RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 5 बेणेश्वर की यात्रा are part of RBSE Solutions for Class 7 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 5 बेणेश्वर की यात्रा.
Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 7 |
Subject | Hindi |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | बेणेश्वर की यात्रा |
Number of Questions Solved | 52 |
Category | RBSE Solutions |
Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 5 बेणेश्वर की यात्रा (यात्रा संस्मरण)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
पाठ से
सोचें और बताएँ।
प्रश्न 1.
बेणेश्वर धाम का मेला कब भरता है?
उत्तर:
बेणेश्वर धाम का मेला माघ शुक्ल एकादशी से कृष्ण पंचमी तक भरता है।
प्रश्न 2.
मेले में कौन-कौन से प्रदेश के लोग आते हैं?
उत्तर:
मेले में गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान के लोग आते हैं।
प्रश्न 3.
मावजी का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर:
मावजी का जन्म साबला (डूंगरपुर) में हुआ था।
लिखें
नीचे लिखे शब्दों का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(साबला, पूर्णिमा, प्रेमसागर, बेणेश्वरधाम)।
प्रश्न 1.
बेणेश्वर का मुख्य मेला……………. को भरता है।
प्रश्न 2.
………………..को आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है।
प्रश्न 3.
मावजी महाराज का जन्म…………………में हुआ था।
उत्तर:
1. माघ-पूर्णिमा
2. बेणेश्वरधाम
3. साबला (डूंगरपुर)।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बेणेश्वर किन-किन नदियों पर स्थित है?
उत्तर:
बेणेश्वर सोम, जाखम और माही नंदियों के संगम पर स्थित है।
प्रश्न 2.
शिव मंदिर किसने और कब बनवाया था?
उत्तर:
शिव मंदिर डूंगरपुर के महारावल आसकरण ने 500 वर्ष पूर्व बनवाया था।
प्रश्न 3.
मेले की सारी व्यवस्थाएँ किसके निर्देशन में होती हैं?
उत्तर:
मेले की सारी व्यवस्थाएँ साबला पंचायत समिति, डूंगरपुर के निर्देशन में होती हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मावजी महाराज द्वारा रचित ग्रंथों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मावजी महाराज ने पाँच ग्रंथों की रचना की थी। ये सोमसागर, प्रेमसागर, मेघसागर, रतनसागर तथा अनंतसागर हैं। इनको वागड़ी भाषा में ‘चोपड़ा’ कहा जाता है। उनके चोपड़े में भविष्यवाणियाँ लिखी गई हैं। चोपड़े की भविष्यवाणियाँ अब तक सत्य होती रही हैं।
प्रश्न 2.
मावजी के बाद गादी पर कौन बैठी?
उत्तर:
मावजी के बाद गादी पर उनकी पुत्रवधू जनक कुँवरी बैठीं। ये 80 वर्षों तक गादीपति रहीं। इन्होंने ही हरि मंदिर (श्रीकृष्ण का मंदिर) बनवाया था।
प्रश्न 3.
मेले की शुरुआत कैसे होती है?
उत्तर:
मेले की शुरुआत साबला गादी के महंत हरि मंदिर पर झंडा फहराकर करते हैं। उस समय चारों ओर मावजी महाराज की जयकार होती है।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मेले में आदिवासियों की संख्या पूर्णिमा के दिन सबसे अधिक क्यों होती है? कारण सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर:
वैसे तो बेणेश्वर धाम के मेले में आदिवासी पूरे उत्साह से भाग लेते हैं लेकिन माघ पूर्णिमा के दिन मेले में आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक रहती है। इसका कारण यह है कि इस दिन बहुत-से आदिवासी अपने परिवार के मृत लोगों के ‘फूल’ (चिता में से चुनकर लाई गईं हड्डियाँ) लेकर आते हैं। ये लोग पूर्णिमा के दिन इन अस्थियों को संगम की धारा में प्रवाहित करते हैं। यह उनकी बहुत पुरानी परंपरा है।
प्रश्न 2.
बेणेश्वर मेले का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
बेणेश्वर धाम- राजस्थान के डूंगरपुर तथा बाँसवाड़ा की सीमा पर स्थित है। यहाँ सोम, जाखम और माही नामक नदियों के संगम में स्थित एक टापू पर यह मेला लगता है। यह मेला माघ शुक्ल एकादशी को आरंभ होकर कृष्ण पंचमी तक चलता है। टापू पर बेणेश्वर शिव का मंदिर है जिसे 500 वर्ष पहले डूंगरपुर के महारावल आसकरण ने बनवाया था।
इस मेले से इस स्थान के प्रसिद्ध संत मावजी का नाम जुड़ा हुआ है। मावजी का जन्म साबला में जो डूंगरपुर में है, अठारहवीं शताब्दी में हुआ था। मावजी की पुत्रवधू जनक कुँवरी ने यहाँ हरि मंदिर की स्थापना की थी। टापू पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मंदिर हैं।
मेले का आरंभ साबला गादी के महंत करते हैं। मेले में सभी तरह की वस्तुओं की दुकानें लगती हैं। मनोरंजन के भी अनेक साधन रहते हैं। मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल प्रतियोगिताएँ, नृत्य, रासलीला और आदिवासियों के लोकगीत भी वातावरण को सरस बनाते हैं। पूर्णिमा के दिन महंत जी की सवारी निकलती है। पूर्णिमा को आदिवासी लोग अधिक संख्या में मेले में आते हैं और मृत परिवारीजनों की अस्थियों को संगम में प्रवाहित करते हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
बालक ही नहीं बालिकाएँ भी!जवान ही नहीं बूढ़े भी! गरीब ही नहीं अमीर भी! सब तरह के लोग थे। वाक्य में ‘ही…. भी’ का प्रयोग हुआ है। आप भी ऐसे पाँच वाक्य बनाइए जिसमें ही…..भी’का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर:
1. सम्मेलन में हिंदू ही नहीं मुसलमान और ईसाई भी आए हैं।
2. अब शहरों में ही नहीं गाँवों में भी इंटरनेट पहुँच गया है।
3. अब तो रात ही नहीं दिन में भी लोग सुरक्षित नहीं हैं।
4. प्रभात ही नहीं उसका भाई भी दुर्घटना में घायल हुआ है।
5. अब लड़के ही नहीं लड़कियाँ भी सेना में प्रवेश ले रही
प्रश्न 2.
मावजी महाराज द्वारा लिखित पाँच ग्रंथों को ‘चोपड़ा’ कहा जाता है। दिवंगत लोगों की अस्थियों को ‘फूल’ कहा जाता है। मिट्टी से निर्मित छोटे बर्तन को ‘सउड़ी’ कहा जाता है, जिसमें आदिवासी अपने पूर्वजों की अस्थियाँ रखते हैं। आँचलिक भाषा में ऐसे अनेक शब्द प्रचलित होते हैं जो एक विशेष अर्थ को व्यक्त करते हैं। अपनी भाषा से ऐसे कुछ शब्दों का चयन कर उनके अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बेला – काँसे का कटोरा।
कठौता – काठ का बर्तन जो आटो माड़ने के काम आता है।
मौड़ा – बालक या लड़का।
मंगला – मंदिरों में प्रातः काल के प्रथम दर्शन
कीड़ा – साँप के लिए प्रयोग होता है।
ठेक – ढालू गली की सबसे ऊँची जगह।
प्रश्न 3.
“मुझे पता ही नहीं लगा और पूर्णिमा आ गई।’ इस बात को हम इस प्रकार भी लिख सकते हैं-‘मुझे पता ही नहीं लगा। पूर्णिमा आ गई।’ इस प्रकार के वाक्यों को संयुक्त वाक्य कहा जाता है। संयुक्त वाक्य में वाक्यों को ‘और’ तथा ‘या’ अदि से जोड़ा जाता है। आप भी इसी प्रकार के पाँच वाक्य बनाइए।
उत्तर:
1. बंदरों ने बिजली के लट्ठे को हिलाया और तारों में आग लग गई।
2. वह सुबह नौ बजे काम पर जाता है और शाम छ: बजे घर लौटता है।
3. सबेरा होता है और पक्षी बोलने लगते हैं।
4. मैंने कपड़े खरीदे और प्रिया ने एक कुकर खरीदा।
5. नदी में मछलियाँ हैं और कछुए भी हैं।
प्रश्न 4.
‘मिश्र वाक्य’ भी वाक्य का एक भेद है। आप अपने शिक्षक से मिश्र वाक्य के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
मिश्र वाक्य-जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य तथा एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य हो, उसे मिश्र या मिश्रित वाक्य कहते हैं।
पाठ से आगे
प्रश्न 1.
आपने अब तक कौन-कौन से मेले देखे हैं? किसी एक मेले का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मैंने कई मेले देखे हैं। रामलीला का मेला, बाल मेला, दीपावली मेला, वसंत मेला आदि ऐसे ही मेले हैं। रामलीला मेला हमारे नगर में हर वर्ष लगता है। यह शहर के बाहर एक बड़े मैदान में लगता है। इसे दशहरे का मेला भी कहा जाता है।
यह मेला नगर में चलने वाले रामलीला महोत्सव में रावणवध के दिन दशहरे को लगता है। इस मेले में नगर के अलावा आस-पास के गाँवों के लोग भी आते हैं। मेला सायंकाल रामलीला मैदान पर प्रारंभ होता है। इसमें एक ओर रामलीला का कार्यक्रम चलता रहता है और दूसरी ओर लोग मेले का आनंद भी लेते हैं। मेले में खान-पान, मनोरंजन तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं के स्टाल और ठेले लगाए जाते हैं। मेले में पुलिस तथा अन्य समाजसेवी संस्थाएँ सुरक्षा इंतजाम देखती हैं। विभिन्न विद्यालयों के स्काउट भी जनता की सहायता में हाथ बँटाते हैं।
अँधेरा हो जाने पर सारा मेला स्थल बिजली की बत्तियों से जगमगा उठता है। उधर रामलीला में रावण के कागज के पुतले के दहन का समय पास आ जाता है। राम द्वारा छोड़े गए अग्निबाण से पुतले में आग लगाई जाती है। पटाखे फटने लगते हैं और पुतलों की आँखों से फुलझड़ियाँ झरने लगती हैं। जनता रामचंद्र भगवान की जय का घोष करती है। रावण दहन के साथ ही मेले का समापन होने लगता है।
प्रश्न 2.
कल्पना कीजिए कि आप परिवार के साथ मेला घूमने गए हो। वहाँ भीड़-भाड़ में आप अपने परिवार से बिछुड़ गए। ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?
उत्तर:
ऐसी स्थिति में मैं घबराऊँगा नहीं। या तो मैं मेले के प्रवेश द्वार पर जाकर खड़ा हो जाऊँगा और वहाँ परिवार के लोगों की प्रतीक्षा करूंगा। या फिर मेले में लगे पुलिस बूथ पर जाकर पुलिस वालों को सारा हाल बताऊँगा। वे लाउडस्पीकर से मेरे परिवारीजनों को मेरे बारे में सूचित कर देंगे या फिर मेले में स्थित स्काउट शिविर पर जाकर उनसे सहायता माँगूंगा। यदि मेरे पास मोबाइल फोन होगा तो मैं सबसे पहले मेले में आए परिवार के किसी भी सदस्य को अपने बारे में सूचित करूगा और अपने खड़े होने की जगह के बारे में बताऊँगा।
यह भी करें
प्रश्न 1.
बेणेश्वर में बेण के पेड़ अधिक होते थे। कहा जाता
है कि यहाँ दैत्यराज बलि ने यज्ञ किया था। दैत्यराज बलि की अंतर्कथा ढूँढ़कर पढ़िए।
उत्तर:
‘बेण’ बाँस के पौधे को कहते हैं। छात्र शिक्षक महोदय की सहायता से बलि के विषय जानने का प्रयत्न करें। संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है
दैत्यों के राजा बलि बड़े पराक्रमी और दानी थे। उन्होंने पृथ्वी के अलावा स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे स्वर्ग से बलि का अधिकार समाप्त करें ताकि वे फिर स्वर्ग में सुखपूर्वक रह सकें। तब भगवान विष्णु ने एक वामन (बौना) ब्राह्मण का वेश धारण किया और बलि के यहाँ पहुँचकर उससे तीन चरण भूमि का दान माँगा। बलि के गुरु शुक्राचार्य ने उसे समझाया कि ये विष्णु हैं। तुमको छलने आए हैं। इन्हें दान मत दो। लेकिन बलि ने इसे स्वीकार नहीं किया। बलि द्वारा भूमि दान किए जाने पर वामन स्वरूप धारी विष्णु ने अपना विराट आकार धारण कर लिया और बलि को उसके राज्य से वंचित करके पाताल भेज दिया।
प्रश्न 2.
आप कभी बेणेश्वर जाएँ तो मावजी महाराज द्वारा लिखित ग्रंथों को संग्रहालय में पढ़िए।
उत्तरे:
संकेत-छात्र स्वयं करें।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
बेणेश्वर धाम का मेला आरंभ होता है
(क) माघ कृष्ण एकादशी से
(ख) पौष की पूर्णिमा से
(ग) माघ शुक्ल एकादशी से
(घ) वसंत पंचमी से।
प्रश्न 2.
मावजी महाराज ने अपना ‘चोपड़ा’ लिखा था
(क) ब्रह्माजी के मंदिर में
(ख) हरिमंदिर में
(ग) साबला गादी पर
(घ) शिव मंदिर में।
प्रश्न 3.
मेले का प्रारंभ किया
(क) साबला पंचायत समिति के प्रधान ने
(ख) डूंगरपुर के जिलाधिकारी ने
(ग) बाँसवाड़ा से आए एक संत ने
(घ) साबला गादी के महंत ने।
प्रश्न 4.
मावजी के बाद उनकी गादी पर बैठा
(क) उनका पुत्र
(ख) उनकी पुत्रवधू
(ग) उनका एक शिष्य
(घ) साबला के एक संत।
प्रश्न 5.
आदिवासी लड़के-लड़कियों के लोकगीतों की भाषा थी
(क) गुजराती
(ख) हिंदी
(ग) वागड़ी।
(घ) मारवाड़ी।
उत्तर:
1. (ग)
2. (घ)
3. (घ)
4. (ख)
5. (ग)
रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्द से कीजिए
प्रश्न 1.
बेणेश्वरधाम का मेला…………….एकादशी से कृष्ण पंचमी तक लगता है। (माघ शुक्ल/माघ कृष्ण)
प्रश्न 2.
बेणेश्वरधाम का मेला……………का कुंभ कहा जाता (तीर्थयात्रियों/आदिवासियों)
प्रश्न 3.
बेणेश्वरधाम मेला…………….दिन तक चलता है। (पंद्रह/दस)
प्रश्न 4.
बेणेश्वरधाम सोम, जाखम तथा माही नदियों के संगम पर बने एक………..पर स्थित है। (पर्वत/टापू)
उत्तर:
1. माघ शुक्ल
2. आदिवासियों
3. दस
4. टापू।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बेणेश्वर के मेले को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
इस मेले को आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है।
प्रश्न 2.
मावजी को उनके भक्त क्या मानते हैं?
उत्तर:
मावजी को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है।
प्रश्न 3.
बेणेश्वर टापू पर मुख्य मंदिर किन-किन देवताओं के हैं?
उत्तर:
बेणेश्वर टापू पर ब्रह्माजी, विष्णु और शिव के मंदिर मुख्य हैं।
प्रश्न 4.
लेखक मेले में कब तक और क्यों रुका रहा?
उत्तर:
लेखक मेले में पूर्णिमा तक रुका रहा। मेले के अनोखे वातावरण के कारण उसका मन लगा रहा।
प्रश्न 5.
आदिवासी ‘सउडी’ में क्या लाए थे और क्यों?
उत्तर:
आदिवासी सउड़ियों में अपने पूर्वजों की अस्थियाँ लेकर आए थे ताकि वे उन्हें संगम के जल में प्रवाहित कर सकें।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बेणेश्वर धाम का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
बेणेश्वर धाम सोम, जाखम और माही नदियों के संगम पर स्थित एक टापू पर है। यह टापू लगभग 240 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पर ब्रह्मा, विष्णु (श्रीकृष्ण) तथा शिव के तीन प्रधान मंदिर हैं। शिव मंदिर का निर्माण 500 वर्ष पूर्व हुआ था। टापू पर अन्य मंदिर तथा शिलालेख भी हैं। माघ शुक्ल एकादशी से कृष्ण पंचमी तक यहाँ प्रत्येक वर्ष मेला लगता है।
प्रश्न 2.
‘चोपड़ा’ क्या है? पाठ के आधार पर उसके बारे में लिखिए।
उत्तर:
डूंगरपुर के साबला नामक स्थान पर मावजी नामक संत हुए थे। मावजी महाराज को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। मावजी ने बेणेश्वर के शिव मंदिर में रहते हुए पाँच ग्रंथों की रचना की थी। ये पाँच ग्रंथ हैं-सोमसागर, प्रेमसागर, मेघसागर, रतनसागर और अनंतसागर। इन पाँचों ग्रंथों को वागड़ी भाषा में ‘चोपड़ा’ कहा जाता है। इन ग्रंथों में अनेक भविष्यवाणियाँ लिखी हुई हैं। लोगों का विश्वास है कि चोपड की भविष्यवाणियाँ अब तक सही रही हैं।
प्रश्न 3.
मेले में पूर्णिमा के दिन का दृश्य कैसा था? लिखिए।
उत्तर:
पूर्णिमा के दिन मेला स्थल पर भारी भीड़ थी और दिनों की अपेक्षा इस दिन आदिवासी लोग बहुत बड़ी संख्या में आए थे। कुछ आदिवासी अपने साथ मिट्टी से बने छोटे बर्तन लेकर आए थे जिन्हें ‘सउड़ी’ कहा जाता है। इनमें वे अपने पूर्वजों की चिताओं के फूल’ (अस्थियाँ) लेकर आए थे। उन्होंने अस्थियों को संगम के जल में प्रवाहित कर दिया। इसके बाद स्नान करके उन्होंने भोजन बनाया और खाया।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बेणेश्वर धाम को ‘आदिवासियों का कुंभ’ क्यों कहा जाता है? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
इस मेले में सबसे अधिक भागीदारी डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, वागड़ आदि क्षेत्र से आने वाले आदिवासियों की होती है। इस क्षेत्र के साबला में जन्मे संत मावजी की आदिवासियों में बड़ी मान्यता है। बेणेश्वर धाम भी मावजी से जुड़ा हुआ है। माघ शुक्ल एकादशी से आरंभ होने वाले इस मेले का स्वरूप भी कुंभ जैसा ही होता है।
पूर्णिमा के दिन आदिवासी बड़ी संख्या में आते हैं। इस दिन आदिवासी लोकगीतों के सुर पूँजते हैं। अपनी प्राचीन परंपरा के अनुसार आदिवासी संगम स्थल पर अपने पूर्वजों की अस्थियाँ प्रवाहित करते हैं। आदिवासियों की आस्था को देखते हुए इस पर्व और मेले को आदिवासियों का कुंभ कहा जाना उचित ही है।
कठिन शब्दार्थ-
गत वर्ष = पिछले वर्ष। भरता है = चलती है। रोचक = अच्छा लगने वाला, इच्छा जगाने वाला। प्रबल = बहुत अधिक। जाग्रत होना = जागना, उत्पन्न होना। नी = की। आवीग्यू = आ गया। हवै = अभी। रइ ग्यू = रह गया। इयाँ = यहाँ। शिलालेख = पत्थरों पर लिखा गया लेख। भविष्यवाणियाँ = आगे होने वाली घटनाओं की सूचना। गादीपति = गद्दी पर बैठने वाला। त्रिदेव = तीन देवता (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) पर्यटक = घूमने आने वाले लोग। व्यवस्था = प्रबंध। पताकाएँ = झंडियाँ। अर्चना = भगवान की स्तुति। गगनभेदी = आकाश के भी पार जाने वाला। अस्थियाँ = हड्डियाँ जो चिता में से चुनकर लाई जाती हैं। प्रवाहित करना = बहाना।।
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
(1) मावजी इस क्षेत्र के प्रसिद्ध संत हुए हैं। इनका जन्म अठारहवीं शताब्दी में साबला (डूंगरपुर) में हुआ था। लोग इनको कृष्ण का अवतार मानते हैं। मावजी महाराज ने सोमसागर, प्रेमसागर, मेघसागर, रतनसागर एवं अनंतसागर नामक पाँच ग्रंथों की रचना की है। इनको वागड़ी भाषा में ‘चोपड़ा’ कहा जाता है। उनके चोपड़े में अनेक भविष्यवाणियाँ लिखी हुई हैं। ऐसा विश्वास है कि इस चोपड़े की भविष्यवाणियाँ अब तक सही साबित हुई हैं।
संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘बेणेश्वर की यात्रा’ नामक पाठ से लिया गया है। इस अंश में। लेखक ने संत मावजी की रचनाओं का परिचय कराया है।
व्याख्या-
लेखक बता रहा है कि बेणेश्वर और आस-पास के क्षेत्र में संत मावजी की बड़ी मान्यता है। इनका जन्म अठाहरवीं सदी में साबला नामक स्थान पर हुआ था जो डूंगरपुर में स्थित है। संत मावजी को यहाँ लोग कृष्ण का अवतार मानते हैं। वे भी श्रीकृष्ण की भाँति बंशी बजाते और गायें चराते थे। मावजी ने पाँच ग्रंथों की रचना की जिनके नाम क्रमशः सोमसागर, प्रेमसागर, मेघसागर, रतनसागर और अनंतसागर हैं। वागड़ी भाषा में इन ग्रंथों को ‘चोपड़ा कहा जाता है। अपने ग्रंथों में मावजी ने भविष्य में होने वाली अनेक घटनाओं का उल्लेख किया है। लोगों का मानना है कि इनमें से अनेक भविष्यवाणियाँ सच होती देखी गई हैं।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मावजी कौन थे?
उत्तर:
मावजी डूंगरपुर क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संत थे।
प्रश्न 2.
मावजी के बारे में लोगों की क्या मान्यता है?
उत्तर:
लोग मावजी को कृष्ण का अवतार मानते हैं।
प्रश्न 3.
मावजी ने कितने ग्रंथों की रचना की ? नाम भी दीजिए।
उत्तर:
मावजी ने पाँच ग्रंथों की रचना की। उनके नाम हैं-सोमसागर, प्रेमसागर, मेघसागर, रतनसागर तथा अनंत- सागर।
प्रश्न 4.
इन ग्रंथों को वागड़ी भाषा में क्या कहा जाता है और इनके बारे में लोगों का क्या विश्वास है?
उत्तर:
वागड़ी भाषा में इन ग्रंथों को चोपड़ा कहा जाता है। और ऐसा विश्वास चला आ रहा है कि चोपड़े में बहुत-सी भविष्यवाणियाँ की गई हैं जिनमें से अनेक सच सिद्ध हुई हैं।
(2) मावजी के बाद उनकी पुत्रवधू जनवरी गादी पर बैठीं। वह लगभग 80 साल तक गादीपति रही। उन्होंने ही हरि मंदिर (कृष्ण मंदिर) बनवाया था। कहा जाता है कि यह वह स्थान है, जहाँ मावजी महाराज बैठकर अपनी साधना करते, बाँसुरी बजाते और गाएँ चराते थे। बेणेश्वर टापू पर वागड़ क्षेत्र के लोगों ने ब्रह्माजी का मंदिर भी बनवाया है। इस प्रकार यहाँ त्रिदेव (ब्रहमा, विष्णु, महेश) के मंदिर हैं। इनके अलावा यहाँ अन्य देवों के मंदिर भी बने हुए हैं।
संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के पाठ’बेणेश्वर की यात्रा’ से लिया गया है। इस अंश में लेखक ने बेणेश्वर टापू पर बने मंदिरों का परिचय कराया है।
व्याख्या-
मावजी के देहांत के बाद उनकी पुत्रवधू जनक कुँवरी उनकी गद्दी की स्वामिनी रहीं। इन्होंने ही टापू पर हरि मंदिर बनवाया था जिसमें श्रीकृष्ण की मूर्ति विराजमान है। ऐसा माना जाता है कि हरि मंदिर के स्थान पर ही मावजी ईश्वर का ध्यान करते थे और यहीं बैठकर बाँसुरी बजाते थे। इसी स्थान पर वह गायें भी चराया करते थे। वागड़ क्षेत्र के रहने वालों ने टापू पर एक ब्रह्माजी का मंदिर भी बनवाया है। इस प्रकार यहाँ तीनों प्रधान देवताओं-ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मंदिर एक ही स्थान पर बने हुए हैं।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मावजी के बाद उनकी गद्दी पर कौन बैठा?
उत्तर:
मावजी के बाद उनकी पुत्रवधू जनकुँवरी ने उनकी गद्दी संभाली।।
प्रश्न 2.
मावजी की पुत्रवधू ने कौन-सा मंदिर, कहाँ बनवाया?
उत्तर:
मावजी की पुत्रवधू ने बेणेश्वर टापू पर हरि मंदिर बनवाया जो श्रीकृष्ण का मंदिर है।
प्रश्न 3.
ब्रह्माजी का मंदिर किसने बनवाया है?
उत्तर:
ब्रह्माजी का मंदिर वागड़ क्षेत्र के लोगों ने बनवाया
प्रश्न 4.
‘त्रिदेव के मंदिर’ का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रह्मा, विष्णु और शिव को त्रिदेव कहा जाता है। टापू पर इन तीनों के मंदिर हैं।
(3) पूर्णिमा के दिन आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक थी। कई लोगों के हाथों में ‘सउड़ी थी। उसमें उनके परिवार के उन लोगों के ‘फूल’ (अस्थियाँ) थे, जिनका बीते वर्ष में निधन हो गया था। उन्होंने संगम-स्थल पर अपनी युगों पुरानी परंपरा के अनुसार उन अस्थियों को. प्रवाहित किया। उसके बाद उन्होंने स्नान किया, खाना बनाकर खाया और घर लौट गए।
संदर्भ तथा प्रसंग-
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के पाठ ‘बेणेश्वर की यात्रा’ से लिया गया है। इसमें आदिवासियों के द्वारा संगम में अपने मृतक परिवारी लोगों की अस्थियाँ बहाने का वर्णन है।
व्याख्या-
पूर्णिमा के दिन मेला स्थल पर आस-पास के आदिवासी सबसे अधिक संख्या में आए थे। उनमें अनेक लोग अपने साथ, परिवार के उन मृत लोगों की अस्थियाँ लेकर आए थे जिनकी मृत्यु बीते वर्ष हुई थी। उन लोगों ने संगम के जल में उन अस्थियों को बहाया। यह उनके यहाँ की बहुत पुरानी रीति थी। इससे मृतक व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है ऐसा विश्वास रहा होगा। इसके बाद उन लोगों ने स्नान करके भोजन बनाया और खाया। फिर सभी लोग अपने घरों को लौट गए।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मेले में पूर्णिमा के दिन किन लोगों की संख्या सबसे अधिक थी?
उत्तर:
पूर्णिमा के दिन मेले में आदिवासी लोगों की संख्या सबसे अधिक थी।
प्रश्न 2.
पूर्णिमा के दिन अनेक लोग क्या लेकर आए थे?
उत्तर:
अनेक लोग अपने परिवार के उन लोगों के फूल (अस्थियाँ) लेकर आए थे जिनका बीते वर्ष में देहांत हुआ था।
प्रश्न 3.
मृत परिवारीजनों की अस्थियों का लोगों ने क्या किया?
उत्तर:
उन्होंने संगम के जल में उन अस्थियों को प्रवाहित कर दिया।
प्रश्न 4.
अस्थियाँ प्रवाहित करने के बाद लोगों ने क्या किया?
उत्तर:
उन लोगों ने इसके बाद स्नान किया, फिर भोजन बनाकर खाया और घरों की ओर चले गये।
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