Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 अभ्यर्पण
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
दैत्यों के मारने के लिए वज्रास्त्र का निर्माण किया था
(क) इन्द्र
(ख) दधीचि
(ग) विश्वकर्मा
(घ) वृत्रासुर
उत्तर:
(ग) विश्वकर्मा
प्रश्न 2.
भामाशाह समाधि स्थल कहाँ स्थित है ?
(क) जयपुर
(ख) उदयपुर
(ग) चित्तौड़
(घ) माण्डलगढ़
उत्तर:
उत्तर:
(ख) उदयपुर
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
महर्षि दधीचि की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
महर्षि दधीचि की पत्नी का नाम गभस्तिनी था।
प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण ने ‘पार्थ’ कहकर किसको सम्बोधित किया है ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने ‘पार्थ’ कहकर अर्जुन को सम्बोधित किया
प्रश्न 5.
भामाशाह के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर:
भामाशाह के पिता का नाम भारमल था।
प्रश्न 6.
कर्ण को ‘राधेय’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
कर्ण को अधिरथ तथा उसकी पत्नी राधा ने पाला था। राधा को उसका पालित पुत्र होने के कारण ‘राधेय’ कहा जाता है।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 7.
असुरों को यज्ञ का भाग देने पर इन्द्र ने विश्वरूप की हत्या क्यों की ?
उत्तर:
विश्वरूप देवताओं का पुरोहित था। वह चोरी से असुरों को यज्ञ का भाग देता था। असुर देवों के शत्रु थे। अतः इन्द्र ने कुपित होकर उसकी हत्या कर दी।
प्रश्न 8.
श्रीकृष्ण अर्जुन को रणभूमि में घायल पड़े कर्ण के पास क्यों ले गए ?
उत्तर:
महाभारत युद्ध में कवच-कुंडल इन्द्र द्वारा माँग लिए जाने के कारण असुरक्षित हुए कर्ण को अर्जुन ने परास्त कर दिया था। वह अहंकार के कारण कर्ण की निन्दा कर रहा था। श्रीकृष्ण अर्जुन का अहंकार दूर करने तथा कर्ण की वीरता और दानशीलता से उसको परिचित कराने के लिए घायल कर्ण के पास ले गए थे।
प्रश्न 9.
महाराणा प्रताप हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात् मेवाड़ से पलायन क्यों करना चाहते थे ?
उत्तर:
हल्दी घाटी के युद्ध के बाद भी प्रताप ने मुगलों पर आक्रमण जारी रखे थे, किन्तु उनके पास सेना कम थी, धन भी नहीं था। राणा अपने चुनिन्दा सरदारों के साथ मेवाड़ से पलायन करना चाहते थे, जिससे बाहर जाकर वह सेना का गठन कर सकें और मेवाड़ की रक्षा कर सकें।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 10.
‘परथा, पूँजा, पीथला उभो परताप इक चार’ के आधार पर प्रत्येक चरित्र को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘परथा, पूँजा, पीथला उभो परताप इक चार’ – पंक्ति में महारणा प्रताप ने परथा, पूँजा, पीथल और स्वयं को चार अलग-अलग व्यक्ति होते हुए भी हृदय से एक माना है। परथा एक भील था। वह भामाशाह के साथ महाराणा प्रताप के पास गया था। उसने अपने पूर्वजों की सम्पत्ति मेवाड़ की रक्षार्थ राणा प्रताप को समर्पित की थी। वह देशभक्त, ईमानदार और दानशील था। उसने अपने प्राणों की बाजी लगाकर पूर्वजों के गुप्त खजाने की रक्षा की थी और उसको मेवाड़ की स्वाधीनता की रक्षा के लिए दान कर दिया था। पूँजा और पीथल भी देशभक्त भील थे और महाराणा प्रताप के सहायक थे।
मुगलों के विरुद्ध युद्ध में उनकी सहायता महाराणा प्रताप को सदा प्राप्त होती थी। महाराणा प्रताप को कौन नहीं जानता ? वह मेवाड़ के शासक थे तथा महान् स्वतन्त्रता प्रेमी और आत्मसम्मानी थे। उन्होंने कठिनाइयाँ सहन की किन्तु मुगलों के सामने नहीं झुके। वह अपनी पूरी शक्ति के साथ मुगलों से युद्ध करते रहे। राजपूताने के इतिहास में स्वतन्त्रता प्रेमी महाराणा प्रताप का नाम सदा स्मरणीय रहेगा।
प्रश्न 11.
‘अभ्यर्पण’ में संकलित दानवीरों के जीवन से क्या प्रेरणा मिलती है ? वर्तमान में दानवीरता की आवश्यकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
‘अभ्यर्पण’ पाठ में तीन दानवीरों का उल्लेख है। वे हैं-महर्षि दधीचि, दानवीर कर्ण तथा परमदानी भामाशाह। दधीचि वैदिक ऋषि हैं। कर्ण महाभारत का प्रमुख पात्र है। भामाशाह मेवाड़ का मंत्री तथा राणा प्रताप का बाल्यावस्था का साथी है। इन तीनों में एक समानता यह है कि वे प्रसिद्ध दानी पुरुष हैं। दधीचि ने परमार्थ हेतु अपनी अस्थियाँ दान कर दी थीं। कर्ण ने अपने जीवन की सुरक्षा की चिन्ता न करते हुए अपने कवच और कुण्डल इन्द्र को दे दिए थे। भामाशाह ने अपनी समस्त संचित पूँजी मेवाड़ की रक्षार्थ राणा प्रताप को दे दी थी।
इन तीनों दानवीरों के जीवन से हमको परोपकार के लिए अपना सर्वस्व दान देने की प्रेरणा मिलती है। उनके जीवन की घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि हमें अपना धन दूसरों के हित के लिए भी व्यय करना चाहिए। दानवीरता एक ऐसा गुण है जो हर देश तथा काल में उपयोगी होता है। हम अपना कमाया धन अपने लिए तो व्यय करते ही हैं किन्तु उसका अधिक प्रशंसनीय रूप यही है कि वह परोपकार के लिए व्यय किया जाए। आज भी ऐसे लोग समाज में हैं जिनको हमारी सहायता की आवश्यकता है। हम उनकी मदद करके अधिक प्रसन्न तथा सन्तुष्ट हो सकते हैं। वर्तमान में भी दानवीरता की उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि पहले थी।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान किस प्रकार किया ?
उत्तर:
महर्षि दधीचि ने देवराज इन्द्र के माँगने पर लोक-कल्याण के लिए अपना शरीर त्याग कर अपनी अस्थियाँ उनको दे दीं।
प्रश्न 2.
देवगुरु बृहस्पति देवताओं को छोड़कर क्यों चले गये?
उत्तर:
इन्द्र की अशिष्टता से अपमानित होकर बृहस्पति ने देवताओं का साथ त्याग दिया।
प्रश्न 3.
वृत्रासुर का वध इन्द्र ने किस अस्त्र से किया था ?
उत्तर:
वृत्रासुर का वध इन्द्र ने वज्रास्त्र से किया था।
प्रश्न 4.
कर्ण का दुर्भाग्य क्या रहा ?
उत्तर:
कर्ण के जीवन का कष्टदायक पक्ष यह रहा कि। सर्वथा योग्य होते हुये भी कर्ण को वह सब कुछ नहीं मिला जिसका वह वास्तविक रूप में अधिकारी था।
प्रश्न 5.
कर्ण को किसने पाला-पोषा था ?
उत्तर:
कर्ण को अधिरथ तथा उसकी पत्नी राधा ने पाला-पोसा था।
प्रश्न 6.
युद्ध भूमि में घायल पड़े कर्ण ने किस वस्तु का दान किया था ?
उत्तर:
युद्ध भूमि में घायल पड़े कर्ण ने सोने से मढ़े हुए अपने दाँत को पत्थर से तोड़कर दान किया था।
प्रश्न 7.
भामाशाह क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर:
भामाशाह ने अपनी समस्त संचित पूँजी मेवाड़ की सुरक्षा के लिए महाराणा प्रताप को दान कर दी थी। वह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध है।
प्रश्न 8.
भामाशाह ने राणा प्रताप की क्या सहायता की ?
उत्तर:
भामाशाह ने अपने सारे जीवन की संचित सम्पत्ति राणा प्रताप को देशसेवा के लिए समर्पित कर दी।
प्रश्न 9.
परथा भील के दो गुण बताइए।
उत्तर:
परथा भील दानी और देशभक्त थे।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
महर्षि दधीचि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
महर्षि दधीचि के पिता अथर्वा तथा माता चिति थी। उनकी पत्नी का नाम गभस्तिनी था। वह शिव के भक्त तथा परम वैरागी थे। वह गंगा तट पर आश्रम बनाकर ईश्वर की उपासना, अतिथि सत्कार तथा पशु-पक्षी पालन करके सादा जीवन बिताते थे। वह परम दानी थे। लोक-कल्याण के लिए उन्होंने अपना शरीर त्यागकर अपनी अस्थियाँ देवराज इन्द्र को दे दी थीं।
प्रश्न 2.
महाबली वृत्रासुर का जन्म किस प्रकार हुआ था ?
उत्तर:
महाबली वृत्रासुर को त्वष्टा ऋषि ने यज्ञानुष्ठान से उत्पन्न किया था। एक बार गुरु बृहस्पति देवराज इन्द्र के दरबार में पधारे। इन्द्र उनके सामने खड़े नहीं हुए तो अपमानित देवगुरु बृहस्पति ने उनका त्याग कर दिया। तब इन्द्र ने विश्वरूप को देवगुरु बनाकर काम चलाया था। विश्वरूप छिपाकर यज्ञ-भाग असुरों को देता था। इससे कुपित होकर इन्द्र ने उनका सिर काट दिया। विश्वरूप के पिता त्वष्टा ऋषि ने इन्द्र से बदला लेने के लिए वृत्रासुर को पैदा किया। प्रश्न
प्रश्न 3.
कर्ण का जन्म किस प्रकार हुआ था ? कुन्ती ने कर्ण को क्यों बहा दिया ?
उत्तर:
कर्ण कुन्ती का पुत्र था। एक बार दुर्वासा ऋषि कुन्ती के पिता के महल में पधारे। कुन्ती ने उनकी एक वर्ष तक सेवा की। इससे प्रसन्न होकर दुर्वासा ने उसको वरदान दिया कि वह किसी भी देवता का स्मरण करके उससे सन्तान प्राप्त कर सकेगी। उत्सुकतावश कुंआरेपन में ही कुन्ती ने सूर्य देवता का स्मरण किया। सूर्यदेव ने प्रकट होकर उसे एक पुत्र दिया। वह पुत्र कर्ण कहलाया। कुन्ती कुंआरी थी। कवच-कुण्डलधारी सुन्दर बालक कर्ण को पाकर कुन्ती थोड़ा प्रसन्न हुई, किन्तु उसको लोक-लज्जा का भय सताने लगा। चिन्तित होकर कुन्ती ने उस बालक को सन्दूक में बन्द करके गंगा में बहा दिया।
प्रश्न 4.
महाभारत में कर्ण को किस कारण सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है ? इसका संकल्प क्या था ?
उत्तर:
महाभारत में कर्ण को उनकी वीरता तथा दानशीलता के कारण सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है। वह महान् वीर तथा परम दानी पुरुष थे। कर्ण ने संकल्प ले रखा था कि दोपहर को जब वह सूर्य देवता की पूजा करते हैं उस समय वह दान माँगने वाले की प्रत्येक माँग को पूरा करेंगे।
प्रश्न 5.
भामाशाह का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
भामाशाह अत्यन्त दानी था। वह महाराणा प्रताप का बचपन का साथी और सलाहकार था। उसका जन्म मेवाड़ में 29 अप्रैल, 1547 ई. में हुआ था। उसके पिता भारमल रणथम्भौर किले के किलेदार थे। भामाशाह जैन धर्मानुयायी था। मेवाड़ को शत्रु से मुक्त कराने के लिए उसने अपनी समस्त सम्पत्ति राणा प्रताप को दान दे दी थी।
प्रश्न 6.
परथा भील कौन था ? उसकी देशभक्ति और ईमानदारी का राणा प्रताप पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
परथा भील मेवाड़ का निवासी था। वह भील जाति से सम्बन्धित था। वह अपने देश से गहरा प्रेम करता था। अपने पूर्वजों के संचित खजाने की उसने अपनी जान की बाजी लगाकर सुरक्षित बचा लिया था। उस समस्त धन को तथा स्वयं को मेवाड़ की रक्षार्थ उसने राणा प्रताप को सौंप दिया था। परथा भील की देशभक्ति, दानशीलता और ईमानदारी देखकर महाराणा प्रताप का मन द्रवित हो गया। उनकी आँखों से आँसू टपकने लगे। राणा ने भामाशाह और परथा को गले से लगा लिया और उनकी अत्यन्त प्रशंसा की।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वज्र के निर्माण की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर:
एक बार देवगुरु बृहस्पति देवराज इन्द की सभा में पधारे। इन्द्र ने अहंकारवश गुरु का उठकर सत्कार नहीं किया। इससे रुष्ट देवगुरु ने इन्द्र का परित्याग कर दिया। देवगण ने तब त्वष्टा ऋषि के पुत्र विश्वरूप को अपना गुरु बनाया। विश्वरूप देवताओं से छिपकर असुरों को भी यज्ञ-भाग देता था। इससे क्रुद्ध होकर इन्द्र ने विश्वरूप का वध कर डाला। तब ऋषि त्वष्टा ने इन्द्र के विनाश के लिए, यज्ञ द्वारा वृत्तासुर को उत्पन्न किया। वृत्रासुर ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इन्द्र को पलायन करना पड़ा।
सभी देवगण अत्यन्त त्रस्त होकर ब्रह्मा जी की शरण में पहुँचे। ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि यदि वे महर्षि दधीचि के समीप जाकर उनसे उनकी अस्थियों की याचना करें और उन अस्थियों से वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया जाये तो वृत्रासुर का वध हो सकता है। ब्रह्मदेव के परामर्श के अनुसार देवता महर्षि दधीचि की शरण में गए और अपना संकट बताया। महर्षि ने उन पर कृपा करते हुए अपनी अस्थियाँ दान कर दीं। तब वज्र का निर्माण हुआ और वृत्रासुर के संहार से इन्द्र तथा देवताओं का संकट दूर हुआ।
प्रश्न 2.
दानवीर कर्ण के द्वारा जीवन के अन्त में दिए गए दान का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
कर्ण की दानवीरता की प्रशंसा सुनकर अर्जुन उसकी तर्क देकर उपेक्षा करने लगे। श्रीकृष्ण को अर्जुन का अहंकारपूर्ण व्यवहार अच्छा नहीं लगा। वह उसे लेकर कर्ण के पास पहुँचे। दोनों ब्राह्मण वेश में थे और कर्ण से दान माँगने गये थे। कर्ण ने लज्जित भाव से कहा-“हे ब्राह्मण देवता ! मैं घायल, मराणासन्न युद्धभूमि में पड़ा हूँ। मेरे सैनिक भी मारे जा चुके हैं। ऐसी दशा में भला मैं आपको क्या दे सकता हूँ ?’ श्रीकृष्ण ने कहा “तब हमें खाली हाथ लौटना होगा इससे आपकी कीर्ति नष्ट होगी। आप अपने धर्म से च्युत हो जाएँगे।” कर्ण ने उनको रोका, कहा – “मैं धर्म से विमुख होकर मरना नहीं चाहता।
मैं आपकी इच्छा पूरी अवश्य करूंगा।” कर्ण घिसटते हुए उठा और एक पत्थर से अपने सोने से मढ़े दाँत तोड़कर उन्हें दे दिए। श्रीकृष्ण ने रक्त से सने दाँतों को लेने से मना कर दिया। तब कर्ण ने गंगा का स्मरण कर भूमि | पर बाण छोड़ा। निर्मल जल की धारा फूट पड़ी। उसने उन दाँतों को धोकर उन्हें देते हुए कहा–”हे बाह्मण देव! अब यह स्वर्ण न रक्त रंजित है, न जूठा। यह शुद्ध है। कृपाकर के इसको स्वीकार करें।” प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने कर्ण को आशीर्वाद दिया।
प्रश्न 3.
भामाशाह के सहयोग और समर्पण का महाराणा प्रताप के जीवन में क्या महत्व है ?
उत्तर:
भामाशाह परथा भील को साथ लेकर महाराणा के समक्ष उपस्थित हुआ। उसने मेवाड़ को छोड़कर जाते हुए राणा को रोका और सेना का गठन करके मुगलों की गुलामी से मेवाड़ को मुक्त कराने की प्रार्थना की। भामाशाह तथा प्ररथा ने अपने पूर्वजों की संचित विशाल सम्पत्ति देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप को दान कर दी। दोनों की दानशीलता तथा देशभक्ति देखकर राणा द्रवित हो गए। राणा ने उनका उपकार माना और उनकी प्रशंसा की। भामाशाह का सहयोग और समर्पण महाराण के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक सिद्ध हुए।
प्रताप ने मेवाड़ से पलायन करने का विचार त्याग दिया। दान की उस विशाल राशि से सेना का गठन किया और मुगलों पर आक्रमण किया। धीरे-धीरे मेवाड़ राज्य का एक के बाद दूसरा भाग महाराणा प्रताप के कब्जे में आता चला गया और फिर सम्पूर्ण मेवाड़ पर महाराणा का अधिकार हो गया। मेवाड़ राज्य की इस मुक्ति का श्रेय महाराणा के साथ ही भामाशाह तथा परथा भील को भी दिया जाता है।
-संकलित
पाठ-परिचय
महर्षि दधीचि-लोक कल्याण के लिए आत्म-त्याग करने वाले महर्षि दधीचि भारतीय संस्कृति के वैदिक युग से सम्बन्धित हैं। देवराज इन्द्र तथा देवताओं के हितार्थ अपनी अस्थियाँ दान करने वाले महर्षि दधीचि का नाम भारतीय दानवीरों में अमर है। महादानी कर्ण-दानवीर कर्ण का सम्बन्ध महाभारत काल से है। वह कुन्ती के पुत्र थे। अधिरथ तथा राधा ने उनको पाला-पोसा था। उन्होंने जन्म से प्राप्त दैवी कवच और कुण्डला यह जानकर कि उनके न रहने पर वह असुरक्षित हो जाएँगे, इन्द्र को दान दे दिए थे। वह परमवीर और दानी थे।
महादानी भामाशाह- भामाशाह महाराणा प्रताप के मंत्री थे। एक बार मेवाड़ संकट में था। प्रताप मेवाड़ छोड़कर जाने का विचार कर रहे थे। उस समय स्वदेश की रक्षार्थ भामाशाह ने अपना समस्त संचित धन महाराणा प्रताप को दे दिया था। इस धन से सेना का गठन कर राणा ने मुगलों से मेवाड़ को छीन लिया था। भामाशाह का नाम दानवीरों का पर्याय बन चुका है।
शब्दार्थ-पौराणिक = पुराणों से सम्बन्धित। अहंकार = घमण्ड। अराजकता = अशांति, अव्यवस्था। याचना – निवेदन किया, माँग की। विश्वकर्मा = देवताओं के इंजीनियर। वाहन = सवारी। ऐरावत = इन्द्र का हाथी। सर्वथा = पूरी तरह। दिव्य = अलौकिक। उत्सुकता = जानने की इच्छा, जिज्ञासा। तेजस्वी = तेजवान्। उल्लास = प्रसन्नता। सारथी = रथ हाँकने वाला। निर्वहन = निर्वाह, निभाना। आसन्न भवितव्य = भविष्य में शीघ्र ही होने वाली घटना। प्रतिबद्धता = वचन से बँधा होना। शिविर = डेरा। विमुख होना = पीठ दिखाना। स्तुति = प्रशंसा, प्रार्थना। अपरिग्रह = आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना। संग्रहण = संचय, धन जोड़ना। अगाध = गहरा। गठन = एकत्र और प्रशिक्षित करना। कूच करना = यात्रा करना। सिमरसी = याद रहेगा। सौहार्द = मित्रता। अलंकरण = तमगा। शाश्वत = अमर।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ
प्रश्न-
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ कीजिए
1. भगवान ब्रह्मदेव की आज्ञानुसार सभी देवता देवराज के साथ महर्षि दधीचि के आश्रम में पहुँचे और अपनी व्यथा-कथा सुनाकर ब्रह्मदेव के बताये उपाय का कथन करते हुए महर्षि से अस्थियों की याचना की। महर्षि दष्ट ने परमार्थ के लिए अपना शरीर छोड़कर अस्थियों का दान करना सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने अपने मन को समाधिस्थ कर तन की ज्योति को परमात्मा में एकाकार कर दिया। इन्द्रदेव उनकी अस्थियाँ लेकर विश्वकर्मा के पास पहुँचे तथा वज्रास्त्र निर्माण का निवेदन किया। विश्वकर्मा ने उन अस्थियों से वज्रास्त्र बनाकर देवराज को दिया। (पृष्ठ-65)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित पाठ ‘अभ्यर्पण’ से लिया गया है। लेखक ने यहाँ बताया है कि देवराज इन्द्र को वज्रास्त्र किस प्रकार प्राप्त हुआ।
व्याख्या-लेखक कहता है कि ब्रह्मा जी का आदेश मानकर देवराज इन्द्र तथा सभी देवता महर्षि दधीचि के आश्रम में पहुँचे। उन्होंने अपनी दुखभरी कथा उनको सुनाई कि किस प्रकार वृत्रासुर उनको सता रहा था। उन्होंने महर्षि दधीचि को बताया कि उनकी हड्डियों से बने वज्र द्वारा ही वृत्रासुर का संहार हो सकता था। उन्होंने उनसे वज्रास्त्र का निर्माण करने के लिए उनकी अस्थियाँ माँगीं। महर्षि दधीचि परोपकार के लिए अपना शरीर त्यागने और अपनी अस्थियाँ देवताओं को देने के लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार हो गए। उन्होंने समाधि लगाई और अपना शरीर त्याग दिया तथा अपनी आत्मा को परमात्मा में विलीन कर दिया। देवराज इन्द्र दधीचि की हड्डियों को लेकर विश्वकर्मा के पास पहुँचे। उन्होंने विश्वकर्मा से उन हड्डियों से वज्र नामक अस्त्र बनाने का निवेदन किया। इन्द्र का निवेदन मानकर विश्वकर्मा ने उन हड्डियों से वज्र बनाया और इन्द्र को सौंप दिया।
विशेष-
(1) तत्सम शब्दों से युक्त भावानुकूल खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(2) शैली वर्णनात्मक है।
2. महाभारत में अपनी वीरता के कारण जिस सम्मान से कर्ण का स्मरण होता है, उससे अधिक आदर उन्हें उनकी दानशीलता के लिए दिया जाता है। कर्ण का शुभ संकल्प
था कि मध्याह्न में जब वह सूर्यदेव की आराधना करता है, उस समय उससे जो भी माँगा जाएगा, वह स्ववचनबद्ध होकर उसको पूर्ण करेगा। कर्ण के जन्म से प्राप्त कवच कुण्डल के कारण उसकी युद्ध में शारीरिक क्षति होना असम्भव था। (पृष्ठ – 66)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘अभ्यर्पण’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने कर्ण की दानवीरता का उल्लेख किया है।
व्याख्या-लेखक कहता है कि महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण अत्यन्त सम्माननीय हैं। अपनी वीरता के कारण वह आदरणीय है। वह परमदानी पुरुष थे। अपनी दानशीलता के कारण वह अपनी वीरता से भी अधिक सम्माननीय माने जाते हैं। वह दोपहर के समय सूर्य देवता की उपासना करते थे। उन्होनें यह निश्चय कर रखा था कि उस समय कोई उनसे कुछ भी माँगेगा उसे देने में वह पीछे नहीं हटेंगे। कर्ण को – अपने जन्म के साथ ही कवच और कुण्डल प्राप्त थे। उनके रहते कोई भी कर्ण को युद्ध के समय घायल अथवा चोटिल नहीं कर सकता था। कवच और कुण्डल युद्ध क्षेत्र में कर्ण को सुरक्षित तथा अपराजेय बनाने वाले थे।
विशेष-
(1) भावानुकूल तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(2) शैली वर्णनात्मक है।
3. राजन्! इसका अर्थ यह हुआ कि हम खाली हाथ ही लौट जाएँ? किन्तु इससे आपकी कीर्ति धूमिल हो जाएगी। संसार आपको धर्म विहीन राजा के रूप में याद रखेगा। यह कहते हुए वे लौटने लगे। कर्ण बोला-ठहरिए ब्राह्मण देव! मुझे यश-कीर्ति की इच्छा नहीं है, लेकिन मैं अपने धर्म से विमुख होकर मरना नहीं चाहता। इसलिए मैं आपकी इच्छा अवश्य पूर्ण करूंगा।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ के संकलित पाठ ‘अभ्यर्पण’ के ‘दानवीर कर्ण’ शीर्षक से उद्धृत है। कर्ण ने ब्राह्मण याचकों के रूप में आए श्रीकृष्ण और अर्जुन को दान देने में असमर्थता व्यक्त की।
व्याख्या-ब्राह्मण याचक के रूप में उपस्थित श्रीकृष्ण ने घायल कर्ण से कहा-महाराज कर्ण! हम आपकी दानशीलता के बारे में जानकर ही यहाँ आए थे। परन्तु आप स्वयं को दान देने में असमर्थ बता रहे हैं। इसका मतलब यही है कि हम आपसे कछ भी प्राप्त किए बिना ही खाली हाथ लौट जाएँ। ऐसा होने पर आपकी दानशीलता की कीर्ति धुंधली पड़ जाएगी। लोग कहेंगे कि कर्ण की दानशीलता केवल दिखावा है। लोग आपको धर्म के विरुद्ध आचरण करने वाले के रूप में स्मरण करेंगे। यह कहकर दोनों वापस जाने लगे। उनको रोककर कर्ण ने कहा-हे ब्राह्मण देवता, आप रुकिए। मैं यश और प्रशंसा पाने का इच्छुक नहीं हूँ। किन्तु मैं यह भी नहीं चाहता कि मैं दानशीलता के प्रति अपनी समर्पण की भावना को त्याग दें और मेरी मृत्यु के बाद लोग मुझे अपने कर्तव्य से विमुख व्यक्ति के रूप में स्मरण करें। अतः मैं आपकी इच्छा जरूर पूरी करूंगा और आपको दान दूंगा।
विशेष-
(1) भाषा सरल प्रवाहमयी खड़ी बोली है तथा संवाद शैली है।
(2) दान देने के प्रति दृढ़ संकल्पवान कर्ण के चरित्र का प्रभावशाली अंकन हुआ है।
4. भामाशाह का यह निष्ठापूर्ण सहयोग और समर्पण महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मेवाड़ के इस वृद्ध मन्त्री ने अपने जीवन में काफी सम्पत्ति अर्जित की थी। मातृभूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में उपस्थित हुए और उनसे मेवाड़ के उद्धार की याचना की। (पृष्ठ-68)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘अभ्यर्पण’ पाठ के ‘महादानी भामाशाह’ शीर्षक अंश से उद्धृत है। भामाशाह ने अपना संपूर्ण संचित धन अर्पित कर महाराणा प्रताप को मेवाड़ की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए मुगलों के विरुद्ध युद्ध करने तथा सेना का गठन करने के लिए प्रेरित किया।
व्याख्या- भामाशाह ने महाराणा को अपना संचित धन देकर जो सहयोग दिया था वह उनके देश-प्रेम तथा निष्ठा का प्रमाण था। भामाशाह के इस सहयोग और समर्पण के भाव ने महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। भामाशाह मेवाड़ के मंत्री थे। वे अब बूढ़े हो गए थे। अपने जीवन में उन्होंने खूब धन कमाया था। मातृभूमि मेवाड़ की मुगलों से रक्षा के लिए महाराणा निरन्तर युद्ध कर रहे थे। उनकी सम्पूर्ण सम्पत्ति और साधन उसमें व्यय हो चुके थे। उनके सामने सेना के संगठन के लिए धन नहीं था। भामाशाह ने देखा कि राणा स्वदेश की रक्षा को सर्वोपरि मानकर संघर्ष कर रहे हैं। ‘भामा ने भी उनके लक्ष्यों को सर्वोपरि माना और अपने पूरे जीवन में कमाया हुआ धन महाराणा को अर्पित करने का निश्चय कर लिया। इस विचार के साथ भामाशाह राणा के सामने पहुँचे और उनको अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति देकर स्वदेश की रक्षा करने का निवेदन किया।
विशेष-
(1) भाषा विषयानुकूल, प्रवाहपूर्ण, मुहावरेदार तथा सरल है।
(2) शैली विवरणात्मक है।
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