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RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 10 अमृत बिन्दवः

May 18, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 10 अमृत बिन्दवः

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 10 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखितशब्दानां शुद्धोच्चारणं कुरुत-(नीचे लिखे शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए-) बन्धुराप्तः, स्वराष्ट्रकम्, ब्रूयात्, नानृतम्, उदार- चरितानान्तु, कुटुम्बकम्, श्रुतेनैव, कङ्कणेन, छेकेन, विपरीतमेतत्, परोपकारार्थमिदम्, त्यक्तलज्जः।
उत्तर:
छात्राः स्वयमेव उच्चारणं कुर्वन्तु। (छत्र स्वयं उच्चारण करें।)

प्रश्न 2.
पाठेप्रदत्तपद्यानां सस्वरं वाचनं कुरुत-(पाठ में दिये गये पद्यों का सस्वर वाचन कीजिए-)
उत्तर:
छात्राः स्वयमेव सस्वरं वाचनं कुर्वन्तु। (छात्र स्वयं पद्यों को सस्वर वाचन करें ।)

प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-(प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए-)
(क) परोपकारेण केषां काय: विभाति? (परोपकार से किनका शरीर शोभा पाता है?)
(ख) अयं निजः परोवेति केषां गणना अस्ति? (यह मेरा अथवा दूसरे का यह गिनती किनकी है?)
(ग) केषां वसुधैव कुटुम्बकम्? (किनकी पृथ्वी ही परिवार है?)
(घ) किं न बूयात्? (क्या नहीं बोलना चाहिए?)
(ङ) केन विना दैवं न सिद्धयति? (किसके बिना भाग्य सफल नहीं होता है?)
उत्तर:
(क) करुणापराणा
(ख) लघुचेतसाम्
(ग) उदारचरितानां
(घ) अप्रियम्
(ङ) पुरुषकारेण

प्रश्न 4.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकवाक्येन लिखत-(प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए-)
(क) हस्तस्य शोभा केन भवति? (हाथ की शोभा किससे होती है?)
(ख) करुणापराणां कायः केन विभाति? (दयालु मनुष्यों का शरीर किससे शोभा पाता है?)
(ग) माणिक्यं मौक्तिकं च कुत्र-कुत्र न वर्तेते? (रत्न वे मोती कहाँ-कहाँ नहीं हैं?) ।
(घ) कुत्र लज्जा न करणीया? (कहाँ लज्जा नहीं करनी | चाहिए?)
(ङ) खलस्य किं किं अन्यस्य पीडनाय भवति? (दुष्ट का क्या-क्या दूसरों को सताने के लिए होता है?)
उत्तर:
(क) हस्तस्य शोभा दानेन भवति। (हाथ की शोभा दान देने से होती है।)
(ख) परोपकारेण करुणापराणां काय: विभाति । (दयालु मनुष्यों का शरीर परोपकार से शोभा पाता है।)
(ग) शैले-शैले माणिक्यं च मौक्तिक गजे-गजे न वर्तेते। (प्रत्येक पर्वत पर मणि और प्रत्येक हाथी पर मोती नहीं है।)
(घ) धनधान्य प्रयोगेषु विद्यायाः सङ्ग्रहे आहारे व्यवहारे च लज्जा न करणीया। (धनधान्य के प्रयोग में, विद्या के संग्रह में आहार और व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए।)
(ङ) खलस्य विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परिपीडनाय भवति। (दुष्ट की विद्या विवाद के लिए, धन घमण्ड के लिए, शक्ति दूसरों को परेशान करने के लिए होती है।)

प्रश्न 2.
पाठेप्रदत्तपद्यानां सस्वरं वाचनं कुरुत–(पाठ में दिये गये पद्यों का सस्वर वाचन कीजिए-)
उत्तर:
छात्राः स्वयमेव सस्वरं वाचनं कुर्वन्तु। (छात्र स्वयं | पद्यों को सस्वर वाचन करें ।)

प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-(प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए-)
(क) परोपकारेण केषां काय: विभाति? (परोपकार से किनका शरीर शोभा पाता है?)
(ख) अयं निजः परोवेति केषां गणना अस्ति? (यह मेरा अथवा दूसरे का यह गिनती किनकी है?)
(ग) केषां वसुधैव कुटुम्बकम्? (किनकी पृथ्वी ही परिवार है?)
(घ) किं न बूयात्? (क्या नहीं बोलना चाहिए?)
(ङ) केन विना दैवं न सिद्धयति? (किसके बिना भाग्य | सफल नहीं होता है?)
उत्तर:
(क) करुणापराणा
(ख) लघुचेतसाम्
(ग) उदारचरितानां
(घ) अप्रियम्
(ङ) पुरुषकारेण

प्रश्न 4.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकवाक्येन लिखत-(प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए-)
(क) हस्तस्य शोभा केन भवति? (हाथ की शोभा किससे होती है?)
(ख) करुणापराणां कायः केन विभाति? (दयालु मनुष्यों का शरीर किससे शोभा पाता है?)
(ग) माणिक्यं मौक्तिकं च कुत्र-कुत्र न वर्तेते? (रत्न वे मोती कहाँ-कहाँ नहीं हैं?)
(घ) कुत्र लज्जा न करणीया? (कहाँ लज्जा नहीं करनी चाहिए?) ।
(ङ) खलस्य किं किं अन्यस्य पीडनाय भवति? (दुष्ट का क्या-क्या दूसरों को सताने के लिए होता है?)
उत्तर:
(क) हस्तस्य शोभा दानेन भवति। (हाथ की शोभा दान देने से होती है।)
(ख) परोपकारेण करुणापराणां काय: विभाति । (दयालु मनुष्यों का शरीर परोपकार से शोभा पाता है।)
(ग) शैले-शैले माणिक्यं च मौक्तिक गजे-गजे न वर्तेते। (प्रत्येक पर्वत पर मणि और प्रत्येक हाथी पर मोती नहीं है।)
(घ) धनधान्य प्रयोगेषु विद्यायाः सङ्ग्रहे आहारे व्यवहारे च लज्जा न करणीया। (धनधान्य के प्रयोग में, विद्या के संग्रह में आहार और व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए।)
(ङ) खलस्य विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परिपीडनाय भवति। (दुष्ट की विद्या विवाद के लिए, धन घमण्ड के लिए, शक्ति दूसरों को परेशान करने के लिए होती है।)

प्रश्न 5.
श्लोकांशैः रिक्तस्थानानि पूरयत-(श्लोक अंशों द्वारा | खाली स्थानों को पूरा कीजिए-)
(क) प्राणा: स्वामी …………………. सुखम् ।
(ख) …………………. नानृतं ब्रूयात् ।
(ग) अयं …………………. परोवेति ।
(घ) साधवो नैव …………………. वने वने ।
(ङ) परोपकाराय …….. शरीरम् ।
उत्तर:
(क) धनम्
(ख) प्रियं च
(ग) निजः
(घ) सर्वत्र चन्दनं न
(ङ) इदं

प्रश्न 6.
रेखाङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) न बूयात् सत्यमप्रियम्।
(ख) पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्धयति।
(ग) साधवो न हि सर्वत्र।
(घ) एषः धर्मः सनातनः।
(ङ) परोपकाराय दुहन्ति गावः।
उत्तर:
(क).कीदृशं न ब्रूयात् ?
(ख) केन विना दैवं न | सिद्धयति ?
(ग) कुत्रः न हि सर्वत्र?
(घ) कः धर्मः सनातनः?
(ङ) कस्मै दुहन्ति गावः।

प्रश्न 7.
निम्नलिखितपदानां सन्धिविच्छेदं कुरुत (निम्नलिखित पदों का सन्धि विच्छेद कीजिए-)
उत्तर;
(क) बन्धुराप्तः = बन्धुः + आप्तः।
(ख) नानृतम् = न + अनृतम्।
(ग) वसुधैव = वसुधा + एव।
(घ) जलमन्नम्। = जलम् + अन्नम्।
(ङ) नैव = ने + एव।

प्रश्न 8.
संस्कृतेन समयं लिखत-(संस्कृत में समय लिखिए-)
यथा-6:00 = षड्वादनम्
उत्तर:
(1) 9:30 = सार्धनववादनम्।
(2) 8:00 = अष्टवादनम्।
(3) 10:45 = पादोन एकादशवादनम्
(4) 11:30 = साधैकादशवादनम्।
(5) 12:15 = सपादद्वादश वादनम् ।

प्रश्न 9.
कोष्ठकात् समयं चित्वा अक्षरैः लिखित्वा रिक्तस्थाने
पूरयत-(कोष्ठक से समय चुनकर अक्षरों में लिखकर खाली स्थान पूरा कीजिए-)
(क) बालकः ………….वादने विद्यालयं गच्छति । (8.00)
(ख) माता …………. अल्पाहारं पचति। (7.00)
(ग) नरेन्द्रः सायं ………….दूरदर्शने वार्ता शृणोति । (9.30)
(घ) रेलयानं प्रातः …………. जोधपुरं गच्छति। (6.45)
(ङ) श्यामः…………. अध्ययनं करोति । (10.15)
उत्तर:
(क) अष्टवादने
(ख) सप्तवादने
(ग) सार्धनववादने
(घ) पादोनसप्तवादने
(ङ) संपाददशवादने।

योग्यता-विस्तारः

हिन्दी अर्थ-

(1) प्रिय वचन बोलने से सभी प्राणी सन्तुष्ट हो जाते हैं, इसलिए प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। बोलने में क्या गरीबी है?
(2) अपमानयुक्त जीवन जीने से प्राण त्याग देना अच्छा होता है। प्राण छोड़ने में क्षणभर का दुःख है, परन्तु मान भंग होने पर दिन-प्रतिदिन दु:ख रहता है।
(3) नीच प्रवृत्ति वाले मनुष्य धन चाहते हैं, मध्यम श्रेणी के मनुष्य धन और सम्मान चाहते हैं। उत्तम श्रेणी के मनुष्य सम्मान चाहते हैं। मानो उनके लिए सम्मान ही धन है।

2. संस्कृत में समय जानिए-
उत्तर:
5.00 पञ्चवादनम्
5.15 सपाद पञ्चवादनम्
3.30 सार्धत्रिवादन
8.45 पादोन्नववादनम्
5.05 पञ्चाधिक पञ्चवादनम्
6.10 दशाधिक गड्वादनम्
1.55 पञ्चोनद्विवादनम्
2.50 दशोनत्रिवादनम्।

3. समय ज्ञान की भाषा क्रीडा को जानिए-
हिन्दी अर्थ-
अध्यापक को दो छात्रों के बीच में खेल कराना चाहिए। एक छात्र को प्रश्न पूछना चाहिए-तुम कब उठते हो ? द्वितीय छात्र को उत्तर बोलना चाहिए-मैं पाँच बजे उठता हूँ। इस प्रकार अन्य प्रश्नों को रचकर छात्रों के बीच आपस में अभ्यास कराना चाहिए। (अध्यापक संस्कृत में ही बोलें, छात्र संस्कृत में ही उत्तर दें।)

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 10 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न1.
सज्जनानां काय: केन विभाति? |
(क) धनेन ।
(ख) रूपेण
(ग) कुण्डलेन
(घ) परोपकारेण ।

2. सर्वदा कीदृशं ब्रूयात्?
(क) असत्यम् ।
(ख) अप्रियम्
(ग) सत्यम् ।
(घ) प्रियंसत्यम्।
उत्तर-
1. (घ)
2. (घ)।

RBSE Class 7 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 10 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न(क)
बालकः कति वादने विद्यालयं गच्छति?
उत्तर:
बालकः अष्टवादने विद्यालयं गच्छति।

प्रश्न(ख)
केन विना सफलता न भवति?
उत्तर:
परिश्रमेण विना सफलता न भवति ।

प्रश्न(ग)
मह्यम् सर्वस्वं किम् अस्ति?
उत्तर:
मह्यम् राष्ट्रम् सर्वस्वम् अस्ति।

प्रश्न(घ)
पाणिः केन शोभितः अस्ति?
उत्तर:
दानेन पाणिः विभाति।

पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ में महापुरुषों के अनुभव वचनों को संकलित किया गया है। इनका चिन्तन, मनन व पालन जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए अवश्य करना चाहिए।

मूल अंश, अन्वय, शब्दार्थ, अनुवाद एवं भावार्थ

(1) राष्ट्रं मम पिता माता प्राणा: स्वामी धनं सुखम्।
बन्धुराप्तः सखा भ्राता सर्वस्वं में स्वराष्ट्रकम्।।

अन्वय-मम पिता, माता, प्राणा:, स्वामी, धनं, सुखम् बन्धुः, मित्रं, भ्राता राष्ट्रं मे सर्वस्वं स्वराष्ट्रकम्।

शब्दार्था:-मम = मेरा। प्राणाः = प्राण। सखा = मित्र। सर्वस्वं – सब कुछ। मे = मेरा। स्वराष्ट्रकम् = अपना राष्ट्र। भ्राता में भाई। सुखम् = सुख। भावार्थ:-मम पिता, माता, प्राणा:, स्वामी, धनं सुखं, बन्धुः, मित्रं, भ्राता सर्वे मम राष्ट्राय एव सन्ति। अहं राष्ट्राद् अधिक किमपि न गणयामि।।

हिन्दी अनुवाद-मेरे पिता, माता, प्राण, स्वामी, धन, सुख, बन्धु, मित्र, भाई सब राष्ट्र के लिये हैं। मेरे लिए राष्ट्र ही सब कुछ है। भावार्थ-इस श्लोक में राष्ट्र को सर्वोपरि माना गया है। राष्ट्र के लिए माता, पिता, भाई, मित्र, धन, सुख, प्राण अर्थात् सब कुछ राष्ट्र के लिए है। राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं

(2) सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात्, एष: धर्म: सनातनः।।

अन्वयः-प्रियं सत्यं ब्रूयात्, सत्यम् अप्रियम् न ब्रूयात्।
प्रियं अनृतं च न ब्रूयात्। एषः सनातन धर्म:।।

शब्दार्था:-ब्रूयात् = बोलना चाहिए, प्रियं = प्रिय लगने वाला, अच्छा लगने वाला (मधुर), अप्रियम् = प्रिय न हो, कटु, अच्छा न लगने वाला, अनृतं = झूठ, एषः = यह, सनातनः = प्राचीन।। भावार्थ:-वयं सर्वदा सत्यं प्रियं च वदाम, सत्यं किन्तु अप्रियं न वदाम्। प्रियं किन्तु असत्यम् अपि न वदाम्। अयमेव अस्माकं सनातन धर्मः।।

हिन्दी अनुवाद-सत्य बोलना चाहिए, प्रिय (अच्छ) लगने वाला सच बोलना चाहिए लेकिन अप्रिय सत्य को नहीं बोलना चाहिए और प्रिय झूठ भी नहीं बोलना चाहिए। यही सनातन धर्म है। भावार्थ-इस श्लोक में सत्य बोलने पर विशेष बल दिया। दिया है लेकिन साथ ही अप्रिय सत्य और प्रिय न बोलने की हिदायत दी गयी है।

(3) अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।

अन्वयः- अयं निजः वा परो इति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधा एव कुटुम्बकम्।

शब्दार्था:-अयं = यह, निजः = अपना, परः॥ पराया। गणना = गिनती, लघुचेतसाम् = छटा चिन्तन करने वालों का, वसुधा = पृथ्वी, कुटुम्बकम् = परिवार।। भावार्थ:-एतद् मम एतत् तव इति क्षुद्रभावना। विचारवन्त: जना: तु समस्तपृथिवीम् एव स्वकुटुम्बं चिन्तयन्ति।

हिन्दी अनुवाद-यह मेरा है अथवा पराया है अर्थात् दूसरे का है, यह भावना छोटा चिन्तन करने वालों की होती है। उदार हृदय वालों के लिए तो सम्पूर्ण पृथिवी ही परिवार है। भावार्थ-स्वार्थ भावना केवल अपने लिए ही सब कुछ चाहती हैं। इस प्रकार की भावना छोटा चिन्तन करने वालों की होती है जो केवल अपने परिवार तक सीमित हैं। लेकिन उदार हृदय वाले व्यक्ति सम्पूर्ण पृथ्वी को ही अपना परिवार
मानते हैं।

(4) श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन, दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन।
विभाति काय: करुणापराणां परोपकारेण न चन्दनेन।।

अन्वयः– श्रौत्रं श्रुतेन एव न कुण्डलेन, पाणि: दानेन न तु कङ्कणेन। करुणापराणां काय: परोपकारेण विभाति न चन्दनेन।

शब्दार्था:-श्रोत्रम् = कान, श्रुतेन = सुनने से, पाणिः = हाथ, कङ्कणेन = कंगन से, विभाति = सुशोभित होता है, कायः = शरीर, करुणापराणां = दयालु मनुष्यों का, परोपकारेण म दूसरे की भलाई करने से। भावार्थ:-कर्णस्य शोभा वेदश्रवणेन भवति कुण्डलेन न। हस्तस्य शोभा दानेन भवति कङ्कणेन न, करुणापराणां शरीरस्य शोभा परोपकारेण भवति चन्दनेन न।।

हिन्दी अनुवाद-कान वेदशास्त्र सुनने से सुशोभित होते हैं। कुण्डल पहन लेने से नहीं। हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं कंगन पहन लेने से नहीं। दयालु मनुष्यों का शरीर दूसरे की भलाई करने से सुशोभित होता है चन्दन लगाने से सुशोभित नहीं होता है। भावार्थ-शरीर की सजावट करने से शोभा नहीं बढ़ती है। अपितु शरीर के द्वारा किसी दूसरे के लिए भलाई करने में है। शरीर पर गहने धारण करने से कुछ नहीं होता है। वेदशास्त्र के धर्मानुसार आचरण करने से शरीर अच्छा लगता है।

(5) यथा ह्येकैन चक्रेण न रथस्य गतिविद्।
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्धयति।।

अन्वयः-यथा एकेन चक्रेण रथस्य गतिः न भवेद्। एवं पुरुष कारेण विना दैवं न सिद्धयति।।

शब्दार्थाः–एकेन = एक से, चक्रेण = पहिये से, रथस्य = रथ की, सिद्धयति = सिद्ध होता है, यथा = जिस प्रकार, हि = निश्चित रूप से, गतिः न भवति = गति नहीं होती है, एवं = उसी प्रकार, पुरुषकारेण = परिश्रम से, विना = बिना, दैवं = भाग्य, न = नहीं। भावार्थ:-एकेन चक्रेण रथस्य गतिः न भवति तत्र चक्रद्वयम् आवश्यकम्। तथैव कार्यसिद्धये पुरुषार्थ: भाग्यम् च द्वयमपि आवश्यक केवलं भाग्यं न पर्याप्तं न च पुरुषार्थः।।

हिन्दी अनुवाद-एक पहिए से रथ को गति नहीं होती है। अर्थात् रथ नहीं चलता है वैसे ही पुरुषार्थ और भाग्य दोनों ही आवश्यक हैं। केवल बिना पुरुषार्थ के भाग्य से और बिना भाग्य के पुरुषार्थ से सफलता नहीं मिलती है। भावार्थ-भाग्य के भरोसे बैठे रहना परिश्रम न करना अकर्मण्यता है। पुरुषार्थ ही भाग्य का निर्माता है। हमारे सम्पूर्ण पुरुषार्थ का फल ही भाग्य बनता है। इसलिए भाग्य के साथ पुरुषार्थ भी करना चाहिए। तभी सफलती सम्भव है।

(6) विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परे परिपीडनाय।
खलस्यसाधोर्विपरीतमेतत्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।

अन्वयः-खलस्य विद्या विवादाय, धनं मदाय, शक्ति: परेषा परिपीड़नाय( भवति) साधोविपरीतम् एतत् ज्ञानाय, दानाय च रक्षणाय (भवति)।

शब्दार्था:-खलस्य = दुष्ट की, विवादाय = झगड़े के लिए, मदाय = घमंड के लिए, परेषां = दूसरों को, परिपीडनाय = सताने के लिए, ज्ञानाय = ज्ञान के लिए, दानाय = दान के लिए, रक्षणाय = रक्षा के लिए। भावार्थ:-दुष्टः विद्यायाः प्रयोगं विवादाय, धनस्य प्रयोगम् अहङ्काराय, शक्तेः प्रयोगं च अन्यपीडनाय करोति किन्तु सज्जनः तुविद्यायाः प्रयोगं ज्ञानाय, धनस्य दानाय, शक्तेश्च रक्षणाय करोति।

हिन्दी अनुवाद-दुष्ट की विद्या विवाद के लिए, धन घमण्ड के लिए और शक्ति दूसरों को सताने के लिए होती है। परन्तु सज्जन की विद्या ज्ञान प्राप्त करने अथवा जानने के लिए और धन दान देने के लिए तथा शक्ति दूसरों की रक्षा करने के लिए होती है। भावार्थ-इस श्लोक में सज्जन और दुर्जन की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला गया है। वस्तु दोनों पर एक जैसी हैं लेकिन सज्जन उसका सदुपयोग करता है दुर्जन उसका दुरुपयोग करता है।

(7) परोपकाराय फलन्ति वृक्षा:, परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गाव: परोपकारार्थमिदं शरीरम्।।

अन्वयः-वृक्षाः परोपकाराय फलन्ति, नद्यः परोपकाराय वहन्ति, गाव: परोपकाराय दुहन्ति, इदम् शरीरम् परोपकारार्थम्।

शब्दार्थाः–परोपकाराय = दूसरे की भलाई के लिए, फलन्ति = फलते हैं, वृक्षाः = वृक्ष, वहन्ति = बहती हैं, नद्यः = नदियाँ, दुहन्ति = दूध देती हैं, गावः = गायें, परोपकारार्थम् = परोपकार के लिए, इदं = यह, शरीरम् = शरीर।। भावार्थ:-वृक्षाः फलानि अन्येभ्यः एव यच्छन्ति, नद्यः स्वजलं, गाव: च स्वदुग्धम् अन्येभ्य: एव ददति, स्वयम् उपयोगं न कुर्वन्ति। एतेषाम् एषा परोपकारपरम्परा।।

हिन्दी अनुवाद-वृक्ष दूसरों की भलाई के लिए फल देते हैं, नदियाँ दूसरों की भलाई के लिए बहती हैं, गाय भी दूसरों के लिए दूध देती हैं, स्वयं उपयोग नहीं करती हैं। (इसी प्रकार) यह शरीर दूसरों की भलाई के लिए है। भावार्थ–इम संसार में नदी, वृक्ष आदि सभी दूसरों की भलाई करते हैं, उस परमात्मा को देखिए हमारे लिए असंख्य वस्तुएँ नि:शुल्क दे रहा है। इसलिए हमको भी दूसरों के लिए भलाई के कार्य करने चाहिए।

(8) रूपयौवनसम्पन्ना: विशालकुलसम्भवाः।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः।।

अन्वयः- रूपयौवन सम्पन्ना: विशालकुलसम्भवाः विद्याहीना न शोभन्ते किंशुकाः निर्गन्धा इव।

शब्दार्था:-रूपयौवनसम्पन्नाः = रूप और यौवन से युक्त, विशालकुलसम्भवाः = विशाल कुल में उत्पन्न हुआ, विद्याहीना = बिना विद्या के, शोभन्ते == सुशोभित होते हैं, निर्गन्धा = बिना खुशबू, किंशुक = टेसू, पलास, ढाक। भावार्थ:-जना: रूपवन्तः सन्ति, युवावस्थावन्तः सन्ति, प्रसिद्धकुले च उत्पन्नाः अपि सन्ति यदि ते विद्याहीना: सन्ति तर्हि ते शोभिताः न भवन्ति। यथा किंशुकाः गन्धरहिताः भवन्ति अर्थात् गुणरहिताः भवन्ति अत; तान् न कोऽपि इच्छति।

हिन्दी अनुवाद-मनुष्य सुन्दर है, जवान है अर्थात जवानी अवस्था में है, अच्छे कुल में पैदा हुआ है, यदि विद्या नहीं पढ़ा है, अर्थात् विद्याहीन हैं तो सुशोभित नहीं होता हैं। जैसे टेसू का फल बिना खुशबू के शोभा नहीं पाता है। भावार्थ-इसमें विद्या का महत्व बताया है। विद्या में सब गुण मौजूद हैं, विद्या सब गुणों की खान है, बिना विद्या के मनुष्य पशु के समान हैं। रूप, यौवन तथा विशाल कुल सब सम्भव हैं लेकिन विद्याविहीन उसी प्रकार शोभा नहीं पाता जैसे टेसू का गन्धरहित फूल शोभा नहीं पाता।

(9) शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो नैव सर्वत्र चन्दनं न वने वने।।

अन्वयः-शैले-शैले न माणिक्यं, गजे-गजे न मौक्तिकम्, वने-वने न चन्दनं सर्वत्र साधवो न एव।

शब्दार्था:-शैले = पर्वत पर, माणिक्यं = गुलाबी या लाल रंग का रत्न, गजे = हाथी पर, सर्वत्र = सब जगह, वने = वन में (जंगल में), नैव = नहीं ही, साधवः = सज्जन, मौक्तिकं = मोती। भावार्थ:-प्रत्येकस्मिन् पर्वते माणिक्यम् इत्याख्यं रत्नं न भवति। प्रत्येकस्मिन् गजे मौक्तिकम् इत्याख्यं रत्नं न मिलति। प्रत्येक वने चन्दनं न मिलति। तथैव सद्पुरुषाः सर्वत्र न मिलन्ति।

हिन्दी अनुवाद-प्रत्येक पर्वत पर गुलाबी या लाल रत्न नहीं होते हैं। प्रत्येक हाथी पर मोती नहीं मिलता है। प्रत्येक जंगल मैं चन्दन नहीं होता है। वैसे ही सज्जन सब जगह नहीं मिलते हैं। भावार्थ-प्रत्येक वस्तु हर स्थान पर नहीं पायी जाती है। जैसे प्रत्येक पर्वत पर रत्न, प्रत्येक हाथी में मोती तथा प्रत्येक वन में चन्दन नहीं मिलता। उसी प्रकार अच्छे मनुष्य भी हर स्थान पर नहीं मिलते हैं।

(10) धनधान्यप्रयोगेषु विद्यायाः सङ्ग्रहे तथा।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेद्।।

अन्वयः- धनधान्य प्रयोगेषु तथा विद्यायाः सङ्ग्रहे, आहारे च व्यवहारे त्यक्त लज्ज: सुखी भवेद्।

शब्दार्था:-धान्य = अन्न, प्रयोगेषु = प्रयोगों में, सङ्ग्रहे = इकट्ठा करने में, आहारे = भोजन में, व्यवहारे = परस्पर व्यवहार में, त्यक्तः = छोड़ देना, लज्जाः = संकोच, भवेद् = होना चाहिए। भावार्थ:-धनस्य अन्नस्य विद्याया: च सङ्ग्रहे, भोजने परस्पर व्यवहारे च लज्जा न करणीया। य: एतेषु लज्जां करोति सः दुःखी भवति।

हिन्दी अनुवाद-धन, अन्न और विद्या के सङ्ग्रह में, भोजन में, आपसी व्यवहार में संकोच (शर्म) को छोड़ने वाला व्यक्ति सुखी होता है। भावार्थ-व्यक्ति को अन्न तथा धन के लेन-देन में, विद्या प्राप्त करने तथा संग्रह में, भोजन करने में और व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए। जो लज्जा करता है वह दुखी रहता है। इसलिए हम सबको उपरोक्त कार्यों में लज्जा छेड़ देनी चाहिए।

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