• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • RBSE Model Papers
    • RBSE Class 12th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 10th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 8th Board Model Papers 2022
    • RBSE Class 5th Board Model Papers 2022
  • RBSE Books
  • RBSE Solutions for Class 10
    • RBSE Solutions for Class 10 Maths
    • RBSE Solutions for Class 10 Science
    • RBSE Solutions for Class 10 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 10 English First Flight & Footprints without Feet
    • RBSE Solutions for Class 10 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 10 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 10 Physical Education
  • RBSE Solutions for Class 9
    • RBSE Solutions for Class 9 Maths
    • RBSE Solutions for Class 9 Science
    • RBSE Solutions for Class 9 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 9 English
    • RBSE Solutions for Class 9 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit
    • RBSE Solutions for Class 9 Rajasthan Adhyayan
    • RBSE Solutions for Class 9 Physical Education
    • RBSE Solutions for Class 9 Information Technology
  • RBSE Solutions for Class 8
    • RBSE Solutions for Class 8 Maths
    • RBSE Solutions for Class 8 Science
    • RBSE Solutions for Class 8 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 8 English
    • RBSE Solutions for Class 8 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
    • RBSE Solutions

RBSE Solutions

Rajasthan Board Textbook Solutions for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

  • RBSE Solutions for Class 7
    • RBSE Solutions for Class 7 Maths
    • RBSE Solutions for Class 7 Science
    • RBSE Solutions for Class 7 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 7 English
    • RBSE Solutions for Class 7 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 6
    • RBSE Solutions for Class 6 Maths
    • RBSE Solutions for Class 6 Science
    • RBSE Solutions for Class 6 Social Science
    • RBSE Solutions for Class 6 English
    • RBSE Solutions for Class 6 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit
  • RBSE Solutions for Class 5
    • RBSE Solutions for Class 5 Maths
    • RBSE Solutions for Class 5 Environmental Studies
    • RBSE Solutions for Class 5 English
    • RBSE Solutions for Class 5 Hindi
  • RBSE Solutions Class 12
    • RBSE Solutions for Class 12 Maths
    • RBSE Solutions for Class 12 Physics
    • RBSE Solutions for Class 12 Chemistry
    • RBSE Solutions for Class 12 Biology
    • RBSE Solutions for Class 12 English
    • RBSE Solutions for Class 12 Hindi
    • RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit
  • RBSE Class 11

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 सांस्कृतिक परिवर्तन, पश्चिमीकरण, संस्कृतीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण एवं उत्तर आधुनिकीकरण

August 20, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 सांस्कृतिक परिवर्तन, पश्चिमीकरण, संस्कृतीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण एवं उत्तर आधुनिकीकरण

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अभ्यासार्थ प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मुस्लिम महिलाओं की राष्ट्र स्तरीय संस्था “अजुमन – ए – ख्वातीन – ए – इस्लाम” की स्थापना किस वर्ष हुई?
(अ) 1920
(ब) 1916
(स) 1914
(द) 1918
उत्तरमाला:
(स) 1914

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के किस क्षेत्र पर पड़ा?
(अ) सांस्कृतिक क्षेत्र
(ब) राजनीतिक क्षेत्र
(स) धार्मिक क्षेत्र
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
भारत में धर्म निरपेक्षीकरण के कारक कौन से हैं?
(अ) पश्चिमीकरण
(ब) सामाजिक व धार्मिक आंदोलन
(स) नगरीकरण
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 4.
“सोशल चेंज एन मॉडर्न इंडिया” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) एबर क्रॉमी
(ब) जी. एस. घुर्ये
(स) एम. जन. श्रीनिवास
(द) डी. एन. मजूमदार
उत्तरमाला:
(स) एम. जन. श्रीनिवास

प्रश्न 5.
लर्नर ने आधुनिकीकरण की किस विशेषता का उल्लेख किया है?
(अ) शिक्षा का प्रसार
(ब) नगरीकरण में वृद्धि
(स) वैज्ञानिक भावना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
“पोस्ट मॉडर्न कंडीशन” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) अरनाल्ड टॉयन्बी
(ब) डेविड हारवे
(स) एम. एन. श्रीनिवास
(द) रिचार्ड गोट
उत्तरमाला:
(अ) अरनाल्ड टॉयन्बी

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस समाज सुधारक ने अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में बहु विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया?
उत्तर:
जहाँ आराशाह नवाज ने अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में बहु विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

प्रश्न 2.
‘अंग्रेजी शासन के कारण भारतीय समाज और संस्कृति के बुनियादी और स्थायी परिवर्तन हुए।’ यह कथन किस समाजशास्त्री का है?
उत्तर:
उक्त कथन एम. एन. श्रीनिवास के द्वारा कहे गए हैं।

प्रश्न 3.
पश्चिमीकरण ने समाज में किस नवीन वर्ग को जन्म दिया?
उत्तर:
पश्चिमीकरण ने समाज में एक नवीन वर्ग “अभिजात वर्ग” को जन्म दिया।

प्रश्न 4.
श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण के कितने स्तरों की चर्चा की है?
उत्तर:
श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण के दो स्तरों की चर्चा की है, जो इस प्रकार से है –

  1. मानववाद।
  2. बुद्धिवाद।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र की कौन – सी अवधारणा जाति प्रथा संस्तरण पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या करती है?
उत्तर:
समाजशास्त्र में “संस्कृतिकरण” की अवधारणा जाति प्रथा संस्तरण पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या करती है।

प्रश्न 6.
किस समाजशास्त्री ने जाति व्यवस्था को ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता के आधार पर विवेचित किया था?
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास ने जाति व्यवस्था को ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता के आधार पर विवेचित किया था।

प्रश्न 7.
“हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इंडिया” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
एस.वी. केतकर इस पुस्तक के लेखक हैं।

प्रश्न 8.
“कास्ट एंड कम्युनिकेशन इन एन इंडियन विलेज” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
डी. एन. मजूमदार इस पुस्तक के लेखक हैं।

प्रश्न 9.
धर्मनिरपेक्षीकरण ‘एक ऐसी प्रक्रिया को इंगित करती है, जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ, धार्मिक अवधारणाओं को पकड़ या प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त हो जाती है’। यह कथन किस विद्वान ने दिया है?
उत्तर:
यह कथन ब्रायन आर. विल्सन ने दिया है।

प्रश्न 10.
‘आधुनिकता का मतलब ये समझ में आता है कि इसके समक्ष सीमित संकीर्ण स्थानीय दृष्टिकोण कमजोर पड़ जाते हैं……..’। यह कथन किसका है?
उत्तर:
रूडॉल्फ एवं रूडॉल्फ ने इस कथन को दिया है।

प्रश्न 11.
‘आधुनिकीकरण कोई उद्देश्य नहीं है बल्कि एक प्रक्रिया है, कोई अपनाई जाने वाली वस्तु नहीं है बल्कि उसमें सम्मिलित होना है……..’, यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
डब्ल्यू जे. स्मिथ ने इस कथन को प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 12.
‘आधुनिक समाज ने प्रकृति का ही अंत कर दिया है।’ यह कथन किस विद्वान का है?
उत्तर:
मक्कीबेन ने उक्त कथन को प्रस्तुत किया है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संरचनात्मक परिवर्तन शब्द किस परिवर्तन को बताता है?
उत्तर:
संरचनात्मक परिवर्तन:
समाज की संरचना में परिवर्तन को दर्शाता है। जब किसी समाज की संरचना में परिवर्तन होता है तो वहाँ सांस्कृतिक परिवर्तन भी दृष्टिगोचर होता है। इसके साथ ही संरचनात्मक परिवर्तन मनुष्य के आचार, व्यवहार व उनके मनोभावों में परिवर्तन को भी व्यक्त करता है। संरचनात्मक परिवर्तन एक प्रकार से समाज की आधारशिला है, जिसके आधार पर किसी को समाज की सांस्कृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी उपलब्ध होती है।

अतः संरचनात्मक परिवर्तन समाज में एक परिवर्तनशील व्यवस्था है। विभिन्न प्रक्रियाएँ समय – समय पर मानवीय सम्बन्धों, स्थितियों व भूमिकाओं तथा सामाजिक नियमों में परिवर्तनों को उत्पन्न करती है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन हो जाता है। परन्तु सामाजिक संरचनाओं में धीरे – धीरे क्रमिक परिवर्तन होता है।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक शासन के प्रभाव की उत्पत्ति किन दो घटनाओं की परिणति है जो कि परस्पर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के प्रभाव की उत्पत्ति प्रमुख दो घटनाओं की परिणति से परस्पर रूप से सम्बन्धित है, जो निम्न प्रकार से है –

  1. प्रथम घटना: 19वीं सदी के समाज सुधारकों की भूमिका।
  2. द्वितीय घटना: 20वीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं के द्वारा किए गए सुनियोजित एवं अथक प्रयास।

अतः इन समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं का मूल उद्देश्य सामाजिक व्यवहारों में परिवर्तन लाना था, जो महिलाओं एवं वंचित समूहों के साथ भेदभाव किया करते थे। इन दो घटनाओं के परिणामस्वरूप ही औपनिवेशिक शासन की समाज में उत्पत्ति को बल मिला था। इन घटनाओं को ही आधार बनाकर समाज सुधारकों ने समाज में व्याप्त अनेक समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया।

प्रश्न 3.
सतीश सबरवाल ने औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन के किन तीन पक्षों की चर्चा की है?
उत्तर:
सतीश सबरवाल ने औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन की रूपरेखा से जुड़े तीन पक्षों की चर्चा की है जो निम्न प्रकार से है –

  1. संचार माध्यम।
  2. संगठनों के स्वरूप।
  3. विचारों की प्रकृति।

औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तनों को बल प्रदान करने में इन तीनों पक्षों ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। इन पक्षों ने समाज को एक छोर से दूसरे छोर पर रहने वाले लोगों को एक सूत्र में बांधने का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया है। जिसके परिणामस्वरूप लोगों को अन्य विद्वानों के विचारों को जानने का अवसर प्राप्त हुआ जिससे उनमें जागरुकता का संचार भी हुआ।

प्रश्न 4.
संचार के उन साधनों के नाम लिखे जिन्होंने समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं के विचारों को प्रचारित और प्रसारित किया।
उत्तर:
प्रिंटिग प्रेस, टेलीग्राफ तथा माइक्रोफोन ने समाज सुधारकों एवं राष्टवादी नेताओं के विचारों को समाज में उत्तम नागरिकों तक प्रसारित व प्रचारित किया। रेल के माध्यम से भी उनके विचारों को भारत के प्रत्येक क्षेत्रों तक पहुँचाया गया था।
संचार के इन साधनों ने समाज में अनेक ही महत्त्वपूर्ण कार्य किए जिसे कुछ बिन्दुओं में स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. समाज के प्रत्येक व्यक्तियों तक सूचनाओं के प्रसार का कार्य।
  2. लोगों में चेतना उत्पन्न करने का कार्य।
  3. सदस्यों को अपनी समस्याओं व अधिकारों के प्रति सजग करने आदि का महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

प्रश्न 5.
पश्चिमीकरण का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र में सर्वप्रथम इस अवधारणा का प्रयोग एम. एन. श्रीनिवास ने किया था।

  1. पश्चिमीकरण का अर्थ:
    पश्चिमी देशों के रीति – रिवाजों, जीवन – शैली, रहन – सहन के तरीके आदि का अनुसरण जब पूर्वी देशों के व्यक्तियों के द्वारा जब किया जाता है तो इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण की संज्ञा दी जाती है।
  2. योगेन्द्र सिंह के अनुसार:
    पश्चिमीकरण मानववाद एवं बुद्धिवाद का ही दूसरा नाम है। इनके अनुसार समाज में वैज्ञानिक प्रगति, औद्योगिक विकास एवं शिक्षण प्रणाली की स्थापना व राष्ट्रीयता का उदय आदि पश्चिमीकरण के ही विकास के फल है।

प्रश्न 6.
पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के किन क्षेत्रों पर पड़ा?
उत्तर:
पश्चिमीकरण के प्रक्रिया का प्रभाव भारतीय समाज के समस्त क्षेत्रों पर दृष्टिगोचर होता है, जिसका विवरण इस प्रकार से है –

  1. पश्चिमीकरण के प्रभाव से भारत में शिक्षा पद्धति को अंग्रेजी शिक्षा में बदलने का कार्य इस प्रक्रिया का ही है।
  2. पश्चिमीकरण से पारम्परिक कर्मकांडों में कमी आई है।
  3. इस प्रक्रिया से राष्ट्रीयवाद को बढ़ावा मिला है।
  4. इस प्रक्रिया से समाज में एक नए वर्ग का जन्म हुआ जिसे ‘अभिजात वर्ग’ कहा जाता है।

प्रश्न 7.
भारतीय संस्कृति की भोजन – शैली को पश्चिमीकरण ने किस रूप में प्रभावित किया?
उत्तर:
भारतीय भोजन – शैली पर पश्चिमीकरण निम्न रूपों में दृष्टिगोचर होता है –

  1. जहाँ पहले भारतीय संस्कृति के अनुरूप व्यक्तियों को धरती पर बिठाकर भोजन करवाया जाता था, अब पश्चिमीकरण के प्रभाव से टेविल – कुर्सी का प्रयोग किया जाने लगा है।
  2. भोजन के पश्चात् पूरे फर्श को गोबर से लीप कर साफ व पवित्र किया जाता था, किन्तु अब मेजों पर कपड़े हटाकर ही उन्हें साफ कर दिया जाता है।
  3. भारतीय समाज में जहाँ भोजन कराने की परम्परा को एक धार्मिक कृत्य माना जाता था, वहीं पाश्यात्य संस्कृति के प्रभाव से उसमें अब औपचारिकता की भावना का समावेश हो गया है। समाज के सदस्यों में भोजन करने के तरीकों में काफी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं।

प्रश्न 8.
श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण का सिद्धान्त देने से पूर्व किस समाज का अध्ययन किया था?
उत्तर:
भारत में एक जाति दूसरी जाति की तुलना में उच्च या निम्न मानी जाती है। एम. एन. श्रीनिवास ने इन्हीं जातियों के सम्बन्ध में विस्तार से अध्ययन किया था। श्रीनिवास ने जातियों की विवेचना करने के लिए समाज में वंचित वर्गों के लिए निम्न जाति शब्द का प्रयोग किया था।

उन्होंने दक्षिण भारत के मैसूर के रामपुरा गाँव की कुर्ग जाति के लोगों की सामाजिक और आर्थिक जीवन के विश्लेषण के लिए 1952 में संस्कृतिकरण की अवधारणा का प्रयोग किया था। उन्होंने इस अवधारणा का प्रयोग अपनी पुस्तक ‘The Religion and Society among the Cobrgs ot South India’ में किया है। प्रारम्भ में

उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को ब्राह्मणीकरण’ का नाम दिया था, क्योंकि उन्होंने देखा कि यह जाति बाह्मणों को ही आदर्श मानकर उनके प्रथाओं आदि का अनुसरण कर रही है। किन्तु बाद में वे उन्होंने पाया कि यह जाति केवल एक ब्राह्मणों को ही नहीं बल्कि अन्य उच्च जातियों के रिवाजों को ग्रहण करती है, तब उन्होंने इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के नाम से संबोधित किया।

प्रश्न 9.
एस. वी. केतकर ने संस्कृतिकरण की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
केतकर ने ‘History of Caste in India’ नामक अपनी पुस्तक में संस्कृतिकरण की अवधारणा पर प्रकाश डाला है।

उनके अनुसार – “एक जाति की सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक ही सीमित होती है जो कि उस जाति विशेष के सदस्यों में ही पैदा होते हैं।” अन्य में नहीं। संस्कृतिकरण की अवधारणा का स्पष्टीकरण समाजशास्त्री केतकर ने जाति के संदर्भ में ही किया है।

केतकर के अनुसार जाति समाज में एक जटिल व्यवस्था है जो जन्म पर आधारित होती है। जो व्यक्ति जिस भी जाति में जन्म लेगा, उसकी प्रस्थिति का निर्धारण समाज में उसी से ही आँका जाएगा, इसके साथ ही जातिगत नियमों, रिवाजों व परम्पराओं का पालन भी उसी के अंतर्गत ही रहकर किया जाएगा।

प्रश्न 10.
संस्कृतिकरण एक प्रोत्साहन के तीन कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देने वाले कारकों का विवरण इस प्रकार से है –

  1. यातायात व संचार के साधन:
    इस संचार व यातायात के साधनों के माध्यम से दूर – दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का सम्पर्क एक – दूसरे से बढ़ा है।
  2. कर्मकांडी क्रियाओं में सुलभता:
    मंत्रोच्चारण की पृथकता के कारण ही ब्राह्मणों के संस्कार सभी हिन्दू जातियों के लिए सुलभ हो गये हैं।
  3. राजनीतिक प्रोत्साहन:
    श्रीनिवास के अनुसार प्रजातांत्रिक व्यवस्था ने संस्कृतीकरण की प्रक्रिया को समाज में बढ़ावा दिया है।

प्रश्न 11.
लम्बवत् सामाजिक गतिशीलता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
श्रीनिवास के अनुसार यदि कोई निम्न जाति का सदस्य संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को अपनाकर अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सकता है। तब उसे लम्बवत् सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है। संस्कृतिकरण एक विषम एवं जटिल अवधारणा है, जिसका अनुसरण करके निम्न जाति अपनी स्थिति को स्थानीय तौर पर सदृढ़ बना सकती है।

अनेक समाजशास्त्रियों ने भारत के विभिन्न भागों में निम्न जातियों द्वारा संस्कृतिकरण कर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने के प्रयत्नों का उल्लेख किया है। श्रीनिवास ने दक्षिणी भारत के कुर्ग लोगों द्वारा ब्राह्मणों व लिंगायतों के सम्पर्क में आकर अपने को क्षत्रिय कहलाने के प्रयत्नों का उल्लेख किया है।

इसी प्रकार से राजस्थान व मध्य प्रदेश की कुछ जनजातियाँ जैसे भील, गोंड आदि जातियाँ संस्कृतिकरण का सहारा लेकर अपने क्षत्रिय होने का दावा कर रही हैं।

प्रश्न 12.
धर्मनिरपेक्षीकरण के सम्बन्ध में एवरक्रामी ने क्या कहा?
उत्तर:
एवरक्रामी के विचार धर्मनिरपेक्षीकरण के विषय में इस प्रकार से है –
एवरक्रामी के अनुसार:
धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत धार्मिक विचार, रिवाज एवं संस्थाएँ अपने सामाजिक महत्त्व को समाज में कम कर रही है। इस परिभाषा के माध्यम से वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्षीकरण वह प्रक्रिया है जो ‘सर्वधर्म समभाव’ की भावना को विकसित करके सभी धर्मों के प्रति समान आदर व श्रद्धा प्रकट करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती है।
अतः धर्मनिरपेक्षीकरण में ऐसी भावना निहित है जो धर्म के प्रभाव को कम करके धार्मिक रूढ़ियों को प्रभावहीन बनाती है।

प्रश्न 13.
श्रीनिवास ने धर्मनिरपेक्षीकरण की परिभाषा में तीन कौन से मुख्य तत्वों का उल्लेख किया?
उत्तर:
श्रीनिवास द्वारा धर्मनिरपेक्षीकरण की परिभाषा में मुख्य रूप से तीन तत्त्वों का उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार से है –

  1. धार्मिकता में कमी:
    श्रीनिवास के अनुसार समाज में जैसे – जैसे धर्मनिरपेक्षीकरण की भावना का विकास होगा, वैसे – वैसे लोगों की धार्मिक भावनाओं में कमी होती जाएगी।
  2. तार्किकता:
    इस प्रक्रिया के कारण लोगों में तर्क की भावना का संचार होता है वे किसी भी तथ्य को बुद्धि या तर्क के आधार पर ही स्वीकार करेंगे। इस प्रकार से धर्मनिरपेक्षीकरण से लोगों में ज्ञान-विज्ञान के प्रसार से उनकी तार्किकता में वृद्धि होगी।
  3. विभेदीकरण:
    इस प्रक्रिया के कारण सम्पूर्ण समाज के अंतर्गत लोगों को अनेक आधारों पर विभाजित किया जाता है। श्रीनिवास के अनुसार समाज में जैसे – जैसे धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, ज्यों – ज्यों ही समाज में विभेदीकरण की प्रक्रिया भी समाज में प्रबल होती जाएगी।

प्रश्न 14.
ब्रायन विल्सन ने धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के किन मुख्य दो कारकों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
ब्रायन आर. विल्सन के अनुसार – “धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया को दर्शाती हैं, जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ व धार्मिक अवधारणाओं की पकड़ का प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त हो जाती है।”
उन्होंने धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के मुख्य रूप से दो कारकों का उल्लेख किया है –

  1. साम्यवादी विचारधारा का उदय।
  2. ट्रेड यूनियन जैसे संगठनों का विकास।

विल्सन के अनुसार समाज में साम्यवादी विचारधारा के उत्पन्न होने से तथा ट्रेड यूनियन जैसे संगठनों के विकास से धर्मनिरपेक्षीकरण की भावना को काफी बल मिला है। इस प्रक्रिया में किसी भी धर्म विशेष पर जोर नहीं दिया जाता है और न ही किसी धर्म विशेष को प्राथमिकता दी जाती है।
धर्मनिरपेक्षीकरण समाज में सर्वप्रथम प्राथमिकता समाज के अधिकतम सदस्यों के अधिकतम लाभ को दी जाती है। इस प्रकार धर्मनिरपेक्षीकरण सर्वहितकारी समाज की विचारधारा (कल्पना) को जन्म देता है।

प्रश्न 15.
योगेन्द्र सिंह द्वारा आधुनिकीकरण की दी गई परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
योगेन्द्र सिंह के अनुसार – “आधुनिकीकरण एक संस्कृति प्रत्युत्तर के रूप में मौजूद है, जिनमें उन विशेषताओं का समावेश है, जो प्राथमिक रूप से विश्वव्यापक एवं उद्विकासीय है।” इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आधुनिकीकरण का. आशय केवल प्राविधिक उन्नति से ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक विश्व दृष्टिकोण, समकालीन समस्याओं के लिए मानविकी का आन्तरीकरण एवं विज्ञान का दार्शनिक दृष्टिकोण होना भी आवश्यक है।
जब किसी समाज की सांस्कृतिक व्यवस्था अपने सदस्यों को यह अवसर प्रदान करती है कि वे मानवीय प्रकृति तथा सामाजिक सम्बन्धों के विषय में स्वतंत्रतापूर्वक विचार कर सकें तथा विवेकपूर्ण निर्णय ले सकें तो आधुनिकीकरण के विकास का मार्ग समाज में प्रशस्त हो जाता है। अतः आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आधुनिकत्तम जीवन विधि को अपनाने के पक्ष में है।

प्रश्न 16.
लर्नर द्वारा आधुनिकीकरण की दी गई विशेषताओं में से चार विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
लर्नर ने प्रसिद्ध पुस्तक “दि पासिंग ऑफ ट्रेडीशनल सोसायटी” में आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. वैज्ञानिक भावना।
  2. नगरीकरण में वृद्धि।
  3. संचार साधनों में क्रान्ति।
  4. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।

इन सभी विशेषताओं का प्रमुख दृष्टिकोण मानव जीवन के सभी पक्षों में सुधार, नवीनता के प्रति लचीलापन एवं परिवर्तन को स्वीकार करना है। इसके साथ ही लर्नर ने आधुनिकीकरण के संदर्भ में यह भी स्पष्ट किया है कि आधुनिकीकरण को प्रक्रिया का सम्बन्ध उन दशाओं के निर्माण से है जिनमें कोई समाज व्यक्तिगत क्रियाओं और संस्थागत संरचना की दृष्टि से विभेदीकृत हो जाता है और उनमें विशेषिकरण बढ़ जाता है।

प्रश्न 17.
उत्तर – आधुनिकीकरण क्या है? संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकीकरण को आधुनिकीकरण के एक विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है। सर्वप्रथम समाजशास्त्र में “Post Modernity Condition” में उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा का प्रतिपादन अरनॉल्ड टॉयनबी ने किया था।

उत्तर – आधुनिकीकरण का अर्थ:
इससे आशय एक ऐतिहासिक काल से है। यह काल आधुनिकता के काल की समाप्ति के बाद प्रारम्भ होता है तथा यह आधुनिकीकरण का एक प्रकार से विकल्प ही है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री ‘एंथनी गिडेन्स’ ने आधुनिकता में होने वाले ऐसे परिवर्तनों को उत्तर या पछेती आधुनिकता कहा है जिसकी दो

प्रमुख विशेषताएँ हैं –

  1. वैश्वीकरण।
  2. परावर्तकता। (अर्थात् दूसरों ने व्यवहार के साथ – साथ अपने व्यवहार पर भी नजर रखने व नियंत्रण करने से है।)

प्रश्न 18.
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा के सम्बन्ध में कोलिनिकोस ने क्या लिखा है?
उत्तर:
कोलिनिकोस ने अपनी पुस्तक “अगेंस्ट पोस्ट मोडरनिटी माक्सीस्ट क्रिस्टिस” में लिखा है कि उत्तर – आधुनिकता और कुछ न होकर केवल यह बताती है कि समाज के कुछ सफेदपोश (white coller) अत्यधिक उपयोग करते हैं। इसके साथ ही यह अवधारणा एक पूँजीवादी अवधारणा कहलाती है। समाज में समकालीन समाजशास्त्री जो प्रकार्यवाद तथा मार्क्सवाद के प्रणेता माने जाते हैं वे इस प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करते हैं। कोलनिकोस भी एक समकालीन समाजशास्त्री हैं जिनके अनुसार उत्तर – आधुनिकता को अवधारणा का प्रयोग समाज के उच्च वर्गों के व्यक्ति के द्वारा जो अपने पेशे के अंतर्गत कुछ गलत कार्यों को करते हैं।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार आन्दोलन किस प्रकार 19वीं सदी में भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन के उत्तरदायी कारक बने, विवेचित कीजिए।
उत्तर:
समाज सुधार आंदोलनों ने भारतीय समाज में अपनी अहं भूमिका का निर्वाह किया है समाज सुधार आंदोलनों के अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जिसके वजह से समाज में सांस्कृतिक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं। जिनका विवरण निम्न प्रकार से है –
1.बाल – विवाह प्रथा:
प्राचीन समय में भारतीय समाज में बाल – विवाह का चलन काफी प्रबल था। माता – पिता के द्वारा कम आयु में ही बच्चों की शादियाँ करवा दी जाती थीं जिससे आगे चलकर महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो गई।

2. सती – प्रथा:
इस प्रथा ने भी महिलाओं के जीवन में काफी समस्याओं को उत्पन्न किया। प्राचीन समय में महिलाओं को अपने स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार प्राप्त नहीं था। जिस भी विवाहित स्त्री का पति का देहांत हुआ है, उस स्त्री को अपने पति के साथ ही उसकी शैय्या पर सती होना पड़ता था।

3. महिलाओं व वंचित वर्गों के साथ भेदभाव:
19वीं सदी से पूर्व चूँकि महिलाओं व वंचित वर्गों को स्वतंत्र जीवनयापन का अधिकार प्राप्त नहीं था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अनेक त्रासदियों को भुगतना पड़ा। समाज में महिलाओं को लोक – लाज का प्रतीक माना जाता है जिसके कारण उन्हें घर की चार दीवारी के भीतर ही कैद होके रहना पड़ता था। उनका पालन – पोषण पारम्परिक विचारधाराओं के आधार पर ही किया जाता था।

समाज में महिलाओं को सदैव पुरुषों से कम आंका जाता था, जिससे समाज में लिंग – भेद की समस्या उत्पन्न हो गई। महिलाओं का कम आयु में ही विवाह हो जाना, विधवा विवाह की समस्या आदि अनेक ऐसे कारक थे, जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को काफी हद तक तोड़ दिया था। भारतीय समाज में वंचित समूह कहे जाने वाले निम्न जातियों की स्थिति भी काफी दयनीय रही है। उनके निम्न जातियों में जन्म लेने के कारण उन्हें अनेक निर्योग्ताओं का सामना करना पड़ता था।

उच्च जाति के सदस्य उन्हें हीन दृष्टि से देखते थे। उन्हें कई अधिकारों से वंचित रखा गया था। उन्हें सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक रूप से कई समस्याओं से गुजरना पड़ता था। इसी वजह से छुआछूत की भावना भारतीय समाज में इतनी प्रबल थी। अत: उपरोक्त कारकों के विवरण से यह स्पष्ट होता है कि इन समस्त कारकों ने सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया जिसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में सांस्कृतिक परिवर्तनों को इतना बल मिला।

इन आंदोलनों के फलस्वरूप ही समाज में अनेक समस्याओं से व्यक्तियों को मुक्ति मिली, जिससे वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र होकर अपने जीवन का विकास करते हुए समाज को कल्याण की ओर अग्रसर कर सके। इस प्रकार से 19वीं सदी में समाज सुधारकों के अथक प्रयास से उन्होंने सांस्कृतिक परिवर्तनों में एक अच्छी भूमिका निभाई। समाज में चली आ रही रूढ़िवादी परम्पराओं में तथा समाज की सोच में परिवर्तन लाकर व्यक्तियों के आचरण व व्यवहारों को समाज सुधारकों ने एक नवीन तथा सकारात्मक दिशा प्रदान की जो समाज में सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाती है।

प्रश्न 2.
भारत में पश्चिमीकरण के फलस्वरूप हुई सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर:
पश्चिमीकरण का अर्थ व परिभाषाअर्थ – पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का अर्थ है पश्चिमी संस्कृति को ग्रहण करना या उसका अनुसरण करना।
परिभाषा – श्रीनिवास के अनुसार – “पश्चिमीकरण की प्रक्रिया विकास भारतीय समाज में अंग्रेजों के आगमन से प्रारम्भ हुआ है।” उनके अनुसार जब पश्चिमी देशों के रिवाजों, कार्यप्रणाली, रहन-सहन के स्तर आदि का अनुपालन जब भारतीय समाज या पूर्वी देशों के नागरिकों के द्वारा किया जाता है। तब उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण के नाम से संबोधित किया जाता है। पश्चिमीकरण के फलस्वरूप भारतीय समाज में हुए सामाजिक परिवर्तनों का विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. परम्परागत संस्थाओं के स्थान पर नवीन संस्थाओं का उदय हुआ:
    पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में परम्परागत संस्थाए जैसे विवाह पद्धति, परिवार आदि संस्थाओं में अब बदलाव दृष्टिगोचर होता है। जो रूढ़िवादी विचारधाराओं का पालन इन संस्थाओं के अंतर्गत किया जाता था, अब उनके नियमों में परिवर्तनों को देखा जा सकता है।
  2. अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का प्रसार:
    इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में चली आ रही प्राचीन शिक्षा पद्धति के स्थान पर आधुनिक शिक्षा प्रणाली के महत्त्व में वृद्धि हुई है।
  3. नए मध्यवर्ग का उदय:
    इस प्रक्रिया के कारण समाज में उच्च व निम्न वर्ग के अलावा एक नवीन श्रेणी या वर्ग का उदय हुआ, जिसे मध्यम वर्ग के नाम से जाना जाता है। यह वर्ग प्रगतिशील है जो सदैव विकास के पथ पर अग्रसर है।
  4. भोजन – प्रणाली में बदलाव:
    जहाँ भारतीय समाज में प्राचीन समय में लोगों को जमीन पर बैठाकर पत्तलों पर भोज्य कराया जाता था, अब परिश्चमीकरण की प्रक्रिया के कारण अब उत्सवों पर लोगों को भोजन टेबल व कुर्सी पर करवाया जाता है। इससे आधुनिक भोजन प्रणाली का समाज में बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
  5. जातिगत भेदभाव में शिथिलता का आना:
    समाज में पहले निम्न जातियों के सदस्यों के साथ भेदभाव किया जाता था, उन्हें हीन दृष्टि से देखा जाता था। परन्तु इस प्रक्रिया के कारण उनकी स्थिति में सुधार हुआ है, उन्हें अब अधिकार भी प्राप्त हुए हैं जिससे वह अपना जीवनयापन कर सकते हैं।

अत: उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भारतीय समाज के प्रत्येक क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक आदि में परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 3.
संस्कृतिकरण की अवधारणा का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा का प्रतिपादन समाजशास्त्र में सर्वप्रथम. श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक “The Religion and Society among the Coorgs of South India” में किया है।
श्रीनिवास के अनुसार:
संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई भी निम्न हिन्दू जाति के सदस्य उच्च जातियों जैसे बाह्मणों के रीति – रिवाजों, संस्कारों, विश्वासों, जीवन – विधि व अन्य प्रणालियों को ग्रहण करते हुए अपने रिवाजों व जीवन – शैली में बदलाव लाते हैं।

श्रीनिवास ने यह बताया है कि किसी भी समूह का संस्कृतिकरण उसकी प्रस्थिति को स्थानीय जाति संस्तरण में उच्चता की ओर ले जाता है। संस्कृतिकरण किसी समूह की आर्थिक अथवा राजनीतिक स्थिति में एक सुधार की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत व्यक्ति सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रतिष्ठित समूह के रीति – रिवाजों एवं उनके नामों का अनुकरण कर अपनी सामाजिक प्रस्थिति को उच्च बनाते हैं।

संस्कृतिकरण का आलोचनात्मक विश्लेषण:
श्रीनिवास के द्वारा प्रतिपादित अवधारणा संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से अनेक विद्वान सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार संस्कृतिकरण एक विषम एवं जटिल अवधारणा है। विद्वानों के अनुसार यह प्रक्रिया कोई एक अवधारणा न होकर अनेक अवधारणाओं का योग है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया यह विश्लेषण में बाधा उत्पन्न करने वाली संस्कृतिकरण की ही प्रक्रिया है।

विभिन्न विद्वानों के द्वारा दी गई संस्कृतिकरण के विपक्ष में परिभाषाएँ:

  1. मजूमदार के अनुसार:
    “संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत सैद्धान्तिक केवल एक सैद्धान्तिक रूप में ही होता है। जब हम विशिष्ट मामलों पर ध्यान देने लगते हैं। यह गतिशीलता से सम्बन्धित ज्ञान एवं अनुभव मान्यता की दृष्टि से उचित नहीं है।
  2. बैली के अनुसार: “संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के द्वारा सांस्कृतिक परिवर्तन की स्पष्ट व्याख्या करना सम्भव नहीं है।”

इस प्रकार बैली संस्कृतिकरण की अवधारणा को सांस्कृतिक परिवर्तन की व्याख्या में स्पष्ट नहीं मानते हैं। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने संस्कृतिकरण पर आलोचनात्मक टिप्पणी की है जिसे निम्न बिन्दुओं में दर्शाया जा सकता है –

  1. यह अवधारणा अपवर्जन तथा असमानता पर आधारित है।
  2. यह प्रक्रिया उच्च जाति के लोगों के द्वारा निम्न जाति के लोगों के प्रति किए जाने वाला भेदभाव एक प्रकार का विशेषधिकार है।
  3. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के व्यवहारिक दृष्टिकोण के साथ स्वाभाविक रूप से समानता की कल्पना करना सम्भव नहीं हो सकता।
  4. इस प्रक्रिया के अंतर्गत उच्च जाति की जीवन – शैली का अनुकरण को उचित मानना ठीक नहीं ठहराया जा सकता।

अतः इन आलोचनाओं के बाद भी हम संस्कृतिकरण की भावना को खारिज नहीं कर सकते क्योंकि भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विषय में जानने के लिए विशेष तौर पर जातियों के मध्य पाए जाने वाली सामाजिक – सांस्कृतिक गतिशीलता के अध्ययन में इससे काफी सहयोग प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 4.
भारत में धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के कारकों की विस्तार से व्याख्या करें।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण:
“यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ धार्मिक अवधारणाओं की पकड़ या प्रभाव से मुक्त हो जाती है।” अर्थात् धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत धार्मिक विश्वासों में कमी आती है व समाज में बुद्धि व तर्क की महत्ता में वृद्धि होती जाती है।
भारत में धर्मनिरपेक्षीकरण के उद्भव के कारक – भारत में धर्मनिपेक्षीकरण के उद्भव के निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं –

  1. सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलन:
    धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलनों के उद्भव का प्रमुख उद्देश्य पुराने समय से चले आ रहे धार्मिक रीति – रिवाजों के ऐसे स्वरूपों का विरोध करना था, जो तर्क पर आधारित नहीं थे। इन आंदोलनों के द्वारा समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया गया तथा साथ ही समाज में समानता, न्याय व मानवता की भावना को स्थापित करने के प्रयास किए गए।
  2. पश्चिमीकरण:
    इस प्रक्रिया ने समाज के हर पक्ष को प्रभावित किया है, जिससे प्रत्येक क्षेत्र में बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं। पश्चिमीकरण के कारण व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भी बदलाव आया है। इससे समाज में अलौकिक एवं अप्राकृतिक सत्ता के प्रति विश्वास में भी कमी आई है।
  3. धार्मिक संगठनों का अभाव:
    भारत में लौकिकीकरण के विकास में प्रमुख धार्मिक संगठनों के अभाव ने एक प्रमुख कारक के रूप में प्रमुख रूप से कार्य किया है।
  4. नगरीकरण:
    लौकिकीकरण की प्रक्रिया के कारण नगरों का विकास हुआ जिससे गाँवों से लोगों का नगरों की ओर पलायन हुआ। इसके साथ ही शहरों में वैज्ञानिक तथा तर्क पूर्ण चिंतन का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है।
  5. यातायात व संचार के साधन:
    इन साधनों के विकास के कारण दूरस्थ रहने वाले लोगों के बीच की दूरी कम हुई है। धर्म, जाति एवं राज्यों के नाम पर बँटे हुए लोग एक-दूसरे के करीब आए।

अत: उपरोक्त कारकों के परिणामस्वरूप समाज में धर्मनिपेक्षीकरण की स्थिति काफी सुदृढ़ हुई है।

प्रश्न 5.
आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताते हुए उत्तर – आधुनिकीकरण के बारे में बताइए।
उत्तर:
अलातास ने आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में कहा था – “आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान का समाज में प्रचार एवं प्रसार होता है, जिससे समाज में व्यक्तियों के स्तर में सुधार होता है तथा समाज अच्छाई की ओर बढ़ता है।” लर्नर ने अपनी पुस्तक “The Passing of Traditional Society” में आधुनिकीकरण की सात विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. वैज्ञानिक भावना।
  2. नगरीकरण में वृद्धि।
  3. संचार के साधनों में क्रान्ति।
  4. शिक्षा का प्रसार।
  5. मतदान व्यवहार में वृद्धि।
  6. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।
  7. व्यापक आर्थिक साझेदारी।

उपर्युक्त विशेषताओं का केन्द्र – बिन्दु जीवन के सभी पक्षों में सुधार, दृष्टिकोण की व्यापकता, नवीनता के प्रति लचीलापन एवं परिवर्तन के प्रति स्वीकारोक्ति है।
डेविड हारवे ने अपनी पुस्तक “Condition of Post Modernity” में उत्तर – आधुनिकीकरण के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्षणों का विवेचन प्रस्तुत किया है, जो इस प्रकार से है –

  1. उत्तर – आधुनिकतावाद एक सांस्कृतिक पैराडिम है, यह आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक प्रक्रियाओं का सम्मिश्रण है।
  2. इसकी अभिव्यक्ति जीवन की विभिन्न शैलियों में जैसे साहित्य, दर्शन व कला आदि में दृष्टिगोचर होता है।
  3. उत्तर – आधुनिकीकरण समानता की अपेक्षा विविधता को स्वीकार करती है।
  4. यह एक बहुआयामी प्रक्रिया है।
  5. इसके केन्द्र – बिन्दु अपेक्षित महिलाएँ व हाशिए पर रहने वाले लोग हैं।

अतः उत्तर – आधुनिकीकरण आधुनिकीकरण के विकल्प के रूप में। समाज वैज्ञानिकों का मानना है कि समाज उत्तर – आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में प्रवेश कर रहा है। 20वीं सदी के दूसरे भाग में उत्तर – आधुनिकीकरण से सम्बन्धित है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी में सती प्रथा का विरोध किस समाज सुधारक ने किया?
(अ) गोविन्द रानाडे
(ब) राजा राममोहन राय
(स) दयानन्द
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(ब) राजा राममोहन राय

प्रश्न 2.
अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में बहु विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया?
(अ) जहाँआरा शाहनवास
(ब) सर सैय्यद अहमद खान
(स) राजा राममोहन राय
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) जहाँआरा शाहनवास

प्रश्न 3.
मानववाद तथा बुद्धिवाद पर जोर पश्चिमीकरण का है। यह किसने कहा था?
(अ) केतकर
(ब) योगेन्द्र सिंह
(स) श्रीनिवास
(द) सभी
उत्तरमाला:
(ब) योगेन्द्र सिंह

प्रश्न 4.
“आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) श्रीनिवास
(ब) रानाडे
(स) केतकर
(द) मजूमदार
उत्तरमाला:
(अ) श्रीनिवास

प्रश्न 5.
श्रीनिवास ने 1952 में एक सरकारी बुलडोजर के चालक को जमीन समतल करते देखा। वह चालक मनोरंजन के लिए गाँव में पारम्परिक खेल दिखाता था। यह घटना कहाँ की है?
(अ) मेरठ
(ब) जयपुर
(स) मैसूर के रामपुर गाँव
(द) मथुरा
उत्तरमाला:
(स) मैसूर के रामपुर गाँव

प्रश्न 6.
परम्परागत भोजन पद्धति में भोजन के पश्चात् जूठी पत्तलों के स्थान को किससे पवित्र किया जाता था?
(अ) गोबर से लेपकर
(ब) और कूड़ा डालकर
(स) गंगाजल से पूजा करके
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) गोबर से लेपकर

प्रश्न 7.
पश्चिमीकरण ने समाज में एक नवीन वर्ग को जन्म दिया जिसे किस नाम से जाना जाता है?
(अ) अभिजात वर्ग
(ब) पूँजीवादी वर्ग
(स) सामन्तवादी वर्ग
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) अभिजात वर्ग

प्रश्न 8.
“हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इंडिया” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) श्रीनिवास
(ब) मजूमदार
(स) केतकर
(द) सभी
उत्तरमाला:
(स) केतकर

प्रश्न 9.
“जाति एक बन्द वर्ग है” किसने कहा है?
(अ) मजूमदार एवं मदान
(ब) केतकर
(स) केतकर
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) मजूमदार एवं मदान

प्रश्न 10.
श्रीनिवास ने जाति व्यवस्था को किस आधार पर विवेचना करने का प्रयास किया है?
(अ) ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता
(ब) विकासशील गतिशीलता
(स) लम्बवत् गतिशीलता
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता

प्रश्न 11.
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया में सदैव किस जाति का अनुकरण किया जाता है?
(अ) ठाकुर जाति
(ब) ब्राह्मण जाति
(स) कायस्थ जाति
(द) वैश्य जाति
उत्तरमाला:
(ब) ब्राह्मण जाति

प्रश्न 12.
“कास्ट एण्ड कम्युनिकेशन इन एन इंडियन विलेज” किस समाजशास्त्री की रचना है?
(अ) केतकर
(ब) मजूमदार
(स) श्रीनिवास
(द) सभी
उत्तरमाला:
(स) श्रीनिवास

प्रश्न 13.
एफ. जी. बैली की पुस्तक का नाम है –
(अ) कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर
(ब) कास्ट इन इण्डिया
(स) हिस्ट्री ऑफ कास्ट इन इण्डिया
(द) कोई नहीं
उत्तरमाला:
(अ) कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर

प्रश्न 14.
संस्कृतीकरण के प्रोत्साहन के प्रमुख कारक हैं –
(अ) संचार एवं यातायात के साधनों का विकास
(ब) कर्मकाण्डी क्रियाओं में सुलभता
(स) राजनीतिक प्रोत्साहन
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) सभी

प्रश्न 15.
धर्म निरपेक्षीकरण की परिभाषा में तीन बातें मुख्य हैं –
(अ) धार्मिकता में कमी
(ब) तार्किक चिन्तन की भावना में वृद्धि
(स) विभेदीकरण की प्रक्रिया
(द) सभी
उत्तरमाला:
(द) सभी

प्रश्न 16.
आधुनिकता को कौन नहीं स्वीकार करते हैं?
(अ) प्रकार्यवाद एवं मार्क्सवाद
(ब) पूँजीवाद
(स) समाजवाद
(द) धर्मवाद
उत्तरमाला:
(अ) प्रकार्यवाद एवं मार्क्सवाद

प्रश्न 17.
आधुनिक समाज ने प्रकृति का अंत कर दिया है। यह कथन किसका है?
(अ) केतकर
(ब) मैकमीवेन
(स) श्रीनिवास
(द) सभी का
उत्तरमाला:
(ब) मैकमीवेन

प्रश्न 18.
“दि पासिंग ऑफ ट्रेडीशनल सोसायटी” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) लर्नर
(ब) केतकर
(स) मुरे
(द) योगेन्द्र सिंह
उत्तरमाला:
(अ) लर्नर

प्रश्न 19.
आधुनिकीकरण कोई उद्देश्य नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है – किसने कहा है?
(अ) लर्नर
(ब) जे. स्मिथ
(स) मुरे
(द) योगेन्द्र सिंह
उत्तरमाला:
(अ) लर्नर

प्रश्न 20.
“कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) डेविड हारवे
(ब) मुरे
(स) लर्नर
(द) सभी
उत्तरमाला:
(अ) डेविड हारवे

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“सामाजिक संरचना” क्या है?
उत्तर:
सामाजिक संरचना:
“सामाजिक संरचना” लोगों के सम्बन्धों की वह सतत् व्यवस्था है, जिसे सामाजिक रूप से स्थापित प्रारूप अथवा व्यवहार के प्रतिमान के रूप में सामाजिक संस्थाओं और संस्कृति के द्वारा परिभाषित और नियन्त्रित किया जाता है।

प्रश्न 2.
किस समाज सुधारक ने सती प्रथा का विरोध किया था?
उत्तर:
19वीं शताब्दी में राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया था।

प्रश्न 3.
अंजुमन – ए – ख्वातिन – ए – इस्लाम की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
अंजुमन – ए – ख्वाति – ए – इस्लाम की स्थापना 1914 ई. में हुई थी।

प्रश्न 4.
बहु विवाह के विरुद्ध लाए गये प्रस्ताव का किस महिलाओं की पत्रिका ने समर्थन किया?
उत्तर:
बहु विवाह के लाए गये प्रस्ताव का पंजाब से निकलने वाली महिलाओं की पत्रिका “तहसिव – ए – निसवान” ने समर्थन किया।

प्रश्न 5.
समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
समाज सुधारकों एवं राष्ट्रवादी नेताओं का मूल उद्देश्य उन सामाजिक व्यवहारों में परिवर्तन लाने का था, जो महिलाओं एवं वंचित समूहों के साथ भेदभाव करते थे।

प्रश्न 6.
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अंग्रेजों ने भारत में किन कुरीतियों को मिटाया था?
उत्तर:
19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अंग्रेजों ने भारतीय जनमत के समर्थन में सती प्रथा (1829), बालिका हत्या, मानव बलि और दास प्रथा (1833) जैसी कुरीतियों को मिटाया था।

प्रश्न 7.
“आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
“आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन” पुस्तक के लेखक श्रीनिवास हैं।

प्रश्न 8.
योगेन्द्र सिंह ने पश्चिमीकरण की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
योगेन्द्र सिंह की पश्चिमीकरण की परिभाषा-“मानववाद तथा बुद्धिवाद पर जोर पश्चिमीकरण का है, जिसने भारत में संस्थागत तथा सामाजिक सुधारों का सिलसिला प्रारम्भ कर दिया। वैज्ञानिक, औद्योगिक एवं शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, राष्ट्रीयता का उदय, देश में नवीन राजनीतिक संस्कृति और नेतृत्व सब पश्चिमीकरण के उपोत्पादन हैं।”

प्रश्न 9.
पश्चिमीकरण के कारण भोजन ग्रहण करने के तरीकों में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर:
पहले लोग जमीन पर बैठकर भोजन करते थे और उस स्थान को गोबर से लेपकर पवित्र किया जाता था। पश्चिमीकरण के कारण लोग जमीन पर बैठकर भोजन ग्रहण करने के स्थान पर टेबल और कुर्सी का प्रयोग भोजन करने के लिए किया जाने लगा है।

प्रश्न 10.
“निम्न जाति” शब्द का प्रयोग किस समाजशास्त्री ने किया?
उत्तर:
श्रीनिवास ने जातिगत संस्तरण व्यवस्था को विवेचित करने के लिए समाज के वंचित समूह के लिए “निम्न जाति” शब्द का प्रयोग किया था।

प्रश्न 11.
जाति एक बन्द वर्ग है। यह कथन किस समाजशास्त्री का है?
उत्तर:
“जाति एक बन्द वर्ग है” यह कथन समाजशास्त्री मजूमदार एवं मदान का है।

प्रश्न 12.
संस्कृतिकरण की अवधारणा से पूर्व जाति व्यवस्था को किस पर आधारित माना जाता रहा था?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा से पूर्व यह माना जाता था कि जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित कठोर व्यवस्था है।

प्रश्न 13.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में सदैव किस जाति का अनुकरण किया जाता है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में सदैव ब्राह्मण जाति का ही अनुकरण किया जाता है।

प्रश्न 14.
संस्कृतिकरण के प्रोत्साहन के कौन – कौन कारक हैं?
उत्तर:
संस्कृतिकरण के प्रोत्साहन के तीन प्रमुख कारक हैं –

  1. संचार एवं यातायात के साधनों का विकास।
  2. कर्मकाण्डी क्रियाओं में सुलभता।
  3. राजनीतिक प्रोत्साहन।

प्रश्न 15.
संस्कृतिकरण की अवधारणा कैसी है?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा एक विषम एवं जटिल अवधारणा है।

प्रश्न 16.
“कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर” पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
“कास्ट एण्ड इकोनोमिक फ्रण्टियर” पुस्तक के लेखक एफ. जी. बैली हैं।

प्रश्न 17.
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में किस पर अधिक बल दिया गया है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में तर्कयुक्त चिंतन, स्वतन्त्रता एवं विचारों पर अधिक बल दिया गया है।

प्रश्न 18.
“सोशल चेंज इन मॉडर्न इण्डिया” नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
सोशल चेंज इन मॉडर्न इण्डिया नामक पुस्तक के लेखक एम. एन. श्रीनिवास है।

प्रश्न 19.
एबर क्रॉमी ने धर्मनिरपेक्षीकरण की कौन – सी परिभाषा दी है?
उत्तर:
एबर क्रॉमी:
धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत धार्मिक विचार, रिवाज एवं संस्थाएँ अपनी सामाजिक महत्ता खो देती है।

प्रश्न 20.
पुनर्जागरण आन्दोलन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पुनर्जागरण आन्दोलन-पुनर्जागरण आन्दोलन की शुरूआत इंग्लैण्ड से हुई है। पुनर्जागरण आन्दोलन तर्कसंगत ज्ञान में वृद्धि करने वाला आन्दोलन था। इससे ज्ञान के क्षेत्र में पुर्नव्याख्याएँ प्रारम्भ होने लगी थी। ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में तर्कसंगत खोज का दौर प्रारम्भ हुआ था।

प्रश्न 21.
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा को किस समाजशास्त्री ने सर्वप्रथम प्रयोग किया?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा को सर्वप्रथम अरनाल्ड टोयन्बी ने अपनी पुस्तक “पोस्ट मॉडर्न कन्डीशन” में प्रयोग किया।

प्रश्न 22.
समाजशास्त्री रिचार्ड गोट ने उत्तर – आधुनिकता की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
रिचार्ड गोट के अनुसार – “उत्तर – आधुनिकता, आधुनिकता से मुक्ति दिलाने वाला एक स्वरूप है। यह एक विखंडित आन्दोलन है, जिसमें सैकड़ों फूल खिल सकते हैं। उत्तर – आधुनिक में बहु – संस्कृतियों का निवास हो सकता है।”

प्रश्न 23.
“कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
“कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” नामक पुस्तक के लेखक डेविड हारवे हैं।

प्रश्न 24.
लर्नर की पुस्तक का नाम लिखो।
उत्तर:
“दि पासिंग ऑफ ट्रेडीशनल सोसायटी” नामक पुस्तक के लेखक लर्नर हैं।

प्रश्न 25.
उत्तर – आधुनिकता कैसी अवधारणा है?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा एक पूँजीवादी अवधारणा है।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब समाज की समस्त इकाइयाँ आपस में मिलकर एक प्रतिपादित इकाई या ढांचे का निर्माण करते हैं तो उसे सामाजिक संरचना कहते हैं। सामाजिक संरचना का शाब्दिक अर्थ – ढांचा या आकार है।

विशेषताएँ:

  1. यह समाज की एक अभूर्त अवधारणा है।
  2. सामाजिक संरचनाएँ उपसंरचनाओं द्वारा निर्मित होती है।
  3. ये स्थानीय विशषताओं से प्रभावित होती है।
  4. सामाजिक संरचना कोई स्थित वस्तु नहीं है। यह एक परिवर्तनशील व्यवस्था है।
  5. यह इकाइयों की एक क्रमबद्ध व्यवस्था है।
  6. सामाजिक संरचना के माध्यम से ही समाज में विभिन्न पक्षों के ब्राह्य स्वरूप को जाना जा सकता है।
  7. सामाजिक संरचना की इकाइयाँ आपस में परम्पर रूप से सम्बन्धित होती हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हस्त – उपकरणों के स्थान पर निर्जीव शक्ति द्वारा संचालित मशीनों के द्वारा किया जाता है। संचालित मशीनों का प्रयोग न केवल कारखानों, अपितु यातायात, संचार, परिवर्तन तथा खेती आदि सभी क्षेत्रों में भी किया जाता है।

विशेषताएँ:

  1. औद्योगीकरण की प्रक्रिया से नगरों का विकास हुआ है।
  2. इसने श्रम – विभाजन को बढ़ावा दिया है।
  3. औद्योगीकरण में श्रम – विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण व मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्र में होने लगा।
  4. औद्योगीकरण के कारण मानव की सुख – सुविधाओं एवं जीवन – स्तर में वृद्धि हुई है।
  5. विचारों में विविधता पनपी है।
  6. कृषि का यंत्रीकरण हुआ है।

प्रश्न 3.
नगरीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गाँवों का नगरों में बदलने की प्रक्रिया को नगरीकरण की संज्ञा दी जाती है। कुछ विद्वानों ने ग्रामीण जनसंख्या के नगर की ओर पलायन की प्रक्रिया को नगरीकरण का नाम दिया है। नगरीकरण की प्रक्रिया का प्रयोग कई अर्थों में किया गया है, जैसे नगरीय होना, नगरों की ओर जाना, कृषि कार्यों को छोड़कर गैर – कृषिहर कार्यों को अपनाना आदि।

आजकल इस अवधारणा का प्रयोग वृहत् समुदायों (नगरों) में जनसंख्या के केन्द्रीकरण के लिए किया जाने लगा है जहाँ व्यवसायों की प्रकृति गैर – कृषि व्यवसाय होती है। वर्तमान औद्योगिक नगर औद्योगीकरण की ही देन हैं। जब एक स्थान पर एक विशाल उद्योग स्थापित हो जाते हैं तो उस स्थान पर कार्य करने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं तथा धीरे – धीरे वह स्थान नगर के रूप में विकसित हो जाता है। अत: नगरीकरण नगर निर्माण व नगरों की वृद्धि की प्रक्रिया है।

प्रश्न 4.
समाज सुधार आंदोलनों ने समाज में फैली किन सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया है?
उत्तर:
19वीं सदी में भारतीय समाज में समाज – सुधारकों द्वारा अनेक आंदोलन चलाए गए थे। इन सामाजिक आंदोलनों ने समाज में व्याप्त अनेक सामाजिक समस्याओं या कुरीतियों का अंत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। ये सामाजिक कुरीतियाँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. बाल – विवाह: कम आयु में बच्चों का विवाह कराना भारतीय समाज में एक आम बात थी। आंदोलनों से इसमें काफी कमी आई है।
  2. सती: प्रथा को भी खत्म करवा कर आंदोलनों ने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  3. इन आंदोलनों ने समाज में जातिगत भेदभाव को भी कम किया था।
  4. इन आंदोलनों से लोगों में जागरूकता का प्रसार हुआ, जिससे अज्ञानता समाप्त हुई।

प्रश्न 5.
समाज सुधार आंदोलनों का समाज पर पड़ने वाले तीन सकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाज सुधार आंदोलनों का समाज पर पड़ने वाले दो सकारात्मक प्रभाव इस प्रकार से है –

  1. मानसिकता में बदलाव: इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप समाज में आम जनों की सोच में बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।
  2. भेदभाव में कमी: महिलाओं व वंचित वर्गों के साथ जो भेदभाव किए जाते थे, इन आंदोलनों से उन्हें मुक्ति मिल गई।
  3. सामाजिक कुरीतियों का अंत: इन आंदोलनों के प्रभाव से समाज में कई सामाजिक समस्याओं का अंत करने में सहायता मिली है।

प्रश्न 6.
जनसंचार साधनों से आम नागरिकों को क्या लाभ हुए?
उत्तर:
जनसंचार साधनों के माध्यम से समाज में लोगों को अनेक लाभ हुए है –

  1. जनसंचार माध्यमों से लोगों को बुद्धिजीवियों व समाज सुधारकों के विचारों को जानने का अवसर प्राप्त हुआ।
  2. दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले लोगों को समस्त क्षेत्रों की जानकारी भी उपलब्ध हो जाती थी।
  3. लोगों को समाज में सामाजिक समस्याओं जैसे सती प्रथा आदि से मुक्ति मिली।
  4. सदस्यों को अपने अधिकारों के विषय में ज्ञात हुआ।
  5. इन साधनों से समाज में अंधविश्वास की प्रवृत्ति में कमी आई है।

प्रश्न 7.
पश्चिमीकरण की प्रमुख दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण की दो विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. यह प्रक्रिया नैतिक रूप से तटस्थ है, जिसका उद्देश्य अच्छे या बुरे को अभिव्यक्त करना नहीं है।
  2. यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसका प्रभाव सभी जगह समान रूप से नहीं पड़ता है तथा इसका आंकलन भी नहीं किया जा सकता।
  3. पश्चिमी संस्कृति को आधुनिक संस्कृति का ही एक रूप माना जाता है।
  4. पश्चिमीकरण की अवधारणा बुद्धिवाद पर आधारित है।
  5. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया को तर्कसंगत प्रक्रिया भी माना जाता है क्योंकि इसमें तर्क पर आधारित तथ्यों को ही सत्य माना जाता है।

प्रश्न 8.
पश्चिमीकरण से समाज में हुए बदलावों को बिन्दुओं में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण से समाज में हुए बदलावों को हम दो बिन्दुओं में स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. बदलाव की प्रक्रिया: पश्चिमीकरण समाज में एक प्रकार से परिवर्तन की सूचक है जिसके आधार पर समाज के हर क्षेत्र में बदलाव दृष्टिगोचर होता है।
  2. शिक्षा का प्रसार: प्राचीन विद्या मंदिरों का स्थान नवीन स्कूलों ने ले लिया। भवन आदि का महत्त्व शिक्षा संस्थाओं में बढ़ गया है। नए उपकरण, नई शिक्षा प्रणलियाँ आदि पाश्चात्य प्रभावों का ही फल है।
  3. जाति पर प्रभाव: भारत में अनेक उद्योगों के विकास होने से विभिन्न जातियों के सदस्य एक ही स्थान पर कार्य करने लगे तथा जाति व्यवस्था में कठोर प्रतिबंधों में स्वाभाविक रूप से ढिलाई आ गई। नगरीकरण ने भी अनेक जातियों के लोगों को पारस्परिक सम्मिलन तथा सहवास के अवसर की आवश्यकता प्रदान की।

प्रश्न 9.
अभिजात – वर्ग की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी समाज में सर्वोच्च प्रस्थिति प्राप्त व्यक्तियों के समूह को अभिजात – वर्ग की संज्ञा दी जाती है इसका प्रयोग पेरेटो व मोजाका की कृतियों व अध्ययनों में देखने को मिलता है।

विशेषताएँ:

  1. यह समाज में उच्च प्रस्थिति प्राप्त करने वाला एक शक्तिशाली वर्ग होता है।
  2. इन्हें इनकी योग्यता व कार्य – क्षमता के आधार पर ही समाज में उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।
  3. इनकी स्थिति समाज में सदैव परिवर्तनशील रहती है।

प्रश्न 10.
ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता सामाजिक गतिशीलता का ही एक मुख्य प्रकार है। यह वह गतिशीलता है जिसके अंतर्गत जब व्यक्ति की स्थिति एवं भूमिका में बदलाव के साथ – साथ सामाजिक वर्ग – प्रस्थिति में भी बदलाव आ जाता है। तब इसे ऊर्ध्वमुखी या शीर्ष सामाजिक गतिशीलता कहते हैं। समाज में कोई भी व्यक्ति या समूह इस गतिशीलता को अपनाकर समाज में अपनी प्रस्थिति को अन्य समूहों से उच्च कर सकते हैं। इस प्रकार की गतिशीलता किमी वर्ग प्रस्थिति अथवा प्रतिष्टा के पाने अथवा खोने का संकेत देती है।

प्रश्न 11.
जाति की मुख्य विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
जाति की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं –

  1. जाति की सदस्यता जन्म से ही निश्चित हो जाती हैं।
  2. जाति के पेशे प्रायः निश्चित होते हैं।
  3. जाति में भोजन, सहवास व विवाह पर प्रतिबन्ध पाया जाता है।
  4. जाति एक खंडात्मक व्यवस्था है जहाँ अनेक लोगों को समाज में खंडों में विभाजित किया जाता है।
  5. जाति में गतिशीलता के गुण का अभाव पाया है।

प्रश्न 12.
वर्ग का अर्थ बताइए।
उत्तर:
वर्ग सामाजिक स्तरीकरण की एक मुक्त व्यवस्था है। वर्ग के आधार पर आर्थिक स्थिति, योग्यता, क्षमता तथा शैक्षणिक स्थिति आदि हो सकते हैं। यह समाज का वह महत्त्वपूर्ण भाग होता है, जिसके सदस्यों की सामाजिक स्थितियाँ समान होती हैं, तथा उसके आधार पर इनमें सामाजिक जागरूकता भी पाई जाती है व समाज के अन्य वर्गों से ये अलग होते हैं।

प्रश्न 13.
वर्ग की सामान्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वर्ग की सामान्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. वर्ग एक गतिशील धारणा है, जहाँ व्यक्ति की स्थिति समयानुसार परिवर्तित होती रहती है।
  2. वर्ग श्रेणी पर विभाजित एक व्यवस्था होती है।
  3. वर्गों के सदस्यों के बीच उच्चता व निम्नता की भावना भी पाई जाती है।
  4. यह एक मुक्त तथा लचीली प्रणाली है।

प्रश्न 14.
जाति तथा वर्ग व्यवस्था के मध्य अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति तथा वर्ग व्यवस्था के मध्य अंतर को निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. जाति एक स्थिर अवधारणा है, जबकि वर्ग एक गतिशील अवधारणा है।
  2. जाति एक बंद व्यवस्था है, जबकि वर्ग एक मुक्त व्यवस्था है।
  3. जाति जन्म पर आधारित होती है, जबकि वर्ग कर्म पर आधारित होती है।
  4. जाति के अंतर्गत व्यक्ति की प्रस्थिति प्रदत्त होती है, जबकि वर्ग में अर्जित प्रस्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 15.
संस्कृतिकरण की अवधारणा को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
श्रीनिवास के अनुसार:
“संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा निम्न जातियाँ उच्च जातियों विशेष तौर पर ब्राह्मणों के रिवाजों, संस्कारों, विश्वासों व अन्य सांस्कृतिक लक्षणों व प्रणालियों को ग्रहण करती है।” श्रीनिवास का मानना है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया अपनाने वाली जातियाँ एक – दो पीढ़ियों के बाद ही अपने से उच्च जाति में प्रवेश करने का दावा प्रस्तुत कर सकती है। किसी भी समूह का संस्कृतिकरण उसकी प्रस्थिति को स्थानीय जाति संस्तरण में उच्चता की तरफ ले जाता है।

प्रश्न 16.
संस्कृतिकरण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की विशेषताएँ:
संस्कृतिकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. संस्कृतिकरण में अन्य जातियाँ सदैव ब्राह्मण जाति का अनुकरण करती हैं।
  2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया दो तरफा प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में उच्च जाति की प्रस्थिति प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील जातियाँ, जहाँ उच्च जातियों से बहुत कुछ पाया करती हैं या सीखती हैं। वहीं उन जातियों को कुछ प्रदान भी करती हैं।
  3. संस्कृतिकरण सामाजिक गतिशीलता की व्यक्तिगत क्रिया न होकर एक सामूहिक क्रिया है।
  4. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में “पदममूलक” परिवर्तन ही होते हैं। कोई संरचनात्मक मूलक परिवर्तन नहीं।
  5. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि की प्रक्रिया है।

प्रश्न 17.
संस्कृतिकरण के प्रोत्साहन के कारक के रूप में कर्मकांडी क्रियाओं में सुलभता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रीनिवास ने कर्मकाण्डी क्रियाओं से मंत्रोच्चारण की पृथकता को संस्कृतिकरण का एक अहं व मुख्य कारक माना है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मंत्रोच्चारण की पृथकता के कारण ब्राह्मणों के समस्त संस्कार सभी हिन्दू जातियों के लिए सुलभ हो गए। ब्राह्मणों द्वारा कथित निम्न (गैर – द्विज) जातियों पर वैदिक मंत्रोच्चारण पर प्रतिबंध भी लगाया गया था। इसके माध्यम से श्रीनिवास ने यह बताने का प्रयास किया है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से निम्न जाति के सदस्यों को उच्च जाति के सदस्यों को धार्मिक गतिविधियों का अनुसरण करने का अवसर मिला, जिससे उन्होंने अपनी धार्मिक गतिविधियों में इस प्रक्रिया के द्वारा काफी बदलाव किए।

प्रश्न 18.
संस्कृतिकरण ने समाज में किस समस्या को उत्पन्न किया?
उत्तर:
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया ने समाज में अ – संस्कृतिकरण की समस्या को उत्पन्न किया है, जिस प्रकार निम्न जाति के सदस्य जब उच्च जातियों के कार्य – प्रणालियों का अनुसरण करते हैं तो वे अपनी स्वयं की संस्कृति, रिवाजों व कर्मकाण्डों का त्याग करते हैं जिससे समाज में अ – संस्कृतिकरण की स्थिति से समस्या उत्पन्न हो जाती है। अर्थात् जहाँ इस प्रक्रिया से लोगों ने अनेक उच्च जातियों का अनुसरण किया, वहीं उन्होंने अपनी संस्कृति का भी त्याग किया, जिससे समाज में एक नवीन समस्या का उदय हुआ, जिसे अ – संस्कृतिकरण के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 19.
द्विज जाति किसे कहते हैं?
उत्तर:
द्विज संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है – ‘दोबारा जन्म लेना’। ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों का जन्म संसार में पुनः हुआ है। द्विज जाति को उच्च जाति भी कहा जाता है। यह वह जाति होती है, जिसे समाज के अंदर जनेऊ धारण करने का अधिकार प्राप्त होता है।
द्विज जाति की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. यह समाज में एक उच्च प्रस्थिति वाली संपन्न जाति होती है।
  2. द्विज जाति को समाज में समस्त अधिकार प्राप्त होते हैं।
  3. द्विज जाति को आधार मानकर ही निम्न जाति के सदस्य इनकी जीवन-शैली का अनुसरण करती है।

प्रश्न 20.
प्रभुजाति की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘प्रभुत्त्वता’ को अंग्रेजी में ‘Dominance’ कहते हैं। समाजशास्त्र में सर्वप्रथम इसका प्रयोग M.N. Sriniwas ने किया था।
श्रीनिवास के अनुसार:
उस जाति को प्रबल या प्रभु जाति कहा जा सकता है जो किसी गाँव अथवा क्षेत्र विशेष में आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है। इस जाति का पारम्परिक एवं प्रथानुगत जातीय श्रेणी में सर्वोच्च स्थान होना जरूरी नहीं है। किसी भी जाति विशेष की ताकत, उसकी प्रस्थिति या उसकी शिक्षा किसी एक गाँव विशेष में अथवा ग्रामीण भारत के किसी क्षेत्र में उसे ‘प्रभु – जाति’ का दर्जा देते हैं।
प्रभु जाति की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –

  1. प्रभु जाति अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ जाति होती है।
  2. प्रभु जाति आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक तौर पर शक्तिशाली होते हैं।
  3. प्रभु जाति को समाज में उच्च स्थिति प्राप्त होती है।

प्रश्न 21.
विभेदीकरण की प्रक्रिया का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“विभेदीकरण या विभेदन” से तात्पर्य विभिन्न घटनाओं में अन्तर को स्पष्ट करता है। समाजशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तरीकरण तथा सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में किया गया है। विभेदीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक संस्था के द्वारा संपादित किए जाने वाले सामाजिक कार्यकलाप विभिन्न संस्थाओं के बीच बँट जाते हैं। विभेदीकरण किसी समाज में उत्तरोतर बढ़ते हुए विशेषीकरण को प्रदर्शित करता है। विभेदीकरण, 19वीं सदी के समाजशास्त्रियों के अध्ययन का एक प्रमुख विषय रहा है।

प्रश्न 22.
ब्रायन आर. विलसन ने धर्मनिरपेक्षीकरण की क्या परिभाषा दी है? बताइए।
उत्तर:
ब्रायन आर. विलसन के अनुसार – “धर्मनिरपेक्षीकरण एक ऐसी प्रक्रिया को इंगित करती है, जिसके अंतर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ, धार्मिक अवधारणाओं की पकड़ या प्रभाव से बहुत हद तक मुक्त हो जाती है।” धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत प्रतिदिन के जीवन पर धार्मिक नियंत्रण कम हो जाता है। कर्मकाण्ड प्रक्रिया को तर्क द्वारा बताना तथा धार्मिक विश्वास के प्रति विरोधाभास की स्थिति का विकास करना है।

प्रश्न 23.
धर्मनिरपेक्षीकरण के लक्षणों को संक्षिप्त शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण के लक्षणों का विवरण निम्न प्रकार से है –

  1. यह प्रक्रिया तर्कसंगत चिंतन, स्वतंत्रता तथा विचारों पर बल देता है।
  2. यह धर्म के सिद्धांतों को व्यावहारिक क्रियाओं में परिवर्तित करती है।
  3. यह प्रक्रिया दकियानूसी विचारों का खंडन करती है।

प्रश्न 24.
धर्मनिरपेक्षीकरण में पुनर्जागरण आंदोलनों ने क्या कार्य किया है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने पुनर्जागरण आंदोलनों में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं –

  1. पुनर्जागरण आंदोलन ने समाज में तर्कपूर्ण ज्ञान में वृद्धि की है।
  2. इस काल में आंदोलनों ने अंधविश्वासों पर प्रहार किया था।
  3. किसी भी ज्ञान को बिना तर्क या सत्यता के आधार के बिना स्वीकार नहीं किया जाता था।
  4. इस काल में ज्ञान का संचार हुआ था।

प्रश्न 25.
आधुनिकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुरे ने अपनी पुस्तक “Social Change” में यह स्पष्ट किया है कि “आधुनिकीकरण के अंतर्गत परम्परागत अथवा पूर्ण आधुनिक समाज का पूर्ण परिवर्तन वहाँ की औद्योगिकी एवं उससे सम्बन्धित सामाजिक संगठन के रूप में होता है, जो पश्चिमी देशों के विकसित अथवा आर्थिक दृष्टि से समृद्धशाली और राजनीतिक दृष्टि से स्थिर राष्टों में पाई जाती है।” आधुनिकीकरण को सांस्कृतिक सर्वव्यापी प्रक्रिया माना जा सकता है। आधुनिकीकरण का आशय केवल प्राविधिक उन्नति से ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी है।

प्रश्न 26.
आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लर्नर ने आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं –

  1. वैज्ञानिक भावना का पाया जाना।
  2. नगरीकरण में इस प्रक्रिया से वृद्धि हुई है।
  3. शिक्षा में विकास हुआ है।
  4. संचार के साधनों का विकास हुआ है।
  5. व्यापक आर्थिक साझेदारी बढ़ी है।
  6. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 27.
उत्तर – आधुनिकता के संदर्भ में समाजशास्त्री रिचार्ड गोट की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
गोट के अनुसार – “उत्तर – आधुनिकता आधुनिकता से मुक्ति दिलाने वाला एक स्वरूप है। यह एक विखंडित आंदोलन है, जिसमें सैकड़ों फूल खिल सकते हैं। उत्तर – आधुनिकता में बहु – संस्कृतियों का निवास हो सकता है।”
अत: उत्तर – आधुनिकता का आशय ऐतिहासिक काल से है। यह काल आधुनिकता के बाद प्रारम्भ होता है। यह सम्पूर्ण अवधारणा सांस्कृतिक है, जिससे समाज का विकास होता है।

प्रश्न 28.
डेविड हारवे ने उत्तर – आधुनिकता के कौन – से लक्षण बताए हैं?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता के लक्षण – डेविड हारवे ने “कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” में उत्तर – आधुनिकता के निम्न लक्षण बताए हैं –

  1. उत्तर – आधुनिकतावाद एक सांस्कृतिक पैराडिम है।
  2. उत्तर – आधुनिकता बहुआयामी होती है।
  3. उत्तर – आधुनिकता में विखण्डन होता है, जो विखण्डन के रूप में यह समानता के स्थान पर विविधता को स्वीकार करती है।
  4. उत्तर – आधुनिकता का स्थानीय स्तर पर उसकी प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया जाना चाहिए।
  5. यह पूँजीवादी विकास का एक बड़ा चरण है।
  6. उत्तर – आधुनिकता की अपनी संस्कृति होती है।

प्रश्न 29.
उदारवादी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उदारवाद का विकास 18वीं व 19वीं सदी में जीवन के विभिन्न पक्षों – राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक पक्षों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता हेतु आंदोलन के फलस्वरूप हुआ है। यह विचारधारा सरकार अथवा समृद्ध वर्ग द्वारा व्यक्तियों पर प्रभुत्त्व या अन्य किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप का प्रतिकार करती है। यह एक ऐसी विचारधारा है जो व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा कल्याण को बढ़ावा देती है। तथा साथ ही यह सैनिकवाद, नौकरशाही व सामंतवाद जैसी विचारधाराओं का प्रतिकार करती है। यह एक प्रकार से सामाजिक हितों व कल्याण को बढ़ावा देती है।

प्रश्न 30.
आधुनिकता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता को अंग्रेजी में ‘Modernity’ कहते हैं। बुद्धिवाद तथा उपयोगितावाद के दर्शन पर आधारित सोचने – समझने तथा व्यवहार करने के ऐसे तौर – तरीकों को सामान्यतः आधुनिकता कहा जाता है, जिसमें प्रगति की आकांक्षा, विकास की आशा व परिवर्तन के अनुरूप अपने आपको ढालने का भाव निहित होता है।

आधुनिकता की विशेषताएँ:

  1. आधुनिकता एक प्रकार से आधुनिक बनने की प्रक्रिया है।
  2. आधुनिकता की प्रक्रिया विकास की परिचायक है।
  3. आधुनिकता तर्क व बुद्धि को महत्त्व प्रदान करती है।
  4. आधुनिकता की प्रक्रिया विचारधारा को व्यापक बनाती है।
  5. आधुनिकता परम्परा का विरोध करती है। अतः संक्षेप में आधुनिकता बुद्धिवादी बनने, अंधविश्वासों से बाहर निकलने एवं नैतिकता में उदारता बरतने की एक प्रक्रिया है।

प्रश्न 31.
उपनिवेशवाद ने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
उपनिवेशवाद पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित थी। अंग्रेजों ने अपने हितों की पूर्ति एवं स्वयं के लाभ के लिए भारत में रेल की शुरूआत की जिसके कारण भारत के लोगों को एक स्थान से दूसरे तक आने – जाने की सुविधा मिली। रेल यातायात के कारण लोग रोजगार की तलाश में गाँव से नगरों की ओर पलायान करने लगे। इसके कारण औद्योगीकरण एवं नगरीकरण को भी बढ़ावा मिला।

औद्योगीकरण में बड़े – बड़े उद्योग लगे, जिसमें बड़ी – बड़ी मशीनों से अधिक उत्पादन हुआ। औद्योगीकरण का तात्पर्य मशीनों पर आधारित उत्पाद ही नहीं है। इसके कारण, नए सामाजिक सम्बन्ध और नए सामाजिक समूहों का भी उदय हुआ और इसके कारण नए विचारों का विकास भी सम्भव हो सका। लोग आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से क्रान्ति के अवसर मिलने लगे।
अतः इस प्रकार से उपनिवेशवाद ने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित किया था।

RBSE Class 12 Sociology Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधारकों के विचारों को प्रसार में संचार माध्यमों का क्या योगदान रहा है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समाज सुधारकों के विचारों को सम्पूर्ण भारत में फैलाने में संचार माध्यमों ने बहुत ही अहं भूमिका का निर्वाह किया है, जिसे हम निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं –

  1. 19वीं सदी में संचार साधनों के द्वारा समाज सुधारकों ने समाज में फैली सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया।
  2. संचार के विभिन्न स्वरूपों के द्वारा नवीन तकनीक का विकास हुआ।
  3. प्रिंटिंग प्रेस, टेलीग्राफ व माइकोफोन ने भारतीय समाज में आम नागरिकों तक समाज सुधारकों के विचारों को पहुंचाया।
  4. प्रेस के माध्यम से पत्र – पत्रिकाएँ छापी गईं, जिससे लोगों को अनेक सूचनाएँ प्राप्त होती थी।
  5. प्रिंटिंग प्रेस के द्वारा ही अखबार की छपाई का कार्य काफी तीव्र गति से होने लगा।
  6. अखबारों के अध्ययन से लोगों में चेतना का प्रारम्भ हुआ।
  7. टेलीग्राफ व माइक्रोफोन द्वारा विभिन्न महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का आदान – प्रदान किया गया।
  8. इन संचार के साधनों से लोगों के सांस्कृतिक व्यवहारों में बदलाव दृष्टिगोचर हुए।
  9. इनके माध्यमों से सामाजिक संगठनों ने भी जन – जागृति का कार्य प्रारम्भ किया।
  10. संचार साधनों के आधार पर ही समाज सुधारक समाज में अनेक राजनीतिक व सामाजिक गतिविधियों का संचालन करते थे।
  11. संचार साधनों के द्वारा ही अनेक सभाओं व गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था।
  12. संचार साधनों के सहायता से ही लोगों को समाज की ज्वलत समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त हुई।
  13. संचार माध्यमों ने समाज की एक प्रकार से दिशा व दशा दोनों को ही परिवर्तित कर दिया।
  14. इन साधनों की सहायता से ही समाज में स्त्रियों व वंचित समूहों की स्थिति में सुधार किया गया।
  15. महिलाओं में शिक्षा का अधिकार दिलाने में इन साधनों ने काफी सहायता की।
  16. बालिकाओं के अध्ययन के लिए अनेक विद्यालय खोले गए।
  17. इससे शिक्षा की चेतना का विकास हुआ।
  18. लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में संचार माध्यमों ने काफी सहायता की।
  19. विधवा – पुनर्विवाह का प्रसार हुआ।
  20. इसके अलावा उदारवाद, परिवार रचना व विवाह से सम्बन्धित अनेक विचारों ने सामाजिक परिवर्तन को लाने में अपना योगदान दिया।

प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण से क्या तात्पर्य है? पश्चिमीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण:
परिभाषा एवं अर्थ – पश्चिमीकरण का तात्पर्य उस उप – सांस्कृतिक प्रतिमान से है, जिसे भारत में कुछ लोगों ने स्वीकार किया। ये लोग पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आये। इन लोगों ने मध्यम वर्गीय एवं बुद्धिजीवी वर्ग के लोग सम्मिलित थे।
“मानववाद तथा बुद्धिवाद पर जोर पश्चिमीकरण का है, जिसने भारत में संस्थागत तथा सामाजिक सुधारों का सिलसिला प्रारम्भ कर दिया। वैज्ञानिक, औद्योगिक एवं शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, राष्ट्रीयता का उदय, देश में नवीन राजनीतिक संस्कृति और नेतृत्व सब पश्चिमीकरण उपोत्पादन है” – योगेन्द्र सिंह
श्री निवास – “अंग्रेजी शासन के कारण भारतीय समाज और संस्कृति में बुनियादी और स्थायी परिवर्तन हुए।” पाश्चात्य संस्कृति का यह काल अन्य कालों से भिन्न था। इसके कारण भारत में गंभीर चिंतन तथा बहुविधि परिवर्तन हुए। पश्चिमीकरण की विशेषताएँ:
श्री निवास ने पश्चिमीकरण की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है –

  1. पश्चिमीकरण का प्रभाव भारत में प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ा है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक क्षेत्र हो या आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक क्षेत्र।
  2. पश्चिमीकरण एक अन्तमूर्तकारी बहुस्तरीय अवधारणा है। पश्चिमीकरण के विभिन्न पक्ष कभी एक या किसी प्रक्रिया की पुष्टि करते हैं, कभी दूसरे पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।
  3. पश्चिमीकरण का प्रभाव सभी क्षेत्रों पर एकसमान रूप से नहीं पड़ता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है। पश्चिमीकरण का स्वरूप और गति एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में तथा जनसंख्या के एक भाग से दूसरे भाग में भिन्न – भिन्न रही है।
  4. पश्चिमीकरण शब्द का प्रयोग केवल परिवर्तन को दिखाने के लिए प्रयोग किया गया है।
  5. पश्चिमीकरण व्यक्ति के व्यक्तित्व के केवल एक पक्ष को प्रभावित करता है। दूसरे पक्ष को प्रभावित नहीं करता है।
  6.  यदि कोई व्यक्ति कार्य करने के साथ मनोरंजन करता है तो इसमें कोई भी असमान्यता नहीं है।
  7. पश्चिमीकरण का प्रभाव सदैव प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति पर प्रभाव डाले ऐसा जरूरी नहीं है। अनेक बार व्यक्ति परोक्ष रूप से भी प्रभावित होता है।
  8. पश्चिमीकरण ने भारतीय समाज में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित किया है।
  9. इसके द्वारा शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आया है।
  10. पश्चिमीकरण के कारण एक नवीन मध्यम वर्ग का उदय हुआ है, जिसे अभिजात वर्ग भी कहते हैं।
  11. पश्चिमीकरण का प्रमुख उद्देश्य अच्छे या बुरे को बताना नहीं है।
  12. यह नैतिक दृष्टिकोण से तटस्थ अवधारणा है।

प्रश्न 3.
संस्कृतिकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। संस्कृतिकरण की विशेषताएँ भी लिखिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा:
श्रीनिवास – “संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा निम्न जातियाँ उच्च जातियों, विशेषकर ब्राह्मणों के रीति – रिवाजों, संस्कारों, विश्वासों, जीवन विधि एवं अन्य सांस्कृतिक लक्षणों व प्रणालियों को ग्रहण करती है।”
“किसी भी समूह का संस्कृतिकरण उसकी प्रस्थिति को जाति संस्तरण में उच्चता की तरफ ले जाता है।”
“संस्कृतिकरण की प्रक्रिया अपनाने वाली जातियाँ एक – दो पीढ़ियों के पश्चात् ही अपने से उच्च जाति में प्रवेश करने का दावा प्रस्तुत कर सकती है।”
संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सांस्कृतिक दृष्टि से प्रतिष्ठित समूह के रीति – रिवाजों एवं नामों का अनुकरण कर अपनी सामाजिक प्रस्थिति को ऊँचा बनाती है।

संस्कृतिकरण की विशेषताएँ:
श्रीनिवास के अनुसार –

  1. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में सदैव ब्राह्मण जाति का ही अनुकरण किया जाता है।
  2. इस प्रक्रिया में प्रभु जातियों की आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभुत्व को जोड़ा गया है। प्रभु जाति की भूमिका को परिवर्तन करने में सांस्कृतिक संचरण का बड़ा ही महत्व है।
  3. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में उच्च जाति की प्रस्थिति प्राप्त करने के लिए कुछ जातियाँ प्रयत्नशील रहती है, जहाँ वह उच्च जाति से बहुत कुछ प्राप्त करती है या सीखती है, वहीं उन्हें कुछ प्रदान भी करती है।
  4. सम्पूर्ण भारत में देवी – देवताओं की पूजा केवल ब्राह्मण ही करते हैं, अन्य लोग नहीं।
  5. संस्कृतिकरण सामाजिक गतिशीलता की व्यक्तिगत क्रिया न होकर एक सामूहिक प्रक्रिया है।
  6. संस्कृतिकरण में पदम मूलक परिवर्तन ही होते हैं। कई संरचनात्मक मूलक परिवर्तन नहीं।
  7. संस्कृतिकरण एक लम्बी अवधि तक चलने वाली प्रक्रिया है।
  8. इस प्रक्रिया में उच्च जाति की प्रस्थिति को प्रयासरत जाति को एक लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी होती है।
  9. संस्कृतिकरण के फलस्वरूप लौकिक तथा कर्मकाण्डीय स्थिति के बीच पायी जाने वाली असमानता को दूर करने का कार्य करती है।
  10. यह उच्च प्रस्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न भी है।
  11. संचार के साधनों के कारण संस्कृतिकरण की प्रक्रिया तेज हुई है।
  12. वंचित समूहों को भी मुख्य धारा में लाना है।
  13. इस प्रक्रिया का सम्बन्ध निम्न जातियों से है।
  14. संस्कृतिकरण केवल हिन्दू जातियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जनजातियों एवं अर्द्ध – जनजातीय समूहों में भी यह पाई जाती है।
  15. एक निम्न जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा किसी अन्य प्रभु जाति को आदर्श मानकर उसके खान – पान व जीवन – शैली को अपना सकती है।
  16. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है जो भारतीय इतिहास के हर काल में दिखाई देती है।
  17. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की सूचक है।
  18. योगेन्द्र सिंह के अनुसार “यह विचारधारा को ग्रहण करने वाली प्रक्रिया है।”
  19. इस प्रक्रिया में अनुकरण समाजीकरण आदि अवधारणाओं के अंश है।
  20. यह प्रक्रिया समाज व संस्क्रति में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख करती है।

प्रश्न 4.
“संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारत में सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए किस प्रकार से जिम्मेदार है?” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्कृतिकरण की अवधारणा भारतीय समाज में तथा विशेष रूप से जाति – व्यवस्था में होने वाले सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझने में काफी सहायक सिद्ध हुई है। इसके द्वारा हम जाति व्यवस्था में होने वाले निम्नांकित परिवर्तनों का उल्लेख कर सकते हैं –

  1. संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न जाति या जनजाति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या प्रभुजाति के खान – पान, रीति – रिवाजों, विश्वासों, भाषा, साहित्य तथा जीवन – शैली को ग्रहण करती है। इस प्रकार यह निम्न जाति में होने वाले विभिन्न सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तन को स्पष्ट करती है।
  2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया द्वारा एक निम्न जाति की स्थिति में पदमूलक परिवर्तन आता है। इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है तथा उसकी आस – पास की जातियों से स्थिति ऊँची हो जाती है।
  3. संस्कृतिकरण व्यक्ति या परिवार का नहीं वरन् एक जाति समूह की गतिशीलता का द्योतक है।
  4. संस्कृतिकरण उस प्रक्रिया को प्रकट करता है जिसके द्वारा जनजातियाँ हिन्दू जाति व्यवस्था में सम्मिलित होती है। ऐसा करने के लिए जनजातियाँ हिन्दुओं की किसी जाति की जीवन – विधि को ग्रहण करती है।
  5. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भूतकाल एवं वर्तमान समय में जाति – व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों को भी प्रकट करती है।
  6. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति – प्रथा में गतिशीलता की द्योतक है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि जाति – प्रथा एक कठोर व्यवस्था है तथा इसकी सदस्यता जन्मजात होती है। व्यक्ति एक बार जिस जाति में जन्म लेता है, जीवन – पर्यन्त उसी जाति का सदस्य बना रहता है किन्तु यह धारणा सदैव ही सही नहीं होती है। इस प्रक्रिया के द्वारा यदाकदा जाति का बदलना सम्भव है।
  7. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया निम्न जातियों के विवाह एवं परिवार प्रतिमानों में होने वाले परिवर्तनों को भी प्रकट करती है। संस्कृतिकरण करने वाली जाति बाल – विवाह करती है, विधवा – विवाह निषेध का पालन करती है तथा संयुक्त परिवार प्रणाली को उच्च जातियों की तरह ही अपनाती है।

अतः उपरोक्त बिन्दुओं से यह स्पष्ट होता है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में समस्त सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार है।

प्रश्न 5.
श्रीनिवास द्वारा धर्मनिरपेक्षीकरण की मुख्य बातें बताइए। धर्मनिरपेक्षीकरण के प्रमुख लक्षणों को सविस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रमुख बातें:
श्रीनिवास से धर्मनिरपेक्षीकरण की तीन बातें मुख्य हैं –
1. धार्मिकता में कमी:
श्रीनिवास ने बताया है कि जैसे – जैसे जनमानस में धर्मनिरपेक्षता या लौकिकता की भावना का विकास होता है; लोगों में धार्मिक भावनाएँ आसानी से आने लगती है तथा धार्मिक कठोरता के भाव लुप्त होने लगते हैं।

2. तार्किक चिन्तन की भावना में वृद्धि:
व्यक्ति का जीवन परम्परागत तरीके से ही चलता है। उनमें धार्मिक विश्वास अधिक पाया जाता है। धार्मिक विचारों एवं विश्वासों को तर्क द्वारा विश्लेषण नहीं किया जाता।

3. विभेदीकरण की प्रक्रिया:
समाज में जैसे – जैसे लौकिकीकरण की प्रक्रिया का विकास होगा, समाज में उतने ही तेज गति से विभेदीकरण भी बढ़ेगा। विदेशीकरण के कारण समाज में विभिन्न पहलुओं जैसे – राजनीतिक, समाजिक, सांस्कृतिक, कानूनी एवं धार्मिक एक – दूसरे से पृथक् हो रहे हैं।

धर्मरिनपेक्षीकरण के लक्षण:
धर्मनिरपेक्षीकरण के निम्नलिखित लक्षण दृष्टिगोचर हो रहे हैं –

  1. धर्मनिरपेक्षीकरण के कारण इहलौकिकता में लोगों का विश्वास बढ़ा है। लोगों की अलौकिक भावनाओं में कमी आई है।
  2. लोगों में प्राकृतिक सत्ता के प्रति आस्था में कमी आई है।
  3. धर्मनिरपेक्षीकरण के कारण तर्कवाद, चिंतन, स्वतन्त्रता एवं नए विचारों को बल मिला है।
  4. परम्परागत विचारों को तर्क की कसौटी पर कसा जा रहा है।
  5. मनुष्य ने अपने जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए धर्म के स्थान पर वनस्पति विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मार्ग को चुना है।
  6. समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक सिद्धान्तों में विश्वास में वृद्धि हुई है और लोगों के धार्मिक विश्वास कम हुए हैं।
  7. धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने धर्म के सिद्धान्तों में परिवर्तन किया है।
  8. व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के अनुरूप विभिन्न प्रस्थितियों को स्वीकारने लगा है।
  9. लोगों में विभेदीकरण की धारणा बढ़ी है।
  10. इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है।
  11. धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया समाज को परम्परागत व रूढ़िवादी विचारधारा का खंडन करती है।
  12. यह प्रक्रिया समाज में आधुनिक परिवर्तन की द्योतक है।
  13. इस प्रक्रिया से समाज में अंधविश्वास की प्रवृत्ति पर रोक लगी है।
  14. यह सत्य सिद्ध कथनों अथवा तथ्यों पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।
  15. यह प्रक्रिया समाज में सभी धर्मों के प्रति आदर का भाव प्रकट करती है।
  16. धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया में विवेकशीलता को प्रोत्साहन मिलता है।
  17. इस प्रक्रिया से समाज में धार्मिक संकीर्णता कम हुई है।
  18. धर्मनिरपेक्षीकरण द्वारा प्रोत्साहित विवेकशीलता के कारण व्यक्ति में सभी धर्मों के प्रति उदारता की भावना भी पनपी है।
  19. इस प्रक्रिया में किसी भी धर्म विशेष पर जोर नहीं दिया जाता है और न ही किसी धर्म विशेष को प्राथमिकता दी जाती है।
  20. धर्मनिरपेक्षीकरण समाज में सर्वप्रमुख प्राथमिकता समाज के अधिकतम सदस्यों के अधिकतम लाभ को दी जाती है।
  21. यह प्रक्रिया समाज में सर्वहितकारी राज्य की विचारधारा (कल्पना) को जन्म देता है।
  22. इस प्रक्रिया से समाज में सैद्धांतिक तथा व्यवहारिक प्रवृत्तियों का विकास होता है।
  23. इस प्रक्रिया से समाज में नैतिक मूल्यों का विकास होता है।
  24. यह प्रक्रिया एक प्रकार से समाज में अनुशासन व कर्तव्यों को बढ़ावा देती है।
  25. यह बुद्धिवाद पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जो व्यक्ति को व्यापकता की ओर अग्रसर करती है।

प्रश्न 6.
समाज पर धर्मनिरपेक्षीकरण के प्रभावों का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षीकरण के प्रमुख प्रभावों की विवेचना निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत की जा सकती है
1. पवित्रता व अपवित्रता की धारणा:
भारतीय जीवन – शैली और समाज – रचना में पवित्रता तथा अपवित्रता की धारणाओं पर विशेष प्रभाव रहा है। “पवित्रता” को विभिन्न अर्थों में समझा जाता है, जैसे स्वच्छता, सदाचरण तथा धार्मिकता। इसी प्रकार “अपवित्रता” को भी मलिनता, दुराचरण तथा पाप इत्यादि के अर्थों में समझा जा सकता है।

भारत में जातियों के बीच की दूरी का निर्धारण ऊँची जातियों की पवित्रता तथा नीची जातियों की अपवित्रता की धारणाओं के आधार पर किया जाता है। जो जातियाँ ऊँची बनना चाहती हैं वे संस्कृतिकरण के द्वारा अधिक पवित्रता की ओर बढ़ती हैं। जाति सोपान ऊँची जातियों के व्यवसाय, भोजन, रहन – सहन; पवित्रता की धारणा से परिभाषित किए जाते हैं। पवित्रता व अपवित्रता की धारणाएँ वस्त्रों तथा जीवनचर्या को भी प्रभावित करती रही है। विभिन्न अवसर जैसे – श्राद्ध आदि पर बाल कटवाना तथा स्नान करना भी इसी आधार पर अनुचित माना जाता है।

2. जीवन:
चक्र तथा कर्मकांड:
हिन्दू जीवन – चक्र में संस्कारों का प्रमुख महत्त्व है। संस्कारों को आधुनिक जीवन की व्यवस्था के अनुरूप संक्षिप्त कर दिया गया है। परम्परागत संस्कार जो पहले अनेक धार्मिक कृत्यों, कठिन व्रतों, जटिल अनुष्ठानों से परिपूर्ण लम्बे समय में सम्पन्न किए जाते थे, अब वह थोड़ी देर में भी समाप्त करवा दिए जाते हैं। समाज में कुछ संस्कारों का लौकिक महत्त्व कम है, उन्हें छोड़ भी दिया गया है; जैसे – वानप्रस्थ, गर्भाधान व संन्यास आदि संस्कार का चलन कम हो गए हैं।

3. सामाजिक संरचना:
श्रीनिवास के अनुसार – “हिन्दू धर्म सामाजिक संरचना पर निर्भर रहा है।” जाति, संयुक्त परिवार तथा ग्रामीण समुदाय आदि हिन्दू धर्म को जीवित रखते आए हैं। औद्योगीकरण, शिक्षा का प्रसार, अस्पृश्यता निवारण लोकतांत्रिक व्यवस्था व विकास कार्यक्रम आदि ने ग्रामीण समाज की मनोवृत्तियों में भारी परिवर्तन किया है।

4. धार्मिक जीवन:
धार्मिक जीवन में धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के विषय में पूर्व में ही संकेत किया जा चुका है। हिन्दू धर्म व संस्कृति को राष्ट्रीय व सामाजिक आधारों पर प्रतिपादित किया जाने लगा है।
अतः उपरोक्त तथ्यों से यह विदित होता है कि धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का समाज के प्रत्येक क्षेत्रों में प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। जिसके आधार पर समाज में तथ्यों को अब तर्कसंगत आधारों पर ही स्वीकृत किया जाता है।

प्रश्न 7.
आधुनिकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। आधुनिकीकरण की विशेषताओं का वर्णन करो। उत्तर:
आधुनिकीकरण की अवधारणा-आधुनिकीकरण कोई जड़ वस्तु नहीं है। यह एक प्रक्रिया है। मुरे – मुरे ने सोशल चेंज में बताया है कि – “आधुनिकीकरण के अन्तर्गत परम्परागत अथवा पूर्ण आधुनिक समाज का पूर्ण परिवर्तन उस प्रकार की औद्योगिकी एवं उससे सम्बन्धित सामाजिक संगठन के रूप में हो जाता है। जो पश्चिमी दुनिया के विकसित, आर्थिक दृष्टि से समृद्धशाली और राजनैतिक दृष्टि से समृद्धशाली एवं स्थिर राष्ट्रों में पाई जाती है।”
योगेन्द्र सिंह – “आधुनिकीकरण एक संस्कृति प्रत्युत्तर के रूप में है, जिनमें उन विशेषताओं का समावेश है, जो प्राथमिक रूप से विश्व व्यापक एवं उद्विकासीय है।” आधुनिकीकरण को संस्कृति – सर्वव्यापी जैसा भी कहा जा सकता है। आधुनिकीकरण का अर्थ केवल प्राविधिक उन्नति से ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से है। समकालीन समस्याओं के लिए मानवीकरण के लिए दार्शनिक दृष्टिकोण का होना आवश्यक है।

आधुनिकीकरण की विशेषताएँ:
लर्नर ने आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है, जो निम्नलिखित है –

  1. वैज्ञानिक भावना का विकास होना।
  2. संचार के साधनों का विकास होना।
  3. नगरीकरण में वृद्धि।
  4. नगरीय जनसंख्या में वृद्धि होना।
  5. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि का होना।
  6. शिक्षा का प्रसार होना।
  7. राजनैतिक साझेदारी में वृद्धि होना।
  8. व्यापक आर्थिक साझेदारी में वृद्धि होना।
  9. जीवन के सभी पक्षों में सुधार होना।
  10. दृष्टिकोण की व्यापकता में वृद्धि करना।
  11. नवीनता के प्रति लचीलापन का भाव में वृद्धि होना।
  12. समाज में होने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करना।
  13. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आना।
  14. समाज में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रचार – प्रसार होना।

प्रश्न 8.
उत्तर – आधुनिकता से क्या तात्पर्य है? डेविड हारवे ने इसके कौन – कौन से लक्षण बताए हैं?
उत्तर:
उत्तर – आधुनिकता – समाज वैज्ञानिक ने उत्तर-आधुनिककीकरण को उत्तर – आधुनिकता का प्रकार्यात्मक पक्ष माना है।
रिचार्ड गोट – “उत्तर-आधुनिकता आधुनिकता से मुक्ति दिलाने वाला एक स्वरूप है। यह एक विखंडित आन्दोलन है, जिसमें सैकड़ों फूल खिल सकते हैं। उत्तर आधुनिक में बहु – संस्कृतियों का निवास हो सकता है।”
उत्तर – आधुनिकता का तात्पर्य एक ऐतिहासिक काल से है। यह काल आधुनिकता के काल की समाप्ति के बाद प्रारम्भ होता है। उत्तर – आधुनिकतावाद का सम्बन्ध सांस्कृतिक तत्वों से है। यह सम्पूर्ण अवधारणा सांस्कृतिक है। उत्तर-आधुनिकता के बाद का समाज का विकास है।
लक्षण:
डेविड हारवे ने “कन्डीशन ऑफ पोस्ट मोडर्निटी” नामक पुस्तक में उत्तर – आधुनिकता के सम्बन्ध में विश्लेषण किया है। अपने विश्लेषण के आधार पर हारवे ने इसके निम्नलिखित लक्षण बताए हैं –

  1. उत्तर – आधुनिकतावाद सांस्कृतिक पैराडिम है, इसके अन्तर्गत आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।
  2. उत्तर – आधुनिकता की अभिव्यक्ति जीवन की विभिन्न शैलियों में जैसे – साहित्य, दर्शन और कला में दिखाई देती है।
  3. उत्तर – आधुनिकता विखण्डित रूप में दिखाई देती है। यह समानता की जगह विविधता को स्वीकार करती है।
  4. उत्तर – आधुनिकता का एक गुण बहुआयामी होना है। यह इस प्रकार की संस्कृति है, जिसमें बहुलता पाई जाती है।
  5. उत्तर – आधुनिकता के अन्तर्गत अपेक्षित महिलाएँ एवं समाज से तिरस्कृत लोग आते हैं।
  6. उत्तर – आधुनिकता स्थानीय स्तर पर समस्त क्रियाओं का विश्लेषण करती है।
  7. उत्तर – आधुनिकता में पूँजीवादी विकास के चरण की संस्कृति का पाया जाना।
  8. उत्तर – आधुनिकता एक संस्कृति प्रधान है।
  9. उत्तर – आधुनिकता अति उपभोक्तावाद की संस्कृति पर आधारित है।
  10. उत्तर – आधुनिकता में तर्क पाया जाता है।
  11. समाज में उत्तर – आधुनिकता ने विचारों को अधिक तर्कसंगत बना दिया है।
  12. उच्च तकनीक, कैरियर के प्रति लोगों की सजगता तथा उदार प्रजांतत्र इसकी ही देन है।
  13. उत्तर – आधुनिकता की प्रक्रिया ने एक प्रकार से समाज में मनुष्य के जीवन का एक प्रकार से यंत्रीकरण ही दिया है।
  14. उत्तर – आधुनिकता की अवधारणा एक पूँजीवादी अवधारणा है।
  15. आधुनिकता के अनुशासन व नियमबद्ध जीवन – पद्धति को तोड़ने का प्रयास ही उत्तर – आधुनिकता है।

प्रश्न 9.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का समाज के प्रत्येक क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को हम निम्नांकित प्रमुख क्षेत्रों में परिलक्षित कर सकते हैं –
1. सामाजिक क्षेत्र:

  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्र वस्तुतः परिवर्तन सम्बन्धी दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है क्योंकि संस्कृतिकरण अपने आंतरिक स्वरूप में धार्मिक व्यवस्था से सम्बन्धित प्रत्यय है।
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का सर्वप्रथम उद्देश्य चूँकि सामाजिक ही है तथा छोटी निम्न जातियाँ अथवा समूह इस दिशा में इसलिए उन्मुख होते हैं कि वे अपने सामाजिक जीवन के परिप्रेक्षय में अपनी वर्तमान स्थिति को ऊँचा उठाना चाहते हैं।

2. धार्मिक क्षेत्र:

  • इस प्रक्रिया के फलस्वरूप विभिन्न निम्न जातियों ने ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य जैसी द्विज जातियों की भांति अपने – अपने पृथक् मंदिरों तथा पूजा – स्थलों की स्थापना की है।
  • नीची जातियों के व्यक्तियों ने यज्ञोपबीत धारण करते हुए चंदन का टीका आदि भी लगाना प्रारम्भ कर दिया है।
  • अनेक निम्न जातियों ने स्वच्छ शरीर तथा वस्त्राभूषण धारण करना प्रारम्भ कर दिया है तथा माँस – मदिरा भी कुछ जातियों ने त्याग दिया है।

3. आर्थिक क्षेत्र:

  • भारत सरकार की अछूत और अस्पृश्य तथा पिछड़ी जनजातियों के व्यक्तियों हेतु सरकारी नौकरी में रिजर्व कोटा अथवा आरक्षण नीति ने भी संस्कृतिकरण की दिशा में प्रेरित किया है।
  • सरकार द्वारा प्राप्त विभिन्न अधिकारों तथा सुविधाओं के परिणामस्वरूप वे उत्तरोत्तर आर्थिक रूप से सर्वथा आत्मनिर्भर होती जा रही हैं।

4. रहन – सहन की दशाएँ:

  • इस प्रक्रिया के माध्यम से निम्न जाति के सदस्य उच्च जातियों के समान ही पक्के सीमेन्टेड मकान बनवाने लगी है।
  • ग्रामीण समाजों में भी अब बड़ी – बड़ी उच्च जातियों के साथ वे चारपाई पर ही बैठते हैं।
  • निम्न जाति के सदस्य अब नियमपूर्वक स्नानादि भी प्रारम्भ करके साफ – स्वच्छ वस्त्रों को पहनना आरम्भ कर दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अब वे भी उच्च जातियों के समान ही रहन – सहन का स्तर अपनाने लगी है।

प्रश्न 10.
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन निम्नांकित रूप में किया जा सकता है –
1. विवाह – पद्धति पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति के परिणामस्वरूप विवाह आज दो परिवारों का सम्बन्ध न होकर दो व्यक्तियों का जीवन – संघ बन गया है।
  • प्रेम तथा आनन्द ने धर्म को पीछे धकेल दिया है।
  • जो रिवाजों को सम्पन्न करने में कई दिन व्यतीत हो जाते थे, अब वे कुछ घंटों में ही सम्पन्न करवा दिए जाते हैं।

2. परिवार पर प्रभाव:

  • भारतीय समाज में इस प्रक्रिया के कारण संयुक्त प्रणाली का विघटन होता जा रहा है।
  • संयुक्त परिवारों के स्थान पर अब एकाकी परिवारों का चलन में वृद्धि हुई है।
  • समूहवादी दृष्टिकोण का स्थान व्यक्तिवाद ने ले लिया है।
  • परिवारों में अब व्यक्तिवादी स्वतंत्रता को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है।

3. जाति पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति ने विभिन्न जातियों में दूरी को कम कर दिया है।
  • ब्राह्मण जाति का प्रभुत्त्व समाज में अब कम हो गया है।
  • खान – पान के नियमों में बदलाव हो चुके हैं।
  • धार्मिक अधिकार की प्राप्ति अब निम्न जाति के सदस्यों को भी प्राप्त हो गई है।

4. स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति से महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
  • स्त्रियों को शिक्षा पाने का सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त हुए हैं।
  • स्त्रियों को पाश्चात्य संस्कृति के कारण दासियों की तरह न रखकर उन्हें भी जीवन में कार्य करने के अवसर प्रदान किए गए हैं।

5. भाषा पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति के कारण देश में अंग्रेजी भाषा का चलन काफी बढ़ गया है।
  • ग्रामीण भी स्टेशन, पैन आदि हजारों अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं।
  • भारतीय लेखकों ने भी पाश्चात्य शैली को अपनाया है।

6. कृषि पर प्रभाव:

  • पाश्चात्य संस्कृति से कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।
  • कृषि कार्यों का पूर्ण रूप से अब यंत्रीकरण हो चुका है।
  • कृषि कार्यों से नए खाद व मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा है।
  • कृषि में अब श्रम – विभाजन के महत्त्व को भी देखा जा सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology

Share this:

  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)

Related

Filed Under: Class 12 Tagged With: RBSE Solutions for Class 12 Sociology, RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 सांस्कृतिक परिवर्तन, धर्मनिरपेक्षीकरण एवं उत्तर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, संस्कृतीकरण

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Posts

  • RBSE Solutions for Class 6 Maths Chapter 6 Decimal Numbers Additional Questions
  • RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 3 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 3 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 Maths in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 3 in Hindi Medium & English Medium
  • RBSE Solutions for Class 4 Hindi
  • RBSE Solutions for Class 4 English Let’s Learn English
  • RBSE Solutions for Class 4 EVS पर्यावरण अध्ययन अपना परिवेश in Hindi Medium & English Medium

Footer

RBSE Solutions for Class 12
RBSE Solutions for Class 11
RBSE Solutions for Class 10
RBSE Solutions for Class 9
RBSE Solutions for Class 8
RBSE Solutions for Class 7
RBSE Solutions for Class 6
RBSE Solutions for Class 5
RBSE Solutions for Class 12 Maths
RBSE Solutions for Class 11 Maths
RBSE Solutions for Class 10 Maths
RBSE Solutions for Class 9 Maths
RBSE Solutions for Class 8 Maths
RBSE Solutions for Class 7 Maths
RBSE Solutions for Class 6 Maths
RBSE Solutions for Class 5 Maths
RBSE Class 11 Political Science Notes
RBSE Class 11 Geography Notes
RBSE Class 11 History Notes

Copyright © 2023 RBSE Solutions