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RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

March 23, 2019 by Veer Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा are part of RBSE Solutions for Class 7 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 7
Subject Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name शरणागत की रक्षा
Number of Questions Solved 48
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा (कहानी)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठ से
सोचें और बताएँ

प्रश्न 1.
हमीर कहाँ के राणा थे?
उत्तर:
हमीर रणथंभौर के राणा थे।

प्रश्न 2.
युद्ध से पहले माहिमशाह हमीर के सामने क्यों खड़ा हुआ?
उत्तर:
माहिमशाह को लगा होगा कि धन-जन हानि को देखकर कहीं हमीर उन्हें अलाउद्दीन खिलजी को न सौंप दें। इसलिए वह हमीर के सामने आकर खड़ा हो गया।

लिखें
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“महाराज मैं दुखिया हूँ, मेरे प्राण संकट में हैं, आपकी शरण आया हूँ।” किसने कहा
(क) हमीर ने
(ब) अलाउद्दीन ने
(ग) माहिमशाह ने
(घ) सलाहकारों ने।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

प्रश्न 2.
यह कर्तव्य हमें पूरा करना है, फिर इससे दिल्ली का बादशाह नाराज हो या दुनिया का बादशाह।” किसने कहा
(क) हमीर ने
(ख) अलाउद्दीन ने
(ग) माहिमशाह ने
(घ) सलाहकारों ने।

उत्तर:
1. (ग)
2. (क)

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माहिमशाह किसका भगोड़ा था?
उत्तर:
माहिमशाह दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी का भगोड़ा था।

प्रश्न 2.
माहिमशाह किसकी शरण में आया?
उत्तर:
माहिमशाह रणथंभौर दुर्ग के स्वामी राणा हमीर की शरण में आया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा हमीर ने अपने सलाहकारों को अनुत्साहित क्यों पाया?
उत्तर:
जब माहिमशाह अपना पूरा परिचय देकर हमीर से शरण देने की याचना कर रहा था तो सभा में राजा के सलाहकार भी उपस्थित थे। जब हमीर ने उनके विचार जानने के लिए उनकी ओर देखा तो पाया कि वे माहिमशाह को शरण देने में रुचि नहीं ले रहे थे। कारण यह था कि माहिमशाह भी अलाउद्दीन के साथ राजपूतों का रक्त बहाने में शामिल रहा था। अतः शत्रु को शरण देने की बात उन्हें पच नहीं रही थी।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

प्रश्न 2.
राजा हमीर ने कर्तव्यपालन के बारे में सलाहकारों से क्या कहा?
उत्तर:
हमीर ने कहा कि कर्तव्य की सीमा केवल कर्तव्य का पालन करना ही होती है। कर्तव्य पालन में सुख-दुख, हानि-लाभ पर विचार करना दुकानदारी जैसा है। यह वीर पुरुषों को शोभा नहीं देता। माहिम एक शरणार्थी होकर हमारे पास आया है और राजपूत का कर्तव्य शरणागत की रक्षा करना होता है। अतः हमें अपना कर्तव्य पूरा करना होगा । चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली व्यक्ति इससे नाराज हो जाए।

प्रश्न 3.
राजा हमीर ने अलाउद्दीन को भेजे संदेश में क्या लिखा?
उत्तर:
हमीर ने लिखा कि उसने माहिमशाह को शरण दी है, अपने यहाँ नौकरी नहीं दी है। पूर्वजों से उन्हें यही शिक्षा और संस्कार मिले हैं कि शरणागत व्यक्ति की हर मूल्य पर रक्षा की जाए। अत: बादशाह सपने में भी न सोचे कि हमीर माहिम को लेकर उसकी सेवा में हाजिर होगा। वह जो ठीक समझे करे।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रणथंभौर किले में हुई सभा में माहिमशाह ने राजा हमीर से क्या खुशामद की?
उत्तर:
जब एक दिन किले के भंडारी ने हमीर को सूचित किया कि भंडार में खाने का सामान समाप्त हो गया है, तो उसने सभी सलाहकारों और अधिकारियों की सभा बुलाई। माहिमशाह इस हालत के लिए अपने को दोषी मान रहा था। इसलिए उसने हमीर की खुशामद की कि वह उसे अलाउद्दीन को सौंपकर संधि कर ले ताकि जन-धन की हानि रुक जाए। वह बहुत गिड़गिड़ाया लेकिन किसी ने उसके प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। क्योंकि राजपूत अपनी आन की रक्षा के लिए सब कुछ दाँव पर लगाने का निश्चय कर चुके थे।

प्रश्न 2.
राजा हमीर ने शरणागत की रक्षा के लिए क्या-क्या कुर्बानियाँ दीं?
उत्तर:
जब माहिमशाह भागकर हमीर के पास शरण माँगने पहुँचा तो हमीर ने अच्छी तरह समझ लिया था कि माहिम को शरण देना उसे बहुत महँगा पड़ेगा। उसने लाभ-हानि की चिंता किए बिना माहिम को शरण प्रदान कर दी। यह खबर जब दिल्ली के बादशाह खिलजी के पास पहुँची तो उसने हमीर को धमकाकर माहिम को सौंपने का संदेश भिजवा दिया। अलाउद्दीन की शक्ति के सामने छोटे-से राज्य के स्वामी हमीर कहीं नहीं ठहरते थे। लेकिन उन्होंने घोर संकट की परवाह किए बिना, बादशाह की बात मानने से इंकार कर दिया।

युद्ध आरंभ होने पर हमीर की प्रतिदिन जन-धन की हानि होने लगी। यह देख माहिमशाह ने उसकी खुशामद की कि वह उसे बादशाह को सौंपकर संधि कर ले, लेकिन हमीर ने । यह स्वीकार नहीं किया। धीरे-धीरे उसके हजारों सैनिक मारे गए। खजाना खाली हो गया। फिर भी उसका एक सिपाही भी जब तक जीवित रहा युद्ध बंद न हुआ। उसने स्वयं भी युद्ध करते हुए अपनी आन की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान कर दिया। संसार के इतिहास में बलिदान का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

भाषा की बात

प्रश्न 1.
“हमीर ने अपने सलाहकारों को देखा तो अनुत्साहित पाया।” वाक्य में अनुत्साहित’ शब्द अन्। उत्साहित से बना है। आप भी ‘अन्’ उपसर्ग लगाकर पाँच शब्द बनाइए। जैसे-अंत-अनंत।
उत्तर:
अन् + उपयोगी = अनुपयोगी
अन् + आदर = अनादर
अन् + उपस्थित = अनुपस्थित
अन् + पढ़ = अनपढ़
अन् + जान = अनजान

प्रश्न 2.
जिस प्रकार इतिहास में इक प्रत्यय जुड़ने से ऐतिहासिक बना है। इसी प्रकार ‘इक’ प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए। जैसे-भूत-भौतिक।
उत्तर:
भूगोल + इक = भौगोलिक
उपचार + इक = औपचारिक
विचार + इक = वैचारिक
रसायन + इक = रासायनिक

प्रश्न 3.
नीचे समश्रुति भिन्नार्थक शब्द दिए गए हैं। इनको वाक्यों में प्रयोग कर इनके अर्थ में अंतर स्पष्ट कीजिए
सूत-सुत, पथ्य-पथ, धन्य-धान्य, उदार-उदधार।
उत्तर:
सूत- सूत का बना कपड़ा महँगा हो गया है।
सुत- दशरथ के सुत रामचंद्र वन को गए।
पथ्य- रोगी को पथ्य में सहज में पचने वाली वस्तुएँ देनी चाहिए।
पथ- राजपथ पर सैकड़ों लोग आ-जा रहे थे।
धन्य- दूसरों के उपकार में जीवन लगाने वाले मनुष्य धन्य हैं।
धान्य- इस गाँव के सभी घर धन-धान्य से परिपूर्ण हैं।
उदार- उदार हृदय वाले लोग सबकी सहायता करते हैं।
उदधार- शरण में आने वाले दुष्ट का भी भगवान उद्धार करते हैं।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
कक्षा में हमीर, माहिमशाह और अलाउद्दीन खिलजी का संवाद कराएँ।
उत्तर:
संकेत-छात्र शिक्षक महोदय की सहायता लेकर स्वयं करें।

प्रश्न 2.
इसी प्रकार की ऐतिहासिक कहानियाँ जिसमें शरणागत की रक्षा का प्रसंग हो, का संकलन कर ‘मेरा संकलन’ में जोडिए।
उत्तर:
संकेत-छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
आपके अनुसार हमीर द्वारा माहिमशाह को शरण देना उचित है या अनुचित? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर:
माहिमशाह अलाउद्दीन का अधिकारी होने के कारण राजपूतों का शत्रु था। हमीर के सरदारों ने माहिमशाह को शरण न देने के पक्ष में यह तर्क दिया था। उनका यह तर्क व्यावहारिक था। एक व्यक्ति के पीछे अपने और अपनी प्रजा के प्राणों को संकट में डालना राजनीति की दृष्टि से उचित कदम नहीं माना जा सकता। हमीर चाहता तो माहिम को अलाउद्दीन को न सौंपकर कहीं दूर सुरक्षित छुड़वा सकता था। नैतिक और भावनात्मक दृष्टि से संकट में पड़े व्यक्ति की रक्षा भले ही उचित है, लेकिन एक राजा या शासक के रूप में हमीर का माहिम को शरण देना और अपना सर्वस्व बलिदान कर देना उचित नहीं प्रतीत होता।

कल्पना करें

प्रश्न 1.
राणा हमीर यदि माहिमशाह को शरण नहीं देते, तो क्या होता?
उत्तर:
माहिमशाह दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी का अपराधी और भगोड़ा था। उस समय अलाउद्दीन का सामना कर पाना देश के किसी साधारण राजा के वश की बात नहीं थी। माहिमंशाह अनेक राजाओं के पास से निराश लौटा था। यदि राजा हमीर उसे शरण न देते तो वह प्राण बचाने को भागता रहता। हो सकता था कोई राजा अलाउद्दीन की कृपा पाने को उसे धोखे से पकड़वा देता या माहिमशाह भारत के किसी दूर प्रदेश में जाकर भेष बदलकर रहने लगता अथवा हर प्रकार से निराश होकर वह आत्महत्या कर लेता।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
”मैं आपकी शरण में आया हूँ महाराज!” यह पुकारा
(क) एक राजपूत सैनिक ने
(ख) माहिमशाह ने
(ग) हमीर के एक सरदार ने
(घ) एक पड़ोसी राजा के मंत्री ने।

प्रश्न 2.
“शरणागत की रक्षा करना हमारे संस्कार हैं” यह कहा|
(क) हमीर के सरदारों ने
(ख) राजस्थान के एक राजा ने
(ग) अलाउद्दीन ने
(घ) हमीर ने।

प्रश्न 3.
“यह लड़कों का खेल नहीं है,” हमीर ने यह कहा
(क) शरण देने के बारे में
(ख) शासन चलाने के बारे में
(ग) युद्ध के बारे में।
(घ) अलाउद्दीन से टक्कर लेने के बारे में।

प्रश्न 4.
रणथंभौर के किले में सभा होने का कारण था
(क) माहिमशाह की खुशामद करना।
(ख) भंडारी द्वारा भोजन सामग्री समाप्त हो जाने की सूचना देना।
(ग) आगे युद्ध किस प्रकार किया जाए, इस पर विचार करना।
(घ) अलाउद्दीन से संधि पर विचार करना।

उत्तर:
1. (ख)
2. (घ)
3. (ग)
4. (ग)

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

रिक्त स्थानों की पूर्ति चित शब्द से कीजिए

प्रश्न 1.
महाराज मैं……………….हूँ, मेरे प्राण संकट में हैं, आपकी शरण आया हूँ। (मुखिया/दुखिया)

प्रश्न 2.
यह दिल्ली के तख्त की क्रोधाग्नि की बात नहीं है, यह कर्तव्य का प्रश्न है,……….का प्रश्न है। (आन/प्राण)

प्रश्न 3.
आपकी……………परम पवित्र है, पर कर्तव्य की भी एक सीमा है। (बात/शर्त)

प्रश्न 4.
ऊँची पहाड़ी पर बना रणथंभौर का…………….और चारों और फैली शाही फौजें। (राजभवन/किला)

उत्तर:
1. दुखिया
2. आन
3. बात
4. किला

अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“महाराज मैं दुखिया हूँ, मेरे प्राण संकट में हैं, आपकी शरण आया हूँ।” यह किसने किससे कहा?
उत्तर:
यह अलाउद्दीन की कैद से भागकर आए माहिमशाह ने राणा हमीर से कहा।

प्रश्न 2.
कर्तव्य का पालन करते हुए राजपूतों को क्या शोभा नहीं देता?
उत्तर:
कर्तव्य के पालन में सुख-दुख, हार-जीत पर विचार करना राजपूतों को शोभा नहीं देता।

प्रश्न 3.
हमीर का अलाउद्दीन को आखिरी उतर क्या था?
उत्तर:
हमीर का आखिरी उत्तर था कि वह लड़ाई से नहीं डरता और वह आखिरी घड़ी तक माहिम की रक्षा करेगा।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

प्रश्न 4.
रणथंभौर के किले में बुलाई गई सभा में क्या फैसला किया गया?
उत्तर:
फैसला हुआ कि अगले दिन किले का द्वार खोल दिया जाए और जमकर युद्ध हो।

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
माहिमशाह कौन था और वह अलाउद्दीन के कारागार से क्यों भागा था?
उत्तर:
माहिमशाह अलाउद्दीन की सेना में अधिकारी था। किसी बात पर नाराज होकर अलाउद्दीन ने उसे फाँसी दिए जाने की आज्ञा दे दी। उसे कैद में डाल दिया गया। जब फाँसी की घड़ी पास आई तो वह कारागार से भाग निकला और हमीर के पास शरण लेने जा पहुँचा।

प्रश्न 2.
माहिमशाह को शरण देने के बारे में हमीर के सलाहकारों की क्या राय थी? हमीर ने इसे कर्तव्य का प्रश्न क्यों बताया?
उत्तर:
माहिमशाह राजपूतों के शत्रु अलाउद्दीन का सैनिक अधिकारी था और राजपूतों के विरुद्ध युद्ध में भाग लेता रहा था। अतः हमीर के सलाहकार उसे शरण दिए जाने के पक्ष में नहीं थे। उनका कहना था कि माहिमशाह जैसे व्यक्ति की रक्षा करके अलाउद्दीन से बैर मोल लेना बुदधिमानी नहीं थी। हमीर ने सरदारों से कहा कि यह बैर मोल लेना नहीं बल्कि कर्तव्य पालन की बात है। यदि हम शरणागत की रक्षा नहीं करेंगे तो अपराध के भागी होंगे।

प्रश्न 3.
अलाउद्दीन और हमीर के बीच युद्ध होना क्यों अनिवार्य हो गया?
उत्तर:
अलाउद्दीन ने हमीर के नाम आखिरी संदेश में लड़ाई के बजाय माहिम को सौंप देने को कहा लेकिन हमीर ने उत्तर भिजवा दिया कि वह युद्ध से नहीं डरता और जीवन की अंतिम घड़ी तक माहिम की रक्षा करेगा। इसके बाद युद्ध के टलने की कोई गुंजाइश नहीं बची थी।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

प्रश्न 4.
अलाउद्दीन और हमीर की फौजों के साधनों और चरित्रों में क्या अंतर था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलाउद्दीन के सैनिक वेतन के बदले युद्ध में भाग ले रहे थे। उनके लिए युद्ध करना पवित्र कर्तव्य नहीं था। दूसरी तरफ राजपूत सैनिक अपनी आन और कर्तव्यपालन के लिए मर मिटने को तैयार थे। इसके अतिरिक्त शाही फौज सैनिकों की संख्या और युद्ध साधनों में हमीर की सेना से बहुत आगे थी। एक ओर आन के लिए जान हथेली पर थी और दूसरी ओर ताकत का नशा और बादशाहत का अहंकार था।

प्रश्न 5.
रणथंभौर के किले में सभा किसलिए बुलाई गई और उसमें क्या निर्णय लिया गया? लिखिए।
उत्तर:
हमीर की सेना के सैनिकों की संख्या निरंतर घट रही थी। अस्त्र-शस्त्रों की कमी से भी जूझना पड़ रहा था। इसी बीच एक दिन भोजनालय के भंडारी ने सूचित किया कि खाने की सामग्री समाप्त हो गई है। इन समस्याओं और आगे के कदमों पर विचार करने के लिए सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में माहिमशाह ने हमीर से प्रार्थना की कि उसे अलाउद्दीन को सौंपकर संधि कर ली जाए। परंतु किसी ने भी उसकी बात का समर्थन नहीं किया। अंत में यह निर्णय लिया गया कि भूख और बीमारी से मरने के बजाय किले से बाहर निकलकर शत्रु की सेना से लोहा लिया जाए।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘शरणागत की रक्षा’ कहानी को पढ़ने के बाद आपको हमीर के चरित्र में कौन-कौन गुण दिखाई दिए? लिखिए।
उत्तर:
रणथंभौर के किले का स्वामी राजा हमीर इस कहानी का प्रधान पात्र है। उसके चरित्र में कई गुण दिखाई देते हैं। वह शरण में आने वालों को कभी निराश नहीं करता। माहिमशाह को अलाउद्दीन का सेवक जानते हुए वह उसे शरण देता है।

अपने सरदारों के असंतोष को वह अपने महान विचारों से दूर कर देता है। उसे जान से ज्यादा अपनी आन प्यारी है। उसके अनुसार शरणागत की रक्षा करना एक राजपूत का परम कर्तव्य है। वह कर्तव्य की कोई सीमा नहीं मानता। वह एक निर्भीक योद्धा है। अलाउद्दीन की धमकी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह माहिम को दिए गए सुरक्षा के वचन का अंतिम साँस तक पालन करता है। वह समस्याओं और संकटों से तनिक भी नहीं घबराता। उसके सरदार और अधिकारी उसका अनुकरण करते हुए, खिलजी की फौज से मैदान में भिड़ने को निकल पड़ते हैं। हमीर वास्तव में एक आदर्श राजपूत योद्धा है।

कठिन शब्दार्थ-
योद्धा = वीर सैनिक। व्यथा = दुख। भर्राया = साफ आवाज न निकलना। सिपहगिरी = सैनिक का काम। खादिम = सेवक, नौकर। फरार होना = भाग जाना। भगोड़ा = भागा हुआ कर्मचारी या अपराधी। अनुत्साहित = उत्साह से रहित, असहमत। खून की प्यासी = हत्या करने वाली। क्रोधाग्नि = क्रोध की आग। आवेश= जोश, उत्तेजना। दुकानदारी की वृत्ति = सौदेबाजी करना, हानि-लाभ के आधार पर निर्णय लेना। भावधारा = भावनाएँ। व्यवहार बुधि = सही व्यवहार करने की समझ। तमतमा उठना = अत्यंत क्रोधित होना। हिमाकत = साहस। आसरा = शरण। सुपुर्द करना = सौंपना। सर्वस्व = सब कुछ। मुनासिब = ठीक। पलीता = बारूद में आग लगाने की मशाल। रण-दुंदुभि = युद्ध के बाजे। छीजना = कम होना। कारू का खजाना = पुराने किस्से-कहानियों में बताया गया एक बहुत बड़ा खज़ाना। कुबेर = धन के देवता। कोष = खजाना। सुलह = संधि। समर्थक = मानने वाला। ज्वार = समुद्र में आने वाली बाढ़। आत्माहुति = अपना बलिदान। समर्पण = सौंपना। काल बनकर बरसना = शत्रु-सेना पर भयंकर आक्रमण करना। शहादत = युद्ध में बलिदान हो जाना। सदियों = कड़ों बरसों। सौरभ = सुगंध। प्रेरक – उत्साह भरने वाली। मनोरम = मन में बस। जाने वाला। प्रदीप्त = उजला, उत्तेजना भर देने वाला।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थवाहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) “यह दिल्ली के तख्त की लपलपाती क्रोधाग्नि को न्योता देने की बात नहीं है, सरदारो! यह कर्तव्य का प्रश्न है, आन का प्रश्न है। जब माहिम इस द्वार से लौटेगा, तो स्वर्ग में हमारे पूर्वज क्या सोचेंगे? क्या उन्हें स्वर्ग के सुख-साज में काँटों की चुभन का अनुभव न होगा ?” हमीर ने आवेश में पूछा।

संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कहानी शरणागत की रक्षा’ से लिया गया है। यहाँ हमीर अपने सरदारों को राजपूती आन का ध्यान दिला रहा है।

व्याख्या-
जब सरदारों ने कहा कि माहिमशाह को शरण देने पर अलाउद्दीन क्रोध से भड़क उठेगा और रणथंभौर पर आक्रमण कर देगा तो हमीर ने उन्हें राजपूती आने की याद दिलाई। एक राजपूत शरण में आने वाले की प्राण देकर भी रक्षा करता है। हमीर ने कहा कि यदि माहिम हमारे दरबार से निराश होकर लौटेगा तो हमारे स्वर्गवासी पूर्वजों को बड़ा कष्ट होगा। वे हमको कायर समझकर स्वर्गीय सुखों में भी दुख का अनुभव करेंगे।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हमीर ने सरदारों से अलाउद्दीन के क्रोधित हो जाने को लेकर क्या कहा?
उत्तर:
हमीर ने कहा कि इस समय अलाउद्दीन के क्रोध का महत्व नहीं था। सबसे बड़ी बात राजपूती आन को कलंक लगने की बात थी। कर्तव्य के पालन का प्रश्न था।

प्रश्न 2.
स्वर्ग में स्थित हमीर के पूर्वज माहिम के निराश होकर लौट जाने पर क्या सोचते?
उत्तर:
हमीर के पूर्वज सोचते कि उनकी संतानें कायर एवं स्वाभिमान से रहित हैं।

प्रश्न 3.
राजपूत शरण में आने वाले के साथ क्या व्यवहार करते थे?
उत्तर:
वे प्राण देकर भी शरणागत की रक्षा करते थे।

प्रश्न 4.
‘सुख-साजों में काँटों की चुभन’ का क्या आशय
उत्तर:
आशय यह है कि पूर्वजों को स्वर्ग के सुख भी काँटों की तरह कष्ट देते।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

(2) दूसरे दिन रण-दुंदुभि बज उठी। ऊँची पहाड़ी पर बना रणथंभौर का किला और चारों ओर फैली शाही फौजें । एक तरफ अपने बादशाह के लिए लड़ने वाली फौजें तो दूसरी तरफ अपनी आन पर मर मिटने वाले सिपाही। एक तरफ भरपूर साधन तो दूसरी तरफ भरपूर आन। लड़ाई क्या थी? यह बात की बाजी और यह बाजी जिसका निशाना एक आदमी के प्राण और इस एक प्राण के लिए हज़ारों प्राण, सरसों के दानों की तरह हथेली पर।

संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कहानी ‘शरणागत की रक्षा’ से लिया गया है।

व्याख्या-
जब हमीर ने अलाउद्दीन के द्वारा दुबारा भेजे गए संदेश को भी ठुकरा दिया तो बादशाह की फौजों ने रणथंभौर के दुर्ग को घेर लिया। रणथंभौर का किला ऊँची पहाड़ी पर बना था। उसके चारों ओर शाही फौजों ने घेरा डाल दिया था। यह लड़ाई कहीं से भी दो बराबरी के पक्षों के बीच नहीं थी। एक ओर वे फौजें र्थी जो वेतन के लिए बादशाह की ओर से लड़ने आई थीं और दूसरी ओर वे सिपाही थे जो केवल अपनी आन की रक्षा पर मर मिटने को तैयार थे। शाही फौजों के पास लड़ाई के साधनों की कोई कमी नहीं थी तो दूसरी ओर केवल आन के बल पर युद्ध लड़ा जा रहा था। सच में देखा जाए तो यह अपनी बात की रक्षा के लिए लड़ा जा रहा संग्राम था और वह बात जिसके लिए हजारों लोगों के प्राण दाँव पर लगे थे, एक पक्ष प्राण लेने पर उतारू था तो दूसरा किसी भी मूल्य पर उसके प्राणों की रक्षा करने को तत्पर था। यह दृश्य प्राण हथेली पर रखने जैसा था।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अलाउद्दीन के आखिरी संदेश को भी जब हमीर ने ठुकरा दिया तो क्या हुआ?
उत्तर:
हमीर द्वारा आखिरी संदेश ठुकराए जाने पर शाही फौजों ने पहाड़ी पर बने रणथंभौर के किले को चारों ओर से घेर लिया।

प्रश्न 2.
बादशाही फौजों और राजपूत सैनिकों के बीच क्या अंतर था?
उत्तर:
बादशाही फौज वेतन के बदले जान देने आई थी
और राजपूत सैनिक अपनी आन और मातृभूमि की रक्षा के लिए जान हथेली पर रखे हुए थे।

प्रश्न 3.
साधनों की दृष्टि से शाही फौजों और राजपूत सेना में क्या अंतर था?
उत्तर:
शाही फौज के पास लड़ाई के साधनों की कोई कमी न थी जबकि राजपूत सैनिक केवल आन के बल पर डटे हुए थे।

प्रश्न 4.
अलाउद्दीन और हमीर के बीच युद्ध का मूल कारण क्या था?
उत्तर:
दोनों के बीच युद्ध का मूल कारण एक आदमी माहिमशाह के प्राण थे। अलाउद्दीन उसके प्राण लेना चाहता था और हमीर हर कीमत पर उसकी रक्षा करने पर तुला हुआ था।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 4 शरणागत की रक्षा

(3) रणथंभौर के किले में एक सभा हुई कि अब क्या हो? माहिमशाह ने बहुत खुशामद की, वह बहुत गिड़गिड़ाया कि उसे बादशाह को सौंपकर सुलह कर ली जाए, पर उसके प्रस्ताव का समर्थक वहाँ कोई न था। सच्चाई यह है कि हमीर और उनके साथियों के सामने यह प्रश्न ही न था कि हम कैसे बचें। उनकी विचार दिशा तो केवल यह थी कि हम कैसे लड़े? भावुकता का ऐसा ज्वार विश्व के इतिहास में शायद ही और कहीं आया हो।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रणथंभौर के किले में सभी बुलाने की आवश्यकता क्यों हुई?
उत्तर:
जब किले के भंडारी ने हमीर को सूचना दी कि खाने का सामान खत्म हो गया तो समस्या पर विचार करने के लिए सभा बुलाई गई।

प्रश्न 2.
माहिमशाह ने हमीर की खुशामद क्यों की?
उत्तर:
माहिमशाह देख रहा था कि किले के लोगों पर आए संकट का कारण वही था। अतः उसने हमीर की खुशामद की कि वह उसको बादशाह के हवाले करके संधि कर ले।

प्रश्न 3.
माहिमशाह के प्रस्ताव का किसी ने भी समर्थन क्यों नहीं किया?
उत्तर:
राजपूतों के सामने समस्या यह नहीं थी कि जीवित कैसे बचा जाए। वे तो सोच रहे थे कि आगे युद्ध कैसे लड़ा जाए। इसीलिए किसी ने माहिमशाह के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।

प्रश्न 4.
‘भावुकता का ऐसा ज्वार’ से किस ओर संकेत किया गया है?
उत्तर:
रणथंभौर के सारे सैनिक अपनी आन पर मर-मिटने को तैयार थे। जान बचाने की किसी को चिंता न थी। यह उनकी भावुकता का ही प्रमाण था। ऐसी भावुकता इतिहास में और कहीं देखने को नहीं मिलती।

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