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RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 रामधारी सिंह ‘दिनकर’

May 22, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 रामधारी सिंह ‘दिनकर’

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भगवान कृष्ण पाण्डवों का सन्देश लेकर कहाँ गए थे?
(क) कुरुक्षेत्र
(ख) हस्तिनापुर
(ग) इन्द्रप्रस्थ
(घ) मथुरा
उत्तर:
(ख) परशुराम की प्रतीक्षा

प्रश्न 2.
संकलित काव्यांश कवि के किस प्रबन्ध काव्य से लिया गया है?
(क) हुँकार
(ख) परशुराम की प्रतीक्षा
(ग) रश्मिरथी
(घ) कुरुक्षेत्र
उत्तर:
(ग) रश्मिरथी

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
“केवल दो नर न अघाते थे” पंक्ति के आधार पर उन दोनों महापुरुषों के नाम लिखिए।
उत्तर:
“केवल दो नर न अघाते थे” पंक्ति में दिए गए दो महापुरुषों के नाम हैं-
(1) धृतराष्ट्र तथा
(2) विदुर।

प्रश्न 4.
हस्तिनापुर जाकर कृष्ण ने दुर्योधन को पाण्डवों का क्या संदेश दिया?
उत्तर:
कृष्ण ने हस्तिनापुर जाकर दुर्योधन को पाण्डवों का राज्य उनको लौटा देने अथवा युद्ध के लिए तैयार रहने का संदेश दिया।

प्रश्न 5.
भगवान कृष्ण ने कुपित होकर दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर:
भगवान कृष्ण ने कुपित होकर दुर्योधन से कहा-“हाँ, दुर्योधन तू अपनी जंजीर आगे बढ़ा और मुझे बाँध ले।”

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
“थी सभा सन्न, सब लोग डरे…….पुकारते थे जय जय।” इस परिस्थिति को अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्रीकृष्ण को यह देखकर क्रोध आ गया कि दुर्योधन उनको बन्दी बनाना चाहता है। उन्होंने उसको युद्ध की चेतावनी दी। श्रीकृष्ण के कठोर शब्दों को सुनकर दुर्योधन की सभी के सदस्य सन्न रह गए। सभी भयभीत थे। कोई कुछ बोल नहीं रहा था। वे बेहोश से हो गए थे। श्रीकृष्ण का चेहरा तमतमा रहा था। उधर दुर्योधन के सभासद अनिष्ट की आशंका से काँप रहे थे। केवल धृतराष्ट्र और विदुर प्रसन्न थे और श्रीकृष्ण की जय बोल रहे थे।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ स्पष्ट करते हुए सार्थक वाक्य बनाइयेप्रखर, अम्बर, असाध्य, विवेक, संकल्प।
उत्तर:
प्रखर = पैना। वाक्य-राणा प्रताप के भाले की धार अत्यन्त प्रखर थी।
अम्बर = आकाश। वाक्य-ऊपर नीला आकाश विशाल छतरी की तरह फैला था।
असाध्य = जिसे साधा न जा सके। वाक्य-रमेश के पिताजी असाध्य रोग से पीड़ित हैं।
विवेक = उचित-अनुचित का विचार करने का गुण। वाक्य-मनुष्य अपने विवेक का प्रयोग करके ही सही रास्ता चुन सकता है।
संकल्प = निश्चय। वाक्य-राम ने संकल्प लिया था कि वनवास की अवधि पूरी होने से पहले वह किसी नगर में निवास नहीं करेंगे।

प्रश्न 8.
“वर्षों तक वन में घूम-घूम होता है।”
(अ) पाण्डवों को वर्षों तक वन में क्यों घूमना पड़ा?
(ब) उनके सौभाग्य का कब और कैसे उदय हुआ?
उत्तर:
(अ) युधिष्ठिर जुआ में अपना राज्य हार गए थे। जुए की शर्तों के अनुसार उनको बारह वर्ष वन में रहना था। इनमें एक साल का समय अज्ञातवास का था। इस कारण पाण्डवों को वर्षों तक वन में भटकना पड़ा था।

(ब) पाण्डवों ने अनेक कष्ट सहकर वनवास के बारह वर्ष बिताये। अवधि पूरा होने पर उनके राज्याधिकार प्राप्त करने का अवसर आ गया। उनके बुरे दिन बीत गए थे और सौभाग्य का उदय होने जा रहा था। श्रीकृष्ण को अपना दूत बनाकर उन्होंने दुर्योधन से हस्तिनापुर का राज्य माँगा।।

प्रश्न 9.
“उल्टे, हरि को बाँधने चला……….चला।”
(अ) दुर्योधन कृष्ण को क्यों बाँधने चला?
(ब) यहाँ कृष्ण को असाध्य क्यों कहा गया?
उत्तर:
(अ) श्रीकृष्ण पाण्डवों के दूत बनकर गए थे। उसको पाण्डवों को आधा राज्य देने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं था। वह अभिमानी तथा दष्ट था। वह पाण्डवों से घृणा करता था। पाण्डवों के दूत बनकर गए श्रीकृष्ण भी उसको अच्छे नहीं लगे। पाण्डवों से घृणा होने तथा श्रीकृष्ण की शक्ति का ज्ञान न होने के कारण वह उनको बाँधने को उद्यत हुआ।

(ब) श्रीकृष्ण को बन्दी बनाना आसान नहीं था । श्रीकृष्ण स्वयं परमेश्वर थे। उनकी शक्ति अलौकिक थी। दुर्योधन में । श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने की क्षमता नहीं थी। वह ऐसा काम करने चला था जो उसके बस में नहीं था। श्रीकृष्ण की अपूर्व अलौकिक शक्तिमत्ता के कारण उनको असाध्य कहा गया है।

प्रश्न 10.
“जो लाक्षागृह में जलते हैं, वे ही सूरमा निकलते हैं” के तात्पर्य को कथा-प्रसंग बताते हुए समझाइए।
उत्तर:
पाण्डवों को द्यूतक्रीड़ा की शर्तों के अनुसार बारह साले वन में रहना था, जिनमें एक साल अज्ञातवास का था। दुर्योधन चाहता था कि पाण्डव बारह वर्ष का समय पूरा करने से पहले ही जंगल में भटकते हुए मारे जायें। उसने लाख से एक भवन बनवाया। वह पाण्डवों को उसमें आग लगाकर जलाकर मारना चाहता था। किन्तु पाण्डव लाक्षागृह से सकुशल बाहर निकल आए। इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य अपने जीवन में विघ्न-बाधाओं का सामना करते हैं और अपने श्रम, साहस और वीरता से उन पर विजय पाते हैं, वही सच्चे वीर होते हैं।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित की प्रसंगपूर्वक व्याख्या कीजिए
(1) है कौन! विघ्न ऐसा जग में…………….पानी बन जाता है।
(2) पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड…………हम उनको गले लगाते हैं।
(3) हित वचन नहीं तूने माना…………..हिंसा का परदायी होगा।
उत्तर:
(1) कवि कहता है कि मनुष्य के मार्ग को रोकने वाली कोई बाधा इस संसार में नहीं है। जब मनुष्य अपनी पूरी शक्ति से धक्का मारता है तो बड़े-बड़े मजबूत पहाड़ भी धराशायी हो जाते हैं। जब मनुष्य अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग करता है तो पत्थरों की कठोरता भी पिघलकर पानी के समान तरल बन जाती हैं। मनुष्य के भीतर एक से एक प्रभावी गुण छिपे हुए हैं। जिस प्रकार मेंहदी में लाल रंग और दीपक की बत्ती में उजाला छिपा होता है, वैसे ही मनुष्य में गुण छिपे रहते हैं। दीपक की बत्ती को जलाने के बाद ही प्रकाश फैलता है, उसी प्रकार अपने गुणों को प्रयोग करके ही मनुष्य सफलता को प्राप्त करता है।

(2) कवि कहता है कि जब गन्ने को कोल्हू में पेरा जाता है। तो उससे रस की अटूट धार निकल पड़ती हैं। मेंहदी पत्थर पर पिसने के बाद ही नारियों के हाथों में रचाई जाती है और उनकी सुन्दरता को बढ़ाती है। सुई से छिदने पर ही फूल माला का रूप धारण कर पाते हैं जो कॅकड़ीली जमीन पर खुले आसमान के नीचे सोते हैं तथा जिनको जीवन में भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वे बेघर और गरीब लोग ही सफलता के शिखर पर चढ़ते हैं। लाख से बने घर में लगी आग से बच निकलने वाले ही सच्चे शूरवीर होते हैं।

(3) दुर्योधन ने पांडवों के दूत श्रीकृष्ण का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया और उनकी भली सलाह को ठुकरा दिया। इस पर क्रुद्ध होकर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा- हे दुर्योधन, तूरे मेरी हितकारक सलाह नहीं मानी। मैंने पाण्डवों से मित्रता करने का जो प्रस्ताव किया था उसका महत्व भी तेरी समझ में नहीं आया। ठीक है, अब मैं जा रहा हूँ। जाते-जाते अपनी अन्तिम निश्चय भी सुनाता हूँ। अब पाण्डव राज्य के लिए तुझसे भीख नहीं माँगेंगे। अब वे युद्ध भूमि में तुझको ललकारेंगे। इस युद्ध में या तो उनकी मृत्यु होगी या विजयी होकर वे जीवित रहेंगे और हस्तिनापुर पर राज्य करेंगे। यह युद्ध बहुत भयानक होगा। नक्षत्र एक-दूसरे से टकरायेंगे। धरती पर भयानक तीव्र आग की वर्षा होगी।

व्याकुल होकर शेषनाग अपना फन हिलायेगा जिससे धरती काँप उठेगी । भयानक मृत्यु अपना विशाल मुँह खोल देगी। हे दुर्योधन ! यह युद्ध इतिहास का भयानकतम युद्ध होगा। संसार में इतना भयानक युद्ध फिर कभी नहीं होगा। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि पांडवों के साथ होने वाला युद्ध अत्यन्त भयंकर होगा। एक भाई दूसरे भाई के विरुद्ध युद्ध करेगा। इस युद्ध में विषैले तीर वर्षा की बूंदों की तरह चलेंगे। युद्ध भूमि लाशों से पट जायेगी। इससे कौओं और गीदड़ों को बहुत खुशी होगी। यह युद्ध मानवों के दुर्भाग्य का कारण बनेगा। युद्ध का अन्त तुम्हारी मृत्यु से होगा। तुम्हारा शव भूमि पर पड़ा होगा। इस युद्ध में जो भीषण रक्तपात और हिंसा होगी उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी ही होगी।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘है कौन ! विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में पंक्ति में कवि ने मनुष्य के किस गुण का उल्लेख किया है?
उत्तर:
इस पंक्ति में कवि ने मनुष्य के दृढ़ निश्चय के गुण का उल्लेख किया है। मनुष्य संकल्प कर ले तो कोई बाधा उसका मार्ग नहीं रोक सकती।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से दो न्याय अगर तो आधा दो” क्यों कहा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से न्याय के अनुसार पाण्डवों को हस्तिनापुर का आधा राज्य देने को कहा। न्यायानुसार वे आधे राज्य के अधिकारी थे।

प्रश्न 3.
जब मनुष्य ताल ठोककर ठेलता है तो क्या होता
उत्तर:
तब बड़े-बड़े पर्वत भी उखड़ जाते हैं। बड़ी से बड़ी बाधा भी मार्ग दे देती है।

प्रश्न 4.
‘पत्थर पानी बन जाता है” का आशय क्या है ?
उत्तर:
मनुष्य जब पूरी शक्ति से प्रयास करता है तो पत्थर जैसी कठोर लगने वाली समस्याएँ या बाधाएँ भी पानी की तरह तरल या आसान हो जाती हैं।

प्रश्न 5.
युद्ध का क्या परिणाम होने वाला था ?
उत्तर:
युद्ध का परिणाम बहुत भीषण और करुण होने वाला था। भाई-भाई के बीच युद्ध, लाखों सैनिकों का मारा जाना और अहंकारी दुर्योधन की मृत्यु, युद्ध का यही परिणाम होने जा रहा था।

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण द्वारा विराट स्वरूप के प्रदर्शन तथा दुर्योधन को दी गई कठोर चेतावनी को सभा पर क्या प्रभाव हुआ ?
उत्तर:
सभा में सन्नाटा छा गया था। सभी लोग भयभीत थे। कुछ तो डर के मारे बेहोश भी हो गए थे।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है’ पंक्ति का आशय क्या है?
अथवा
किस मनुष्य को अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती?
उत्तर:
दीपक की बत्ती को जलाने से ही इससे प्रकाश फूटता है। दीपक की बत्ती को जलाए बिना अँधेरा ही रहता है। आशय यह है कि बिना प्रयास और श्रम किए मनुष्य के जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है और प्रयत्नशील नहीं होता, उसको अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती।

प्रश्न 2.
दुर्योधन ऐसा क्या काम करने चला, जो उसके लिए असाध्य था? उसको असाध्य कहने का क्या कारण है?
उत्तर:
दुर्योधन ने पाण्डवों के दूत बनकर आये श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने का प्रयास किया। यह काम उसकी शक्ति से बाहर था। वह श्रीकृष्ण को बन्दी नहीं बना सकता था। श्रीकृष्ण ईश्वर के अवतार थे। वह परम शक्तिशाली थे। दुर्योधन के लिए उनको बाँध्ना किसी प्रकार संभव नहीं था।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण का दूतकार्य’ शीर्षक कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
‘श्रीकृष्ण का दूतकार्य में कवि ने दूसरों के साथ उचित एवं न्यायपूर्ण व्यवहार करने का संदेश दिया है। पाण्डवों के दूत बनकर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के समक्ष उनको हस्तिनापुर का आधा राज्य देने का न्यायपूर्ण प्रस्ताव रखा है। कविता से पता चलता है कि अन्याय का परिणाम सुखद नहीं होता।

प्रश्न 4.
“जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।” उपर्युक्त पंक्तियों में व्यक्त भाव पर विचार कीजिए।
उत्तर:
कवि ने उपर्युक्त पंक्तियों में बताया है कि जब मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है तो वह अनुचित आचरण करने लगता है। विवेकशील मनुष्य पहले उचित-अनुचित सोचता है, तब कोई काम करता है। बुरे दिन आने पर मनुष्य की विवेक-शक्ति पहले ही नष्ट हो जाती है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न:
‘दिनकर’ के काव्य के कला-पक्ष की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के काव्य का कलापक्ष अत्यन्त सबल है। उसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैंभाषा-दिनकर जी ने परिष्कृत खड़ी बोली में काव्य रचना की है। उसमें संस्कृत निष्ठता है। कहीं-कहीं देशज शब्द तथा उर्दू भाषा के शब्द भी मिलते हैं। मुहावरों के प्रयोग से उसको सशक्त बनाया है। उनकी भाषा सरल, भावानुकूल और स्पष्ट है। शैली-दिनकर जी ने प्रबन्ध शैली को अपनाया है। उनकी शैली ओजपूर्ण है। वह चित्रात्मक और ध्वन्यात्मक है। सूक्ति कथनों ने उसे सुन्दर बनाया है। छन्द-दिनकर जी ने विविध प्रकार के छन्दों में काव्य-रचना की है। आपने मुक्त छंद का भी प्रयोग किया है। अलंकार-दिनकर जी के काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। वे काव्य में ढूंसे हुए प्रतीत नहीं होते हैं। अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त आदि अलंकार उनके काव्य में मिलते हैं।

-श्रीकृष्ण का दूत कार्य

पाठ-परिचय

श्रीकृष्ण का दूतकार्य’ शीर्षक कविता दिनकर के ‘रश्मिरथी’ नामक खण्ड-काव्य से उद्धृत है। इसमें कवि ने महाभारत के कथानक को प्रासंगिक बनाकर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। महाभारत युद्ध से पूर्व श्रीकृष्ण पाण्डवों के दूत बनकर दुर्योधन के पास गए। अभिमानी दुर्योधन ने दूत के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और श्रीकृष्ण को बन्धन में बाँधने का असम्भव प्रयास किया। तब श्रीकृष्ण ने उसे अपना विराट स्वरूप दिखाया और भीषण युद्ध की चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि इस युद्ध में जो हिंसा होगी उसका उत्तरदायी वही होगा। श्रीकृष्ण के इस स्वरूप को देखकर कौरवों की राज्यसभा सन्न रह गई। इससे दो लोग ही प्रसन्न थे। वे थे धृतराष्ट्र और विदुर।

प्रश्न 1.
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
कवि परिचय
जीवन परिचय-राष्ट्रीय भावों और ओजस्वी काव्य के जनक रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के जिला मुंगेर के सिमरिया घाट नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. करने के बाद आप मोकामा घाट के विद्यालय में प्रधानाध्यापक रहे। बाद में मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे। साथ-साथ आप काव्य रचना के क्षेत्र में सक्रिय रहे। सन् 1952 से 1963 तक आप राष्ट्रकवि होने के नाते राज्यसभा के सदस्य रहे। आपने हिन्दी समिति के सलाहकार तथा आकाशवाणी के निदेशक बनकर भी हिन्दी की सेवा की। सन् 1974 ई. में इस महान् कवि का निधन हो गया। साहित्यिक परिचय-दिनकर जी बाल्यावस्था से ही साहित्य साधना में लग गए थे।

आपने राष्ट्र-प्रेम से सम्बन्धित ओजस्वी कविताएँ लिखीं। पौराणिक कथानकों को आधार बनाकर अपने काव्य में उनको आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। स्वतन्त्रता से पूर्व ‘दिनकर’ उपनाम से काव्य-सृजन कर वे राष्ट्रकवि के रूप में स्थापित हुए। छायावादोत्तर कवियों में आप पहली पीढ़ी के कवि हैं। आपके महाकाव्य ‘उर्वशी’ को जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ के बाद हिन्दी का श्रेष्ठ महाकाव्य माना जाता है। ‘उर्वशी’ के लिए आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है। साहित्यिक योगदान के लिए आपको भारत सरकार ‘पद्म-भूषण’ से अलंकृत कर चुकी है। रचनाएँ-‘दिनकर’ की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–

रेणुका, हुँकार, रसवन्ती, द्वन्द्वगीत, सामधेनी (कविता-संग्रह), कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा (खण्ड-काव्य), उर्वशी (महाकाव्य)। कोमला और कवित्व इत्यादि अन्य रचनाएँ हैं। अर्द्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, राष्ट्र भाषा और राष्ट्रीय एकता, शुद्ध कविता की खोज, भारत की सांस्कृतिक एकता इत्यादि आपकी गद्य रचनाएँ हैं।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

1. हैकौन! विन ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में,
खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़।
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है।

शब्दार्थ-विघ्न = बाधा। टिकना = रुकना। मग = मार्ग। खम ठोंकना = ताल ठोकना, चुनौती स्वीकारनी। ठेलना = धकेलना। पाँव उखड़ना = रुक न पाना। प्रखर = तेज, श्रेष्ठ। वर्तिका = दीपक की बत्ती। रोशनी = प्रकाश।।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी प्रबोधिनी’ में संकलित’ श्रीकृष्ण का दूतकार्य’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। यह कविता राष्ट्रकवि रामधारी सिह ‘दिनकर’ के प्रसिद्ध खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ से संकलित की गई है। कवि के अनुसार मनुष्य दृढ़ निश्चय कर ले तो कोई विघ्नबाधा उसके मार्ग को नहीं रोक सकती।

व्याख्या-कवि कहता है कि मनुष्य के मार्ग को रोकने वाली कोई बाधा इस संसार में नहीं है। जब मनुष्य अपनी पूरी शक्ति से धक्का मारता है तो बड़े-बड़े मजबूत पहाड़ भी धराशायी हो जाते हैं। जब मनुष्य अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग करता है तो पत्थरों की कठोरता भी पिघलकर पानी के समान तरल बन जाती हैं। मनुष्य के भीतर एक से एक प्रभावी गुण छिपे हुए हैं। जिस प्रकार मेंहदी में लाल रंग और दीपक की बत्ती में उजाला छिपा होता है, वैसे ही मनुष्य में गुण छिपे रहते हैं। दीपक की बत्ती को जलाने के बाद ही प्रकाश फैलता है, उसी प्रकार अपने गुणों को प्रयोग करके ही मनुष्य सफलता को प्राप्त करता है।

विशेष-
(1) सरल, भावानुकूल खड़ी बोली है।
(2) खम ठोकने, पाँव उखड़ना, जोर लगानी-मुहावरों का प्रयोग हुआ है।
(3) अनुप्रास अलंकार, उदाहरण अलंकार।

2. पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड, झरती रस की धारा अखंड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार।
जब फूल पिरोये जाते हैं,
हम उनको गले लगाते हैं।
कंकड़ियाँ जिनकी सेज सुधर, छाया देता केवल अंबर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
वे ही सूरमा निकलते हैं।

शब्दार्थ-इक्षु = ईख। इक्षु-दण्ड = पत्तों रहित गन्नो। अखंड = अटूट। प्रहार = चोट। ललना = स्त्री। सिंगार = सज्जा, सजावट। सेज= शैय्या। सुधार = स्वच्छ, आरामदायक। आँधियाँ = संकट, कठिनाइयाँ। लाक्षागृह = लाख का घर। सूरमा = शूरवीर।।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के खण्डकाव्यरश्मिरथी’ से उद्धृत पाठ’ श्री कृष्ण का दूतकार्य’ से लिया गया है। कवि ने कहा है कि संकटों की आग में तपकर ही मनुष्य का व्यक्तित्व निखरता है।

व्याख्या-कवि कहता है कि जब गन्ने को कोल्हू में पेरा जाता है तो उससे रस की अटूट धार निकल पड़ती है। मेंहदी पत्थर पर पिसने के बाद ही नारियों के हाथों में रचाई जाती है।
और उनकी सुन्दरता को बढ़ाती है। सुई से छिदने पर ही फूल माला का रूप धारण कर पाते हैं जो कँकड़ीली जमीन पर खुले आसमान के नीचे सोते हैं तथा जिनको जीवन में भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वे बेघर और गरीब लोग ही सफलता के शिखर पर चढ़ते हैं। लाख से बने घर में लगी आग से बच निकलने वाले ही सच्चे शूरवीर होते हैं।

विशेष-
(1) संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ी बोली।
(2) मुहावरों का सफलतापूर्वक प्रयोग हुआ है।
(3) अनुप्रास अलंकार है। ओज गुण है।

3. वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा विघ्नों को चूम चूम,
सह धूप घाम, पानी पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है।
मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को।
भगवान हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशो लाये।

शब्दार्थ-घाम = धूप, ताप। निखर = प्रभावशाली। मैत्री = मित्रता। राह = मार्ग। विध्वंस = विनाश।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ से संकलित पाठ ‘श्रीकृष्ण का दूतकार्य से लिया गया है। यह पाठ ‘रश्मिरथी’ खण्ड-काव्य को अंश है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। पांडवों ने श्रीकृष्ण को अपना दूत बनाकर हस्तिनापुर दुर्योधन के पास भेजा और अपना राज्य उससे माँगा।

व्याख्या-कवि दिनकर कहते हैं कि पांडव वनवास के समय वन में घूमते रहे और अनेक विघ्न-बाधाओं का सामना करते रहे। वनवास के समय उन्होंने धूप, गर्मी, बरसात, ओले आदि प्राकृतिक आपदाओं को सहा। इन कठिनाइयों को सहन करने से पांडवों का व्यक्तित्व और अधिक प्रभावशाली हो गया। मनुष्य के बुरे दिन सदा नहीं रहते। कभी-न-कभी तो उसके दिन फिरते ही हैं, उसे जीवन में सुख और सफलता अवश्य प्राप्त होती है। कवि कहता है। कि देखें अब आगे क्या होने जा रहा है। पांडवों के दूत बनकर श्रीकृष्ण हस्तिनापुर आये और दुर्योधन के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखा। उन्होंने सभी को सुमार्ग दिखाया। दुर्योधन को समझाया कि वह पांडवों को उनका राज्य लौटाकर न्यायप्रियता का परिचय दे। इस प्रकार युद्ध के विनाश से बचा जा सकेगा। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने पांडवों का संदेशं दुर्योधन तक पहुँचाया।

विशेष-
(1) प्रवाहपूर्ण, भावानुरूप खड़ी बोली है।
(2) ‘सौभाग्य न सब दिन सोता है’ में सूक्ति कथन शैली है।
(3) पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास अलंकार हैं।

4. दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम॥ हम वही खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे। दुर्योधन वह भी दे न सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।

शब्दार्थ-परिजन = परिवार के लोग। आशिष = आशीर्वाद। असाध्य = जिसे कार्य को पूरा करना संभव न हो, अकरणीय। विवेक = उचित-अनुचित का विचार।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ से संकलित कविता ‘श्रीकृष्ण का दूतकार्य’ से लिया गया है। यह कविता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य से उद्धृत है। दुर्योधन के सामने पाण्डवों के दूत श्रीकृष्ण ने उनको आधा राज्य अथवा पाँच गाँव देने का प्रस्ताव रखा। दुर्योधन ने इसको स्वीकार नहीं किया।

व्याख्या-कवि कहता है कि पांडवों के दूत श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि वह न्याय के अनुसार पाण्डवों को हस्तिनापुर का आधा राज्य दे दे। यदि वह ऐसा न कर सके तो उनको केवल पाँच गाँव ही दे दे। पाण्डव इतने से ही संतुष्ट हो जायेंगे। वह संपूर्ण हस्तिनापुर पर शासन करता रहे। पांडव तो पाँच गाँव पाकर ही खुश रहेंगे। वे अपना हक पाने के लिए अपने परिवार के लोगों अर्थात् कौरवों पर तलवार नहीं उठायेंगे। वह उनसे युद्ध नहीं करेंगे। दुर्योधन को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ। ऐसा करने पर उसे न्याय का पक्ष लेने के लिए समाज का आशीर्वाद मिलता। वह इससे भी वंचित रह गया। इसके विपरीत उसने श्रीकृष्ण को बन्धन में बाँधने का प्रयत्न किया। जो कार्य उसकी सामर्थ्य से बाहर था, वह उसी को करने लगा। श्रीकृष्ण को बन्धन में बाँधना दुर्योधन के वश की बात न थी। जब मनुष्य के बुरे दिन आते हैं तो उचित और अनुचित क्या है, यह विचार करने
की मनुष्य की शक्ति नष्ट हो जाती है।

विशेष-
(1) सरल, भावानुकूल खड़ी बोली है।
(2) सूक्ति कथन की शैली का प्रयोग है।

5. हरि ने भीषण हुँकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान कुपित होकर बोले।
जंजीर बढ़ाकर साध मुझे, हाँ-हाँ, दुर्योधन ! बाँध मुझे।”
यह देख गगन मुझ में लय है, यह देख पवन मुझमें लय है,
मुझ में विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
सब जन्म मुझी से पाते हैं- फिर लौट मुझी में आते हैं।

शब्दार्थ-भीषण = भयानक। हुँकार = आवेश युक्त स्वर। डगमग = हिलना। दिग्गज = दिशाओं के हाथी। कुपित = क्रोधित। लय = विलीन। सकल = सम्पूर्ण।।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित कविता ‘श्रीकृष्ण का दूतकार्य’ से लिया गया है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। श्रीकृष्ण पाण्डवों के दूत बनकर दुर्योधन के पास गए। उनके प्रस्ताव को स्वीकार करने के बजाय उसने उनको बन्दी बनाने का प्रयास किया।

व्याख्या-स्वयं को बाँधने का प्रयास करते दुर्योधन को देखकर श्रीकृष्ण क्रोधित हो उठे और उनके मुँह से भीषण हुँकार की आवाज निकली। श्रीकृष्ण ने अपना विराट स्वरूप दिखाया। इससे दिग्गज डगमगाने लगे। क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-हाँ, दुर्योधन, जंजीर बढ़ाकर मुझे वश में कर ले, मुझे बाँध ले। लेकिन यह देख कि क्या तु ऐसा कर पायेगा? देख, यह सम्पूर्ण आकाश, वायु, सृष्टि की ध्वन्यात्मक गतियाँ, यह पूरा संसार मेरे भीतर ही विलीन है। संसार के सभी जीव मुझसे ही जन्म लेते हैं तथा मृत्यु होने के बाद मुझमें ही लीन हो जाते हैं।

विशेष-
(1) सरल, भावानुकूल खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(2) अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार हैं।
(3) शांत और भयानक रस है।

6. हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं अब रण होगा, जीवन, जय, या कि मरण होगा।
टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, बरसेगी भू पर वहिन प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन रण ऐसा होगा, फिर कभी नहीं जैसा होगा।’

शब्दार्थ-हित-वचन = भलाई की बात। मैत्री = मित्रता। संकल्प = निश्चय। याचना = भीख माँगना। रण = युद्ध। निकर= समूह। वहिन = आग। फण = फन। डोलेगा = हिलेगा। विकराल = भयानक। काल = समय, मृत्यु।।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘श्रीकृष्ण का दूतकार्य’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता को ‘रश्मिरथी’ खण्ड-काव्य से ग्रहण किया गया है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।

व्याख्या-दुर्योधन ने पांडवों के दूत श्रीकृष्ण का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया और उनकी भली सलाह को ठुकरा दिया। इस पर क्रुद्ध होकर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा-हे दुर्योधन, तूने मेरी हितकारक सलाह नहीं मानी। मैंने पाण्डवों से मित्रता करने का जो प्रस्ताव किया था उसका महत्व भी तेरी समझ में नहीं आया। ठीक है, अब मैं जा रहा हूँ। जाते-जाते अपना अन्तिम निश्चय भी सुनाता हूँ। अब पाण्डव राज्य के लिए तुझसे भीख नहीं माँगेंगे। अब वे युद्ध भूमि में तुझको ललकारेंगे। इस युद्ध में या तो उनकी मृत्यु होगी या विजयी होकर वे जीवित रहेंगे और हस्तिनापुर पर राज्य करेंगे। यह युद्ध बहुत भयानक होगा। नक्षत्र एक-दूसरे से टकरायेंगे। धरती पर भयानक तीव्र आग की वर्षा होगी। व्याकुल होकर शेषनाग अपना फन हिलायेगा जिससे धरती काँप उठेगी। भयानक मृत्यु अपना विशाल मुँह खोल देगी। हे दुर्योधन! यह युद्ध इतिहास का भयानकतम युद्ध होगी। संसार में इतना भयानक युद्ध फिर कभी नहीं होगा।

विशेष-
(1) भयानक रस की व्यंजना हुई है।
(2) श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को पाण्डवों का प्रस्ताव ठुकराने पर चेताया है।
(3) अनुप्रास अलंकार है। सरल, भावानुकूल खड़ी बोली है।

7. भाई पर भाई टूटेंगे, विषबाण बूंद से छूटेंगे,
वायस शृगाल सुख लूटेंगे, सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
“आखिर तू भू-शायी होगा, हिंसा का परदायी होगा।’
थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े,
केवल दो नर न अघाते थे, धृतराष्ट्र विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय, दोनों पुकारते थे जय-जये।

शब्दार्थ-विष बाण = विषैले तीर। वायसे = कौआ। शृगाल = गीदड़। भू-शायी = धरती पर सोना, मृत्यु होना। परदायी = उत्तरदायी, जिम्मेदार। सन्न = शब्दहीन, शांत। अघाते = तृप्त होते। प्रमुदित = प्रसन्न।

संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी प्रबोधिनी’ में संकलित ‘श्रीकृष्ण का दूतकार्य’ कविता से लिया गया है। यह कविता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ से उद्धृत है। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को बताया कि उनको प्रस्ताव स्वीकार न करके उसने भूल की है। अब युद्ध को कोई रोक नहीं सकता। यह युद्ध अत्यन्त भयानक होगा।

व्याख्या-श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि पांडवों के साथ होने वाला युद्ध अत्यन्त भयंकर होगा। एक भाई दूसरे भाई के विरुद्ध युद्ध करेगा। इस युद्ध में विषैले तीर वर्षा की बूंदों की तरह चलेंगे। युद्ध भूमि लाशों से पट जायेगी। इससे कौओं और गीदड़ों को बहुत खुशी होगी। यह युद्ध मानवों के दुर्भाग्य का कारण बनेगा। युद्ध का अन्त तुम्हारी मृत्यु से होगा। तुम्हारा शव भूमि पर पड़ा होगा। इस युद्ध में जो भीषण रक्तपात और हिंसा होगी उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी ही होगी। श्रीकृष्ण की बातें सुनकर दुर्योधन की पूरी राज्यसभा सन्न रह गई। सब डरे हुए थे। कोई कुछ भी कह नहीं पा रहा था। सब बेहोश से पड़े हुए थे। उस समय केवल दो व्यक्ति श्रीकृष्ण की बातें सुनकर नहीं अघा रहे थे। उनकी इच्छा उनकी बातें सुनते रहने की थी। ये थे धृतराष्ट्र और विदुर। दोनों को श्रीकृष्ण की बातें सुनकर बहुत सुख मिल रहा था। वे हाथ जोड़कर निर्भीक और प्रसन्न होकर खड़े हुए थे और श्रीकृष्ण की जय-जयकार कर रहे थे।

विशेष-
(1) सरल, विषयानुकूल खड़ी बोली है।
(2) भाषा मुहावरेदार है।
(3) अनुप्रास अलंकार है।

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