Rajasthan Board RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 मानव शरीर: वृध्दि एवं विकास
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विकास का आधार क्या है?
उत्तर:
वातावरण एवं वंशानुगत कारक विकास के आधार है।
प्रश्न 2.
तीव्र विकास व वृद्धि की अवस्था कौनसी है?
उत्तर:
किशोरावस्था।
प्रश्न 3.
‘कल्पनालोक’ में उड़ान किस अवस्था का सूचक है।
उत्तर:
किशोरावस्था को
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शैशवावस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शैशवावस्था – जन्म से 3 वर्ष तक होती है। जन्म के समय बालक की लम्बाई लगभग 20 इंच होती है तथा भार 5 से 8 पौण्ड तक होता है।
शैशवावस्था की विशेषताएँ-निम्न प्रकार हैं
- वृद्धि और विकास की तीव्र गति – इस काल में वृद्धि और विकास की गति बहुत अधिक तीव्र होती है। शिशु के सभी आन्तरिक और बाह्य अवयव तेजी से विकसित होते हैं। इसका अनुमान शिशु की ऊँचाई, भार और आकार की तीव्र वृद्धि से सहज ही हो सकता है। इस काल के बच्चे में बहुत अधिक क्रियाशीलता और एक अजीब-सी बेचैनी भी पाई जिती है, जो उसके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि सभी दिशाओं में तेजी से विकसित होने के फलस्वरूप ही पैदा होती है।
- दूसरों परनिर्भररहना – अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शिशु अपने माता-पिता और अन्य परिजनों पर निर्भर रहता है। इस अवस्था के प्रारम्भ में बालक पूर्ण रूप से दूसरों पर आश्रित रहता है, परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे वह धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनता चला जाता है।
- आत्मगौरव – यद्यपि शिशु असहाय और पराश्रित होता है, फिर भी उसमें आत्म-गौरव की भावना बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है। वह अपने बड़े भाई-बहन, माता-पिता तथा अन्य व्यक्तियों पर पूरी तरह से हावी रहता है तथा हठी प्रवृत्ति के कारण अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति चाहता है।
- स्वार्थी और असामाजिक – शैशवावस्था में बच्चा बहुत ही अधिक स्वार्थी और अहंकारी होता है, वह चाहता है कि सब कुछ उसके लिए हो। अपने किसी भी खिलौने को वह दूसरे बच्चों द्वारा हाथ लगाना भी पसन्द नहीं करता। सामाजिकता की दृष्टि से वह शून्य ही होता है। उसके लिए अपना स्वार्थ और अपनी इच्छा की तृप्ति ही सब कुछ होती है।
प्रश्न 2.
किशोरावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
किशोरावस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- शारीरिक परिवर्तन सम्बन्धी उलझनेंकिशोरावस्था में लड़के और लड़कियाँ दोनों में शारीरिक रूप से कुछ आन्तरिक और बाह्य परिवर्तन आते हैं। किशोरावस्था के प्रारम्भ में मासिक-धर्म के दौरान रक्तस्राव लड़कियों को अनावश्यक रूप से चिन्तित कर देता है। इसी प्रकार लड़के भी स्वप्नदोष के परिणामस्वरूप अपनी अमूल्य निधि के व्यर्थ नष्ट होने की चिन्ता में घुले रहते हैं। किशोरों में शारीरिक गठन, रंगरूप, आकार तथा अन्य शारीरिक विशेषताओं में पर्याप्त अन्तर देखने को मिलते हैं।
- कामुकता किशोरावस्था में कामुकता सबसे अधिक होती है। लड़कों का लड़कियों के प्रति व लड़कियों का लड़कों के प्रति आकर्षण अधिक रहता है, विपरीत लिंग के दोस्त बनाने में किशोर अधिक रुचि दिखाते हैं।
- आत्मनिर्भरता बनाम निर्भरता – किशोरावस्था में होने वाले आकस्मिक शारीरिक परिवर्तनों और विकास के परिणामस्वरूप किशोरों में जो चिन्ता, बेचैनी, भय तथा असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है, उनका निराकरण माँ-बाप तथा अन्य परिजनों के स्नेह के द्वारा ही संभव हो पाता है। इसके अतिरिक्त अनियंत्रित संवेगों की बाढ़ लिए जब वह साहस एवं नवीनता से ओत-प्रोत कार्यों को करने के लिए आगे बढ़ता है, तो उसे पथप्रदर्शक और परामर्श की आवश्यकता होती है।
- कल्पना-बाहुल्य – किशोर कल्पना में अधिक जीते हैं। नए-नए सपने लेते हैं। अप्राप्य वस्तु की कल्पना करने लग जाते हैं। उसे प्राप्त करने की इच्छा करते हैं, जो उसकी पहुँच से बहुत दूर होती है। जब वे ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो माँ-बाप को दोष देते हैं। खुद पर गुस्सा करते हैं। दूसरों की हर चीज को देखकर कल्पना करने लग जाते हैं। काश! हमारे पास भी यह हो। इस प्रकार इस अवस्था को ‘कल्पना-बाहुल्य’ अवस्था भी कह सकते हैं।
प्रश्न 3.
वंश व वातावरण वृद्धि व विकास को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
वंश – व्यक्ति के कद, शारीरिक बनावट, रूपरंग व मानसिक, बौद्धिक विकास में वंशानुगत गुणों की विशेष भूमिका होती है। वंशानुगत गुणों के कारण ही व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक विकास की विशेषताएँ एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होती हैं। वातावरण स्वच्छ वातावरण बालकों व व्यक्तियों के शारीरिक वृद्धि व बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रदूषित वातावरण सभी उम्र के व्यक्तियों व बालकों की वृद्धि व विकास को बुरी तरह प्रभावित करता है।
प्रश्न 4.
किशोरावस्था में विकास या परिवर्तन की चार अवस्थाएँ कौनसी हैं?
उत्तर:
किशोरावस्था में विकास या परिवर्तन की चार अवस्थाएँ –
1. शारीरिक विकास – किशोरावस्था में बालकबालिकाओं में निम्न परिवर्तन दिखाई देते हैं –
- बालकों के कद में बालिकाओं की अपेक्षा अधिक वृद्धि होना। दोनों के चेहरे पर कील-मुँहासों का होना।
- बालकों की आवाज का भारी होना।
- बालिकाओं के शरीर में वसीय ऊतक व त्वचा के नीचे ऊतक विकसित होने से शरीर का गोलाई लेते हुए सुडौल होना। मासिक – धर्म का प्रारम्भ होना।
- बालकों में मांसपेशियों का मजबूत होना तथा चेहरे व बगल में बालों का उगना प्रारम्भ होता है।
- बालिकाओं के शरीर में स्तनों के आकार व नितम्बों के आकार में वृद्धि होने लगती है।
2. भावात्मक विकास –
- भावात्मक विकास से तात्पर्य अपने भावों को उत्तरदायी रूप से अभिव्यक्त करने की क्षमता का विकास करना है।
- सभी किशोरावस्था के बालक-बालिका प्रतिबन्धों के दौर से गुजरते हैं जिससे उनके मन में चिड़चिड़ापन होने लगता है।
- भावों व आवेगों में तेजी से उतार-चढ़ाव होने लगता है।
- मनोभावों पर नियंत्रण कर लेने वाले बालकबालिकाओं के व्यवहार में गंभीरता भी झलकने लगती है।
- बालिकायें अपने मनोभावों को नियंत्रित करने में बालकों की अपेक्षा ज्यादा सकारात्मक होती हैं।
3. सामाजिक विकास –
- बालक अपने परिवार, समूह के साथ संवाद करने का प्रयास करने लगता है।
- वयस्कता की तरफ बढ़ने से सामाजिक सम्बन्धों में बदलाव दिखाई देते हैं।
- माता-पिता व परिवार के सदस्यों के स्थान पर मित्रों व सहपाठियों के साथ समय व्यतीत करने लगता है।
- अपने को बड़े होने या बच्चे होने के भ्रम में फंसे झेने का अनुभव करते हैं। माता-पिता को अपने बच्चों का सामाजिक परिचय करवाना चाहिए ताकि वे अपने को अधिक सहज महसूस कर सकें व परिवार से दूर रहने का प्रयास न करें।
4. ज्ञानात्मक विकास –
- ज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य मस्तिष्क के विकास से है।
- यह स्थिति बालकों के मानसिक कार्यों की जटिलता को कम करती है।
- विचारधारा का विकास होता है।
- सृजनात्मक प्रवृत्ति का विकास होना ।
- आदर्शवादिता की सोच का जन्म लेना।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धि और विकास में अन्तर को समझाइये।
उत्तर:
वृद्धि और विकास में अन्तर –
- वृद्धि शब्द का अर्थ बड़े होने के साथ-साथ आकार, लम्बाई, ऊँचाई तथा भार में परिवर्तन वृद्धि से है।
- वृद्धि एक तरह से सम्पूर्ण विकास प्रक्रिया का एक चरण है।
- वृद्धि व्यक्ति के शरीर के किसी भी अवयव तथा व्यवहार के परिवर्तनों को प्रकट करती है।
- बालक द्वारा परिपक्वता ग्रहण करने के साथ ही साथ वृद्धि समाप्त हो जाती है।
- वृद्धि के फलस्वरूप होने वाला परिवर्तन (बिना कोई विशेष प्रयास किए) दृष्टिगोचर हो सकता है तथा इसे मापा भी जा सकता है।
- वृद्धि के साथ – साथ सदैव विकास होना आवश्यक नहीं है। मोटापे के कारण एक बालक के भार में वृद्धि हो सकती है परन्तु इस वृद्धि से उसकी कार्यक्षमता व कार्यकुशलता में कोई वृद्धि नहीं होती है और इस तरह से उसकी वृद्धि विकास को साथ लेकर नहीं चलती है।
विकास –
- विकास शब्द का अर्थ वृद्धि की तरह केवल परिमाण सम्बन्धी परिवर्तनों को व्यक्त न कर सभी परिवर्तनों, जैसे बालक की कार्यक्षमता व व्यवहार में प्रगति आदि से है।
- वह व्यक्ति में होने वाले सभी परिवर्तनों को प्रकट करता है।
- विकासे एक सतत् प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया व्यक्ति के साथ आजीवन चलती है।
- विकास को प्रत्यक्ष रूप में मापना कठिन है। इसे केवल अप्रत्यक्ष तरीकों, जैसे व्यवहार करते हुए बालक का निरीक्षण करना आदि से मापा जा सकता है।
- विकास व्यक्ति में आने वाले सम्पूर्ण परिवर्तनों को इकट्टे रूप में व्यक्त करता है।
- दूसरी ओर विकास वृद्धि के बिना संभव हो सकता है। कई बार देखा जाता है कि कुछ बच्चों की ऊँचाई, आकार एवं भार में समय गुजरने के साथ-साथ कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिखाई देता, परन्तु उनकी शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक योग्यता में बराबर प्रगति होती रहती है।
प्रश्न 2.
वृद्धि व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृद्धि व विकास को प्रभावित करने वाले कारक –
- वातावरण – जिस भौतिक परिवेश में मनुष्य रहता है वह व्यक्ति के शारीरिक व बौद्धिक विकास को प्रभावित करता है। प्रदूषित वातावरण सभी उम्र के व्यक्तियों व बालकों के वृद्धि व विकास को बुरी तरह प्रभावित करता है। इसी प्रकार स्वच्छ वातावरण बालकों व व्यक्तियों की शारीरिक वृद्धि व बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वंशानुगत कारक – व्यक्ति के कद, शारीरिक बनावट, रूप-रंग व मानसिक बौद्धिक विकास में वंशानुगत गुणों की विशेष भूमिका होती है। वंशानुगत गुणों के कारण ही व्यक्ति
की शारीरिक व मानसिक विकास की विशेषताएँ एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होती हैं। उपरोक्त दोनों कारकों को विकास का आधार माना जाता है। - खान-पान व रहन – सहन-व्यक्ति, विशेषकर बालकों के खान-पान व रहन-सहन के कारण उनके भावी जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। खान-पान की अच्छी आदतों यथा सन्तुलित भोजन बालक के विकास को माँ के गर्भ में ही प्रभावित करना प्रारम्भ कर देता है। अत: बाजार में मिलने वाली खुली खाद्य सामग्री, पिज्जा, बर्गर के सेवन से बचना चाहिए। खान-पान की प्रक्रिया में स्वच्छता का ध्यान रखते हुए रहनसहन में भी स्वच्छता रखनी चाहिए।
- रोग – रोग व बीमारियाँ व्यक्ति के विकास को बचपन से ही बाधा पहुँचाना प्रारम्भ करने लगती हैं। रोगों के कारण न केवल शारीरिक वृद्धि रुकती है अपितु बालकों के बौद्धिक विकास को भी प्रभावित करती है।
- योगासन व व्यायाम नियमित खेलकूद, व्यायाम, योगासनों से व्यक्ति व बालकों का स्वास्थ्य निरोग रहता है। मन ऊर्जावान, स्फूर्तिदायक बनता है। मन की एकाग्रता, शांतचित्त के लिए योगासन व व्यायाम बहुत जरूरी है।
- अच्छी आदतें – बालकों के शारीरिक व बौद्धिक विकास में अच्छी आदतों की विशिष्ट भूमिका है। शरीर की स्वच्छता का ध्यान रखना, प्रात:काल जल्दी उठना, माता-पिता के चरण-स्पर्श करना, नशे से दूर रहना, अच्छे दोस्तों की संगत करना, प्रेरक जीवनियाँ पढ़ना, समय पर सोना व उठना, बालकों के शरीर की वृद्धि व बौद्धिक-मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाती हैं।
- पारिवारिक माहौल – माता-पिता परिवार में बालकों के प्रारम्भिक शिक्षक तो होते ही हैं साथ ही प्रथम प्रेरक भी होते हैं। अतः माता-पिता का व्यवहार बच्चों के प्रति प्रेरक व संस्कारवान होना चाहिये। इससे बच्चों के मानसिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- विद्यालयी शिक्षा व सहशैक्षिक प्रवृत्तियाँ – विद्यालयों में बालकों को दी जाने वाली शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा जहाँ बालकों को अच्छा जीवन जीने की प्रेरणा देती है, वहीं सहशैक्षिक प्रवृत्तियाँ बालकों में देशप्रेम, आत्मविश्वास, साहस, नैतिक गुण, सहयोग की भावना आदि गुणों का विकास करती हैं जिससे मानसिक व बौद्धिक विकास में भी मदद मिलती है। बालक एक सुसभ्य नागरिक बन पाता है।
- शारीरिक विकृतियाँ – जन्म के साथ ही मिली शारीरिक विकृतियाँ बालकों की शारीरिक वृद्धि व बौद्धिक विकास को अवरुद्ध करती हैं। विकलांगता, बधिरता, अंधता, मानसिक कमजोरी व्यक्ति के विकास व वृद्धि को प्रभावित करती हैं। –
- शुद्ध पेयजल – मानव के शारीरिक वृद्धि व विकास में स्वच्छ पेयजल की अपनी विशिष्ट भूमिका होती है। प्रदूषण के इस दौर में शुद्ध पेयजल बालकों के विकास में जहाँ जरूरी है, वहीं प्रदूषित जल अनेक रोगों को उत्पन्न करता है। अतः न केवल धर अपितु विद्यालय के पेयजल स्रोत व सार्वजनिक पेयजल स्रोतों की स्वच्छता को भी पूरा ध्यान रखना चाहिये।
प्रश्न 3.
वृद्धि के विकास की विभिन्न अवस्थाओं को समझाइये।
उत्तर:
वृद्धि के विकास की विभिन्न अवस्थायें बालक के जन्म से लेकर प्रौढ़ बनने तक व वृद्धावस्था में पहुँचने तक की प्रक्रिया में वृद्धि व विकास कई चरणों से गुजरता है। व्यक्ति के विकास की 5 अवस्थाएँ निर्धारित की गई हैं –
- शैशवावस्था (जन्म से 5 वर्ष तक की अवस्था)
- बाल्यावस्था (6 – 12 वर्ष तक की अवस्था)
- किशोरावस्था (13 से 18 वर्ष तक की अवस्था)
- प्रौढावस्था (19 – 40 वर्ष तक की अवस्था)
- वृद्धावस्था (41 से आगे तक)
किशोरावस्था (13 से 18 वर्ष तक की अवस्था) –
यह बाल्यजीवन की अन्तिम व विकास की जटिल अवस्था मानी जाती है। विकास की यह अवस्था जहाँ “स्वर्णिम-काल” होती है वहीं सही मार्गदर्शक न मिलने पर दिग्भ्रमित होने का खतरा भी इस उम्र में सबसे ज्यादा होता है। क्योंकि बालक इस अवस्था में ”कल्पना लोक” में जीता है। बालकों में मानसिक विकास तीव्र गति से होता है वहीं शारीरिक वृद्धि के क्रम में अंगों में महत्त्वपूर्ण बदलाव दिखाई पड़ते हैं। इस अवस्था में बालिकाएँ स्वभावगत व्यवहार में संकोची हो जाती हैं वहीं बालक मुखर होने लगते हैं। माता-पिता, परिवार के सदस्यों, विद्यालयों में शिक्षकों को इस पीढ़ी के साथ सधा हुआ व्यवहार करना चाहिए।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विकास की अवस्था का स्वर्णिम काल कौनसा है?
उत्तर:
किशोरावस्था।
प्रश्न 2.
विकास किस ओर होता है?
उत्तर:
साधारण से विशेष की ओर।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धि का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
वृद्धि –
- शरीर में वृद्धि का आशय आकार, ऊँचाई, वजन व लम्बाई में वृद्धि से है।
- मानव शरीर में वृद्धि उसके शरीर के विभिन्न अंगों में आनुपातिक तरीके से होती है।
- मानव शरीर में वृद्धि की प्रक्रिया किशोरावस्था से प्रौढ़ावस्था की तरफ बढ़ने के साथ ही मंद पड़ने लगती है।
प्रश्न 2.
विकास का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
विकास –
- विकास की प्रक्रिया में मानव शरीर में शारीरिक बदलाव के अलावा उसकी मेधा शक्ति पर भी। परिवर्तन का असर देखने को मिलता है।
- विकास की इस प्रक्रिया में मानव की कार्यक्षमता व सोचने – समझने की क्षमता में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं।
- मानव शरीर में विकास के फलस्वरूप गुणात्मक बदलाव दिखाई पड़ते हैं।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किशोरावस्था में ध्यान रखने योग्य बातें लिखिए।
उत्तर:
किशोरावस्था में ध्यान रखने योग्य बातें
- शरीर के अंगों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- कपड़ों की स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए।
- विद्यालय व घर में बच्चों को मित्रवत् परिवेश मिलना चाहिए।
- बच्चों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार हो एवं उनके आवेगों को समझने का प्रयास करना चाहिए।
- अच्छी पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिलना चाहिये। गंदी फिल्में, गंदे साहित्य, गंदे मित्रों से बच्चों को दूर रहना चाहिए। इस हेतु माता-पिता व शिक्षक बच्चों को समय-समय पर जागरूक करते रहें।
- कल्पना लोक में विचरण वे एकान्त की चाह के कारण बालकों पर विशेष ध्यान देते हुए उन्हें जीवन की वास्तविकता से अवगत कराते रहना चाहिये।
- बच्चों की अनावश्यक मांगों की पूर्ति करने से बचना चाहिए व इसका कारण भी उन्हें समझाना चाहिए।
- बच्चों के साथ बातचीत का सुखद वातावरण बनाये रखना चाहिए।
- अच्छे मित्र बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- कमजोर बच्चों को पारिवारिक प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
- हार्मोन्स के स्राव का समय होने से तनाव से बचें व खान-पान की अच्छी आदतों का विकास करें। कील-मुंहासों से बचने के लिए चेहरे को धूल, धुआँ व उमस भरे वातावरण से दूर रखें व स्वच्छ तौलिये का प्रयोग करें।
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