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RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 कबीर

May 21, 2019 by Safia Leave a Comment

RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 कबीर are part of RBSE Solutions for Class 9 Hind. Here we have given Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 कबीर.

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 कबीर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कबीर के मत से मीठे वचन क्यों बोलने चाहिए?
(क) सुनने वाले प्रभावित होते हैं।
(ख) मन को शान्ति प्रदान करते हैं।
(ग) अहंकार दूर होता है।
(घ) सम्मान प्राप्त करने के लिए।
उत्तर:
(ख) मन को शान्ति प्रदान करते हैं

प्रश्न 2.
कबीर ने संसार के दुःखों से बचने का क्या उपाय बताया
(क) मन्दिर-मस्जिद जाना
(ख) दूसरों की निन्दा करने को
(ग) वेद कुरान पढ़ने को
(घ) भगवान के नाम स्मरण को
उत्तर:
(घ) भगवान के नाम स्मरण को

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
कबीर के अनुसार गुरु ने क्या उपकार किया है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार गुरु ने शिष्य के ज्ञान-नेत्र खोलकर उसको अनंत परमात्मा के दर्शन कराए हैं।

प्रश्न 4.
कर्म की महिमा बताने के लिए कबीर ने क्या उदाहरण दिया है?
उत्तर:
कर्म की महिमा बताने के लिए कबीर ने शराब से भरे हुए घड़े का उदाहरण दिया है। मनुष्य उच्च कुल में जन्म लेने से नहीं अपितु अपने श्रेष्ठ कर्म से ही महान बनता है।

प्रश्न 5.
कबीर ने हिन्दू मुसलमान की क्या-क्या उपासना पद्धति बताई है?
उत्तर:
कबीर ने बताया है कि हिन्दू वेद पढ़ते हैं और पूजा करते हैं। मुसलमान कुरान पढ़ते हैं और नमाज अदा करते हैं।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
“ढाई आखर प्रेम का” साखी के माध्यम से कबीर ने क्या सन्देश दिया है?
उत्तर:
कबीर धर्म ग्रन्थों के पठन-पाठन और ज्ञान को ईश्वर प्राप्ति की साधना में सहायक नहीं मानते। उनका मानना है। कि ईश्वर को उससे सच्चा प्रेम करके ही पाया जा सकता है। कबीर का संदेश है कि. ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे सहज उपाय है-ईश्वर से प्रेम, उसकी सच्चे मन से भक्ति।

प्रश्न 7.
कबीर ने घटि-घटि राम” को किस प्रकार समझाया है?
उत्तर:
कबीर ने बताया है कि ईश्वर प्रत्येक मनुष्य के मन में निवास करता है। अज्ञानवेश मनुष्य उसे बाहर मन्दिरों-मस्जिदों में तलाशता है। यह बात समझाने के लिए कबीर ने कस्तूरी मृग का उदाहरण दिया है। कस्तूरी मृग की
नाभि में होती है परन्तु वह उसको वन में अनेक पेड़-पौधों में तलाश करता है। वह नहीं जानता कि कस्तूरी की गंध तो उसकी नाभि से ही आ रही है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 8.
“खोजी होय तो तुरतै मिलिहौ’ के आधार पर ईश्वर की अनुभूति के उपाय लिखिए।
उत्तर:
ईश्वर निराकार-निर्गुण है। लोग जब उसकी तलाश मन्दिरों, मस्जिदों, काबा, काशी आदि स्थानों पर करते हैं तो असफल ही रहते हैं। सच्चे मन से खोजने वाला व्यक्ति उसको एक क्षण में ही तलाश लेता है। परमात्मा प्राणी के अन्त:करण में ही विद्यमान है। उसको पाने के लिए, उसकी अनुभूति अपने मन में ही करने की जरूरत है। उसके स्वरूप का ध्यान करने से ही उसकी अनुभूति होती है। मन्दिर-मस्जिद में जाना, धार्मिक पुस्तकें पढ़ना, हुवन-स्तुति-आरती करना आदि बाहरी कर्म करने से वह नहीं मिलता। उसकी तलाश में योग और वैराग्य भी निरर्थक हैं। सच्चे प्रेम, लगन और आत्मनिरीक्षण से ही उस ईश्वर को जाना जा सकता है।

प्रश्न 9.
कबीर ने ईश्वर के एकेश्वरवादी स्वरूप को किस प्रकार स्पष्ट किया है?
उत्तर:
कबीर पर एकेश्वरवाद का गहरा प्रभाव है। वह मानते हैं कि ईश्वर एक ही है। ईश्वर के दो अथवा अनेक होने को कबीर भ्रम मानते हैं। ‘दुइ जगदीश कहाँ ते आया, कहुँ कवने भरमाया’-कहकर वह एक ही ईश्वर के होने पर बल दे रहे हैं। उसको अल्लाह कहो या राम – है तो वह एक ही। आभूषण अनेक प्रकार के होते हैं। परन्तु वे सभी बनते सोने से ही हैं। मूल धातु तो सोना ही है। महादेव, मुहम्मद, ब्रह्मा, आदम-सब उसी एक ईश्वर के नाम हैं। नमाज और पूजा उसी ईश्वर की उपासना की पद्धति है। वेदों और कुरान में उसी ईश्वर के बारे में बताया गया है। हिन्दू और मुसलमान सबको उसी ने बनाया है, सब उसी की संतान हैं। अतः ईश्वर के एक ही होने में कोई संदेह नहीं है।

प्रश्न 10.
पठित अंश के आधार पर आधुनिक सन्दर्भ में कबीर की प्रासंगिकता किस प्रकार है? समझाइए।
उत्तर:
कबीर आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व संसार में आए थे। विभिन्न पूजा-पद्धतियाँ उस समय प्रचलित थीं। भारत में मुसलमानों और इस्लाम धर्म का आगमन हो चुका था। इस्लाम धर्म अपने आक्रमणकारी उपासकों के साथ आया था। जब यहाँ मुसलमानों का राज्य स्थापित हो गया और वे यहाँ स्थायी रूप से रहने लगे तो दोनों धर्मों तथा संस्कृतियों में एक दूसरे को समझने का प्रयास शुरू हुआ। इन दोनों के बीच समन्वय स्थापित करने में कबीर जैसे सन्त कवियों का महत्वपूर्ण योगदान है। कबीर का व्यक्तित्वे प्रखर था और वह निर्भीक थे। वह दोनों को डाँट सकते थे तथा प्रेम से समझा भी सकते थे। आज भी ऐसे ही व्यक्ति की आवश्यकता है जो दोनों को कठोरता, तर्क प्रधानता, भावनात्मकता और प्रेमोपदेश के द्वारा समझा सके। यह सब करना कबीर के लिए बहुत आसान होता। अतः आज भी कबीर की प्रासंगिकता विद्यमान है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सतगुरु की महिमा अनंत’ कबीर के इस कथन का आशय क्या है ?
उत्तर:
कबीर का आशय है कि सद्गुरु की महिमा का पूरा वर्णन कर पाना उनके लिए सम्भव नहीं है।

प्रश्न 2.
सतगुरु का कबीर पर क्या उपकार है?
उत्तर:
सतगुरु ने कबीर को आत्मज्ञान प्रदान कर परमात्मा के दर्शन कराये हैं।

प्रश्न 3.
कबीर की दृष्टि में ईश्वर की सच्ची भक्ति किस प्रकार की जा सकती है?
उत्तर:
कबीर की दृष्टि में ईश्वर का नाम स्मरण करके ही उनकी सच्ची भक्ति की जा सकती है।

प्रश्न 4.
मनुष्य ईश्वर को कहाँ हूँढ़ते हैं तथा क्यों?
उत्तर:
लोग ईश्वर को अपने अज्ञान के कारण मंदिर-मस्जिद में ढूँढ़ते हैं। ईश्वर तो उनके अपने मन में ही विद्यमान है।

प्रश्न 5.
मनुष्य के जीवन में निंदक का क्या महत्व है?
उत्तर:
मनुष्य के जीवन में निन्दक का महत्वपूर्ण स्थान है। वह मनुष्य को उसके दोषों का ज्ञान कराकर उसके स्वभाव को अच्छा बनाता है।

प्रश्न 6.
सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतानें हैं। इस बात को कबीर ने किस उदाहरण से समझाया है ?
उत्तर:
इस बात को कबीर ने सोने और उससे बने विभिन्न नाम और रूपों वाले आभूषणों के उदाहरण से समझाया है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सोवन-कलस सुरै भरया, साधौ नींद्या सोइ’ – कथन द्वारा कवि कबीर ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
घड़ा चाहे मूल्यवान सोने से बना हो परन्तु यदि उसमें शराब भरी हो तो उसकी कोई प्रशंसा नहीं करता। इसी प्रकारे उच्च कुल में जन्म लेकर यदि कोई मनुष्य अच्छे और श्रेष्ठ काम नहीं करता तो सज्जनों की दृष्टि में वह निंदनीय ही होता है। मनुष्य का सम्मान उसके जन्म से नहीं सत्कर्मों से ही होता है। कवि कबीर ने यहाँ अच्छे काम करने की प्रेरणा दी है।

प्रश्न 2.
‘निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय’ – पंक्ति में कबीर ने निंदक के साथ कैसा व्यवहार करने की सीख दी है तथा क्यों?
उत्तर:
कबीर ने कहा है कि निंदक को सदा अपने निकट ही रखना चाहिए। उसे अपने घर में सुख और सम्मान के साथ रखना चाहिए। उसकी निन्दा हमारा हित करने वाली होती है। उसकी निन्दा को सुनकर हम अपने चरित्र के दोषों से परिचित हो जाते हैं तथा सावधानीपूर्वक उनको सुधार लेते हैं। इस प्रकार हमारा स्वभाव दोष मुक्त हो जाता है।

प्रश्न 3.
कबीर ने ईश्वर की तलाश कहाँ करने को कहा है। तथा क्यों?
उत्तर:
कबीर ने ईश्वर की तलाश अपने मन के अन्दर ही करने को कहा है, क्योंकि ईश्वर मनुष्य के मन में ही निवास करता है। मनुष्य अज्ञानवश इस तथ्य से अपरिचित होता है। तथा उसको बाहरी स्थानों यथा-मंदिर, तीर्थस्थान इत्यादि में ढूँढ़ता है। आत्मचिंतन द्वारा ईश्वर को अपने अन्दर ही पाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
को हिंदू को तुरुक कहावै’ एक जिमीं पर रहिये पंक्ति का मूल भाव क्या है?
उत्तर:
‘को हिंदू को तुरुक कहावै, एक जिर्मी पर रहिये’ – पंक्ति में सन्त कबीर ने हिन्दू-मुसलमानों को एक ही ईश्वर की संतान बताया है तथा झगड़ा-फसाद न करके मिलजुलकर रहने का संदेश दिया है। हिन्दू जिसको महादेव कहते हैं, उसी ईश्वर को मुसलमान मुहम्मद कहकर पुकारते हैं। हिन्दुओं के ब्रह्मा और मुसलमानों के आदम एक ही हैं। ईश्वर एक ही है। और उसी ने हिन्दू-मुसलमान दोनों को बनाया है। इसी एक धरती पर उनको रहना है, अतः धर्म के नाम पर झगड़ना मूर्खता है।

प्रश्न 5.
कबीर ने अपने काव्य द्वारा क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
कबीर का लक्ष्य कविता करना नहीं था। कविता तो उनके लिए अपने विचारों को लोगों तक पहुँचाने का माध्यम थी। कबीर ने लोगों से ईश्वर के निर्गुण स्वरूप को अपने अन्दर ही देखने को कहा है। ईश्वर को बाहरी स्थानों पर तलाश करना अज्ञान है। ईश्वर से सच्चे मन से प्रेम करना और निरन्तर उसका नाम स्मरण ही उसकी सच्ची भक्ति है। कबीर ने ईश्वर को सच्चे मन से स्मरण करने को कहा है। कबीर आचरण की पवित्रता को भी मानने वाले हैं। कोई मनुष्य उच्च कुल में जन्म लेकर महान नहीं बनता, अपने सत्कर्मों से ही महान बनता है। मधुर भाषण करना भी उसके आचरण का अंग है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न:
संत कबीर की कविता का संदेश क्या है ? अपनी पाठ्य-पुस्तक में संकलित काव्यांशों के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
कबीर मूल रूप से एक संत थे। काव्य-रचना तो उनमें ईश्वर द्वारा दी गई प्रतिभा से उत्पन्न गुण था। वह अनपढ़ थे, किन्तु उनके पास सत्संग का अनुभव और अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कहने का कौशल था। इसका उपयोग उन्होंने समाज के सही मार्गदर्शन के लिए किया। उन्होंने अपनी कविता द्वारा अनेक अनुकरणीय संदेश दिए हैं। कबीर ने गुरु का आदर करने, आडम्बररहित ईश्वर-भक्ति करने, श्रेष्ठ कर्म करने, मधुर वाणी का प्रयोग करने और निन्दा करने वाले को भी अपना हितैषी मानने का संदेश दिया है। कबीर का संदेश है कि धर्म का सहज और निर्मल स्वरूप अपनाया जाय। ईश्वर सबके घट-घट में विद्यमान है, उसे पाने के लिए सच्ची भक्ति और प्रेमभाव चाहिए। पंडितों या मौलवियों को बिचौलिया बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। उनके संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। हिन्दू-मुसलमानों को ही नहीं सभी देशवासियों को परस्पर मिल-जुलकर रहने का संदेश आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है। कबीर की कविता, नीति, विनम्रता, धार्मिक सद्भाव, प्रेम आदि का संदेश देती है।

-साखी, पद

पाठ-परिचय

साखियाँ-संकलित साखियों में कबीर ने सतगुरु की महत्ता, नाम-स्मरण, परमात्मा के प्रति प्रेम, श्रेष्ठ कर्मों का महत्व, मधुर भाषण की उपयोगिता, ईश्वर की सर्वत्र व्यापकता तथा उसका व्यक्ति के मन में ही प्राप्त होना, आलोचना से मन की पवित्रता प्राप्त होना आदि का प्रभावशाली वर्णन किया है। पद-प्रस्तुत पदों में कबीर ने ईश्वर की सर्वव्यापकता की बात कही है। ईश्वर साधक के मन में ही रहता है, उसे वहीं पाया जा सकता है। उसकी खोज में मंदिर-मस्जिद आदि बाहरी स्थानों पर भटकना निरर्थक है। राम और रहीम एक हैं। उनको अलग-अलग बताना ठीक नहीं है।

प्रश्न 1.
संत कबीर का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर-
कवि परिचय जीवन-परिचय-संत कबीर हिन्दी काव्य साहित्य की अद्वितीय विभूति हैं। कबीर के जन्म संबंधी विवरण पर विद्वान एकमत नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि कबीर का जन्म सन् 1398 ई. में काशी के समीप मगहर नामक स्थान पर एक जुलाहा परिवार में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार नीरू (पिता) और नीमा (माता) को कबीर कहीं पड़े मिले थे और उन्होंने उनका लालन-पालन किया। कबीर अनपढ़ थे लेकिन सत्संग एवं भ्रमण से प्राप्त अनुभव ने उनकी कविता को प्रभावशाली बना दिया। कबीर रामानंद जी के शिष्य थे।

यह गृहस्थ संत थे। सन् 1518 ई. में मगहर में कबीर का देहावसान हो गया। साहित्यिक परिचय-उन्होंने कविता के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों, अन्ध विश्वासों और धार्मिक कट्टरता पर चोट की। कबीर की भाषा में अनेक भाषाओं की शब्दावली का प्रयोग हुआ है। इसी कारण इसे कुछ लोग ‘खिचड़ी’ या ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहते हैं। कबीर की शैली भावात्मक, व्यंग्यात्मक, खंडन-मंडनात्मक तथा उपदेशात्मक है। आपकी कविता के विषय गुरु-महिमा, ईश्वर भक्ति, प्रेम, अहिंसा, ज्ञान, योग आदि हैं। कबीर की कविता में उनके अपने अनुभव बड़ी सहजता, सच्चाई और प्रभावशीलता से व्यक्त हुये हैं।

कबीर की उक्तियाँ बड़ी सटीक और निशाने पर चोट करने वाली हैं। उपमा, रूपक, दृष्टान्त तथा अन्योक्ति अलंकारों के सहज प्रयोग द्वारा कबीर अपनी बात को हृदय में उतार देते हैं। रचनाएँ-कबीर द्वारा रचे गये दोहों और पदों आदि को उनके शिष्यों ने संग्रहीत किया था। बीजक’ नामक संग्रह को इनकी प्रामाणिक रचना माना जाता है। इसके साखी, सबद तथा रमैनी तीन भाग हैं।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

1. सतगुरु की महिमा अनन्त, अनन्त, किया उपगार।
लोचन अनन्त उघाड़िया, अनन्त दिखावन हार॥
भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार।
मनसा वाचा कर्मना, कबीर सुमिरन सार॥

शब्दार्थ-अनन्त = जिसका अन्त न हो, अपार। अनन्त = असंख्य, अनेक। अनन्त = कभी न हुँदने वाले, हृदय के आत्म-ज्ञान के। लोचन = नेत्र। अनन्त = सर्वव्यापी, परमात्मा। नॉव = नाम। दूजा = दूसरे भौतिक संसार के कार्य। मनसा = मन से। वाचा = वाणी से। कर्मना = कार्यों से। सार = तत्व।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के कबीर नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता संत कबीर हैं। कबीर ने यहाँ जीवन में सतगुरु की आवश्यकता तथा ईश्वर के नाम-स्मरण की महत्ता बताई है।

व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि मानव जीवन में सतगुरु का बहुत महत्व होता है। सतगुरु अपने शिष्य पर अनेक उपकार करते हैं। सतगुरु के सदुपदेशों से ही उसके हृदय में स्थित ज्ञान के नेत्र खुलते हैं तथा तभी उसको अनन्त, अमर परमात्मा के दर्शन होते हैं। कबीर कहते हैं कि ईश्वर की सच्ची भक्ति और भजन उसका नाम स्मरण करने से ही होती है। अतः मनुष्य को मन, वचन और कर्म से ईश्वर के नाम का स्मरण करना चाहिए। सभी कर्मों का सारतत्व नाम-स्मरण ही है। संसार के अन्य सभी काम तो मनुष्य को अपार दुख देने वाले होते हैं।

विशेष-
(1) ‘अनन्त’ में यमक अलंकार है। ‘भगति भजन’, ‘दूजा दुक्ख’, ‘सुमिरन सार’ में अनुप्रास अलंकार है।
(2) दोहा छंद है। रस शान्त है।

2. पोथि पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई आखर प्रेम का, पढे सो पंडित होई॥
ऊँचे कुल क्या जनमियाँ, जे करणी ऊँच न होई।
सोवन-कलस सुरै भरया, साधौ नींद्या सोई॥

शब्दार्थ-पोथि = धर्म ग्रन्थ, पुस्तक। मुआ = मर गया। पंडित = ज्ञानी। आखर = अक्षर। करणी = कर्म, कार्य। सोवन = सोने से बना। कलस = घड़ा। सुरै = सुरा, शराब। साधौ = सज्जन पुरुष। नींद्या = निन्दा करना। सोइ = उसकी।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘कबीर’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसकी रचना करने वाले कवि कबीर हैं। कवि ने प्रेम को ही ईश्वर की भक्ति का सच्चा मार्ग बताया है। कवि ने कहा है कि जब तक मनुष्य अच्छे कार्य नहीं करता तब तक उच्च कुल में पैदा होकर भी वह प्रशंसनीय नहीं होता।

व्याख्या-कबीर कहते हैं कि पुस्तकें पढ़ने से सच्चा ज्ञान नहीं मिलता, न ईश्वर की प्राप्ति होती है। पुस्तकें पढ़ते-पढ़ते पूरा जीवन बीत जाता है और मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। परन्तु उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। मनुष्य को सच्चा ज्ञान तभी मिलता है जब उसके मन में ईश्वर से प्रेम की ज्योति जलती है। परमात्मा से सच्चा प्रेम करके ही मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है। कवि कहता है कि मनुष्य को सम्मान उसके सत्कर्मों से मिलता है, ऊँचे कुल में पैदा होने से नहीं। जिस मनुष्य के कार्य ऊँचे कुल में पैदा होने पर भी उत्तम नहीं होते, सज्जन लोग उसकी निन्दा ही करते हैं, क्योंकि वह शराब से भरे हुए सोने के कलश के समान होता है। सोना मूल्यवान होता है। किन्तु शराब के सम्पर्क से वह निंदनीय हो जाता है।

विशेष-
(1) दोहा छंद है तथा शान्त रस है।
(2) भाषा सरल, सधुक्कड़ी है। ‘पोथी पढ़ि-पढ़ि’ में अनुप्रास अलंकार है।

3. ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोई।
औरन कें सीतल करै, आपै सीतल होई॥
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढुढे बन माहिं।
ऐसै घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिं॥

शब्दार्थ-बानी = वाणी, बोली। आपा = घमण्ड। खोई = त्याग कर। सीतल = शान्त, सुखी। आपै = स्वयं भी। कस्तूरी = नर हिरन की नाभि के पास बनी थैली में पाया जाने वाला एक सुगंधित पदार्थ। कुंडलि = नाभि। मृग = हिरण। घटि = हृदय में।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘कबीर’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सन्त कबीर हैं। कबीरदास ने जीवन में मधुर भाषण की महत्ता प्रकट की है। उनका कहना है कि ईश्वर प्रत्येक प्राणी के मन में रहता है। उसे वहीं अनुभव किया जा सकता है।

व्याख्या-कवि कहता है कि मनुष्य को मृदुभाषी होना चाहिए। उसे अपने मन के अहंकार को छोड़कर सबके साथ मधुर वाणी में बोलना चाहिए। मधुर बोलने से उसका अपना मन भी प्रसन्न होता है और सुनने वाले को भी सुख और शांति मिलती है।

कवि कहता है कि कस्तूरी तो हिरण की नाभि में ही विद्यमान होती है। उसकी सुगन्ध आने पर हिरण भ्रम के कारण उसको वन में इधर-उधर ढूँढ़ता फिरता है। वह इस सच्चाई को जानता ही नहीं कि कस्तूरी तो उसकी नाभि में ही है। इसी प्रकार परमात्मा सभी प्राणियों के हृदय में रहता है। परन्तु मनुष्य इस बात को जानता नहीं है। अपने अज्ञान के कारण वह उसको बाहर मंदिरों, मस्जिदों, तीर्थस्थानों इत्यादि में ढूँढ़ता फिरता है।

विशेष-
(1) भाषा सरल और सधुक्कड़ी है। रस शान्त है।
(2) दोहा छंद का प्रयोग हुआ है। अलंकार अनुप्रास तथा उदाहरण है।

4. निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबन बिना, निरमल करै सुभाय॥

शब्दार्थ-निन्दक = बुराई करने वाला, दोष बताने वाला। नियरे = निकट। छबाय = बनवाकर। साबन = साबुन। निरमल = पवित्र। सुभाय = स्वभाव।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘कबीर’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसकी रचना सन्त कबीर ने की है। कवि ने मानव स्वभाव को अच्छा बनाने में निन्दक के महत्व का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि हमें अपनी निंदा करने वाले व्यक्ति को सम्मान और प्रेम के साथ अपने पास ही रखना चाहिए। वह साबुन और पानी का प्रयोग किए बिना ही हमें दोषों से मुक्त कर देता है। हम उसकी निंदा से सतर्क होकर स्वयं ही दोषों का त्याग करते हुए निर्मल-मन हो जाते हैं।

विशेष-
(1) भाषा सरल प्रभावपूर्ण है।
(2) अलंकार अनुप्रास है। पद

1.मोको कहाँ ढूढे बंदे, मैं तो तेरे पास में,
ना मैं देवल ना मैं मसजिद ना काबे कैलास में,
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहिं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौ, पल भर की तलास में,
कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में॥

शब्दार्थ-बंदा = भक्त। देवल = देवालय, मंदिर। काबा = मुसलमानों का तीर्थस्थल। कौने = किसी। बैराग = वैराग्य, विरक्ति। तुरतै = तुरन्त। पल = क्षण।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के पद’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कबीरदास हैं। कवि ने बताया है कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में ही निवास करता है परन्तु मनुष्य अज्ञानवश उसे बाहरी स्थानों पर तलाशता है।

व्याख्या-कवि कहता है कि ईश्वर को बाहरी स्थानों पर जाकर तलाश करना ठीक नहीं है। वह वहाँ नहीं रहता है। वह किसी मन्दिर, मस्जिद, काबा, कैलाश में नहीं मिलता। उसे पाने के लिए किए जाने वाले सभी क्रिया-कर्म व्यर्थ हैं। उनके द्वारा उसे पाना संभव नहीं है। उसे योग-साधना करके और वैराग्य ग्रहण करके भी नहीं पाया जा सकता। उसे तलाश करने वाला समझदार मनुष्य क्षणभर की तलाश में ही आत्मनिरीक्षण के द्वारा उसे पा लेता है क्योंकि वह तो उसके मन में ही रहता है। कबीर कहते हैं ‘‘हे! साधुओ सुनो, ईश्वर समस्त प्राणियों की श्वास-प्रश्वास में निवास करता है।”

विशेष-
(1) ‘पद’ नामक गेय छन्द में रचना हुई है। गीतिकाव्य होने से संगीतात्मकता की प्रधानता है।
(2) ‘काबे, कैलास’ तथा ‘कौने क्रिया-कर्म’ में अनुप्रास अलंकार है। रस शांत है।

2. भाईरे !दुई जगदीश कहाँ ते आया, कहुँकवने भरमाया।
अल्लह-राम करीमो केसो हजरत नाम धराया।
गहना एक कनक ते गढ़ना, इनि महँ भाव न दूजा।
कहन-सुनन को दुर करि पापिन, इक निमाज, इक पूजा॥
वही महादेव वही महंमद, ब्रह्मा-आदम कहिये।
को हिन्दू को तुरुक कहावै, एक जिमीं पर रहिये।
वेद कितेब पढ़े वे कुतुबा, वे मोलाना वे पाँडे।
बेगरि-बेगरि नाम धराये, एक मटिया के माँडे॥
कहँहि कबीर वे दूनौ भूले, रामहिं किनहुँ न पाया॥

शब्दार्थ- दुई = दो। जगदीश = ईश्वर। कवने = किसने। भरमाया = भ्रम में डाला है। अल्लह = अल्लाह। केसो = केशव। गहना = आभूषण। कनक =सोना। गढ़ना = बनाना। पापिन = पापियों ने। महंमद = मुहम्मद। तुरुक = मुसलमान। जिमीं = पृथ्वी। कितेब = पुस्तक। बेगरि-बेगरि = अलग-अलग। मटिया=मिट्टी। माँडे (भाँडे) = बर्तन, बने हुए। किनहुँ = किसी ने।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के पद’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता सन्त कवि कबीरदास हैं। कवि ने यहाँ संदेश दिया है कि अल्लाह और राम एक ही हैं। उनको दो समझना भ्रम है। इस भ्रम से मुक्त होकर ही ईश्वर को पाया जा सकता है।

व्याख्या-कबीर कहते हैं कि ईश्वर दो नहीं हो सकते। बताओ, यह भ्रम तुम्हारे मन में किसने पैदा किया है? अल्लाह, राम, करीम, केशवे सभी उसी परमात्मा के नाम हैं। आभूषण अनेक प्रकार के होते हैं किन्तु वह जिस सोने से बनाए जाते हैं, वह तो एक ही होता है। उनको भिन्न-भिन्न वस्तु से उत्पन्न मानना ठीक नहीं है। इसी प्रकार हिन्दू और मुसलमान एक ही ईश्वर की संतानें हैं। उसकी उपासना के ढंग, नमाज और पूजा अलग-अलग हो सकते हैं। अज्ञानियों ने कहने-सुनने को उनके दो नाम रख दिए हैं। महादेव, मुहम्मद, ब्रह्मा, आदम एक ही परमात्मा के स्वरूप हैं। ईश्वर को किसी भी नाम से पुकारो-है तो वह एक ही। हिन्दू और मुसलमान भी एक ही हैं। और उनको एक ही धरती पर साथ-साथ रहना है। फिर धर्म के नाम पर लड़ना बेकार है। हिन्दू वेद और मुसलमान कुरान पढ़ते हैं। मुसलमान मौलाना और हिन्दू पांडे कहलाते हैं। ये तो दो अलग-अलग नाम रख लिए हैं। वास्तविकता तो यह है कि वे दोनों एक ही मिट्टी से बने बर्तन हैं। कबीर कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही अज्ञान और भ्रम में पड़े हैं। वे ईश्वर और सभी मनुष्यों को उसी की संतान होने का रहस्य समझ ही नहीं पाये हैं। अपने इस अज्ञान के कारण वे ईश्वर को पा ही नहीं सके हैं और उसको अलग-अलग मानकर व्यर्थ लड़ते रहते हैं।

विशेष-
(1) भाषा सधुक्कड़ी तथा उपदेशात्मक है।
(2) गेय पद है, गीति शैली है।
(3) ‘करीमा केसो’ में अनुप्रास तथा बेगरि-बेगरि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं। रस शान्त

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