Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 बिहारी
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
बिहारी के अनुसार संसार किसे प्राप्त कर मदमस्त हो जाता है?
(क) धतूरे को
(ख) शराब को
(ग) स्वर्ण को
(घ) सम्मान को।
उत्तर:
(ग) स्वर्ण को
प्रश्न 2.
नल, नीर और नर की समानता से बिहारी ने क्या सन्देश दिया है?
(क) समान गति से चलना
(ख) विनम्र बनना
(ग) नीचे ही रहना
(घ) धीरज रखना।
उत्तर:
(ख) विनम्र बनना
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 3.
‘खोटै ग्रह जपदान’ पंक्ति से बिहारी ने किस मनोभाव को प्रकट किया है?
उत्तर:
‘खोटै ग्रह जपदान’ पंक्ति से बिहारी ने प्रकट किया है कि लोग भय के कारण ही पूजा-पाठ आदि कार्य करते हैं। अनिष्ट का भय लोगों को किसी का सम्मान अथवा पूजा करने को प्रेरित करता है।
प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण के किस रूप को कवि अपने मन में बसाना चाहता है?
उत्तर:
कवि बिहारी श्रीकृष्ण के मधुर स्वरूप को (सिर पर मुकुट लगाए, कमर में कच्छा पहने, हाथ में बाँसुरी पकड़े तथा गले में हार पहने हुए) अपने मन में बसाना चाहते हैं।
प्रश्न 5.
संसार को तपोवन क्यों कहा गया है?
उत्तर:
तेज गर्मी पड़ने के कारण एक-दूसरे के प्रति शत्रु भाव रखने वाले जीव एक ही स्थान पर निर्भय होकर बैठे हैं। यह देखकर बिहारी को संसार तपोवन के समान प्रतीत होता
प्रश्न 6.
बिहारी प्रकृतिगत स्वभाव को अपरिवर्तनशील क्यों मानते हैं?
उत्तर:
मनुष्य का स्वभाव बाहरी प्रयत्नों से नहीं बनता। वह जन्मजात होता है। अतः उसको बदला नहीं जा सकता।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 7.
निम्न पंक्तियों को आशय स्पष्ट कीजिए
(क) वा खाए बौरातु हैं, इहि पाए बौराय।
(ख) सुन्यौ कहूँ तरु अरक तै, अरक समानु उदोतु।
(ग) सौ तोको सागरू जहाँ, जाकी प्यास बुझाय।
(घ) बढ़ते-बढ़त संपति सलिलु, मेने-सरोज बढ़ि जाय।
उत्तर:
आशय
(क) कनक का अर्थ धतूरा और सोना दोनों होता है। दोनों का प्रभाव एक जैसा होता है। धतूरा खाने से लोग बौरा जाते हैं और सोना पाकर भी धन बल के कारण पागल हो जाते हैं।
(ख) गुणहीन व्यक्ति को गुणवान बताने से वह वैसा नहीं हो जाती।
(ग) कोई वस्तु चाहे वह छोटी हो या बड़ी यदि मनुष्य की जरूरत के समय उसके काम आती है, तो वही उसके लिए महत्वपूर्ण होती है। संकट में सहायता देने वाला ही मनुष्य की दृष्टि में ईश्वर के समान महान् होता है।
(घ) धन बढ़ने पर मनुष्य की आदतें खर्चीली हो जाती हैं। धन घटने पर उसके स्वभाव में अन्तर नहीं आता और वह कष्ट उठाता है।
प्रश्न 8.
निम्न की व्याख्या कीजिए
(क) दीरघ साँस न लेई दुख……………….सु कबूलि।
(ख) अति अगाधु………………………प्यास बुझाय।।
उत्तर:
(क) सुख-दुख को ईश्वर की देन मानकर समान भाव से स्वीकार करने की शिक्षा देते हुए बिहारी कहते हैं। कि दुख के समय लम्बी साँसें मत र्वीचो अर्थात् दुखी न हो तथा सुख के दिनों में ईश्वर को भूलो मत। सुख सदा नहीं रहता, उस समय भी ईश्वर को याद रखना चाहिए। सुख या दुख जो भी ईश्वर ने तुमको दिया है, उसको तटस्थता के भाव से स्वीकार करो। दुख की अवस्था में हाय-हाय करने से कोई लाभ नहीं है।
(ख) जरूरत के समय काम आने वाली चीजों को महत्वपूर्ण बताते हुए बिहारी कहते हैं कि नदी, कुआँ, सरोवर और बावड़ी का पानी लोगों की प्यास बुझाने के काम आता है। यह चाहे अत्यन्त गहरे हों अथवा बहुत उथले हों, इससे इनके महत्व में कमी नहीं आती। किसी प्यासे मनुष्य की प्यास यदि उनके जल से बुझती है तो उसके लिए इनका महत्व किसी विशाल सागर से कम नहीं है।
प्रश्न 9.
निम्न शब्दों के अर्थ स्पष्ट कीजिएकनक-कनक, दई-दई, अरक-अरक।
उत्तर:
कनक के दो अर्थ हैं-धतूरा और सोना दोनों में नशा होता है। धतूरा खाकर मनुष्य को नशा चढ़ता है परन्तु सोना पाकर भी वह बौरा जाता है। सोने में धतूरे से कहीं ज्यादा मादकता है। दई-दई -दई-दई का अर्थ है दैव अर्थात् ईश्वर के दिए हुए सुख या दुख। इसका एक अर्थ ‘हाय-हाय’ भी है। ईश्वर द्वारा दिए हुए दुख को शांति से स्वीकार करो, हाय-हाय मत करो। अरक-अरक-अरक आक के पौधे तथा सूर्य को कहते हैं। आक को सूर्य कहने से उससे सूर्य के समान प्रकाश उत्पन्न नहीं होता।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 10.
बिहारी ने नीति सम्बन्धी संकलित दोहों में जीवन के किन-किन आदर्शों को प्राप्त करने के लिए लिखा है? विभिन्न उदाहरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बिहारी ने नीति सम्बन्धी संकलित दोहों में मनुष्य के जीवन के अनेक आदर्शों की ओर इंगित किया है तथा उनको अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया है। उनमें से कुछ निम्नलिखित रूप में वर्णित हैंमनुष्य को दुख के समय व्याकुलता का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। उसे सुख प्राप्त होने पर घमण्डी होकर ईश्वर को नहीं भुलाना चाहिए। उसको समान भाव के साथ सुख-दुख को स्वीकार करना चाहिए तथा भगवान का नाम लेना चाहिए। कवि ने लिखा है-‘दीरघ साँस न लेई दुख सुख साई नहिं भूलि।’ बिहारी ने विनम्रता को मनुष्य का सद्गुण बताया है। विनम्र रहकर ही मनुष्य अपने जीवन में ऊँचा पद, आदर-सम्मान तथा महत्ता प्राप्त कर सकता है। बिहारी जीवन में महानता पाने के लिए गुणों को आवश्यक मानते हैं। बिना गुणों की प्राप्ति हुए संसार में कोई बड़ा नहीं होता।
यश-प्रशंसा और पदवी पाने से कोई बड़ा नहीं बनता। बड़ा बनने के लिए वह मनुष्य को स्वयं को गुणी बनाने की प्रेरणा दे रहे हैं। इसी प्रकार बिहारी ने जीवन में जो कुछ प्राप्त हो उसी में संतुष्ट तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होने को कहा है-‘सो ताकौ सागरु जहाँ जाकी प्यास बुझाय। बिहारी ने बाज पक्षी के माध्यम से मनुष्य को अपने सहधर्मियों तथा बन्धुओं के प्रति प्रेम और सद्भाव के साथ रहने के लिए प्रेरित किया है। मनुष्य को अपने लोगों को अकारण पीड़ित नहीं करना चाहिए। ये सभी मनुष्य जीवन के आदर्श हैं। इनको प्राप्त करने के लिए बिहारी ने अपने दोहों द्वारा प्रेरित किया है।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बिहारी ने किनको समुद्र के समान बताया है तथा क्यों?
उत्तर:
बिहारी ने नदी, कुआँ, सरोवर तथा बावड़ी को समुद्र के समान बताया है, क्योंकि इनका पानी लोगों की प्यास बुझाता है।
प्रश्न 2.
दीरघ साँस न लेई दुख’ – पंक्ति का क्या संदेश है?
उत्तर:
दीरघ साँस न लेई दुख’ पंक्ति में संदेश है कि मनुष्य को दुख आने पर व्याकुलता नहीं दिखानी चाहिए। उसे धैर्य से सहना चाहिए।
प्रश्न 3.
‘आदर दे दे बोलियत, बायस बलि की बैर’ – पंक्ति में किस मान्यता का उल्लेख है?
उत्तर:
‘आदर दे दे बोलियत, बायस बलि की बैर’ पंक्ति में हिन्दुओं की श्राद्ध पक्ष में कौए को भोजन देने की मान्यता का उल्लेख है। श्राद्ध में कौओं को आदर के साथ खाना दिया जाता है।
प्रश्न 4.
‘जगत तपोवन सौ कियो’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तपोवन के सभी प्राणी निर्भय होकर मैत्री भाव से रहते हैं। ग्रीष्म ऋतु की भीषणता के कारण साँप-मोर, हरिण-शेर एक साथ पेड़ की छाया में बैठे हैं।
प्रश्न 5.
जेतौ नीचो ह्वै चलै, ते तौ ऊँचौ होय।’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवन में विनम्रता का विशेष महत्व है। व्यक्ति जितना अधिक विनम्र होता है, वह उतना अधिक सम्मान पाता है।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अति अगाधु अति ओथरौ नदी कूप सर बाय’ पंक्ति में कवि ने किनके गहरे अथवा उथले होने को महत्वपूर्ण नहीं माना है तथा क्यों?
उत्तर:
नदी, कुआँ, तालाब तथा बावड़ी के पानी से लोगों की प्यास बुझती है। ये चाहे उथले हों चाहे गहरे, महत्व उनका इसलिए है कि उनका पानी प्यासे लोगों की प्यास बुझाता है। प्यासे मनुष्य को तो वे समुद्र जैसे ही विशाल और गहरे प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 2,
‘बढ़त-बढ़त संपति सलिलु, मन-सरोज बढ़ि जाय’ -पंक्ति में मनुष्य के मन तथा कम्ल में किस समानता का उल्लेख किया गया है ?
उत्तर:
‘बढ़त-बढ़त संपति सलिलु, मन-सरोज बढ़ि जाय’-पंक्ति में कवि ने बताया है कि जिस प्रकार तालाब में पानी बढ़ने पर कमल की नाल लम्बी होती जाती है, किन्तु जल कम होने पर वह छोटी नहीं हो पाती, भले ही कमल सुख ही क्यों न जाय। इसी प्रकार मनुष्य के पास धन-सम्पत्ति बढ़ने पर उसका मन भी बड़ा हो जाता है, धन व्यय करने में वहे उदार हो जाता है परन्तु धन न रहने पर उसका स्वभाव पहले जैसा नहीं बनता। वह वैसा ही उदार बना रहता है और इसी कारण कष्ट उठाता है।
प्रश्न 3.
‘राधा नागरि सोय’-में कवि ने ‘सोय’ शब्द का प्रयोग किस उद्देश्य से किया है ?
उत्तर:
“राधा नागरि सोय’-पंक्ति में बिहारी ने ‘सोय’ शब्द का प्रयोग राधा के प्रभाव की ओर इंगित करने के लिए। किया है। कवि उसी राधा से अपनी भव-बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना कर रहा है, जिसकी दीप्ति के सामने श्रीकृष्ण ‘हरित दुति’ अर्थात् निस्तेज हो जाते हैं।
प्रश्न 4.
‘बिहारी ने अपने काव्य में गागर में सागर भर दिया है इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
बिहारी ने अपने काव्य के लिए दोहे जैसे छोटे छंद को अपनाया है। इस छोटे से छंद में बिहारी ने विस्तृत तथा व्यापक भावों को भरने में सफलता पाई है। समास शैली के प्रयोग के कारण बिहारी ऐसा करने में सफल रहे हैं। छोटी-सी गागर में सागर भरने का तात्पर्य दोहे जैसे छोटे छंद में गम्भीर विचारों और भावों को प्रकट करने से है। बिहारी के दोहों के कभी-कभी अनेक अर्थ निकलते हैं।
RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न:
बिहारी श्रृंगार रस के कवि हैं किन्तु उनके दोहों में नीति का भी उत्कृष्ट वर्णन हुआ है। पठित दोहों से उदाहरण देकर इस कथन को परखिए।
उत्तर:
बिहारी श्रृंगार रस के सुप्रसिद्ध कवि हैं। उनके दोहों में नीति का जो वर्णन मिलता है, वह भी कम प्रभावशाली नहीं है। हिन्दी के कवियों ने नीति के दोहों की रचना में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है, बिहारी भी इसमें पीछे नहीं हैं। बिहारी के नीति वर्णन के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैंसंसार की रीति-संसार बुरे लोगों से डरता है और उनको ही सम्मान करता है। अच्छे लोग तो उपेक्षित ही रहते हैंबसै बुराई जासु तन ताही कौ सनमानु। भलौ-भलौ काहि छोड़ियै खोटै ग्रह जपु दानु॥ विनम्रता महान गुण-विनम्रता, मनुष्य का श्रेष्ठ गुण है।
विनम्र रहकर वह अपने जीवन में ऊँचे से ऊँचा स्थान पा सकता है-जैतो नीचो हुवै चलै, ते तो ऊँचौ होय। केवल कोई पद पाकर गुणों के बिना मनुष्य बड़ा नहीं कहलाता-बड़े न हूजै गुननु बिनु बिरद बड़ाई पाय। धन प्राप्त होने पर मद होना-धन मनुष्य को घमण्डी बना देता है। धन के मिलते ही वह बौरा जाता है। कनक-कनक हैं सौगुनौ, मादकता अधिकाय। वा खाए बौरातु है इह पाए बौराय॥ धन बढ़ने पर मनुष्यों की आदतें भी खर्चीली हो जाती हैं। किन्तु धन की कमी होने पर उसमें कोई बदलाव नहीं आता इससे वह दुख उठाता हैबढ़त-बढ़ते सम्पति सलिल मन-सरोज बढ़ि जाय। घटत-घटत सु न फिरि घटै बरु समूल कुप्हिलाय॥ इस प्रकार नीति के विविध रूप बिहारी के दोहों में मिलते हैं।
पाठ-परिचय
हमारी पाठ्य-पुस्तक में बिहारी के पन्द्रह दोहे संकलित हैं। इनमें नीति और भक्ति का वर्णन मिलता है। बिहारी ने नीति सम्बन्धी दोहों में मानव जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया है। नीति के अतिरिक्त बिहारी ने भक्ति सम्बन्धी दोहे भी लिखे हैं। इनमें बिहारी का भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव व्यक्त हुआ है। उन्होंने राधा के प्रति भी भक्ति प्रकट की है। श्रीकृष्ण की मोहनी छवि को अपने मन में ही नहीं बाहर भी संसार के हर पदार्थ में देखा है। बिहारी ने प्रकृति का चित्रण भी किया है। ग्रीष्म के प्रभाव से संसार को तपोवन के समान बताया है। बिहारी के दोहों में संक्षिप्तता, भाव-सम्पूर्णता तथा अनुभूति की गहराई मिलती है।
प्रश्न 1.
रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारी का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
कवि-परिचय जीवन परिचय–बिहारी हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के प्रमुख कवि हैं। उनका जन्म सन् 1595 ई. में ग्वालियर के निकट बसुआ गोविन्दपुर नामक गाँव में हुआ था। बिहारी अनेक राजाओं के आश्रय में रहे। जयपुर नरेश जयसिंह के यह राज्याश्रित तथा विशेष कृपा पात्र थे। सन् 1663 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
साहित्यिक परिचय-बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं। सात सौ से अधिक दोहों की रचना करके ही बिहारी ने रीतिकाल के कवियों में प्रमुख स्थान प्राप्त किया है। बिहारी का ज्ञान व्यापक था। उनके दोहों में नीति, भक्ति, गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, इतिहास इत्यादि का वर्णन मिलता है। रचनाएँ-बिहारी की एकमात्र रचना ‘बिहारी सतसई’ है। इसमें सात सौ से अधिक दोहे मिलते हैं।
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(1) अति अगाधु अति औथरौ, नदी कूप सर बाय।
सो ताकौ सागरु जहाँ, जाकी प्यास बुझाय॥
स्वारथु सुकृतु न श्रमु वृथा, देखि बिहंग बिचारि।
बाज पराएँ पानि परि, तूं पंच्छीनु न मारि॥
शब्दार्थ- अगाधु = गहरा। औथरौ = उथला, कम गहरा। सरे = तालाब। बोय = बावड़ी। सागरु = सागर, समुद्र। स्वारथु = अपना लाभ। सुकृतु = अच्छा काम। बिहंग = पक्षी, बाज। पराएँ = दूसरे, शिकारी के। पानि = हाथ।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘बिहारी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता रीतिकाल के महान कवि बिहारी हैं। प्रस्तुत अंश में कवि ने संतुष्टि को ही लघुता और विशालता का आधार बताया है।
व्याख्या-जरूरत के समय काम आने वाली चीजों को महत्वपूर्ण बताते हुए बिहारी कहते हैं कि नदी, कुआँ, सरोवर और बावड़ी का पानी लोगों की प्यास बुझाने के काम आता है। यह चाहे अत्यन्त गहरे हों अथवा बहुत उथले हों, इससे इनके महत्व में कमी नहीं आती। किसी प्यासे मनुष्य की प्यास यदि उनके जल से बुझती है तो उसके लिए इनका महत्व किसी विशाल सागर से कम नहीं है। बिहारी ने बाज पक्षी के माध्यम से जयपुर नरेश महाराज जयसिंह को समझाते हुए कहते हैं-हे बाज ! तू शिकारी के हाथ की कलाई पर बैठकर जो निर्दोष पक्षियों को मार रहा है, सोचकर देख कि यह काम उचित नहीं है, क्योंकि इससे न तो तुम्हारा लाभ है, न यह अच्छा काम है और ऐसा करने से तुम्हारा परिश्रम भी बेकार जा रहा है। अन्योक्ति द्वारा राजा जयसिंह को बिहारी समझाते हैं कि हे महाराज जयसिंह, आप गम्भीरता से सोचें और अपने ही सहधर्मी राजाओं के साथ युद्ध करना रोक दें। आपका यह काम सत्कर्म की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि इसमें अपने ही बन्धुओं का वध होता है। इससे आपको लाभ भी नहीं है, क्योंकि पराजितों की सम्पत्ति और राज्य मुगल शासक औरंगजेब ले लेता है। इस तरह आपका परिश्रम भी बेकार जाता है। आप इन बातों पर विचार करें और औरंगजेब की ओर से हिन्दू राजाओं से युद्ध न करें।
विशेष-
(1) साहित्यिक सरस ब्रजभाषा है।
(2) दोहा छन्द है। अन्योक्ति, श्लेष, अनुप्रास अलंकार हैं।
(2) कनक कनक हैं सौगुनौ, मादकता अधिकाय।
वा खाए बौरातु है, इह पाए बौराय॥
कहलाने एकत बसत, अहि मयूर मृग बाघ।
जगत तपोवन सौ कियो, दीरघ दाघ निदाघ॥
शब्दार्थ- कनक = सोना, स्वर्ण। कनक = धतूरा। मादकता = नशा। बौरातु = पागल होना। एकत बसत = एक स्थान पर रहना। अहि = साँप। मयूर = मोर। मृग = हिरण। बाघ = सिंह, शेर। दाघ = ताप। निदाघ = ग्रीष्म ऋतु।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के बिहारी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि बिहारीलाल हैं। कवि ने यहाँ सोने के मादक प्रभाव को धतूरे की मादकता से भी अधिक शक्तिशाली बताया है। पुनः ग्रीष्म ऋतु की भीषणता से परस्पर शत्रुभाव रखने वालों के ही शरणस्थल पर निवास का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि धतूरे से सोने में सौ गुनी अधिक मादकता होती है। धतूरे को खाने के बाद मनुष्य पर उसका नशा चढ़ता है किन्तु सोने को तो पाकर ही वह पागल हो जाता है। ग्रीष्म ऋतु के तीव्र ताप का वर्णन करते हुए बिहारी कहते हैं कि साँप और मोर तथा हिरण और सिंह अपना शत्रुभाव भुलाकर एक ही छायादार स्थान पर बैठे हुए हैं। भीषण गर्मी ने संसार को एक तपोवन के समान बना दिया है। जिस प्रकार तपोवन में शत्रुता का भाव नष्ट हो जाता है और सभी . जीव-जन्तु बैर-भाव त्याग कर वहाँ रहते हैं, गर्मी की भीषणता से भी यही स्थिति उत्पन्न हो गई है। अपनी शत्रुता भुला कर साँप और मोर तथा हिरण और सिंह एक ही स्थान (पेड़ की शीतल छाया) पर बैठे हैं। छायादार स्थान को छोड़कर कोई नहीं जाना चाहता।
विशेष-
(1) ‘कनक कनक’ में यमक अलंकार है। जगत तपोवन सौ’ में उपमा अलंकार है। अनुप्रास अलंकार भी है।
(2) दोहा छन्द है।
(3) कौटि जतन कोऊ करौ, परै न प्रकृतिहि बीच।
नल-बल जलु ऊँचों चढ़े, तऊ नीच को नीच॥
गुनी-गुनी सबकें कहैं, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यौं कहूँ तरु अरक तै, अरक समान उदोतु॥
शब्दार्थ- कोटि = करोड़ों। प्रकृति = स्वभाव। तऊ = फिर भी। गुनी= गुणवान। निगुनी = गुणों से विहीन व्यक्ति। अरक= आक। अरक = सूर्य। उदोतु = प्रकाश।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित बिहारी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सुप्रसिद्ध कवि बिहारी हैं। यहाँ कवि ने कहा है कि मनुष्य का स्वभाव कभी बदलता नहीं। मनुष्य के गुण जन्मजात होते हैं।
व्याख्या-मनुष्य के स्वभाव को वर्णन करते हुए कवि बिहारी कहते हैं कि कोई कितने ही प्रयत्न करे किन्तु मनुष्य ‘का स्वभाव बदलता नहीं है। पानी का स्वभाव नीचे की ओर बहने का होता है। फब्बारे के बल से पानी बहुत ऊँचाई तक उछल जाता है परन्तु अन्त में वह नीचे ही आ गिरता है। स्थायी रूप से नीचे ही रहता है। गुणों को जन्मजात बताते हुए बिहारी कहते हैं कि गुणहीन व्यक्ति को बार-बार गुणवान कहने से वह गुणवान नहीं हो जाता। क्या कभी आक के पौधे से सूर्य के समान प्रकाश निकल सकता है ? अर्थात् नाम समान होने से आक सूर्य के समान प्रकाश प्रदान नहीं कर सकता।
विशेष-
(1) साहित्यिक सरस ब्रजभाषा है।
(2) यमक, अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।
(3) दोहा छन्द है।
(4) दीरघ साँस न लेई दुख, सुख साई नहिं भूलि। दई-दई क्य करत है दई दई सु कबूलि॥ नर की अरु नेल-नीर की, गति एकै करि जोय।जेतौ नीचो हुवै चलै, ते तौ ऊँचौ होय॥
शब्दार्थ-दीरघ = लम्बी, दु:खभरी। साई = स्वामी, ईश्वर। दई-दई = हाय-हाय। दई = ईश्वर। दई = देन। कबूलि = स्वीकार करना। नीर- पानी। जेतौ = जितना।
सन्दर्भ एवं प्रसंग–प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के बिहारी’ शीर्षक पाठ से अवतरित हैं। इनके रचयिता महाकवि बिहारी हैं। यहाँ सुख-दुख को समान भाव से स्वीकारने की शिक्षा दी गई है। विनम्रता से मनुष्य सम्माननीय स्थान प्राप्त करता है।
व्याख्या-सुख-दुख को ईश्वर की देन मानकर समान भाव से स्वीकार करने की शिक्षा देते हुए बिहारी कहते हैं कि दुख के समय लम्बी साँसे मत खींचो अर्थात् दुखी न हो तथा सुख के दिनों में ईश्वर को भूलो मत। सुख सदा नहीं रहता, उस समय भी ईश्वर को याद रखना चाहिए। सुख या दुखे जो भी ईश्वर ने तुमको दिया है, उसको तटस्थता के भाव से स्वीकार करो। दुख की अवस्था में हाय-हाय करने से कोई लाभ नहीं है। मनुष्य की और नल के पानी की गति की तुलना करते हुए बिहारी कहते हैं कि मनुष्य और नल के पानी की गति एक समान होती है। वे जितना नीचे होकर चलते हैं, उतने ही ऊपर उठते हैं। नल का पानी जितनी ऊँचाई से नीचे आता है, नल की सहायता से वह उतना ही ऊँचा चढ़ जाता है। मनुष्य जितना नम्रता का व्यवहार करता है, उतना ही अपने जीवन में उच्चे और प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त करता है।
विशेष-
(1) सरस साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग है।
(2) दोहा छन्द है।
(3) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश, यमक, उपमा अलंकार हैं।
(5) बड़े न हूजै गुननु बिनु बिरद बड़ाई पाय। कहत धतूरे सौं कनकु गहनौ गद्यौ न जाय॥ बढ़त-बढ़त संपति सलिलु, मन-सरोज बढ़ि जाय। घटत-घटत सुन फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाय॥ शब्दार्थ-गुननु = गुणों के। बिरद = यश, प्रशंसा। कनकु = सोना। गहनौ == आभूषण। सलिलु = पानी। सरोज = कमल। बरु = भले ही। समूल = जड़ सहित। कुम्हिलाय = मुरझा जाना।।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘बिहारी’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इनके रचयिता महाकवि बिहारी हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने जीवन में सद्गुणों की महत्ता एवं मानवीय स्वभाव पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या-जीवन में सद्गुणों की महत्ता तथा आवश्यकता बताते हुए कवि बिहारी कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति गुणों के अभाव में केवल यश और प्रशंसा पाकर बड़ा नहीं हो जाता। धतूरे को कनक कहने से उससे आभूषण नहीं बनाए जा सकते।
बिहारी मनुष्य के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जब मनुष्य के पास धन-सम्पत्ति रूपी जल बढ़ता है तो उसका हृदय कमल भी बढ़ जाता है किन्तु उसके घटने पर वह घटता नहीं है, चाहे मूल सहित मुरझा ही जाय। आशय यह है कि तालाब में जल बढ़ने पर कमल की नाल लम्बी हो जाती है। परन्तु जल घटने पर छोटी नहीं होती और कमल मुरझा जाता है। इसी प्रकार मनुष्य के पास धन बढ़ने पर उसकी आदतें खर्चीली हो जाती हैं किन्तु धन न रहने पर उसकी आदतें नहीं बदलतीं और उसे कष्ट उठाना पड़ता है।
विशेष-
(1) साहित्यिक सरस ब्रजभाषा का प्रयोग है।
(2) दोहा छन्द है।
(3) अनुप्रास, यमक, पुनरुक्तिप्रकाश, रूपक अलंकार हैं।
(6) बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु।
भलौ-भलौ कहि छोड़िये, खोटै ग्रह जपु, दानु॥
मरत प्यास पिंजरा-परयौ, सुवा समय कै फैर।
आदर दे दे बोलियत, बायस बलि की बैर॥
शब्दार्थ-जासु = जिसके। ताही = उसी। सनमानु = आदर। खोटे = बुरे। पिंजरा = पिंजड़ा। सुवा = सुआ, तोता। समय के फैर = बुरा वक्त आने पर। बोलियत = बुलाते हैं। बायस = कौआ। बलि = श्राद्ध। बैर = अवसर।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘बिहारी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि बिहारीलाल हैं। कवि के अनुसार लोग दुष्ट व्यक्ति से डरते हैं, सज्जन से नहीं। समयानुसार मानव के स्वभाव में परिवर्तन आता है।
व्याख्या-बुरे और दुष्ट व्यक्तियों से भयभीत लोगों का वर्णन करते हुए बिहारी कहते हैं कि जिनके शरीर में बुराई का निवास होता है अर्थात् जो लोग दुष्ट होते हैं, संसार में लोग उनका ही उनसे भय लगने के कारण आदर करते हैं। जो मनुष्य सज्जन होते हैं, उनको तो यह मानकर कि वे भले हैं उनसे कोई डर नहीं है, उनकी उपेक्षा ही की जाती है। खोटे अर्थात् बुरे ग्रहों की शान्ति के लिए लोग मंत्रों का जप करते हैं तथा दान देते हैं परन्तु अच्छे ग्रह आने पर कोई धार्मिक काम नहीं करते। समय के अनुसार लोगों के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। संसार मतलब के लिए प्रेम करता है। इस बात को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि जब वक्त बुरा आता है तो वह तोता जिसे कभी प्यार से पाला गया था पिंजड़े में पड़ा प्यासा मरता रहता है। पूर्वजों के श्राद्ध का समय आने पर लोग कौए को आदरपूर्वक बुलाते हैं और भोजन देते हैं।
विशेष-
(1) दोहा छन्द है।
(2) अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।
(3) भाषा सरल, सरस साहित्यिक ब्रजभाषा है।
(7) सीस मुकुट, कटि-काछनी, कर-मुरली, उर-माल।
इहिं बानिक मो मन सदा बसौ बिहारी लाल॥
मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोय।
जा तन की झाईं परै श्याम हरित दुति होय॥
मोहन मूरति स्याम की अति अद्भुत गति जौय।
बसति सु चित-अंतर तऊ प्रतिबिंबित जम हौय॥
शब्दार्थ-सीस = सिर, माथा। कटि = केमर। काछनी = कच्छा। कर= हाथ। मुरली = बाँसुरी। उर = गला, हृदय। बानिक = रूप। भव = संसार। बाधा = विघ्न। नागरि = चतुर। झाईं = छाया। श्याम = श्रीकृष्ण। हरित = हरा रंग, हरणं होना। दुति = शोभा, चमक। मोहन = मोहित करने वाली। चित-अंतर = मन के भीतर। प्रतिबिंबित = दिखाई देना।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के ‘बिहारी’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता महाकवि बिहारीलाल हैं। इस काव्यांश में बिहारी ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण और राधा का चित्रण किया है।
व्याख्या-श्रीकृष्ण के स्वरूप का चित्रण करते हुए बिहारी उनसे प्रार्थना करते हैं कि हे श्रीकृष्ण, हे ब्रज और गोपियों के मध्य विहार करने वाले, आज अपने सिर पर मुकुट लगाकर कमर में कच्छा पहनकर, हाथ में बाँसुरी पकड़कर और गले में पुष्पमाला धारण करके मुझे दर्शन दें तथा इसी स्वरूप में सदा मेरे मन के भीतर निवास करें। राधाजी से प्रार्थना करते हुए बिहारी कहते हैं कि हे चतुर राधाजी, आप मेरी सांसारिक विघ्न-बाधाओं को दूर कर दीजिए। आपके शरीर की छाया पड़ते ही श्रीकृष्ण हरित दुति हो जाते हैं। श्रीकृष्ण का शरीर श्यामल अथवा नील वर्ण का है तथा राधा गोरी (पीत वर्ण) हैं। नीले और पीले के संयोग से श्रीकृष्ण का शरीर हरे रंग का हो जाता है। राधा की झलक मात्र देखने से कृष्ण की प्रसन्नता दूनी हो जाती है। ‘हरित दुति’ कहने का आशय यह भी है कि राधाजी के सामने आते ही श्रीकृष्ण की शोभा फीकी (हरित) हो जाती है। श्रीकृष्ण की अपेक्षा राधा अधिक सुन्दर हैं, श्रीकृष्ण नहीं। श्रीकृष्ण के सर्वव्यापी स्वरूप का वर्णन करते हुए बिहारी कहते हैं कि श्रीकृष्ण की मूर्ति अत्यन्त मोहक है। उसकी गति अद्भुत है। यद्यपि वह भक्त के हृदय में रहती है किन्तु उनका प्रतिबिंब संसार में सर्वत्र दिखाई देता है। ईश्वर सर्वव्यापी है। यद्यपि वह साधक के मन में है परन्तु संसार के हरे पदार्थ में भी उपस्थित है।
विशेष-
(1) भाषा – सरल, सरस, ब्रजभाषा।
(2) अलंकार – अनुप्रास और श्लेष।
(3) दोहा छन्द है।
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