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RBSE Solutions for Class 7 Social Science Chapter 16 हर्षकालीन व बाद का भारत

March 5, 2019 by Fazal Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 7 Social Science Chapter 16 हर्षकालीन व बाद का भारत are part of RBSE Solutions for Class 7 Social Science. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 7 Social Science Chapter 16 हर्षकालीन व बाद का भारत.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 7
Subject Social Science
Chapter Chapter 16
Chapter Name हर्षकालीन व बाद का भारत
Number of Questions Solved 37
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 7 Social Science Chapter 16 हर्षकालीन व बाद का भारत

पातुगत प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत के अन्य प्राचीन विश्वविद्यालयों के बारे में जानकारी प्राप्त करें। (पृष्ठ 126)
उत्तर
भारत के प्रमुख प्राचीन विश्वविद्यालय

  1. नालन्दा विश्वविद्यालय- यह विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार में है, इसकी स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त ने की। प्राचीनकाल में कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस, तुझी आदि से विद्यार्थी यहाँ शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
  2. तक्षशिला विश्वविद्यालय– वर्तमान पाकिस्तान में स्थित इस विश्वविद्यालय की प्रसिद्धि सातर्वी सदी ई. पु. में ही हो गई थी। चाणक्य व पाणिनी ने यहाँ से शिक्षा ग्रहण की। प्राचीनकाल में यहाँ लगभग 10,500 विद्यार्थी अध्ययन करते थे। इसे 1980 ई. में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था।
  3. विक्रमशिला विश्वविद्यालय- बिहार के भागलपुर में स्थित इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के शासक धर्मपाल ने की थी। यह विश्वविद्यालय तंत्र शास्त्र की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।
  4. बल्लभी विश्वविद्यालय- यह गुजरात में स्थित है। यह गुनामिति और स्थिरमिति नामक विद्याओं का केन्द्र था।
  5. दांतपुरी विश्वविद्यालय- पाल शासकों ने इसकी स्थापना की। इसमें 12,000 विद्यार्थी अध्ययनरत थे।
  6. सौमपुर विश्वविद्यालय- पाल शासकों द्वारा स्थापित यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म की शिक्षा देने वाला एक प्रमुख केन्द्र था।
  7. पुष्पगिरि विश्वविद्यालय- यह उड़ीसा में स्थित था। इसको स्थापना कलिंग राजाओं ने की थी।

प्रश्न 2.
दक्षिण भारत के कुछ और राजवंशों की जानकारी प्राप्त करें एवं वह किन क्षेत्रों में फैला था जानकारी करें। (पृष्ठ 128)
उत्तर
दक्षिण भारत में आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक शासन करने वाले प्रमुख राजवंश राष्ट्रकुट, चालुक्य, पल्लव तथा चाल थे। इनके अतिरिक्त भी अन्य राजवंशों ने विभिन्न स्थानों पर अपनी सत्ता स्थापित की जैसे
चेर वंश
चेर वंश का शासन मालाबार, कोयंबटूर और सलेम के प्रदेशों पर था। इस राजवंश का प्रथम शासक उदयजेराले (132 ई.) था। चेर शासकों की राजधानी बेगि थी। इनका राजचिह्न धनुष था। पांड्य राजवंश-इस राजवंश ने 560 ई. से 1300 ई. तक तमिल क्षेत्र के दक्षिण पूर्वी छोर पर शासन किया। इस वंश का प्रथम शासक नेडियोन था। इनकी राजधानी मदुरई थी।

कदम्ब वंश
यह दक्षिण भारत का ब्राह्मण राजवंश था। इस राजवंश का संस्थापक मयूर शर्मन था। इसने दक्षिण में कोंकण क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया।

प्रश्न 3.
पाठ में आए मंदिरों व मूर्तियों के चित्रों के विषय में प्राप्त जानकारी को लिखिए। (पृष्ठ125)
उत्तर

  1. वातापी का विरूपाक्ष मंदिर- इस मंदिर का निर्माण चालुक्य शासकों ने कराया। यह मंदिर विश्व विरासत स्थल की सूची में हैं।
  2. महाबलीपुरम् का मदर-आठवीं शती में निर्मित यह मंदिर कांचीपुरम् में स्थित है। यह द्रविड़ वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमुना है।
  3. एलोरा का कैलाश मंदिर- यह मंदिर वेगकार गुफा को काटकर बनाया गया है, जो 83 मी. लम्बा और 46 मीटर चौड़ा एवं 32 मीटर गहरा है।
  4. परदेश्वर मंदिर- यह मंदिर तंजौर में स्थित है। इसके शिखर पर 65 मीटर विमान पिरामिड के आकार में बना है। इस मंदिर में छह मूर्तियाँ प्रवेश द्वार की रक्षा में खड़ी हैं।
  5. लिंगराज मंदिर- यह मंदिर भुवनेश्वर में स्थित हैं। इसका निर्माण गंग वंश के शासकों ने कराया था।
  6. कोणार्क का सूर्य मंदिर- इस मंदिर का निर्माण नरसिंह देव प्रथम ने कराया था।
  7. दिलवाड़ा का जैन मदिर- इस मंदिर का निर्माण वास्तुपाल तेजपाल ने कराया। यह राजस्थान के आबू पर्वत पर सफेद संगमरमर द्वारा निर्मित है।
  8. नटराज की मूर्ति- चौल शासकों द्वारा निर्माण करवाय |गयी कांस्य मूर्तियों में नटराज की मूर्ति सर्वोपरि है। प्रस्तर मूर्तियों का मानवीकरण चोल मूर्तिकारों की दक्षिण भारतीय कला को महान देन है।

प्रश्न 4.
उत्तर भारत के अन्य प्रमुख राजवंशों की जानकारी प्राप्त करें तथा उनके राजाओं के चित्रों का संकलन करें। (पृष्ठ 129)
उत्तर
भारत के अन्य प्रमुख राजवंश

  1. पंजाब का शाही वंश-शाही वंश ने भारत के पश्चिमी भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। इस वंश के प्रमुख शासक जयपाल तथा आनन्दपाल थे।
  2. त्रिपुरि का कलचुरि यश-10 वीं शती में कोक्कल की अध्यक्षता में त्रिपुरी में कलचुरि वंश की स्थापना हुई। इसके प्रमुख शासक कौक्कल, युवराज प्रथम, गांगेय तथा कर्ण थे।
  3. मालथा का परमार वंश-इस वंश का संस्थापक उपेन्द्र अथवा कृष्णराज था। अन्य शासक औं हर्ष, मुंज, भौज जयसिंह, दयादित्य आदि थे।
  4. बुन्देलखण्ड का चंदेल वंश-10वीं शती में बुन्देलखण्ड पर शासन करने वाले चंदेल वंश का संस्थापक यशोवर्मन था। बाद में उसका पुत्र धंग गद्दी पर बैठा जिसने खजुराहो मंदिर का निर्माण कराया।
  5. गुजरात का चालुक्य वंश-मूलराज प्रथम ने चालुक्य | वंश की स्थापना की। भीम प्रथम, सिद्धराज, कुमारपाल, अजयपाल आदि शासकों ने इस वंश को आगे बढ़ाया।
  6. बंगाल का पाल वंश-8वीं शताब्दी के अंत में गोपाल ने बंगाल क्षेत्र में पाल वंश को नव रखी। उसके उत्तराधिकारी धर्मपाल ने इस साम्राज्य का विस्तार किया।
  7. सेन वंश-पालवंश के पश्चात बंगालक्षेत्र पर सेन वंश का शासन रहा। इसकी स्थापना सामन्त सेन ने की। इसके प्रमुख शासक विजय सेन, बल्लाल सेन, लक्ष्मण सेन आदि संकेत-चित्रों का संकलन विद्यार्थी अध्यापक महोदय की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 5.
दक्षिण के मंदिरों के चित्रों का संकलन करो व इनकी अपने आसपास के मंदिरों से तुलना करो। (पृष्ठ 131)
उत्तर
दक्षिण भारत के मंदिरों की स्थापत्य कला हमारे यहा(उत्तर भारत) के मंदिरों की स्थापत्य कला से भिन्न है। उत्तर भारतीय मंदिरों में मूर्ति के प्रकोष्ठ का ऊपरी भाग गुम्बज के आकार का होता है जिसके सामने खुला प्रांगण होता है। मूर्ति प्रकोष्ठ के चारों ओर परिक्रमा के लिए मार्ग एवं ऊपर शिखर होता है, इसके विपरीत दक्षिण भारतीय मंदिरों के प्रांगण में अर्द्ध वर्तुलाकार विशाल मोरियाँ होती हैं जिन पर ऊँचे कोणाकार शिखर न होकर चपटे गुम्बज होते हैं। संकेत-चित्रों का संकलन विद्यार्थी अध्यापक महोदय की सहायता से स्वयं करें ।

प्रश्न 6.
सम्राट हर्ष के प्रभाव क्षेत्र के बारे में लिखें।
उत्तर
सम्राट हर्ष का प्रभाव तत्कालीन जालंधर, थानेश्वर, श्रावस्ती, ग्वालियर, उज्जयिनी आदि क्षेत्रों तक व्याप्त था।

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर लिखें
(i) जयदेव की कृति का नाम है
(अ) कादम्बरी
(ब) रत्नावली
(स) गीत गोविन्दम्
(द) हर्षचरित
उत्तर
(स) गीत गोविन्दम्

(ii) दक्षिण भारत का राजवंश है
(अ) प्रतिहार
(ब) चालुक्य
(स) गुहिल
(द) चौहान।
उत्तर
(ब) चालुक्य

प्रश्न 2.
हर्ष ने अपनी राजधानी किसे बनाया?
उत्तर
कन्नौज को

प्रश्न 3.
गंगेकौण्ड की उपाधि किसने धारण की?
उत्तर
चोल वंश के शासक राजेन्द्र प्रथम ने।

प्रश्न 4.
हर्ष की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
(i) रत्नावली,
(ii) प्रियदर्शिका
(iii) नागानन्द।

प्रश्न 5.
बाणभट्ट की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखो?
उत्तर
(i) हर्षचरित
(ii) कादम्बरी

प्रश्न 6.
हर्ष के प्रभाव क्षेत्र पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर
606 ई. में थानेश्वर का शासक बनने के बाद हर्ष ने व्यापक सैनिक अभियान चलाया। उसके अभियानों में बंगाल, पंजाय, चालुक्य और वल्लभी से हुए युद्ध सम्मिलित थे। हर्ष सिन्धु, नेपाल, उड़ीसा आदि क्षेत्रों तक अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल रहा। अन्ततोगत्वा उसने सम्पूर्ण उत्तर भारत को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।

प्रश्न 7.
हर्ष लेखक तथा विद्वानों का आश्रयदाता घा, स्पष्ट करो।
उत्तर
ऐतिहासिक तथ्यों एवं साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है। कि हर्ष लेखक एवं विद्वानों का आश्रयदाता था। हर्ष ने बाणभट्ट, जयदेव और हरिदत्त जैसे लेखकों एवं विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। जयदेव की गौत गोविन्दम् एवं बाणभट्ट को हर्षचरित एवं कादम्बरी नामक रचनाएँ भारतीय साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं।

प्रश्न 8.
नालन्दा विश्वविद्यालय पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर
नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना पाँचव शती में हुई। इस विश्वविद्यालय के अधीन लगभग आठ कॉलेज थे। तीन बड़े पुस्तकालय थे। इन पुस्तकालयों को क्रमशः रत्नसागर, रत्नदाही और रत्नरंजक कहा जाता था। इस विश्वविद्यालय में 10000 से भी अधिक विद्यार्थी पडते थे। तथा 1500 से अधिक अध्यापक पाते थे। यहाँ पर विदेशों से भी विद्याथीं पड़ने आते थे। इस विश्वविद्यालय में अध्ययन के प्रमुख विषय वेद, तर्कविद्या, व्याकरण, चिकित्सा विज्ञान, गणित आदि थे।

प्रश्न 9.
दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश कौन-कौन से थे? वर्णन करो।
उत्तर
दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश-दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश निम्नलिखित थे
RBSE Solutions for Class 7 Social Science Chapter 16 हर्षकालीन व बाद का भारत 1
(1) राष्ट्रकूट वंश- दक्षिण भारत के राज्यों में इस वंश के द्वारा शासित राज्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण था। इस वंश के शासकों ने नर्मदा नदी के दक्षिण में वर्तमान महाराष्ट्र प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया। इस वंश के पराक्रमी शासक कृष्ण तृतीय, ध्रुव, गोविन्द, अमोघवर्ष आदि थे।

(2) चालुक्य वंश- इस वंश के शासकों का राज्य नर्मदा नदी के दक्षिण से कृष्णा नदी तक फैला हुआ था। इस वंश का पराक्रमी शासक पुलकेशियन द्वितीय था। इसी ने सम्राट हर्षवर्धन को पराजित किया था। विक्रमादित्य द्वितीय भी इसी वंश का एक अन्य प्रतापी शासक था।

(3) पल्लव वंश- पल्लव वंश दक्षिण भारत का पुराना राजवंश था। इस वंश के शासक नरसिंह वर्मन ने चालुक्यों की राजधानी पर अधिकार कर लिया था। पल्लयों एवं चालुक्यों में लगातार संघर्ष की स्थिति विद्यमान रहीं।

(4) चोल वंश- इस वंश के शासकों का राज्य कृष्णा और कावेरी नदियों के बीच समुद्र तट पर स्थित था। इस वंश का सबसे प्रताप शासक राजेन्द्र प्रथम था। इसने सम्पूर्ण दक्षिण भारत में अपना राज्य स्थापित करने के साथ-साथ उत्तर भारत पर भी आक्रमण किया और कनिंग तथा बंगाल को जीतता हुआ गंगा किनारे तक पहुँच गया। उसने गंगेकौण्डू (गंगा नदी के क्षेत्र का विजेता) उपाधि धारण की।

प्रश्न 10.
दक्षिण भारत में साहित्य एवं कला की उन्नति का वर्णन करो?
उत्तर
दक्षिण भारत में साहित्य एवं कला की उन्नति-दक्षिण भारत में तमिल एवं संस्कृत दोनों ही भाषाओं की उन्नति हुई। राजा साहित्य प्रेमी थे। राष्ट्रकूटों के समय वल्लभी और कन्हेरी विश्वविद्यालय शिक्षा के बड़े केन्द्र थे। काँची विद्या का प्रसिद्ध केन्द्र था। तमिल भाषा में लिखा गया ‘कम्यन रामायण’ दक्षिण में बहुत लोकप्रिय हैं। जैन व बौद्ध विद्वानों ने भी अनेक ग्रन्थ लिखे। दक्षिण भारत के शासकों की मंदिर एवं मूर्तियाँ निर्माण कराने में विशेष रुचि थी।

मूर्तियाँ पत्थर या कॉस की होती थीं। चालुक्य राजाओं ने हिन्दु देवी-देवताओं के मंदिर बनवाए। वातापी का विरुपाक्ष मंदिर, महाबलीपुरम् का मंदिर, ऐलोरा का कैलाश मंदिर और होसबल मंदिर इन्हीं शासकों के शासन काल में बने थे। अजंता के दीवारों पर बने भित्ति चित्र, वृहदेश्वर मंदिर में देवचित्र चित्रकला के अनुपम उदाहरण हैं। चोल शासकों ने विष्णु, राम-सीता आदि की सुन्दर मूर्तियाँ बनवाई। दक्षिण के शासकों, विशेष रूप से चोल शासकों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण हेतु बहुत अच्छे प्रयास किए।

प्रश्न 11.
उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश कौन-से चे? वन करो। उत्तर-उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश
उत्तर
भारत के प्रमुख राजवंश निम्नलिखित थे
(1) प्रतिहार वंश- उत्तर भारत का यह महत्वपूर्ण वंश था। इस वंश के शासकों ने सिन्ध से आगे बढ़ रही विदेशी शक्तियों को एक लम्बे समय तक रोके रखा और उत्तर भारत में उनका विस्तार नहीं होने दिया। प्रतिहार वंश के शासकों के समय में भारत ने बहुत सांस्कृतिक उन्नति की। राजा मिहिर भोज इस वंश का सबसे शकिशाली शासक था।

(2) गहड़वाल वंश- इस वंश का संस्थापक चन्द्रदेव नामक शासक था। इसने प्रतिहारों को पराजित कर कन्नौज पर कब्जा कर लिया। इस वंश का अन्तिम शासक जयचन्द था। जिसको पराजित कर गौर वंश के शासक मुहम्मद गौरी ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। इस तरह गड़वाल वंश | की सत्ता समाप्त हो गई।

(3) चौहान वंश- इस वंश के शासकों का राज्य अमेर वसांभर के भूभाग पर विस्तृत था। इस वंश का पहला शक्तिशाली शासक विग्रहराज था। सबसे प्रतापी शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय था।

(4) गुहिल वंश- यह वंश आगे चलकर सिसोदिया वंश कहलाया। गुहिल राजवंश का सबसे प्रतापी शासक बप्पा | रावल हुआ। बप्पा रावल ने अन्य शासकों को संगठित कर सिंध को अरब आक्रमणकारियों से मुक्त किया।

प्रश्न 12.
आर्वी से बारहवीं शताब्दी तक भारत के इतिहास की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करो।
उत्तर
आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक भारत के इतिहास की प्रमुख घटनाएँ-भारत के लिए आठवीं से बारहवीं शताब्दी का समय काफी उथल-पुथल का समय था। दक्षिण भारत में तथा उत्तर भारत में अलग-अलग राजवंश शासन कर रहे थे। दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंशों में राष्ट्रकूट वंश, चालुक्य वंश, पल्लव वंश और चोल वंश सम्मिलित थे जबकि उत्तर

भारत के प्रमुख राजवंशों में प्रतिहार वंश, गडवाल वंश, चौहान वंश और गुहिल वंश सम्मिलित थे। इन विभिन्न राजवंशों के शासन के दौरान जहाँ भारत ने सांस्कृतिक उन्नति की वहीं विदेशी शासकों मुहम्मद गौरी और महमूद गज़नवी की तहस-नहस करने वाली गतिविधियों को झेलता रहा। यद्यपि साहित्य के क्षेत्र में इस समय भारत नै महत्वपूर्ण उपलब्धि अर्जित की। जयदेव की गीत गोविन्दम्, बाणभट्ट की कादम्बरी, भारवि का किरातार्जुनीयम, कल्हण की राजतरंगिणी आदि रचनाएँ इसी समय की देन है। वास्तुकला एवं मूर्तिकला के क्षेत्र में भी इस समय उल्लेखनीय प्रगति हुई। अजन्ता के भित्तिचित्र, कोणार्क का सूर्य मन्दिर, पुरी का जगन्नाथ मन्दिर आदि इस काल की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ रहीं। सारांशत: हम कह सकते हैं कि दक्षिण व उत्तर भारत के राजवंशों का काल वीर गाथाओं का काल था। राजनीतिक अस्थिरता होते हुए भी इस काल में भारतीय कला, संस्कृति और साहित्य की अच्छी उन्नति हुई जो आज भी हमें प्रेरणा देती है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रनोत्तर 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
हर्षवर्धन थानेश्वर का शासक बना
(अ) 606 ई. में
(ब) 607 ई. में
(स) 608 ई. में
(द) 609 ई. में।
(अ) 606 ई. में

प्रश्न 2.
हर्ष बौद्ध बनने से पहले उपासक था
(अ) सूर्य और शिव का
(ब) शिव और गणेश का
(स) गणेश और राम का
(द) राम और लक्ष्मण का
(अ) सूर्य और शिव का

प्रश्न 3.
हर्षवर्धन ने विशाल धर्म सम्मेलन का आयोजन किया
(अ) बंगाल में
(ब) कन्नौज में
(स) पंजाब में
(द) इनमें से कोई नहीं।
(ब) कन्नौज में

प्रश्न 4.
प्रयाग में हर्षवर्धन ने छठी सभा आयोजित की
(अ) 643 ई. में
(च) 644 ई. में
(स) 65 ई. में
(द) 646 ई. में
उत्तर
(अ) 643 ई. में

प्रश्न 5.
हर्षचरित के रचयिता हैं
(अ) बाणभट्ट
(ब) कालिदास
(स) भारवि
(द) माय
उत्तर
(अ) बाणभट्ट

प्रश्न 6.
नालन्दा विश्वविद्यालय के वित्त पोषण/ आर्थिक मदद के लिए हर्षवर्धन ने दान किए|
(अ) 50 से अधिक गाँव
(ब) 100 से अधिक गाँव
(स) 200 से अधिक गाँव
(द) 300 से अधिक गाँव
उत्तर
(ब) 100 से अधिक गाँव

प्रश्न 7.
राजतरंगिणी के रचनाकार हैं
(अ) जयदेव
(ब) कल्हण
(स) भारवि
(द) माघ
उत्तर
(ब) कल्हण

निम्नलिखित रिक्त वाक्यों में सहीं शब्द भरकर रिक्त
स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. थानेश्वर में एक नये राजवंश की स्थापना …….ने की।
2. राजा मिहिर भौज………..का सबसे प्रतापी शासक था।
3. तराईन का प्रथम युद्ध…………………में हुआ।
4, गुहिल वंश आगे चलकर ………….. वंश कहलाया।
उत्तर
(1) प्रभाकर वर्धन
(2) प्रतिहार वंश
(3) 1191 ई
(4) सिसौदिया।

अति लघूत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नालन्दा विश्वविद्यालय में कहाँ कहाँ से विद्यार्थी पढ़ते आते थे?
उत्तर
नालन्दा विश्वविद्यालय में कोरिया, मंगोलिया, जापान, चीन, तिब्बत, श्रीलंका, वृहत्तर भारत और भारत के विभिन्न भागों से विद्यार्थी पड़ने आते थे।

प्रश्न 2.
सम्राट हर्षवर्धन को किसने पराजित किया?
उत्तर
सम्राट हर्षवर्धन को चालुक्य वंश के शासक पुलकेशियन द्वितीय ने पराजित किया।

प्रश्न 3.
हैदराबाद में कल्याणी को अपनी राजधानी किसने बनाया?
उत्तर
हैदराबाद में कल्याण को अपनी राजधानी चालुक्यों नै बनाया।

प्रश्न 4.
किस शासक ने जल सेना बनाकर बंगाल की खाड़ी और बर्मा पर विजय प्राप्त की?
उत्तर
चोल वंश के शासक राजेन्द्र प्रथम ने।

प्रश्न 5.
राष्ट्रकूटों के शासन काल में शिक्षा के बड़े केन्द्र के | रूप में कौन कौन से विश्वविद्यालय प्रसिद्ध थे ?
उत्तर
वल्लभ और कन्हेरी विश्वविद्यालय।

प्रश्न 6.
राजा मिहिर भोज किस वंश का प्रतापी शासक था?
उत्तर
प्रतिहार वंश को।

प्रश्न 7.
गीत गोविन्दम् के रचयिता जयदेव किस वंश के शासकों के दरबारी चे?
उत्तर
सेन वंश के शासकों के

लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हर्ष किस प्रकार थानेश्वर का शासक बना? उसके व्यक्तित्व का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
उत्तर
हर्षवर्धन के पिता प्रभाकर वर्धन ने थानेश्वर में नए राजवंश की स्थापना की। अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद 606 ई. में हर्षवर्धन थानेश्वर का शासक बना। हर्ष एक उदार एवं दानशील शासक था। दान देने अथवा किसी कार्य को करने में वह धार्मिक भेद नहीं करता था। हर्ष स्वयं विद्वान था और विद्वानों को संरक्षण भी देता था। हर्ष ने अपना सम्पूर्ण समय प्रजा के हित में लगाया। शिक्षा के प्रति उसके दृष्टिकोण को इस बात से समझा जा सकता है कि नालन्दा विश्वविद्यालय, जो कि तत्कालीन समय में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बन चुका था, के वित्त पोषण हेतु इसने 100 से अधिक गाँव दान में दिए।

प्रश्न 2.
की धार्मिक नीति एवं दान करने की नीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
हर्ष की धार्मिक नीति उदारवाद से प्रेरित थीं। हर्ष शुरू में सूर्य एवं शिव का उपासक था किन्तु बाद में बौद्ध बन गया क्योंकि धार्मिक दृष्टि से वह कट्टर नहीं था। हर्षवर्धन के राज्य में शैव, वैष्णव, जैन व बौद्ध धर्म स्वतन्त्रतापूर्वक प्रचलित थे। बौद्ध होते हुए भी हर्षवर्धन ने उच्च पदों पर गैर बौद्धों को नियुक्त किया। उसने कन्नौज में 23 दिन तक चलने वाले धार्मिक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें अनेक राजाओं एवं विद्वानों ने भाग लिया। जहाँ तक हर्षवर्धन द्वारा दान देने की बात हैं तो हुर्घ प्रत्येक पाँच वर्ष बाद प्रयाग में एक सभा का आयोजन करता था और पाँच वर्ष में संग्रहीत की गई सम्पत्ति को दान कर देता था।

प्रश्न 3.
‘मोक्ष परिषद’ से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मोक्ष परिषद् हर्षवर्धन द्वारा आयोजित प्रयाग सभा को कहा जाता था। वस्तुत: हर्ष प्रत्येक पाँच वर्ष के अन्तराल पर प्रयाग में एक सभा का आयोजन करता था और अपने पाँच वर्ष की एकत्रित धन-सम्पदा को बाँट देता था। यही नहीं हर्ष पहने हुए कपड़े भी दान में दे देता था और पहनने के लिए कपड़े अपनी बहन से माँगता था। प्रयाग में होने वाली उक्त सभा को ही ‘मोक्ष परिषद्’ कहा गया है। 

प्रश्न 4.
हर्षकालीन सिक्कों और मुहरों की विशेषता क्या है?
उत्तर
ऐतिहासिक साक्ष्यों के रूप में जो हर्षकालीन सोने के सिक्के मिले हैं उन पर घुड़सवार के चित्र उत्कीर्ण हैं। अभिलेखों तथा बाणभट्ट के हर्षचरित में हर्ष को हर्ष देव कहा गया है। इसके साथ-साथ अन्य मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। सोनीपत से प्राप्त मुहर के शीर्ष पर बैल की आकृति अंकित है। नालन्दा से प्राप्त मुहर में एक अभिलेख है जिसमें सम्राट हर्षवर्धन को महाराजाधिराज कहा गया है।

प्रश्न 5.
हर्ष के समस्त कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
हर्ष एक वीर योद्धा और विजेता था। अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए उसने कई सैनिक अभियान चलाए और उनमें सफल भी रहा। सम्पूर्ण उत्तर भारत पर उसका अधिकार हो गया। उदारता एवं दान में हर्ष अद्वितीय था। वह विद्वान तो था ही विद्वानों को संरक्षण भी देता था । वास्तव में हर्ष आदर्श शासक था। वह बहुत परिश्रमी था और अच्छे कार्य करते समय उसे समय का ध्यान ही नहीं रहता था।

प्रश्न 6.
सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद भारत की राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
हर्ष ने जब गद्दी सम्भाली तब भारत छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था। उसने बड़े परिश्रम से इन राज्यों को एकीकृत करके अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद भारत में पुन: कई छेटे-छोटे राज्य स्थापित हो गए। उत्तर एवं दक्षिण के इन राज्यों ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली। ये स्वतन्त्र राजवंश आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक राज्य करते रहे। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये छोटे-छोटे राज्य अपने राज्य विस्तार के लिए तो आपस में लड़ते रहे किन्तु किसी विदेशी शासक को सिन्धु नदी के इस ओर नहीं बढ़ने दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सम्राट हर्ष के प्रशासन की विस्तार से समीक्षा कीजिए।
उत्तर
सम्राट हर्ष के प्रशासन में सन्नाट प्रशासन का केन्द्र बिन्दु था। प्रशासन की अवधारणा के अनुसार प्रशासकीय कुशलता के लिए शासक को लगातार सचेत रहना चाहिए। इस हेतु हर्ष निरन्तर सजग रहता था। वह प्रज्ञा की देखभाल के लिए स्वयं ग्रामों एवं नगरों की यात्रा करता था। सिद्धान्त रूप में तो सम्राट हर्ष का शासन निरङ्कुश था किन्तु सच्चाई यह थी कि लोगों को अपने-अपने क्षेत्रों में एक सीमा तक स्वशासन प्राप्त था।

प्रशासन का अधिकांश कार्य ग्रामीण समुदायों के हाथ में था। केन्द्रीय सरकार एवं ग्राम सभाओं में अपेक्षित सहयोग विद्यमान था। वस्तुत: हर्ष का प्रशासन निरंकुश एवं गणतन्त्रीय तत्त्वों का सम्मिश्रण था। प्रशासन के अच्छी तरह से संचालन के लिए सम्राट हर्ष ने अपने साम्राज्य को प्रान्तों, भुक्तियों (डिवीजन) और विषयों (जिलों) में विभक्त कर दिया था। साम्राज्य में सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। प्रशासन को चलाने के लिए हर्ष द्वारा तीन प्रकार के कर लगाए गए थे- ‘भाग’ भूमि का था, ‘हिरण्य’ नकद कर था जबकि ‘बलि’ अतिरिक्त कर या।हर्ष के प्रशासन में दण्ड विधान अधिक कठोर नहीं थे। शारीरिक दण्ड नहीं दिए जाते थे। अभियुक्त से अपराध स्वीकार करवाने के लिए उसे यन्त्रणा नहीं दी जाती थी। हर्ष के साम्राज्य में परीक्षण द्वारा अपराध की आँच करने का ढंग भी प्रचलित था।

प्रश्न 2.
आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक उत्तर भारत में साहित्य एवं कला के क्षेत्र में हुई अनति का वर्णन कीजिए।
उत्तर
आर्थी से बारहवीं शताब्दी में यद्यपि उत्तर भारत में बहुत उथल-पुथल रही। विभिन्न राजवंशों का शासन आता रहा और जाता रहा फिर भी साहित्य एवं कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस काल में संस्कृत भाषा में विभिन्न विषयों पर ग्रन्थ लिखे गए। इन ग्रन्थों में माघ द्वारा रचित शिशुपाल वध, भारवि का किरातार्जुनीयम, कल्हण की राजतरंगिणी और जयदेव का गीत गोविन्दम् आदि प्रमुख हैं। इस अवधि के राजवंशों के शासकों ने अनेक सुन्दर भवनों एवं मन्दिरों का निर्माण कराया। स्थापत्य कला के क्षेत्र में भी इस काल में बहुत प्रगति हुई। भुवनेश्वर का लिंगराज मन्दिर, कोणार्क का सूर्य मन्दिर, पुरी का जगन्नाथ मन्दिर और ग्वालियर, चित्तौड़ व रणथम्भौर के दुर्ग आदि स्थापत्य कला के उत्तम दाहरण हैं। इस काल में चित्रकला के क्षेत्र में भी अच्छी उन्नति हुई। दीवारों पर पशु-पक्षियों व वृक्ष तथा लताओं के अत्यन्त सुन्दर चित्र बनाए गए। वस्तुत: इस काल में भारतीय साहित्य एवं कला के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई जो आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(क) आर्वी से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण भारत की शासन व्यवस्था ।
(ख) आठ से बारहवीं शताब्दी तक उत्तर भारत के राजवंशों के शासन की विशेषताएँ।
उत्तर
(क) आठवीं से बारहुर्वी शताब्दी तक दक्षिण भारत की शासन व्यवस्था- दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंशों की शासन व्यवस्था में राजा को सर्वोपरि माना जाता था। शासन हेतु अपनी सहायता के लिए राजा मन्त्रियों एवं कर्मचारियों  की नियुक्ति करता था और उन पर अपना नियन्त्रण रखता था। पल्लवों ने राज्य को राष्ट्र, कोट्टम तथा ग्रामों में विभाजित किया था। चोलों ने राज्य को मण्डल एवं नाडू में विभक्त किया था।

नाइओं के ही कारण तमिल प्रदेश का वर्तमान नाम तमिलनाडु रखा गया। तत्कालीन समय में स्थानीय स्वशासन की संस्थाएँ भी कार्य करती थीं जिनमें ग्राम सभाओं का प्रमुख स्थान था। ग्राम सभाएँ सामान्य प्रबन्ध के अतिरिक्त न्याय, कानुन एवं दान को व्यवस्था की देख-रेख भी करती थीं।

(ख) आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक उत्तर भारत के राजवंशों के शासन की विशेषताएँ- उत्तर भारत के स्वतन्त्र राजवंशों को शासन व्यवस्था पूर्णत: निरंकुश थी। यद्यपि शासक अपने मन्त्रियों से सलाह भी लिया करते थे। शासन व्यवस्था में सामंत विद्यमान थे किन्तु राजा के अधीन रहते हुए भी वे स्वतन्त्र रूप से कार्य करते थे। तत्कालीन समय में ग्राम पंचायतें अस्तित्व में थीं जो राजकीय हस्तक्षेप से मुक्त होकर कार्य करती थीं।

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