Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 तुलसीदास
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
श्रीराम के स्पर्श से शिला से नारी बनने वाली स्त्री का नाम क्या था?
(क) सावित्री
(ख) अहिल्या
(ग) शबरी
(घ) गौतमी
उत्तर:
(ख) अहिल्या
प्रश्न 2.
पठित काव्यांश किस काव्य ग्रन्थ से उधृत है?
(क) रामचरित मानस
(ख) कवितावली
(ग) विनय पत्रिका
(घ) दोहावली
उत्तर:
(क) रामचरित मानस
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
केवट ने नाव में बैठाने की श्रीराम के समक्ष क्या शर्त रखी?
उत्तर:
केवट ने राम के समक्ष शर्त रखी कि वह उनके पैर धोए बिना उनको अपनी नाव पर नहीं बैठाएगा।
प्रश्न 4.
‘सोइ करु जेहिं तव नांव न जाई’ – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राम ने केवट की पाँव धोकर ही नाव पर बैठाने की शर्त मान ली और अपने पैर धोने की अनुमति दे दी।
प्रश्न 5.
‘एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं’ में किस ‘पुन्यपुंज का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
केवट द्वारा कठौते में पानी भरकर राम के पैर धोने को ‘पुन्यपुंज’ बताया गया है। राम के पैर धोकर केवट ने खूब पुण्य कमाया।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 6.
‘तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई’ – की अन्तर्कथा लिखिए।
उत्तर:
अन्तर्कथा – गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या शाप के कारण पत्थर की शिला बन गई थी। इन्द्र तथा चन्द्रमा ने षड्यन्त्र करके उसे छला था। चन्द्रमा ने मुर्गा बनकर बाँग दी। ऋषि गौतम सवेरा हुआ जानकर गंगा स्नान करने चले गए। तभी इन्द्र गौतम का रूप बनाकर उनकी पत्नी अहिल्या के पास पहुँचा और उससे दुराचार किया। गौतम लौटकर आए तो उन्होंने अहिल्या को पत्थर बनने का शाप दे दिया किन्तु उसके साथ छल हुआ है यह जानकर कहा कि वह राम के चरण का स्पर्श पाकर पुनः स्त्री बन जाएगी। विश्वामित्र के साथ मिथिला जाते समय राम के पैर की धूलि पड़ने पर अहिल्या पुनः नारी बन गई।
प्रश्न 7.
‘अब कुछ नाथ न चाहिअ मोरें’ केवट ने राम को गंगा पार उतार कर क्या प्राप्त कर लिया था कि उसे कुछ चाहत नहीं थी ?
उत्तर:
राम के चरण धोकर केवट कृतार्थ हो गया। उसे परम पुण्य प्राप्त हुआ था। इससे उसकी पूर्वजों सहित मुक्ति हो गई। थी। उसको राम की सेवा और भक्ति का श्रेष्ठ धन प्राप्त हो गया था। उसके दोष, दु:ख, दरिद्रता सब दूर हो गए थे। इतना सब प्राप्त करने के बाद केवट को राम से और कुछ प्राप्त करने की चाहत नहीं थी।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखिए
सुर, सुमन, नारी, तीर, नाव।
उत्तर:
पर्यावाची शब्द :
सुर – अमर, देवता, देव, आदित्य, वृन्दारक।
सुमन – पुष्प, प्रसून, फूल, कुसुम।
नारी – अबला, महिला, स्त्री, त्रिया, कलत्र।
तीर – किनारा, तट, कूल।
नाव – तरिणी, नौका, नैया, तरी, डोंगी।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 9.
भावार्थ लिखिए
(क) सुनि केवट ……. लखन तन।
(ख) एहि प्रतिपालऊ ………. कहहू।
उत्तर:
भावार्थ –
(क) नाव चलाकर राम को गंगा पार ले जाने के लिए केवट ने उनके पैर धोने की शर्त रखी। वह जान गया था कि राम ईश्वर के अवतार हैं। उनके पैर धोने से उसको मोक्ष प्राप्त हो जाएगा। अतः उसने राम से घुमा-फिराकर अपनी बात की। राम भी उसके मन की बात को समझ गए। उसकी प्रेम भरी अटपटी बातों में छिपी उसकी चतुराई को देखकर राम ने मुस्कराकर सीता और लक्ष्मण की ओर देखा। राम ने संकेत से सीता और लक्ष्मण को केवट की भक्ति तथा चतुराई के बारे में बताना चाहा।
(ख) केवट ने राम से कहा कि वह बिना उनके चरण धोए उनको अपनी नाव पर नहीं चढ़ाएगा। राम के चरणों की धूलि का स्पर्श पाकर उसकी नाव भी अहिल्या के समान नारी बन जाएगी। वह नाव चलाकर ही अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। धन कमाने का अन्य कोई उपाय भी नहीं जानता। यदि प्रभु राम गंगा पार जाना ही चाहते हैं तो वह उसको अपने चरण-कमलों को धोने की अनुमति प्रदान करें।
प्रश्न 10.
इस काव्यांश के आधार पर श्रीराम-केवट प्रसंग को कथा के रूप में लिखिए।
उत्तर:
अयोध्या से चलकर राम सीता और लक्ष्मण के साथ गंगा तट पर पहुँचे। उन्होंने सुमंत्र को अयोध्या वापस भेज दिया। गंगा नदी पार करने के लिए उन्होंने केवट से नाव लाने के लिए कहा। केवट उनको अपनी नाव में बैठाकर गंगा पार ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। केवट ने राम से कहा कि वह जानता है कि राम के पैरों की धल का स्पर्श पाकर शिला सन्दर स्त्री बन गई थी। उसकी नाव तो लकड़ी की बनी है। लकड़ी पत्थर की तुलना में कम कठोर होती है। वह इसी नाव से अपने परिवार का पेट पालता है। वह और कोई काम भी नहीं जानता।
अतः राम के पैर धोये बिना वह उनको अपनी नाव पर नहीं बैठाएगा। राम ने केवट की बात मान ली और उसे अपने पैर धोने की अनुमति दे दी। केवट ने प्रसन्नतापूर्वक राम के चरण धोए। राम द्वारा पार उतराई पूछने पर उसने कहा कि राम के चरण धोने से उसको सब कुछ प्राप्त हो गया है। लौटते समय वह जो कुछ देंगे, उसे वह प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेगा। राम, लक्ष्मण और सीता ने केवट से बहुत आग्रह किया परन्तु उसने उनसे कुछ भी लेने से इनकार कर दिया। तब दयालु राम ने उसको अपनी भक्ति का निर्मल वरदान देकर उसे विदा किया।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
इस पाठ का शीर्षक केवट का भाग्य’ क्यों रखा गया है?
उत्तर:
इस पाठ में केवट को राम के चरण धोने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। राम स्वयं ईश्वर हैं। अतः राम के चरण धोने वाला केवट अत्यन्त ही भाग्यशाली है।
प्रश्न 2.
केवट ने क्यों कहा है-“पाहन तें न काठकठिनाई।
उत्तर:
केवट राम को बताना चाहता है कि लकड़ी से बनी नावे पत्थर से कम कठोर है। जब शिला राम के चरण-धूलि का स्पर्श पाकर स्त्री बन गई तो नाव के साथ भी ऐसा अवश्य होगा।
प्रश्न 3.
‘पद नख निरखि देवसरि हरषी’-गंगा के प्रसन्न होने का क्या कारण है ?
उत्तर:
गंगा राम के पैरों के नाखून देखकर प्रसन्न हुई। गंगा का जन्में भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है। राम उन्हीं विष्णु के अवतार हैं।
प्रश्न 4.
केवट ने क्यों कहा-“अब कछु नाथ न चाहिए मोरें’।
उत्तर:
राम के चरण धोकर केवट ने अपने जीवन की सभी मनोकामनाओं की सिद्धि पा ली थी। उसे इससे बड़ी मजदूरी नहीं मिल सकती थी।
प्रश्न 5.
राम केवट के किस वचन को सुनकर हँसने लगे ?
उत्तर:
केवट ने राम से कहा कि भले ही लक्ष्मण उस पर बाणों की वर्षा कर दें, पर वह उनके पाँवों को धोकर ही उन्हें गंगा पार ले जायेगा। केवट के इस अटपटे भक्ति और प्रेमपूर्ण वचन को सुनकर राम हँसने लगे।
प्रश्न 6.
केवट ने व्याकुल होकर श्रीराम के चरणों को क्यों पकड़ लिया ?
उत्तर:
राम ने पार उतराई के रूप में सीता की अँगूठी लेने के लिए आग्रह करने पर केवट ने व्याकुल होकर श्रीराम के चरणों को पकड़ लिया।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘मानुष करनि मूरि कछु अहई’ – में केवट ने राम की चरण-रज के बारे में क्या बताया है ?
उत्तर:
केवट ने राम से कहा कि लोग कहते हैं कि उनके पैरों की धूल में कोई ऐसी जड़ी है, जिसमें अपने स्पर्श में आने वाली वस्तुओं को मनुष्य बनाने की शक्ति है। मैं नहीं चाहता कि आप मेरी नावे पर चढ़े और मेरी नाव स्त्री बने जाय। अतः मैं आपके पैर धोकर ही आपको अपनी नाव द्वारा गंगा पार कराऊँगा।
प्रश्न 2.
‘सोइ कृपालु केवटहि निहोरा’-पंक्ति में केवट से विनम्र अनुरोध करने वाले रानी के किस स्वरूप की ओर संकेत है।
उत्तर:
‘सोई कृपालु केवटहि निहोरा’ पंक्ति में तुलसी ने ‘सोइ’ शब्द से राम के सर्वशक्तिमान ईश्वर रूप की ओर संकेत किया है। उनका एक बार नाम स्मरण करके ही मनुष्य इस विशाल संसार-सागर से पार चले जाते हैं। उन्होंने अपने विराट रूप का प्रदर्शन कर (वामन अवतार में) दो कदमों में ही तीन लोकों को नाप लिया था। आज मनुष्य के रूप में अवतरित होकर वही राम केवट का निहोरा (खुशामद) कर रहे हैं।
प्रश्न 3.
‘एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं’ -कथन किसका है ? इसमें किस कार्य को श्रेष्ठ पुन्यपुंज बताया गया है?
उत्तर:
‘एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं’-कथन देवताओं का है। केवट अत्यन्त आनन्दित होकर राम के पैर धो रहा है। इस दृश्य को देखकर देवता उसकी सराहना कर रहे हैं और फूलों की वर्षा कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि केवट द्वारा राम के पैर धोने से उसको श्रेष्ठ पुण्य का लाभ होगा। किसी भी अन्य कार्य से इतना पुण्य लाभ सम्भव नहीं है।
प्रश्न 4.
‘पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयेउ लेइ पार’ में ‘पार’ शब्द दो बार आया है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘पितर पारु करि प्रभुहिं पुनि मुदित गयउ लेइ पार’-में पार शब्द दो बार आया है। पहली बार आए ‘पार’ शब्द का अर्थ है- भवसागर से पार कराना। दूसरी बार ‘पार’ शब्द को अर्थ है-गंगा नदी के पार। केवट ने राम के चरण धोए तथा उस चरणोदक को पी लिया। उसके इस पुण्य कार्य से उसको भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उसके पूर्वज भव-सागर के पार हो गए अर्थात् उनको मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् केवट ने राम, लक्ष्मण और सीता को नाव द्वारा गंगा नदी के पार पहुँचाया।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न:
‘तुलसी के काव्य में समन्वय की विराट चेष्टा है-इस कथन पर विचारपूर्ण टिप्पणी कीजिए।
अथवा
तुलसी के काव्य में लोकमंगल की भावना पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
तुलसी ने काव्य की रचना का उद्देश्य स्वान्तः सुखाय अर्थात् अपने मन के सुख को माना है। तुलसी के इस ‘स्वान्तः सुखाय’ का तात्पर्य तुलसी का स्वार्थी और आत्मकेन्द्रित होना नहीं है। उनका स्वान्तः सुखाय ‘परहिताय’ और ‘सर्वजन सुखाय’ ही है। उनकी रचनाओं के केन्द्र में सर्वजन के सुख की भावना ही विद्यमान है। हिन्दू समाज के विभिन्न मतों में समन्वय स्थापित करने को तुलसी का प्रयास इसी भावना से प्रेरित है।
तुलसी ने हिन्दुओं के शैव-वैष्णव, सगुण-निर्गुण आदि धर्म-सम्प्रदायों को एक बताकर तथा विभिन्न देवी-देवताओं में एक ही ईश्वर के होने की बात कहकर उनमें एकता स्थापित की है। तुलसी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को भी दूर करने का अथक प्रयास किया है। प्रभु राम केवट को गले लगाते हैं तथा शबरी के जूठे बेर खाते हैं। राम का यह रूप दिखाकर तुलसी ऊँच-नीच, अस्पृश्यता तथा जातिगत भेदभाव को दूर करना चाहते हैं। इस प्रकार तुलसी के सम्पूर्ण काव्य में लोकमंगल का भाव पाया जाता है।
केवट का भाग्य
पाठ-परिचय
‘केवट का भाग्य’ तुलसी के सुप्रसिद्ध महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ से लिया गया प्रसंग है। इस प्रसंग में गंगा को पार करने के लिए केवट से राम द्वारा नाव माँगने का वर्णन है। केवट चतुर राम भक्त है। वह जानता है कि राम ईश्वर के अवतार हैं। उनके चरण स्पर्श करके वह भवसागर से पार हो सकता है। भक्त वत्सल राम अपने भक्त केवट के वाक्-चातुर्य पर मुग्ध होकर उसको अपने पैर धोने की अनुमति दे देते हैं। इस प्रसंग में राम की अपने भक्त के प्रति वत्सलता तथा उदारता प्रगट हुई है। केवट की भक्ति का दृढ़ स्वरूप तथा उसका चातुर्य भी इसमें व्यक्त हुआ है।
प्रश्न 1.
राम भक्त तुलसी दास का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
कवि परिचय जीवन परिचय
राम भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसीदास के जन्म के समय तथा स्थान के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं। अधिकांश विद्वानों की राय में इनका जन्म सन् 1532 ई. को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर स्थान में हुआ था। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम तथा माता का नाम हुलसी था। बाबा नरहरि दास ने इनको संरक्षण प्रदान किया तथा शिक्षित किया। इनका विवाह रत्नावली नामक ब्राह्मण कन्या से हुआ था। राम भक्ति तथा उससे सम्बन्धित साहित्य की रचना करते हुए तुलसी सन् 1623 ई. को काशी में दिवगंत हो गए। साहित्यिक परिचय-तुलसी महान् कवि थे। उनका अवधी तथा ब्रजभाषा पर पूर्ण अधिकार था। आपने प्रबन्ध तथा मुक्तक दोनों ही प्रकार के काव्य की रचना की है। तुलसी ने अपने काव्य के माध्यम से हिन्दू धर्म के विभिन्न मतों में समन्वय स्थापित करने की विराट चेष्टा की है। रचनाएँ-‘रामचरितमानस’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसके अतिरिक्त गीतावली, कवितावली, दोहावली, कृष्ण गीतावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, रामलली नहछु, वैराग्य-संदीपनी और बरवै रामायण उनकी अन्य रचनाएँ हैं। ‘विनय पत्रिका’ में तुलसी का भक्तरूप व्यक्त हुआ है।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
चौपाई –
बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए॥ मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥ चरन कमल रंज कहँ सब कहई। मानुष करनि मृरि कछ अहई॥ छुअत सिला भई नारि सुहाई। पाहन ते न काठ कठिनाई। तरनिउ मुनि-घरिनी होई जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई॥ एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥ जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥
शब्दार्थ-बरबस = जबरदस्ती। मरम् = भेद, रहस्य। मूरि = मूल, जड़। कठिनाई = कठोरता। तरनिउ = नाव भी। घरिनी = पत्नी, अहिल्या। बाट = मार्ग। परइ = रुकना। कबारू = काम। पद पदुम = चरण। पखारन = धोना।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘केवट का भाग्य’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। कवि ने यहाँ बताया है कि केवट ने राम को उनके चरण धोए बिना अपनी नाव में बैठाकर गंगा पार ले जाने से मना कर दिया।
व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि राम ने अपने रथ के सारथी सुमन्त्र को उनकी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती अयोध्या वापस भेज दिया। इसके बाद वह गंगा नदी के तट पर आए। उन्होंने निषादराज से गंगा के पार जाने के लिए नाव माँगी किन्तु उसने मना कर दिया। केवट ने कहा कि मैं आपका रहस्य जान गया हूँ कि आप ईश्वर के अवतार हैं तथा आपके पैरों की धूलि के स्पर्श से पत्थर मनुष्य बन जाते हैं। सब कहते हैं कि आपके चरणों की धूल में कोई ऐसी जड़ी है जो वस्तुओं को मनुष्य बना देती है। आपकी चरण धूलि को छूते ही पत्थर (गौतम ऋषि की पत्नी) स्त्री बन गई। मेरी नाव तो काठ की बनी है जो पत्थर की तुलना में कम कठोर है। मेरी नाव भी मुनि की पत्नी बन जाएगी। मेरी नाव के उड़ जाने पर मेरे रोजगार का रास्ता भी रुक जाएगा। मैं इसी की सहायता से अपने पूरे परिवार का पालन करता हूँ। मैं धन कमाने के लिए अन्य कोई काम भी नहीं जानता। हे स्वामी राम ! यदि आप गंगा के पार ही जाना चाहते हैं तो मुझे अपने चरण कमलों को धोने की अनुमति प्रदान करें।
विशेष-
(1) चौपाई छंद है। ‘चरन-कमल’ और ‘पद पदमु पखारन’ में रूपक तथा अनुप्रास अलंकार हैं। शान्त रस है।
(2) ‘तरनिङ ……………………….. होई जाई- में गौतम ऋषि के शाप से शिला बन गई उनकी पत्नी अहिल्या के पुनः नारी बनने की ओर संकेत है।
छंद-पद कमल धोइ चढाइ नाव न नाथ उतराई चहौं। मोहि राम राउरि आन दसरथ सपथ सब साँची कहौं। बरु तीर मारहुँ लखनु पै जब लगि न पाय पखारिहौं। तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपालु पारू उतारिहौं॥
सोरठी-
सुनि केवट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहसे करूना ऐन, चितइ जानकी लखन तन॥
शब्दार्थ-उतराई = नदी पार ले जाने की मजदूरी। च = चाहता हूँ। राउर = आपकी। बरु = भले ही। पखारिहौं = धोऊँगा। लगि = तक। कृपालु = दयालु। उतारिहौं = (गंगा के) पार ले जाऊँगा।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘केवट का भाग्य’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। महाकवि ने इस पद्यांश में बताया है कि केवट राम को उनके पैर धोने के पश्चात् ही अपनी नाव में चढ़ाने को तैयार है। अपनी इस शर्त के पूरे हुए बिना वह उनको गंगा के पार नहीं ले जाएगा।
व्याख्या-निषादराज ने प्रभु राम से कहा-हे नाथ, मैं आपके चरण कमलों को धोने के बाद ही आपको नाव पर चढ़ाऊँगा। मैं आपको गंगा नदी के पार ले जाने के लिए कोई उतराई भी नहीं माँग रहा। हे राम! मैं आपकी मर्यादा और महाराज दशरथ जी की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि मैं जो कुछ कह रहा हूँ वह सत्य है। मैं झूठ नहीं बोल रहा। भले ही मेरी इस बात को सुनकर लक्ष्मण जी क्रोधित हो उठे और मेरे ऊपर बाणों की वर्षा कर दें किन्तु मैं आपको उस समय तक अपनी नाव पर चढ़ाकर गंगा पार नहीं ले जाऊँगा, जब तक मैं आपके पैरों को धो नहीं लूंगा। हे दयालु राम, मैं बिना आपके पैर धोये आपको गंगा पार नहीं ले जाऊँगा। केवट की प्रेमभरी और अटपटी बातें सुनकर दयालु राम हँसने लगे और उन्होंने सीता और लक्ष्मण की ओर देखा।
विशेष-
(1) इसकी रचना अवधी भाषा में हुई है।
(2) तुलसी ने इसमें ‘रोला एवं सोरठा’ छंद का प्रयोग किया है।
चौपाई-
कृपा सिन्धु बोले मुसुकाई। सोइ करू जेहिं तव नाव न जाई। बेगि आनु जल पाय पखारू) होत बिलंबु उतारहि पारू॥ जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥ सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा॥ पद नख निरखि देवसरि हरषी। सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी। केवट राम रजायसु पावा। पानि कठवता भरि लेइ आवा। अति आनन्द उमगि अनुरागा। चरन सरोज पखारन लागा।। बरषि सुमन सुर सकल सिहाहीं। एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं॥
दोहा
पद पखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार।
पितर पारू करि प्रभुहि पुनि, मुदित गयउ लेइ पार।
शब्दार्थ-कृपा सिंधु = दया के सागर, अत्यन्त दयालु। जेहिं = जिससे। तव = तुम्हारी। बेगि = शीघ्र। बिलंबु = देरी। सुमिरत = स्मरण करने से। अपारा = गम्भीर, विशाल। निहोरा = निवेदन करना। पगहु = पैरों। थोरा = छोटा, थोड़ा। देवसरि = गंगा नदी। रजायसु = आदेश। उमगि = उमंगित होकर, प्रसन्नतापूर्वक। प्रसन्न होना = सराहना करना। पान = पीना। पितर = पूर्वज। पारु = तारना। मुदित = प्रसन्न।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘केवट का भाग्य’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की है। महाकवि तुलसी ने यहाँ राम की उदारता और दयालुता का सुन्दर वर्णन किया है।
व्याख्या-तुलसीदास कहते हैं कि केवट के आग्रह को सुनकर परम दयालु राम मुस्कराए और उससे कहा कि तुम वही काम करो जिससे तुम्हारी नाव न चली जाय। जल्दी से पानी लाकर मेरे पैर धोओ। मुझे देर हो रही है, शीघ्र गंगा पार उतारो। जिस (राम रूप ईश्वर) का नाम एक बार ही लेने से मनुष्य गंभीर संसार-सागर को पार कर लेता है तथा जिसने बावन अवतार लेकर सम्पूर्ण धरती को तीन से भी कम कदमों में नाप लिया था, वही दयालु राम गंगा पार कराने के लिए केवट की खुशामद कर रहे हैं। यह देखकर देवनदी गंगा की मति मोह से भ्रमित हो गई परन्तु शीघ्र ही राम की बातें सुनकर उनका मोह दूर हो गया। राम के पैरों के नाखून देखकर गंगा को ज्ञान हो गया कि राम विष्णु के अवतार हैं, जिनके पैरों से गंगा नदी उत्पन्न हुई है। वह प्रसन्न हो उठी। केवट को जैसे ही राम की अनुमति प्राप्त हुई वह कठौते में पानी भरकर ले आया। वह अत्यन्त प्रसन्नता तथा उत्साहपूर्वक प्रेम के साथ राम के चरण-कमल धोने लगा। इस अत्यन्त पवित्र तथा पुण्यदायक काम को देखकर देवता प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करने लगे तथा फूलों की वर्षा करने लगे। राम के चरण धोने के बाद कठौते में भरे हुए उस पानी को केवट ने अपने पूरे परिवार के साथ पी लिया। इससे उसके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो गया। फिर वह प्रसन्नतापूर्वक राम को गंगा के पार ले गया।
विशेष-
(1) इस अंश में साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2) रस शान्त है। चौपाई तथा दोहा छंदों का प्रयोग हुआ है।
(3) अनुप्रास तथा रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
चौपाई-
उतरि ठाढ़ भये सुरसरि रेता। सीय रामु गुह लखन समेता। केवट उतरि दंडवत कीन्हा। प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा॥ पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी। कहेउ कृपाले लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई॥ नाथ आजु मैं काह न पावा। मिटे दोष दुख दारिद दावा॥ बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी। आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी॥ अब कछु नाथ न चाहिअ मोरे। दीनदयाल अनुग्रह तोरें॥ फिरती बार मोहि जो देबा। सो प्रसाद मैं सिर धरि लेबा। दोहा-बहुत कीन्हीं प्रभु लखन सियँ, नहिं कछु केवटु लेइ। विदा कीन्ह करूनायतन, भगति बिमल बरू देई॥
शब्दार्थ-रेता = रेत (बालू) पर। गुह = निषादराज, केवट। दंडवत = प्रणाम। हिय = मन। मुदरी = अँगूठी। गहे = पकड़ लिए। काह = क्या। दारिद = दरिद्रता। दावा = अग्नि। विधि= भाग्य, ईश्वर। अनुग्रह = दया। प्रसादु = प्रसन्नतापूर्वक दी हुई वस्तु। सिर धरि = विनम्रतापूर्वक ग्रहण करना। करुणायतन = दयालु। बिमल = पवित्र, निर्मल। बरु = वरदान।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ के ‘केवट का भाग्य’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता राम भक्त कवि तुलसीदास हैं। कवि ने यहाँ केवट का राम को गंगा पार पहुँचाने की कोई भी मजदूरी न लेने पर उसको अपनी श्रेष्ठ भक्ति का वरदान प्रदान करने का अनुपम चित्रण किया है।
व्याख्या-तुलसीदास जी कहते हैं कि राम, सीता, लक्ष्मण और निषादराज गुह नाव से उतरकर गंगा की रेत पर जा खड़े हुए। नाव से उतरकर केवट ने उनको दंडवत प्रणाम किया। यह देखकर राम ने संकोच से भरकर सोचा कि मैंने तो इसको कुछ दिया ही नहीं। सीता अपने प्रियतम राम के मन की बातें समझ गईं और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक अपनी उंगली से रत्नों से जड़ी अँगूठी उतारी। राम ने वह अँगूठी केवट को देते हुए कहा कि तुम अपनी यह मजदूरी ग्रहण करो। इस पर व्याकुल होकर केवट ने राम के पैर पकड़ लिए। उसने कहा-हे नाथ! आज मुझे सब कुछ मिल गया है। आपके चरणों का स्पर्श पाकर मेरे सभी दु:ख, दोष मिटकर दरिद्रता की आग शांत हो गई है। मैंने बहुत समय से मजदूरी की है किन्तु आज ईश्वर ने मुझे भरपूर मजदूरी प्रदान की है। हे नाथ ! अब मुझे कुछ भी लेने की इच्छा नहीं है। आपकी कृपा से मुझे सब कुछ मिल चुका है। वन से लौटते समय आप जो कुछ भी देंगे कृपापूर्वक दी हुई आपकी वह वस्तु मैं विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लूंगा। राम, लक्ष्मण और सीता ने केवट से बहुत बार मजदूरी ग्रहण करने को कहा परन्तु केवट ने कुछ भी लेना स्वीकार नहीं किया। तब दया के सागर राम ने उसको अपनी भक्ति का निर्मल वरदान देकर विदा किया।
विशेष-
(1) चौपाई तथा दोहा छंदों का प्रयोग हुआ है।
(2) साहित्यिक अवधी भाषा में रचना प्रस्तुत हुई है।
(3) अलंकार अनुप्रास है।
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