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RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 2 योगः कर्मसु कौशलम्

June 6, 2019 by Safia Leave a Comment

Rajasthan Board RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 2 योगः कर्मसु कौशलम्

RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 2 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोत्तराणि

RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 2 वस्तुनिष्ठप्रश्नाः

1. दत्तेषु विकल्पेषु उचितविकल्पस्य क्रमांक कोष्ठके लिखत

(क) योगशास्त्रस्य प्रणेता कः अस्ति?
(च) पाणिनिः
(छ) पतंजलिः
(ज) कालिदासः
(झ) आर्यभट्टः
उत्तराणि:
(छ) पतंजलिः

(ख) साहित्ये ……… कोशात्मकविकासस्य अवधारणा वर्तते।
(च) त्रि।
(छ) चतुर
(ज) पंच
(झ) षट्।
उत्तराणि:
(ज) पंच

(ग) योगस्य कति अंगानि?
(च) पंच।
(छ) षट्
(ज) सप्त
(झ) अष्टः
उत्तराणि:
(झ) अष्टः

(घ) योगशिक्षायाः प्रथम सोपानं किं मन्यते?
(च) आसनम्
(छ) समाधिः
(ज) प्राणायामः
(झ) सूर्यनमस्कारः
उत्तराणि:
(झ) सूर्यनमस्कारः

RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 2 अति लघूत्तरात्मक प्रश्नाः

2. अधोलिखितान् प्रश्नान् एकेन पदेन उत्तरत

(क) पुरुषार्थाः कति?
(ख)जनाः किमर्थं विभिन्नान् प्रयत्नान् कुर्वन्ति?
(ग) पंच कोशात्मकविकास: किमुच्यते?
(घ) सूक्ष्मतमं किम्?
(ङ) योगस्य अष्टमः अंगः कः?
(च) योगस्य कति स्थितयः?
उत्तराणि:
(क) चत्वारः
(ख) स्वास्थ्यरक्षणार्थम्
(ग) अवधारणा
(घ) आत्मा
(ङ) समाधिः
(च) अनेकाः

RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्नाः

3. अधोलिखितान् प्रश्नान् पूर्णवाक्येन उत्तरत –

(क) का विश्वमंगल कामना?
(ख) पंच प्राणायामानां नामानि लिखत।
(ग) ध्यानं किं भवति?
(घ) धर्मस्याद्यं साधनं किम्?
(ङ) विश्वेन कस्य महत्वं स्वीकृतम्?
(च) शरीरावयवाः केन दृढाः भवन्ति?
(छ) पंचकोशानां साधनानि कानि?
उत्तरम्:
(क) सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
(ख) अनुलोम, विलोम, पूरक, रेचक, कपालभाति: इति।
(ग) चित्तस्य एकाग्रता, मनसः निर्विषयकता ध्यानं भवति।
(घ) शरीरं धर्मस्य आद्यं साधनं भवति।
(ङ) विश्वेन अद्य योगस्य महत्त्वं स्वीकृतम्।
(च) नियमितरूपेण योगाभ्यासेन शरीरावयवाः दृढा: भवन्ति।
(छ) शरीर प्राणाः मनः बुद्धिः आत्मा च एते पंचकोशानां साधनानि सन्ति।

4. ‘क’ भागेन सह ‘ख’ भागस्य उचित मेलनं कुरुत

    क                                      ख
(च) आसनः                    (ट) चतुरशीतिः
(छ) प्रथमं सोपानम्          (ठ) कर्मसु कौशलम्
(ज) प्रमुखानि योगासनानि (ड) प्राणायामः
(झ) योगः                       (ढ) सूर्यनमस्कारः
(य) प्राणगतिनिरोधः         (ण) अभ्यासकेन्द्रम्
उत्तरम्:
(च) – (ण)
(छ) – (ढ)
(ज) – (ट)
(झ) – (ठ)
(य) – (ङ)

5. निम्नपदानां संधिं/सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा नामानि लिखत-

उत्तरम्:
(क) धर्मार्थः = धर्म + अर्थः = दीर्घ सन्धिः।
(ख) ज्ञानेन्द्रियाणाम् = ज्ञान + इन्द्रियाणाम् = गुणसन्धिः।
(ग) शरीरेणैव = शरीरेण + एव = वृद्धिसन्धिः ।
(घ) करोत्येव = करोति + एव = यण्सन्धिः।
(ङ) अनेनैव = अनेन + एव = वृद्धिसन्धिः।
(च) विभिन्नोपचाराणि = विभिन्न + उपचाराणि = गुणसन्धिः

6. कोष्ठकात् चित्वा उचितैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत(स्वस्थशरीरे, प्राणायामः, एकविंशतिः, कर्मसु, अपि, स्वास्थ्यरक्षणार्थम्)

(क) जनाः …………….. विभिन्नान् प्रयत्नान् कुर्वन्ति।
(ख) …………….. स्वस्थमस्तिष्कं निवसति।
(ग) पञ्चकोशात्मकविकास: …………….. योग: उच्यते।
(घ) योगः ………………….. कौशलम् ।
(ङ) जूनमासस्य ………………….. तमे दिनांके विश्व योगदिवसः आयोज्यते।
(च) भ्रामरी एकः …………………….. अस्ति ।
उत्तराणि:
(क) स्वास्थ्य रक्षाणर्थम्
(ख) स्वस्थ शरीरे
(ग) साधारण
(घ) कर्मसु
(ङ) एक विंशतिः
(च) प्राणायामः।

7. योगशब्दस्य निर्दिष्टरूपाणि रिक्तस्थाने लिखत –

(क) जनाः प्रायशः प्रातः …………………… कुर्वन्ति। (द्वितीया एकवचनम्)
(ख) “” अनेकानि सोपानानि सन्ति। (षष्ठी एकवचनम्)
(ग) आसनानि …………………. भवन्ति। (चतुर्थी एकवचन)
(घ) सर्वसामर्थ्य …………………. मन्यते। (सप्तमी एकवचनम्)
(ड) ……………….. शरीर स्वस्थं तिष्ठति। (तृतीया एकवचनम्)
उत्तराणि:
(क) योगम्
(ख) योगस्य
(ग) योगाय
(घ) योगे
(ङ) योगेन

8. निम्नपदानां प्रयोगं स्वरचितवाक्येषु कुर्वन्तु –

यथा – तिष्ठति-व्यायामेन शरीरं स्वस्थं तिष्ठति।
(क) वर्तते
(ख) कार्येषु
(ग) अद्य
(घ) करणीयः
(ड) एकविंशतितमे।
उत्तराणि:
(क) योगः भारतीय जीवने आदिकालातः वर्तते।
(ख) स्वस्थः मानवः कार्येषु कुशलः भवति।
(ग) अद्य जनाः योगं स्वीकुर्वन्ति।
(घ) व्यायामः नित्यमेव करणीयः।
(ड) एकविंशतितमे दिवसे जनाः अत्र आगमिष्यन्ति।

RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि

अधोलिखित प्रश्नान् संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन उत्तरत –

प्रश्न 1.
अस्माकं संस्कृतौ कति पुरुषार्थानाम् उल्लेख:?
उत्तरम्:
अस्माकं संस्कृतौ चतुर्णाम् पुरुषार्थाणाम् उल्लेखः।

प्रश्न 2.
चतुर्गी पुरुषार्थाणां नामानि लिखत।
उत्तरम्:
धर्मार्थकाममोक्षाः इति चत्वारः पुरुषार्थाः सन्ति।

प्रश्न 3.
धर्मस्य आदिसाधनं किं प्रोक्तुम्?
उत्तरम्:
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।

प्रश्न 4.
पुरुषार्थानां पूर्तये कस्य आवश्यकता वर्तते?
उत्तरम्:
पुरुषार्थानां पूर्तये शरीरस्य आवश्यकता वर्तते।

प्रश्न 5.
स्वस्थमस्तिष्कः कुत्र निवसति?
उत्तरम्:
स्वस्थमस्तिष्कः स्वस्थशरीरे निवसति।

प्रश्न 6.
गीतानुसारं योगः किम् उच्यते?
उत्तरम्:
गीतानुसारं समत्वं योग: उच्यते।

प्रश्न 7.
अद्य विश्वेन कस्य महत्त्वं स्वीकृतम्?
उत्तरम्:
अद्य विश्वेन. योगस्य महत्त्वं स्वीकृतम्।

प्रश्न 8.
विश्वयोगदिवसः केदा आयोज्यते?
उत्तरम्:
जून मासस्य एकविंशतितमे दिनांके सम्पूर्ण विश्वस्मिन् योगदिवसः आयोज्यते।

प्रश्न 9.
शरीरस्य सर्वाङ्गीणविकासार्थं कस्य आवश्यकता वर्तते?
उत्तरम्:
शरीरस्य सर्वाङ्गीणविकासार्थं योगस्यावश्यकता वर्तते।

प्रश्न 10.
योगस्य अष्टाङ्गानां नामानि लिखत।
उत्तरम्:
यमः, नियमः, आसनम्, प्राणायामः, प्रत्याहारः, धारणा, ध्यानं समाधिश्च योगस्य अष्टाङ्गानि।

स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत –

प्रश्न 1.
आसनम् अभ्यासस्य केन्द्रम्।
उत्तरम्:
किम् अभ्यासस्य केन्द्रम्?

प्रश्न 2.
चित्तस्य स्थानविशेषे बंधः धारणा भवति।
उत्तरम्:
कस्य स्थान विशेषे बंधः धारणी भवति?

प्रश्न 3.
सूर्य नमस्कारः योगासनानां प्रथम सोपानं मन्यते।
उत्तरम्:
क: योगासनानां प्रथमं सोपानं मन्यते?

प्रश्न 4.
सूर्य नमस्कारस्य द्वादश स्थितयः सन्ति।
उत्तरम्:
सूर्य नमस्कारस्य कति स्थितयः सन्ति।

प्रश्न 5.
चतुरशीतिः प्रमुखानि योगासनानि मन्यन्ते।
उत्तरम्:
कति प्रमुखानि योगासनानि मन्यन्ते?

पाठ परिचय

योग शिक्षा मूलतः भारतीय विद्या ही है। योग से न केवल मानव शरीर का ही विकास होता है अपितु मानव का सर्वतोन्मुखी विकास होता है। इसलिए बाल्यकाल से ही छात्रों को जागरूक होकर योगाधारित जीवन का निर्माण करना। चाहिए। ऐसा विचार करके पातञ्जल योगसूत्रों को आधार मानकर लेखक विक्रम शर्मा महोदय सरल भाषा द्वारा योग विषय को यहाँ प्रस्तुत करते हैं।

शब्दार्थ एवं हिन्दी-अनुवाद

1. धर्मार्थकाममोक्षाः …………………………….. समुचितरूपेण करोति।

शब्दार्था:-अस्माकम् = हमारी। वर्तते = है। तेषु = उनमें। शरीरमेव = कलेवर, शरीर ही। उक्तमपि = कहा भी गया है। खलु = निश्चय ही। आद्यम् = पहला। साधनम् = उपाय। वक्तुं शक्यते = कहा जा सकता है। तर्हि = तभी से ही। सम्यक् = पूरी तरह अच्छा।

हिन्दी-अनुवाद-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार लक्ष्यों (पुरुषार्थों) का हमारी संस्कृति में उल्लेख है। उनमें से पहले लक्ष्य (पुरुषार्थ) की सिद्धि के लिए मुख्य साधन शरीर ही है। कहा भी गया है-‘निश्चित रूप से शरीर ही धर्म-शास्त्रों द्वारा निर्धारित कृत्य करने का आदि साधन (कारण) है। इस प्रकार से भी कह सकते हैं कि-पुरुषार्थों की पूर्ति के लिए स्वस्थ शरीर की अपेक्षा है। हमारी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की नीरोगता (स्वस्थता) होनी चाहिए। यदि हमारा शरीर, मन, अन्त:करण, बुद्धि इत्यादि स्वस्थ होंगे तो हमारा स्वास्थ्य सर्वथा सही रहेगा। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग का वास होता है। नीरोग शरीर से ही मनुष्य सभी कार्यों को यथोचित रूप से करता है।

2. अद्य जना …………………………….. प्रमुखः वर्तते योगः।

शब्दार्था:-अद्य = अब। प्रायशः = समान रूप से, प्रायः लगभग। शरीरस्यानुशासनेन = शरीर के अनुशासन से। तिष्ठामः == रहते हैं। व्यक्तेः = व्यक्ति की। न तिष्ठति = नहीं ठहरता है। क्रियन्ते = किए जाते हैं। तेषु = उनमें से।

हिन्दी-अनुवाद-आज लोग स्वास्थ्य की रक्षा के लिए विविध प्रयास करते हैं। प्रायः कहा जाता है कि शरीर के अनुशासन से हम स्वस्थ रहते हैं किन्तु विद्वान कहते हैं कि विभिन्न कारणों से व्यक्ति की भावना कर्म के प्रति उसके दृष्टिकोण और उसके जीवन की पद्धति उसके शरीर को प्रभावित करती ही है। केवल शरीर पर नियन्त्रण रखने पर लम्बे समय तक शरीर स्वस्थ नहीं रहता। अत: शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अनेक उपचार किये जाते हैं। उनमें से प्रमुख (होता) है योग।

3. अस्माकं संस्कृ तौ …………………………….. कर्मसु कौशलम्।

शब्दार्थाः-अवधारणा = अभिप्राय। वर्तते = है। मनः = अन्त:करण, मन। एतेषु = इनमें से। एतेषाम् = इनका। सर्वेषाम् = सभी का। भूत्वा = होकर। एतान् = इनको। साधयितुं = साधने के लिए। तदा = उस समय, तब। समत्वम् = समानता का भाव। सन्ति = होते हैं।

हिन्दी-अनुवाद-हमारी संस्कृति और साहित्य में पाँच कोशों वाले विकास की अवधारणा है। शरीर, प्राण, मन, बुद्धि और आत्मा पाँच कोशों के साधन हैं (अर्थात् साधने वाले हैं।) इनमें आत्मा सबसे अधिक सूक्ष्म है। जब इन सभी साधनों की एक ही बिन्दु पर एक समय पर उपस्थिति होती है (तब) साधारण योग होता है। अर्थात् जब मनुष्य एकाग्रचित्त होकर समान भाव से इनको साधने का प्रयत्न करता है तब साधारण योग की स्थिति होती है। गीता में कहा गया है–समान भाव से कर्म करेना योग कहलाती है। योग के बहुत से प्रकार होते हैं। योग अनेक प्रकार से मानव के हित को सिद्ध करता है। जब मन और बुद्धि द्वारा एकाग्रता से निस्वार्थ कर्म किया जाता है तब करने योग्य कामों में कुशलता होती है। योग करने योग्य कामों में योग्यता को प्रकट करता है। कहा भी गया है—योग करने योग्य कार्यों में प्रवीणता प्राप्त करना है।

4. अद्य विश्वेन …………………………….. अष्टांगयोगशास्त्रमपि कथ्यते।

शब्दार्था:-विश्वेन = दुनिया ने, दुनिया के द्वारा। आयोज्यते = आयोजन किया जाता है। योगाभ्यासेन = योग का अभ्यास करने से शरीरावयवाः = शरीर के अंग। तीव्रा = तेज। अयं तु = यह तो। विशुद्धं = शुद्ध। कथ्यते = कहलाता है।

हिन्दी-अनुवाद–आज दुनिया ने योग की महत्ता को स्वीकार किया है। जून मास की इक्कीस तारीख को सारे संसार में योग दिवस का आयोजन किया जाता है। आज संसार स्वीकार करता है कि शरीर के सभी अंगों के विकास के लिए योग की आवश्यकता है। नियमित रूप से योग का अभ्यास करने से शरीर के अंग मजबूत हो जाते हैं। मन दृढ़ और खुश (प्रसन्न) होता है। बुद्धि तेज होती है। योग न केवल देह का व्यायाम है बल्कि यह तो व्यवस्थित विज्ञान है। महर्षि पतंजलि का योगशास्त्र अष्टांगयोगशास्त्र भी कहलाता है।

5. योगस्य अष्टाङ्गानि …………………………….. समाधिः भवति।

शब्दार्था:-अस्तेयम् = चोरी न करना। शौचम् = पवित्रता। स्वाध्यायम् च = स्वयं शास्त्रों को पढ़ना। आसन = सतत् उद्यमः। आसनानां सिद्ध्यनन्तरम् = आसनों की सिद्धि के पश्चात्। बहिरंग = बाहरी। बन्धः = रोक लेना। निर्विषयकता = विषयों की ओर आकर्षित न होना। भासते = प्रतीत होने लगता है, चमकता है। स्वस्य = अपना। सा = वह।

हिन्दी-अनुवाद-योग के आठ अंग हैं-

  1. यम सामाजिक नियम जैसे सत्य, अस्तेय (चोरी न करना) इत्यादि।
  2. नियम–व्यक्तिगत विकास के साधन जैसे शौच (पवित्रता), तप और स्वाध्याय (स्वयं अध्ययन में रुचि)।
  3. आसनम्-अभ्यास का केन्द्र।
  4. प्राणायाम- आसनों की सिद्धि के बाद प्राणगति का निरोध (अवरोध) प्राणायाम कहलाता है।
  5. प्रत्याहारः-बाह्य और अन्तरंग योग का मिलन प्रत्याहार कहलाता है।
  6. धारणा–चित्त का स्थान विशेष में रोकना धारणा होता है।
  7. ध्यान-चित्त की एकाग्रता, मन का विषयों से अलगाव ध्यान होता है।
  8. समाधि-ध्यान (एकाग्रचित्त) में जब ध्येय (लक्ष्य अर्थात् ध्यान करने योग्य) प्रकाशित होता है तब अपना स्वरूप नष्ट हो जाता है, वह स्थिति (अवस्था) समाधि होती है।

6. वर्तमानपरिप्रेक्ष्येऽपि …………………………….. अभ्यासः भवति।

शब्दार्थाः–परिप्रेक्ष्ये = स्थिति में करणीयः = करना चाहिए, करें। योगासनानाम् = योग शिक्षा के अनुसार बताये गये आसनों का। सोपानम् = सीढ़ी। मन्यते = मानी जाती है। द्वादश स्थितयः = बारह स्थितियाँ। तस्य = उसका। दृश्यते = देखा जाता है। उल्लेखितानि = वर्णित या उल्लेखित है। चतुरशीति = चौरासी।

हिन्दी-अनुवाद-वर्तमान परिप्रेक्ष्य में योग का अभ्यास हमें करना चाहिए। सूर्य नमस्कार योगासनों की पहली सीढ़ी मानी जाती है। सूर्य नमस्कार की बारह स्थितियाँ होती हैं। उसका बारह मन्त्रों द्वारा अभ्यास का भी स्वरूप समाज में देखा गया है। यद्यपि शास्त्रों में अनेक योगासनों का उल्लेख (वर्णन) है। फिर भी मुख्य रूप से चौरासी प्रमुख (खास) माने जाते हैं। जैसे शवासन, कमलासन, सर्पासन, शलभासन, धनुरासन आदि। प्राणायामों में भ्रामरी, सूर्य चन्द्र भेदी ब्रह्मनाद, अनुलोम, विलोम शीतली, पूरक, रेचक, भस्त्रिका, कपालभाति आदि का अभ्यास होता है।

7. एतैः सह …………………………….. सफला भविष्यति।

शब्दार्थाः एतैः = इनके द्वारा। सह= साथ-साथ। बंधानाम् = बन्धों का। अद्यतन = आज की। सर्वे भवन्तु सुखिनः = सभी मनुष्य सुखी हों। सर्वे सन्तु निरामया = और सभी लोग नीरोग तथा स्वस्थ हों। भविष्यति = होगी।

हिन्दी-अनुवाद–इनके साथ-साथ विभिन्न अंगुलियों की विशेष स्थितियों के बन्धों का अभ्यास भी योग में होता है। योग निर्दिष्ट आसनों के क्रमशः एवं नियमित अभ्यास से पंचकोशात्मक विकास होता है। आजकल की दिनचर्या में कुछ समय योगाभ्यास के लिए होगा तो ‘सभी सुखी हों और सभी नीरोग स्वस्थ हों’ ऐसी संसार के कल्याण की कामना सफल होगी।

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