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RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

May 24, 2019 by Prasanna Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 मौखिक प्रश्न

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां शब्दानाम् उच्चारणं कुरुत
भुशुण्डीं,
गम्भीरमुद्रया,
विनष्टम्,
मेदपाटस्य,
नत्वा,
भारतनक्षत्रम्,
यदुष्णीषम्,
प्रत्यावर्तत्,
स्मृत्वैव,
खिस्ताब्दे,
उत्तरम्:
[नोट-उपर्युक्त शब्दों का शुद्ध उच्चारण अपने अध्यापकजी की सहायता से कीजिए।]

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि वदत
(क) गम्भीरमुद्रया कः चिन्तयति?
उत्तरम्:
केसरीसिंह:

(ख) कुँवरप्रतापः किं याचते?
उत्तरम्:
भुशुण्डीम्

(ग) महाराणा फतेहसिंहः कुत्र गच्छति?
उत्तरम्:
देहलीम्

(घ)“अहं प्रापयिष्यामि” इति कः उक्तवान्?
उत्तरम्:
गोपालसिंहः

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 लिखितप्रश्नाः

प्रश्न 3.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(क) कुँवरप्रतापस्य माता का आसीत्?
उत्तरम्:
माणिककँवरः

(ख) ”अहं कथं निवारयितुं शक्नोमि” इति कः उक्तवान्?
उत्तरम्:
केसरीसिंहः

(ग) कस्य लेखन्यां साक्षात् सरस्वती अस्ति?
उत्तरम्:
केसरीसिंहस्य

(घ) रेलयानं कुत्र विरमति?
उत्तरम्:
सरेडी स्थाने

(ङ) केषु विलक्षणोत्साहः समचरत्?
उत्तरम्:
क्रान्तिकारिषु

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकवाक्येन लिखत
(क) केसरीसिंहबारहठः कुत्र अध्यास्ते?
उत्तरम्:
केसरीसिंहबारहठः आसन्दम् अध्यास्ते

(ख)’हिन्दुस्थानस्य सूर्यः’ पाठे कस्य कृते प्रयुक्त:?
उत्तरम्:
‘हिन्दुस्थानस्य सूर्यः’ इति महाराणाफतेहसिंहस्य कृते प्रयुक्तः

(ग) ‘भवान् तस्य सचिवः आसीत्’ इति कः कं प्रति कथयति?
उत्तरम्:
इति करणसिंह: केसरीसिंह प्रति कथयति

(घ) केसरीसिंहः किम् अद्वितीयं काव्यं रचितवान्?
उत्तरम्:
केसरीसिंहः ‘चेतावणी रा दूंगट्या’ इति अद्वितीयं काव्यं रचितवान्

(ङ) महाराणाफतेहसिंहः कदा देहलीम् अगच्छत्?
उत्तरम्:
महाराणाफतेहसिंहः 1903 तमे खिस्ताब्दे देहलीम् अगच्छत्

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

प्रश्न 5.
अधोलिखितवाक्यानां सम्मुखे कोष्ठके सत्यम् असत्यं वा लिखते
उत्तरम्:
(क) कुँवरप्रतापसिंहबारहठः केसरीसिंहस्य पुत्रः आसीत्  (सत्यम्)
(ख) फतेहसिंह: हिन्दुस्थानस्य महाराणा आसीत् ।  (असत्यम्)
(ग) चेतावणी रा चूङ्गट्या’ इति काव्यं महाराणा फतेहसिंहः अरचयत्  (असत्यम्)
(घ) एडवर्डसप्तमस्य राज्यारोहणावसरे समारोह आयोजितः।  (सत्यम्)
(ङ) 1903 तमे खिस्ताब्दे महाराणा देहलीं न गच्छति  (असत्यम्)

प्रश्न 6.
निर्देशानुसारं रिक्तस्थाने क्रियायाः रूपं लिखत
(क) तस्य पितुः नाम कृष्णसिंहः …….. । (अस् धातुः ललकारः)
(ख) महाराणा फतेहसिंह: देहलीं …….. । (गम् धातुः लुट्लकार:)
(ग) अहं राष्ट्रीय कारागृहे …….. । (गम् धातुः लट्लकार:)
(घ) सर्वे छात्रा: अद्य …….. । (पठ् धातुः लोट् लकार:)
(ङ) त्वं नित्यं योगासनं …….. । (कृ धातुः विधिलिङ्लकारः)
उत्तरम्:
(क) आसीत्
(ख) गमिष्यति
(ग) गच्छामि
(घ) पठन्तु
(ङ) कुर्या:

प्रश्न 7.
सुमेलनं कुरुत
(क) महाराणा फतेहसिंहः       –  (अ) कुंवरप्रतापसिंहः
(ख) गोपालसिंहः                   –  (आ) मेदपाटः
(ग) ठाकुरकेसरीसिंहबारहठः  –  (इ) देहली
(घ) लघुबालकः                    –  (ई) खरवा
(ङ) कर्जनः                         –  (उ)शाहपुरा
उत्तरम्:
(क) महाराणा फतेहसिंह:      –  मेदपाटः
(ख) गोपालसिंहः                  –  खरवा
(ग) ठाकुरकेसरीसिंहबारहठः –  शाहपुरा
(घ) लघुबालकः                    –  कुँवरप्रतापसिंह:
(ङ) कर्जनः                         –  देहली

योग्यता-विस्तारः

(क) पाठ-विस्तार:
चेतावणी रा चूङ्गट्या-‘चेतावणी रा चूङ्गट्या’ सोरठा छन्द में तेरह पद्य हैं। इनके माध्यम से केसरीसिंह बारहठ ने महाराणा फतेहसिंह को स्वाभिमान, अपनी वंश-परम्परा और मेवाड़ के गौरव की पहचान कराई। उनमें से एक उदाहरण निम्नलिखित हैं

“पग पग भम्या पहाड़, धरा छोड़ राख्यो धरम।
महाराणा र मेवाड़, हिरदे बस्या हिन्द रे।”

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

अर्थात् महाराणा प्रताप अपने धर्म की रक्षा के लिए। राजमहलों को छोड़कर वनों में और पर्वतों में घूमे। उसी कारण महाराणा और मेवाड़ हिन्दुस्तान के जन-मानस में स्थित हैं

केसरीसिंह बारहठ:
स्वनामधन्य केसरीसिंह बारहठ का जन्म सन् 1872 ई. में भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा नगर के पास देवखेड़ा नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का  नाम ठाकुर कृष्णसिंह बारहठ था। ये युवावस्था में ही मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह के सचिव हो गये थे। उन्होंने सम्पूर्ण परिवार को स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया था। राव गोपालसिंह खरवा, अर्जुनलाल सेठी, दामोदरदास राठी आदि के सहयोग से इन्होंने ‘अभिनवभारत-समिति’ नामक संगठन की स्थापना की। ये सन् 1941 ई. में दिवङ्गत हो गये

कुँवर प्रतापसिंह बारहठ-कुँवर:
प्रतापसिंह बारहठ केसरीसिंह बारहठ के पुत्र थे। इनका जन्म सन् 1893 ई. में हुआ था। वे बनारस-षड्यन्त्र के आरोप में बरेली की जेलमें बन्दी हो गये थे वहाँ बहुत से कष्टों को सहन करने पर भी उन्होंने क्रान्तिकारियों के विषय में कुछ भी रहस्य प्रकट नहीं किया अमानवीय प्रताड़ना से वे पच्चीस वर्ष की आयु में सन् 1918 ई. में सभी बन्धनों को तोड़कर दिवङ्गत हो। गये

जोरावरसिंह बारहठ:
केसरीसिंह बारहठ के दो भाई किशोरसिंह और जोरावरसिंह थे। जोरावरसिंह का जन्म दिनांक 12 सितम्बर 1883 ई. को हुआ था। उन्होंने रासबिहारी बोस के साथ मिलकर देहली में ‘चाँदनी-चौक’ नामक स्थान पर लार्ड हार्डिंग्स के ऊपर बम फेंका था। अंग्रेज सरकार ने बहुत प्रयास किया था, फिर भी ये हाथ नहीं आये । जीवन के उत्तरार्द्ध में अमरादास बैरागी नाम से राजस्थान और मालव के वनाच्छादित पर्वतीय प्रदेशों में रहते हुए जनजागरण के लिए बहुत से प्रयत्न करते हुए सन् 1939 ई. में यह महान् वीर मृत्यु को प्राप्त हुआ

(ख) भाषा-क्रीड़ा
[नोट-छात्र अध्यापकजी की सहायता से स्वयं करें ।]

(ग) भाषा-विस्तार:
शिक्षकः-बालकः पाठं पठति। बालकः विद्यालयं गच्छति
बालकः पाठं पठितुं विद्यालयं गच्छति
अन्यानि अपि रूपाणि जानीम। (अन्य रूप भी जानिए)

यथा
वर्तमानकालिक       तुमुन्प्रत्ययान्त        प्रकृतिः + प्रत्ययः
रूपम्                      रूपम्
RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा - 1

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

संयोज्य वाक्यानि वदत लिखत च। यथा:

शिक्षकः
रमा वृक्षं पश्यति। उद्यानं गच्छति। भगिनी गृहकार्यं करोति। गृहं गच्छति। माता पूजां करोति
मन्दिरं गच्छति। पर्यटक: हवामहलं पश्यति। जयपुरं गच्छति। अहं संस्कृतवार्ता शृणोमि
दूरदर्शनम् उद्घाटयामि। मृगः जलं पिबति। नदीं गच्छति रुग्ण: स्वस्थः भवति। औषधं खादति
भ्राता अध्ययनं करोति। पुस्तकम् उद्घाटयति सुधांशुः स्वस्थः भवति। व्यायामं करोति

छात्राः
रमा वृक्षं द्रष्टुम् उद्यानं गच्छति। भगिनी गृहकार्यं कर्तुं गृहं गच्छति। माता पूजां कर्तुं मन्दिरं गच्छति
पर्यटकः हवामहलं द्रष्टुं जयपुरं गच्छति। अहं संस्कृतवार्ता श्रोतुं दूरदर्शनम् उद्घाटयामि। मृगः जलं पातु नदीं गच्छति
रुग्ण: स्वस्थः भवितुम् औषधं खादति भ्राता अध्ययनं कर्तुं पुस्तकम् उद्घाटयति । सुधांशुः स्वस्थः भवितुं व्यायामं करोति

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठप्रश्नाः
1. “सूर्यो न तु तारा” पाठस्य क्रमः अस्ति
(क) द्वादशः
(ख) त्रयोदशः
(ग) चतुर्दशः
(घ) पञ्चदशः

2. “बहिः चत्वरे अस्ति, स्वीकृत्य क्रीडतु” -इति वाक्ये अव्ययपदम् अस्ति
(क) अस्ति
(ख) चत्वरे
(ग) बहिः
(घ) क्रीडतु

3. “केसरीसिंहः आसन्दम् अध्यास्ते”-रेखांकितपदे उपसर्ग: अस्ति
(क) अ
(ख) अधि
(ग) अस
(घ) आ

4. “केचन अतिथयः भवन्तुं दुष्टुम् इच्छन्ति” -रेखांकि ? प्रत्ययः अस्ति
(क) क्त
(ख) क्त्वा
(ग) तमप्
(घ) तुमुन्

5. कुँवरप्रतापस्य पिता कः आसीत्?
(क) फतेहसिंहः
(ख) अमरसिंहः
(ग) केसरीसिंहः
(घ) करणसिंहः

6. कर्ग किमपि लिखितुं प्रवृत्त अत्र रेखाङ्कितपदे : प्रत्ययः?
(क) क्त्वा
(ख) तुमुन्
(ग) क्त
(घ) ल्यप्

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

7. महाराणा फतेहसिंह: देहल्यां लार्डकर्जनतः काम् प्राप्तुं गच्छति?
(क) भारतनक्षत्रम्
(ख) वीरभूषणम्
(ग) हिन्दुसूर्यः
(घ) विद्याभूषणम्

8. “चेतावणी रा चूङ्गट्या” इति काव्यस्य रचयिता कः?
(क) भूरसिंहः
(ख) गोपालसिंहः
(ग) केसरीसिंहः
(घ) फतेहसिंह:

उत्तराणि:

1. (क)
2. (ग)
3. (ख)
4. (घ)
5. (ग)
6. (ख)
7. (क)
8. (ग)

मञ्जूषात् समुचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
सहसा, मह्यम्, अस्मान्, गन्तुम्
1. माता ……….. भुशुण्डीं न ददाति
2. कुँवरप्रतापः ……….. प्रविशति
3. मेदपाटस्य सूर्यः अस्तं ……….. इच्छति
4. हा धिग् ……….. ।

उत्तराणि:

1. मह्यम्
2. सहसा
3. गन्तुम्
4. अस्मान्

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 अतिलघुत्तरात्मकप्रश्नाः

(एकपदेन उत्तरेत)

प्रश्न 1.
कुँवरप्रतापस्य पितुः किम् नाम?
उत्तरम्:
केसरीसिंहबारहठः

प्रश्न 2.
कुँवरप्रतापस्य मातुः नाम किम्?
उत्तरम्:
माणिककँवरः

प्रश्न 3.
पाठे “हिन्दुआ सूरजः” कस्य कृते प्रयुक्तः?
उत्तरम्:
महाराणाफतेहसिंहस्य कृते

प्रश्न 4.
केसरीसिंहः पत्रे कति पद्यानि रचितवान्?
उत्तरम्:
त्रयोदशपद्यानि

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 लघूत्तरात्मकप्रश्नाः

(पूर्णवाक्येन उत्तरत)

प्रश्न 1.
केसरीसिंहः कीदृशं काव्यं रचितवान् ?
उत्तरम्:
केसरीसिंहः अद्वितीयं काव्यं रचितवान्

प्रश्न 2.
केसरीसिंहस्य वाचि लेखन्यां च किम् आसीत् ?
उत्तरम्:
केसरीसिंहस्य वाचि अपूर्वा शक्ति: तथा लेखन्यां साक्षात् सरस्वती आसीत्

प्रश्न 3.
पत्रं नीत्वा महाराणाफतेहसिंहाय दातुं कः कुत्र च गच्छति स्म?
उत्तरम्:
पत्रं नीत्वा गोपालसिंहः सरेडी रेलयानस्थानके फतेहसिंहाय दातुं गच्छति स्म

प्रश्न 4.
महाराणाफतेहसिंहः पद्यानि पठित्वा किम् अनुभूतवान्?
उत्तरम्:
महाराणोफतेहसिंह: पद्यानि पठित्वा आत्मगौरवम् अनुभूतवान्

प्रश्न 5.
महाराणाफतेहसिंहः देहलीं गत्वा किं कृतवान्?
उत्तरम्:
महाराणाफतेहसिंह: देहलीं गत्वाऽपि लार्डकर्जनस्य समारोहे अनुपस्थितो भूत्वा प्रत्यावर्तत

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

प्रश्न 6.
रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत
(i) माता मह्यं भुशुण्डी न ददाति
(ii) मेदपाटस्य गौरवं विनष्टं भविष्यति।
(iii) सेवकेन सह माणिककँवरः निर्गच्छति
(iv) महाराणा देहल्यां गच्छति
(v) भवतः वाचि अपूर्वा शक्तिः अस्ति
(vi) फतेहसिंहः तानि पद्यानि पठित्वा आत्मगौरवम् अनुभूतवान्।
(vii) तेन क्रान्तिकारिषु विलक्षणोत्साहः समचरत्
उत्तरम्:
प्रश्न निर्माणम्
(i) माता मह्यं किम् ने ददाति?
(ii) कस्य गौरवं विनष्टं भविष्यति?
(iii) केन सह माणिककँवरः निर्गच्छति?
(iv) महाराणा कुत्र गच्छति?
(v) भवतः वाचि का अस्ति?
(vi) फतेहसिंहः तानि पद्यानि पठित्वा किम् अनुभूतवान्?
(vii) तेन केषु विलक्षणोत्साहः समचरत्?

प्रश्न 7.
रेखांकितपदानां स्थाने कोष्ठके लिखितान् पदान् चित्वा प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) मेदपाटस्य सूर्यः अस्तं गन्तुम् इच्छति । (क:/काम्)
(ख) मम सर्वाणि अङ्गानि ज्वलन्ति ।  (कान्/कानि)
(ग) भवतः लेखन्यां साक्षात् सरस्वती अस्ति।  (का/क:)
(घ) महाराणां प्रापयतु एतत् पत्राम् ।  (कम्/किम्)
(ङ) फतेहसिंहः समारोहे अनुपस्थितो भूत्वा प्रत्यावर्तत। (का/कः)
उत्तरम्:
प्रश्ननिर्माणम्
(क) मेदपाटस्य कः अस्तं गन्तुम् इच्छति
(ख) मम सर्वाणि कानि ज्वलन्ति
(ग) भवतः लेखन्यां साक्षात् का अस्ति
(घ) कम् प्रापयतु एतत् पत्राम्
(ङ) कः समारोहे अनुपस्थितो भूत्वा प्रत्यावर्तत

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

प्रश्न 8.
समानार्थकपदानि मेलयत
(i) आसन्दे     –  आग्नेयास्त्रम्
(ii) अध्यास्ते   –  वाण्याम्
(iii) उष्णीषम् –  उपविशति
(iv) वाचि       –  मार्गा:
(v) पन्थानः     –   शिरस्कम्
(vi) भुशुण्डीम – काष्ठासने
उत्तरम्:
(i) आसन्दे       –  काष्ठासने
(ii)अध्यास्ते      –  उपविशति
(iii) उष्णीषम्   –  शिरस्कम्
(iv) वाचि         –  वाण्याम्
(v) पन्थानः      –  मार्गाः
(vi) भुशुण्डीम्  – आग्नेयास्त्रम्

पाठ-परिचय

अंग्रेज शासनकाल में तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन ने सम्राट् एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के अवसर पर सभी भारतीय राजाओं को समारोह में सम्मिलित होने के लिए दिल्ली में बुलाया था। मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह भी वहां गये थे। प्रस्तुत पाठ में उस समय अपनी मातृभूमि के स्वाभिमान की रक्षा करने हेतु शाहपुरा निवासी ठाकुर केसरीसिंह बारहठ द्वारा चेतावणी हो चूंगट्या” शीर्षक से कविता लिखकर महाराणा फतेहसिंह के पास भिजवाने का तथा उसे पढ़कर उनमें जागृत हुए स्वाभिमान एवं राष्ट्र-गौरव के कारण दिल्ली। जाकर भी उस समारोह में शामिल न होने का वर्णन किया गया है।

पाठ के कठिन

शब्दार्थ-आसन्दे (काष्ठासने) = कुर्सी पर। अध्यास्ते (उपविशति) = बैठा है। भुशुण्डी (आग्नेयास्त्रम्) बन्दूक को। मेदपाटस्य (मेवाडस्य) = मेवाड़ का। दष्टम् इच्छन्ति (मेलितुमिच्छन्ति) = मिलना चाहते हैं। विरमेत् (तिष्ठेत्) – रुके। उष्णीषम् (शिरस्कम्) = पगड़ी। नत्वा (अवनम्य) झुक करके। बाचि (वाण्यां) वाणी में। अपूर्वा (अद्वितीया) = अनोखी। सञ्जितानि (नामकानि) नामक। पन्थानः (माग 🙂 मार्ग। सन्तु (भवन्तु) होवे। स्मृत्वैव (स्मरणं कृत्वा एव) = याद, करके ही। प्रत्यावर्तत (पुनः आगच्छत्) = लौट गये। खिस्ताब्दे (ईशवीयाब्दे) – ईस्वी सन् में। समचरत् (सञ्चारम् अकरोत्) सञ्चरण हुआ।

पाठ का हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम्

(1)
(रङ्गमञ्चे केसरीसिंहबारहठः गम्भीरमुदायाम् आसन्दम् अध्यास्ते। लघुबालकः कुँवरप्रतापः सहसा प्रविशति।)
कुँवरप्रतापः – तात! माता मह्यं भुशुण्डी न ददाति। (केसरीसिंहः तथैव गम्भीरमुद्या चिन्तयति)
कुँवरप्रतापः – मातरं वदतु तात! सा मह्यं भुशुण्डी न ददाति। (ततः माता माणिककँवरः प्रविशति)
माणिककँवरः – अत्र कोलाहलं मा करोतु कुमार! बहिः चत्वरे अस्ति, स्वीकृत्य क्रीडतु।
कुँवरप्रतापः -(प्रसन्नो भूत्वा) शोभनं मातः! गच्छामि।(सः धावन् निर्गच्छति)

हिन्दी-अनुवाद – (रंगमञ्च पर केसरीसिंह बारहठ गंभीर मुद्रा में कुर्सी पर बैठा हुआ है। छोटा बालक कुँवर। प्रताप अचानक प्रवेश करता है।)
कुँवर प्रताप – पिताजी ! माता मुझे बन्दूक नहीं देती है। (केसरीसिंह उसी प्रकार गम्भीर मुद्रा में विचार करता है।)
कुँवर प्रताप – माता से बोलिए पिताजी ! वह मुझे बन्दूक नहीं देती है। (इसके बाद माता माणिक कॅवर प्रवेश करती है।)
माणिक कँवर – यहाँ कोलाहल मत करो कुमार ! बाहर चबूतरे पर है, लेकर खेलो।
कुँवर प्रताप – (प्रसन्न होकर) सुन्दर, माता ! मैं जाता हूँ। (वह दौड़ता हुआ निकल जाता है)

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

♦ पठितावबोधनम्।

निर्देशः-उपर्युक्तं नाट्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखतप्रश्नाः-
(क) कः गम्भीरमुद्रायाम् आसन्दम् अध्यास्ते?
(ख) माता कस्मै किञ्च न ददाति?
(ग) कुँवरप्रतापस्य पितुः किन्नाम?
(घ) अहि: चत्वरे किम् अस्ति?
(ङ) प्रतापस्य मातुः किन्नाम?
(च) ‘क्रीडतु’ पदे क; नकार? किं वचनम्?
(छ) क: धावन् निर्गच्छति?।
उत्तर:
(क) केसरीसिंहबारहठः गम्भीरमुद्रायाम् आसन्दम् अध्यास्ते।
(ख) माता पुत्राय प्रतापाय भुशुण्ड़ न ददाति।
(ग) कुँवरप्रतापस्य पितुः नाम केसरीसिंहबारहठः।
(घ) बहि: चत्वरे भुशुण्डीम् अस्ति।
(ङ) प्रतापस्य मातु: नाम माणिकवरः।
(च) लोट्लकारः, एकवचनम्।
(छ) कुँवरप्रतापः धावन् निर्गच्छति।

(2)
माणिककँवरः – (केसरीसिंहं प्रति) किमर्थम् अद्य अतीव गम्भीरो दृश्यते?
केसरीसिंहः – हैं……! राष्ट्रविषये चिन्तयामि। किं भविष्यति अग्रे देशस्य? महाराणा फतेहसिंहः देहल्यां लार्ड कर्जनस्य समारोहे भागं ग्रहीतुं गमिष्यति। मेदपाटस्य गौरवं विनष्टं भविष्यति।
माणिककँवर; -(आश्चर्येण) किम्? केसरीसिंहः -(उच्छ्वासेन) आम्। ततः प्रविशति सेवकः)
सेवकः – (प्रणमति) खरवायाः रावगोपालसिंहेन सह केचन अतिथयः दृष्टम् इच्छन्ति भवन्तम्।
केसरीसिंहः – प्रेषयतु तावत्।(सेवकेन सह माणिककँवर: निर्गच्छति)(ततः प्रविशन्ति ठाकुरभूरसिंहः, ठाकुरकरणसिंहः खरवाया: रावगोपालसिंहश्च)
भूरसिंहः – वन्दे मातरम्।
केसरीसिंहः – (उत्थाय सर्वेषां स्वागतं कुर्वन्) स्वागतं भवताम्। उपविशन्तु। (सर्वे उपविशन्ति)

हिन्दी-अनुवाद
माणिक कँवर – (केसरीसिंह से) किसलिए आज अत्यधिक गम्भीर दिखाई दे रहे हो?’
केसरीसिंह – हूँ ! राष्ट्र के विषय में सोच रहा हूँ। आगे देश का क्या होगा? महाराणा फतेहसिंह देहली में लार्ड कर्जन के समारोह में भाग लेने के लिए जायेगा। मेवाड़ का गौरव समाप्त।
हो जायेगा। माणिक कँवर – (आश्चर्य से) क्या?
केसरीसिंह – (गहरी श्वास लेकर) हाँ। (इसके बाद सेवक प्रवेश करता है।)
सेवक – (प्रणाम करता है।) खरवा के राव गोपालसिंह के साथ कुछ अतिथि आपके दर्शन करना चाहते हैं।
केसरीसिंह – उन्हें भेजिए तब तक। (सेवक के साथ माणिक कॅवर चली जाती है।) (तब ठाकुर भूरसिंह, ठाकुर करणसिंह और खरवा के राव गोपालसिंह प्रवेश करते हैं।)
भूरसिंह – भारत माता की जय हो (वन्दे मातरम्)।
केसरीसिंह – (उठकर सभी का स्वागत करते हुए) आपका स्वागत है। बैठिए। (सभी बैठ जाते हैं।)

♦ पठितावबोधनम्

निर्देशः-उपर्युक्तं नाद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत– प्रश्नाः-
(क) केसरीसिंह: कस्मिन् विषये चिन्तयति?
(ख) महाराणा फतेहसिंह: कुत्र भाग ग्रहीतुं गमिष्यति?
(ग) कस्य गौरवं विनष्टं भविष्यति?
(घ) केसरीसिंहस्य समीप के आगच्छन्ति?
(ङ) ‘ग्रहीतुम्’ पदे कः प्रत्यय:
(च) केसरीसिंह: उत्थाय किं करोति?
(छ) केन सह माणिकवर; निर्गच्छति?
उत्तर:
(क) केसरीसिंह: राष्ट्रविषये चिन्तयति।
(ख) महाराणा फतेहसिंह: देहल्यां लार्ड कर्जनस्य समारोहे भागं ग्रहीतुं गमिष्यति।
(ग) मेदपाटस्य गौरवं विनष्टं भविष्यति।
(घ) केसरीसिंहस्य समीप ठाकुरभूरसिंह:, ठाकुरकरणसिंहः, खरवायाः रावगोपालश्च आगच्छन्ति।
(ङ) तुमुन् प्रत्ययः।
(च) केसरीसिंहः उत्थाय सर्वेषां स्वागतं करोति।
(छ) सेवकेन सह माणिकवर: निर्गच्छति।

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

(3)
करणसिंहः – महाराणा फतेहसिंहः ढिल्लिकापुरी (देहली) गच्छति इति जानाति किम्?
केसरीसिंहः – आम्, सर्व जानामि। भूरसिंहः। – मेदपाटस्य सूर्यः अस्तं गन्तुम् इच्छति।
गोपालसिंहः – अस्माकं दुर्भाग्यमस्ति यत् मेदपाटस्य महाराणा देहल्यां लार्डकर्जनतः भारतनक्षत्रम्। (स्टार ऑफ इण्डिया) इत्युपाधि प्राप्तुं गच्छति।
करणसिंहः – सः तु साक्षात् ‘हिन्दुआ सूरजः” (हिन्दुस्थानस्य सूर्यः) अस्ति। (बारहठं प्रति) निवारयतु महोदय! निवारयतु।
केसरीसिंहः – (क्रोधेन) अहं कथं निवारयितुं शक्नोमि। राजानः तुः
करणसिंहः – भवान् तस्य सचिवः आसीत्। तस्य व्यवहारं सम्यक् जानाति।
भूरसिंहः – अतः भवान् एव विचारयतु ठाकुरकेसरीसिंह! येन महाराणा विरमेत्। मेदपाटस्य प्रतिष्ठांच संरक्षेत्।
करणसिंहः – यदुष्णीषम् एकलिङ्गं विहाय कुत्रापि न नमति, तद् आङ्गलानां पादयोः नस्यति। कथं नास्मान् पीड़यिष्यति?

हिन्दी-अनुवाद
करणसिंह – महाराणा फतेहसिंह देहली जा रहे हैं, क्या यह जानते हो?
केसरीसिंह – हाँ, सब जानता हूँ।
भूरसिंह। – मेवाड़ का सूर्य अस्त होना चाहता है।
गोपालसिंह – हमारा दुर्भाग्य है कि मेवाड़ के महाराणा देहली में लार्ड कर्जन से ‘भारतीय तारा’ (स्टार ऑफ इण्डिया) इस उपाधि को लेने के लिए जा रहे हैं।
करणसिंह – वे तो साक्षात् हिन्दुस्तान के सूर्य हैं। (बारहठ की ओर) रोकिये महोदय ! उन्हें रोकिये।
केसरीसिंह – (क्रोधपूर्वक) मैं कैसे उनको रोक सकता हैं। राजा लोग तो 101 1010
करणसिंह – आप उनके सचिव थे। उनके व्यवहार को अच्छी प्रकार से जानते हैं।
भूरसिंह – इसलिए आप ही विचार कीजिए ठाकुर केसरीसिंह ! जिससे महाराणा रुक जावे और मेवाड़ की प्रतिष्ठा की रक्षा हो सके।
करणसिंह – जो पगड़ी भगवान् एकलिंग को छोड़कर कहीं भी नहीं झुकती है, वह अंग्रेजों के पैरों में झुकेगी। इससे क्यों नहीं हमें पीड़ा होगी।

♦ पठितावबोधनम्

निर्देशः-उपर्युक्तं नाद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखतप्रश्ना:-
(क) कस्य सूर्य : अस्तं गन्तुम् इच्छति?
(ख) मेदपाटस्य महाराणा को उपाधि प्राप्तुं गच्छति?
(ग) कः साक्षात् हिन्दुस्थानस्य सूर्यः अस्ति?
(घ) केसरीसिंह: कस्य सचिव: आसीत्?
(ङ) देहल्याम्’ पदे का विभक्ति:? किं वचनम्?
(च) “आम्, सर्वं जानामि” इति क: कम् प्रति कथितवान्?
उत्तर:
(क) मेदपाटस्य सूर्य अस्तं गन्तुम् इच्छति।
(ख) मेदपाटस्य महाराणा ‘भारतनक्षत्रम्’ (स्टार ऑफ इण्डिया) इति उपाधि प्राप्तुं गच्छति।
(ग) महाराणा फतेहसिंह: साक्षात् हिन्दुस्थानस्य सूर्यः अस्ति।
(घ) केसरीसिंह: महाराणाफतेहसिंहस्य सचिवः आसीत्।
(ङ) सप्तमी, एकवचनम्।
(च) इति केसरीसिंह: करणसिंह प्रति कथितवान्।

(4)
गोपालसिंहः – (क्रोधेन) हा! धिम् अस्मान्।
केसरीसिंहः – एतत् स्मृत्वैव मम सर्वाणि अङ्गानि ज्वलन्ति। (क्रोधेन) कः बोधयितुं समर्थः एतान् नृपान्?
भूरसिंहः – भवान् महोदय! भवतः वाचि अपूर्वा शक्तिस्ति। लेखन्यां साक्षात् सरस्वती अस्ति। (उत्साहेन) रचयतु अद्वितीयं काव्यं यत्सर्वं दैन्यं नाशयितुं समर्थः भवेत्।
केसरीसिंहः – (क्रोधेन प्रकम्पितैः अझैः लेखन कर्गदं च स्वीकत्य) एवमस्ति तर्हि लिखामि अद्वितीयं काव्यम्। (कर्गदे किमपि लेखितुं प्रवृतः। अनन्तरं पत्रं हस्ते स्वीकृत्य) एतानि सन्ति सोरठाछन्दसि ”चेतावणी रा चुङ्गट्या” सञ्जितानि त्रयोदशपद्यानि।

वाचयति येन दत्तानि दानानि शिरसाङ्गानि कृतानि वै।
किमादातुमसौ दानं लोभाकृष्टो भवत्यहो ॥१॥
पश्यति भारतो भूयान् स्नेहेन यं रविं प्रति।
तारकमिव तं दृष्टवा दीर्घ उच्छ्वसिष्यति ॥२॥

कः प्रापयिष्यति महाराजम्?

हिन्दी-अनुवाद
गोपालसिंह – (क्रोधपूर्वक) हाय, धिक्कार है हमको।
केसरीसिंह। – यह स्मरण करके ही मेरे सारे अंग जल रहे हैं। (क्रोधपूर्वक) इन राजाओं को समझाने में। कौन समर्थ हैं?
भूरसिंह – आप महोदय ! आपकी वाणी में अनोखी (अलौकिक) शक्ति है। लेखनी (कलम) में साक्षात् सरस्वती है। (उत्साहपूर्वक) अद्वितीय काव्य की रचना करो जिससे सम्पूर्ण दीनता
का नाश हो सकता है।
केसरीसिंह – (क्रोध से काँपते हुए अंगों से कलम और कागज लेकर) ऐसा है तो मैं अद्वितीय काव्य लिखता हूँ। (कागज पर कुछ लिखने लगता है। इसके बाद पत्र को हाथ में लेकर) ये सोरठा छन्द में “चेतावणी रा चुङ्गया” नामक तेरह पद्य हैं। पढ़ता हैजिसने हमेशा दान दिया है, शत्रुओं के मस्तक को अपने चरणों में झुकाया है, आश्चर्य है। कि वही आज लोभ से आकर्षित होकर स्वयं दान लेना चाहता है। यह भारत देश जिस सूर्य के प्रति स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखता था, आज उसे तारे के समान देखकर गहरी श्वास ले रहा है।
इस पत्र को महाराजा तक कौन पहुँचायेगा?

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 12 सूर्यो न तु तारा

♦ पठितावबोधनम्

निर्देशः-उपर्युक्तं नाट्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखतप्रश्नाः-
(क) कस्य सर्वाणि अङ्गानि ज्वलन्त स्म?
(ख) कस्य वाचि अपूर्वा शक्तिः आसीत्?
(ग) केसरीसिंहस्य लेखन्यां का आसीत्?
(घ) केसरीसिंहेन केन नाम्ना कति च पद्यानि पत्रे लिखितानि?
(छ) ‘भवत्यहो’ पदस्य सन्धिविच्छेदं कुरुत्।
(च) ‘वाचि’ पदे का विभक्तिः? किं वचनम्?
उत्तर:
(क) केसरीसिंहस्य सर्वाणि अङ्गानि ज्वलन्ति स्म।
(ख) केसरीसिंहस्य वाचि अपूर्वा शक्तिः आसीत्।
(ग) केसरीसिंहस्य लेखन्यां साक्षात् सरस्वती आसीत्।
(घ) केसरीसिंहेन ” चेतावणी रा चुङ्गट्या” नाम्ना त्रयोदशपद्यानि पत्रे लिखितानि।
(ङ) भवति + अहो।
(च) सप्तमी, एकवचनम्।

(5)
गोपालसिंहः – (उत्साहेन) अहं प्रापयिष्यामि। (गृह्णाति)
भूरसिंहः – तर्हि शृणोतु। इदानीं साक्षात् सरेडी रेलयानस्थानकं गच्छतु। रेलयानं तत्र बिरमति। तत्रैव महाराणा प्रापयतु एतत् पत्रम्।
गोपालसिंहः – अस्तु, गच्छामि।
करणसिंहः – शुभास्ते पन्थानः सन्तु। (गोपालसिंहः निर्गच्छति)
भूरसिंहः – अस्तु वयमपि चलाम। (सर्वे निर्गच्छन्ति) (सूचकः – महाराणा फतेहसिंहः, तानि पद्यानि प्राप्य पठित्वा च आत्मगौरवमनुभूतवान्। सः अचिन्तयत् एतानि पद्यानि यदि उदयपुरे प्राप्तानि स्युः चेद् अहं ततः प्रस्थानम् एव न कृतवान् स्याम्। इति विचार्य 1903 तमे खिस्ताब्दे ढिल्लकां(देहली) तु अगच्छत् किन्तु तस्मिन् समारोहे अनुपस्थितो भूत्वा प्रत्यावर्तते। तेन क्रान्तिकारिषु विलक्षणोत्साहः समचरत्) (यवनिकापातः)

हिन्दी-अनुवाद
गोपालसिंह – (उत्साह से) मैं पहुँचाऊँगा। (पत्र को लेता है।)
भूरसिंह – तब सुनो। इस समय सीधे सरेडी रेलवे स्टेशन पर चले जाओ। रेलयान वहाँ पर रुकती है। वहीं पर महाराणा को यह पत्र पहुँचा देना।
गोपालसिंह – ठीक है, जाता हैं।
करणसिंह – तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी होवे। (गोपालसिंह चला जाता है।)
भूरसिंह – ठीक है, हम भी चलते हैं। (सभी निकल जाते हैं।) (सूचक महाराणा फतेहसिंह ने उन पद्यों को प्राप्त करके और पढकर आत्मगौरव का अनुभव किया। उन्होंने सोचा कि ये पद्य यदि उदयपुर में ही प्राप्त हो जाते तो मैं वहाँ से प्रस्थान ही नहीं करता। ऐसा विचार करके वे सन् 1903 ईस्वी में देहली तो गये थे किन्तु उस समारोह में अनुपस्थित होकर लौट आए। उससे क्रान्तिकारियों में विलक्षण उत्साह का संचार हुआ।) (पर्दा गिरता है।)

♦ पठितावबोधनम्

निर्देशः-उपर्युक्तं नाट्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखतप्रश्नाः –
(क) महाराणासमीपं पत्र कः नयति?
(ख) रेलयानं कुत्र विरमति स्म?
(ग) ते पन्थानः कीदृशाः सन्तु?
(घ) महाराणाफतेहसिंहः पद्यानि पठित्वा किम् अनुभूतवान्?
(ङ) महाराणा कदा देहलीम् अगच्छत्?
(च) ‘शुभास्ते’ पदस्य सन्धिविच्छेदं कुरुते।
(छ) क्रान्तिकारिषु क; समचरत्?
उत्तर:
(क) महाराणासमीपं पत्रं गोपालसिंह: नवति।
(ख) रेलयानं सरेडी रेलयानस्थानके विरमति स्म।
(ग) ते पन्थानः शुभा: सन्तु।
(घ) महाराणाफतेहसिंह; पद्यानि पठित्वा आत्मगौरवमनुभूतवान्।
(ङ) महाराणा 1903 तमे खिस्ताब्दे देहलीम् अगच्छत्।
(च) शुभा: + ते।
(छ) क्रान्तिकारिषु विलक्षणोत्साह: समचरत्।

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