्रिटेन औद्योगीकरण वाला समाज या देश था, जिसमें सर्वप्रथम लोग ग्रामीण से नगरीय बने थे।
प्रश्न 14.
सात्मीकरण की प्रक्रिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक संस्कृति के तत्त्व या रीतियाँ अपना अस्तित्त्व खोकर दूसरी संस्कृति में विलीन हो जाती हैं।
प्रश्न 15.
“परम्परा भूत एवं वर्तमान को जोड़ने का कार्य करती है” यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
एडवर्ड शील्ज का यह कथन है।
प्रश्न 16.
बंद व्यवस्था किसके लिए प्रयुक्त होता है?
उत्तर:
जाति व्यवस्था के लिए बंद व्यवस्था शब्द का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 17.
भारत में सबसे अधिक जनसंख्या वाला कौन – सा महानगर है?
उत्तर:
ग्रेटर मुम्बई सबसे अधिक जनसंख्या वाला महानगर है, जिसकी जनसंख्या 1,83,94,912 है।
प्रश्न 18.
भारत में किस कारण से उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार हुआ?
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया के विकास के कारण उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रसार हुआ।
प्रश्न 19.
एकाकी परिवार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ पति – पत्नी (माता-पिता) व उनके अविवाहित बच्चे साथ में रहते हों, ऐसे परिवार को एकाकी परिवार कहा जाता है।
प्रश्न 20.
संयुक्त परिवार की विशेषता बताइए।
उत्तर:
- संयुक्त परिवारों में हम की भावना पाई जाती है।
- इस परिवार में एक से अधिक पीढ़ी के लोग साथ रहते हैं।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परम्परा की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज में जब मूल्यों, मान्यताओं, विश्वासों, विचारों तथा आदतें आदि जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित की जाती हैं तब उसे परम्परा के नाम से संबोधित किया जाता है। परम्परा में भूतकाल के अनुभव निहित होते हैं तथा समूह की स्वीकृति भी शामिल होती है।
परंपरा की विशेषताएँ:
- परम्परा में कठोरता पाई जाती है।
- इसमें गतिशीलता का अभाव पाया जाता है।
- इसमें संस्कृति के भौतिक पक्षों की अवहेलना की जाती है।
- इसमें हस्तांतरण का गुण निहित होता है।
प्रश्न 2.
आधुनिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधुनिकता एक दृष्टिकोण होता है जिसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में गतिशीलता पाई जाती है। एक संबोधन के रूप में आधुनिकता समाजशास्त्र में सामाजिक परिवर्तन को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण रही है। व्यावहारिक रूप में आधुनिकता में और भी आयाम शामिल होते हैं।
आधुनिकता की विशेषताएँ:
- आधुनिकता उपयोगवादी संस्कृति में विश्वास रखती है।
- यह परिवर्तन के प्रति खुला दृष्टिकोण रखती है।
- आधुनिक समाज में प्रदत्त प्रस्थितियाँ गौण हो जाती हैं।
- यह खुले समाज की पक्षधर है।
- यह सोच या मानसिकता से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है।
प्रश्न 3.
आधुनिकता के प्रभावों को संक्षिप्त रूप से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता के प्रभावों का विवरण हम निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –
- इससे समाजों में परम्परागत पेशों का पतन हुआ है।
- कृषि में नवीन उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।
- इससे राष्ट्रवादी भावनाओं में वृद्धि हुई है।
- नवीन पेशों के विशिष्टीकरण में वृद्धि हुई है।
- इससे समाज में अनेक सामाजिक कुरीतियों का अंत हुआ है, जैसे – बाल – विवाह, सती प्रथा व जातीय भेदभाव आदि।
- इससे समाज में पृथक्करण की भावना में कमी आई है।
प्रश्न 4.
जजमानी प्रथा की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जजमानी प्रथा में जिस परिवार की सेवा की जाती है वह परिवार या परिवार का मुखिया सेवा करने वाले का जजमान कहलाता है तथा सेवा प्रदान करने वाला व्यक्ति ‘कमनि’ अथवा ‘काम करने वाला’ कहलाता है। इन शब्दों का प्रयोग उत्तरी पश्चिमी भारत में सर्वाधिक रूप से किया जाता है। भारत के अन्य भागों में भी यह प्रथा पाई जाती है।
जजमानी प्रथा को महाराष्ट्र में बलूटे’, चेन्नई में ‘मिरासी’ तथा मैसूर में ‘अद्दे’ कहते हैं। इस प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक जाति का कोई निश्चित कार्य पीढ़ी – दर – पीढ़ी चलता रहता है। इस कार्य पर उसका एकाधिकार होता है। इसमें एक जाति दूसरी जाति की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
प्रश्न 5.
जजमानी व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
जजमानी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –
- इस प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक जाति का व्यवसाय निश्चित होता था।
- जजमानी प्रथा वंशानुगत होती है अर्थात् यह पिता से पुत्र को प्राप्त होती थी।
- इस प्रथा में कमनि के लिए जजमान एक संपत्ति है तथा वह उससे अपना हक वसूल करता है।
- इस व्यवस्था में भुगतान मुद्रा में नहीं होता था, बल्कि वस्तुओं में किया जाता था।
प्रश्न 6.
औद्योगिक क्रान्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधुनिक उद्योगवाद या औद्योगीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न हुए परिवर्तनों की जटिल श्रृंखला को सामान्यतः औद्योगिक क्रान्ति की संज्ञा दी जाती है। विशिष्ट रूप से इस शब्द का प्रयोग इंग्लैंड में 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण तथा 19वीं शताब्दी की प्रारम्भिक अवस्था में हुए परिवर्तन के काल के लिए किया गया है।
इस अवधि में ब्रिटेन में आर्थिक, प्रौद्योगिक, सामाजिक तथा संगठनात्मक अनेक परिवर्तन हुए जिन्होंने मुख्यतः खेतिहर तथा लघु स्तरीय आधार पर उत्पादन करने वाले समाज को विश्व के कारखानों पर आधारित मशीनीकृत उत्पादनकर्ता समाज में बदल दिया।
कोयला, लोहा तथा बाद में स्टील की खोज तथा उनके वृहत् आधार पर प्रयोग की नवीन प्रौद्योगिकी के विकास ने औद्योगिक क्रान्ति को जन्म दिया। ऊर्जा शक्ति के रूप में जल शक्ति तथा भाप के इंजन के आविष्कार ने वृहत् कारखाना प्रणाली की स्थापना में मुख्य भूमिका अदा की है।
प्रश्न 7.
औद्योगिक श्रमिकों की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
औद्योगिक श्रमिकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था, जो इस प्रकार से है –
- श्रमिकों के कार्य के लिए एक उचित स्वस्थ स्थितियों का अभाव था।
- अधिक कार्य करने से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था।
- उनके पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं होते थे।
- उन्हें अनेक प्रावधानों के अंतर्गत अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था।
- उनसे बलपूर्वक कार्य करवाया जाता था।
- उनका जीवन – स्तर काफी दयनीय था।
- उनका शोषण अंग्रेजों के द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 8.
नगरीकरण की विशेषता बताइए।
उत्तर:
नगरीकरण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- नगरीकरण की प्रक्रिया से लोगों को रोजगार के नए अवसर उपलब्ध हुए।
- इस प्रक्रिया से लोगों के जीवन – स्तर में सुधार हुआ।
- संचार के साधनों का विकास हुआ, जिससे लोगों को देश के समस्त क्षेत्रों से सूचनाएँ प्राप्त होने लगी।
- इस प्रक्रिया से कृषि का यंत्रीकरण हुआ।
- नगरीकरण की प्रक्रिया से समस्य लोगों में सामाजिक दूरी की भावना में कमी आई।
- इससे समाज में चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं में वृद्धि हुई।
प्रश्न 9.
नगरीकरण की प्रक्रिया का जाति – व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया का जाति-व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को हम निम्न बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं –
- इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अब व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी जाति के बजाय गुणों के आधार पर होने लगा है।
- जातीय संस्तरण में बदलाव हुए हैं तथा उन जातियों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है।
- खान – पान के नियमों तथा छुआछूत में भी शिथिलता आई है।
- एक व्यक्ति अब कई व्यवसायों में तथा एक व्यवसाय में कई जातियों के लोग लगे हुए हैं।
- जजमानी प्रथा का विघटन भी नगरीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप ही हुआ है।
प्रश्न 10.
सार्वजनिक क्षेत्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान ‘Bureau of Public Enterprises’ ने भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं, जो इस प्रकार से हैं –
- देश के तीव्र औद्योगिक विकास में सहभागी बनकर विकास के भार को वहन करना।
- देश में रोजगार के अवसरों को उपलब्ध कराना।
- देश में संतुलित क्षेत्रीय विकास की प्रक्रिया को अधिक प्रोत्साहन देना।
- निवेश को उचित एवं अपेक्षित दिशा प्रदान की जा सके।
प्रश्न 11.
भारत में व्यापार के लिए अंग्रेजों ने किन – किन क्षेत्रों का चयन किया था?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अनेक उद्योगों का आरम्भ भारत में व्यापार के लिए अनेक क्षेत्रों में किया था। मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता को अंग्रेजों ने अपने व्यापार तथा कच्चे माल को ब्रिटेन भेजने के लिए तथा तैयार माल को भारत में लाने के लिए मुम्बई से कपास, कोलकाता से जूट, चेन्नई से कहवा, नील तथा कपास को ब्रिटेन भेजने के लिए चुना गया था। ये सभी स्थान समुद्री बंदरगाह के रूप में थे, जहाँ से माल लाने एवं ले जाने की दृष्टि से अधिक उपयोगी थे। अंग्रेज इन बंदरगाहों से अपने देश को कच्चा माल भेजते थे तथा वहाँ से निर्मित माल को मंगवाया करते थे।
प्रश्न 12.
महिलाओं की स्थिति में हुए बदलावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
महिलाओं की स्थिति में हुए बदलावों का विवरण इस प्रकार से है –
- महिलाओं को उनके अधिकारों के विषय में जानकारी मिली है।
- महिलाओं की शिक्षा प्रणाली की ओर भी ध्यान दिया गया, जिससे उनकी स्थिति में सुधार हुआ है।
- महिलाओं का समाज में सशक्तिकरण हुआ है।
- प्रजातांत्रिक मूल्यों ने महिलाओं की स्वतंत्रता को प्रोत्साहन दिया है।
- महिलाएँ समाज के हर क्षेत्रों जैसे शिक्षण, बैंक, व्यापार व तकनीकी क्षेत्रों आदि में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं।
प्रश्न 13.
नगरीकरण की प्रक्रिया से धार्मिक गतिविधियों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया से धार्मिक गतिविधियों पर अनेक प्रभाव दृष्टिगोचर हुए हैं –
- नगरीकरण के प्रक्रिया के कारण धार्मिक अंधविश्वासों में कमी आई है।
- इस प्रक्रिया के प्रभाव से जिन धार्मिक कार्यों को करने में काफी दिन लगा करते थे, वही कार्य अब कुछ घंटों में ही सम्पन्न हो जाते हैं।
- समाज में रूढ़िवादी विचारों में बदलाव हुए हैं।
- इसके कारण जो व्यक्ति अपने कार्यों को धर्म के आधार पर संपादित करता था, अब उसे तर्क के आधार पर जाँच कर प्रयोग में लाता है।
- धर्म गुरुओं, ब्राह्मणों व कर्मकांडों आदि के प्रभाव में कमी आई है।
प्रश्न 14.
औद्योगीकरण के नकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया में जहाँ समाज में अनेक सकारात्मक कार्य किए हैं, वहीं दूसरे ओर इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी समाज पर पड़े हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –
- इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप नगरों में प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है।
- मशीनों के प्रयोग के कारण बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न हुई है।
- इस प्रक्रिया ने समाज में व्यक्तिगत विघटन को प्रोत्साहन दिया है।
- मशीनों पर कार्य करने से श्रमिकों को अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- इससे समाज में तनाव व संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 15.
नगरीकरण की प्रक्रिया का ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नगरीकरण की प्रक्रिया का ग्रामीण क्षेत्रों पर अनेक प्रकार से प्रभाव पड़ता है, जो निम्न प्रकार से है –
- इस प्रक्रिया से गाँव में लोगों के रहन – सहन के स्तर में परिवर्तन देखने को मिलता है।
- अब इस प्रक्रिया के प्रभाव से गाँव के सदस्यों के वस्त्रों के पहनने में बदलाव हुए हैं।
- गाँव में भी नगरों की भाँति बिजली का प्रयोग किया जाता है।
- गाँव में भी बच्चों के अध्ययन के लिए स्कूल खोले गए हैं।
- गाँव में अनेक प्रकार के व्यवसायों को बल मिला है। जैसे – मुर्गी पालन, दुग्ध व्यवसाय, फूलों की कृषि तथा मत्स्य पालन आदि विभिन्न उद्योगों की शुरुआत हुई है।
प्रश्न 16.
आर्थिक विकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक विकास एक सापेक्षिक धारणा है, जिसका सम्बन्ध एक समय विशेष से न होकर दीर्घकालीन परिवर्तनों से होता है। अन्य भौतिक पदार्थों की भाँति इसे मापा नहीं जा सकता।
आर्थिक विकास की विशेषताएँ:
- इसमें आकस्मिक तौर पर परिवर्तन होते हैं।
- इसमें उन्नति तथा परिवर्तनों के लिए अथक प्रसाय करना होता है।
- यह अल्पविकसित देशों के विकास से सम्बन्धित हैं।
- यह प्रगति की प्रबल इच्छा व सृजनात्मक शक्तियों का प्रतिफल है।
प्रश्न 17.
सार्वजनिक व निजी क्षेत्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों में अन्तर को निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है –
प्रश्न 18.
समाज पर अंग्रेजी शिक्षा के प्रभावों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
समाज पर अंग्रेजी शिक्षा के प्रभावों का विवेचन निम्न प्रकार से है –
- उन्नत शिक्षा प्रणाली का विकास:
अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से गाँवों व समाज के हर क्षेत्रों में लोगों को एक बेहतर शिक्षा को ग्रहण करने का अवसर मिला। - मानसिकता में बदलाव:
जहाँ प्राचीन शिक्षा पद्धति के अंतर्गत लड़के व लड़कियों को अलग शिक्षा देने का प्रावधान था, वही अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम में दोनों को ही Co-education अर्थात् सह – शिक्षा की प्रवृत्ति का विकास हुआ। साथ ही इसने लोगों के विचारों में भी बदलाव किए। - नौकरियों के अवसर में वृद्धि:
अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से लोगों को नगरों में उन्नत कम्पनियों तथा प्रत्येक क्षेत्र में रोजगार के अवसर प्राप्त हुए। इससे लोगों के रहन – सहन, आचार – विचार व सम्पूर्ण जीवन – शैली में बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।
प्रश्न 19.
द्वितीयक समूहों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
द्वितीयक समूह की अवधारणा:
समाजशास्त्र में सर्वप्रथम ‘होमन्स तथा किंग्सले डेविस’ ने द्वितीयक समूहों पर प्रकाश डाला था। यह वह समूह है जिनमें सदस्यों के बीच अवैयक्तिक सम्बन्ध पाए जाते हैं। ऐसे समूहों में शारीरिक निकटता का होना अनिवार्य नहीं है। ये विशेष हितों पर आधारित तथा हस्तांतरित होते हैं।
विशेषताएँ:
- ये समूह जान – बूझकर कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठित किए जाते हैं।
- इन समूहों में सदस्यों का एक – दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानना जरूरी नहीं है।
- इनका आकार प्राथमिक समूहों की तुलना में काफी विस्तृत होता है।
- इन समूहों में सदस्यों के उत्तरदायित्व सीमित होते हैं।
- यहाँ सम्बन्धों में घनिष्ठता का अभाव पाया जाता है।
- सम्बन्धों में औपचारिकता पाई जाती है। यहाँ व्यक्ति के बजाय उसकी प्रस्थिति का महत्त्व ज्यादा होता है।
प्रश्न 20.
प्राथमिक समूह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘चार्ल्स कूले’ ने अपनी पुस्तक ‘Social Organization’ में सन् 1909 में प्राथमिक समूह की अवधारणा को प्रस्तुत किया था। वह समूह जिसके सदस्यों में निकटता हो तथा प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित हो, ऐसे समूहों को प्राथमिक समूह के नाम से संबोधित किया जाता था।
विशेषताएँ:
- इन समूहों में सदस्यों के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पाए जाते हैं।
- इन समूहों का आकार छोटा होता है।
- इन समूहों में सदस्यों के सम्बन्धों की लम्बी अवधि का होना आवश्यक है।
- प्राथमिक समूहों में सम्बन्ध स्वतः स्वाभाविक रूप से बनते हैं, इनके लिए किसी पर कोई दवाब नहीं डाला जा सकता।
- सदस्यों के मध्य व्यक्तिगत सम्बन्धों की प्रधानता होती है।
- प्राथमिक समूह में सदस्यों की इच्छाएँ तथा प्रवृत्तियाँ प्रायः समान होती हैं।
RBSE Class 12 Sociology Chapter 4 निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परम्परा एवं आधुनिकता की अवधारणा में अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परा एवं आधुनिकता की अवधारणा में अंतर को हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से दर्शा सकते हैं –
प्रश्न 2.
जजमानी प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जजमानी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –
- जजमानी व्यवस्था जाति व्यवस्था के संदर्भ में:
जाति – व्यवस्था में प्रत्येक जाति का व्यवसाय निश्चित है तथा उसी के आधार पर उसे अपने जीवन में अपनाना होता है। अर्थात् इस व्यवस्था के अंतर्गत भी अन्य जातियों की सेवाएँ उच्च जाति के सदस्यों को लेनी ही पड़ेंगी। - जजमानी व्यवस्था वंशानुगत:
यह व्यवस्था वंशानुगत है। एक जजमान के जो परजन या कमीन है, वे पीढ़ी – दर – पीढ़ी चलते रहेंगे। पीढ़ियाँ परिवर्तित होती रहेंगी, पर जजमान व परजन का संबंध बना रहेगा। - जजमानी व्यवस्था एक संपत्ति के रूप में:
इस प्रणाली में परजन के लिए जजमान एक संपत्ति है और वह उससे अपना हक वसूल करता है। परम्परा व प्रथा के द्वारा इस व्यवस्था को मान्यता दी गई है। हिंदू धर्म – ग्रंथों में इस तथ्य की पुष्टि की गई है। ‘कमीन या परजन’ अपने अधिकारों के लिए जाति पंचायत, ग्राम पंचायत आदि में भी विवाद खड़ा कर सकता है तथा जजमान को विवश कर सकता है कि वह उसका हक दे। - पारस्परिक अधिकारों एवं कर्तव्यों की व्यवस्था:
इस प्रथा में जजमान का अधिकार है कि परजन से काम ले तथा अपनी सेवा करवाए। जजमान का कर्तव्य है कि वह कमीन की सेवाओं का हक दे। इस प्रकार यह पारस्परिक अधिकारों व कर्त्तव्यों की व्यवस्था है। - मुद्रा पर आधारित नहीं:
इस व्यवस्था में भुगतान मुद्रा में नहीं होता है। अधिकांशत अन्न (अनाज) के रूप में भुगतान किया जाता है तथा अलग से अनेक प्रकार की सुविधाएँ भी दी जाती हैं। - परंपरागत आर्थिक व्यवस्था:
यह व्यवस्था आर्थिक व्यवस्था पर आधारित है, न कि खुले बाजार की आर्थिक व्यवस्था पर। खुले बाजार की आर्थिक व्यवस्था में मुद्रा पर आधारित मोल – भाव करके सेवाएँ प्राप्त की जाती हैं और संबंध वही तक सीमित रहता है। - जजमानी व्यवस्था में प्राथमिक संबंध:
इसमें संबंधों का स्वरूप प्राथमिक होता है। इनके संबंध परिवार के सदस्यों के भाँति होते हैं। इस प्रकार जजमानी व्यवस्था एक आर्थिक – सामाजिक परंपरा पर आधारित व्यवस्था है जो पारस्परिक अन्तरजातीय संबंधों की पुष्टि करती है।
प्रश्न 3.
“जजमानी प्रणाली ने ग्रामीण समाज में गतिशीलता एवं प्रगति को बाधित किया है।” कथन की पुष्टि करते हुए जजमानी प्रणाली के निहित दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जजमानी व्यवस्था के दोष निम्न प्रकार से हैं –
- जजमानी व्यवस्था राष्ट्रीय एकता में बाधक:
इस प्रथा के कारण सामाजिक संगठन एवं प्रभुता मिल जाया करती थी। इससे राष्ट्रीय एकता एवं एकीकरण में बाधा पहुँचती थी, क्योंकि ये ग्रामीण समुदाय के प्रति स्वामिभक्ति का भाव रखते थे तथा दूसरों से अपने को पृथक् समझते थे। - जजमानी व्यवस्था गतिशील नहीं:
जजमानी व्यवस्था स्थिर, अपरिवर्तनशील एवं अप्रगतिशील है। इसके कारण समाज भी वैसे का वैसा ही बना रहता है। यह अर्जित के स्थान पर प्रदत्त प्रस्थिति को वरीयता देती है। - नवीन परिवर्तनों में बाधक:
इसकी प्रकृति स्थिर एवं अपरिवर्तनीय है। इसके कारण यह नवीन परिवर्तनों के आने में बाधक रहती है यह नवीन परिवर्तनों को रोकती है। - प्रगति में बाधक:
यह प्रथा प्रगति में बाधक है क्योंकि यह नये परिवर्तनों को आने से रोकती है। यह व्यवस्था रूढ़िवादी विचारधारा को बढ़ावा देती है। इसके कारण समाज विकास नहीं कर पाता है। - गुलामी की प्रतीक:
जजमानी व्यवस्था गुलामी की प्रतीक रही है। इस प्रथा के कारण कमीन (कार्य करने वालों) को इस व्यवस्था में इस प्रकार फंसा दिया जाता है कि उनके पास पीढ़ी – दर – पीढ़ी गुलामी करने के अतिरिक्त कोई चारा ही नहीं रहता। वे इस गुलामी से कभी मुक्त नहीं हो पाते। - शूद्रों के शोषण की व्यवस्था:
यह व्यवस्था शूद्रों की शोषण की व्यवस्था है जिसमें वे मनचाहे तरीके से उनसे काम लेते हैं तथा काम के बदले उचित पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता है। - अन्य व्यवसाय व उद्योग की प्रगति में बाधक:
यह प्रथा अन्य व्यवसाय व उद्योग की प्रगति में बाधक है, क्योंकि इस प्रथा में हर व्यक्ति केवल अपना व्यवसाय परंपरागत रूप में ही कर सकता है। उसका विशेष कार्य जजमानों की सेवा करना ही है। वह उससे पृथक् होकर नयी दिशा में कार्य करने की सोच ही नहीं सकता। इस प्रकार इस प्रथा में किसी भी प्रकार की प्रगति का प्रश्न ही नहीं उठता है।
प्रश्न 4.
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं? उद्योगवाद की स्थिति का समाजशास्त्रीय विवेचन कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हस्त – उपकरणों के स्थान पर निर्जीव शक्ति द्वारा संचालित मशीनों के द्वारा किया जाता है। शक्ति संचालित मशीनों का प्रयोग न केवल कारखानों, अपितु यातायात, संचार तथा खेती आदि सभी क्षेत्रों में भी किया जाता है। इसे उद्योगवाद की स्थापना की एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
उद्योगवाद तथा औद्योगीकरण दोनों ही उत्पादन की ऐसी विधियों की ओर संक्रमण का संकेत देती हैं जो पांरपरिक व्यवस्थाओं की तुलना में आधुनिक समाजों में अपार धन – संपदा को अर्जित करने की क्षमता के लिए उत्तरदायी है। समाजशास्त्रीय दृष्टि से, उद्योगवाद से तात्पर्य उन सामाजिक संबंधों की उत्पत्ति से है जिनकी उत्पत्ति उत्पादनों की प्रक्रियाओं में भौतिक ऊर्जा शक्ति और मशीनों का व्यापक रूप में प्रयोग किया जाता है।
यह एक विशेष प्रकार की जीवन – शैली को जन्म देता है, जो उत्पादन प्रणाली के ढंग के अनुरूप हो। उद्योगवाद की अवधारणा केवल उद्योगों में मशीनों के प्रयोग तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह खेती के क्षेत्र में उन्नत बीजों की किस्मों, रासायनिक खाद आदि के उत्पादन में यंत्रीकरण के विस्तार को भी अपने में समाहित किए हुए है।
उद्योगवाद की विशेषताएँ:
- बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन।
- समाज में बढ़ता श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण।
- विशाल बाजार व्यवस्था।
- यातायात व संचार के साधनों का विकास।
- औपचारिक नियमों पर आधारित व्यवस्था।
- आर्थिक विकास की सूचक।
अतः उद्योगवाद मात्र आर्थिक परिवर्तनों की सूचक एक अवधारणा नहीं है, बल्कि आर्थिक परिवर्तनों के साथ जुड़े हुए जटिल सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक संबंध आदि भी इसमें निहित है।
प्रश्न 5.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्योगों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक समय में सार्वजनिक क्षेत्र का बढ़ता हुआ विस्तार ही इसकी सबसे बड़ी महत्ता है परन्तु भारत जैसे देश में जहाँ पर भी निजी क्षेत्रों की जड़ें गहरी व प्रभावशाली बन गई हैं, वहाँ पर सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार की आवश्यकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को निम्न प्रकार से जाना जा सकता है –
- आर्थिक विकास को गति प्रदान करना:
सार्वजनिक क्षेत्र का प्रथम कार्य भारत में अल्प विकास को दूर करके आर्थिक विकास को गति प्रदान करना है। इसके लिए समाज में भारी मात्रा में आधारभूत उद्योगों की स्थापना करना मुख्य कार्य है। यह कार्य सार्वजनिक क्षेत्रों के माध्यम से ही किया जा सकता है। - आधारभूत संरचना का निर्माण:
समाज में सभी प्रकार के उद्योगों के विकास के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम संरचना की पूर्ण रूप से व्यवस्था कर ली जाए। ऐसे करने से सार्वजनिक क्षेत्रों का व्यापक विस्तार होगा। - संसाधनों का आबंटन:
सार्वजनिक क्षेत्रों की सबसे बड़ी भूमिका संसाधनों को उचित प्रकार से बांटने में है। इसके आधार पर ही सामाजिक विषमताओं को समाप्त किया जा सकता है तथा जिसके परिणामस्वरूप समाज में समानता की स्थापना होगी। - निजी क्षेत्रों में नियंत्रण:
समाज के सर्वाधिक हितों की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक क्षेत्र पूर्ण रूप से निजी क्षेत्रों पर नियंत्रण रखे। नियंत्रण रखने से मौद्रिक, राजकोषीय तथा प्रशासनिक नीतियों का निर्माण हो सकेगा।
प्रश्न 6.
आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) तथा आर्थिक विकास (Economic Development) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक वृद्धि तथा आर्थिक विकास को हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं –
प्रश्न 7.
नगरीकरण के भारतीय सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरीकरण के भारतीय सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का विवरण निम्न प्रकार से है –
(1) व्यक्तिवादी भावना:
वर्तमान समय में पाश्चात्य सभ्यता के कारण नगरों में व्यक्तिवादिता की भावना का उदय हुआ है। वहाँ सामूहिकता और पारिवारिकता के स्थान पर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हितों को ही अधिक महत्व देने लगा है।
(2) सामाजिक गतिशीलता:
नगरीकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। एक व्यक्ति अच्छे अवसर प्राप्त होने पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने तथा अपने पद, वर्ग एवं व्यवसाय को बदलने को तैयार रहता है।
(3) आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव:
नगरीकरण की प्रक्रिया ने आर्थिक क्रियाओं और संस्थाओं में भी अनेक परिवर्तन उत्पन्न कर दिये हैं। आज नगरों में बड़े – बड़े उद्योग स्थापित हुए हैं, जो उत्पादन के केन्द्र बन गए हैं।
(4) राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव:
नगरों में ही लगभग सभी राजनीतिक दलों के कार्यालय होते हैं और नगर ही उनकी गतिविधियों के केन्द्र हैं। वे कई आंदोलन का प्रारम्भ नगरों से ही करते हैं। नगरों में सभी प्रकार के राजनीतिक दलों के अनुयायी पाए जाते हैं जो धरना, घेराव, हड़ताल करते हैं जिससे लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा हुई है।
(5) स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन:
- शिक्षा के अधिकारों की प्राप्ति हुई।
- इस प्रक्रिया से स्त्रियों में चेतना का विकास हुआ है।
- अब पारिवारिक प्रस्थिति भी इनकी उच्च हुई है।
- नगरों में पर्दा – प्रथा तथा बूंघट प्रथा का प्रचलन भी लगभग समाप्त हो गया है।
(6) विवाह पर प्रभाव:
- जीवन साथी के चयन में अब परिवारों की सहमति के बजाय लड़के व लड़की की राय को महत्व दिया जाता है।
- अब पत्नी पति को परमेश्वर न मानकर एक मित्र व साथी भी मानने लगी है।
- बाल – विवाह कम हुए हैं।
- समाज में अब अविवाहित रहने तथा देर से विवाह करने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।
- समाज में अब प्रेम विवाहों का चलन बढ़ा है।
- विवाह को अब धार्मिक संस्कार न मानकर उसे अब एक सामाजिक समझौते के रूप में देखा जाता है।
- Court – Marriage का प्रचलन भी समाज में बढ़ा है।
- विवाह का उद्देश्य समाज में आनंद की प्राप्ति करना है।
प्रश्न 8.
नगरीकरण के भारतीय सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगरीकरण के भारतीय समाज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –
- अपराधों में वृद्धि:
गाँवों की तुलना में नगरों में अपराध अधिक होते हैं। नगरों में परिवार, धर्म, पड़ोस एवं जाति के नियंत्रण में शिथिलता के कारण अपराधों में वृद्धि हो गयी है। - स्वास्थ्य पर प्रभाव:
नगरों में स्वच्छ वातावरण का अभाव होता होता है। वायु – प्रदूषण, स्थान की कमी, जनसंख्या में वृद्धि अनेक बीमारियाँ तथा कारखानों का शोर आदि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। - सामाजिक विघटन:
व्यक्तिवादिता के कारण नगरों में सामाजिक नियंत्रण शिथिल हुआ है। वहाँ परिवार, धर्म, ईश्वर, तथा जाति के नियंत्रण के अभाव में समाज विरोधी कार्य अधिक होते हैं। इससे सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है। - आवास की समस्या:
नगरों में एक ज्वलंत समस्या मकानों की है। नगरों में हवा एवं रोशनीदार मकानों का अभाव होता है। नगरीय क्षेत्रों में कई मकान तो बीमारियों के घर होते हैं। - मानसिक तनाव एवं संघर्ष:
नगरों में प्रतियोगिता की स्थिति बनी रहती है। हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से आगे निकलना चाहता है। यही स्थिति उसे मानसिक रूप से उसे परेशान करती है तथा साथ ही ये समाज मे अनेक संघर्षों को उत्पन्न भी करती है। - वेश्यावृत्ति की समस्या:
नगरों में वेश्यावृत्ति अधिक पायी जाती है। वहाँ यौन रोग, एड्स, यौन अपराधों की अधिकता तथा नैतिक मूल्यों का पतन होता है। - जनसंख्या:
वृद्धि – नगरों में जनसंख्या वृद्धि आज एक अहम् समस्या है। बढ़ती जनसंख्या ने यातायात, शिक्षा, प्रशासन एवं सुरक्षा की समस्या पैदा की है। सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना, यातायात एवं सुरक्षा के स्थान जुटाना व नगरों में प्रशासन चलाना एक कठिन कार्य हो गया है। - भिक्षावृत्ति:
नगरों में भिक्षावृत्ति अधिक है। सड़क के किनारे मंदिर, मस्जिद एवं धार्मिक स्थानों के पास रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड एवं सार्वजनिक स्थानों पर भिखारियों की भीड़ देखी जा सकती है। भिक्षावृत्ति नगरों में व्याप्त गरीबी का सूचक है।
प्रश्न 9.
औद्योगीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन निम्न प्रकार से है –
- जड़ शक्ति का शोषण:
औद्योगीकरण को जन्म देने एवं उसका विकास करने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका जड़ शक्ति ने निभायी है। जन उत्पादन कार्य, पशु शक्ति एवं मानव शक्ति के स्थान पर कोयला, भाप, पेट्रोल, डीजल, जल विद्युत एवं परमाणु शक्ति के द्वारा किया जाने लगा तो उत्पादन की प्राचीन व्यवस्था में आमूल – चूल परिवर्तन हुए तथा संपूर्ण अर्थव्यवस्था ही बदल गयी एवं नवीन उद्योगों की स्थापना हुई है। - मशीनीकरण:
औद्योगीकरण मशीनीकरण का ही प्रतिफल है। लकड़ी एवं लोहे के छोटे – मोटे औजारों के स्थान पर उत्पादन का कार्य जब विशालकाय मशीनों व स्वचालित यंत्रों से किया जाने लगा तो औद्योगीकरण की नींव रखी गयी। - नवीन आविष्कार:
मानव ने अब केवल स्थानीय ही नहीं वरन् विश्वव्यापी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नये-नये आविष्कारों को जन्म दिया। इन आविष्कारों के कारण ही ऐसी मशीनों का निर्माण किया गया जिससे श्रम एवं समय की बचत हो सके तथा कम समय और श्रम में अधिकाधिक उत्पादन किया जा सके। इन आविष्कारों के परिणामस्वरूप फैक्ट्रियों एवं कारखानों द्वारा उत्पादन किया जाने लगा है। - खनिज पदार्थों का प्रयोग:
औद्योगीकरण के विकास में विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों के प्रयोग ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनमें कोयला और लोहा प्रमुख हैं। पत्थर के कोयले से लोहे को गलाकर मशीनें एवं औजार बनाना सरल हो गया। इन मशीनों ने उत्पादन की प्रक्रिया को तेज कर दिया। - सभ्यता का विकास:
मानव प्रगतिशील प्राणी है। उसने अपना जीवन पशु जीवन से प्रांरभ किया। उसके प्रगति के चरण बढ़ते ही गये तथा आज वह अपनी शारीरिक क्षमताओं और बुद्धि के कारण औद्योगिक सभ्यता एवं संस्कृति को जन्म दे सका। औद्योगीकरण मानव की सभ्यता एवं संस्कृति के विकास का ही परिणाम है।
अतः उपरोक्त कारकों के द्वारा औद्योगीकरण की प्रक्रिया समाज में तीव्र हुई।
प्रश्न 10.
औद्योगीकरण का समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण का समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव निम्न प्रकार से है –
1. नगरीकरण:
औद्योगीकरण के कारण विशाल नगरों का विकास हुआ। जहाँ उद्योग स्थापित हो जाते हैं वहाँ कार्य करने के लिए गाँव के अनेक लोग आकर बस जाते हैं तथा धीरे – धीरे वह स्थान औद्योगिक नगर का रूप ले लेता है।
2. यातायात के साधनों का विकास:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया के कारण यातायात के साधनों का विकास हुआ है। इससे कारखानों के लिए कच्चा माल तथा निर्मित माल को भेजने में इन साधनों ने अपनी अहम् भूमिका का निर्वाह किया।
3. उत्पादन में वृद्धि:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया के कारण श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण में वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर अधिक मात्रा में होने लगा।
4. समाजवाद का उदय:
- इस अवधारणा का प्रतिपादन कार्ल मार्क्स ने किया था।
- यह अवधारणा समानता की पक्षधर है।
- यह मजदूरों अथवा श्रमिकों के अधिकारों के लिए पक्ष में है।
- यह पूँजी के समान वितरण पर आधारित है।
- समाजवाद गरीब व अमीर के बीच की खाई को पाटने का कार्य करता है।
- यह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य देने का पक्षधर है।
5. सांस्कृतिक सम्पर्क:
- नवीन साधनों ने विभिन्न संस्कृतियों को नजदीक लाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
- इसमें सदस्यों में पारस्परिक समझ बढ़ी है।
- इससे फैशन, धर्म, रिवाजों तथा जीवन – विधि आदि को अपनाने में सहायता मिली है।
- इसने पारस्परिक आदान – प्रदान की नीति को प्रोत्साहन दिया है।
6. अन्य सकारात्मक प्रभाव:
- इसके परिणामस्वरूप शिक्षा में वृद्धि हुई।
- विचारों में विविधता पनपी है।
- कृषि का यंत्रीकरण को बढ़ावा मिला है।
- इससे अंधविश्वासों में कमी आई है।
- इससे मानव के सुखों व ऐश्वर्य में वृद्धि हुई है।
- सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई।
- जाति – प्रथा में अनेक बदलाव दृष्टिगोचर हुए।
- स्त्रियों की स्थिति में अनेक बदलाव हुए।
- इस प्रक्रिया से समय व धन दोनों की ही बचत हुई है।
- इससे धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को बल मिला है।
प्रश्न 11.
औद्योगीकरण के सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण के सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार से हैं –
1. पूँजीवाद:
यह औद्योगिक व्यवस्था की ही देन है जो स्वयं अनेक समस्याओं के लिए उत्तरदायी है। श्रमिकों के श्रम का लाभ पूँजीपतियों को मिलता है। इस पूँजीवादी व्यवस्था ने ही समाज का दो वर्गों में बाँट दिया-पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग।
2. सामाजिक विघटन एवं अपराध:
औद्योगीकरण के कारण समाज विरोधी कार्यों व अपराधों में वृद्धि हुई है। इससे आत्महत्या, चोरी, गबन एवं अपराधिक व्यवहारों में बढ़ोतरी हुई है।
3. बेरोजगारी की समस्या:
उद्योगों में मशीनों ने मनुष्य का स्थान ले लिया। पहले जिस कार्य को 50 व्यक्ति पूरा करते थे, अब मशीनों की सहायता से 10 व्यक्ति ही पूरा कर लेते हैं।
4. कुटीर उद्योगों का पतन:
इससे कुटीर उद्योगों का पतन हो गया क्योंकि इसके द्वारा बना हुआ माल टिक नहीं सका।
5. पराश्रितता की स्थिति:
इसके कारण एक गाँव की दूसरे गाँव पर ही नहीं वरन् एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी। कच्चा माल खरीदने एवं बने हुए माल को बेचने के लिए दो देशों में समझौते हुए एवं पारस्परिक निर्भरता बढ़ी।
6. मकानों की समस्या:
उद्योगों में काम करने के लिए गाँव से लोग नगरों में हजारों की संख्या में आते हैं, जिसके कारण उनके निवास की समस्या पैदा होती है।
7. स्वास्थ्य की समस्या:
कारखानों का वातावरण अस्वास्थ्यकर होता है, जिससे क्षय रोग, अपच, साँस की अन्य बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
8. दुर्घटनाओं में वृद्धि:
उद्योगों में चौबीसों घंटे काम चलता रहता है। निद्रा आने पर थोड़ी – सी असावधानी या थकान से हाथ – पाँव कटने व स्वयं को मृत्यु के मुख में धकेलने के अवसर होते हैं।
9. आर्थिक प्रतिस्पर्धा:
औद्योगीकरण ने आर्थिक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया। एक कारखाने की दूसरे से व एक पूँजीपति की दूसरे पूँजीपति से गलाकाट प्रतियोगिता को बढ़ावा मिला है।
10. अन्य नकारात्मक कारक:
- इससे सामुदायिक भावना का पतन हुआ है।
- व्यक्तिवादी भावना में वृद्धि हुई है।
- व्यक्तियों की असीमित इच्छाओं में वृद्धि हुई है।
- प्राथमिक सम्बन्धों का ह्रास हुआ है।
- नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है।
- इससे उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद की स्थापना को बल मिला है।
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