Rajasthan Board RBSE Class 9 Sanskrit व्याकरण समास-प्रकरणम्
समास-संयुक्त करने को समास कहते हैं अथवा अनेक पदों का मिलकर एक पद होना समास है। अर्थात् जब अनेक पदों को मिलकर एक पद बना दिया जाता है तब वह समास कहा जाता है। जैसे—पूर्वोत्तरविभक्तिलोपः— सीतायाः पतिः = सीतापतिः। इस विग्रह में ‘सीतायाः’ पद में षष्ठी विभक्ति है और ‘पतिः’ इसमें प्रथमा विभक्ति सुनी जाती है। समास करने पर इन दोनों विभक्तियों का लोप होता है। इसके बाद ‘सीतापति’ इस समस्त शब्द से फिर प्रथमा विभक्ति की जाती है। इसी प्रकार सभी जगह समझना चाहिए।)
समासयुक्त शब्द समस्तपद कहा जाता है। यथा-सीतापतिः। समस्त शब्द का अर्थ जानने के लिए जो वाक्य कहा जाता है वह वाक्य ‘विग्रह’ कहा जाता है। यथा- रमायाः पतिः इसमें रमापतिः’ शब्द का विग्रह है। समास के होने पर अर्थ में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। जो अर्थ ‘सीता के पति’ (सीतायाः पतिः) इस विग्रह वाक्य का है वही अर्थ ‘सीतापतिः’ इसे समस्त शब्द का है।
समास का पहला पद ‘पूर्वपद तथा दूसरा पद उत्तरपद कहलाता है। जब दो या दो से अधिक पदों का मेल करके और बीच की कारक सम्बन्धी विभक्ति को हटाकर एक नवीन पद बनाया जाता है तो उसे समास करना कहते हैं। यथा- रामम् आश्रितः = रामाश्रितः।
जब समासयुक्त पद में कारक सम्बन्धी चिह्नों अर्थात् विभक्तियों का निर्देश कर दिया जाता है तो उसे समास का विग्रह करना कहा जाता है। समास के शब्दों में कभी पूर्व पद (पहला शब्द) प्रधान रहता है और कभी उत्तरपद (बाद का शब्द) या अन्य पद प्रधान रहता है।
समास के भेद-संस्कृत भाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद हैं। समास में प्रायः दो पद होते हैं- पूर्वपद और उत्तरपद। पद का अर्थ ‘पदार्थ होता है। जिस पदार्थ की प्रधानता होती है, उसी के अनुरूप ही समास की संज्ञा भी होती है। जैसे साधारण नियम के अनुसार पूर्व पदार्थ प्रधान अव्ययीभाव होता है और उत्तरपदार्थ प्रधान तत्पुरुष होता है। तत्पुरुष का भेद ‘कर्मधारय’ होता है। कर्मधारय का भेद ‘द्विगु’ होता है। प्रायः अन्य पदार्थ प्रधान बहुव्रीहि होता है। और उभये पदार्थ प्रधान द्वन्द्व होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से समास के छः भेद होते हैं।
1. अव्ययीभाव समासः
परिभाषा–जब विभक्ति इत्यादि अर्थों में उपस्थिति अव्यय पद सुबन्त के साथ मिलकर नित्य समास होता है, यही अव्ययीभाव समास होता है।
1. समास का प्रथम शब्द अव्यय और दूसरा संज्ञा शब्द होता है।
2. अव्यय पदार्थ अर्थात् पूर्वपदार्थ की प्रधानता होती है।
3. समास के दोनों पद मिलकर अव्यय होते हैं।
4. अव्ययीभाव समास नपुंसकलिंग के एकवचन में होता है। यथा-
2. तत्पुरुष समासः
परिभाषाः-उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः भवति।
तत्पुरुष समास में प्रायः उत्तरपदार्थ की प्रधानता होती है। यथा-राजः पुरुष = राजपुरुषः। यहाँ पर उत्तर पद पुरुष है उसी | की प्रधानता है। राजपुरुषम् आनय यदि यह कहा जाय तो पुरुष को ही लाया जाय न कि ‘राजा’ तत्पुरुष समास के | पूर्वपदे में जो विभक्ति होती है। प्रायः उसी के नाम से ही समास का नाम भी होता है। यथा-
अर्थात् जिस समास में उत्तर पद (बाद में आने वाले वाले पद) की प्रधानता होती है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। द्वितीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक छह विभक्तियों के आधार पर समास के छह भेद माने गये हैं। तत्पुरुष समास के प्रमुख तीन भेद हैं—
(क) व्यधिकरण तत्पुरुष- इसके 6 भेद होते हैं-
1. द्वितीया,
2. तृतीया,
3. चतुर्थी,
4. पंचमी,
5. षष्ठी,
6. सप्तमी।
(ख) समानाधिकरण-इसके दो भेद होते हैं-
1. कर्मधारय,
2. द्विगु
(ग) अन्य भेद–इसके चार भेद होते हैं-
1. अलुक् समास,
2. नञ् समास,
3. उपपद् समास,
4. प्रादि समास।
उदाहरणानि-
(i) द्वितीया तत्पुरुष- जिसमें प्रथम पद द्वितीया विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे-
(ii) तृतीया तत्पुरुष- जिसमें प्रथम पद तृतीया विभक्ति एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो। जैसे-
(iii) चतुर्थी तत्पुरुष- जिसमें प्रथम पद चतुर्थी विभक्ति का हो। जैसे-
(iv) पञ्चमी तत्पुरुष जिसमें प्रथम पद पञ्चमी विभक्ति का हो। जैसे-
(v) षष्ठी तत्पुरुष- जिस समास में प्रथम पद षष्ठी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, तो वह षष्ठी तत्पुरुष कहलाता है। जैसे-
(vi) सप्तमी तत्पुरुष–जहाँ प्रथम पद सप्तमी विभक्ति का एवं द्वितीय पद प्रथमा विभक्ति का हो, उसे सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
3. कर्मधारयः
परिभाषा- तत्पुरुषः समानाधिकरण कर्मधारयः। जब तत्पुरुष समास के दोनों पदों में एक विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। यह ही समास कर्मधारय नाम से जाना जाता है। इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य होता है।..
यथा–नीलम् कमलम् = नीलकमलम्। इस उदाहरण में नील कमलम्’ इन दोनों पदों में समान विभक्ति अर्थात् प्रथमा विभक्ति है। यहाँ ‘नीलम्’ यह विशेषण पद और कमलम्’ यह विशेष्य पद है। इसीलिए यह कर्मधारय समास है।
उदाहरण-
(i) विशेषण-विशेष्यकर्मधारयः
(ii) उपमानोपमेय कर्मधारयः
(iii) उपमानोत्तरपदकर्मधारयः
(iv) अवधारणापूर्वपदकर्मधारयः
4. द्विगुसमासः
परिभाषा ‘संख्यापूर्वो द्विगु’इस पाणिनीय सूत्र के असार जब कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाची और उत्तर पद संज्ञावाची होता है तब वह द्विगु समास कहा जाता है।
1. यह समास समूह अर्थ में होता है।
2. समस्त पद सामान्यतया नपुंसकलिंग एकवचन में अथवा स्त्रीलिंग एकवचन में होता है।
3. इसके विग्रह में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
कुछ द्विगु समास ईकारान्त स्त्रीलिंग भी होते हैं। यथा-
5. बहुव्रीहि समासः
रिभाषा-‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहि-जिस समास में जब अन्य पदार्थ की प्रधानता होती है तब वह बहुव्रीहि समास कहा जाता है। अर्थात् जिस समास में न तो पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है न ही उत्तर पदार्थ की प्रधानता है अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का बोध कराते हैं। समस्त पद का प्रयोग अन्य पदार्थ के विशेषण रूप में होता है। यथा–पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (विष्णुः) यहाँ ‘पीतम्’ तथा ‘अम्बरम्’ इन दोनों पदों में अर्थ की प्रधानता नहीं है अर्थात् ‘पीलावस्त्र’ इस अर्थ का ग्रहण नहीं होता है, अपितु दोनों पदार्थ मिलकर अन्य पदार्थ का अर्थात् विष्णु का बोध कराते हैं। अर्थात् ‘पीताम्बरः’ यह समस्तपदार्थ ‘विष्णु है। इसलिए यहाँ बहुव्रीहि समास है। इसके अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं
(i) समानाधिकार-बहुव्रीहिः–जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में समान विभक्ति (प्रथमा विभक्ति) होती है तब वह समानाधिकरण बहुव्रीहि होता है। यथा-
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहिः–यदा समासस्य पूर्वोत्तरपदयोः भिन्न-विभक्ति भवतः तदा सः व्यधिकरणबहुव्रीहिः भवति। (जब समास के पूर्व पद और उत्तर पद में अलग-अलग विभक्तियाँ होती हैं तब वह व्याधिकरण बहुव्रीहि होता है।) यथा-
(iii) तुल्ययोगे बहुव्रीहिः–यहाँ सह शब्द का तृतीयान्त पद के साथ समास होता है, यथा-
(iv) उपमानवाचकबहुव्रीहिः-यथा-
6. द्वन्द्वसमासः
द्वन्द्वः समासस्य परिभाषा ‘चार्थे द्वन्द्वः’द्वन्द्व समास में परस्पर आकांक्षायुक्त दो पदों के मध्य में ‘च’ आता है, इसलिए द्वन्द्व समास उभय पदार्थ प्रधान होता है। जैसे–धर्म: च अर्थ: च = धर्मार्थी। यहाँ पूर्व पद धर्म: और उत्तर पद अर्थ: इन दोनों की ही प्रधानता है। द्वन्द्व समास में समस्त पद प्रायः द्विवचन में होता है।
अब समस्त पदों का समास विग्रह भी समझें-
पाठ्य पुस्तक ‘सरसा’ से संबंधित समास (समस्त पद)
अभ्यास 1
वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अव्ययीभाव समासस्य अस्ति
(अ) पीताम्बरः
(ब) नीलकमलम्।
(स) यथाशक्ति।
(द) त्रिलोकी
उत्तर:
(स) यथाशक्ति।
प्रश्न 2.
बहुव्रीहि समासस्य उदाहरणम् अस्ति
(अ) महापुरुषः
(ब) चतुर्युगम्।
(स) उपकृष्णम्।
(द) प्राप्तोदकः
उत्तर:
(द) प्राप्तोदकः
प्रश्न 3.
चन्द्रशेखरः इति पदे समासः अस्ति
(अ) बहुव्रीहि
(ब) कर्मधारय
(स) अव्ययीभावः
(द) द्विगु
उत्तर:
(अ) बहुव्रीहि
प्रश्न 4.
कर्मधारय समासस्य उदाहरणम् अस्ति
(अ) पीताम्बरम्।
(ब) पीताम्बरः
(स) निर्मक्षिकम्।
(द) पञ्चपात्रम्
उत्तर:
(अ) पीताम्बरम्।
प्रश्न 5.
द्विगु समासस्य उदाहरणम् अस्ति
(अ) दशाननः
(ब) दशपात्रम्
(स) अनुरथम्।
(द) महापुरुषः
उत्तर:
(ब) दशपात्रम्
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः
निम्नलिखित पदानां समास विग्रहः कर्तव्यः-
लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
निम्नलिखित पदानां समासविग्रहं कृत्वा सम्मसस्य नामापि लेख्यः-
प्रश्न 1.
निम्नलिखित विग्रह वाक्यानां समासः करणीयः
उत्तर:
प्रश्न 2.
‘क’ खण्ड ‘ख’ खण्डेन सह योजयत्
उत्तर:
अभ्यास 2
निम्नलिखितयोः सामासिक पदयोः संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समास्य नाम लिखत
प्रश्न 1.
(i) यथाशक्ति।
(ii) पञ्चपात्रम्।
उत्तर:
(i) शक्तिम् अनतिक्रम्यः = अव्ययीभाव समास। (शक्ति के अनुसार)
(ii) पञ्चानां पात्राणां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच पात्रों का समूह)।
प्रश्न 2.
(i) घनश्यामः।
(ii) निर्धनः।
उत्तर:
(i) घन इव श्यामः = कर्मधारय समास। (मेघ के समान श्यामल–कृष्ण)
(ii) निर्गतं धनं यस्मात् = बहुव्रीहि समास। (नष्ट हो गया है धन जिससे)
प्रश्न 3.
(i) चतुर्युगम्।
(ii) सहरि।
उत्तर:
(i) चतुर्णाम् युगानां समाहारः = द्विगु समास। (चार युगों का समूह)
(ii) हरेः सादृश्यम् = अव्ययीभाव समास। (हरि के सदृश)
प्रश्न 4.
(i) महामुनिः।
(ii) शान्तिप्रियः।
उत्तर:
(i) महांश्चासौ मुनिः = कर्मधारय समास। (महान् मुनि)
(ii) शान्तिः प्रिया यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (शान्ति है प्रिय जिसको)
प्रश्न 5.
(i) पञ्चवटी
(ii) निर्मक्षिकम्।
उत्तर:
(i) पञ्चानां वटानां समाहारः = द्विगु समास। (पाँच वटों का समूह)
(ii) मक्षिकाणाम् अभावः = अव्ययीभाव समास। (मक्खियों से रहित)
प्रश्न 6.
(i) शताब्दी
(ii) प्रत्येकम्।
उत्तर:
(i) शतानाम् अब्दानां समाहारः = द्विगु समास। (सौ वर्षों का समूह)
(ii) एकम् एकं प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर एक)
प्रश्न 7.
(i) महर्षिः
(ii) निर्लज्जः।
उत्तर:
(i) महांश्च असौ ऋषिः = कर्मधारय समास। (महान् ऋषि)
(ii) निर्गता लज्जा यस्मात् सः = बहुव्रीहि समास। (निकल गई है लज्जा जिससे)
प्रश्न 8.
(i) द्वियमुनम्
(ii) प्रतिदिनम्।
उत्तर:
(i) द्वयोः यमुनयोः समाहारः = द्विगु समास। (दो यमुनाओं का समूह)
(ii) दिन दिने प्रति = अव्ययीभाव समास। (हर दिन)।
प्रश्न 9.
(i) मुखचन्द्रः
(ii) यशोधनः।
उत्तर:
(i) चन्द्रः इव मुखम् = कर्मधारय समास। (चन्द्रमा के समान मुख)
(ii) यशः एव धनं यस्य सः = बहुव्रीहि समास। (यश ही है धन जिसका)
प्रश्न 10.
(i) भूतबलि
(i) रघुकुलजन्मा।
उत्तर:
(i) भूतेभ्यः बलि = चतुर्थी तत्पुरुषः समास। (भूतों के लिए बलि)
(ii) रघुकुले जन्म यस्य सः = बहुव्रीहिः समासे। (रघुकुल में हुआ है जन्म जिसका वह रामचन्द्र)
अभ्यास 3
निम्नलिखित समस्तपदानि कृत्वा समासनामोल्लेख क्रियताम्
प्रश्न 1.
(i) विविधाः प्रयोगाः (विविध प्रयोग।)
(ii) मनुष्येषु देवः यः सः (मनुष्यों में देव है, जो वह (राजा)।
उत्तर:
(i) विविध प्रयोगाः, कर्मधारय समास
(ii) मनुष्य देवः, बहुव्रीहि समास।
प्रश्न 2.
(i) महान् च असौ राष्ट्रः (महान् राष्ट्र।)
(ii) ऊढ़ः रथः येन सः (वहन किया है रथ जिसने, वह (घोड़ा))।
उत्तर:-
(i) महाराष्ट्र, कर्मधारय समास
(ii) ऊढरथः, बहुव्रीहि समास।
प्रश्न 3.
(i) त्रयाणां लोकानां समाहारः (तीन लोकों का समूह।)
(ii) कामम् अनतिक्रम्य इति (जितनी इच्छा हो उतना।)
उत्तर:
(i) त्रिलोक, द्विगु समास
(ii) यथाकामम्, अव्ययीभाव समास।
प्रश्न 4.
(i) अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः (आठ अध्यायों का समूह।)
(ii) रूपस्य योग्यम् (रूप के योग्य।)
उत्तर:
(i) अष्टाध्यायी, द्विगु समास
(ii) अनुरूपम्, अव्ययीभाव समास।
प्रश्न 5.
(i) दश आननानि यस्य सः (रावणः) (दस हैं मुख जिसके, वह (रावण))।
(ii) महान् अर्णवः (महान् समुद्र।)
उत्तर:
(i) दशाननः, बहुव्रीहि समास
(ii) महार्णवः, कर्म रय समांस।
प्रश्न 6.
(i) पञ्चानां गवां समाहारः (पाँच गायों या बैलों का समूह)।
(ii) जनानाम् अभावः (सुनसान।)
उत्तर:
(i) पञ्चगवम्, द्विगु समास
(ii) निर्जनम्, अव्ययीभाव समास।
प्रश्न 7.
(i) पुरुषः व्याघ्रः इव (शूरः) (पुरुष व्याघ्र के समान बहादुर।)
(ii) चन्द्रः इव मुखं यस्य सः (चन्द्रमा के समान है मुख जिसका।)
उत्तर:
(i) पुरुषव्याघ्रः, कर्मधारय समास
(ii) चन्द्रमुखः, बहुव्रीहि समास।
प्रश्न 8.
(i) पञ्चानां गंगानां समाह्मरः (पाँच गंगाओं का समूह।)
(ii) गुरोः समीपम् (गुरु के समीप।)
उत्तर:
(i) पञ्चगंगम्, द्विगु समास
(ii) उपगुरु, अव्ययीभाव समास।
प्रश्न 9.
(i) चतुरः चौरः (चतुर चोर।)
(ii) दीर्घो बाहु यस्य सः (दीर्घ हैं बाहु जिसकी।)
उत्तर:
(i) चतुर चौरः, कर्मधारय समास
(ii) दीर्घबाहुः, बहुव्रीहि समास।
प्रश्न 10.
(i) क्षणं क्षणं प्रति (प्रत्येक क्षण।)
(ii) त्रयाणां भुवनानां समाहारः (तीन भुवनों का समूह।)
उत्तर:
(i) प्रतिक्षणम्, अव्ययीभाव समास,
(ii) त्रिभुवनम्, द्विगु समास।
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